hotaks444
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आराधना की ये हरक़त मुझे कुच्छ ऑड सी लगी क्यूंकी जहाँ कुच्छ देर पहले मेरे सामने उसकी ज़ुबान ढंग से नही खुल रही थी ,वही अब एका एक उसने मेरा हाथ पकड़ा और बैठने के लिए कहा....
"क्या हुआ "
"वो कल वाले लड़के कॅंटीन मे आए है...मुझे उनसे दर लगता है..."
"डर मत,मेरा नाम बता देना..."
"मतलब ? मैं कुच्छ समझी नही..."
"इतना ही समझती तो फिर लड़की ही क्यूँ होती...उनसे बोल देना कि तू मेरी गर्ल फ्रेंड है...फिर वो तुझे कुच्छ नही करेंगे...और सुन..."फिर से आराधना के करीब जाकर मैने कहा"और जब तू उन्हे ये बताएगी कि तू मेरी गर्ल फ्रेंड है तो ये देखना कि तेरी उस एश मॅम का रिक्षन क्या होता है... अब चलता हूँ,बाइ"
ऑडिटोरियम मे मैने भले ही छत्रु के सामने लंबी-लंबी हांक दी थी लेकिन रिसेस के बाद मैं छत्रु को दिए गये अपने ही चॅलेंज से घबराने लगा था...और जैसे-जैसे छत्रु का पीरियड आ रहा था, मेरी हालत और भी ख़स्ता हो रही थी...
छत्रपाल सर हमे दो सब्जेक्ट पढ़ाते थे ,पहला सब्जेक्ट था 'वॅल्यू एजुकेशन' ,जिसमे हर हफ्ते उनकी सिर्फ़ एक क्लास रहती थी और दूसरा सब्जेक्ट था इंजिनियरिंग एकनामिक ,जिसमे वो हफ्ते भर मे 5 बार अपने दर्शन दे देते थे...एक तो छत्रु खुद बोरिंग था ,उपर से उसके दोनो बोरिंग सब्जेक्ट....उनके पीरियड लेने के बाद पूरे क्लास की हालत ऐसी हो जाती थी ,जैसे कि सब अभी-अभी अपने शरीर का आधा ब्लड डोनेट करके आए हो....बोले तो थकान मे एक दम डूबे हुए.
इंजिनियरिंग एकनामिक का आज सेकेंड लास्ट पीरियड था और मैं चाह रहा था कि छत्रु अपनी क्लास लेने ना आए,वरना वो मुझे टॉपिक देकर ,कल तक याद करने को कहेगा...
"और उचक...ऑडिटोरियम मे तो बड़े शान से बोल रहा था कि ,सर क्लास मे टॉपिक दे देना...अब क्या हुआ..."जैसे ही ईई का पीरियड शुरू हुआ, मैने सोचा"एक काम करता हूँ, सर को क्लास के बाद खोपचे मे ले जाकर बोल दूँगा कि सर, ये सब मेरे से नही होगा...आप किसी और को देख लो....लेकिन फिर तो घोर बेज़्ज़ती होगी...कहाँ फँस गया यार..."
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और फिर उस दिन छत्रु के क्लास मे ना आने की मेरी रिक्वेस्ट को भगवान ने आक्सेप्ट कर लिया ,क्यूंकी छत्रु उस दिन अपनी क्लास लेने नही आया....छत्रु के क्लास मे ना आने से उसे चाहने वाले जहाँ दुखी थे,वही कुच्छ लोग मेरे जैसे भी थे ,जिन्हे अत्यंत प्रसन्नता हुई थी...लेकिन सबसे ज़्यादा खुश तो मैं था...
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अब जब छत्रपाल सर जी ने क्लास बंक किया तो मेरा सारा डर दूर हुआ और मैं एश पर पूरे मन से कॉन्सेंट्रेट करने लगा..तब मेरे सामने कल वाले सवाल फिर से पैदा हो गये ,जिन्हे मैने कल पार्किंग मे एश के जाने के बाद सोचा था....
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"इतना चुप क्यूँ है बे, कही चड्डी गीली तो नही कर दी तूने..."मेरी तपस्या मे रुकावट डालते हुए अरुण ने खाली क्लास मे मेरे इतना चुप रहने का कारण पुछा....
"अब यदि इसे कहूँगा कि बस ऐवे ही...तो ये लवडा दिमाग़ चाट जाएगा और फिर मुझे चैन से बैठने नही देगा..."अरुण की तरफ देखते हुए मैने कहा"मैं सोच रहा था कि 'व्हाई ईज़ दा अर्त आन एल्लिपसड'...इसलिए प्लीज़ चुप रह..."
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अरुण को चुप कराकर मैं वापस अपनी तपस्या मे लीन हो गया और एश की अजीब हरक़तो का स्मरण करने लगा....लेकिन मुझे कोई ऐसा ढंग का जवाब नही मिला,जो मेरे अंदर उठे मेरे उन दो सवालो का जवाब देती हो....लेकिन मैने हार नही मानी और एक बार फिर से अपनी साधना मे लीन हो गया....
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"अबे इतना मत सोच...गूगल मे देख ले कि अर्त एल्लिपसड क्यूँ है..."
