non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन - Page 16 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन

मैं- मेरा कहना मनोगे?

देवर- हाँ भाभी हाँ... पर दिखाओ ना। आज भैया भी घर पे नहीं हैं। मम्मी पापा भी तीर्थ यात्रा पे गये हुए हैं। ऐसा मौका बार-बार नहीं आएगा भाभी।

मैं- चलो ठीक है। मैं आपको अपना सामान दिखाऊँगी तो बदले में मैं भी आपका सामान देखना चाहूँगी। मैंने भी आज से पहले इतना बड़ा, इतना मोटा लौड़ा नहीं देखा है।

देवर- क्यों? भैया का तो हर रविवार रात को देखती ही हो।

मैं- पर... आपको कैसे मालूम? अच्छा... खिड़की से आप ही झाँकते हो रात में।

देवर- हाँ भाभी, मैं सब देखता हूँ। पर इस रविवार को कुछ ज्यादा ही मजा आया।

मैं- क्योंकी मैंने खिड़की के पर्दे को पूरा का पूरा ही हटा दिया था। ताकी आपको हमारी सारी रासलीला दिख सके।

देवर- अच्छा... तो आप हमें ट्रेनिंग दे रही थी।

मैं- हाँ... देवरजी, पर अपना तो दिखाओ? चलो, मैं ही खोल देती हूँ आपके पैंट की जिप। अरे राम रे... देवरजी क्या है ये? इतना बड़ा भी कभी होता है? बाप रे इतना मोटा? इतना लंबा? मेरे तो एक हथेली में समाए नहीं समा रहा है। जब मेरी फुद्दी में घुसेगा तो मेरी फुद्दी का क्या हाल होगा? मैं तो इसे चूस ही नहीं पाऊँगी... अपनी फुद्दी के अंदर लेने की तो बात ही छोड़ दो।

देवर- क्यों झूठ बोल रही हो भाभी? आपने तो इस लण्ड को पहले से छुवा भी है और चूसा भी है।

मैं- नहीं तो? मैंने आज से पहले कभी भी आपके लण्ड को ना छुवा है ना ही चूसा है। कशम से।

देवर- किसकी कशम खाती हो?

मैं- “मैं चम्पारानी, अपनी चूत के चारों तरफ उगी हुई धुंघराली झांटों को अपने साये के ऊपर से सहलाते हुए, ये कशम खाकर कहती हूँ की अगर मैंने आज से पहले अपने प्यारे देवर के लण्ड को गलती से भी छुआ है या । देवरजी जैसे कहते हैं की इनके लण्ड को मैंने चूसा भी है तो अभी का अभी इस फुद्दी की सभी धुंघराली झाँटें सहीद हो जाएं। मेरी फुद्दी के चारों तरफ चूत को लण्ड से रखवाली करने को एक भी झाँट ना बचे। मेरी इस फुद्दी में आज मेरे प्यारे देवर का लण्ड घुसे ही घुसे। भले ही मैं कितना भी चिल्लाऊँ.. कितना भी रोऊँ... मेरा देवर आज मेरी जमकरके, कसकरके चुदाई करे? और इतना कहकरके मैंने साया साड़ी के ऊपर से ही खुजलाते हुए अपनी चूत को हथेली से सहलाया।

देवर- अरे भाभी... ये आपने कैसा कठोर कशम खा लिया? हो सकता है की मैंने कोई सपना देखा हो। पर रोज रात को लगता है, वो भी सिर्फ रवीवार को छोड़कर, की अंधेरे में कोई मेरे लण्ड को सहला रहा है। और फिर वो हसीना अपने मुँह में भरके मेरे लण्ड को चूसती है। और जब मेरे लण्ड से पानी निकलता है तो उसको भी वो गटक जाती है। मुझे मजा भी आता है और डर भी लगता है। और फिर वो साया कमरे में से बाहर निकल जाता है। मैं कमरे की बत्ती जलाकर सोता हूँ। पर... वो साया जब आती है, तब कमरे में अंधेरा होता है।

मैं- अरे, पर देवरजी... आपको कैसे मालूम की वो साया कोई औरत का है।

देवर- वो... भाभी, आप बुरा तो नहीं मनोगी? एक दिन मैंने उत्तेजान में आकर उसकी छातियां सहलाई थी। तब उसकी गुदाज छातियां सहलाकर मुझे लगा की ये पक्का औरत ही होगी। मैंने तो ये समझा था की वो साया आप ही हैं, पर आपने जिस तरीके से ये कठोर कशम खाई है... आप वो नहीं हो। मुझे माफ कर देना भाभीजी।
 
मैंने चैन की साँस ली। मैंने तो सोचा था की देवर घोड़े बेचकरके सोता है और कमरे में अंधेरा करके ही मैं ये काम करती थी। पति के मूंगफली जैसे नूनी से थोड़ी फुद्दी की खुजली मिटती है। और वो भी सट दिन में एक बार... मैंने कई दिन पहले से ये प्लान सोचकर देवर के मन में ये बात गहरी बैठा दी थी की रात को एक साया आता है तो लाइट नहीं जलानी चाहिए... चिल्लाना नहीं चाहिए... वरना वो साया तुमरी जान भी ले सकता है। और फिर मैंने उसके कमरे में अंधेरा करके मौके का फायदा उठाना चालू किया था। और आज... आज मैं पकड़ी ही जाती।

मैंने अपनी पीठ खुद थपथपाई- वाह... चम्पारानी, मन गए तुमको... क्या कशम खाई है की देवर को भी बिश्वास हो गया की वो साया तुम नहीं थी। वो दूसरी दुनियां से आई कोई परीजात थी। वाह... मन गये तेरे दिमाग को।

देवर- तो भाभीजी, आपने मुझे माफ कर दिया ना?

मैं (चम्पारानी)- एक ही शर्त पर माफी मिल सकती है।

देवर- मुझे आपकी हर शर्त मंजूर है। बोलिए?

मैं- चलिए आप मुझे अपना सारा सामान दिखाईए और मेरा सब सामान आप देख लीजिए।

देवर- बस... इतनी से बात। चलिए, फिर मेरे कमरे में चलिए, आपको मेरा सब सामान दिखा देता हूँ।

मैं- अरे बुद्धू... कमरे का सामान नहीं... अपना सामान।

देवर- मेरा सामान? मतलब क्या है आपका?

मैं- इतने भी बुद्धू ना बनो मेरे देवरजी। वही सामान जो रविवार को छोड़कर हर रात को कोई परीजात आकर आपका सहलाती है और फिर चूसती भी है।

देवर- छीः छीः भाभी, आप मेरी नूनी देखेंगी। आपको शर्म नहीं आएगी?

