hotaks444
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उसके बाद हम दोनो वहाँ से कॉलेज के लिए निकले, जहा हमारी सीटिंग अरेंज्मेंट थी, उस क्लास के बाहर सभी अपने हाथ मे बुक्स,नोट्स पकड़ कर खड़े हुए थे, उन्हे देखकर तो मेरी एक बार और फॅट गयी,कैसे भी करके मैने खुद को संभाला, और एग्ज़ॅम हॉल के अंदर देखा, वहाँ एक यमराज का रूप लिए हुए एक टीचर चेयर पर बैठा हुआ था, जिसके आजू-बाजू बहुत कुछ रक्खा हुआ था...इस वक़्त एग्ज़ॅम हॉल मुझे कुरुक्शेत्र लग रहा था,जिसमे 5 मिनट. के बाद मुझे युद्ध करने जाना था....परेशानी ये थी कि आज इस अर्जुन के साथ श्रीकृष्ण नही थे......
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मैं एकदम राइट टाइम पर क्लास के अंदर घुसा और फिर वो वक़्त भी आया जब क्वेस्चन पेपर बाँटा गया, मुझे जब क्वेस्चन पेपर मिला तो मैं कुछ देर तक क्वेस्चन पेपर के फ्रंट पेज को ही देख कर ना जाने क्या सोचने लगा, उस वक़्त बीसी ना जाने कैसे-कैसे ख़याल आने लगे...कभी नेक्स्ट वीक रिलीस होने वाली मूवी का नेम याद आता तो कभी कोई सॅड सॉंग, फिर अचानक ही वेलकम पार्टी की यादें ताज़ा हो गयी, उसके बाद मैने आज तक जितनी बीएफ देखी थी ,वो मेरे आँखो के सामने चलने लगी और इस पर बॉलीवुड के कुछ गानो ने चार चाँद लगा दिए.....वो गाने कुछ ऐसे थे
"अंधेरी रातों में सुनसान राहों पर,
हर ज़ुल्म मिटाने को एक मसीहा निकलता है
जिसे लोग शाहेंशाह कहते हैं..."
"दिल ने तुमको चुन लिया है, तुम भी इसको चुनो ना..."
"मुझे पीने का शौक नही,पीता हूँ गम भूलाने को..."
इन गानो ने पीछा छोड़ा तो धर्मेन्द्र पाजी का डाइलॉग"बसंती इन कुत्तो के सामने मत नाचना..."
उसके बाद हनी सिंग भी आ गये और मैं अंदर ही अंदर गला फाड़ कर चिल्लाया "चूस मेरा लवडा ,चूस चूस लवडा ,जैसे आलू का पकोड़ा..."
"हाई माइ नेम इस फादू सिंग...."
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"बीसी,मैं यहाँ पेपर देने आया हूँ, या गाना गाने...."मैं बहुत ही बुरी तरह से खुद पर झल्लाया और गुस्से से एक लात खुद की बेंच पर दे मारी....
"क्या प्राब्लम है..."उस यमराज टीचर ने मुझसे पुछा...
"कुछ नही सर"(बीसी आँखे नीचे कर,वरना यही चोद दूँगा...)
उसके बाद आन्सर शीट मे मैं अपना नाव,गाँव भरा,लेकिन तभी श्रीमान फाडू सिंग मेरे ख़यालात मे डुबकी मार लिए.....
"काश कोई मिल जाए,थक चुका हूँ मैं, दूर दूर से देख देख के पक चुका हूँ मैं...."
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"बीसी अब नही..."मैने अपना सर पकड़ लिया लेकिन तभी कल रात की कॉल याद गयी,जिसमे मेरी माँ ने कहा था कि"बदनाम मत करना और पांडे जी की बेटी से अधिक नंबर लाना..."
."गान्ड चुदाये पांडे और उसकी बेटी"
मेरा इस वक़्त मन कर रहा था कि मैं बेंच उठाऊ और उसे अपने सर पर दे मारू , या फिर मेरे हाथ मे जो पेन है उसको आगे वाली की गान्ड मे घुसा दूं या फिर अपने सर मे पेल दूं....और इसी खुशी मे मैने शर्ट की जेब से पेन्सिल का आधा टुकड़ा निकाला और गुस्से मे उसके दो टुकड़े कर दिए....बीसी सब ऐसे शांत बैठे थे,जैसे अर्थी पर लेटे हो,मेरे पेन्सिल तोड़ने की आवाज़ तुरंत पूरे क्लास रूम मे गूँज उठी...और यमराज ने एक बार फिर मुझे घूरा....
"सॉरी सर "यमराज को देख कर मैने कहा और क्वेस्चन पेपर की तरफ देखा....उसी वक़्त एक नज़र घड़ी पर पड़ी तो देखा कि आधा घंटा तो इसी मे निकल गया है...
"माइंडफक..."
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"जा रहे हो..."जब मैं निशा के रूम से जाने के लिए हुआ तो वो बोली....
मेरी तरह वो खुद भी जानती थी कि मुझे जाना तो है ही, इसलिए उसने मुझे रुकने के लिए ना कहकर सिर्फ़ इतना ही पुछा....