"थॅंक्स...अब चुप रह..."
"यार तुझसे एक बात कहनी थी..."
"सुन रहा हूँ बोल..."
"पहले मेरी तरफ तो देख..."मेरा थोबड़ा पकड़ कर अरुण ने अपनी तरफ घुमाया और बोला"मैं आजकल कुच्छ ज़्यादा ही स्पर्म डोनेट कर रहा हूँ....कोई तरीका है क्या ,जिससे मैं अपनी इस डोनेशन मे कटौती कर सकूँ..."
अरुण ने जब मेरा थोबड़ा अपनी तरफ घुमाया तभिच मेरा दिल किया कि घुमा के एक हाथ उसे जड़ दूं और उसका थोबड़ा बिगाड़ दूं...लेकिन फिर मैने खुद पर कंट्रोल किया और उसपर भड़कते हुए बोला...
"इसे रोकने का सिर्फ़ एक ही तरीका है, तू अपना लंड काट दे...और मुझे अब डिस्टर्ब मत करना ,वरना ये काम मैं खुद कर दूँगा..."
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अरुण इसके बाद कुच्छ नही बोला ,यहाँ तक कि उसने मुझे फिर मुड़कर देखा भी नही...जिसका फ़ायदा मुझे ये हुआ कि मैं बड़े इतमीनान से अपना जवाब ढूँढने मे लगा रहा...लेकिन मुझे दूर-दूर तक जवाब नही मिला....तब मैने सोचा कि आज फिर पार्किंग मे एश से मिलते है, जिसमे दिव्या का ,एश के साथ ना होना...कंडीशन अप्लाइ होगा....
कल की तरह मैने आज भी कॉलेज के ऑफ होते ही सौरभ को पटाया ताकि वो कुच्छ बहाना मारकर अरुण को अपने साथ ले जा सके और आज मेरा बहाना बना 'छत्रु के साथ इंपॉर्टेंट टॉकिंग '
अरुण और सौरभ तो कल की तरह हॉस्टिल चले गये लेकिन आर.दिव्या कल की तरह आज पहले नही निकली....आज दोनो साथ मे ही अपने घर के लिए रवाना हुए,जिससे कॉलेज के बाद एश से पार्किंग मे बात करने के मेरे प्लान ने वही दम तोड़ दिया....
" मा दी लाडली दिव्या ,लवडी जब देखो तब बीच मे अपनी गान्ड फसाती रहती है...रंडी ,छिनार कही की...ये मर क्यूँ नही जाती, म्सी...एक दिन इन दोनो भाई बहनो का कत्ल मेरे हाथो ज़रूर होगा..."दिव्या के तारीफो के पुल बाँधते हुए मैं हॉस्टिल चला गया....
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आंकरिंग मे पार्टिसिपेट करने का एक बड़ा फ़ायदा मुझे हुआ था,वो ये कि अब रात को मैं लिमिट मे दारू पीने लगा था, ताकि सुबह मैं नशे मे सोता ना रहूं...क्यूंकी आंकरिंग की प्रॅक्टीस हर दिन फर्स्ट पीरियड के टाइम ही होती थी...
हर दिन ऑडिटोरियम मे छत्रु ,हमे अब्राहम लिंकन के जीवन के वही पन्ने रोज पकड़ा देता और स्टेज पर एक-एक करके सबसे बुलवाता था...जब कयि दिन तक ऐसे ही बीत गये तो मुझे छत्रु के आंकरिंग के इस मेतड से नफ़रत होने लगी, लेकिन मैं छत्रु को कभी कुच्छ बोल नही पाया...मैं स्टेज पर जाता ज़रूर था लेकिन छत्रपाल के प्रति एक खुन्नस मे सब कुच्छ बोलता था....यदि छत्रपाल को मुझे नीचा दिखाने का कोई एक मौका मिलता तो वो उस एक मौके को दो मौको मे तब्दील करके मुझपर वॉर करता और मैं....मुझे तो जानते ही होगे ,मैं भी उसपर अपने डाइलॉग्स की फाइरिंग करता था...
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पिछले कुच्छ दिनो से आराधना भी ऑडिटोरियम मे प्रॅक्टीस करने के लिए आने लगी थी...वो इस कॉलेज मे और हम सबके के बीच नयी थी...इसलिए वो शुरू मे थोड़ा-थोड़ा घबराती थी लेकिन फिर बाद मे उसने अपने अंदर बहुत हद तक सुधार ला लिया था....ऑडिटोरियम मे मेरे और आराधना के बीच बहुत बातें होती, वो धीरे-धीरे मुझसे खुलती जा रही थी और बीच-बीच मे जब उसका मुझे चिढ़ाने का मान होता तो मुझे 'अरमान सर' कहकर बुलाती...
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जहाँ कल की आई लौंडी ,आराधना मुझसे धीरे-धीरे खुल रही थी,वही एश अब भी मुझसे बात करने मे कतराती थी...वो मुझसे जब भी बात करती तो उसके अंदर एक घबराहट हमेशा रहती थी....
वैसे तो मैं पिछले हफ्ते ही एश से बात करने की सोच रहा था ,लेकिन अभी तक ऐन वक़्त आने पर टालने के कारण अभी तक एश से बात नही कर पाया था, इसलिए मैने सोचा कि आज एश से अपने उन दो सवालो का जवाब माँग ही लूँ....
