hotaks444
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मेरा मोबाइल एक बार फिर बज उठा और मैने घड़ी मे टाइम देखा...घड़ी का सबसे छोटा काँटा अब भी सिर्फ़ 9 पर अटका हुआ था,लेकिन फिर भी मुझे ऐसा लगा कि शायद ये कॉल निशा ने की होगी....मैं तुरंत बिस्तर से उठा और कूदकर टेबल पर से अपना मोबाइल उठाकर स्क्रीन पर नज़र डाली...नंबर अननोन था लेकिन कुच्छ जाना-पहचाना सा लग रहा था....
"हेलो..."
"क्या यार बलराम भाई...माल अभी तक नही पहुचा, भाई मुर्गियो के अन्डो वाला एक ट्रक आख़िर है किधर....कब तक इंतज़ार करूँ..."
ये सुनते ही मैने नंबर पर नज़र डाली और समझ गया कि क्यूँ मुझे ये नंबर जाना-पहचाना सा लग रहा था...
"क्या बोला,माल अभी तक नही पहुचा..."
"अरे नही पहुचा...वरना क्या मैं झूठ बोलता ,तेरे चक्कर मे मैं एक से गाली भी खा चुका हूँ..."
"एक काम करो, अपने दोनो अंडे निकाल कर भिजवा दो..."
"ओये बलराम क्या बक रहा है..."
"बेटा अगर अगली बार से इस नंबर पर कॉल किया तो तेरे अंडे निकालकर तुझे ही खिला दूँगा...बक्चोद साले,अनपढ़...फोन रख लवडे"
.
"कौन था..."अरुण ने मेरा लाल होता हुआ चेहरा देखकर पुछा...
"पता नही साला कोई अंडे वाला है...ग़लती से बार-बार मुझे ही कॉल लगा देता है...चोदु साला"
"अरे हटा उस अंडे फंडे वाले को और तू आगे बता ,फिर क्या हुआ..."वरुण ने मुझे पकड़ा और पकड़ कर सीधे बेड पर खीच लिया...
"अरुण की संगत मे तू भी गे टाइप हरकत करने लगा है..."
"कोई बात नही...तू आगे बता.."
.
.
"तुम दोनो आज कॅंटीन मे जो हुआ,उसका ज़िकरा किसी से भी मत करना...अपने आप से भी नही..."जब कार कॉलेज के बाहर पहुचि तो मैने एश और दिव्या से कहा...
"ऐसा क्यूँ...हम तो इसकी शिकायत प्रिन्सिपल से करेंगे..."एश से तुरंत पीछे पलट कर जवाब दिया...
"और मैं इसकी शिकायत अपने डॅड से करूँगी..."दिव्या ने भी पीछे पलट कर जवाब दिया...
"पहली बात तो ये कि दिव्या तू आगे देख कर ड्राइव कर और दूसरी बात ये कि "एश की तरफ देखकर मैने कहा"सुन बिल्ली,यदि ऐसा हुआ तो उन दोनो का करियर खराब हो जाएगा लेकिन मुझे उनके करियर की बिल्कुल भी परवाह नही है दरअसल बात ये है कि यदि ये मामला कॉलेज मे उच्छला तो इसका रिज़ल्ट ये होगा कि नौशाद और उसके दोस्त कॉलेज से निकले जाने के साथ-साथ जैल भी जाएँगे..."
"तो इसमे प्राब्लम क्या है..."दिव्या एक बार फिर पीछे मुड़कर बोली...
"तू आगे देख के कार चला ना वरना किसी को ठोक-ठाक दिया तो सत्यानाश हो जाएगा..."
"दिव्या ने सही कहा,इसमे प्राब्लम क्या है...उनके साथ ऐसा ही होना चाहिए..."दिव्या का समर्थन करते हुए एश ने कहा"डॉन'ट वरी ,हम तुम दोनो को इन्वॉल्व नही करेंगे..."
"सुन रे फ़ेलीनो...इस केस मे हम दोनो कब्के इन्वॉल्व हो चुके है...और मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकी कॅंटीन मे हमारी ठुकाई करने के बाद उन्होने हमे जान से मारने की धमकी दी है..."
"आवववव...."मैं अपनी बात कंप्लीट नही कर पाया था उससे पहले ही दोनो ने आववव करके मुझे रोक दिया....
"क्या आववववव , "
"फिर तो तुम्हे भी पोलीस मे कंप्लेन करना चाहिए..."दिव्या तीसरी बार पीछे मुड़कर बोली...
"तू आगे देख के कार चला ना...मैं बहरा नही हूँ, बिना मेरी तरफ देखे तू कुच्छ बोलेगी तब भी मैं सुन लूँगा..."मैं एक बार फिर दिव्या पर चिल्लाया और जब दिव्या आगे मूड गयी तो बोला"देखो तुम दोनो समझ नही रहे हो...यदि उन दोनो पर केस हुआ तो हॉस्टिल वाले हमारे खिलाफ हो जाएँगे और फिर मेरे साथ-साथ अरुण भी शहीद हो जाएगा..."
"तो इससे हमे क्या लेना-देना..."
"वाह ! यदि यही बात हम दोनो ने उस वक़्त सोची होती,जब कॅंटीन मे तू नौशाद के शिकंजे मे थी...तो शायद ये सिचुयेशन आती ही नही...यदि दिमाग़ नही है तो मत चला ,जितना बोल रहा हूँ उतना कर...कम से कम मेरे भाई जैसे मेरे इस दोस्त की हालत पर तो रहम खाओ पापियो...देख नही रही इसकी हालत..."
"हाई दिव्या..."दिव्या ने जब कार के मिरर मे अरुण को देखा तो अरुण चहकता हुआ बोला..
"हाई अरुण..."मिरर मे देखकर दिव्या ने जवाब दिया...
"अबे तुम दोनो अपना ही,बाइ...बंद रखोगे..कुच्छ देर के लिए"
"ओके,हम तुम दोनो की बात मानने को तैयार है..."आगे मुड़ते हुए एश ने कहा...
"थॅंक्स माइ फ़ेलीनो..."
"पहले बिल्ली अब फ़ेलीनो..इसका मतलब क्या हुआ...लेकिन ये नाम अच्छा लगता है,फ़ेलीनो"
"ज़्यादा खुश मत हो बिल्ली,फ़ेलीनो को स्पॅनिश मे बिल्ली ही कहते है..."
.
उसके बाद हम दोनो कार से उतर गये और उन दोनो को जाने के लिए कहा....
"अबे तूने कहा था तेरे पास एक आइडिया है ,नौशाद के कहर से बचने का..."
"हां, है ना..."
"मुझे भी बता वो आइडिया क्या है.."
"सीडार..."मैने मुस्कुराते हुए कहा .
