Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई - Page 3 - SexBaba
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Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई

अजय- “आप माँ को बार-बार बीच में लाते हैं। आप माँ के सामने भी कह रहे थे की मेरे दोस्त माँ को भी । सक्करकंदा खिलाते थे या नहीं? उन दोनों की क्या मजाल की मेरी माँ की तरफ आँख उठाकर भी देख लेते? सालों के काट के हाथ में पकड़ा देता। भैया आपकी भी हद हो गई। माँ को कह दिया की उसके लिए केलों की कमी नहीं रखेंगे। भला माँ क्या सोचेगी? अच्छा बताइए, क्या आप अपने नीचे वाला केला माँ को भी खिला देंगे?"


विजय- “अरे तू नहीं जानता, माँ जैसी जवान, शौकीन और मस्त औरत की पीड़ा। पिताजी ने पिछले 15 साल से बिस्तर पकड़ रखा था। वो अपने खुद के काम खुद नहीं कर सकते थे। तो माँ को चोदना तो दूर उसे वो शायद हाथ भी ना लगाते हों। और अपनी माँ जैसी स्वाभिमानी और मान मर्यादा का खयाल रखने वाली औरत से यह उम्मीद थोड़े ही की जा सकती है की उसने गाँव में यार पाल रखे हों। कहने का मतलब पिछले 15 साल से । उसकी चूत अनचुदी है, वो चुदासी है, उसे लण्ड की जरूरत है। भाई माँ की मस्त गदराई चूत और फूली गाण्ड की सेवा के लिए मेरा लौड़ा तो हमेशा तैयार है। अरे बाबा ना ना। मैंने भी किसके सामने यह बात कह दी। तू कहीं मेरा भी काट के मेरे हाथ में ना पकड़ा दे..” ।


अजय- “मेरे हाथों आप वाले की काटने की बात। भैया सुनकर ही मेरे शरीर में तो झुरझुरी सी दौड़ गई। आप वाले गुड्डे को तो मैं अपनी तिजोरी में बंद करके ताला लगा दूंगा...”


विजय- “अब पैंट भी खोलो ना, अपनी तिजोरी के मुँह का तो दर्शन करवा। माँ को चोदने की बात करके लण्ड मूसल सा खड़ा हो गया है। अपनी मस्त माँ को चोदने की बात करके यह हाल है तो उसको पूरी नंगी करके चोदते समय क्या होगा?”


अजय खड़ा हो गया और उसने अपनी पैंट और शर्ट उतार दी। अब वो ब्रीफ और बनियान में था। कहा- “भैया कल आपने मेरा चूस के जो मजा दिया था, उस मजा को तो मैं बता नहीं सकता। वैसा मजा मुझे कल से पहले जिंदगी में कभी नहीं मिला। लण्ड चुसवाने में इतना मजा है मुझे पता ही नहीं था। मैं तो सातवें आसमान की सैर कर रहा था। भैया आज मैं भी आपका चूसूंगा और आपको भी वो मजा दूंगा जो मजा कल आपने मुझे दिया था...”


मैंने ब्रीफ के ऊपर से अजय की उभरी गाण्ड अपनी मुट्ठी में कस ली और जोर-जोर से दबाने लगा- “तो तू मेरा लण्ड चूसेगा? कल तो तू बार-बार मुझे मना कर रहा था। तुझे पेशाब करने वाली चीज से घिन नहीं आएगी?”


अजय- “भैया, अब तो आप मेरे मुँह में धार भी मार देंगे तो घिन नहीं आएगी। भैया जितना प्यार मुझे आपसे है। उतना ही प्यार आपके लण्ड से है। मैं आपका गुलाम हूँ, आपके लण्ड का सेवक हूँ, आपकी हर बात मानना ही मेरा सबसे बड़ा धर्म है...”
 
विजय- “अरे मुन्ना आज तो तू बड़ी सयानी-सयानी बातें कर रहा है। एक ही दिन में तू बड़ा हो गया रे। जैसे कुँवारी लड़की एक बार चुदवाते ही पूरी सयानी हो जाती है वैसे ही भैया से एक बार गाण्ड मरवाते ही तू तो पूरा सयाना हो गया। इसका मतलब उन दोनों चूतियों ने तेरी ऊपर-ऊपर से मारी थी। वास्तव में तो तेरी गाण्ड कुँवारी ही थी, इसकी सील तो कल मैंने ही तोड़ी है। तो तू भैया का चूसेगा? तू भी क्या याद रखेगा? कल जितने प्यार से तेरी मारी थी आज उतने ही प्यार से तुझे चुसवाऊँगा..” यह कहकर मैंने अपना नाइट पायजामा, ब्रीफ और गंजी सारे कपड़े उतार दिए। मैंने दोनों टाँगें सोफे के हैंडल पर रख ली और सामने शीशे में बँटे सा सिर उठाए मेरे लण्ड का प्रतिबिंब मुझे गौरवान्वित कर रहा था।


अजय ब्रीफ और बनियान में खड़ा मेरे लण्ड को निहार रहा था। तभी मैं उठा और अजय के पीछे खड़ा हो गया। मेरा बिल्कुल सीधा खड़ा लण्ड उसकी गाण्ड की दरार में धंस रहा था। मैंने अजय की बनियान खोल दी और ठुड्डी से पकड़कर उसका चेहरा ऊपर उठा लिया और उसके चेहरे पर झुक गया। मुन्ना के मंद-मंद मुश्कुराते होंठों को अपने होंठों में कस लिया और अत्यंत कामतुर होकर उसके होंठ चूसने लगा। प्यारे भाई का लंबा सा चुंबन लेने के बाद मैं अजय के आगे घुटनों के बल बैठ गया और उसका ब्रीफ भी खोल दिया। अजय का लण्ड बिल्कुल खड़ा था। कुछ देर मैं उसकी गोटियों को दबाता रहा और उनसे खेलता रहा। दो-तीन बार लण्ड को भी मुट्ठी में कसा। अब मैं वापस खड़ा हो गया और एक पाँव ड्रेसिंग टेबल पर रख दिया।


