hotaks444
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जाल पार्ट--72
गतान्क से आगे......
देवेन को भी विजयंत का अपनी महबूबा के साथ ये मस्ताना खेल खेलना ज़रा भी पसंद नही था मगर ना जाने क्या बात थी इस खेल मे कि दोनो को 1 साथ देख उसके दिल मे नफ़रत की जगह 1 अजीब सा रोमांच भर जाता था..उसे भी विजयंत से जलन होती थी मगर साथ ही वो खींचता था उनकी तरफ,उस खेल मे शामिल होने के लिए..फिर यूरी ने भी कहा था की बहुत मुमकिन था की रंभा के साथ चुदाई की वजह से विजयंत पूरा का पूरा ठीक हो जाए..फिर सारी गुत्थिया सुलझ जाती & वो दयाल को ढूँढने मे अपना सारा वक़्त & सारी ताक़त लगा सकता था.
“उउम्म्म्म..आहह..!”,रंभा की आहो & उसके बॉल खींचने से वो अपने ख़यालो से बाहर आया.विजयंत का हाथ रंभा की सारी मे घुस उसकी टाँगे सहला रहा था & वो अभी भी उसके दाए पैर को चूमे जा रहा था.देवेन ने उसके पेट पे अपने हाथ दायरे की शक्ल मे घुमाए तो रंभा मस्ती मे और ज़ोर से आहे भरने लगी.विजयंत का हाथ उसकी जाँघ के नीचे सहला रहा था & उसके होंठ उसके पैरो की उंगलिया चूसे जा रहे थे.जिस्म मे वो मीठा तनाव बहुत बढ़ गया था & चूत की कसक भी.देवेन ने उसकी नाभि मे अपनी उंगली उतार ज़ोर से कुरेदते हुए उसके दाए कान पे काटा & उसी वक़्त विजयंत ने उसके पाँव की सबसे छ्होटी उंगली को चूस उसके & उस से पहले वाली उंगली के बीच की जगह को जीभ से छेड़ा & उसकी जाँघ के निचले हिस्से को बहुत ज़ोर से दबाया.रंभा ने ज़ोर से आह भरी & देवेन की बाहो मे कसमसने लगी.दोनो मर्द समझ गये की वो झाड़ गयी है.
विजयंत ने उसके पैर को ज़मीन पे रखा & दोनो हाथ उसकी सारी मे घुसा उसकी टाँगो & जाँघो को सहलाते हुए उसके गोल पेट को चूमने लगा.देवेन के हाथ उसके खुले ब्लाउस के नीचे से उसकी चूचियो के निचले हिस्से को 2-2 उंगलियो से सहला रहे थे.रंभा के हाथ अब देवेन के गले से उतर विजयंत के सर से लग चुके थे & उसके बालो मे को बेचैनी से खींच रहे थे.विजयंत की लपलपाति ज़ुबान उसकी नाभि को चाते जा रही थी.देवेन के हाथ तो जैसे उसकी चूचियो को च्छू के भी नही च्छू रहे थे.वो उन्हे अपनी हथेलियो मे भर के दबा नही रहा था,ना ही उनके निपल्स को छेड़ रहा था बस उनके नीचे के हिस्से को अपनी उंगलियो से सहला रहा था & रंभा को मस्त किए जा रहा था.रंभा की मस्ती इतनी बढ़ गयी की उसे अब दोनो का च्छुना भी सहन नही हो रहा था & वो दोनो को अपने जिस्म से परे धकेल उनसे छिटक के अलग हो गयी.
उसकी साँसे बहुत तेज़ चल रही थी,उसका आँचल फर्श पे था & ढीले ब्लाउस के किनारो से उसकी उपर-नीचे होती चूचियो की झलकिया दिख रही थी.बॉल बिखर के चेहरे पे आ गये थे & होंठ कांप रहे थे.देवेन उसे देख मुस्कुराते हुए अपनी शर्ट के बटन्स खोलने लगा तो रंभा ने अपना दाया हाथ बालो मे घुमाया & उसे अपने चेहरे पे बेचैनी से चलाया.विजयंत ने देवेन की देखा-देखी अपनी कमीज़ भी उतार दी.दोनो के बालो भरे चौड़े सीनो को देख रंभा की चूत मे फिर से कसक उठने लगी.उसने बाए हाथ को अपनी सारी पे रख अपनी चूत पे दबा उसे शांत करने की नाकाम कोशिश करते हुए दाए हाथ को होंठो पे भींचते हुए अपनी आह को रोका.