उसके बाद मैने सीडार को कॉल किया और उसे सारी घटना बताई...शुरू-शुरू मे एमटीएल भाई मुझ पर भड़क उठे और बोले कि दुनियाभर के सारे लफडे मे मैं ही क्यूँ फँसता हूँ...लेकिन बाद मे मेरी रिक्वेस्ट पर वो हॉस्टिल आने के लिए तैयार हो गये,उन्होने मुझसे ये भी कहा कि जब तक वो मुझे कॉल करके हॉस्टिल आने के लिए ना कहे मैं हॉस्टिल के आस-पास भी ना दिखू....एमटीएल भाई की कॉल के बाद मैं और अरुण लगभग चार घंटे तक बाहर ही रहे और फिर रात के 7 बजे सीडार का कॉल आया....
.
"चल,हॉस्टिल चलते है...सीडार पहुच गया है..."
"मुझे अब ऐसा क्यूँ लग रहा है कि हमने कॅंटीन मे जो किया,वो हमे नही करना चाहिए था..."
"तुझे ऐसा इसलिए लग रहा है,क्यूंकी तेरी पूरी तरह से फॅट चुकी है...अब चुप-चाप हॉस्टिल चल वरना मेरे हाथो शहीद हो जाएगा..."
.
जब हम दोनो हॉस्टिल के अंदर दाखिल हुए तो हॉस्टिल मे रहने वाला हर एक लड़का हमे घूर कर देख रहा था,उनके चेहरे से ऐसा लग रहा था कि जैसे वो मुझसे कहना चाहते हो कि उन्हे ,मुझसे ऐसी उम्मीद नही थी...
अरुण के साथ मैं सीधे अमर सर के रूम मे घुसा जहाँ सीडार,अमर ,नौशाद और उसके कॅंटीन वाले दोस्त बैठे हुए थे...
"आ गया साला, बीसी हरामी..."मुझे देखते ही नौशाद ने गालियाँ बाकी...
नौशाद का इस तरह से सबके सामने गाली बकना मुझे पसंद नही आया और मैने भी उस गान्डु को अपने तेवेर दिखाते हुए बोला"म्सी ,चुप रह...तू सीनियर है ,सोचकर मैं कॅंटीन मे मार खा गया...लेकिन यदि एक लफ्ज़ भी और बोला तो यही पटक-पटक कर चोदुन्गा और तू मेरे लंड का एक बाल भी नही उखाड़ पाएगा..."
"मार म्सी को, दाई छोड़ दे साले की.."अरुण भी गुस्से से भड़क उठा...
"बस बहुत हो गया..नौशाद तू चुप रह और तुम दोनो भी अपना मुँह सिल लो...वरना तीनो को मारूँगा..."सीडार ने तेज़ आवाज़ मे कहा,जिसके बाद हम सब शांत हो गये....
"अरमान पहले तू बोल कि,तू हॉस्टिल वालो के खिलाफ क्यूँ गया...ये जानते हुए भी कि नौशाद ने वरुण को मारने मे तेरा साथ दिया था..."
"एक मिनिट एमटीएल भाई...पहले मैं आपको एक एग्ज़ॅंपल देता हूँ..."सीडार के पास जाते हुए मैं बोला"यदि आज कॅंटीन मे उन्दोनो लड़कियो की जगह पर विभा और मेरी जगह पर आप होते....तो क्या आप क्या करते..."
"तू बात को घुमा रहा है अरमान...सच ये है कि ना तो मैं वहाँ था और ना ही विभा..."
"सवाल ये नही है कि मैं क्या कह रहा हूँ,सवाल ये है कि मैं कहना क्या चाहता हूँ...इन्स्ट्रुमेंट वही है,ऑब्स्टकल भी वही है...बस अब्ज़र्वर दूसरा है तो क्या हम उस इन्स्ट्रुमेंट की थियरी बदल देते है, नही ना...बस मैं यही समझाना चाहता हूँ,दट'स ऑल"
.
.
"एकतरफ़ा बीड़ू..."वरुण मुझे बीच मे ही रोक कर बोला"आज तूने साबित कर दिया कि तू मेरा दोस्त है..."
"थॅंक्स "बोलते हुए मैने घड़ी मे टाइम देखा...घड़ी का सबसे छोटा काँटा अब 10 मे आने को बेकरार था,..
"एक बात कहूँ ,तूने सीडार की सोर्स का बहुत सॉलिड तरीके से इस्तेमाल किया है..."
"दट'स ट्रू..जब तक वो हमारे साथ रहा , मैने उसका इस्तेमाल बहुत अच्छे से किया था..."बोलते हुए मैं बिस्तर से सिगरेट का पॅकेट लेने के लिए उठ खड़ा हुआ...
"तूने ये क्यूँ कहा कि तूने उसका इस्तेमाल तब तक किया,जब तक वो तेरे साथ रहा..."
वरुण के इस सवाल का जवाब देना मेरे मुश्किल कामो मे से एक था,लेकिन उसे सच तो मालूम ही पड़ता,आज नही तो कल मैं खुद उसे ये सच बताने ही वाला था...मैने एक सिगरेट सुलगाई और लंबा कश लेने के बाद बोला..
"मैने ऐसा इसलिए कहा क्यूंकी सीडार अब ज़िंदा नही है..."
.
अरुण ये सच पहले से जानता था लेकिन वरुण को ये सच एक झटके मे मालूम चला था ,इसलिए वरुण इस वक़्त झटका खाकर शांत बैठा था,सीडार अब ज़िंदा नही है...ये सुनकर वरुण की आँखे बड़ी हो गयी,मुँह खुला का खुला रह गया और दिमाग़ शुन्य हो गया था....वो काफ़ी देर तक मुझे सिगरेट के कश लेते हुए चुप-चाप देखता रहा, वो शायद इस वक़्त सोच रहा था कि मैं सीडार के डेत पर इतना नॉर्मल बिहेवियर कैसे कर सकता हूँ....पर सच ये नही था, सच ये था कि मैं खुद भी बहुत बेचैन हुआ था,जब मुझे सीडार की मौत की खबर मिली थी...उस पल,उस समय,उस वक़्त जब मुझे ये बद्जात और मनहूस खबर मिली तो मुझे यकीन ही नही हो रहा था कि सीडार अब नही रहा ,जब तक कि मैने अपनी आँखो से खुद सीडार की बॉडी को नही देखा था....मैं ये सोच कर चल रहा था कि ये सब झूठ है,सीडार ऐसे ,कैसे मर सकता है...लेकिन मेरे यकीन करने या ना करने से सच नही बदल जाता और ना ही मुझमे और किसी और मे इतनी काबिलियत और ताक़त है कि वो सच को बदल कर रख दे.....
