hotaks444
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सोना के जाने के बाद ,मैं अरुण के साथ कुच्छ देर वही खड़ा रहा और जैसे ही राजश्री पांडे बाइक निकालकर बाहर आया...हम दोनो बाइक पर बैठकर हॉस्पिटल से निकल लिए....
"एश से पुच्छू क्या बे...बताएगी ना..."
"देख ले...डाइरेक्ट मत पुछ्ना...थोड़ा घूमा-फिरा कर बात करना..."अरुण बोला...
"मैं क्या बोलता हूँ अरमान भाई...एश को सब कुच्छ सच बता दो और फिर पुछो....मुझे पक्का यकीन है कि वो ज़रूर मदद करेगी..."पीछे मुड़कर राजश्री पांडे ने कहा...
"तू लवडे सीधे देखकर बाइक चला और जब मुझे यकीन नही है कि सच बताने से एश हेल्प करेगी तो तुझे कैसे यकीन है बे...चूतिए...अब ,लवडा तुम दोनो मे से कोई कुच्छ मत बोलना,मैं कॉल कर रहा हूँ उसके पास..."
.
मैं हमेशा से यही मानता हुआ चला आ रहा था कि मेरे सामने कोई सी भी दिक्कत...कैसी भी परेशानी आए ,मैं उन सबको बड़ी आसानी से झेल सकता हूँ और मेरा यही भ्रम मुझे उस वक़्त हिम्मत दे रहा था कि मैं कुच्छ ना कुच्छ तो ऐसा सोच ही लूँगा, जो मुझे इस प्राब्लम से बाहर निकालेगा....लोग कहते है कि मुझमे घमंड बहुत है ,मुझे घमंड नही करना चाहिए ,लेकिन अब उनको ये कौन समझाए कि यही घमंड तो है, जो मुझे बुज़दिल नही बनाता......
मैने बाइक पर बैठे-बैठे अपनी आँखे बंद की और फिर लंबी साँस ली....उस वक़्त यूँ आँखे बंद करके अपने फेफड़ो को हवा से भरने मे मुझे अच्छा फील हो रहा था और मेरी बेचैनी भी कम हो रही थी....
"हेलो...."एसा के कॉल रिसीव करते ही मैं बोल पड़ा"मेरे मोबाइल पर अभी दिव्या का मेस्सेज आया था...उसने मुझसे कहा है कि तुम गौतम से प्यार करती हो और फर्स्ट एअर मे तुमने गौतम के लिए स्यूयिसाइड भी किया था...."
"सब पुरानी बात है...तुम ना ही पुछो..."जिस तेज़ी के साथ मैने सवाल किया ,उसी तेज़ी के साथ एश की तरफ से जवाब आया....
"पुरानी दारू और पुरानी घटनाए हमेशा ही असरदार होती है...."
"मैने तुमसे कभी आराधना के बारे मे पुछा, जो तुम मुझसे गौतम के बारे मे पुच्छ रहे हो...."
"अभी डाइलॉग-डाइलॉग खेलने का टाइम नही है.....जल्दी बता,,.."
"पुछते रहो..मैं नही बताने वाली..."
"ठीक है, फिर...मुझसे मिलने एक घंटे बाद सिटी केर मे आ जाना...."
"क्यूँ..."
"क्यूंकी मैं इस वक़्त हॉस्टिल की छत मे खड़ा हूँ और बस कूदने वाला हूँ....ज़िंदा रहा तो मिल लेना ,वरना दूर से देखकर चले जाना...."मोबाइल को थोड़ी दूर ले जाते हुए मैने पांडे जी से कहा"बाइक रोक साइड मे और मेरा नाम चिल्लाना..."
" तो मैं कहाँ था...हां याद आया, मैं स्यूयिसाइड करने वाला था...मुझे जब से दिव्या ने ये मेस्सेज किया है तबसे दो-तीन हार्ट अटॅक आ चुके है...पानी पीता हूँ तो प्यास और लगती है, खाना ख़ाता हूँ तो भूख और बढ़ती है....जल्दी से बता,वरना बस मैं कूदने ही वाला हूँ...."
"चिल्लाओ बे..."राजश्री पांडे को एक झापड़ मारकर मैने कहा और मेरा झापड़ खाकर वो तुरंत चिल्लाने लगा....
"अरमान भाई....अरमान भाई.....अरमान भाई...."
"बोसे ड्के नाम ही लेता रहेगा या आगे भी कुच्छ बोलेगा...."दूसरा झापड़ मारकर मैं धीरे से बोला...
"अरमान भाई...नीचे आ जाओ, वरना गिरोगे तो हाथ पैर टूट जाएँगे..."
"अबे हाथ ,पैर नही...मैं मर जाउन्गा सीधे ये बोल..."
