Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई - Page 5 - SexBaba
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Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई

विजय- “हाँ... मेरी राधा रानी मैं तेरा दीवाना हूँ, तेरी चूत का रसिया हूँ। जब से तू यहाँ आई है तब से मैं तुझ पर फिदा हूँ। सोते जागते मैं हरदम तेरी मस्तानी चूत का ही ख्वाब देखा करता था। अब जब मेरे सामने तेरी यह चूत नंगी पड़ी है तो मैं इसे मनचाहे ढंग से चोदूंगा, तुझे तड़पा-तड़पा के तेरी जवानी को भोगूंगा...” यह कहकर मैंने माँ को लिटा दिया और माँ की गाण्ड के नीचे एक बड़ा सा तकिया लगा दिया ताकी चूत उभर जाये।

माँ- “हाँ... मेरे वीजू प्यारे अपने इस मातृ अंग का, अपनी इस जन्मस्थली का खुलकर उपभोग करो। अपने विशाल लिंग से मेरी योनि का भेदन करो। हाँ मेरे स्वामी अपनी इस प्यासी चरणों की दासी को अपना वीर्य दान दो, मेरी वर्षों से सूखी पड़ी इस बावड़ी में अपने रस का नाला बहा दो और इसे लबालब भर दो...”

विजय- “हाँ... मेरी रानी, मैं तेरी टाँगों के बीच तेरी लेने आ रहा हूँ..” कहकर मैं माँ की टाँगों के बीच आ गया और माँ की चूत के छेद पर अपने लण्ड का सुपाड़ा रख दिया।

माँ की चूत पूरी लसलसी थी। थोड़ा सा जोर लगते ही सुपाड़ा ‘पच्च' करके अंदर फिसल गया। अब मैं माँ के ऊपर पूरा झुक गया और माँ को होंठों को अपने होंठों में ले लिया। 4-5 बार केवल सुपाड़ा अंदर डालता और पूरा बाहर निकल लेता। इसके बाद सुपाड़ा अंदर डालने के बाद मैंने लण्ड का दबाव माँ की चूत में बढ़ाया। मैं दबाव बहुत धीरे-धीरे दे रहा था। अगले 2-3 मिनट में मेरा आधा लण्ड माँ की चूत में समा चुका था। उधर माँ के होंठ मेरे होंठों में थे। नीचे माँ कसमसा रही थी। अब मैं माँ की चूत में आधा के करीब लण्ड डालता और वापस निकाल लेता। कई बार ऐसा करने से चूत अंदर से अच्छी तरह से गीली हो गई। इसके बाद आधा लण्ड डालने के बाद मैंने चूत में दबाव बनाए रखा और मेरा लण्ड चूत में धीरे-धीरे सरकने लगा। माँ का शरीर नीचे अकड़ रहा था। अब माँ के होंठ छोड़कर मेरे हाथ माँ की चूचियों को गूंध रहे थे।

राधा- “तूने तो अपने हलब्बी लण्ड से आज मुझे 18 साल की कुंवारी कन्या बना दिया है। इतना मजा तो मैं जब जिंदगी में पहली बार चुदी थी तब भी नहीं आया था। तुम्हारा यह मोटा सोंटा तो मेरी चूत में पूरा अड़स गया है। अपनी माँ की चूत में धीरे-धीरे पेलो और आहिस्ते आहिस्ते मेरा पूरा मजा लो...”

विजय- “हाँ... मेरी राधा प्यारी देखो कितने आराम से तुझे चोद रहा हूँ। मैं तेरा बहुत शुक्रगुजार हूँ की तूने इतने साल से मेरे लिए अपनी यह मस्त चूत बचा के रखी। जितना मजा मुझे तेरे साथ आ रहा है उतना मजा मुझे। कोई लड़की दे ही नहीं सकती थी। अब मैं बिल्कुल शादी नहीं करूंगा। अब से तू ही मेरी बीवी है, मेरी घरवाली है। दुनियां की नजरों में तू भले ही मेरी माँ बने रहना, उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। पर जब भी मौका मिले यूँ ही मस्त होकर चुदाते रहना...”
 
अब मेरा लण्ड माँ की चूत में जड़ तक अंदर घुसने में बिल्कुल थोड़ा सा बाकी रह गया था, तो मैंने चूत में लण्ड के हल्के-धक्के देने प्रारंभ कर दिए। माँ हाय हाय करने लगी। मेरा लण्ड माँ की चूत में जड़ तक अंदर-बाहर होने लगा था। धीरे-धीरे मैं धक्कों की स्पीड बढ़ाता गया। लण्ड ‘फछ-फछ’ करता चूत से अंदर-बाहर हो रहा था।

अब माँ ने दोनों हाथ मेरी कमर में जकड़ दिए और धक्कों में मेरा साथ देने लगी। माँ की हाय हाय सिसकारियों में बदल गई। माँ की आँखें मूंद गई और वो मुझसे चुदाई का स्वर्गीय आनंद लेने लगी। मैं माँ को बेतहाशा चोदे जा रहा था। अब % के करीब लण्ड चूत से बाहर निकालता और एक करारा शाट लगाकर जड़ तक वापस पेल देता।

विजय- “माँ कैसा लग रहा है? क्यों तीनो लोक दिख रही है या नहीं?” मैंने पूछा।

राधा- “अरे मत पूछ। आज जैसा आनंद तो मुझे जीवन में आज तक नहीं मिला। तुम बहुत ही प्यार से कर रहे हो। मुझे दर्द महसूस तक नहीं होने दिया और 11 इंच का हलब्बी लौड़ा पूरा का पूरा मेरी चूत में उतार दिया...” माँ ने कहा।