"जाना तो पड़ेगा ,निशा...पर वादा करता हूँ,वापस ज़रूर आउन्गा..."
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मेरे इस जवाब पर वो सिर्फ़ मुझे देखती रही, इस वक़्त वो क्या सोच रही थी शायद मैं जानता था...लेकिन वो वक़्त ही ऐसा था कि मैं चाहकर भी वहाँ नही रुक पाया,वो अपनी आँखो मे उदासी का गहरा सबब लिए उलझन मे फँसी मेरे सामने खड़ी थी.....उसे उस हालत मे देखकर जी किया कि उसे खुद से लिपटा लूं और कभी ना छोड़ू...वो शायद अंदर ही अंदर ये बोल भी रही थी कि मैं ना जाउ....
उसकी इस हालत को मैं बखूबी समझ रहा था,क्यूंकी एक दिन मैं भी ऐसे ही किसी के सामने खड़ा था और यही दुआ माँग रहा था कि वो ना जाए ! उस वक़्त मेरे मूह से एक शब्द तक नही निकला, मैं उसका नाम लेकर ना तो उसे पुकार पाया और ना ही उसे रोक पाया और वो हमेशा के लिए मुझसे दूर चली गयी, साला कभी -कभी एक नाम इतना ज़ख़्म दे जाता है कि उसके बाद उस ज़ख़्म पर दुनिया भर की सारी दुआ ,दुनिया भर की सारी दवा बेअसर हो जाती है,इस वक़्त भी कुछ कुछ ऐसा ही हो रहा था...मैं अब भी निशा के सामने खड़ा था और वो अब भी मुझे देख रही थी......
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इश्क़ की राहों मे टूटकर बिखरे कुछ अरमान इस तरह की मौत ने मरने से पहले सारी दास्तान पुछि और जब सारी दास्तान, सारे दर्द मौत को सुनाया तो वो सर से कफ़न हटाकर ये बोलकर चला गया कि "अब यदि तेरे करीब और रहा तो,मौत को भी मौत आ जाएगी....."
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"चलता हूँ, मेरे पास इतना बड़ा घर नही है...जहाँ आराम से बैठकर खाना खाया जाए, अभी जाकर लोहा पिघलाना है...."
वो फिर चुप रही, वो मुझे ऐसे देख रही थी,जैसे की आख़िरी बार देख रही हो और इसके बाद वो मुझे कभी देख ही नही पाएगी.....मैं उसके करीब गया और उसकी कमर मे हाथ डालकर अपनी तरफ खींच कर बोला...
"तेरे घर मे नौकर भूत है क्या,जो कभी दिखते नही..या फिर घर का सारा काम तुझे करना पड़ता है...."जाते-जाते उसके चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करते हुए मैने कहा...."चल आजा, कल रात वाला गेम खेलते है..."
मेरा ऐसा कहना था की उसने तुरंत इनकार करते हुए अपनी गर्दन राइट तो लेफ्ट कर दी....
"मज़ाक कर रहा हूँ, बाद मे मिलता हूँ...बाइ"
बोलते हुए मैं निशा के घर से बाहर आया और जब गेट के पास पहुचा तो वहाँ हमेशा अपने छोटे से रूम मे रहने वाले चौकीदार ने मुझे घूरा, जवाब मे मैने भी उसे आँखे दिखाई.....
"चल भाग यहाँ से..."
"बेटा अच्छे से पहरा दे,वरना इस महीने की पगर काट लूँगा...."बोलकर मैं वहाँ से हँसते हुए दौड़ा और अपने फ्लॅट पर पहुचा.....
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"क्या बेटा, बहुत रापचिक माल सेट करके रक्खी है...मेरा भी जुगाड़ है क्या..."
"मर्डर कर देगी तेरा वो, "सोफे पर बैठकर मैने अरुण से कहा"वैसे टाइम क्या हुआ है..."
"11 बज चुके है...."
"आज भी लेट "
"जल्दी से इनफॉर्म कर दे,वरना वो तुझे लात मार के निकाल देंगे...."
"एक काम करता हूँ...."वरुण की तरफ देखकर मैने कहा"जैसे वरुण ने छुट्टी ले रक्खी है,मैं भी कुछ दिनो के लिए छुट्टी ले लेता हूँ....क्या बोलता है..."
"सुपर्ब आइडिया....इसी खुशी मे पापा बोल..."
" "
लगातार दो दिन से दारू पी-पी कर हम तीनो बोर हो गये थे ,और आज दारू पीने का मन वैसे भी नही था....जहाँ एक तरफ निशा से झूठ बोलकर मैं यहाँ गप्पे लड़ा रहा था, वही वो शायद शाम होने का इंतेज़ार कर रही थी....
"तेरे फर्स्ट सेमेस्टर के एग्ज़ॅम तक का सारा कांड अरुण ने कल रात मे बता दिया..."सिगरेट जलाने के लिए उसने मुझसे माचिस माँगी , लेकिन जब माचिस नही मिली तो मैने उसके मूह से सिगरेट निकाल कर अपने मूह मे डाली और बोला "अब देख मैं सिगरेट जलाता हूँ...."