मैं- शर्म कैसी देवरजी? अगर वो पराई परीजात आपके लण्ड को सहला सकती है, चूस सकती है तो फिर मैं क्यों नहीं।

देवर- पर... उस समय तो अंधेरा रहता है।

मैं- अरे, वो दूसरी दुनियां की परीजात है, उसे अंधेरे में दिखता होगा। पर मैं थोड़े ही परीजात हूँ। मुझे तो उजाले में ही दिखाई देगा ना।

देवर- ठीक है भाभीजी... पर मैं भी आपका सामान देखना चाहता हूँ।

मैं- पर देवरजी... मेरे पास तो आपके जैसे नूनी याने की लण्ड नहीं है, उसकी जगह एक छेद है।

देवर- आप भी ना... भाभीजी, मुझे शर्मिंदा किए जा रही हैं।

मैं- चलो ठीक है। मैं अपने कमरे में हूँ। जब आपको आवाज दें तभी आना।

देवर- क्यों भाभीजी? मुझसे शर्म आ रही है?

मैं- नहीं... नहीं... अच्छा चलो साथ में ही चलते हैं, पर जरा मेन-गेट को तो बंद कर दो। कहीं हम एक-दूसरे का सामान देख रहे हों और बाहर से कोई पड़ोसी टपक गया तो बड़ी बदनामी होगी।

देवर- “हाँ भाभी, मैं अभी मेन-गेट बंद करके आता हूँ..” और उसने मेन-गेट को ठीक से बंद किया और मेरे बेडरूम में आ गया।

मैं- चलो देवरजी, अपना खोलो।

देवर- क्या बात करती हैं भाभीजी? मेरी नूनी में कोई नट बोल्ट थोड़ी लगा रखा है की खोल के दिखाऊँ। आपको मेरे पास आकर ही देखना पड़ेगा।

मैं- अरे देवरजी, मैं नूनी खोलने की बात नहीं कर रही हूँ... कपड़े खोलने की बात कर रही हैं। हाँ नहीं तो।

देवर- अच्छा... अच्छा तो ये लो। उसने सबसे पहले अपनी कमीज उतारी।
 
मैं- तो देवरजी, मैंने भी अपना ब्लाउज़ ये निकाला।

देवर- वाउ... भाभीजी, आप तो बहुत ही सुंदर दिख रही हैं। ये काले रंग की ब्रा आपके गोरे बदन पर बहुत ही जंच रही है।

मैं- अरे देवरजी, आपको एक बात पता है?

देवर- क्या भाभीजी?

मैं- कोई भी कपड़ा उसी औरत के ऊपर सुंदर दिखता है। जो औरत बिना कपड़े के सुंदर दिखती है।

देवर- हाँ... भाभीजी, आप बिना कपड़े के तो कयामत ढा देती हैं।

मैं- आपने हमें कब देख लिया बिना कपड़े के?

देवर- भूल गये आप? रोज जब नहाती हैं तो मैं दरवाजे की झिरी से आपको रोज नहाते हुए देखता था। जब आप अपनी चूचियों के ऊपर, दोनों जांघों के बीच में साबुन लगाकर रगड़-रगड़ के नहाती थी।

मैं- बड़े बदमाश हो आप तो देवरजी। मैं तो आपको एकदम सीधा सादा समझ रही थी। पर आप तो बड़े छुपे रुस्तम निकले।

देवर- और हर रविवार को रात को जब भैया अपना लण्ड आपकी फुद्दी में घुसाते थे तब भी मैं देखा करता था।

मैं- मुझे पता है देवरजी। तभी तो इस रविवार को मैंने खिड़की से पर्दा ही हटवा दिया था ताकी आप हमारी खाट-कबड्डी बड़े ही आराम से देख सको।

ये मेरी तरफ से तोहरी ट्रेनिंग थी देवरजी... ताकी आप बड़े आराम से मेरी देवरानी को चोदन-सुख दे सको।

देवर- पर... खाली थ्यूरी पढ़ाई से क्या होगा भाभीजी? प्रैक्टिकल भी तो होना मांगता है ना?

मैं- अच्छा... प्रैक्टिकल भी चाहिए? चलो ठीक है... तो इतने दिन जो आपने देखा उससे आपने क्या-क्या सीखा है। मैं आपके परीक्षा लेती हूँ। तभी आगे का ट्रेनिंग देंगी।

देवर- जो आज्ञा गुरूवानी... मेरा मतलब है भाभीजी।

दीदी- हाँ तो अब आगे की कहानी भी सुना दो मेरी चम्पारानी कि तुम्हारा देवर चुदाई की ट्रेनिंग में पास हुआ की फेल?

चम्पा- अरे भाभीजी, वो मेरा देवर है... मेरा, याने चम्पारानी का देवर। जिस पर मैंने पिछले दो माह से हर रात मेहनत की है। जिसे मैंने बाथरूम से अपने शरीर के हर अंग को बारीकी से दिखाया है। रविवार की रात को मेरे पति के संग संभोग, और चूत चुसाई का आँखों देखा हाल दिखाया है। वो भला फेल कैसे हो सकता है? उसे तो पास होना ही था और हर हाल में पास होना था।

अब हम दोनों एक-दूसरे को नंगा करने पर तुले हुए थे। देवर ने अपनी कमीज और मैंने अपनी ब्लाउज़ को अपने बदन से आजाद कर दिया था।

देवर- तो भाभी, अब बरी है मेरी बनियान की।

मैं (चम्पारानी)- आप अगर बनियान उतरोगे तो हम भी अपनी चोली उतार फेकेंगे। देवरजी, हम भी अपने वायदे के पक्के हैं।


और अगले ही पल... मेरा गोरा बदन ऊपर से पूरा का पूरा वस्त्रविहीन हो चुका था। और मेरा प्यारा सा देवर आँखें फाड़-फाड़कर मेरे दोनों कबूतरों को देख रहा था।
 
मैं- अरे देवरजी, इस तरह से आँखें फाड़-फाड़कर क्या देख रहे हो? खा जाने का इरादा है क्या?
देवर- इरादा तो कुछ ऐसा ही है भौजी।

मैं- तो फिर देर किस बात की देवरजी? मन की बात पूरी कर लो। वरना जब हमारी देवरानी आएगी तो हमें कहेगी- क्या जेठानी जी आपने अपने देवर को चूची दबाना और चूसना भी ठीक से नहीं सिखाया।

