hotaks444
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उसे अच्छे से याद था कि अपने कमरे मे लौटने के पश्चात वह वापस अपनी माँ के बेडरूम की ओर गया था और इसबार वह पूरी तरह से नंगा था, हालांकि उसके बेडरूम के भीतर पुनः प्रवेश करने की उसकी हिम्मत नही हो सकी थी मगर बेडरूम के खुले दरवाजे पर वह काफी देर तक खड़ा रहा था। कमरे मे फैली नाइट बल्ब की हल्की मगर दूधिया रोशनी मे उसे उसकी माँ अपनी उसी अधनंगी अवस्था मे बिस्तर पर लेटी हुई दिखाई दी और उसकी खुली आँखों को खुद पर गड़े देख अभिमन्यु तत्काल पीछे भी नही हट पाया था।
दोनो टकटकी लगाए एक-दूसरे को ही देख रहे थे मगर उनकी सांसें, धड़कने तक स्वत: ही मूक हो गई थी। हॉल की एलईडी मे वैशाली अपने बेटे के नंगे बलिष्ठ शरीर को सरलतापूर्वक बेहद स्पष्टरूप से देख पा रही थी और समयानुसार उसकी आँखें बेटे के पेट से बारंबार ठोकर खाते उसके अत्यंत कठोर लंड से चिपककर रह जाती हैं। अभिमन्यु के शरीर के ठीक विपरीत उसका गुप्तांग पूरी तरह से रोम-मुक्त था, सूजे सुपाडे़ से लगातार बाहर छलकते चिपचिपे रस के कारण अपने सगे जवान बेटे का सुपाड़ा उस माँ को उतने दूर से भी काफी चमकता हुआ नजर आ रहा था, साथ ही उसके लंड की गोलाई उसे स्वयं अपनी कलाई समान मोटी प्रतीत हो रही थी और जिसके नीचे लटके उसके बरबस फूलते-पिचकते टट्टे पर तो मानो एकाएक उस कामांध माँ का प्रेम ही उमड़ पडता है, उसकी निकृष्ट सोच के मुताबिक जिनके भीतर सिवाय गाढ़े वीर्य के कुछ और भरा भी नही हो सकता था।
वैशाली के ह्रदय मे अचानक टीस उठने लगी कि काश वह अपने बेटे को उसकी उसी नग्नता मे बेहद करीब से देख पाती, हालांकि अभिमन्यु के जवान होने के बाद वह उसका लंड पहले भी कई बार देख चुकी थी मगर तब हमेशा उसके अंतर्मन मे ग्लानिभाव उभर जाया करते थे और क्षणिक समय मे ही वह अपनी आँखें दूसरी दिशा मे मोड़ लिया करती थी, जो ग्लानिभाव अभी वर्तमान मे उस माँ को जरा भी महसूस नही हो रहे थे। दोनो माँ-बेटे जाने कितनी देर तक एक-दूसरे के चेहरे, नग्न बदन को घूरते रहे मगर चाहकर भी कुछ कह-सुन नही पाए थे और जब अभिमन्यु अपनी माँ की कामुक आँखों का लगातार जुड़ाव अपने खड़े लंड पर बरदाश्त नही कर पाता वह तीव्रता से अपने कमरे मे वापस लौट आया था।
"इसलिए मैं नंगा हूँ और माँ के लौड़े! तू सप्राइज मतो हो कि तू क्यों फड़फड़ा रहा है?" बीती यादों से बाहर निकल अपने लंड की कठोरता पर अभिमन्यु चूतियों जैसे उसे डांटते हुए बड़बड़ाया।
"सप्राइज!" उसका कहा यह विशेष शब्द मानो उसे बिस्तर पर उछल पड़ने पर मजबूर कर देता है क्योंकि उसके शैतानी दिमाग मे एकाएक एक ऐसा पापी ख्याल पनप चुका था कि जिसके पनपने के उपरान्त वह फौरन किसी राक्षस समान अपने नुकीले दांत बाहर निकाल देता है।