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राजश्री पांडे ने वैसा ही बोला ,जिसे सुनने के बाद एश की जीभ लड़खड़ाने लगी और मैं समझ गया कि आराधना के स्यूयिसाइड से बचने के लिए मुझे अपने स्यूयिसाइड का खेल बस थोड़ी देर तक और जारी रखना है...
"अब बोलती है या मैं जंप मारू..."
"ठीक है.....तुम पहले वापस नीचे उतर जाओ....वो गौतम ने मुझे छोड़ने की धमकी दी थी...इसलिए मैने स्यूयिसाइड किया था..."
"बस इतना ही...हाउ बोरिंग. मैने सोचा कुच्छ इंट्रेस्टिंग मॅटर रहा होगा....उसके बाद क्या हुआ..."
"उसके बाद मैं हॉस्पिटल मे कुच्छ दिन रही और फिर वापस घर आ गयी..."
"कोई केस नही किया था तुमने या तुम्हारे घरवालो ने..."मुद्दे पर आते हुए मैने एश से पुच्छा...
"नही...शुरू मे शायद मेरे डॅड ने एफआईआर की थी ,गौतम के खिलाफ...लेकिन उनके लॉयर ने मेरे बचने के बाद मेरे डॅड को केस वापस लेने के लिए कन्विन्स कर लिया....दट'स ऑल"
"फोन रख अब....बाद मे बात करता हूँ...चल बाइ."
"अरे...ऐसे कैसे..."एश कुच्छ और बोलती उससे पहले ही मैने कॉल डिसकनेक्ट कर दिया और अरुण को घसीट कर अपनी तरफ खींचते हुए बोला"तू अपने पहचान वाले जिस लॉयर की बात कर रहा था ना,उसे फोन करके उसके पैर पकड़ ले और पूरा मॅटर बक डाल..."
"अभिच कॉल करू"
"नही...अभी क्यूँ कॉल करेगा...एक साल बाद करना.."
"वो तो मैं इसलिए पुच्छ रहा था क्यूंकी वो तेरी तरह फ़िज़ूल इंसान नही है...आड्वोकेट है वो..."
"अरुण भाई...आड्वोकेट क्या करेगा इस मॅटर मे ,लॉयर को कॉल करो...जो काला कोट पहन कर अदालत मे जाता है..."
"अबे चूतिए....."कॉल करते हुए अरुण मुझसे बोला"इसको समझा कुच्छ..."
"तू इधर आ साइड मे..."राजश्री पांडे को थोड़ी दूर लाते हुए मैने कहा"आड्वोकेट भी लॉयर ही होता है बे , लवडे...."
"मतलब..."
"अब मतलब कैसे समझाऊ तुझे....मतलब जाए गान्ड मारने अभी तू चुप रह, हॉस्टिल जाकर गूगले महाराज से पुच्छ लेना..."
.
एश से बात करने पर मुझे कुच्छ खास मदद नही मिली क्यूंकी लॉयर वाला आइडिया तो मेरे दिमाग़ मे पहले ही आ गया था...लेकिन एश से बात करने के बाद जो मुझे पता चला वो ये कि , मैं अब बुरी तरह से फस गया हूँ क्यूंकी एश के केस मे उसके डॅड ने कॉंप्रमाइज़ कर लिया था और एश ज़िंदा भी बच गयी थी .मेरे केस मे फिलहाल अभी तो ऐसा कुच्छ भी नही था...क्यूंकी ना तो आराधना का बाप मुझसे कॉंप्रमाइज़ करने वाला था और ना ही अभी ये श्योर था कि आराधना ज़िंदा बच जाएगी....
"भट्टी भैया बोल रहे है कि पोलीस यदि तुझे लेने आए तो भागना मत और चुप-चाप उनके साथ चले जाना...."
"ये तो मैं ऑलरेडी करने वाला था....आगे बोल और ये कैसा नाम है...भट्टी"
"अबे भट्टी उन्हे प्यार से कहते है...उनका पूरा नाम भारत त्रिवेदी है...भट्टी भैया बोल रहे थे कि तू पोलीस को सब कुच्छ सच मत बताना मतलब तू पोलीस से ये बोलना कि आराधना ही तुझे परेशान कर रही थी....तेरे और आराधना के बीच सेक्स हुआ है, इसका ज़िकरा तो बिल्कुल भी मत करना....बाकी भट्टी भैया कुच्छ घंटे मे हॉस्टिल आ जाएँगे..."
"तो मुझे करना ये है कि अब मैं चुप-चाप हॉस्टिल जाउ और वही पड़ा रहूं....है ना..."
"हां..."
"तो चल....अब थोड़ा बेटर फील कर रहा हूँ..."
