Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन - Page 4 - SexBaba
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Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन

रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -21 
गतान्क से आगे... 

मेरी योनि पर उगे हल्के बालों को देख कर तो दमले पागल हो गया. उसका मुँह खुला का खुला रह गया. बाकी लोगों की भी आँखे फटी रह गयी थी. फिर दमले ने मुझे उपर से नीचे तक निहारते हुए अपने रंग कोई बॉटल से रंग निकाला और मेरे सामने घुटनो के बल बैठ कर पहले उसने रंग मेरी चिकनी टाँगों पर और जांघों पर लगाए. फिर कुच्छ रंग हाथों मे ले कर मेरे नितंबों पर मले. सबसे आख़िरी मे उसने मेरी योनि के उपर रंग लगाया. मैं अब अपना विरोध पूरी तरह समाप्त कर चुकी थी. अब मैने अपने हथियार डाल दिए थे. अब मैने अपने आप को किस्मेत के भरोसे छ्चोड़ दिया था. मैं जानती थी कि इन से आज बच पाना मेरे बस मे नही थी. मैं मचल रही थी मगर उससे ज़्यादा कुच्छ भी नही कर पा रही थी. 



एक आख़िरी कोशिश करती हुई अचानक उसके एक हाथ को मैने काट खाया. दमले मेरी इस हरकत से बुरी तरह नाराज़ हो गया. उसने एक ज़ोर दार थप्पड़ मेरे गाल पर लगाया. उसका थप्पड़ इतना जबरदस्त था कि मुझे लगा कि मेरे दाँत टूट गये होंगे. उसने मेरे बालों को मुट्ठी मे भर कर इतनी ज़ोर से खींचा कि कुच्छ बॉल मेरे सिर से टूट कर अलग हो गये. उसने मेरे दोनो गाल्लों पर कस कस कर दो चार झापड़ लगाए. मैं दर्द से रोने लगी. सारे गुंडे हंस रहे थे.



“यारों तुम लोग अपनी भाभी से होली नही खेलोगे क्या?” दमले मुझे छ्चोड़ कर खड़े होते हुए कहा. 



बस इतना कहना था कि सारे गुंडे मुझ पर टूट पड़े कोई मेरी जांघों को मसल रहा था तो कोई मेरे स्तनो को. कोई मेरी गुदा मे उंगली डाल रहा था तो किसी की उंगली मेरी चूत के अंदर घूम रही थी. मुझे सब लोगो ने मिल कर बुरी तरह मसल दिया. सारे मर्द मेरे जिस्म से जोंक की तरह चिपक गये थे. काफ़ी देर तक मेरे बदन को इस तरह नोचने के बाद जब दमले ने उनको मेरे पास से हटाया तो मैने लड़खड़ाते हुए दमले के बाँहो का ही सहारा ले लिया. उसने खुश होकर मेरे नंगे बदन को अपने चौड़े सीने पर दाब लिया. 



“च्च्च…क्या बुरी गत बनाई है तुम लोगों ने इसकी. किसी नाज़ुक कली को इस तरह से मसला जाता है क्या. साले तुम लोग रहोगे जंगली के जंगली. ये प्यार करने की चीज़ है तुम लोग तो इसको मार ही डालते.” दमले ने उन्हे बनावटी झिड़कियाँ देते हुए कहा. 

फिर उसने मुझे अपनी बाँहों मे उठा लिया. अपने बाकी साथियों को वहीं छ्चोड़ कर वो मुझे लेकर आगे बढ़ा. 



“ मेरी जान चलो अब मैं तुम्हे नहला कर सॉफ कर देता हूँ नही तो आगे के खेल मे मज़ा नही आएगा. ऐसी रंगी पूती को कैसे प्यार करूँगा.” कह कर वो मुझे बाथरूम मे ले गया. 



बाथरूम मे घुस कर उसने अपने सारे कपड़े भी उतार दिए. मैं तो पहले से ही बिल्कुल नंगी थी. उसने पहले मुझे नहलाया साबुन रगड़ रगड़ कर बदन से सारे रंग को निकाला. इस कोशिश मे मेरे बदन के हर अंग को उसने खूब मसला. मैं चुपचाप सब कुच्छ सहती रही. मुझमे और मार खाने की हिम्मत नही बची थी. मैं लगातार सुबक्ती रही. 



जब उसने मुझे खींच कर खड़ी किया तो मैने देखा उसका लंड खड़ा हो गया था. होता भी क्यों ना. पंद्रह मिनिट से एक नंगी महिला के बदन को मसले जो जा रहा था. 



उसने मुझे दीवार पर हाथ रख कर थोड़ा सामने की ओर झुकाया. फिर पीछे की तरफ से मेरे नितंबों से चिपक गया. उसका लिंग मेरे नितंबों के बीच की दरार पर ठोकर मार रहा था. मैने अपने दोनो नितंबों को सख़्त कर लिया जिससे वो मेरी गुदा मे अपना लंड ना डाल सके. 



