hotaks444
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राधा की कहानी--6
गतान्क से आगे....................
मुकुल ने अपना लंड मेरे गुदा द्वार पर सटा दिया. "नहीं प्लीज़ वहाँ नहीं" मैने लगभग रोते हुए कहा. मेरी फट जाएगी. प्लीज़ वहाँ मत घुसाओ. मैं तुम दोनो को सारी रात मेरे बदन से खेलने दूँगी मगर मुझे इस तरह मत करो मैं मर जाउन्गि" मैं गिड गीडा रही थी मगर उनपर कोई असर नही हो रहा था. मुकुल अपने काम मे जुटा रहा. मैं हाथ पैर मार रही थी मगर अरुण ने अपने बलिष्ठ बाहों और पैरों से मुझे बिल्कुल बेबस कर दिया था. मुकुलने मेरे नितंबों को फैला कर एक जोरदार धक्का मारा.
"उूुउउइई माआ मर गाईए" मेरी चीख पूरे जंगल मे गूँज गयी. मगर दोनो हंस रहे थे. "सुउुउराअज… .ससुउउराअज मुझे ब्चाआओ….."
"थोड़ा स्बर करो सब ठीक हो जाएगा. सारा दर्द ख़त्म हो जाएगा." मुकुल ने मुझे समझाने की कोशिश की. मेरी आँखों से पानी बह निकला. मैं दर्द से रोने लगी. दोनो मुझे चुप कराने की कोशिश करने लगे. मुकुल ने अपने लंड को कुछ देर तक उसी तरह रखा.
कुछ देर बाद मैं जब शांत हुई तो मुकुल ने धीरे धीरे आधे लंड को अंदर कर दिया. मैने और राज ने शादी के बाद से ही खूब सेक्स का खेल खेला था मगर उसकी नियत कभी मेरे गुदा पर खराब नहीं हुई. मगर इन दोनो ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. मेरी दर्द के मारे जान निकली जा रही थी. दोनो के जिस्म के बीच सॅंडविच बनी हुई च्चटपटाने के अलावा कुछ भी नही कर पा रही थी.
आधा लंड अंदर कर के मुकुल मेरे उपर लेट गया. उसके शरीर के बोझ से बाकी बचा आधा लंड मेरे अशोल को चीरता हुआ जड़ तक धँस गया. ऐसा लग रहा था मानो किसीने लोहे की गर्म सलाख मेरे गुदा मे डाल दी हो. मैं दोनो के बीच सॅंडविच की तरह लेटी हुई थी. एक तगड़ा लंड आगे से और एक लंड पीछे से मेरे बदन मे ठुका हुआ था. ऐसा लग रहा था मानो दोनो लंड मेरे बदन के अंदर एक दूसरे को चूम रहे हों. कुछ देर यूँ ही मेरे उपर लेटे रहने के बाद मुकुल ने अपने बदन को हरकत दे दी. अरुण शांत लेटा हुआ था. जैसे ही मुकुल अपने लंड को बाहर खींचता मेरे नितंब उसके लंड के साथ ही खींचे चले जाते थे. इससे अरुण का लंड मेरी योनि से बाहर की ओर सरक जाता और फिर जब दोबारा मुकुल मेरे गुदा मे अपना लंड ठोकता तो अरुण का लंड अपने आप ही मेरी योनि मे अंदर तक घुस जाता . उस छोटी सी जगह मे तीन जिस्म ग्डमड हो रहे थे. हर धक्के के साथ मेरा सिर गाड़ी के बॉडी से भिड़ रहा था. गनीमत थी कि साइड मे कुशन लगे हुए थे वरना मेरे सिर मे गूमड़ निकल आता. मुकुल के मुँह से "हा…हा…हा" जैसी आवाज़ हर धक्के के साथ निकल रही थी. उसके हर धक्के के साथ ही मेरे फेफड़े की सारी हवा निकल जाती और फिर मैं साँस लेने के लिए उसके लंड के बाहर होने का इंतेज़ार करती.मैं दोनो के बीच पिस रही थी. मैं भी मज़े लेने लगी. बीस पचीस मिनट तक मुझे इस तरह चोदने के बाद एक साथ दोनो डिसचार्ज होगये. मेरे भी फिर से उनके साथ ही डिसचार्ज हो गया. इस ठंड मे भी हम पसीने से बुरी तरह भीग गये थे.मेरा पूरा बदन गीला गीला और चिपचिपा हो रहा था. दोनो छेदो से वीर्य टपक रहा था.
तीनों के "आआआअहह ऊऊऊहह" से पूरा जंगल गूँज रहा था.
अरुण तो चोद्ते वक़्त गंदी गंदी गालियाँ निकालता था. हम तीनो बुरी तरह हाँफ रहे थे. मैं काफ़ी देर तक सीट पर अपने पैरों को फैलाए पड़ी रही.
