hotaks444
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"आईईईऽऽ अभि ...मन्यु, मैं आईईईऽऽऽ" वैशाली की गांड के छेद मे संसनाहट की तीक्ष्ण लहर दौड़ते ही उसका छेद सिकुड़ कर रह गया और आखिरकार भर्राए गले से बारम्बार अपने जवान बेटे का नाम पुकारती उसकी अत्यंत सुंदर अधेड़ माँ उसी क्षण अनियंत्रित ढंग से स्खलित होने लगती है। उसके गदराए बदन मे झटके पर झटके लग रहे थे, अजीब--सी सिरहन से खलबली मच गयी थी। जबड़े स्वतः ही भिंच गए थे, कमर धनुषाकार हो बिस्तर से ऊपर उठ गयी थी। मांसल जाँघों ने बेटे की नाजुक गर्दन को बेरहमी से जकड़ लिया था, जिसके पार निकली उसकी पिडलियों के साथ उसके पैरों की उंगलियां तक अकड़ गयी थीं। मनभावन स्खलनस्वरूप उसकी चूत की फूली फांकों से लगातार बाहर आती अतिगाढ़े कामरस की लंबी-लंबी फुहारें अभिमन्यु सीधे अपने कठोर होंठों की सहायता से सुड़क-सुड़ककर निरंतर अपने गले से नीचे उतारता रहा, तबतक पीता रहा, चूसता रहा, चाटता रहा जबतक उसकी माँ की चूत से बहती रज के बहाव का पूर्णरूप से अंत नही हो गया। अंततः निढाल होकर बिस्तर पर पसर चुकी, जोरदार हंपायी लेती अपनी माँ की सुर्ख नम आँखों मे प्रेमपूर्वक झांकते हुए वह उसकी कोमल जाँघों को अपनी हथेलियों सहलाने लगता है, उसकी माँ की आँखों मे उसे अखंड संतुष्टि की झलक दिख रही थी और जिसे देख तत्काल वह नवयुवक गर्व से मुस्कुरा उठता है।
"ऐसे ...ऐसे क्या देख रहे हो? अब छोड़ो मेरी टांगों को" जोरदार स्खलन की प्राप्ति के उपरान्त वैशाली अपने बेटे की आँखें, उसके मुस्कुराते चेहरे का तेज बरदाश्त नही कर पाती, वह बेहद धीमे स्वर मे फुसफुसाती है। उसकी उत्तेजना का कण-कण अभिमन्यु इतने प्रेमपूर्वक ग्रहण कर गया था जैसे उसकी रज रज ना होकर किसी दिव्य मूरत का चरणामृत था।
"अपनी माँ की सुंदरता को आँखों से पी रहा हूँ, उसकी शर्म का आनंद ले रहा हूँ, उसकी खुशी मे झूम रहा हूँ, उसके प्यार मे खो गया हूँ। उफ्फ् मम्मी! तुम इतनी प्यारी कैसे हो? मेरी खुशकिस्मती पर रस्क है मुझे" उत्साहित स्वर में ऐसा कहकर अभिमन्यु उसकी अत्यन्त कोमल मांसल जाँघों को बारी-बारी चूमने लगता है, उसकी आँखों का जुड़ाव उसकी माँ की कजरारी आँखों से अब भी अपलक जुड़ा हुआ था।
"तो क्या अपनी इस प्यारी माँ के सीने से नही लगोगे? तुम्हें अपने आँचल मे समाने के लिए मैं मरी जा रही हूँ मन्यु, फर्क इतना है कि इस वक्त मैं नंगी हूँ, तुम्हें अपने आँचल मे समाऊँ भी तो कैसे भला" विह्वल वैशाली सिसकते हुए बोली।
"चलो खिसको ऊपर, आज तुम्हारे सीने से लगकर सोऊंगा माँ और रही बात तुम्हारे आँचल की तो तुम्हारा यह नंगा बदन भी मेरे लिए किसी आँचल से कम नही" गंभीर स्वर में ऐसा कहकर अभिमन्यु ने अपनी गरदन से लिपटी अपनी माँ की जाँघों को बिस्तर पर रख दिया, वैशाली पीछे सरकती हुयी पुनः बिस्तर की पुश्त तक पहुँच चुकी थी और जल्द ही वह भी अपनी माँ के समानांतर लेट जाता है।
"तुम मुझसे नाराज तो नही हो ना? मैंने जाने-अनजाने आज तुम्हें बहुत बुरा-भला कहा, तुम्हारे पति की बेज्जती की और तो और अपनी बड़ी बहन तक को नही छोड़ा मगर सच तो यह है माँ कि चाहे तुम्हें कपड़ों से लदा देखूँ या नंगी, तुम मुझे देवी--सी नजर आती हो, तुम्हारी पूजा करने को दिल कहता है" कहते हुए अभिमन्यु ने अपनी माँ की हृष्ट-पुष्ट छाती के बीच अपना चेहरा छुपा लिया, उसकी माँ के मानसिक व शारीरिक भावों को परखने से मानो उसे अब कोई सरोकार नही रहा था।
"मैं नाराज नही हूँ मन्यु, हैरान हूँ। कहाँ से सीखी तुमने ऐसी बड़ी-बड़ी बातें? तुम्हारे शब्द, तुम्हारी हरकतों को देखकर कौन मानेगा कि तुम एक इन्जनिरिंग स्टूडेंट हो। तुम्हारी कुछ-कुछ बातें तो मेरे भी सिर के ऊपर से गुजर गई थीं पर एक नई बात जरूर समझ आई और वह यह कि सेक्स जितना खुला हो, जितना गंदा हो उतना ही मजा देता है। मुझ जैसी लाखों औरतें चारदीवारी के अंदर कैद होकर चुदने को ही असली चुदाई समझती हैं मगर बंदिशों को तोड़कर आजादी से चुदवाने का सुख शब्दों मे भी बयान नही किया सकता" वैशाली बिना किसी अतिरिक्त झिझक के कहती है, उसकी बाएं उंगलियां कब उससे चिपककर लेटे बेटे के बालों मे चहुंओर विचरण करने लगी थीं वह स्वयं अंजान थी। पूर्व मे अभिमन्यु की गरम साँसों के झोंके जो उसे घड़ी-घड़ी उत्तेजित पर उत्तेजित कर रहे थे, तात्कालिक क्षणों मे उस माँ को सुकून से भर दिया था।
"तो तुम्हारी इसी आजादी के नाम, तुम्हारे बेटे का कलाम ...बहुत हुआ सम्मान तुम्हारी माँ का चोदें, सुबह से हो गयी शाम तुम्हारी ..." एकाएक अभिमन्यु की जयघोष से पूरा बैडरूम गूँज उठा, वह चिल्लाता ही जाता यदि उसके बचकाने पर खिलखिला पड़ी वैशाली जबरन उसके मुँह को अपनी दोनों हथेलियों से बंद नही करती।
"पागल कहीं के ...अब सो जाओ, बाद मे मुझे खाना भी बनाना है" जोरों से हँसती बैशाली अपने बेटे को स्वयं अपनी छाती से चिपकाते हुए बोली और अतिशीघ्र उसकी नग्न पीठ पर थपकियाँ देते हुए उसे सुलाने के अपने ममतामयी कार्य मे जुट जाती है। थका-हारा अभिमन्यु पलों मे नींद के आगोश मे पहुँच गया था और उसके सोते मासूम चेहरे के दाहिने कोण को टकटकी लगाए निहारती उसकी माँ भी गहन निद्रा की गहराइयों में खो जाती है।