मेरा पहला सवाल ये था कि 'एश ने मेरा नंबर. अपने मोबाइल पर क्यूँ सेव करके रखा हुआ है...' और दूसरा सवाल ये कि ' एश की मामी की लड़की को मेरे बारे मे पता कैसे चला'
वैसे मेरे ये दोनो सवाल ज़्यादा अहमियत तो नही रखते थे लेकिन इन्ही दो सवालो के कारण मुझे एक आस दिखाई दे रही थी कि शायद... एसा के लेफ्ट साइड मे मैं भी हूँ. मेरे ये दोनो सस्पेक्ट भले ही मेरे उम्मीद के मुताबिक़ मुझे परिणाम ना दे लेकिन मुझे कोशिश तो करनी ही थी क्यूंकी मेरा पर्सनली ऐसा मानना है कि ज़िंदगी के सफ़र मे सक्सेस वही होता है ,जो घने अंधेरे मे भी एक चिंगारी की बुनियाद पर उस अंधेरे को दूर कर दे, ना कि वो जो उस भयंकर अंधेरे से डरकर लौट जाए...
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ऑडिटोरियम मे मैं आज 10 मिनिट पहले ही पहुचा.उस वक़्त वहाँ छत्रपाल सर को छोड़ कर सभी आ चुके थे यानी की 10 मिनिट पहले आने पर भी मैं हर दिन की तरह आज भी लेट था....
"हाई...गुड मॉर्निंग."एश के साइड वाली सीट पर बैठकर मैने कहा...
"हाई..."
"तुम लोग यहाँ इतना पहले आकर क्या करते हो...कहीं ऐसा तो नही की तुमलोग रात को घर जाते ही नही..."
"तुम्हारा क्या मतलब कि मैं रात को यहाँ रुकी थी..."मुझसे बहस करने के मूड मे एश बोली...
"कुच्छ नही यार, मज़ाक कर रहा था..."बहस शुरू होती ,उससे पहले ही बहस को ख़त्म करते हुए मैने कहा...
"मुझे मज़ाक बिल्कुल भी पसंद नही..."
"मुझे भी मज़ाक नही पसंद...वैसे मेरा एक सवाल है..." अगाल-बगल देखते हुए पहले मैने ये कन्फर्म किया कि हमारी बात कोई सुन तो नही रहा और जब ये कन्फर्म हो गया तो मैने धीरे से कहा..."तुम्हारे मोबाइल मे मेरा नंबर क्यूँ है.."
"तुम्हारा नंबर क्यूँ है का क्या मतलब "अपनी आँखे बड़ी-बड़ी करते हुए एश ने उल्टा मुझसे ही सवाल किया....
"दरअसल मैं ये पुछना चाहता हूँ कि...हम दोनो के बीच एक समय काफ़ी घमासान तकरार हुई थी और एक लड़की को जहाँ तक मैं जानता हूँ उसके अकॉरडिंग तुम्हारे पास मेरा नंबर नही होना चाहिए..."
"तुम्हारा नंबर. मेरे मोबाइल मे उस घमासान लड़ाई के पहले से ही सेव था...और मुझे याद भी नही रहा कि तुम्हारा नंबर. मेरे मोबाइल मे सेव है,वो तो उस दिन देविका ने ना जाने कहाँ से तुम्हे कॉल कर दिया...दट'स ऑल "
"ये डेविका कौन ? "
"डेविका मेरी मामी की लड़की है ,जिसने तुम्हे कॉल करके धमकी दी थी...."
"ऐसा क्या....खम्खा मैं कुच्छ और समझ बैठा था , लेकिन फिर यहाँ एक और सवाल पैदा होता है कि तुमने मेरा नंबर. पहले क्यूँ सेव किया था...मतलब कि जब मैं अपने मोबाइल पर किसी का नंबर. सेव करता हूँ तो कुच्छ सोचकर ही करता हूँ...तुमने क्या सोचा था "एश को लपेटे मे लेते हुए मैने उसी के जवाब मे उसी को फँसा दिया...खुद को बहुत होशियार समझ रेली थी
"तुम्हारा मैने क्यूँ सेव किया था..."स्टेज की तरफ एश देखकर सोचने लगी...और मैं इधर अपनी चालाकी पर खुद को शाबाशी दे रहा था....
"मुझे याद नही..."
"ये तो कोई जवाब नही हुआ..."
"अब मुझे याद नही तो क्या करूँ...वैसे भी तुम कितनी पुरानी बात पुच्छ रहे हो और मैं भूल गयी कि मैने तुम्हारा नंबर क्यूँ अपने मोबाइल मे सेव किया था..."
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बोल ले झूठ, बिल्ली....मेरे पहले सस्पेक्ट को चारो तरफ से धराशायी करने के बाद मैं एश पर अपने दूसरे सवाल का प्रहार करता ,उससे पहले मैने एश से कहा"एक और सवाल है मेरा...दिल पे तो नही लोगि.."