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यदि मुझे मालूम होता कि मेरे छोड़ने के बाद आराधना ऐसा गुल खिलाएगी तो मैं कभी उसे देखता तक नही...कभी उससे बात तक नही करता. वो तो मेरी ही किस्मत फूटी थी जो मैं उसकी रॅगिंग के वक़्त वहाँ कॅंटीन मे मौज़ूद था...जिसके बाद हम दोनो की बात-चीत चली.ये बात-चीत वही दब जाती लेकिन फिर एश के कारण मेरे अंदर आंकरिंग करने का कीड़ा जागा और वहाँ मुझे फिर आराधना मिली...जिसके बाद एक-दिन मेरे मुँह से एश के लिए 'आइ लव यू' निकल गया और मैने आराधना से बेतहाशा प्यार करने का एक्सक्यूस दे मारा, लेकिन मुझे क्या पता था कि मेरा वो एक्सक्यूस एक दिन मुझपर ही अक्क्यूज़ बनकर बरसेगा...जो हुआ सो हुआ ,सब कुच्छ तब भी ठीक हो सकता था लेकिन मुझे ही आराधना को छोड़ने की कुच्छ ज़्यादा ललक थी और मेरे उस वर्ब मे कल्लू के चॅलेंज ने हेल्पिंग वर्ब का काम किया....
हॉस्टिल आते समय बाइक मैं चला रहा था और साथ मे ये भी सोच रहा था कि कितना फास्ट हूँ मैं, अभी मेरे खिलाफ कोई केस तक नही बना और इधर मैने उससे बचने का रास्ता भी बना लिया लेकिन मेरी सोच मुझपर तब भारी पड़ी...जब हॉस्टिल पहुचने के कुच्छ देर बाद ही पोलीस की जीप घरघराते हुए हॉस्टिल के सामने खड़ी हुई....कयि पोलीस वाले हॉस्टिल के अंदर घुसे और जितनों को देखा उन्हे पकड़ कर बाहर निकाला और ज़मीन पर बैठा दिया....
"बहुत चर्बी बढ़ गयी है तुम लोगो के अंदर जो साले आए दिन हर किसी को मारते फिरते हो....आज बेटा कलेक्टर के लड़के को मारकर फसे हो जाल मे...अभी थाने लेजकर तुम लोगो की सारी चर्बी उतारता हूँ...."अपनी जेब से काग़ज़ का एक टुकड़ा निकाल कर एक पोलीस वाले ने कहा"मैं जिनके-जिनके नाम लूँगा...वो जाकर जीप मे बैठ जाए...."
"अरमान....अरुण....सौरभ...राजश्री पांडे....उमेश....संतोष...बृजेश....सूरज प्रताप...राधेलाल...सब यही पर है..."
जवाब मे वहाँ मौज़ूद लौन्डो ने अपना हाथ उठा दिया...जीप के पीछे वाली सीट पर आराम से 4 और मुश्किल से सिर्फ़ 6 लोग ही बैठ सकते थे...लेकिन उन सालो ने बोरियो की तरह दस लोगो को दबा-दबा कर भरा....कौन कितना डर रहा था ,किसकी कितनी फटी थी...ये हम मे से कोई नही जानता था...लेकिन इतना तो ज़रूर था कि जिन 10 लड़को को पोलीस ने पकड़ा था उनमे से कोई थाने ले जाते वक़्त रोया नही और ना ही किसी ने पोलीस के सामने अपने हाथ जोड़े...बीसी सब रोल से जीप मे ऐसे बैठे जैसे उन्हे पोलीस स्टेशन नही बल्कि किसी फंक्षन मे ले जाने के लिए ऐज आ चीफ गेस्ट इन्वाइट किया गया हो....
दुनिया मे कुच्छ भी करो, किसी के लिए भी करो ,कैसे भी करो...सबसे ज़्यादा इंपॉर्टेंट होता है उसकी शुरुआत और उससे भी ज़्यादा इंपॉर्टेंट होता है उस शुरुआत का अंत.फिर चाहे वो कोई साइन्स प्रॉजेक्ट हो या फिर कोई एग्ज़ॅम...फिर चाहे वो प्यार करना हो या फिर मूठ मारना...हर एक करता, हर एक करम और हर एक कारण मे ये फिट बैठता है...
मेरे कॉलेज लाइफ की शुरुआत एक दम झान्ट हुई थी ,ये मुझे मालूम था लेकिन मेरी कॉलेज लाइफ का अंत भी झाटु होगा ,ये मुझे नही मालूम था...बिल्कुल भी नही...ज़रा सा भी नही...एलेक्ट्रान के साइज़ के बराबर भी नही. यदि 8थ सेमेस्टर को निचोड़ा जाए तो बहुत से ऐसे रीज़न मालूम होंगे...जिसके चलते वो सब कुच्छ हुआ, जिसे बिल्कुल भी नही होना चाहिए था....जैसे कॉलेज के 50 साल उसी साल पूरे हुए, जब मैं फाइनल एअर मे था और प्रिंसीपल ने पूरे फाइनल एअर को ऑडिटोरियम मे बुलाकर गोल्डन जुबिली के फंक्षन की जानकारी दी...फिर च्छत्रु महोदय बीच मे अपने आंकरिंग का ढिंढोरा पीटने के लिए आ गये और एश के करीब जाने की चाह मे मैं भी आंकरिंग करने घुस गया.
