hotaks444
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घर की चौखट पार कर दोनो माँ-बेटे मल्टी की सीढ़ियां उतर रहे थे, एक-दूसरे के बिलकुल समानांतर और जल्दी ही वे निचले तल पर पहुँच गए। अभिमन्यु को सहसा अहसास हुआ जैसे उसकी माँ थोड़ा लंगड़ा कर चल रही थी, अपने हर बढ़ते कदम पर कभी वह अपनी टांगों को चिपकाकर छोटे-छोटे कदमों से चलने लगती तो कभी एकदम से टांगों को चौड़ाकर लंबे-लंबे पग धरना शुरू कर देती। पार्किंग तक वह बड़े गौर से अपनी माँ की चाल मे आए अंतर का अवलोकन करता रहा मगर जब उसे लगा कि सचमुच उसकी माँ को चलने मे तकलीफ हो रही है, वह तत्काल कारण बताओ नोटिस जारी कर देता है।
"क्या हुआ मॉम, चलने मे दिक्कत हो रही है?" उसने वैशाली के सैंडि़ल की हील को देखते हुए पूछा, भले हील की ऊंचाई मीडियम थी पर हाल-फिलहाल तो उसकी लंगड़ाहट की वजह उसे यही समझ आती है।
"इतना गौर तो मैं भी तुमपर नही कर पाती जितना आजकल तुम अपनी माँ पर करने लगे हो। डिटेक्टिव मत बनो, चुपचाप बाइक चलाओ। समझे!" वैशाली मुस्कुराते हुए कहती है।
"इतना शक तो तुम अपने पति पर भी नही करती जितना आजकल अपने बेटे पर करने लगी हो। पुलिसवाली मत बनो चुपचाप बाइक पर बैठो। समझीं!" अभिमन्यु ने भी फौरन नहले पर देहला दे मारा और मल्टी के बाहर हमेशा सभ्यता से रहने वाले माँ-बेटे खुलेआम जोरों से हँसना शुरू कर देते हैं।
दोनो माँ-बेटे बाइक पर सवार हो चुके थे और जल्द ही बाइक हवा से बातें करने लगी।
"मन्यु कन्ट्रोल योरसेल्फ! मैं माँ हूँ तुम्हारी, कोई गर्लफ्रेंड नही जो मुझे इम्प्रेस करने के लिए बाइक इतनी तेज चलाओगे" बाइक की तेज गति से घबराकर वैशाली ने बेटे को टोकते हुए कहा।
"मुझे कसकर पकड़ लो मॉम, मेरी तमन्ना थी कि कभी किसी लड़की को अपने पीछे बिठाकर वाकई उसे इम्प्रेस कर सकूं। डोन्ट वरी, खुद से ज्यादा मुझे तुम्हारी फिक्र है" कहकर अभिमन्यु एकाएक एक्सलरेटर बढ़ा देता है ताकि उससे दूरी बनाकर बैठी उसकी माँ खुद ब खुद उससे चिपककर बैठ जाए और हुआ भी ठीक यही, वैशाली ने फौरन अपना बायां हाथ आगे लाकर बेटे के पेट पर रख दिया और दाएं को उसकी गरदन से नीचे लाते हुए वह बलपूर्वक उसकी बाईं पसली पकड़ लेती है। जब-जब अभिमन्यु उसे एक लड़की की संज्ञा देता था जाने क्यों हरबार उसका दिल खुशी से नाच उठता था, माना अपने पति मणिक के स्कूटर के पीछे वह अनगिनत बार बैठी थी मगर जिस बुरी तरह अभी उसने अपने बेटे को जकड़ा हुआ था, अपनी उस जकड़ पर वह खुद को बेहद रोमांचित होना महसूस कर रही थी।
