Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार - Page 5 - SexBaba
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Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार

मेरा मीठा दर्द अब मेरी चूत के बहुत भीतर जा कर बस गया। मैं उस दर्द को बाहर निकालने के लिए बैचैन थी। "चाचजी, मुझे झाड़ दीजिये। मेरी चूत को जोर से चूसिये। आम्म्म .... आअन्न्न्न ....मैं अब आने वाली हूँ। सुरेश चाचा ने सही मौके पर मेरे भग-शिश्न को अपने दातों में ले कर हलके से काट लिया। मेरे शरीर में मानों कोई सैलाब आ गया। मैंने जोर से चाचाजी के बालों को पकड़ के उनका मुंह अपनी धड़कती हुई चूत में दबाने की कोशिश करने लगी। मेरे सारे बदन में एक विध्वंस आग लगी थी। उसे बुझाने का उपाय चाचाजी के पास था। मेरी चूत का दर्द अचानक एक बम की तरह फट गया। मेरी चूत से गर्म मीठा पानी बहने लगा। चाचाजी मेरी चूत से बहते रस को लपालप पीने लगे। "आआन्न्न ...... आम्म्म्म्म .......ऑ ...ऑ ....ऑ ....." मेरे मुंह से मीठी सिस्कारियों के अलावा कोई और आवाज़ नहीं निकल पाई। मेरा सारा शरीर मेरे झड़ने के तूफ़ान से अकड़ कर मड़ोड़े लेने लगा। सुरेश चाचा ने मौका देख कर मेरी गोल गोल भरी जांघों को अपने बाज़ुओं में उठा कर फैला दिया। उनका मोटे खम्बे की तरह धमकता हुआ लंड मेरे चूत को फाड़ने के लिए बेचैन हो रहा था। चाचू ने अपने लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े को मेरी अविकसित कमसिन चूत की संकरी दरार पर कई बार रगड़ा। मेरी सिस्कारियों ने उन्हें और भी उत्तेजित कर दिया। सुरेश चाचा को अपने लंड को मेरी कोमल तंग चूत में डालने की कोई जल्दी नहीं लगती थी। मेरी साँसे अटक अटक कर आ रहीं थीं। मेरी चूत चाचू के दानवीय लंड के आकार से डरने के बावज़ूद उनके लंड के लिए तड़प रही थी। "चाचू, प्लीज़ अब अंदर डाल दीजिये," मैं वासना के ज्वार से ग्रस्त हांफती हुई गिड़गिड़ाई। "नेहा बेटा, जब तक आप साफ़-साफ़ नहीं बोलेंगे की आपको क्या चाहिए हमें कैसे पता चलेगा की हम क्या करें?" चाचू ने कठोर हृदय से मुझे चिढ़ाते कहा। मेरा धैर्य कामवासना से ध्वस्त हो गया। मैं ने चीख सी मार कर घुटी घुटी आवाज़ में सुरेश चाचा से विनती की, "चाचू मेरी चूत मारिये। अपने मोटे लंड से मेरी चूत मारिये।"


सुरेश चाचा ने एक ज़बरदस्त धक्के से अपना मोटा सुपाड़ा मेरी चूत की संकरी सुरंग के अंदर घुसा दिया। मैं दर्द से बिलबिला उठी। मेरे दर्द से मचलते कूल्हों को दबा कर चाचू ने एक और दर्द भरे धक्के से अपने वृहत लंड की दो मोटी इन्चें मेरी कमसिन अविकसित चूत में बेदर्दी से धकेल दीं। मेरी दर्द भरी चीख से कमरा गूँज उठा, "चाचू .. ऊ ... ऊ .... मेरी चू ... ऊ ... त ... आः ......आह ......... आन्न्ह्ह ........ धीरे ........ आः ...... मर जाऊंगी मैं तो चाचू आन्न्न्ह्ह ...." सुरेश चाचा का महाकाय लंड अब मेरी चूत में फँस चूका था। उन्हें पता था कि मैं कितना भी चीखूं चिल्लाऊं उनका मोटा खम्बे जैसा लम्बा लंड मेरी चूत में पूरा का पूरा अंदर तक जा कर ही दम लेगा। सुरेश चाचा ने ने मेरे तड़पते शरीर को अपने भारी बदन के नीचे दबा कर भयंकर धक्कों से अपने लंड को मेरी कोमल चूत में इंच-इंच कर अंदर धकेलने लगे। उनका हर विध्वंसक धक्का मेरी चीख निकाल देता था। मेरी आँखों में आंसू भर गए। पर मेरी बाहें सुरेश चाचा की गर्दन पर कस गयीं। चाचू चुदाई में परिपक्व थे और मेरी बाहों ने उन्हें बता दिया था की मैं चाहे जितना भी दर्द हो उनके लंड के लिये व्याकुल थी। चाचू के लंड की आख़िरी दो तीन इंच बहुत ही मोटी थीं। जब वो मेरी तंग चूत के द्वार में फांस गयीं तो चाचू ने अपने लंड को थोड़ा बहर खींच कर एक गहरी सांस ले कर अपने भारी-भरकम शरीर की पूरी ताकत से एक ज़ोर के धक्के से मेरी बिलखती चूत में अपना पूरा वृहत्काय लंड जड़ तक डाल दिया। मेरी चीखें उन्हें बिलकुल भी परेशान नहीं कर रहीं थीं। सुरेश चाचा ने मेरी बिलखते मुंह को अपने मुंह से कस कर चूसते हुए अपना भीमकाय लंड धीरे धीरे मेरी चूत से बाहर निकालने लगे। मेरी चूत अब फटने के डर की बज़ाय खाली खाली महसूस करने लगी। मेरे चूत जो पहले चाचू के मोटे लंड को लेने में दर्द से बिलबिला रही थी वो अब उनके लंड को फिर से अपने अंदर लेने के लिए व्याकुल हो रही थी। मैं अपनी चूत की विसंगती से आश्चर्यचकित हो गयी। सुरेश चाचा ने अपनी ताकतवर कमर और नितिन्म्बों की मदद से एक ही धक्के में अपना लंड मेरी फड़कती हुई चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया। मेरी चीख में दर्द, वासना का विचित्र सा मिश्रण था। चाचू अपने विशाल लंड की करीब आठ इंचों से मुझे विध्वंसक धक्कों से चोदने लगे। मेरी दर्द भरी चीखें कमरे में गूँज कर उनकी उत्तेजना को और भी बड़ावा दे रहीं थीं। मेरी चींखें पांच दस मिनटों में कराहट में बदल गयीं। चाचू का मोटा लंड अब मेरी गीली चूत में तेजी से अंदर-बाहर जा रहा था। चाचू ने एक हल्की सी घुर्राहत से ज़ोर का धक्का लगाया और घुटी से आवाज़ में कहा, " नेहा बेटा, आपकी चूत तो बहुत ही कसी हुई है। मेरा लंड ऐसा लगता है कि किसी मखमली शिकंजे में फँस गया है। आज मैं आपकी चूत को फाड़ कर बिलकुल ढीला कर दूंगा।" मेरा हृदय चाचू की मेरी चूत की प्रशंसा से नाच उठा पर मेरी चूत अभी अभी भी दर्द से चरमरा रही थी और मेरी आवाज़ मेरे गले में अटक गयी थी। चाचू मेरी कराहों को नज़रंदाज़ कर मुझे अत्यंत भीषण धक्कों से चोदते रहे। कुछ ही देर में कमरे में मेरे कराहने की बजाय मेरी सिस्कारियां गूजने लगीं। "आह .. चा .... चू .... आह्ह्ह ... अब बहू ... ओऊ .... ऊत अच्छा लग रहा है। मुझे ज़ोर से चोदिये। आन्न्ह ... ऒओन्न्न्ह .... ऊन्न्नग्ग्ग।" मैं कामाग्नि में जलते हुए कसमसा रही थी। मेरी चूत में मेरे रस की बाड़ आ गयी थी। सुरेश चाचा का मोटा घोड़े जैसा लंड अब 'सपक-सपक' की आवाज़ों के साथ रेल के इंजन के पिस्टन की रफ़्तार से मेरी चूत मार रहा था। उनका हर धक्का मेरे पूरे शरीर को हिला देता था। सुरेश चाचा ने अपने बड़े मजबूत हाथों में मेरे दोनों चूचियों को भर कर मसलना शुरू कर दिया। मैं एक ऊंची सिसकारी मार कर झड़ने लगी। चाचू मेरे झड़ने की उपेक्षा कर मेरी चूत का लतमर्दन बिना धीमे हुए ताकतवर धक्कों से करते रहे। मेरी अविरत सिस्कारियां मेरे कामानंद की पराकाष्ठा का विवरण कर रहीं थीं। "चाचू आह मुझे फिर से झाड़ दीजिये। मेरी चूत को फाड़ कर उसे झाड़ दीजिये, चाचू ...ऊ ...ऒन्न्न्न्ह्ह .. ऒऒन्न्न्ह्ह आआह।" मैं भयंकर चुदाई से अभिभूत हो कर बिलबिलाई। “ नेहा बेटी आपकी चूत को आज हम सारी रात मारेंगें आपकी चूत को ही नहीं आज रात हम आपकी गांड को भी फाड़ देंगे।" सुरेश चाचा ने गुर्रा कर और भी ज़ोर से अपना मोटा लंड मेरी चूत में धसक दिया। उनके अंगूठे और तर्जनी ने मेरे दोनों नाज़ुक निप्पलों को कस कर भींच कर निर्ममता से मड़ोड़ दिया। मेरे चूचुक में उपजे दर्द और मेरी फड़कती चूत में चाचू के हल्लवी लंड से उपजे आनंद के मिश्रण के प्रभाव से मैं फिर से झड़ गयी। सुरेश चाचा मेरे दोनों चूचियों का और मेरी चूत का मर्दन बिना धीमे हुए और रुके करते रहे। उनके जान लेने वाले धक्के इतने बलवान थे की मैं उनके भारी बदन के नीचे दबी होने के बावज़ूद भी सर से पैर तक हिल जाती थी। सुरेश चाचा गुर्रा कर मेरे मुंह में फुसफुसाए, "नेहा बेटा, मैं आब आपकी चूत में आने वाला हूँ।" मैं सुरेश चाचा के होंठों को और भी जोर से चूसने लगी, "चाचू अपना लंड मेरी चूत में खोल दीजिये। मेरी चूत में अपने लंड का वीर्य भर दीजिये।" मेरे मुंह से बिना किसी शर्म के अश्लील शब्द स्वतः ही निकलने लगे। चाचू के थरथराते लंड के सुपाड़े ने मेरे गर्भाशय के ऊपर जोर से ठोकड़ मार कर अचानक मेरी चूत को गरम, जननक्षम गाढ़े वीर्य से भरना शुरू कर दिया। मेरी चूत चाचू के विशाल लंड के गरम शहद की बौछारों के प्रभाव से एक बार फिर से झड़ने लगी। मैं कसमसा कर चाचू से लिपट गयी। मैंने अपने दाँतों से चाचू के होंठ को कस कर दबोच लिया सुरेश चाचा के शक्तिशाली लंड ने न जाने कितनी बार फड़क कर गरम वीर्य की फुहार मेरे अविकसित गर्भाशय के ऊपर मारीं। मैं चाचू की जानलेवा चुदाई से इतनी बार झड़ गयी थी कि मेरा शरीर शिथिल हो गया। सुरेश चाचा भी भरी भारी सांस लेते हुए मेरे ऊपर पसर गए। उन्होंने भी मेरे मुंह और होंठो को कस कर चूसा। सुरेश चाचा और मैं एक दुसरे से लिपटे मेरी भयंकर चुदाई की थकन को दूर होने का इंतज़ार करने लगे। *********************************************************
 