देवेन उसके बिल्कुल करीब आ खड़ा हुआ था & उसके गले से ब्लाउस को निकाल रहा था,विजयंत के हाथ उसकी कमर मे घुस उसके नर्म पेट को छुते हुए उसकी सारी को निकाल रहे थे.रंभा बस ज़ोर-2 से साँसे लेती हुई दोनो मर्दो के हाथो नंगी हो रही थी.सारी के उतरते ही देवेन ने उसके पीछे जा उसकी कमर सहलाते हुए उसके पेटिकट को उसकी कमर से सरकया & फिर उसकी गंद की दरार मे फँसे उसके हरे तोंग को विजयंत ने नीचे सरकया.
देवेन पीछे से उसे बाहो मे भर उसके गालो को चूमते हुए अभी भी वैसे ही उसकी चूचियो के निचले हिस्सो को दोनो हाथो की 2-2 उंगलियो से सहला रहा था & नीचे बैठा विजयंत मेहरा उसकी कमर को पकड़े उसकी गंद को धीमे-2 सहलाते हुए उसकी कमर के दाई तरफ के मांसल हिस्से को चूम रहा था.रंभा मस्ती मे चूर थी & दोनो की ज़ुबानो का भरपूर लुत्फ़ उठा रही थी.देवेन ने नीचे से उसकी चूचियो को अपने हाथो मे भर दबाया तो वो आह भरते हुए सिहर उठी.विजयंत उसकी चूत के ठीक उपर पेट पे चूम रहा था & उसकी गर्म साँसे भी उस हिस्से को च्छू रही थी.
“उउन्नग्घह..!”,देवेन ने उसकी चूचियो को दोनो हाथो मे भर आपस मे दबाया & विजयंत की ज़ुबान ने चूत की दरार को सहलाते हुए उसके दाने को छेड़ा.रंभा ने दाए हाथ से उसके बाल पकड़ उसके सर को अपनी चूत पे दबाया & विजयंत ने उसकी चूत चाटना शुरू कर दिया.देवेन उसके पूरे चेहरे को अपने तपते होंठो से चूम रहा था,उसके हाथ महबूबा की चूचियो को हर तरीके से दबा रहे थे-कभी बहुत हल्के-2 उनकी नज़ाकत की इज़्ज़त करते हुए तो कभी उनकी कोमलता से बेपरवाह काफ़ी ज़ोर से.विजयंत उसकी चूत के गीलेपान को पीते हुए जीभ चट मे बहुत अंदर तक घुसा रहा था.रंभा कसमसा रही थी.उसकी कमर हिलने लगी थी & वो देवेन के मुँह पे चूत रगड़ने लगी थी.जिस्म मे बेचैनी & मदहोशी इतनी भर गयी थी की वो परेशान हो सर इधर-उधर घूमाते हुए कभी इस प्रेमी तो कभी उस प्रेमी के बालो को नोचते हुए आहे भर रही थी.देवेन ने उसकी चूचियो को आपस मे सटा के दबाते हुए दोनो हाथो की 2-2 उंगलियो से उसके किशमिश के दानो सरीखे निपल्स को मसला & उसी वक़्त विजयंत की ज़ुबान ने भी उसके दाने को ज़ोर से छेड़ा.रंभा ने च्चटपटाते हुए आह भरी & झाड़ गयी.वो दोनो की गिरफ़्त से निकल बार के सहारे खड़ी हो सिसकने लगी.
