hotaks444
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समीर की माँ उसका पट्टी करने लगी....उसे बहुत चोटें आई थी चेहरे पे जिसे कॉटन से वो पोछने लगी...मैने देखा कि समीर की माँ अपने बेटे के ज़ज़्बातो को देख सूबक रही थी वो कुछ नही बोली...चुपचाप थी एकदम बस मुझे कह रही थी कि समझाओ अगरइसे कुछ हो जाता तो उसका क्या होता?...मैं भी समीर को समझाने लगा....समीर ने अपनी माँ के हाथो को थामा और उसे सहलाया वो मेरे सामने ही बोल उठा "कि कोई भी तुझे देखता है मुझे अच्छा नही लगता मैं उसका खून कर दूँगा माँ तू आज के बाद किसी को घर में नही बुलाएगी तू नही जानती कि मेरे दिल पे क्या गुज़रती है बोल माँ मुझे कभी धोका नही देगी तू कुछ भी ऐसा नही करेगी जिससे मैं मर जाउ"........माँ एकदम रोने लगी उसे चुप करते हुए अपने पेट से सटा लिया....उसके बालों पे हाथ फैरने लगी....मैं चुपचाप उठके जाने लगा....समीर की माँ ने मुझे रोका कि बेटा रुक जाओ
पर मैं मुस्कुराया मैने जाने की इजाज़त माँगी मैं जानता था कि शायद दोनो के बीच इस हालत में ठहरना ठीक नही...ना जाने क्यूँ मन को ऐसा नही लग रहा था? सोचा शायद माँ-बेटे का ये अज़ब रिश्ता है जो इतना ममता और स्नेह से घुला हुआ है....समीर को माँ कमरे में ले गयी बोली चल तेरी पट्टी कर दूं और उसी बीच मैं घर से निकल गया....जब आधे रास्ता आया तो पाया कि समीर को तो ज़रूरी बात कहना भूल गया कि कल से तो कॉलेज अनिश्चित काल की वजह से 1 हफ़्ता बंद रहेगा...मैं वापसी होते हुए यही बात कहने उसके दरवाजे पे दस्तक देता तो पाया जैसा मैं दरवाजे को खोल गया था वो वैसे ही खुला था शायद उसकी माँ ने ध्यान नही दिया था
मैं अंदर आया तो पाया लिविंग रूम में कोई नही था....मैने हल्के से समीर का नाम पुकारा पर किसी ने जवाब नही दिया....अचानक देखता हूँ कि चूल्हे पे जो दूध छोड़ा आंटी ने वो उबल के गिर पड़ा है मैने झट से गॅस ऑफ किया...और वापिस अंदर आया...उसके बाद अचानक मैने कमरे में किसी की आहट सुनी
शायद समीर और माँ अंदर हो..बस यही सोचते हुए मैं आगे बढ़ गया...मुझे नही आइडिया था कि समीर जो अब तक कहता आया था वो सच भी हो सकता है कि उसकी माँ उसके इतने करीब आ गयी है....पर जब मैं दरवाजे के पास आया तो एक पल को ठहरके कुछ सोचने लगा ना जाने कब मेरा दिल धक धक करने लगा था...और मैं एकदम चोर की तरह दरवाजे को खोलने के लिए कुण्डी पे हाथ टटोलते हुए आहिस्ते से प्रयास करने लगा....उसी बीच दरवाजा हल्की सी कुण्डी नीचे करने में ही खुल गया....मुझे अहेसास हुआ कि क्यूँ समीर को मेरी आवाज़ सुनाई नही दी थी? क्यूंकी अंदर कमरे मे एक तरफ फर्श पे फर्स्ट एड का बॉक्स वैसे ही खुला पड़ा था और दूसरी ओर बिस्तर पे !
अंजुम : बिस्तर पे क्या?
