Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन - Page 5 - SexBaba
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Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन

फिर नंगी हालत मे उसने मुझे बालों से पकड़ा और घसीटता हुआ बिस्तर तक ले गया. मैं दर्द से सूबक रही थी. मैं उसके सामने अब तो बिल्कुल ही बेबस हो गयी थी.मेरे जिस्म मे अब किसी तरह के विरोध की हिम्मत नही बची थी. वो जैसा चाहता था मैं उसी तरह बिस्तर पर पसर गयी. 



वो झपट कर बिस्तर पर चढ़ गया. और मेरे सारे कपड़े नोच कर अलग कर दिए. ब्रा का तो हूल ही तोड़ दिया. मैं नंगी हालत मे बिस्तर पर लेटी हुई सूबक रही थी. वो मेरे दोनो स्तनो को मसल्ने लगा. और उनको बारी बारी से चूमने लगा. उसने मेरे निपल्स पर अपने दाँत गढ़ा दिए. मैं दर्द से बिलख रही थी. 



वो बिस्तर पर घुटनो के बल बैठा हुआ था. उसने मेरे बालों को मुट्ठी मे भर कर मेरे सिर को उठाया और अपने लंड पर मेरे मुँह को दबने लगा. मैं समझ गयी थी कि वो क्या चाहता है. मैं इस तरह के बलात्कार का पहले भी शिकार हो चुकी थी इसलिए मैने बिना कुच्छ सोचे अपना मुँह खोल दिया. उसने अपने लिंग को मेरे मुँह मे थेल दिया. उसके लंड से बुरी बदबू आ रही थी. मुझे एक ज़ोर की उबकाई आइ मगर गले तक उसका लंड फँसा होने की वजह से कुच्छ नही कर पाई. 



मैने देखा कि उसके साथ जॉर्जाबरदस्ती मे मैं नही जीत सकती इसलिए चुपचाप उसे अपनी मर्ज़ी का कर लेने के लिए छ्छूट दे दिया जाए उसी मे गनीमत है. मैं उसके लिंग को खुद ही अपनी जीभ से चाटने लगी. अपने होंठों को उसके लिंग पर दबा कर उसे चूसने लगी. वो कुच्छ देर तक तो मेरे सिर को थामे रहा मगर जब उसने देखा कि मेरी ओर से विरोध समाप्त हो गया है और मैं खुद उसकी चाहत के अनुरूप चल रही हूँ तो उसने ज़ोर ज़बरदस्ती करना छ्चोड़ दिया. 



मेरे मुँह से स्लूर्र्ररर्प….स्लूर्र्ररर्प.. जैसे आवाज़ें आ रही थी. मैं उसके लिंग को अपने हाथों से थाम कर उसको अपने मुँह से चूस्ति जा रही थी. उसके मुँह से उत्तेजना मे “आअहह….ऊओह” जैसी आवाज़ें निकाल रही थी. कुच्छ देर तक इसी तरह चूस्ते रहने के बाद उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपने लिंग को बाहर खींच कर निकाला. 



“ साली मुँह से ही मुझे झाड़ देने की इच्छा है क्या तेरी. मुझे तो तेरी चूत को फाड़ना है. चल अब छ्चोड़ इसे और टाँगें फैला कर लेट जा.” मैने वैसा ही किया जैसा उसने कहा था. उसने मेरी टाँगों को बिस्तर से उठा कर अपने कंधों पर रख ली. 



उसने अपने लंड का टिप मेरी योनि की दोनो फांकों के बीच रख कर उस पर उपर नीचे फेरने लगा. अपनी उंगलियों से वो मेरी योनि की फांकों को सहलाने लगा. उसके मोटे और खुरदूरी उंगलिया मुझे उत्तेजना की जगह दर्द दे रही थी. जब कुच्छ देर तक मेरी योनि को सहलाने के बाद भी उसने देखा की मुझमे कोई उत्तेजना नही बढ़ी तो उसने मेरी क्लाइटॉरिस को छेड़ना शुरू किया. उसकी इस हाकत से मेरे बदन मे बिजलियाँ दौड़ने लगी. मैं अबतक अपने बदन को किसी बेजान लाश की तरह ढीला छ्चोड़ रखी थी मगर अब उसकी हरकतों से मेरे बदन मे चिंगारियाँ फूटने लगी. मैने उसके हाथ को वहाँ से हटाने की कोशिश की मगर उसने मेरे विरोध को नज़रअंदाज़ कर दिया. मैं बेबस थी. बिल्कुल भी नही चाहती थी कि मेरा जिस्म उसके बहकावे मे आ जाए और उसे पता चल जाए कि मेरा जिस्म मेरे दिमाग़ से विद्रोह कर रहा है. बेबसी मे मेरी आँखों से आँसू बहने लगे. 
क्रमशः............ 
 
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -25 
गतान्क से आगे... 
उसने अब और सबर करना उचित नही समझा और अपने लिंग को मेरी योनि मे घुसेड़ने लगा. मेरी सूखी चूत की दीवारें उसके लंड को रोकने की कोशिश मे छिल्ति जा रही थी. ऐसा लग रहा था मानो कोई मेरी योनि की दीवारों को सांड पेपर से घिस रहा हो. मैं दर्द से च्चटपटाने लगी. मगर उसने मेरी कोई परवाह किए बगैर अपना पूरा लंड एक बार मे जड़ तक डाल दिया. 



