hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
*********************************************************
१७८
********************************************************
सुबह सब देर से आये नाश्ते के लिए। वास्तव में समय तो दोपहर के खाने का सा था। मम्मी के बबल बिखरे हुए थे। गले पे काटने के निशान मम्मी की छुपाने के बावजूद दिख रहे थे। और फिर मम्मी की बिगड़ी चाल। सुशी बुआ कहाँ छोड़ने वालीं थीं अपनी भाभी उर्फ़ ननंद को।
"क्या हुआ सुन्नी भाभी। क्या किसी सांप ने काट लिया कल रात ?" सुशी ने खिलखिला कर पूछा।
" मेरी आवारा ननंद रानी, तुम यदि अपने सांप को काबू में रखतीं तो यह हाल नहीं होता मेरा ,"मम्मी ने ताना मारा।
" अरे भाभी मेरी यह तो पच्चीस साल से लिखा था आपके भाग्य में। इसमें मेरा क्या कसूर। और कौन रोक पता तीनों सांपों को कर रात, भगवान् भी नहीं रोक पाते। "और फिर सुशी भाभी ने मम्मी के गले में हीरों की नाज़ुक लड़ियों का हार पहना दिया। फिर दादी उठीं और उन्होंने अपनी बहु को फुसफुसा कर आशीर्वाद दिया और फिर उनकी कलाइयों पर बाँध दीं बेशकीमती हीरों की चूड़ियाँ।
लम्बे खाने के बाद नानू ने आराम करने का निश्चय किया। मम्मी की आँखें अपने भाइयों की ओर लगीं थीं। दादी ने पापा का हाथ पकड़ा और उन्हें गोल्फ के खेल के लिए ले गयीं। दादू ने बुआ की ओर हलके से इशारा किया। और दोपहर की जोड़ियां बन गयी कुछ की क्षणों में। मैंने नानू को कुछ देर सोने दिया फिर लपक के उनके बिस्तर में कूद आकर उन्हें जगा दिया। नानू को मैंने तैयार करके टेनिस के खेल के लिए मना लिया। नानू सफ़ेद निक्कर और टी-शर्ट में बहुत सुंदर लग रहे थे। मैं भी कम नहीं थी सफ़ेद गोल गले के टी-शर्ट और निक्कर में।
मैं और नानू दोनों प्रतिस्पर्धात्मक खेल खेलते थे। लेकिन नानू की लम्बी पहुँच ने मेरे युवापन के सहन-शक्ति को हरा दिया। पांच सेट का खेल था मैं ३-२ से हार गयी। पर नानू ने मुझे बाहों में उठा कर गर्व से चूमा तो मैं झूम उठी। नानू मेरी तरह मेहनत के बाद कमोतेजित हो जाते थे। इसीलिए तो मैं उन्हें टेनिस के लिए खींच
लायी थी।
"नेहा बेटी घर तक चलना दूभर है। क्या ख्याल है पंडितजी के घर के पीछे के झुरमुट के बारे में ," मैं तो यही चाह रही थी। नेकी और पूछ पूछ। मैंने बेसब्री से सर हिला दिया। नानू से मैं छोटी बंदरिया जैसे चिपकी हुई थी। जिस झुरमुट की बात नानू कर रहे थे वो हमारे मुख्य बावर्ची रामप्रसाद के घर के पीछे था।
जब नानू और मैं वहां पहुंचे तो वहां से साफ़ साफ़ आवाज़ें आ रहीं थीं।
"हाय नानू कितना लम्बा मोटा है आपका लंड ," यह अव्वाज़ पारो की बेटी रज्जो की थी।
"मेरी प्यारी नातिन तीन साल से ले रही अपने नाना के लंड को अभी भी इठला कर शिकायत करती है तू ," रामु काका की आवाज़ तो घर का हर सदस्य पहचानता था।
मैंने नानू की आँखों में एक अजीभ चाहत देखी। रज्जो मुझसे तीन साल छोटी थी। उससे किशोरवस्था के पहले वर्ष में चार महीने ही हुए थे।मैंने फुसफुसा कर नानू अपनी योजना बताई। नानू ने लपक कर पहले मेरे और फिर अपने सारे कपडे उतार दिए। उनका महा लंड तनतना कर थरथरा रहा था।