देवर- हाँ.. और मैं सब कुछ बर्दाश्त कर सकता हूँ, पर भाभी आपकी बदनामी सहन नहीं कर सकता। इसीलिए आपकी चूचियों को दबाकर, सहलकर, चूसकरके बता रहा हूँ, दिखा रहा हूँ, महसूस करा रहा हूँ।

और फिर जब देवर के हाथ मेरे दोनों कबूतरों के ऊपर पहुँच गये तो मेरा सारा शरीर मारे उत्तेजना के काँपने लगा। मैं देवर से लिपटती जा रही थी। उन्होंने एक चूची को सहलाते हुए अपने एक अंगूठे और एक उंगली की मदद से मेरी चूची के निपल को सहलाने लगे। हाय मैं तो पानी-पानी हो गई।

अब मेरे देवर ने एक अच्छे सिष्य की तरह मेरी एक चूची को अपने मुँह में ले लिया और निपल के चारों तरफ जीभ को घुमाने लगा। फिर चूची को चूसने भी लगा। पाँच मिनट तक वो ऐसा करता रहा। फिर उसने चूची बदल ली। याने जिस चूची को दबा रहा था उसे तो चूसने लगा और जिसे चूस रहा था उसे दबाने लगा। मैं छटपटाने लगी। मुझसे अब और बर्दास्त नहीं हो पा रहा था।
आज किसी भी तरह से देवर का लण्ड अपनी फुद्दी में घुसवाना ही था। वरना... फिर पता नहीं मेरी फुद्दी क्या कर बैठे।

मैं- देवरजी, अब आगे भी तो कुछ करोगे? या यहीं तक ही सीखे हो?

देवर- अरे नहीं भाभी, इससे आगे भी सीखा हूँ।

मैं- सीखे हो तो फिर दिखाओ करके।

देवर ने अबकी बार अपनी पैंट निकाली और मैंने अपनी साड़ी को अपने तन से अलग किया। फिर देवर ने अपनी चड्ढी उतार फेंकी और मैंने अपना साया।

देवर- अब क्या करें भाभीजी?

मैं- एक काम करो... तबला ले आओ और बजाओ।


देवर- “नहीं भाभी, अब देखो ना... मैं तो पूरा का पूरा नंगा हो गया, और आप अभी तक अपने असली खजाने को सट तले के अंदर छुपा के रखी हुई हैं...” देवर का इशारा मेरी पैंटी की तरफ था।

मैं- वो तो देवरजी... आपके हाथ से ही उतरेगी। चलो, आपको देखना है तो आप खुद ही निकालो।
जैसे ही देवर ने पैंटी को नीचे सरकाया... उसकी तो जैसे बोलती ही बंद हो गई।

मैं (चम्पारानी)- अरे देवरजी, क्या हुआ? बुत के जैसे कैसे हो गये? बस इतना ही सीखे हो क्या?

देवर- नहीं भाभीजी, जितना सोचा था उससे बढ़कर पाया। पर ये क्या? ये क्या भाभीजी?

मैं- क्या हुआ देवरजी?

देवर- आपकी बुर तो एकदम सफाचट है। इसपे तो एक भी झाँट नहीं है, कहाँ गई सारी की सारी हुँघराली झाँटें?

मैं झेंपते हुए- वो देवरजी, मैंने आज सुबह साफ कर दिए।

देवर- साफ किए नहीं हैं भाभीजी... साफ हो गया है। आपने कशम खाई थी की आप अगर आज से पहले कभी भी मेरे लण्ड को छुआ हो या चूसा हो तो एक भी झाँट ना रहे।

मैं- हाँ... देवरजी हाँ... मैं स्वीकार करती हूँ की हाँ... वो परीजात मैं ही थी। जो परीजात का नाम लेकर आपके कमरे में हर रात को आती थी, आपके लण्ड से खेलती थी, फिर चूसती थी और अपने कमरे में वापस आ जाती थी।

देवर- मैं जानता था भाभी की वो परीजात नहीं आप हो।

मैं- फिर आपने इतने दिन तक क्यों नाटक किया देवरजी? पकड़कर पलंग के ऊपर पटक के चोद क्यों नहीं दिया?

देवर- मैं आपको अपनी ही नजरों से गिराना नहीं चाहता था भाभी।

मैं- वो तो ठीक है... लेकिन आज तो मुझे चोद सकते हो ना की आज भी आपका नाटक जारी रहेगा?

देवर- नहीं भाभी, आप आज तक जितना तड़पी हैं। मैं और आपको तड़पता हुआ, जल बिन मछली की तरह तरसता हुआ नहीं देख सकता। आज आपको जी भर के प्यार करूँगा भाभी। पूरे रात भर प्यार करूँगा, कशम से।

मैं- अच्छा, क्या करोगे?

देवर- “सबसे पहले तो...”

मैं- “बातें ना करो देवरजी, काम करके बताओ..." और मैं (चम्पारानी) ठीक... बिल्कुल ठीक सोच रही थी। मेरा देवर ट्रेनिंग में कभी भी फेल नहीं हो सकता था। उसे हर हाल में पास ही होना था।
 
हम दोनों एक-दूसरे से लिपटे हुए थे, एक-दूसरे को चूम रहे थे। मेरा देवर मेरी एक चूची को दबा रहा था, सहला रहा था। दूसरी की निपल को अपने मुँह में लेकर जीभ उसके चारों तरफ फिरा रहा था। फिर उसने अपने मुँह में भर लिया, जितना हो सके उतना उसने भर लिया... पर पूरी चूची थोड़े ही उसके मुँह में समा सकती थी।

मेरे कामरू भैया ने बड़ी मेहनत से हर रोज बिना नागा, दिन-रात, सुबह-शाम, अंदर-बाहर मेरी चूचियों को दबादबा के, सहला-सहला के, चूस-चूसकरके बड़ा किया है। इधर मेरे पति का लण्ड मूंगफली है तो क्या हुआ? चूसते बढ़िया हैं, चूचियों को और चूत को भी। हाँ... सच्ची में। और ये मेरा देवर हमारी सारी रासलीला का चश्मदीद गवाह था। वो भला कैसे नहीं सीखता।।

उसने बढ़िया तरीके से मेरी चूचियों की सेवा की। एक चूची के बाद दूसरी का नंबर भी आया। उसने बड़े प्यार से बिना कोई धोखाधड़ी किए मेरी उस चूची को भी उतना ही प्यार से चूसा, दबाया और सहलाया। मेरी तो चूत पनियाने लगी थी। मेरा पूरा का पूरा बदन काँपने लगा था। मैंने भी देवर का लण्ड सहलाया। मेरी सास ने ना जाने क्या खाकर इन्हें पैदा किया था। काश की वही खाकर मेरे पति को भी पैदा कर देती तो मुझे ये सब नहीं करना पड़ता।