वरुण अब भी एक दम खामोश था और मैं सिगरेट के कश पर कश लिए जा रहा था...जब सिगरेट ख़त्म हुई तो मैने सिगरेट को अपनी उंगलियो के नाख़ून मे फसाया और दूर रखे डस्टबिन पर निशाना लगाकर उछाल दिया....
"गोल..."
"यार,मैं कभी सीडार से नही मिला लेकिन फिर भी उसके बारे मे सुनकर सदमा सा लगा है...कुच्छ करने की इच्छा जैसे ख़त्म सी हो गयी है..."बड़ी मुश्किल से वरुण सिर्फ़ इतना ही बोल पाया...
"किसी से जुड़ने के लिए उससे जान-पहचान ज़रूरी नही...जुड़ाव दिल से होता है,सूरत से नही..."
"ये सब एक दम अचानक से कैसे हुआ...सीडार की मौत कैसे हुई ?"
"मेरे ख़याल से मुझे धीरे-धीरे करके सब बताना चाहिए...लेकिन यदि तू चाहता है कि मैं डाइरेक्ट सीडार के डेत पॉइंट पर आउ,तो मुझे कोई प्राब्लम नही..."
"नही...धीरे-धीरे करके बता.."
मैने घड़ी मे टाइम देखा ,इस वक़्त 10:30 बज रहे थे,लेकिन निशा की कॉल का अभी तक कोई अता-पता नही था,इसलिए मैने कहानी आगे बढ़ाई.....
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"सीडार भाई,ये आपको बातो मे फसा रहा है....यहाँ क्वेस्चन ये है कि अरमान और अरुण हमारे खिलाफ क्यूँ गये...जबकि मैने इन दोनो को प्यार से समझाया भी था कि वहाँ से चले जाए..."नौशाद ने अपना जाल फेका...
अब तक अमर सर के रूम के बाहर हॉस्टिल के लगभग सभी लड़के मौज़ूद हो चुके थे, जो दीवारो,दरवाजो और खिड़कियो पर अपने कान लगाकर बंद दरवाजे के पीछे क्या हो रहा है...ये सुन रहे थे...नौशाद के इस सवाल से मैं एक बार फिर शिकंजे मे फँसने लगा था और मुझे जल्द से जल्द कुच्छ ना कुच्छ करना था...इस वक़्त अमर सर का ये रूम किसी अदालत की तरह था,जहाँ जड्ज के तौर पर एमटीएल भाई थे, नौशाद यहाँ किसी पीड़ित के तौर पर था,जिसने मुझ पर केस ठोका था....यहाँ और असलियत की अदालत मे फरक सिर्फ़ इतना था कि दोनो पार्टी अपनी वकालत खुद कर रही थी...मतलब की नौशाद मुझ पर आरोप पर आरोप देकर मुझे मुजरिम साबित करने पर तुला हुआ था और मैं उन आरोप से बचने की कोशिश मे खुद की पैरवी कर रहा था.....
.
नौशाद और उसके दोस्तो का कहना था कि मैने हॉस्टिल की बरसो से चले आ रहे नियम को तोड़ा है,जिसकी सज़ा मुझे मिलनी चाहिए और मेरा कहना था कि मैने नियम इसलिए तोड़ा क्यूंकी ये उस वक़्त ज़रूरी था..क्यूंकी कोई भी नियम ,क़ानून किसी की ज़िंदगी से बड़े नही होते....
"सीडार भाई,मैं तो बोलता हूँ कि ,आप यहाँ से जाओ और इन दोनो को हमारे हवाले कर दो...सालो को सब सिखा देंगे..."नौशाद ने कहा ,जिसके बाद उसके दोस्तो और रूम के बाहर खड़े हॉस्टिल के लड़को ने उसका समर्थन किया....
"एक मिनिट ,एमटीएल भाई...मैने आज कॅंटीन मे जो किया वो सब नौशाद और उसके दोस्तो की भलाई के लिए किया....अब आप सोचो कि ये दोनो जो करने जा रहे थे,उसके बाद इनका क्या हाल होता...."
"क्या होता,कोई कुच्छ नही उखाड़ पाता मेरा "नौशाद बीच मे बोला..
"सुन बे नौशाद...जितनी देर तक इज़्ज़त दे रहा हूँ...ले ले वरना अभी एनएसयूआइ के लौन्डो को बुलवाकर मरवा दूँगा..."उसके बाद मैने सीडार की तरफ देखकर कहा"एमटीएल भाई, यदि आज कॅंटीन मे ये सब अपना काम कर दिए होते तो बहुत लंबा केस बनता, कॉलेज से निकाले जाते...सात साल जैल मे सड़ते और तो और ये भी हो सकता था कि ये चारो कल का सूरज नही देख पाते क्यूंकी एश और दिव्या ,हमारे कॉलेज की कोई मामूली लड़की नही है...जिनके माँ-बाप अपनी दुहाई लेकर पोलीस स्टेशन मे भागते फिरेंगे...एक का बाप इस शहर का बहुत बड़ा बिज़्नेसमॅन है तो दूसरे का बाप इस शहर का डॉन...वो दोनो मिलकर नौशाद और इसके चूतिए दोस्तो को कुत्ते की मौत मारते, इनका लंड काट देते और जब कल सुबह होता तो इनकी लाश किसी अनाथ की तरह सड़को पर पड़ी रहती....और फिर नतीजा ये होता कि इनके घरवालो को पोलीस के चक्कर काटने पड़ते..."मैने अमर सर के रूम का दरवाजा खोला और जो-जो लोग दरवाजे पर कान लगाए हुए थे,मेरी इस हरकत के कारण वही गिर गये और उन सबको देखकर मैने कहा"अब तुम सब ही बताओ कि सही क्या है और ग़लत...और रही हॉस्टिल के सीनियर्स की रेस्पेक्ट की बात तो इन चारो से पुछो की कॅंटीन मे मैने क्या इनपर एक भी बार हाथ उठाया ? ये मुझे और अरुण पर अपनी फ्रस्टेशन निकालते रहे,हमे मारते रहे...लेकिन हमने कुच्छ नही कहा,यहाँ तक कि इनसे मार खाने के बाद मैने और अरुण ने उन दोनो लड़कियो के पैर पकड़ कर इन चारो महापुरषो की हरकत पर माफी भी माँगी और उनसे रिक्वेस्ट भी की..कि वो ये बात किसी को ना बताए और उन्होने हमारी बात मान भी ली है...दट'स ऑल और मेरे ख़याल से अब कहने और सुनने को कुच्छ नही बचा है...आम आइ राइट एमटीएल भाई..."