विजय- “ले मुन्ना, देख इसे और खूब प्यार कर। खूब प्यार से पूरा मुँह में लेकर चूसना। ऐसा मस्त लण्ड चूसेगा
तो पूरा मस्त हो जाएगा। जितना मजा चुसवाने वाले को आता है उतना ही मजा चूसने वाले को भी आता है। आजकल की फारवर्ड और मस्त तबीयत की औरतें तो चुदवाने से पहले मर्दो का पूरा मुँह में लेकर जी भर के चूसती है और जब पूरी मस्त हो जाती हैं, तब गाण्ड उछाल-उछाल के चुदवाती हैं."


मेरी बात सुनकर अजय ड्रेसिंग टेबल पर मेरे खड़े लण्ड के सामने बैठ गया, मेरा मस्ताना लण्ड उसके चेहरे पर लहरा रहा था। मैंने अपना लण्ड एक हाथ में ले लिया और अजय के चेहरे पर लण्ड को फिराने लगा। ड्रेसिंग टेबल के आदमकद आईने में दोनों भाई यह मनोरम दृश्य देख रहे थे की बड़ा भैया अपने कमसिन छोटे भाई को अपना मस्ताना लण्ड कैसे दिखा रहा है।


विजय- “क्यों मुन्ना मुँह में पानी आ रहा है क्या? ले चूस इसे देख भैया तुझे कितने प्यार से अपना लौड़ा चूसा रहे हैं?”


मेरी बात सुनकर अजय ने मेरे लण्ड का सुपाड़ा अपने मुँह में ले लिया। वो काफी देर मेरे सुपाड़े पर अपनी जीभ फिराता रहा।

तभी मैं और आगे सरक गया और अजय के सिर के पीछे अपने दोनों हाथ रखकर उसके सिर को मेरे लण्ड पर दबाता चला गया। मुन्ना जैसे-जैसे अपना मुँह खोलता गया वैसे ही मेरा लण्ड उसके मुँह में समाने लगा। मेरा लण्ड शायद उसके हलक तक उतर गया था। उसके मुँह में थोड़ी भी जगह शेष नहीं बची थी। लण्ड उसके मुँह में ठस गया और चूसने के लिए उसके मुँह में और जगह नहीं बची थी।
 
विजय- “तेरा तो पूरा मुँह मेरे इस लण्ड से भर गया। चल पलंग पर चल। वहाँ तुझे लिटाकर तेरा मुँह ठीक से पेलूंगा..” मेरी बात सुनकर अजय ने लण्ड मुँह से निकाल दिया और बेड पर चिट लेट गया। मैंने उसके मुँह के दोनों ओर अपने घुटने रखकर आसन जमा लिया और उसके खुले मुँह में लण्ड पेलने लगा।


अब मैं लण्ड बाहर-भीतर कर रहा था जिससे की लण्ड उसके थूक से तर होकर चिकना हो रहा था। जैसे-जैसे लण्ड थूक से तर होने लगा वो आसानी से मुँह के अंदर समाने लगा और लण्ड को बाहर-भीतर करके मुन्ना के मुँह को चोदने में भी सहूलियत होने लगी। इस आसन में मैं काफी देर अजय के मुँह को चोदता रहा।


फिर इसी आसान में मैं अचानक पलट गया जिससे की मेरी गाण्ड अजय के चेहरे के सामने हो गई और मेरा मुँह ठीक अजय के खड़े लण्ड के सामने आ गया। मैंने पूरा मुँह खोलकर गप्प से अजय के लण्ड को अपने मुँह में भर लिया। मैं पूरी मस्ती में था। मैं बहुत तेजी से अपना मुँह ऊपर-नीचे करते हुए अजय के लण्ड को चूसने लगा। मेरी इस हरकत से अजय भी पूरी मस्ती में आ गया और पूरे मनोयोग से मेरे लण्ड को चूसने लगा। हम दोनों पूरे जवान सगे भाई वासना में भरे एक दूसरे के तगड़े लण्ड चूसे जा रहे थे।


तभी मैं करवट के बल लेट गया और अजय की मस्तानी गाण्ड मुट्ठी में जकड़कर उसे भी करवट के बल कर। लिया। मैंने अजय का लण्ड जड़ तक अपने मुँह में लेकर उसे कस के अपने मुँह पर भींच लिया। मेरी देखा देखी अजय ने भी वैसा ही किया। हम 69 की पोजीशन का पूरा मजा ले रहे थे। एक दूसरे के लण्ड को अपने-अपने मुँहों में दबाए अपने जोड़ीदार को ज्यादा से ज्यादा मजा देने की कोशिश कर रहे थे। वासना के अतिरेक में मैंने अजय की गाण्ड में एक अंगुली पेल दी और उसे आपने मुँह पर जकड़ने लगा।