'कारण' या तो विधि के विधान से बनते हैं या अपनी स्वयं की करनी से। मणिक का इस अधेड़ उम्र मे अचानक से पैसे कमाने मे जुट जाना विधि का विधान था क्योंकि अपने और अपने परिवार के सुखमय भविष्य के लिए उसे घर के मुखिया होने का अपना फर्ज हर हाल मे पूरा करना था यकीनन जिस कर्तव्य के लिए ही उसका जन्म हुआ था। एक पति और पिता की भूमिका मौखिक निभाने के अलावा उसे अपने आश्रितों का हर संभव पालन-पोषण भी करना था। वैशाली जो कि अचानक अपने पति से बिछड़ गई थी, भले ही इस बिछड़न को पति-पत्नी द्वारा जानबूझकर नही रचा गया था मगर मणिक के साथ ताउम्र जीवन का निर्वाह करते हुए उसे हर विवाहित नारी की तरह अपने पति के साथ की एक चिरपरिचित आदत हो चुकी थी। पति का साथ सिर्फ उसके साथ हँस-बोल लेने या ऊपरी प्यार दर्शा लेने आदि भर से पूरा नही होता, एक पत्नी को बिस्तर पर अपने पति रूपी मर्द के नीचे चरमरा उठने की चाह भी हमेशा रहती है और जिस चाह से वैशाली एकदम से वंचित रहने लगी थी। अब यदि ऐसे मे उसकी चाह बिस्तर पर किसी पराए मर्द का साथ चाहने लगे और वह पराया मर्द भी कोई अन्य नही उसका अपना सगा जवान बेटा अभिमन्यु तो इसे विधि का विधान कदापि नही कहा जाएगा, यह पति से तिरस्कृत अपने यौवन के हाथों मजबूर उस नारी की अपनी स्वयं की करनी थी।
"अगर मैं गिरी तो याद रखना बहुत मारूंगी तुम्हें" बाइक की गति तेज होने की वजह से वैशाली बेटे के दाएं कान मे चिल्लाते हुए बोली, सट तो वह उससे पहले से ही चुकी थी और अब उसका बायां चिकना गाल सीधे अभिमन्यु के दाएं कान से रगड़ खाने लगा था।
"मैं कुछ कहना चाहता हूँ मॉम पर चौंकना मत वर्ना जरूर बाइक गिर जाएगी" वह भी जोर से चिल्लाया।
"क्या कहना चाहते हो?" उत्सुकता वश वैशाली ने तुरन्त पूछा और वैसे भी जब बेटे ने उसे पहले ही चौंक ना पड़ने की चेतावनी दे दी थी तब वह अवश्य कोई ऐसी शैतानी भरी बात कहने वाला था जो यकीनन उसकी माँ को हैरत से भर देती।
"मेरी दूसरी तमन्ना भी पूरी हो गई मम्मी, मुझसे सटकर बैठने वाली लड़की के बूब्स मेरी पीठ पर गड़ रहे हैं। काश कि अभी उसने ब्रा नही पहनी होती मगर फिर भी मैं बता नही सकता मुझे कितना मजा आ रहा है ...हु! हूऽऽ!" अभिमन्यु बेशर्मों की भांति हँसते हुए बोला और अकस्मात् बाइक को और भी तेजी से भगाने लगता है।
"हुंह! तुम्हारी बेशर्मी का बस चले तो अपनी माँ को नंगी ही बाइक पर बिठा लो" वैशाली ने चिढ़ने का दिखावा करते हुए कहा, साथ ही वह महसूस करती है कि अश्लीलता से प्रचूर उनके कथनों के प्रभाव से उसके निप्पल अचानक तीव्रता से तनने लगे थे और जिन पर उसके बेटे की मजबूत पीठ का दबाव उसे बड़ा सुखमय सा प्रतीत हो रहा था।
"अच्छा है मम्मी कि तुमने कपड़े पहन रखे हैं वर्ना राह चलते मर्दों को कहीं की भड़स कहीं पर निकालनी पड़ती। खीं! खीं! खीं! खीं!" वह खिखियाते हुए बोला।