“आआहह….म्‍म्म्ममाआअ” मैं तड़प उठी. मगर किसे परवाह थी मेरी चीखों की मेरे दर्द की. वो किसी जानवर की तरह मुझे चोदने लगा. और तब तक चोद्ता रहा जब तक उसका वीर्य नही निकल गया. मैं बिना हीले दुले बेजान सी बिस्तर पर पड़ी रही. मेरे जिस्म मे किसी तरह की कोई उत्तेजना नही हुई. ऐसा लगा जैसे मैं कोई चुदाई की मशीन हूँ जिससे वो अपने उत्तेजना को शांत कर रहा हो. 



वो झड़ने के बाद दो मिनिट तक मेरे जिस्म पर पड़ा हांफता रहा फिर वो उठा और बिना कुच्छ कहे सुने अपने कपड़े पहन कर कमरे से निकल गया. मेरी आँखें बेबसी और जलालत से बरसती रही. मैं बिस्तर पर नंगी पड़ी हुई थी. मेरी आँखें छत पर पता नही क्या खोजती रही. अचानक मैं कमरे के दरवाजे को दोबारा बंद होने की आवाज़ सुन कर चौंक गयी. 



मैने देखा दो संतरी अपने भद्दे काले काले दाँत दिखाते हुए मेरी ओर बढ़ रहे हैं. मैने बस एक गहरी साँस ली और आँखें बंद कर बदन को वापस ढीला छ्चोड़ दिया. मैं समझ गयी थी कि इतनी जल्दी मुझे च्छुतकारा नही मिलेगा. दोनो मुझ पर ऐसे टूट पड़े मानो बरसों के भूखे हों और सामने छप्पन व्यंजनो से भरी थाली रखी हो. 



फिर शुरू हुआ मेरे जिस्म का मंथन. ये मंथन रात भर चलता रहा बस चेहरे और लोग बदलते रहे. पता नही कितनो ने कितनी बार चोदा. मैं तो अपनी किस्मेत को कोस रही थी और कोस रही थी बनाने वाले को की मुझे अगर बनाना ही था तो खूबसूरती क्यों दी. अगर खूबसूरत भी बनाया तो ग़रीबी क्यों दी. 



रात बीत ते बीत ते मेरे जिस्म मे इतनी भी ताक़त नही बची थी कि मैं उठ कर अपने कपड़े पहनू. ब्लाउस और ब्रा चीथदों के रूप मे यहाँ वहाँ पड़े थे. पेटिकोट भी फटा कमरे के एक कोने मे पड़ा था. मैने किसी तरह बिस्तर के सिरहाने का सहारा लेकर उठने की कोशिश की मगर नाकामयाब रही. 



कुच्छ देर बाद एक संतरी अंदर आया उसके हाथ मे एक चाइ की ग्लास थी. उसने मुझे सहारा देकर उठाया. मेरे बदन मे दर्द की टीस उठ रही थी. जांघों के जोड़ मे मानो आग लगी हुई थी. दोनो स्तनो पर अनगिनत दाँतों के दाग थे. बदन पर यहाँ वहाँ वीर्य की सफेद पपड़ी पड़ी थी. मैं उसके सहारे से उठ कर बैठ गयी. उसने मुझे अपनी गोद मे बिठा कर चाइ पिलाया बदले मे मुझे उसे अपनी योनि मे उंगली करने की इजाज़त देनी पड़ी और जब उसका लंड खड़ा हो गया तो उसे अपने मुँह मे लेकर खाली करना पड़ा. मेरे जबड़े दुख रहे थे.
 
मैं उठ कर अपने फटे पेटिकोट को उठाया और उसे पहन कर उस पर सारी को अच्छि तरह से लपेट लिया. ब्लाउस और ब्रा वापस पहनने लायक नही बचे थे. मैने सारी को ही बदन पर इस तरह लपेटा कि मेरे कमर के उपर का हिस्सा सारी की ओट मे छिप जाए. मैने वहाँ लगे एक टूटे काँच पर एक बार अपने बदन को देखा. फिर लुकति च्छुपती वहाँ से निकली. पीछे से थानेदार की आवाज़ आइ, 



“ साली बड़ी मस्त चीज़ है. दोबारा जल्दी ही बुलाना.” 



मैं लोगों की नज़रों से बचते बचाते अपने घर पहुँची. पास से गुज़रता हर व्यक्ति मानो मुझे ही घूर रहा था. मेरी पीठ होते ही मानो सारी दुनिया मुझ पर हंस रही थी. 



रतन मुझे देखते ही तरह तरह के सवाल करने लगा. मगर जब उसने मेरी दास्तान सुनी तो उसकी ज़ुबान को मानो ताला लग गया. हम दोनो घंटों तक अपनी बेबसी पर रोते रहे और दूसरों को कोसते रहे. हमे समझ मे नही आ रहा था की अब हम न्याय की किससे गुहार लगाए. 



