hotaks444
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मैं बाथरूम के अंदर गया और दरवाजे की ओट मे खड़ा होकर अपने जेब से खून की डिब्बी निकाली और उसे रूई पर डालकर मैने रूई को अच्छी तरह से खून मे भिगोया और अपने दाहिने हाथ मे खून से सनी रूई को रखकर उसपर पट्टी बाँध दिया....अब मुझे इंतज़ार था कि कब नौशाद बाथरूम मे आए और मैं उसके सर पर लोहे की ये बॉल सीधे फेक कर मारू...लेकिन उसी वक़्त मेरे दिमाग़ मे ख़यालात कौंधा कि...कही इतने भारी वजन के बॉल से नौशाद की मौत ना हो जाए.....
मैने उस लोहे की बॉल को अपने दोनो हाथो से उछाला तभी अचानक मुझे बॅस्केटबॉल की याद आ गयी और मैने सामने वाली दीवार पर खून से एक गोला बनाया और खून से बने उस गोले के अंदर बॉल को फेकने लगा...मेरा निशाना अब भी पहले की तरह अचूक था ये जानकार मुझे थोड़ा प्राउड फील हुआ...नौशाद का इंतज़ार करते हुए जब मैं बॉल को खून से बने उस गोले पर निशाना साध रहा था तो मुझे वो दिन याद आ रहा था ,जब मुझे दीपिका मॅम ने बुरी तरह उन गुन्डो के बीच फँसा दिया था...मुझे वो पल याद आ रहा था जब नौशाद को मैने कॉल किया था और उसने मुझे "चूतिया" कहकर फोन रख दिया था.....उस निशान के अंदर बॉल को बार-बार डालते हुए मैं अमर सर के बारे मे भी सोच रहा था, जो एक समय नौशाद के खास दोस्तो मे से थे लेकिन जब से मैने उन्हे ये बताया था कि उस दिन मेरी जो हालत हुई उसका ज़िम्मेदार नौशाद है तो उनका चेहरा तमतमा उठा था और उन्होने मुझसे कहा कि "वो अभिच हॉस्टिल जाकर उस साले ,एमसी नौशाद को ज़िंदा दफ़ना देंगे...."
उनके उस दिन के अंग्री यंग मॅन रूप को देखकर मैं डर गया था ,क्यूंकी अमर सर विदाउट एनी प्लान ,नौशाद पर अटॅक कर देते और बाद मे फस जाते...जो मैं नही चाहता था....उन्हे उस दिन रोकने की एक और वजह ये भी थी मैं नौशाद को अपने हाथो से लाल करना चाहता था....
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जब भी कोई दोस्त,दोस्ती...फ्रेंड ,फ्रेंडशिप के बारे मे बात करता है तो मेरी सोच अरुण,सौरभ,सुलभ से शुरू होकर इन्ही तीनो पर ख़तम हो जाती है और जब भी कोई अपने दोस्त की बात मेरे सामने करता है तो मैं उनके उस दोस्त को अपने दोस्तो से कंपेर करता हूँ, मुझे ऐसा लगता है जैसे कि उसके दोस्त भी अरुण,सुलभ और सौरभ की तरह होंगे...इसीलिए जब मुझे नौशाद और अमर सिर की दोस्ती के बारे मे पता चला तो मैं कुच्छ देर के लिए थोड़ा मुश्किल मे पड़ गया था कि कही अमर ,नौशाद का साथ ना दे...लेकिन हक़ीक़त मेरी शंका के विपरीत थी....उस दिन हॉस्पिटल मे जब मेरे एक हाथ से प्लास्टर उतारा गया था और अमर सर मुझसे मिलने आए थे तो उन्होने कहा था कि "अरमान...नौशाद बहुत सेल्फिश है मौका पड़ने पर वो मुझे भी इस्तेमाल करके कॉंडम की तरह फेक सकता है...इसलिए मैं तेरे साथ हूँ...."
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"ये साले सौरभ और सुलभ ने नौशाद को इधर नही भेजा...कुत्तो कर क्या रहे हो...भूल तो नही गये..."खुद से बाते करते हुए मैने अपने चेहरे से स्कार्फ उतारा और नौशाद का इंतज़ार करने लगा और आख़िरकार वो वक़्त भी आ गया ,जब नौशाद सिगरेट के छल्ले उड़ाते हुए बाथरूम मे घुसा....वो एक गाना गुनगुनाते हुए सिगरेट पी रहा था....बाथरूम के अंदर आकर नौशाद एक तरफ अपने पैंट की ज़िप खोल कर खड़ा हो गया
"हाउ आर यू, नौशाद सर..."पट्टी का आख़िरी सिरा बाँधते हुए मैं बोला....
