Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन - Page 8 - SexBaba
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Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन

पहले उन्हों ने मुझे अपने नग्न सीने मे भींच लिया और मेरे रसीले होंठों को चूम लिए. कुच्छ देर तक तो वो मेरे बदन को सहलाते रहे. मैं अपने जांघों के बीच मे उनके लिंग की ठोकर महसूस कर रही थी. लेकिन ऐसे मौकों मे अपनी तरफ से किसी तरह की उत्तेजना से भरी हरकत करना अलोड नही था. पता नही मेरे नग्न बदन का आकर्षण या वहाँ के एन्वाइरन्मेंट का असर की सेवकराम जी जैसे आदमी को भी विचलित कर दिया था. 



उन्हों ने इस दौरान एक बार मेरे स्तनो को भी मसला और पल भर के लिए मेरी योनि पर भी हाथ फिराया. वो शायद मेरी रज़ामंदी का इंतेज़ार कर रहे थे. 

" सेवकरंजी अभी नही. अभी मैं पूजा मे हूँ. शरीर जूठा हो जायगा. अभी ये उचित नही है. स्वामी जी नाराज़ होंगे." ये सुनते ही वो एक दम से सकपका गये और एक झटके से मेरे शरीर से अलग हो गये. अब वो सिर झुकाए मेरे स्तनो से दूध निकालने लगे. 

मैं सारा समान लेकर उसी हालत मे स्वामी जी के पास पहुँची. सारा समान स्वामी जी के हाथों मे देकर वापस आकर अपने कपड़े पहने. फिर जा कर उनके पास ही एक आसान पर अल्ति-पालती मार कर बैठ गयी और हाथ जोड़ कर आँखें मूंद ली. पूजा शुरू करने से पहले स्वामीजी ने शंख से ध्वनि निकाली और फिर एक बड़ा घंटा बजाया. आश्रम के सारे शिष्य वहाँ एकत्रित हो चुके थे. इस पूजा मे सिर्फ़ आश्रम के शिष्य या वहाँ मौजूद स्वामी जी के गेस्ट ही उपस्थित हो सकते थे. बाहर वालों का आना अलोड नही था. 

सारे मर्द और औरत स्वामीजी के मंत्रोच्चारण को दोहराते हुए झूम रहे थे. कोई पंद्रह बीस मर्द और दस पंद्रह औरतें वहाँ मौजूद थी. कुच्छ देर बाद उन्होने पूजा की सामग्री से चंदन लेकर अपने माथे पर लगाया. उन्हे ऐसा करते देख सारी महिलाएँ अपने अपने वस्त्र ढीले करने लगी. मैने भी उनकी देखा देखी अपने गाउन को खोल दिया. 



उन्हों ने आगे बढ़ कर सबसे पहले मेरे माथे पर फिर मेरे गले पर फिर उन्हों ने मेरे दोनो निपल्स पर चंदन लगाया. फिर अपने दाएँ हाथ की उंगली से चंदन लेकर 
मेरी नाभि से योनि के कटाव जहाँ से शुरू होता है वहाँ तक लगाया. इसी तरह एक के बाद एक सारी महिलाओं के निपल्स और योनि के उपर टीका लगाया और मर्दों के लिंग पर. 



उसके बाद उन्हों ने अपना हाथ धोया और पूजा मे लीन हो गये. सारे अश्रमवसी वहीं बैठे रहे जब तक ना उनकी पूजा ख़त्म हुई. 

आधे घंटे तक वो ध्यान मे लीन रहे. वो पूजा के वक़्त अपने शरीर पर धारण किया वस्त्र त्याग चुके थे. वहाँ आसान पर एक दम नग्न बैठे थे. उनकी पूजा ख़त्म होने के बाद वो उठे. 



उसके बाद स्वामी जी ने देवता के स्नान के बाद बचे दूध, शह्द और मेवों का मिश्रण वहाँ मौजूद सारे लोगों मे बाँटा. 



फिर स्वामी जी वहाँ मौजूद एक तखत पर बैठ गये. रजनी ने आगे बढ़ कर पानी से उनके लिंग को धोया और उस पानी को पी लिया. उसके बाद वहाँ मौजूद सारी औरतों 
ने एक एक कर वैसा ही किया. एक एक कर सबने उनके लिंग को धोया और उस पानी को अपने चुल्लू मे लेकर पहले सेवन किया फिर माथे पर लगा लिया. 



तब तक भोग तैयार हो चुक्का था. देवता के भोग लगाने के वक़्त चारों ओर से देवता जी की मूर्ती को रेशमी पर्दों से धक दिया और स्वामी जी ने अकेले देवता को भोग लगाया. 



सेवक राम ने उसके बाद भोग वितरण के लिए हॉल मे सबको इकट्ठा होने को कहा. वहाँ मौजूद भीड़ धीरे धीरे ख़त्म हो गयी. 



रजनी ने मुझे और दिशा को वहीं रोक लिया. स्वामी जी को लेकर हम एक कमरे मे गये. फिर जैसा देवता जी का स्नान किया गया था ठीक उसी तरह एक विशाल टब मे आसन लगा कर कर स्वामी जी का दूध, दही, शहद मेवा, इत्र इत्यादि से स्नान करवाया गया. फिर गुलाब की पंखुड़ियों से और सबसे आख़िर मे स्वच्च्छ पानी से नहलाया गया. हम तीनो महिलाएँ उनके बदन को रगड़ रगड़ कर नहला रहे थे. उनका स्नान ख़त्म होने के बाद हमने उनके बदन को पोंच्छ कर उनको वस्त्र पहनाया. वो तैयार होकर उस कमरे से निकल गये. उनके जाने के बाद हम तीनो उस टब मे उतर कर एक दूसरे को खूब नहलाए. 



दोबारा स्नान ख़त्म होने के बाद हॉल मे पहुँचे. हमने करिश्मा को इंतेज़ार करते हुए पाया. हम चारों मिल कर एक साथ ही भोजन ग्रहण किया. 