जैसे मैंने कहा था वैसे ही नानू ने बेदर्दी से मेरी चूत को अपने लंड पे टिका कर मेरे वज़न से अपना सारा का सारा लंड ठूंस दिया। मैं चीखती नहीं तो क्या करती। नानू मुझे अपने लंड पे ठूंस कर झुरमुटे के अंदर चले गए। वहां पर चिकनी चट्टान के ऊपर कमसिन रज्जो झुकी हुई थी और उसके पीछे भरी भरकम उसके नाना उसकी चूत में अपना मोटा लम्बा लंड ठूंस कर उसे चोद रहे थे।
"क्षमा करना हम दोनों को रामू रुका नहीं गया हम दोनों से। यदि बुरा न लगे तो मैं भी चोद लूँ अपनी नातिन को तुम्हारे साथ।" नानू ने साधारण तरीके से पूछा जैसे यह रोज़मर्रा की बात है एक नाना दुसरे नाना के सामने अपनी कमसिन नातिन को चोदे।
पहले तो रामु काका चौंकें फिर उनकी स्वयं की वासना के सांप ने उनके हिचकने के ऊपर विजय प्राप्त कर ली। नानू ने मुझे खड़े खड़े और रामु काका ने रज्जो को निहुरा कर आधा घंटा भर चोदा। रामु काका का संयम भी बहुत असाधारण था।रज्जो और मैं अनेकों बार झड़ गए उस समय में। अब मैंने दूसरा तीर मारा ," रामु काका मेरा बहुत मन है आपके लंड से चुदने का यदि रज्जो को कोई समस्या नहीं मेरे नानू के लंड चुदने की। "
बेचारी रज्जो जो शुरू में शर्म से लाल हो गयी थी अब खुल गया ,"नहीं नेहा दीदी। मैं तैयार हुँ यदि नानू को आपत्ति न हो तो। "
रामू काका ने अपना लंड रज्जो की चूत में निकाल लिया और नानू ने मुझे भी चट्टान के ऊपर निहुरा दिया। फिर दोनों नानाओं ने नातिन बदल लीं। रामु काका का नौ इंच का तीन इंच मोटा लंड मेरी गरम चूत में घुस गया। रज्जो की चीख निकल गयी जब नानू का कम से कम तीन इंच ज़्यादा लम्बा और एक इंच और मोटा लंड उसकी अल्पव्यस्क चूत के घुसा तो।
नानू ने रज्जो के नींबू जैसे चूचियों को देदर्दी से मसलते हुए दनादन धक्कों से चोदा। रामू काका भी मुझ पर कोई रहम नहीं खा रहे थे। आधे घंटे के बाद भी दोनों नानाओं के लंड भूखे थे। जैसे दोनों नाना एक दुसरे के विचार जानते हों वैसे ही दोनों ने अपने लंड रज्जो और मेरी चूत से निकाल कर हमारी गांड में ठूंस दिया। रज्जो की चीख मुझसे बहुत ऊंचीं थी। पर दस मिनटों में हम दोनों फिर से सिसकने लगीं। इस बार दोनों नानाओं ने एक दुसरे की नातिन की गांड अपने वीर्य से भर दी। रज्जो ने अपने नानू का मेरी गांड से निकला और मैंने अपने नानू का रज्जो की गांड से निकले लंड को प्यार से चूस चाट के साफ़ कर दिया। दोनों को बहुत देर नहीं लगी फिर से तैयार होने में और इस बार नानू ने रज्जो को घास पर लेट कर अपने लंड ले लिटा लिया और उसके नानू ने उसकी गांड में अपना लंड ठूंस दिया। रज्जो की दर्द से हालत ख़राब हो गयी पर मैंने सुशी बुआ से सीख याद कर अपनी चूची ठूंस दी उसके मुँह में।
आधे घंटे में रज्जो अनेकों बार झड़ कर थक के ढलक गयी और अब मेरी बारी थी। इस बार रज्जो के नानू ने मेरी चूत मारी और मेरे नानू ने मेरी गांड। मेरे सबर का इनाम मुझे मिला जब दोनों ने मेरी चूत और गांड भर दी अपने गरम वीर्य से।