गहरी नींद मे करवट लेने को तरसती वैशाली चाहकर भी हिलडुल नही पाती और आखिरकार कुनमुनाते हुए उसकी बंद आँखें झटके से खुल जाती हैं। आँख खुलने के पश्चयात जो दृश्य सर्वप्रथम उस माँ ने देखा, नींद की खुमारी से मुरझाया उसका चेहरा क्षणों मे मुस्कुरा उठता है। उससे सटकर सोये अभिमन्यु के अधखुले होंठों के बीच उसका बायां निप्पल फँसा हुआ था और नींद की अधिकता के कारण उसके बेटे के होंठों की किनोर से बहती उसकी गाढ़ी लार ने वैशाली के बाएं मम्मे को तरबतर कर दिया था।
"हम्म! कभी सोचा नही था मन्यु कि तुम्हारे जवान हो चुकने के बाद दोबारा मैं तुम्हारे बचपन को महसूस कर पाऊंगी मगर यह क्या? मुझे तुम्हारा बचपन तो फिर से याद आ गया पर तुम अब बच्चे नही रहे" एक लंबी साँस लेकर वैशाली मन ही मन बुदबुदाई और कुछ पल प्रेमपूर्वक अपने बेटे के होंठों के बीच फँसे अपने निप्पल को देखकर ममताभरी मुस्कान से मुस्कुराती रही।
बिस्तर पर बैठने से पूर्व वह अभिमन्यु के दाएं हाथ को अपनी गरदन से अलग करती है, बेटे के हस्तपाश मे जकड़े होने की वजह से ही वह हरबार करवट लेने मे असफल रही थी। उसके उठकर बैठने की क्रिया से उत्पन्न कंपन से करवट लेकर लेटा अभिमन्यु भी कसमसाते हुए अपनी पीठ के बल लेट जाता है और तभी वैशाली की आँखों मे एकाएक चमक आ जाती है।
"दोनों सोते हुए कितने मासूम लगते हैं" अपनी अनैतिक सोच मे बेटे के साथ उसके सुशुप्त लंड को शामिल कर वैशाली की धड़कनें सहसा गति पकड़ लेती हैं और एक लघु नजर सोते अभिमन्यु के शांत मुखमंडल पर डाल वह तीव्रता से अपना चेहरा उसके लंड की दिशा मे नीचे को झुका लेती है। घनी झांटों के मध्य पसरा उसके जवान बेटे का गौरवर्णी ढीला लंड उस अधेड़ नंगी माँ को उसकी पूर्व तनावपूर्ण अवस्था से कहीं अधिक सुंदर प्रतीत होता है, उसके शिथिल टट्टे उसे पिचके अवश्य दिखाई पड़ रहे थे मगर वैशाली के पापी अनुमानस्वरूप अब भी गाढ़े वीर्य से लबालब भरे हुए थे।
"कितनी ढोंगी हूँ मैं। जवान बेटे के हाथों मुट्ठ मारती पकड़ी गई, फिर बेशर्मी से उसके सामने नंगी हुई और तो और उससे अपनी चूत तक चटवा चुकी हूँ पर उसके लंड को चूसने मे मुझे पाप नजर आ रहा था। मन्यु कितने मन से बोला था ...माँ मेरा लंड चूसो, बेचारा कितना तड़प रहा था झड़ने को मगर मैं क्यों चूसूँ? मैं तो इसकी माँ हूँ ना ...हाँ! लेकिन अपनी चूत जरूर इससे चुसवा सकती हूँ, तब शायद इसकी माँ नही कहलाऊँगी" अपने अनैतिक तर्क-वितर्क से अकस्मात् कुंठा से भर उठी वैशाली अभी खुद को ठीक से कोस भी नहीं पाई थी कि अपने-आप उसके कोमल होंठ फट पड़े और बिना हाथ लगाए ही वह बेटे के ढीले समूचे लंड को अपने छोटे से मुँह के भीतर समा लेती है।
"उन्घ्ऽऽ!" लंड चूसने की कला मे परिपक्व वैशाली की ठोड़ी अभिमन्यु की दायीं जांघ के कठोर मांस मे धंस जाती है और उसकी नाक के फूले दोनों नाथुवे उसकी घनी झांटों के भीतर तक प्रवेश कर गए थे। पलभर भी नही बीत पाया कि उसके बेटे के सोते शरीर मे हलचल होने लगी मगर उस माँ को जैसे कोई फर्क ही नही पड़ा था और वह पापिन अपने मुँह के भीतर ही भीतर अपने बेटे के नरम लंड को अपनी गीली जीभ से नचाने लगी, हौले-हौले उसे गोल-गोल घुमाने लगी। उसकी अत्यंत गर्म, कोमल चिकनी त्वचा को अपनी खुरदुरी जीभ पर महसूस कर वैशाली के आनंद का कोई पारावार शेष ना रहा, उसके अधखुले सुपाड़े की लिसलिसी सतह और तीक्ष्ण मर्दाना गंध का सीधा व सटीक असर उसकी चूत की गहराई मे होता है जिसके भीतर अचानक वह माँ एक नई अनूठी तड़प महसूस करती है।
"आँखें खोलो मन्यु, देखो तुम्हारी माँ ने तुम्हारा लंड अपने मुँह मे भर रखा है" वैशाली मन ही मन चिल्लाती है। कुछ ही क्षणों मे अभिमन्यु का सुशुप्त लंड उसके मुँह के भीतर फूलने लगा, नींद मे बड़बड़ाता वह खुद भी कसमसाने लगा था और ठीक उसी पल वह माँ अपने होठों को कठोरता में ढालकर बेटे के तेजी से तनते जा रहे लंड को धीरे-धीरे अपने मुँह से बाहर निकालना शुरू कर देती है। एकटक वह इंच दर इंच लंड को अपने होंठों से आजाद होते देख रही थी, उसकी चिकनी सतह पर सहसा उभर आईं नसों की फड़फड़ाहट का अहसास वह माँ स्पष्ट अपने कठोर होठों पर महसूस करती है। ज्यों-ज्यों उसके बेटे का लंड फूलकर उसकी स्वयं की कलाई समान मोटा होता जा रहा था वैशाली के होंठों की किनोरें भी खिंचाव की सीमा को पार कर जाने को विवश होती जा रही थीं। एकाएक उसकी आंखें अभिमन्यु के दाएं हाथ पर टिक गई जिसमे होती हलचल से वह अनुभवी स्त्री अतिशीघ्र अपना सिर उसके लंड से ऊपर उठाकर शैतानी हँसी हँसने लगती है।
"नही पकड़ सकोगे अपनी बेशर्म माँ को" वैशाली का सोचना हुआ और तत्काल अभिमन्यु की दाहिनी हथेली उसके पत्थर मे तब्दील हुए लंड को जकड़ लेती है, जिसके साथ ही वह पुनः करवट लेकर दोबारा शांत पड़ जाता है।