एश और मैने पूरे सात सेमेस्टर एक-दूसरे को इग्नोर मारकर गुज़रा था लेकिन उस 8थ सेमेस्टर मे आंकरिंग के चलते हम-दोनो के बीच जो गिले-शिकवे थे सब दूर हो गये....पूरे सात सेमेस्टर एश के मुँह से फ्रेंड...दोस्त का एक लफ्ज़ भी मेरे लिए नही निकला ,लेकिन 8थ सेमेस्टर मे उसने डाइरेक्ट 'आइ लव यू' बोल डाला....आंकरिंग के दौरान ही ऑडिटोरियम मे देखते ही देखते आराधना मेरी लवर बन गयी, बीसी जहाँ सात सेमेस्टर मेरी रियल लाइफ मे कोई लड़की नही थी...अरे रियल लाइफ गयी भाड़ मे मेरे तो फ़ेसबुक लाइफ मे भी कोई लड़की नही थी वही 8थ सेमेस्टर मे एक ज़िंदा हाड़-माँस की लड़की को मेरे सामने परोस दिया गया...
और तो और आंकरिंग की वजह से ही फेरवेल के दिन मेरी ज़िंदगी मे कलेक्टर का लौंडा घुसा.कुल मिलाकर कहे तो सारे फ़साद की जड़ आंकरिंग ही थी...क्यूंकी यदि मेरे अंदर आंकरिंग करने का कीड़ा ना पैदा हुआ होता तो ना तो एश और मैं एक दूसरे से कभी बात करते और ना ही आराधना मेरी कभी गर्लफ्रेंड बनती और ना ही कलेक्टर के लौन्डे से मेरी कभी मुलाक़ात होती, क्यूंकी मेरे आंकरिंग ना करने की सिचुयेशन मे हॉस्टिल और सिटी के स्टूडेंट्स का फेरवेल अलग-अलग होता.......................
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पोलीस स्टेशन पहुचते ही हम सबको लॉक अप के अंदर डाल दिया गया...कयि घंटे हम सब लॉक अप मे एक साथ बंद रहे ,लेकिन हम मे से कोई कुच्छ नही बोला....सब ऐसे बिहेव कर रहे थे जैसे कोई एक-दूसरो को जानता तक ना हो या फिर सब गुंगे बहरे हो गये थे...
"क्या ये सब मेरी वजह से हुआ है..."उन सबको ऐसे शांत किसी सोच मे डूबा हुआ देख मैने खुद से कहा"नही...यदि ये लोग मुझे कसूरवार मानते तो कबका अरुण मुझसे भिड़ गया होता...वैसे मैने किया भी क्या है, ये सब तो होता रहता है...यदि मैं उन लोगो को नही मारता तो वो लोग मुझे मारते...नोप, मैने कुच्छ ग़लत नही किया ,मैं कुच्छ ग़लत कर भी नही सकता..."
"तुम मे से अरमान कौन है...."मेरे ध्यान मे विघ्न डालते हुए एक कॉन्स्टेबल ने लॉकप के बाहर से पुछा...
"मैं हूँ..."अपना एक हाथ खड़ा करते हुए मैने जवाब दिया...
"चल बाहर आ....एस.पी. साहब बुला रहे है..."
"एस.पी.....ये तो अपना ही आदमी है. दो-चार नसीहत देकर छोड़ देगा...बच गये लवडा..."एस.पी. का नाम सुनकर मेरे अंदर यही ख़याल आया और मैं तुरंत उठकर कॉन्स्टेबल के पीछे चल दिया...
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"नमस्ती सर..."एस.पी. को देखकर मैं बोला...
"चल बैठ..."
"धन्यवाद सर..."झटके से चेयर खींच कर मैं ऐसे बैठा जैसे अभी थोड़ी ही देर के बाद हम दोनो मिलकर दो-दो पेग मारेंगे....
मेरी नज़र मे आर.एल.डांगी यानी कि अपने पोलीस अधीक्षक की जो छवि थी ,वो एक बहुत ही सज्जन पुरुष की थी...एक दम सीधा-साधा जीवन, शांत स्वाभाव...सरल व्यवहार...अत्यंत दयालु...कुल मिलाकर मैं आर.एल.डांगी को एक बहुत ही नेक दिल इंसान समझता था, लेकिन मेरी ये ग़लतफहमी उस दिन दूर गयी...