नौशाद ने पीछे मुड़कर मुझे देखा और मुझे देखते ही साले की पेशाब रुक गयी ,अपना मुँह फाड़कर वो मुझे देखने लगा....वो कभी मुझे देखता ,तो कभी मेरे दाहिने हाथ मे खून से सनी पट्टी को और बाद मे उसने बाथरूम के गेट की तरफ देखा...जो नौशाद के अंदर घुसने के तुरंत बाद ही बाहर से बंद हो चुका था...बाथरूम के दरवाजे के साथ-साथ ही उस फ्लोर मे जितने रूम थे उनके गेट को भी सौरभ और सुलभ ने बाहर से लॉक कर दिया था...ताकि जब बाथरूम मे धूम-धड़ाका हो तो कोई भी अपने रूम से निकल कर मुझे डिस्टर्ब ना करे....
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" दरवाजा बाहर से बंद है एमसी...अब उधर क्या देख रहा है..."बॉल को ज़मीन पर पटक कर मैने पीछे दीवार के सहारे टिकाए हुए हॉकी स्टिक पर अपना हाथ जमाया लेकिन अपना हाथ पीछे ही रखा ताकि नौशाद को मालूम ना चले कि मेरे पास हॉकी स्टिक है...
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"तू अरमान है ना..."अपनी आँखे मलते हुए नौशाद ने मुझसे पुछा...
"क्यूँ, गान्ड फट गयी ना नाम सुन कर..."
"बीसी...अरमान ही है तू, तू यहाँ क्या कर रहा है..."
"तेरी ***** चोदने आया हूँ...जा बुला कर ला..."
नौशाद का आधा होश दारू ने उड़ा रखा था और उसका आधा होश मेरी इस गाली ने उड़ा दिया....वो ये भूल गया कि जब मैं यहाँ आया हूँ तो कुच्छ तो सोचकर ही आया होऊँगा..
नौशाद मेरी गाली से एक दम तमतमा गया और मेरी तरफ दौड़ा और तभिच मैने अपने हाथो मे रखे हॉकी स्टिक को पकड़ा और अपनी तरफ आते हुए नौशाद के थोबडे पर धौंस दिया...जिसके बाद वो लड़खड़ा कर एक किनारे गिर पड़ा...लेकिन उस बीसी मे दम था,वो मुझे मारने के लिए तुरंत उसी वक़्त उठ खड़ा हुआ और मैं अबकी बार उसे हॉकी स्टिक से ठोकता उसके पहले ही उसने अपना सर झुकाया और दोनो हाथो से मेरी कमर को पकड़ कर मुझे दीवार की तरफ धक्का दे दिया जिसकी वजह से मेरा सर दीवार से टकरा गया....
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"रुक लवडे अभी तुझे बताता हूँ..."नौशाद को गाली बकते हुए मैं दीवार से हटा ही था कि नौशाद ने फिर से अपना सर झुकाया और दोनो हाथो से मुझे दीवार पर एक और बार ज़ोर से धकेला ,जिसके कारण मेरा सर और पीठ एक बार फिर दीवार से बुरी तरह टकराया....
"बीसी...ये तो ववे खेल रहा है "
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मैने जल्दी ही खुद को संभाल लिया और एक दम सीधे खड़ा हुआ...नौशाद ने इस बार भी वही पैतरा आजमाना चाहा लेकिन अबकी बार मैने साले के सर के बाल को ज़ोर से पकड़ लिया और अपनी पूरी ताक़त से उखाड़ने लगा...मैने सोचा था कि अबकी बार नौशाद कामयाब नही होगा लेकिन उस साले के अंदर शराब पीने के बाद भी बहुत दम था उसने पहले मेरे दाहिने हाथ मे खून से सनी पट्टी को ये सोचकर ज़ोर से दबाया कि ,वहाँ सच मे कोई घाव है और उसके ज़ोर से दबाने के कारण मैं दर्द से कराहते हुए उसके सर के बाल छोड़ दूँगा...लेकिन हक़ीक़त तो ये थी कि ना तो मेरे दाहिने हाथ मे कोई घाव था और ना ही मैने उसका बाल छोड़ा...बल्कि और भी तेज़ी से उसके सर के बाल खींचने लगा...नौशाद ज़ोर से चिल्लाया और आख़िर मे जब उसके सर के एक तिहाई बाल मेरे हाथ मे आ गये तो उसने एक बार फिर ववे का पैतरा अपनाया मुझे दीवार पर ज़ोर से धकेला...
