desiaks
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राज अपने कमरे की बाल्कनी में बहुत गम्भीर मुद्रा बनाये बैठा पिछले तीन दिनों में घटित घटनाओं पर विचार कर रहा था जब कि एकाएक उसके कमरे के अधखुले दरवाजें पर दस्तक पड़ी और हाथ में एक कार्डलैस फोन थामे सतीश ने भीतर कदम रखा ।
“तुम्हारी काल है ।” - वो बोला - “बम्बई से । मेरी लाइन पर आ गयी थी । तुम्हें बुलाने की जगह मैं कार्डलैस यहां ले आया ।”
“शुक्रिया ।” - राज उठकर कमरे में कदम रखता कृतज्ञ भाव से बोला - “मेहमाननवाजी तो कोई आपसे सीखे ।”
सतीश मुस्कराया, उसने फोन राज के हाथ में थमा दिया और वहां से विदा हो गया ।
“हल्लो” - राज फोन में बोला - “राज माथुर स्पीकिंग ।”
“मिस्टर माथुर” - उसे अपने बॉस की सैक्रेट्री की आवाज सुनायी दी - “बड़े आनन्द साहब बात करेंगे । होल्ड रखियेगा ।”
“यस । होल्डिंग !”
कुछ क्षण बाद उसके कान में सुराख-सी करती नकुल बिहारी आनन्द की आवाज पड़ी - “माथुर ।”
“यस, सर ।”
“मैं तुम्हारी फरदर रिपोर्ट का इतजार कर रहा था ! फोन क्यों नहीं किया ?”
“सर, वो क्या है कि सुबह से लेकर अब तक यहां बहुत हंगामा हो गया है । इतनी गड़बड़ें हो गयी हैं, इतनी घटनायें इकट्ठी घटित हो गयी हैं कि...”
“माथुर, क्योंकि रात को ट्रंककाल के रेट आधे लगते हैं इसलिये ये न समझो कि तुम फोन पर मुझे कहानियां सुना सकते हो, लम्बी-लम्बी हांक सकते हो ।”
“मैं ऐसा कुछ नहीं समझ रहा, सर ।”
“तो मतलब की बात पर आओ । और जो कहना है संक्षेप में, थोड़े में कहो ।”
“सर, यहां बुरा हाल है ।”
“क्या !”
“यहां हालत काबू से बाहर निकले जा रहे हैं ।”
“फिर भूमिका बांधनी शुरु कर दी ! अरे पहले ये बताओ कि तुम पायल की लाश का पता लगा पाये या नहीं ?”
“नहीं लगा पाया, सर ।”
“क्यों ? क्यों नहीं लगा पाये ?”
“मरे उस्ताद ने मुझे लाशें तलाशने का हुनर नहीं सिखाया था ।”
“क्या ! क्या कहा तुमने ?”
“सर, मैं कह रहा था कि जो कम पुलिस जैसी संगठित फोर्स नहीं कर पा रही थी, उसे मैं अकेली जान भला कैसे कर पाता !”
“हूं । लगता है मुझे खुद वहां आना पड़ेगा ।”
“ये तो बहुत ही अच्छा होगा, सर । फिर तो तमाम की तमाम खोई हुई लाशें बरामद हो जायेंगी ।”
“तमाम की तमाम लाशें ?”
“सर, पता लगा है कि गोवा की आजादी से पहले पुर्तगालियों के राज में भी यहां ऐसे कई कत्ल हुए थे जिनसे सम्बन्धित लाशें आज तक बरामद नहीं हुईं । आप जब पायल की लाश की तलाश के लिये यहां आ ही रहे हैं तो जाहिर है कि यहां एक पंथ सौ काज जैसा मेला लग जायेगा ।”
“मेला ! मैंने तुम्हें वहां मेला देखने के लिये भेजा है ?”