"यदि तुम्हारा दूसरा सवाल भी पहले वाले की तरह वाहियात रहा तो बेहतर ही रहेगा कि मत पुछो...क्यूंकी मैं अब कोई जवाब नही देने वाली..."
"ठीक है....मैं अब ये पुच्छना चाहता हूँ कि तुम्हारी मामी की लड़की डेविका को मेरे बारे मे कैसे पता चला,जिसके बाद उसने मुझे कॉल किया..."
"मैने पहले ही कहा था कि उसने शरारत करने के लिए मेरा मोबाइल उठाया और अचानक ही तुम्हारे नंबर. पर कॉल कर दिया..."
"डेविका की एज क्या होगी..."
"क्य्ाआ...."
"एज...मतलब उम्र, डेविका की उम्र कितनी होगी..."
"20 , लेकिन तुम ये क्यूँ पुच्छ रहे हो.."
"वो बाद मे बताउन्गा...पहले ये बताओ कि क्या वो साइको है या फिर थोड़ी सी सटकी हुई है...."
"वो मेरी कज़िन है ,ज़रा ढंग से उसके बारे मे बात करो...ये सटकी हुई का क्या मतलब होता है..."
"सॉरी...पर तुम्हे अजीब नही लगता कि एक 20 साल की पढ़ी-लिखी लड़की ,जिसे कोई दिमागी बीमारी नही है...वो तुम्हारे मोबाइल से ऐसे ही किसी का नंबर. डाइयल कर देती है और फिर बाद मे तुम्हे अपनी उस करतूत की जानकारी भी दे देती है...ये बात कही से हजम नही होती एश...सच बताओ..."
"मुझसे अब बात मत करना...."वहाँ से उठकर एश जाते हुए बोली...
"जिसका डर था, वही हुआ....ये तो बुरा मान गयी..."वहाँ पर चुप-चाप बैठकर मैं एश को वहाँ से जाते हुए देखता रहा.
मेरे पहले सवाल का जो जवाब एश ने दिया था, मुझे उसके उस जवाब पर भी शक़ था...लेकिन अब तो वो बात करने को भी तैयार नही थी. लेकिन आज मैं ठान के ही आया था कि अपने ये दोनो संदेह दूर करके ही रहूँगा, इसलिए मैं अपनी जगह से उठकर एश के दाए तरफ फिर से बैठ गया....
"तू तो भड़क गयी,इसीलिए मैं तुझे बिल्ली कहता हूँ...और सुन ज़्यादा गुस्सा होने की ज़रूरत नही है,वरना अभिच अपुन पूरे कॉलेज मे ये बात फैला देगा कि तूने मुझे सुबह कॉल करके ब्लॅक मैल किया...ब्लॅक मैल मतलब मैं अपनी तरफ से कोई भी कहानी जोड़ दूँगा और तू तो जानती ही है कि मैं कहानी बनाने मे कितना माहिर हूँ...इसलिए एश जी आपसे नम्र निवेदन है कि आप मुझे मेरे दूसरे प्रश्न का स्पष्ट उत्तर दे...."
"तुम मुझे धमकी देने की कोशिश कर रहे हो...."अपनी आवाज़ तेज़ करते हुए एश बोली...
"मैं धमकी देने की कोशिश नही कर रहा...मैं तो धमकी दे रहा हूँ और आवाज़ थोड़ा नीचे रखो, वरना शुरुआत यही से हो जाएगी..."
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ऑडिटोरियम मे बैठे सभी स्टूडेंट्स जब हमारी तरफ ही देखने लगे तो एश का मुझपर उफान मारता हुआ गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ और वो अपने दाँत चबाते हुए धीरे से बोली....
"कॉलेज ख़त्म होने के बाद पार्किंग मे मिलना ,अभी छत्रपाल सर ऑडिटोरियम मे आ गये है, समझे...."
"इस छत्रु की तो...."मैं पीछे पलटा तो देखा कि छत्रु अपनी कलाई मे बँधी घड़ी मे टाइम देखते हुए सामने स्टेज की तरफ आ रहा था....
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छत्रपाल जी हर दिन की तरह आज भी सामने खड़े हो गये और सबसे वही करवाया ,जो पिछले एक हफ्ते से हो रहा था...पहले-पहल तो मैने छत्रपाल के द्वारा एक पेज पकड़ा कर माइक मे बुलवाने की टेक्नीक पर मैने कुच्छ खास गौर नही किया...लेकिन बाद मे मैने ध्यान देना शुरू किया और जो बात मुझे पता चली वो ये कि छत्रु हमारी प्रॅक्टीस के पहले दिन से ही सेलेक्षन करने लगा था....
छत्रपाल सर स्पीच के दौरान एक दम सामने वाली रो पर बैठ जाते और सामने वाली की टोन ,बोलने की स्टाइल और इंटेरेस्ट पर गौर करते थे. सभी स्टूडेंट्स प्रॅक्टीस के पहले दिन से ही उस दिन का इंतज़ार कर रहे थे कि कब छत्रपाल सर उनमे से 6 को सेलेक्ट करे और 2-2 की टीम बना कर 3 ग्रूप बनाए और वो अपनी फाइनल प्रॅक्टीस शुरू कर सके....लेकिन जैसा मेरा मानना था उसके अनुसार वो 6 लोग तो आज से 2-3 पहले ही सेलेक्ट हो चुके थे.....जिसकी जानकारी सिर्फ़ और सिर्फ़ छत्रु को थी....