खैर, देवर भी तो पति समान ही होता है। अगर पति से कुछ ना होता हो तो पत्नी को पूरा अधिकार है की वो... वो चीज... वो कार्य अपने देवर को पटाकर, बर्गलाकर, फुसलाकर, धमका कर, अपने जलवे दिखाकर, किसी भी तरीके से करवाए। और मैंने पिछले दो माह यूँ ही नहीं काटे थे। खूब मेहनत की थे अपने देवर पर... हर रात बिना नागा उसके कमरे में जाकर लण्ड को सहलाना, फिर चूसना... यहाँ तक की रविवार रात को भी पति से । संभोग करने के बाद, उनके सोने के बाद चली जाती थी। और आज मेरी सारी मेहनत रंग ला रही थी। मुझे मेरी मेहनत का फल मिलने वाला था।

आज मुझे मेरे सपना सच होता दिखाई दे रहा था। वो लण्ड, जिसकी मैं सपने देखाकरती थी। आज मेरी मुट्ठी में था। और थोड़ी देर के बाद मेरी प्यारी सी, छोटी सी, मखमली सी, सफाचट चूत में घुसकर अपना झंडा फहराने ही वाला था। मैं ये सब सोच ही रही थी की कब देवर मेरी चूचियों को छोड़कर नाभि को चूमते हुए, दोनों जांघों के बीच में चूत के दाने को अपनी जीभ से चाटने लगा, चूमने लगा... मुझे मालूम ही ना पड़ा। वाह... मैं चूत के दाने पर जीभ के लगते ही उछल पड़ी। हाय... ये क्या हो गया?

मैं जब उछल पड़ी तो देवर ने चौंकते हुए मुझे चूमना छोड़ दिया।

मैं (चम्पारानी)- क्या हुआ देवरजी? आपको अच्छा नहीं लगा मेरी चूत चाटना?

देवर- ऐसा नहीं है भाभीजी।

मैं- तो फिर चूमना, चूसना क्यों छोड़ दिया देवरजी?

देवर- आप उछल पड़ी ना तो मैंने सोचा की आपको दर्द तो नहीं हो रहा है? इसीलिए।

मैं- “अरे देवरजी, अभी तो मजा आना शुरू ही हुआ था की आपने शुरुवात में ही सारे मजे में पानी फेर दिया। और रही बात दर्द की तो असल दर्द तो तब होगा। जब आप अपना ये विशाल मूसल को मेरी...”

देवर- आप चुप क्यों हो गई भाभीजी? बताइए ना कब आपको दर्द होगा? जब मैं अपना मूसल आपकी... मूसल बोले तो? और मेरे पास मूसल है ही कहाँ? और मैं उस मूसल को आपके किस चीज में घुसाऊँगा? जरा खुलकर बताइए।

मैं- कुछ नहीं... थोड़ी देर में खुद-बा-खुद समझ में आ जायेगा। आप मेरी चूत को चाटना जारी रखो... या ऐसा करो 69 पोजीशन में आ जाओ।

देवर- 69 पोजीशन? अरे वाह... आपको अँग्रेजी के शब्द भी मालूम हैं?

मैं- अच्छा... ये अँग्रेजी शब्द है? मैं तो सोची थी की कोकशास्त्र में लिखा हुआ है। आपके भैया ने बताया था। वो मेरी फुद्दी चाटते थे। और मैं उनकी मूंगफली।

देवर- इसमें तो दोनों को ही मजा आएगा भाभीजान। चलो, ऐसा ही करते हैं। चूत चाटने का मजा और साथ ही साथ लण्ड चुसवाने का मजा। अरे वाह... मजा आएगा।

मैं- हाँ... देवरजी। मेरे साथ रहोगे, मेरा कहना मनोगे तो ऐसे ही हर रात, हर दिन ऐसे ही ऐश करोगे। वरना मूठ मारते ही रह जाओगे?

देवर- मुझे मूठ नहीं मारना है भाभीजी। मुझे तो असली मजा चाहिए। असली फुद्दी की असली चुदाई मेरे असली लण्ड के साथ।


मैं- “तो देर किस बात की है देवरजी। शुरू हो जाओ। लगा दो जीभ मेरी चूत के दाने पे.. चूसना शुरू कर दो... और अपने मस्ताने लौड़े को सटाड़ो मेरे मुँह के पास ताकी मैं भी चूस-चूसकर खुद भी मजा ले सकें और आपको भी मजा दे सकें...”

और मैंने देवर के लण्ड को पास से देखा। अरे बाप रे... लण्ड की नसें एकदम तनी हुई थी, सुपाड़ा जैसे कोई पहाड़ी आलू हो। हाय... मेरी फुद्दी तो बिना चुदे ही पानी छोड़ने लगी। पर मैं सोचती थी- साली चम्पारानी... आज तेरी फुद्दी की खैर नहीं। साली बहुत खुजलाती थी ना तेरी फुद्दी। आज तेरा देवर अपने विशाल लण्ड से तेरी फुद्दी को जरूर से फाड़ेगा, कचूमर निकाल देगा तेरी बुर का।
 
मैंने सोचा- अरे जा जा... चम्पारानी, लण्ड को देखा नहीं और चूत का डर के मारे सिकुड़ना चालू हो गया। अरे । कुंवारेपन में अपने कामरू भाई के विशाल लण्ड को भी तो पहली बार लिया था। पहले दिन पहली बार ही तो दर्द दिया था। उसके बाद कैसे चूतड़ उछाल-उछाल के चुदवाती थी अपने कामरू भैया से। उनके लण्ड से थोड़ा ही तो बड़ा है। इसमें भी देखना खूब मजा आएगा। और फिर देवर के लण्ड को घुसवाए बिना देख लेना नींद ना आएगी तुझे... चूत की खुजली सोने नहीं देगी तुझे... अपने आप खजंचती चली जाएगी अपने देवर के पास। और उनके इस विशाल लण्ड से चुदवा के ही मानेगी रोज-रोज। हाँ नहीं तो।

मैं (चम्पारानी)- कैसे लग रहा है देवरजी?

देवर- बहुत मजा आ रहा है भाभीजी। इस मजे को मैं बयान नहीं कर सकता हूँ। और मुझसे बर्दास्त भी नहीं हो रहा है। बस भाभीजी, अब तो असली मजा दे दो।

मैं- अरे... दे तो दिया असली मजा, और क्या करोगे?