"वैसे एक बताओ, क्या कभी पापा के स्कूटर पर तुम्हें इतने मजे आए हैं?" उसने पूछा तो वैशाली एकाएक गहरी सोच मे डूब गई।
घर हो या बाहर, मणिक का अनुशासन हमेशा से कड़क रहा था। वह ना तो खुद कभी फूहड़पने की बात या हरकतें करता और ना किसी अन्य का फूहड़पन कभी उसे बरदाश्त होता, अपनी मर्यादा और गरिमा दोनो को सदा एक-सा बनाए रखने वाले मणिक को उसके सभी मित्रगण और रिश्तेदार सदैव बड़ी गम्भीरता से लिया लिया करते थे। जबतब अपने बीवी-बच्चों से उसका हँसी मजाक होता भी तब भी उसके अलावा अन्य तीनों मे से किसी को हँसी नही आया करती थी, वह तो इज्जत की मजबूरी होती तो जबरन हँस दिया करते थे। पत्नी संग एकांतवास मे भी उसकी गंभीरता यूं ही बरकरार रहती मगर इसका यह अर्थ कदापि नही कि उसकी मर्दानगी मे कभी कोई कमी रही हो, बल्कि अपने बच्चों के जवान हो जाने के बावजूद वह रोजाना नियम से अपनी पत्नी की जमकर चुदाई किया करता था। 'पेट भर कौरा और कलाई भर लौड़ा' इस अत्यंत मजेदार पू्र्ण स्वदेशी कहावत का सही अर्थ वैशाली जैसी समझदार और घरेलू स्त्रियां ही जान सकती हैं, जिन्हें अपने पति द्वारा उनके विवाहित जीवन मे पेट भर खाना और संतुष्ट संभोग इन दोनो मूलभूत आवश्यकताओं की कभी कोई कमी नही रहती।
"मुझे तो कोई मजा नही आ रहा, तुम्हें जरूर कोई गलतफहमी हुई है" अपनी सोच से बाहर निकल वैशाली थोड़ा क्रोधित स्वर मे बोली, एकाएक पति के स्मरण ने उसे खुद पर ही क्रोध दिला दिया था। एक उसका पति था जो अपने परिवार के साथ का त्याग कर उन सब के खुशहाल भविष्य को संजोने मे जी जान से जुटा हुआ था और एक वह थी जो अपने ही सगे बेटे संग व्यभिचार करने को उतावली हुई जा रही थी।
"क्या हुआ मॉम, चलने मे दिक्कत हो रही है?" उसने वैशाली के सैंडि़ल की हील को देखते हुए पूछा, भले हील की ऊंचाई मीडियम थी पर हाल-फिलहाल तो उसकी लंगड़ाहट की वजह उसे यही समझ आती है।
"इतना गौर तो मैं भी तुमपर नही कर पाती जितना आजकल तुम अपनी माँ पर करने लगे हो। डिटेक्टिव मत बनो, चुपचाप बाइक चलाओ। समझे!" वैशाली मुस्कुराते हुए कहती है।
"इतना शक तो तुम अपने पति पर भी नही करती जितना आजकल अपने बेटे पर करने लगी हो। पुलिसवाली मत बनो चुपचाप बाइक पर बैठो। समझीं!" अभिमन्यु ने भी फौरन नहले पर देहला दे मारा और मल्टी के बाहर हमेशा सभ्यता से रहने वाले माँ-बेटे खुलेआम जोरों से हँसना शुरू कर देते हैं।
दोनो माँ-बेटे बाइक पर सवार हो चुके थे और जल्द ही बाइक हवा से बातें करने लगी।
"मन्यु कन्ट्रोल योरसेल्फ! मैं माँ हूँ तुम्हारी, कोई गर्लफ्रेंड नही जो मुझे इम्प्रेस करने के लिए बाइक इतनी तेज चलाओगे" बाइक की तेज गति से घबराकर वैशाली ने बेटे को टोकते हुए कहा।