“सर, ये काम मैं आफ्टर आफिस आवर्स में कर रहा हूं ।”
“माथुर, आई डोंट अन्डरस्टैण्ड यू ।”
“आई एम सारी, सर ।”
“एण्ड आई एम नाट हैपी विद यू ।”
“मैं आपको एक चुटकुला सुनाता हूं, सर । आप हैपी हो जायेंगे । वो क्या है कि एक भिखारी था...”
“माथुर ! माथुर ! ये लाइन पर तुम ही हो न ?”
“मैं हूं, सर । लेकिन लगता है कोई और भी है ।”
“यूं मीन क्रॉस टॉक ?”
“यस, सर ।”
“अगेन ?”
“यस, सर ।”
“गोवा की लाइन पर क्रॉस टॉक कुछ ज्यादा ही होती है ।”
“सर, कभी-कभी तो टॉक होती ही नहीं, सिर्फ क्रॉस ही होता है । कभी रैड क्रॉस, कभी ब्लू क्रॉस, कभी विक्टोरिया क्रॉस...”
“पुलिस ने केस में कोई तरक्की की या नहीं की ?”
“की है, सर । अपनी निगाह में उन्होंने कातिल की शिनाख्त कर ली है ।”
उसी क्षण बाल्कनी के बाहर दूर सड़क पर उसे तूफानी रफ्तार से दौड़ती एक कार करीब आती दिखाई दी - जिप्सी !
कार सड़क के मोड़ पर पहुंची तो रेत के एक टीले की ओट आ जाने की वजह से वो उसकी निगाहों से ओझल हो गयी ।
तभी अन्धेरे वातावरण में दूर कहीं से पुलिस के सायरन की आवाज गूंजी । आवाज करीब होती जा रही थी ।
टीले के पीछे से कार फिर सड़क पर प्रकट हुई ।
सतीश की जिप्सी ।
वो लपककर बाल्कनी में पहुंचा ।
जिप्सी का रुख साफ पता लग रहा था कि सतीश के मैंशन की तरफ था लेकिन पोर्टिको के करीब पहुंचने से पहले ही वो एकाएक ड्राइवर के कन्ट्रोल से निकल गयी । उसका अगला पहिया एक खड्ड में उतरा गया, जीप डगमगाई, उसका ड्राइविंग सीट की ओर का दरवाजा खुला और किसी ने उसमें से बाहर छलांग लगायी ।
हे भगवान ! डॉली !
डॉली अभी पोर्टिको से दूर ही थी कि ओट में से एक हवलदार निकला और चिल्लाकर डॉली को रुक जाने का आदेश देने लगा । रुकने की जगह डॉली ने केवल अपना रास्ता बदला, पहले से तेज रफ्तार से वो गार्डन की तरफ भागी और वहां की भूल-भुलैया में गायब हो गयी ।
चेतावनी में चिल्लाता हुआ हवलदार पोर्टिको का पहलू छोड़कर उसके पीछे भागा ।
“माथुर !” - फोन पर उसका बॉस चिल्ला रहा था - “माथुर ! अरे, लाइन पर हो या...”
राज ने उत्तर न दिया ।
नीचे सड़क पर एक पुलिस की जीप पहुंची जिसके ठीक से गतिशून्य हो पाने से भी पहले सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा और इंस्पेक्टर सोलंकी उसमें से बाहर कूद पड़े ।
“माथुर !”
“सर” - राज फोन मे बोला - “मैं आपको अभी थोड़ी देर में फोन करता हूं ।”
“लेकिन क्यों ? क्यों ?”