देवर- आपकी इस फुद्दी में अपने ये पप्पू राजा को घुसाऊँगा।

मैं- पागल हो गये हो? देवरजी, आपको शर्म आनी चाहिए। अपनी भाभी को चोदने की बात कार रहे हो। छीः छीः छीः आपके भाई को मालूम होगा तो वो आपके बारे में क्या सोचेंगे? और अगर गाँव वालों को मालूम पड़ गया तो कितनी बदनामे होगी? सोचा है आपने? चलो, बहुत ले लिया भाभी से मजा। चलो, अब बाहर जाओ।

देवर- चलो आप बाहर जाओ? ये आप क्या कह रही हैं भाभीजी? अब तो अंदर घुसाने का मुहूरत निकाला है चोदू पंडित ने... चलिए अपनी जांघों को फैलाइए... चोदने का मुहूरत निकला जा रहा है। आपको पता है भाभीजी... ऐसी चुदाई का मुहूरत बड़ी ही किश्मत से मिलता है। भाई, हफ्ते भर के लिए बाहर गया है। माँ-बाबूजी तीर्थ यात्रा पर... जवान भाभी की तड़पती हुई चूत, और उसके नंगे बदन से लिपटा हुआ अपना लण्ड चुसवाता हुआ देवर, चूत को चूसता हुआ, लण्ड को खड़ा किए फुद्दी के भीतर घुसने को बेताब लण्ड... ऐसा महा-मिलन कभी-कभी ही होता है भाभीजी। और रही बात किसी को मालूम पड़ने की मैं तो किसी को बताऊँगा ही नहीं, और मैं जानता हूँ। कि आप भले ही मुझसे आज के बाद रोज-रोज दिन रात चुदवाती रहेंगी फिर भी किसी के आगे कुछ भी ना कहेंगी।

मैं- ये आपसे किसने कह दिया की मैं आज के बाद आपसे रोज-रोज चुदवाऊँगी?

देवर- आपके चेहरे की मुश्कान कह रही है... आपकी फड़कती हुई दोनों चूचियां कह रही हैं... आपकी पनियाती हुए फुद्दी कह रही है की देवरजी आ जाओ... अब तो आ जाओ सनम... चूत मेरी फड़क रही है... इसमें घुस जाओ । सनम। पति का लण्ड है मूंगफली, तेरा मुस्टंडा है सनम। पति को देंगी रविवार को... तुझको बनाऊँगी बलम। अब तो मुझको चोदो सनम।।

मैं- हाय... रे मेरे चोदू देवर, हाय रे तेरा लण्ड... बहुत तड़पाया है आपने हमें। बहुत तड़पी है आपकी भाभी की ये रसीली चूत... देखिए ना कैसे पानी छोड़ रही है? आ जाओ और मुझको अपने में समा लो, और आप मुझमें समा जाओ।

देवर- हाँ.. री भाभी। आपने भी मुझे बहुत तड़पाया है, परीजात बनकर खूब सताया है। खुद तो मजा लिया पर मुझे बहुत रुलाया है। लण्ड चुसवाने का बहुत ही ज्यादा मजा दिया। पर चूत चोदने ना देकर हमें बहुत रुलाया है।

मैं- अब ना तड़पने दूंगी देवरजी। अब और ना सताऊँगी। बस आप मेरे होकर रहना। किसी और की तरफ आँख उठाकर ना देखना।

देवर- हाँ भाभी, किसी और की तरफ आँख भी नहीं उठाऊँगा.. लण्ड भी नहीं उठाऊँगा... मेरा लण्ड खड़ा होगा तो सिर्फ और सिर्फ आपकी फुद्दी में घुसने के लिए।

मैं- बस तो और क्या देखते हो? आ जाओ। मैंने अपने दोनों पैरों को फैला दिया है। सफाचट फुद्दी है.. एक भी झाँट का नामो निशान नहीं है। फुद्दी का गुलाबी छेद आपके लण्ड को अपने में घुसने का निमंत्रण दे रहा है। चूतरस के रूप में आपके लण्ड के स्वागत के लिए गुलाब-जल रूपी चूतरस छोड़ रही है। मौका भी है, नजाकत भी है... घुसा दो मेरी फुद्दी में... अपना ये लण्ड घुसा दो।

और देवर ने मेरी फुद्दी के दाने के ऊपर अपना सुपाड़ा रगड़ा।

मैं सिहर गई- ये क्या कार रहे हो? देवरजी। मैं पहले से गरम हो रखी हैं, और ना तड़पाओ। बस चूत के छेद में घुसा दो... घुसा दो।।

देवर- लो भाभीजी, संभलो?

मैं- मैं संभली हुई हैं, आप घुसाओ। अर, ये क्या घुसा दिया? अरे मरी... देवरजी, मैंने लण्ड घुसाने को कहा था... आपने लट्ठ (डंडा) ही घुसा दिया... मर जाऊँगी। लण्ड खा सकती है मेरी चूत डंडा नहीं... मारने का इरादा है। क्या? चलो, इंडा निकालो और लण्ड पेलो... अपना लण्ड।
 
देवर- अरे भाभी, ये मैंने अपना लण्ड ही पेला है, और अभी केवल सुपाड़ा ही घुसा है आपकी चूत में।

मैं- क्या कहा? आपने सुपाड़ा ही घुसाया है... ऐसे में इतना दर्द?

देवर- अरे, भाभीजी... दर्द तो होगा ही... आज तक आपने भैया का... वो क्या कहती हैं आप?

मैं- मूंगफली।

देवर- हाँ... मूंगफली। आपने अभी तक मूंगफली ही घुसवाई है अपनी चूत में... मूंगफली से भी भला चुदाई होती है। असली मजा तो आपको आज मिलेगा। असल लण्ड से असल चुदाई का असल मजा।

मैं (चम्पारानी)- हूँ... बड़े आए मेरे पति के लण्ड को मूंगफली कहने वाले... खुद का भी कितना बड़ा है। थोड़ा सा ही तो बड़ा है और उसमें इतनी अकड़। तनिक और थोड़ा बड़ा होता तो हवा में उड़ने लगते... और थोड़ा सुंदर होते तो भाभी को कहाँ पूछते, सीधे परियों को चोदने के सपने देखते रहते आप तो.. भला हो भगवान का की पति का मूंगफली है तो आपकी मटर की फली।।

देवर- क्या कहा भाभी? मटर की फली? मेरे लण्ड को मटर की फली कहा आपने?