"मुझे कसकर पकड़ लो मॉम, मेरी तमन्ना थी कि कभी किसी लड़की को अपने पीछे बिठाकर वाकई उसे इम्प्रेस कर सकूं। डोन्ट वरी, खुद से ज्यादा मुझे तुम्हारी फिक्र है" कहकर अभिमन्यु एकाएक एक्सलरेटर बढ़ा देता है ताकि उससे दूरी बनाकर बैठी उसकी माँ खुद ब खुद उससे चिपककर बैठ जाए और हुआ भी ठीक यही, वैशाली ने फौरन अपना बायां हाथ आगे लाकर बेटे के पेट पर रख दिया और दाएं को उसकी गरदन से नीचे लाते हुए वह बलपूर्वक उसकी बाईं पसली पकड़ लेती है। जब-जब अभिमन्यु उसे एक लड़की की संज्ञा देता था जाने क्यों हरबार उसका दिल खुशी से नाच उठता था, माना अपने पति मणिक के स्कूटर के पीछे वह अनगिनत बार बैठी थी मगर जिस बुरी तरह अभी उसने अपने बेटे को जकड़ा हुआ था, अपनी उस जकड़ पर वह खुद को बेहद रोमांचित होना महसूस कर रही थी।
'कारण' या तो विधि के विधान से बनते हैं या अपनी स्वयं की करनी से। मणिक का इस अधेड़ उम्र मे अचानक से पैसे कमाने मे जुट जाना विधि का विधान था क्योंकि अपने और अपने परिवार के सुखमय भविष्य के लिए उसे घर के मुखिया होने का अपना फर्ज हर हाल मे पूरा करना था यकीनन जिस कर्तव्य के लिए ही उसका जन्म हुआ था। एक पति और पिता की भूमिका मौखिक निभाने के अलावा उसे अपने आश्रितों का हर संभव पालन-पोषण भी करना था। वैशाली जो कि अचानक अपने पति से बिछड़ गई थी, भले ही इस बिछड़न को पति-पत्नी द्वारा जानबूझकर नही रचा गया था मगर मणिक के साथ ताउम्र जीवन का निर्वाह करते हुए उसे हर विवाहित नारी की तरह अपने पति के साथ की एक चिरपरिचित आदत हो चुकी थी। पति का साथ सिर्फ उसके साथ हँस-बोल लेने या ऊपरी प्यार दर्शा लेने आदि भर से पूरा नही होता, एक पत्नी को बिस्तर पर अपने पति रूपी मर्द के नीचे चरमरा उठने की चाह भी हमेशा रहती है और जिस चाह से वैशाली एकदम से वंचित रहने लगी थी। अब यदि ऐसे मे उसकी चाह बिस्तर पर किसी पराए मर्द का साथ चाहने लगे और वह पराया मर्द भी कोई अन्य नही उसका अपना सगा जवान बेटा अभिमन्यु तो इसे विधि का विधान कदापि नही कहा जाएगा, यह पति से तिरस्कृत अपने यौवन के हाथों मजबूर उस नारी की अपनी स्वयं की करनी थी।
"अगर मैं गिरी तो याद रखना बहुत मारूंगी तुम्हें" बाइक की गति तेज होने की वजह से वैशाली बेटे के दाएं कान मे चिल्लाते हुए बोली, सट तो वह उससे पहले से ही चुकी थी और अब उसका बायां चिकना गाल सीधे अभिमन्यु के दाएं कान से रगड़ खाने लगा था।
"मैं कुछ कहना चाहता हूँ मॉम पर चौंकना मत वर्ना जरूर बाइक गिर जाएगी" वह भी जोर से चिल्लाया।
"क्या कहना चाहते हो?" उत्सुकता वश वैशाली ने तुरन्त पूछा और वैसे भी जब बेटे ने उसे पहले ही चौंक ना पड़ने की चेतावनी दे दी थी तब वह अवश्य कोई ऐसी शैतानी भरी बात कहने वाला था जो यकीनन उसकी माँ को हैरत से भर देती।