चुदाई के बाद रामू काका ने सच बताया। रज्जो वास्तव में रामू काका की बेटी थी। नानू ने उसी समय रज्जो को अपनी छत्रछाया में ले लिया और उसकी लिखाई पढ़ाई की ज़िम्मेदारी अब हमारे परिवार की थी।
उसके बाद रामू काका ने मेरी और नानू ने रज्जो के दोनों छेदों की घंटा भर चुदाई कर हम चारों की अकस्मत भोग-विलास का समापन किया। रज्जो को अब कम से कम दो नानाओं का ख्याल रखना पड़ेगा। वास्तव में वो बच्ची बड़ी भाग्यशाली थी।
उस रात के खाने के बाद मम्मी मुश्किल से चल पा रहीं थीं। उस रात उन्हें सिर्फ सोने की फ़िक्र थी। नानू को अपनी बेटी के सुनहरे शर्बत और हलवे की लालसा। मम्मी और नानू एक साथ सोये। नानू सुबह होते होते मम्मी के शरीर के हर मीठे द्रव्य और पदार्थ का भक्षण करने के लिए तत्पर थे।
दादी ने पकड़ा अपने बेटे को। दादू ने अपनी बेटी को ठीक नानू की इच्छा के इरादे से। और मैं फंस गयी अपने दोनों मामाओं के साथ।
बड़े और छोटे मामा ने पूरी रात मुझे रौंद कर रुला दिया फिर तरस खा कर एक शर्त पर सोने दिया। उन दोनों ने मुझसे वायदा लिया कि हफ्ते भर तक मेरे सुनहरे शर्बत और गांड के हलवे पर सिर्फ उनका हक़ था। और पहली किश्त उस रात ही लेली मेरे दोनों मामाओं ने। उन्होंने मुझे सिखाया कैसे गांड का हलवा खिलाया जाता है। मैं तेज़ी से सीख गयी और जब एक मामू का मुँह भर जाता तो तुरंत गुदा भींच कर दुसरे मामू का मुँह भर देती।
आखिर में मुझे सोने को मिल गया। बुरा सौदा नहीं था। खूब चुदाई , मामाओं का सुनहरी शर्बत और हलवा और आराम करने का मौका। नेहा तू अब होशियार होने लगी है , मैंने अपनी बड़ाई की बेशर्मी से।
१७८
********************************************************
सुबह सब देर से आये नाश्ते के लिए। वास्तव में समय तो दोपहर के खाने का सा था। मम्मी के बबल बिखरे हुए थे। गले पे काटने के निशान मम्मी की छुपाने के बावजूद दिख रहे थे। और फिर मम्मी की बिगड़ी चाल। सुशी बुआ कहाँ छोड़ने वालीं थीं अपनी भाभी उर्फ़ ननंद को।
"क्या हुआ सुन्नी भाभी। क्या किसी सांप ने काट लिया कल रात ?" सुशी ने खिलखिला कर पूछा।
" मेरी आवारा ननंद रानी, तुम यदि अपने सांप को काबू में रखतीं तो यह हाल नहीं होता मेरा ,"मम्मी ने ताना मारा।
" अरे भाभी मेरी यह तो पच्चीस साल से लिखा था आपके भाग्य में। इसमें मेरा क्या कसूर। और कौन रोक पता तीनों सांपों को कर रात, भगवान् भी नहीं रोक पाते। "और फिर सुशी भाभी ने मम्मी के गले में हीरों की नाज़ुक लड़ियों का हार पहना दिया। फिर दादी उठीं और उन्होंने अपनी बहु को फुसफुसा कर आशीर्वाद दिया और फिर उनकी कलाइयों पर बाँध दीं बेशकीमती हीरों की चूड़ियाँ।
लम्बे खाने के बाद नानू ने आराम करने का निश्चय किया। मम्मी की आँखें अपने भाइयों की ओर लगीं थीं। दादी ने पापा का हाथ पकड़ा और उन्हें गोल्फ के खेल के लिए ले गयीं। दादू ने बुआ की ओर हलके से इशारा किया। और दोपहर की जोड़ियां बन गयी कुछ की क्षणों में। मैंने नानू को कुछ देर सोने दिया फिर लपक के उनके बिस्तर में कूद आकर उन्हें जगा दिया। नानू को मैंने तैयार करके टेनिस के खेल के लिए मना लिया। नानू सफ़ेद निक्कर और टी-शर्ट में बहुत सुंदर लग रहे थे। मैं भी कम नहीं थी सफ़ेद गोल गले के टी-शर्ट और निक्कर में।