"जिस वक्त मैं सचमुच तुम्हारा लंड चूसूँगी, मुझे तुम्हारे चेहरे की उस खुशी को देखना है मन्यु और तबतक हम दोनों ही बस इंतजार कर सकते हैं" सोकर उठने के उपरान्त यह पहले शब्द थे जो वास्तविकता मे वैशाली के मुँह से बाहर आए थे, एक अंतिम नजर अपने सोते बेटे के संपूर्ण नग्न शरीर पर डाल वह बिस्तर से नीचे उतरकर सीधे अपने बाथरूम के भीतर घुस जाती है।
फ्रेश होकर सबसे पहले वैशाली ने बेडरूम के फर्श को साफ किया। अपने बेटे के लंड की तीक्ष्ण मर्दाना गंध के बाद अब उसकी नाक के नाथुए उसकी खुद की पेशाब की मादक गंध से फूलने लगे थे, जिसके परिणामस्वरूप जोरदार दो स्खलनों के बावजूद एक बार फिर उसकी उत्तेजना मे तेजी से वृद्धि होना शुरू हो गई थी। बेडरूम के पंखे की अधिकतम गति बढ़ाकर उसने एक्जॉस्ट भी चालू कर दिया और चहुंओर खुशबूदार रूमफ्रेशनर छिड़कने के उपरान्त बिना कुछ सोचे-विचारे नंगी ही कमरे से बाहर निकल जाती है।
गृहणी बनने के पश्चयात यह प्रथम बार था जब वैशाली ने घर की किचन के भीतर पूर्ण नग्न अवस्था मे प्रवेश किया था, इतना ही नही बल्कि पिछले बीस-पच्चीस मिनटों मे वह चावल पका चुकी थी, दाल उबलने रख चुकी थी और आटा भी मड़ने के बिलकुल करीब था। इन बीस से पच्चीस मिनटों मे जिस विशेष कारणवश वह अबतक किचन मे मौजूद थी वह थी उसकी पापी सोच वर्ना किचन की देहरी चढ़ते ही उसके बढ़ते कदम लगातार दो बार लड़खड़ाये थे। उसकी पापी सोच मे पहली विशेष बात जो शामिल थी वह यह कि अपने ही जवान बेटे से अपनी चूत चटवाने का सुख कितना अलौकिक होता है और दूसरी कि अपने उसी बेटे के पूर्ण विकसित लंड को अपने मुँह के अंदर कैद करने का आनंद भी कोई कम रोमांचकारी नही होता।
पिछले आधे घंटे से उसका मस्तिष्क सिर्फ बीते विध्वंशक घटनाक्रम पर विचार कर रहा था। अपनी चूतमुख पर बेटे की लपलपाती जीभ का गीला स्पर्श और अपनी खुद की जीभ पर उसके लंड की अत्यन्त चिकनी गर्मा-गरम त्वचा के मनभावन स्पर्श की उस निर्लज्ज माँ की सर्वदा नीच सोच उसे उसकी टांगों पर ठीक से खड़ा भी नही रहने दे रही थी।
"कितनी तेजी से फूला था मेरे मुँह मे, मेरे होंठ चीर दिए थे। ढ़ीला भी कोई छोटा थोड़े ही था, सुपाड़ा मेरे गले को छू रहा था। गाल भर गए थे मेरे, अरे पूरा मुँह ही भर गया था। उम्म! उसके पापा के बराबर है ...हाँ! मोटा तो मन्यु का ही ज्यादा निकलेगा, क्या पता लंबा भी उसी का हो" अपनी दोनों हथेलियों से आटे को गूंथने मे मगन वैशाली का पापी मन तो किसी दूसरी दुनिया मे भ्रमण कर रहा था। अपने ही सगे जवान बेटे के लंड से संबंधित विचारों से वह बुरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी, उसके आटे से सने हाथों की मजबूरी थी नही तो कबकी वह वहीं अपनी चूत से खेलना शुरू कर देने वाली थी।
"मुँह का तो ठीक है, देर-सवेर एडजस्ट कर ही लूँगी। वैसे मन्यु चूसने मे मजा तो बहुत आएगा, कितना रसीला--सा दिखता है। उसके टट्टे जरूर चाटूँगी, उन्हें तो मैं बड़े प्यार से चूसूँगी आखिर अपने सगे बेटे का वीर्य जो चखना है मुझे और ...और अगर उसे मैं अपनी चूत मैं लूँ तो ..." बेटे की लंड चुसायी से शुरू हुई वैशाली की अगली सोच अंततः उसकी चूत चुदाई तक आ ही गई और ठीक उसी वक्त उसके कानों मे चलायमान कदमों की चाप भी सुनाई देती है। घबराहटवश अपने गंदे मस्तिष्क का तत्काल साथ छोड़ उसने गरदन घुमाकर पीछे देखा, उसे किचन के द्वार पर खड़ा अभिमन्यु मुस्कुराते हुए उसी को निहारता नजर आता है।
"तुम तो वादे की एकदम पक्की निकली मम्मी, मेरे सामने हमेशा नंगी ही रहोगी ऐसा खतनाक प्रॉमिस किया और वाकई अपना प्रॉमिस निभा भी रही हो" वह किचन के भीतर प्रवेश करते हुए चहका और सीधे अपनी आटा गूंथती माँ के दायीं तरफ आकर खड़ा हो जाता है। वह पूर्व मे उतरे अपने कपड़ो को पहन चुका था और यही उससे गलती हो गई थी, चुस्त फ्रेंची और जीन्स के अंदर उसका सोया लंड रिकॉर्ड गति से अपनी कठोरता को प्राप्त कर गया था, जो जल्द ही उसकी तड़प का कारण बन जाने वाला था।
"बनियों का तो धंधा ही उनकी जुबान पर चलता है, खैर अपनी माँ का असली खतरनाकपना तुम तब देखोगे जब तुम्हारे पापा घर लौट आएंगे" अपनी उत्तेजना को छुपाने के प्रयास मे वैशाली हँसते हुए बोली।
"बढ़िया! और फिर हम बाप-बेटे मिलकर तुम्हें चोदेंगे। तुम बारी-बारी हम दोनों के लंड चूसना, फिर एकसाथ हम तुम्हारा सैंडविच बनाएंगे" अपनी माँ की खोखली हँसी को समझ अभिमन्यु भी हँसते हुए कहता है, उसके डररूपी स्वभाव के चलते उसने वैशाली के कथन को हवा मे उड़ा दिया था।
"नही सच मे मन्यु, आज इस घर मे सचमुच नंगा नाच होने वाला है। जाओ तुम जाकर डाइनिंग टेबल पर बैठो, खाना बनते ही सर्व हो जाएगा" वैशाली ने समय का अंदाजा लगाते हुए कहा, उसके अनुमानस्वरूप चार बज चुके थे और अगले डेढ़-दो घंटों मे उसके पति को वापस घर लौट आना था। उसे यह भय था कि कहीं अभिमन्यु उसके नंगे बदन के साथ फिर से छेड़खानी करना ना शुरू कर दे और उसके पति के घर लौटने का वक्त हो जाए।
