मैं आकर बैठ गया। बोला-“दीदी अपनी चूत दिखाओ। बहुत दर्द है ना…”
दीदी ने टांगें खोल दीं-“ऊऊफफ़्… ये क्या हाल हो गया…” मैं बोला-“दीदी यह चूत इतनी सूजी हुई क्यों है।
दीदी बोलीं-“अरे अभी कुछ देर में सही हो जाएगी। अभी मैं गरम पानी से धो लूंगी ना। अभी कामिनी मुझे नहला देगी। लेकिन उससे पहले प्रेम तू मुझे एक बार फिर घोड़ी बनाकर चोद ना…”
मैं बोला-“फिर दीदी… आपको और तकलीफ तो नहीं होगी…”
दीदी बोलीं-“होगी… लेकिन इस तकलीफ का इलाज यही है की जल्दी जल्दी चुदाई की जाए वरना रात को अगर किया तो बहुत ही दर्द करेगी…”
मैं खड़ा हो गया। दीदी ने बैठे बैठे ही मेरा लंड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगीं। फिर मुँह से निकाल कर अपने हसीन और नरम सीने के बीच की माँग में फँसा लिया और मैं आगे पीछे करने लगा। लेकिन वो मजा कहाँ जो चूत में था।
मैं बोला-“दीदी घोड़ी बनो ना…”
अब आगे...........................
दीदी घोड़ी बन गई और मैंने उस सूजी हुई चूत में अपना लंड डाल दिया। दीदी चीखने लगी।
कामिनी आकर दीदी के मम्मे सहलाने लगी। उनकी गान्ड पर हाथ फेरने लगी। मुझसे बोली-“दीदी ने ही कहा था ऐसा करने को?”
फिर दीदी और कामिनी एक दूसरे के होंठ चूसने लगीं। और फिर कामिनी दीदी के मुँह के सामने उकड़ू बैठ गई और अपनी चूत चुसवाने लगी दीदी से। दीदी की भी अब चीखें रुक चुकीं थीं और मैं झटके मार रहा था। मैं और कामिनी एक साथ ही अपनी मनी छोड़कर फारिग हुये। दीदी कब फारिग होतीं थीं यह पता ही नहीं चलता था। अब तो जब मैं अपना लंड उनकी चूत से निकालता तो मेरी ही मनी बहती थी वहाँ से। दीदी उठकर लंगड़ाते हुये कामिनी का सहारा लिए सामने बैठ गई। और कामिनी उन्हें थोड़ी देर पहले गरम किए पानी से नहलाने लगी।
मैं एक तरफ बैठा खाना खा रहा था। मेरा लंड दर्द कर रहा था। मैंने कामिनी से कहा कामिनी मैं भी नहाऊंगा। मेरा पानी भी गरम कर दे। और कामिनी ने एक लकड़ी की बनी बाल्टी जो हमें जजीरे पर जहाज की बहुत सी टूटी फूटी चीजों के साथ मिली थी उसको पानी से भरकर आग पर काफी ऊपर लटका दिया। पानी गरम होने के बाद मैं नहाने बैठ गया। दीदी और कामिनी अंदर झोंपड़े में ना जाने क्या बातें कर रहे थे।
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दोस्तों, अब आगे क्या कहूं… इस वक्त भी इतने सालों बाद भी मैं आपको अपनी दास्तान सुनाते हुये उस हल्के गरम पानी की हरारत अपने जिस्म पर महसूस कर रहा हूँ। ऐसा महसूस हो रहा है की बस अब मैं उठकर अपने उसी झोंपड़े में चला जाऊं जिसे अरसा हुआ मैं एक दूर दराज जजीरे पर छोड़ आया हूँ,