"श्श्श्! आवाज नही होनी चाहिए" बिस्तर से नीचे उतरते हुए वह हौले से फुसफुसाया और बेहद धीमी चाल चलते अपने कमरे के बंद दरवाजे के नजदीक आ जाता है। आगे वह जो कुछ भी अनर्थ करने वाला था उस पर एक अंतिम विचार करते समय उसे अहसास हुआ जैसे वह एकदम से झड़ने के करीब पहुँच गया हो, अपने ही लंड की असीम कठोरता ने आज उस जवान युवक को बुरी तरह से चौंकने पर मजबूर कर दिया था।
अभिमन्यु ने हल्के हाथ से दरवाजे का नॉब घुमाया और खटपट की कोई ध्वनि सुनाई नही देने पर उसका आत्मविश्वास पल मे दूना हो जाता है, तत्पश्चात थोड़ा पीछे हटकर वह दरवाजे को भी बिना किसी चरमराहट के खोल देने मे सफल हो गया। किस्मत उसके साथ है ऐसा सोच उसने मन के सारे नकारात्मक विचार फौरन त्याग दिए और कुछ गहरी सांसें लेकर वह नंगा ही अपने कमरे की दहलीज को लांघ जाता है।
किस्मत व भाग्य हमेशा आपके पक्ष मे हों यह जरूरी नही और यही तत्काल अभिमन्यु के साथ हुआ, अभी अपने दो कदम भी वह आगे बढ़ा नही पाया था कि सामने के दृश्य को देख उसका सर्वस्व हिल उठता है। भय, घबराहट, रोमांच, उत्तेजना एकसाथ कई भाव मिलकर उसपर टूट पड़े थे क्योंकि हॉल की डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठकर आज का अखबार पढ़ता उसका पिता उसे दिखाई दे गया था। मणिक की पीठ उसकी ओर होने से वह उसे उसकी नंगी हालत मे देख तो नही सकता था पर अगले ही क्षण तब दोबारा उस नंगे नौजवान पर बिजली गिर पड़ती है जब ठीक उसी वक्त उसकी माँ भी किचन से बाहर निकल आती है।
किस्मत ने बीती रात को पुनः दोहरा दिया था परंतु कुछ बदलाव के साथ। बीती रात बीतकर सुनहरी सुबह मे तब्दील हो चुकी थी और माँ-बेटे के अलावा अब एक तीसरा शख्स भी घर के भीतर मौजूद था जो कि उम्र और रिश्ते मे उन दोनो से बड़ा था। जहाँ वह वैशाली का पति था वहीं अभिमन्यु का पिता भी और मुख्यत: इसी कारणवश बेटे के बाद अब चौंकने की बारी उसकी माँ की थी मगर फिर भी आनन-फानन मे खुद को संयत करते हुए उसने उड़ती-फिरती नजर कुर्सी पर बैठे अपने पति पर डाली जिसका चेहरा उस वक्त अखबार के पीछे छुपा हुआ था। एक माँ और एक पत्नी, दो अत्यंत महत्वपूर्ण रिश्तों का निर्वाह करने वाली वह अधेड़ स्त्री एकाएक उस तात्कालिक परिस्थिति को समझ सकने मे असमर्थ थी और लज्जा, निराशा, क्रोध, रिश्ता, संस्कार, मान-मर्यादा आदि कई भावनाओं से ग्रसित वह स्वयं अत्यधिक रोमांच से भर उठती है