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सुरेश चाचा मुझे कस कर पकड़ कर अपनी पीठ पर लेट गये। मैं अब उनके ऊपर लेती हुई थी और उनका भारी मोटा खम्बे जैसा लम्बा लंड मेरी चूत में अभी भी फंसा हुआ था। सुरेश चाचा के हाथ एक क्षण के लिए भी निष्चल नही हुए। चाचू ने मेरे चूतड़ों और कमर को सहला कर मेरे शरीर को फिर से गरम कर दिया। उनका लंड अभी भी मेरी चूत में फंसा हुआ था। उनका लंड मुझे घंटे भर चोद कर भी बड़ी मुश्किल से थोड़ा सा शिथिल हुआ था। मैंने अपनी चूत को होले से उनके विशाल लंड के ऊपर से अलग किया। मेरी चूत में से भरभर कर चाचू का गाढ़ा बच्चे पैदा करने वाला वीर्य ने उनके लंड और झांटों को भिगो दिया। मैं धीरे धीरे चाचू के होंठो फिर ठोड़ी को चूम कर नीचे सरकने लगी। मैंने सुरेश चाचा की मर्दाने घने बालों भरी सीने को प्यार से चूम कर उनके काले निप्पलों को ज़ोर से चूसा। उनके हल्की सी सिसकारी मेरा पुरूस्कार थी। मेरे होंठ उनके सीने से मेरी लार से गीला रास्ता बनाते हुए उनकी तोंद पर पहुँच गए। मैं अपनी जीभ उनकी गहरी नाभि में दाल कर हिलाने लगी। चाचू के मुंह से निकली गुर्राहट ने मेरी उत्तेजना को भी प्रज्ज्वलित कर दिया। मैंने चाचू की बालों से भरी तोंद को सब तरफ चूमा और चाटा। आखिरकार मेरी मंज़िल मेरे भूखे मुंह के सामने थी। चाचू का लंड धीरे धीरे फिर से पहले जैसे लोहे के खम्बे जैसी सख्ती की तरफ बड़ रहा था। मैंने अपने नन्हे हाथों से चाचू की जांघों को मोड़ा। सुरेश चाचा मेरी इच्छा समझ कर खुद ही अपनी जांघों को मोड़ और फैला कर लेट गए। मैंने पहले उनकी विशाल अंडकोष को चूमना शुरू किया। उनके घनी झांटे मेरे नाक में घुस कर गुलगुली कर रहीं थी। पर मुझे अपने चाचा के मोटे लंड और विशाल विर्यकोशों पर बहुत प्यार आ रहा था। आखिरकार इसी मोटे लंड ने मेरी चूत की चुदाई कर इन्हीं अन्डकोशों से उपजे वीर्य से मेरे गर्भाशय को सींचा था। मैंने काफी कोशिश के बाद उनका एक फ़ोता अपने मुंह में लेने में सफल हो गयी। जैसे ही मैंने उसे चूसना शुरू किया चाचू सिस्कार उठे। मैंने चाचू के दुसरे अंडकोष को भी अपने गरम मुंह में लेकर चूसा। मेरी नाक में सुरेश चाचा के भारी बालों से भरी चूतड़ों की दरार में से उपजी एक विचित्र मर्दानी गंध भर गयी। मैंने उनकी गांड को खोलने की कोशिश की पर उनके चूतड़ मेरे लिए बहुत भारी थे। सुरेश चाचा ने मेरी मदद करने के लिए एक मोटा तकिया अपने चूतड़ों के नीचे रख कर खुद ही अपने चूतड़ फैला दिए। मैंने अपनी जीभ से उनकी बालों से ढंकी गांड की दरार को चाटने लगी। मेरे मुंह और नाक चाचू की गांड की गंध और स्वाद से भर गए। उनके चूतड़ों के बीच में इकट्ठे हुए मर्दाने स्वाद और सुगंध ने मुझे वासना से अभिभूत कर दिया। मैं लालचीपन से उनकी कसी सिकुंड़ी हुई गांड के छल्ले को चाटने लगी। चाचू की सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहन दिया। मैंने अपनी जीभ की नोक से सुरेश चाचा की गांड के छिद्र को सताना शुरू कर उनके दोनों अन्डकोशों को अपने नन्हे हाथ से सहलाने लगी। सुरेश चाचा ने ज़ोर लगा कर अपनी गांड का छल्ला ढीला कर दिया और मेरी जीभ उसके अंदर समा गयी। मैंने सुरेश चाचा की गांड अपनी जीभ से मारने लगी। उनकी तरह मेरे पास उनके जैसा विशाल लंड तो था नहीं जिससे मैं उनकी गांड मार पाती। मेरे पास सिर्फ मेरी जीभ और उंगलियाँ थी। मैंने चाचू की गांड को अपने थूक से भिगो दिया। मैं थोडा ऊपर हो कर उनके लंड को चूसने लगी। मैंने अपनी तरजनी को उनकी गांड पर लगा कर दबाया। मेरी उंगली उनकी गांड के भीतर प्रविष्ट हो गयी। उनकी गांड बहुत ही गरम और मुलायम थी। चाचू की कसी गांड की दीवारों ने मेरी उंगली को जकड़ लिया। अब मुझे समझ आया की बड़े मामा और चाचू के मोटे लंडों को मेरी तंग चूत और गांड क्यों इतनी भाती थी। मैं चाचू के सुपाड़े को अपने मुंह में लेकर उसके बड़े पेशाब के छिद्र को अपनी जीभ की नोक से कुरेदने लगी। सुरेश चाचा ने अपने गांड ऊपर उठा कर मेरे मुंह में अपना लंड धकेलने की कोशिश की। मैं अब अपनी उंगली से उनकी गांड तेजी से मार कर उनका लंड चूस रही थी।


सुरेश चाचा की सिस्कारियां मुझे बहुत ही लुभावनी लगीं। मैंने और भी मन लगा कर उनके लंड को अपने लार भरे मुंह के भीतर ले कर जोर से चूसने लगी। मैंने अपने दूसरे हाथ से सुरेश चाचा के अब तनतनाये हुए लंड के विशाल खम्बे को सहलाने लगी। मेरा हाथ बड़ी मुश्किल से चाचू के लंड की आधी मोटाई को पकड़ पा रहा था। सुरेश चाचा की सिसकारी ने मेरे प्रयासों की प्रशंसा सी करती प्रतीत होतीं थीं।
 