दोस्तों इस वक्त जब मैं आपको यह वाकियात सुना रहा हूँ। ना वो जजीरा है, ना वो झोंपड़ा, ना राधा दीदी दुनियाँ में हैं, ना ही कामिनी, बस मैं ही बाकी हूँ। ना जाने क्यों, किस चीज का इंतजार है मुझे, बस दोस्तों अब मैं जाता हूँ अपनी दुनियाँ में जहाँ मेरी बहनें नहाने के बाद मेरा इंतजार कर रहीं हैं। बाकी दास्तान बाद में । बस मैं कह चुका, क्या सुहाने दिन थे दोस्तों, क्या हसीन मौसम था, क्या ही समा था। अब सब याद आता है तो एक टूटे हुये ख्वाब की तरह लगता है।
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मेरी बहन राधा, मेरी दीवानी हो गई थी , उसका बस नहीं चलता था, की वो मुझे अपने बदन से जुदा ही ना होने दे, उसके चेहरे पर एक बेनाम सा सुकून था, एक अंजानी ख्वाहिशों की तकमील का मुकम्मल फसाना था। बहुत खुश थी वह, दिन में दो दफा तो ज़रूर हम यह चुदाई का खेल खेलते, बहुत मजा आता था, और मैं… मैं अपनी तो क्या कहूं। लगता था जैसे दुनियाँ की सारी खुशियाँ मिल गईं हों, हर चीज पा ली हो, मेरी मंज़िल सिर्फ़ यही हो। जैसे मैं आज तक जिंदा ही इसीलिए था। मैं बाज दफा अपनी गुजरी हुई जिंदगी को कोसता की आख़िर मैंने बहुत पहले ही यह लज़्जतें हाँसिल क्यों नहीं कर लीं। मैं तो आसमान पर पहुँच हुआ था, और दीदी तो हर वक्त चुदाई के लिए तैयार… मुझे याद है की हमें उन दिनों सिर्फ़ एक दूसरे के सिवा कुछ ना सूझता था, और मुझे यह कहते हुये अब बड़ा अफसोस हो रहा है की उन दिनों हम अपनी बहन कामिनी को बिल्कुल ही भूल गये थे, वो दूर किसी पत्फथर पर बैठी हमें एक दूसरे के साथ मगन देखा करती थी उसके दिल की क्या हालात थी हम दोनों ही बेखबर थे।
मुझे नहीं याद है की जिस दिन मैंने पहली बार दीदी को चोदा तो उसके बाद कामिनी की चूत चूसी या दीदी ने ही उसकी मनी निकलवाई हो। वो तो बस खामोशी से फितरत के कवानीन से वाकफियत हाँसिल कर रही थी। फितरत का सिखाया हुआ सबक याद कर रही थी। अभी पाया नहीं था उसने इस सबक को, लेकिन उस सबक को अपनी तमाम तर ख़ासूसियात के साथ देख रही थी, और फिर एक दिन जब मैं सुबह उठा तो दीदी को पैंटी पहने पाया, और इसका मतलब मैं अच्छी तरह जानता था। अब दीदी की चूत इस्तेमाल नहीं हो सकतीं थी, उनके पीरियड शुरू हो चुके थे। उस दिन जब हम नहाने गये तो दरख़्त के नीचे लेटे हुये थे। दीदी हस्ब-ए-मामूल मेरा लंड चूम रहीं थीं, उससे खेल रहीं थीं, सामने ही नदी में कामिनी का हसीन बदन बिजलियाँ चमका रहा था, पानी में आग लगा रहा था। मैं उसके गोरे बदन को पानी से निकलते और गायब होते देख रहा था। बहुत हसीन नजारा था।
अचानक दीदी बोलीं-“प्रेम लगता है मैं अभी तक पेट से नहीं हुई…”
मैंने चौंक कर पूछा-“क्यों दीदी?”