"मैं भी खाना बनाने मे तुम्हारी मदद करूँगा माँ" अभिमन्यु पास रखे एक छोटे--से स्टूल को उठाते हुए बोला।
"ओयऽऽ होयऽऽ! तुम्हारी यही माँ पिछले बीस सालों से कपड़े पहनकर खाना बना रही थी तब तो कभी मदद करने की याद भी नही आई और आज वही माँ नंगी होकर खाना बना रही है तो मदद करने का बड़ा ख्याल आ रहा है" वैशाली आटे से सने अपने हाथों की दोनों कलाईयां मोड़कर उन्हें अपनी बलखाई पतली कमर के इर्द-गिर्द रख जिस कामुक अंदाज मे अपनी शिकायत को पूरा करती है, अभिमन्यु के दिल पर छुरियाँ चल जाती हैं। बोलते वक्त उसकी माँ के सुंदर चेहरे पर छाईं अनेकों भाव-भंगिमाएं इस तेजी से बदली थीं जिसे प्रत्यक्ष इतने नजदीक से देख एकाएक वह कांप उठता है। उसकी माँ के हाथ भी उसके शब्दों का पूरा साथ निभा रहे थे, जो पलों मे उसकी कमर से हटकर हवा मे लहराते और फिर पुनः उसकी अत्यंत पतली कमर पर वापस लौट आते।
"चावल-दाल लगभग रेडी हैं, सब्जी सुबह वाली काम आ जायेगी और वैसे भी ना ही तुम रोटी बेलना जानते हो और तुम्हारे सेंकने से जलने वाली रोटियां मैं खाना नही चाहती" सहसा अपनी सुधबुध खोए बेटे को यथावत धरातल पर वापस लाने के उद्देश्य से मन ही मन प्रसन्न होती वैशाली अपनी दायीं टांग उसकी बायीं टांग पर जोर से दबाते हुए बोली।
"रोटियां बनाने मे मदद करने के अलावा मैं एक दूसरे जरूरी काम मे तुम्हारी मदद जरूर कर सकता हूँ माँ, तुम आराम से तवे पर रोटी सेंको और तबतक मैं अपनी जीभ से तुम्हारी चूत सेंकता हूँ" होश मे आते ही अभिमन्यु ने जोरदार विस्फोट करते हुए कहा। उसके कथन को सुन स्लैब से तवा उठाती वैशाली अचानक दो कदम पीछे हट गयी थी, जिसके उपरान्त वह उसी खाली स्थान पर स्टूल को नीचे रख अत्यंत तुरंत उसपर बैठ जाता है।
"न ...नही मन्यु" जिसका डर था वही मुसीबत आन पड़ी देख वैशाली मिमियाते हुए बोली।
"क्यों? क्या तुम्हें मेरा तुम्हारी चूत को चाटना और चूसना पसंद नही आया माँ?" अभिमन्यु मायूसी भरे स्वर मे पूछता है, जबकि उसके प्रथम अनुभवहीन मुखमैथुन की मुख्य साक्ष्य रही उसकी माँ के अतिआनंदक स्खलन को वह कैसे भूल सकता था।
"ऐसी ...ऐसी कोई बात नही मन्यु। तुमने उस समय पूछा नही तो मैं भी तुम्हें बता नही पाई कि तुम्हारी वजह से ही बरसों बाद मैं इतना खुलकर ...अम्म! खुलकर झड़ी थी, मुझे तो याद भी नही कि आखिरी बार मैंने कब ...कब इतना ज्यादा, इतनी देरतक पानी छोड़ा था" वैशाली हौले से बुदबुदाई, बेटे के मुख से मिले सुख का स्वयं उसी के मुख पर बखान करना उस माँ को एकाएक अत्यधिक लज्जा से भर गया था। अतिशीघ्र उसका तमतमाता सुर्ख चेहरा नीचे फर्श की दिशा मे झुक गया, स्वतः ही उसका दायां पंजा उसकी नग्न चूत को ढांकने के असफल प्रयत्न मे जुट जाता है और साथ ही बायीं हथेली उसके गोल-मटोल मम्मों को छुपाने हेतु उनतक पहुँचने का मार्ग तय करने लगी थी।
"फिर क्या बात है? हुंह!" अपने चिरपरिचित जिद्दी स्वभाव के चलते अभिमन्यु ने दोबारा प्रश्न किया। कम से कम इस बात का जानकार तो वह हो ही चुका था कि जब-जब उसकी माँ शर्मिन्दगी का एहसास करती है उसकी जुबान सिर्फ हकलाती ही नही बल्कि टंग क्लीनर से भी कहीं ज्यादा साफ हो जाती है और आगामी परिणाम से अपने बचाव का रास्ता खोजने से पूर्व वह जल्द से जल्द उस तात्कालिक परिस्थिति से ही बचने का हरसंभव उपक्रम करना आरंभ कर देती है।
"औरतों का वह हिस्सा बहुत सेन्सिटिव होता है पर मेरा तो कुछ ज्यादा ही है, मैं अब अपने वहाँ तुम्हारी ...तुम्हारी जीभ बरदाश्त नही कर पाऊँगी मन्यु। मैं लगातार दो बार झड़ चुकी हूँ अगर ...अगर और झड़ी तो फिर बिस्तर से उठ नही सकूँगी। उफ्फ्! वहाँ मुझे छिल भी गया है शायद, पहले एहसास नही हो रहा था उम्म्! हाथ ...अभी हाथ लगाने से हो रहा है" झिझकते हुए ही सही मगर आखिरकार वैशाली ने सत्यता बयान कर ही दी। अभिमन्यु अपनी माँ के बनावटी भावों की भरपूर पहचान रखता था, मुखमैथुन में उसकी अपरिपक्वता उसके सामने उजागर कर उसकी माँ ने उसपर जैसे कोई उपकार--सा कर दिया था। वह जान गया कि गलतीवश उसके दाँत या नुकीले नाखून लग जाने के कारण ही उसकी माँ की चूत छिल गई थी और अब मलहमस्वरूप पुनः उसकी चोटिल चूत को चाटने का बीड़ा उठाने के लिए वह दूने मन से तैयार हो जाता है।
"प्रॉमिस करता हूँ कि तुम्हारी मर्जी के बगैर तुम दोबारा नही झड़ोगी माँ। इसबार पहले से भी ज्यादा प्यार से तुम्हारी चूत को चाटूँगा, मेरा यकीन करो तुम्हें बहुत राहत मिलेगी, बहुत सुकून पहुँचेगा। आओ, मेरे पास आओ माँ ...अपने बेटे के पास आओ" बेहद प्रेमपूर्वक स्वर मे ऐसा कहते हुए अभिमन्यु अपना दायां हाथ उससे दो कदम दूर खड़ी अपनी नग्नता को छुपाने की निरंतर प्रयासरत अत्यंत शर्मसार अधेड़ माँ के समकक्ष ऊपर उठा देता है। उसके प्रेमपूर्ण स्वर मे महज मधुरता ही नही वरन विश्वास की प्रचूरता भी सम्मिलित थी और जिसे महसूस कर वैशाली अपना दायां हाथ अपनी चूतमुख से हटाकर तत्काल बेटे के हाथ को थाम लेती है। जाने अभिमन्यु की आँखों मे वह अपने लिए कितनी ज्यादा मोहब्बत देखती थी जो उसका हाथ थामते ही उसके पाँव खुद ब खुद आगे बढ़कर उनके बीच की दो कदमों की दूरी क्षणमात्र मे खत्म कर देते हैं।