"क्या हुआ "
"वो कल वाले लड़के कॅंटीन मे आए है...मुझे उनसे दर लगता है..."
"डर मत,मेरा नाम बता देना..."
"मतलब ? मैं कुच्छ समझी नही..."
"इतना ही समझती तो फिर लड़की ही क्यूँ होती...उनसे बोल देना कि तू मेरी गर्ल फ्रेंड है...फिर वो तुझे कुच्छ नही करेंगे...और सुन..."फिर से आराधना के करीब जाकर मैने कहा"और जब तू उन्हे ये बताएगी कि तू मेरी गर्ल फ्रेंड है तो ये देखना कि तेरी उस एश मॅम का रिक्षन क्या होता है... अब चलता हूँ,बाइ"
ऑडिटोरियम मे मैने भले ही छत्रु के सामने लंबी-लंबी हांक दी थी लेकिन रिसेस के बाद मैं छत्रु को दिए गये अपने ही चॅलेंज से घबराने लगा था...और जैसे-जैसे छत्रु का पीरियड आ रहा था, मेरी हालत और भी ख़स्ता हो रही थी...
छत्रपाल सर हमे दो सब्जेक्ट पढ़ाते थे ,पहला सब्जेक्ट था 'वॅल्यू एजुकेशन' ,जिसमे हर हफ्ते उनकी सिर्फ़ एक क्लास रहती थी और दूसरा सब्जेक्ट था इंजिनियरिंग एकनामिक ,जिसमे वो हफ्ते भर मे 5 बार अपने दर्शन दे देते थे...एक तो छत्रु खुद बोरिंग था ,उपर से उसके दोनो बोरिंग सब्जेक्ट....उनके पीरियड लेने के बाद पूरे क्लास की हालत ऐसी हो जाती थी ,जैसे कि सब अभी-अभी अपने शरीर का आधा ब्लड डोनेट करके आए हो....बोले तो थकान मे एक दम डूबे हुए.
इंजिनियरिंग एकनामिक का आज सेकेंड लास्ट पीरियड था और मैं चाह रहा था कि छत्रु अपनी क्लास लेने ना आए,वरना वो मुझे टॉपिक देकर ,कल तक याद करने को कहेगा...
"और उचक...ऑडिटोरियम मे तो बड़े शान से बोल रहा था कि ,सर क्लास मे टॉपिक दे देना...अब क्या हुआ..."जैसे ही ईई का पीरियड शुरू हुआ, मैने सोचा"एक काम करता हूँ, सर को क्लास के बाद खोपचे मे ले जाकर बोल दूँगा कि सर, ये सब मेरे से नही होगा...आप किसी और को देख लो....लेकिन फिर तो घोर बेज़्ज़ती होगी...कहाँ फँस गया यार..."
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और फिर उस दिन छत्रु के क्लास मे ना आने की मेरी रिक्वेस्ट को भगवान ने आक्सेप्ट कर लिया ,क्यूंकी छत्रु उस दिन अपनी क्लास लेने नही आया....छत्रु के क्लास मे ना आने से उसे चाहने वाले जहाँ दुखी थे,वही कुच्छ लोग मेरे जैसे भी थे ,जिन्हे अत्यंत प्रसन्नता हुई थी...लेकिन सबसे ज़्यादा खुश तो मैं था...
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अब जब छत्रपाल सर जी ने क्लास बंक किया तो मेरा सारा डर दूर हुआ और मैं एश पर पूरे मन से कॉन्सेंट्रेट करने लगा..तब मेरे सामने कल वाले सवाल फिर से पैदा हो गये ,जिन्हे मैने कल पार्किंग मे एश के जाने के बाद सोचा था....
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"इतना चुप क्यूँ है बे, कही चड्डी गीली तो नही कर दी तूने..."मेरी तपस्या मे रुकावट डालते हुए अरुण ने खाली क्लास मे मेरे इतना चुप रहने का कारण पुछा....
"अब यदि इसे कहूँगा कि बस ऐवे ही...तो ये लवडा दिमाग़ चाट जाएगा और फिर मुझे चैन से बैठने नही देगा..."अरुण की तरफ देखते हुए मैने कहा"मैं सोच रहा था कि 'व्हाई ईज़ दा अर्त आन एल्लिपसड'...इसलिए प्लीज़ चुप रह..."
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अरुण को चुप कराकर मैं वापस अपनी तपस्या मे लीन हो गया और एश की अजीब हरक़तो का स्मरण करने लगा....लेकिन मुझे कोई ऐसा ढंग का जवाब नही मिला,जो मेरे अंदर उठे मेरे उन दो सवालो का जवाब देती हो....लेकिन मैने हार नही मानी और एक बार फिर से अपनी साधना मे लीन हो गया....
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"अबे इतना मत सोच...गूगल मे देख ले कि अर्त एल्लिपसड क्यूँ है..."
"थॅंक्स...अब चुप रह..."
"यार तुझसे एक बात कहनी थी..."
"सुन रहा हूँ बोल..."