दीदी बोलीं-“अगर मैं हमला हो जाती तो मेरे पीरियड थोड़ी होते…”
मैं सिर हिलाकर रह गया।
कामिनी अब नहा कर आ चुकी थी और हमारे साथ ही बैठी थी। दीदी ने भी, मेरे लंड से खेलना बंद कर दिया था। लेकिन वो खड़ा हुआ था, भूखा था शायद।
कामिनी मेरे लंड को देखते बोली-“भाई… दीदी ने मनी नहीं निकाली तुम्हारी। देखो अभी तक खड़ा है…”
मैं बोला-“नहीं कामिनी, अभी नहीं निकली है मेरी मनी…”
और दोस्तों अब मेरी मनी ना जाने क्या हुआ था, बहुत टाइम लेती थी निकलने में, यहाँ तक की मैं दीदी की चुदाई के वक्त दीदी की चूत को तीन या चार बार दीदी की मनी से भरता महसूस करता लेकिन मेरी मनी बहुत ही देर में निकलती, और आप जानिए मर्द औरत की मनी छूटते बहुत ही आराम से महसूस कर सकता है। लंड चूत में बहुत ही फ्री हो जाता है और फिर फच… फच… की आवाजें आती हैं, कुछ देर बाद मनी खुश्क हो जाती है तो फिर औरत दोबारा साथ देती है।
दीदी दोबारा बोलीं-“अब इन पीरियड के बाद प्रेम तुम मुझको हमला ज़रूर कर देना…”
मैं बोला-“दीदी मैं कैसे करं आप बताएं। आपने जिस तरह सिखाया है, मैं तो उसी तरह आप की चूत चोदता हूँ…”
दीदी बोलीं-“हाँ… बस यूँ ही करते रहो, पीरियड के बाद चुदाई में प्रेग्नेन्सी के चान्सेस बहुत बढ़ जाते हैं…”
अचानक मुझे एक ख्ययल आया। मैंने दीदी से पूछा-“दीदी आपको यह सारी बातें कैसे पता चल गईं…”
दीदी मुस्कुरई-“प्रेम तुम और कामिनी मेरी सामने ही पैदा हुये हो, यानी जब तुम दोनों माँ के पेट में थे, जब मैं ही हुआ करती थी माँ के साथ। बहुत सी बातें तो मुझे उसी दौरान पता चलीं। फिर कामिनी की पेदाइश के वक्त तो मैं माँ के साथ कमरे में ही थी, जहाँ कामिनी पैदा हुई थी…” बाकी बातें मुझे माँ ने खुद ही यहाँ आने से कुछ साल पहले बताईं थीं, क्योंकी उनके ख्याल में मेरा यह जानना ज़रूरी था। क्योंकी मेरी शादी होने वाली थी।
मैं बोला-“दीदी, माँ ने तुम्हें यह चुदाई के और मनी चूसने के तरीके बताए थे…”
दीदी बोलीं-“नहीं पगले, यह तो मैंने एक मैगजीन में देखें हैं, आओ मैं तुम दोनों को दिखाती हूँ…”
दीदी हमें उसी संदूक की तरफ लिए जा रहीं थीं, जो हमें जहाज के सामान से मिला था। और जो दीदी के कब्ज़े में ही रहता था, दीदी ने उसे खोला और उसमें से अंदर हाथ डालकर एक मोटा सा मैगजीन निकाला-“यह देखो यह मुझे इसी सामान से मिला था। इतने साल मैंने छुपाकर रखा। तुम दोनों छोटे थे और यहाँ से निकलने की कुछ उम्मीद थी, लेकिन अब तुम दोनों हर बात जान चुके हो…”
उस मैगजीन में बहुत सी तस्वीरें थीं, ब्लैक & वाइट थीं। उसमें मर्द और औरत के ताल्लुक़ात को तस्वीरों की शकल में दिखाया गया था, और कई जगह दो औरतें एक मर्द के साथ और कहीं एक से ज्यादा मर्द दो औरतों के साथ चुदाई करते नजर आए। और कहीं कहीं औरत की गान्ड के सुराख में लंड डालते हुये दिखाया गया, औरत का दर्द से बुरा हाल था।
मैंने मैगजीन देखते पूछा-“दीदी इसमें दो औरतों को एक ही मर्द चोद रहा है, मैं आपको और कामिनी को एक साथ चोद सकता हूँ क्या?”