माँ वैसे ही मेरी टाँगों पे टाँगें चढ़ाए मेरे खुले उपरी बदन के बालों भरे सीने पे हाथ फेर रही थी और मेरे चेहरे के नज़दीक लाई अपने चेहरे को बड़े चाव से मेरे दोस्त समीर और उसकी माँ के व्यभाचार के रिश्तो के बारे में सुन रही थी....ऐसा लग रहा था जैसे वो इस कहानी को ना सिर्फ़ जानने के लिए बेताब थी बल्कि उसे मज़ा भी आ रहा था...वो एकटक अपने बेटे के चेहरे की ओर देख रही थी...
अंजुम : बिस्तर पे आख़िर तूने क्या देखा? बता ना
आदम चुप्पी साधे माँ की तरफ सोच की उलझनों में देखते हुए हिचकिचा रहा था....उसके मन में आया कि माँ को तो समझ जाना चाहिए था कि आख़िर आगे क्या उसने देखा था? फिर भी वो जानने को उत्सुक थी..उसने ये नही कहा कि बस बस बेटे आगे कुछ ना कहना....लेकिन माँ की नज़रों में उसे शर्माहट और लज़्जत दोनो दिख रहे थे...आदम ने गला खन्कार्ते हुए आगे कहानी बतानी शुरू की
आदम : जब मैं दरवाजे की कुण्डी को खोलने के प्रयास में सक्षम हुआ तो दरवाजा हल्के से खुल गया...गनीमत थी कि दरवाजे के खुलने पे कोई आवाज़ नही हुई....मैने अंदर जैसे झाँका तो पाया कि फर्स्ट एड बॉक्स वैसी की वैसी एक जगह पड़ी थी और दूसरी ओर बिस्तर पे (आदम ने माँ की तरफ देखते हुए अपनी शरम हया सबकुछ एक साइड करते हुए बेहयाई से कहना तफ़सील से शुरू किया माँ की नज़रों में परिवर्तन होने लगा जैसे आदम ने कहना शुरू किया)
मैने देखा कि बिस्तर पे माँ-बेटे नही कोई और ही थे...थे दोनो ही बिस्तर पर पर उनके बीच ममता और माँ-बेटे जैसा पवित्र रिश्ता और वो प्यार मुझे कही नही दिख रहा था....वो एकदुसरे को हंसते हुए बाहों में भर रहे थे...समीर के बदन पे कोई कपड़ा नही था सिवाय उसने टाँगों के बीच एक वी शेप की फ्रेंची पहनी हुई थी...जिसमें से उसका लंड एकदम तंबू बना हुआ था...और उसकी माँ जिसे मैं हमेशा नमाज़ पढ़ते हुए बदन को हमेशा कपड़ा ढके या फिर कभी जंपर और पाजामा में देखा करता था....वो बस एक ब्रा और पैंटी पहनी हुई अपने बेटे के उपर चढ़े उसके सीने और गले को चूम रही थी
वो ऐसे बर्ताव कर रही थी जैसे समीर उसका अपना सगा बेटा नही..उसका बाय्फ्रेंड हो...मेरे रोंगटे खरे हो गये मैं खुद पे काबू नही कर पा रहा था...उसकी माँ वैसे ही बहुत मोटी चर्बिदार औरत थी....भारी भरकम नितंब थे और उनके स्तन भी काफ़ी मोटे मोटे और उभरे हुए थे...ब्रा पहनने के बावजूद दोनो स्तन जैसे बाहर निकलने को आ रहे थे...ऐसा लग रहा था कि 39 साइज़ का वो ब्रा भी उसे फिट नही हो पा रहा था...आंटी विधवा थी लेकिन ऐसा लगता जैसे वो हर दम सुहागन सा रहती थी.....