अपने पति की प्रत्यक्ष मौजूदगी मे अपने सगे जवान बेटे को पूर्वरूप से नंगा देख वैशाली की चूत से जैसे क्षणमात्र मे ही भलभलाकर रस टपकने लगा, अपनी गांड के छेद पर वह असंख्य चींटियों के काटने समान पीड़ा का अनुभव करने लगी थी और जिस तक स्वतः ही अतिशीघ्र उस कामुत्तेजित माँ का दायां हाथ पहुँच जाता है। अपनी मैक्सी के ऊपर से अपनी गांड के छेद को बेशर्मीपूर्वक खुजलाना शुरू कर चुकी वह माँ अपनी नीचता की पिछली सभी सीमाओं को पार कर सीधे अपने बेटे के लगातार ठुमकियां खाते कठोर लंड को बुरी तरह घूरने लगती है, उसने एक नजर पुनः अभिमन्यु के चेहरे को ताकने तक का विचार नही किया था और लग रहा था कि जैसे अपने पति की उपस्थिति मे अपने बेटे के उत्तेजित गुप्तांग को देखना उसे बीती रात की अपेक्षा अभी ज्यादा रास आ रहा था।
अपनी माँ की लज्जाहीन आँखों का केन्द्रबिंदु बने अपने लंड पर इस प्रकार का आघात ना तो अभिमन्यु बीती रात झेल सका था और इस रोमांचक परिस्थिति मे तो उसका अपना पिता भी जाने-अनजाने उसे अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता हुआ जान पड़ रहा था। अपनी माँ की गांड खुजाई और उसे अपना निचला होंठ चबाते हुए अपने बेटे के लंड को घूरते देख वह उसी पल अपने दोनो हाथ एकसाथ अपने खुले मुंह पर रखकर उसे बलपूर्वक बंद कर देने पर विवश हो गया क्योंकि जीवन मे पहली बार बिना हाथ लगाए ही उसका लंड अपने आप स्खलित होने लगता है। उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है, बदन स्खलन के चरम की मार से कंपकापा उठता है, कमर स्वतः हिलने लगती है और कहीं उसके मुंह से कोई आवाज बाहर ना निकल आए वह फौरन अपने जबड़े भी भींच लेता है।
वैशाली के साथ भी एकाएक यही हुआ और वह भी अपने बाईं हथेली को शक्तिपूर्वक अपने मुंह पर दबा देती है और अपनी गांड खुजाते हुए मंत्रमुग्ध कर देने वाले अपने बेटे के लंड को प्रत्यक्ष झड़ते हुए देखने लगती है। बेटे के आलूबुखारे समान सुपाड़े से गाढ़े सफेद वीर्य की लंबी-लंबी फुहार निकालती देख तत्काल उसे भी अपना चरम महसूस होने लगा था मगर ठीक उसी क्षण मणिक ने अखबार का पन्ना पलटा और ज्यों ही उसकी नजर सामने खड़ी अपनी पत्नी पर गई वह अत्यंत-तुरंत जोरदार छींकने का अभिनय कर देती है।
"जुकाम हो गया है क्या?" मणिक फौरन पूछता है।
"और अपने वहाँ क्यों खुजा रही हो, कोई तकलीफ?" उसने लगातार पिछले प्रश्न मे जोड़ा।
"ना ही जुकाम है और ना ही कोई तकलीफ है, अब खुजली मच रही थी तो क्या खुजाऊँ नही" वैशाली ने जवाब दिया और कहीं उसके पति को उसके नाटक का पता ना चल जाए, वह तत्काल अपनी गांड खुजाना बंद नही करती। उसने आँखों के किनोर से देखा तो अभिमन्यु उसे उलटे कदमों से अपने कमरे के भीतर जाता हुआ नजर आता है और तभी वैशाली के चेहरे पर अचानक ही मुस्कुराहट फैल जाती है।
"अभिमन्यु को उठा देती हूँ, उसे कॉलेज भी जाना होगा" कहकर वह अपने स्थान से आगे बढ़ गई।
"यह भी कोई सोने का टाइम है, नालायक कहीं का" मणिक अपने चिर-परिचित अंदाज मे भड़का।
