hotaks444
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पहले उन्हों ने मुझे अपने नग्न सीने मे भींच लिया और मेरे रसीले होंठों को चूम लिए. कुच्छ देर तक तो वो मेरे बदन को सहलाते रहे. मैं अपने जांघों के बीच मे उनके लिंग की ठोकर महसूस कर रही थी. लेकिन ऐसे मौकों मे अपनी तरफ से किसी तरह की उत्तेजना से भरी हरकत करना अलोड नही था. पता नही मेरे नग्न बदन का आकर्षण या वहाँ के एन्वाइरन्मेंट का असर की सेवकराम जी जैसे आदमी को भी विचलित कर दिया था.
उन्हों ने इस दौरान एक बार मेरे स्तनो को भी मसला और पल भर के लिए मेरी योनि पर भी हाथ फिराया. वो शायद मेरी रज़ामंदी का इंतेज़ार कर रहे थे.
" सेवकरंजी अभी नही. अभी मैं पूजा मे हूँ. शरीर जूठा हो जायगा. अभी ये उचित नही है. स्वामी जी नाराज़ होंगे." ये सुनते ही वो एक दम से सकपका गये और एक झटके से मेरे शरीर से अलग हो गये. अब वो सिर झुकाए मेरे स्तनो से दूध निकालने लगे.
मैं सारा समान लेकर उसी हालत मे स्वामी जी के पास पहुँची. सारा समान स्वामी जी के हाथों मे देकर वापस आकर अपने कपड़े पहने. फिर जा कर उनके पास ही एक आसान पर अल्ति-पालती मार कर बैठ गयी और हाथ जोड़ कर आँखें मूंद ली. पूजा शुरू करने से पहले स्वामीजी ने शंख से ध्वनि निकाली और फिर एक बड़ा घंटा बजाया. आश्रम के सारे शिष्य वहाँ एकत्रित हो चुके थे. इस पूजा मे सिर्फ़ आश्रम के शिष्य या वहाँ मौजूद स्वामी जी के गेस्ट ही उपस्थित हो सकते थे. बाहर वालों का आना अलोड नही था.
सारे मर्द और औरत स्वामीजी के मंत्रोच्चारण को दोहराते हुए झूम रहे थे. कोई पंद्रह बीस मर्द और दस पंद्रह औरतें वहाँ मौजूद थी. कुच्छ देर बाद उन्होने पूजा की सामग्री से चंदन लेकर अपने माथे पर लगाया. उन्हे ऐसा करते देख सारी महिलाएँ अपने अपने वस्त्र ढीले करने लगी. मैने भी उनकी देखा देखी अपने गाउन को खोल दिया.
उन्हों ने आगे बढ़ कर सबसे पहले मेरे माथे पर फिर मेरे गले पर फिर उन्हों ने मेरे दोनो निपल्स पर चंदन लगाया. फिर अपने दाएँ हाथ की उंगली से चंदन लेकर
मेरी नाभि से योनि के कटाव जहाँ से शुरू होता है वहाँ तक लगाया. इसी तरह एक के बाद एक सारी महिलाओं के निपल्स और योनि के उपर टीका लगाया और मर्दों के लिंग पर.
उसके बाद उन्हों ने अपना हाथ धोया और पूजा मे लीन हो गये. सारे अश्रमवसी वहीं बैठे रहे जब तक ना उनकी पूजा ख़त्म हुई.
आधे घंटे तक वो ध्यान मे लीन रहे. वो पूजा के वक़्त अपने शरीर पर धारण किया वस्त्र त्याग चुके थे. वहाँ आसान पर एक दम नग्न बैठे थे. उनकी पूजा ख़त्म होने के बाद वो उठे.
उसके बाद स्वामी जी ने देवता के स्नान के बाद बचे दूध, शह्द और मेवों का मिश्रण वहाँ मौजूद सारे लोगों मे बाँटा.
फिर स्वामी जी वहाँ मौजूद एक तखत पर बैठ गये. रजनी ने आगे बढ़ कर पानी से उनके लिंग को धोया और उस पानी को पी लिया. उसके बाद वहाँ मौजूद सारी औरतों
ने एक एक कर वैसा ही किया. एक एक कर सबने उनके लिंग को धोया और उस पानी को अपने चुल्लू मे लेकर पहले सेवन किया फिर माथे पर लगा लिया.
तब तक भोग तैयार हो चुक्का था. देवता के भोग लगाने के वक़्त चारों ओर से देवता जी की मूर्ती को रेशमी पर्दों से धक दिया और स्वामी जी ने अकेले देवता को भोग लगाया.
सेवक राम ने उसके बाद भोग वितरण के लिए हॉल मे सबको इकट्ठा होने को कहा. वहाँ मौजूद भीड़ धीरे धीरे ख़त्म हो गयी.