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फिर क्या था...जहाँ कुच्छ देर पहले हॉस्टिल के लड़के मुझ पर नाराज़ थे वो अब मुझसे खुश थे,हॉस्टिल के सभी लड़के..इंक्लूडेड माइ कमीने फ्रेंड्स अरुण और सौरभ(जो मेरी तारीफ कभी नही करते ) भी मेरी तारीफ कर रहे थे...हॉस्टिल के सभी लफंगो ने नौशाद और उसके दोस्तो को चोदु,गान्डु कहा...कुच्छ ने उनके पिछवाड़े पर एक दो लात भी मारी....
अदालत का फ़ैसला मेरे पक्ष मे हुआ और जब एमटीएल भाई ,रात को अपने घर जा रहे थे तो उन्होने मुझे बुलाया...
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"काफ़ी अच्छा प्लान बनाया तूने..."
"कोई प्लान नही बनाया सीडार भाई...जो सच था ,वही बोला..."
"अरमान ,अपने शब्दो के जाल मे किसी और को फसाना...मुझे पूरा यकीन है कि तूने ये सारे ईक्वेशन सिर्फ़ इसलिए जोड़े,ताकि तू उन दोनो लड़कियो को बचा सके और फिर बाद मे खुद को...सबसे पहले तू कॅंटीन से बाहर आया और मेरे ख़याल से तू कन्फ्यूषन मे था कि हॉस्टिल वाले का साथ दूं या फिर उन दोनो लड़कियो का,..उसके बाद तूने एश का साथ देने का सोचा और उन्दोनो को कॅंटीन से बाहर भगा दिया...तूने नौशाद और उसके दोस्तो पर हाथ भी नही उठाया ताकि तू मेरे और सारे हॉस्टिल वालो के सामने अपना पक्ष मज़बूत कर सके...तूने मुझे अपने प्लान मे तभी शामिल कर लिया था,जब तू एश और दिव्या को बचाने के लिए कॅंटीन मे घुसा और मेरे ख़याल से तूने उन दोनो को ये भी कहा कि वो दोनो कॅंटीन वाली बात किसी को ना बताए,जिससे ये मामला रफ़ा-दफ़ा हो जाए...और फिर तूने मुझे कॉल किया क्यूंकी तू जानता था कि हॉस्टिल वाले मेरी बात मानेंगे और तू ये भी जानता था कि मैं तेरी ही साइड लूँगा...आम आइ राइट ,अरमान सर"
"सच तो यही है लेकिन मुझे लगा नही था कि आप सच जान जाओगे..."
"एक बात याद रखना अरमान कि इस हॉस्टिल मे तेरे अब चार दुश्मन हो गये है...ये चार ,चालीस मे तब्दील ना हो जाए...इसका ख़याल रखना..गुड नाइट, अब मैं चलता हूँ..."
"मैं कभी ये नही सोचता कि मेरे दुश्मन कितने है...मैं हमेशा ये सोचता हूँ कि मेरे दोस्त कितने है....यदि ये चार,चालीस मे बदल जाए...तो मैं कोशिश करूँगा कि मेरे दो दोस्त, 200 मे बदल जाए...वो क्या है ना एमटीएल भाई की ज़िंदगी मे जब तक मार-धाड जैसा एक्शन,अड्वेंचर ना हो तो ज़िंदगी जीने मे मज़ा नही आता... गुड नाइट आंड टेक केर..."
मेरी नज़र अब भी टिक-टिक करती दीवार पर लगी घड़ी पर अटकी हुई थी...घड़ी का सबसे छोटा काँटा बस 1 पर पहुचने ही वाला था,लेकिन निशा की कॉल का अब तक कोई नाम-ओ-निशान नही था...पहले मुझसे बात करने की बेचैनी निशा को थी लेकिन अब मैं बेचैन हुआ जा रहा था....मैं इस उम्मीद मे अभी तक जाग रहा था कि शायद वो मुझे अब कॉल करे, क्यूंकी हो सकता है कि उसे 12 बजे तक टाइम ना मिला हो...या फिर उसके मोम-डॅड उसके आस-पास हो....जब मेरी ये हालत है तो ना जाने उस दायां का क्या हाल हो रहा होगा...मुझे तो ऐसा लगता है कि यदि इस वक़्त मैं उसके सामने आ जाउ तो खुशी के मारे वो किसी दायां की तरह मुझे नोच डाले....
"अब तो हद हो गयी,2 बजने वाला है और मैं उल्लू की तरह उसके कॉल का इंतज़ार कर रहा हूँ...कुच्छ देर मे तो सुर्य भगवान भी अपने दर्शन दे देंगे...."मैने एक सिगरेट जलाई और बाल्कनी पर आ गया....
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ना जाने मैं किस उम्मीद मे निशा के घर की तरफ देख रहा था,मैं इस वक़्त पागलो की तरह सोचने भी लगा था...मैं इस समय ये सोच रहा था कि शायद निशा रात को मेरे फ्लॅट की तरफ आए....मेरा दिल और दिमाग़ इस वक़्त अपनी जगह से थोड़ा खिसक गया था जो मैं ऐसी बेबुनियाद ख़यालात अपने जहाँ मे ला रहा था...मैने बहुत देर तक निशा के घर की तरफ अपनी नज़ारे गढ़ाए रखी इस सोच के साथ कि वो कही यहाँ आकर लौट ना जाए.....
मेरा दिल अब मेरे दिमाग़ पर हावी होते जा रहा था...निशा के उस एक कॉल की इंतज़ार ने मेरे सारी क्षमताओ पर क्वेस्चन मार्क लगा दिया था...मुझे इस समय ना तो रात के तीसरा पहर दिख रहा था और ना ही उल्लू की तरह जाग रहा मैं...मुझे तो दिख रही थी तो सिर्फ़ निशा...कभी-कभी मुझे निशा के घर की तरफ जाने वाली गली मे कुच्छ आहट सुनाई देती ,मुझे ऐसा लगता जैसे कि निशा अभी चारो तरफ फैले इस अंधेरे से बाहर निकल कर प्रकट हो जाएगी....
मेरे 1400 ग्राम वेट वाले ब्रेन का एक नुकसान यही था कि मेरा दिमाग़ हद से ज़्यादा क्रियेटिव था...वो अक्सर छोटी से छोटी आहट को किसी का आकार देने पर जुट जाता है...हर कहानी की एक दूसरी कहानी ही बनाने लग जाता है....जैसे कि इस वक़्त हो रहा था और यदि शॉर्ट मे कहे तो मेरा दिमाग़ फॉर्वर्ड की जगह बॅक्वर्ड डाइरेक्षन मे काम कर रहा था....
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"एक बार निशा के घर का राउंड मार कर आता हूँ,क्या पता वो अपने घर की छत मे खड़े होकर मेरा इंतज़ार कर रही हो..."इसी के साथ एक और बेवकूफी भरी सोच मेरे अंदर आई...
"अबे पागल है क्या, इतनी रात को निशा अपने घर की छत पर क्या दे & नाइट मॅच खेल रही होगी...तू शांति से सो जा..."मैने खुद का विरोध किया....