मोहल्ले वाले तरह तरह की बातें बनाना लगे. दमले मुझे देखते ही गंदी गंदी गलियाँ देने लगता. खुल्ले आम अश्लील हरकतें करने लगता. मैं कभी सामना होते ही कतरा कर निकालने की कोशिश करती. मगर हर वक़्त घर के अंदर तो बंद हो कर नही रहा जा सकता. मुझे लगता था वो पूरी टोली मुझे परेशान करने के लिए हर वक़्त मेरे घर के इर्द गिर्द ही चक्कर लगता रहता था. 



रतन हर वक़्त बुझा बुझा सा रहता था. जब भी बाहर जाता मैं टेन्षन मे रहती थी. मेरी सुंदरता ही हमारे परिवार के बर्बाद होने का कारण बन गया था. जिंदगी मे एक छ्होटी सी खुशी मिली थी मुझे इतने भले पति के रूप मे इतने अच्छे सास ससुर के रूप मे मगर…सब कुछ पल भर मे ख़त्म हो गया. 



उसकी दास्तान सुनते सुनते कब मेरी आँखें भर आइ पता ही नही चला. 



“ बहुत बुरी है ये दुनिया रश्मि. यहाँ सीधे साधे आदमी वो भी ग़रीब मे और एक छींटी मे कोई अंतर नही होता है. कोई भी उसे बस चुटकियों मे मसल कर ख़तम कर सकता है.” रजनी ने मेरे बालों मे अपनी उंगलियाँ फेरते हुए कहा. 



कुच्छ दिनो मे वापस जिंदगी नॉर्मल होने लगी तो एक दिन फिर ठहरे पानी मे फेंके गये किसी पत्थर की तरह सुबह किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी. 



रतन ने दरवाजा खोल कर देखा कि कोई पोलीस वाला खड़ा है. 



“ साहब ने राज़निदेवी को बुलाया है.” उसने एक कागज रतन को दिखाते हुए कहा. 



“अब क्या काम है? उसका बयान तो उन्हों ने पहले ही ले लिया था.” 



“ थाने मे एसपी साहब आए हैं. थानेदार साहब उनके सामने रजनी देवी का बयान लेना चाहते हैं.”
 
“ नही देना कोई बयान और गवाही. हम अपना केस वापस ले रहे हैं. हमे किसी से कोई शिकायत नही है. हमे अकेला छ्चोड़ दो. मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ. हमे नही चाहिए किसी से कोई न्याय.” रतन उसके सामने हाथ जोड़ने लगा ये देख कर मैं भी बाहर आ गयी. 



“ भाई साहब हम को माफ़ कर दो. हम ग़रीब हैं और बेसहारा भी हो गये हैं. हमे अपनी दुनिया मे रह लेने दो. हम बहुत दुखी हैं मगर हमे किसी से कोई शिकायत नही है. आप प्लीएज वापस चले जाएँ.” कहते हुए रतन ने उसके पैर पकड़ लिए. मैं रोने लगी और उससे अपनी इज़्ज़त की भीख माँगने लगी. मगर वो बिल्कुल भी नही पासीजा. 



“ सुन बे जैसा कहा जाता है चुप चाप करले नहीं तो हमारा साहब गुस्से से पागल हो जाएगा. लगता है तूने अभी तक उनके बारे मे ज़्यादा नही सुना है. वो अगर चाहे तो तेरी बीवी को यहाँ से थाने तक नंगी घसीटते हुए ले जाए. गनीमत इसीमे है की रजनी देवी आप चुपचाप मेरे साथ चली चलें. वरना………जैसी आप लोगों की मर्ज़ी.” वो कुच्छ देर तक चुप रह कर महॉल बनाता रहा फिर धीरे से कहा, “ एक राज की बात बताउ?” वो धीरे से आगे बोला, “ साहब ने किसी भी कीमत पर तेरी बीवी को उठा लाने को कहा है. तू अगर ज़्यादा नाटक करे तो मुझे तेरा एनकाउंटर कर देने की भी छ्छूट है.” 



मैं चुप रही. कुच्छ भी नही था आगे कहने के लिए. मैने बेबसी से अपना सिर झुकाते हुए अपनी रजा मंदी दी. 



“ चलो मैं चलने को तैयार हूँ.” रतन बेबसी से मुझे उस संतरी के साथ जाता हुया देखता रहा. मैं चुप चाप उसके पीछे पीच्चे सिर झुकाए चलती रही. ऐसा लग रहा था पूरी बस्ती हंस रही हो और मज़ाक उड़ा रही हो. मैं अपनी आँखों से बहते हुए पानी को रोक नही पा रही थी. 



मैं उसके पीछे पीछे थाने मे जा पहुँची. 



“ जा साहब के कमरे मे.” उसने कहा. मैने बिना कुच्छ कहे उस थानेदार के कॅबिन मे प्रवेश किया. वहाँ एक 50-55 की उम्र का छर्हरे बदन का आदमी बैठा हुया था. 



“ ह्म्‍म्म….” उसने मुझे एक नज़र देख कर एक हुंकार भरी,” माल तो बहुत अच्च्छा ढूँढा रे. इस साल तेरा प्रमोशन पक्का.” 