अजय भी उधर खूब तेजी से मेरे लण्ड को मुँह से बाहर-भीतर करता हुआ चूसे जा रहा था। उसने भी मेरे दोनों नितंब अपने हाथों में समा लिए थे और मेरे लण्ड को जड़ तक अपने मुँह में लेकर अपने नथुने मेरी झांटों से । भरे जंगल में गड़ा दिए। मेरी मर्दाना खुश्बू में मस्त होकर मेरा भाई मेरा लण्ड बड़े चाव से चूसे जा रहा था। अब मैं किसी भी समय छूट सकता था। मेरी साँसें तेज-तेज चलने लगी। मैंने अजय के लण्ड को अपने मुँह में कस लिया मानो की मैं उसके रस की एक-एक बूंद निचोड़ लेना चाहता हूँ। तभी मैंने अपनी दोनों टाँगों के बीच अजय के सिर को जकड़ लिया ताकी जब में झरझरा के झडू तब मेरा लण्ड किसी भी हालत में उसके मुँह से बाहर ना निकले।


तभी मेरे लण्ड से लावा बह निकला। मैं पूर्ण संतुष्ट होकर झड़ रहा था। रह-रहकर मेरे वीर्य की धार अजय के मुँह में गिर रही थी। अजय ने मेरे पूरे लण्ड को मुँह में ले रखा था और भाई के इस अनमोल मर्दाने रस को सीधे अपने हलक में उतार रहा था। तभी अजय ने भी गाढ़े वीर्य की पिचकारी मेरे मुँह में छोड़ दी। मैंने उसके लण्ड को मुँह में कस लिया और उसके वीर्य की एक-एक बूंद उसके लण्ड से निचोड़कर पीने लगा। उधर अजय भी मेरे वीर्य की एक भी बूंद व्यर्थ नहीं कर रहा था। हम दोनों भाई इसी मुद्रा में काफी देर पड़े रहे। अजय का लण्ड मेरे मुँह में शिथिल पड़ता जा रहा था साथ ही मेरा लण्ड भी मुरझाने लगा।


काफी देर बाद अजय उठा। उसने ब्रीफ और बनियान पहन ली और बेड पर निढाल होकर पड़ गया।मैं वैसे ही पड़ा रहा और उसी मुद्रा में मुझे नींद आ गई। सुबह जब नींद खुली तो अजय गाढ़ी नींद में था। मैं अपनी स्थिति देखकर और रात के घटनाक्रम को याद करके मुश्कुरा उठा और वैसे ही बाथरूम में घुस गया।


स्टोर पहुँचकर मैंने एक वकील से बात की और अजय को उसके साथ कोर्ट भेज दिया। उसने पावर आफ अटार्नी तैयार कर दी। यह तय हो गया की अजय आज रात ही 10:00 बजे ट्रेन से गाँव के लिए निकल जाएगा जो गाँव से 25 किलोमीटर दूर स्टेशन पर सुबह पहुँच जाती थी। रात घर पहुँचकर अजय को खेत के पट्टे और अन्य जरूरी कागजात सौंप दिए, सारी बातें समझा दी और उसे अपनी बाइक पर बिठाकर स्टेशन छोड़ दिया। स्टेशन से वापस घर पहुँचने के बाद माँ से कोई बात नहीं हुई और मैं अपने रूम में जाकर सो गया।
* *
 
दूसरे दिन सुबह जब नींद टूटी तो मैं अपनी माँ के बारे में सोचने लगा। मेरी माँ यानी की मेरी प्यारी राधा रानी 46 साल की हैं, पर किसी भी हालत में 40 साल से ज्यादा की नहीं लगती। माँ भी हम दोनों भाइयों की तरह ही कद्दावर कद की और सुगठित शरीर की है। माँ का शरीर मांसल और भरा हुआ है पर किसी भी हालत में मोटी नहीं कही जा सकती। एक सुंदर औरत के शरीर में जहाँ भराव होने चाहिए वहीं पर भराव हैं। गोल चेहरा और उसपर फूले-फूले गाल की गालों को चूसते-चूसते जी नहीं भरे, सदा मुश्कुराते रसीले होंठ जिनका रसपान करने को कोई भी आतुर हो जाय, छाती पर दो कसे हुए बड़े-बड़े गोल स्तन की उनका मर्दन करने हथेली में खुजली चल पड़े, फिर कुछ पतली कमर और कमर खतम होते ही भारी उभरे हुए नितंब और विशाल फैली हुई जांघे की बस उनका तकिया बनाकर सोते रहें और सोते रहें।


खेली खाई, बड़ी उमर की, भरे बदन की सलीके से रहनेवाली औरतें सदा से ही मेरी कमजोरी रही हैं। फिर मेरी माँ तो साक्षात रति देवी की अवतार थी और हर दिन नये-नये रूप में नई सज-धज के साथ मेरी आँखों के आगे रहती थी, तो उसकी ओर मेरा आकर्षित होना स्वाभाविक था। जैसे मुझे अजय के रूप में अनायास ही एक पटा पटाया मस्त, चिकना लौंडा मिल गया और दो ही दिन में वो मेरा दीवाना हो गया, मेरे हर हुकुम का गुलाम हो गया। क्या वैसे ही मेरे सपनों की रानी राधा भी मुझे मिल जाएगी?