उसके बाद मैने गॅस का लाइटर उठाया और गॅस जलाकर सिगरेट सुलगाई......
"तू दीपिका को पेल पाया कि नही...और विभा का क्या हुआ था..."
"डाइरेक्ट रिज़ल्ट बताऊ या फिर क्लास चलकर लेक्चर सुनाऊ...."
"मज़ा तो डाइरेक्ट रिज़ल्ट मे है ,लेकिन फिर भी लेक्चर ही सुना...."
"अरुण, तू ब्रेक फास्ट तैयार कर...."
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एग्ज़ॅम बीसी इतने बुरे गये थे कि मैं किसी एक पेपर तक मे स्योर नही था की क्लियर हो जाएगा...कभी-कभी रात को सपने मे मैं देखता की मेरी 6 मे 6 बॅक लग चुकी है.... फाइनली एग्ज़ॅम ख़त्म हुआ और लास्ट पेपर जिस दिन था उस दिन मैं सुबह से ही खुश था...क्यूंकी आज के बाद मेरे गर्दन पर इतने दिनो से लटका हुआ एग्ज़ॅम का घंटा उतरने वाला था और मैं रिज़ल्ट आने तक तो ऐश कर ही सकता था.....आख़िरी पेपर देने के बाद मैं ऐसे खुश था जैसे कि मैं पूरा यूनिवर्स अपने कब्ज़े मे कर लिया हो...ना ही दोपहर मे नींद लगी और ना ही भूख...सोचा कि मूठ ही मार लिया जाए लेकिन वो करने का भी मन नही किया, बहुत देर तक पकड़ कर हिलाते रहने के बावज़ूद भी जब नही गिरा तो मेरा हाथ दर्द देने लगा और मैने मूठ मारना छोड़ दिया
उस दिन मुझे अहसास हुआ कि वाकाई मे मेरी एफीशियेन्सी सॉलिड है,...उस दिन की दोपहर बड़ी मुश्किल से गुज़री ,शाम होते तक हमने कही घूमने घामने का प्लान बनाया...और ये फिक्स हुआ कि शहर के सबसे बड़े माल मे जाएँगे...लेकिन तभी अरुण बोला...
"बार चलते है,..."
बार का नाम सुनकर मैं और भू एक दूसरे का मूह ताकने लगे, क्यूंकी हमने अभी तक सोचा भी नही था कि हमे बार भी जाना चाहिए,बार आज तक मैने सिर्फ़ फ़िल्मो मे ही देखे थे या फिर किसी दूसरे के मूह से सुना रख था और मुझे इतना मालूम चल चुका था कि अंदर दारू बहुत महँगी मिलती है....मैने पर्स मे नज़र डाली , पैसा भरपूर था ,और वैसे भी जब तक जेब मे दस हज़ार का मोबाइल हो तो घबराने की क्या ज़रूरत, मैने अपनी गर्दन हां मे हिलाई...फिर क्या था, कही से बाइक जुगाड़ की और रात को 9 बजते ही बार के लिए निकल गये......
"यार अरुण, ये बार वाले बीसी पैसा बहुत लेते है दारू-वारू के...."
"अब क्या करेगा देना तो पड़ेगा ही..."
"गाड़ी साइड मे रोक एक धाँसू आइडिया आएला है भेजे मे...."
मेरे कहने पर जब अरुण ने बाइक सड़क के किनारे रोक दी तब मैं बोला"अपन तीनो बाहर से ही दारू पीकर चलते है, मस्त नशे मे टन होकर जाएँगे...."
"सोच ले, कही वेलकम पार्टी की तरह कुछ उल्टा सीधा हुआ तो..."
"कुछ नही होगा,यदि कुछ हुआ तो मैं सब संभाल लूँगा..."भू बीच मे सीना चौड़ा करते हुए बोला और जोश जोश मे तुरंत अपने जेब से 200 निकाल कर मुझे पकड़ाया और एक बोतल एम.डी. लाने के लिए कहा.......
"अबे किसी ढाबे मे चलकर पीते है,उस दिन की तरह नही...साला हॅंगओवर मार देता है...शुक्र मनाओ कि वो नीम के पेड़ के नीचे वाली लड़की दिखी नही ,वरना पकड़ के भरती वो...."
"अब चले...."
"चलो, दौड़ो,भागो...."
फिर एक ढाबे पर रुक कर हमने खाना खाया और शराब की तीन बोतल खाली की और वहाँ पैसे देकर बाइक की तरफ बढ़े....
"अरुण...बाइक मैं चलाउन्गा..."मैं बोला. इस वक़्त मैं उन दोनो से थोड़ा पीछे था...
"बेटा आँख खुल नही रही, गाड़ी क्या चलाएगा..."
"तेरी तो..."मैने अरुण के हाथ से बाइक की चाभी ली और बाइक पर सामने बैठकर उन दोनो को पीछे बैठने के लिए कहा,
"यार अरमान, बाइक गर्ल्स हॉस्टिल की तरफ ले ,उस ताडकासुर की गान्ड मारनी है...उस दिन गर्ल्स हॉस्टिल मे उसी ने मुझे एक झापड़ मारा था...."