"पहले मेरी तरफ तो देख..."मेरा थोबड़ा पकड़ कर अरुण ने अपनी तरफ घुमाया और बोला"मैं आजकल कुच्छ ज़्यादा ही स्पर्म डोनेट कर रहा हूँ....कोई तरीका है क्या ,जिससे मैं अपनी इस डोनेशन मे कटौती कर सकूँ..."
अरुण ने जब मेरा थोबड़ा अपनी तरफ घुमाया तभिच मेरा दिल किया कि घुमा के एक हाथ उसे जड़ दूं और उसका थोबड़ा बिगाड़ दूं...लेकिन फिर मैने खुद पर कंट्रोल किया और उसपर भड़कते हुए बोला...
"इसे रोकने का सिर्फ़ एक ही तरीका है, तू अपना लंड काट दे...और मुझे अब डिस्टर्ब मत करना ,वरना ये काम मैं खुद कर दूँगा..."
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अरुण इसके बाद कुच्छ नही बोला ,यहाँ तक कि उसने मुझे फिर मुड़कर देखा भी नही...जिसका फ़ायदा मुझे ये हुआ कि मैं बड़े इतमीनान से अपना जवाब ढूँढने मे लगा रहा...लेकिन मुझे दूर-दूर तक जवाब नही मिला....तब मैने सोचा कि आज फिर पार्किंग मे एश से मिलते है, जिसमे दिव्या का ,एश के साथ ना होना...कंडीशन अप्लाइ होगा....
कल की तरह मैने आज भी कॉलेज के ऑफ होते ही सौरभ को पटाया ताकि वो कुच्छ बहाना मारकर अरुण को अपने साथ ले जा सके और आज मेरा बहाना बना 'छत्रु के साथ इंपॉर्टेंट टॉकिंग '
अरुण और सौरभ तो कल की तरह हॉस्टिल चले गये लेकिन आर.दिव्या कल की तरह आज पहले नही निकली....आज दोनो साथ मे ही अपने घर के लिए रवाना हुए,जिससे कॉलेज के बाद एश से पार्किंग मे बात करने के मेरे प्लान ने वही दम तोड़ दिया....
" मा दी लाडली दिव्या ,लवडी जब देखो तब बीच मे अपनी गान्ड फसाती रहती है...रंडी ,छिनार कही की...ये मर क्यूँ नही जाती, म्सी...एक दिन इन दोनो भाई बहनो का कत्ल मेरे हाथो ज़रूर होगा..."दिव्या के तारीफो के पुल बाँधते हुए मैं हॉस्टिल चला गया....
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आंकरिंग मे पार्टिसिपेट करने का एक बड़ा फ़ायदा मुझे हुआ था,वो ये कि अब रात को मैं लिमिट मे दारू पीने लगा था, ताकि सुबह मैं नशे मे सोता ना रहूं...क्यूंकी आंकरिंग की प्रॅक्टीस हर दिन फर्स्ट पीरियड के टाइम ही होती थी...
हर दिन ऑडिटोरियम मे छत्रु ,हमे अब्राहम लिंकन के जीवन के वही पन्ने रोज पकड़ा देता और स्टेज पर एक-एक करके सबसे बुलवाता था...जब कयि दिन तक ऐसे ही बीत गये तो मुझे छत्रु के आंकरिंग के इस मेतड से नफ़रत होने लगी, लेकिन मैं छत्रु को कभी कुच्छ बोल नही पाया...मैं स्टेज पर जाता ज़रूर था लेकिन छत्रपाल के प्रति एक खुन्नस मे सब कुच्छ बोलता था....यदि छत्रपाल को मुझे नीचा दिखाने का कोई एक मौका मिलता तो वो उस एक मौके को दो मौको मे तब्दील करके मुझपर वॉर करता और मैं....मुझे तो जानते ही होगे ,मैं भी उसपर अपने डाइलॉग्स की फाइरिंग करता था...
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पिछले कुच्छ दिनो से आराधना भी ऑडिटोरियम मे प्रॅक्टीस करने के लिए आने लगी थी...वो इस कॉलेज मे और हम सबके के बीच नयी थी...इसलिए वो शुरू मे थोड़ा-थोड़ा घबराती थी लेकिन फिर बाद मे उसने अपने अंदर बहुत हद तक सुधार ला लिया था....ऑडिटोरियम मे मेरे और आराधना के बीच बहुत बातें होती, वो धीरे-धीरे मुझसे खुलती जा रही थी और बीच-बीच मे जब उसका मुझे चिढ़ाने का मान होता तो मुझे 'अरमान सर' कहकर बुलाती...
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जहाँ कल की आई लौंडी ,आराधना मुझसे धीरे-धीरे खुल रही थी,वही एश अब भी मुझसे बात करने मे कतराती थी...वो मुझसे जब भी बात करती तो उसके अंदर एक घबराहट हमेशा रहती थी....
वैसे तो मैं पिछले हफ्ते ही एश से बात करने की सोच रहा था ,लेकिन अभी तक ऐन वक़्त आने पर टालने के कारण अभी तक एश से बात नही कर पाया था, इसलिए मैने सोचा कि आज एश से अपने उन दो सवालो का जवाब माँग ही लूँ....