भोजन ख़त्म होने के बाद. स्वामी जी ने हम चारों को पास बुलाया और कहा, " पूजा के दौरान तुम चारों गर्म हो गये होगे. जाओ पहले एक दूसरे के बदन को ठंडा करो. रश्मि तुम और दिशा दोपहर को कुच्छ देर आराम कर लेना. आज शाम को एक कार्यक्रम है. उसमे तुम को शामिल होना है. रात भर जागना पड़ सकता है. इससे तुम दोनो को काफ़ी थकान हो जाएगी." 

रजनी ने स्वामी जी से पूछा की ऐसा क्या कार्यक्रम है शाम को तो स्वामी जी ने कहा, 
" हमारी संस्था का एक आश्रम साउत आफ्रिका मे खुल रहा है वहाँ से दो रेप्रेज़ेंटेटिव आज शाम को आ रहे हैं. उनकी सेवा करने का जिम्मा रश्मि और दिशा पर होगा दोनो के उपर रहेगी. ठीक है?" हम दोनो ने हामी मे सिर हिलाया. "अच्च्छा अब तुम लोग जाओ." 

हम चारों वहाँ से निकल कर अपने अपने कमरे मे पहुँचे. रजनी और करिश्मा हम से अलग हो चुके थे. हमारा कमरा ए/सी ऑन होने के कारण एकदम ठंडा हो रहा था. हम दोनो ने सबसे पहले कमरे मे प्रवेश करते ही दरवाजे को बंद किया. किसी भी कमरे मे कोई कुण्डी नही लगी हुई थी लॉक करने के लिए. दरवाज़ों को बस भिड़ा सकते थे लेकिन लॉक नही कर सकते थे. 

क्रमशः............
 
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -37 

गतान्क से आगे... 

तभी दरवाजा खोल कर मोहन और जीत अंदर आए. दोनो अपने बदन पर सिर्फ़ एक पतली धोती लप्पेट रखे थे. उनका उपरी बदन नग्न ही था. फिर मोहन ने मुझे अपनी बाहों 
मे ले लिया और जीतराम ने दिशा को. एक झटके मे दोनो ने अपने बदन पर पहने एक मात्र वस्त्र अपनी धोती को नोच फेंका. दोनो सुबह के कार्य क्रम के बाद से ही काफ़ी उतावले हो रहे थे. हम दोनो उन दोनो के उतावलेपन को देख कर मुस्कुरा रहे थे. उनके लिंग हम पहली बार नही देख रहे थे. अभी घंटे भर तो हम नग्न ही एक दूसरे के साथ बिताए थे. लेकिन अब इस बार किसी दूसरे सन्दर्भ मे हम एक दूसरे के सामने नग्न थे. उनके लिंग वापस तन कर खड़े हो गये थे. इसे देख कर दिशा ने 
मुझे इशारा करते हुए अपनी एक आँख दबाई. दोनो हम दोनो को अपनी बाहों मे लेकर हमारे गाउन को बदन से अलग कर दिया. दोनो इस वक़्त इतने उतावले हो रहे थे कि अगर उन्हे कोई रोकता तो वो पागल हो जाते. 



हम चारों वापस उसी अवस्था मे आ गये थे. दोनो हम दोनो को खींचते हुए बिस्तर पर ले गये. बिस्तर पर हम दोनो को पास पास हाथो और पैरों के बल पर झुका कर चोपाया बनाया. दोनो एक साथ हमारी योनि को पीछे से चाटने लगे. उन्हों ने अपनी उंगलियों से हमारी योनि की फांकों को अलग कर के उन्हे चाटने लगे. हम दोनो भी सुबह से ही उत्तेजित थे. उनकी हरकतों से मैं गर्म हो गयी और मेरे मुँह से सीयसकारियाँ फूटने लगी. मैने अपने निचले होंठ को दाँतों के बीच भींचते हुए दिशा की ओर देखा तो पाया की वो अपने सिर को उत्तेजना मे झटक रही थी. उसका चेहरा पूरी तरह बालों मे ढँक गया था. हम दोनो ही एक साथ स्खलित हो गये. 

मोहन मेरी योनि मे अपनी जीभ डाल कर उसका रस चूस रहा था तो जीत राम अपनी जीभ को बाहर निकाल कर दिशा की योनि की फांकों को चाट रहा था. दोनो ने हमारी योनि के रस को चाट चाट कर सॉफ कर दिया. 



अब हम चारों के लिए और सब्र कर पाना मुश्किल हो गया . दोनो एक साथ ही उठे और अपने अपने लिंग को हम दोनो की भूखी चूत के द्वार पर लगाया. मेरी योनि उत्तेजना मे पहले ही खुल बंद हो रही थी. दोनो की योनि से ही गर्मी के कारण काम रस झाग बन कर 
टपाक रहा था. इसलिए उनके लगाए एक धक्के मे ही दोनो के लिंग जड़ तक हमारी चूत मे समा गये. हमने बिस्तर के सिरहाने को थाम कर उनके धक्कों से आगे पीछे झूलने लगे. दोनो अपनी पूरी ताक़त का प्रदर्शन हमे चोदने मे कर रहे थे. 



हम दोनो अगल-बगल मे डॉगी स्टाइल मे झुकी हुई ठुकवा रही थीं. दोनो ने अपने धक्कों का राइतम ऐसा रखा था की हम दोनो के शरीर एक साथ आगे बढ़ते और एक साथ पीछे हट रहे थे. हम दोनो एक दूसरे की चुदाई देखते हुए अपनी चुदाई का मज़ा ले रही थी. पूरे कमरे मे हमारी “अया”, “ऊऊओ” और उनकी “हुंग…हुंग” और “फॅक फॅक” की आवाज़े गूँज रही थी. 