"एश से पुच्छू क्या बे...बताएगी ना..."
"देख ले...डाइरेक्ट मत पुछ्ना...थोड़ा घूमा-फिरा कर बात करना..."अरुण बोला...
"मैं क्या बोलता हूँ अरमान भाई...एश को सब कुच्छ सच बता दो और फिर पुछो....मुझे पक्का यकीन है कि वो ज़रूर मदद करेगी..."पीछे मुड़कर राजश्री पांडे ने कहा...
"तू लवडे सीधे देखकर बाइक चला और जब मुझे यकीन नही है कि सच बताने से एश हेल्प करेगी तो तुझे कैसे यकीन है बे...चूतिए...अब ,लवडा तुम दोनो मे से कोई कुच्छ मत बोलना,मैं कॉल कर रहा हूँ उसके पास..."
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मैं हमेशा से यही मानता हुआ चला आ रहा था कि मेरे सामने कोई सी भी दिक्कत...कैसी भी परेशानी आए ,मैं उन सबको बड़ी आसानी से झेल सकता हूँ और मेरा यही भ्रम मुझे उस वक़्त हिम्मत दे रहा था कि मैं कुच्छ ना कुच्छ तो ऐसा सोच ही लूँगा, जो मुझे इस प्राब्लम से बाहर निकालेगा....लोग कहते है कि मुझमे घमंड बहुत है ,मुझे घमंड नही करना चाहिए ,लेकिन अब उनको ये कौन समझाए कि यही घमंड तो है, जो मुझे बुज़दिल नही बनाता......
मैने बाइक पर बैठे-बैठे अपनी आँखे बंद की और फिर लंबी साँस ली....उस वक़्त यूँ आँखे बंद करके अपने फेफड़ो को हवा से भरने मे मुझे अच्छा फील हो रहा था और मेरी बेचैनी भी कम हो रही थी....
"हेलो...."एसा के कॉल रिसीव करते ही मैं बोल पड़ा"मेरे मोबाइल पर अभी दिव्या का मेस्सेज आया था...उसने मुझसे कहा है कि तुम गौतम से प्यार करती हो और फर्स्ट एअर मे तुमने गौतम के लिए स्यूयिसाइड भी किया था...."
"सब पुरानी बात है...तुम ना ही पुछो..."जिस तेज़ी के साथ मैने सवाल किया ,उसी तेज़ी के साथ एश की तरफ से जवाब आया....
"पुरानी दारू और पुरानी घटनाए हमेशा ही असरदार होती है...."
"मैने तुमसे कभी आराधना के बारे मे पुछा, जो तुम मुझसे गौतम के बारे मे पुच्छ रहे हो...."
"अभी डाइलॉग-डाइलॉग खेलने का टाइम नही है.....जल्दी बता,,.."
"पुछते रहो..मैं नही बताने वाली..."
"ठीक है, फिर...मुझसे मिलने एक घंटे बाद सिटी केर मे आ जाना...."
"क्यूँ..."
"क्यूंकी मैं इस वक़्त हॉस्टिल की छत मे खड़ा हूँ और बस कूदने वाला हूँ....ज़िंदा रहा तो मिल लेना ,वरना दूर से देखकर चले जाना...."मोबाइल को थोड़ी दूर ले जाते हुए मैने पांडे जी से कहा"बाइक रोक साइड मे और मेरा नाम चिल्लाना..."
" तो मैं कहाँ था...हां याद आया, मैं स्यूयिसाइड करने वाला था...मुझे जब से दिव्या ने ये मेस्सेज किया है तबसे दो-तीन हार्ट अटॅक आ चुके है...पानी पीता हूँ तो प्यास और लगती है, खाना ख़ाता हूँ तो भूख और बढ़ती है....जल्दी से बता,वरना बस मैं कूदने ही वाला हूँ...."
"चिल्लाओ बे..."राजश्री पांडे को एक झापड़ मारकर मैने कहा और मेरा झापड़ खाकर वो तुरंत चिल्लाने लगा....
"अरमान भाई....अरमान भाई.....अरमान भाई...."
"बोसे ड्के नाम ही लेता रहेगा या आगे भी कुच्छ बोलेगा...."दूसरा झापड़ मारकर मैं धीरे से बोला...
"अरमान भाई...नीचे आ जाओ, वरना गिरोगे तो हाथ पैर टूट जाएँगे..."
"अबे हाथ ,पैर नही...मैं मर जाउन्गा सीधे ये बोल..."
