hotaks444
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ये देखकर चौकीदार गुस्से में भर गया- “साली दो टके की रंडी मेरे रस को बाहर फेंकती है। तेरी ये मजाल... साली पूरे शहर में नंगी घुमाऊँगा अगर मुझसे पंगा ली तो...” कहकर उसने मेरे बालों को जोर से झटका दिया।
“आआआअह्ह... सोरी... छोड़ दो मुझे... प्लीस... मुझसे गली हो गई थी.”
मगर वो सुनने के मूड में नहीं था- “चल हरामजादी चाट इसे अपनी जीभ से..." कहकर उसने मेरे बलों को पकड़े हुए मेरे सिर को कार्पेट पर दबाने लगा।
मुझे हारकर अपनी जीभ से कार्पेट पर फैले उसके वीर्य के गाढे थक्कों को चाटकर साफ करना पड़ा।
उसने अब मुझे उठाया। मैं उठते हुए लड़खड़ा रही थी। उसने सहारा देकर मुझे उठाया। और मेरे बदन को अपनी आगोश में ले लिया। दोनों के नग्न बदन एक दूसरे से लिपटे हुए थे। उसने मेरे चेहरे को उठाया और अपने खुरदुरे काले होंठ मेरे गुलाबी नाजुक होंठों पर रख दिए। उसके मुँह से तंबाकू की बदबू आ रही थी। कुछ देर तक तो मैं साँस रोक कर उस बदबू से बचने की कोशिश करती रही मगर आखिर कब तक साँस रोक पाती। उसने मेरी झिझक देखकर अपनी जीभ निकालकर मेरे मुँह में ठूसने लगा।
मैं इनकार का मतलब अच्छी तरह समझ चुकी थी इसलिए अपने होंठों को खोलकर मैंने उसकी जीभ को अंदर आने दिया। वो अपनी जीभ को मरे मुँह में घुमाने लगा। मुझे उससे इतनी घिन हो रही थी की बयान नहीं कर सकती। फिर वो अपने गंदे दाँतों से मेरे होंठों को काटने लगा।
1
क्या माल है.. साली सारा दिन रगड़ो तो भी मन नहीं भरे...” उसने मेरे पूरे बदन को मसलते हुए कहा- “फिर दोबारा कब आएगी..."
मैं चुप रही तो उसने दोबारा मेरी आँखों में आँकते हुए पूछा- “आयगी ना...”
मैंने हामी में सिर हिलाया।
कैसी लगी मेरी बंदूक...”
मैंने वापस हामी में सिर हिलाया। उससे बचने का यही एक तरीका था। वो मुझे अपने बदन से सटाए हुए मेन डोर तक गया। फिर मुझे वहीं छोड़कर बाहर निकल गया। मैं दरवाजा बंद करके वहीं पर लड़खड़ा कर गिर पड़ी।
“आआआअह्ह... सोरी... छोड़ दो मुझे... प्लीस... मुझसे गली हो गई थी.”
मगर वो सुनने के मूड में नहीं था- “चल हरामजादी चाट इसे अपनी जीभ से..." कहकर उसने मेरे बलों को पकड़े हुए मेरे सिर को कार्पेट पर दबाने लगा।
मुझे हारकर अपनी जीभ से कार्पेट पर फैले उसके वीर्य के गाढे थक्कों को चाटकर साफ करना पड़ा।
उसने अब मुझे उठाया। मैं उठते हुए लड़खड़ा रही थी। उसने सहारा देकर मुझे उठाया। और मेरे बदन को अपनी आगोश में ले लिया। दोनों के नग्न बदन एक दूसरे से लिपटे हुए थे। उसने मेरे चेहरे को उठाया और अपने खुरदुरे काले होंठ मेरे गुलाबी नाजुक होंठों पर रख दिए। उसके मुँह से तंबाकू की बदबू आ रही थी। कुछ देर तक तो मैं साँस रोक कर उस बदबू से बचने की कोशिश करती रही मगर आखिर कब तक साँस रोक पाती। उसने मेरी झिझक देखकर अपनी जीभ निकालकर मेरे मुँह में ठूसने लगा।
मैं इनकार का मतलब अच्छी तरह समझ चुकी थी इसलिए अपने होंठों को खोलकर मैंने उसकी जीभ को अंदर आने दिया। वो अपनी जीभ को मरे मुँह में घुमाने लगा। मुझे उससे इतनी घिन हो रही थी की बयान नहीं कर सकती। फिर वो अपने गंदे दाँतों से मेरे होंठों को काटने लगा।
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क्या माल है.. साली सारा दिन रगड़ो तो भी मन नहीं भरे...” उसने मेरे पूरे बदन को मसलते हुए कहा- “फिर दोबारा कब आएगी..."
मैं चुप रही तो उसने दोबारा मेरी आँखों में आँकते हुए पूछा- “आयगी ना...”
मैंने हामी में सिर हिलाया।
कैसी लगी मेरी बंदूक...”
मैंने वापस हामी में सिर हिलाया। उससे बचने का यही एक तरीका था। वो मुझे अपने बदन से सटाए हुए मेन डोर तक गया। फिर मुझे वहीं छोड़कर बाहर निकल गया। मैं दरवाजा बंद करके वहीं पर लड़खड़ा कर गिर पड़ी।