"अरमान...एक बार देख कर आने मे क्या जाता है...वैसे भी तो तू बाल्कनी मे खड़ा होकर सिगरेट ही जला रहा है...ज़्यादा सोच मत और चल निशा के घर के पास चलते है..."
"हेलो..."
"क्या यार बलराम भाई...माल अभी तक नही पहुचा, भाई मुर्गियो के अन्डो वाला एक ट्रक आख़िर है किधर....कब तक इंतज़ार करूँ..."
ये सुनते ही मैने नंबर पर नज़र डाली और समझ गया कि क्यूँ मुझे ये नंबर जाना-पहचाना सा लग रहा था...
"क्या बोला,माल अभी तक नही पहुचा..."
"अरे नही पहुचा...वरना क्या मैं झूठ बोलता ,तेरे चक्कर मे मैं एक से गाली भी खा चुका हूँ..."
"एक काम करो, अपने दोनो अंडे निकाल कर भिजवा दो..."
"ओये बलराम क्या बक रहा है..."
"बेटा अगर अगली बार से इस नंबर पर कॉल किया तो तेरे अंडे निकालकर तुझे ही खिला दूँगा...बक्चोद साले,अनपढ़...फोन रख लवडे"
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"कौन था..."अरुण ने मेरा लाल होता हुआ चेहरा देखकर पुछा...
"पता नही साला कोई अंडे वाला है...ग़लती से बार-बार मुझे ही कॉल लगा देता है...चोदु साला"
"अरे हटा उस अंडे फंडे वाले को और तू आगे बता ,फिर क्या हुआ..."वरुण ने मुझे पकड़ा और पकड़ कर सीधे बेड पर खीच लिया...
"अरुण की संगत मे तू भी गे टाइप हरकत करने लगा है..."
"कोई बात नही...तू आगे बता.."
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"तुम दोनो आज कॅंटीन मे जो हुआ,उसका ज़िकरा किसी से भी मत करना...अपने आप से भी नही..."जब कार कॉलेज के बाहर पहुचि तो मैने एश और दिव्या से कहा...
"ऐसा क्यूँ...हम तो इसकी शिकायत प्रिन्सिपल से करेंगे..."एश से तुरंत पीछे पलट कर जवाब दिया...
"और मैं इसकी शिकायत अपने डॅड से करूँगी..."दिव्या ने भी पीछे पलट कर जवाब दिया...
"पहली बात तो ये कि दिव्या तू आगे देख कर ड्राइव कर और दूसरी बात ये कि "एश की तरफ देखकर मैने कहा"सुन बिल्ली,यदि ऐसा हुआ तो उन दोनो का करियर खराब हो जाएगा लेकिन मुझे उनके करियर की बिल्कुल भी परवाह नही है दरअसल बात ये है कि यदि ये मामला कॉलेज मे उच्छला तो इसका रिज़ल्ट ये होगा कि नौशाद और उसके दोस्त कॉलेज से निकले जाने के साथ-साथ जैल भी जाएँगे..."
"तो इसमे प्राब्लम क्या है..."दिव्या एक बार फिर पीछे मुड़कर बोली...
"तू आगे देख के कार चला ना वरना किसी को ठोक-ठाक दिया तो सत्यानाश हो जाएगा..."
"दिव्या ने सही कहा,इसमे प्राब्लम क्या है...उनके साथ ऐसा ही होना चाहिए..."दिव्या का समर्थन करते हुए एश ने कहा"डॉन'ट वरी ,हम तुम दोनो को इन्वॉल्व नही करेंगे..."
"सुन रे फ़ेलीनो...इस केस मे हम दोनो कब्के इन्वॉल्व हो चुके है...और मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकी कॅंटीन मे हमारी ठुकाई करने के बाद उन्होने हमे जान से मारने की धमकी दी है..."
"आवववव...."मैं अपनी बात कंप्लीट नही कर पाया था उससे पहले ही दोनो ने आववव करके मुझे रोक दिया....
"क्या आववववव , "
"फिर तो तुम्हे भी पोलीस मे कंप्लेन करना चाहिए..."दिव्या तीसरी बार पीछे मुड़कर बोली...
"तू आगे देख के कार चला ना...मैं बहरा नही हूँ, बिना मेरी तरफ देखे तू कुच्छ बोलेगी तब भी मैं सुन लूँगा..."मैं एक बार फिर दिव्या पर चिल्लाया और जब दिव्या आगे मूड गयी तो बोला"देखो तुम दोनो समझ नही रहे हो...यदि उन दोनो पर केस हुआ तो हॉस्टिल वाले हमारे खिलाफ हो जाएँगे और फिर मेरे साथ-साथ अरुण भी शहीद हो जाएगा..."
"तो इससे हमे क्या लेना-देना..."
"वाह ! यदि यही बात हम दोनो ने उस वक़्त सोची होती,जब कॅंटीन मे तू नौशाद के शिकंजे मे थी...तो शायद ये सिचुयेशन आती ही नही...यदि दिमाग़ नही है तो मत चला ,जितना बोल रहा हूँ उतना कर...कम से कम मेरे भाई जैसे मेरे इस दोस्त की हालत पर तो रहम खाओ पापियो...देख नही रही इसकी हालत..."
"हाई दिव्या..."दिव्या ने जब कार के मिरर मे अरुण को देखा तो अरुण चहकता हुआ बोला..
"हाई अरुण..."मिरर मे देखकर दिव्या ने जवाब दिया...
"अबे तुम दोनो अपना ही,बाइ...बंद रखोगे..कुच्छ देर के लिए"
"ओके,हम तुम दोनो की बात मानने को तैयार है..."आगे मुड़ते हुए एश ने कहा...
"थॅंक्स माइ फ़ेलीनो..."
"पहले बिल्ली अब फ़ेलीनो..इसका मतलब क्या हुआ...लेकिन ये नाम अच्छा लगता है,फ़ेलीनो"
"ज़्यादा खुश मत हो बिल्ली,फ़ेलीनो को स्पॅनिश मे बिल्ली ही कहते है..."
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उसके बाद हम दोनो कार से उतर गये और उन दोनो को जाने के लिए कहा....
"अबे तूने कहा था तेरे पास एक आइडिया है ,नौशाद के कहर से बचने का..."
"हां, है ना..."
"मुझे भी बता वो आइडिया क्या है.."
"सीडार..."मैने मुस्कुराते हुए कहा .