समीर : ओह्ह मम्मी आइ लव यू उम्म्म्मम
सोफीया : आइ लव यू टू बेटा
समीर ने माँ के होंठो को मज़बूती से अपने होंठो की गिरफ़्त में ले लिया उसकी पीठ पे हाथ फेरते हुए कमर की तोंद को मसल रहा था...माँ बेटे के मुँह में जीब डाले हुए थी...बेटा उसकी जीब चूसे जा रहा था.....दोनो की आहें सॉफ सुनाई दे रही थी मुझे....फिर दोनो एकदुसरे को पागलो की तरह किस करने लगे
इस बार समीर माँ के उपर चढ़ गया और माँ उसकी पीठ गले चेहरे गाल सब जगह को बारी बारी से पागलो की तरह चूमे जा रही थी..ऐसा लग रहा था जैसे बिछड़ा कोई उसका प्रेमी हो जिसे वो अपनी बाहों में समेटे ज़िंदगी भर तक रखना चाह रही थी जिसे खुद से अलग होते देखना नही चाह रही थी....ऐसी चाहत ऐसी मुहब्बत सिर्फ़ एक गैर मर्द और औरत के बीच होते मैने देखा था...पर मुझे ये नही मालूम था कि वो संबंध वो अटूट प्यार माँ-बेटे के बीच भी हो सकता है...
समीर फिर माँ के भरे गाल को पकड़े दोनो हाथो से उसके होंठो को चूसने लगा....उसने माँ के बालों को खोल दिया....माँ की ज़ूलफें बिखर गयी वो खुले बालों में ब्रा और पैंटी पहनी बहुत सेक्सी लग रही थी...उपर से उनका फिगर काफ़ी सेक्सी था नितंबो के बीच फसि पैंटी के उपर हाथ सहलाता हुआ समीर उनकी दोनो बगलो को उठाने को कहता है....
माँ दोनो बगलो को उठाती है जो पसीने पसीने होती है...उनमें अपनी जीब रखता हुआ समीर दोनो बगलो को अच्छे से जीब से चाट्ता है...बगलो में डार्क पॅचस होते है..जिनमें बेटा बड़े प्यार से अपनी जीब चला रहा था...फिर उसने बेटे के सीने पे हाथ रखते हुए उसे सीधा लिटाया और उसके दोनो निपल्स पे जीब से चाटने लगी...समीर ने उत्तेजना में माँ के बालों को इकट्ठा किया एक हाथ उसकी पीठ पे हाथ फेरता हुआ उसकी पैंटी के उपर से उसके नितंबो को भरपूर दबाता है....उसके हाथ में नितंभ आ नही रहे थे....
उसने दोनो हाथ नीचे ले जाके माँ की पैंटी को कस कर नीचे कर दिया...फिर दोनो नितंबो को थामे उसे भरपूर मसलना शुरू किया...वो बीच बीच माँ के नितंबो को भीच देता जिससे उसकी माँ की फांकों पे मेरी नज़र पड़ी...उफ्फ उनकी गान्ड का छेद सिकुदा हुआ था...और चूत पूरी गुलाबी रंग सी थी...दोनो माँ-बेटे की चुम्मा चाटी जब थमी
तो दोनो एकदुसरे से अलग हुए समीर ने फिर माँ की पीठ पे हाथ पीछे ले जाते हुए उसकी सफेद ब्रा का हुक खोल दिया...उसके बाद खुद ही माँ ने अपने दोनो बाजुओं से ब्रा के फिते को उतारते हुए उसे अपने जिस्म से अलग कर दिया...बेटा अपनी माँ के चुचियो को खा जाने वाली नज़रों से घूर्र रहा था...अब तक उन दोनो की मेरी दरवाजे पे मौजूदगी का कोई अहेसास नही हुआ....इतने में मैं देखता हूँ कि समीर ने उसकी माँ को सीधा लेटा दिया..सोफीया की चुचियाँ काफ़ी मोटी भरिपुरि थी उसके निपल्स एकदम मोटे ब्राउन थे जो एकदम कठोर से हो गये थे....
फिर समीर ने उन्हें अपनी हाथो में लेके भरपूर तरीके से दबाया...उन्हें खूब मसला...माँ आहें भरते हुए अपनी मोटी मोटी चुचियो को बेटे की हाथो में पाए आहें भर सी रही थी एक उंगली को जैसे होंठो के बीच लिए दाँतों से काट रही थी.."ओह्ह्ह बेटा उफ़फ्फ़ सस्स आहह उम्म्म".......
."उफ़फ्फ़ माँ यही तो मुझे तेरी सबसे ज़्यादा पसंद है"....