“ साहब. मैं जानता था आपको पसंद आएगी. ये कोई रांड़ नही है. किसी की नयी नवेली जोरू है. फँस गयी हमारे चंगुल मे.” 



“ और तू इसे अपनी रांड़ समझ कर इसकी बोटी बोटी एक कर रहा है. हाहाहा….साला….तू बहुत हरामी है…..” 



थानेदार ने मुझे अपनी सारी का आँचल सीने से हटाने का इशारा किया. मैने बिना कुच्छ कहे वैसा ही किया. मैं जानती थी इन लोगों से मुझे बचाने वाला कोई नही है. ये जो चाहते हैं करके ही रहेंगे. खुशी ख़ुसी नही की तो ज़ोर ज़बरदस्ती करेंगे. जिससे नुकसान मेरा ही होगा. मेरी हालत तो उस तरबूज की तरह थी की चाकू उस पर गिरे ये वो चाकू पे, हर हालत मे नुकसान तरबूज का ही होता है. 



मैं अपनी सारी को सीने से हटा कर अपने बड़े बड़े उरोज उसकी तरफ तान कर खड़ी रही. दोस्तों कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा क्रमशः............
 
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -26 
गतान्क से आगे... 


“वाआह….वाह…क्या रसीले आम हैं. मेरा तो बुरा हाल हो रहा है. अबे ये कोई नाज़ नखरे तो नही करेगी ना?” 



“अरे साहब….ये कुच्छ नही करेगी…साली थोड़ी सी भी चूं चापद की तो पूरे मोहल्ले मे नंगी करके घूमावँगा इसे और सारे मोहल्ले के सामने इसका और इसके मरद का एनकाउंटर कर दूँगा.” थानेदार भद्दी हँसी हंसता हुआ आगे बोला, “ आप इसे जितनी मर्ज़ी जैसी मर्ज़ी रागडो. साली मर भी जाए तो कोई बात नही है.” 



फिर थानेदार मेरे करीब आकर दबी ज़ुबान मे मुझे धमकी दी. “ अगर तूने साहब के सामने ज़रा भी नाटक किया तो तेरी बोटी बोटी अलग करके कुत्तों के आगे डाल दूँगा. समझी? साहब को आज मज़ा आ जाए फिर तुझे आज़ाद कर दूँगा.” 



वो आदमी एक झटके से उठ खड़ा हुया और लगभग मुझे खींचता हुया बगल के उसी कमरे मे ले गया जहाँ मैं पहले भी नूच चुकी थी. मैने कोई विरोध किया. उसने जैसा चाहा मुझे नोचा. साला कुत्ता इतना विकृत मानसिकता वाला था की उसने संभोग करते वक़्त अपनी सिगरेट से मेरे स्तनो को मेरी अन्द्रूनि जांघों को गोद डाला. मैं चीख रही थी चिल्ला रही थी मगर कोई सुनने वाला नही था. जब मैं ज़्यादा ही चीखने लगी तो थानेदार ने आकर मेरे हाथ पैरों को फैला कर बिस्तर के सिरहाने के साथ बाँध दिया. 



मेरे जिस्म को एक एक कर सब ने नोचा. कब सुबह हो गयी पता ही नही चला. सुबह मुझे थाने से बाहर छ्चोड़ दिया गया. मैं गिरती पड़ती अपने घर पहुँची तो देखा घर का दरवाजा खुला हुआ है और रतन का कोई नामो निशान नही है. वो इस परेशानी को बर्दस्त नही कर सका और घर छ्चोड़ कर पता नही कहाँ चला गया. दो तीन दिन तक मैं उसका इंतेज़ार करती रही. जब लोगों को इस बात का पता चला तो सब मुझ से किसी धंधे वाली की तरह छेड़ छाड़ करने लगे. दमले से जब अपनी असमात बचना मुश्किल हो गया तो एक रात सुनसान मे मे एक पोटली मे दो जोड़ी कपड़े रख कर घर से निकल पड़ी. 



मैं वहाँ से चलती हुई स्टेशन पहुँची वहाँ खड़ी एक ट्रेन पर चढ़ गयी. सोचा था कि चलती ट्रेन से कहीं कूद जाउन्गी मगर जिगर मे इतनी हिम्मत ना जुटा पाई. आत्महत्या करना भी हर किसी के बस की बात नही होती. 



मैं एक सीट पर अपने घुटनो पर सिर रखे पता नही किस सोच मे डूबी हुई थी. तभी चार गेरुआ वस्त्र मे साधु आकर आमने सामने बैठ गये. मुझे पता ही नही था कि वो एक रिज़र्व्ड कॉमपार्टमेंट था. ट्रेन चलने के कुकछ देर बाद टीटी आ पहुँचा. मुझसे टिकेट माँगा तो मैं घबरा कर इधर उधर देखने लगी. तभी सामने बैठ उन साधुओं के गुरुजी ने अपने बटुए से पैसे निकाल कर टीटी को टिकेट बनाने को कहा. 



