Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी - Page 3 - SexBaba
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Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी

बस एक झटका और चकोर की चूत खिल जानी थी पर तभी किसी की आवाज को मोहन के कानो ने सुना और पल भर में वो समझ गया उसने अपनी धोती पहनी और भागा बाहर की और , राजमहल से सैनिक आये थे उसे बुलाने राजकुमारी दिव्या ने तुरंत उसे बुलवाया था चकोर की आँखों में आग देखि उसने पर उसका जाना जरुरी था तो वो निकल गया महल के लिए 



इधर राजकुमार पृथ्वी डूबा था संगीता के ख्यालो में अपनी छोटी माँ के रूप का दीवाना होता जा रहा था वो बस एक बार संगीता के गुलाब की पंखुडियो से होंठो को छू लेना चाहता था वो एक बार उसकी उस प्यारी सी चूत को निहारना चाहता था पर कैसे कैसे कहे वो संगीता से अपने मन की बात आखिर मर्यादा का मान भी तो रखना था उसको 



पर ये जिस्म की आग रिश्तो की मर्यादा को झुलसा देने वाली थी, दिव्या बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी मोहन का और जैसे ही मोहन उसके कमरे में गया जब लोक लाज भूल कर वो मोहन से लिपट गयी अब मोहन क्या बोले चुप ही रहा 



दिव्या- ओह मोहन तुम कहा चले गए थे तुम्हारे बिना मेरा मन एक पल भी नहीं लगता 



मोहन- घर जाना भी तो जरुरी है राजकुमारी 



दिव्या- कितनी बार कहा है हमे सिर्फ दिव्या कहा करो 



मोहन- जी 



दिव्या- मोहन हमे तुमसे कुछ कहना है 



मोहन- जी आदेश 



वो- आदेश नहीं निवेदन 



मोहन- कैसा निवेदन 



वो- हम प्रेम करने लगे है तुमसे मोहन 



प्रेम एक राजकुमारी का एक बंजारे के साथ क्या कहेगी दुनिया और क्या सोचेंगे राजाजी , मोहन तो खुद किसी और का हो चूका था अब दिव्या ने इजहारे मोहब्बत कर दिया था अब मोहन क्या जवाब दे बस चुपचाप खड़ा रहा 



दिव्या- चुप क्यों हो मोहन, क्या तुम भी हमसे प्यार नहीं करते 



मोहन- राजकुमारी जी, ये ठीक नहीं है 



वो- क्या ठीक नहीं है मोहन , तुम एक बार हां, तो कहो तमाम सुख तुम्हारे कदमो में होंगे


मोहन- राजकुमारी जी, बात वो नहीं है दरअसल मैं स्वयम किसी और को अपना दिल दे चूका हु अब उसको ना कैसे कहू 



दिव्या- हम तुम्हारा संदेसा उसको भिजवा देंगे 



मोहन- आप मेरे प्राण मांग लीजिये एक पल में न्योछावर कर दूंगा पर आपसे प्रेम मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता 



दिव्या- मोहन क्या कमी है मुझमे, क्या मैं सुंदर नहीं अगर तुम्हे कोई कमी लगती अहि तो मुझे बताओ पर मेरे प्रेम को ना ठुकराओ 



मोहन- आपके प्रेम का मैं सम्मान करता हु पर मैं किसी और का हो चूका हु 



अब दिव्या को गुस्सा आया बोली- तो अभी वो मोहिनी इतना इतराती ही 



तो क्या दिव्या को पता था मोहिनी के बारे में , हां पता होगा तभी तो कह रही है सोचा मोहन ने 



मोहन- आपको जब सब पता है तो फिर आप समझिये जरा 



दिव्या- तुम समझो मोहन 



मोहन- मैं क्षमा चाहूँगा 



मोहन पलटा और दिव्या चीखी- मोहन तुम बस मेरे हो बस मेरे किसी और का नहीं होने दूंगी मैं 



अब वो क्या जाने वो तो हो चूका किसी और का प्रीत का गुलाबी रंग चढ़ चूका था मोहन पर पहले ही अब तो बस फाग खेलना था उसे पर फाग में रंग प्रीत का बिखरना था या जुदाई का ये देखना बाकी थी ये प्रेम की कैसी परीक्षा होनी थी जिसमे झुलसना सबको था 



पृथ्वी आधी रात को जा पंहुचा संगीता के पास 



“पुत्र, तुम इस समय”


“माँ, एक परेशानी ने घेरा है समझ नहीं आ रहा की क्या करू तो आपके पास आ गया ”


अब संगीता तो जानती ही थी की पृथ्वी को क्या परेशानी है वो बस मुस्कुराई बोली- कोई बात नहीं हमारे पास सो जाओ 



“आपके पास कैसे ”


“एक माँ के साथ सोने में पुत्र को कैसी शर्म ”


“पुत्र को तो कोई दिक्कत नहीं माँ, पर मेरे अंदर एक नीच इंसान है जो अपनी माँ से ही प्रेम कर बैठा है उसका क्या ”
संगीता- मैं जानती हु पुत्र की तुम्हारे मन में क्या द्वन्द चल रहा है और मैं उसे गलत भी नहीं मानती बेशक हम रिश्तो की बेडियो से जकड़े हुए है पर हमारे सीने में एक दिल धडकता है और फिर प्रेम कहा किसी में भेद भाव करता है हम जानते है की तुम हमे चाहने लगे हो

और अब हमे भी तुम्हारा ये प्रेम स्वीकार है पर पृथ्वी ये प्रेम का अंकुर बस हम दोनों के मन में ही रहना चाहिए 
संगीता तो चाहती ही थी और अब वो इसमें और देर नहीं करना चाहती थी कितनी आसानी से उसने पृथ्वी की तमाम मुश्किलों को सुलझा दिया था वो बिस्तर से उतर कर पृथिवी के पास आई और अपने रसीले होंठो को उसके होंठो से जोड़ दिया माँ बेटे का रिश्ता अब पति-पत्नी का होने वाला था 



संगीता पृथ्वी के होंठो का पूरा मजा ले रही थी पल पल दोनों के जिस्मो से वस्त्र कम होते जा रहे थे और कुछ पलो बाद दोनों नंगे थे पृथ्वी ने संगीता को अपनी गोद में उठाया और बिस्तर पर पटक दिया संगीता भी किसी से कम नहीं थी पृथ्वी का लंड संगीता की चूत से टकरा रहा था संगीता ने उसे अपने हाथो ने ले लिया 



इधर पृथ्वी संगीता की चूचियो पर टूट पड़ा था और उनके गुलाबी निप्पल को चूसने लगा था संगीता के तन बदन में बिजलिया दौड़ने लगी थी चूत का गीला पण बढ़ गया था , इधर पृथ्वी पहली बार किसी औरत के सम्पर्क में आया था पर ये खेल किसी को आता नहीं सब अपने आप ही सीख जाते है 




दोनों छातियो कठोरता से भर चुकी थी अब पृथ्वी संगीता के चिकने पेट को चाट रहा था और धीरे धीरे उसकी चूत की तरफ बढ़ रहा था संगीता अपने आँखे बंद किये उस लम्हे का इंतज़ार कर रही थी जब पृथ्वी के होंठ उसकी चूत को छुएंगे
 
और संगीता को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा , कुछ ही देर बाद उसने पृथ्वी की सांसो की गर्मी अपनी चूत पर महसूस की संगीता के बदन में खुमारी दौड़ गयी छोटी माँ की चिकनी जांघो को सहलाते हुए पृथ्वी ने अपने चेहरे को आगे की तरफ किया और संगीता की मुलायम चूत की फानको को अपने होंठो से लगा लिया 

संगीता के बदन में तरंग दौड़ गयी और अगले ही पल उसकी छोटी की चूत को पृथ्वी ने अपने मुह में किसी रस गुल्ले की तरह भर लिया था 

“उफ्फ्फ ” एक आह उसके मुह से निकली 

जैसे ही चूत का खारा पानी का स्वाद पिथ्वी को लगा उसे बड़ा मजा आया और उसकी जीभ ने छोटी माँ की चूत के दाने को छू लिया संगीता बिस्तर पर जल बिन मछली की भांति मचल रही थी कभी चादर को उंगलियों से मरोड़े तो कभी अपने उभारो को दबाये जैसे जैसे संगीता की सिस्कारिया बढ़ रही थी पृथ्वी और तेजी से अपनी जीभ चला रहा था 

अब संगीता टूटने लगी थी उसके चुतड अपने आप ऊपर को होने लगे थे वो अपने हाथो से पृथ्वी के सर को अपनी चूत पर दबा रही थी मस्ती में चूर संगीता अपने पुत्र सामान पृथ्वी से रास रचा रही थी पर वो ऐसे ही झाड़ना नहीं चाहती थी तो उसने राजकुमार को अपनी चूत से हटा दिया 

पृथ्वी छोटी माँ का इशारा समझ गया था उसने मुस्कुराते हुए अपने लंड को संगीता की चूत पर रखा और उसे वहा पर रगड़ने लगा 

“ओह पुत्र, कितना तडपाओ गे मुझे अब विलम्ब ना करो बस जल्दी से मुझे अपना बना लो ना ”

पृथ्वी को और क्या चाहिए था उसने अपने लंड का दाब संगीता की चूत पर बढाया और उसका सुपाडा अन्दर को धंसने लगा संगीता ने एक आह भरी और अपनी टांगो को चौड़ा करते हुए पृथ्वी के लंड को रास्ता दिया कुछ ही देर में पूरा लंड अन्दर था और पृथ्वी पूरी तरह से उसके ऊपर छा चूका था 

दोनों के होंठ एक दुसरे के साथ गूंथे हुए थे एक दुसरे के थूक का रस पान कर रहे थे वो संगीता बार बार अपने चुतड ऊपर कर कर के मजा ले रही थी इधर पृथ्वी ताबड़तोड़ धक्के मारते हुए छोटी माँ को वो ख़ुशी दे रहा था जिसे उसके पिता नहीं दे पाए थे संगीता की चिकनी चूत में पृथ्वी का घोडा बेलगाम दौड़ रहा था 

फच फच की आवाज से पूरा कमरा भर गया था पर संगीता की प्यासी चूत हर धक्के के साथ हु और नशीली होते जा रही थी संगीता के बाल बिखर गए थे बदन पसीने में नहाया हुआ था पर चूत की आग इस कदर भड़की हुई थी की वो बस घनघोर चुदाई की बारिश से भी त्रप्त हो सकती थी 

और पृथ्वी भी चुदाई के प्रत्येक पल को भरपूर तरीके से जी रहा था किसी पागल सांड की तरह वो संगीता पे चढ़ा हुआ था उसका 
लंड बहुत तेजी से अन्दर बहार हो रहा था संगीता की चूत का रस ऐसे बह रहा था जैसे की किसी नदी में बाढ़ आ गयी हो पल पल वो चुदाई की मस्ती को पाने की दिशा में बढ़ रही थी 