"अबे चुप भू, अभी बार जाना है..."अरुण भू के सर पर एक हाथ पेलते हुए बोला....और इस वक़्त मैं मस्त आराम से रात के 10 बजे बाइक चला रहा था, और जब सिटी से कट कर अपने कॉलेज वाले जुंगली रास्ते पर आए तो ,उधर सामने से जो भी आता ,या सामने जो भी दिखता उसे भरपूर गाली देते और बोलते कि"दम है तो उखाड़ के दिखा..."
एक ने पुछा भी क्या उखाडू तो मैने कहा"अपना लवडा उखाड़ के दिखा"
जैसे जैसे कॉलेज की तरफ मैं बाइक दौड़ा रहा था, स्पीड बढ़ती जा रही थी और मेरी आँख बंद हो रही थी...मुझे ऐसे लगने लगा जैसे कि मैं एक सूपर हीरो हूँ और दुनिया को बचाने के लिए जल्दी से जल्दी कॉलेज पहुचना है...मैने अपनी एक आँख बंद करके आक्सेलरेटर और पेल दिया...और बाइक सीधे गर्ल्स हॉस्टिल के बाहर रोकी.....
"अबे ताडकासुर ,निकल बाहर....."बोलकर मैं सिगरेट जलाने लगा...
लेकिन भू को कुछ ज़्यादा ही गुस्सा आ गया और उसने दो चार पत्थर उठाकर हॉस्टिल की तरफ फेंके...और हर बार काँच टूटने की आवाज़ हुई , और उसके तुरंत बाद कुत्तो के भोकने की आवाज़ आई और वहाँ का चौकीदार हमारी तरफ बढ़ा ,जिसे हमने दूर से देख लिया....
"भाग बीसी, वरना तुझे भी मारूँगा..."बोलते हुए भू ने चौकीदार पर भी पत्थर बरसाना शुरू कर दिया ,लेकिन जब वो अपने डंडे को बॅट बनाकर क्रिकेट खेलने लगा तो हमे वहाँ से भागना पड़ा...गाड़ी अब भी मैं ही चला रहा था...मैं वहाँ से भागने के पहले ज़ोर ज़ोर से चिल्लाया...
"ओये मोटी भैंस ,मेरा नाम गौतम है, मेकॅनिकल सेकेंड एअर...गान्ड मे दम हो तो उखाड़ लेना...."
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"अबे अब तो वो गौतम गया, बीसी..."
"चल बोल पापा.....और ये बीसी बाइक क्यूँ रो रही है...."
"पेट्रोल ख़त्म हो गया होगा..."
"क्या...ऐसे मे तो ठुकाई हो जाएगी..."मैं बाइक को हिलाते हुए पेट्रोल चेक करने लगा....लेकिन बाइक नही हिली, अरुण और भू जो सवार थे
"अबे उतर..."
जब वो दोनो बाइक से उतर गये तो मैने बाइक पूरी ताक़त से हिलाई ,इतनी ताक़त से हिलाई कि मैं खुद हिल गया और बाइक के साथ नीचे ज़मीन पर आ गिरा......
"ये बीसी, बाइक की माँ की...कौन लाया ये ख़तरी बाइक..."
"ज़्यादा लगी तो नही..."
"मर्द हूँ, ऐसी छोटे मोटे ज़ख़्मो का असर नही होता...."झूठ बोलते हुए मैने कहा,...इतनी देर मे एक शाकस गर्ल्स हॉस्टिल के तरफ वाली रोड से हमपर तौरछ मरने लगा...
"ये बीसी, तौरछ कौन मार रहा है, हम तीनो पर..."
हम तीनो उस टॉर्च दिखाने वाले को गालियाँ देने लगे और तभी भू ने अपने 1200 का टॉर्च चालू करके हम पर रोशनी मारने वाले के उपर फोकस किया.....
"अबे भाग ये तो चौकीदार है गर्ल्स हॉस्टिल का...."भू वहाँ से भागते हुए बोला....
"निकाल बंदूक और मार गोली इसकी गान्ड मे..."अरुण बोला....
"बंदूक नही मिज़ाइल छोड़ते है, साले के उपर...यही चिथड़े-चिथड़े हो जाएँगे इसके शरीर के...."मैने भी गर्रा कर कहा....
गर्ल्स हॉस्टिल का चौकीदार जो कुछ देर पहले हमारी तरफ आ रहा था,वो जहाँ था वही रुक गया ,और एक बार फिर हम पर लाइट मारी....
"गौतम...."मैने जानबूझकर अरुण को गौतम कहकर पुकारा"गौतम, बॉम्ब फोड़ दे साले के उपर...."
"अभी फोड़ता है..."
वो चौकीदार अब भी वहाँ खड़ा हमे देख रहा था, उसके आगे आने की हिम्मत नही हो रही थी, तभी मैने नीचे झुककर एक पत्थर उठाया और उसकी तरफ फेंका....
"आआआआ....."चिल्लाते हुआ चौकीदार वहाँ से भाग गया....