अब मैं पूरे जोश में आ चुका था और जोर-जोर से हुमच-मच कर लण्ड पेलता था। माँ भी नीचे से धक्कों का जबाब दे रही थी।

विजय- "देख तुझे कैसे कस के चोद रहा हूँ। ले ये मेरा धक्का झेल। बड़ी मस्त औरत है तू। तू तो सिर्फ मेरे से चुदने के लिए ही बनी है। तुझ जैसी चुदक्कड़ और सेक्सी औरत को तो दिन रात नंगी करके ही रखना चाहिए। और जब भी लण्ड खड़ा हो जाय तेरे में पेल देना चाहिए..” मैं अनाप सनाप बकते हुए अपनी मस्त माँ को चोदे जा रहा था।

करीब 10 मिनट तक यह चुदाई चली की माँ ने मुझे बुरी तरह से जकड़ लिया। माँ की आँखें लाल हो गई, वो हाँफने लग गई, उसका शरीर एक बार ऐंठा और वो ढीली पड़ने लगी।

राधा- “हाय विजय बेटे तूने तो एक ही चुदाई में मुझे ढीली कर दिया। देख मेरी चूत से क्या बह रहा है? मैं इतनी कमजोर क्यों होती जा रही हूँ? मेरे पर ऐसे ही चढ़ा रह, मुझे अपने नीचे दबोचे रख। मैं तृप्त हो गई..”

तभी मेरे लण्ड से जोर से ज्वालामुखी फट पड़ा। लण्ड से पिघला लावा माँ की चूत में बहने लगा। धीरे-धीरे माँ के साथ मैं भी शीतल पड़ता गया। कुछ देर बाद माँ उठी। सोफे से उसने सारे कपड़े लिए और नंगी ही अपने कमरे में चली गई। कुछ देर बाद मैं भी उठा। बाथरूम में जाकर हाथ मुँह धोया और नाइट ड्रेस पहनकर सो गया। आज बहुत अच्छी नींद आई। सोने के बाद एक बार नींद लगी तो सुबह ही खुली। आफिस जाते वक़्त माँ ने नाश्ता दिया पर वो रोज की तरह बिल्कुल सामान्य थी।
 
शाम को ठीक समय पर मैं घर पर आ गया। रोज की ही तरह हमने डिनर लिया। आज माँ फिर नहाने चली गई। मैंने भी बहुत तबीयत से शावर का मजा लिया और सोफे पर बैठकर माँ का इंतजार करने लगा। जब माँ मेरे रूम में आई तो आज वो सेक्सी खुली नाइट-गाउन में थी। गाउन के स्ट्रैप्स उसने आगे पेट पर बाँध रखे थे। चलकर आते समय उसकी भारी चूचियां गाउन में उछल रही थीं।

राधा- “लगता है बड़ी बेसब्री से इंतजार हो रहा है...” माँ ने अपनी स्वाभाविक हँसी से पूछा।

विजय- “जिस इंतजार का फल मीठा हो उस इंतजार में भी मजा है। पर माँ आज तो तुम कयामत ढा रही हो।

क्या इरादा लेकर आए हैं सरकार..” मैंने सोफे के पास खड़ी माँ का हाथ पकड़कर कहा।।

राधा- “कल तो मैं इतनी बेचैन हो गई की तुम्हें ठीक से देख ही नहीं सकी। पिछले 15 साल से जो मेरी तमन्नाएं सोई पड़ी थीं, उन्हें तुमने एकाएक जगा दिया था। मेरे पूरे शरीर में आग सी जलने लगी थी और चींटियां सी रेंगने लगी थी। जब तक तूने मेरी प्यासी धरती पर प्यार की बौछार नहीं की मैं धू धू करके जल रही थी। लेकिन आज अपने लाल की पूरी जवानी अच्छी तरह देगी। तेरे मतवाले अंग को जी भर के निहारूंगी, उसे खूब प्यार करूंगी। वैसे तो तू मुझे आइसक्रीम कैंडी खिलाने कहाँ-कहाँ ले जाता रहता है और पूछ-पूछ खिलाता है। आज अपनी नीचे वाली कैंडी इस माँ को नहीं खिलाएगा?” माँ ने कहा।

विजय- “अरे मेरी रानी इतनी जल्दी भी क्या है? आओ कुछ देर मेरी गोद में बैठो, मेरे से प्यारी-प्यारी खुलकर बातें करो। मेरा मतवाला लण्ड तो अब आपका बिना मोल का गुलाम है। जब सरकार हुकुम करेंगे, बिल्कुल सीधा खड़ा होकर आपको सल्यूट करेगा। आप जहाँ हुकुम देंगे वहीं दौड़ा चला जाएगा...” यह कहते हुए मैंने अपनी सेक्सी माँ को हाथ पकड़कर आपनी गोद में बैठा लिया।

राधा- “यह तो बहुत ही प्यारा स्वामिभक्त और आज्ञाकारी सेवक है। ऐसे सेवक के लिए तो मेरे महल का हर द्वार खुला है। कहीं भी कोई पहरा नहीं है और ना ही कहीं रोक है। इसकी जब भी जिस समय जहाँ जाने को इच्छा हो वहाँ फौरन बेरोक-टोक जा सकता है। राजमहल की महारानियों की सेवा में तो ऐसे ही फौलादी जिश्म के मुस्तैद गुलाम चाहिए..."