मैं माँ के मामले में कोई भी जल्दबाजी नहीं करना चाहता था, ऐसी कोई भी हरकत नहीं करना चाहता था की उसका दिल दुख जाय। मैं धीरे-धीरे माँ को अपनी बना लेना चाहता था की उसके साथ खुलकर मैं अपनी हवस मिटाऊँ, अपने जैसी बेबाक बेशर्म बनाकर खुलकर उसके साथ व्यभिचार करूँ, बिल्कुल खुली बातें करते हुए उसके शरीर के खजाने को भोगू। ऐसी माँ पाने के लिए मैं कितना ही इंतजार कर सकता था। माँ के साथ यह सब करने में अजय अब मेरे लिए बड़ा नहीं था बल्कि मेरा सहयोगी साबित होने वाला था। अजय जैसे शौकीन लौंडे के साथ माँ को भोगने में तो और मजा आएगा। अजय गान्डू तो है, पर पूरा मर्द भी है, एक बार उसे माँ की जवानी चखा दूंगा तो वो मेरा और पक्का चेला बन जाएगा।


सुबह 10:00 बजे स्टोर जाते समय माँ ने रोज की तरह नाश्ता कराया। हम दोनों भाई दिन का भोजन स्टोर के कैंटीन में ही करते थे।


नाश्ता करते समय मैंने माँ से कहा- “माँ अभी कुछ ही दिनों पहले चंडीगढ़ में एक बहुत आलीशान मल्टीप्लेक्स खुला है। उसमें बड़ी मस्त पिक्चर लगी है। उसमें शहर की सबसे अच्छी रेस्टोरेंट भी खुली है। मैंने भी उसे अभी तक नहीं देखा। बोलो, तुम्हारी इच्छा हो तो शाम को पिक्चर देखेंगे और वहीं खाना खाएंगे...”


राधा- “बेटा मैं तो आज से 10-12 साल पहले पास वाले शहर में गाँव की कुछ लोगों के साथ 'जै संतोषी माँ देखने गई थी। मुझे तो पिक्चर देखकर बहुत मजा आया था। उसके बाद तो मुझे वहाँ गाँव से शहर पिक्चर दिखाने कौन ले जाता?”


विजय- “अरे माँ, अब पुरानी बातों को भूल जाओ। अब मैं हूँ ना। तुम्हें खूब पिक्चर दिखाऊँगा। मैं 5:00 बजे घर
आ जाऊँगा और आज बाहर का ही मजा लेंगे...”


माँ ने खुश होकर हामी भर दी।


शाम को मेरे स्टोर में कुछ काम आ गया तो मैंने माँ को मोबाइल पर कह दिया की वो तैयार होकर 6:00 बजे तक स्टोर में ही आ जाये, वहीं से सीधे सिनेमा हाल में चले जाएंगे। मैंने अड्वान्स में दो टिकेट बुक करवा रखी थी और शो ठीक 6:30 पर शुरू होने वाला था। माँ सज-धज के 6:00 बजे स्टोर में आ गई। माँ ने हल्के गुलाबी रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज़ पहन रखा था। हल्के मेकप में भी माँ का रूप निखरा हुआ था। हम फौरन । स्टोर से निकल गये और 15 मिनट में हम बाइक पर हाल में पहुँच गये। हाल बहुत ही शानदार बना था। हाल के इंटीरियर मन को मोहने वाले थे।
 
पिक्चर शुरू होने के कुछ देर पहले हम हाल में आ गये। कुछ ही देर में हाल की बत्तियां गुल हो गई और कुछ
आड्स के बाद पिक्चर शुरू हो गई। पिक्चर कुछ रोमांटिक और बहुत मस्त थी। हीरो हीरोइन की छेड़छाड़, मस्त गाने, द्विअर्थी संवाद, बेडरूम दृश्य इत्यादि सारा मशाला था। पिक्चर 9:00 बजे के करीब खतम हो गई। कुछ देर मल्टीप्लेक्स के शापिंग सेंटर्स देखे और फिर रेस्टोरेंट में आ गये। माँ की पसंद पूछकर खाने का आर्डर दिया, तबीयत से दोनों ने भोजन का आनंद लिया और 10:30 के करीब घर पहुँच गये। हमारी आज की शुरुआती शाम बहुत ही अच्छी गुजरी। माँ को सब कुछ बहुत अच्छा लगा।


घर पहुँचकर माँ बहुत खुश थी। सोफे पर बैठते हुए माँ बोली- “विजय बेटा, तुम मेरा कितना खयाल रखते हो।। तुम्हारे साथ पिक्चर देखकर, घूमकर, होटेल में खाना खाकर बहुत अच्छा लगा। यहाँ शहर में लोग अपने हिसाब से जिंदगी जीते हैं। मैं तो गाँव में लोगों का ही सोचती रहती थी की लोग क्या सोचेंगे? लोग क्या कहेंगे? और अपनी सारी जिंदगी यूँ ही गंवा दी...”


माँ की यह बात सुनते ही मैं बोल पड़ा- “माँ गंवा कहाँ दी, अभी तो शुरू हुई है...”


माँ पिक्चर की बात छेड़ती हुई बोली- “बताओ इन सिनेमाओं की हेरोइनों के रख-रखाव और अंदाज के सामने हम लोगों की क्या जिंदगी है?”


विजय- “माँ वो हेरोइन तुम्हारे सामने क्या हैं? वो तो पाउडर और क्रीम में पुती हुई रहती हैं। तुम्हारे सामने तो ऐसी हजारों हेरोइन पानी भरती हैं...”

राधा- “अच्छा तो ऐसा मेरे में क्या देखा है?"


विजय- “तुमको क्या पता है की तुम्हारे में क्या है? कहाँ तुम्हारा सब कुछ नेचुरल और उनका सब कुछ बनावटी और दिखावटी...”


राधा- “तुम आजकल बातें बड़ी प्यारी-प्यारी करते हो और आजकल मेरा लाड़ला बहुत शरारती हो गया है। यह सब ऐसी पिक्चर देखने का असर है..." माँ ने मेरी ओर देखकर हँसके कहा।


विजय- “माँ तुम्हारी ऐसी मुश्कुराहट पर तो मैं सब कुछ कुर्बान कर दें...” हम कुछ देर इसी तरह बातें करते रहे।

और फिर माँ उठ खड़ी हुई और अपने रूम की ओर चल दी। मैं भी अपने रूम में आ गया और बेड पर पड़ा-पड़ा काफी देर माँ के बारे में ही सोचता रहा और ना जाने कब नींद आ गई।


इसके दूसरे दिन रात के खाने के बाद मैं और माँ टीवी के सामने बैठे थे।


विजय- “माँ, तुम्हें कल अच्छा लगा ना?”