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"भू लंड....कहाँ घुसा है भू लंड..."
"स्शह...इधर हूँ "
"बीसी, अपने 1200 का लाइट जला...."
उसके बाद अब हम तीनो के सामने परेशानी ये थी कि पेट्रोल लेने कौन जाए....पेट्रोल पंप वहाँ से 2 से 3 कि.मी. दूर था और इस वक़्त हम तीनो एक सुनसान सड़क पर खड़े थे...जहा हमे किसी का डर नही था
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मैं एकदम राइट टाइम पर क्लास के अंदर घुसा और फिर वो वक़्त भी आया जब क्वेस्चन पेपर बाँटा गया, मुझे जब क्वेस्चन पेपर मिला तो मैं कुछ देर तक क्वेस्चन पेपर के फ्रंट पेज को ही देख कर ना जाने क्या सोचने लगा, उस वक़्त बीसी ना जाने कैसे-कैसे ख़याल आने लगे...कभी नेक्स्ट वीक रिलीस होने वाली मूवी का नेम याद आता तो कभी कोई सॅड सॉंग, फिर अचानक ही वेलकम पार्टी की यादें ताज़ा हो गयी, उसके बाद मैने आज तक जितनी बीएफ देखी थी ,वो मेरे आँखो के सामने चलने लगी और इस पर बॉलीवुड के कुछ गानो ने चार चाँद लगा दिए.....वो गाने कुछ ऐसे थे
"अंधेरी रातों में सुनसान राहों पर,
हर ज़ुल्म मिटाने को एक मसीहा निकलता है
जिसे लोग शाहेंशाह कहते हैं..."
"दिल ने तुमको चुन लिया है, तुम भी इसको चुनो ना..."
"मुझे पीने का शौक नही,पीता हूँ गम भूलाने को..."
इन गानो ने पीछा छोड़ा तो धर्मेन्द्र पाजी का डाइलॉग"बसंती इन कुत्तो के सामने मत नाचना..."
उसके बाद हनी सिंग भी आ गये और मैं अंदर ही अंदर गला फाड़ कर चिल्लाया "चूस मेरा लवडा ,चूस चूस लवडा ,जैसे आलू का पकोड़ा..."
"हाई माइ नेम इस फादू सिंग...."
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"बीसी,मैं यहाँ पेपर देने आया हूँ, या गाना गाने...."मैं बहुत ही बुरी तरह से खुद पर झल्लाया और गुस्से से एक लात खुद की बेंच पर दे मारी....
"क्या प्राब्लम है..."उस यमराज टीचर ने मुझसे पुछा...
"कुछ नही सर"(बीसी आँखे नीचे कर,वरना यही चोद दूँगा...)
उसके बाद आन्सर शीट मे मैं अपना नाव,गाँव भरा,लेकिन तभी श्रीमान फाडू सिंग मेरे ख़यालात मे डुबकी मार लिए.....
"काश कोई मिल जाए,थक चुका हूँ मैं, दूर दूर से देख देख के पक चुका हूँ मैं...."
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"बीसी अब नही..."मैने अपना सर पकड़ लिया लेकिन तभी कल रात की कॉल याद गयी,जिसमे मेरी माँ ने कहा था कि"बदनाम मत करना और पांडे जी की बेटी से अधिक नंबर लाना..."
."गान्ड चुदाये पांडे और उसकी बेटी"
मेरा इस वक़्त मन कर रहा था कि मैं बेंच उठाऊ और उसे अपने सर पर दे मारू , या फिर मेरे हाथ मे जो पेन है उसको आगे वाली की गान्ड मे घुसा दूं या फिर अपने सर मे पेल दूं....और इसी खुशी मे मैने शर्ट की जेब से पेन्सिल का आधा टुकड़ा निकाला और गुस्से मे उसके दो टुकड़े कर दिए....बीसी सब ऐसे शांत बैठे थे,जैसे अर्थी पर लेटे हो,मेरे पेन्सिल तोड़ने की आवाज़ तुरंत पूरे क्लास रूम मे गूँज उठी...और यमराज ने एक बार फिर मुझे घूरा....
"सॉरी सर "यमराज को देख कर मैने कहा और क्वेस्चन पेपर की तरफ देखा....उसी वक़्त एक नज़र घड़ी पर पड़ी तो देखा कि आधा घंटा तो इसी मे निकल गया है...
"माइंडफक..."
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"जा रहे हो..."जब मैं निशा के रूम से जाने के लिए हुआ तो वो बोली....
मेरी तरह वो खुद भी जानती थी कि मुझे जाना तो है ही, इसलिए उसने मुझे रुकने के लिए ना कहकर सिर्फ़ इतना ही पुछा....
"जाना तो पड़ेगा ,निशा...पर वादा करता हूँ,वापस ज़रूर आउन्गा..."
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मेरे इस जवाब पर वो सिर्फ़ मुझे देखती रही, इस वक़्त वो क्या सोच रही थी शायद मैं जानता था...लेकिन वो वक़्त ही ऐसा था कि मैं चाहकर भी वहाँ नही रुक पाया,वो अपनी आँखो मे उदासी का गहरा सबब लिए उलझन मे फँसी मेरे सामने खड़ी थी.....उसे उस हालत मे देखकर जी किया कि उसे खुद से लिपटा लूं और कभी ना छोड़ू...वो शायद अंदर ही अंदर ये बोल भी रही थी कि मैं ना जाउ....
