hotaks444
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मैं मुँह बनाए वापिस कमरे में लौटा...तो पिता जी ने कहा आ गये बेटे मैने कहा हां पिता जी...मैने और कुछ नही जवाब दिया हम फिर नॉर्मल हो गये क्यूंकी पिता की मज़ूद्गी में हमे नॉर्मली ही बिहेव करना होता था.... रात हो गयी थी मैं अपने कमरे में खाना वाना ख़ाके फारिग होके लेटा हुआ था उफ्फ कल तक मेरी माँ यहाँ सोती आई अब यहाँ मेरी बीवी सोएगी यही सब सोच रहा था और चादर पे हाथ फेर रहा था.....माँ की कमी मुझे खल रही थी...बेटा अभी यह हाल है तो आगे क्या होगा? इस बीच दरवाजा चर चरर करके खुला तो पाया कि माँ आई थी उन्होने अपनी पसीनेदार नाइटी को झाड़ते हुए कहा कि अफ बहुत गर्मी है
मैने कहा हां पिता जी आ गये इसलिए काम में घुसी पड़ी हो वो ना होते तो अभी ही तुम्हें बिस्तर पे पटक देता...
.माँ ने कमरे का दरवाजा लगाया और मुझे कहा अच्छा बच्चू तेरी इतनी हिम्मत तू तो बहुत ज़्यादा मुझपे चढ़ने लगा है कैसे चिड रहा है? अभी से यह हाल तो जब शादी होगी तो....
."तो क्या? निशा को साइड करूँगा और तुझे पकडूंगा ....
पकडूंगा अर्थ से माँ समझ गयी कि मैं चुदाई की बात कर रहा था..माँ ने मेरी तरफ हैरत से देखा और कहा हाए अल्लाह इसकी दीवानगी का क्या करूँ जो मेरे प्रति है? .....
मैने सिर्फ़ उसे आँख मारी तो उसने मुझे आँख दिखाई और मुस्कुरा कर झट से अटॅच बाथरूम में घुस गई...
वहाँ से जब वो लौटी तो उसने आल्मिराह से अपनी मेरी दिलाई हुई जिसे रात को अक्सर जो पहनके मेरा साथ सोया करती थी वो नाइटी डाली हुई थी उसके दोनो फिते आज़ु बाज़ू थे उसके...वो काफ़ी पतली चादर जैसी नाइटी थी तो मैने सॉफ पाया माँ ने ब्रा और पैंटी दोनो में से कुछ नही पहना हुआ था...
माँ मेरे साथ . लेट गयी...तो मैं उसके थोड़ा करीब आया तो उसने हाथ मेरी कमर पे रखा...फिर फुसफुसाया ना जाने क्यूँ? मुझे ये सब अभी करना ठीक नही लग रहा तेरे पिता की मज़ूद्गी में
आदम : माँ ऐसी बात है तो फिर चलो मेरे साथ
माँ : कहाँ?
आदम : घर से कहीं दूर और यहाँ तो कुछ कर नही पाएँगे ना
माँ : पागल हो गया है तू मुझे इतनी रात गये कहाँ ले जाएगा? पागल है तेरे पिता क्या कहेंगे?
आदम : देखो पिता का तुम मस्का मुझे मत लगाओ कि उसकी मज़ूद्गी में तुझे ये सब करना ठीक नही लग रहा या डर लग रहा है मेरा मूड बन रहा है बहुत ज़्यादा और मैं जब ज़िद्दी होता हूँ तो किसी की नही सुनता या जाके कह दूं उनको कि आप ददिहाल जाओ
माँ : पागल हो गया है पिता है तेरे और तेरे मोहताज है वो अब ऐसा कुछ ना करना पहले पते की बात सुन पिता तेरे यही एक दुकान ले रहे है दिल्ली से ही सोचके आए थे कुछ जमापूंजी अपनी लगाएँगे वो खाली बैठना नही चाह रहे
आदम : हां पिताजी तो वैसे ऐसे बैठते ही नही खैर अभी (मैने धीरे धीरे माँ की नाइटी के उपर ही उनकी छातियो के उभार पे हाथ रखा और उन्हें मज़बूती से मसला तो माँ हल्की सी चिल्लाई)
माँ : उफ्फ छोड़ ना बेटा अभी ठीक नही है करना आवाज़ें अगर सुन ली तो ग़ज़ब हो जाएगा
मैं थोड़ा सा चिड गया था तो मैने कहा कि ठीक है तुम्हें तो बहाना मिल गया जाओ बात नही करता तुमसे....एक तो पूरे दिन काम का प्रेशर और उपर से तन्हाई काटना कितना मुस्किल हो रहा था कि माँ समझ नही रही थी...उसे क्या मालूम कि मेरी कितनी तलब उठ रही थी चुदाई करने को...बस हालातों को देख रही थी यहाँ मेरी हालत जानने को परे थी
मैं अपने फ्लॅट से बाहर आया उपर सीढ़ियाँ जाती थी मैं धीरे धीरे उपर गया तो राजीव दा के फ्लोर से गुज़ारा शायड सो रहे होंगे दरवाजा लगाया हुआ था बत्तिया भुजी हुई थी...मैं सीडिया वैसे ही अंधेरो में चढ़ता हुआ मोबाइल की टॉर्च जलाए छत पे पहुचा....वहाँ काफ़ी हो हो करके हवाए चल रही थी छत ऐनी टाइम टंकी चेक करने के लिए खुला रहता था....