"साला तूने मुझे समझ क्या रखा है..."उसके सर को पकड़ कर मैने उसका सर दीवार से दे मारा और नीचे पड़ी हॉकी स्टिक उठाकर पूरी ताक़त से उसके पीठ पर मारना शुरू कर दिया....अब नौशाद ढीला पड़ने लगा था, उसका शरीर पस्त होने लगा और वो वही लेट गया....
"बोला था एमसी कि अपनी गान्ड संभाल कर रख वरना ऐसी गान्ड मारूँगा कि मुँह से सब कुच्छ करना पड़ेगा..."
नौशाद कुच्छ नही बोला और अपनी आँखे बंद कर ली ,जिसके बाद मैने उसके बॉडी के हर उस अंग को तोड़ा जो मेरा टूटा था....हॉकी स्टिक से मारते-मारते जब मैं थक गया तो बेहोश हो चुके नौशाद को मैने दीवार के सहारे टिकाया और लोहे की उस बॉल को उठाकर कर उससे थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो गया....
"अपने सर को बॅस्केटबॉल कोर्ट मे लगा रिंग समझ और ये लोहे की भारी भरकम बॉल जो मेरे हाथ मे है ,उसे बॅस्केटबॉल समझ..."बेहोश हो चुके नौशाद को देखकर मैने कहा...और उसके सर को निशाना बनाकर लोहे की बॉल उच्छाल दी...बॉल सीधे उसके सर से टकराई और खट्ट की आवाज़ हुई...जिसके बाद उसके सर से खून बहने लगा....
मुझे उसे अब छोड़ देना चाहिए था ,लेकिन मुझे अब मज़ा आने लगा था...मैने कयि बार ऐसे ही उसके सर को लोहे की बॉल से फोड़ा और आख़िरी मे उसके फेस पर दे मारी...बॉल सीधे जाकर उसके नाक के नीचे लगी.एक बार फिर वही जानी पहचानी आवाज़ हुई और वही जाना पहचाना लाल रंग उसके मुँह और नाक से निकला....
"बीसी ...अब जाकर हॉस्पिटल मे तीन महीने तू भी उसी तरह सडेगा..जैसे मैं सड़ा था...तू भी अब इस सेमेस्टर का एग्ज़ॅम नही दे पाएगा,जैसे कि मैं नही दे पाया था...."नौशाद को बुरी तरह पीटने के बाद भी जब मेरी हसरत पूरी नही हुई तो मैने उसके सर के बाकी बचे बाल को पकड़ कर वही घसीटना शुरू कर दिया और बाथरूम की खिड़की खोलकर नौशाद को वहाँ से नीचे फेक दिया....
मैने उस लोहे की बॉल को अपने दोनो हाथो से उछाला तभी अचानक मुझे बॅस्केटबॉल की याद आ गयी और मैने सामने वाली दीवार पर खून से एक गोला बनाया और खून से बने उस गोले के अंदर बॉल को फेकने लगा...मेरा निशाना अब भी पहले की तरह अचूक था ये जानकार मुझे थोड़ा प्राउड फील हुआ...नौशाद का इंतज़ार करते हुए जब मैं बॉल को खून से बने उस गोले पर निशाना साध रहा था तो मुझे वो दिन याद आ रहा था ,जब मुझे दीपिका मॅम ने बुरी तरह उन गुन्डो के बीच फँसा दिया था...मुझे वो पल याद आ रहा था जब नौशाद को मैने कॉल किया था और उसने मुझे "चूतिया" कहकर फोन रख दिया था.....उस निशान के अंदर बॉल को बार-बार डालते हुए मैं अमर सर के बारे मे भी सोच रहा था, जो एक समय नौशाद के खास दोस्तो मे से थे लेकिन जब से मैने उन्हे ये बताया था कि उस दिन मेरी जो हालत हुई उसका ज़िम्मेदार नौशाद है तो उनका चेहरा तमतमा उठा था और उन्होने मुझसे कहा कि "वो अभिच हॉस्टिल जाकर उस साले ,एमसी नौशाद को ज़िंदा दफ़ना देंगे...."
उनके उस दिन के अंग्री यंग मॅन रूप को देखकर मैं डर गया था ,क्यूंकी अमर सर विदाउट एनी प्लान ,नौशाद पर अटॅक कर देते और बाद मे फस जाते...जो मैं नही चाहता था....उन्हे उस दिन रोकने की एक और वजह ये भी थी मैं नौशाद को अपने हाथो से लाल करना चाहता था....