वो दोनो इतने ज़्यादा उत्तेजित थे कि अपने उपर ज़्यादा देर तक कंट्रोल नही रख पाए और 15-20 धक्कों मे ही सबसे पहले मोहन मेरी योनि मे अपनी पिचकारी छ्चोड़ कर मेरे उपर गिर पड़ा. दो चार धक्के बाद जीतराम भी दिशा की योनि मे अपना रस डाल कर शांत हो गया. दोनो भर भरा कर हमारे बदन पर ढेर हो गये उनके वजन से हम भी बिस्तर पर गिर पड़े. कुच्छ देर पहले ही हमारा स्खलन होने की वजह से इस बार हम दोनो शांत नही हुए थे. 

" क्या हुआ आप दोनो इतनी जल्दी शांत कैसे हो गये." दिशा ने झुनझूलाते हुए उनसे कहा. 

" हां अब हमारी गर्मी कौन शांत करेगा. ह्म्‍म्म्मम उूउउफफफफफफ्फ़ तुम दोनो का हो गया है मगर हमारा स्खलन अभी हुया नही है. प्लीज़ इतनी जल्दी मत छोड़ो" मैं 
अपनी उंगलियों को ज़ोर ज़ोर से अपनी चूत के अंदर बाहर कर रही थी. 

“ प्लीज़ हमारा रस तो निकलवा दो “ दिशा जीतराम के ढीले पड़े लिंग को अपनी योनि मे खींच रही थी. मगर उसके लिंग मे अब कोई जान नही बची थी. 

दिशा उससे निराश होकर आगे बढ़ कर मुझसे लिपट गयी और अपने होंठों को मेरी 
गर्देन पर फिराने लगी. वो हल्के हल्के से अपने दाँतों के बीच मेरी गर्देन को दबा रही थी. अपने दाँत मेरे जिस्म मे गढ़ा रही थी. मैं भी उत्तेजित होकर उसको अपने उपर खींचने लगी. 



“ स्वामी जी ने छक्को की भीड़ इकट्ठी कर रखी है. सालों मे दम तो है नही चले हमारी आग बुझाने. “ दिशा काफ़ी उत्तेजित हो कर बॅड बड़ा रही थी. उसने गुस्से मे जीतराम को एक लात मारी जिसे जीतराम ने पीछे हटकर बेकार कर दिया. 

दोनो मर्द अपने कपड़े समेट कर वहाँ से चुप चाप खिसक लिए. हम दोनो की तो इच्छा हो रही थी कि उन दोनो को नोच खाएँ लॅकिन पता ही नही चल पाया कब दोनो भाग गये हैं. 

" म्‍म्म्मम....... दिशा कुच्छ कर उफफफफ्फ़ मेरा बदन जल रहा है." मैने उससे कहा. 

" हां ये दोनो नमार्द कर तो कुच्छ पाए नही बस हमारी आग को भड़का कर भाग गये. साले चोदने चले थे. दो चार धक्कों मे ही ठंडे पड़ गये. हाआाईयईईई आब्ब कावउउऊँ बुझाएगा ये आआग " 
 
हम दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए एक दूसरे के बदन को सहला रहे थे एक दूसरे के बदन को मसल रहे थे. तभी दरवाजे पर एक हल्की सी आवाज़ हुई और इससे पहले की हम कुच्छ समझ पाते दरवाजा खुल गया. अंदर आने वाले व्यक्ति को देख कर हम दोनो के चेहरे चमक उठे. दरवाजे पर सेवक राम जी खड़े थे. 

"क्या बात है देवियों कैसे तुम लोग तड़प रही हो? कमरे के बाहर सिसकारियों की आवाज़ें आ रही थी तो मैने सोचा की एक बार देखूं तो सही की अंदर क्या चल रहा है. ह्म्‍म्म्म लगता है तुम लोगों का बदन कामग्नी सी सुलग रहा है. इस तड़प, इस आग को बुझाने के लिए किसी मर्द के लिंग की सख़्त ज़रूरत है. मुझे लगता है कि तुम्हारी सहयता करके कुच्छ पुन्य लाभ मुझे भी हो जाएगा." 

" गुरुजी कुच्छ कीजिए. वो दोनो हमारी आग को शांत किए बिना ही अपना रस झाड़ कर भाग गये." 



“कौन?” 



“ जीतराम और मोहन ” दिशा सुलग रही थी कामग्नी मे. 

" कुच्छ कीजिए सेवक राम जी नही तो बदन की ये आग हमे जला कर रख 
देगी. ऊऊहह... ....." मैने तड़प कर कहा. और अपनी योनि को उनकी तरफ कर अपनी उंगलियों से उसे सहलाने लगी. 

” ठीक है देवियों. जैसी आपकी इच्छा. आपके किसी काम आना मेरे लिए सौभाग्य की बात है.” सेवकराम जी ने एक झटके मे अपने वस्त्र को नोच फेंका और बिल्कुल नग्न अवस्था मे हमारे बिस्तर की ओर बढ़े. उनके लिंग का साइज़ देख कर मेरा मन खुश हो गया. उनका बदन काफ़ी बलिशट था और टाँगों के बीच घने जंगल के बीच उनका मोटा लिंग तन कर खड़ा था. उनका लिंग भी स्वामी जी की तरह काफ़ी लंबा और काफ़ी मोटा था. वो हमारे करीब आकर हम दोनो को अपनी बाँहों मे भर कर चूमने लगे. 



हम दोनो तो उत्तेजित थी ही. हम बिना किसी लाग लप्पेट के उनसे लिपट गये. दिशा उनके लिंग को अपनी मुट्ठी मे लाकर उसे सहलाने लगी. मैं उनके लिंग के नीचे लटक रहे दोनो गेंदों को अपने मुट्ठी मे भर कर दबा रही थी. 



सेवक राम जी हमारे स्तानो को मसल रहे थे. फिर उन्हों ने बिस्तर पर हमे वापस उसी 
अवस्था मे डोगी स्टाइल मे झुकाया और पीछे से सबसे पहले मेरी चूत मे अपने लिंग को अंदर घुसेड दिया. 