दोनो मर्द उसके करीब आए & उसके जिस्म पे हाथ रखा तो वो घूमी & दोनो के सर को 1-1 हाथ मे थाम लिया & पहले अपने दाए तरफ खड़े देवेन & फिर बाए तरफ खड़े विजयंत को चूमा & फिर अपने नखुनो से उनके सीने से पेट तक खरोंछते हुए उनके पॅंट खोल दिए.दोनो मर्दो के लिए ये इशारा काफ़ी था & दोनो ने अपनी -2 पॅंट्स उतार दी & अपने तगड़े लंड उसकी खिदमत मे पेश करते खड़े हो गये.रंभा ने दोनो की आँखो मे आँखे डालते हुए दोनो हाथो मे दोनो लुंडो को भर के दबाया.विजयंत के जिस्म के साथ ज़हन मे भी जैसे बिजली दौड़ गयी.ये एहसास उसे याद था!..उसे याद था कि वो उसके लंड से जिस मस्ताने अंदाज़ मे खेलती थी वैसे कभी किसी ने नही खेला था मगर वो बाकी लोग कौन थे जिनकी तुलना वो रंभा से कर रहा था?..कौन थी वो लड़कियाँ?..उसकी बीवी..क्या नाम बताया था रंभा ने उसका..हां..रीता..क्या वो उसे ऐसे नही प्यार करती थी?..आख़िर क्यू..वो सब भूल गया था..उस झरने पे क्या हुआ था उस रात?..,”आहह..!”,उसने कुच्छ बेबसी & काफ़ी मज़े मे वो आँखे बंद कर आह भरी.देवेन रंभा की तुलना किसी & औरत से नही कर रहा था..ऐसा करना उस हुसनपरी,जिसे वो बेइंतहा प्यार करने लग था.की तौहीन होती..शुरू मे उसे सुमित्रा का दर्जा देते हुए उसे ग्लानि हुई थी,लगा था वो अपनी सुमित्रा से बेवफ़ाई कर रहा था मगर उसका दिल हुमेशा उस से कहता रहता था कि ये सही था..सुमित्रा की बेटी उसे वो दे रही थी जिसका वो हक़दार था लेकिन जिस से वो अभी तक महरूम था.उसने रंभा के दाए गाल पे अपनी हथेली जमाई तो उसने नशीली आँखो से उसे देखते हुए हथेली पे अपना गाल रगड़ा.विजयंत ने अपना दाया हाथ उसके बाए गाल पे रखा & रंभा ने उसके साथ भी वही हरकत दोहराई.दोनो मर्द आगे झुके & उसके 1-1 गाल और गर्देन से लेके कंधो तक चूमने लगे.रंभा वैसे ही उनके लंड हिलाती रही.
डेवाले मे मेहरा परिवार के 1 बुंगले मे भी वासना का खेल चल रहा था.कामया समीर की बाहो मे उसके बिस्तर पे पड़ी थी.समीर के हाथो मे उसकी नर्म चूचिया कसने लगी थी & उसके जिस्म मे बेचैनी भरने लगी थी,”समीर..सब ठीक रहेगा ना?..ऊव्वववव..!..कितनी ज़ोर से दबाते हो!..दुख़्ता है..आननह..!”,समीर बेरेहमी से उसकी चूचिया मसल रहा था.वो जानता था की कामया कुच्छ भी बोले,उसे पसंद था इस तरह से चूचियाँ मसलावाना.उसने उसकी बाई छाती को मुट्ठी मे पकड़ के भींचा & दाई के निपल को दन्तो मे पकड़ उपर खींचा,”..औचह..!”कामया ने उसके बाल खींचे & उसकी गर्देन के नीचे अपने नाख़ून जमा दिए.
“सब ठीक रहेगा.तुम घबराओ मत.”,समीर ने उसकी छाती को छ्चोड़ उसे उल्टा किया & उसकी गंद से हाथ लगा दिए.
