non veg kahani व्यभिचारी नारियाँ - SexBaba
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non veg kahani व्यभिचारी नारियाँ

hotaks444

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व्यभिचारी नारियाँ

चेतावनी . यह कहानी काल्पनिक है और केवल वयस्कों के लिये है सिर्फ पढ़ कर मनोरंजन मात्र के लिये है। वास्तविक्ता में इस तरह की काम-क्रिड़ाओं से मानसिक व शारिरिक हानि हो सकती है और कृत्य के लिये आप स्वयं दोषी होंगे और इस काल्पनिक कथा के रचयिता का कोई उत्तरदायित्व नहीं होगा।



दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राजशर्मा आपके लिए एक और मस्त कहानी लेकर हाजिर हूँ दोस्तो वैसे तो मैं दो कहानियाँ पहले से ही पोस्ट कर रहा हूँ तो सोचा तीसरी कहानी भी शुरू कर देता हूँ तो दोस्तो हाजिर है एक तड़कती फड़कती मस्त कहानी ....................


दोस्तो लेकिन ये कहानियाँ आपके सहयोग से ही आगे बढ़ेंगी जब तक आपके कमेंट मिलते रहेंगे कहानी बढ़ती रहेंगी कमेंट बंद कहानी बंद
 
टीपू उस आलिशान कमरे के एक कोने में, कालीन बिछे फर्श पर सिकुड़ कर बैठा हाँफ रहा था और उसकी लंबी लाल जीभ उसके जबड़े के किनारे से बाहर लटक रही थी। ये काले रंग का विशाल डोबरमैन कुत्ता थका हुआ लग रहा था और ये थकान बाहर फार्म में खरगोशों के पीछे भागने से नहीं थी बल्कि इसलिये थी क्योंकि उसके लंड और आँड ज़ाहिर रुप से अभी-अभी ही निचोड़ कर खाली किये गये थे। उसके आँड उसकी टाँगों के बीच में सिकुड़े हुए थे और उसका लंबा लंड फर्श पर लटका हुआ था। उसके लाल लंड का अग्रभाग अभी भी उसके बालों से ढके खोल में से बाहर झाँक रहा था और उसका नंगा लाल लंड उसके वीर्य से सना हुआ था। उसके चमचमाते वीर्य का एक नाज़ुक सी डोरी उसके लंड की नोक से कालीन पर गिरे उसके वीर्य के ढेर से मिल रही थी। ये विशाल कुत्ता थक कर चूर था पर अभी सो नहीं रहा था। उसकी आँखें खुली हुई थी और उसका एक कान चौकन्ना होकर खड़ा था और उसकी काली नाक उत्तेजना से हल्की सी फड़क रही थी। टीपू स्वयं तो खाली हो गया था पर उसका ध्यान अभी भी कमरे के बीच में बिस्तर पर चल रही गतिविधि पर था, जहाँ औरंगजेब अपनी बारी आने पर उसकी मालकिन को चोद रहा था।

कमरे के बिल्कुल पीछे बने छप्पर से कुल्हाड़ी चलने की आवाज़ लगातार आ रही थी और शाजिया ख़ान जानती थी कि कुल्हाड़ी की आवाज़ के आते रहने का मतलब था कि उसका अरदली अभी भी लकड़ियाँ चीर रहा था और इस बात का खतरा नहीं था कि वो घर के अंदर आ कर बेडरूम के दरवाजे के बाहर से उसे वो करते हुए सुन या देख लेगा जो शाजिया को बहुत प्यारा था - कुत्तों से अपनी चूत चुदवाना और गाँड मरवाना। ।

शाजिया का पति भारतीय वायु सेना में विंग कमाँडर था और आजकल उसकी पोस्टिंग पूर्वी सीमा पर थी। हिमाचल में शिवालिक की पहाड़ियों में कसौली के पास उनका पुश्तैनी ५ फार्म हाउज़ था और शाजिया ज्यादातर यहीं अकेली रहती थी क्योंकि यहाँ एकाँत में वो । गोपनियता से कुत्तों से चुदवा सकती थी। पहले जब वो शहर में अपने पति के साथ रहती थी तो कई मर्दो से उसके नाजायज़ संबंध थे क्योंकि प्रकृति से ही वो चुदक्कड़ थी। लेकिन पिछले दो साल से उसे कुत्तों के लंड ज्यादा भाते थे। वैसे भी उसे वायूसेना की कई सुविधायें जैसे कि सरकारी जीप, अरदली इत्यादि उपलब्ध थीं। कुत्तों के अलावा । उसने अरदली और अन्य कामगारों से भी संबंध बना लिये थे पर कोई नहीं जानता था कि शाजिया कुत्तों से चुदवाती है। फार्म पर उसके साथ चौबीसों घंटे रहने वाला उसका अरदली, राज भी नहीं।