और उसकी नाव को पार लगाने के लिए पृथ्वी उसका खाव्व्या बना हुआ था , एक मस्त चुदाई के बाद संगीता बुरी तरह इ झड रही थी उसकी चूत ने लंड को अपने आगोश में कस लिया और चूत की इस गर्मी को पृथ्वी बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसके लंड ने भी अपना पानी छोड़ दिया 

उस पूरी रत दोनों ने खूब चुदाई की सुबह जब अन्गीता की आँख खुली तो पृथ्वी वहा पर नहीं था पर संगीता की बिस्तर से उठने की जरा भी हिम्मत नहीं थी पूरा बदन ताप रहा तह जैसे की बुखार चढ़ा हो उसने अपनी चूत पर हाथ लगा के देखा उसमे तीस उठ रही थी पर उसके होंठो पर एक मुस्कान थी 

दूसरी तरफ 

केवट- मोहिनी हमे तुमसे कुछ बात करनी है 

मोहिनी- जी पिताश्री 

केवट- हमने सोचा है की तुम्हारा विवाह कर दिया जाए 

अब मोहिनी थोड़ी परेशां हुई क्या करे पिता को क्या कहे, पिता की चिंता भी जायज थी पर वो तो किसी और की हो चुकी थी अपना दिल दे चुकी थी मोहन को पर लाज भी थी तो पिता से अब क्या कहती 

केवट- हमने सोचा है शिवरात्रि के पवन अवसर पर तुम्हारा स्वयम्वर रखा जाए 

मोहिनी- पिताश्री, अभी मैं विवाह के लिए तैयर नहीं हु 

केवट- पर कब तक पुत्री 

वो- जब तक मेरा मन राज़ी ना होगा 

केवट- पर पिता की इच्छा का क्या मान 

वो- और मेरी कोई इच्छा नहीं पिताश्री 

केवट---- अवश्य है पुत्री, पर बताओ तो सही 

वो- मुझे किसी से प्रेम है 

केवट- हमे ख़ुशी है की हमारी पुत्री ने खुद अपने लिए वर चुन लिया है तुम हमे उसका नाम बताओ ताकि हम तुम्हारे विवाह के लिए उसके घर वालो से बात कर सके 

मोहिनी- पिताश्री 

केवट- कहो पुत्री 

मोहिनी- पिताश्री, मुझे एक मनुष्य से प्रेम है 

एक पल को केवट को लगा की उसके कानो ने कुछ गलत सुन लिया है उसने फिर पुछा और मोहिनी का यही जवाब था की उसे एक मनुष्य से प्रेम है अब केवट को आया क्रोध 

मोहिनी , होश में तो हो तुम क्या बोल रही हो, अपनी सीमा में रह कर बात करो 

मोहिनी- प्रेम की कोई सीमा नहीं पिताश्री 


केवट- और इस पाप का दंड भी ज्ञात होगा तुम्हे 

वो- प्रेम ही ज्ञात है मुझे तो बस 

केवट- बस बहुत हुआ, हमारा आदेश है आज के बाद तुम बस यही रहोगी यहाँ से एक पल भी बाहर नहीं जाउंगी 

मोहिनी- जाउंगी 

केवट- कहा न हमने आशा है तुम हमे मजबूर नहीं करोगी 

मोहिनी- और कौन रोकेगा मुझे 

केवट ने मोहिनी की आँखों में एक आग सी जलती देखि, बात तो सही थी किसका इतना सामर्थ्य था जो मोहिनी को रोक सके पर मनुष्य से प्रेम ये भी तो उचित नहीं था बल्कि ऐसा हो ही नहीं सकता था ये कैसा खेल खेलने चली थी नियति क्या लिख दिया था उसने मोहिनी की तक़दीर में 

ये तो आने वाला समय ही जानता था पर केवट के माथे पर चिंता की लकीरे उभर आई थी मन ही मन उसे अभास हो गया था की कुछ तो अनिष्ट होने वाला है पर क्या ये देखने वाली बात थी मोहिनी ने अपनी तरफ से शुरुआत कर दी थी पर उसे भी कहा आभास था की प्रेम की डगर कितनी मुश्किल है

पर उसे अपने प्रेम पर पूरा भरोसा था इधर दिव्या पल पल जल रही थी उसे बस इंतज़ार था महाराज के वापिस लौटने का भूत सवार था उस पर किसी भी तरह से मोहन को अपना बना लेने का उसे पा लेने का और उसके पास उसका ब्रहमास्त्र भी था प्रेम की परीक्षा की घडी आने वाली थी
 
सब आग में जल रहे थे मोहन और मोहिनी प्रीत की आग में, चकोर और संयुक्ता हवस की आग में और दिव्या अपनी उलझनों में अब करे भी तो क्या करे सब के तार आपस में जो उलझे थे पर सुलझे कैसे इसका जवाब किसी के पास नहीं था 



इधर केवट अपनी पुत्री को लेकर परेशां था जब की महाराज चंद्रभान ने दिव्या की शादी अपने मित्रः के ज्येष्ठ पुत्र के साथ तय की और सोचा की महल पहुचते ही सबसे पहले ये खुशखबरी दिव्या को देंगे जबकि उनको कहा भान था की जब वो महल पहुचेंगे तो एक नयी मुसीबत उनका इंतज़ार कर रही है 



केवट किसी भी तरह मोहिनी रोकना चाहता था तो उसने एक बार फिर से उस से बात करने का सोचा 



केवट- मोहिनी, क्या सोचा है 



मोहिनी- सोचना क्या है पिताश्री 



केवट- शायद तुमने ठीक से विचार नहीं किया कल को जब उस मनुष्य को तुम्हारी असलियत पता चलेगी तब क्या होगा क्या वो तुम्हे स्वीकार करेगा तब तुम ना इधर की रहोगी ना उधर की रहोगी फिर शेष जीवन कैसे काटोगी 



केवट की बात में दम था मोहिनी ने ये तो सोचा ही नहीं था क्या पता अगर उसका सच जानकार मोहन अगर उसे ठुकरा दे और दिव्या से विवाह कर ले तो अब घबराया उसका मन , क्या वो मोहन को बता दे नहीं नहीं पर आज नहीं तो कल उसे बताना तो होगा ही 



मोहिनी- पिताश्री, अगर मेरा प्यार सच्चा होगा तो वो मुझे अवश्य अपनाएगा 



केवट- खोखले शब्द है तुम्हारे अगर तुम आजमाइश करना चाहती हो तो अवश्य करो 



अब मोहिनी फसी पर उसे पूरा भरोसा था और उसने निर्णय किया की इस बार जब वो मोहन से मिलेगी तो उसे अवश्य ही सच बताएगी आगे उसकी किस्मत इधर महाराज चंद्रभान ने दिव्या का रिश्ता अपने मित्र के ज्येष्ठ पुत्र से तय कर दिया और सोचा की महल पहुचते ही दिव्या को ये खुशखबरी देंगे 



पर वो क्या जानते थे की वहा पर एक नयी मुसीबत उनका इंतज़ार कर रही है दूसरी तरफ जैसे ही पृथ्वी को मौका लगता वो संगीता को पेल देता इन सब से दूर मोहन बेचैन था मोहिनी से मिलने के लिए पर वो पता नहीं कहा उलझी थी जो आ ही नहीं पा रही थी इधर मोहिनी को अनजाना डर सता रहा था 



की क्या होगा जब मोहन उसकी असलियत जान जायेगा पर कही ना कही उसे अपने प्रेम पर भी विश्वास था पर क्या उसका और मोहन का विवाह हो सकता था या हो पायेगा ये भी यक्ष प्रश्न ही था उसके सामने , और फिर वो दिन भी आ ही गया जब महाराज और रानी वापिस आ ये महाराज 



ये सोचकर खुश थे की दिव्या को उसके रिश्ते की खबर बतायेंगे और संयुक्ता ये सोच कर खुश की बस अब वो मोहान से जी भर के चुदवायेगी इधर दिव्या भरी बैठी थी कितने दिनों से बस इंतजार था की कब पिता आये और वो अपनी बात कहे और अब वो लम्हा कितना दूर था भला महाराज सबसे पहले अपने मंत्रियो से मिले राजी-ख़ुशी पूछी 
और फिर बुला लिया दिव्या को , आई वो 



राजा- पुत्री हमे तुम्हे एक खुशखबरी देनी है 



दिव्या- मुझे भी आपसे कुछ कहना था 



राजा- कहो 



दिव्या- पिताजी, मुझे गलत ना समझिएगा पर मुझे मोहन से प्रेम है और मैं उस से विवाह करना चाहती हु 



जैसे ही महाराज ने ये सुना उसको गुस्सा आ गया एक महलो की राजकुमारी और कहा वो एक बंजारा ये कैसा मेल और फिर वो तो तय कर आये थे दिव्या का रिश्ता तो बात अब इज्जत की हो गयी थी 



रजा- ये क्या कह रही हो तुम कहा तुम और कहा वो एक मामूली बंजारा 



दिव्या- प्रेम उंच—नीच नहीं देखता पिताजी 



राजा- पर हमे तो देखना पड़ता है , हमे तुम्हरा विवाह अपने मित्रः के पुत्रः से तय किया है और जल्दी ही तुम उस घराने की बहु बनोगी अपने दिमाग से ये फितूर उतार कर फेंक दो 



दिव्या- प्रेम कोइ फितूर नहीं 



महाराज समझ गए मामला घम्भीर है तो पुछा- क्या मोहन भी तुम्हे प्रेम करता है 



दिव्या- जी 



अब महाराज को गुस्सा तो पहले से ही था पर फिर भी सम्झ्धारी से काम लिया बोले- मोहन को बुलाया जाये 
और कुछ भी देर बाद मोहन उनके सामने था 



महाराज- तो क्या तुम दोनों आपस में प्रेम करते हो 



मोहन- नहीं राजाजी 



महाराज- परन्तु, दिव्या तो कह रही है की 



मोहन- महाराज मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा राजकुमारी का मैं सम्मन करता हु मुझे तो मेरे इष्ट की सौगंध है अगर मैंने ऐसा कुछ सोचा हो तो 



मोहन ने अपना पक्ष रख दिया था अब महाराज ये तो समझ ही गए थे की दिव्या की जिद है ये पर क्यों वो उसका कारण अवश्य ही जानना चाहते थे एक कहे प्रेम है दुसरे को स्वीकार नहीं चंद्रभान एक पिता के साथ एक राजा भी थे तो न्याय ऐसा होना था की लोग कहे वाह एक तरफ पुत्री का हट दूसरी तरफ मोहन की अस्वेक्रोती 



महाराज- दिव्या, जब मोहन ने स्पष्ट किया है की उसको तुमसे ऐसा कुछ नहीं तो बात को टूल मत दो और हमारा कहा मानो तुम्हारी इस जिद से कुछ हासिल नहीं होगा और वैसे भी अगर मोहन तुमसे प्रेम करता तब भी ये मुमकिन नहीं होता 