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जब भी कोई दोस्त,दोस्ती...फ्रेंड ,फ्रेंडशिप के बारे मे बात करता है तो मेरी सोच अरुण,सौरभ,सुलभ से शुरू होकर इन्ही तीनो पर ख़तम हो जाती है और जब भी कोई अपने दोस्त की बात मेरे सामने करता है तो मैं उनके उस दोस्त को अपने दोस्तो से कंपेर करता हूँ, मुझे ऐसा लगता है जैसे कि उसके दोस्त भी अरुण,सुलभ और सौरभ की तरह होंगे...इसीलिए जब मुझे नौशाद और अमर सिर की दोस्ती के बारे मे पता चला तो मैं कुच्छ देर के लिए थोड़ा मुश्किल मे पड़ गया था कि कही अमर ,नौशाद का साथ ना दे...लेकिन हक़ीक़त मेरी शंका के विपरीत थी....उस दिन हॉस्पिटल मे जब मेरे एक हाथ से प्लास्टर उतारा गया था और अमर सर मुझसे मिलने आए थे तो उन्होने कहा था कि "अरमान...नौशाद बहुत सेल्फिश है मौका पड़ने पर वो मुझे भी इस्तेमाल करके कॉंडम की तरह फेक सकता है...इसलिए मैं तेरे साथ हूँ...."
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"ये साले सौरभ और सुलभ ने नौशाद को इधर नही भेजा...कुत्तो कर क्या रहे हो...भूल तो नही गये..."खुद से बाते करते हुए मैने अपने चेहरे से स्कार्फ उतारा और नौशाद का इंतज़ार करने लगा और आख़िरकार वो वक़्त भी आ गया ,जब नौशाद सिगरेट के छल्ले उड़ाते हुए बाथरूम मे घुसा....वो एक गाना गुनगुनाते हुए सिगरेट पी रहा था....बाथरूम के अंदर आकर नौशाद एक तरफ अपने पैंट की ज़िप खोल कर खड़ा हो गया
"हाउ आर यू, नौशाद सर..."पट्टी का आख़िरी सिरा बाँधते हुए मैं बोला....
नौशाद ने पीछे मुड़कर मुझे देखा और मुझे देखते ही साले की पेशाब रुक गयी ,अपना मुँह फाड़कर वो मुझे देखने लगा....वो कभी मुझे देखता ,तो कभी मेरे दाहिने हाथ मे खून से सनी पट्टी को और बाद मे उसने बाथरूम के गेट की तरफ देखा...जो नौशाद के अंदर घुसने के तुरंत बाद ही बाहर से बंद हो चुका था...बाथरूम के दरवाजे के साथ-साथ ही उस फ्लोर मे जितने रूम थे उनके गेट को भी सौरभ और सुलभ ने बाहर से लॉक कर दिया था...ताकि जब बाथरूम मे धूम-धड़ाका हो तो कोई भी अपने रूम से निकल कर मुझे डिस्टर्ब ना करे....
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" दरवाजा बाहर से बंद है एमसी...अब उधर क्या देख रहा है..."बॉल को ज़मीन पर पटक कर मैने पीछे दीवार के सहारे टिकाए हुए हॉकी स्टिक पर अपना हाथ जमाया लेकिन अपना हाथ पीछे ही रखा ताकि नौशाद को मालूम ना चले कि मेरे पास हॉकी स्टिक है...
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"तू अरमान है ना..."अपनी आँखे मलते हुए नौशाद ने मुझसे पुछा...
"क्यूँ, गान्ड फट गयी ना नाम सुन कर..."
"बीसी...अरमान ही है तू, तू यहाँ क्या कर रहा है..."
"तेरी ***** चोदने आया हूँ...जा बुला कर ला..."
नौशाद का आधा होश दारू ने उड़ा रखा था और उसका आधा होश मेरी इस गाली ने उड़ा दिया....वो ये भूल गया कि जब मैं यहाँ आया हूँ तो कुच्छ तो सोचकर ही आया होऊँगा..
नौशाद मेरी गाली से एक दम तमतमा गया और मेरी तरफ दौड़ा और तभिच मैने अपने हाथो मे रखे हॉकी स्टिक को पकड़ा और अपनी तरफ आते हुए नौशाद के थोबडे पर धौंस दिया...जिसके बाद वो लड़खड़ा कर एक किनारे गिर पड़ा...लेकिन उस बीसी मे दम था,वो मुझे मारने के लिए तुरंत उसी वक़्त उठ खड़ा हुआ और मैं अबकी बार उसे हॉकी स्टिक से ठोकता उसके पहले ही उसने अपना सर झुकाया और दोनो हाथो से मेरी कमर को पकड़ कर मुझे दीवार की तरफ धक्का दे दिया जिसकी वजह से मेरा सर दीवार से टकरा गया....