" आआआहह…….म्‍म्म्मम.... डीईीीइसस्स्शहााअ. ....म्‍म्म्मममम. ...मज़ा आ गय्ाआअ. क्य्ाआअ लंड हाईईईई. हाआँ ज़ोर ज़ोर से ज़ोर ज़ोर से....उफफफफफ्फ़….." मैं दिशा की ओर अपना चेहरा मोड़ कर बड़बड़ा रही थी. 

दिशा उठ कर हम दोनो के खेल मे साथ देने लगी. वो बिस्तर से उठकर सेवकराम जी के नग्न बदन से लिपट गयी और उनके होंठों को चूसने लगी. उसकी उंगलियाँ मेरी चूत को ठोकते उनके लिंग पर फिर रही थी. कभी वो उनके लिंग के नीचे हिलते दोनो गेंदों को मसल्ति तो कभी उनके निपल्स पर दाँत गढ़ाती. कुच्छ देर बाद वो झुक कर मेरे होंठों को चूमने लगी. मेरे किसी पानी भरे गुब्बारों की तरह झूलते स्तनो को मसल्ने लगती, मेरे पीठ पर अपने होठ फिराती अपने दाँत गढ़ती. उसकी हालत से ही लग रहा था की वो किसी लिंग के लिए बुरी तरह तड़प रही है. उसकी उंगलियाँ सेवक राम के अंदर बाहर होते लिंग को सहलाने मे व्यस्त थी. 

कोई पाँच मिनिट की चुदाई के बाद ही मेरा पूरा शरीर एंथने लगा और काफ़ी देर से जमा हुआ लावा मेरी योनि मे बह निकला. मैं वहीं बिस्तर पर पेट के बल पसर गयी और ज़ोर ज़ोर से साँसें लेने लगी. सेवक राम जी मेरे बदन के उपर पसरे हुए थे. उनके बोझ तले मेरा शरीर दबा हुआ था. दिशा उनके बदन के उपर पसरी हुई थी. उन दोनो के बदन के नीचे मैं दबी हुई थी. दिशा उत्तेजना मे सेवकराम जी की नंगी पीठ पर अपने स्तनो को रगड़ रही थी. उनकी गर्देन के पीछे अपने दाँत गढ़ा रही थी. 



कुच्छ देर तक यूँही लेटे रहने से मेरी सारी उत्तेजना शांत हो गयी. कुच्छ देर बाद सेवक राम जी ने अपना लिंग मेरी योनि से खींच कर बाहर निकाल लिया. 

ये देख कर दिशा झट से मेरी बगल मे लेट गयी और अपनी टाँगों को फैला कर गुटने से मोड़ कर अपनी कमर को छत की तरफ उठा कर सेवक राम जी को अपनी ओर खींचती हुई बोली, 

" आजओ….. अब और देर मत करो. प्लीईस…." 

सेवकरम जी ने अपना लिंग मेरी योनि मे से खींच कर निकाला. उनका लिंग अभी भी पूरे जोश मे था. वो उत्तेजना मे खड़ा खड़ा झटके खा रहा था. पूरा लिंग मेरे कमरस से सना हुआ चमक रहा था. अभी उसके लिंग से रेशमी सूत की तरह वीर्य का एक कतरा झूल रहा था. 



“आआहह….गुरुउउुजि…..इसने तूओ आपकाअ पूऊरा रास निचोड़ लिया. कुच्छ बचा भी है क्या मेरे लिए.” उसने सेवक राम जी का लिंग अपनी मुट्ठी मे भर लिया. उनका लिंग इतनी ज़ोर दार चुदाई की वजह से ढीला पड़ता जा रहा था. दिशा ने उसे अपने हाथों मे लेकर सहलाया तो उनका ढीला होता लिंग वापस पूरे जोश से खड़ा हो गया. 



मैं उनके लिंग के निकल जाने के बाद सीधी होकर बिस्तर पर पसर गयी. मेरी साँसे किसी ढोँकनी की तरह चल रही थी. मेरी उन्नत चूचियाँ तेज़ी से उपर नीचे हो रही थी. मेरा गला सूख रहा था. मैं अपने सूखे होंठों पर जीभ फेरती हुई उन दोनो के मिलन का मज़ा लेने के लिए तैयार हो रही थी. 

सेवकराम अपने तने हुए लिंग को सहलाते हुए दिशा की ओर बढ़े. दिशा ने 
अपना एक हाथ बढ़ा कर उनके लिंग को थाम लिया और दो बार अपने हाथों 
से सहलाया. फिर एक हाथ से अपनी योनि की फांको को अलग करते हुए उनके लिंग को योनि की ओर खींचा. 



“ एक मिनूट रुकिये गुरुदेव. ये इतना गीला हो रहा है कि मज़ा नही आ पाएगा. लाओ इसे पहले पोंच्छ दूँ. वरना सेक्स का मज़ा ही नही आएगा.” कह कर उसने पास पड़े अपने गाउन से उनके लिंग को पोंच्छा. उनके लिंग पर चढ़ा मेरे वीर्य की परत सॉफ हो गयी. 



“ दीशू मेरा लंड तो सॉफ कर दिया लेकिन अपनी गीली चूत को भी तो सॉफ कर.” कह कर उन्हों ने दिशा के हाथ से कपड़ा लेकर खुद ही उसकी योनि से टपकते रस को पोंच्छ कर सॉफ करने लगे. दिशा ने अपनी टाँगे चौड़ी कर के अपनी उंगलियों से योनि को जितना फैला सकती थी फैला दिया. योनि की लाल सुरंग सेवक राम के सामने थी. सेवक राम ने अपनी दो उंगलियों की मदद से उस कपड़े से योनि को अंदर तक सॉफ किया. 



जब योनि भी साफ हो गयी तब दिशा ने खुद अपनी टाँगें चौड़ी कर ली और अपने हाथों से अपनी चूत को फैला कर सेवकराम जी के लिंग के स्वागत का इंतेज़ार करने लगी. 