दिव्या- मुमकिन होगा 



महाराज- असम्भाव 



दिव्या- मैं इस राज्य के महाराज से अपने वचन सवरूप मोहन को अपने पति के रूप में मांगती हु 
 
दिव्या ने अपना ब्रहमास्त्र चला दिया था अब महाराज तो बंधे थे वचन से अब क्या करे मुकरे तो वचन की मर्यादा भंग हो और एक बंजारे से कैसे ब्याह दे अपनी पुत्री को अब महाराज फसे एक पिता तो मुकर भी जाए पर एक राजा कैसे तो आखिर उन्होंने हां कह दी की वो दिव्या का विवाह मोहन से करवाएंगे 



मोहन पर जैसे बिजली सी गिर पड़ी उसने तभी महारजा के पैर पकड़ लिए और बोला- महाराज मैं किसी और को चाहता हु हमे अलग मत कीजिये आपके राज्य में तो सबको संरक्षण मिलता है तो फिर हमे क्यों जुदाई 



अब महाराज क्या कहे परकुछ तो कहना ही था – मोहन, तुम जिस से प्रेम करते हो उसे बुलाओ हम बात करते है उस से दिव्या को हमने वचन दिया है तो उसका मान रखना ही पड़ेगा तुम तो हमारी मनोस्थि समझो मोहन 



अब मोहन क्या करे आँखों में आंसू लिए हुआ वापिस 



रस्ते में मिली उसको संयुक्ता मोहन को रोते देख उसने पुछा तो मोहन से सारी बात बताई की क्या हुआ है ये सुनकर संयुक्ता तो अन्दर ही अन्दर खुश हो गयी की अगर मोहन का और दिव्या का विवाह हो जाये तो उसका तो पूरा फायदा है 



संयुक्ता- तो इसमें गलत क्या है बल्कि तुम तो किस्मत वाले हो जो दिव्या जैसी लड़की तुम्हारी पत्नी बन रही है 



मोहन- पर मैं किसी और को चाहता हु 



संयुक्त- चाहत कुछ नहीं होती मोहन , दिव्या से विवाह करते ही तुम क्या बन जाओगे तुमने सोचा नहीं शायद 



मोहन- मैं जैसा हु ठीक हु महारानी , गरीब हु तो क्या हुआ दिल सच्चा है मेरा

सब की जिंदगी में ऐसा नाटकीय मोड़ आ गया था की किसी की समझ में नहीं आ रहा था की कैसे हल किया जाये इस समस्या को खुद महाराज भी परेशान थे वो जानते थे की मोहन का दिव्या से विवाह करवाना गलत है पर उन्होंने दिव्या को वचन दे रखा था इधर संयुक्ता ये सोच कर परेशां थी की उसने भी मोहन को एक वचन दिया हुआ है 



अगर मोहन उस वचन के बदले दिव्या से आजादी मांग ले तो वो क्या करेगी उसकी हिम्मत नहीं की महाराज के आगे बोल पाए भरी सभा में पर अगर मोहन ने वचन पूरा करने को कहा तो क्या होगा , इधर मोहिनी बेताब थी मोहन से मिलने को पर केवट ने रोक रखा था उसको पर कब तक रोकता वो 



परन्तु महराज भी मोहिनी से मिलना चाहते थे तो उन्होंने मोहन को आदेश दिया की मोहिनी को लेके आये अब मोहा आया उसी कीकर के पेड़ के निचे और पुकारा- मोहिनी, मोहिनी 



जैसे ही मोहन की आवाज उसके कानो में पड़ी वो हुई बावरी एक तरफ पिता का पहरा दूजी तरफ प्रेमी की पुकार करे तो क्या करे चली जाए तो पिता की अवमामना हो और ना जाये तो प्रीत की रुसवाई हो उधर मोहन ने फिर उसको पुकारा और उसके सीने में जैसे कोई चोट सी लगी झुलसे अपनी ही आगन में 



पता नहीं कितनी बार मोहन ने पुकारा पर वो ना आई, पर मिलना बेहद जरुरी दिलबर से मुसीबत जो आन पड़ी थी मोहन पे इस वक़्त मोहिनी का ही तो सहारा था उसे पर कहा रह गयी मोहिनी हमेशा तो आ जाती थी पर फिर आज क्यों देर हुई भला, शायद कोई काम हो गया होगा हां, ऐसा ही हुआ होगा 



पर बिना मिले वो जाये तो कैसे जाये, हताश होकर बैठा मोहन दोपहर से सांझ ढलने को आई पर एक आस उसके आने की थक हार कर उसने अपनी बंसी लगे होंठो पर , और अपने दर्द को जैसे भुलाने की कोशिश करने लगा इधर मोहिनी के कानो में जो बंसी की आवाज हुई वो तडपी पैर जैसे बगावत पर उतर आये 



इधर जैसे जैसे उसकी बंसी बजे वैसे बैसे मोहिनी पर मद चढ़े और आखिर में जब चढ़ा प्रीत का रंग तो भूली लोक लाज वो अब क्या होश उसे अब क्या ख्याल उसे चल पड़ी सजनी अपने सजन से मिलने को हल्का हल्का सा अँधेरा हो रहा था तारे कोई कोई निकल आये थे मोहन अब अब चलने को ही था की किसी ने उसको पुकारा 



“मोहन ” और जैसे ही मोहन ने उसे देखा दौड़ पड़ा उसकी तरफ और भर लिया उसको अपनी बाहों में आँखों से आंसू बह चले दोनों के ही कुछ देर बाद जब दर्द कुछ कम हुआ तो मोहन ने मोहिनी को सारी बात बताई, और मोहिनी को अब आया गुस्सा 



मोहिनी- तुम चिंता मत करो मोहन सब ठीक होगा 



मोहन- महाराज तुमसे मिलना चाहते है 



मोहिनी- मैं अवश्य ही मिलूंगी पर उस से पहले मुझे तुमसे एक बहुत ही जरुरी बात करनी है 
मोहन- कहो मोहिनी 



मोहिनी- मोहन मैं नहीं जानती की ये बात सुनके तुम कैसा व्यवहार करोगे पर तुम्हे ये बात बताना बहुत जरुरी है 
मोहन- मैं सुन रहा हु


मोहिनी- मोहन, तुम्हारी मोहिनी कोई इंसान नहीं बल्कि एक बल्कि एक नागकन्या है ,


अब मोहन घबराया पर जब उसने मोहिनी को देखा तो वो संयंत हो गया और बोला- मोहिनी, मैंने बस तुमसे प्रेम किया है एक सपना देखा है तुम्हारे साथ घर बसाने का तुम नागिन हो या देवी मुझे कोई फरक नहीं पड़ता जब तुमसे प्रेम किया तो भी तुम्हे चाहा था आगे भी चाहता रहूँगा 



मोहिनी मुस्कुरा पड़ी , बोली- मोहन, मैं नाग्श्री केवट की पुत्री हु जो स्वय महादेव के गले की शोभा बढ़ाते है 
अब मोहन क्या कहता उसने मोहिनी का हाथ पकड़ा और बोला- वादा करो की हर समय मेरा साथ दोगी जब प्रीत जोड़ी है तो निभाओगी 



मोहिनी की आँख में आंसू आ गए एक इंसान जो उसकी सच्चाई जानके भी उस से इतना निछ्शल प्रेम करता है उस स्वयम से ग्लानी सी होने लगी थी पर वो तो फैसला कर ही चुकी थी की वो प्रेम की परीक्षा देगी और उसका प्रेम सच्चा है तो कोई ना कोई रास्ता अवश्य निकलेगा 



मोहिनी-मोहन मैं कल महल में आउंगी , जरुर आउंगी तुम मेरा इंतज़ार करना 



मोहन से विदा लेके वो पलती ही थी की उसने सामने केवट को खड़े पाया तो उसकी नजरे झुक गयी 



केवट- विरला ही है ये मनुष्य जो जानते हुए भी की तुम एक नाग कन्या हो फिर भी इतना प्रेम करता है , मैं तुम्हारे प्रेम का विरोध नहीं करता पुत्री पर इसके जो परिणाम है वो तो तुम भी जानती हो फिर क्यों 
मोहिनी- मोहन के लिए 



अब केवट क्या कहता बस अपने मन को समझा लिया पुत्री ने अपनी भाग को खुद चुन लिया था बस देखना है की परीक्षा में कितना टिक पाता है दोनों का प्रेम 



रात सबकी ही आँखों आँखों में कटी, महल में अजीब सी ख़ामोशी थी सबको इतंजार था तो बस मोहिनी के आने का और वो आई वैसे ही अपनी बेफिक्री में चलते हुए जैसे ही महाराज ने उसको देखा लगा की जैसे आसमान ही फट जायेगा आज तो , उनके राजधर्म की अग्नि परीक्षा तो आज होनी थी क्योंकि मोहिनी को देखते ही वो जान गए थे की अब मामला संगीन होगा 



क्योंकि दिव्या की तरह एक वचन उन्होंने मोहिनी को भी दिया हुआ था अब महाराज चंद्रभान के इस तरफ कुआ था तो दूसरी तरफ खाई अब राजा फास गया बीच में मोहन को तो वाचा की दुहाई दे दी थी पर मोहनी से क्या बहाना बनायेगा और क्या जवाब देगा वो जब वो अपने वचन में मोहन को मांगेगी 



एक तरफ दिव्या खड़ी दूसरी तरफ मोहिनी बीच में मोहन सबकी डोर उलझी थी आपस में पर अब क्या हो क्या नहीं ये देखने वाली बात थी 



महाराज- पुत्री जैसा की मोहन ने तुम्हे बता दिया ही होगा की किस विषय में हमने तुम्हे यहाँ बुलवाया है 
मोहिनी- जी महराज 




महाराज- तो तुम क्या क्या कहोगी 
मोहिनी- महाराज मियन और मोहन एक दुसरे से प्रेम करते है प्रीत की डोर बाँधी हैहम दोनों एक दुसरे के हो चुके है 
महाराज- पुत्री हम जानते है परन्तु दिव्या भी मोहन से प्रेम करती है और जैसा की तुम भी जानती हो की हम दोनों और से फसे हुए है जो दिव्या ने हमे बाध्य किया है अपने वाचन ने मोहन को माँगा है हम जानते है की ये गलत है पर अगर एक राजा वचन से गया तो फिर कैसा राजा दूसरी तरफ तुम भी अपने वचन में मोहन को ही मांगोगी हमे भान है परन्तु पुत्री हम तुम्हारे पिता जैसे है और अब तुम ही इस पिता को कोई राह दिखाओ 



मोहिनी- चिंता न करे, मैं आपसे वचन में मोहन को नहीं मांगूगी
 
“चिंता ना करे महाराज , मैं अपने वचन में मोहन को नहीं मांगूंगी क्योंकि उसको क्या मांगना जो पहले से ही आपका है ”