उसने अपनी गीली उंगलियों से मेरी चूत को सहलाया. उसने एक एक करके अपनी दो उंगलियाँ मेरी चूत मे डाल दी. मैं उसके इस हमले से सिहर उठी. उसकी उंगलियाँ मेरी योनि के अंदर तक जा रही थी. 
 
“वाह क्या मस्त माल है…..जाआं क्यूँ इस हरम्जदे के पल्लू से बँधी हो मेरे पास आ जाओ रानी बना कर रखूँगा. राज करेगी राज…” मैने फिर अपने बचाव के लिए अपनी एक टाँग को पीछे की ओर चलाया. मगर वो इस बार भी मेरे वार से बच गया. 



“साली लगता है तेरे बाल अभी निकले नही हैं सारे……करले जो कर सकती है तू. जितना हाथ पैर चला सकती है चला ले. लेकिन तुझे आज से अपनी रांड़ बना कर ही रहूँगा. बहुत नाज़ है ना अपने इस रूप पर. आज हम तुझे अपनी कुतिया बना कर चोदेन्गे. साली देखता हूँ कितना दम है तुझ मे आज तुझे किसी कुत्ते की तरह हम तेरी धज्जियाँ उड़ाएंगे. देखता हूँ कौन बचाता है तुझे. ये साला तेरा पति इस पर भरोसा है ना तुझे इस की इतनी हिम्मत नही है कि दमले के सामने सीना तान सके.” 



मैं एक आख़िरी कोशिश के रूप मे उसके सामने रो पड़ी,” प्लीईस्स….मुझे मत खराब करो…. कौन पति चाहेगा किसी और से रेप की हुई महिला को अपनी बीवी बना कर रखना….. मुझे मेरा पति घर से निकाल देगा…..मेरे सास ससुर से भी मैं कैसे रहम की भीख माँग सकूँगी….वो तो खुद देखेंगे मेरी बर्बादी का नज़ारा….. मेरे पास आत्म हत्या के सिवा कोई रास्ता नही बचेगा…..प्लीज़ मुझे छ्चोड़ दो…. मुझे खराब मत करो. किसी दिन मैं खुद तुम्हारे अड्डे पर आ जाउन्गी फिर तुम्हारी जो मर्ज़ी कर लेना….मगर आअज नही….यहाआँ नहियिइ…..” 



“तू घबरा मत मेरी रानी तुझे कुच्छ नही होगा……तेरे वो नमार्द पति की इतनी हिम्मत नही है कि मेरे खिलाफ तुझे परेशान करे. घबरा मत जाने से पहले उसका भी इलाज कर दूँगा.” ये कह कर उसने अपने लंड को मेरी योनि के उपर रख कर आगे की ओर धक्का दे दिया. उसका लिंग सर सरता हुआ मेरी योनि की ओर घुस गया. 



मैने बेबसी से अपने जबड़े भींच लिए. उसने मेरे बालों को अपनी मुट्ठी मे भर रखा था और मुझे पीछे से धक्के देने लगा. मैं लगभग रो ही रही थी मगर उसकी सेहत पर कोई असर नही पड़ रहा था. उसके हाथ मेरे बगलों से होते हुए मेरे उरजों को थाम रखे थे. और उन्हे अपनी मुट्ठी मे लाकर दमले बुरी तरह मसल रहा था. लगभग पंद्रह मिनिट तक मुझे पीछे से चोदने के बाद उसके लिंग ने मेरी योनि मे अपने वीर्य की बौछार कर दी. मैं दीवार पर फिसलते हुए धाम से फर्श पर गिर पड़ी. 



ऑफ कितनी जलालट महसूस हो रही थी. लग रहा था कि ज़मीन फट जाए और मैं उसमे समा जाउ. मगर ऐसा कुच्छ भी नही हुआ. मैं ज़मीन पर पड़े पड़े गहरी साँसे लेती रही. उसने कुच्छ देर बाद मुझे खींच कर उठाया और वापस शवर के नीचे डाल दिया. मैं शवर के नीचे पड़ी रही पानी की ठंडी बूँदें मेरे तन मन की आग को ठंडा कर रही थी. 



कुच्छ देर बाद उसने शवर बंद कर टवल से मेरे गीले बदन को सूखाया. 



“प्लीज़ मुझे अब जाने दो. तुमने अपने मन की तो कर ही ली. अब मुझे छ्चोड़ दो. मैं इस हालत मे बातरूम से नही निकल सकती. मुझे इस जलालट से च्छुतकारा दे दो. मुझे मार ही डालो.” मैं वहीं ज़मीन पर उकड़ू हो कर बैठ गयी और अपने चेहरे को घुटनो पर रख कर सुबकने लगी. 



उसने मुझे वापस मेरी बाँह खींच कर उठाया. 



“ साली अपनी नौटंकी बंद कर नही तो ऐसी हालत कर दूँगा कि ना तो तू जी पाएगी और ना ही मर सकेगी.” उसने मुझे उठा कर बाथरूम का दरवाजा खोल दिया. 



“ प्लीज़ कम से कम मुझे कुच्छ कपड़े तो पहनने दो.” 