लगभग आधे घंटे के बाद सुरेश चाचा के सिस्कारियां और भी तेज और ऊंची हो गयीं। मेरी उंगली उनकी गांड को तेजी से चोद रही थी। मेरी जीभ और मेरा मुंह उनके लंड के सुपाड़े को निखरती हुई कुशलता से सताने लगे। मेरा हाथ उनके मोटे लंड का हस्तमैथुन सा कर रहा था। अचानक बिना किसी चेतावनी दिए सुरेश चाचा के लंड ने मेरा मुंह गरम मर्दाने बच्चे-उत्पादक वीर्य से भर दिया। मैंने जितनी भी जल्दी हो सकता था उतनी जल्दी से उसे पीने लगी। चाचू के लंड ने पहली की तरह अनेको बार अपने वीर्य की तेज मोटी धार से मेरा मुंह भर दिया। मैंने कम से कम दस बार अपने मुंह में भरे वीर्य को प्यार से सटक लिया होगा। फिर भी कुछ मीठा-नमकीन वीर्य मेरे मूंह से निकल सुरेश चाचा के लंड और मेरे हाथ के ऊपर लिसड़ गया। मैंने बिना कुछ व्यर्थ किये बाहर फैले वीर्य को चाट कर सटक लिया। मैंने चाचू की गांड में से अपनी उंगली निकाल ली। मेरी उंगली उनकी गांड के भीतर की गंध से महक रही थी। मुझे अचानक ध्यान आया कि बड़े मामा को मेरी गांड का स्वाद बहुत अच्छा लगा था। मैंने भी चाचा की गांड के रस से भीगी उंगली को अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी। मुझे चाचू की गांड का कसैला तीखा स्वाद बिलकुल भी बुरा नहीं लगा। सुरेश चाचा मुझे एकटक प्यार से घूर रहे थे। ***************************************************** मैंने चाचा के लंड और अपने हाथों से उनके लंड से उबले गाड़े मीठे नमकीन गरम शहद को चाट कर साफ़ कर दिया। मैंने देखा कि सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड मेरे चूस कर झड़ने के बाद भी बस थोड़ा सा ही शिथिल हुआ था। मेरी आँखे सुरेश चाचा की लाल वासना भरी आँखों से उलझ गयीं। उनकी आँखों में तैरते वासना के मोटे मोटे डोरे मुझे और भी उत्साहित करने लगे। मैंने अपना छोटा सा मूंह पूरा खोल कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को अपने लार से भरे मूंह में ले लिया। चाचू ने तुरंत अपने भारी भरकम चूतड़ों को ऊपर उठा कर अपना लंड मेरे मूंह के भीतर घुसेड़ने का प्रयास करने लगे। मैंने अपने दोनों मुलायम हाथों को एक दुसरे के ऊपर रख केर चाचू के स्थूल लंड को सहलाने लगी। सुरेश चाचा के धीमी सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहित कर दिया।


मैंने चाचा के लंड और अपने हाथों से उनके लंड से उबले गाड़े मीठे नमकीन गरम शहद को चाट कर साफ़ कर दिया। मैंने देखा कि सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड मेरे चूस कर झड़ने के बाद भी बस थोड़ा सा ही शिथिल हुआ था। मेरी आँखे सुरेश चाचा की लाल वासना भरी आँखों से उलझ गयीं। उनकी आँखों में तैरते वासना के मोटे मोटे डोरे मुझे और भी उत्साहित करने लगे। मैंने अपना छोटा सा मूंह पूरा खोल कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को अपने लार से भरे मूंह में ले लिया। चाचू ने तुरंत अपने भारी भरकम चूतड़ों को ऊपर उठा कर अपना लंड मेरे मूंह के भीतर घुसेड़ने का प्रयास करने लगे। मैंने अपने दोनों मुलायम हाथों को एक दुसरे के ऊपर रख केर चाचू के स्थूल लंड को सहलाने लगी। सुरेश चाचा के धीमी सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहित कर दिया। मेरे कमउम्र कमसिन मनोवृत्ती ने अब तक मुझे इतना तो सिखा दिया था कि बड़े मामा की तरह एक अल्पव्यस्क लड़की के कोमल हाथों से स्पर्श मात्र से ही उनका लंड उत्तेजित हो सकता था। इस लिए मेरे मूंह से उनके सुपाड़े की मीठी यातना तो और भी कामयाबी लायेगी। मैं चाचू के लंड को एक बार फिर से लोहे के खम्बे जैसे सख्त करने के लिए उत्सुक हो उठी थी। सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड अब पूरा अपने पहले वाले धड़कते हुए भीमकाय आकार का हो चुका था। मेरे मूंह के कोने उनके विशाल सुपाड़े को मूंह में रखने के लिए पूरे फैले हुए थे और मुझे अब थोडा दर्द होने लगा था। मैंने जैसे ही अपना मूंह उनके लंड से ऊपर उठाया मेरे मूंह में लार ने उनके लंड को स्नान करवा दिया। "नेहा, क्या आपकी चूत चुदवाने के लिए तैयार है?" मुझे पता था कि सुरेश चाचा मुझे छेड़ रहे थे। अब तक वो चाहते तो मुझे धकेल कर मेरी चूत की धज्जियां उड़ा रहे होते। चाचू मेरे मूंह से चुदाई की प्रार्थना सुनना चाहते थे। "चाचू, मेरी चूत तो अब बहुत गीली है। मुझे आपके लंड से अपनी चूत चुदाई का बहुत मन कर रहा है," मैंने थोड़ा इठला कर कहा। चाचू ने अपने हिमालय की चोटी के सामान आकाश की तरफ उठे भीमकाय लिंग की तरफ इशारा कर के कहा, "नेहा बेटी, यदि आपको चुदना है तो थोड़ी महनत भी करनी होगी। इस बार आप खुद अपनी चूत मेरे लंड से मारिये।" सुरेश चाचा मेरे सम्भोग ज्ञान को बड़ाने का भी प्रयास कर रहे थे।
 
"चाचू, यदि आपको मेरा ऊपर से आपका लंड लेना अच्छा नहीं लगे तो आप मुझे सिखायेंगे?" मैंने अपनी दोनों मादक गुदाज़ भरी भरी जांघें सुरेश चाचा के कूल्हों के दोनों तरफ रख कर खड़ी हो गयी। "नेहा बेटी, जब आपकी चूत झड़ना चाहेगी तो उसे अपने आप समझ आ जाएगा कि उसे मेरे लंड के साथ साथ क्या करना चाहिए," सुरेश चाचा हलके से मुस्कराए। सुरेश चाचा ने मेरी कोई भी मदद करने की कोशिश नहीं की। मैंने उनके भारी हथोड़े जैसे लंड को स्थिर कर अपनी नाज़ुक, रतिरस से भरी चूत की मखमली दरार को उनके अविश्वसनीय मोटे सुपाड़े के ऊपर लगा कर अपने चूतड़ों को नीचे दबाने लगी। जैसे ही चाचू का विशाल सुपाड़ा मेरे चूत के द्वार को फैला कर चीरता हुआ अंदर प्रविष्ट हुआ तो मेरी ना चाहते हुए भी दर्द से भरी चीत्कार मेरे मूंह से उबल पड़ी। मेरी चूत सुरेश चाचा के मोटे लंड के ऊपर बुरी तरह से फँस कर मानो अटक गयी थी। मैंने थोड़ी देर रुक कर अपनी साँसों को काबू में करने की कोशिश की। सुरेश चाचा ने मेरी हिलती फड़कती चूचियों को अपने हाथों में भर कर धीरे धीरे सहलाना शुरू कर दिया। मैंने एक बड़ी सांस भर कर नीच की तरफ जोर लगाया और धीरे धीरे मेरी चूत की कोमल दीवारें फैलने लगीं और चाचू का मोटा विशाल लंड मेरी चूत में इंच इंच करके अंदर घुसने लगा। मैं अब हांफ रही थी। मेरी संकरी कमसिन चूत चाचू के मोटे लंड के ऊपर फंसी बिलबिला रही थी। मेरे दांत मेरे होंठ पर कसे हुए थे। सुरेश चाचा मेरी बिगड़ती हालत को देख कर हलके हलके मुस्करा रहे थे। मैंने अपने चूतड़ चाचू के लंड के ऊपर घुमाने लगी। मैंने सोचा इससे शायद मेरी चूत थोड़ी ढीली हो जाए। मैंने नीचे सर झुका कर देखा कि अभी तो सुरेश चाचा की सिर्फ तीन चार इन्चें ही मेरी चूत के अंदर थीं। सुरेश चाचा की हल्की सिसकारी ने मुझे अपनी तरकीब की सफलता से प्रभावित कर दिया। मैंने फिर से नीचे जोर लगाया और मेरी गीली चूत अचानक उनके चिकने लंड पर फिसल गयी। उनके विशाल लंड की कुछ इंचे मेरी चूत को चुद कर फैलाती हुई उसके अंदर दाखिल हो गयीं। मेरी दर्द भरी सिसकारी को चाचू ने बिलकुल नज़रंदाज़ कर दिया। मैं अब ज़ोर ज़ोर से सांस ले रही थी। मेरे होंठों के ऊपर पसीने की बूंदे इकट्ठा हो गयीं थीं। सुरेश चाचा ज़ोर ज़ोर से मेरे उरोज़ों को मसल रहे थे। मैंने बिना अपनी चूत की परवाह किये दिल मज़बूत कर के निश्चय कर लिया। मैंने अपने दोनों हाथ सुरेश चाचा की भरी बालों से भरी तोंद बार जमा कर अपने घुटने बिस्तर से ऊपर उठा लिए। मेरा पूरा वज़न अब चाचू के लंड पर टिका हुआ था। मेरी चूत सरसरा कर एक दर्दनाक धक्के में सुरेश चाचा के भीमकाय लंड की जड़ पर जा कर ही रुकी। मेरी दर्द से भरी चीख कमरे में गूँज उठी। सुरेश चाचा ने तरस खा कर मुझे बाँहों में भर कर बिस्तर पर बैठ गए। उन्होंने धीरे धीरे मुझे अपने लंड को मेरी चूत में हिलाना शुरू कर दिया। उनके होंठ मेरे सख्त संवेदनशील निप्पलों को चूसने लगे। मैंने अपने हाथ उनके सर के पीछे कस कर जकड़ लिए। मेरी चूत सुरेश चाचा की मदद से उनके मोटे लंड के ऊपर अब थोड़ी आसानी से आगे पीछे हिलने लगी। सुरेश चाचा एक बार फिर से लेट गए। अब मैं अपने घुटनों पर वज़न दाल कर अपनी चूत को ऊपर नीचे कर सुरेश चाचा के वृहत्काय लंड से अपनी चूत मरवाने लगी। सुरेश चाचा मेरी चूचियों को अब बेदर्दी से मसल रहे थे। मैने ज़ोर की सिसकारी लेते हुए अपने चूतड़ को हिला हिला कर चाचू के लंड की कम से कम चार पांच इंचों से अपनी चूत का मर्दन खुद ही करने लगी। उनका मोटे लंड की जड़ हर बार मेरे अतिपुरित भग-शिश्न को कस कर दबा रही थी। मुझे पता ही नहीं चला पर मैं अब अपनी गांड पूरे दम लगा कर अपनी चूत चाचू के लंड पर मार रही थी। मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज उठी। मेरे शरीर में एक बार फिर से मीठे दर्द भरी एंथन जाग उठी। मैंने सुरेश चाचा के लंड और भी ज़ोर और तेज़ी से अपनी चूत के अंदर डाल रही थी। मुझे अब तक समझ आ गयी थी कि मैं अब झड़ने वाले हूँ। सुरेश चाचा ने मेरे दोनों चूचियों को और भी कस के दबाना और मसलना शुरू कर दिया। "चाचू, आः ... ऊउन्न्न्न ... आअह्ह्ह्ह्ह ..... आअर्र्र्र्र्ग्ग्ग्ग्ग्ग मैं झड़ने वाली .. आआह्ह्ह ....चा .......चू ...ऒऒओ।" मैं सुरेश चाचा के लंड के ऊपर नीचे होते हुए चीखी। सुरेश चाचे ने बिजली की तेज़ी से उठ कर मुझे अपनी बाँहों में भर कर चोदने से रोक लिया। मैं बिलकुल व्याकुल हो उठी और फुसफुसाई, "चाचू, प्लीज़ मैं आने वाले थी।" सुरेश चाचा ने मेरे विनती करते होंठों पर अपने मर्दाने मोटे होंठों को लगा कर उन्हें चूसने लगे। मेरा रति-स्खलन जो कुछ ही क्षण दूर था वो अब तक शांत हो गया। सुरेश चाचा ने प्यार भरी कुटिलता से कहा, "नेहा बेटा, यदि मैं आपको झड़ने देता तो आप ऊपर से पूरा दिल लगा कर चुदाई थोड़े ही कर पातीं। अभी तो मेरे लंड को आपकी चूत से और भी मेहनत करवानी है। आखिर उसे आज रात आपकी कसी हुई गांड का सेवन भी तो करना है।"
 