“कहाँ जाना है.” टीटी ने पूछा. मैं चुप रही. मुझे पता ही नही था कि मुझे जाना कहाँ है. 



“देल्ही तक का बना दो.” स्वामी जी ने कहा. मैने उनका चेहरा देखा. उनके चेहरे मे इतना तेज था कि मैं उनसे नज़रें नही मिला पाई. 
 
ट्रेन चलने लगी थी. धीरे धीरे वो मुझसे बातें करने लगे और मैं उनसे खुलने लगी. मैने अपनी आप बीती उन्हे सुनाई तो स्वामी जी ने मेरे सिर पर हाथ फेरा. मुझे ऐसा लगा मरो बिजली की तरंगे उनके हाथ से निकल कर मेरे जिस्म मे प्रवेश कर रही हैं. 



“ बस तुम ने जिंदगी मे बहुत दुख झेले हैं. तुम तो अपनी जिंदगी समाप्त करने जा रही थी. हमने तुम्हे बचा लिया. तो हमारे कहे अनुसार अपनी बाकी की जिंदगी हमारे हवाले कर दो. मैं रास्ता दिखाउन्गा तुम्हे आत्मिक सच का. जीवन के सच्चे आनंद का मार्ग दिखाउन्गा.” कहते हुए उन्हों ने मेरे माथे को चूमा. मैने नीचे बैठ कर उनके चरण छ्छू कर उनमे अपनी श्रद्धा और सहमति जताई. 



मैं उनके साथ चलती हुई देल्ही चली आइ. यहा आश्रम के वातावरण मे मे इतनी घुलमिल गयी कि मुझमे किसी बात की कोई चिंता नही रह गयी. यहाँ के उन्मुक्त वातावरण मे रहते हुए मैं खुद अपने आप को स्वामी जी की सेवा मे न्योचछवर कर दिया. जिस दिन इन्हों ने मुझे पहली बार च्छुआ मुझे लगा कि मेरा जीवन सफल हो गया है. 



“ सच रजनी, तुम बहुत खुशनसीब हो जो आख़िर तक स्वामीजी की छत्र छाया मे आ ही गयी. स्वामी जी उस विशाल पेड की तरह हैं जिस की छत्र छाया मे आने वाले हर किसी को सिर्फ़ मन की ठंडक ही नही बल्कि तन की भूख से भी निजात मिलती है.” मैने रजनी की हथेलियों को अपनी हथेली से दबाया. 



तभी एक आदमी ने आकर बताया कि स्वामी जी ने मुझे बुलाया है. मैने रजनी से विदा ली और उस आदमी के साथ साथ स्वामी जी के कमरे मे पहुँची. स्वामी जी इस वक़्त एक अलग कमरे मे थे. इस कमरे मे चारों तरफ शीशा लगा हुआ था. मेरा अक्स हर दीवार पर नज़र आ रहा था. कमरे के बीच ज़मीन पर एक आसान बिच्छा था. 



स्वामी जी उस आसान पर बिल्कुल नग्न बैठे थे. उनका लिंग पूरा तना हुआ उनकी जांघों के बीच खड़ा था. उनकी आँखें बंद थी मगर एक एक रोया उत्तेजना से फदक रहा था. पूरे कमरे मे एक हल्की सी रोशनी हो रही थी और पिन ड्रॉप साइलेंट था. यहाँ तक की चलने फिरने से कपड़ों के रगड़ खाने की आवाज़ भी सुनाई दे रही थी. पूरे कमरे मे भीनी भीनी एक सुगंध फैली हुई थी जिससे कमरे का वातावरण और ज़्यादा नशीला हो रहा था. ऐसे वातावरण मे जब कोई सेक्स की कामना करे तो सामने वाला कितना भी सख़्त दिल हो अपने ऊपर काबू नही रख पाता है. 



मैं चलते हुए उनके सामने जाकर खड़ी हुई. उस आदमी ने मेरे पीछे आकर मेरे गाउन की डोर को ढीला कर दिया और उसे खोल कर कंधे से उतार दिया. मैने अपनी बाँहें पीछे की ओर करके उसे उसके काम मे मदद की. 
 
अब मैं भी बिल्कुल नग्न थी. उस आदमी ने मेरे गाउन को तह करके एक बक्से के उपर रख दिया और बिना किसी आवाज़ के बाहर निकल गया. कमरे के दरवाजे के बंद होने की हल्की सी “क्लिक” की आवाज़ सुन कर स्वामीजी ने अपनी आँखें खोली. मुझे अपने सामने नग्न अवस्था मे देख कर उनके होंठो पर एक हल्की सी मुस्कुराहट दौड़ गयी. 



स्‍वमी जी ने अपना एक हाथ मेरी ओर बढ़ा दिया. मैने भी अपना हाथ बढ़ा कर उनके हाथ पर रख दिया. उन्हों ने मेरी हथेली को थाम कर हल्के से अपनी ओर खींचा. मैं अपने घुटने मोड़ कर उनके सामने बैठ गयी. 