."इसी को तो तू पीके इतना बड़ा हुआ ये तो तेरा है जो माँ का होता है वो सब तो बेटे का ही है दबा और ज़ोर से दबा चुस्स इन्हें जिस अधूरे रास्ते पे तेरा बाप मुझे छोड़के गया था अब वहाँ से तुझे ही मुझे सहारा देना है अब तेरी माँ अब सम्पुर्न तेरी हो चुकी है".......माँ ने बेटे के अपनी चुचियो को चुसते हुए उसके बालों पे हाथ फेरते हुए कहा
समीर ने मुँह छातियो से हटाते हुए माँ की तरफ देखा "हां माँ अब सिर्फ़ तेरा ही हक़ है मुझपे...और मेरा हक़ तुझपे अब हमारे बीच कोई तीसरा नही आएगा....जिस राह पे पिताजी तुझे छोड़के गये अब उस राह से तेरा बेटा ही तेरा जीवन भर साथ देगा....ना तेरी कोई जगह किसी पराई लड़की को दूँगा...और ना तू मेरे बाद किसी और को देखेगी...अब पिता के बाद मैं ही तेरा मर्द हूँ अब सिर्फ़ मेरा ही तुझपे पूरा हक़ बनता है"..........समीर इतना कुछ कहते हुए हाथो में माँ की चुचियो को भरपूर मसलता हुआ माँ को उत्तेजित कर रहा था
उफ्फ माँ-बेटे की ऐसी दीवानगी मैने सिर्फ़ राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम की कहानियो में ही पढ़ी थी....जिनमें कोई असलियत नही होती है...लेकिन ये सब जो मेरी नज़रें देख रही थी वो झूठ तो नही हो सकती थी....समीर ने माँ के होंठो पे होंठ कस कर रख दिए और एक बार होंठ चुसते हुए फिर माँ के ब्राउन निपल को मुँह में लेके चूस लिया....फिर निपल पे ज़बान फेरता हुआ करीब एक चुचि अपने मुँह के भीतर चुसते हुए निपल खींच रहा था...जिससे माँ बुरी तरीके से तड़प रही थी....
इस बीच मेरी नज़र समीर के लंड पे गयी जो एकदम उत्तेजना में खड़ा हो चुका था और ऐसा लग रहा था जैसे उसने कोई साँप अपने टाँगों के बीच कच्छे में छुपा रखा हो...माँ ने उसे हल्का सा धकेला और उसके बैठते ही घुटनो के बल....माँ वैसी ही लेटी उसकी टाँगों के बीच करीब खिसकते हुए उसकी फ्रेंची को उतारने लगी...जैसे ही बेटे की फ्रेंची नीचे हुई उसका बारीक खाल से ढका 7-5 इंच का लंड माँ के चेहरे के ठीक उपर झूल रहा था...
पर मैं मुस्कुराया मैने जाने की इजाज़त माँगी मैं जानता था कि शायद दोनो के बीच इस हालत में ठहरना ठीक नही...ना जाने क्यूँ मन को ऐसा नही लग रहा था? सोचा शायद माँ-बेटे का ये अज़ब रिश्ता है जो इतना ममता और स्नेह से घुला हुआ है....समीर को माँ कमरे में ले गयी बोली चल तेरी पट्टी कर दूं और उसी बीच मैं घर से निकल गया....जब आधे रास्ता आया तो पाया कि समीर को तो ज़रूरी बात कहना भूल गया कि कल से तो कॉलेज अनिश्चित काल की वजह से 1 हफ़्ता बंद रहेगा...मैं वापसी होते हुए यही बात कहने उसके दरवाजे पे दस्तक देता तो पाया जैसा मैं दरवाजे को खोल गया था वो वैसे ही खुला था शायद उसकी माँ ने ध्यान नही दिया था
मैं अंदर आया तो पाया लिविंग रूम में कोई नही था....मैने हल्के से समीर का नाम पुकारा पर किसी ने जवाब नही दिया....अचानक देखता हूँ कि चूल्हे पे जो दूध छोड़ा आंटी ने वो उबल के गिर पड़ा है मैने झट से गॅस ऑफ किया...और वापिस अंदर आया...उसके बाद अचानक मैने कमरे में किसी की आहट सुनी
शायद समीर और माँ अंदर हो..बस यही सोचते हुए मैं आगे बढ़ गया...मुझे नही आइडिया था कि समीर जो अब तक कहता आया था वो सच भी हो सकता है कि उसकी माँ उसके इतने करीब आ गयी है....पर जब मैं दरवाजे के पास आया तो एक पल को ठहरके कुछ सोचने लगा ना जाने कब मेरा दिल धक धक करने लगा था...और मैं एकदम चोर की तरह दरवाजे को खोलने के लिए कुण्डी पे हाथ टटोलते हुए आहिस्ते से प्रयास करने लगा....उसी बीच दरवाजा हल्की सी कुण्डी नीचे करने में ही खुल गया....मुझे अहेसास हुआ कि क्यूँ समीर को मेरी आवाज़ सुनाई नही दी थी? क्यूंकी अंदर कमरे मे एक तरफ फर्श पे फर्स्ट एड का बॉक्स वैसे ही खुला पड़ा था और दूसरी ओर बिस्तर पे !