अभी कुछ देर पहले ही पास की छावनी के क्लब में एक पार्टी से नशे में शाजिया लौटी थी। एक ऑफिसर का ड्राइवर, शाजिया को और उसकी जीप को फार्म तक छोड़ गया था। अपने आलिशान बेडरूम में पहुँच कर उसने अरदली राज को बेडरूम के फॉयर-प्लेस में लकड़ी डाल कर आग जलाने को कहा था। उस समय कुछ ही लकड़ियाँ कटी हुई थी | जिनसे राज ने आग शुरू की। चूंकि इतनी लकड़ियाँ अधिक समय नहीं चल सकती थी, इसलिए राज घर के पीछे बने छप्पर में लकड़ियाँ काटने चला गया।
 
शाजिया की चूत में तो आग लगी ही हुई थी और ये मौका भी अच्छा था। राज के बाहर जाते ही शाजिया टीपू को पहले बुलाया और कपड़े उतार कर वहीं कालीन पर अपने हाथों और घुटनों के बल झुक गयी थी। फिर उसने टीपू को अपनी पीठ और चूतड़ों पर चढ़ा कर अपनी चूत में उसे धुंआधार चुदाई के लिए फुसला लिया था। जब तक टीपू शाजिया की चूत में अपना लंड पेलता रहा तब तक औरंगजेब भी भौंकता हुआ, अपना कठोर लंड झुलाता उनके इर्द-गिर्द उछलता हुआ बेसब्री से अपन अपने अवसर की। प्रतीक्षा करने लगा। बीच-बीच में औरंगजेब कभी शाजिया का मुँह चाटता और कभी शाजिया के पीछे जा कर उसके सैंडलों और पैरों को चाटने लगता। शाजिया के पैर और हाई-हील वाले सैंडल, औरंगजेब के थूक से सराबोर हो गये थे।


जैसे ही टीपू ने अपने टट्टों का सारा माल शाजिया की चूत में खाली किया था, शाजिया उसका लंड अपनी चूत में से निकाल कर खड़ी हो गयी थी। फिर औरंगजेब के थूक से भीगे सैंडल पहने हुए ही बिस्तर पर आ गयी थी जहाँ वो इस समय औरंगजेब से दूसरी मुद्रा में अपनी पीठ के बल लेट कर चुदवा रही थी। औरंगजेब भी टीपू जैसा ही बड़ा और काले रंग । का था और वैसा ही जोशिला और ताकतवर था।

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शाजिया का सुंदर और सुडौल बदन बिस्तर पर पसरा हुआ था, उसकी कमर कमान की तरह मुड़ी थी और उसके घुटने मुड़े हुए थे। शाजिया की लजीज़ जाँधे, चोदते हुए कुत्ते के दोनों तरफ फैली हुई थीं और उसने अपने कुल्हे ऊपर को ठेले हुए थे जिससे कि उस चुदक्कड़ कुत्ते का लंड पूर्णतः उसकी चूत मे समा सके। शाजिया के काले, लंबे घने बाल बिस्तर पर । फैल गये थे और उसके मादक रसीले होठों पर आनंदमय मुस्कान और सिसकारियाँ थी।


औरंगजेब की चुदाई कि ताल बाहर कुल्हाड़ी की आवाज़ के साथ सध गयी लगती थी। । “खट... खट... खट’ कुल्हाड़ी की आवाज़ आती जब कुल्हाड़ी की तेज़ धार लकड़ी के लट्ठों को टुकड़ों में चीरती और जब भी बाहर यह लकड़ी चीरने की आवाज़ ठंडी और तेज़ हवा को चीरती, तो औरंगजेब अपना लंड नशे और वासना में चूर शाजिया की चूत में इतनी ताकत से ठेलता कि उसका लंड भी शाजिया की चूत को दो हिस्सों में चीरता हुआ प्रतीत होता।।