रजनी ने मुझे और दिशा को वहीं रोक लिया. स्वामी जी को लेकर हम एक कमरे मे गये. फिर जैसा देवता जी का स्नान किया गया था ठीक उसी तरह एक विशाल टब मे आसन लगा कर कर स्वामी जी का दूध, दही, शहद मेवा, इत्र इत्यादि से स्नान करवाया गया. फिर गुलाब की पंखुड़ियों से और सबसे आख़िर मे स्वच्च्छ पानी से नहलाया गया. हम तीनो महिलाएँ उनके बदन को रगड़ रगड़ कर नहला रहे थे. उनका स्नान ख़त्म होने के बाद हमने उनके बदन को पोंच्छ कर उनको वस्त्र पहनाया. वो तैयार होकर उस कमरे से निकल गये. उनके जाने के बाद हम तीनो उस टब मे उतर कर एक दूसरे को खूब नहलाए.
दोबारा स्नान ख़त्म होने के बाद हॉल मे पहुँचे. हमने करिश्मा को इंतेज़ार करते हुए पाया. हम चारों मिल कर एक साथ ही भोजन ग्रहण किया.
भोजन ख़त्म होने के बाद. स्वामी जी ने हम चारों को पास बुलाया और कहा, " पूजा के दौरान तुम चारों गर्म हो गये होगे. जाओ पहले एक दूसरे के बदन को ठंडा करो. रश्मि तुम और दिशा दोपहर को कुच्छ देर आराम कर लेना. आज शाम को एक कार्यक्रम है. उसमे तुम को शामिल होना है. रात भर जागना पड़ सकता है. इससे तुम दोनो को काफ़ी थकान हो जाएगी."
रजनी ने स्वामी जी से पूछा की ऐसा क्या कार्यक्रम है शाम को तो स्वामी जी ने कहा,
" हमारी संस्था का एक आश्रम साउत आफ्रिका मे खुल रहा है वहाँ से दो रेप्रेज़ेंटेटिव आज शाम को आ रहे हैं. उनकी सेवा करने का जिम्मा रश्मि और दिशा पर होगा दोनो के उपर रहेगी. ठीक है?" हम दोनो ने हामी मे सिर हिलाया. "अच्च्छा अब तुम लोग जाओ."
हम चारों वहाँ से निकल कर अपने अपने कमरे मे पहुँचे. रजनी और करिश्मा हम से अलग हो चुके थे. हमारा कमरा ए/सी ऑन होने के कारण एकदम ठंडा हो रहा था. हम दोनो ने सबसे पहले कमरे मे प्रवेश करते ही दरवाजे को बंद किया. किसी भी कमरे मे कोई कुण्डी नही लगी हुई थी लॉक करने के लिए. दरवाज़ों को बस भिड़ा सकते थे लेकिन लॉक नही कर सकते थे.
क्रमशः............
उन्हों ने इस दौरान एक बार मेरे स्तनो को भी मसला और पल भर के लिए मेरी योनि पर भी हाथ फिराया. वो शायद मेरी रज़ामंदी का इंतेज़ार कर रहे थे.
" सेवकरंजी अभी नही. अभी मैं पूजा मे हूँ. शरीर जूठा हो जायगा. अभी ये उचित नही है. स्वामी जी नाराज़ होंगे." ये सुनते ही वो एक दम से सकपका गये और एक झटके से मेरे शरीर से अलग हो गये. अब वो सिर झुकाए मेरे स्तनो से दूध निकालने लगे.
मैं सारा समान लेकर उसी हालत मे स्वामी जी के पास पहुँची. सारा समान स्वामी जी के हाथों मे देकर वापस आकर अपने कपड़े पहने. फिर जा कर उनके पास ही एक आसान पर अल्ति-पालती मार कर बैठ गयी और हाथ जोड़ कर आँखें मूंद ली. पूजा शुरू करने से पहले स्वामीजी ने शंख से ध्वनि निकाली और फिर एक बड़ा घंटा बजाया. आश्रम के सारे शिष्य वहाँ एकत्रित हो चुके थे. इस पूजा मे सिर्फ़ आश्रम के शिष्य या वहाँ मौजूद स्वामी जी के गेस्ट ही उपस्थित हो सकते थे. बाहर वालों का आना अलोड नही था.
सारे मर्द और औरत स्वामीजी के मंत्रोच्चारण को दोहराते हुए झूम रहे थे. कोई पंद्रह बीस मर्द और दस पंद्रह औरतें वहाँ मौजूद थी. कुच्छ देर बाद उन्होने पूजा की सामग्री से चंदन लेकर अपने माथे पर लगाया. उन्हे ऐसा करते देख सारी महिलाएँ अपने अपने वस्त्र ढीले करने लगी. मैने भी उनकी देखा देखी अपने गाउन को खोल दिया.