“नही तू ऐसी ही अच्छि लग रही है. साली अभी तो मैं और मेरे साथी तेरे घरवालों के सामने तेरे इस गर्म सुलगती जवानी से अपनी भूख मिटाएँगे. तू क्या सोचती है हम तुझे कपड़े पहना कर चोदेन्गे.” 



“मेरे पति, मेरे सास ससुर के सामने इस हालत मे मुझे और मत घूमाओ. कुच्छ तो शर्म बची रहने दो.” 



“तेरा पति? हाहाहा वो सला छक्का……वो क्या कहेगा तुझे उसे कुच्छ कहने लायक छ्चोड़ेंगे तब ना. तू तो बस देखती जा. साले को आज के बाद इस दिन की याद भी नही आएगी…” कह कर वो मुझे खींचते हुए बाहर ले आया. 



मैने देखा की हम जब बाथरूम मे थे तो उसके बाकी साथी उस कमरे का सारा समान समेट कर वहाँ ज़मीन पर चटाई बिच्छा दिए थे. उस चटाई के इर्द गिर्द तीन कुर्सियों पर हाथ पैर बँधे मेरे हज़्बेंड और मेरे सास ससुर बैठे थे. सासू जी लगातार रोए जा रही थी. ससुर जी की हालत बहुत सोचनीय थी. उनकी आँखें उलट गयी थी. और रतन कुर्सी पर बैठा तुकर तुकर हमे देख रहा था. उसकी हालत से लग रहा था कि उसका नशा अब उतर चुक्का था. तीनो के मुँह मे कपड़े ठूँसे हुए थे. इसलिए किसी तरह की आवाज़ अब उनके मुँह से नही निकल रही थी. लेकिन उनकी दशा उनकी बेबसी का इज़हार कर रही थी. दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा 
क्रमशः............
 
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -22 
गतान्क से आगे... 
दमले मुझे उसी हालत मे खींचते हुए लाकर सब के बीच चटाई पर थेल दिया. बाकी सारे लोग चटाई पर गिरते देख मुझे पर टूट पड़े. मैने उठने की कोशिश की तो कई हाथों ने मुझे थाम लिया. मैं वापस चटाई पर गिर पड़ी. कई जोड़ी हाथ मेरे बदन पर फिरने लगे. मैने अपनी दोनो जंघें सख्ती से एक दूसरे से लिपटा रखी थी. अपने नाज़ुक हाथों से मैं अपनी नग्नता छिपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी. मगर इतने सारे मर्दों के बीच एक नाज़ुक सी औरत कितना बचाव कर सकती है. 



मैं बस च्चटपटा सकती थी मगर इतने सारे मर्दों से अकेले मुकाबला नही ले सकती थी. उसके बाद तो पता ही नही चला कब शाम से रात हो गयी और रात से सुबह. मुझे चोद चोद कर मार ही डाला था उन गुण्डों ने. कभी एक एक करके कभी दो तो कभी तीन एक साथ मेरे बदन से खेलते रहे. मेरे बदन को तोड़ मरोड़ कर रख दिया. मेरी योनि तो सूज कर लाल हो गयी थी. पूरा बदन उनके लिंग से निकले वीर्य से लटपथ था. मेरे पूरे बदन पर अनगिनत दाँतों के निशान बने हुए थे. एक एक आदमी ने मुझे अनगिनत बार चोदा. मुझे तो लग रहा था कि मैं उनकी ज़्यादतियों से आज मर ही जाउन्गी. मर ही जाती तो ठीक था. मगर मौत भी इतनी आसानी से कब आती है. 



मैं उनकी ज़्यादतियों को झेलते झेलते कब बहोशी की आगोश मे चली गयी पता ही नही चला. 



सुबह जब होश मे आई तो सूरज निकल चुक्का था. सारे गुंडे भाग चुके थे. मैं लूटी पिटी फर्श पर पड़ी थी. पूरा बदन इस तरह दुख रहा था मानो बदन मे सैकड़ों सूइयां चूभोइ जा रही हों. मैं फफक कर रो पड़ी. मगर उस वक़्त मेरे आँसू पोंछने वाला कोई नही था. 



कुच्छ देर बाद मैने अपने आँखों को पोंच्छ कर कमरे मे इधर उधर अपनी नज़रें दौड़ाई. मेरे पति अपनी कुर्सी पर निढाल पड़े थे उनके चेहरे मे दुनिया भर का दर्द सिमटा हुया था. हो भी क्यों नही अपनी बीवी को अपने सामने इतनी बुरी तरह लूटे जाते देख कर भी कुच्छ नही कर सके. उनकी आँखें दर्द और थकान से लाल हो रही थी. 



पास मे मेरे ससुर पड़े थे उनके बदन मे कोई हरकत नही थी. उनकी आँखें पथरा गयी थी. उनका मुँह खुला हुआ था. मैं तो उनकी हालत देख कर घबरा गयी थी. सासू जी पास की कुर्सी पर गहरी नींद मे डूबी हुई थी. मैं किसी तरह उठी. ऐसा करते वक़्त दो बार तो लड़खड़ा कर गिर गयी. 



