hotaks444
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लालटेन की रोशनी फीकी पड़ती जा रही थी और इधर अर्जुन तबीयत से अपनी माँ की चुदाई लगातार करता जा रहा था....उसके बाद जैसे उसका शरीर आकड़ा सा हो
अर्जुन : आहह उम्म्म सस्स आहह म्म्माम ओह्ह्ह माँ ससस्स (धक्के तेज़ करते हुए जैसे वो चुचियो को चूसने लगा और उपर नीचे जल्दी जल्दी होने लगा अरुणा के जिस्म से रगड़ते हुए)
अरुणा को अहसास हुआ तो उसने लंड को अपने भीतर सख्ती से कस्स लिया तो अर्जुन दहाड़ उठा और वो अकड़ता हुआ जैसे अपनी माँ पे ढेर हो गया उसकी छातियो पे अपना सर रखके हाफने लगा....अरुणा उसके पसीने पसीने बदन पे हाथ फेरते हुए उसे कस कर अपने से
लिपटाये हुई थी....उसे अपने भीतर प्रथम बार बेटे के गरम वीर्य का अहसास हुआ
उसने चूत से तब तक लंड ना बाहर खींचा जब तक चूत की गहराईयो में उसका बीज पूरा ना चला गया...फिर उसने चूत की सख्ती से ही बेटे के लंड को निचोड़ते हुए उसे बाहर अपनी गुप्तांगो से खीचा....पुकच्छ की आवाज़ आई और उसी पल बेटे को अपने से दूर धकेलते हुए अरुणा हाफने लगी....उसे अहसास हुआ कि उसकी चूत से बेटे का रस लबालब निकल रहा है....उस रात अरुणा सोई नही उसने अपने गुप्तांगो को
सॉफ किया फिर पेशाब किए उठी और सारी रात बस बैठी बैठी बेटे की तरफ घूरते हुए उसे पंखा करती रही....वो ऐसी कशमकश में घिरी
हुई थी की उसे मालूम ही ना चला ये सब अचानक कैसे हो गया? उसके मन ने चाहा बेटे कि ये सिर्फ़ वासना है पर वो जानती थी अगर वो
वासना भी थी तो उसे वो स्वीकार है क्यूंकी उसका बेटा दिलो जान से चाहता था
________________
ये तो जैसे सिर्फ़ हर रात की ही नही..हर दिन की बात हो....धीरे धीरे प्यार की हसरत अर्जुन की इतनी हद तक बढ़ गयी थी कि उसने माँ के साथ खेतों में भी अपनी शहवत पूरी की....उस रात के बाद से दोनो अर्जुन और अरुणा का प्यार जैसे और भी गहरा होता चला गया.....दोनो
के बीच किसी भी किसम की दूरिया ना रही....रात भर थका हारा जब खेतों से गाओं जब अर्जुन लौटता तो माँ उसे रात्रि भोजन देती उसके बाद मुँह हाथ धोके जब वो बिस्तर पे आता....
तो दरवाजे को लगाते हुए नंगी खड़ी अरुणा को देखता....हर रात दोनो की कुछ इस कदर ही कंटति थी....अब तो जैसे अर्जुन ने कसम खा ली थी कि वो माँ के बिना कभी किसी की तरफ आख उठाके भी ना देखेगा वो अपनी माँ अरुणा को महेज़ अपनी माँ नही बल्कि अपनी बीवी समझने लगा था उसी की तरह उस पर हक़ जताता रहता था....दोनो माँ-बेटे सबसे दूर ऐसे ही अपनी ज़िंदगी काट रहे थे....लेकिन जैसे इस व्यभाचरी रिश्ते को नज़र लगने वाली थी....
मुखिया रामसिंघ की बेटी तपोती अर्जुन को केयी बार खेतों में और गाओं में गुज़रते देखी थी...और उसे दिल ही दिल चाह बैठी थी वो उसके कसरती बदन और धोती के भीतर के उस औज़ार को जैसे हमेशा देखने के लिए तरसती थी..वो कच्ची उमर से भर जवान हो रही थी लेकिन
ज़िद्द उसकी वैसी की वैसी थी...जिसे पाना चाहे उसके पा के ही दम ले....
मुखिया रामसिंघ को उसके कयि रिश्ते आने लगे थे...लेकिन वो हर रिश्ता ठुकरा देती पिता नाराज़ ज़रूर होता लेकिन कुछ कर नही पाता....क्यूंकी बेटी की ज़िद्द के आगे जैसे वो उसका गुलाम था..रोज़ मटका भरने बहाने से नहेर जाती थी और वहीं से सीधा अपने पिता जी के
खेत की ओर जाते वक़्त ठहराती और अर्जुन को घूर्रती....पायल की छान्न छानन्न आवाज़ को अर्जुन हमेशा सुनता तो रास्ते से गुज़रती खुद की
तरफ मुस्कुराती तपोती को घूर्रता पाता..लेकिन उसने कभी पहेल ना की...उसे उसमें रत्तिभर का जैसा दिलचस्पी ना था..