“ लो अब किस बात की देर है.” दिशा ने सेवक राम से कहा और उसे अपनी ओर खींचा. 



“ इतनी उतावली क्यों हो रही हो?” 



“आपका लिंग मेरे लिए कोई नया तो है नही. ना ही मेरी चूत को आप पहली बार चोद रहे हो फिर शर्म किस बात की. मुझे तो चोद चोद कर आप लोगों ने अपना अडिक्ट बना दिया है. आज मेरी हालत ऐसी कर दी है कि दिन मे दो चार बार संभोग ना हो तो बदन जलने लगता है. ये लड़की नयी है लेकिन इसकी हालत मुझसे कोई ज़्यादा अच्छि नही है. जिस तरह ये उत्तेजना मे चुदवा रही थी उसे देख कर लग रहा है की ये आश्रम की जान बन कर रहेगी.” 
क्रमशः............
 
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -38 

गतान्क से आगे... 

सेवकराम दिशा की दोनो टाँगों के बीच घुटनो के बल बैठ गया . दिशा ने अपनी फैली हुई टाँगों को घुटनो से मोड़ कर अपनी कमर को उँचा किया जिससे सेवकराम जी के लिंग तक पहुँच जाए. 



“ लो …..लो… इसकी भूख मिटा डालो…..आआहह” दिशा अब वो सुन्दर सी च्छुईमुई सी लड़की नही लग रही थी. अब वो सेक्स की भूखी कोई शेरनी सी दिख रही थी. सेवक राम ने दिशा की कमर के नीचे अपने हाथ लगा कर उसकी कमर को उठाया. दिशा का बदन धनुष की तरह मूड गया था. 



सेवकराम जी ने दिशा को अपनी ओर खीचा और उसकी योनि मे अपने लिंग को सताया. उन्हे अपने लिंग को राह दिखाने की ज़रूरत नही महसूस हो रही थी. ये काम दिशा खुद ही कर रही थी. उसने उनके लिंग को अपनी योनि पर सेट किया और अपनी कमर को उपर उठा कर उनके लिंग को अंदर ले लिया. उनका तगड़ा लिंग अंदर घुसता चला गया . दिशा इस वक़्त डॉग्गी स्टाइल मे थी उसके बड़े बड़े स्तन किसी पके फल की तरह झूल रहे थे. मैं अपने हाथों से उसके निपल्स को थाम कर उन्हे मसल रही थी. मेरे मसल्ने से दूध की कुच्छ बूँदें बिस्तर पर टपकने लगी. ये देख मैने उसके निपल्स को छ्चोड़ दिया. 



“ हा….हा…..ऱास्श्मीइ……क्याआ हुआअ? कयूओं छ्चोड़ दियाआ? अयाया इन्मी बहुऊट खुज्लीई हो रहिी हाईईइ. लीयी इन्हे अपणीी उंगलीयूओं से मसाल दीए.” दिशा खुद अपने निपल्स को कुरेदने लगी थी. मैं उसके स्तनो के दूध को बहा कर खराब नही करना चाहती थी इसलिए मैने उसका एक निपल मुँह मे भर लिया और उसे चुसकने लगी. सेवकराम उसे पीछे से चोद रहा था साथ साथ उसके जिस स्तन को मैं चूस रही थी उसे मसलता भी जा रहा था जिससे उसके स्तन से दूध बाहर निकलता रहे. जब एक स्तन का सारा दूध मैने पी लिया तो मैने दूसरे स्तन को अपने मुँह मे भर लिया. 



इस तरह की हरकतें करते हुए मैं खुद उत्तेजित हो गयी. तो मैने अपनी योनि के क्लाइटॉरिस को अपनी उंगलिनो से मसलना शुरू कर दिया. दूसरे हाथ से मैं अपने स्तनो को ही मसल रही थी. कुच्छ देर मे ही मेरा दोबारा स्खलन हो गया. 



कुच्छ धक्के इस तरह मार्कर उन्हों ने दिशा को वापस बिस्तर पर पीठ के बल लिटा दिया और खुद दिशा के बदन के उपर लेट गया . कुच्छ पल दोनो के बदन स्थिर रहे. 



सेवकराम दिशा के होंठों को अपने मुँह मे खींच कर उनको चूसने लगा. दिशा 
की टाँगे सेवकराम जी के बदन के दोनो ओर फैले हुए थे. कुच्छ पल इसी प्रकार रहने के बाद सेवक राम जी ने अपने लिंग को वापस दिशा की योनि मे पेल दिया और अपने बदन को हरकत देदी. 

दिशा अपनी बाहों मे सेवकराम का बदन कस कर पकड़ रखी थी.सेवकराम जी काफ़ी देर तक उसी अवस्था मे दिशा को चोद्ते रहे. एक बार उनका वीर्य मेरी योनि मे निकल जाने के बाद दूसरे दौर मे वो तस्सली से निकालने के मूड मे थे. 



दिशा ने अपनी टाँगों से सेवकराम की कमर को जाकड़ लिया. वो नीचे से धक्के लगा रही थी. एक साझा ट्यूनिंग के साथ सेवकराम की कमर नीचे आती तो उससे मिलने के लिए दिशा की कमर उपर उठ जाती. दोनो काफ़ी जोश मे एक दूसरे को निचोड़ने मे लगे हुए थे. दोनो चुदाई करते हुए एक दूसरे को बेतहासा चूम रहे थे. 



मैं बगल मे लेटी लेटी उनकी चुदाई देख रही थी. कुच्छ देर बाद मैने करवट बदल कर अपना जिस्म उनसे सटा दिया. और दिशा की चूचियाँ वापस अपने हाथों मे लेकर सहलाने लगी. दिशा ने अपने चेहरे को मोड़ कर मेरे होंठों को चूम लिया. अब हम तीनो अपनी अपनी जीभ निकाल कर एक दूसरे की जीभ से अटखेलिया कर रहे थे. 