मैने सबसे पहले अपनी नग्नता को छिपाने के लिए जैसे तैसे एक गाउन अपने बदन पर डाला फिर जाकर अपने पति के बंधन खोले. रतन लगभग झपट्ता हुआ अपने पिताजी के पास पहुँचा और उनके बंधन खोल दिए लेकिन वो कुर्सी से लुढ़क पड़े. उनकी साँसे टूट चुकी थी. मैने मम्मी के बंधन खोल दिए. हमने हिला दूला कर ससुर जी को उठाने की कोशिश की मगर उनका सदमे मे देहांत हो चुक्का था. घर मे रोना पीटना मच गया. सासू जी पच्छाद खा कर गिरी तो फिर नही उठी. अपने पति के साथ वो भी हमे छ्चोड़ गयी. 
 
गली मोहल्ले के लोग इकट्ठे हो गये. मगर उस मवाली के खिलाफ कंप्लेन करने की किसी की हिम्मत नही हुई. किसी ने फोन करके पोलीस को बुला लिया था. मगर उनके आते ही भीड़ इधर उधर खिसक ली. रतन ने पोलीस वालो को चीखते चिल्लाते हुए दमले के खिलाफ फिर दर्ज करवाई. पोलीस वालों ने जल्दी ही आक्षन लेने का सांत्वना दे कर अपना काम निबटाया. 



मगर कुच्छ नही हुआ. और जो कुच्छ भी हुआ वो हमारी जिंदगी को और तोड़ता चला गया. मोहल्ले मे मेरा निकलना मुश्किल हो गया था. दो दिन तक तो सब हमारे लिए अपनी संवेदना जाहिर करते रहे मगर कुच्छ ही दिनो मे लोग उस घटना को भूलने लगे. 



दमले साला आज भी खुला घूम रहा था. मैं किसी काम से बाहर निकलती तो मोहल्ले की महिलाएँ मुँह छिपा कर हँसती और दबी ज़ुबान उस घटना का ज़िक्र चटखारे ले ले कर करती. दमले या दिनेश का कोई गुरगा मिल जाता तो मुझे देख कर भद्दी भद्दी गालियाँ देता. 



जब हफ्ते भर तक पोलीस ने कुच्छ नही किया तो रतन दोबारा पोलीस स्टेशन जा कर उन्हे दमले के अगेन्स्ट आक्षन लेने के लिए कह आया. साथ धमकी भी दे आया की अगर उन्हों ने कुच्छ नही किया तो अख़बार वालों को और सामाजिक संगठन मे उनके खिलाफ शिकायत करेंगे. पोलीस ने दो ही दिन मे कुच्छ करने का वादा किया. 



दो दिन मे उन्हों ने अपनी ज़ुबान के मुताबिक किया भी सही मगर जो हुआ उसकी हमे उम्मीद नही थी. 



दो दिन बाद एक पोलीस वाले ने घर आकर मुझे पोलीस स्टेशन चलने को कहा. थानेदार मेरा बयान लेना चाहता था. मेरी ज़ुबानी जो कुच्छ हुआ वो सब जानना चाहता था. रतन साथ जाने के लिए उठा तो उस पोलीस वाले ने मना कर दिया. उसने कहा की सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझे लेकर जाना है. 



मुझे पोलीस स्टेशन ले जाकर एक कमरे की ओर जाने का इशारा किया. मैं दरवाजे पर पड़ा परदा हटा कर अंदर गयी. अंदर एक 40-45 साल का काफ़ी हॅटा कॅटा थानेदार बैठा था. उसके चेहरे से ही चालाकी टपक रही थी. 



“आओ…आओ…” उसने मुझे अपने सामने की कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और पूछा “क्या नाम है तुम्हारा?” 



“ज्ज..जी र..रजनी…” मैने डरते डरते कहा. 



“ह्म्‍म्म…..तुम्हारी क्या दुश्मनी है दमले और दमले के गॅंग के साथ?” उन्हों ने आगे पूछा. 



“ज्ज्ज…जी..जी वो मुझे परेशान करता है. मुझे छेड़ता है…” मैं पूरा खुल कर उनके सामने कह नही पा रही थी. 



“बस छेड़ता है. पूरी मुंबई मे रोजाना हज़ारों च्छेड़च्छाद की घटनाए होती हैं. साली हम पोलीस वाले क्या तेरे पर्सनल बॉडीगार्ड है जो चौबीस घंटे तेरी रखवाली करें.” 



“नही आप समझ नही रहे हैं….उन्हों ने होली के दिन मेरे साथ रेप किया.” मैने अपनी नज़रें नीचे झुकाते हुए कहा.
 
“ह्म्‍म्म्म” एक हुकार भरते हुए उसने मेरे बदन को उपर से नीचे तक निहारा. मेरे सीने के उभार पर आकर उनकी नज़रे मानो चिपक. मैं उसकी भूखी नज़रें भाँप कर सिकुड गयी. अपनी जगह से दो कदम पीछे हट गयी. 