विजय- “यह आपका प्यारा गुलाम ठीक वैसा ही है जैसा की आप चाहती हैं। यह इस विशाल राजमहल का हर बंद पड़ा और गुप्त द्वार खुद-बा-खुद तलाश लेगा और अपना रास्ता खुद बना लेगा..."

राधा- “चलो अब उठो और अपने कपड़े खोलो। मुझे तो अभी कैंडी चूसनी है...” माँ ने मचलकर कहा।

विजय आज्ञाकारी बालक की तरह सोफे से उठा और एक-एक करके सारे कपड़े उतारकर माँ के सामने पूरा नंगा
हो गया। माँ सोफे से उठकर बेड पर बैठ गई थी। मेरा लण्ड तन गया था जिसे माँ ने हाथ में ले लिया और मुठियाने लगी।

राधा- “इतना प्यारा कैंडी सा लण्ड और रसगुल्ले सा सुपाड़ा। इसे आज जी भर के चूसूंगी। मैंने आज तक किसी मरद का लण्ड नहीं चूसा। लेकिन कल्पनाओं में किसी मोटे और तगड़े लण्ड को पक्की लण्डखोर की तरह चूसा । करती थी। आज वैसा ही लण्ड मेरे सामने है। विजय डार्लिंग अपने विशाल लण्ड को अपनी माँ के मुँह में दे दे...” यह कहकर माँ ने मुझे बेड पर ले लिया और खुद चिट लेट गई। मैंने माँ के कंधों के दोनों ओर घुटने जमा लिए
और माँ के मुँह में अपना लण्ड दे दिया।
 
राधा होंठ गोल करके मुँह से लण्ड को बाहर-भीतर करते हुए गीला करने लगी। फिर जी जान से कोशिश करती, जितना हो सके मुँह के अंदर लेने लगी। पूरी कोशिश के बाद भी माँ 6 इंच के करीब ही लण्ड मुँह में ले पाई।

माँ काफी देर मेरे लण्ड को चूसती रही, सुपाड़े पर जीभ फिराती रही, 1-2 बार आंडों को भी मुँह में भरने की कोशिश की।

राधा- “तेरे इस मस्त लण्ड ने तो मुझे पक्की लण्डखोर बना दिया। देखो तो इस उमर में मुझे यह क्या हो गया?” माँ ने कहा।



विजय- “माँ तेरे जैसी जवान, हसीन और शौकीन औरत को इस उमर में आकर जब ऐसा चस्का लगता है ना तो उस औरत के यार की तो लाटरी खुल जाती है। ऐसी प्यासी और तड़पती औरत बहुत मस्त होकर बोल-बोलकर आपनी जवानी का खजाना लुटाती है। खुद भी पूरी तरह से खुलकर जवानी के नये-नये खेल खेलती है और अपने ठोंकू यार को भी पूरी मस्ती देती है। उस औरत के साथ मजा लेने में जो सुख है ना उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। बड़ी नमकीन औरत है तू। तेरा यार बनकर तो मेरा भाग्य खुल गया। अब तेरे साथ खुलकर व्यभिचार करूँगा। तभी तो मुझे तेरे जैसी प्यासी और शौकीन औरतों का चस्का है। एक बार पटाने की देर है फिर तो इतनी मस्ती कराती है की पूछो मत...” मैंने बहुत ही कामुक अंदाज में होंठों पर जीभ फेरते हुए कहा।

राधा- “जब तेरे जैसा मतवाला बांका यार मिल जाय तो हर जवान प्यासी औरत अपनी जवानी लुटाने को मचल जाती है। मैं 15 साल से तगड़े लौड़े को तरस रही थी। एक बार जब तूने मेरे पर डोरे डालने शुरू किए तो मुझे तुम एक बेटे से ज्यादा पूरा मर्द दिखाई देने लेगे। मुझे तेरा कसा शरीर, मजबूत पुढे, विशाल बाँहें, फैली जांघे आकर्षित करने लगी। मैं इनमें पिसने के लिए तड़प उठी। यह हमेशा याद रखो जब भी हम दोनों एकांत में। कामातुर होकर मिलें, तब तुम बेटे से पहले एक पूर्ण पुरुष हो और मैं एक काम पीड़िता पूर्ण नारी। तुम्हारे पौरुष का इसी में सम्मान है की तुम अपने समक्ष काम याचना लेकर आई नारी की काम तृप्ति करो, चाहे वो तुम्हारी जननी ही क्यों ना हो...” यह कहकर माँ ने मुझे अपनी बाँहों में कस लिया।


विजय- “चल मेरी राधा जान अब अपनी मालपुए सी चूत भी तो मुझे चटा दे। तुझे तो पता ही है की तुम कैंडी चूसने की शौकीन हो तो मैं कोन में जीभ घुसाकर क्रीम चाटने का शौकीन...”