उसकी इस हालत को मैं बखूबी समझ रहा था,क्यूंकी एक दिन मैं भी ऐसे ही किसी के सामने खड़ा था और यही दुआ माँग रहा था कि वो ना जाए ! उस वक़्त मेरे मूह से एक शब्द तक नही निकला, मैं उसका नाम लेकर ना तो उसे पुकार पाया और ना ही उसे रोक पाया और वो हमेशा के लिए मुझसे दूर चली गयी, साला कभी -कभी एक नाम इतना ज़ख़्म दे जाता है कि उसके बाद उस ज़ख़्म पर दुनिया भर की सारी दुआ ,दुनिया भर की सारी दवा बेअसर हो जाती है,इस वक़्त भी कुछ कुछ ऐसा ही हो रहा था...मैं अब भी निशा के सामने खड़ा था और वो अब भी मुझे देख रही थी......
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इश्क़ की राहों मे टूटकर बिखरे कुछ अरमान इस तरह की मौत ने मरने से पहले सारी दास्तान पुछि और जब सारी दास्तान, सारे दर्द मौत को सुनाया तो वो सर से कफ़न हटाकर ये बोलकर चला गया कि "अब यदि तेरे करीब और रहा तो,मौत को भी मौत आ जाएगी....."
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"चलता हूँ, मेरे पास इतना बड़ा घर नही है...जहाँ आराम से बैठकर खाना खाया जाए, अभी जाकर लोहा पिघलाना है...."
वो फिर चुप रही, वो मुझे ऐसे देख रही थी,जैसे की आख़िरी बार देख रही हो और इसके बाद वो मुझे कभी देख ही नही पाएगी.....मैं उसके करीब गया और उसकी कमर मे हाथ डालकर अपनी तरफ खींच कर बोला...
"तेरे घर मे नौकर भूत है क्या,जो कभी दिखते नही..या फिर घर का सारा काम तुझे करना पड़ता है...."जाते-जाते उसके चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करते हुए मैने कहा...."चल आजा, कल रात वाला गेम खेलते है..."
मेरा ऐसा कहना था की उसने तुरंत इनकार करते हुए अपनी गर्दन राइट तो लेफ्ट कर दी....
"मज़ाक कर रहा हूँ, बाद मे मिलता हूँ...बाइ"
बोलते हुए मैं निशा के घर से बाहर आया और जब गेट के पास पहुचा तो वहाँ हमेशा अपने छोटे से रूम मे रहने वाले चौकीदार ने मुझे घूरा, जवाब मे मैने भी उसे आँखे दिखाई.....
"चल भाग यहाँ से..."
"बेटा अच्छे से पहरा दे,वरना इस महीने की पगर काट लूँगा...."बोलकर मैं वहाँ से हँसते हुए दौड़ा और अपने फ्लॅट पर पहुचा.....
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"क्या बेटा, बहुत रापचिक माल सेट करके रक्खी है...मेरा भी जुगाड़ है क्या..."
"मर्डर कर देगी तेरा वो, "सोफे पर बैठकर मैने अरुण से कहा"वैसे टाइम क्या हुआ है..."
"11 बज चुके है...."
"आज भी लेट "
"जल्दी से इनफॉर्म कर दे,वरना वो तुझे लात मार के निकाल देंगे...."
"एक काम करता हूँ...."वरुण की तरफ देखकर मैने कहा"जैसे वरुण ने छुट्टी ले रक्खी है,मैं भी कुछ दिनो के लिए छुट्टी ले लेता हूँ....क्या बोलता है..."
"सुपर्ब आइडिया....इसी खुशी मे पापा बोल..."
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लगातार दो दिन से दारू पी-पी कर हम तीनो बोर हो गये थे ,और आज दारू पीने का मन वैसे भी नही था....जहाँ एक तरफ निशा से झूठ बोलकर मैं यहाँ गप्पे लड़ा रहा था, वही वो शायद शाम होने का इंतेज़ार कर रही थी....
"तेरे फर्स्ट सेमेस्टर के एग्ज़ॅम तक का सारा कांड अरुण ने कल रात मे बता दिया..."सिगरेट जलाने के लिए उसने मुझसे माचिस माँगी , लेकिन जब माचिस नही मिली तो मैने उसके मूह से सिगरेट निकाल कर अपने मूह मे डाली और बोला "अब देख मैं सिगरेट जलाता हूँ...."
उसके बाद मैने गॅस का लाइटर उठाया और गॅस जलाकर सिगरेट सुलगाई......
"तू दीपिका को पेल पाया कि नही...और विभा का क्या हुआ था..."
"डाइरेक्ट रिज़ल्ट बताऊ या फिर क्लास चलकर लेक्चर सुनाऊ...."
"मज़ा तो डाइरेक्ट रिज़ल्ट मे है ,लेकिन फिर भी लेक्चर ही सुना...."