अर्जुन : आहह उम्म्म सस्स आहह म्म्माम ओह्ह्ह माँ ससस्स (धक्के तेज़ करते हुए जैसे वो चुचियो को चूसने लगा और उपर नीचे जल्दी जल्दी होने लगा अरुणा के जिस्म से रगड़ते हुए)
अरुणा को अहसास हुआ तो उसने लंड को अपने भीतर सख्ती से कस्स लिया तो अर्जुन दहाड़ उठा और वो अकड़ता हुआ जैसे अपनी माँ पे ढेर हो गया उसकी छातियो पे अपना सर रखके हाफने लगा....अरुणा उसके पसीने पसीने बदन पे हाथ फेरते हुए उसे कस कर अपने से
लिपटाये हुई थी....उसे अपने भीतर प्रथम बार बेटे के गरम वीर्य का अहसास हुआ
उसने चूत से तब तक लंड ना बाहर खींचा जब तक चूत की गहराईयो में उसका बीज पूरा ना चला गया...फिर उसने चूत की सख्ती से ही बेटे के लंड को निचोड़ते हुए उसे बाहर अपनी गुप्तांगो से खीचा....पुकच्छ की आवाज़ आई और उसी पल बेटे को अपने से दूर धकेलते हुए अरुणा हाफने लगी....उसे अहसास हुआ कि उसकी चूत से बेटे का रस लबालब निकल रहा है....उस रात अरुणा सोई नही उसने अपने गुप्तांगो को
सॉफ किया फिर पेशाब किए उठी और सारी रात बस बैठी बैठी बेटे की तरफ घूरते हुए उसे पंखा करती रही....वो ऐसी कशमकश में घिरी
हुई थी की उसे मालूम ही ना चला ये सब अचानक कैसे हो गया? उसके मन ने चाहा बेटे कि ये सिर्फ़ वासना है पर वो जानती थी अगर वो
वासना भी थी तो उसे वो स्वीकार है क्यूंकी उसका बेटा दिलो जान से चाहता था
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ये तो जैसे सिर्फ़ हर रात की ही नही..हर दिन की बात हो....धीरे धीरे प्यार की हसरत अर्जुन की इतनी हद तक बढ़ गयी थी कि उसने माँ के साथ खेतों में भी अपनी शहवत पूरी की....उस रात के बाद से दोनो अर्जुन और अरुणा का प्यार जैसे और भी गहरा होता चला गया.....दोनो
के बीच किसी भी किसम की दूरिया ना रही....रात भर थका हारा जब खेतों से गाओं जब अर्जुन लौटता तो माँ उसे रात्रि भोजन देती उसके बाद मुँह हाथ धोके जब वो बिस्तर पे आता....
तो दरवाजे को लगाते हुए नंगी खड़ी अरुणा को देखता....हर रात दोनो की कुछ इस कदर ही कंटति थी....अब तो जैसे अर्जुन ने कसम खा ली थी कि वो माँ के बिना कभी किसी की तरफ आख उठाके भी ना देखेगा वो अपनी माँ अरुणा को महेज़ अपनी माँ नही बल्कि अपनी बीवी समझने लगा था उसी की तरह उस पर हक़ जताता रहता था....दोनो माँ-बेटे सबसे दूर ऐसे ही अपनी ज़िंदगी काट रहे थे....लेकिन जैसे इस व्यभाचरी रिश्ते को नज़र लगने वाली थी....
मुखिया रामसिंघ की बेटी तपोती अर्जुन को केयी बार खेतों में और गाओं में गुज़रते देखी थी...और उसे दिल ही दिल चाह बैठी थी वो उसके कसरती बदन और धोती के भीतर के उस औज़ार को जैसे हमेशा देखने के लिए तरसती थी..वो कच्ची उमर से भर जवान हो रही थी लेकिन
ज़िद्द उसकी वैसी की वैसी थी...जिसे पाना चाहे उसके पा के ही दम ले....
मुखिया रामसिंघ को उसके कयि रिश्ते आने लगे थे...लेकिन वो हर रिश्ता ठुकरा देती पिता नाराज़ ज़रूर होता लेकिन कुछ कर नही पाता....क्यूंकी बेटी की ज़िद्द के आगे जैसे वो उसका गुलाम था..रोज़ मटका भरने बहाने से नहेर जाती थी और वहीं से सीधा अपने पिता जी के
खेत की ओर जाते वक़्त ठहराती और अर्जुन को घूर्रती....पायल की छान्न छानन्न आवाज़ को अर्जुन हमेशा सुनता तो रास्ते से गुज़रती खुद की
तरफ मुस्कुराती तपोती को घूर्रता पाता..लेकिन उसने कभी पहेल ना की...उसे उसमें रत्तिभर का जैसा दिलचस्पी ना था..