मोहनी की ये बात सुनकर दिव्या को गुस्सा आया पर महाराज के सामने उसने रोका खुद को


महाराज- पुत्री, अब क्या किया जाये 



मोहिनी- मैं और मोहन एक दुसरे के प्रेम करते है 



दिव्या- मैं भी मोहन से प्रेम करती हु 



मोहिनी- पर मोहन तुमसे प्रेम नहीं करता राजकुमारी दरअसल मोहन तुम्हारा प्रेम नहीं बल्कि तुम्हारी जिद है 



उफ्फ्फ ये क्या कह दिया मोहिनी ने भरी सभा में में जैसे तमाचा ही मार दिया हो उसने दिव्या को पर उसकी बात एक दम सही थी स्वयं महाराज भी समझते थे पर वचन दे रखा था दिव्या को पर साथ ही वो ये भी जान गए थे की कही ना कही 



उनकी प्रतिस्ठा भी गयी काम से, तो उन्होंने मोहिनी से कहा- पुत्री अगर तुम मोहन का त्याग करती हो तो हम तुम्हे मुह माँगा देंगे 



मोहिनी- प्राणों से कहते हो की श्वास का त्याग कर दो 



अब क्या किया जाए, कैसे सुलझाये इस मामले को दो प्रेमियों को अलग कर दे तो भी उचित नहीं और दिव्या को दिया वचन , महाराज ने कुछ सोच कर कहा 



एक काम हो सकता है अगर मोहन दोनों लडकियों से विवाह कर ले तो 



मोहन- परन्तु मुझे मंजूर नहीं मैंने कभी उस नजर से देखा नहीं राजकुमारी को 



संयुक्ता- नहीं देखा तो क्या हुआ विवाह के बाद अब ठीक हो जायगा 



मोहन- महारानी, अगर महाराज का यही आदेश है तो अवश्य पालन करूँगा पर प्रेम की रुसवाई हो जाएगी और फिर हम में से कौन कुछ रह पायेगा कोई भी नहीं मैं तो धुल बराबर हु राजकुमारी का स्थान बहुत ऊँचा मैं तो एक सामान्य सा जिसकी कोई कहानी नहीं आपके सामने 



महारानी जी की कृपा से मैं यहाँ आ पाया ,इस रिश्ते का कोई जोड़ नहीं महाराज कोई नहीं 



दिव्या- मोहन तुम एक बार मेरी तरफ देखो तो सही , तुम्हे मेरे साथ किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होगी बस एक बार हां तो कहो 



मोहन- आप अब भी नहीं समझी राजकुमारी,

इतनी देर से इस कहानी को सुनते हुए संगीता का दिमाग ख़राब होने लगा था वो बोली- महाराज आप इस मामले को इतना टूल दे रहे है, जब हमारी पुत्री मोहन से विवाह करना चाहती है तो करवाइए और इस मोहिनी को भगाइए यहाँ से या फिर कारावास में डाल दीजिये 



मोहिनी- कोशिश करके देख लो महारानी मोहन से मुझे कौन जुदा करता है मैं भी देखती ही 



उफ्फ्फ क्या दुस्साहस मोहिनी का महारानी को चुनोती दे रही है संगीता चिल्लाई- सैनिको पकड़ लो इस लड़की को अभी के अभी 



सैनिक मोहिनी की तरफ बढे ही थे की मोहिनी ने घुर कर देखा उन्हें और अगले ही पल दोनों के शारीर नीले पड़ गए जैसे कितने ही सर्पो का दंश लगा हो उनको 



मोहिनी- ख़बरदार, जो किसी ने भी कुछ उल्टा-सीधा करने की कोशिश की वर्ना मैं अपनी मर्यादा भूल जाउंगी 



महराज चंद्रभान खुद चकित बोले- तुम कोई साधारण कन्या नहीं हो अपना परिचय दो पुत्री 



मोहिनी- मैं मोहिनी हु, नागराज केवट की पुत्री 



मोहिनी एक नागकन्या है दरबार में सबकी आँखे हैरत से फटी रह गयी हर कोई चकित एक नागकन्या और एक मनुष्य का प्रेम और नागकन्या कोई साधारण भी नहीं स्वयं नागराज की पुत्री जिसे वरदान प्राप्त जो आखेट करती है महादेव के गले में 



महाराज ने अपने हाथ जोड़े और कहा- ये पूजनीय हमसे अपमान हुआ माफ़ कीजिये 



मोहिनी- आप पिता सामान है महाराज आपके राज में हमको संरक्षण मिला 
संगीता ने भी हाथ जोड़े 
अब बोले पुरोहित जी- परन्तु ये कैसे संभव् है किवंदिती कैसे सच हो सकती है और अगर सच है भी तो एक नागकन्या और मनुष्य के बीच कैसा प्रेम ये तो नियामो के विपरीत है 



मोहिनी- प्रेम कहा किसी नियम में बंधा है 



महाराज- परन्तु पुत्री ये उचित भी तो नहीं इसके परिणाम को सोचा है तुमने 



मोहिनी- महाराज मैंने वचन दिया है मोहन को और सबसे बड़ी बात की प्रेम किया है मैंने और मेरा प्रेम सच्चा है तो हर परीक्षा को उतीर्ण कर ही लेगा तो घबराना क्या और सोचना क्या


महाराज जान गए थे की मामला अबबेहद उलझा हुआ है मोहिनी को साधारण नहीं और अगर उसका सच में ही प्रेम है तो फिर बात गम्बीर है 



और तभी जैसे की वहा पर तूफ़ान आ गया ऐसा लगा की जैसे आसमान ही टूट कर गिर गया हो ऐसी भयंकर गर्जना की लगे कान के परदे ही फट जाएगी जैसे आंधी ने धक लिया हो राजदरबार को और जब सबकी आँखे कुछ देखने लायक हुई तो जो द्रश्य उन्हें दिखा आँखों ने विश्वास करने से मना कर दिया 



पर मोहन मुस्कुराया वो जानता था की आगे क्या होना है सामने नरसिंह खड़ा था दरबार में जितने भी लोग थे आँखे फाड़े देखे उसी को कुछ कोतुहल से कुछ डर से पर ऐसा शेर पहले देखा भी तो नहीं किसी ने 
 
मोहन बढ़ा उसकी और किया प्रणाम, स्वीकार हुआ नरसिंह ने एक मशक मोहन को दी और बोला- मोहन ये दूध अपनी प्रिय को पिला दो ताकि श्राप के रहे सहे अवशेष भी मिट जाये 



मोहन ने वो उध मोहिनी को पिलाया और कुछ देर बाद मोहिनी और भी निखर आई चांदी की तरफ चमकने लगी सबलोग ख़ामोशी से बस नरसिंह और मोहन को ही देख रहे थे 



नरसिंह- मोहन अपना वचन निभाओ 



मोहन-अवश्य ही निभाऊंगा 



मोहिनी- कैसा वचन मोहन 



मोहन- कुछ नहीं नरसिंह को थोड़ी भूख लगी है उसको भोजन करवाना है 



अब नरिसंह आगे हुआ और उधेड़ने लगा मोहन का मांस पर वो मुस्कुराता रहा मोहिनी से देखा नहीं गया उसे क्रोध आया व् चिल्लाई- नहीं नरसिंह नहीं 



नरसिंह- मोहन ने वाचन दिया है मेरी माँ को 



मोहिनी- पर मैं मोहन को इस हाल में नहीं देख सकती 



मोहन- मोहिनी शांत हो जाओ 



मोहिनी- नहीं , नरसिंह इस बार अगर तुम्हरे दांतों ने मोहन को छुआ तो ठीक नहीं होगा 



नरसिंह- क्या करोगी कहकर उसने मोहन की बाजु का मांस नोच लिया 



और साथ ही मोहिनी आ गयी अपने नाग रूप में हुई नरसिंह के सामने , नाग्रूप में मोहिनी को देख कर सब जान गए की मोहिनी ने ही दिव्या को काटा था उस दिन खुद दिव्या हैरान 



पर मोहन आया बीच में बोला- मोहिनी, क्या तुम्हे अपने प्रेम पर भरोसा नहीं मैंने नरसिंह को वचन दिया है उसकी भूख मिटाने का मेरी बात का मान रखो विश्वास रखो हमारे प्रेम पर 



अब मोहिनी कैसे टाले मोहन की बात को वादे अनुसार आधे शरीर का मांस लिया उसने और हुआ वापिस सबका कलेजा वापिस आ गया उस दर्श को देख कर दिव्या तो रोने ही लगी और रो रही थी मोहिनी भी पर जैसे ही उसके आंसू मोहन के शरीर पर गिरे उसका शरीर फिर से भरने लगा 



उफ्फ्फ ये कैसा प्रेम था निश्छल प्रेम था दोनों का बहुत देर तक मोहिनी उस से लिपटी रोती रही पर महाराज संकट में फस चुके थे बोले- अभी के अभी सब महादेव मंदिर चलो अब जो भी बात होगी वही होगी

दरअसल महाराज चाहते थे की अब स्वयम नागराज ही मोहिनी को समझाए दो विपरीत योनियों का मिलन कैसे हो सकता था एक मनुष्य और एक नागकन्या का प्रेम अपने आप में एक असाधारण घटना थी सबकी प्रीत एक दुसरे से जुडी थी पर किसी ना किसी को तो खाली हाथ रहना ही था 
महाराज ने मंदिर आते ही नागराज का आह्वान किया और वो आये महारज ने प्रणाम किया और अपने आने की वजह बताई 



केवट- महाराज, मैं भी जानता हु की ये गलत है और इसके परिणाम मेरी पुत्री को भुगतने पड़ेंगे पर मैं मजबूर हु मोहिनी को महादेव का आशीर्वाद प्राप्त है इस वजह से उसपे मेरा कोई जोर नहीं है मैं खुद एक बेबस पिता हु 



अब महाराज चंद्रभान क्या कहे वो खुद एक बेबस पिता और मजबूर राजा थे इस समय एक तरफ मोहिनी एक तरफ दिव्या और बीच में मोहन अब राजधर्म की तगड़ी परीक्षा हो रही थी पर कोई तो समाधान हो इस बात का 



महाराज- देखो, मोहन और मोहिनी एक दुसरे से प्रेम करते है जबकि दिव्या का प्रेम एक तरफ़ा है पर चूँकि हम वचन से बंधे है की उसकी एक इच्छा हम हर हालत में पूरा करेंगे , परन्तु एक नागकन्या और मानुष के प्रेम को समाज में क्या प्रकर्ति में भी स्वीकार्य नहीं है परन्तु मोहिनी को ये न लगे की उसके साथ न इंसाफी हुई है तो दिव्या को भी मोहन नहीं मिलेगा 



तुम तीनो अलग अलग ही रहोगे 



दिव्या- महाराज अगर मुझे मोहन नहीं मिला तो इसी पल मैं आत्मदाह कर लुंगी 



उफ़ ये दिव्या ने क्या कह दिया , ये कैसी जिद इस नादाँ लड़की की 



मोहिनी- महारज प्रेम किसी सीमा में नहीं बंधा है मोहन के बिना मुझे भी जीना स्वीकार नहीं यदि मेरी नाग योनी मेरे और मोहन के बीच है तो मैं अपनी नाग योनी का त्याग कर दूंगी 