"रात चार बजे तक पढ़ता रहा था, अब क्या चार घंटे भी ना सोय" एकदम से वैशाली का स्वर भी ऊंचा हो गया और फर्श पर जहां-तहां बिखरे पड़े अपने बेटे के वीर्य को ललचाई नजरों से देखती हुई वह उसके कमरे के अंदर प्रवेश कर जाती है, उसका बेटा दरवाजे के पीछे दीवार से टिककर खड़ा गहरी-गहरी सांसें लेते हुए अपने हाथों से अपने चेहरे का पसीना पोंछ रहा था।
दोनो टकटकी लगाए एक-दूसरे को ही देख रहे थे मगर उनकी सांसें, धड़कने तक स्वत: ही मूक हो गई थी। हॉल की एलईडी मे वैशाली अपने बेटे के नंगे बलिष्ठ शरीर को सरलतापूर्वक बेहद स्पष्टरूप से देख पा रही थी और समयानुसार उसकी आँखें बेटे के पेट से बारंबार ठोकर खाते उसके अत्यंत कठोर लंड से चिपककर रह जाती हैं। अभिमन्यु के शरीर के ठीक विपरीत उसका गुप्तांग पूरी तरह से रोम-मुक्त था, सूजे सुपाडे़ से लगातार बाहर छलकते चिपचिपे रस के कारण अपने सगे जवान बेटे का सुपाड़ा उस माँ को उतने दूर से भी काफी चमकता हुआ नजर आ रहा था, साथ ही उसके लंड की गोलाई उसे स्वयं अपनी कलाई समान मोटी प्रतीत हो रही थी और जिसके नीचे लटके उसके बरबस फूलते-पिचकते टट्टे पर तो मानो एकाएक उस कामांध माँ का प्रेम ही उमड़ पडता है, उसकी निकृष्ट सोच के मुताबिक जिनके भीतर सिवाय गाढ़े वीर्य के कुछ और भरा भी नही हो सकता था।
वैशाली के ह्रदय मे अचानक टीस उठने लगी कि काश वह अपने बेटे को उसकी उसी नग्नता मे बेहद करीब से देख पाती, हालांकि अभिमन्यु के जवान होने के बाद वह उसका लंड पहले भी कई बार देख चुकी थी मगर तब हमेशा उसके अंतर्मन मे ग्लानिभाव उभर जाया करते थे और क्षणिक समय मे ही वह अपनी आँखें दूसरी दिशा मे मोड़ लिया करती थी, जो ग्लानिभाव अभी वर्तमान मे उस माँ को जरा भी महसूस नही हो रहे थे। दोनो माँ-बेटे जाने कितनी देर तक एक-दूसरे के चेहरे, नग्न बदन को घूरते रहे मगर चाहकर भी कुछ कह-सुन नही पाए थे और जब अभिमन्यु अपनी माँ की कामुक आँखों का लगातार जुड़ाव अपने खड़े लंड पर बरदाश्त नही कर पाता वह तीव्रता से अपने कमरे मे वापस लौट आया था।
"इसलिए मैं नंगा हूँ और माँ के लौड़े! तू सप्राइज मतो हो कि तू क्यों फड़फड़ा रहा है?" बीती यादों से बाहर निकल अपने लंड की कठोरता पर अभिमन्यु चूतियों जैसे उसे डांटते हुए बड़बड़ाया।
"सप्राइज!" उसका कहा यह विशेष शब्द मानो उसे बिस्तर पर उछल पड़ने पर मजबूर कर देता है क्योंकि उसके शैतानी दिमाग मे एकाएक एक ऐसा पापी ख्याल पनप चुका था कि जिसके पनपने के उपरान्त वह फौरन किसी राक्षस समान अपने नुकीले दांत बाहर निकाल देता है।
"श्श्श्! आवाज नही होनी चाहिए" बिस्तर से नीचे उतरते हुए वह हौले से फुसफुसाया और बेहद धीमी चाल चलते अपने कमरे के बंद दरवाजे के नजदीक आ जाता है। आगे वह जो कुछ भी अनर्थ करने वाला था उस पर एक अंतिम विचार करते समय उसे अहसास हुआ जैसे वह एकदम से झड़ने के करीब पहुँच गया हो, अपने ही लंड की असीम कठोरता ने आज उस जवान युवक को बुरी तरह से चौंकने पर मजबूर कर दिया था।