लेकिन शाजिया की लचीली चूत भी उस चीते के आकार के कुत्ते का पूरा लंड लेने में सक्षम थी, जितना भी वो उसकी चूत में ठेल सकता था। शाजिया को तो बस चूत में विशाल पश्विक लौड़े की चाह थी।


- स्वयं भी किसी जानवर की तरह ही सिसकती और रिरियाती हुई शाजिया उस कुत्ते के धक्कों का उतने ही आवेश और ताकत से जवाब दे रही थी। जैसे ही वो कुत्ता अपना लंड उसकी चूत में कूटता, शाजिया भी अपनी सैंडलों की ऐड़ियाँ बिस्तर में गड़ाकर अपनी चूत आगे ढकेल देती और जब वो अपना लंड बाहर खींचता तो शाजिया भी अपने भारी चूत्तड़ घुमा-घुमाकर अपनी चूत उस खिसकते हुए लंड पर मरोड़ते हुए अंदर-बाहर के घर्षण में । और भी रगड़ उत्पन्न कर देती।
 
“ओहहह” शाजिया चींखी और उसने अपने चूत्तड़ हवा में उठा दिये जब औरंगजेब ने विशेष धक्का लगाकर अपना लंड उसकी चूत की गहराइयों में ठेला।

शाजिया की चूत के आसपास का हिस्सा उसकी चूत से बाहर बह रहे चूत-रस के झाग से भीग गया था। जब भी वो कुत्ता अपना लंड शाजिया की चूत में ठाँसता, तो और भी ज्यादा चूत-रस बह कर बाहर निकल आता। चूत से निकला वो चिकना रस शाजिया की झटकती आ जाँघों से बहता हुआ उसकी गाँड के छिद्र में रिस रहा था।


शाजिया ने अपनी कमर उठा कर अपनी चिकनी जाँचें कुत्ते की झबरी पिंडलियों पर जकड़ लीं और फिर से अपनी टाँगें चड़ी खोल कर अपनी चूत में लंड ठेलते हुए उस जोशीले कुत्ते को खुली छूट दे दी। कुत्ते का लाल रंग का भारी लंड जड़ तक शाजिया की चूत में लुप्त हो गया। ढेर सारे वीर्य से लबालब भरे हुए उस कुत्ते के ठोस और बड़े आँड शाजिया की गाँड पे टकराने लगे।


फिर उसने अपना लंड इतना बाहर खींचा कि सिर्फ उसके लंड का दहकता, गर्म, आगे का । हिस्सा ही शाजिया की चूत में घुसा था। उसके लंड की डाली चूत-रस से भीगी हुई थी। और वो चूत-रस लंड की शाख पर मोतियों की डोरी जैसा जगमगा रहा था। औरंगजेब ने फिर अपना लंड अंदर ठेला तो शाजिया की चूत से गाढ़ा सा मलाईदार रस निकला और उसके झटकते कुल्हों पे फैल गया और उस पदार्थ की धारा उसकी चिकनी जाँघो से नीचे बहने लगी


शाजिया की ठोस गाँड दाँये-बाँये झूलने लगी और उसका सपाट चिकना पेट ऊपर-नीचे उठने लगा। उसकी चूत तो जैसे कुत्ते के व्यग्र चोदू लंड पर पिघलने लगी थी। शाजिया अभी एक बार पहले झड़ चुखी थी जब सुल्तन ने फर्श पर उसकी पीठ पर चढ़ कर कुत्तिया । बना के चोदा था और अब वो फिर से औरंगजेब के महाकाय लंड पर झड़ने को तैयार थी। शाजिया उन खुशकिस्मत औरतों में से थी जो बार-बार बिना रुके झड़ सकती थी, जब तक कि उसकी चूत में एक कड़क लंड धड़कता और चोदता रहे - फिर वो लंड चाहे इंसान का हो या किसी जानवर का।


औरंगजेब के पाशविक अंगों में रोमँच और जोश बढ़ने लगा तो वो और भी फुर्ती से शाजिया को चोदने लगा। वो भौंकते हुए बीच-बीच में कराह रहा था। उसके बड़े बड़े चमकते हुए सफ़ेद दाँत उजागर हो रहे थे और उसके जबड़ों से उसकी राल टपक कर शाजिया की चूचियों और पेट पर गिर रही थी।