राधा- “हाँ विजय बेटा, अच्छा क्यों नहीं लगेगा? जब तुम्हारी उमर के बेटे अपने दोस्तों के साथ पिक्चर जाते हैं, बाहर खाते हैं तब तुम्हें अपनी इस अधेड़ माँ की याद रहती है, माँ के सुख दुख की फिकार रहती है...”
 
विजय- "माँ, तुम अपने आपको अधेड़ क्यों कहती हो? अभी तो तुम पूरी जवान हो। कल तुम्हें बताया तो था की तुम्हारे सामने तो पिक्चर की हेरोइनें भी फीकी हैं। फिर तुम्हारा खयाल नहीं रखूगा तो और किसका रखेंगा? मुझे पता है वहाँ गाँव में तो तूने अपनी आधी जिंदगी यूँ ही घुट-घुट के बिता दी, जब तुम्हारे मौज मस्ती करने के दिन थे, तभी पिताजी ने बिस्तर पकड़ लिया और फर्ज़ के आगे तुम मन मसोसकर रह गई। पर अब मैं यहाँ तुझे दुनियां का हर सुख दूंगा, तुम्हारे हर शौक पूरे करूंगा। चलो माँ तुम्हें एक जगह की आइसक्रीम खिलाकर लाता हूँ..”


राधा- “अब इतनी रात गये?”


विजय- “तो क्या? यहाँ तो इसी समय लोग बाग बाहर निकलते हैं। फिर आज मुन्ना भी नहीं है। मुन्ना रहता है।
तो गप्प सप्प करने में मजा आता है...”


मैं और माँ 15 मिनट में ही थोड़े तैयार होकर ऐसे एक मशहूर आइसक्रीम पार्लर पर पहुँच गये जहाँ अधिकतर नौजवान अपनी गर्लफ्रेंड के साथ आइसक्रीम का मजा लेने आते हैं। मैं दो आइसक्रीम कैंडी ले आया और एक माँ को दे दी। फिर हम दोनों एक दूसरे के देखते हुए मस्ती से कैंडी चूस मजा लेने लगे। माँ को मुँह गोल बनाकर कैंडी चूसते देखकर मेरी नीचे वाली कैंडी में हलचल होने लगी और मैं इसी सोच में माँ को लेकर वापस घर आ गया और अपने कमरे में जाकर बेड पर अकेला पड़ गया की एक दिन माँ मेरे वाला भी इसी कैंडी की तरह चूसेगी।


दूसरा दिन सनडे का था। सनई को मैं हमेशा देर से उठता हूँ। आज हालाँकि नींद तो रोज वाले समय पर खुल गई, फिर भी सनडे की वजह से बिस्तर पर पड़ा था। मेरी माँ हालाँकी आज तक गाँव में ही रही थी, पर वो आधुनिकता की, शहरी सभ्यता की शौकीन जरूर है। तभी तो उसे विधवा होते हुए भी बन-ठन के रहने में, शृंगार करने में, रोमांटिक पिक्चर देखने में, रोमांटिक जगहों का सैर सपाटा करने में संकोच नहीं हो रहा था। इन सब । में उसे आनंद आ रहा था। यही तो मैं चाहता था की उसे आनंद मिले। मुझे पक्का भरोसा है की मेरे द्वारा यदि उसे आनंद मिलता जाएगा तो एक दिन उसके द्वारा भी मुझे आनंद मिलेगा। पर मैं खुलकर माँ पर यह बिल्कुल प्रगट नहीं कर रहा था की वास्तव में मेरे मन में क्या है?


आज तैयार होकर नाश्ता-कम-लंच करते-करते 11:00 बज गये। नाश्ता खतम करके मैंने माँ को बता दिया की अभी तो मुझे किसी सप्लायर के यहाँ सैंपल देखने जाना है, पर मैं 5-6 बजे तक वापस आ जाऊँगा तब शाम का प्रोग्राम बनाएंगे। जिस सप्लायर के पास मुझे जाना था उसके पास ओवरसाइज ब्रा, पैंटी और नाइटी का नया स्टाक आया हुआ था। मैं 6:30 बजे के करीब वापस घर आ गया। माँ सोफे पर बैठी कोई सीरियल देख रही थी। मेरे हाथ में सैंपल गारमेंट्स का एक बड़ा सा पैकेट था जो मुझे उस सप्लायर ने दिया था।


राधा- “जरा देखें तो आज मेरा लाल मेरे लिए क्या नया लेकर आया है?” यह कहकर माँ ने मेरे हाथ से पैकेट ले लिया और उसे खोलने लगी।


उसमें से दो ऐसी पैंटी निकली जो मुश्किल से चूत भर को ढक सके और उन दो में से एक ट्रॅन्स्परेंट भी थी। दो। ही बिना बाँह की तंग और टाइट ब्रा थी। एक झीनी नाइटी थी और एक खुली लेडीस नाइटगाउन था। सारे माँ की साइज के थे क्योंकी इस लाइन में काम करने से मुझे एग्ज़ेक्ट पता था की माँ को किस साइज के फिट बैठेगे। माँ उलट पलट के देखती रही।
 
राधा- “जरा देखें तो आज मेरा लाल मेरे लिए क्या नया लेकर आया है?” यह कहकर माँ ने मेरे हाथ से पैकेट ले लिया और उसे खोलने लगी।


उसमें से दो ऐसी पैंटी निकली जो मुश्किल से चूत भर को ढक सके और उन दो में से एक ट्रॅन्स्परेंट भी थी। दो। ही बिना बाँह की तंग और टाइट ब्रा थी। एक झीनी नाइटी थी और एक खुली लेडीस नाइटगाउन था। सारे माँ की साइज के थे क्योंकी इस लाइन में काम करने से मुझे एग्ज़ेक्ट पता था की माँ को किस साइज के फिट बैठेगे। माँ उलट पलट के देखती रही।


राधा- “तो आज तू अपनी माँ के लिए ये सब लाया है?”