मैं और नानू दोनों प्रतिस्पर्धात्मक खेल खेलते थे। लेकिन नानू की लम्बी पहुँच ने मेरे युवापन के सहन-शक्ति को हरा दिया। पांच सेट का खेल था मैं ३-२ से हार गयी। पर नानू ने मुझे बाहों में उठा कर गर्व से चूमा तो मैं झूम उठी। नानू मेरी तरह मेहनत के बाद कमोतेजित हो जाते थे। इसीलिए तो मैं उन्हें टेनिस के लिए खींच
लायी थी।
"नेहा बेटी घर तक चलना दूभर है। क्या ख्याल है पंडितजी के घर के पीछे के झुरमुट के बारे में ," मैं तो यही चाह रही थी। नेकी और पूछ पूछ। मैंने बेसब्री से सर हिला दिया। नानू से मैं छोटी बंदरिया जैसे चिपकी हुई थी। जिस झुरमुट की बात नानू कर रहे थे वो हमारे मुख्य बावर्ची रामप्रसाद के घर के पीछे था।
जब नानू और मैं वहां पहुंचे तो वहां से साफ़ साफ़ आवाज़ें आ रहीं थीं।
"हाय नानू कितना लम्बा मोटा है आपका लंड ," यह अव्वाज़ पारो की बेटी रज्जो की थी।
"मेरी प्यारी नातिन तीन साल से ले रही अपने नाना के लंड को अभी भी इठला कर शिकायत करती है तू ," रामु काका की आवाज़ तो घर का हर सदस्य पहचानता था।
मैंने नानू की आँखों में एक अजीभ चाहत देखी। रज्जो मुझसे तीन साल छोटी थी। उससे किशोरवस्था के पहले वर्ष में चार महीने ही हुए थे।मैंने फुसफुसा कर नानू अपनी योजना बताई। नानू ने लपक कर पहले मेरे और फिर अपने सारे कपडे उतार दिए। उनका महा लंड तनतना कर थरथरा रहा था।
जैसे मैंने कहा था वैसे ही नानू ने बेदर्दी से मेरी चूत को अपने लंड पे टिका कर मेरे वज़न से अपना सारा का सारा लंड ठूंस दिया। मैं चीखती नहीं तो क्या करती। नानू मुझे अपने लंड पे ठूंस कर झुरमुटे के अंदर चले गए। वहां पर चिकनी चट्टान के ऊपर कमसिन रज्जो झुकी हुई थी और उसके पीछे भरी भरकम उसके नाना उसकी चूत में अपना मोटा लम्बा लंड ठूंस कर उसे चोद रहे थे।
"क्षमा करना हम दोनों को रामू रुका नहीं गया हम दोनों से। यदि बुरा न लगे तो मैं भी चोद लूँ अपनी नातिन को तुम्हारे साथ।" नानू ने साधारण तरीके से पूछा जैसे यह रोज़मर्रा की बात है एक नाना दुसरे नाना के सामने अपनी कमसिन नातिन को चोदे।
पहले तो रामु काका चौंकें फिर उनकी स्वयं की वासना के सांप ने उनके हिचकने के ऊपर विजय प्राप्त कर ली। नानू ने मुझे खड़े खड़े और रामु काका ने रज्जो को निहुरा कर आधा घंटा भर चोदा। रामु काका का संयम भी बहुत असाधारण था।रज्जो और मैं अनेकों बार झड़ गए उस समय में। अब मैंने दूसरा तीर मारा ," रामु काका मेरा बहुत मन है आपके लंड से चुदने का यदि रज्जो को कोई समस्या नहीं मेरे नानू के लंड चुदने की। "
बेचारी रज्जो जो शुरू में शर्म से लाल हो गयी थी अब खुल गया ,"नहीं नेहा दीदी। मैं तैयार हुँ यदि नानू को आपत्ति न हो तो। "
रामू काका ने अपना लंड रज्जो की चूत में निकाल लिया और नानू ने मुझे भी चट्टान के ऊपर निहुरा दिया। फिर दोनों नानाओं ने नातिन बदल लीं। रामु काका का नौ इंच का तीन इंच मोटा लंड मेरी गरम चूत में घुस गया। रज्जो की चीख निकल गयी जब नानू का कम से कम तीन इंच ज़्यादा लम्बा और एक इंच और मोटा लंड उसकी अल्पव्यस्क चूत के घुसा तो।