अंजुम : बिस्तर पे क्या?
माँ वैसे ही मेरी टाँगों पे टाँगें चढ़ाए मेरे खुले उपरी बदन के बालों भरे सीने पे हाथ फेर रही थी और मेरे चेहरे के नज़दीक लाई अपने चेहरे को बड़े चाव से मेरे दोस्त समीर और उसकी माँ के व्यभाचार के रिश्तो के बारे में सुन रही थी....ऐसा लग रहा था जैसे वो इस कहानी को ना सिर्फ़ जानने के लिए बेताब थी बल्कि उसे मज़ा भी आ रहा था...वो एकटक अपने बेटे के चेहरे की ओर देख रही थी...
अंजुम : बिस्तर पे आख़िर तूने क्या देखा? बता ना
आदम चुप्पी साधे माँ की तरफ सोच की उलझनों में देखते हुए हिचकिचा रहा था....उसके मन में आया कि माँ को तो समझ जाना चाहिए था कि आख़िर आगे क्या उसने देखा था? फिर भी वो जानने को उत्सुक थी..उसने ये नही कहा कि बस बस बेटे आगे कुछ ना कहना....लेकिन माँ की नज़रों में उसे शर्माहट और लज़्जत दोनो दिख रहे थे...आदम ने गला खन्कार्ते हुए आगे कहानी बतानी शुरू की
आदम : जब मैं दरवाजे की कुण्डी को खोलने के प्रयास में सक्षम हुआ तो दरवाजा हल्के से खुल गया...गनीमत थी कि दरवाजे के खुलने पे कोई आवाज़ नही हुई....मैने अंदर जैसे झाँका तो पाया कि फर्स्ट एड बॉक्स वैसी की वैसी एक जगह पड़ी थी और दूसरी ओर बिस्तर पे (आदम ने माँ की तरफ देखते हुए अपनी शरम हया सबकुछ एक साइड करते हुए बेहयाई से कहना तफ़सील से शुरू किया माँ की नज़रों में परिवर्तन होने लगा जैसे आदम ने कहना शुरू किया)
मैने देखा कि बिस्तर पे माँ-बेटे नही कोई और ही थे...थे दोनो ही बिस्तर पर पर उनके बीच ममता और माँ-बेटे जैसा पवित्र रिश्ता और वो प्यार मुझे कही नही दिख रहा था....वो एकदुसरे को हंसते हुए बाहों में भर रहे थे...समीर के बदन पे कोई कपड़ा नही था सिवाय उसने टाँगों के बीच एक वी शेप की फ्रेंची पहनी हुई थी...जिसमें से उसका लंड एकदम तंबू बना हुआ था...और उसकी माँ जिसे मैं हमेशा नमाज़ पढ़ते हुए बदन को हमेशा कपड़ा ढके या फिर कभी जंपर और पाजामा में देखा करता था....वो बस एक ब्रा और पैंटी पहनी हुई अपने बेटे के उपर चढ़े उसके सीने और गले को चूम रही थी
वो ऐसे बर्ताव कर रही थी जैसे समीर उसका अपना सगा बेटा नही..उसका बाय्फ्रेंड हो...मेरे रोंगटे खरे हो गये मैं खुद पे काबू नही कर पा रहा था...उसकी माँ वैसे ही बहुत मोटी चर्बिदार औरत थी....भारी भरकम नितंब थे और उनके स्तन भी काफ़ी मोटे मोटे और उभरे हुए थे...ब्रा पहनने के बावजूद दोनो स्तन जैसे बाहर निकलने को आ रहे थे...ऐसा लग रहा था कि 39 साइज़ का वो ब्रा भी उसे फिट नही हो पा रहा था...आंटी विधवा थी लेकिन ऐसा लगता जैसे वो हर दम सुहागन सा रहती थी.....