मैं- “हाँ कहा तो? आपका लण्ड, मटर की फली जितना बड़ा ही तो है। ओहो... गलती से निकल गया मेरे मुँह से लण्ड का शब्द.. इस मटर की फली को लण्ड कहना लण्ड के लिए तौहीन है.." मैं अपने देवर को उत्तेजित करने के लिए बोले जा रही थी।

देवर- ठीक है भाभी... अब देखो, इस मटर की फली का कमाल... अभी तो सुपाड़ा घुसते ही चिल्लाने लगी थी... और अभी इस पूरे लण्ड को ही मटर की फली बता रही हैं आप... ये लो।

भाभी- अरे, रे... इतने जोर से नहीं देवरजी। अरे राम रे... मरी रे... मम्मी, बचा लो... देवर ने फाड़ दी मेरी चूत... देवरजी, मैं कहीं भागी जा रही हूँ... आपके नीची नंगी हो रखी हूँ तो चुदवाने के लिए ही ना। फिर इतने बेसबरे क्यों हुए जा रहे हो... नंगी लेटी हूँ तो चुदवाकर ही उठूगी।

देवर- अरे भाभी, मेरी मटर की फली से आपको चुदवाने में इतना दर्द होने लगा। जबकी ये तो अभी आधा भी नहीं घुसा है।

मैं- वो क्या है देवरजी कि आज तक मेरी चूत में आपके भाई की मूंगफली ही तो घुसी है ना... आज पहली बार मटर की फली घुसी है। इसीलिए चूत को अड्जस्ट होने में थोड़ा वक्त तो लगेगा ना... और आप भी भुक्खड़ की तरह एक ही झटके में पूरा का पूरा ही घुसा डालते हो। अरे घुसाने के समय चूचियों को भी तो दबाओ... थोड़ा। चुम्मा दो... एक दो चुम्मा लो।

देवर- अरे भाभीजी, ये लो चुम्मा... पूच-पूच-पूच... और ये मैंने आपकी चूचियों को दबाया, ये सहलाया, ये चूसा।

भाभी- हाँ.. ऐसे ही, मैंने तो सोचा की आप मेरी ट्रेनिंग में फेल ही होने वाले हो... पर आप तो अनाड़ी नहीं पूरे के पूरे खिलाड़ी बन चुके हो। वाह बधाई हो... आपको मेरी फुद्दी चोदने को मिल गई.. और जहाँ तक मुझे यकीन है। की मेरी फुद्दी ही पहली फुद्दी है जो आपकी इस मटर की फली को... अरे मटर की फली बोलते ही धक्का दे दिया रे... मरी... बचा लो... देवरजी, आपका लण्ड, लण्ड नहीं लौड़ा है। कोई इंसान नहीं गधा या घोड़ा है।

देवर- अरे नहीं भाभी, ये तो मटर की फली है... मटर की फली। आपको दर्द नहीं हो रहा है... अभी तो तीन इंच और बाकी है।

मैं (चम्पारानी)- “अरे मैं तो मजाक कर रही थी देवरजी..." अभी तक मुझे खास दर्द वैसे तो नहीं हुआ था क्योंकी मेरे कामरू भैया का लण्ड भी इतना ही बड़ा था जितना मेरे देवर का लण्ड अभी घुसा हुआ था।

देवर- अरे भाभीजी... अभी और तीन इंच के करीब है।

मैं- “क्या? और तीन इंच है? बस देवरजी और ना घुसाना, वरना मेरे फुद्दी सचमुच फट जाएगी। नहीं घुसाना... प्लीज ना घुसना... अरे देवरजी...” मैं ये सब कह भी रही थी और उनका लण्ड अपनी चूत में घुसवाने के लिए नीचे से चूतड़ उछाल भी रही थे। देवर ने उतने में ही लण्ड को आगे-पीछे घुसाना और बाहर निकालके चोदना चालू कर दिया।

मैं- अरे, देवरजी... क्या हुआ? बाकी का नहीं घुसाओगे?

देवर- “अरे भाभीजी, आप ही तो कह रही थी कि आपको दर्द हो रहा है तो...”

मैं- मैं तो अब ये भी कहँगी कि लण्ड को बाहर निकालो और अपने कमरे में जाकर सो जाओ। तो क्या मन जाओगे?

देवर- ये कैसे हो सकता है? पूरे दो महीने तड़पाई हो। और आज जब मुझे असली मजा लेने का मौका मिला है। तो निकाल दें।

मैं- तो फिर पूरा का पूरा घुसा के पूरा मजा लो ना... और देख लो, मैं कितना भी रोऊँ, कितना भी चिल्लाऊँ, कितना भी तड़पूं, आप मुझपे बिल्कुल भी रहम नहीं करना। वरना पूरा मजा नहीं ले पाओगे।

देवर- "ठीक है भाभी, ये लो मेरा एक धक्का...”

मैं काँप सी गई। अब असल दर्द होना शुरू हुआ है। मैंने अपने मुँह को जबरदस्ती बंद करके दर्द को पीने की कोशिश की। इतने में ही देवर ने दूसरा और आखिरी धक्का लगाते हुए पूरा का पूरा लण्ड ही घुसेड़ डाला मेरी प्यारी सी मखमली चूत के अंदर। और ना चाहते हुए भी मेरी चीख उबल पड़ी मेरे मुँह के अंदर से।
 
मैं- है बचाओ कोई तो आकर बचा लो... इस सांड़ से इस गाय को... साला कैसे पेले जा रहा है... देख भी नहीं रहा की नीचे मेरी कच्ची कली, चुलबुली, मखमली फुद्दी का क्या हाल हुआ है? कभी चूत नहीं चोदी क्या जो मिलते ही हुमच-मच के चोदे जा रहे हो।

देवर- नहीं मिली भाभीजी... नहीं मिली। सच्ची, आज पहली बार देख रहा हूँ और चोद रहा हूँ।

मैं- अच्छा... पहली बार चोद रहे हो ये मैं मन भी लेती हैं। पर पहली बार देख भी रहे हो। ये मैं नहीं मन सकती। आपने इससे पहले भी चूत देख रखी है।

देवर- नहीं तो? कब देखी है मैंने चूत और किसकी देखी है? बताइए।


मैं- याद करो जिस दिन मुझे बुखार था। रात को कमरे में अंधेरा था और आप आकर कमरे में मेरा साया साड़ी ऊपर तक उठाए और मेरी चूत को देखते हुए मूठ मारने लगे थे। और फिर मेरी चूत को सहलाने भी लगे थे।

देवर- नहीं भाभीजी... कशम से, मैंने ऐसा नहीं किया... सच में। अगर मैं ऐसा करता... ऐसा मौका मिलता तो मैं उसी दिन आपको चोद चुका होता।

मेरा दिमाग तेजी से चलने लगा। अगर वो देवर नहीं तो फिर कौन था? पति तो थे नहीं... तो फिर? हाय... मैं अपने ससुर को तो भूल ही गई थी। हाँ वो मेरे ससुर ही थे, पर लण्ड तो देवर जैसा ही था... इसका मतलब उनका लण्ड भी गजब का है। मुझे उनका भी चखना ही पड़ेगा अब तो।

देवर- अरे भाभी... कहाँ खो गई आप?