उसके बाद मैने सीडार को कॉल किया और उसे सारी घटना बताई...शुरू-शुरू मे एमटीएल भाई मुझ पर भड़क उठे और बोले कि दुनियाभर के सारे लफडे मे मैं ही क्यूँ फँसता हूँ...लेकिन बाद मे मेरी रिक्वेस्ट पर वो हॉस्टिल आने के लिए तैयार हो गये,उन्होने मुझसे ये भी कहा कि जब तक वो मुझे कॉल करके हॉस्टिल आने के लिए ना कहे मैं हॉस्टिल के आस-पास भी ना दिखू....एमटीएल भाई की कॉल के बाद मैं और अरुण लगभग चार घंटे तक बाहर ही रहे और फिर रात के 7 बजे सीडार का कॉल आया....
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"चल,हॉस्टिल चलते है...सीडार पहुच गया है..."
"मुझे अब ऐसा क्यूँ लग रहा है कि हमने कॅंटीन मे जो किया,वो हमे नही करना चाहिए था..."
"तुझे ऐसा इसलिए लग रहा है,क्यूंकी तेरी पूरी तरह से फॅट चुकी है...अब चुप-चाप हॉस्टिल चल वरना मेरे हाथो शहीद हो जाएगा..."
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जब हम दोनो हॉस्टिल के अंदर दाखिल हुए तो हॉस्टिल मे रहने वाला हर एक लड़का हमे घूर कर देख रहा था,उनके चेहरे से ऐसा लग रहा था कि जैसे वो मुझसे कहना चाहते हो कि उन्हे ,मुझसे ऐसी उम्मीद नही थी...
अरुण के साथ मैं सीधे अमर सर के रूम मे घुसा जहाँ सीडार,अमर ,नौशाद और उसके कॅंटीन वाले दोस्त बैठे हुए थे...
"आ गया साला, बीसी हरामी..."मुझे देखते ही नौशाद ने गालियाँ बाकी...
नौशाद का इस तरह से सबके सामने गाली बकना मुझे पसंद नही आया और मैने भी उस गान्डु को अपने तेवेर दिखाते हुए बोला"म्सी ,चुप रह...तू सीनियर है ,सोचकर मैं कॅंटीन मे मार खा गया...लेकिन यदि एक लफ्ज़ भी और बोला तो यही पटक-पटक कर चोदुन्गा और तू मेरे लंड का एक बाल भी नही उखाड़ पाएगा..."
"मार म्सी को, दाई छोड़ दे साले की.."अरुण भी गुस्से से भड़क उठा...
"बस बहुत हो गया..नौशाद तू चुप रह और तुम दोनो भी अपना मुँह सिल लो...वरना तीनो को मारूँगा..."सीडार ने तेज़ आवाज़ मे कहा,जिसके बाद हम सब शांत हो गये....
"अरमान पहले तू बोल कि,तू हॉस्टिल वालो के खिलाफ क्यूँ गया...ये जानते हुए भी कि नौशाद ने वरुण को मारने मे तेरा साथ दिया था..."
"एक मिनिट एमटीएल भाई...पहले मैं आपको एक एग्ज़ॅंपल देता हूँ..."सीडार के पास जाते हुए मैं बोला"यदि आज कॅंटीन मे उन्दोनो लड़कियो की जगह पर विभा और मेरी जगह पर आप होते....तो क्या आप क्या करते..."
"तू बात को घुमा रहा है अरमान...सच ये है कि ना तो मैं वहाँ था और ना ही विभा..."
"सवाल ये नही है कि मैं क्या कह रहा हूँ,सवाल ये है कि मैं कहना क्या चाहता हूँ...इन्स्ट्रुमेंट वही है,ऑब्स्टकल भी वही है...बस अब्ज़र्वर दूसरा है तो क्या हम उस इन्स्ट्रुमेंट की थियरी बदल देते है, नही ना...बस मैं यही समझाना चाहता हूँ,दट'स ऑल"
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"एकतरफ़ा बीड़ू..."वरुण मुझे बीच मे ही रोक कर बोला"आज तूने साबित कर दिया कि तू मेरा दोस्त है..."
"थॅंक्स "बोलते हुए मैने घड़ी मे टाइम देखा...घड़ी का सबसे छोटा काँटा अब 10 मे आने को बेकरार था,..
"एक बात कहूँ ,तूने सीडार की सोर्स का बहुत सॉलिड तरीके से इस्तेमाल किया है..."
"दट'स ट्रू..जब तक वो हमारे साथ रहा , मैने उसका इस्तेमाल बहुत अच्छे से किया था..."बोलते हुए मैं बिस्तर से सिगरेट का पॅकेट लेने के लिए उठ खड़ा हुआ...
"तूने ये क्यूँ कहा कि तूने उसका इस्तेमाल तब तक किया,जब तक वो तेरे साथ रहा..."
वरुण के इस सवाल का जवाब देना मेरे मुश्किल कामो मे से एक था,लेकिन उसे सच तो मालूम ही पड़ता,आज नही तो कल मैं खुद उसे ये सच बताने ही वाला था...मैने एक सिगरेट सुलगाई और लंबा कश लेने के बाद बोला..
"मैने ऐसा इसलिए कहा क्यूंकी सीडार अब ज़िंदा नही है..."
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अरुण ये सच पहले से जानता था लेकिन वरुण को ये सच एक झटके मे मालूम चला था ,इसलिए वरुण इस वक़्त झटका खाकर शांत बैठा था,सीडार अब ज़िंदा नही है...ये सुनकर वरुण की आँखे बड़ी हो गयी,मुँह खुला का खुला रह गया और दिमाग़ शुन्य हो गया था....वो काफ़ी देर तक मुझे सिगरेट के कश लेते हुए चुप-चाप देखता रहा, वो शायद इस वक़्त सोच रहा था कि मैं सीडार के डेत पर इतना नॉर्मल बिहेवियर कैसे कर सकता हूँ....पर सच ये नही था, सच ये था कि मैं खुद भी बहुत बेचैन हुआ था,जब मुझे सीडार की मौत की खबर मिली थी...उस पल,उस समय,उस वक़्त जब मुझे ये बद्जात और मनहूस खबर मिली तो मुझे यकीन ही नही हो रहा था कि सीडार अब नही रहा ,जब तक कि मैने अपनी आँखो से खुद सीडार की बॉडी को नही देखा था....मैं ये सोच कर चल रहा था कि ये सब झूठ है,सीडार ऐसे ,कैसे मर सकता है...लेकिन मेरे यकीन करने या ना करने से सच नही बदल जाता और ना ही मुझमे और किसी और मे इतनी काबिलियत और ताक़त है कि वो सच को बदल कर रख दे.....
वरुण अब भी एक दम खामोश था और मैं सिगरेट के कश पर कश लिए जा रहा था...जब सिगरेट ख़त्म हुई तो मैने सिगरेट को अपनी उंगलियो के नाख़ून मे फसाया और दूर रखे डस्टबिन पर निशाना लगाकर उछाल दिया....
"गोल..."