"अरुण, तू ब्रेक फास्ट तैयार कर...."
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एग्ज़ॅम बीसी इतने बुरे गये थे कि मैं किसी एक पेपर तक मे स्योर नही था की क्लियर हो जाएगा...कभी-कभी रात को सपने मे मैं देखता की मेरी 6 मे 6 बॅक लग चुकी है.... फाइनली एग्ज़ॅम ख़त्म हुआ और लास्ट पेपर जिस दिन था उस दिन मैं सुबह से ही खुश था...क्यूंकी आज के बाद मेरे गर्दन पर इतने दिनो से लटका हुआ एग्ज़ॅम का घंटा उतरने वाला था और मैं रिज़ल्ट आने तक तो ऐश कर ही सकता था.....आख़िरी पेपर देने के बाद मैं ऐसे खुश था जैसे कि मैं पूरा यूनिवर्स अपने कब्ज़े मे कर लिया हो...ना ही दोपहर मे नींद लगी और ना ही भूख...सोचा कि मूठ ही मार लिया जाए लेकिन वो करने का भी मन नही किया, बहुत देर तक पकड़ कर हिलाते रहने के बावज़ूद भी जब नही गिरा तो मेरा हाथ दर्द देने लगा और मैने मूठ मारना छोड़ दिया
उस दिन मुझे अहसास हुआ कि वाकाई मे मेरी एफीशियेन्सी सॉलिड है,...उस दिन की दोपहर बड़ी मुश्किल से गुज़री ,शाम होते तक हमने कही घूमने घामने का प्लान बनाया...और ये फिक्स हुआ कि शहर के सबसे बड़े माल मे जाएँगे...लेकिन तभी अरुण बोला...
"बार चलते है,..."
बार का नाम सुनकर मैं और भू एक दूसरे का मूह ताकने लगे, क्यूंकी हमने अभी तक सोचा भी नही था कि हमे बार भी जाना चाहिए,बार आज तक मैने सिर्फ़ फ़िल्मो मे ही देखे थे या फिर किसी दूसरे के मूह से सुना रख था और मुझे इतना मालूम चल चुका था कि अंदर दारू बहुत महँगी मिलती है....मैने पर्स मे नज़र डाली , पैसा भरपूर था ,और वैसे भी जब तक जेब मे दस हज़ार का मोबाइल हो तो घबराने की क्या ज़रूरत, मैने अपनी गर्दन हां मे हिलाई...फिर क्या था, कही से बाइक जुगाड़ की और रात को 9 बजते ही बार के लिए निकल गये......
"यार अरुण, ये बार वाले बीसी पैसा बहुत लेते है दारू-वारू के...."
"अब क्या करेगा देना तो पड़ेगा ही..."
"गाड़ी साइड मे रोक एक धाँसू आइडिया आएला है भेजे मे...."
मेरे कहने पर जब अरुण ने बाइक सड़क के किनारे रोक दी तब मैं बोला"अपन तीनो बाहर से ही दारू पीकर चलते है, मस्त नशे मे टन होकर जाएँगे...."
"सोच ले, कही वेलकम पार्टी की तरह कुछ उल्टा सीधा हुआ तो..."
"कुछ नही होगा,यदि कुछ हुआ तो मैं सब संभाल लूँगा..."भू बीच मे सीना चौड़ा करते हुए बोला और जोश जोश मे तुरंत अपने जेब से 200 निकाल कर मुझे पकड़ाया और एक बोतल एम.डी. लाने के लिए कहा.......
"अबे किसी ढाबे मे चलकर पीते है,उस दिन की तरह नही...साला हॅंगओवर मार देता है...शुक्र मनाओ कि वो नीम के पेड़ के नीचे वाली लड़की दिखी नही ,वरना पकड़ के भरती वो...."
"अब चले...."
"चलो, दौड़ो,भागो...."
फिर एक ढाबे पर रुक कर हमने खाना खाया और शराब की तीन बोतल खाली की और वहाँ पैसे देकर बाइक की तरफ बढ़े....
"अरुण...बाइक मैं चलाउन्गा..."मैं बोला. इस वक़्त मैं उन दोनो से थोड़ा पीछे था...
"बेटा आँख खुल नही रही, गाड़ी क्या चलाएगा..."
"तेरी तो..."मैने अरुण के हाथ से बाइक की चाभी ली और बाइक पर सामने बैठकर उन दोनो को पीछे बैठने के लिए कहा,
"यार अरमान, बाइक गर्ल्स हॉस्टिल की तरफ ले ,उस ताडकासुर की गान्ड मारनी है...उस दिन गर्ल्स हॉस्टिल मे उसी ने मुझे एक झापड़ मारा था...."
"अबे चुप भू, अभी बार जाना है..."अरुण भू के सर पर एक हाथ पेलते हुए बोला....और इस वक़्त मैं मस्त आराम से रात के 10 बजे बाइक चला रहा था, और जब सिटी से कट कर अपने कॉलेज वाले जुंगली रास्ते पर आए तो ,उधर सामने से जो भी आता ,या सामने जो भी दिखता उसे भरपूर गाली देते और बोलते कि"दम है तो उखाड़ के दिखा..."