केवट- असंभव पुत्री 



मोहिनी- जहा प्रेम हो वहा कुछ भी असम्भव् नहीं 



संयुक्ता- मेरी बात पे फिर से विचार करो मोहन दो पत्नी भी रख सकता है 



मोहन- अवश्य महारानी परन्तु प्रेम केवल एक को , दूसरी बस नाम की ही पत्नी रहेगी तो उस समय उसका जीवन विधवा से भी ज्यादा कष्टकारी होगा 



बात में दम था 



महाराज- मोहिनी एक पिता होने के नाते हम तुम्हारे आगे हाथ जोड़ते है तुम तो मान जाओ 



मोहिनी- अगर मोहना कह दे की मुझसे प्रेम नहीं तो अभी मैं चली जाउंगी वचन है मेरा 



मोहन- मोहिनी के बिना मोहन की कल्पना भी नहीं 



दिव्या- मोहन से विवाह नहीं तो मैं मृत्यु का वरण करू 



महराज ने अपना माथा पीट लिया एक राजा जो अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध आज उलझा बैठा था एक तरफ पुत्री दूसरी तरफ पुत्री सामान मोहिनी क्या करे किसका पक्ष ले कुछ समझ ना आये 



आखिर हार कर महाराज बोले- अब तो महादेव ही राह दिखाए , हे महादेव अगर मैंने राजा के पद पर रहते हुए एक व्यक्ति को भी सच्चा न्याय दिया हो तो दर्शन दे आपके भक्त की इज्जत अब आपके हाथ में है महादेव दर्शन दे इस उलझन को आप ही सुलझाये प्रभु 



अब देवो के देव ऐसे कैसे दे दे दर्शन , वो तो बस मुस्कुरा रहे थे इस सारे घटना कर्म को देख कर महाराज ने बीड़ा दे दिया महादेव को की करो फैसला तीन दिन बीत गए वही पर जस के तस और फिर पुरे मंदिर में जैसे की धुआ ही भर गया और जब धुआ हटा तो देखा की एक साधू खड़ा है 
सबने प्रणाम किया मोहिनी मन ही मन मुस्कुराई और पाँव पड गयी साधू की उसने आशीर्वाद दिया और बोला- महाराज क्या समस्या है 



महाराज- आपसे क्या छुपा है इष्ट आप ही मार्ग दिखाए 



साधू- मार्ग तो प्रेम अपने आप दिखायेगा कैसे चलना है ये तो अब तो चलने वाले जाने, दिव्या प्रेम के अनेक रूप होते है मैं ये नहीं कहता की तुम्हे मोहन से प्रेम नहीं परन्तु ये भी तो आवश्यक नहीं की जिस से हम प्रेम करे वो भी हमसे करे 



दिव्या- पर मैं मोहन के बिना जी नहीं पाऊँगी 



साधू- मृत्यु का वरण कर पाओगी 



दिव्या- हां 



साधू- मोहिनी, एक दिव्य नागिन होकर एक साधारण से मनुष्य से प्रेम क्यों 



मोहिनी- आप तो सब जानते है प्रभु, आपसे क्या छुपा है ये नियति भी तो आपने ही लिखी है 



साधू- परन्तु राह बहुत कठिन 



मोहिनी- फिर भी चलूंगी 



साधू- और तुम मोहन ये कैसी प्रेम की बंसी बजा दी तुमने 
 
मोहन ने हाथ जोड़े और बोला- प्रभु, मैं एक पतित इन्सान हु परन्तु मोहिनी से सच्चा प्रेम किया है अगर वो मेरे साथ नहीं तो फिर जिस जीवन का कोई मोह नहीं मुझे 



साधू मुस्कुराया फिर बोला- परन्तु एक नाग कन्या मनुष्य से विवाह करेगी तो प्रकर्ति का संतुलन बिगड़ेगा उसका सोचो 



सब खामोश रहे ,


फिर मोहिनी बोली- मैं त्याग करुँगी अपनी नाग योनी का 



साधू- कर पाओगी 



वो- अवश्य, 



कैसा ये प्रेम था मोहन के लिए उसका की नाग योनी का त्याग करने को तैयार थी वो अब साधू ने कहा – जैसा की मोहिनी अपनी नाग योनी को त्याग कर रही है क्या दिव्या के प्रेम में इतनी शक्ति है की वो मोहन के लिए कुछ त्याग कर सके 



दिव्य- क्या कहना चाहते है आप 



साधू- मोहिनी अगर नाग योनी का त्याग करे तो उसे इंसान बनने के लिए इंतज़ार करना होगा वो अपनी नियति स्वयं चुन रही है परन्तु दिव्या अगर तुम्हारा विवाह मोहन से ना हो तो इस राज्य के राजा को वचन भंग का पाप लगेगा तो तुम्हारा वचन अवश्य पूरा होगा 



परन्तु चूँकि तुम्हारा प्रेम अब जिद का रूप ले चूका है इस कारण से उसकी पवित्रता भंग हो गयी है जबकि मोहन और मोहिनी का प्रेम निच्छल है तो इस लिए तुम्हारा विवाह अवश्य होगा मोहन से परन्तु तुम ग्रास्थी का सुख नहीं भोग पाओगी


मोहिनी चूँकि तुमने नाग योनी का त्याग करने का सोचा है तो तुम्हे इंसान रूप के लिए तपस्या करनी होगी एक सहस्त्र साल तक तुम्हारा इंतज़ार रहेगा इस बीच कितने मोसम बदलेंगे, कितने युग हो सकता है दुनिया का नया रूप तुम्हरे सामने हो पर जब तक मोहन खुद किसी भी रूप में आकार तुम्हे नहीं पुकारे गा तुम स्वयं प्रकट नहीं होगी और अगर ये प्रतिज्ञा टूटी तो फिर ना मोहन होगा ना मोहिनी 



मोहिनी- मैं तैयार हु देव 



मोहन- नहीं मोहिनी नहीं , मुझे कुछ फरक नहीं पड़ता की तुम किस रूप में हो अगर तुम नागिन रूप में हो तो भी मैं तुम्हारा वरण कुरंगा 



साधू- मोहन, अगर मोहिनी को पाना है तो उसे ये तपस्या करनी होगी 



मोहन- तो ठीक है मुझे भी कुछ ऐसी ही सजा दीजिये मैं भी इंतज़ार करूँगा 



साधू- मोहिनी के लिए तुम्हे जीना होगा ये पल पल की जुदाई ही एक दिन आधार बनेगी इस प्रेम कहानी का जिसे सदियों तक सुनाया जायेगा 



दिव्या- सबका फैसला ठीक कर दिया पर मुझे ये सजा क्यों साधू- सजा कहा अवसर है तुम्हारे लिए पा सको तो पा लो अपने प्रेम को 



साधू- मोहिनी आगे बढ़ो मैं तुम्हारा मार्ग खोल रहा हु 



मोहिनी- एक पल दीजिये मुझे 



मोहिनी दौड़ कर मंदिर में गयी और एक घड़ा ले आई , मोहन के पास गयी और बोली- पानी पिलो मोहन फिर ना जाने ये अवसर कब आएगा

मोहिनी दौड़ कर मंदिर में गयी और एक घड़ा ले आई , मोहन के पास गयी और बोली- पानी पिलो मोहन फिर ना जाने ये अवसर कब आएगा 


मोहिनी की आँखों में कुछ आंसू थे मोहन ने ओक लगायी और उस मीठे पानी को पिने लगा पर उकी ये प्यास अब ऐसे न बुझने वाली थी अब दर्द और इंतज़ार का सागर तो था मोहन के पास पर दो घूंट प्रेम की ना थी 



ना जाने कैसी तकदीर लिखवा के लाया था वो , पूरा घड़ा खाली हो गया था फिर भी मोहन के होठ प्यासे थे 



साधू- मोहिनी आज से तुमहरा वास उसी कीकर के पेड़ में होगा जो तुम्हारे प्रेम का साक्षी रहा है मैं स्वयम उस पेड़ की सुरक्षा उस समय तक निश्चित करूँगा जब सही समय पर मोहन तुम्हे पुकारेगा और ये परीक्षा ख़तम होगी 



और मोहन महाराज के वचन की लाज रखने के लिए तुम्हे दिव्या से फेरे लेने होंगे 



मोहन- नहीं कदापि नहीं 



साधू- अगर ऐसा ना किया तो सहस्त्र वर्षो तक अग्नि में जलना होगा 



मोहन- मंजूर है अपनी मोहिनी के लिए कुछ भी करूँगा 



साधू- पर तुम्हारा एक अंश जो दिव्या के साथ है उसका क्या 



मोहन- मुझे नहीं पता 



साधू- तो फिर कैसे न्याय मिलेगा उसको भी 



मोहन- आप जाने 



साधू-तो वचन की लाज हेतु कर लो विवाह 



मोहन- परन्तु विवाह होते ही वो मेरी अर्धांगिनी हो जाएगी फिर उसका क़र्ज़ कैसे उतारूंगा मैं 



साधू- मैं तुम्हे उस भार से मुक्त करता हु जैसा की मैं कह चूका हु दिव्या की मांग में सिंदूर होगा परन्तु ग्रहस्ती का सुख नहीं भोगेगी वो ये उसकी नियति है 



दिव्या- परन्तु मुझे ऐसी कठोर सजा क्यों 



साधू- क्योंकि तुमने वचन रूपी अस्त्र चला कर दो प्रेमियों को जुदा किया 



दिव्या- परन्तु मैंने तो बस अपना प्रेम माँगा 



साधू- दिव्या तुम कभी समझी ही नहीं प्रेम का दूसरा नाम ही त्याग होता है अगर तुम त्याग कर पाती तो सम्मानीय होती परन्तु अब तुम –पाप की भागी हो 



दिव्या- मैं नहीं मानती, मैंने तो बस प्रेम किया 



साधू- प्रेम और जिद में अंतर करो 



दिव्या- अगर मोहन मेरा नहीं हुआ तो मोहिनी का भी नहीं होगा ये मेरा पराण है 



साधू- नियति 



आदेशानुसार मोहिनी बैठ गयी उस तपस्या में , महाराज ने एक महीने बाद मोहन और दिव्या का विवाह निश्चित किया परन्तु जैसे मोहन अब पहले वाला मोहन नहीं रहता था कितने दिन बीत जाते थे वो उसी कीकर के पेड़ के पास बैठा रहता मोहिनी उसे देख कर रोती वो उसे याद करके रोता पर दोनों मजबूर थे 



भर लेता अपने आलिंगन में उस पेड़ को पर कैसे समझाए खुद को , कुछ न समझ आये बावरा सा हुआ वो जैसे जैसे विवाह का दिन नजदीक आ रहा था महल में सबको एक चिंता सी थी , दिव्या खुश थी पर ये कैसी ख़ुशी थी