विजय- “अरे माँ ये तो सैंपल है, जो मुझे उस सप्लायर ने दिए हैं। यदि तुझे पसंद है तो सारे तुम रख लो..”


राधा- “तो क्या शहर की औरतें ऐसे कपड़े पहनती हैं, की कुछ भी ढका ना रहे। मुझे तो इनको देखकर ही शर्म
आ रही है...”


विजय- “माँ ये सब हल्के और बहुत अच्छी क्वालिटी के हैं। इन्हें नीचे पहन के बहुत आराम लगता है और पता ही नहीं चलता की कुछ पहन रखा है। तुमसे बड़ी-बड़ी उमर की औरतें इन्हें लेने के लिए हमारे स्टोर में भीड़। लगाए रखती हैं। फिर तुम किसी से कम थोड़े ही हो। रख लो इन्हें, ऐसे कपड़े पहनने से सोच भी माडर्न होती है...”


माँ- “हाँ... तुम ठीक कह रहे हो। आजकल तो ऐसी ही चीजों का चलन है और माडर्न लोगों का ही बोलबाला है। पिक्चरों में, होटेलों में, पार्लरों में कहीं भी देखो लोग खुलकर मौज मस्ती करते हैं, ना किसी की शंका शर्म, ना। किसी से लेना देना...”


विजय- “हाँ माँ, शहरी और पढ़े-लिखे लोगों की सोच यह है की जब मौज मस्ती करने की उमर है, साधन है और
शौक है तो खुलकर मौज मस्ती करो। एक बार उमर और तबीयत चली गई तो फिर बस किसी तरह जिंदगी गुजारनी रह जाती है। इसीलिए तो तुम्हारा इतना ध्यान रखता हूँ। जो सुख तुझे गाँव में नहीं मिला वो सुख यहाँ तो खुलकर भोगो। यहाँ ना तो गाँव का वातावरण है और ना कोई यह देखने वाला की तुम क्या करती हो और कैसे रहती हो? तुम्हें खाली जिंदगी गुजारनी थोड़े ही है, तुम्हें तो इस हसीन जिंदगी का पूरा मजा लेना है। तुम्हें यहाँ किस बात की कमी है? गाँव की जायदाद से कम से कम 40 लाख मिल जाएंगे और दो-दो जवान बेटे । कमाने वाले हैं। चलो माँ अच्छे से तैयार हो जाओ, आज तुझे ऐसी जगह दिखाता हूँ की तुझे भी पता चले की लोग जिंदगी का मजा कैसे लेते हैं?”


मेरी बात सुनकर माँ अपने कमरे में चली गई। मैंने अपनी ओर से दाना डाल दिया था। अब देखना था की चिड़िया कब जाल में फंसती है? मुझे बिल्कुल जल्दी नहीं थी। मैं माँ में तड़प पैदा कर देना चाहता था और चाह रहा था की पहल माँ की तरफ से हो। थोड़ी देर में मैं भी उठकर अपने कमरे में चला गया। मैंने शावर लिया, टाइट जीन्स और स्पोटिंग पहनी और टीवी के सामने बैठा माँ का इंतजार करने लगा।


थोड़ी देर में माँ भी तैयार होकर निकली। आज उसने बड़ी दिलकश साड़ी बिना बाँह के ब्लाउज़ के साथ पहनी हुई थी और उसकी मांसल दूधिया नंगी बाहें बड़ी मस्त लग रही थीं। हल्की लिपस्टिक और चेहरे पर हल्का मेकप कर रखा था। वाह... माँ को इस रूप में देखकर मजा आ गया।
 
मेरे जैसे 6'2” के गबरू गठीले शरीर वाले जवान के साथ यह बीवी के रूप में या पटाए हुए माल के रूप में बिल्कुल चल सकती थी।


हमें घर से निकलते-निकलते 8:00 बज गये। आज मैं माँ को ले शहर से थोड़ा बाहर ऐसे पार्क की सैर कराने ले चला जहाँ काफी तादाद में मनचले अपने जोड़ीदार के साथ मौज मस्ती के लिए आते थे। सनडे की वजह से पार्क में और दिनों की अपेक्षा काफी भीड़ थी। अभी 8:30 ही हुए थे सो काफी तादाद में परिवार वाले भी अपने बच्चों के साथ थे। मौज मस्ती वाले जोड़े कम थे। वे 9:00 बजे आने शुरू होते हैं, जब परिवार वाले वापस जाने लग जाते हैं। पार्क बहुत बड़े एरिया में फैला हुआ था, कई फव्वारे फुल स्पीड में चल रहे थे, तरह-तरह की आकृति में कटिंग किए हुए झाड़ जगह-जगह थे, पार्क के चारों और करीब 6' चौड़ी पगडंडी थी जिस पर टहलने वाले पार्क का चक्कर काट रहे थे, बच्चों के लिए एक स्थान पर कई तरह के झूले और स्लाइडिंग्स भी बने हुए थे। इसी स्थान के चारों ओर चाट, पाव-भाजी, कोल्ड ड्रिंक, आइसक्रीम, गोल-गप्पे, खुशबूदार पानन के कई स्टाल थे जिन पर सनई की वजह से काफी भीड़ थी।


माँ- “विजय बेटा, आज तो तुम मुझे स्वर्ग में ले आए हो। बहुत ही अच्छी जगह है...”