एक ने पुछा भी क्या उखाडू तो मैने कहा"अपना लवडा उखाड़ के दिखा"
जैसे जैसे कॉलेज की तरफ मैं बाइक दौड़ा रहा था, स्पीड बढ़ती जा रही थी और मेरी आँख बंद हो रही थी...मुझे ऐसे लगने लगा जैसे कि मैं एक सूपर हीरो हूँ और दुनिया को बचाने के लिए जल्दी से जल्दी कॉलेज पहुचना है...मैने अपनी एक आँख बंद करके आक्सेलरेटर और पेल दिया...और बाइक सीधे गर्ल्स हॉस्टिल के बाहर रोकी.....
"अबे ताडकासुर ,निकल बाहर....."बोलकर मैं सिगरेट जलाने लगा...
लेकिन भू को कुछ ज़्यादा ही गुस्सा आ गया और उसने दो चार पत्थर उठाकर हॉस्टिल की तरफ फेंके...और हर बार काँच टूटने की आवाज़ हुई , और उसके तुरंत बाद कुत्तो के भोकने की आवाज़ आई और वहाँ का चौकीदार हमारी तरफ बढ़ा ,जिसे हमने दूर से देख लिया....
"भाग बीसी, वरना तुझे भी मारूँगा..."बोलते हुए भू ने चौकीदार पर भी पत्थर बरसाना शुरू कर दिया ,लेकिन जब वो अपने डंडे को बॅट बनाकर क्रिकेट खेलने लगा तो हमे वहाँ से भागना पड़ा...गाड़ी अब भी मैं ही चला रहा था...मैं वहाँ से भागने के पहले ज़ोर ज़ोर से चिल्लाया...
"ओये मोटी भैंस ,मेरा नाम गौतम है, मेकॅनिकल सेकेंड एअर...गान्ड मे दम हो तो उखाड़ लेना...."
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"अबे अब तो वो गौतम गया, बीसी..."
"चल बोल पापा.....और ये बीसी बाइक क्यूँ रो रही है...."
"पेट्रोल ख़त्म हो गया होगा..."
"क्या...ऐसे मे तो ठुकाई हो जाएगी..."मैं बाइक को हिलाते हुए पेट्रोल चेक करने लगा....लेकिन बाइक नही हिली, अरुण और भू जो सवार थे
"अबे उतर..."
जब वो दोनो बाइक से उतर गये तो मैने बाइक पूरी ताक़त से हिलाई ,इतनी ताक़त से हिलाई कि मैं खुद हिल गया और बाइक के साथ नीचे ज़मीन पर आ गिरा......
"ये बीसी, बाइक की माँ की...कौन लाया ये ख़तरी बाइक..."
"ज़्यादा लगी तो नही..."
"मर्द हूँ, ऐसी छोटे मोटे ज़ख़्मो का असर नही होता...."झूठ बोलते हुए मैने कहा,...इतनी देर मे एक शाकस गर्ल्स हॉस्टिल के तरफ वाली रोड से हमपर तौरछ मरने लगा...
"ये बीसी, तौरछ कौन मार रहा है, हम तीनो पर..."
हम तीनो उस टॉर्च दिखाने वाले को गालियाँ देने लगे और तभी भू ने अपने 1200 का टॉर्च चालू करके हम पर रोशनी मारने वाले के उपर फोकस किया.....
"अबे भाग ये तो चौकीदार है गर्ल्स हॉस्टिल का...."भू वहाँ से भागते हुए बोला....
"निकाल बंदूक और मार गोली इसकी गान्ड मे..."अरुण बोला....
"बंदूक नही मिज़ाइल छोड़ते है, साले के उपर...यही चिथड़े-चिथड़े हो जाएँगे इसके शरीर के...."मैने भी गर्रा कर कहा....
गर्ल्स हॉस्टिल का चौकीदार जो कुछ देर पहले हमारी तरफ आ रहा था,वो जहाँ था वही रुक गया ,और एक बार फिर हम पर लाइट मारी....
"गौतम...."मैने जानबूझकर अरुण को गौतम कहकर पुकारा"गौतम, बॉम्ब फोड़ दे साले के उपर...."
"अभी फोड़ता है..."
वो चौकीदार अब भी वहाँ खड़ा हमे देख रहा था, उसके आगे आने की हिम्मत नही हो रही थी, तभी मैने नीचे झुककर एक पत्थर उठाया और उसकी तरफ फेंका....
"आआआआ....."चिल्लाते हुआ चौकीदार वहाँ से भाग गया....
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"भू लंड....कहाँ घुसा है भू लंड..."
"स्शह...इधर हूँ "
"बीसी, अपने 1200 का लाइट जला...."
उसके बाद अब हम तीनो के सामने परेशानी ये थी कि पेट्रोल लेने कौन जाए....पेट्रोल पंप वहाँ से 2 से 3 कि.मी. दूर था और इस वक़्त हम तीनो एक सुनसान सड़क पर खड़े थे...जहा हमे किसी का डर नही था