मैं- कुछ नहीं। मैंने सपना देखा था की आप मेरी चूत सहला रहे हो।

देवर- और आज वो सपना हकीकत में बदल गया।

इधर मेरा देवर मुझे दनादन चोदे जा रहा था और इधर मैं (चम्पारानी) सोच रही थी की अगर उस रात को देवर की जगह ससुरजी थे। तो?

तो क्या चम्पारानी? तेरी तो मौज ही मौज है। इधर मूंगफली, हर रविवार को मिलेगी। बाकी दिन देवर का लण्ड और अगर ससुरजी पट गये तो कहना ही क्या? तेरी तो मौज ही मौज है। तेरी तो चम्पारानी पाँचो ऊँगालियां घी में और सर... सिर तेरा कड़ाही में। मन ने कहा- नहीं री चम्पा तूने गलत सोचा... तेरे दोनों हाथों में देवर और ससुर का लण्ड है और चूत में? हाय... हाय... चूत में बारे बारी से दोनों का ही लण्ड घुस रहा है। एक का नीचे ले रही है तो दूजा मुँह में ही अंदर-बाहर हो रहा है।

देवर ने हुमच-हुमच कर चोदना शुरू कर दिया था। मैंने भी नीचे से चूतड़ उछालना शुरू कर दिया था। जितना मैं डर रही थी उतना दर्द तो हुआ ही नहीं। बल्की मजा मिला। हाय... मेरी चूत को मजा दोगुना मिल गया।


मैं- देवरजी, अब मुझे लण्ड का चस्का दिला तो दिए हो। पर अब बीच मझदार में छोड़कर कहीं ना जाना देवरजी।

देवर- अरे भाभीजी, आप ऐसे क्यों डरती हो? आज आपने जो मजा दिया है। उसके बाद आपको क्या लगता है? जो स्वाद आपने मेरे लण्ड को दिया है। आपको क्या लगता है कि ये बिना चूतरस के रह पाएगा? आपको क्या लगता है कि मैं आपके बिना रह पाऊँगा? नहीं भाभीजी। अब तो मुझे ये रस हर रोज चाहिए। दिन में, रात में, सुबह में, शाम में।

मैं- हाय राम... अरे देवरजी क्या कह रहे हो आप? अब तो मुझे ये रस हर रोज चाहिए। दिन में। रात में, सुबह में, शाम में... इतनी बार करोगे तो क्या मैं फिर जिंदा रह पाऊँगी? देवरजी, इतना मजा पाकर तो मैं तो जीते जी मर जाऊँगी। बस... ये वादा भूल ना जाना। रोज मेरी ही फुद्दी में अपना ये विशाल लण्ड घुसाना।
 
और फिर हमारी चुदाई ने जोर पकड़ लिया। हम दोनों में से कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था। और फिर... जो होता है, इस खेल में। हाँ... हम दोनों देवर भाभी एक साथ ही झड़ गये। दोनों एक-दूसरे से लिपट ही तो गये। दस मिनट तक एक-दूसरे से लिपटे हुए, एक-दूसरे को चूमने लगे की... किसी ने दरवाजा खटखटाया तो हम दोनों हड़बड़ाए। मैं अपने कपड़े लेकर बाथरूम में घुस गई और देवर लुंगी पहन के दरवाजा खोलने गया।

बाथरूम में मैं कपड़े पहनते हुए बाहर हो रही बातचीत सुनने लगी। हाँ, मेरे सास-ससुर तीर्थ यात्रा से वापस आ गये थे। मैंने कपड़े पहन लिए, पर... हाय.. सब कपड़े तो पहन लिए पर मेरी पैंटी नहीं मिली। मैंने सोचा पलंग पे छूट गई है।

मैं झट से बाहर निकली और सास के पाँव छुए- “प्रणाम करती हूँ माताजी...”

सास- दूधो नहाओ और पूतो फलो बहूरानी। बस मेरे दिल की एक ही तमन्ना है। बस मुझे नाती दिला दे।

मैं (देवर की तरफ देखकर आँख मारके)- हाँ अम्माजी, अबकी बार मैं भी पूरी कोशिश कार रही हूँ की आपको पोता मिल जाए।

मैंने ससुर के पैर छुए। सास मेरे देवर के साथ बातचीत में मगन थी। ससुर ने मेरे कंधे पर हाथ रखने के चक्कर में सीधे ही चूचियों के ऊपर रख दिए, और धीमे से दबा ही तो दिए एक चूची को। मैंने उनकी ओर देखा तो उनके होंठों पर एक मुश्कान थी। मेरा दिल धक्क-धक्क करने लगा। देखो तो तरी बुड्ढे को... बुढ़ापे में जवानी छाई है... बहू के ऊपर नजर गड़ाए बैठा है। मैं रसोई घर जाने से पहले अपनी पैंटी को धोकर सूखने के लिए रस्से पर टाँग दी।

खाना बनाते वक्त ससुर की आवाज आई- अरे, ये रस्सी पर किसका छोटा सा कपड़ा सूख रहा है?

सास- अरे, चुप करो जी... ये बहू की चड्ढी है। साया के नीचे पहनती हैं, आजकल की लड़कियां।

ससुर- अच्छा... अच्छा, कभी उसे पहने हुए नहीं देखा ना... इसीलिए पूछ रहा था।

सास्स- आप भी ना... बुद्धू ही हो। कभी बहू आपको चड्ढी पहन के साया उठाकर दिखाएगी थोड़े ही... की देखो ससुरजी, मेरी काले रंगे की चड्ढी गोरे रंग पे कैसे फब रही है।

ससुर- वाह... मुन्ने की अम्मा। चल कमरे में, मेरा तो खड़ा हो गया है।

सास- अरे, आपको शर्म नहीं आती? बहू घर में आ चुकी है। दूसरे बेटे के लिए बहू हूँढ़ने का समय आ गया है। इधर आप खड़ा लण्ड लिए मेरी चूत में घुसाने चले हैं। मैं बहुत थक गई हूँ। कहे देती हूँ कि कुछ और उपाय कर लो।।

ससुर- क्या उपाय कर लँ?
सास- मूठ मार लो। और इस उमर में इस समय आपके लिये दूसरी चूत का कहाँ से जुगाड़ करूं। लण्ड भी तो घोड़े जैसा लिए बैठे हो। नई लड़की चुदवा ले तो तीन दिन तक उठ ना पाए।
 
ससुर- अरे तो लण्ड को कटवा करके छोटा करवा लँ क्या?