"अब सेंको रोटी माँ, मैं तुम्हारी छिली चूत की सिकाई करता हूँ और हमारी बातें भी होती रहेंगी" मुस्कुराकर अपने पिछले कथन मे जोड़ अभिमन्यु बिना कोई पल गंवाए फौरन अपने खुश्क होंठ अपनी माँ की कामरस उगलती चूत के चिपके चीरे से चिपका देता है।
"उफ्फ्फ्ऽऽ मन्यु! अपनी टाँगें ...टाँगे चौड़ाऊँ?" तवा गैस पर रखती वैशाली लंबी सीत्कार भरते हुए पूछती है, इतने अल्प समय मे उसके जवान बेटे का सुंदर मुँह दोबारा उसकी खौलती चूत से खेलेगा सोचनेमात्र से ही उस अधेड़ माँ की गांड का छेद अजीब सी संसानाहत से भर उठा था।
"ऐसे ...ऐसे क्या देख रहे हो? अब छोड़ो मेरी टांगों को" जोरदार स्खलन की प्राप्ति के उपरान्त वैशाली अपने बेटे की आँखें, उसके मुस्कुराते चेहरे का तेज बरदाश्त नही कर पाती, वह बेहद धीमे स्वर मे फुसफुसाती है। उसकी उत्तेजना का कण-कण अभिमन्यु इतने प्रेमपूर्वक ग्रहण कर गया था जैसे उसकी रज रज ना होकर किसी दिव्य मूरत का चरणामृत था।
"अपनी माँ की सुंदरता को आँखों से पी रहा हूँ, उसकी शर्म का आनंद ले रहा हूँ, उसकी खुशी मे झूम रहा हूँ, उसके प्यार मे खो गया हूँ। उफ्फ् मम्मी! तुम इतनी प्यारी कैसे हो? मेरी खुशकिस्मती पर रस्क है मुझे" उत्साहित स्वर में ऐसा कहकर अभिमन्यु उसकी अत्यन्त कोमल मांसल जाँघों को बारी-बारी चूमने लगता है, उसकी आँखों का जुड़ाव उसकी माँ की कजरारी आँखों से अब भी अपलक जुड़ा हुआ था।
"तो क्या अपनी इस प्यारी माँ के सीने से नही लगोगे? तुम्हें अपने आँचल मे समाने के लिए मैं मरी जा रही हूँ मन्यु, फर्क इतना है कि इस वक्त मैं नंगी हूँ, तुम्हें अपने आँचल मे समाऊँ भी तो कैसे भला" विह्वल वैशाली सिसकते हुए बोली।
"चलो खिसको ऊपर, आज तुम्हारे सीने से लगकर सोऊंगा माँ और रही बात तुम्हारे आँचल की तो तुम्हारा यह नंगा बदन भी मेरे लिए किसी आँचल से कम नही" गंभीर स्वर में ऐसा कहकर अभिमन्यु ने अपनी गरदन से लिपटी अपनी माँ की जाँघों को बिस्तर पर रख दिया, वैशाली पीछे सरकती हुयी पुनः बिस्तर की पुश्त तक पहुँच चुकी थी और जल्द ही वह भी अपनी माँ के समानांतर लेट जाता है।
"तुम मुझसे नाराज तो नही हो ना? मैंने जाने-अनजाने आज तुम्हें बहुत बुरा-भला कहा, तुम्हारे पति की बेज्जती की और तो और अपनी बड़ी बहन तक को नही छोड़ा मगर सच तो यह है माँ कि चाहे तुम्हें कपड़ों से लदा देखूँ या नंगी, तुम मुझे देवी--सी नजर आती हो, तुम्हारी पूजा करने को दिल कहता है" कहते हुए अभिमन्यु ने अपनी माँ की हृष्ट-पुष्ट छाती के बीच अपना चेहरा छुपा लिया, उसकी माँ के मानसिक व शारीरिक भावों को परखने से मानो उसे अब कोई सरोकार नही रहा था।
"मैं नाराज नही हूँ मन्यु, हैरान हूँ। कहाँ से सीखी तुमने ऐसी बड़ी-बड़ी बातें? तुम्हारे शब्द, तुम्हारी हरकतों को देखकर कौन मानेगा कि तुम एक इन्जनिरिंग स्टूडेंट हो। तुम्हारी कुछ-कुछ बातें तो मेरे भी सिर के ऊपर से गुजर गई थीं पर एक नई बात जरूर समझ आई और वह यह कि सेक्स जितना खुला हो, जितना गंदा हो उतना ही मजा देता है। मुझ जैसी लाखों औरतें चारदीवारी के अंदर कैद होकर चुदने को ही असली चुदाई समझती हैं मगर बंदिशों को तोड़कर आजादी से चुदवाने का सुख शब्दों मे भी बयान नही किया सकता" वैशाली बिना किसी अतिरिक्त झिझक के कहती है, उसकी बाएं उंगलियां कब उससे चिपककर लेटे बेटे के बालों मे चहुंओर विचरण करने लगी थीं वह स्वयं अंजान थी। पूर्व मे अभिमन्यु की गरम साँसों के झोंके जो उसे घड़ी-घड़ी उत्तेजित पर उत्तेजित कर रहे थे, तात्कालिक क्षणों मे उस माँ को सुकून से भर दिया था।
"तो तुम्हारी इसी आजादी के नाम, तुम्हारे बेटे का कलाम ...बहुत हुआ सम्मान तुम्हारी माँ का चोदें, सुबह से हो गयी शाम तुम्हारी ..." एकाएक अभिमन्यु की जयघोष से पूरा बैडरूम गूँज उठा, वह चिल्लाता ही जाता यदि उसके बचकाने पर खिलखिला पड़ी वैशाली जबरन उसके मुँह को अपनी दोनों हथेलियों से बंद नही करती।
"पागल कहीं के ...अब सो जाओ, बाद मे मुझे खाना भी बनाना है" जोरों से हँसती बैशाली अपने बेटे को स्वयं अपनी छाती से चिपकाते हुए बोली और अतिशीघ्र उसकी नग्न पीठ पर थपकियाँ देते हुए उसे सुलाने के अपने ममतामयी कार्य मे जुट जाती है। थका-हारा अभिमन्यु पलों मे नींद के आगोश मे पहुँच गया था और उसके सोते मासूम चेहरे के दाहिने कोण को टकटकी लगाए निहारती उसकी माँ भी गहन निद्रा की गहराइयों में खो जाती है।
गहरी नींद मे करवट लेने को तरसती वैशाली चाहकर भी हिलडुल नही पाती और आखिरकार कुनमुनाते हुए उसकी बंद आँखें झटके से खुल जाती हैं। आँख खुलने के पश्चयात जो दृश्य सर्वप्रथम उस माँ ने देखा, नींद की खुमारी से मुरझाया उसका चेहरा क्षणों मे मुस्कुरा उठता है। उससे सटकर सोये अभिमन्यु के अधखुले होंठों के बीच उसका बायां निप्पल फँसा हुआ था और नींद की अधिकता के कारण उसके बेटे के होंठों की किनोर से बहती उसकी गाढ़ी लार ने वैशाली के बाएं मम्मे को तरबतर कर दिया था।