हम दोनो घुटनो के बल एक दूसरे को छ्छूते हुए आमने सामने बैठे थे. उस कमरे मे हर ओर सिर्फ़ और सिर्फ़ उत्तेजना फैली हुई थी. मेरा बदन एक अद्भुत रोमांच से सिहर रहा था. मेरी योनि से तरल प्रेकुं बहता हुया बाहर निकल रहा था.



स्वामी जी ने घुटने के बल उठ कर मुझे अपनी बाँहों मे भर लिया और अपने तपते होंठों से मेरे होंठों को हल्के से च्छुआ. मैं उत्तेजना बर्दस्त नही कर पा रही थी. मैने अपने हाथों मे उनके सिर को थाम लिया. और मानो उनके होंठों पर टूट पड़ी. मेरे सूखे होंठ उनके होंठों को मसल्ने लगे. मैने अपनी जीभ उनके मुँह मे डाल दी और उनके मुँह मे फिराने लगी. मेरी जीभ के धक्कों से उनकी भी जीभ चुप नही रह सकी और फिर दोनो की जीभ एक दूसरे से गुत्थम गुत्था हो गयी. 



ऐसा लग रहा था मानो मैं पहली बार किसी मर्द के संपर्क मे आइ हूँ. मैं सेक्स मे पागल हो रही थी. मगर वो थे कि उनपर मानो कोई असर नही हो रहा था. कुच्छ देर तक उन्हों ने मुझे अपनी कर लेने दिया फिर कंधों से पकड़ कर मुझे अपने से अलग किया. मुझे अपने से कुच्छ दूर कर कुच्छ लम्हों तक मेरे एक एक अंग को निहारते रहे. 



“क्या…देख रहे हैं…?” मेरे बाल खुल कर चेहरे पर बिखर गये थे और आँखें उत्तेजना मे बंद हुई जा रही थी. 



“ तुम्हे रश….” आज पहली बार उनके मुँह से अपने लिए “देवी” की जगह अपना नाम वो भी इतने प्यार से, सुन कर एक बार तो विश्वास ही नही हुआ.



“ क्या कहा…..क्या कहा अपने? एक बार और पुकारो. प्लीज़..” मेरे कन उनकी मीठी आवाज़ को सुनने के लिए तरस रहे थे. 



“ रश…..रश्मि देवी.” 



“ नही रश…रश ही ठीक है. मैं आपकी रश हूँ. कर लो अपनी दीवानी को जी भर कर प्यार कर लो. मैं आपके साथ बिताए हर एक लम्हे को जीना चाहती हूँ. जब मैं यहाँ से वापस जाउन्गी तो इन्हे मैं अपने दिल मे छिपा कर ले जाउन्गी.” 



वो मेरी बातों को सुनकर मुस्कुरा रहे थे. मैने अपनी हथेली को आगे बढ़ा कर उनके लिंग को थाम लिया और उसे हल्के हल्के से सहलाने लगी. बीच बीच मे मैं उनके नीचे लटक रहे अंडकोषों को भी मुट्ठी मे भर कर भींच देती. 



मैने उनके हाथ को पकड़ कर अपनी एक छाती पर रख कर उसे हल्के से दबा कर अपनी इच्च्छा जाहिर की. 



“ नही इस तरह इनको मसल्ने से तुम्हारे कलश मे भरा अमृत व्यर्थ बेकार जाएगा.” 
दोस्तो कहानी अभी बाकी है पढ़ते रहिए राज शर्मा की कामुक कहानियाँ आपका दोस्त राज शर्मा 
क्रमशः............ 
 
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -27 

गतान्क से आगे... 


“ तो इन्हे खाली कर दो ना मेरे देव. मेरे इन स्तनो को इतना मसलना कि अगले दो दिन तक भी इनमे दूध ना आए. और जब भी इनको देखूं आप की याद आ जाए.” मैने उनके सिर को पकड़ कर अपने स्तनो की ओर खींचा. वो बिना किसी विरोध के मेरे एक निपल के चारों ओर अपने होंठ रख दिए. उन्हों ने अपनी जीभ से मेरे निपल को सहलाना शुरू किया. 



“म्‍म्म्मम…..आआहह…..उफफफफ्फ़” जैसी उत्तेजना भरी आवाज़ मेरे होंठों से निकल रही थी. फिर उनके दाँत मेरे निपल के चारों ओर फिरने लगे. वो अपने दाँतों के बीच मेरे निपल को लेकर उन्हे हल्के हल्के से कुतर रहे थे. मेरा पूरा बदन उनकी हर्कतो से बार बार सिहर उठता था. वो अपने सामने के दाँतों के बीच मेरे एक निपल को दबा कर अपनी खुरदरी जीभ से मेरे निपल के टिप को सहला रहे थे. मैं उत्तेजना मे “सीईईईईईई…..आआअहह…….नहियिइ…..स्वामीयीईईईई……” मैं इस तरह बड़बड़ाती हुई उनके बालों को अपनी मुट्ठी मे भर कर सिर को अपनी चूचियो पर दाब रही थी. 



फिर उनके कहे बिना ही मैं अपने ही स्तानो को दबा दबा कर मसल कर उनके मुँह मे खाली करने लगी. वो मेरी हालत का मज़ा लेते हुए मेरे स्तन से बाते दूध को पीते जा रहे थे. मैं अपने उस स्तानो को तब तक मसल्ति रही जब तक उस स्तन का पूरा दूध मैने अपने गुरु को पीला नही दिया. 