“फिर उसे इस तरह क्यू ढूंड रहे हो?..उउम्म्म्मम..!”,समीर जिस बेरेहमी से उसकी चूचियो को मसल रहा था,अब उतनी ही कोमलता से उसकी गंद सहला रहा था,”..जलन हो रही है सोच के कि वो वाहा किसी & की बाहो मे तो नही?”,गर्देन घुमा के वो शोखी से मुस्कुराइ तो समीर ने उसकी गंद पे चिकोटी काट ली,”..औचह..गंदे..!”,उसने प्यार से अपने प्रेमी को झिड़का.
“नही.”,समीर उसकी पीठ पे लेट गया & अपना लंड उसकी गंद पे दबाया तो कामया ने टाँगे फैला दी.समीर ने हाथ नीचे ले जाके अपने लंड को उसकी चूत पे रखा तो कामया थोडा उठ गयी & लंड को चूत मे घुसाने मे मदद की,”..तुम उसे जानती नही.वो बहुत होशियार है.पता नही क्यू मुझे लग रहा है कि वो गोआ कुच्छ ऐसा करने गयी है जोकि हमारे लिए बहुत मुश्किले पैदा कर सकता है.”,वो अपने हाथो को उसके जिस्म के नीचे ले जा उसकी चूचियो को वैसे ही बेरेहमी से मसल्ते हुए धक्के लगा रहा था.
“ऊन्नह..मगर क्या?..& मुझे नही लगता ऐसा डार्लिंग..नही तो वो बताती ही क्यू कि वो गोआ मे है?”,कामया ने अपने बाए कंधे के उपर से अपने आशिक़ के सर को थाम अपनी तरफ किया & उसे चूम लिया.
“क्यूकी होशियार होने के साथ-2 वो काफ़ी हिम्मतवाली भी है & फिर मैने उस से बेवफ़ाई भी की है & चोट खाई औरत से ख़तरनाक चीज़ कोई नही होती. ”
“तो फिर जल्दी से ढूँड़ो उसे & अपने शुबहे दूर कर लो.कही सब कुच्छ बर्बाद ना हो जाए!”
“नही जानेमन,मैं ऐसी अनहोनी नही होने दूँगा.”,समीर झुका & महबूबा के रसीले होंठो को चूमते हुए उसे चोदने लगा.
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क्रमशः.......
गतान्क से आगे......
देवेन को भी विजयंत का अपनी महबूबा के साथ ये मस्ताना खेल खेलना ज़रा भी पसंद नही था मगर ना जाने क्या बात थी इस खेल मे कि दोनो को 1 साथ देख उसके दिल मे नफ़रत की जगह 1 अजीब सा रोमांच भर जाता था..उसे भी विजयंत से जलन होती थी मगर साथ ही वो खींचता था उनकी तरफ,उस खेल मे शामिल होने के लिए..फिर यूरी ने भी कहा था की बहुत मुमकिन था की रंभा के साथ चुदाई की वजह से विजयंत पूरा का पूरा ठीक हो जाए..फिर सारी गुत्थिया सुलझ जाती & वो दयाल को ढूँढने मे अपना सारा वक़्त & सारी ताक़त लगा सकता था.
“उउम्म्म्म..आहह..!”,रंभा की आहो & उसके बॉल खींचने से वो अपने ख़यालो से बाहर आया.विजयंत का हाथ रंभा की सारी मे घुस उसकी टाँगे सहला रहा था & वो अभी भी उसके दाए पैर को चूमे जा रहा था.देवेन ने उसके पेट पे अपने हाथ दायरे की शक्ल मे घुमाए तो रंभा मस्ती मे और ज़ोर से आहे भरने लगी.विजयंत का हाथ उसकी जाँघ के नीचे सहला रहा था & उसके होंठ उसके पैरो की उंगलिया चूसे जा रहे थे.जिस्म मे वो मीठा तनाव बहुत बढ़ गया था & चूत की कसक भी.देवेन ने उसकी नाभि मे अपनी उंगली उतार ज़ोर से कुरेदते हुए उसके दाए कान पे काटा & उसी वक़्त विजयंत ने उसके पाँव की सबसे छ्होटी उंगली को चूस उसके & उस से पहले वाली उंगली के बीच की जगह को जीभ से छेड़ा & उसकी जाँघ के निचले हिस्से को बहुत ज़ोर से दबाया.रंभा ने ज़ोर से आह भरी & देवेन की बाहो मे कसमसने लगी.दोनो मर्द समझ गये की वो झाड़ गयी है.