समीर : ओह्ह मम्मी आइ लव यू उम्म्म्मम
सोफीया : आइ लव यू टू बेटा
समीर ने माँ के होंठो को मज़बूती से अपने होंठो की गिरफ़्त में ले लिया उसकी पीठ पे हाथ फेरते हुए कमर की तोंद को मसल रहा था...माँ बेटे के मुँह में जीब डाले हुए थी...बेटा उसकी जीब चूसे जा रहा था.....दोनो की आहें सॉफ सुनाई दे रही थी मुझे....फिर दोनो एकदुसरे को पागलो की तरह किस करने लगे
इस बार समीर माँ के उपर चढ़ गया और माँ उसकी पीठ गले चेहरे गाल सब जगह को बारी बारी से पागलो की तरह चूमे जा रही थी..ऐसा लग रहा था जैसे बिछड़ा कोई उसका प्रेमी हो जिसे वो अपनी बाहों में समेटे ज़िंदगी भर तक रखना चाह रही थी जिसे खुद से अलग होते देखना नही चाह रही थी....ऐसी चाहत ऐसी मुहब्बत सिर्फ़ एक गैर मर्द और औरत के बीच होते मैने देखा था...पर मुझे ये नही मालूम था कि वो संबंध वो अटूट प्यार माँ-बेटे के बीच भी हो सकता है...
समीर फिर माँ के भरे गाल को पकड़े दोनो हाथो से उसके होंठो को चूसने लगा....उसने माँ के बालों को खोल दिया....माँ की ज़ूलफें बिखर गयी वो खुले बालों में ब्रा और पैंटी पहनी बहुत सेक्सी लग रही थी...उपर से उनका फिगर काफ़ी सेक्सी था नितंबो के बीच फसि पैंटी के उपर हाथ सहलाता हुआ समीर उनकी दोनो बगलो को उठाने को कहता है....
माँ दोनो बगलो को उठाती है जो पसीने पसीने होती है...उनमें अपनी जीब रखता हुआ समीर दोनो बगलो को अच्छे से जीब से चाट्ता है...बगलो में डार्क पॅचस होते है..जिनमें बेटा बड़े प्यार से अपनी जीब चला रहा था...फिर उसने बेटे के सीने पे हाथ रखते हुए उसे सीधा लिटाया और उसके दोनो निपल्स पे जीब से चाटने लगी...समीर ने उत्तेजना में माँ के बालों को इकट्ठा किया एक हाथ उसकी पीठ पे हाथ फेरता हुआ उसकी पैंटी के उपर से उसके नितंबो को भरपूर दबाता है....उसके हाथ में नितंभ आ नही रहे थे....