मुझे दोनो ने सहारा देकर उठाया. मेरे जांघों के जोड़ पर आगे पीछे दोनो तरफ ही जलन मची हुई थी. दोनो के बीच मैं उसी हालत मे बैठ गयी. दोनो के साथ सेक्स होने के बाद अब और शर्म की कोई गुंजाइश नही बची थी. दोनो मेरे नग्न बदन को चूम रहे थे और अश्लील भाषा मे बातें करते जा रहे थे. दोनो के लंड सिकुड कर छोटे छोटे हो चुके थे.
कुछ देर बाद मुकुल ने पीछे से एक बॉक्स से कुछ सॅंडविच निकाले जो शायद अपने लिए रखे थे. हम तीनों ने उसी हालत मे आपस मे मिल बाँट कर खाया. पानी के नाम पर तो बस रम की बॉटल ही आधी बची थी. मुझे मना करने पर भी उस बॉटल से दो घूँट लेने परे. दो घूँट पीते ही कुछ देर मे सिर घूमने लगा और बदन काफ़ी हल्का हो गया. मैने अपनी आँखें बंद कर ली. मैं इस दुनिया से बेख़बर थी. तभी दोनो साइड के दरवाजे खुलने और बंद होने की आवाज़ आई. मगर मैने अपनी आँखें खोल कर देखने की ज़रूरत भी महसूस नही की. मैं उसी हालत मे अपनी नग्नता से बेख़बर गाड़ी की सीट पर पसरी हुई थी.
कुछ देर बाद वापस गाड़ी का दरवाजा खुला और मेरी बाँह को पकड़ कर किसीने बाहर खींचा. मैने अपनी आँख खोल कर देखा की सड़क के पास घास फूस इकट्ठा करके एक अलाव जला रखा है.
पास ही उस फटी हुई चादर को फैला कर ज़मीन पर बिच्छा रखा था. उस चादर पर अरुण नग्न हालत मे बैठा हुआ शायद मेरा ही इंतेज़ार कर रहा था. मुकुल मुझे खींच कर अलाव के पास ले जा रहा था. मैं लड़खड़ाते हुए कदमो से उसके साथ खींचती जा रही थी. दो बार तो गिरने को हुई तो मुकुल ने मेरे बदन को सहारा दिया. उसके नग्न बदन की चुअन अपने नंगे बदन पर पा कर मुझे अब तक की पूरी घटना याद आ गयी. मैं उसके पंजों से अपना हाथ छुड़ाना चाहती थी मगर मुझे लगा मानो बदन मे कोई जान ही नही बची है.
गतान्क से आगे....................
मुकुल ने अपना लंड मेरे गुदा द्वार पर सटा दिया. "नहीं प्लीज़ वहाँ नहीं" मैने लगभग रोते हुए कहा. मेरी फट जाएगी. प्लीज़ वहाँ मत घुसाओ. मैं तुम दोनो को सारी रात मेरे बदन से खेलने दूँगी मगर मुझे इस तरह मत करो मैं मर जाउन्गि" मैं गिड गीडा रही थी मगर उनपर कोई असर नही हो रहा था. मुकुल अपने काम मे जुटा रहा. मैं हाथ पैर मार रही थी मगर अरुण ने अपने बलिष्ठ बाहों और पैरों से मुझे बिल्कुल बेबस कर दिया था. मुकुलने मेरे नितंबों को फैला कर एक जोरदार धक्का मारा.
"उूुउउइई माआ मर गाईए" मेरी चीख पूरे जंगल मे गूँज गयी. मगर दोनो हंस रहे थे. "सुउुउराअज… .ससुउउराअज मुझे ब्चाआओ….."
"थोड़ा स्बर करो सब ठीक हो जाएगा. सारा दर्द ख़त्म हो जाएगा." मुकुल ने मुझे समझाने की कोशिश की. मेरी आँखों से पानी बह निकला. मैं दर्द से रोने लगी. दोनो मुझे चुप कराने की कोशिश करने लगे. मुकुल ने अपने लंड को कुछ देर तक उसी तरह रखा.
कुछ देर बाद मैं जब शांत हुई तो मुकुल ने धीरे धीरे आधे लंड को अंदर कर दिया. मैने और राज ने शादी के बाद से ही खूब सेक्स का खेल खेला था मगर उसकी नियत कभी मेरे गुदा पर खराब नहीं हुई. मगर इन दोनो ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. मेरी दर्द के मारे जान निकली जा रही थी. दोनो के जिस्म के बीच सॅंडविच बनी हुई च्चटपटाने के अलावा कुछ भी नही कर पा रही थी.