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शाजिया के कानों में खून तेजी से दौड़ने लगा और उसका दिल प्रचंडता से धड़कने लगा जब उन्माद और उत्तेजना की लहर उसके बदन में से दौड़ती हुई उसकी थरथराती जाँघों और फिर उसकी चूत में बिजली के करंट की तरह प्रवाहित होने लगी।
 
शाजिया के कानों में खून तेजी से दौड़ने लगा और उसका दिल प्रचंडता से धड़कने लगा जब उन्माद और उत्तेजना की लहर उसके बदन में से दौड़ती हुई उसकी थरथराती जाँघों और फिर उसकी चूत में बिजली के करंट की तरह प्रवाहित होने लगी।


मगर शाजिया का कुछ ध्यान बाहर लकड़ियों को चीरती कुल्हाड़ी की आवाज़ पर भी था। वो अपनी चुदाई पर पूरी तरह एकाग्र नहीं हो पा रही थी क्योंकि वो अपनी उत्तेजना में दरवाजे की चिटकनी बंद करना भूल गयी थी। दरवाजा सिर्फ ऐसे ही ढका हुआ था और वो जानती थी कि बहुत ही शर्मनाक स्थिति होगी अगर उसका अरदली, राज, फॉयरप्लेस में डालने के लिये लकड़ियाँ ले कर दरवाजा खोलकर अंदर आ गया और शाजिया को अपनी चूत में कुत्ते का लंड लिये हुए चुदवाते हुए देख लिया। वो शायद समझ नहीं आ पायेगा और अगर उसने शाजिया के इस शौक का पर्दाफाश कर दिया तो उसकी ज़िंदगी नर्क बन जायेगी।


चाहे वो यहाँ अलग-थलग फार्म में रहती थी मगर फिर भी सामाजिक तौर पर काफी सक्रिय थी। पास की छावनी में आर्मी से संबंधित, ‘अफवा' जैसी कई कल्याण संगठनों की वो सक्रिय सदस्या थी। कई आर्मी अफसरों की बीवियों से उसका मेल जोल था और छावनी में आयोजित पार्टियों और अन्य आयोजनों में उसका हर रोज़ का आना जाना था। कुत्तों से उसके शारिरिक संबंध अगर उसके परिचित लोगों पर उजागर हो गये तो उसकी बहुत बदनामी होगी और वो कानूनी शिकंजे में भी फंस सकती थी।



औरंगजेब का लंड उसकी रसीली चूत में फुफकार रहा था और दलदल में फिसलती पनडुब्बी कि तरह शाजिया की चूत की चिकनी सुरंग में सरक रहा था। उसके लंड का मोटा सुपाड़ा शाजिया की चूत के मलाईदार गाढ़े रस में गोते से लगा रहा था। जब औरंगजेब पीछे की तरफ झटका लेता तो उसके लंड पे जकड़े शाजिया की चूत के होंठ लंड के साथ खिंच जाते। और ऐसा लगता जैसे कि चूत पलट कर उल्टी हो गयी हो।।



उधर कुल्हाड़ी लकड़ी के लट्टे पर ढक’ से पड़ी और कुत्ते का लट्टे जैसा लंड शाजिया की चूत में ढक’ से पड़ा। औरंगजेब ऐसे हाँफ रहा था जैसे कि भाप का इंजन धड़क रहा हो और शाजिया उससे भी जोर से हाँफ रही थी। शाजिया के फेफड़ों के फैलने से उसकी भारी और ठोस चूचियाँ ऊपर ऊठ कर फूल गयी थीं और उसके कडक़ गुलाबी निप्पल बाहर तन कर किसी वॉल्व की तरह ऐसे खड़े थे जैसे कि उनके द्वारा चूचियों में हवा भरी गयी हो। औरंगजेब भौंक रहा था और शाजिया भी जोर-जोर से सिसक रही थी। औरंगजेब अब शाजिया को इतनी तेजी से चोद रहा था कि कुल्हाड़ी की हर आवाज़ के बीच में उसका लंड कम-से-कम दो बार शाजिया की चूत में ठूस रहा था।
 