मैं माँ को लेकर लाइटिंग और म्यूजिक वाले फव्वारे के पास आ गया। संगीत की धुन और लाइटिंग की चकाचौंध में फव्वारा मानो डान्स कर रहा हो। फव्वारे के चारों और युवतियां, माँ के उमर की औरतें और बूढ़ियां भी बहुत ही माडर्न, शरीर के उभारों को उजागर करते परिधानों में सजी धजी हँस रही थीं, इस दिलकश वातावरण का पूरा मजा ले रही थी, अपने पुरुष साथियों के साथ हाथ में हाथ डाले घुल मिलकर बातें कर रही थी। चारों ओर । लिपस्टिक पुते होंठ, फेशियल सा सजा चेहरा, बाब-कट तथा खुले केश, जीन्स में कसे नितंब, अधकटी चोलियों से झाँकते स्तनों की बहार थी। हम काफी देर उस फव्वारे का आनंद लेते रहे।


विजय- “चलो माँ पहले कुछ खा पी लेते हैं फिर तुम्हें पूरा पार्क दिखाऊँगा...” मैंने माँ से कहा। मैं कुछ समय व्यतीत करना चाहता था ताकी पार्क में घूमते समाय माँ को मनचले जोड़ों की भी मस्ती देखे। जो सेक्स की भूख पिछले 15 साल से उसमें दबी पड़ी थी वो ऐसे मस्त वातावरण में उजागर हो जाय।

मैं माँ को लेकर खाने पीने के स्टालों में आ गया। हमने आलू टिकिया, दही चाट, गोलगप्पे इत्यादि का मिलकर आनंद उठाया। फिर हमने कोल्ड-ड्रिक की दो बोतलें ली और एक झाड़ के पास बैठकर मजे से पी।


विजय- “माँ तुम यहीं बैठो, मैं आइसक्रीम यहीं ले आता हूँ। कैसी लाऊँ? कैंडी या कोन?”


राधा- “मेरे लिए तो कल जैसी चूसने वाली ही लाना...”


मैं माँ के लिए एक कैंडी और मेरे लिए एक कोन लेकर आ गया। माँ कैंडी को मुँह में लेकर चूसने लगी और मैं कोन में जीभ डालकर आइसक्रीम खाने लगा।


विजय- "माँ तुझे आइसक्रीम चूस के खाने में मजा आता है पर मुझे तो इस लंबी कोन में जीभ डालकर चाट के खाने में मजा आता है.”


माँ खिलखिलकर हँस पड़ी।


विजय- “माँ यह पार्क बहुत बड़ा है। क्या पार्क का पूरा चक्कर काट के देखोगी?”


राधा- “हाँ, देखो लोग कैसे चक्कर काट रहे हैं। मैं तो अभी भी ऐसे पार्क के 3 चक्कर काट लँ..."


माँ की बात सुनकर मैं उठ खड़ा हुआ और माँ की तरफ हाथ बढ़ा दिया, जिसे पकड़कर वो भी खड़ी हो गई। पहले हम माँ बेटों ने एक-एक खुशबूदार पान खाया और फिर हम भी पगडंडी पर आ गये। 9:30 बज गये थे। पगडंडी पर नौजवान जोई, अधेड़ जोई सब थे जो साथ की महिला के हाथ में हाथ डाले, उसके कंधे पर हाथ रखे, उसकी कमर में हाथ डाले या उसे अपने बदन से बिल्कुल सटाए दीन दुनियां से बिल्कुल बेखबर होकर चल रहे। थे। हम माँ बेटे भी, जो दुनियां की नजर में जो भी हों, उससे बेखबर चुपचाप चल रहे थे।
 
चलते-चलते हम पार्क के उस भाग में आ पहुँचे जहाँ अपेक्षाकृत कुछ अंधेरा था और काफी तादाद में घने झाड़ थे। हर झाड़ के साए में एक जोड़ा बैठा हुआ था, पगडंडी से विपरीत दिशा में मुँह किए एक दूसरे को बाँहों में । समेटे गड्डमड्ड हो रहे थे, पुरुष महिलाओं की जांघों पर लेटे हुए थे, कुछेक पुरुष तो महिलाओं के चेहरे पर झुके हुए किस कर रहे थे। चारों तरफ बहुत ही रंगीन और वासनात्मक नजारा था। माँ कनखियों से जोड़ों की हरकतें देख रही थी और मेरे साथ चुपचाप चल रही थी।


ऐसे वातावरण में मेरी हालत खराब होना लाजिमी थी खासकर जब मेरी जवान मस्त माँ मेरे साथ थी, जिसे मैं अपना बनाना चाह रहा था। पर मैंने अपने आप पर पूरा काबू कर रखा था और अपनी ओर से कोई जल्दबाजी या पहल करना नहीं चाहता था।

मैं माँ की सेक्स की भूख को पूरा जगा देना चाहता था और उसमें तड़प पैदा करना चाह रहा था। एक चक्कर काट के ही हम पार्क से बाहर आ गये। 10:30 पर हम घर पहुँच गये और मैं अपने रूम में बाथरूम में घुस गया। बाथरूम से फ्रेश होकर निकला तो देखा की माँ का रूम बंद था और मैं भी माँ के साथ फैंटेसी में काम क्रीड़ा करते-करते सो गया।

दूसरे दिन मंडे की वजह से मुझे स्टोर से वापस आने में ही रात के 9:00 बज गये। खाना खतम करके टीवी के सामने बैठते-बैठते 10:00 बज गये। मैं थोड़ी देर न्यूज चैनेल्स देखता रहा। फिर मैंने माँ से बात छेड़ी- “क्यों माँ, यहाँ चंडीगढ़ की शहरी जिंदगी पसंद आ रही है ना? बोल गाँव से अच्छी है या नहीं?”