मेरा सीने की धड़कन अपनी गांड मरवाने के दर्द भरे ख्याल से डर कर और भी तेज़ हो गयी। पर मेरी जलती धधकती चूत अब मेरे डर के ऊपर हावी हो गयी। मैंने एक बार फिर से अपनी चूत से चाचू के लंड को मारने लगी। दस मिनटों में मैं एक बार फिर से झड़ने के लिए तैयार थी लेकिन चाचू ने फिर से मुझे कगार के पास से वापस पीछे खींच लिया। मेरी वासना की सिस्कारियां उनके लंड को और भी बलवान बना रही थी। मैं अब कामाग्नि में जल कर सुबक रही थी, "चाचू, मुझे झाड़ दीजिये। प्लीज़ मेरी चूत को चोद कर झाड़ दीजिये।" मैंने पागलों की तरह अपने चूतड़ चाचू के लंड के ऊपर घुमाने की कोशिश करने लगी। सुरेश चाचा बड़ी निर्ममता से अपनी कमसिन भतीजी को तरसा और तड़पा कर खुद अपनी वासना को भड़का रहे थे। आखिर कर मेरी सुबकते हुए कामानंद को तलाशते लाल चेहरे को देख कर चाचू ने तरस खाया उन्होंने एक झटके से पलती मार कर मुझे अपने विशाल भारे भरकम शरीर के नीचे दबा कर मेरे सुबकते होंठों पर अपने होंठ चिपका दिए। उन्होंने मेरे दोनों होंठों को अपने मूंह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। चाचू ने अपना भीमकाय लंड पूरा बाहर निकाल कर एक विध्वंसक धक्के से जड़ तक मेरी चूत में ठूँस दिया। मेरी घुटी घुटी चीख उनके मूंह में समा गयी। सुरेश चाचा ने पांच बार अपना विशाल लंड सुपाड़े तक मेरी चूत से निकाल कर निर्मम अमानवीय प्रहार से मेरी चूत में जड़ तक ठूंसा। मेरी हर भयंकर धक्के से दर्द चीखी पर अखिरीर बार मेरी चीख बिना रुके ऊंची हो गयी। मैं अचानक झड़ने लगी। मैं दर्द और वासना के अनोखे मिश्रण से घबरा कर बिलबिला उठी और चाचा से कस कर चिपक गयी। सुरेश चाचा ने मुझे बिस्तर पर पटक कर मेरी भारी मादक जांघें अपने शक्तिशाली बाँहों में उठा कर मेरी चूत को लम्बे धक्कों से चोदने लगे। मेरा पहला चरम आनंद अभी पूरे चड़ाव पर था कि सुरेश चाचा की अस्थी-पंजर हिला देने वाले धक्कों भरी चुदाई ने मेरी तड़पती हुई चूत को फिर से झाड़ दिया। मैं अब अनर्गल बकने लगी, " चाचू चोदिये .... और ज़ोर ....से ....आह और दर्द कीजिय ... मैं फिर ... आअन्न्न्नग ...मेरी चू .... आआह।" सुरेश चाचा ने बिना धीमे हुए हचक हचक कर जानलेवा धक्कों से मेरी चूत को चोद कर मुझे पागल कर दिया। मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज रहीं थीं। सुरेश चाचा के भारी भरकम बालों से भरे चूतड़ बिजली की रफ़्तार से ऊपर नीचे हो रहे थे। उनकी जांघें मेरे चूतडों से इतने ज़ोर से टकरा रहीं थी की हर तक्कड़ कमरे में झापड़ जैसी आवाज़ पैदा कर रही थी। सुरेश चाचा ने मेरे दोनों हिलते फुदकते उरोज़ों को अपनी मुट्ठियों में जकड़ कर मसलने लगे। मेरे शरीर में ना जाने कितने तूफ़ान उठे हुए थे। मेरा दीमाग कभी चाचू की निर्मम चुदाई के दर्द से बिलखता था तो कभी उसी दर्दीली चुदाई के असीम काम-आनंद की बाड़ में डूबने लगता। सुरेश चाचा ने मुझे और भी ज़ोरों से चोदना शुरू कर दिया। उनके गले से गुर्घुराहत की आवाजों ने मुझे उनके स्खलन की चेतावनी दे दी। सुरेश चाचा ने हुंकार भर कर अपना मूसल लंड मेरी चूत में पूरा दबा आकर मेरे ऊपर गिर पड़े। उन्होंने अपना खुला मूंह मेरे हाँफते हुए मूंह पर चिपका दिया। सुरेश सुरेश चाचा चाचा का का लंड मेरी मेरी चूत के के बिलकुल बिलकुल अंदर तक तक घुसा था और उनके लंड के पेशाब के छेद से उबलती गाड़े गरम बच्चे पैदा करने की क्षमता भरे शहद की फुहारें मेरे अविकसित गर्भाशय को नहलाने लगीं। मैं तो चाचा की भयंकर चुदाई से इतनी थक गयी थी कि पहले की तरह शिथिल हो कर आँखें बंद कर करीब बेहोशी के आलम से निढाल हो गयी। ********************************************************
 