मेरी बात सुनकर माँ उठी और नाइट-गाउन की डोरी खोल दी। खुले गाउन के नीचे माँ ने कुछ भी नहीं पहन । रखा था और माँ ने गाउन अपनी बाँहों से निकाल दिया और मेरे सामने मेरी माँ पूरी नंगी होकर हँस रही थी। मैं बेड पर लेट गया और माँ को मेरे चेहरे पर घोड़ी नुमा बना लिया और माँ का मुँह मेरे पैरों की ओर कर दिया।
 
मेरी बात सुनकर माँ उठी और नाइट-गाउन की डोरी खोल दी। खुले गाउन के नीचे माँ ने कुछ भी नहीं पहन । रखा था और माँ ने गाउन अपनी बाँहों से निकाल दिया और मेरे सामने मेरी माँ पूरी नंगी होकर हँस रही थी। मैं बेड पर लेट गया और माँ को मेरे चेहरे पर घोड़ी नुमा बना लिया और माँ का मुँह मेरे पैरों की ओर कर दिया।


राधा की रसदार चूत का फाटक ठीक मेरे मुँह के ऊपर था और माँ का विशाल हौदे सा पिछवाड़ा मेरी आँखों के सामने था। बिल्कुल गोल शेप में बने नितंबों की दरार के बीचो-बीच माँ की गाण्ड का बड़ा सा गुलाबी छेद साफ दिख रहा था। छेद ज्यादा सिकुड़ा नहीं होकर खुला सा था। मैंने माँ की चूत अपने मुँह पर दबा ली और माँ की चूत जीभ अंदर घुसा-घुसाकर मस्त होकर चाटने लगा। माँ की चूत लसलसा रस छोड़ रही थी। मैंने माँ की चूत से जीभ निकालकर दो अंगुली उसमें डाल दी, जिससे चूत के गाढ़े रस से अंगुलियां सराबोर हो गई। अब वापस माँ की चूत पर मुँह लगा दिया और उंगलियों में लगा रस माँ की गाण्ड के छेद पर मलने लगा। इधर माँ के मुँह के सामने मेरा लण्ड तनटना रहा था जिसे माँ चूसने लगी यानी की हम दोनों 69 की पोजीशन में एक दूसरे की चूसा चूसी करने लगे।


इधर मैंने अंगुलियों में लगा सारा रस माँ की गाण्ड पर चुपड़ दिया और माँ की गाण्ड का छेद चिकना हो गया। अब मैंने अपनी इंडेक्स उंगली माँ की गाण्ड में पेलनी शुरू कर दी। माँ की गाण्ड बहुत ही कसी हुई थी। एक अंगुली भी आसानी से अंदर नहीं जा रही थी। चूत चाटते-चाटते मेरे मुँह में काफी थूक इकट्ठा हो गया था, जिसे एक हथेली पर लेकर माँ की गाण्ड पर अच्छे से मल दिया और इस बार कुछ जोर लगाकर गाण्ड में अंगुली घुसा तो आधी अंगुली अंदर चली गई। अब मैं धीरे-धीरे अंगुली भीतर बाहर करने लगा। कुछ देर में छेद ढीला हो गया और पूरी अंगुली भीतर बाहर होने लगी।


माँ मेरे लण्ड के ऊपर झुकी हुई धीरे-धीरे मेरे 11" लम्बे और मोटे लौड़े को अपने हलक में ले रही थी। वो मुँह में जमा हुए थूक से मेरे लण्ड को चिकना कर रही थी और अपना मुँह ऊपर-नीचे करते हुए पक्की लण्डखोर औरत की तरह मेरा लण्ड चूसे जा रही थी। अब लगभग मेरा पूरा लण्ड वो अपने मुँह में लेकर चूसने लगी थी। माँ के इस प्रकार लण्ड चूसने से मुझे बहुत मजा आ रहा था। मैं पहले से ही माँ की चूत अपने चेहरे पर दबाते हुए पूरी जीभ उसके अंदर डालकर चाट रहा था, और साथ ही माँ की गाण्ड अपनी इंडेक्स उंगली से मार रहा था। माँ के इस प्रकार जोश में भरकर लण्ड चूसने से मुझे भी जोश आ गया और मेरी अंगुली की स्पीड उसकी गाण्ड में बढ़ गई।



मेरी देखा देखी माँ ने भी मेरा लण्ड चूसते-चूसते मेरी गाण्ड दोनों हाथों से कुछ ऊपर उठा ली जिससे माँ को मेरी गाण्ड का छेद भली भाँति दिखने लगा। उसने ढेर सारा थूक अपने मुँह से निकाला और अपनी 2-3 अंगुली में । लेकर मेरी गाण्ड के छेद पर चुपड़ दिया। तभी माँ ने शरारत से अचानक मेरी गाण्ड में अपनी एक अंगुली जोर से घुसेड़ दी।


मैं इस अप्रत्याशित हमले के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था और जोर से चिहुँक पड़ा। तभी माँ ने अपनी अंगुली कुछ बाहर लेकर वापस जोर से मेरी गाण्ड में पूरी घुसेड़ दी। हालाँकि मैं खुद तो मुन्ना की गाण्ड पहले ही मार चुका था, पर मेरी खुद की गाण्ड अब तक बिल्कुल कुँवारी थी। मुझे यह भी नहीं याद पड़ता की कभी मैंने खुद की भी अंगुली शौक से अपनी गाण्ड में दी हो। पर आज मेरी बिल्कुल कुँवारी गाण्ड एक औरत के द्वारा मारी जा रही थी, चाहे वो अंगुली से ही मारी जाये, और वो औरत खुद मेरी माँ थी।
 
लेकिन इस घटना से मैं बहुत खुश हो गया की चलो माँ की मस्त गाण्ड मारने की राह आसान हो गई जिसे मैं काफी देर से अपने चेहरे के ठीक सामने लहराते देखकर मारने की फिराक में था। मेरी एक अंगुली माँ की गाण्ड में बड़ी आसानी से अंदर-बाहर हो रही थी। तभी मैंने अंगुली निकाल ली और इस बार दो अंगुली थूक से अच्छी तरह तर करके धीरे-धीरे बहुत जतन के साथ माँ की गाण्ड में पेलने लगा।