अब शाजिया को लगा कि अब जल्दी ही कुत्ते का वीर्य अपनी चूत में निचोड़ लेना चाहिए क्योंकि राज का लकड़ियाँ चीरने का काम कहीं पूरा ना होने वाला हो। वो अपने अनुभवों से जानती थी कि एक बार कुत्ते का लंड उसकी चूत में खिंच कर अटक गया तो उसे पूरा झड़ने के पहले चूत से निकालना नामुमकिन होगा। वैसे उसे अपनी चूत में उन कुत्तों के लंड के फँसने में बहुत मज़ा आता था क्योंकि उसे कुत्ते के वीर्य से भरी चूत बहुत पसंद थी।


औरंगजेब इतनी जोर-जोर से अपना लंड पेल रहा था कि बालों से ढके उसके पुट्टे काला धब्बा-सा लग रहे थे। जब वो वो अपना लंड अंदर को ठाँसता तो उसकी रीड़ ऐंठ कर मूड़ सी जाती। शाजिया को इस चुदाइ में बहुत ही मज़ा आ रहा था और वो इसे जारी रखना चाहती थी लेकि वो जानती थी कि इस चुदाई को सुखद रूप से अंत करना ज्यादा बेहतर होगा, क्योंकि राज के अक्समत लौट कर दरवाजा खटखटाने या सीधे अंदर ही आ जाने से चरमानंद में दखल पड़ता।


शाजिया पूरी निपुणता से कुत्ते के लंड को चोदने लगी। उसकी चूत की भीगी दीवारें कुत्ते के लंड के सुपाड़े और डंडे के हर बहुमुल्य हिस्से पर जकड़ कर चिपक गयीं। उसकी चूत की पेशियाँ कुत्ते के लंड को कस के जकड़ के दुहने लगीं।


जब शाजिया की चूत उसके लंड को कस कर निचोड़ने लगी तो औरंगजेब मस्ती में भौंकने और गुर्राने लगा। वो जोर-जोर से लंबे झटकों के साथ अपना लंड शाजिया की चूत में हाँकने लगा और उसके आँड, हवा भरे गुब्बारों की तरह झूल रहे थे। उसका लंड चूत के अंदर फूलने लगा तो शाजिया समझ गयी कि अब किसी भी क्षण वो कुत्ता अपना वीर्य उसकी चूत में छोड़ सकता है। शाजिया ने अपने कुल्हों को झटक कर अपनी चूत में लंड के प्रवेश का । ऐंगल बदला ताकि अंदर बाहर होते हुए उस लोहे जैसे सख्त लंड की डाली का हर हिस्सा उसकी दहकती क्लिट पर रगड़े। वो खुद भी झड़ने की कगार पर थी लेकिन उसने खुद को रोका हुआ था क्योंकि वो झड़ने से पहले कुत्ते का वीर्य-रस अपनी चूत में छुटता हुआ महसूस करना चाहती थी।


शाजिया का चेहरा निपट उत्तेजना और उन्माद से ऐंठा हुआ था, आखें सिकुड़ गयी थीं और उसके होंठ ढीले पड़ कर काँप रहे थे। उसकी पलकें फड़फड़ाने लगी और उसकी जीभ की नोक उसके खुले होंठों के बीच से बाहर सरक आयी। वो कुत्ता-चोद औरत इस समय जन्नत में थी।
 
कम ऑन,” शाजिया सिसकी, “दाग दे अपने लंड का माल मेरी चूत में... साले... कुत्तिया की बेवकूफ औलाद”



औरंगजेब भी आज्ञाकारी कुत्ता था। वो भेड़िये की तरह चींखा और उसके भारी आँड जैसे फट पड़े हों। उबलता हुआ गाढ़ा वीर्य उसके लंड में से वेग से दौड़ता हुआ उसके मूत-छिद्र से मलाईदार सैलाब की तरह छुटने लगा और शाजिया की चूत कुत्ते के गरम वीर्य से लबालब भरने लगी।


“आआआआआईईईईईईईईई” शाजिया उन्माद में जोर से चीखने लगी। अपनी दहकती चूत मे गिरते हुए कुत्ते का लंड शाजिया को इतना गर्म और गाढ़ा लग रहा था जैसे पिघला हुआ सीसा हो। शाजिया की चूत भी कुत्ते के लंड पर ऐसे पिघलने लगी जैसे कि जलती हुई बाती पर मोमबत्ती का मोम पिघलता है।