13


मैं हाँफते हुए सुरेश चाचा की बाँहों में समां गयी हम दोनों के शरीर पसीने से तर थे। सुरेश चाचा के माथे, और चेहरे पर पसीने की बूंदे इकट्ठे हो कर उनकी नाक के ऊपर बह चलीं। मैंने प्यार से उनकी नाक की नोक पर लटकी पसीने की बूँद को जीभ से चाट लिया, "सुरेश चाचा आप अपने विकराल लंड से कितने बलशाली धक्कों से मुझे चोदते हैं। आप मेरी तो जान ही निकाल देते हैं।" सुरेश चाचा ने मुझे कस कर अपनी बाँहों में जकड़ लिया, "नेहा बेटी, पर आपको चुदने का आनंद भी तो तभी आता है। मर्द को अपनी प्रियतमा की चूत मारते हुए उसकी सिस्कारियां और चीखें न सुनाई दें तो उस बेचारे को तो पता ही नहीं लगेगा कि उसे चुदाई से मजा भी आ रहा है या नहीं।" मैं उनके पसीने से गीले बदन के ऊपर चढ़ कर लेट गयी, "ऊँ ..ऊँ .चाचू ये तो बड़ी अच्छी मिसाल निकाली है आपने सिर्फ बेचारी लड़कियों को भीषण अंदाज़ से चोदने के लिए।" मैंने अपना मूंह सुरेश चाचा की पसीने से लथपथ कांख में दबा कर उसे अपनी जीभ से चाटने लगी। उनके चुदाई की मेहनत से निकले पसीने में मुझे उनकी मर्दानगी की सुगंद्ग मेरे नथुनों को अभिभूत कर रही थी। "नेहा बेटी, अभी तो हमें आपकी गांड भी तो मारनी है," सुरेश चाचा प्यार से मेरे माथे पे पसीने की वजह से चिपके बालों को उठा कर मेरे कान के पीछे करने लगे। "आँ-आँ! चाचू आप और बड़े मामा तो बस सिर्फ मुझे दर्द करने की बातें ही सोचते हैं।" मेरा अविकसित कमसिन शरीर चाचू के विकराल लंड से अपनी गांड फटवाने के विचार से सिंहर गया पर चाचा की मेरी गांड की चुदाई की इच्छा ने मुझे उत्तेजित भी कर दिया। "नेहा बेटी, जब हमने आपकी चूत में अपना लंड पूरा डालने की मेहनत कर रहे थे तो आप बहुत चीखी चिल्लायीं कि - धीरे डालिए, धीरे डालिए- पर जब आपको आनंद आने लगा तो फिर आप हमें और भी ज़ोर से चूत मारने का आदेश दे रहीं थी।" मुझे सुरेश चाचा की मेरी पतली दर्द भरी आवाज़ की बहुत खराब नकल पर हंसी आ गयी। मैंने चाचू की नाक की नोक को दाँतों से कस कर काटने का नाटक किया, "चाचू, ये ही तो मुझे समझ नहीं आता, कि कभी हमारा मस्तिष्क कुछ कहता है और हमारा शरीर कुछ और चाहता है। शायद ये सब हमें बड़ा होने के बाद ही पता चलेगा।" सुरेश चाचा ने मुझे प्यार से कस कर चूमा, "नेहा बेटी, बड़े मामा और हम दोनों का प्यार पहले पित्रव्रत ही है । उसके बाद ही हम दोनों मर्दों वाला प्यार आपके ऊपर न्यौछावर करते हैं। हमें आपके शरीर को अच्छी लगने वाली सम्भोग की हर क्रिया आपके साथ करना अच्छा लगता है।" "तब भी आपको हमें दर्द से चिख्वाने में भी तो मजा आता है।" मैंने इठला कर सुरेश चाचा के काले चुचुक को ज़ोर चूस कर दाँतों से काट लिया। उनकी हलके से सिसकारी निकल पड़ी। सुरेश चाचा ने मेरी नाक को चुटकी में भर कर चूंट लिया, "देखा, अभी आपने हमें प्यार से दर्द किया जो हमे बहुत ही अच्छा लगता है। नेहा बिटिया रति- क्रिया, सम्भोग, समागम या चुदाई में जो कुछ भी दोनों भागीदार करना चाहे और दोनों को अच्छा लगे वो सही है। काम-उत्तेजना में दर्द भी कामोन्माद का एक रूप बन जाता है।" सुरेश चाचा बड़े मामा की तरह मुझे लड़की से स्त्री में परिवर्तित होने की शिक्षा दे रहे थे। मैंने मुस्करा कर चाचू के होंठों को चूसना शुरू कर दिया। मैंने फिर प्यार से उनका सारा मरदाने चेहरे को अपने रसीले होंठों के चुम्बनों से भर दिया। मैंने अपनी जीभ से उनके दोनों कानों में घुसा कर चाटने के बाद अपनी लार से गीला कर दिया। फिर धीरे से उनके लोल्कियों [इअर-लोब्स] को पहले चूस फिर दाँतों से हलके हलके मसला। चाचू के हाथ मेरी गुदाज़ पसीने से तर पीठ को सहला रहे थे। उनके हाथों मेरे दोनों गुदाज़ फूले चूतड़ों को कस कर मसलने लगे। मैंने अदा से मुस्कुराते हुए उनकी नाक को सब तरफ से चूमा। मैंने अपनी जीभ की नोक से उनके नथुनों को सहला कर धीरे से उनके नथुनों के अंदर डाल दी। मेरे नन्हे हाथों ने चाचू का चेहरा कस कर पकड़ लिया। मेरी जीभ बारी बारी से उनके दोनों नथुनों को एक तरह से चोद रही थी। सुरेश चाचा की सांस भारी हो गयी और मेरी जीभ के ऊपर गरम भाप की तरह लग रही थी। जब मुझे लगा कि मैंने सुरेश चाचा के कामाकर्षक चेहरे को खूब प्यार कर लिया है तो मैं धीरे अपनी जीभ से उनकी मोटी गर्दन को चाट कर उनकी घने बालों से ढकी छाती को चिड़ाने लगी। सुरेश चाचा के हाथ उनकी उत्तेजना को मेरे चूतड़ों को मसल कर मुझे उत्साहित करने लगे। मैंने उनके दोनों चुचुकों को चूमा और चूसा। मैंने उनकी भरी तोंद को सब तरफ प्यार से चूमा और चाटा। मैं सुरेश चाचा की गहरी नाभि को अपनी जीभ कुरेदने लगी। सुरेश चाचा ने अपने शक्तिशाली बुझाओं से मेरे चूतड़ों को पकड़ कर उन्हें अपने सीने की तरफ खींच लिया। मेरे घुटने उनके सीने के दोनों तरफ थे।
 
मेरा प्यासा मूंह अपने लक्ष्य की ओर धीरे धीरे पहुँच रहा था। मेरी गुलाबी कोमल जीभ ने चाचू के पसीने से तर जंघाओं को चाट कर और भी गीला कर दिया। सुरेश चाचा का दान्वियकार लंड थरकने लगा। मेरे नन्हे हाथ उसके विशाल स्थूलता के सामने और भी छोटे लग रहे थे।


मेरे मूंह चाचू के लंड को पास पा कर लार से भर गया। उनके भारी लंड को उठा कर मैंने उसे सीधा खड़ा कर उसके मोटे वृहत सुपाड़े को अपने गरम मूंह में छुपा लिया। सुरेश चाचा ने अपने बड़े शक्तिशाली हाथों से मेरे फूले गुदाज़ चूतड़ों को मसल कर चौड़ा दिया। उससे मेरी गुलाबी चूत और नन्ही सी गुदा उनकी आँखों के सामने पूरी तरह खुली हो कर उन्हें आनंदायक दृश्य पेश कर रही होंगीं। मेरी चूत पर हलके रेशमी मुश्किल से दिखने वाले रोम मेरे रस से भीग कर मानों गायब हो गए। सुरेश चाचा का विशाल लंड मेरे हाथों और मूंह के प्यार से तेज़ी से कठोरता की तरफ बड़ने लगा। मेरे दोनों हाथों की उंगलियाँ उनके विकराल स्तम्भ को पूरी तरह घेरने के लिये अकुशल थीं। उनके दानवीय लंड की मोटाई देख कर मुझे बड़े मामा का लंड और भी विशाल लगने लगा। सुरेश चाचा ने अपनी मध्यम उंगली मेरी चूत के संकरे द्वार के अंदर डाल दी। उनकी लम्बी उंगली ने मेरे अविकसित र्गर्भाशय की ग्रीवा को सहलाना शुरू कर दिया। मुझे अपने गर्भाशय के हिलने से एक विचित्र सा दर्द और जलन सी होती थी। मैं सिसक उठी और नासमझी में अपने दाँतों को चाचू के लंड पर कस लिया। चाचू की सिसकारी निकल पड़ी। उन्हें ज़रूर दर्द हुआ होगा पर उस दर्द के प्रभाव से उनका लंड एक क्षण में ही लोहे की मोटी छड़ की तरह तन्ना उठा। मेरे नन्हे मूंह के कोने उनके सेब जैसे सुपाड़े को मूंह में रखने के लिए इतने फ़ैल रहे थे कि मुझे थोड़ी पीड़ा होने लगी। सुरेश चाचा की उंगली मेरी चूत की कोमल सुरंग के द्वार के भीतर एक अत्यंत संवेदनशील स्थल धूंड कर उसे रगड़ने लगी। उस से मेरी सिसकारी फुट पड़ीं। मौका देख कर सुरेश चाचा ने अपनी तर्जनी को मोड़ कर मेरी गुदा द्वार के तंग छिद्र के ऊपर लगा कर दबाने लगे। मैंने बड़ी मुश्किल से उनके विशाल लंड अपने मूंह में रख कर उसे चूस पा रही थी। मेरी जीभ ने लेकिन उनके मूत्र-छिद्र को ढूँढ कर उसे परेशान करने लगी। हम दोनों अब वासना के ज्वर से धधक रहे थे। मुझे पता था कि जब तक सुरेश चाचा मेरी गांड मारने के लिए तैयार नहीं होंगे मैं कितना भी उत्तेजित हो जाऊं वो मेरे धैर्य की परीक्षा लेंगे। सुरेश चाचू की मोटी लम्बी उंगली धीरे धीरे मेरे गुदा द्वार को खोल कर मेरे मलाशय में प्रविष्ट हो गयी। मेरी गांड का छेद हलके हलके से जलने लगा। सुरेश चाचा ने जड़ तक अपनी उंगली मेरे मलाशय में डाल कर उसे भीतर ही दबा कर गोल गोल घुमाने लगे। मेरे मलाशय की कोमल दीवारों से एक विचित्र सा संवेदन उठने लगा। उनकी उंगली ने मेरे मलाशय में पहले से ही इकट्ठे 'मेहमानों' को हिला हिला कर मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। मैं सिसक उठी। "चाचू, क्या आप मेरी चूत को नहीं झाड़ेंगे?" मैं वासना से लिप्त आवाज़ में होले से बुदबुदाई। "नहीं, मेरी सुंदर बिटिया।आज तो हम आपकी गांड मार कर आपको झाड़ेंगे।" सुरेश चाचा ने बड़े मर्दानगी भरे अधिकार से मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। चाचू ने अपनी उंगली से मेरी गांड को चोदने लगे। मेरी गांड के छल्ले की जलन धीरे धीरे कम हो कर बिलकुल गायब हो गयी। मेरी गांड अब चाचू की उंगली की और उठ रही थी। चाचू मेरे भग-शिश्न को चूसते हुए अब तेज़ी से मेरी गांड में अपनी उंगली अंदर बाहर कर रहे थे। मैं उनके द्वारा दिए हुए दो तरफ़ा आनंद के प्रभाव से झूम उठी। मेरी गांड में अब आमोद की झड़ी चल उठी। मेरा हृदय अचानक अपने गांड में चाचू के उंगली से भी मोटा और लम्बा हथियार की अपेक्षा से मचल उठा। सुरेश चाचा ने अपनी उंगली मेरी गांड से निकाल कर उसे कस कर अपने मूंह में डाल कर चूस लिया। सुरेश चाचू ने मुझे पेट और घुटनों पर लिटा कर मेरी गांड-हरण के लिए तैयार कर दिया। चाचू ने अपना विकराल लंड मेरी चूत में डाल कर उसे मेरे रति-रस से लिप कर लिया। मेरी गांड उनकी चुसाई से फड़क रही थी। मैंने अपना निचला होंठ अपने दांतों तले दबा लिया।