आधा लंड अंदर कर के मुकुल मेरे उपर लेट गया. उसके शरीर के बोझ से बाकी बचा आधा लंड मेरे अशोल को चीरता हुआ जड़ तक धँस गया. ऐसा लग रहा था मानो किसीने लोहे की गर्म सलाख मेरे गुदा मे डाल दी हो. मैं दोनो के बीच सॅंडविच की तरह लेटी हुई थी. एक तगड़ा लंड आगे से और एक लंड पीछे से मेरे बदन मे ठुका हुआ था. ऐसा लग रहा था मानो दोनो लंड मेरे बदन के अंदर एक दूसरे को चूम रहे हों. कुछ देर यूँ ही मेरे उपर लेटे रहने के बाद मुकुल ने अपने बदन को हरकत दे दी. अरुण शांत लेटा हुआ था. जैसे ही मुकुल अपने लंड को बाहर खींचता मेरे नितंब उसके लंड के साथ ही खींचे चले जाते थे. इससे अरुण का लंड मेरी योनि से बाहर की ओर सरक जाता और फिर जब दोबारा मुकुल मेरे गुदा मे अपना लंड ठोकता तो अरुण का लंड अपने आप ही मेरी योनि मे अंदर तक घुस जाता . उस छोटी सी जगह मे तीन जिस्म ग्डमड हो रहे थे. हर धक्के के साथ मेरा सिर गाड़ी के बॉडी से भिड़ रहा था. गनीमत थी कि साइड मे कुशन लगे हुए थे वरना मेरे सिर मे गूमड़ निकल आता. मुकुल के मुँह से "हा…हा…हा" जैसी आवाज़ हर धक्के के साथ निकल रही थी. उसके हर धक्के के साथ ही मेरे फेफड़े की सारी हवा निकल जाती और फिर मैं साँस लेने के लिए उसके लंड के बाहर होने का इंतेज़ार करती.मैं दोनो के बीच पिस रही थी. मैं भी मज़े लेने लगी. बीस पचीस मिनट तक मुझे इस तरह चोदने के बाद एक साथ दोनो डिसचार्ज होगये. मेरे भी फिर से उनके साथ ही डिसचार्ज हो गया. इस ठंड मे भी हम पसीने से बुरी तरह भीग गये थे.मेरा पूरा बदन गीला गीला और चिपचिपा हो रहा था. दोनो छेदो से वीर्य टपक रहा था.
तीनों के "आआआअहह ऊऊऊहह" से पूरा जंगल गूँज रहा था.
अरुण तो चोद्ते वक़्त गंदी गंदी गालियाँ निकालता था. हम तीनो बुरी तरह हाँफ रहे थे. मैं काफ़ी देर तक सीट पर अपने पैरों को फैलाए पड़ी रही.
मुझे दोनो ने सहारा देकर उठाया. मेरे जांघों के जोड़ पर आगे पीछे दोनो तरफ ही जलन मची हुई थी. दोनो के बीच मैं उसी हालत मे बैठ गयी. दोनो के साथ सेक्स होने के बाद अब और शर्म की कोई गुंजाइश नही बची थी. दोनो मेरे नग्न बदन को चूम रहे थे और अश्लील भाषा मे बातें करते जा रहे थे. दोनो के लंड सिकुड कर छोटे छोटे हो चुके थे.
कुछ देर बाद मुकुल ने पीछे से एक बॉक्स से कुछ सॅंडविच निकाले जो शायद अपने लिए रखे थे. हम तीनों ने उसी हालत मे आपस मे मिल बाँट कर खाया. पानी के नाम पर तो बस रम की बॉटल ही आधी बची थी. मुझे मना करने पर भी उस बॉटल से दो घूँट लेने परे. दो घूँट पीते ही कुछ देर मे सिर घूमने लगा और बदन काफ़ी हल्का हो गया. मैने अपनी आँखें बंद कर ली. मैं इस दुनिया से बेख़बर थी. तभी दोनो साइड के दरवाजे खुलने और बंद होने की आवाज़ आई. मगर मैने अपनी आँखें खोल कर देखने की ज़रूरत भी महसूस नही की. मैं उसी हालत मे अपनी नग्नता से बेख़बर गाड़ी की सीट पर पसरी हुई थी.
कुछ देर बाद वापस गाड़ी का दरवाजा खुला और मेरी बाँह को पकड़ कर किसीने बाहर खींचा. मैने अपनी आँख खोल कर देखा की सड़क के पास घास फूस इकट्ठा करके एक अलाव जला रखा है.
पास ही उस फटी हुई चादर को फैला कर ज़मीन पर बिच्छा रखा था. उस चादर पर अरुण नग्न हालत मे बैठा हुआ शायद मेरा ही इंतेज़ार कर रहा था. मुकुल मुझे खींच कर अलाव के पास ले जा रहा था. मैं लड़खड़ाते हुए कदमो से उसके साथ खींचती जा रही थी. दो बार तो गिरने को हुई तो मुकुल ने मेरे बदन को सहारा दिया. उसके नग्न बदन की चुअन अपने नंगे बदन पर पा कर मुझे अब तक की पूरी घटना याद आ गयी. मैं उसके पंजों से अपना हाथ छुड़ाना चाहती थी मगर मुझे लगा मानो बदन मे कोई जान ही नही बची है.