कुच्छ देर बाद सेवकराम जी ने अपनी पोज़िशन चेंज की. उन्हों ने पहले मुझे चित लिटाया फिर दिशा को मेरी योनि पर झुका दिया. वो खुद बिस्तर के पास खड़े होकर दिशा को पीछे से चोदने लगे. मैने अपनी टाँगें फैला रखी थी. दिशा मेरी टाँगों के बीच झुकी हुई मेरी योनि को अपनी जीभ से चाट रही थी.
 
मेरी योनि मे भरे मेरे वीर्य को वो चाट चाट कर सॉफ कर रही थी. मैने उसके सिर को अपनी योनि मे दबा रखा था. सेवकराम जी के हर धक्के के साथ दिशा की नाक या जीभ मेरी योनि मे घुस जाती थी. ऐसा लग रहा था मानो वो अपनी नाक से ही मुझे चोद रही हो. हम तीनो कोखूब मज़ा आ रहा था. पूरा कमरा हमारी उत्तेजना भरी सिसकारियों से और चूत पर पड़ते धक्कों की आवाज़ से गूँज रहा था. 



कुच्छ देर बाद दिशा ने अपना सिर उठाया. उसके खुले बालों के पीछे से उसका चेहरा 
दिखाई नही पड़ रहा था. मैने उसके बालों को पकड़ कर पीछे की ओर कर दिया. मैने देखा की दिशा के होंठों पर मेरा रस लगा हुआ है और दिशा उसे अपनी जीभ से चाट रही थी. 



सेवक रामजी ने उसके बालों को अपनी मुट्ठी मे थाम लिया और उसे चोद्ते हुए अपनी ओर 
खींचा जिससे दिशा का सिर पीछे की ओर मूड गया. दिशा को उस हालत मे चुदवाते देख ऐसा लग रहा था मानो सेवकराम घुड़सवारी कर रहा हो. 

काफ़ी देर तक यूँ ही चोदने के बाद सेवकराम ने एक झटके मे अपना लिंग दिशा की योनि से निकाला फिर हम दोनो को खींच कर अपने सामने घुटनो के बल बिठा कर अपने वीर्य की तेज धार हम दोनो के चेहरे पर, हमारे मुँह और चूचियो पर छ्चोड़ दिया. हम दोनो अपना मुँह खोल कर उनके वीर्य को अपने मुँह मे भर लेने की कोशिश करने लगे. इस कोशिश मे हमारे चेहरे पर, नाक, गाल और स्तनो पर वीर्य के कतरे झूलने लगे. उनके लिंग ने ढेर सारा वीर्य हम दोनो के उपर उधेल दिया. मेरे निपल्स से तो दिशा की ठुड्डी से वीर्य झूलता हुआ बिस्तर पर टपक रहा था. 



सेवकराम हम दोनो के चिपचिपे हो रहे बदन को अपनी बाँहों मे खींच लिया. उसने हमारे चेहरे और बदन पर पड़े वीर्य के थक्कों को पूरे बदन पर लगाने लगा. हम तीनो एक दूसरे के नग्न बदन से अपने बदन को रगड़ने लगे. 

" अब तुम दोनो आराम कर्लो. आज शाम की तुम दोनो की चुदाई का कार्यक्रम है." सेवकराम जी ने कहा "दो-तीन आफ्रिकन आने वाले है उनकी सेवा तुम दोनो को करना है. सारी रात उन दोनो की …… हा तुम दोनो अपनी टाँगे खुली रखना. दुआ करो कि वो दोनो नही आएँ और तुम बच जाओ." 



“ इसमे बचने की क्या बात है. उन दोनो से नही होगी तो किसी और से होगी हमारी ठुकाई. तुम लोग क्या ऐसे ही छ्चोड़ दोगे. वो नही तो कोई और होगा हमारे साथ” दिशा ने कहा. 



“ अरे ये बात नही है, कभी देखे है उनके लंड. साले आफ्रिकन्स के लंड एक फुट से भी ज़्यादा लंबे होते हैं. और चौड़ाई किसी बेस बॉल के बॅट की तरह. जब ठोकते हैं ना तो लगता है कि मुँह से बाहर निकल आएगा.” सेवकराम हम दोनो को तसल्ली दे रहे थे या डरा रहे थे समझ मे नही आ रहा था. 

उनकी बातें सुन कर हम तीनो हँसने लगे. सेवक राम उनके लिंग का आकार अपने हाथ से दिखा रहे थे. 



" ये नीग्रोस चोदने मे भी बहुत उस्ताद होते हैं घंटो एक स्पीड मे धक्के लगा सकते हैं. कोई साधारण महिला उनको झेल नही सकती. कई दिनो तक के लिए चाल ही बदल जाती है. कोई अंजान आदमी भी देख कर बता सकता है कि ये महिला जम कर चुदी गयी है. तुम दोनो भी एक बार चुदने के बाद कई दिनो तक और किसी को अपने अंदर लेने लायक नही बचोगी." सेवकराम जी ने कहा. 



“ मगर हम ही क्यों?” मैने पूछा. 



“ तुम दोनो खूबसूरत हो और गोरी चिटी एवं बला की सेक्सी हो. स्वामी जी उनकी खिदमत मे ऐसी महिलाओं को लगाना चाहते थे जो उनके आकार को झेल ले और उनको सेक्स का मज़ा दे सके. “ हंसते हुए वो बिस्तर से उठ गये और अपने वस्त्र को बदन पर डाल कर कमरे से बाहर निकल गये. 

हम दोनो उसी तरह काफ़ी देर तक पड़े रहे. 



“ चलो बच गयी बन्नो. नही तो आज हमारी चूत फट ही जाती.” दिशा ने कहा. 



“ आज बच गयी. लेकिन कल क्या करोगी? कल तो वो नीग्रो आ ही पहुँचेंगे हमे नोच खाने के लिए. साले हमारी एक एक हड्डी तोड़ कर रख देंगे और डकार भी नही लेंगे.” मैने उससे कहा. 