“ अब इसे छ्चोड़ दो दूसरे को भी तो खाली करना है.” कह कर मैने उनके सिर को अपने स्तन से खींच कर हटाया. फिर अपने दूसरे स्तन को अपने हाथों से उठा कर उनके होंठों पर रख दिया. 



“ पियो इसे. आपके लिए ही तो सुबह से इंतेजार कर रही थी. कि कब मेरे गुरुदेव आएँगे और मैं उनकी सेवा अपने दूध से करूँगी.” मैने दूसरे स्तन को भी मसल मसल कर उनके मुँह मे खाली किया. जब दोनो दूध की बॉटल्स खाली हो गये तब जाकर उन्हों ने मुझे छ्चोड़ा. 
 
वो आसान पर बैठ कर अपनी टाँगें आगे फैला दिए. फिर मुझे अपनी गोद मे आने का इशारा किया. मैने उनके कमर के दोनो ओर अपने पैर रख कर उनकी कमर के उपर बैठने लगी. जब उनके तननाए लंड ने मेरी योनि को ष्पर्श किया तो मैने रुक कर अपने एक हाथ से उनके लिंग को अपनी योनि के उपर सेट किया और दूसरे हाथों की उंगलियों से अपनी योनि की फांकों को अलग किया. फिर मैं उनकी गोद मे बैठ गयी. उनका लंड सरसरता हुया मेरी योनि के अंदर घुस गया. मैने अपनी टाँगें सिकोड कर उनकी कमर के पीछे एक दूसरे के साथ लप्पेट ली. 



हम दोनो एक दूरे को चूमने लगे. वो अपने होंठों को मेरे चेहरे पर फिरा रहे थे. मैं भी उन्हे बेतहासा चूम रही थी. उनके हाथ मेरी बगलों से होते हुए मुझे अपने सीने पर जाकड़ रखे थे. मैं अपने निपल्स को उनके बालों भरे सीने पर रगड़ने लगी. मेरे निपल जब उनकी बालों भरी खुरदूरी छाती से रगड़ खाती तो मेरे पूरे बदन के रोए उत्तेजना मे काँटों की तरह खड़े हो जाते. 



उन्हों ने मेरी बगलों के नीचे अपनी हथेलिया लगा कर मुझे थोड़ा उठाया. तो उनका लिंग मेरी योनि से बाहर निकलने लगा. जब उनके लिंग का सिर्फ़ टिप ही मेरी योनि के अंदर था तब उन्हों ने वापस मुझे उठाए हुए हाथों को ढीला छ्चोड़ दिया. मैं वापस धम्म से उनके लिंग पर बैठ गयी और उनका लिंग मेरी योनि को चीरता हुया अंदर धँस गया. अगली बार मैने भी अपनी टाँगों पर अपने बदन का कुच्छ वजन डाल कर उनको इस आसान मे चोदने मे मदद करने लगी. 



कुच्छ देर तक उनके साथ इस आसान मे चुदाई का मज़ा लेने के बाद उन्हों ने मुझे उठाया और वहीं पर मुझे चौपाया बना कर मेरे पीछे से अपने लिंग को योनि मे ठोक दिया. फिर अगले दस मिनूट तक बड़ी तेज रफ़्तार से मेरी योनि को ठोकते रहे. मैं अपने सिर को झुका कर अपने उच्छलते हुए स्तनो को देख देख कर मज़ा ले रही थी. 



मैं एक के बाद एक कई बार झाड़ चुकी थी मगर वो थे कि उनकी रफ़्तार मे किसी तरह की कोई कमी दिखाई नही दे रही थी. लगभग दस मिनिट तक इस तरह चोदने के बाद वो पल भर को रुके. इस मौके का फयडा उठा कर मैने उन्हे आसान पर लिटा दिया और अबकी बार मैं उन पर चढ़ बैठी. वो नीचे लेटे हुए थे और मैं उनकी कमर पर सवार होकर उनके लिंग को अपनी योनि के अंदर बाहर कर रही थी. मैने अपनी योनि के मसल्स से उनके लिंग को बुरी तरह जाकड़ रखा था और उस अवस्था मे मैं उनके लिंग को दूह रही थी. मेरे बाल मेरे चेहरे के उपर बिखरे गुए थे. हम दोनो के बदन पूरी तरह पसीने से लथपथ थे. मैं उन्हे तेज रफ़्तार से चोद रही थी. उनके हाथ मेरे स्तनो को सहला रहे थे. मगर इससे मेरा दिल नही भर रहा था. मैं तो चाह रही थी कि वो मेरे दोनो स्तनो को इतना मसलें की उनके निशान मुझे कम से कम अगले एक हफ्ते उनकी याद दिलाते रहें. 