अभिमन्यु ने हल्के हाथ से दरवाजे का नॉब घुमाया और खटपट की कोई ध्वनि सुनाई नही देने पर उसका आत्मविश्वास पल मे दूना हो जाता है, तत्पश्चात थोड़ा पीछे हटकर वह दरवाजे को भी बिना किसी चरमराहट के खोल देने मे सफल हो गया। किस्मत उसके साथ है ऐसा सोच उसने मन के सारे नकारात्मक विचार फौरन त्याग दिए और कुछ गहरी सांसें लेकर वह नंगा ही अपने कमरे की दहलीज को लांघ जाता है।
किस्मत व भाग्य हमेशा आपके पक्ष मे हों यह जरूरी नही और यही तत्काल अभिमन्यु के साथ हुआ, अभी अपने दो कदम भी वह आगे बढ़ा नही पाया था कि सामने के दृश्य को देख उसका सर्वस्व हिल उठता है। भय, घबराहट, रोमांच, उत्तेजना एकसाथ कई भाव मिलकर उसपर टूट पड़े थे क्योंकि हॉल की डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठकर आज का अखबार पढ़ता उसका पिता उसे दिखाई दे गया था। मणिक की पीठ उसकी ओर होने से वह उसे उसकी नंगी हालत मे देख तो नही सकता था पर अगले ही क्षण तब दोबारा उस नंगे नौजवान पर बिजली गिर पड़ती है जब ठीक उसी वक्त उसकी माँ भी किचन से बाहर निकल आती है।
किस्मत ने बीती रात को पुनः दोहरा दिया था परंतु कुछ बदलाव के साथ। बीती रात बीतकर सुनहरी सुबह मे तब्दील हो चुकी थी और माँ-बेटे के अलावा अब एक तीसरा शख्स भी घर के भीतर मौजूद था जो कि उम्र और रिश्ते मे उन दोनो से बड़ा था। जहाँ वह वैशाली का पति था वहीं अभिमन्यु का पिता भी और मुख्यत: इसी कारणवश बेटे के बाद अब चौंकने की बारी उसकी माँ की थी मगर फिर भी आनन-फानन मे खुद को संयत करते हुए उसने उड़ती-फिरती नजर कुर्सी पर बैठे अपने पति पर डाली जिसका चेहरा उस वक्त अखबार के पीछे छुपा हुआ था। एक माँ और एक पत्नी, दो अत्यंत महत्वपूर्ण रिश्तों का निर्वाह करने वाली वह अधेड़ स्त्री एकाएक उस तात्कालिक परिस्थिति को समझ सकने मे असमर्थ थी और लज्जा, निराशा, क्रोध, रिश्ता, संस्कार, मान-मर्यादा आदि कई भावनाओं से ग्रसित वह स्वयं अत्यधिक रोमांच से भर उठती है
अपने पति की प्रत्यक्ष मौजूदगी मे अपने सगे जवान बेटे को पूर्वरूप से नंगा देख वैशाली की चूत से जैसे क्षणमात्र मे ही भलभलाकर रस टपकने लगा, अपनी गांड के छेद पर वह असंख्य चींटियों के काटने समान पीड़ा का अनुभव करने लगी थी और जिस तक स्वतः ही अतिशीघ्र उस कामुत्तेजित माँ का दायां हाथ पहुँच जाता है। अपनी मैक्सी के ऊपर से अपनी गांड के छेद को बेशर्मीपूर्वक खुजलाना शुरू कर चुकी वह माँ अपनी नीचता की पिछली सभी सीमाओं को पार कर सीधे अपने बेटे के लगातार ठुमकियां खाते कठोर लंड को बुरी तरह घूरने लगती है, उसने एक नजर पुनः अभिमन्यु के चेहरे को ताकने तक का विचार नही किया था और लग रहा था कि जैसे अपने पति की उपस्थिति मे अपने बेटे के उत्तेजित गुप्तांग को देखना उसे बीती रात की अपेक्षा अभी ज्यादा रास आ रहा था।