“ कल की कल देखेंगे. अरे हम औरतों के सामने तो अच्छे अच्छे पानी भरने लगते हैं तो ये नेगो क्या चीज़ हैं. चल कुच्छ रेस्ट कर लेते हैं.” दिशा ने कहा. 


"सेवक राम जी मे भी अच्च्छा स्टॅमिना है. हम दोनो का तो दम ही निकाल दिया." मैने हंसते हुए दिशा से कहा. 

" वो तो है ही. मुझे तो सेवकराम जी ने इतनी बार चोदा है की उतना तो मैं अपने हज़्बेंड से भी नही चुदी होंगी. ये सेवकराम जी के लिंग के आकर्षण मे बँधकर ही तो मैने ये आश्रम जाय्न किया था." दिशा ने कहा 

" अच्च्छा?कैसे? कैसे तुम इस आश्रम मे आई?" 


" अब क्या बताऊ, वो एक लंबी स्टोरी है." दिशा ने मुझे टालते हुए कहा. 

" कोई बात नही तुम तो सूनाओ. वैसे भी अभी हम दोनो के पास कोई काम नही है सोने के सिवा." 



दिशा बहुत कहने के बाद अपने इस आश्रम मे शामिल होने की घटना सुनाने लगी. उसे मैं यहाँ दिशा की ही ज़ुबानी सुना रही हूँ. उसकी कहानी कुच्छ इस तरह थी………. 



मैं शादी के बाद अपने ससुराल मे रहने आई. घर मे मेरे पति के अलावा एक जेठ जी थे जो कि अमृतसर मे रहते हैं. उनके घर हमारा कम ही आना जाना होता है. जेठ जी की कुच्छ बुरी आदतें जिनकी वजह से मैं उनसे दूर रहना ही पसंद करती हूँ. 

क्रमशः............ 
 
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -39 

गतान्क से आगे... 

मेरे सास ससुर पहले ही स्वरगवसी हो चुके थे. पति देवेंदर गुजराँवाल का ट्रांसपोर्ट का बिज़्नेस है. हमारा मकान लुधियाना से कोई 25 किमी दूर सहर के बाहरी हिस्से मे बना है. शादी के बाद मैं इस मकान मे रहने आ गयी. बस हम दोनो ही रहते थे उस मकान मे. आस पास काफ़ी खाली जगह पड़ी थी. उस इलाक़े मे बस्ती काफ़ी कम थी इसलिए जब अकेले रहना पड़ता था तो काफ़ी डर महसूस होता था. 



देव अक्सर बाहर रहते थे. मैं अकेली ही उस घर मे रहती थी. घर मे रोकने टोकने वाला कोई नही था. इसलिए मैं अपने हिसाब से ही रहती थी. शुरू से ही मैं कुच्छ खुले विचारों की थी उपर से शादी के बाद पहली पहली सेक्स की खुमारी. जब वो नही रहते थे तो मुझे अक्सर अपनी उंगलियों से ही काम चलाना पड़ता था. कभी कभी तो इतनी खुजली होती थी योनि मे की मैं अपने बाल नोचने लग जाती थी. जो भी मर्द मिले उससे अपनी वासना शांत कर लूँ. 



तूने तो देख ही रखा है कि उपर वाले ने कोई संकोच नही किया है मुझे बनाने मे. जी भर कर खूबसूरती लुटाई है मुझ पर. जो भी देखता बस दीवाना बन जाता है मेरा. मुझे पाने के लिए मर्दों की लार टपकती रहती थी. 



जब मैं पढ़ रही थी तो कॉलेज के काफ़ी लड़के मेरे पीछे पड़े रहते थे लेकिन मैने कभी किसी को पास आने नही दिया. मैने अपने जिस्म की आग को काफ़ी कंट्रोल कर रखा था. कई बार बस मे या भीड़ भाड़ मे कई लोगों ने किसी ना किसी बहाने से मेरे जिस्म को मसल दिया था. कई बार कोई मेरे नितंबों पर चिकोटी काट देता तो कभी कोई किसी बहाने मेरे स्तनो को दबा देता. मैं लोगों की ज़्यादतियाँ चुप चाप सह लेती थी. 



तभी मेरी शादी तय हो गयी. देव लंबा चौड़ा और खूबसूरत आदमी है. 



हम दोनो खूब संभोग किया करते थे. शादी के बाद तो काफ़ी दिनो तक हम दिन भर मे कुच्छ ही देर के लिए बेडरूम से निकलते थे. उनके ज़्यादा दोस्त नही थे. इसलिए किसी तरह की कोई बाधा नही थी. हम दोनो अपनी दुनिया मे ही मस्त रहते थे. 



लेकिन धीरे धीरे हमारे संबंधों मे बासी पन आता गया. जो कि किसी भी रिश्ते मे धीरे धीरे आ ही जाता है. अब हमारे संभोग की फ्रीक्वेन्सी भी कम होती गयी. देव अक्सर काम के सील सिले मे बाहर ही रहने लगे. हमारा अभी तक कोई बच्चा नही हुया था. 



देव जब घर मे रहते तो मुझे घर मे लगभग नंगी हालत मे रखते थे. ज़्यादा कपड़े पहनो तो वो नाराज़ हो जाते थे. कपड़े भी वो मुझे कुच्छ इस तरह के सिल्वा कर दिए थे जिससे आधा बदन दिखता रहता था. 



उनको कपड़ों के अंदर से झँकता मेरा नग्न बदन निहारने मे मज़ा आता था. मुझे भी उन्हे सताने मे मज़ा आने लगा. 



हम अपने संभोग क्रिया को गर्मी देने के लिए कई तरह की कोशिश करने लगे. हम अक्सर ब्लू फिल्म देखते. और जब उत्तेजित हो जाते तो जम कर संभोग करते. अक्सर हम तरह तरह के सिचुयेशन की कल्पना करते.
 