राधा- “मुझे एक बात यहाँ की बहुत अच्छी लगी की लोग एक दूसरे से मतलब नहीं रखते की कौन क्या पहन रहा है, कैसे रह रहा है? वहाँ गाँव में तो कोई अच्छा पहन ले तो लोग बात बनाने लग जाते हैं...”


विजय- "माँ, अब यहाँ तुम कैसे एंजाय करती हो, यह कोई देखने वाला नहीं या तुम्हारे बारे में सोचने वाला नहीं। मैं तुम्हें हर वो सुख दूंगा जो आज तक तुझे गाँव में पति की इतनी सेवा करके भी नहीं मिला। अब से मेरा । केवल एक ही उद्देश्य है की तुझे दुनियां का हर वह सुख हूँ जो तुम जैसी सुंदर और जवान नारी को मिलना चाहिये...” मैं धीरे-धीरे पासा फेंक रहा था।
राधा- “जब उमर थी तो ये सब मिले नहीं...”


विजय- “माँ तुम्हें देखकर कोई भी तुम्हें 35 साल से ज्यादा की नहीं बताएगा। फिर मन की तो तुम इतनी जवान हो की कुंवारी लड़कियों को भी मात देती हो। पिछले 15 साल से बीमार पिताजी की सेवा करते-करते तुम्हारी सोच कुछ ऐसी हो गई है। लेकिन अब तुम यहाँ आ गई हो और अपने वे सारे शौक और दबी हुई इच्छाएं पूरी करो। यहाँ मेरी जान पहचान का एक बहुत ही अच्छा ब्यूटी पार्लर है। कल स्टोर जाते समय मैं तुझे वहाँ छोड़ दूंगा। तुम वहाँ फेशियल, आइब्रो, बालों की सेटिंग सब ठीक से करवा लेना...”


राधा- “मैं जानती हूँ की तुम मुझे बहुत खुश देखना चाहते हो, और मैं यहाँ सचमुच में बहुत खुश हूँ। पर ये सब करके मुझे किसे दिखाना है?”
 
विजय- “अरे माँ, ये किसी को दिखाने की बात नहीं है बल्कि खुद की संतुष्टि होती है। देखना तुम्हें खुद पर नाज होगा। फिर मैं मुन्ना को सप्टइज देना चाहता हूँ। वो जब गाँव से वापस आएगा तो तुम्हें देखता ही रह जाएगा और सोचेगा की हमारे घर में यह स्वर्ग की अप्सरा कहाँ से आ गई?'


राधा- “मेरे ऐसे शहरी रूप को तो मेरा शहरी नटखट बड़ा बेटा ही देखना चाहता है। अजय तो भोला-भाला और सीधा साधा है उसे तो सीधी साधी ही माँ चाहिए.”


विजय- “माँ, मुन्ना अब पहले वाला मुन्ना नहीं रहा। कुछ ही दिनों में यहाँ रहकर पूरा चालू हो गया है। स्टोर में भी उसने अपना काम इतनी अच्छी तरह से संभाल लिया है की सब उसकी प्रशंसा करते हैं..."


राधा- “तुम्हारे साथ रहकर तो अजय चालू नहीं बनेगा तो और क्या बनेगा? कुछ ही दिनों में उसे भी अपने जैसा बना लेगा..."


विजय- “माँ, अजय भी तुम्हारी तरह पूरा शौकीन है। वो तो छुपा रुस्तम निकला पर मुझे पता चल गया और एक बार मेरे से खुल गया तो बहुत जल्दी पूरा खुल गया। मेरा भाई वैसे ही मक्खन सा चिकना है, अब देखो कैसे स्मार्ट बनकर रहता है और टाइट स्मार्ट कपड़ों में कैसा मस्त लगता है? तुम तो वैसे ही इतनी स्मार्ट हो और थोड़ा सा भी रख रखाव रखोगी तो पूरी निखर जाओगी...”

माँ- “पर एक विधवा का ज्यादा बन-ठन के रहना। भला आस-पास के लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे और क्या सोचेंगे?”


विजय- “माँ ये सब गाँव की बातें हैं। यहाँ शहर में इन बातों की कोई परवाह नहीं करता। मुझे ऐसे लोगों की
कोई परवाह नहीं। जिस भी चीज से या काम से तुझे खुशी दे सकें, उसे करने में ना तो मुझे कोई संकोच है और ना ही किसी की परवाह। यह विधवा वाली सोच मन से बिल्कुल निकाल दो। कौन कहता है की तुम विधवा हो? तुम तो मन से एकदम सधवा हो। अब तुम बिल्कुल एक सुहागन की तरह बन-ठन के रहा करो...”


माँ- “तो अब तुम मुझे विधवा से वापस सुहागन बनाएगा."


हम माँ बेटे इस प्रकार काफीदेर बातें करते रहे। फिर रोज की तरह माँ अपने कमरे में सोने के लिए चली गई। मैं बिस्तर पर काफी देर पड़े-पड़े सोचता रहा की माँ मेरी कोई भी बात का थोड़ा सा भी विरोध नहीं करती है। पर मैं माँ को पूरी तरह खोल लेना चाहता था की माँ की मस्त जवानी का खुलकर मजा लिया जाय।
 
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