उसने दोनो हाथ नीचे ले जाके माँ की पैंटी को कस कर नीचे कर दिया...फिर दोनो नितंबो को थामे उसे भरपूर मसलना शुरू किया...वो बीच बीच माँ के नितंबो को भीच देता जिससे उसकी माँ की फांकों पे मेरी नज़र पड़ी...उफ्फ उनकी गान्ड का छेद सिकुदा हुआ था...और चूत पूरी गुलाबी रंग सी थी...दोनो माँ-बेटे की चुम्मा चाटी जब थमी
तो दोनो एकदुसरे से अलग हुए समीर ने फिर माँ की पीठ पे हाथ पीछे ले जाते हुए उसकी सफेद ब्रा का हुक खोल दिया...उसके बाद खुद ही माँ ने अपने दोनो बाजुओं से ब्रा के फिते को उतारते हुए उसे अपने जिस्म से अलग कर दिया...बेटा अपनी माँ के चुचियो को खा जाने वाली नज़रों से घूर्र रहा था...अब तक उन दोनो की मेरी दरवाजे पे मौजूदगी का कोई अहेसास नही हुआ....इतने में मैं देखता हूँ कि समीर ने उसकी माँ को सीधा लेटा दिया..सोफीया की चुचियाँ काफ़ी मोटी भरिपुरि थी उसके निपल्स एकदम मोटे ब्राउन थे जो एकदम कठोर से हो गये थे....
फिर समीर ने उन्हें अपनी हाथो में लेके भरपूर तरीके से दबाया...उन्हें खूब मसला...माँ आहें भरते हुए अपनी मोटी मोटी चुचियो को बेटे की हाथो में पाए आहें भर सी रही थी एक उंगली को जैसे होंठो के बीच लिए दाँतों से काट रही थी.."ओह्ह्ह बेटा उफ़फ्फ़ सस्स आहह उम्म्म".......
."उफ़फ्फ़ माँ यही तो मुझे तेरी सबसे ज़्यादा पसंद है"....
."इसी को तो तू पीके इतना बड़ा हुआ ये तो तेरा है जो माँ का होता है वो सब तो बेटे का ही है दबा और ज़ोर से दबा चुस्स इन्हें जिस अधूरे रास्ते पे तेरा बाप मुझे छोड़के गया था अब वहाँ से तुझे ही मुझे सहारा देना है अब तेरी माँ अब सम्पुर्न तेरी हो चुकी है".......माँ ने बेटे के अपनी चुचियो को चुसते हुए उसके बालों पे हाथ फेरते हुए कहा
समीर ने मुँह छातियो से हटाते हुए माँ की तरफ देखा "हां माँ अब सिर्फ़ तेरा ही हक़ है मुझपे...और मेरा हक़ तुझपे अब हमारे बीच कोई तीसरा नही आएगा....जिस राह पे पिताजी तुझे छोड़के गये अब उस राह से तेरा बेटा ही तेरा जीवन भर साथ देगा....ना तेरी कोई जगह किसी पराई लड़की को दूँगा...और ना तू मेरे बाद किसी और को देखेगी...अब पिता के बाद मैं ही तेरा मर्द हूँ अब सिर्फ़ मेरा ही तुझपे पूरा हक़ बनता है"..........समीर इतना कुछ कहते हुए हाथो में माँ की चुचियो को भरपूर मसलता हुआ माँ को उत्तेजित कर रहा था
उफ्फ माँ-बेटे की ऐसी दीवानगी मैने सिर्फ़ राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम की कहानियो में ही पढ़ी थी....जिनमें कोई असलियत नही होती है...लेकिन ये सब जो मेरी नज़रें देख रही थी वो झूठ तो नही हो सकती थी....समीर ने माँ के होंठो पे होंठ कस कर रख दिए और एक बार होंठ चुसते हुए फिर माँ के ब्राउन निपल को मुँह में लेके चूस लिया....फिर निपल पे ज़बान फेरता हुआ करीब एक चुचि अपने मुँह के भीतर चुसते हुए निपल खींच रहा था...जिससे माँ बुरी तरीके से तड़प रही थी....
इस बीच मेरी नज़र समीर के लंड पे गयी जो एकदम उत्तेजना में खड़ा हो चुका था और ऐसा लग रहा था जैसे उसने कोई साँप अपने टाँगों के बीच कच्छे में छुपा रखा हो...माँ ने उसे हल्का सा धकेला और उसके बैठते ही घुटनो के बल....माँ वैसी ही लेटी उसकी टाँगों के बीच करीब खिसकते हुए उसकी फ्रेंची को उतारने लगी...जैसे ही बेटे की फ्रेंची नीचे हुई उसका बारीक खाल से ढका 7-5 इंच का लंड माँ के चेहरे के ठीक उपर झूल रहा था...