“ आबे पांडु……..चल बगल वाला कमरा खोल और इस औरत को वहाँ बिठा. मैं आता हूँ. ये सबके सामने आपबीती ठीक से नही बता पाएगी. साले तुम लोगों को बिल्कुल अकल नही है. हराम खोरों रेप केस की तफ़तीश इस तरह खुले आम कभी होती है. ये क्या तमाशे वाली चीज़ है. क्या नाम बताया तूने अपना….” उसने अपनी मूच्छों पर उंगलियाँ फेरते हुए पूछा. 



“ जी रजनी…..रजनी…” 



“हाँ तो रजनी तुम इस के साथ बगल वाले कमरे मे जाओ मैं अभी आता हूँ. वहाँ तू अपनी शिकायत बेहिचक सुना सकती है. मुझे उस हरामी गुंडे के खिलाफ एरटाइट केस चाहिए. साले को पेड़ से लटका कर इतने डंडे मारूँगा की सात जन्मों तक दोबारा किसी औरत को छेड़ने की जुर्रत नही करेगा.” 



मैं उसकी बातों मे आ गयी. मुझे लगा की वो थानेदार मुझे इंसाफ़ दिलवा कर रहेगा. मैं बेझिझक उस सिपाही के साथ बगल मे बने एक कमरे मे चली गयी. वो कमरा शायद कोई रेस्ट रूम था. उसमे एर कंडीशनर चल रहा था और दीवार के साथ एक चोव्कि लगी थी जिस पर आरामदेह बिस्तर लगा था. पास एक टेबल कुर्सी रखी थी. मैं उस कुर्सी पर जाकर बैठ गयी. 



वो सिपाही मुझे वहाँ छ्चोड़ कर कमरे से बाहर निकल गया. मैने वहाँ बैठे बैठे मैने पूरे कमरे को देखा. कुच्छ देर इंतेज़ार करने के बाद वहाँ के संदिग्ध महॉल मे मेरा जी घबराने लगा. 



कुच्छ देर बाद वो थानेदार कमरे मे घुसा. कमरे मे घुसते ही उसने अपने पीछे दरवाजा बंद कर सन्कल लगा दिया. उसकी इस हरकत से मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. 



“एयेए…आपने दरवाजा क्यों बंद किया?” मैने डरते हुए पूछा. 



“ये सब तुम्हारी हिफ़ाज़त के लिए है रजनी.” मैने देखा की उसके चाल मे लड़खड़ाहट थी. जब वो पास आया तो उसके मुँह से मैने शराब की बू महसूस की. मैं घबरा कर पीछे हट ती हुई दीवार से सॅट गयी. क्रमशः............
 
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -23 
गतान्क से आगे... 

“यहाँ अक्सर अख़बार वाले आते रहते हैं. किसी को पता चल गया तो तुम्हारी फोटो खींच लेगा और कल के अख़बार मे पूरी मुंबई जान जाएगी कि तेरे साथ क्या क्या हुआ है. तेरा घर से निकलना मुश्किल हो जाएगा. इसी लिए तो इस बंद कमरे मे तेरा बयान लिखूंगा और फिर दर्ज करूँगा. तू देखना उस हरामी का उस मोहल्ले की ओर देखना मुश्किल करा दूँगा. तेरे पैरों पर पड़ कर माफी माँगेगा.” कहता हुआ वो धाम से उस बिस्तर पर बैठ गया. उसने कुर्सी को अपने सामने खींच ली. 



“आओ मेरे पास यहाँ आकर बैठो.” उसने मुझे कुर्सी पर बैठने का इशारा किया. मैं झिझकति हुई अपने जगह पर खड़ी रही तो उसने अपना हाथ बढ़ा कर मेरी कलाई पकड़ ली और मुझे खींच कर कुर्सी पर बिठा लिया. मैं सहमति, सिकुद्ती उसके सामने कुर्सी पर बैठ गयी. 



उसने जेब से एक डाइयरी निकाली और उसमे कुच्छ लिखने का उपक्रम करता हुआ मुझसे पूछ्ताछ करने लगा. 



“हां अब मैं जो पूछ्ता जाउ सब सच सच बताना.” मैने सहमति मे सिर हिलाया. 



“जिस तरह किसी डॉक्टर से अपना मर्ज नही छिपाते उसी तरह मुझे तुम जितना विस्तार से बताओगी उतना ही अच्च्छा केस बनेगा उसे फँसाने के लिए. बिना झिझक बिना किसी संकोच के सब कुच्छ खुल कर बताना. विस्वास करना इस घटना के बारे मे मेरे अलावा किसी को भी पता नही चल पाएगा.” 



मैं चुपचाप कुर्सी पर बैठे बैठे अपने पैर के अंगूठे से ज़मीन को कुरेदती रही. 



“ हां…अब शुरू कर. नाम….रजनी. पति का नाम?” 



“ जी रतन” मैने सब कुच्छ बताने का फ़ैसला कर लिया था. मगर उसका इरादा तो कुच्छ और ही था. 



“ उस हरम्जदे दमले ने तेरे साथ क्या छेड़ खानी की?” 