सुरेश चाचा ने मुझे पेट के बल लिटा कर मेरे चूतड़ हवा में ऊपर उठा कर मेरा सर नीचे झुका दिया। मैंने अपना सर अपने आड़े मुड़े बाजुओं पर रख कर अपनी गांड में सुरेश चाचा के विकराल लंड के दर्द भरे आक्रमण के लिए तैयार होने की कोशिश करने के लिए सांस थाम ली। सुरेश चाचा ने अपने विशाल हाथों से मेरे दोनो चूतड़ों को मसला और फिर कस कर दबाने लगे। मेरा शरीर मेरी दर्द भरी गांड की चुदाई की प्रतीक्षा से सुलगने लगा। मेरे शरीर में हलके से कम्पन मेरी कमर की मांसपेशियों में हल्की सी लहर सी पैदा कर देते थे। यह सब सुरेश चाचा की कामाग्नि में घी का काम कर रही थी। उन्होंने आखिरकार मेरे चूतड़ों को फैला कर मेरे नन्हे से गुदाद्वार को चौड़ा करने का असफल प्रयास किया। मैंने अपना निचला होंठ अपने दाँतों तले कस कर दबा लिया। सुरेश चाचू ने अपना सेब जैसा मोटा सुपाड़ा मेरी दर्द और वासना की अदभुत मिलीजुली आकांक्षा से फड़कती गांड के छिद्र के ऊपर रख कर उसे दबाना शुरू कर दिया। सुरेश चाचा को मेरी नन्ही सी गांड का प्रवेश द्वार और अपने विकराल भीमकाय लंड की असंगती से कोई भी मेरे लिए सहानभूति हृदय में उठी हो तो उन्होंने उसे दर्शित नहीं किया। चाचू ने मेरी कमर को कस कर अपने शक्तिशाली हाथों से पकड़ कर मुझे छोटे निरीह जानवर की तरह बिस्तर पर दबोच कर जकड़ लिया। सुरेश चाचा ने अपने भारीभरकम शरीर की ताकत का प्रयोग कर अपने लंड को अविरत दवाब लगा कर मेरी गांड के छेद का निष्फल प्रतिरोध के समर्पण की प्रतीक्षा सी कर रहे थे। मुझे लगा कि सुरेश चाचा यदि चाहते तो एक झटके में मेरी कोमल निसहाय गांड का मर्दन कर सकते थे। चाचू के लिए मेरी गांड और मेरी अंदर की अविक्सित स्त्री का समर्पण मिल कर एक उत्तेजक प्रतिरोध बन गए थे। अचानक बिना किसी घोषणा के मेरा मलद्वार का छिद्र जो अब तक एक बड़ी बंद मुठी को बाहर रोकने में सफल रहा था, उसने सुरेश चाचा के वज्र सामान कठोर उदंड स्थूल लंड के सुपाड़े के सामने समर्पण कर अपने अस्त्र नीचे दाल दिए। सुरेश चाचा का वृहत सुपाड़ा मेरी कमसिन अपरिपक्व एक दिन पहले तक अक्षत गांड में एक झटके से अंदर समा गया। मेरी, गांड चुदाई के दर्द को बिना चीखे चिल्लाये सहन करने की सारी तैय्यारियाँ व्यर्थ चली गयीं। मेरे गले से दर्द से भरी चीख उबल कर सारे कमरे में गूँज उठी। मेरी चीख मानो सुरेश चाचा के लिये उनके विशाल लंड की विजय की तुरही थी। सुरेश चाचा ने जैसे ही मेरी चीख का उत्कर्ष अवरोह की तरफ बड़ा एक भीषण निर्मम धक्के से अपने विकराल लंड की दो तीन इन्चें मेरे मलाशय में घुसेड़ दीं। मेरी दर्द से भरी चीखों ने सुरेश चाचा के हर भयंकर निर्मम धक्के का स्वागत सा किया।
 
"चाचू, मैं मर गयी ..... मेरी ... ई ..... ई ... गा .....आ .... आ ..... आंड .... आः बहु .....आः दर्द ... चा ...आआआ ...." मैं बिबिला कर मचल रही थी पर मेरी स्तिथी एक निरीह बछड़े की तरह थी जो एक विकराल शेर के पंजों और दाँतों के बीच फंस चुका था। सुरेश चाचा ने शक्तिशाली विश्वस्त मर्दाने धक्कों से अपना लंड मेरी तड़पती, बिलखती गांड में पूरा का पूरा अंदर डाल दिया। मेरे आँखों में दर्द भरे आंसू थे। मैं तड़प कर बिलबिला रही थी पर मेरे मचलने और तड़पने से मेरी गांड स्वतः चाचू के लंड के इर्द-गिर्द हिलने लगी। सुरेश चाचा ने अपने विकराल लंड मेरी जलती अविस्वश्नीय अकार में चौड़ी हुई गांड से बाहर निकालने लगे। मेरी गुदा के द्वार ने उनके लंड की हर मोटी इंच की दर्द भरी रगड़ को महसूस किया। मेरी दर्द भरी सीत्कारी ने सुरेश चाचा के की मेरे कमर के ऊपर की जकड़ को और भी कस दिया। सुरेश चाचा ने एक गहरी सांस ले कर अपने शक्तिशाली शरीर की असीम ताकत से उत्त्पन्न दो भयंकर धक्कों में मेरी गांड में जड़ तक शवाधन कर दिया। मेरी चीत्कार पहले जैसी हृदय-विदारक तो नहीं थी पर फिर भी मेरे कानों में जोर से गूँज रही थी। चाचू ने बेदर्दी से अपना विशाल लंड की छेह और सात इंचों से मेरी गांड का मर्दन शुरू कर दिया। चाचू के हर धक्के से मेरा पूरा असहाय शरीर हिल रहा था। सुरेश चाचा ने मेरी दर्द भरी चीत्कारों की उपेक्षा कर मेरे मलाशय की गहराइयों में अपना लंड मूसल की तरह जड़ तक कूटने लगे। मेरी गांड का संवेदनशील छिद्र चाचू के मोटे लंड की परिधि के ऊपर इतना फ़ैल कर चौड़ा हो गया था कि उसमे से उठा दर्द और जलन की संवेदना मेरे शरीर में फ़ैल गयी थी। मुझे याद नहीं की कितने भीषण धक्कों के बाद अचानक मेरी गांड में से आनंद की लहर उठने लगी। मुझे सिर्फ इतना ही याद है कि मेरी चीत्कार सिस्कारियों में बदल गयीं। सुरेश चाचा ने मेरी सिस्कारियों का स्वागत अपना पूरा विकराल लंड मेरे मलाशय से बाहर निकाल कर एक ही टक्कर में जड़ तक मेरी गांड की मुलायम कोमल, गहराइयों में स्थापित कर दिया। मैं मचल उठी, "चाचू, क्या आप शुरूआत में मेरी गांड थोड़ी धीरे नहीं मार सकते थे? कितना दर्द किया आपने!" सुरेश चाचू ने एक और भायानक धक्का लगा कर मुझे सर से चूतड़ों तक हिला दिया, "नेहा बेटा, आपकी नम्रता चाची का विचार है कि यदि पुरुष का लंड गांड मारते हुए स्त्री की चीख न निकाल पाए तो स्त्री को भी गांड मरवाने का पूरा आनंद नहीं आता। मैं चाची के विचित्र तर्क से निरस्त हो गयी थी, और अब मेरी गांड में से उपजे कामानंद ने मेरी बोलती भी बंद कर दी थी। "चाचू, अब आपका लंड मेरी गांड में बहुत अच्छा लग रहा है। कितना मोटा लंड है आपका," सुरेश चाचा के भीषण धक्कों ने मेरी सुरेश चाचा के मर्दाने भीमकाय लंड की प्रशंसा को बीच में ही काट दिया, "उन्ह ... चाचू .....आः .....आह ...... ऊऊण्ण्णः ...... ऊऊऊण्ण्ण्ण्घ्घ्घ्घ ऊफ ....ऊफ ...... चाचू मेरी .... ई ... ई .... गा ...आ ..... आ .... आनन ...आः।" अब तक सुरेश चाचा ने मेरी गांड के मर्दन की एक ताल बना ली थी। चाचू दस बीस लम्बे दृढ़ धक्कों से मेरी गांड मार कर छोटे भीषण तेज़ अस्थिपंजर हिला देने वाले झटकों से मेरी गांड को अंदर तक हिला रहे थे। कमरे में मेरी गांड की मोहक सुगंध फ़ैल गयी थी। सुरेश चाचा ने मेरे दोनों हिलते स्तनों को अपने हाथों में भर कर मसला और मेरे कान में फुसफुसाये, "नेहा बेटी आपके मलाशय की मीठी सुगंध कितनी आनंददायक है?" मैं अब कामवासना से सिसक रही थी और कुछ भी नहीं बोल पाई, "आः .. चाचू .... मुझे ... झाड़ ....ऊऊऊण्ण्णः ऊँ ....आह। सुरेश चाचा ने मेरी वासना भरी कामना की उपेक्षा नहीं की। उन्होंने मेरे मेरी दोनों चूचियों का मर्दन कर मेरी गांड को भीषण धक्कों से मारते हुए गुर्राये, "बेटी, आज रात हम आपकी गांड को फाड़ कर आपको अनगिनत बार झाड़ देंगे।" मेरे चूतड़ अब चाचू के लंड के हिंसक आक्रमण से दूर आगे जाने के स्थान पर अब उनके धक्कों की तरफ पीछे हिल रहे थे। सुरेश चाचू ने ने मेरा एक उरोज़ मुक्त कर मेरे संवेदनशील भगशिश्न को अपनी चुटकी में भर कर मसलने लगे। मेरा सारा शरीर मानो बिजली के प्रवाह से झटके मार कर हिलने लगा, "आह .. मैं .... आ गयी .... चा... चू .....मैं ...आः ....झ ...झ ... ड़ गयी ... ई ... ई।" मेरा रति-निश्पति की प्रबलता ने मेरी सांस के प्रवाह को भी रोक दिया। मेरा शरीर थोडा शिथिल हो गया। पर चाचू ने अपने मज़बूत हाथों से मेरे चूतड़ को स्थिर रख मेरे गांड में अपना विकराल लंड रेल के इंजन के पिस्टन की ताकत और तेज़ी से कर रहा था। मेरे मलाशय की समवेदनशील दीवारें अब उनके लंड की हर मोटी शिरा,रग और नस को महसूस कर रहीं थीं। **********************************************************************
 