विजयंत ने उसके पैर को ज़मीन पे रखा & दोनो हाथ उसकी सारी मे घुसा उसकी टाँगो & जाँघो को सहलाते हुए उसके गोल पेट को चूमने लगा.देवेन के हाथ उसके खुले ब्लाउस के नीचे से उसकी चूचियो के निचले हिस्से को 2-2 उंगलियो से सहला रहे थे.रंभा के हाथ अब देवेन के गले से उतर विजयंत के सर से लग चुके थे & उसके बालो मे को बेचैनी से खींच रहे थे.विजयंत की लपलपाति ज़ुबान उसकी नाभि को चाते जा रही थी.देवेन के हाथ तो जैसे उसकी चूचियो को च्छू के भी नही च्छू रहे थे.वो उन्हे अपनी हथेलियो मे भर के दबा नही रहा था,ना ही उनके निपल्स को छेड़ रहा था बस उनके नीचे के हिस्से को अपनी उंगलियो से सहला रहा था & रंभा को मस्त किए जा रहा था.रंभा की मस्ती इतनी बढ़ गयी की उसे अब दोनो का च्छुना भी सहन नही हो रहा था & वो दोनो को अपने जिस्म से परे धकेल उनसे छिटक के अलग हो गयी.
उसकी साँसे बहुत तेज़ चल रही थी,उसका आँचल फर्श पे था & ढीले ब्लाउस के किनारो से उसकी उपर-नीचे होती चूचियो की झलकिया दिख रही थी.बॉल बिखर के चेहरे पे आ गये थे & होंठ कांप रहे थे.देवेन उसे देख मुस्कुराते हुए अपनी शर्ट के बटन्स खोलने लगा तो रंभा ने अपना दाया हाथ बालो मे घुमाया & उसे अपने चेहरे पे बेचैनी से चलाया.विजयंत ने देवेन की देखा-देखी अपनी कमीज़ भी उतार दी.दोनो के बालो भरे चौड़े सीनो को देख रंभा की चूत मे फिर से कसक उठने लगी.उसने बाए हाथ को अपनी सारी पे रख अपनी चूत पे दबा उसे शांत करने की नाकाम कोशिश करते हुए दाए हाथ को होंठो पे भींचते हुए अपनी आह को रोका.
देवेन उसके बिल्कुल करीब आ खड़ा हुआ था & उसके गले से ब्लाउस को निकाल रहा था,विजयंत के हाथ उसकी कमर मे घुस उसके नर्म पेट को छुते हुए उसकी सारी को निकाल रहे थे.रंभा बस ज़ोर-2 से साँसे लेती हुई दोनो मर्दो के हाथो नंगी हो रही थी.सारी के उतरते ही देवेन ने उसके पीछे जा उसकी कमर सहलाते हुए उसके पेटिकट को उसकी कमर से सरकया & फिर उसकी गंद की दरार मे फँसे उसके हरे तोंग को विजयंत ने नीचे सरकया.
देवेन पीछे से उसे बाहो मे भर उसके गालो को चूमते हुए अभी भी वैसे ही उसकी चूचियो के निचले हिस्सो को दोनो हाथो की 2-2 उंगलियो से सहला रहा था & नीचे बैठा विजयंत मेहरा उसकी कमर को पकड़े उसकी गंद को धीमे-2 सहलाते हुए उसकी कमर के दाई तरफ के मांसल हिस्से को चूम रहा था.रंभा मस्ती मे चूर थी & दोनो की ज़ुबानो का भरपूर लुत्फ़ उठा रही थी.देवेन ने नीचे से उसकी चूचियो को अपने हाथो मे भर दबाया तो वो आह भरते हुए सिहर उठी.विजयंत उसकी चूत के ठीक उपर पेट पे चूम रहा था & उसकी गर्म साँसे भी उस हिस्से को च्छू रही थी.
