hotaks444
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घर का दूध पार्ट--7 गतान्क से आगे............
सुबह जब मंजू चाय लेकर आई तो साथ मे गीता भी थी. दोनो सुबह सुबह नहा कर
आई थी, बाल अब भी गीले थे. मंजू तो मादरजात नंगी थी जैसी उसकी आदत थी,
गीता ने भी बस एक गीली साड़ी ओढ़ रखी थी जिसमे से उसका जोबन झलक रहा था.
"ये क्या, सुबह सुबह पूजा उजा करने निकली हो क्या दोनो?" मैने मज़ाक
किया. गीता बोली "हां बाबूजी, आज आपके लंड की पूजा करूँगी, देखो फूल भी
लाई हूँ" सच मे वह एक डलिया मे फूल और पूजा का समान लिए थी. बड़े प्यार
से उसने मेरे लंड पर एक छ्होटा टीका लगाया और उसे एक मोगरे की छ्होटी
माला पहना दी. उपेर से मेरे लंड पर कुच्छ फूल डाले और फिर उसे पकड़कर
अपने हाथों मे लेकर उस पर उन मुलायम फूलों को रगड़ने लगी. दबाते दबाते
झुक कर अचानक उसने मेरे लंड को चूम लिया. मैं कुच्छ कहता इसके पहले मंजू
हँसती हुई मेरे पास आकर बैठ गयी. मेरा ज़ोर का चुंबन लेकर अपनी चून्चि
मेरी छाति पर रगड़ते हुए बोली. "अरे ये तो बावरी है, कल से आपके गोरे
मतवाले लंड को देख कर पागल हो गयी है. बाबूजी, जल्दी से चाय पियो. मुझे
भी आप से पूजा करवानी है अपनी चूत की. आप मेरी बुर की पूजा करो, गीता
बेटी आपके लंड की पूजा करेगी अपने मुँह से." मेरा लंड कस कर खड़ा था. मैं
चाय की चुस्की लेने लगा तो देखा बिना दूध की चाय थी. मंजू को बोला की दूध
नही है तो वह बदमाश औरत दिखावे के लिए झूठ मूठ अपना माथा थोक कर बोली "
हाय, मैं भूल ही गयी, मैने दूध वाले भैया को कल ही बता दिया कि अब दूध की
ज़रूरत नही है हमारे बाबूजी को. अब क्या करे, चाय के बारे मे तो मैने
सोचा ही नही. वैसे फिकर की बात नही है बाबूजी, अब तो "घर का दूध" है, ये
दो पैरों वाली दो थनो की खूबसूरत गैया है ना यहाँ! ए गीता, इधर आ जल्दी"
गीता से मेरा लंड छ्चोड़ा नही जा रहा था. बड़ी मुश्किल से उठी. पर जब
मंजू ने कहा "चल अब तक वैसे ही साड़ी लपेटे बैठी है, चल नंगी हो और अपना
दूध डाल जल्दी, बाबूजी की चाय में" तो तपाक से उठ कर अपनी साड़ी उतार कर
वह मेरे पास आ गयी. उसके देसी जोबन को मैं देखता रह गया. उसका बदन एकदम
मांसल और गोल मटोल था, चूंचियाँ तो बड़ी थी ही, चूतड़ भी अच्छे ख़ासे
बड़े और चौड़े थे. गर्भावस्था मे चढ़ा माँस अब तक उसके शरीर पर था.
जांघें ये मोटी मोटी और पाव रोटी जैसी फूली बुर, पूरी बालों से भरी हुई.
मैं तो झदाने को आ गया. "जल्दी दूध डाल चाय मे" मंजू ने उसे खींच कर कहा.
गीता ने अपनी चून्चि पकड़ कर चाय के कप के उपेर लाई और दबा कर उसमे से
दूध निकालने लगी. दूध की तेज पतली धार चाय मे गिरने लगी. चाय सफेद होने
तक वह अपनी चून्चि दूहति रही. फिर जाकर मेरी कमर के पास बैठ गयी और मेरे
लंड को चाटने लगी. मैने किसी तरहा चाय ख़तम की. स्वाद अलग था पर मेरी उस
अवस्था मे एकदम मस्त लग रहा था. मेरा सिर घूमने लगा. एक जवान लड़की के
दूध की चाय पी रहा हूँ और वही लड़की मेरा लंड चूस रही है और उसकी माँ इस
इंतजार मे बैठी है की कब मेरी चाय ख़तम हो और कब वह अपनी चूत मुझसे
चुस्वाए. मैने चाय ख़तम करके मंजू को बाँहों मे खींचा और उसके मम्मे
मसल्ते हुए उसका मुँह चूसने लगा. मेरी हालत देख कर मंजू ने कुच्छ देर
मुझे चूमने दिया और फिर मुझे लिटा कर मेरे चेहरे पर चढ़ बैठी और अपनी चूत
मेरे मुँह मे दे दी. "बाबूजी, अब नखरा ना करो, ऐसे नही छ्चोड़ूँगी आपको,
बुर का रस ज़रूर पिलाउन्गि, चलो जीभ निकालो, आज उसीको चोदून्गि" उधर मंजू
ने मुझे अपनी चूत का रस पिलाया और उधर उसकी बेटी ने मेरे लंड की मलाई
निकाल ली. गीता के मुँह मे मैं ऐसा झाड़ा कि लगता था बेहोश हो जाउन्गा.
गीता ने मेरा पूरा विर्य निगला और फिर मुस्कराते हुए आकर माँ के पास बैठ
गयी. मंजू अब भी मुझ पर चढ़ि मेरे होंठों पर अपनी बुर रगड़ रही थी.
"क्यों बेटी, मिला प्रसाद, हो गयी तेरे माँ की?"