अपनी माँ की लज्जाहीन आँखों का केन्द्रबिंदु बने अपने लंड पर इस प्रकार का आघात ना तो अभिमन्यु बीती रात झेल सका था और इस रोमांचक परिस्थिति मे तो उसका अपना पिता भी जाने-अनजाने उसे अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता हुआ जान पड़ रहा था। अपनी माँ की गांड खुजाई और उसे अपना निचला होंठ चबाते हुए अपने बेटे के लंड को घूरते देख वह उसी पल अपने दोनो हाथ एकसाथ अपने खुले मुंह पर रखकर उसे बलपूर्वक बंद कर देने पर विवश हो गया क्योंकि जीवन मे पहली बार बिना हाथ लगाए ही उसका लंड अपने आप स्खलित होने लगता है। उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है, बदन स्खलन के चरम की मार से कंपकापा उठता है, कमर स्वतः हिलने लगती है और कहीं उसके मुंह से कोई आवाज बाहर ना निकल आए वह फौरन अपने जबड़े भी भींच लेता है।
वैशाली के साथ भी एकाएक यही हुआ और वह भी अपने बाईं हथेली को शक्तिपूर्वक अपने मुंह पर दबा देती है और अपनी गांड खुजाते हुए मंत्रमुग्ध कर देने वाले अपने बेटे के लंड को प्रत्यक्ष झड़ते हुए देखने लगती है। बेटे के आलूबुखारे समान सुपाड़े से गाढ़े सफेद वीर्य की लंबी-लंबी फुहार निकालती देख तत्काल उसे भी अपना चरम महसूस होने लगा था मगर ठीक उसी क्षण मणिक ने अखबार का पन्ना पलटा और ज्यों ही उसकी नजर सामने खड़ी अपनी पत्नी पर गई वह अत्यंत-तुरंत जोरदार छींकने का अभिनय कर देती है।
"जुकाम हो गया है क्या?" मणिक फौरन पूछता है।
"और अपने वहाँ क्यों खुजा रही हो, कोई तकलीफ?" उसने लगातार पिछले प्रश्न मे जोड़ा।
"ना ही जुकाम है और ना ही कोई तकलीफ है, अब खुजली मच रही थी तो क्या खुजाऊँ नही" वैशाली ने जवाब दिया और कहीं उसके पति को उसके नाटक का पता ना चल जाए, वह तत्काल अपनी गांड खुजाना बंद नही करती। उसने आँखों के किनोर से देखा तो अभिमन्यु उसे उलटे कदमों से अपने कमरे के भीतर जाता हुआ नजर आता है और तभी वैशाली के चेहरे पर अचानक ही मुस्कुराहट फैल जाती है।
"अभिमन्यु को उठा देती हूँ, उसे कॉलेज भी जाना होगा" कहकर वह अपने स्थान से आगे बढ़ गई।
"यह भी कोई सोने का टाइम है, नालायक कहीं का" मणिक अपने चिर-परिचित अंदाज मे भड़का।
"रात चार बजे तक पढ़ता रहा था, अब क्या चार घंटे भी ना सोय" एकदम से वैशाली का स्वर भी ऊंचा हो गया और फर्श पर जहां-तहां बिखरे पड़े अपने बेटे के वीर्य को ललचाई नजरों से देखती हुई वह उसके कमरे के अंदर प्रवेश कर जाती है, उसका बेटा दरवाजे के पीछे दीवार से टिककर खड़ा गहरी-गहरी सांसें लेते हुए अपने हाथों से अपने चेहरे का पसीना पोंछ रहा था।