“उउन्नग्घह..!”,देवेन ने उसकी चूचियो को दोनो हाथो मे भर आपस मे दबाया & विजयंत की ज़ुबान ने चूत की दरार को सहलाते हुए उसके दाने को छेड़ा.रंभा ने दाए हाथ से उसके बाल पकड़ उसके सर को अपनी चूत पे दबाया & विजयंत ने उसकी चूत चाटना शुरू कर दिया.देवेन उसके पूरे चेहरे को अपने तपते होंठो से चूम रहा था,उसके हाथ महबूबा की चूचियो को हर तरीके से दबा रहे थे-कभी बहुत हल्के-2 उनकी नज़ाकत की इज़्ज़त करते हुए तो कभी उनकी कोमलता से बेपरवाह काफ़ी ज़ोर से.विजयंत उसकी चूत के गीलेपान को पीते हुए जीभ चट मे बहुत अंदर तक घुसा रहा था.रंभा कसमसा रही थी.उसकी कमर हिलने लगी थी & वो देवेन के मुँह पे चूत रगड़ने लगी थी.जिस्म मे बेचैनी & मदहोशी इतनी भर गयी थी की वो परेशान हो सर इधर-उधर घूमाते हुए कभी इस प्रेमी तो कभी उस प्रेमी के बालो को नोचते हुए आहे भर रही थी.देवेन ने उसकी चूचियो को आपस मे सटा के दबाते हुए दोनो हाथो की 2-2 उंगलियो से उसके किशमिश के दानो सरीखे निपल्स को मसला & उसी वक़्त विजयंत की ज़ुबान ने भी उसके दाने को ज़ोर से छेड़ा.रंभा ने च्चटपटाते हुए आह भरी & झाड़ गयी.वो दोनो की गिरफ़्त से निकल बार के सहारे खड़ी हो सिसकने लगी.
दोनो मर्द उसके करीब आए & उसके जिस्म पे हाथ रखा तो वो घूमी & दोनो के सर को 1-1 हाथ मे थाम लिया & पहले अपने दाए तरफ खड़े देवेन & फिर बाए तरफ खड़े विजयंत को चूमा & फिर अपने नखुनो से उनके सीने से पेट तक खरोंछते हुए उनके पॅंट खोल दिए.दोनो मर्दो के लिए ये इशारा काफ़ी था & दोनो ने अपनी -2 पॅंट्स उतार दी & अपने तगड़े लंड उसकी खिदमत मे पेश करते खड़े हो गये.रंभा ने दोनो की आँखो मे आँखे डालते हुए दोनो हाथो मे दोनो लुंडो को भर के दबाया.विजयंत के जिस्म के साथ ज़हन मे भी जैसे बिजली दौड़ गयी.ये एहसास उसे याद था!..उसे याद था कि वो उसके लंड से जिस मस्ताने अंदाज़ मे खेलती थी वैसे कभी किसी ने नही खेला था मगर वो बाकी लोग कौन थे जिनकी तुलना वो रंभा से कर रहा था?..कौन थी वो लड़कियाँ?..उसकी बीवी..क्या नाम बताया था रंभा ने उसका..हां..रीता..क्या वो उसे ऐसे नही प्यार करती थी?..आख़िर क्यू..वो सब भूल गया था..उस झरने पे क्या हुआ था उस रात?..,”आहह..!”,उसने कुच्छ बेबसी & काफ़ी मज़े मे वो आँखे बंद कर आह भरी.देवेन रंभा की तुलना किसी & औरत से नही कर रहा था..ऐसा करना उस हुसनपरी,जिसे वो बेइंतहा प्यार करने लग था.की तौहीन होती..शुरू मे उसे सुमित्रा का दर्जा देते हुए उसे ग्लानि हुई थी,लगा था वो अपनी सुमित्रा से बेवफ़ाई कर रहा था मगर उसका दिल हुमेशा उस से कहता रहता था कि ये सही था..सुमित्रा की बेटी उसे वो दे रही थी जिसका वो हक़दार था लेकिन जिस से वो अभी तक महरूम था.उसने रंभा के दाए गाल पे अपनी हथेली जमाई तो उसने नशीली आँखो से उसे देखते हुए हथेली पे अपना गाल रगड़ा.विजयंत ने अपना दाया हाथ उसके बाए गाल पे रखा & रंभा ने उसके साथ भी वही हरकत दोहराई.दोनो मर्द आगे झुके & उसके 1-1 गाल और गर्देन से लेके कंधो तक चूमने लगे.रंभा वैसे ही उनके लंड हिलाती रही.