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राजश्री पांडे ने वैसा ही बोला ,जिसे सुनने के बाद एश की जीभ लड़खड़ाने लगी और मैं समझ गया कि आराधना के स्यूयिसाइड से बचने के लिए मुझे अपने स्यूयिसाइड का खेल बस थोड़ी देर तक और जारी रखना है...
"अब बोलती है या मैं जंप मारू..."
"ठीक है.....तुम पहले वापस नीचे उतर जाओ....वो गौतम ने मुझे छोड़ने की धमकी दी थी...इसलिए मैने स्यूयिसाइड किया था..."
"बस इतना ही...हाउ बोरिंग. मैने सोचा कुच्छ इंट्रेस्टिंग मॅटर रहा होगा....उसके बाद क्या हुआ..."
"उसके बाद मैं हॉस्पिटल मे कुच्छ दिन रही और फिर वापस घर आ गयी..."
"कोई केस नही किया था तुमने या तुम्हारे घरवालो ने..."मुद्दे पर आते हुए मैने एश से पुच्छा...
"नही...शुरू मे शायद मेरे डॅड ने एफआईआर की थी ,गौतम के खिलाफ...लेकिन उनके लॉयर ने मेरे बचने के बाद मेरे डॅड को केस वापस लेने के लिए कन्विन्स कर लिया....दट'स ऑल"
"फोन रख अब....बाद मे बात करता हूँ...चल बाइ."
"अरे...ऐसे कैसे..."एश कुच्छ और बोलती उससे पहले ही मैने कॉल डिसकनेक्ट कर दिया और अरुण को घसीट कर अपनी तरफ खींचते हुए बोला"तू अपने पहचान वाले जिस लॉयर की बात कर रहा था ना,उसे फोन करके उसके पैर पकड़ ले और पूरा मॅटर बक डाल..."
"अभिच कॉल करू"
"नही...अभी क्यूँ कॉल करेगा...एक साल बाद करना.."
"वो तो मैं इसलिए पुच्छ रहा था क्यूंकी वो तेरी तरह फ़िज़ूल इंसान नही है...आड्वोकेट है वो..."
"अरुण भाई...आड्वोकेट क्या करेगा इस मॅटर मे ,लॉयर को कॉल करो...जो काला कोट पहन कर अदालत मे जाता है..."
"अबे चूतिए....."कॉल करते हुए अरुण मुझसे बोला"इसको समझा कुच्छ..."
"तू इधर आ साइड मे..."राजश्री पांडे को थोड़ी दूर लाते हुए मैने कहा"आड्वोकेट भी लॉयर ही होता है बे , लवडे...."
"मतलब..."
"अब मतलब कैसे समझाऊ तुझे....मतलब जाए गान्ड मारने अभी तू चुप रह, हॉस्टिल जाकर गूगले महाराज से पुच्छ लेना..."
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एश से बात करने पर मुझे कुच्छ खास मदद नही मिली क्यूंकी लॉयर वाला आइडिया तो मेरे दिमाग़ मे पहले ही आ गया था...लेकिन एश से बात करने के बाद जो मुझे पता चला वो ये कि , मैं अब बुरी तरह से फस गया हूँ क्यूंकी एश के केस मे उसके डॅड ने कॉंप्रमाइज़ कर लिया था और एश ज़िंदा भी बच गयी थी .मेरे केस मे फिलहाल अभी तो ऐसा कुच्छ भी नही था...क्यूंकी ना तो आराधना का बाप मुझसे कॉंप्रमाइज़ करने वाला था और ना ही अभी ये श्योर था कि आराधना ज़िंदा बच जाएगी....
"भट्टी भैया बोल रहे है कि पोलीस यदि तुझे लेने आए तो भागना मत और चुप-चाप उनके साथ चले जाना...."
"ये तो मैं ऑलरेडी करने वाला था....आगे बोल और ये कैसा नाम है...भट्टी"
"अबे भट्टी उन्हे प्यार से कहते है...उनका पूरा नाम भारत त्रिवेदी है...भट्टी भैया बोल रहे थे कि तू पोलीस को सब कुच्छ सच मत बताना मतलब तू पोलीस से ये बोलना कि आराधना ही तुझे परेशान कर रही थी....तेरे और आराधना के बीच सेक्स हुआ है, इसका ज़िकरा तो बिल्कुल भी मत करना....बाकी भट्टी भैया कुच्छ घंटे मे हॉस्टिल आ जाएँगे..."
"तो मुझे करना ये है कि अब मैं चुप-चाप हॉस्टिल जाउ और वही पड़ा रहूं....है ना..."
"हां..."
"तो चल....अब थोड़ा बेटर फील कर रहा हूँ..."