"मेरी दूसरी तमन्ना भी पूरी हो गई मम्मी, मुझसे सटकर बैठने वाली लड़की के बूब्स मेरी पीठ पर गड़ रहे हैं। काश कि अभी उसने ब्रा नही पहनी होती मगर फिर भी मैं बता नही सकता मुझे कितना मजा आ रहा है ...हु! हूऽऽ!" अभिमन्यु बेशर्मों की भांति हँसते हुए बोला और अकस्मात् बाइक को और भी तेजी से भगाने लगता है।
"हुंह! तुम्हारी बेशर्मी का बस चले तो अपनी माँ को नंगी ही बाइक पर बिठा लो" वैशाली ने चिढ़ने का दिखावा करते हुए कहा, साथ ही वह महसूस करती है कि अश्लीलता से प्रचूर उनके कथनों के प्रभाव से उसके निप्पल अचानक तीव्रता से तनने लगे थे और जिन पर उसके बेटे की मजबूत पीठ का दबाव उसे बड़ा सुखमय सा प्रतीत हो रहा था।
"अच्छा है मम्मी कि तुमने कपड़े पहन रखे हैं वर्ना राह चलते मर्दों को कहीं की भड़स कहीं पर निकालनी पड़ती। खीं! खीं! खीं! खीं!" वह खिखियाते हुए बोला।
"वैसे एक बताओ, क्या कभी पापा के स्कूटर पर तुम्हें इतने मजे आए हैं?" उसने पूछा तो वैशाली एकाएक गहरी सोच मे डूब गई।
घर हो या बाहर, मणिक का अनुशासन हमेशा से कड़क रहा था। वह ना तो खुद कभी फूहड़पने की बात या हरकतें करता और ना किसी अन्य का फूहड़पन कभी उसे बरदाश्त होता, अपनी मर्यादा और गरिमा दोनो को सदा एक-सा बनाए रखने वाले मणिक को उसके सभी मित्रगण और रिश्तेदार सदैव बड़ी गम्भीरता से लिया लिया करते थे। जबतब अपने बीवी-बच्चों से उसका हँसी मजाक होता भी तब भी उसके अलावा अन्य तीनों मे से किसी को हँसी नही आया करती थी, वह तो इज्जत की मजबूरी होती तो जबरन हँस दिया करते थे। पत्नी संग एकांतवास मे भी उसकी गंभीरता यूं ही बरकरार रहती मगर इसका यह अर्थ कदापि नही कि उसकी मर्दानगी मे कभी कोई कमी रही हो, बल्कि अपने बच्चों के जवान हो जाने के बावजूद वह रोजाना नियम से अपनी पत्नी की जमकर चुदाई किया करता था। 'पेट भर कौरा और कलाई भर लौड़ा' इस अत्यंत मजेदार पू्र्ण स्वदेशी कहावत का सही अर्थ वैशाली जैसी समझदार और घरेलू स्त्रियां ही जान सकती हैं, जिन्हें अपने पति द्वारा उनके विवाहित जीवन मे पेट भर खाना और संतुष्ट संभोग इन दोनो मूलभूत आवश्यकताओं की कभी कोई कमी नही रहती।
"मुझे तो कोई मजा नही आ रहा, तुम्हें जरूर कोई गलतफहमी हुई है" अपनी सोच से बाहर निकल वैशाली थोड़ा क्रोधित स्वर मे बोली, एकाएक पति के स्मरण ने उसे खुद पर ही क्रोध दिला दिया था। एक उसका पति था जो अपने परिवार के साथ का त्याग कर उन सब के खुशहाल भविष्य को संजोने मे जी जान से जुटा हुआ था और एक वह थी जो अपने ही सगे बेटे संग व्यभिचार करने को उतावली हुई जा रही थी।