सास- ये आपसे किसने कहा? आपका लण्ड जब घुसता है तो खूब मजा देता है।

ससुर- तो चल ना कमरे में मजा देता हूँ।

सास- चल ना कमरे में मजा देता हूँ? अरे आपके लण्ड से आज मजा नहीं, सजा मिलेगी। दो महीने का भूखा है। लण्ड आपका। तीर्थ यात्रा पे तो छूने नहीं दिया, आज अगर घुसाओगे तो?

मैं- “बाप रे...”

ससुर- मैं वो सब नहीं जानता... आज रात नहीं छोडूंगा।

सास- चलो रात की बात रात में... अभी बहू खाना बना चुकी होगी। चलो चोदो चूचियों को दबाना। वरना मैं शर्म से पानी-पानी हो जाऊँगी।

ससुर- वो भी तो अपने पति से चुदवाती ही होगी? उसका लण्ड भी तो अपनी चूत में लेती ही होगी वो? वो क्या नहीं समझती?

खाना खाने के समय ससुरजी मुझे घूरे जा रहे थे। जब खाना परोसती थी तब मेरे ब्लाउज़ में से बाहर आने को उतारू मेरी घाटीयों के दर्शन मेरे ससुरजी बिना टिकट के फोकट में कर रहे थे। खाना खाकर सब टीवी देखने लगे और मैं बरतन साफ करने लगी।


सास ने कहा- अरी बहू, मेरा बदन दर्द दे रहा है। इसीलिए आज मैं तो तेरे साथ ही साऊँगी, तू जरा मेरे हाथ पाँव दबा देना। और ये सुनकर तीनों का मुँह सूख गया। पहला खुद मेरा याने आप लोगों की प्यारी चम्पारानी का। अब और क्या लण्ड मिलेगी। रात को उंगलियों का ही सहारा रहेगा।

दूसरा सूखा चेहरा था ससुरजी का। क्योंकी दो माह की तीर्थ यात्रा से आने के बाद आज मौका था लण्ड की प्यास बुझाने का और सासूमाँ का बदन दर्द।।

तीसरा सूखा चेहरा था देवरजी का। आज ही तो नई चीज चखने को मीली थी। और जब स्वाद का जायका मालूम पड़ा, और... और चखने का मन चाह रहा था तो ये पंगा हो गया। याने कि इस घर में आज की रात तीन जने जिम की भूख के मारे तड़पने वाले थे। मैं, ससुरजी, और देवर राजा।

देवर जब बाथरूम में गया तो।

ससुर- मैं कुछ नहीं जानता। आज मुझे तेरी फुद्दी चाहिए ही चाहिए।

सास- अरे, पर मेरा बदन दर्द के मारे दुख रहा है तो... भला मैं क्या कर सकती हैं।

ससुर- वो सब मैं नहीं जानता, हाँ... मैं अपने कमरे में रहूँगा। आधी रात को मेरे कमरे में आएगी। बस कहे देता हूँ, मुन्ने की माँ।

सास- अजीब इंसान हो आप? पत्नी की बिल्कुल भी फिकर नहीं है। सिर्फ लण्ड को मजा चाहिए, भले ही पत्नी दर्द से मर जाए।

ससुर- अरे, एक बार चुदवा लेगी तो पहाड़ नहीं टूट जाएगा, फट नहीं जाएगी तेरी फुद्दी, भुर्ता नहीं बनेगा चूत का, पहले भी तो चुदवा रखी है। तीन तीन बच्चे भी निकाल चुकी है इस भोसड़ी से। फिर भी नाटक ही करती रहती है।

सास- अच्छा, बाबा नाराज ना हो। मैं कोशिश करूंगी। आधी रात के बाद आपके कमरे में आऊँगी बस। हो गया
ना।

ससुर- ये हुई ना बात।

सास- अरे मेरी चूचियां मत दबाओ। बेटा कभी भी बाथरूम से निकल सकता है। बहू, रसोई घर से आ सकती है। वो देखेंगे तो भला क्या सोचेंगे?

ससुर- सोचेंगे क्या? बहू को तो पता ही है। उसे भी मजा आ जाएगा।

सास- और कुँवारा बेटा। उसका क्या?

ससुर- उसकी ट्रेनिंग हो जाएगी। अरे वो भी कभी तो लड़की चोदेगा। अभी से सीखे रहेगा तभी ना चोद पाएगा।

सास- चलो-चलो चुपचाप टीवी देखो। अगर आधी रात को मुझे कमरे में देखना चाहते हो तो।
और ससुरजी धोती के ऊपर से लण्ड मसलते हुए टीवी देखने लगे।

मैंने सबको दूध पीने को दिया और उनके पास ही बैठ के दूध पीते हुए टीवी देखने लगी। टीवी में गरमा गरम सीन आया तो देवर मारे शर्म के उठकरके कमरे में चला गया। ससुर ने भी अपने कमरे की ओर रूख किया। अब हम दोनों सास बहू रह गये।

मैं तेल की शीशी लेकर उनके हाथ पाँव की मालिश करने लगी। सासूमाँ थकी हारी तो थी ही। जल्द ही उनके खर्राटे बजने लगे। और मैं उनके बगल में लेटी थी। नींद मेरी आँखों से कोष दूर थी। मैंने घड़ी की तरफ देखा। घड़ी में बारह बजते ही मैं उठी और कमरे से बाहर निकली। दरवाजे को बाहर से कुण्डी लगा दी मैंने, और बाथरूम की ओर चल दी।

बाथरूम में मैंने चूत को बढ़िया से धोकरके पोंछा और बाहर निकली। बाईं तरफ का दरवाजा देवरजी का और दाएं तरफ का कमरा सास-ससुर का था। मैंने कुछ पल सोचा और दायें तरफ बढ़ गई। कमरे में घुप्प अंधेरा... और मैं पलंग की तरफ बढ़ी।
 
Back
Top