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यदि मुझे मालूम होता कि मेरे छोड़ने के बाद आराधना ऐसा गुल खिलाएगी तो मैं कभी उसे देखता तक नही...कभी उससे बात तक नही करता. वो तो मेरी ही किस्मत फूटी थी जो मैं उसकी रॅगिंग के वक़्त वहाँ कॅंटीन मे मौज़ूद था...जिसके बाद हम दोनो की बात-चीत चली.ये बात-चीत वही दब जाती लेकिन फिर एश के कारण मेरे अंदर आंकरिंग करने का कीड़ा जागा और वहाँ मुझे फिर आराधना मिली...जिसके बाद एक-दिन मेरे मुँह से एश के लिए 'आइ लव यू' निकल गया और मैने आराधना से बेतहाशा प्यार करने का एक्सक्यूस दे मारा, लेकिन मुझे क्या पता था कि मेरा वो एक्सक्यूस एक दिन मुझपर ही अक्क्यूज़ बनकर बरसेगा...जो हुआ सो हुआ ,सब कुच्छ तब भी ठीक हो सकता था लेकिन मुझे ही आराधना को छोड़ने की कुच्छ ज़्यादा ललक थी और मेरे उस वर्ब मे कल्लू के चॅलेंज ने हेल्पिंग वर्ब का काम किया....
हॉस्टिल आते समय बाइक मैं चला रहा था और साथ मे ये भी सोच रहा था कि कितना फास्ट हूँ मैं, अभी मेरे खिलाफ कोई केस तक नही बना और इधर मैने उससे बचने का रास्ता भी बना लिया लेकिन मेरी सोच मुझपर तब भारी पड़ी...जब हॉस्टिल पहुचने के कुच्छ देर बाद ही पोलीस की जीप घरघराते हुए हॉस्टिल के सामने खड़ी हुई....कयि पोलीस वाले हॉस्टिल के अंदर घुसे और जितनों को देखा उन्हे पकड़ कर बाहर निकाला और ज़मीन पर बैठा दिया....
"बहुत चर्बी बढ़ गयी है तुम लोगो के अंदर जो साले आए दिन हर किसी को मारते फिरते हो....आज बेटा कलेक्टर के लड़के को मारकर फसे हो जाल मे...अभी थाने लेजकर तुम लोगो की सारी चर्बी उतारता हूँ...."अपनी जेब से काग़ज़ का एक टुकड़ा निकाल कर एक पोलीस वाले ने कहा"मैं जिनके-जिनके नाम लूँगा...वो जाकर जीप मे बैठ जाए...."
"अरमान....अरुण....सौरभ...राजश्री पांडे....उमेश....संतोष...बृजेश....सूरज प्रताप...राधेलाल...सब यही पर है..."
जवाब मे वहाँ मौज़ूद लौन्डो ने अपना हाथ उठा दिया...जीप के पीछे वाली सीट पर आराम से 4 और मुश्किल से सिर्फ़ 6 लोग ही बैठ सकते थे...लेकिन उन सालो ने बोरियो की तरह दस लोगो को दबा-दबा कर भरा....कौन कितना डर रहा था ,किसकी कितनी फटी थी...ये हम मे से कोई नही जानता था...लेकिन इतना तो ज़रूर था कि जिन 10 लड़को को पोलीस ने पकड़ा था उनमे से कोई थाने ले जाते वक़्त रोया नही और ना ही किसी ने पोलीस के सामने अपने हाथ जोड़े...बीसी सब रोल से जीप मे ऐसे बैठे जैसे उन्हे पोलीस स्टेशन नही बल्कि किसी फंक्षन मे ले जाने के लिए ऐज आ चीफ गेस्ट इन्वाइट किया गया हो....
दुनिया मे कुच्छ भी करो, किसी के लिए भी करो ,कैसे भी करो...सबसे ज़्यादा इंपॉर्टेंट होता है उसकी शुरुआत और उससे भी ज़्यादा इंपॉर्टेंट होता है उस शुरुआत का अंत.फिर चाहे वो कोई साइन्स प्रॉजेक्ट हो या फिर कोई एग्ज़ॅम...फिर चाहे वो प्यार करना हो या फिर मूठ मारना...हर एक करता, हर एक करम और हर एक कारण मे ये फिट बैठता है...
मेरे कॉलेज लाइफ की शुरुआत एक दम झान्ट हुई थी ,ये मुझे मालूम था लेकिन मेरी कॉलेज लाइफ का अंत भी झाटु होगा ,ये मुझे नही मालूम था...बिल्कुल भी नही...ज़रा सा भी नही...एलेक्ट्रान के साइज़ के बराबर भी नही. यदि 8थ सेमेस्टर को निचोड़ा जाए तो बहुत से ऐसे रीज़न मालूम होंगे...जिसके चलते वो सब कुच्छ हुआ, जिसे बिल्कुल भी नही होना चाहिए था....जैसे कॉलेज के 50 साल उसी साल पूरे हुए, जब मैं फाइनल एअर मे था और प्रिंसीपल ने पूरे फाइनल एअर को ऑडिटोरियम मे बुलाकर गोल्डन जुबिली के फंक्षन की जानकारी दी...फिर च्छत्रु महोदय बीच मे अपने आंकरिंग का ढिंढोरा पीटने के लिए आ गये और एश के करीब जाने की चाह मे मैं भी आंकरिंग करने घुस गया.