और फिर आया वो दिन , दिव्या सजी थी दुल्हन के रूप में और मोहन ने मन ही मन कुछ फैसला कर लिया था बस कुछ ही देर की बात थी और फिर दिव्या मोहन की हो जानी थी पर मोहन का दिल नहीं मानता इस बात को 



और फिर उसने कुछ ऐसा किया जिसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था मोहन ने आत्महत्या कर ली फांसी लगा ली उसने और जैसे ही दिव्या को ये मालुम हुआ उसे गहरा आघात लगा पर जूनून था या जिद थी ये कैसा प्रेम था उसका 



उसने भी खुद को आग लगा ली महल में शोक छा गया , पर नियति ने अपना खेल खेल दिया था जो आन वाले वक़्त में अपना रंग अवश्य ही दिखाता जैसा की हुकम था मोहन ने अपने लिए सहस्त्र वर्षो की सजा चुन ली थी परन्तु दिव्या की रूह कैद हो गयी उसी महल में उसने भी इंतज़ार चुन लिया था 



की वो जब भी रहेगी जब मोहन और मोहिनी का मिलन होगा दिव्या तब भी होगी और होगा उसका प्रेम जो उसके लिए जुनुनियत की हद तक था मरकर भी वो उसी महल में भटकती गुनगुनाती कभी रोती समय गुजरता गया न महल रहा न राज्य ना राजा न रजवाड़े कुछ नहीं रहा 



पर वो कीकर का पेड़ खड़ा रहा और उसके पास कभी कभी लोगो को आग सी लगी दिख जाती , कभी दोपहर में कभी रात में कोई कहता भूत-प्रेत है कोई कहता जादू है पर वक़्त की रेत में वो प्रेम कहानी कही खो गयी थी मोहिनी उस पेड़ के अन्दर से रोज मोहन को जलते हुए देखती पर वो हमेशा मुस्कुराता रहता फिर बनता फिर जलता 



जुदा होकर भी वो जुदा ना हुए थे कभी कभी मोहिनी सोचती की भागकर लिपट जाऊ मोहन से और अपने प्रेम की वर्षा से उस अग्नि को भिगो दू पर वो भी जानती थी की मजबूरियों की बेडिया उसके कदमो में पड़ी है 



वक्त गुजरता गया वो कहा किसी के लिए रुकता वो राजमहल जो कभी शान से खड़ा था पर आज वो बस एक खंडर की भांति था , लोग कहते थे की इसमें भुत है कुछ लोग इस आस में की क्या पता राजा महाराजो का खजाना होगा तलाश में भी गए थे पर उनको दिव्या के कहर का सामना करना पड़ा था जिसे बस इंतज़ार था मोहन का अपने मोहन का 



ये कैसा इंतज़ार था जो ख़तम होने का नामा ही नहीं ले रहा था , ये कैसे पीड़ा थी जो प्रेम ने उनको दी थी ये कैसा मिलन होना था जो इतनी लम्बी जुदाई मिली थी ये तो बस नियति के रचियता ही जानते थे और जब इस इंतज़ार के ख़तम होने में पच्चीस बरस थे तो एक समय मोहन की सजा खतम हो गयी उसकी आग रुक गयी 



परन्तु अगले ही पल उसकी रूह गायब हो गयी कुछ न समझी मोहिनी की ये क्या हुआ पर उसे भरोसा था की महादेव तो हर पल उसके साथ है वो उसका बुरा कभी नहीं करेंगे देखते देखते पच्चीस बरस बीत गए और पूरा हुआ इंतज़ार पर मोहिनी कैसे बहार आये मोहन जब उसे पुकारे तब वो आये पर मोहन कहा रह गया 
 
सोच सोच उसका मन घबराये , एक सहस्त्र बरस का इंतजार वो ही जानती थी उसने कैसे किया अब एक एक पल एक हजार साल जैसा लगे उसे पर मोहन क्यों ना आये, ये कौन बताये उसे कौन बताये 
जी तो बहुत करता की आवाज दे अपने मोहन को की क्या वो भूल गया अपनी मोहिनी जो अब तक ना आया पर विवश थी आवाज भी ना दे सकती थी वक्त बदल गया था और क्या मोहन भी 



“मैं आऊंगा, मैं आऊंगा जल्दी ही आऊंगा मेरी........... मोहि...... ” ये बोलते ही उसकी आँख खुल गयी सांसो की रफ्तार कुछ कम हुई तो उसने देखा की पूरा बदन पसीने से जैसे नहाया हुआ है पास रखे जग से पानी लिया और कुछ घूंट पिया उसने 



बार बार उसे ये ही सपना क्यों आता था क्या था उस ख्वाब में जो उसे इतना परेशां कर देता था , उसने घडी पर नजर डाली सुबह के तीन बज रहे थे वो चलते हुए अपनी खिड़की पर आया बाहर काफी तेज बारिश हो रही थी 



तभी उसके सामने वाली सड़क पर जैसे बिजली सी गिरी और ऐसा लगा की उसने किसी को देखा हो पर वहा पर कोई नहीं था या सिर्फ उसका वहम था वो कुर्सी पर बैठ गया और अपने सपने के बारे में सोचने लगा की आखिर बार बार एक ही सपना उसको क्यों आता है और वो जो धुंधली सी परछाई सी दिखती है उसको


वो क्या है क्यों दिखती है उसको उसका क्या सम्बन्ध है उन सब से , क्यों उसे वो सपना अपना सा लगता था और जो शब्द आज उसने सुना था मोहन , कौन था ये मोहन और क्या सम्बन्ध था उसका मुझसे


शिवाय सिंह ओबरॉय , उम्र पच्चीस बरस, होटल इंडस्ट्री के चमकते सितारे, २५०००० करोड़ की सम्पति के मालिक, माँ- बाप बचपन में ही एक हादसे में गुजर गए थे,इतनी शोहरत के बावजूद खुद के लिए एक घर नहीं इनके पास बस अपने बिजनेस के लिए आज इस देश में कल इस देश में 
अपने ऑफिस में बैठा शिवाय, अपने उसी सपने के बारे में सोच रहा था की तभी उसकी सेक्रेट्री शगुन आई


“सर, अपने नए होटल के लिए हमने कुछ जगह देखि है, ये सब लोकेशन की तस्वीरे है आप देख लीजिये ”


शिवाय ने उन तस्वीरों पर एक नजर डाली और फिर बोला- इनको रद्दी में फेक दो , ये हमारा 1000 वा होटल होगा तो इसे सबसे अलग होना चाहिय


शगुन- पर सर आप कितनी लोकेशन रिजेक्ट कर चुके है , आपकी पसंद क्या है इस होटल के लिय


शिवाय- मुझे खुद नहीं पता सच कहू तो तुम जाओ और इर स देखो 



शगुन ने अपना माथा पीट लिया पिछले चार महीनो से शिवाय हर लोकेशन को बस रिजेक्ट ही किये जा रहा था आखिर उसने क्या चाहिए था शगुन ने बहुत तलाश किया और आखिर में उसे कुछ मिला तो उसने शिवाय से बात करने का सोचा 



शगुन- सर, मुझे एक ऐसी लोकेशन मिली है की आप सुनकर हैरान रह जाओगे 



शिवाय- पिछले बार भी तुमने इसा ही कुछ कहा था 



शगुन- पर सर इस बार आप बस देखिये उसने अपना लैपटॉप शिवाय की तरफ किया 



और जैसे ही शिवाय ने स्क्रीन की तरफ देखा , उसे झटका सा लगा वो एक एक कर के सारी तस्वीरों को देखने लगा , उस इसा अलग की इ जगह स उसका एक गहरा नाता है अपनी सी लगी उसे 
वो- ये येतो एक खंडहर सा है 



शगुन- सर मैंने पता किया है एक ज़माने में राजा का महल होता था पर समय के साथ सब ख़तम हो गया सर्कार ने ध्यान दिया नहीं तो हालत ऐसी है पर अपनी टीम इसे एक शानदार हेरिटेज होटल में बदल देगी अगर आप हां कहे तो 



शिवाय- पर ये जगह है कहा, 



शगुन- सर राजस्थान में चित्तोड़ में है कही अगर आप हां, कहे तो मैं शाम तक पूरी डिटेल्स मंगवा लू 
शिवाय- हां, कल के लिए टिकेट बुक करवाओ, मैं खुद इस साईट को देखना चाहूँगा वैसे भी एक अरसा हो गया इंडिया नहीं गया तो इसी बहाने एक छोटा हॉलिडे भी हो जायेगा 



शगुन को यकीन नहीं हुआ उसका बॉस इस लोकेशन के लिए मान जायेगा पर वो खुश थी चलो बॉस को एक साईट तो पसंद आई उसने अपनी तैयारिया शुरू कर दी 



जगतपुरा गाँव के लोग आज बहुत हैरत में थे , ऐसा लग रहा था की जैसे गाव म कोई मंत्री आ रहा हो एक के बाद एक गाडियों का काफिला आ रहा था शिवाय रस्ते में था पर तभी उसे शगुन का कॉल आया और फिर गाड़ी गाँव की बजाय सर्किट हाउस की तरफ मुद गयी 



वहा शगुन पहले से ही मोजूद थी थोड़ी चिंतित थी शिवाय ने पुछा तो बोली- सर हमारे दो आदमी महल का जायजा लेने गए थे ऐसे ही और दोनों की लाशे महल के बाहर मिली है 



शिवाय- कॉल पोलिस, हमारे आदमियों की जाना कैसे गयी, पता करो 



शगुन- सर , गाँव के लोगो से पता चला है की महल में कोई भुत-प्रेत है मेरी मति मरी गयी थी मुझे इसके बारे में आपको बताना ही नहीं चाहिए था 



शिवाय- क्या बकवास कर रही हो तुम भुत कुछ नहीं होता कल हम खुद चलेंगे वहा पर हो सकता है की कुछ लोगो की दिक्कत हो वो ना चाहते हो की महल बीके 



शगुन- पर सर अभी तो किसी को नहीं पता की हम महल ख़रीदन आये है 
बात में दम था पर शिवाय के अपने तर्क थे, 



शिवाय- और हा, वो महल के मालिको को भी कल बुलवा लेना उनसे हबी बात करेंगे 



शगुन- हो जायेगा सर, इस गाँव के सरपंच के परिवार के पास है इसकी मिलकियत बरसो से 



शिवाय- वैसे मैने देखा गाँव खूबसूरत है मैं गाँव को देखना चाहूँगा , घूमना चाहूँगा 



शगुन- मैं अर्रेंग्मेंट करवाती हु 



शिवाय- नहीं, मैं अकेला जाना चाहता हु कम से कम कुछ घंटे तो इस vip लाइफ से छुटकारा मिले 
शाम को शिवाय निकल पड़ा अपनी कार लेके जैसे जैसे वो गाँव की तरफ बढ़ रहा था उसकी धड़कने तेज हो रही थी उसे लग रहा था की जैसे शायद वो पहले भी यहाँ आ चूका है 