मैने कहा हां पिता जी आ गये इसलिए काम में घुसी पड़ी हो वो ना होते तो अभी ही तुम्हें बिस्तर पे पटक देता...
.माँ ने कमरे का दरवाजा लगाया और मुझे कहा अच्छा बच्चू तेरी इतनी हिम्मत तू तो बहुत ज़्यादा मुझपे चढ़ने लगा है कैसे चिड रहा है? अभी से यह हाल तो जब शादी होगी तो....
."तो क्या? निशा को साइड करूँगा और तुझे पकडूंगा ....
पकडूंगा अर्थ से माँ समझ गयी कि मैं चुदाई की बात कर रहा था..माँ ने मेरी तरफ हैरत से देखा और कहा हाए अल्लाह इसकी दीवानगी का क्या करूँ जो मेरे प्रति है? .....
मैने सिर्फ़ उसे आँख मारी तो उसने मुझे आँख दिखाई और मुस्कुरा कर झट से अटॅच बाथरूम में घुस गई...
वहाँ से जब वो लौटी तो उसने आल्मिराह से अपनी मेरी दिलाई हुई जिसे रात को अक्सर जो पहनके मेरा साथ सोया करती थी वो नाइटी डाली हुई थी उसके दोनो फिते आज़ु बाज़ू थे उसके...वो काफ़ी पतली चादर जैसी नाइटी थी तो मैने सॉफ पाया माँ ने ब्रा और पैंटी दोनो में से कुछ नही पहना हुआ था...
माँ मेरे साथ . लेट गयी...तो मैं उसके थोड़ा करीब आया तो उसने हाथ मेरी कमर पे रखा...फिर फुसफुसाया ना जाने क्यूँ? मुझे ये सब अभी करना ठीक नही लग रहा तेरे पिता की मज़ूद्गी में
आदम : माँ ऐसी बात है तो फिर चलो मेरे साथ
माँ : कहाँ?
आदम : घर से कहीं दूर और यहाँ तो कुछ कर नही पाएँगे ना
माँ : पागल हो गया है तू मुझे इतनी रात गये कहाँ ले जाएगा? पागल है तेरे पिता क्या कहेंगे?
आदम : देखो पिता का तुम मस्का मुझे मत लगाओ कि उसकी मज़ूद्गी में तुझे ये सब करना ठीक नही लग रहा या डर लग रहा है मेरा मूड बन रहा है बहुत ज़्यादा और मैं जब ज़िद्दी होता हूँ तो किसी की नही सुनता या जाके कह दूं उनको कि आप ददिहाल जाओ
माँ : पागल हो गया है पिता है तेरे और तेरे मोहताज है वो अब ऐसा कुछ ना करना पहले पते की बात सुन पिता तेरे यही एक दुकान ले रहे है दिल्ली से ही सोचके आए थे कुछ जमापूंजी अपनी लगाएँगे वो खाली बैठना नही चाह रहे
आदम : हां पिताजी तो वैसे ऐसे बैठते ही नही खैर अभी (मैने धीरे धीरे माँ की नाइटी के उपर ही उनकी छातियो के उभार पे हाथ रखा और उन्हें मज़बूती से मसला तो माँ हल्की सी चिल्लाई)
माँ : उफ्फ छोड़ ना बेटा अभी ठीक नही है करना आवाज़ें अगर सुन ली तो ग़ज़ब हो जाएगा
मैं थोड़ा सा चिड गया था तो मैने कहा कि ठीक है तुम्हें तो बहाना मिल गया जाओ बात नही करता तुमसे....एक तो पूरे दिन काम का प्रेशर और उपर से तन्हाई काटना कितना मुस्किल हो रहा था कि माँ समझ नही रही थी...उसे क्या मालूम कि मेरी कितनी तलब उठ रही थी चुदाई करने को...बस हालातों को देख रही थी यहाँ मेरी हालत जानने को परे थी
मैं अपने फ्लॅट से बाहर आया उपर सीढ़ियाँ जाती थी मैं धीरे धीरे उपर गया तो राजीव दा के फ्लोर से गुज़ारा शायड सो रहे होंगे दरवाजा लगाया हुआ था बत्तिया भुजी हुई थी...मैं सीडिया वैसे ही अंधेरो में चढ़ता हुआ मोबाइल की टॉर्च जलाए छत पे पहुचा....वहाँ काफ़ी हो हो करके हवाए चल रही थी छत ऐनी टाइम टंकी चेक करने के लिए खुला रहता था....