मेरा प्यासा मूंह अपने लक्ष्य की ओर धीरे धीरे पहुँच रहा था। मेरी गुलाबी कोमल जीभ ने चाचू के पसीने से तर जंघाओं को चाट कर और भी गीला कर दिया। सुरेश चाचा का दान्वियकार लंड थरकने लगा। मेरे नन्हे हाथ उसके विशाल स्थूलता के सामने और भी छोटे लग रहे थे।


मेरे मूंह चाचू के लंड को पास पा कर लार से भर गया। उनके भारी लंड को उठा कर मैंने उसे सीधा खड़ा कर उसके मोटे वृहत सुपाड़े को अपने गरम मूंह में छुपा लिया। सुरेश चाचा ने अपने बड़े शक्तिशाली हाथों से मेरे फूले गुदाज़ चूतड़ों को मसल कर चौड़ा दिया। उससे मेरी गुलाबी चूत और नन्ही सी गुदा उनकी आँखों के सामने पूरी तरह खुली हो कर उन्हें आनंदायक दृश्य पेश कर रही होंगीं। मेरी चूत पर हलके रेशमी मुश्किल से दिखने वाले रोम मेरे रस से भीग कर मानों गायब हो गए। सुरेश चाचा का विशाल लंड मेरे हाथों और मूंह के प्यार से तेज़ी से कठोरता की तरफ बड़ने लगा। मेरे दोनों हाथों की उंगलियाँ उनके विकराल स्तम्भ को पूरी तरह घेरने के लिये अकुशल थीं। उनके दानवीय लंड की मोटाई देख कर मुझे बड़े मामा का लंड और भी विशाल लगने लगा। सुरेश चाचा ने अपनी मध्यम उंगली मेरी चूत के संकरे द्वार के अंदर डाल दी। उनकी लम्बी उंगली ने मेरे अविकसित र्गर्भाशय की ग्रीवा को सहलाना शुरू कर दिया। मुझे अपने गर्भाशय के हिलने से एक विचित्र सा दर्द और जलन सी होती थी। मैं सिसक उठी और नासमझी में अपने दाँतों को चाचू के लंड पर कस लिया। चाचू की सिसकारी निकल पड़ी। उन्हें ज़रूर दर्द हुआ होगा पर उस दर्द के प्रभाव से उनका लंड एक क्षण में ही लोहे की मोटी छड़ की तरह तन्ना उठा। मेरे नन्हे मूंह के कोने उनके सेब जैसे सुपाड़े को मूंह में रखने के लिए इतने फ़ैल रहे थे कि मुझे थोड़ी पीड़ा होने लगी। सुरेश चाचा की उंगली मेरी चूत की कोमल सुरंग के द्वार के भीतर एक अत्यंत संवेदनशील स्थल धूंड कर उसे रगड़ने लगी। उस से मेरी सिसकारी फुट पड़ीं। मौका देख कर सुरेश चाचा ने अपनी तर्जनी को मोड़ कर मेरी गुदा द्वार के तंग छिद्र के ऊपर लगा कर दबाने लगे। मैंने बड़ी मुश्किल से उनके विशाल लंड अपने मूंह में रख कर उसे चूस पा रही थी। मेरी जीभ ने लेकिन उनके मूत्र-छिद्र को ढूँढ कर उसे परेशान करने लगी। हम दोनों अब वासना के ज्वर से धधक रहे थे। मुझे पता था कि जब तक सुरेश चाचा मेरी गांड मारने के लिए तैयार नहीं होंगे मैं कितना भी उत्तेजित हो जाऊं वो मेरे धैर्य की परीक्षा लेंगे। सुरेश चाचू की मोटी लम्बी उंगली धीरे धीरे मेरे गुदा द्वार को खोल कर मेरे मलाशय में प्रविष्ट हो गयी। मेरी गांड का छेद हलके हलके से जलने लगा। सुरेश चाचा ने जड़ तक अपनी उंगली मेरे मलाशय में डाल कर उसे भीतर ही दबा कर गोल गोल घुमाने लगे। मेरे मलाशय की कोमल दीवारों से एक विचित्र सा संवेदन उठने लगा। उनकी उंगली ने मेरे मलाशय में पहले से ही इकट्ठे 'मेहमानों' को हिला हिला कर मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। मैं सिसक उठी। "चाचू, क्या आप मेरी चूत को नहीं झाड़ेंगे?" मैं वासना से लिप्त आवाज़ में होले से बुदबुदाई। "नहीं, मेरी सुंदर बिटिया।आज तो हम आपकी गांड मार कर आपको झाड़ेंगे।" सुरेश चाचा ने बड़े मर्दानगी भरे अधिकार से मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। चाचू ने अपनी उंगली से मेरी गांड को चोदने लगे। मेरी गांड के छल्ले की जलन धीरे धीरे कम हो कर बिलकुल गायब हो गयी। मेरी गांड अब चाचू की उंगली की और उठ रही थी। चाचू मेरे भग-शिश्न को चूसते हुए अब तेज़ी से मेरी गांड में अपनी उंगली अंदर बाहर कर रहे थे। मैं उनके द्वारा दिए हुए दो तरफ़ा आनंद के प्रभाव से झूम उठी। मेरी गांड में अब आमोद की झड़ी चल उठी। मेरा हृदय अचानक अपने गांड में चाचू के उंगली से भी मोटा और लम्बा हथियार की अपेक्षा से मचल उठा। सुरेश चाचा ने अपनी उंगली मेरी गांड से निकाल कर उसे कस कर अपने मूंह में डाल कर चूस लिया। सुरेश चाचू ने मुझे पेट और घुटनों पर लिटा कर मेरी गांड-हरण के लिए तैयार कर दिया। चाचू ने अपना विकराल लंड मेरी चूत में डाल कर उसे मेरे रति-रस से लिप कर लिया। मेरी गांड उनकी चुसाई से फड़क रही थी। मैंने अपना निचला होंठ अपने दांतों तले दबा लिया।