“ जी…..जी उसने मेरे साथ…..र…रेप किया.” मैं सकुचते हुए बोली. 



“देखो मेडम हम फिर शुद्ध हिन्दी मे लिखते हैं रेप नही चलेगा. हिन्दी मे बोलो” 



“उस…उसने…मेरे साथ…बलात्कार किया.” मैने जवाब दिया. 



“बलात्कार? यानी उसने तुझे ज़बरदस्ती चोदा? चोदा भी था या सिर्फ़ छेड़ छाड़ की थी?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा. उसके इस तरह खुल्लंखुल्ला पूछने से मैं शर्म से लाल हो गयी. मुझे अपने आप पर गुस्सा आने लगा कि मैं रपट लिखवाने आइ ही क्यों. मैं चुपचाप बैठी रही 



“ तेरे मुँह मे ज़ुबान नही है क्या. जवाब क्यों नही देती.” 



“जी…जी…” 



“क्या जी जी लगा रखी है. बताती क्यों नही?” उसने कदक्ति आवाज़ मे वापस पूछा. 



“ जी….उसने मेरे साथ…..” मैं समझ नही पा रही थी की किसी अपरिचित के सामने इतने गंदे लफ्ज़ अपनी ज़ुबान पर लाउ “ वही सब किया जो औरत अपने पति के साथ करती है.” 



“ धात तेरे की….अरे उसको क्या कहते हैं? कभी अपने पति से कहते नही सुना क्या?”
 
“ जी….जी उसने मेरे साथ च…चुदाई की है.” मैं दुआ कर रही थी कि इतनी जलालत झेलने से तो अच्च्छा होता की धरती फट जाती और मैं उसमे समा जाती. 



“अच्च्छा उसने तुझे ज़बरदस्ती चोदा था. कब की बात है ये?” 



“जी होली के दिन.” मैने अपने नज़रों को एक बार भी उठाने की कोशिश नही की. 



“ होली के दिन? तुझे किसने बोला था उस हरमजड़े के साथ होली खेलने के लिए.” 



“ जी मैं कहाँ उस से होली खेलना चाहती थी. वो ज़बरदस्ती मेरे घर घुस आया.” 



“ तेरा पति क्या छक्का है. साला रोक नही सका उसे. एक अकेला आदमी तेरे घर आया और ज़बरदस्ती तुझे चोद कर चला गया. साले सब ने चूड़ियाँ पहन रखी हैं क्या? तेरे घरवाले सब मर गये थे? वो रोक नही सके उस बदमाश को? तू चुद्ती रही और सब क्या ताली बजाते रहे?” 



मैं उस वाक़्य पर दोबारा लड़खड़ा गयी. मैने आज तक किसी महिला से भी इतनी गंदी ज़ुबान मे कभी बात नही की थी.



“ जी वो अकेला नही था. वो कई सारे थे.” 



“ये पहले कहना चाहिए था कि उसकी पूरी गॅंग थी. सामूहिक बलात्कार हुया है तेरे साथ.” मैने अपने सिर को हिला कर उसका जवाब दिया,” कितने आदमी थे?” 



“ जी छह – सात.” 



“ अंदाज से यहाँ काम नही चलता. ठीक ठीक बता छह थे या सात?” उसने गुस्से से कहा. 



“ ज..जी सात.” मैने अंदाज लगाते हुए कहा. जब कि मैं तो अपनी परेशानी मे ठीक तरह से गिन भी नही पाई थी की कितने आदमी थे. 



“सात आदमी? कैसे झेली होगी उनको एक साथ.” उसने मेरे पूरे बदन को और ख़ासकर मेरे सीने को निहारते हुए कहा. 



मैं चुप चाप अपनी नज़रें नीची किए बैठी रही. उसने आगे पूच्छना शुरू किया, 



“हां तो उस दिन की घटना को पूरा खुल कर बता.” 



“ जी उन्हों ने मेरे सास ससुर और मेरे पति को कुर्सियों से बाँध दिया.” 



“तेरे घरवालों ने उनका विरोध नही किया?” 



“किया था मगर उन गुण्डों के सामने उनकी एक ना चली.” मैने कहा. 



“उस वक़्त तू वहाँ क्या कर रही थी? तू खड़े खड़े मज़े ले रही थी क्या?” 



“जी मुझे एक आदमी ने पकड़ रखा था.” 



“ एक आदमी ने तुझे पकड़ रखा था. बचे छह..एक के पीछे दो. फिर तो कुच्छ कर पाना भी मुश्किल होगा.” उन्हों ने हिसाब लगाते हुए खुद से ही बात की, “अच्च्छा ये बता तेरा कोई पुराना याराना तो नही है ना दमले के साथ?” 



“ थानेदार जी आप कैसी बातें करते हैं.” 



“ नही इसमे ताज्जुब करने वाली कोई बात नही है. ऐसा अक्सर होता है कि किसी रांड़ का पहले से चक्कर चल रहा होता है और जब पकड़ मे आती है तो रेप का रोना लेकर बैठ जाती है खुद को सती सावित्री दिखाने के लिए. जब चूत मे खुजली मचती है तो याद नही रहता है कि वो शादी शुदा है.” मैं उसकी बातों से सकपका गयी.
 