“ म्‍म्म्मम स्वामी…..अया….हा..हा….हा..मस्

लो…आआआहह माआ…..आऔर ज़ोर से मस्लो. नहियीई…..हां हाआँ इतना मस्लो की खून निकल आए…..” मैं स्वामी जी को और जोश दिला रही थी. वो मेरे दिल की बात समझ गये और मेरे स्तनो के साथ बड़ी कठोरता से पेश आए. मेरे दूधिया रंग के स्तन लाल सुर्ख हो गये थे. उन पर नीली नीली धारियाँ दिखाई दे रही थी. 
 
तभी एक झटके से उन्हों ने मुझे अपनी कमर से उठा कर अलग किया. मैं समझ गयी कि अब उनके लिंग से अमृत की बारिश होने वाली है. मैने झट उनसे अलग हो कर उनके लिंग को अपने मुँह मे भर लिया. कुच्छ ही देर मे उनके लिंग से गाढ़ा गाढ़ा खीर निकल कर मेरे मुँह मे समाने लगा. उनके लिंग से तेज़ी से इतना ज़्यादा वीर्य निकला की मैं उन्हे अपने मुँह मे संहाल नही पाई और वो क पतले सूत के रूप मे मेरे होंठों के कोनों से छलक कर बाहर आने लगे और होंठों के कोनो से चिपक कर झूलने लगे. मैने उनके वीर्य को प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया और उनके सीने पर सिर रख कर लेट गयी. तूफान के गुजर जाने के बाद होने वाली शान्ती वापस कमरे मे फैल गयी. वो बड़े प्यार से मेरे बालों मे अपनी उंगलिया फिरा रहे थे. मैं उनके सीने पर अपने दाँत गाड़ने लगी. मेरे हाथ उनके ढीले पड़े लिंग को टटोल रही थी. 



“ बस एक बार? दोबारा नही करोगे?” मैने अपने चेहरे को उठा कर अपनी ठुड्डी को उनके सीने पर रखते हुए पूछा. 



“ इतनी भूख भी अच्छि नही है देवी. इससे मनुश्य का मन डोलने लगता है. हर कार्य एक सीमा मे बँध कर रहे तब तक ही ठीक है. जिस्म की भूख भी पेट की भूख की तरह ही होती है रश्मि. जितनी भूख लगे उससे थोड़ी सी कम खाओ. देखना तुम्हारी भूख कभी ख़त्म नही होगी. और जब तुमने ज़रूरत से ज़्यादा खाना शुरू किया तो खाने की इच्च्छा समाप्त होने लगेगी.” उन्हों ने मुझे बड़े प्यार से मना कर दिया. उनकी बोली मे इतनी मिठास रहती है कि उनकी ज़ुबान से निकला हर कथन उनके शिष्यों के लिए आदेश होता है. 



मैने चुपचाप सिर झुका कर उनकी बात मान ली. मैने उनका आशीर्वाद लिया और अपना गाउन पहन कर बाहर आ गयी. बाहर दरवाजे पर ही रजनी मेरे घर से पहन कर आए कपड़े थामे मिल गयी. वो मेरी ओर देख कर मुस्कुरा दी. 



रजनी ने ही आगे बढ़ कर मुझे मेरे कपड़े पहनाए. मेरा पूरा बदन दुख रहा था और थकान भी हो रही थी इसलिए उसने एक शिष्या को बुलाया जिसने मुझे मेरी कार के बॅक सीट पर बिठा कर मुझे मेरे घर तक छ्चोड़ आया. 



घर पहुँच कर देखा कि मेरे पति जीवन लाल काम पर जा चुके थे इसलिए मैं बच गयी. सासू जी ने मुझसे मेरी ऐसी हालत के बारे मे पूछा तो मैने बहाना बना दिया कि रात मेरी तबीयत खराब हो गयी थी. बड़ी मुश्किल से वहाँ के एक शिश्य को घर छ्चोड़ने के लिए राज़ी कर वापस लौटी हूँ. बेचारी सीधी साधी महिला मेरी बात को सच मान कर चुप रह गयी. 



मैं घर आकर खूब नहाई और खाना खाकर जम कर नींद ली. बच्चा रोने लगा तो अपने बच्च्चे को बॉटल से दूध पिलाया. कुच्छ बचा ही नही था उसके लिए. सारा आश्रम तो पी गया था मेरे दूध की एक एक बूँद. मेरे दोनो दूध की बॉटल्स खाली थीं. शाम तक एक दम फ्रेश हो गयी थी. दो दिन के मंथन से मेरी चूत मे जो खलबली मची हुई थी वो भी काफ़ी हद तक शांत हो चुकी थी. मैं किसी घरेलू महिला की तरह बन संवर कर माथे पर सिंदूर और गले के मन्गल्सुत्र को ठीक कर अपने पति के आने का इंतेज़ार करने लगी. इस वक़्त कोई मुझे देखता तो उसे विस्वास ही नही होता कि मैं वही महिला हूँ जो आश्रम मे सेक्स के खेल मे व्यस्त थी. जिसने एक दिन मे जाने कितने लोगो के लंड की प्यास बुझाई थी. कितने लोगों का वीर्य अपनी कोख मे भरा था. 
दोस्तो कहानी अभी बाकी है पढ़ते रहिए राज शर्मा की कामुक कहानियाँ आपका दोस्त राज शर्मा 
क्रमशः............ 
 
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