“सर, यहां पाकिस्तान का हमला हो गया है । आई विल रिपोर्ट लेटर, सर ।”
उसने फोन आफ किया, उसे वहीं पलंग पर फेंका और वहां से बाहर को लपका ।
तब तक वहां की तमाम फ्लड लाइट्स आन की जा चुकी थीं और अब सारी एस्टेट रौशनी में नहाई मालूम होती थी ।
गार्डन दौड़ते कदमों की आवाजों से गूंज रहा था ।
गार्डन के दहाने पर उसे फिगुएरा, सोलंकी और दो हवलदार दिखाई दिये । सतीश और उसके मेहमान उन्हें घेरे खड़े थे । उनके करीब ही कोठी के सारे नौकर-चाकर जमघट लगाये खड़े थे ।
“तुम्हारी काल है ।” - वो बोला - “बम्बई से । मेरी लाइन पर आ गयी थी । तुम्हें बुलाने की जगह मैं कार्डलैस यहां ले आया ।”
“शुक्रिया ।” - राज उठकर कमरे में कदम रखता कृतज्ञ भाव से बोला - “मेहमाननवाजी तो कोई आपसे सीखे ।”
सतीश मुस्कराया, उसने फोन राज के हाथ में थमा दिया और वहां से विदा हो गया ।
“हल्लो” - राज फोन में बोला - “राज माथुर स्पीकिंग ।”
“मिस्टर माथुर” - उसे अपने बॉस की सैक्रेट्री की आवाज सुनायी दी - “बड़े आनन्द साहब बात करेंगे । होल्ड रखियेगा ।”
“यस । होल्डिंग !”
कुछ क्षण बाद उसके कान में सुराख-सी करती नकुल बिहारी आनन्द की आवाज पड़ी - “माथुर ।”
“यस, सर ।”
“मैं तुम्हारी फरदर रिपोर्ट का इतजार कर रहा था ! फोन क्यों नहीं किया ?”
“सर, वो क्या है कि सुबह से लेकर अब तक यहां बहुत हंगामा हो गया है । इतनी गड़बड़ें हो गयी हैं, इतनी घटनायें इकट्ठी घटित हो गयी हैं कि...”
“माथुर, क्योंकि रात को ट्रंककाल के रेट आधे लगते हैं इसलिये ये न समझो कि तुम फोन पर मुझे कहानियां सुना सकते हो, लम्बी-लम्बी हांक सकते हो ।”
“मैं ऐसा कुछ नहीं समझ रहा, सर ।”
“तो मतलब की बात पर आओ । और जो कहना है संक्षेप में, थोड़े में कहो ।”
“सर, यहां बुरा हाल है ।”
“क्या !”
“यहां हालत काबू से बाहर निकले जा रहे हैं ।”
“फिर भूमिका बांधनी शुरु कर दी ! अरे पहले ये बताओ कि तुम पायल की लाश का पता लगा पाये या नहीं ?”
“नहीं लगा पाया, सर ।”
“क्यों ? क्यों नहीं लगा पाये ?”
“मरे उस्ताद ने मुझे लाशें तलाशने का हुनर नहीं सिखाया था ।”
“क्या ! क्या कहा तुमने ?”
“सर, मैं कह रहा था कि जो कम पुलिस जैसी संगठित फोर्स नहीं कर पा रही थी, उसे मैं अकेली जान भला कैसे कर पाता !”
“हूं । लगता है मुझे खुद वहां आना पड़ेगा ।”
“ये तो बहुत ही अच्छा होगा, सर । फिर तो तमाम की तमाम खोई हुई लाशें बरामद हो जायेंगी ।”
“तमाम की तमाम लाशें ?”
“सर, पता लगा है कि गोवा की आजादी से पहले पुर्तगालियों के राज में भी यहां ऐसे कई कत्ल हुए थे जिनसे सम्बन्धित लाशें आज तक बरामद नहीं हुईं । आप जब पायल की लाश की तलाश के लिये यहां आ ही रहे हैं तो जाहिर है कि यहां एक पंथ सौ काज जैसा मेला लग जायेगा ।”
“मेला ! मैंने तुम्हें वहां मेला देखने के लिये भेजा है ?”
“सर, ये काम मैं आफ्टर आफिस आवर्स में कर रहा हूं ।”
“माथुर, आई डोंट अन्डरस्टैण्ड यू ।”
“आई एम सारी, सर ।”
“एण्ड आई एम नाट हैपी विद यू ।”
“मैं आपको एक चुटकुला सुनाता हूं, सर । आप हैपी हो जायेंगे । वो क्या है कि एक भिखारी था...”