"हम्म! कभी सोचा नही था मन्यु कि तुम्हारे जवान हो चुकने के बाद दोबारा मैं तुम्हारे बचपन को महसूस कर पाऊंगी मगर यह क्या? मुझे तुम्हारा बचपन तो फिर से याद आ गया पर तुम अब बच्चे नही रहे" एक लंबी साँस लेकर वैशाली मन ही मन बुदबुदाई और कुछ पल प्रेमपूर्वक अपने बेटे के होंठों के बीच फँसे अपने निप्पल को देखकर ममताभरी मुस्कान से मुस्कुराती रही।
बिस्तर पर बैठने से पूर्व वह अभिमन्यु के दाएं हाथ को अपनी गरदन से अलग करती है, बेटे के हस्तपाश मे जकड़े होने की वजह से ही वह हरबार करवट लेने मे असफल रही थी। उसके उठकर बैठने की क्रिया से उत्पन्न कंपन से करवट लेकर लेटा अभिमन्यु भी कसमसाते हुए अपनी पीठ के बल लेट जाता है और तभी वैशाली की आँखों मे एकाएक चमक आ जाती है।
"दोनों सोते हुए कितने मासूम लगते हैं" अपनी अनैतिक सोच मे बेटे के साथ उसके सुशुप्त लंड को शामिल कर वैशाली की धड़कनें सहसा गति पकड़ लेती हैं और एक लघु नजर सोते अभिमन्यु के शांत मुखमंडल पर डाल वह तीव्रता से अपना चेहरा उसके लंड की दिशा मे नीचे को झुका लेती है। घनी झांटों के मध्य पसरा उसके जवान बेटे का गौरवर्णी ढीला लंड उस अधेड़ नंगी माँ को उसकी पूर्व तनावपूर्ण अवस्था से कहीं अधिक सुंदर प्रतीत होता है, उसके शिथिल टट्टे उसे पिचके अवश्य दिखाई पड़ रहे थे मगर वैशाली के पापी अनुमानस्वरूप अब भी गाढ़े वीर्य से लबालब भरे हुए थे।
"कितनी ढोंगी हूँ मैं। जवान बेटे के हाथों मुट्ठ मारती पकड़ी गई, फिर बेशर्मी से उसके सामने नंगी हुई और तो और उससे अपनी चूत तक चटवा चुकी हूँ पर उसके लंड को चूसने मे मुझे पाप नजर आ रहा था। मन्यु कितने मन से बोला था ...माँ मेरा लंड चूसो, बेचारा कितना तड़प रहा था झड़ने को मगर मैं क्यों चूसूँ? मैं तो इसकी माँ हूँ ना ...हाँ! लेकिन अपनी चूत जरूर इससे चुसवा सकती हूँ, तब शायद इसकी माँ नही कहलाऊँगी" अपने अनैतिक तर्क-वितर्क से अकस्मात् कुंठा से भर उठी वैशाली अभी खुद को ठीक से कोस भी नहीं पाई थी कि अपने-आप उसके कोमल होंठ फट पड़े और बिना हाथ लगाए ही वह बेटे के ढीले समूचे लंड को अपने छोटे से मुँह के भीतर समा लेती है।
"उन्घ्ऽऽ!" लंड चूसने की कला मे परिपक्व वैशाली की ठोड़ी अभिमन्यु की दायीं जांघ के कठोर मांस मे धंस जाती है और उसकी नाक के फूले दोनों नाथुवे उसकी घनी झांटों के भीतर तक प्रवेश कर गए थे। पलभर भी नही बीत पाया कि उसके बेटे के सोते शरीर मे हलचल होने लगी मगर उस माँ को जैसे कोई फर्क ही नही पड़ा था और वह पापिन अपने मुँह के भीतर ही भीतर अपने बेटे के नरम लंड को अपनी गीली जीभ से नचाने लगी, हौले-हौले उसे गोल-गोल घुमाने लगी। उसकी अत्यंत गर्म, कोमल चिकनी त्वचा को अपनी खुरदुरी जीभ पर महसूस कर वैशाली के आनंद का कोई पारावार शेष ना रहा, उसके अधखुले सुपाड़े की लिसलिसी सतह और तीक्ष्ण मर्दाना गंध का सीधा व सटीक असर उसकी चूत की गहराई मे होता है जिसके भीतर अचानक वह माँ एक नई अनूठी तड़प महसूस करती है।
"आँखें खोलो मन्यु, देखो तुम्हारी माँ ने तुम्हारा लंड अपने मुँह मे भर रखा है" वैशाली मन ही मन चिल्लाती है। कुछ ही क्षणों मे अभिमन्यु का सुशुप्त लंड उसके मुँह के भीतर फूलने लगा, नींद मे बड़बड़ाता वह खुद भी कसमसाने लगा था और ठीक उसी पल वह माँ अपने होठों को कठोरता में ढालकर बेटे के तेजी से तनते जा रहे लंड को धीरे-धीरे अपने मुँह से बाहर निकालना शुरू कर देती है। एकटक वह इंच दर इंच लंड को अपने होंठों से आजाद होते देख रही थी, उसकी चिकनी सतह पर सहसा उभर आईं नसों की फड़फड़ाहट का अहसास वह माँ स्पष्ट अपने कठोर होठों पर महसूस करती है। ज्यों-ज्यों उसके बेटे का लंड फूलकर उसकी स्वयं की कलाई समान मोटा होता जा रहा था वैशाली के होंठों की किनोरें भी खिंचाव की सीमा को पार कर जाने को विवश होती जा रही थीं। एकाएक उसकी आंखें अभिमन्यु के दाएं हाथ पर टिक गई जिसमे होती हलचल से वह अनुभवी स्त्री अतिशीघ्र अपना सिर उसके लंड से ऊपर उठाकर शैतानी हँसी हँसने लगती है।
"नही पकड़ सकोगे अपनी बेशर्म माँ को" वैशाली का सोचना हुआ और तत्काल अभिमन्यु की दाहिनी हथेली उसके पत्थर मे तब्दील हुए लंड को जकड़ लेती है, जिसके साथ ही वह पुनः करवट लेकर दोबारा शांत पड़ जाता है।
"जिस वक्त मैं सचमुच तुम्हारा लंड चूसूँगी, मुझे तुम्हारे चेहरे की उस खुशी को देखना है मन्यु और तबतक हम दोनों ही बस इंतजार कर सकते हैं" सोकर उठने के उपरान्त यह पहले शब्द थे जो वास्तविकता मे वैशाली के मुँह से बाहर आए थे, एक अंतिम नजर अपने सोते बेटे के संपूर्ण नग्न शरीर पर डाल वह बिस्तर से नीचे उतरकर सीधे अपने बाथरूम के भीतर घुस जाती है।
फ्रेश होकर सबसे पहले वैशाली ने बेडरूम के फर्श को साफ किया। अपने बेटे के लंड की तीक्ष्ण मर्दाना गंध के बाद अब उसकी नाक के नाथुए उसकी खुद की पेशाब की मादक गंध से फूलने लगे थे, जिसके परिणामस्वरूप जोरदार दो स्खलनों के बावजूद एक बार फिर उसकी उत्तेजना मे तेजी से वृद्धि होना शुरू हो गई थी। बेडरूम के पंखे की अधिकतम गति बढ़ाकर उसने एक्जॉस्ट भी चालू कर दिया और चहुंओर खुशबूदार रूमफ्रेशनर छिड़कने के उपरान्त बिना कुछ सोचे-विचारे नंगी ही कमरे से बाहर निकल जाती है।