सुरेश चाचा ने मुझे पेट के बल लिटा कर मेरे चूतड़ हवा में ऊपर उठा कर मेरा सर नीचे झुका दिया। मैंने अपना सर अपने आड़े मुड़े बाजुओं पर रख कर अपनी गांड में सुरेश चाचा के विकराल लंड के दर्द भरे आक्रमण के लिए तैयार होने की कोशिश करने के लिए सांस थाम ली। सुरेश चाचा ने अपने विशाल हाथों से मेरे दोनो चूतड़ों को मसला और फिर कस कर दबाने लगे। मेरा शरीर मेरी दर्द भरी गांड की चुदाई की प्रतीक्षा से सुलगने लगा। मेरे शरीर में हलके से कम्पन मेरी कमर की मांसपेशियों में हल्की सी लहर सी पैदा कर देते थे। यह सब सुरेश चाचा की कामाग्नि में घी का काम कर रही थी। उन्होंने आखिरकार मेरे चूतड़ों को फैला कर मेरे नन्हे से गुदाद्वार को चौड़ा करने का असफल प्रयास किया। मैंने अपना निचला होंठ अपने दाँतों तले कस कर दबा लिया। सुरेश चाचू ने अपना सेब जैसा मोटा सुपाड़ा मेरी दर्द और वासना की अदभुत मिलीजुली आकांक्षा से फड़कती गांड के छिद्र के ऊपर रख कर उसे दबाना शुरू कर दिया। सुरेश चाचा को मेरी नन्ही सी गांड का प्रवेश द्वार और अपने विकराल भीमकाय लंड की असंगती से कोई भी मेरे लिए सहानभूति हृदय में उठी हो तो उन्होंने उसे दर्शित नहीं किया। चाचू ने मेरी कमर को कस कर अपने शक्तिशाली हाथों से पकड़ कर मुझे छोटे निरीह जानवर की तरह बिस्तर पर दबोच कर जकड़ लिया। सुरेश चाचा ने अपने भारीभरकम शरीर की ताकत का प्रयोग कर अपने लंड को अविरत दवाब लगा कर मेरी गांड के छेद का निष्फल प्रतिरोध के समर्पण की प्रतीक्षा सी कर रहे थे। मुझे लगा कि सुरेश चाचा यदि चाहते तो एक झटके में मेरी कोमल निसहाय गांड का मर्दन कर सकते थे। चाचू के लिए मेरी गांड और मेरी अंदर की अविक्सित स्त्री का समर्पण मिल कर एक उत्तेजक प्रतिरोध बन गए थे। अचानक बिना किसी घोषणा के मेरा मलद्वार का छिद्र जो अब तक एक बड़ी बंद मुठी को बाहर रोकने में सफल रहा था, उसने सुरेश चाचा के वज्र सामान कठोर उदंड स्थूल लंड के सुपाड़े के सामने समर्पण कर अपने अस्त्र नीचे दाल दिए।
 
सुरेश चाचा का वृहत सुपाड़ा मेरी कमसिन अपरिपक्व एक दिन पहले तक अक्षत गांड में एक झटके से अंदर समा गया। मेरी, गांड चुदाई के दर्द को बिना चीखे चिल्लाये सहन करने की सारी तैय्यारियाँ व्यर्थ चली गयीं। मेरे गले से दर्द से भरी चीख उबल कर सारे कमरे में गूँज उठी। मेरी चीख मानो सुरेश चाचा के लिये उनके विशाल लंड की विजय की तुरही थी। सुरेश चाचा ने जैसे ही मेरी चीख का उत्कर्ष अवरोह की तरफ बड़ा एक भीषण निर्मम धक्के से अपने विकराल लंड की दो तीन इन्चें मेरे मलाशय में घुसेड़ दीं। मेरी दर्द से भरी चीखों ने सुरेश चाचा के हर भयंकर निर्मम धक्के का स्वागत सा किया। "चाचू, मैं मर गयी ..... मेरी ... ई ..... ई ... गा .....आ .... आ ..... आंड .... आः बहु .....आः दर्द ... चा ...आआआ ...." मैं बिबिला कर मचल रही थी पर मेरी स्तिथी एक निरीह बछड़े की तरह थी जो एक विकराल शेर के पंजों और दाँतों के बीच फंस चुका था। सुरेश चाचा ने शक्तिशाली विश्वस्त मर्दाने धक्कों से अपना लंड मेरी तड़पती, बिलखती गांड में पूरा का पूरा अंदर डाल दिया। मेरे आँखों में दर्द भरे आंसू थे। मैं तड़प कर बिलबिला रही थी पर मेरे मचलने और तड़पने से मेरी गांड स्वतः चाचू के लंड के इर्द-गिर्द हिलने लगी। सुरेश चाचा ने अपने विकराल लंड मेरी जलती अविस्वश्नीय अकार में चौड़ी हुई गांड से बाहर निकालने लगे। मेरी गुदा के द्वार ने उनके लंड की हर मोटी इंच की दर्द भरी रगड़ को महसूस किया। मेरी दर्द भरी सीत्कारी ने सुरेश चाचा के की मेरे कमर के ऊपर की जकड़ को और भी कस दिया। सुरेश चाचा ने एक गहरी सांस ले कर अपने शक्तिशाली शरीर की असीम ताकत से उत्त्पन्न दो भयंकर धक्कों में मेरी गांड में जड़ तक शवाधन कर दिया। मेरी चीत्कार पहले जैसी हृदय-विदारक तो नहीं थी पर फिर भी मेरे कानों में जोर से गूँज रही थी। चाचू ने बेदर्दी से अपना विशाल लंड की छेह और सात इंचों से मेरी गांड का मर्दन शुरू कर दिया। चाचू के हर धक्के से मेरा पूरा असहाय शरीर हिल रहा था। सुरेश चाचा ने मेरी दर्द भरी चीत्कारों की उपेक्षा कर मेरे मलाशय की गहराइयों में अपना लंड मूसल की तरह जड़ तक कूटने लगे। मेरी गांड का संवेदनशील छिद्र चाचू के मोटे लंड की परिधि के ऊपर इतना फ़ैल कर चौड़ा हो गया था कि उसमे से उठा दर्द और जलन की संवेदना मेरे शरीर में फ़ैल गयी थी। मुझे याद नहीं की कितने भीषण धक्कों के बाद अचानक मेरी गांड में से आनंद की लहर उठने लगी। मुझे सिर्फ इतना ही याद है कि मेरी चीत्कार सिस्कारियों में बदल गयीं। सुरेश चाचा ने मेरी सिस्कारियों का स्वागत अपना पूरा विकराल लंड मेरे मलाशय से बाहर निकाल कर एक ही टक्कर में जड़ तक मेरी गांड की मुलायम कोमल, गहराइयों में स्थापित कर दिया। मैं मचल उठी, "चाचू, क्या आप शुरूआत में मेरी गांड थोड़ी धीरे नहीं मार सकते थे? कितना दर्द किया आपने!" सुरेश चाचू ने एक और भायानक धक्का लगा कर मुझे सर से चूतड़ों तक हिला दिया, "नेहा बेटा, आपकी नम्रता चाची का विचार है कि यदि पुरुष का लंड गांड मारते हुए स्त्री की चीख न निकाल पाए तो स्त्री को भी गांड मरवाने का पूरा आनंद नहीं आता। मैं चाची के विचित्र तर्क से निरस्त हो गयी थी, और अब मेरी गांड में से उपजे कामानंद ने मेरी बोलती भी बंद कर दी थी। "चाचू, अब आपका लंड मेरी गांड में बहुत अच्छा लग रहा है। कितना मोटा लंड है आपका," सुरेश चाचा के भीषण धक्कों ने मेरी सुरेश चाचा के मर्दाने भीमकाय लंड की प्रशंसा को बीच में ही काट दिया, "उन्ह ... चाचू .....आः .....आह ...... ऊऊण्ण्णः ...... ऊऊऊण्ण्ण्ण्घ्घ्घ्घ ऊफ ....ऊफ ...... चाचू मेरी .... ई ... ई .... गा ...आ ..... आ .... आनन ...आः।" अब तक सुरेश चाचा ने मेरी गांड के मर्दन की एक ताल बना ली थी। चाचू दस बीस लम्बे दृढ़ धक्कों से मेरी गांड मार कर छोटे भीषण तेज़ अस्थिपंजर हिला देने वाले झटकों से मेरी गांड को अंदर तक हिला रहे थे। कमरे में मेरी गांड की मोहक सुगंध फ़ैल गयी थी। सुरेश चाचा ने मेरे दोनों हिलते स्तनों को अपने हाथों में भर कर मसला और मेरे कान में फुसफुसाये, "नेहा बेटी आपके मलाशय की मीठी सुगंध कितनी आनंददायक है?" मैं अब कामवासना से सिसक रही थी और कुछ भी नहीं बोल पाई, "आः .. चाचू .... मुझे ... झाड़ ....ऊऊऊण्ण्णः ऊँ ....आह। सुरेश चाचा ने मेरी वासना भरी कामना की उपेक्षा नहीं की। उन्होंने मेरे मेरी दोनों चूचियों का मर्दन कर मेरी गांड को भीषण धक्कों से मारते हुए गुर्राये, "बेटी, आज रात हम आपकी गांड को फाड़ कर आपको अनगिनत बार झाड़ देंगे।" मेरे चूतड़ अब चाचू के लंड के हिंसक आक्रमण से दूर आगे जाने के स्थान पर अब उनके धक्कों की तरफ पीछे हिल रहे थे। सुरेश चाचू ने ने मेरा एक उरोज़ मुक्त कर मेरे संवेदनशील भगशिश्न को अपनी चुटकी में भर कर मसलने लगे। मेरा सारा शरीर मानो बिजली के प्रवाह से झटके मार कर हिलने लगा, "आह .. मैं .... आ गयी .... चा... चू .....मैं ...आः ....झ ...झ ... ड़ गयी ... ई ... ई।" मेरा रति-निश्पति की प्रबलता ने मेरी सांस के प्रवाह को भी रोक दिया। मेरा शरीर थोडा शिथिल हो गया। पर चाचू ने अपने मज़बूत हाथों से मेरे चूतड़ को स्थिर रख मेरे गांड में अपना विकराल लंड रेल के इंजन के पिस्टन की ताकत और तेज़ी से कर रहा था। मेरे मलाशय की समवेदनशील दीवारें अब उनके लंड की हर मोटी शिरा,रग और नस को महसूस कर रहीं थीं। **********************************************************************
 
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