“जी…देखिए किसी महिला से आप इस तरह बात नही कर सकते.” मैं उसके सामने अपने साहस का प्रदर्शन करती हुई बोली. 



“ ये कोई मंदिर या तेरा घर नही है. यहाँ किससे किस तरह बात करना चाहिए मुझे अच्छि तरह पता है. हां चल अब आगे बता क्या हुआ.” 



“उन लोगों ने मेरे घरवालों को बाँध दिया. फिर दमले आगे बढ़ कर मुझे रंग लगाने लगा.” 



“तब तूने मना नही किया?” 



“ किया था जितना चीख चिल्ला सकती थी. च्चटपटा सकती थी किया मगर मुझे एक आदमी ने सख्ती से जाकड़ रखा था इसलिए इससे ज़्यादा मैं कुच्छ नही कर पाई.” 



“ फिर वो तुझे रंग लगाने लगा? कहाँ कहाँ लगाया तुझे रंग?” 



“ पूरे बदन पर.” मैने झिझकते हुए कहा. 



“ पुर बदन पर? यहाँ भी लगाया था.” कहकर उसने मेरे एक स्तन के नुकीले हिस्से को अपनी उंगली से छ्छू लिया. मैं झटके से पीछे हटी. 



“हां.” 



“ और वहाँ भी?” उसने मेरे टाँगों के जोड़ की ओर इशारा किया. मैं शर्म से वापस पानी पानी हो गयी. मैने सिर हिलाया. 



“ तूने पहन क्या रखा था?” 



“ साडी.” मैने कहा. 



“ अबे नीचे भी कुच्छ पहना था या नंगी ही थी?” 



“ ये क्या बात हुई…जैसा हर महिला पहनती है, ब्लाउस-पेटिकोट.” 



“ नीचे ब्रा-पॅंटी भी पहनी थी या सिर्फ़ ब्लाउस और पेटिकोट ही पहनी थी? 



मैं उसके इस सवाल पर सकपका गयी. ये बहुत ही पर्सनल सवाल था लेकिन जवाब देने के अलावा कोई चारा नही था. 



“ पहनी थी.” 



“हमेशा पहनती है या उस दिन ही पहनी थी?” 



“हमेशा पहनती हूँ.” 



“ झूठ बोलती है अभी पहनी है क्या?” 



“ हां.” 



“ दिखा. आँचल हटा सीने से देखूं तू इस वक़्त ब्रा पहनी है या झूठ बोल रही है.” 



“ लेकिन….” मैं अपने ही जाल मे फँस गयी थी. मैं चुप चाप बैठी रही तो उसने मेरे आँचल की ओर हाथ बढ़ा दिया. मैने झटके से अपने बदन को पीछे किया. मुझे अपनी ज़ुबान को साबित करने के लिए सीने पर से आँचल हटाना पड़ा. 
दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा 
क्रमशः............ 
 
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -24 
गतान्क से आगे... 

ब्लाउस मे कसे मेरे स्तन उसके सामने मुँह चिढ़ाते हुए खड़े थे. वो वासना भरी नज़रों से बड़ी बड़ी छातियो को निहार रहा था. 



“तेरे ये हैं ही इतने खूबसूरत की हर किसी को दीवाना बना दे.” कह कर उसने हल्के से ब्लाउस के नुकीले हिस्से को दबाया, “उस हराम जादे ने खूब मसला होगा इन्हे क्यों? उसने तेरे ब्लाउस के अंदर हाथ डाला था?” 



“ हां.” मैने बेबसी से अपने निचले होंठ को दाँतों से काट ते हुए कहा. 



“ उसने ब्रा के अंदर हाथ डालते वक़्त तेरे ब्रा का हुक खोला था क्या?” 



मैने बिना कुच्छ कहे सिर्फ़ इनकार मे सिर हिलाया. 



“ तेरे चुन्चे तो बड़े रसीले हैं. क्या साइज़ हैं रे.तू ब्रा पॅड वाला पहनती है या तेरी चुचियाँ सच मे ही इतनी बड़ी बड़ी हैं?” कह कर उसने मेरे दोनो स्तनो को अपने मुट्ठी मे भर कर मसल दिया. मैं उसकी इस हरकत पर उच्छल कर खड़ी हो गयी. 



“ छ्चोड़ो मुझे जाने दो. नही लिखवानी मुझे किसी के खिलाफ कोई शिकायत. हम ग़रीबों की तो किस्मेत ही फूटी होती है. आआप तो बस दरवाजा खोल दें.” कहकर मैं दरवाजे की ओर झपटी. उसने एक झटके मे मेरी कलाई को पकड़ लिया. मैं च्चटपटा कर रह गयी. 