मैं माँ को जरा भी दर्द महसूस नहीं होने देना चाहता था, क्योंकी कहीं वो अपनी गाण्ड देने से मना नहीं कर दे। थोड़ी कोशिश के बाद मेरी दो अंगुली माँ की गाण्ड में जाने लगी। अब मुझे विश्वास हो गया की यह मेरा मूसल सा लण्ड अपनी गाण्ड में भी ले लेगी।


विजय- “माँ तुम्हारी गाण्ड तो बड़ी मस्त है। लगता है इसको मरवाने की भी पूरी शौकीन हो। देखो कितने आराम
से तुम्हारी गाण्ड मैं अपनी अंगुलियों से मार रहा हूँ...” मैंने आखिर पूछ ही लिया।


राधा- “नहीं रे तेरा बाप मेरी चूत की प्यास तो ठीक से बुझा नहीं पाता था, भला वो मेरी गाण्ड क्या मारता? कभी-कभी मैं ही यूँ ही अंगुली कर लिया करती थी..." माँ बोली।


विजय- “तो इसका मतलब अभी तक तुम्हारी गाण्ड कुँवारी है। माँ जैसे तूने मुझे अपनी 15 साल से अनचुदी चूत का मजा दिया, वैसे ही अब अपनी इस कुंवारी गाण्ड का मजा देना। तुम्हारी चूत का तो उद्घाटन नहीं कर सका पर अब तुम्हारी कुँवारी गाण्ड का उद्घाटन तो मैं जरूर करूँगा...” मैंने माँ की गाण्ड में अंगुली से खोदकर कहा।


राधा- “क्या कहता है तू? तुम्हारा घोड़े जैसा हलब्बी लौड़ा कल बड़ी मुश्किल से चूत में ले पाई थी। भला यह गाण्ड में कैसे जाएगा? यह तो मेरी गाण्ड को फाड़ के रख देगा। नहीं बाबा मुझे नहीं मरवानी तुमसे गाण्ड..." माँ ने पुरजोर विरोध किया।


विजय- “माँ कल कितने प्यार से मैंने तुम्हारी चूत ली थी ना। थोड़ा भी दर्द महसूस होने दिया था क्या? मैं। उससे भी ज्यादा संभालकर और प्यार से तेरी गाण्ड लँगा। तेरे जैसी लंबी चौड़ी बड़ी गाण्ड वाली औरत की पूरी नंगी करके गाण्ड भी नहीं मारी तो फिर क्या मजा? तेरे जैसी मस्त गाण्ड वाली औरत अपने प्यारे को जब मस्त होकर गाण्ड देती है ना तो उसका यार बाग-बाग हो जाता है। उसका प्यार उस औरत के प्रति सैकड़ों गुना बढ़ । जाता है...” मैंने माँ की गाण्ड पर हाथ फेरते हुए कहा।
 
राधा- “लेकिन मैंने आज तक कभी मरवाई नहीं। ये तो मुझे पता है की शौकीन मर्दो को गाण्ड मारने का भी। शौक रहता है, और अपना शौक पूरा करने के लिए चिकने लौंडों को खोजते रहते हैं। हम औरतों की गाण्ड मर्दो के मुकाबले वैसी ही कुदरती भारी होती है तो ऐसे मर्द हमारी गाण्डों पर भी लार टपकाते रहते हैं पर भला हम औरतों को इसमें क्या मजा है?"


विजय- “माँ तुम नहीं जानती। कई मर्द कुदरती तौर पर तो मर्द होते हैं, पर उनके लक्षण औरतें जैसे होते हैं,
जैसे औरतों जैसे नाजुक, दाढ़ी मूंछ और छाती पर बालों का ना होना, औरतों के जैसे शर्माना इत्यादि। वैसे मर्द मारने वालों से ज्यादा मराने को लालायित रहते हैं। उन्हें मराने में जब मजा आता है तो इसका मतलब गाण्ड मराने का भी एक अनोखा मजा है, जो मराने वाले ही जानते हैं। तो तुम यह बात छोड़ो की गाण्ड मराने में तुम्हें मजा नहीं आएगा। जब तूने आज तक मराई ही नहीं तो तुम इसके मजे को क्या जानो? एक बार मेरे से अपनी गाण्ड मरवाके तो देखो। जैसे मेरे हलब्बी लौड़े से अपनी चूत का भोसड़ा बनवा के तुम मेरी रखेल बन गई हो । वैसे ही कहीं गाण्ड मरवाके पक्की गान्डू ना बन जाओ और गाण्ड मरवाने से पहले अपनी चूत मुझे छूने भी ना दो..."


मेरी बात सुनकर माँ ने कुछ नहीं कहा। मौन को सहमति मानते हुए मैं उठा और मेरी आल्मिरा से कंडोम का पैकेट और वैसेलीन का जार ले आया, जो कुछ दिन पहले मैं इसके छोटे बेटे की यानी की मेरे छोटे भाई मुन्ना की गाण्ड मारने के लिए लाया था। पैकेट से कंडोम निकलकर मैंने लण्ड पर चढ़ा ली। माँ को बेड पर घोड़ीनुमा बना दिया और माँ की गाण्ड पर अंगुली में ढेर सारी वैसलीन लेकर चुपड़ दी। 2-3 बार माँ की गाण्ड में अंगुली घुमाकर माँ की गाण्ड अंदर से पूरी चिकनी कर दी।