औरंगजेब उसे निरंतर चोदता रहा और हर धक्के के साथ और वीर्य अंदर छोड़ देता। शाजिया के बदन में भी जब चरमानंद की लहर दौड़ने लगी तो वो भी कुत्ते के नीचे झटके खाने लगी और उसकी गाँड और चुत्तड़ प्रचंडता से थिरकते हुए नृत्य करने लगे। असीम उन्माद की कई सारी ऊंची लहरें तेज़ी से शाजिया के बदन में दौड़ने लगीं और फिर जैसे आपस में मिल कर एक ठोस रस्सी में बदल गयी और उसकी चूत को चीरने लगी।


ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वो कुत्ता शाजिया की चूत में झड़ना बंद ही नहीं करेगा। उसके आँड जैसे अथाह थे और उसका वीर्य अनंत।

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औरंगजेब जोर से भौंका और अपनी ताल खो दी। उसकी पिछली टाँगें डगमगाने लगीं और शाजिया की चूत में उसके धक्के भी रह-रहकर डावांडोल होने लगे। उसका एक झटका चूकता, फिर वो दो झटके लगाता और फिर अगला चूक जाता। उसके आँड अब नीचे लटकने लगे थे जैसे कि पिचकी हुई थैलियाँ हों जो अभी-अभी शाजिया की चूत में खाली हुई थीं। शाजिया की उठी हुई गाँड पर पहले की तरह चोट मारने की जगह अब वो आँड झूल रहे थे।
 
उसका लंड अभी भी सख्त था और शाजिया की चूत में चुदाई जारी रखे हुए था लेकिन उसका वीर्य अब खत्म हो चुका था। हाँफता और राल टपकाता हुआ वो सुस्त पड़ने लगा।


शाजिया अपनी चूत को उसके लंड पर चोदना जारी रखती हुई अपनी चूत के उन्माद की। बची हुई ऐंठन मिटा रही थी और वीर्य के मोतियों की चंद आखिरी बँदें निचोड़ रही थी। जब औरंगजेब बिल्कुल रुक गया तो शाजिया ने अपने सैंडल की ऊँची ऐड़ी बिस्तर में गड़ाकर उसके सहारे अपनी चूत कुत्ते के अचल लंड की जड़ तक ठोक दी और चूत की दीवारों को लंड पर स्पंदित करके वीर्य के बचे हुए कतरे दुहने लगी और अपनी क्लिट की अंतिम मीठी-सी सनसनाहट मिटाने लगी।


शाजिया ने वापस खुद को बिस्तर पर पीठ के बल गिरा दिया और अपनी बाँहें और टाँगें फैला कर पसर गयी। उसकी आँखें फड़फड़ा रही थीं और वो स्वप्नमय तृप्ति से मुस्कुरा रही थी।

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कुत्ते ने अपना व्यय हुआ लंड शाजिया की चूत से धीरे से बाहर खींचा। एक आखिरी लंबे क्षण के लिये उसके लंड को चूत मे पकड़ कर निचोड़ते हुए शाजिया की चूत की फाँकों ने उसके लंड को नंगी गाँठ के बिल्कुल पीछे से गिरफ्तार कर लिया। फिर उसने वो लंड रिहा कर दिया। कुत्ते के लंड की मोटी-सी गाँठ तड़ाक करके चूत में से बाहर निकली जैसे शैंपेन की बोतल से डाट छूटती है। औरंगजेब धीमे से कराह कर बिस्तर से नीचे कूद गया। उसका लंड अभी भी ऊपर-नीचे हिचकोले खा रहा था और अभी भी अर्ध-सख्त था लेकिन उसके आँड बिल्कुल मुझ गये थे। लंड के छोर से उसके वीर्य और शाजिया की चूत का रस कालीन पर टपक रहा था।
 
शाजिया लालसा से टकटकी लगाये उसे घूरती हुई मुस्कुराने लगी। वो अच्छी तरह जानती थी कि ज़रा सा चूस कर वो उस भयानक लंड को वापिस दनदनाता छड़ बना सकती थी। फिर उसने कमरे के कोने में टीपू की तरफ नज़र घुमायी और देखा कि कुछ देर पहले निचुड़ा हुआ उसका लंड नवीन जोश और ताकत का आशाजनक संकेत दे रहा था।
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शाजिया की इच्छा हुई कि काश उसके पास इन दोनों कुत्तों को फिर से चोदने का समय होता। लेकिन तभी कुल्हाड़ी के आखिरी वार की आवाज़ आयी और उसके बाद बाहर सन्नाटा हो गया। शाजिया ने खुद को समझाया कि उसे कुत्तों से चुदवाने के लिये अगले आ मौके का इंतज़ार करना पड़ेगा।