मेरा पहला सवाल ये था कि 'एश ने मेरा नंबर. अपने मोबाइल पर क्यूँ सेव करके रखा हुआ है...' और दूसरा सवाल ये कि ' एश की मामी की लड़की को मेरे बारे मे पता कैसे चला'
वैसे मेरे ये दोनो सवाल ज़्यादा अहमियत तो नही रखते थे लेकिन इन्ही दो सवालो के कारण मुझे एक आस दिखाई दे रही थी कि शायद... एसा के लेफ्ट साइड मे मैं भी हूँ. मेरे ये दोनो सस्पेक्ट भले ही मेरे उम्मीद के मुताबिक़ मुझे परिणाम ना दे लेकिन मुझे कोशिश तो करनी ही थी क्यूंकी मेरा पर्सनली ऐसा मानना है कि ज़िंदगी के सफ़र मे सक्सेस वही होता है ,जो घने अंधेरे मे भी एक चिंगारी की बुनियाद पर उस अंधेरे को दूर कर दे, ना कि वो जो उस भयंकर अंधेरे से डरकर लौट जाए...
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ऑडिटोरियम मे मैं आज 10 मिनिट पहले ही पहुचा.उस वक़्त वहाँ छत्रपाल सर को छोड़ कर सभी आ चुके थे यानी की 10 मिनिट पहले आने पर भी मैं हर दिन की तरह आज भी लेट था....
"हाई...गुड मॉर्निंग."एश के साइड वाली सीट पर बैठकर मैने कहा...
"हाई..."
"तुम लोग यहाँ इतना पहले आकर क्या करते हो...कहीं ऐसा तो नही की तुमलोग रात को घर जाते ही नही..."
"तुम्हारा क्या मतलब कि मैं रात को यहाँ रुकी थी..."मुझसे बहस करने के मूड मे एश बोली...
"कुच्छ नही यार, मज़ाक कर रहा था..."बहस शुरू होती ,उससे पहले ही बहस को ख़त्म करते हुए मैने कहा...
"मुझे मज़ाक बिल्कुल भी पसंद नही..."
"मुझे भी मज़ाक नही पसंद...वैसे मेरा एक सवाल है..." अगाल-बगल देखते हुए पहले मैने ये कन्फर्म किया कि हमारी बात कोई सुन तो नही रहा और जब ये कन्फर्म हो गया तो मैने धीरे से कहा..."तुम्हारे मोबाइल मे मेरा नंबर क्यूँ है.."
"तुम्हारा नंबर क्यूँ है का क्या मतलब "अपनी आँखे बड़ी-बड़ी करते हुए एश ने उल्टा मुझसे ही सवाल किया....
"दरअसल मैं ये पुछना चाहता हूँ कि...हम दोनो के बीच एक समय काफ़ी घमासान तकरार हुई थी और एक लड़की को जहाँ तक मैं जानता हूँ उसके अकॉरडिंग तुम्हारे पास मेरा नंबर नही होना चाहिए..."
"तुम्हारा नंबर. मेरे मोबाइल मे उस घमासान लड़ाई के पहले से ही सेव था...और मुझे याद भी नही रहा कि तुम्हारा नंबर. मेरे मोबाइल मे सेव है,वो तो उस दिन देविका ने ना जाने कहाँ से तुम्हे कॉल कर दिया...दट'स ऑल "
"ये डेविका कौन ? "
"डेविका मेरी मामी की लड़की है ,जिसने तुम्हे कॉल करके धमकी दी थी...."
"ऐसा क्या....खम्खा मैं कुच्छ और समझ बैठा था , लेकिन फिर यहाँ एक और सवाल पैदा होता है कि तुमने मेरा नंबर. पहले क्यूँ सेव किया था...मतलब कि जब मैं अपने मोबाइल पर किसी का नंबर. सेव करता हूँ तो कुच्छ सोचकर ही करता हूँ...तुमने क्या सोचा था "एश को लपेटे मे लेते हुए मैने उसी के जवाब मे उसी को फँसा दिया...खुद को बहुत होशियार समझ रेली थी
"तुम्हारा मैने क्यूँ सेव किया था..."स्टेज की तरफ एश देखकर सोचने लगी...और मैं इधर अपनी चालाकी पर खुद को शाबाशी दे रहा था....
"मुझे याद नही..."
"ये तो कोई जवाब नही हुआ..."
"अब मुझे याद नही तो क्या करूँ...वैसे भी तुम कितनी पुरानी बात पुच्छ रहे हो और मैं भूल गयी कि मैने तुम्हारा नंबर क्यूँ अपने मोबाइल मे सेव किया था..."
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बोल ले झूठ, बिल्ली....मेरे पहले सस्पेक्ट को चारो तरफ से धराशायी करने के बाद मैं एश पर अपने दूसरे सवाल का प्रहार करता ,उससे पहले मैने एश से कहा"एक और सवाल है मेरा...दिल पे तो नही लोगि.."
"यदि तुम्हारा दूसरा सवाल भी पहले वाले की तरह वाहियात रहा तो बेहतर ही रहेगा कि मत पुछो...क्यूंकी मैं अब कोई जवाब नही देने वाली..."