फिर मैंने अपना लण्ड अच्छे से चुपड़ लिया। आखिरकार, एक तगड़ी गाय पर जैसे सांड़ चढ़ता है वैसे ही मैं माँ पर चढ़ गया। मेरा सुपाड़ा बहुत ही फूला था, जिसका मुंड माँ की गाण्ड में नहीं जा रहा था। नीचे माँ भी । कसमसा रही थी। मैंने फिर थोड़ी वैसेलीन माँ की गाण्ड और मेरे लण्ड पर चुपड़ी। माँ से कहा की वह बाहर कीओर जोर लगाए। इस बार सुपाड़ा अंदर समा ही गया। माँ दर्द से छटपटाने लगी।

मैंने लण्ड बाहर निकल लिया और माँ का छेद रूपये का आकर का खुला साफ दिख रहा था, जिसमें मैंने अंगुली में लेकर वैसेलीन भर दी और माँ पर फिर चढ़ बैठा। 2-3 बार केवल सुपाड़ा अंदर डालता और पूरा लण्ड वापस बाहर निकाल लेता। इसके बाद मैं सुपाड़ा डालकर गाण्ड पर लण्ड का दबाव बढ़ाने लगा। माँ जैसे ही बाहर को जोर लगाती लण्ड धीरे-धीरे माँ की गाण्ड में कुछ सरक जाता। माँ की गाण्ड बहुत ही कसी थी। फिर लण्ड पूरा निकाल लिया और माँ की गाण्ड और मेरे लण्ड को फिर वैसेलीन से चुपड़कर माँ पर चढ़ गया। इस बार धीरे-धीरे मैंने लण्ड माँ की गाण्ड में पूरा उतार दिया।
 
विजय- “हाय माँ... तेरी गाण्ड तो सोलह साल की कुंवारी छोकरी की चूत जैसे कसी हुई है। देखो कितने प्यार से मैंने पूरा लौड़ा तुम्हारी गाण्ड में पेल दिया बताओ तुम्हें दर्द हुआ?” मैं माँ की लटकती चूची दबाते हुए बोला। अब मैं माँ की गाण्ड से आधा के करीब लण्ड बाहर करके धीरे-धीरे फिर भीतर सरकाने लगा था।


राधा- “पहली बार जब अंदर घुसा था तो एक बार तो मेरी जान ही निकल गई थी। लेकिन अब जब अंदर जाता है तो गाण्ड में एक मीठी-मीठी सुरसुरी सी होती है। मारो मेरे राजा। आज तो तुमने मुझे एक नया मजा दिया है, एक नये स्वाद से अवगत कराया है...” माँ ने मेरे चूची दबाते हाथ को पकड़कर अपनी चूत पर रखते हुए कहा।


अब मैंने धक्कों की स्पीड बढ़ा दी। नीचे से माँ भी गाण्ड उछलने लगी थी। मैं समझ गया की माँ पूरी मस्ती में है, और पहली बार गाण्ड मरवाने का मजा लूट रही है। अगले 5 मिनट तक मैंने माँ की गाण्ड खुब कस के मारी। मैं पूरा लौड़ा गाण्ड से बाहर खींचकर एक ही धक्के में जड़ तक पेल रहा था। वैसेलीन से पूरी चिकनी गाण्ड में लण्ड ‘पछ-पछ’ करता अंदर-बाहर हो रहा था। थोड़ी देर बाद माँ की गाण्ड से लौड़ा निकाल लिया, कंडोम निकालकर साइड में रख दी और डागी स्टाइल में माँ पर चढ़कर चूत में एक ही शाट में पूरा लण्ड पेल दिया। मैं माँ को बेतहाशा चोदने लगा।


राधा गाण्ड पीछे ठेल-ठेलकर चुदवा रही थी। थोड़ी देर में मानो मेरे लण्ड पर अपनी गाण्ड पटकने लगी। तभी मेरे लण्ड से वीर्य का फव्वारा माँ की चूत में छूट पड़ा। उधर माँ भी जोर-जोर से हाँफने लगी। कुछ देर बाद हम दोनों शिथिल पड़ गये।


मैंने माँ को अपने आगोश में भर रखा था और माँ बिल्कुल मेरे से चिपकी मेरे साथ बिस्तर पर पड़ी थी। मैंने माँ से कहा- “माँ कल तो मुन्ना भी वापस आ जाएगा। खेतों की बिकवाली का सारा काम मुन्ना ने कर दिया है और रूपये तुम्हारे बैंक अकाउंट में डाल दिए हैं। कल शाम तक वो यहाँ पहुँच जाएगा...”

राधा- “देख तू बहुत चालू और खुले स्वाभाव का है। मुन्ना के जाते ही तूने अपनी माँ को अपनी बीवी बना लिया है, और उसके सब छेदों का मजा ले लिया है। पर मेरा अजय बेटा बहुत सीधा साधा है। ध्यान रखना की उसके सामने कोई ऐसी हरकत मत कर देना की बात बिगड़ जाए."


विजय- “माँ, तुम्हें बताया तो था की अब मुन्ना पहले जैसा भोला नहीं रहा। तेरे दोनों बेटे ठीक तेरे पर गये हैं,तेरे जैसे ही मौज मस्ती के, पहनने के, खाने पीने के, घूमने फिरने के शौकीन। मैं खुलकर करता हूँ तो वो थोड़ा झिझक कर। अपने भैया की हर खुशी के लिए मेरा मुन्ना पूरा तैयार रहता है। तुम उसकी बिल्कुल चिंता मत करो। उसका भी मैं कोई ना कोई रास्ता निकाल लँगा...”