नानू ने रज्जो के नींबू जैसे चूचियों को देदर्दी से मसलते हुए दनादन धक्कों से चोदा। रामू काका भी मुझ पर कोई रहम नहीं खा रहे थे। आधे घंटे के बाद भी दोनों नानाओं के लंड भूखे थे। जैसे दोनों नाना एक दुसरे के विचार जानते हों वैसे ही दोनों ने अपने लंड रज्जो और मेरी चूत से निकाल कर हमारी गांड में ठूंस दिया। रज्जो की चीख मुझसे बहुत ऊंचीं थी। पर दस मिनटों में हम दोनों फिर से सिसकने लगीं। इस बार दोनों नानाओं ने एक दुसरे की नातिन की गांड अपने वीर्य से भर दी। रज्जो ने अपने नानू का मेरी गांड से निकला और मैंने अपने नानू का रज्जो की गांड से निकले लंड को प्यार से चूस चाट के साफ़ कर दिया। दोनों को बहुत देर नहीं लगी फिर से तैयार होने में और इस बार नानू ने रज्जो को घास पर लेट कर अपने लंड ले लिटा लिया और उसके नानू ने उसकी गांड में अपना लंड ठूंस दिया। रज्जो की दर्द से हालत ख़राब हो गयी पर मैंने सुशी बुआ से सीख याद कर अपनी चूची ठूंस दी उसके मुँह में।
आधे घंटे में रज्जो अनेकों बार झड़ कर थक के ढलक गयी और अब मेरी बारी थी। इस बार रज्जो के नानू ने मेरी चूत मारी और मेरे नानू ने मेरी गांड। मेरे सबर का इनाम मुझे मिला जब दोनों ने मेरी चूत और गांड भर दी अपने गरम वीर्य से।
चुदाई के बाद रामू काका ने सच बताया। रज्जो वास्तव में रामू काका की बेटी थी। नानू ने उसी समय रज्जो को अपनी छत्रछाया में ले लिया और उसकी लिखाई पढ़ाई की ज़िम्मेदारी अब हमारे परिवार की थी।
उसके बाद रामू काका ने मेरी और नानू ने रज्जो के दोनों छेदों की घंटा भर चुदाई कर हम चारों की अकस्मत भोग-विलास का समापन किया। रज्जो को अब कम से कम दो नानाओं का ख्याल रखना पड़ेगा। वास्तव में वो बच्ची बड़ी भाग्यशाली थी।
उस रात के खाने के बाद मम्मी मुश्किल से चल पा रहीं थीं। उस रात उन्हें सिर्फ सोने की फ़िक्र थी। नानू को अपनी बेटी के सुनहरे शर्बत और हलवे की लालसा। मम्मी और नानू एक साथ सोये। नानू सुबह होते होते मम्मी के शरीर के हर मीठे द्रव्य और पदार्थ का भक्षण करने के लिए तत्पर थे।
दादी ने पकड़ा अपने बेटे को। दादू ने अपनी बेटी को ठीक नानू की इच्छा के इरादे से। और मैं फंस गयी अपने दोनों मामाओं के साथ।
बड़े और छोटे मामा ने पूरी रात मुझे रौंद कर रुला दिया फिर तरस खा कर एक शर्त पर सोने दिया। उन दोनों ने मुझसे वायदा लिया कि हफ्ते भर तक मेरे सुनहरे शर्बत और गांड के हलवे पर सिर्फ उनका हक़ था। और पहली किश्त उस रात ही लेली मेरे दोनों मामाओं ने। उन्होंने मुझे सिखाया कैसे गांड का हलवा खिलाया जाता है। मैं तेज़ी से सीख गयी और जब एक मामू का मुँह भर जाता तो तुरंत गुदा भींच कर दुसरे मामू का मुँह भर देती।
आखिर में मुझे सोने को मिल गया। बुरा सौदा नहीं था। खूब चुदाई , मामाओं का सुनहरी शर्बत और हलवा और आराम करने का मौका। नेहा तू अब होशियार होने लगी है , मैंने अपनी बड़ाई की बेशर्मी से।