उन्हों ने आगे बढ़ कर सबसे पहले मेरे माथे पर फिर मेरे गले पर फिर उन्हों ने मेरे दोनो निपल्स पर चंदन लगाया. फिर अपने दाएँ हाथ की उंगली से चंदन लेकर
मेरी नाभि से योनि के कटाव जहाँ से शुरू होता है वहाँ तक लगाया. इसी तरह एक के बाद एक सारी महिलाओं के निपल्स और योनि के उपर टीका लगाया और मर्दों के लिंग पर.
उसके बाद उन्हों ने अपना हाथ धोया और पूजा मे लीन हो गये. सारे अश्रमवसी वहीं बैठे रहे जब तक ना उनकी पूजा ख़त्म हुई.
आधे घंटे तक वो ध्यान मे लीन रहे. वो पूजा के वक़्त अपने शरीर पर धारण किया वस्त्र त्याग चुके थे. वहाँ आसान पर एक दम नग्न बैठे थे. उनकी पूजा ख़त्म होने के बाद वो उठे.
उसके बाद स्वामी जी ने देवता के स्नान के बाद बचे दूध, शह्द और मेवों का मिश्रण वहाँ मौजूद सारे लोगों मे बाँटा.
फिर स्वामी जी वहाँ मौजूद एक तखत पर बैठ गये. रजनी ने आगे बढ़ कर पानी से उनके लिंग को धोया और उस पानी को पी लिया. उसके बाद वहाँ मौजूद सारी औरतों
ने एक एक कर वैसा ही किया. एक एक कर सबने उनके लिंग को धोया और उस पानी को अपने चुल्लू मे लेकर पहले सेवन किया फिर माथे पर लगा लिया.
तब तक भोग तैयार हो चुक्का था. देवता के भोग लगाने के वक़्त चारों ओर से देवता जी की मूर्ती को रेशमी पर्दों से धक दिया और स्वामी जी ने अकेले देवता को भोग लगाया.
सेवक राम ने उसके बाद भोग वितरण के लिए हॉल मे सबको इकट्ठा होने को कहा. वहाँ मौजूद भीड़ धीरे धीरे ख़त्म हो गयी.
रजनी ने मुझे और दिशा को वहीं रोक लिया. स्वामी जी को लेकर हम एक कमरे मे गये. फिर जैसा देवता जी का स्नान किया गया था ठीक उसी तरह एक विशाल टब मे आसन लगा कर कर स्वामी जी का दूध, दही, शहद मेवा, इत्र इत्यादि से स्नान करवाया गया. फिर गुलाब की पंखुड़ियों से और सबसे आख़िर मे स्वच्च्छ पानी से नहलाया गया. हम तीनो महिलाएँ उनके बदन को रगड़ रगड़ कर नहला रहे थे. उनका स्नान ख़त्म होने के बाद हमने उनके बदन को पोंच्छ कर उनको वस्त्र पहनाया. वो तैयार होकर उस कमरे से निकल गये. उनके जाने के बाद हम तीनो उस टब मे उतर कर एक दूसरे को खूब नहलाए.
दोबारा स्नान ख़त्म होने के बाद हॉल मे पहुँचे. हमने करिश्मा को इंतेज़ार करते हुए पाया. हम चारों मिल कर एक साथ ही भोजन ग्रहण किया.
भोजन ख़त्म होने के बाद. स्वामी जी ने हम चारों को पास बुलाया और कहा, " पूजा के दौरान तुम चारों गर्म हो गये होगे. जाओ पहले एक दूसरे के बदन को ठंडा करो. रश्मि तुम और दिशा दोपहर को कुच्छ देर आराम कर लेना. आज शाम को एक कार्यक्रम है. उसमे तुम को शामिल होना है. रात भर जागना पड़ सकता है. इससे तुम दोनो को काफ़ी थकान हो जाएगी."
रजनी ने स्वामी जी से पूछा की ऐसा क्या कार्यक्रम है शाम को तो स्वामी जी ने कहा,
" हमारी संस्था का एक आश्रम साउत आफ्रिका मे खुल रहा है वहाँ से दो रेप्रेज़ेंटेटिव आज शाम को आ रहे हैं. उनकी सेवा करने का जिम्मा रश्मि और दिशा पर होगा दोनो के उपर रहेगी. ठीक है?" हम दोनो ने हामी मे सिर हिलाया. "अच्च्छा अब तुम लोग जाओ."
हम चारों वहाँ से निकल कर अपने अपने कमरे मे पहुँचे. रजनी और करिश्मा हम से अलग हो चुके थे. हमारा कमरा ए/सी ऑन होने के कारण एकदम ठंडा हो रहा था. हम दोनो ने सबसे पहले कमरे मे प्रवेश करते ही दरवाजे को बंद किया. किसी भी कमरे मे कोई कुण्डी नही लगी हुई थी लॉक करने के लिए. दरवाज़ों को बस भिड़ा सकते थे लेकिन लॉक नही कर सकते थे.
क्रमशः............