थोड़ी देर बाद कल की तरह माँ अपना गाउन उठाकर अपने रूम में चली गई। दूसरे दिन मेरे स्टोर जाते समय माँ बिल्कुल सामान्य थी।
 
शाम 8:00 बजे जब मैं स्टोर से घर पहुँचा तो माँ ने दरवाजा खोला। मैं अंदर आया तो देखा की अजय सोफे पर बैठा था। अजय नहा धोकर बिल्कुल फ्रेश होकर शार्टस पहनकर बैठा हुआ था, इसका मतलब उसे आए देर हो। गई थी। मैं भी अपने रूम में चला गया और फ्रेश होकर, नाइट ड्रेस पहनकर बाहर आ गया। अजय और माँ 3 प्लेटों में खाना लगाकर डाइनिंग टेबल पर बैठे मेरा इंतजार कर रहे थे। खाने के दौरान अजय से गाँव की बातें छिड़ गई। माँ गाँव में एक-एक का हाल पूछ रही थी और अजय सारी बातें बताता जा रहा था।


खाना खतम करके हम तीनों मेरे रूम में आ गये। वहाँ भी हम तीनों बेड पर बैठकर गाँव की ही बातें करते रहे। अजय ने बताया की चाचाजी जल्द ही हमारे घर का भी कोई अच्छा ग्राहक खोज देंगे।


तभी मैंने अजय को छेड़ा- “मुन्ना तूने तो गाँव में पूरी मस्ती की होगी। और तुम्हारे पुराने यार दोस्तों का क्या हाल है? खेत वेत में उनके साथ गये की नहीं गये? वहाँ सक्करकंदों की तो कमी नहीं, खूब आते होंगे...”


अजय ने मेरी ओर देखकर आँखें तरेरी और मेरा हाथ दबा दिया, और कहा- “भैया मेरा तो वहाँ गाँव और कचहरी के बीच चक्कर काटते-काटते टाइम बीत गया। पर लगता है आपने यहाँ पूरी मस्ती की है। आपने तो एक सप्ताह में माँ को ही पूरा बदल दिया है। माँ को ऐसी क्या घुट्टी पिला दी की माँ पूरी जवान हो गई है...”


अजय की बात सुनकर माँ ने थोड़ी आँखें झुका ली। तभी मैंने पास में अधलेटे अजय की गाण्ड अपनी एक अंगुली से खोद दी।
तभी माँ ने अजय को कहा- “तुम दिन भर ट्रेन से चलकर आया है इसलिए आराम कर ले..." और खुद उठकर अपने कमरे में चली गई।


माँ के जाते ही अजय ने उठकर कमरे का दरवाजा बंद कर लिया, और कहा- “भैया मेरे गाँव जाते ही आपको यह चिंता सताने लगी की मैं गाँव जाते ही सारे काम भूलकर अपने दोनों दोस्तों के पास मरवाने ना भाग जाऊँ। जैसे बहुत सुंदर पत्नी के पति को हरदम यह चिंता सताए रहती है की मेरी गैरहाजिरी में यह किसी दूसरे के साथ मुँह काला ना कर ले, वैसे ही आपको यह चिंता खा रही थी? पर भैया चिंता मत करो जैसे माँ ने पूरा पतिव्रत धर्म निभाया है वैसे ही आपका भाई भी भ्रातृ धर्म निभा रहा है...”


विजय- “मुन्ना, भ्रातृ धर्म नहीं बल्कि पतिव्रत धर्म कहो। बताओ क्या तुम मेरी लुगाई नहीं हो?” यह कहकर मैं बेड से खड़ा हो गया और अजय को बाँहों में भरकर उसके होंठ चूसने लगा। मैंने दोनों हाथ उसके औरतों जैसे भारी चूतड़ों पर रख दिए और उन्हें मुट्ठी में कसकर दबाने लगा। फिर मैं सोफे पर बैठ गया और अपने प्यारे मुन्ना को अपनी गोद में बैठा लिया। मेरा लण्ड बँटे की तरह तना हुआ था जो भाई की गुदाज गाण्ड में चुभ रहा था।


अजय- "नीचे आपका लोहे का डंडा पूरा गरम है, उसपर बैठकर ही मुझे तो बहुत मजा आ रहा है। चाचाजी और चाचीजी ने तो इतना कहा था की सप्ताह 10 दिन गाँव में ही ठहर जाओ, पर मैं तो काम खतम होते ही आपके इंडे की गर्मी लेने भागा-भागा चला आया। भैया आपसे मस्ती लेने के बाद मैंने तो किसी दूसरे की तरफ झाँकने की भी नहीं सोची। पर भैया आपने तो मेरे जाते ही माँ को मेरी भाभी जैसा बना दिया। माँ का पूरा कायाकल्प हो गया है, जैसे स्वर्ग से अप्सरा उतर आई हो। भैया जैसे मेरे को अपनी लुगाई बना लिया कहीं माँ को भी सचमुच में मेरी भाभी तो नहीं बना दिया? आप बड़े चालू हो। मेरे जाने के बाद तो आपको पूरा मौका मिला था। इस बीच आपने अपने लण्ड का स्वाद माँ को भी चखा दिया होगा...”
 