"ठीक है....मैं अब ये पुच्छना चाहता हूँ कि तुम्हारी मामी की लड़की डेविका को मेरे बारे मे कैसे पता चला,जिसके बाद उसने मुझे कॉल किया..."
"मैने पहले ही कहा था कि उसने शरारत करने के लिए मेरा मोबाइल उठाया और अचानक ही तुम्हारे नंबर. पर कॉल कर दिया..."
"डेविका की एज क्या होगी..."
"क्य्ाआ...."
"एज...मतलब उम्र, डेविका की उम्र कितनी होगी..."
"20 , लेकिन तुम ये क्यूँ पुच्छ रहे हो.."
"वो बाद मे बताउन्गा...पहले ये बताओ कि क्या वो साइको है या फिर थोड़ी सी सटकी हुई है...."
"वो मेरी कज़िन है ,ज़रा ढंग से उसके बारे मे बात करो...ये सटकी हुई का क्या मतलब होता है..."
"सॉरी...पर तुम्हे अजीब नही लगता कि एक 20 साल की पढ़ी-लिखी लड़की ,जिसे कोई दिमागी बीमारी नही है...वो तुम्हारे मोबाइल से ऐसे ही किसी का नंबर. डाइयल कर देती है और फिर बाद मे तुम्हे अपनी उस करतूत की जानकारी भी दे देती है...ये बात कही से हजम नही होती एश...सच बताओ..."
"मुझसे अब बात मत करना...."वहाँ से उठकर एश जाते हुए बोली...
"जिसका डर था, वही हुआ....ये तो बुरा मान गयी..."वहाँ पर चुप-चाप बैठकर मैं एश को वहाँ से जाते हुए देखता रहा.
मेरे पहले सवाल का जो जवाब एश ने दिया था, मुझे उसके उस जवाब पर भी शक़ था...लेकिन अब तो वो बात करने को भी तैयार नही थी. लेकिन आज मैं ठान के ही आया था कि अपने ये दोनो संदेह दूर करके ही रहूँगा, इसलिए मैं अपनी जगह से उठकर एश के दाए तरफ फिर से बैठ गया....
"तू तो भड़क गयी,इसीलिए मैं तुझे बिल्ली कहता हूँ...और सुन ज़्यादा गुस्सा होने की ज़रूरत नही है,वरना अभिच अपुन पूरे कॉलेज मे ये बात फैला देगा कि तूने मुझे सुबह कॉल करके ब्लॅक मैल किया...ब्लॅक मैल मतलब मैं अपनी तरफ से कोई भी कहानी जोड़ दूँगा और तू तो जानती ही है कि मैं कहानी बनाने मे कितना माहिर हूँ...इसलिए एश जी आपसे नम्र निवेदन है कि आप मुझे मेरे दूसरे प्रश्न का स्पष्ट उत्तर दे...."
"तुम मुझे धमकी देने की कोशिश कर रहे हो...."अपनी आवाज़ तेज़ करते हुए एश बोली...
"मैं धमकी देने की कोशिश नही कर रहा...मैं तो धमकी दे रहा हूँ और आवाज़ थोड़ा नीचे रखो, वरना शुरुआत यही से हो जाएगी..."
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ऑडिटोरियम मे बैठे सभी स्टूडेंट्स जब हमारी तरफ ही देखने लगे तो एश का मुझपर उफान मारता हुआ गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ और वो अपने दाँत चबाते हुए धीरे से बोली....
"कॉलेज ख़त्म होने के बाद पार्किंग मे मिलना ,अभी छत्रपाल सर ऑडिटोरियम मे आ गये है, समझे...."
"इस छत्रु की तो...."मैं पीछे पलटा तो देखा कि छत्रु अपनी कलाई मे बँधी घड़ी मे टाइम देखते हुए सामने स्टेज की तरफ आ रहा था....
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छत्रपाल जी हर दिन की तरह आज भी सामने खड़े हो गये और सबसे वही करवाया ,जो पिछले एक हफ्ते से हो रहा था...पहले-पहल तो मैने छत्रपाल के द्वारा एक पेज पकड़ा कर माइक मे बुलवाने की टेक्नीक पर मैने कुच्छ खास गौर नही किया...लेकिन बाद मे मैने ध्यान देना शुरू किया और जो बात मुझे पता चली वो ये कि छत्रु हमारी प्रॅक्टीस के पहले दिन से ही सेलेक्षन करने लगा था....
छत्रपाल सर स्पीच के दौरान एक दम सामने वाली रो पर बैठ जाते और सामने वाली की टोन ,बोलने की स्टाइल और इंटेरेस्ट पर गौर करते थे. सभी स्टूडेंट्स प्रॅक्टीस के पहले दिन से ही उस दिन का इंतज़ार कर रहे थे कि कब छत्रपाल सर उनमे से 6 को सेलेक्ट करे और 2-2 की टीम बना कर 3 ग्रूप बनाए और वो अपनी फाइनल प्रॅक्टीस शुरू कर सके....लेकिन जैसा मेरा मानना था उसके अनुसार वो 6 लोग तो आज से 2-3 पहले ही सेलेक्ट हो चुके थे.....जिसकी जानकारी सिर्फ़ और सिर्फ़ छत्रु को थी....