डेवाले मे मेहरा परिवार के 1 बुंगले मे भी वासना का खेल चल रहा था.कामया समीर की बाहो मे उसके बिस्तर पे पड़ी थी.समीर के हाथो मे उसकी नर्म चूचिया कसने लगी थी & उसके जिस्म मे बेचैनी भरने लगी थी,”समीर..सब ठीक रहेगा ना?..ऊव्वववव..!..कितनी ज़ोर से दबाते हो!..दुख़्ता है..आननह..!”,समीर बेरेहमी से उसकी चूचिया मसल रहा था.वो जानता था की कामया कुच्छ भी बोले,उसे पसंद था इस तरह से चूचियाँ मसलावाना.उसने उसकी बाई छाती को मुट्ठी मे पकड़ के भींचा & दाई के निपल को दन्तो मे पकड़ उपर खींचा,”..औचह..!”कामया ने उसके बाल खींचे & उसकी गर्देन के नीचे अपने नाख़ून जमा दिए.
“सब ठीक रहेगा.तुम घबराओ मत.”,समीर ने उसकी छाती को छ्चोड़ उसे उल्टा किया & उसकी गंद से हाथ लगा दिए.
“फिर उसे इस तरह क्यू ढूंड रहे हो?..उउम्म्म्मम..!”,समीर जिस बेरेहमी से उसकी चूचियो को मसल रहा था,अब उतनी ही कोमलता से उसकी गंद सहला रहा था,”..जलन हो रही है सोच के कि वो वाहा किसी & की बाहो मे तो नही?”,गर्देन घुमा के वो शोखी से मुस्कुराइ तो समीर ने उसकी गंद पे चिकोटी काट ली,”..औचह..गंदे..!”,उसने प्यार से अपने प्रेमी को झिड़का.
“नही.”,समीर उसकी पीठ पे लेट गया & अपना लंड उसकी गंद पे दबाया तो कामया ने टाँगे फैला दी.समीर ने हाथ नीचे ले जाके अपने लंड को उसकी चूत पे रखा तो कामया थोडा उठ गयी & लंड को चूत मे घुसाने मे मदद की,”..तुम उसे जानती नही.वो बहुत होशियार है.पता नही क्यू मुझे लग रहा है कि वो गोआ कुच्छ ऐसा करने गयी है जोकि हमारे लिए बहुत मुश्किले पैदा कर सकता है.”,वो अपने हाथो को उसके जिस्म के नीचे ले जा उसकी चूचियो को वैसे ही बेरेहमी से मसल्ते हुए धक्के लगा रहा था.
“ऊन्नह..मगर क्या?..& मुझे नही लगता ऐसा डार्लिंग..नही तो वो बताती ही क्यू कि वो गोआ मे है?”,कामया ने अपने बाए कंधे के उपर से अपने आशिक़ के सर को थाम अपनी तरफ किया & उसे चूम लिया.
“क्यूकी होशियार होने के साथ-2 वो काफ़ी हिम्मतवाली भी है & फिर मैने उस से बेवफ़ाई भी की है & चोट खाई औरत से ख़तरनाक चीज़ कोई नही होती. ”
“तो फिर जल्दी से ढूँड़ो उसे & अपने शुबहे दूर कर लो.कही सब कुच्छ बर्बाद ना हो जाए!”
“नही जानेमन,मैं ऐसी अनहोनी नही होने दूँगा.”,समीर झुका & महबूबा के रसीले होंठो को चूमते हुए उसे चोदने लगा.
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