अपनी इस गुप्त और विकृत चुदाई के मलाईदार प्रमाण को छिपाने के लिये शाजिया ने । बिस्तर से उतर कर अपने नंगे सुडौल बदन पर छोटा सा रेश्मी गाऊन डाल लिया। कुत्तों के गाढ़े वीर्य और उसकी खुद की चूत के रस के मिश्रण ने उसकी चूत पर झाग सा फैला रखा था और उसकी भीतरी आँघों को भी भिगो रखा था। इसे छिपाने के लिए शाजिया ने गाऊन के फ्लैप अपने चारों ओर खींच लिए। उसे महसूस हो रहा था जैसे कि उसका बदन गाऊन के नीचे दमक रहा था। जब वो चली तो उसे लगा कि वो अपनी चूत में | कुत्तों के वीर्य की 'पिच पिच' सुन सकती थी।

‘चूतिये साले' शाजिया ने मन में कहा। “इन चोद कुत्तों ने कम से कम एक बाल्टी वीर्य तो मेरी चूत में आज डाल ही दिया होगा। अगर कुत्ते का वीर्य हवा से हल्का होता तो मैं अभी बादलों में उड़ रही होती। इसी लिए तो कुत्तों की खुराक का खास ख्याल रखा जाता था। दूध, मीट, अंडों के अलावा बादाम, काजू, अखरोट इत्यादि सूखे मेवे हर रोज़ कुत्तों की खुराक में शमिल थे।


फिर उसने अपने सुंदर चेहरे को सुव्यवस्थित करके गंभीर और नम्र भाव लाये और अपने अरदली राज का कमरे में लकड़ियाँ ले कर आने का इंतज़ार करने लगी। वो राज से । अनेक बार चुदवा चुकी थी पर चुदाई के अलावा बाकी समय उनका रिश्ता सामान्य नौकर-मालकिन का ही था। जब शाजिया का मन हो तभी वो उसके साथ संभोग कर सकता था। राज को खुद से चुदाई की पहल करने की छूट नहीं थी। शाजिया उस पर अपना रौब और अधिकार बनाये रखती थी और उसके साथ सामान्य और गंभीर रहती थी। राज को । उसे 'मैडम' कह कर ही संबोधित करना पड़ता था लेकिन इसके बिल्कुल विपरीत, चुदाई के समय शाजिया का दूसरा रूप होता था। चुदाई के वक्त वो एक गर्म रॉड की तरह पेश आती थी और उस समय मैडम’ नहीं, बल्कि गंदी गंदी गालियाँ पसंद करती थी।

कुत्तों से चुदने के बावजूद इस वक्त शाजिया का दिल और चूत दोनों कुछ ज्यादा उदारता महसूस कर रहे थे। शायद वो आज राज को भी चुदाई का मौका दे दे। यही सोच कर शाजिया ने अपनी टाँगों के बीच लगा वीर्य और चूत रस का लिसलिसा मिश्रण अपने हाथ से पोंछा और फिर अपने हाथ पर से उस पदार्थ को बड़े चाव से अपनी जीभ से चाटने लगी।।
 
शाजिया के बेडरूम के पीछे छप्पर में राज ने कुल्हाड़ी नीचे करके ज़मीन पर रखी। लकड़ी के टुकड़े आसपास बिखरे पड़े थे। राज सिर्फ दो दिन के लिये पर्याप्त लकड़ी चीरने के लिये आया था लेकिन उसने सप्ताह भर के लिये पर्याप्त लकड़ियाँ चीर ली थीं। वास्तव में लकड़ियाँ चीरते वक्त बीच में उसे औरंगजेब के भौंकने और कराहने की आवाज़ आ गयी थी और वो समझ गया था कि शाजिया मैडम फिर कुत्तों से चुदवा रही है। वो इस । हकीकत से वाकिफ़ था कि उसकी मालकिन कुत्ता-चोद थी। राज को इससे कोई तकलीफ़ नहीं थी बल्कि जब वो छिप कर शाजिया को कुत्तों से चुदते देखता था तो बहुत उत्तेजित होता था। इसके अलावा शाजिया उससे भी हफ्ते में चार-पाँच बार चुदवा लेती थी जिसके लिए वो शुक्रगुज़ार था।