एश और मैने पूरे सात सेमेस्टर एक-दूसरे को इग्नोर मारकर गुज़रा था लेकिन उस 8थ सेमेस्टर मे आंकरिंग के चलते हम-दोनो के बीच जो गिले-शिकवे थे सब दूर हो गये....पूरे सात सेमेस्टर एश के मुँह से फ्रेंड...दोस्त का एक लफ्ज़ भी मेरे लिए नही निकला ,लेकिन 8थ सेमेस्टर मे उसने डाइरेक्ट 'आइ लव यू' बोल डाला....आंकरिंग के दौरान ही ऑडिटोरियम मे देखते ही देखते आराधना मेरी लवर बन गयी, बीसी जहाँ सात सेमेस्टर मेरी रियल लाइफ मे कोई लड़की नही थी...अरे रियल लाइफ गयी भाड़ मे मेरे तो फ़ेसबुक लाइफ मे भी कोई लड़की नही थी वही 8थ सेमेस्टर मे एक ज़िंदा हाड़-माँस की लड़की को मेरे सामने परोस दिया गया...
और तो और आंकरिंग की वजह से ही फेरवेल के दिन मेरी ज़िंदगी मे कलेक्टर का लौंडा घुसा.कुल मिलाकर कहे तो सारे फ़साद की जड़ आंकरिंग ही थी...क्यूंकी यदि मेरे अंदर आंकरिंग करने का कीड़ा ना पैदा हुआ होता तो ना तो एश और मैं एक दूसरे से कभी बात करते और ना ही आराधना मेरी कभी गर्लफ्रेंड बनती और ना ही कलेक्टर के लौन्डे से मेरी कभी मुलाक़ात होती, क्यूंकी मेरे आंकरिंग ना करने की सिचुयेशन मे हॉस्टिल और सिटी के स्टूडेंट्स का फेरवेल अलग-अलग होता.......................
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पोलीस स्टेशन पहुचते ही हम सबको लॉक अप के अंदर डाल दिया गया...कयि घंटे हम सब लॉक अप मे एक साथ बंद रहे ,लेकिन हम मे से कोई कुच्छ नही बोला....सब ऐसे बिहेव कर रहे थे जैसे कोई एक-दूसरो को जानता तक ना हो या फिर सब गुंगे बहरे हो गये थे...
"क्या ये सब मेरी वजह से हुआ है..."उन सबको ऐसे शांत किसी सोच मे डूबा हुआ देख मैने खुद से कहा"नही...यदि ये लोग मुझे कसूरवार मानते तो कबका अरुण मुझसे भिड़ गया होता...वैसे मैने किया भी क्या है, ये सब तो होता रहता है...यदि मैं उन लोगो को नही मारता तो वो लोग मुझे मारते...नोप, मैने कुच्छ ग़लत नही किया ,मैं कुच्छ ग़लत कर भी नही सकता..."
"तुम मे से अरमान कौन है...."मेरे ध्यान मे विघ्न डालते हुए एक कॉन्स्टेबल ने लॉकप के बाहर से पुछा...
"मैं हूँ..."अपना एक हाथ खड़ा करते हुए मैने जवाब दिया...
"चल बाहर आ....एस.पी. साहब बुला रहे है..."
"एस.पी.....ये तो अपना ही आदमी है. दो-चार नसीहत देकर छोड़ देगा...बच गये लवडा..."एस.पी. का नाम सुनकर मेरे अंदर यही ख़याल आया और मैं तुरंत उठकर कॉन्स्टेबल के पीछे चल दिया...
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"नमस्ती सर..."एस.पी. को देखकर मैं बोला...
"चल बैठ..."
"धन्यवाद सर..."झटके से चेयर खींच कर मैं ऐसे बैठा जैसे अभी थोड़ी ही देर के बाद हम दोनो मिलकर दो-दो पेग मारेंगे....
मेरी नज़र मे आर.एल.डांगी यानी कि अपने पोलीस अधीक्षक की जो छवि थी ,वो एक बहुत ही सज्जन पुरुष की थी...एक दम सीधा-साधा जीवन, शांत स्वाभाव...सरल व्यवहार...अत्यंत दयालु...कुल मिलाकर मैं आर.एल.डांगी को एक बहुत ही नेक दिल इंसान समझता था, लेकिन मेरी ये ग़लतफहमी उस दिन दूर गयी...