गृहणी बनने के पश्चयात यह प्रथम बार था जब वैशाली ने घर की किचन के भीतर पूर्ण नग्न अवस्था मे प्रवेश किया था, इतना ही नही बल्कि पिछले बीस-पच्चीस मिनटों मे वह चावल पका चुकी थी, दाल उबलने रख चुकी थी और आटा भी मड़ने के बिलकुल करीब था। इन बीस से पच्चीस मिनटों मे जिस विशेष कारणवश वह अबतक किचन मे मौजूद थी वह थी उसकी पापी सोच वर्ना किचन की देहरी चढ़ते ही उसके बढ़ते कदम लगातार दो बार लड़खड़ाये थे। उसकी पापी सोच मे पहली विशेष बात जो शामिल थी वह यह कि अपने ही जवान बेटे से अपनी चूत चटवाने का सुख कितना अलौकिक होता है और दूसरी कि अपने उसी बेटे के पूर्ण विकसित लंड को अपने मुँह के अंदर कैद करने का आनंद भी कोई कम रोमांचकारी नही होता।
पिछले आधे घंटे से उसका मस्तिष्क सिर्फ बीते विध्वंशक घटनाक्रम पर विचार कर रहा था। अपनी चूतमुख पर बेटे की लपलपाती जीभ का गीला स्पर्श और अपनी खुद की जीभ पर उसके लंड की अत्यन्त चिकनी गर्मा-गरम त्वचा के मनभावन स्पर्श की उस निर्लज्ज माँ की सर्वदा नीच सोच उसे उसकी टांगों पर ठीक से खड़ा भी नही रहने दे रही थी।
"कितनी तेजी से फूला था मेरे मुँह मे, मेरे होंठ चीर दिए थे। ढ़ीला भी कोई छोटा थोड़े ही था, सुपाड़ा मेरे गले को छू रहा था। गाल भर गए थे मेरे, अरे पूरा मुँह ही भर गया था। उम्म! उसके पापा के बराबर है ...हाँ! मोटा तो मन्यु का ही ज्यादा निकलेगा, क्या पता लंबा भी उसी का हो" अपनी दोनों हथेलियों से आटे को गूंथने मे मगन वैशाली का पापी मन तो किसी दूसरी दुनिया मे भ्रमण कर रहा था। अपने ही सगे जवान बेटे के लंड से संबंधित विचारों से वह बुरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी, उसके आटे से सने हाथों की मजबूरी थी नही तो कबकी वह वहीं अपनी चूत से खेलना शुरू कर देने वाली थी।
"मुँह का तो ठीक है, देर-सवेर एडजस्ट कर ही लूँगी। वैसे मन्यु चूसने मे मजा तो बहुत आएगा, कितना रसीला--सा दिखता है। उसके टट्टे जरूर चाटूँगी, उन्हें तो मैं बड़े प्यार से चूसूँगी आखिर अपने सगे बेटे का वीर्य जो चखना है मुझे और ...और अगर उसे मैं अपनी चूत मैं लूँ तो ..." बेटे की लंड चुसायी से शुरू हुई वैशाली की अगली सोच अंततः उसकी चूत चुदाई तक आ ही गई और ठीक उसी वक्त उसके कानों मे चलायमान कदमों की चाप भी सुनाई देती है। घबराहटवश अपने गंदे मस्तिष्क का तत्काल साथ छोड़ उसने गरदन घुमाकर पीछे देखा, उसे किचन के द्वार पर खड़ा अभिमन्यु मुस्कुराते हुए उसी को निहारता नजर आता है।
"तुम तो वादे की एकदम पक्की निकली मम्मी, मेरे सामने हमेशा नंगी ही रहोगी ऐसा खतनाक प्रॉमिस किया और वाकई अपना प्रॉमिस निभा भी रही हो" वह किचन के भीतर प्रवेश करते हुए चहका और सीधे अपनी आटा गूंथती माँ के दायीं तरफ आकर खड़ा हो जाता है। वह पूर्व मे उतरे अपने कपड़ो को पहन चुका था और यही उससे गलती हो गई थी, चुस्त फ्रेंची और जीन्स के अंदर उसका सोया लंड रिकॉर्ड गति से अपनी कठोरता को प्राप्त कर गया था, जो जल्द ही उसकी तड़प का कारण बन जाने वाला था।
"बनियों का तो धंधा ही उनकी जुबान पर चलता है, खैर अपनी माँ का असली खतरनाकपना तुम तब देखोगे जब तुम्हारे पापा घर लौट आएंगे" अपनी उत्तेजना को छुपाने के प्रयास मे वैशाली हँसते हुए बोली।
"बढ़िया! और फिर हम बाप-बेटे मिलकर तुम्हें चोदेंगे। तुम बारी-बारी हम दोनों के लंड चूसना, फिर एकसाथ हम तुम्हारा सैंडविच बनाएंगे" अपनी माँ की खोखली हँसी को समझ अभिमन्यु भी हँसते हुए कहता है, उसके डररूपी स्वभाव के चलते उसने वैशाली के कथन को हवा मे उड़ा दिया था।
"नही सच मे मन्यु, आज इस घर मे सचमुच नंगा नाच होने वाला है। जाओ तुम जाकर डाइनिंग टेबल पर बैठो, खाना बनते ही सर्व हो जाएगा" वैशाली ने समय का अंदाजा लगाते हुए कहा, उसके अनुमानस्वरूप चार बज चुके थे और अगले डेढ़-दो घंटों मे उसके पति को वापस घर लौट आना था। उसे यह भय था कि कहीं अभिमन्यु उसके नंगे बदन के साथ फिर से छेड़खानी करना ना शुरू कर दे और उसके पति के घर लौटने का वक्त हो जाए।
"मैं भी खाना बनाने मे तुम्हारी मदद करूँगा माँ" अभिमन्यु पास रखे एक छोटे--से स्टूल को उठाते हुए बोला।
"ओयऽऽ होयऽऽ! तुम्हारी यही माँ पिछले बीस सालों से कपड़े पहनकर खाना बना रही थी तब तो कभी मदद करने की याद भी नही आई और आज वही माँ नंगी होकर खाना बना रही है तो मदद करने का बड़ा ख्याल आ रहा है" वैशाली आटे से सने अपने हाथों की दोनों कलाईयां मोड़कर उन्हें अपनी बलखाई पतली कमर के इर्द-गिर्द रख जिस कामुक अंदाज मे अपनी शिकायत को पूरा करती है, अभिमन्यु के दिल पर छुरियाँ चल जाती हैं। बोलते वक्त उसकी माँ के सुंदर चेहरे पर छाईं अनेकों भाव-भंगिमाएं इस तेजी से बदली थीं जिसे प्रत्यक्ष इतने नजदीक से देख एकाएक वह कांप उठता है। उसकी माँ के हाथ भी उसके शब्दों का पूरा साथ निभा रहे थे, जो पलों मे उसकी कमर से हटकर हवा मे लहराते और फिर पुनः उसकी अत्यंत पतली कमर पर वापस लौट आते।