राज कुछ देर वहीं खड़ा रहा जिससे शाजिया को कुत्तों को चुदाई के बाद व्यवस्थित होने का पर्याप्त समय मिल जाये। राज ऊचे कद का हट्टा-कट्टा 22 वर्ष का जवान लड़का था और उसके पास दमदार बड़ा लंड था जो इस समय उसकी पैंट में ठोकर मार कर बाहर आने के लिए उतावला हो रहा था। उसका लंड उसके हाथ में मौजूद कुल्हाड़ी की स तरह सख्त था और राज को लगा कि वो कुल्हाड़ी की जगह इतने सख्त लौड़े से भी लकड़ियाँ चीर सकता था। लेकिन उसे उम्मीद थी कि शाजिया मैडम कुत्तों के साथ-साथ शायद उस पर भी मेहरबान हो जाये। राज का तजुर्बा था कि जब भी शाजिया शराब के नशे में होती थी तो उसकी चुदाई की भूख काफी बढ़ जाती थी और आज भी शाजिया को नशे की हालत में ही किसी का ड्राइवर घर तक छोड़ कर गया था। इस वजह से उसे काफी उम्मीद थी कि उसे मुठ मार कर लंड को शांत नहीं करना पड़ेगा। राज ने कुल्हाड़ी छोड़ी और लकड़ी के थोड़े से टुकड़े समेट कर शाजिया के बेडरूम की तरफ बढ़ गया

जब राज ने दरवाज़ा खटखटाया तो उस समय शाजिया बेडरूम में बने छोटे से बार के पास खड़ी एक ग्लास में वोडका उड़ेल रही थी। शाजिया ने वहीं से उसे दरवाज़ा खोल कर अंदर आने के लिए आवाज़ दी। लकड़ियों के टुकड़ों का गट्ठा उठाये राज अंदर आया और शाजिया पर एक नज़र डाल कर फॉयर-प्लेस की तरफ बढ़ गया और उसमें कुछ लकड़ियाँ डाल कर आग ठीक करने लगा।
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दोनों कुत्ते राज को देख कर खड़े हो गये। राज ने गर्दन घुमा कर उन पर दृष्टि डाली। उनके लंड के सिरे चिपचिपे दिख रहे थे और उनके लंड के बालों वाले बाहरी खोल भी चूत रस से लिसड़े हुए थे। वो जब खड़े हो कर आशा भरे मन से शाजिया की तरफ पीछे घूमा। शाजिया ने दो पैंट में वोडका का आधा भरा ग्लास खाली किया और राज को देख कर मुस्कुराई।

। शाजिया को राज की पैंट में उसके लंड का उभार साफ नज़र आ रहा था। उसकी पैंट मे उसके हलब्बी लंड का उभार इतना बड़ा था कि उसका कठोर लंड जैसे पैंट के कपड़े को चीर कर बाहर निकलने की धमकी दे रहा था। शाजिया मुस्कुराती हुई उसकी तरफ बढ़ी उसकी चाल नशे के कारण डगमगा रही थी। राज ने देखा कि शाजिया ऊची हील की सैंडल में थोड़ी लड़खड़ा रही थी और आँखें भी मदहोश लग रही थी। एक बार राज को लगा कि कहीं शाजिया उन सैंडलों में नशे के कारण अपना संतुलन न खो दे लेकिन वो अपनी जगह ही खड़ा रहा क्योंकि वो किसी प्रकार की पहल कर के शाजिया को गुस्सा नहीं दिलाना चाहता था। इस समय शाजिया के रंग-ढंग देख कर उसकी आशा विश्वास में बदलने लगी थी।

“क्यों साले। ये अपनी पैंट के सामने कुल्हाड़ी दबा रखी है क्या तूने?” शाजिया कुटिल मुस्कान के साथ उसके उभार को घुरती हुई उसी बेशर्मी से बोली जैसे की वो हमेशा । चुदाई के वक्त होती थी।
 
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