दीदी बोलीं-“नहीं प्रेम… यह मॉडल्स हैं। देखो नीचे क्या हिदायत लिखी हैं, इसमें चुदाई एक ही औरत की हो रही है दूसरी सिर्फ़ उन दोनों को मनी छोड़वाने में मदद कर रही है…”
“लेकिन दीदी इस तरह मैं आप दोनों के साथ कर तो सकता हूँ ना…”
दीदी बोलीं-“क्यों नहीं, हम करेंगे ऐसे ही…” फिर वो बोलीं-“अच्छा प्रेम अब तुम दोनों जाओ। आज मैं तो जा रही हूँ लेटने मेरा सिर दर्द कर रहा है कुछ देर सो जाउन्गि। तुम दोनों घूम आओ जंगल की तरफ, हाँ उस हिस्से की तरफ नहीं जाना जहाँ हम नहीं गये कभी…”
मैं और कामिनी हाथ पकड़ कर आगे बढ़ गये, और मैंने चिल्ला कर दीदी से कहा-“अरे दीदी… बच्चे नहीं हैं हम अब…”
और दीदी हँसते हुये झोंपड़े की तरफ बढ़ गईं। मैं और कामिनी बढ़ते गये एक दूसरे का हाथ थामे, नदी से आगे निकल गये। कामिनी का बदन धूप में दमक रहा था। हम दोनों बातें करते हुये जा रहे थे। वो मुझको बता रही थी, की उसने पिछले दिनों एक बहुत ही खूबसूरत चिड़िया (बर्ड) पकड़ी है, बहुत ही प्यारी आवाज है।
लेकिन मैं तो अपनी हसीन बहन के जलवों में खोया हुआ था, उसके लचकते जिस्म की मस्त और कमसिन जवानी की तड़प में गुम हुआ जा रहा था। क्या उठान थी उसके कमसिन बदन की, क्या कटाव थे, क्या लचक थी, कमर जैसे लचक लचक जाती थी, बेहद पतली और मजबूत कमर। इस कमर को पकड़ कर कामिनी की चूत में लंड डालते कितना मजा मिलेगा। मैं सोचने लगा, मेरी सोच अब एक मर्द की सोच थी, जो तमाम राज और औरत के जिस्म के सारे नशे-ओ-फराज जानता था। अब मैं 6 साल का बच्चा ना था। 20 साल का होने को था, और वो भी सत्त्रहवे (17) साल में दाखिल हो चुकी थी।
क्या नशा होगा इस की चूत में, मेरी नजर उसकी बल खाती कमर से फिसलती हुई उसकी रानों के दरम्यान दबी हुई कयामत की तरफ गई, जो भरी भरी गदराई हुई रानों से इस वक्त रगड़ खा रही थी, क्या गजब की पतली लकीर थी दोनों रानों के बीच। दोनों फैले हिस्से एक लम्हे को बाहर आये और अगले ही लम्हे छुप जाते, जैसे चंद बदलियों में कहीं खो गया हो, बहुत ही कमसिन और खूबसूरत चूत थी मेरी बहन की और उतनी ही नरम-ओ-नाजुक, अब तक मैं इस चूत को चुसता ही रहा था। लेकिन अब मैं अलग ही नज़रिए से सोच रहा था, अब तक मेरे लबों ने उसकी कंवारी चूत का पानी चूसा था, उसकी गरम मनी मेरे ही होंठों ने पहली बार चूसी थी, लेकिन वो चूत, उसकी गुलाबी रंगत। उसके कोमल लब, अंदर की हयात बख्श गर्मी, और महकती मनी अभी कंवारी थी, वो अभी कमसिन लड़की ही थी, अभी गुलाब नही बनी थी। वो तो अभी एक कली थी, जो बस खिलने को ही थी, और जब ये कली खिलेगी तो दुनियाँ महक जाएगी मेरी, कितना ही हसीन खयाल था चलते चलते ही मेरा लंड खड़ा हो गया और रानों के बीच लटकता हुआ टकराने लगा।
उससे देखकर कामिनी बोली-“क्या हुआ प्रेम दीदी की चूत याद आ रही है…”
इस वक्त हम काफी दूर आ चुके थे जंगल में। मैंने कामिनी का हाथ पकड़ कर उससे झटके से सीने से लगाते हुये कहा-“नहीं कामिनी मुझे तो बस तेरी चूत चाहिए…”
वो बोली-“मेरी चूत, तुम्हें तो दीदी की चूत पसंद है ना भाई…”
मैंने कहा-“यह तुझसे किसने कहा…”