"चावल-दाल लगभग रेडी हैं, सब्जी सुबह वाली काम आ जायेगी और वैसे भी ना ही तुम रोटी बेलना जानते हो और तुम्हारे सेंकने से जलने वाली रोटियां मैं खाना नही चाहती" सहसा अपनी सुधबुध खोए बेटे को यथावत धरातल पर वापस लाने के उद्देश्य से मन ही मन प्रसन्न होती वैशाली अपनी दायीं टांग उसकी बायीं टांग पर जोर से दबाते हुए बोली।
"रोटियां बनाने मे मदद करने के अलावा मैं एक दूसरे जरूरी काम मे तुम्हारी मदद जरूर कर सकता हूँ माँ, तुम आराम से तवे पर रोटी सेंको और तबतक मैं अपनी जीभ से तुम्हारी चूत सेंकता हूँ" होश मे आते ही अभिमन्यु ने जोरदार विस्फोट करते हुए कहा। उसके कथन को सुन स्लैब से तवा उठाती वैशाली अचानक दो कदम पीछे हट गयी थी, जिसके उपरान्त वह उसी खाली स्थान पर स्टूल को नीचे रख अत्यंत तुरंत उसपर बैठ जाता है।
"न ...नही मन्यु" जिसका डर था वही मुसीबत आन पड़ी देख वैशाली मिमियाते हुए बोली।
"क्यों? क्या तुम्हें मेरा तुम्हारी चूत को चाटना और चूसना पसंद नही आया माँ?" अभिमन्यु मायूसी भरे स्वर मे पूछता है, जबकि उसके प्रथम अनुभवहीन मुखमैथुन की मुख्य साक्ष्य रही उसकी माँ के अतिआनंदक स्खलन को वह कैसे भूल सकता था।
"ऐसी ...ऐसी कोई बात नही मन्यु। तुमने उस समय पूछा नही तो मैं भी तुम्हें बता नही पाई कि तुम्हारी वजह से ही बरसों बाद मैं इतना खुलकर ...अम्म! खुलकर झड़ी थी, मुझे तो याद भी नही कि आखिरी बार मैंने कब ...कब इतना ज्यादा, इतनी देरतक पानी छोड़ा था" वैशाली हौले से बुदबुदाई, बेटे के मुख से मिले सुख का स्वयं उसी के मुख पर बखान करना उस माँ को एकाएक अत्यधिक लज्जा से भर गया था। अतिशीघ्र उसका तमतमाता सुर्ख चेहरा नीचे फर्श की दिशा मे झुक गया, स्वतः ही उसका दायां पंजा उसकी नग्न चूत को ढांकने के असफल प्रयत्न मे जुट जाता है और साथ ही बायीं हथेली उसके गोल-मटोल मम्मों को छुपाने हेतु उनतक पहुँचने का मार्ग तय करने लगी थी।
"फिर क्या बात है? हुंह!" अपने चिरपरिचित जिद्दी स्वभाव के चलते अभिमन्यु ने दोबारा प्रश्न किया। कम से कम इस बात का जानकार तो वह हो ही चुका था कि जब-जब उसकी माँ शर्मिन्दगी का एहसास करती है उसकी जुबान सिर्फ हकलाती ही नही बल्कि टंग क्लीनर से भी कहीं ज्यादा साफ हो जाती है और आगामी परिणाम से अपने बचाव का रास्ता खोजने से पूर्व वह जल्द से जल्द उस तात्कालिक परिस्थिति से ही बचने का हरसंभव उपक्रम करना आरंभ कर देती है।
"औरतों का वह हिस्सा बहुत सेन्सिटिव होता है पर मेरा तो कुछ ज्यादा ही है, मैं अब अपने वहाँ तुम्हारी ...तुम्हारी जीभ बरदाश्त नही कर पाऊँगी मन्यु। मैं लगातार दो बार झड़ चुकी हूँ अगर ...अगर और झड़ी तो फिर बिस्तर से उठ नही सकूँगी। उफ्फ्! वहाँ मुझे छिल भी गया है शायद, पहले एहसास नही हो रहा था उम्म्! हाथ ...अभी हाथ लगाने से हो रहा है" झिझकते हुए ही सही मगर आखिरकार वैशाली ने सत्यता बयान कर ही दी। अभिमन्यु अपनी माँ के बनावटी भावों की भरपूर पहचान रखता था, मुखमैथुन में उसकी अपरिपक्वता उसके सामने उजागर कर उसकी माँ ने उसपर जैसे कोई उपकार--सा कर दिया था। वह जान गया कि गलतीवश उसके दाँत या नुकीले नाखून लग जाने के कारण ही उसकी माँ की चूत छिल गई थी और अब मलहमस्वरूप पुनः उसकी चोटिल चूत को चाटने का बीड़ा उठाने के लिए वह दूने मन से तैयार हो जाता है।
"प्रॉमिस करता हूँ कि तुम्हारी मर्जी के बगैर तुम दोबारा नही झड़ोगी माँ। इसबार पहले से भी ज्यादा प्यार से तुम्हारी चूत को चाटूँगा, मेरा यकीन करो तुम्हें बहुत राहत मिलेगी, बहुत सुकून पहुँचेगा। आओ, मेरे पास आओ माँ ...अपने बेटे के पास आओ" बेहद प्रेमपूर्वक स्वर मे ऐसा कहते हुए अभिमन्यु अपना दायां हाथ उससे दो कदम दूर खड़ी अपनी नग्नता को छुपाने की निरंतर प्रयासरत अत्यंत शर्मसार अधेड़ माँ के समकक्ष ऊपर उठा देता है। उसके प्रेमपूर्ण स्वर मे महज मधुरता ही नही वरन विश्वास की प्रचूरता भी सम्मिलित थी और जिसे महसूस कर वैशाली अपना दायां हाथ अपनी चूतमुख से हटाकर तत्काल बेटे के हाथ को थाम लेती है। जाने अभिमन्यु की आँखों मे वह अपने लिए कितनी ज्यादा मोहब्बत देखती थी जो उसका हाथ थामते ही उसके पाँव खुद ब खुद आगे बढ़कर उनके बीच की दो कदमों की दूरी क्षणमात्र मे खत्म कर देते हैं।
"अब सेंको रोटी माँ, मैं तुम्हारी छिली चूत की सिकाई करता हूँ और हमारी बातें भी होती रहेंगी" मुस्कुराकर अपने पिछले कथन मे जोड़ अभिमन्यु बिना कोई पल गंवाए फौरन अपने खुश्क होंठ अपनी माँ की कामरस उगलती चूत के चिपके चीरे से चिपका देता है।
"उफ्फ्फ्ऽऽ मन्यु! अपनी टाँगें ...टाँगे चौड़ाऊँ?" तवा गैस पर रखती वैशाली लंबी सीत्कार भरते हुए पूछती है, इतने अल्प समय मे उसके जवान बेटे का सुंदर मुँह दोबारा उसकी खौलती चूत से खेलेगा सोचनेमात्र से ही उस अधेड़ माँ की गांड का छेद अजीब सी संसानाहत से भर उठा था।