और फिर अचानक से ही गाडी को ब्रेक लगे, उसे अपनी आँखों पर यकीन ही ना हुआ

शिवाय के सामने एक विशाल कीकर का पेड़ खड़ा था , उसे जैसे यकीन नहीं हो रहा था ये पेड़ , ये पेड़, इसी को तो वो अपने सपनो में देखता आ रहा था उसका कलेजा जैसे जगह ही छोड़ गया था नहीं ये नहीं हो सकता ऐसा नहीं हो सकता 


वो गाड़ी से बाहर आया, और उस पेड़ की तरफ बढ़ने लगा और उसके सामने जाके खड़ा हो गया शाम का समय था हवा चल रही थी फिर भी उसको पसीना आ रहा था गला जैसे सुख रहा था पानी की प्यास सी लग आई उसे पर गाड़ी में पानी नहीं था 



पल पल प्यास सी बढे उसकी पर यहाँ पानी कहा आये, पर जैसे उसे पता था उसके पैर अपने आप ही एक और बढ़ने लगे और कुछ मिनट बाद वो उसी पानी के धौरे पे पहुच गया जिसे कभी मोहिनी ने अपने मोहन के लिए बनाया था 



आज भी पानी लबालब था उसमे, उसने अपनी अंजुल में पानी लिया और पीने लगा पर ऐसा स्वाद पानी का उसे हैरान कर गया इतना मीठा स्वाद जी भर के उसने पानी पिया फिर वो हुआ वापिस उसकी जुबान पर पानी का स्वाद ही था उस पल 



आया वापिस, वो उसी पेड़ के पास एक बार फिर से उसके कदम रुक गए क्यों उसे वो पेड़ अपना सा लग रहा था क्यों लग रहा था की इस जगह पर पहले भी आ चूका है कुछ तो रिश्ता है उसका इधर मोहिनी ने देखा उसे आँखों में आंसू आये लगा की अब इंतजार ख़तम होगा 



पर ये क्या वो तो वापिस हो लिया, शिवाय बढ़ गया गाँव की तरफ, और फिर आया महादेव मंदिर जो साक्षी था किसी के प्रेम का , जहा हुआ था जावा किसी प्यार, शिवाय ने गाड़ी रोकी उसके कदम जैसे खुद उसे मंदिर की और ले जा रहे थे 



और जैसे ही मंदिर की सीढ़ी पर उसने पैर रखा जैसे की एक बोझ सा आ पड़ा उसके सर पर और फिर उसे कुछ याद ना रहा , मंदिर की घंटिया अपने आप बज उठी, गाँव वाले हुए हैरान वो पड़ा रहा बेहोश वही पर 



“मोहन, मोहन मैं इंतजार कर रही हु, मेरे पास आओ मोहन, मुझसे बात करो मोहन इंतजार की घडिया ख़तम हुई, आओ मोहन आओ मोहन अपनी मोहिनी को देखो मोहन ”


“मोहिनीईईईईई ” एक तेज चीख के साथ शिवाय की आँख खुल गयी कमरे में अँधेरा सा परन्तु जल्दी ही रौशनी हो गयी, उसने अपनी भीगी आँखों से देखा शगुन उसके पास ही बैठी थी शिवाय की साँस फूली हुइ थी 



शगुन ने उसे पानी दिया और बोली- क्या हुआ कोई डरावना सपना देखा क्या 



शिवाय- मैं- यहाँ कैसे 



शगुन- आप मंदिर में बेहोश हो गए थे हमे खबर होते ही ले आये डॉक्टर ने बताया शायद स्ट्रेस की वजह से ....


शिवाय- नहीं ऐसा कुछ नहीं 



शगुन- तो फिर कैसा है शिवाय मैं तुम्हारी सेक्रेटरी ही नहीं तुम्हारी दोस्त भी हु कुछ प्रॉब्लम है तो शेयर कर सकते हो 



शिवाय- पता नहीं , तुम तो जानती ही हो मुझे अजीब अजीब सपने आते है और आज जब मैं गाँव की तरफ घुमने गया तो मैंने उस पेड़ को देखा जिसे मैं अपने सपनो में देखता आया हु और वो ही मंदिर हां वो मंदिर वो ही है 



शगुन- ये तुम्हरा वहम है भला ऐसा कैसे हो सकता है 



शिवाय- मैं नहीं जानता पर ऐसा ही है शगुन ऐसा ही है 



शगुन- पर तुम बेहोश कैसे हुए कुछ याद है 



शिवाय- नहीं, कुछ याद नहीं , 



शगुन- वैसे ये मोहिनी कौन है 



शिवाय- कौन मोहिनी 



शगुन- अभी तुम चीखते हुए उसका ही नाम लेके उठे हो 



शिवाय- पर मैं तो किसी मोहिनी को नहीं जानता 



पर तभी उसे कुछ याद आया सपने में ये ही तो सुना था उसने मोहन अपनी मोहिनी के पास आओ कौन है ये मोहन और कौन है ये मोहिनी 



शिवाय- एक काफी ले आओ सरदर्द हो रहा है 



शिवाय बाहर गैलरी में आ गया और सोचने लगा मोहिनी कौन हो सकती है ये मोहिनी और उसके मुह से कैसे निकला मोहिनी 



“मोहिनी, आ जाओ , आ जाओ मोहिनी ” जैसे ही ये शब्द शिवाय के मुह से निकले मोहिनी तड़प गयी मोहन ने पुकारा जो था उसको , उसके मोहन ने पुकारा था उसे पर जब तक वो सामने आके न बुलाये वो कैसे आये बाहर सोचे वो 
 
सुबह हुई शिवाय बाकि टाइम बस सोचता ही रहा मोहिनी कौन हो सकती है आज उसे महल देखने जाना था पर शगुन ने बताया की गाँव में आज शिवरात्रि का मेला है तो सरपंच जी मेले में व्यस्त रहेंगे उन्होंने माफ़ी के साथ कहा है की आज तो मुलाकात नहीं हो पायेगी तो हम कल महल चलेंगे अब मालिक का साथ होना जरुरी है ना 



शिवाय- तो चलो हम भी मेले में चलते है अब आये है तो थोडा घूमना फिरना भी हो जायेगा 



शगुन- ये तुम्हे क्या हो गया है , वो शिवाय जिसके लिए एक एक मिनट कीमती है वो मेले में जाने को बोल रहा है 



शिवाय- कभी कभी हमे भी हक़ है सुकून के पल जीने का 



एक मेला तब लगा था एक मेला आज लगा था , वो तब भी था वो अब भी था जल्दी ही सरपंच को सूचना मिली की शिवाय सिंह ओबरॉय मेले में आ रहे है तो वो भी खुश हो गया स्वागत की तैयारिया की गयी और फिर शिवाय पंहुचा वहा पर 



सरपंच- स्वागत है सर आपका वो मेले की वजहसे मैं मिलने नहीं आ पाया 



शिवाय- कोई बात नहीं सरपंच जी, चलो इसी बहाने मेले में घूमना भी हो जायेगा 



सरपंच शिवाय को बताने लगा मेले के बारे में घूमते घूमते वो मंदिर के प्रांगन तक पहुचे 



शिवाय- ये बड़ा सा पत्थर कैसा है रस्ते में सरपंच जी आने जाने वालो को परेशानी होती होगी इसको साइड में क्यों नहीं करवाया 



सरपंच- बहुत कोसिष की पर नहीं होता, बड़े बुजुर्ग कहते है की स्वयं महादेव ने इसको यहाँ स्थापित किया था ये शिवलिंग है आप गौर से देखिये इसे इस मान्यता के साथ की कोई आएगा और वो खुद इसे अपने हाथो से स्थापित करेगा 