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"रुक लवडे अभी तुझे बताता हूँ..."नौशाद को गाली बकते हुए मैं दीवार से हटा ही था कि नौशाद ने फिर से अपना सर झुकाया और दोनो हाथो से मुझे दीवार पर एक और बार ज़ोर से धकेला ,जिसके कारण मेरा सर और पीठ एक बार फिर दीवार से बुरी तरह टकराया....
"बीसी...ये तो ववे खेल रहा है "
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मैने जल्दी ही खुद को संभाल लिया और एक दम सीधे खड़ा हुआ...नौशाद ने इस बार भी वही पैतरा आजमाना चाहा लेकिन अबकी बार मैने साले के सर के बाल को ज़ोर से पकड़ लिया और अपनी पूरी ताक़त से उखाड़ने लगा...मैने सोचा था कि अबकी बार नौशाद कामयाब नही होगा लेकिन उस साले के अंदर शराब पीने के बाद भी बहुत दम था उसने पहले मेरे दाहिने हाथ मे खून से सनी पट्टी को ये सोचकर ज़ोर से दबाया कि ,वहाँ सच मे कोई घाव है और उसके ज़ोर से दबाने के कारण मैं दर्द से कराहते हुए उसके सर के बाल छोड़ दूँगा...लेकिन हक़ीक़त तो ये थी कि ना तो मेरे दाहिने हाथ मे कोई घाव था और ना ही मैने उसका बाल छोड़ा...बल्कि और भी तेज़ी से उसके सर के बाल खींचने लगा...नौशाद ज़ोर से चिल्लाया और आख़िर मे जब उसके सर के एक तिहाई बाल मेरे हाथ मे आ गये तो उसने एक बार फिर ववे का पैतरा अपनाया मुझे दीवार पर ज़ोर से धकेला...
"साला तूने मुझे समझ क्या रखा है..."उसके सर को पकड़ कर मैने उसका सर दीवार से दे मारा और नीचे पड़ी हॉकी स्टिक उठाकर पूरी ताक़त से उसके पीठ पर मारना शुरू कर दिया....अब नौशाद ढीला पड़ने लगा था, उसका शरीर पस्त होने लगा और वो वही लेट गया....
"बोला था एमसी कि अपनी गान्ड संभाल कर रख वरना ऐसी गान्ड मारूँगा कि मुँह से सब कुच्छ करना पड़ेगा..."
नौशाद कुच्छ नही बोला और अपनी आँखे बंद कर ली ,जिसके बाद मैने उसके बॉडी के हर उस अंग को तोड़ा जो मेरा टूटा था....हॉकी स्टिक से मारते-मारते जब मैं थक गया तो बेहोश हो चुके नौशाद को मैने दीवार के सहारे टिकाया और लोहे की उस बॉल को उठाकर कर उससे थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो गया....
"अपने सर को बॅस्केटबॉल कोर्ट मे लगा रिंग समझ और ये लोहे की भारी भरकम बॉल जो मेरे हाथ मे है ,उसे बॅस्केटबॉल समझ..."बेहोश हो चुके नौशाद को देखकर मैने कहा...और उसके सर को निशाना बनाकर लोहे की बॉल उच्छाल दी...बॉल सीधे उसके सर से टकराई और खट्ट की आवाज़ हुई...जिसके बाद उसके सर से खून बहने लगा....
मुझे उसे अब छोड़ देना चाहिए था ,लेकिन मुझे अब मज़ा आने लगा था...मैने कयि बार ऐसे ही उसके सर को लोहे की बॉल से फोड़ा और आख़िरी मे उसके फेस पर दे मारी...बॉल सीधे जाकर उसके नाक के नीचे लगी.एक बार फिर वही जानी पहचानी आवाज़ हुई और वही जाना पहचाना लाल रंग उसके मुँह और नाक से निकला....
"बीसी ...अब जाकर हॉस्पिटल मे तीन महीने तू भी उसी तरह सडेगा..जैसे मैं सड़ा था...तू भी अब इस सेमेस्टर का एग्ज़ॅम नही दे पाएगा,जैसे कि मैं नही दे पाया था...."नौशाद को बुरी तरह पीटने के बाद भी जब मेरी हसरत पूरी नही हुई तो मैने उसके सर के बाकी बचे बाल को पकड़ कर वही घसीटना शुरू कर दिया और बाथरूम की खिड़की खोलकर नौशाद को वहाँ से नीचे फेक दिया....