"यार,मैं कभी सीडार से नही मिला लेकिन फिर भी उसके बारे मे सुनकर सदमा सा लगा है...कुच्छ करने की इच्छा जैसे ख़त्म सी हो गयी है..."बड़ी मुश्किल से वरुण सिर्फ़ इतना ही बोल पाया...
"किसी से जुड़ने के लिए उससे जान-पहचान ज़रूरी नही...जुड़ाव दिल से होता है,सूरत से नही..."
"ये सब एक दम अचानक से कैसे हुआ...सीडार की मौत कैसे हुई ?"
"मेरे ख़याल से मुझे धीरे-धीरे करके सब बताना चाहिए...लेकिन यदि तू चाहता है कि मैं डाइरेक्ट सीडार के डेत पॉइंट पर आउ,तो मुझे कोई प्राब्लम नही..."
"नही...धीरे-धीरे करके बता.."
मैने घड़ी मे टाइम देखा ,इस वक़्त 10:30 बज रहे थे,लेकिन निशा की कॉल का अभी तक कोई अता-पता नही था,इसलिए मैने कहानी आगे बढ़ाई.....
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"सीडार भाई,ये आपको बातो मे फसा रहा है....यहाँ क्वेस्चन ये है कि अरमान और अरुण हमारे खिलाफ क्यूँ गये...जबकि मैने इन दोनो को प्यार से समझाया भी था कि वहाँ से चले जाए..."नौशाद ने अपना जाल फेका...
अब तक अमर सर के रूम के बाहर हॉस्टिल के लगभग सभी लड़के मौज़ूद हो चुके थे, जो दीवारो,दरवाजो और खिड़कियो पर अपने कान लगाकर बंद दरवाजे के पीछे क्या हो रहा है...ये सुन रहे थे...नौशाद के इस सवाल से मैं एक बार फिर शिकंजे मे फँसने लगा था और मुझे जल्द से जल्द कुच्छ ना कुच्छ करना था...इस वक़्त अमर सर का ये रूम किसी अदालत की तरह था,जहाँ जड्ज के तौर पर एमटीएल भाई थे, नौशाद यहाँ किसी पीड़ित के तौर पर था,जिसने मुझ पर केस ठोका था....यहाँ और असलियत की अदालत मे फरक सिर्फ़ इतना था कि दोनो पार्टी अपनी वकालत खुद कर रही थी...मतलब की नौशाद मुझ पर आरोप पर आरोप देकर मुझे मुजरिम साबित करने पर तुला हुआ था और मैं उन आरोप से बचने की कोशिश मे खुद की पैरवी कर रहा था.....
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नौशाद और उसके दोस्तो का कहना था कि मैने हॉस्टिल की बरसो से चले आ रहे नियम को तोड़ा है,जिसकी सज़ा मुझे मिलनी चाहिए और मेरा कहना था कि मैने नियम इसलिए तोड़ा क्यूंकी ये उस वक़्त ज़रूरी था..क्यूंकी कोई भी नियम ,क़ानून किसी की ज़िंदगी से बड़े नही होते....
"सीडार भाई,मैं तो बोलता हूँ कि ,आप यहाँ से जाओ और इन दोनो को हमारे हवाले कर दो...सालो को सब सिखा देंगे..."नौशाद ने कहा ,जिसके बाद उसके दोस्तो और रूम के बाहर खड़े हॉस्टिल के लड़को ने उसका समर्थन किया....
"एक मिनिट ,एमटीएल भाई...मैने आज कॅंटीन मे जो किया वो सब नौशाद और उसके दोस्तो की भलाई के लिए किया....अब आप सोचो कि ये दोनो जो करने जा रहे थे,उसके बाद इनका क्या हाल होता...."
"क्या होता,कोई कुच्छ नही उखाड़ पाता मेरा "नौशाद बीच मे बोला..
"सुन बे नौशाद...जितनी देर तक इज़्ज़त दे रहा हूँ...ले ले वरना अभी एनएसयूआइ के लौन्डो को बुलवाकर मरवा दूँगा..."उसके बाद मैने सीडार की तरफ देखकर कहा"एमटीएल भाई, यदि आज कॅंटीन मे ये सब अपना काम कर दिए होते तो बहुत लंबा केस बनता, कॉलेज से निकाले जाते...सात साल जैल मे सड़ते और तो और ये भी हो सकता था कि ये चारो कल का सूरज नही देख पाते क्यूंकी एश और दिव्या ,हमारे कॉलेज की कोई मामूली लड़की नही है...जिनके माँ-बाप अपनी दुहाई लेकर पोलीस स्टेशन मे भागते फिरेंगे...एक का बाप इस शहर का बहुत बड़ा बिज़्नेसमॅन है तो दूसरे का बाप इस शहर का डॉन...वो दोनो मिलकर नौशाद और इसके चूतिए दोस्तो को कुत्ते की मौत मारते, इनका लंड काट देते और जब कल सुबह होता तो इनकी लाश किसी अनाथ की तरह सड़को पर पड़ी रहती....और फिर नतीजा ये होता कि इनके घरवालो को पोलीस के चक्कर काटने पड़ते..."मैने अमर सर के रूम का दरवाजा खोला और जो-जो लोग दरवाजे पर कान लगाए हुए थे,मेरी इस हरकत के कारण वही गिर गये और उन सबको देखकर मैने कहा"अब तुम सब ही बताओ कि सही क्या है और ग़लत...और रही हॉस्टिल के सीनियर्स की रेस्पेक्ट की बात तो इन चारो से पुछो की कॅंटीन मे मैने क्या इनपर एक भी बार हाथ उठाया ? ये मुझे और अरुण पर अपनी फ्रस्टेशन निकालते रहे,हमे मारते रहे...लेकिन हमने कुच्छ नही कहा,यहाँ तक कि इनसे मार खाने के बाद मैने और अरुण ने उन दोनो लड़कियो के पैर पकड़ कर इन चारो महापुरषो की हरकत पर माफी भी माँगी और उनसे रिक्वेस्ट भी की..कि वो ये बात किसी को ना बताए और उन्होने हमारी बात मान भी ली है...दट'स ऑल और मेरे ख़याल से अब कहने और सुनने को कुच्छ नही बचा है...आम आइ राइट एमटीएल भाई..."
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फिर क्या था...जहाँ कुच्छ देर पहले हॉस्टिल के लड़के मुझ पर नाराज़ थे वो अब मुझसे खुश थे,हॉस्टिल के सभी लड़के..इंक्लूडेड माइ कमीने फ्रेंड्स अरुण और सौरभ(जो मेरी तारीफ कभी नही करते ) भी मेरी तारीफ कर रहे थे...हॉस्टिल के सभी लफंगो ने नौशाद और उसके दोस्तो को चोदु,गान्डु कहा...कुच्छ ने उनके पिछवाड़े पर एक दो लात भी मारी....