विजय- “मुझे तो शुरू से ही माँ जैसी बड़ी उमर की भरी पूरी खेली खाई औरतें पसंद है। आज की डाइटिंग करने वाली दुबली पतली लड़कियां क्या मेरा 11' का लौड़ा चुपचाप झेल पाएंगी? भीतर डालते ही साली चिल्लाना शुरू कर देंगी। उनकी हाय तौबा सुनकर ही आधी मस्ती तो हवा हो जाएगी। वहीं माँ जैसी प्यासी औरतें तड़प-तड़प कर बोल-बोलकर चुदवाती हैं, जैसे तुम मस्त होकर गाण्ड मरवाते हो। मुन्ना अपनी माँ बहुत तगड़ा माल है, हम दोनों भाइयों की तरह लंबे बदन की और मस्ती लेने की पूरी शौकीन है। मैं माँ जैसी मस्त औरत की झांटों से। भरी चूत का तो रसिया हूँ ही, पर तेरी गाण्ड का स्वाद मिलने के बाद फूली-फूली गुदाज गाण्ड का भी शौकीन बन गया हूँ। तूने अपनी माँ की गाण्ड देखी, साली क्या अपनी मस्त गाण्ड को मटकाती हुई घर में इधर से उधर फुदकती रहती है। बता ऐसी मस्त गाण्ड को देखकर मेरे जैसे लौंडेबाज का लौड़ा खड़ा नहीं होगा? क्या मेरी इच्छा नहीं होगी की इसे यहीं पटक हूँ और इसकी गाण्ड उघाड़ी करके इस पर सांड़ की तरह चढ़ जाऊँ..”


मैं अजय के सामने माँ के बारे में बहुत ही कामुक बातें करके उसके मन में भी माँ के प्रति काम जगाना चाहता था। मेरी गोद में बैठकर और ऐसी खुली बातें सुनकर अजय का लण्ड भी पूरा तन गया था। मैंने अजय का शार्टस अंडरवेर सहित उसकी टाँगों से निकाल दिया। अजय का प्यारा लण्ड पूरा तनकर खड़ा था। गुलाबी सुपाड़ा पूरा चमड़ी से बाहर आकर चमक रहा था। जितना प्यार मुझे अजय की गाण्ड से था उतना ही प्यार मुझे उसके लण्ड से भी था। मैंने उसके लण्ड को अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया और हल्के-हल्के दबाने लगा।


विजय- “देख माँ के बारे में ऐसी बातें सुनकर ही तेरा कैसे खड़ा हो गया है? अरे अपनी माँ राधा रानी चीज ही ऐसी है की हर कोई उसे चोदना चाहे, उसकी गाण्ड मारना चाहे। भाई मैं तो जैसे तेरा दीवाना हूँ वैसे ही अपनी माँ का भी पूरा दीवाना हूँ। तू बता यदि तेरे को माँ की चूत चोदने को मिल जाय तो तू क्या उसे चोद देगा? माँ जैसी मस्त औरत की चूत और गाण्ड बड़े भाग्यशाली को ही मस्ती करने के लिए मिलती है। हम दोनों तो बड़े खुशनशीब हैं की कम से कम वो हरदम हमारी नजरों के सामने तो है। देखना मैं जल्द ही कोई ऐसा रास्ता निकाल लँगा की हम दोनों भाई एक साथ उसकी मस्त जवानी का मजा लूटेंगे।

मैं उसकी चूत में पेलूंगा तो तुम उसकी गाण्ड मारना, उसके मुँह में अपना पूरा लण्ड डालकर उसे खूब चुसवाना। एक बार माँ तैयार हो जाएगी तो हम दोनों भाइयों को खूब मस्ती करवाएगी। मुन्ना तुझसे एक बात मैं अपने दिल की कहता हूँ की अपनी माँ खूब कड़क माल है। तूने देखा माँ के सेक्सी अंग क्या मस्त हैं? गुलाब की पंखुड़ी से रसभरे होंठ की उन्हें चूसने से जी ना भरे, फूले-फूले चिकने गाल की मुँह में लेकर उन्हें चुभलाते रहो, क्या बड़ी-बड़ी गोल-गोल और बिल्कुल शेप में चूचियां की दबाते-दबाते हाथ ना थकें, पतली कमर, चौड़ी-चौड़ी चिकनी जांघे और माँ की मस्त गाण्ड देखी पीछे कितनी उभरी हुई है और बिल्कुल तरबूज जैसे दो चूतड़। और एक बात तुझे और बताता हूँ, जब । उसकी बाकी चीजें इतनी मस्त है तो उसकी दोनों टाँगों के बीच छुपा हुआ खजाना कितना मस्त होगा?

दूसरी ओर पापा दुबले पतले से सूखे हुए थे और बीमार ही रहते थे, और माँ के सामने तो बिल्ली के सामने चूहे जैसे दिखते थे। मैं सोचता रहता हूँ की माँ जैसी कड़क और मस्त औरत को वो संतुष्ट भी कर पाते थे या बीच में ही पहुँचाकर खुद कुल्ला कर पीछे हट जाते थे। अब माँ को जो मजा पापा नहीं दे सके वही मजा माँ को हम दो भाई मिलकर दें तो कैसा रहेगा?


मुन्ना- “भैया आप बहुत गंदे तो हो ही, साथ ही पूरे बदमाश और बेशर्म भी हो। भला कोई अपनी माँ को इस नजरिए से देखता है? आपने तो मुझे अपनी जोरू बना ही लिया। जैसे लोग अपनी लुगाई के साथ करते हैं वैसे ही आप अपनी इस बिना व्याही जोरू के साथ करते हो। क्या मेरी गाण्ड से आपका मन नहीं भरा जो माँ को चोदना चाहते हैं और उसकी गाण्ड मारना चाहते हैं..."
 
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