“ साली रंडी चुप चाप जो बोला जाए करती जा नही तो तुझे ही लोक्कूप मे बंद कर दूँगा. और दमले के खिलाफ झूठी अफवाहें फैलाने के जुर्म मे तेरे उपर मानहानि का केस दर्ज करवा दूँगा. पचासों गवाह पेश कर दूँगा जो सीना ठोक कर कहेंगे कि तू जिस्म्फरोशी का धंधा करती है और तेरे जिस्म को खरीदने के लिए उन्हों ने कितने पैसे दिए. और उसके बाद वेश्यावृत्ति के जुर्म मे दो चार साल अंदर हो जाएगी. हाहाहा….फिर जब बाहर आएगी तो एक अच्छि वेश्या बन चुकी होगी.” उसने मेरी कलाई को पकड़ कर अपनी ओर खींचा. 



“छ्चोड़….छ्चोड़ मुझे हरम्जदे…मैं तेरी शिकायत कर दूँगी.” 



“हाहाहा. लोग तो हमारे पास शिकायत लिखवाने आते हैं और तू हमारी ही शिकायत करेगी. जा जिससे तेरी मर्ज़ी शिकायत करले. हाहाहा….इस दुनिया मे पैसा और रसूख् चलता है. कोई नही आएगा तेरी मदद करने.” उसने मुझे दोबारा अपनी ओर खींचा. उसकी धमकी सुनने के बाद ऐसा लगा मानो मेरे जिस्म से सारी ताक़त नीचड़ गयी हो. मैं लड़ खड़ा कर उसकी गोद मे आ गिरी. अब मेरी अस्मत को लूटने से कोई भी नही बचा सकता था. मेरे इस तरह उसकी गोद मे गिरते ही उसने मुझे अपनी बाँहों मे भर लिया और उसने मेरे दोनो स्तनो को अपनी दोनो मुत्ठियों मे भर लिया. 
 
“ तेरी जैसे कई रांड़ के कस बल निकाल चुक्का हूँ. कभी किसी ने अकड़ दिखाई तो उसको फिर किसी चाकले मे ही जगह मिलती है. शर्रीफ़ आदमी तो थूकना भी पसंद करते उन पर इतनी बुरी तरह बदनाम हो जाती हैं वो. अब सोच ले तुझे क्या करना है.” उसने मेरे स्तनो को मसल्ते हुए कहा. 



“छ्चोड़ो….छ्चोड़ो मुझे…..मैं वैसी औरत नही हूँ जैसा आप समझ रहे हैं…….. मैं एक शरीफ शादी शुदा हूँ…..मेरी इज़्ज़त से मत खेलो….” मैं बेबसी से उसकी पकड़ से बचने के लिए च्चटपटा रही थी. मगर उसका बंधन बहुत सख़्त था. वो मेरी दोनो चुचियों को अपनी मुत्ठियों मे भर कर बुरी तरह मसल रहा था. 



“ हराम जादे ने सही कहा था. बड़ी केटीली चीज़ है. उस्ताद एक बार देखोगे तो लंड बैठने का नाम ही नही लेगा.” उसने एक हाथ से तो मुझे गिरफ़्त मे ले रखा था और दूसरा हाथ मेरे पूरे बदन पर रेंग रहा था. मैं उसकी गोद से उठने की जी तोड़ कोशिश कर रही थी मगर उसकी ताक़त के आगे मेरी एक नही चल रही थी. 



“ आज तो सारी रात दावत होगी मेरी. क्या मम्मे है. साली के दोनो चून्चियो के बीच मे अपना लंड रागडूंगा तब शांत होगी मेरी गर्मी.” वो बदतमीज़ी से बड़बड़ा रहा था. मैने आख़िर मे अपने आप को बचाने के लिए उसकी कलाई पर अपने दाँत गढ़ा दिए. उसने दर्द से बिलबिलाते हुआ मुझे छ्चोड़ दिया. 



मैं दरवाजे की ओर भागी. मगर इससे पहले की मैं दरवाजे की च्चितकनी को खोलती उसने झपट कर मेरे ब्लाउस को पीछे से पकड़ कर एक ज़ोर का झटका दिया. झटका इतना जोरदार था कि मैं लड़खड़ा कर फर्श पर गिर पड़ी. मेरा ब्लाउस पीछे से फट कर दो टुकड़े हो चुक्का था. 



वो गुस्से से तमतमा रहा था. उसने गुस्से मे अपने कमर की बेल्ट उतार ली. 



“ साली दो टके की रांड़ तेरे जैसी पता नही कितनी जंगली हिर्नियों को मैने अपने लंड का स्वाद चखाया है. देख कैसे तेरे कस बल निकालता हूँ अभी” और फिर “सटाक…सटाक” करके बेल्ट की मार मेरे गोरे बदन को लाल करने लगी. मैं दर्द से च्चटपटा रही थी. मैं उसकेन मार से बचने की काफ़ी कोशिश कर रही थी मगर किसी भी तरह सफलता नही मिल रही थी. मेरे नाज़ुक बदन पर कई लाल नीले निशान पड़ते जा रहे थे. कोई बीस पचीस मार झेलने के बाद ही उसका हाथ रुका. मैं ज़मीन पर पसरी हुई रो रही थी. उसने एक एक करके अपने सारे कपड़े उतार दिए और बिल्कुल नंगा हो गया. 
 
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