अदालत का फ़ैसला मेरे पक्ष मे हुआ और जब एमटीएल भाई ,रात को अपने घर जा रहे थे तो उन्होने मुझे बुलाया...
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"काफ़ी अच्छा प्लान बनाया तूने..."
"कोई प्लान नही बनाया सीडार भाई...जो सच था ,वही बोला..."
"अरमान ,अपने शब्दो के जाल मे किसी और को फसाना...मुझे पूरा यकीन है कि तूने ये सारे ईक्वेशन सिर्फ़ इसलिए जोड़े,ताकि तू उन दोनो लड़कियो को बचा सके और फिर बाद मे खुद को...सबसे पहले तू कॅंटीन से बाहर आया और मेरे ख़याल से तू कन्फ्यूषन मे था कि हॉस्टिल वाले का साथ दूं या फिर उन दोनो लड़कियो का,..उसके बाद तूने एश का साथ देने का सोचा और उन्दोनो को कॅंटीन से बाहर भगा दिया...तूने नौशाद और उसके दोस्तो पर हाथ भी नही उठाया ताकि तू मेरे और सारे हॉस्टिल वालो के सामने अपना पक्ष मज़बूत कर सके...तूने मुझे अपने प्लान मे तभी शामिल कर लिया था,जब तू एश और दिव्या को बचाने के लिए कॅंटीन मे घुसा और मेरे ख़याल से तूने उन दोनो को ये भी कहा कि वो दोनो कॅंटीन वाली बात किसी को ना बताए,जिससे ये मामला रफ़ा-दफ़ा हो जाए...और फिर तूने मुझे कॉल किया क्यूंकी तू जानता था कि हॉस्टिल वाले मेरी बात मानेंगे और तू ये भी जानता था कि मैं तेरी ही साइड लूँगा...आम आइ राइट ,अरमान सर"
"सच तो यही है लेकिन मुझे लगा नही था कि आप सच जान जाओगे..."
"एक बात याद रखना अरमान कि इस हॉस्टिल मे तेरे अब चार दुश्मन हो गये है...ये चार ,चालीस मे तब्दील ना हो जाए...इसका ख़याल रखना..गुड नाइट, अब मैं चलता हूँ..."
"मैं कभी ये नही सोचता कि मेरे दुश्मन कितने है...मैं हमेशा ये सोचता हूँ कि मेरे दोस्त कितने है....यदि ये चार,चालीस मे बदल जाए...तो मैं कोशिश करूँगा कि मेरे दो दोस्त, 200 मे बदल जाए...वो क्या है ना एमटीएल भाई की ज़िंदगी मे जब तक मार-धाड जैसा एक्शन,अड्वेंचर ना हो तो ज़िंदगी जीने मे मज़ा नही आता... गुड नाइट आंड टेक केर..."
मेरी नज़र अब भी टिक-टिक करती दीवार पर लगी घड़ी पर अटकी हुई थी...घड़ी का सबसे छोटा काँटा बस 1 पर पहुचने ही वाला था,लेकिन निशा की कॉल का अब तक कोई नाम-ओ-निशान नही था...पहले मुझसे बात करने की बेचैनी निशा को थी लेकिन अब मैं बेचैन हुआ जा रहा था....मैं इस उम्मीद मे अभी तक जाग रहा था कि शायद वो मुझे अब कॉल करे, क्यूंकी हो सकता है कि उसे 12 बजे तक टाइम ना मिला हो...या फिर उसके मोम-डॅड उसके आस-पास हो....जब मेरी ये हालत है तो ना जाने उस दायां का क्या हाल हो रहा होगा...मुझे तो ऐसा लगता है कि यदि इस वक़्त मैं उसके सामने आ जाउ तो खुशी के मारे वो किसी दायां की तरह मुझे नोच डाले....
"अब तो हद हो गयी,2 बजने वाला है और मैं उल्लू की तरह उसके कॉल का इंतज़ार कर रहा हूँ...कुच्छ देर मे तो सुर्य भगवान भी अपने दर्शन दे देंगे...."मैने एक सिगरेट जलाई और बाल्कनी पर आ गया....
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ना जाने मैं किस उम्मीद मे निशा के घर की तरफ देख रहा था,मैं इस वक़्त पागलो की तरह सोचने भी लगा था...मैं इस समय ये सोच रहा था कि शायद निशा रात को मेरे फ्लॅट की तरफ आए....मेरा दिल और दिमाग़ इस वक़्त अपनी जगह से थोड़ा खिसक गया था जो मैं ऐसी बेबुनियाद ख़यालात अपने जहाँ मे ला रहा था...मैने बहुत देर तक निशा के घर की तरफ अपनी नज़ारे गढ़ाए रखी इस सोच के साथ कि वो कही यहाँ आकर लौट ना जाए.....
मेरा दिल अब मेरे दिमाग़ पर हावी होते जा रहा था...निशा के उस एक कॉल की इंतज़ार ने मेरे सारी क्षमताओ पर क्वेस्चन मार्क लगा दिया था...मुझे इस समय ना तो रात के तीसरा पहर दिख रहा था और ना ही उल्लू की तरह जाग रहा मैं...मुझे तो दिख रही थी तो सिर्फ़ निशा...कभी-कभी मुझे निशा के घर की तरफ जाने वाली गली मे कुच्छ आहट सुनाई देती ,मुझे ऐसा लगता जैसे कि निशा अभी चारो तरफ फैले इस अंधेरे से बाहर निकल कर प्रकट हो जाएगी....
मेरे 1400 ग्राम वेट वाले ब्रेन का एक नुकसान यही था कि मेरा दिमाग़ हद से ज़्यादा क्रियेटिव था...वो अक्सर छोटी से छोटी आहट को किसी का आकार देने पर जुट जाता है...हर कहानी की एक दूसरी कहानी ही बनाने लग जाता है....जैसे कि इस वक़्त हो रहा था और यदि शॉर्ट मे कहे तो मेरा दिमाग़ फॉर्वर्ड की जगह बॅक्वर्ड डाइरेक्षन मे काम कर रहा था....
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"एक बार निशा के घर का राउंड मार कर आता हूँ,क्या पता वो अपने घर की छत मे खड़े होकर मेरा इंतज़ार कर रही हो..."इसी के साथ एक और बेवकूफी भरी सोच मेरे अंदर आई...
"अबे पागल है क्या, इतनी रात को निशा अपने घर की छत पर क्या दे & नाइट मॅच खेल रही होगी...तू शांति से सो जा..."मैने खुद का विरोध किया....
"अरमान...एक बार देख कर आने मे क्या जाता है...वैसे भी तो तू बाल्कनी मे खड़ा होकर सिगरेट ही जला रहा है...ज़्यादा सोच मत और चल निशा के घर के पास चलते है..."