“माथुर ! माथुर ! ये लाइन पर तुम ही हो न ?”
“मैं हूं, सर । लेकिन लगता है कोई और भी है ।”
“यूं मीन क्रॉस टॉक ?”
“यस, सर ।”
“अगेन ?”
“यस, सर ।”
“गोवा की लाइन पर क्रॉस टॉक कुछ ज्यादा ही होती है ।”
“सर, कभी-कभी तो टॉक होती ही नहीं, सिर्फ क्रॉस ही होता है । कभी रैड क्रॉस, कभी ब्लू क्रॉस, कभी विक्टोरिया क्रॉस...”
“पुलिस ने केस में कोई तरक्की की या नहीं की ?”
“की है, सर । अपनी निगाह में उन्होंने कातिल की शिनाख्त कर ली है ।”
उसी क्षण बाल्कनी के बाहर दूर सड़क पर उसे तूफानी रफ्तार से दौड़ती एक कार करीब आती दिखाई दी - जिप्सी !
कार सड़क के मोड़ पर पहुंची तो रेत के एक टीले की ओट आ जाने की वजह से वो उसकी निगाहों से ओझल हो गयी ।
तभी अन्धेरे वातावरण में दूर कहीं से पुलिस के सायरन की आवाज गूंजी । आवाज करीब होती जा रही थी ।
टीले के पीछे से कार फिर सड़क पर प्रकट हुई ।
सतीश की जिप्सी ।
वो लपककर बाल्कनी में पहुंचा ।
जिप्सी का रुख साफ पता लग रहा था कि सतीश के मैंशन की तरफ था लेकिन पोर्टिको के करीब पहुंचने से पहले ही वो एकाएक ड्राइवर के कन्ट्रोल से निकल गयी । उसका अगला पहिया एक खड्ड में उतरा गया, जीप डगमगाई, उसका ड्राइविंग सीट की ओर का दरवाजा खुला और किसी ने उसमें से बाहर छलांग लगायी ।
हे भगवान ! डॉली !
डॉली अभी पोर्टिको से दूर ही थी कि ओट में से एक हवलदार निकला और चिल्लाकर डॉली को रुक जाने का आदेश देने लगा । रुकने की जगह डॉली ने केवल अपना रास्ता बदला, पहले से तेज रफ्तार से वो गार्डन की तरफ भागी और वहां की भूल-भुलैया में गायब हो गयी ।
चेतावनी में चिल्लाता हुआ हवलदार पोर्टिको का पहलू छोड़कर उसके पीछे भागा ।
“माथुर !” - फोन पर उसका बॉस चिल्ला रहा था - “माथुर ! अरे, लाइन पर हो या...”
राज ने उत्तर न दिया ।
नीचे सड़क पर एक पुलिस की जीप पहुंची जिसके ठीक से गतिशून्य हो पाने से भी पहले सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा और इंस्पेक्टर सोलंकी उसमें से बाहर कूद पड़े ।
“माथुर !”
“सर” - राज फोन मे बोला - “मैं आपको अभी थोड़ी देर में फोन करता हूं ।”
“लेकिन क्यों ? क्यों ?”
“सर, यहां पाकिस्तान का हमला हो गया है । आई विल रिपोर्ट लेटर, सर ।”
उसने फोन आफ किया, उसे वहीं पलंग पर फेंका और वहां से बाहर को लपका ।
तब तक वहां की तमाम फ्लड लाइट्स आन की जा चुकी थीं और अब सारी एस्टेट रौशनी में नहाई मालूम होती थी ।
गार्डन दौड़ते कदमों की आवाजों से गूंज रहा था ।
गार्डन के दहाने पर उसे फिगुएरा, सोलंकी और दो हवलदार दिखाई दिये । सतीश और उसके मेहमान उन्हें घेरे खड़े थे । उनके करीब ही कोठी के सारे नौकर-चाकर जमघट लगाये खड़े थे ।