शिवाय- आप भी इन बातो में मानते है ये पुराने ज़माने की बकवास बाते
सरपंच- आप बड़े लोगो को बकवास लगता होगा पर गाँव में यही मान्यता है कितने लोगो ने कोशिश की कितनी मशीने मंगवाई पर सब नाकाम अब आप ही बताइए ऐसा क्यों 
शिवाय- मैं नहीं मानता 
सरपंच- तो फिर आप भी एक कोशिश कर लीजिये देखते है आपकी धारणा सही है या हमारी मान्यता 
शिवाय को उसकी बात चुभ सी गयी पर इतना बड़ा पत्थर कोई इन्सान कैसे उठा सकता है पर उसने सोचा कोशिश करने को और कुछ नहीं तो थोडा फन ही हो जायेगा 
और जैसे ही शिवाय ने कोशिश की उसे वो पत्थर फूल सा लगा और देखते ही देखते उसने वो भारी भरकम पत्थर उठा लिया और ले चला ऊपर की और जैसे उसके कदम अपने आप उसे बता रहे थे की कहा जाना है 
“”असंभव” वहा उपस्तिथ सब लोगो के मुह से बस एक ही शब्द निकला हर कोई हैरत में ये क्या करिश्मा हुआ तो क्या वो आ गया है जिसके आने के बारे में बस बुजुर्गो से पीढ़ी दर पीढ़ी गाँव वाले सुनते ही आ गये थे 
जैसे जिसे भी पता चला लोग मेले में जुट गए मंदिर खचाकच भर गया 
शिवाय- क्या सरपंच जी, पत्थर वजन दर्द दीखता है जरुर पर था नहीं देखो कैसे मैंने रख दिया 
अब सरपंच क्या कहे बस हाथ ही जोड़ दिए, पर लोगो के लिए तो जैसे चमत्कार ही था शिवाय आगे बाधा ही था की एक छोटी बच्ची उसके पास आई और बोली- बाबूजी बंसी खरीदोगे 
शिवाय को उस का बंसी बेचना अच्छा नही लगा 
वो- बोला- कितने की है गुडिया 
लड़की- दस की एक 
शिवाय- एक काम करो आप हमे सारी दे दो 
उसने शगुन को इशारा किया और वो बंसी उसके हाथ में ही रह गयी तभी सरपंच को किसी के साथ जाना पड़ा 
शगुन- बंसी तो ऐसे पकड रही है जैसे की बजाना भी जानते हो 
शिवाय- बजा भी सकता हु 
शगुन- कोशिश करो 
शिवाय ने बंसी अपने होंठो से लगायी और बजाने लगा ये कैसे कैसे रंग थे शिवाय के जो आज उभर रहे थे शगुन तो जैसे खोने लगी और खोने लगी थी दूर कही मोहिनी कितनी सदिया बीत गयी थी उसे ये मधुर तान सुने हुइ उसके पैर मचलने लगे नाचने को पर वो मजबूर थी आज उसे गुस्सा सा आने लगा था अपनी बेबसी पर 
और चौंक गयी थी वो भी उसे यकीन नहीं हुआ कितने बरस बीत गए और आज उसने मोहन की बंसी सुनी थी महकने लगी थी वो झुमने लगी थी वो महल जैसे रोशन सा होता चला गया दिव्या की ख़ुशी में वो जान गयी थी मोहन आ गया है उसका मोहन लौट आया है लौट आया है 
नाचे गए झूमे अपने आप से बाते करे और करे भी क्यों ना , शिवाय ने अब बंसी अपने होठो से अलग की 
शगुन- मुझे नहीं पता था तुम्हे इतनी अच्छी बंसी बजानी आती है 
शिवाय- मुझे खुद नहीं पता था 
फिर उन दोनों ने पूजा की और बस चलन को ही थे की एक बुजुर्ग साधू उनके सामने आ गया बोला- तो आ गए मोहन 
शिवाय बुरी तरह से चौंक गया 
शगुन- बाबा, कोई ग़लतफहमी हुई है ये शिवाय है मशहुर बिसनेस मन शिवाय सिंह ओबरॉय 
बाबा- तुम्हारे लिए शिवाय है मेरे लिए मोहन है 
शिवाय की उत्सुकता बढ़ गयी अपने सपनो में भी तो वो मोहन को ही सुनता था कोई पुकारता था मोहन को 
बाबा- ,मोहन उसने बहुत इंतज़ार कर लिया है अब उसे बुला लाओ उसे मुक्त करो इस लम्बी जुदाई से 
शिवाय- बाबा मैं समझ नहीं पा रहा हु कुछ भी 
बाबा- तुम आ गए हो सब जान जाओगे, क्या लगता है जिस पत्थर को महादेव ने स्थापित किया उसे कोई और क्यों नहीं उखाड़ पाया सिवाय तुम्हारे, ये बंसी जिसे तुमने कभी देखा भी नहीं कैसे सीखी बजानी क्यों तुम्हे वो स्वप्न आते है तुम्हारा यहाँ आना पहले से तय था मोहन ,वो शिवाय सिंह ओबरॉय जो एक घूंट भी मिनरल वाटर पीता है क्यों उस धौरे में पानी पी रहा है क्यों 
कैसे तुम अपने आप वहा तक चले गए तुम्हे कैसे पता था की वहा पर पानी होगा 
शिवाय- किस्मत से मैं पहुच गया होऊंगा 
बाबा- किस्मत नहीं नियति क्या उस कीकर के पेड़ को नहीं देखा जो तुम्हारे और मोहिनी के प्रेम का साक्षी रहा है जाओ मोहन जाओ बुलाओ उसे, बहुत सहा है उसने अब उसे मुक्त करो 
शिवाय- मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा बाबा 
बाबा- उसी कीकर के पेड़ के पास जाओ मोहन और तीन बार मोहिनी बोलना और फिर कल इसी मंदिर में आना 
शगुन- शिवाय कही नहीं जायगा शिवाय हमे नहीं देखनी लोकेशन सब मेरी गलती है मुझे तुम्हे यहाँ लाना ही नहीं था 
बाबा- इसकी नियति इसे यहाँ लायी है पुत्री इतिहास में बिछड़े प्रेमियों के मिलने का समय आ गया है मोहन इस पल मोहिनी के हाथो से तुम जल ग्रहण करोगे तुम्हे सब याद आ जायेगा पर अभी तुम जाओ मुक्त करो उसे 
पता नहीं शिवाय पर कैसा असर हुआ बाबा की बात का मंत्रमुग्ध सा वो बढ़ा और जा पंहुचा उसी कीकर के पेड़ के पास और बोला- मोहिनी, मोहिनी मोहिनी आ जाओ मोहिनी आ जाओ 
और वो पेड़ जल उठा धू धू करके चारो तरफ जैसे आग सी लग गयी पर शिवाय भी समझ गया था कुछ तो गड़बड़ है क्या ये पुनर्जन्म का पंगा है हां, ऐसा हो सकता है उसे अजीब सा डर लग रहा था पूरी रात उसे नींद नहीं आई रात आँखों आँखों में कटी उसकी 
अगले दिन वो अकेले ही मंदिर में गया और जैसे ही वो अन्दर गया उसने वहा पर एक लड़की को पूजा करते हुए देखा और शिवाय का दिल जैसे ठहर सा गया ऐसा खूबसूरत चेहरा उसने पहले कभी नहीं देखा था , उसने अपने दिल की धडकनों को आज पहली बार महसूस किया 
कुछ तो बात थी उस लड़की में उसका चांदी जैसा रंग उसके बाल जैसे लहरा रहे थे मोहिनी ने देखा उसे और मुस्कुराई उसके पास आई और बोली- परसाद लो 
शिवाय ने अपने हाथ आगे किये उसकी उंगलिया मोहिनी की उंगलियों से टकराई शिवाय पर जैसे नशा सा हो गया था 
शिवाय- कौन हो तुम 
मोहिनी- तुम्हे नहीं पता क्या 
वो- नहीं जानता 
वो- जान जाओगे मुस्कुराई वो 
मोहिनी- मोहन, तरस गयी हु तुम्हारी बंसी को सुनने की आज मेरा नाचने को जी करता है बजाओ ना मेरे लिए 
मोहिनी ने उसके हाथ में बंसी थमा दी और कैसे मन कर देता उसको वो ना पहले कभी किया था उसने न अब कर सकता था
 
पता नहीं क्यों पर शिवाय ने अपने होंठो पर बंसी लगायी और मोहिनी के पैरो ने ताल खड्काई समय एक बार फिर से तैयार हो गया था खुद को दोहराने को, मोहिनी के खुले बाल हवा में लहरा रहे थे पल पल बीत रहा था और 



साथ ही शिवाय की आँखों में गुजरा हर एक पल जैसे जिवंत होते जा रहा थाजैसे जैसे मोहिनी नाच रही थी उसकी आँखों के आगे हर वो पल आ रहा था हर वो पल जो किसी सदी में उसने गुजारे थे अपनी मोहिनी के साथ 



मोहिनी का चांदी सा रंग धुप में चमक रहा था वो मंदिर का प्रांगन जो साक्षी था उनके प्रेम का आज फिर उसी नज़ारे को देख रहा था धुप में जैसे इन्द्रधनुष के रंग बिखर गए थे मोहिनी खो सी गयी थी अपने मोहन में ख़ुशी में झूम रही थी 



दिल में बस एक तमन्ना की झट से गले लग जाये अपने दिलबर के तो करार आ जाए जैसे जैसे तान चढ़ रही थी शिवाय की आँखों के सामने हर लम्हा गुजर रहा था एक दास्ताँ जो वक़्त की रेत तले कही दब गयी थी 



धुल धीरे धीरे हट रही थी और फिर वो लम्हा भी आया जब उसे सब कुछ याद आ गया की कैसे क्या क्या हुआ था सांसे अब भारी होने लगी बंसी की तान टूटने लगी आँखों से आंसू बह चले हाथ जैसे कांपने लगे थे 



शिवाय अब मोहन बन गया था उअर मोहन को अब कुछ नहीं दिख रहा था सिवाय अपनी मोहिनी के 
“मोहिनी , ” उसे पुकार कर उसने अपनी बाहे फैला दी और आँखों में आंसू लिए वो दौड़ पड़ी अपने दिलबर के पास और समां गयी उसकी बाहों में , वक़्त जैसे एक बार फिर से रुक सा गया था दोनों खामोश थे आंसुओ की नदी बनकर दिल का दर्द बह रहा था 



“बस मोहिनी बस , अब कोई ऐसी ताकत नहीं जो हमे जुदा कर सके बहुत हुआ इंतज़ार अब और नहीं ”मोहिनी की पीठ थपथपाते हुए बोला वो 



मोहिनी बस मुस्कुरा दी , लेट गयी वो उसकी गोद मे सर रख कर मुद्दतो बाद आज जाके उसकी रूह को करार जो आया था , वो महल जो कल तक खंडर हुआ करता था अज वो किसी दुल्हन की तरह सजा था बिलकुल उसी तरह से जैसे की उस दिन सजा था जब दिव्या और मोहन का विवाह निश्चित हुआ था 



वो कर रही थी इंतज़ार अपने मोहन का , उसे आस थी की अब तो मोहन समझेगा उसके प्यार को आज खूस थी वो नाच रही थी गा रही थी बीते वक्त में वो और शक्तिशाली हो गयी थी मायावी हो गयी थी और होती भी क्यों ना 



उसको भी तो आश्रय था , हां, उसको आश्रय मिला था महारानी संयुक्ता का वही महरानी संयुक्ता वो बर्दाश्त नहीं कर सकी थी अपनी बेटी की आत्महत्या को पर उसके मन में लालच था इस लोक का अपनी हवस का सो आगे बढ़ ना पाई थी वो भी और अटक कर रह गयी थी दिव्या के साथ 



जो अपनी हवस की आग में इन बीते लम्हों में कितनी जिन्दगी को लील गयी थी जो भी भुला भटका उस महल में आ निकला उसे ही खा गयी वो पर उसके होंठो पर आज भी वो ही मुस्कान थी और हो भी क्यों ना 



वैसे तो निपट गर्मी का मौसम था पर आज ठण्ड कुछ बढ़ गयी थी भारी दोपहर में भी रामू को जाड़ा सा लग रहा था उसने सोचा की शायद आस पास घने पेड़ है तो इस वजह से ठण्ड है आसमान को देख कर उसे लग रहा था की शाम हो ही गयी है 



पर इसी बात पे उसे अचरज सा हो रहा था थोड़ी देर पहले तो धुप खिली हुई थी पर अचानक से कैसे सांझ ढल गयी उसने अपनी बकरियों को हांका आज वो उनको चराते चराते जंगल में कुछ ज्यादा ही आगे हो लिया था 



आसमान को काले बादलो ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था रामू समझ गया था की तेज बरसात होने वाली है पर गर्मी में ये बिन मौसम बरसात कहा से टपक पड़ी , रामू ने बड़े बुजुर्गो से कई किस्से कहानिया सुनी थी की जंगल में अक्सर भुत-प्रेत अपनी ऐसी ही लीला रच लेते है 



और वो था भी अकेला ही तो उसका जी घबराया प्यास के मारे गले में जलन होने लगी उसने अपनी बोतल देखि एक बूंद भी पानी ना था उसमे ऊपर से बादल कड़क रहे थे रामू ने सोचा की घर निकल लेना चाहिए तो वो अपनी बकरियों को लेकर गाँव की तरफ हुआ 



पर बरसात की रफ़्तार उस से ज्यादा तेज थी पर घर पहुचना भी जरुरी अब गाँव की तरफ दो रस्ते जाते थे एक थोडा दूर पड़ता था दूसरा शॉर्टकट था जिस से दुरी आधी हो जाती थी पर रामू डर रहा था छोटा रास्ता लेने से क्योंकि रस्ते में ही वो महल आता था जिसके बारे में वो बचपन से सुनता आ रहा था


पर तेज बरसात में वो और उसकी बकरिया पूरी तरह से भीग चुके थे तो कुछ सोच कर उसने छोटा वाला रास्ता लिया और तेज तेज चल पड़ा जैसे जैसे महल नजदीक आ रहा था उसकी धड़कने बढ़ गयी थी डर सा लगने लगा था और फिर जैसे ही महल के पास आया उसकी आँखे हैरत से फट गयी
 
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