सुबह जब मंजू चाय लेकर आई तो साथ मे गीता भी थी. दोनो सुबह सुबह नहा कर
आई थी, बाल अब भी गीले थे. मंजू तो मादरजात नंगी थी जैसी उसकी आदत थी,
गीता ने भी बस एक गीली साड़ी ओढ़ रखी थी जिसमे से उसका जोबन झलक रहा था.
"ये क्या, सुबह सुबह पूजा उजा करने निकली हो क्या दोनो?" मैने मज़ाक
किया. गीता बोली "हां बाबूजी, आज आपके लंड की पूजा करूँगी, देखो फूल भी
लाई हूँ" सच मे वह एक डलिया मे फूल और पूजा का समान लिए थी. बड़े प्यार
से उसने मेरे लंड पर एक छ्होटा टीका लगाया और उसे एक मोगरे की छ्होटी
माला पहना दी. उपेर से मेरे लंड पर कुच्छ फूल डाले और फिर उसे पकड़कर
अपने हाथों मे लेकर उस पर उन मुलायम फूलों को रगड़ने लगी. दबाते दबाते
झुक कर अचानक उसने मेरे लंड को चूम लिया. मैं कुच्छ कहता इसके पहले मंजू
हँसती हुई मेरे पास आकर बैठ गयी. मेरा ज़ोर का चुंबन लेकर अपनी चून्चि
मेरी छाति पर रगड़ते हुए बोली. "अरे ये तो बावरी है, कल से आपके गोरे
मतवाले लंड को देख कर पागल हो गयी है. बाबूजी, जल्दी से चाय पियो. मुझे
भी आप से पूजा करवानी है अपनी चूत की. आप मेरी बुर की पूजा करो, गीता
बेटी आपके लंड की पूजा करेगी अपने मुँह से." मेरा लंड कस कर खड़ा था. मैं
चाय की चुस्की लेने लगा तो देखा बिना दूध की चाय थी. मंजू को बोला की दूध
नही है तो वह बदमाश औरत दिखावे के लिए झूठ मूठ अपना माथा थोक कर बोली "
हाय, मैं भूल ही गयी, मैने दूध वाले भैया को कल ही बता दिया कि अब दूध की
ज़रूरत नही है हमारे बाबूजी को. अब क्या करे, चाय के बारे मे तो मैने
सोचा ही नही. वैसे फिकर की बात नही है बाबूजी, अब तो "घर का दूध" है, ये
दो पैरों वाली दो थनो की खूबसूरत गैया है ना यहाँ! ए गीता, इधर आ जल्दी"
गीता से मेरा लंड छ्चोड़ा नही जा रहा था. बड़ी मुश्किल से उठी. पर जब
मंजू ने कहा "चल अब तक वैसे ही साड़ी लपेटे बैठी है, चल नंगी हो और अपना
दूध डाल जल्दी, बाबूजी की चाय में" तो तपाक से उठ कर अपनी साड़ी उतार कर
वह मेरे पास आ गयी. उसके देसी जोबन को मैं देखता रह गया. उसका बदन एकदम
मांसल और गोल मटोल था, चूंचियाँ तो बड़ी थी ही, चूतड़ भी अच्छे ख़ासे
बड़े और चौड़े थे. गर्भावस्था मे चढ़ा माँस अब तक उसके शरीर पर था.
जांघें ये मोटी मोटी और पाव रोटी जैसी फूली बुर, पूरी बालों से भरी हुई.
मैं तो झदाने को आ गया. "जल्दी दूध डाल चाय मे" मंजू ने उसे खींच कर कहा.
गीता ने अपनी चून्चि पकड़ कर चाय के कप के उपेर लाई और दबा कर उसमे से
दूध निकालने लगी. दूध की तेज पतली धार चाय मे गिरने लगी. चाय सफेद होने
तक वह अपनी चून्चि दूहति रही. फिर जाकर मेरी कमर के पास बैठ गयी और मेरे
लंड को चाटने लगी. मैने किसी तरहा चाय ख़तम की. स्वाद अलग था पर मेरी उस
अवस्था मे एकदम मस्त लग रहा था. मेरा सिर घूमने लगा. एक जवान लड़की के
दूध की चाय पी रहा हूँ और वही लड़की मेरा लंड चूस रही है और उसकी माँ इस
इंतजार मे बैठी है की कब मेरी चाय ख़तम हो और कब वह अपनी चूत मुझसे
चुस्वाए. मैने चाय ख़तम करके मंजू को बाँहों मे खींचा और उसके मम्मे
मसल्ते हुए उसका मुँह चूसने लगा. मेरी हालत देख कर मंजू ने कुच्छ देर
मुझे चूमने दिया और फिर मुझे लिटा कर मेरे चेहरे पर चढ़ बैठी और अपनी चूत
मेरे मुँह मे दे दी. "बाबूजी, अब नखरा ना करो, ऐसे नही छ्चोड़ूँगी आपको,
बुर का रस ज़रूर पिलाउन्गि, चलो जीभ निकालो, आज उसीको चोदून्गि" उधर मंजू
ने मुझे अपनी चूत का रस पिलाया और उधर उसकी बेटी ने मेरे लंड की मलाई
निकाल ली. गीता के मुँह मे मैं ऐसा झाड़ा कि लगता था बेहोश हो जाउन्गा.
गीता ने मेरा पूरा विर्य निगला और फिर मुस्कराते हुए आकर माँ के पास बैठ
गयी. मंजू अब भी मुझ पर चढ़ि मेरे होंठों पर अपनी बुर रगड़ रही थी.
"क्यों बेटी, मिला प्रसाद, हो गयी तेरे माँ की?"