देव अक्सर मुझे किसी और मर्द के बारे मे सुना सुना कर मुझे चोद्ता. कई बार उसने इच्छा भी व्यक्त की हमारे बीच किसी तीसरे को शामिल किया जाय. इससे हमारे सेक्षुयल लाइफ मे एक नयी ताज़गी आ जाएगी. लेकिन मैं इस बारे मे उन्हे ज़्यादा लिफ्ट नही देती. 



मैने एक बार उन्हे ये भी कह दिया की किसी महिला को सेट कर लो और हम तीनो एक साथ सेक्स का मज़ा लें. मगर देव की दिलचस्पी उसमे नही बल्कि किसी मर्द को शामिल करने मे थी. वो मुझे किसी और से चुदते हुए देखना चाहता था. 



उसने अपने कई दोस्त के नाम भी सजेस्ट किए मगर मैने सॉफ इनकार कर दिया. जान पहचान मे इस तरह का संबंध जिंदगी मे जहर घोल देता है. देव ने मुझे किसी अपरिचित को हमारे बीच लाने की छ्छूट दे दी थी. मगर मैने उसके इस सजेशन को कभी सीरियस्ली नही लिया. 



हां उनके ज़ोर देने पर मैं थोड़ा बहुत एक्सपोषर करने लगी. इसमे मुझे किसी तरह की बुराई नज़र भी नही आती थी. मेरा जिस्म सुन्दर और सेक्सी था अगर मैने अपने जिस्म की थोड़ी बहुत नुमाइश कर दी तो कौनसा किसी का बुरा कर दिया. 



लोग मेरे उन्मुक्त योवन की एक झलक पाने के लिए लार टपकाते रहते थे. मर्दों का मेरे इर्द गिर्द भंवरों की तरह मंडराना मुझे अच्छा लगने लगा. देव मेरी डिमॅंड देख कर खुश होते थे. 



वैसे इसमे कुच्छ दिक्कत भी नही थी मगर असली दिक्कत तो उनके नही रहने पर होती थी. उनकी अनुपस्थिति मे मैं उसी तरह के रिवीलिंग कपड़े पहनती तो कोई भी कहीं मुझे पकड़ कर रेप कर सकता था इसलिए उनके आब्सेन्स मे अपने कपड़ों का चयन बहुत सोच समझ कर करना पड़ता था. 



जब वो बिज़्नेस के सिलसिले मे बाहर जाते तो मैं कई कई दिन अकेली घर मे रहती थी. उस वक्त मुझे मर्दों से बहुत डर लगता था और मैं बिना वजह के घर से कम ही निकलती थी. अक्सर घर काटने को दौड़ता था. 



पास ही एक काफ़ी लंबा चौड़ा आश्रम बन रहा था. दिन भर उसमे लगे मशीनो की आवाज़ें और आदमियों के शोर को सुनती रहती थी. जब घर पर अकेली बोर होने लगती तो बाहर निकल कर उनके कार्य को देखने लगती. 



घर के सामने बाउंड्री के भीतर देव ने एक छ्होटा सा गार्डेन बना कर रखा था. जिसमे तरह तरह के फूल के पौधे लगा रखे थे. खाली समय मे मैं उनके जतन मे लग जाती थी. मुझे भी कुच्छ कुच्छ बागवानी का शौक बचपन से ही था.
 
घर के तीनो तरफ चार फुट उन्ही बाउंड्री थी. इसलिए सड़क चलते किसी आदमी की नज़र गार्डेन पर या मुझ पर नही पड़ सकती थी. 



मैं अक्सर घर मे गाउन पहने ही रहती थी. देव की वजह से मैं गाउन के अंदर कुच्छ नही पहनती थी. कभी कभी सलवार कमीज़ भी पहन लेती थी बिना ब्रा और पॅंटी के. घर के अंदर देखने वाला कौन था. अक्सर इसी हालत मे मैं गार्डेन मे भी घूमती थी. 



मेरे बड़े बड़े बूब्स काफ़ी तने हुए थे. 38 साइज़ के होने के बाद भी वो एक दम तने हुए रहत थे. मेरे निपल्स भी काफ़ी मोटे और लंबे थे. जब वो एग्ज़ाइट हो जाते थे तो कपड़ों के भीतर से सॉफ दिखते थे. 



घर मे कोई रहता नही था इसलिए किससे शर्म करना. जब भी बाहर निकलती थी तो अच्छि तरह बन संवर कर ही निकलती थी. शादी को ज़्यादा दिन तो हुए नही थे इसलिए अकेली भी खूब बन संवर कर बाहर निकलती थी. कमीज़ मे हमेशा स्लीव्ले ही पहनती थी जो की काफ़ी खुले गले की होती है. पीठ भी काफ़ी डीप रहती है. 



शुरू शुरू मे तो कुच्छ दिन मैं चुनरी के बिना घर से निकलती नही थी. लेकिन जब देव ने ज़ोर डाला तो मैने चुन्नी लेना छ्चोड़ दिया. अपने आसपास भटकते भंवरों को जलाने के लिए मैं बिना चुनरी के ही बाहर निकलने लगी. मेरे गले के कटाव से मेरी आधी छातियाँ और उनके बीच का दिलकश कटाव किसी के भी मन को लुभाने के लिए हमेशा तैयार रहते थे. 



आस पास के सारे हम उम्र मर्द मेरी एक झलक पाने के लिए या मेरे बदन को छूने के लिए हमेशा तैयार रहते थे. सिर्फ़ हम उम्र ही क्यों बुजुर्ग भी मेरे बदन को एक टक निहारते रहते थे. मेरी सुंदरता ही मेरा दुश्मन बनने लगी थी. 



मैं जहाँ भी जाती लोग मुझे भूखी नज़रों से घूर्ने लगते. चाहे वो किराने की दुकान हो या सब्जी वाले का ठेला, किसी बस मे हो या राह चलते कोई ना कोई मर्द मुझसे चिपकने की कोशिश करता हुआ मिल ही जाता था. शुरू शुरू मे मुझे अजीब सा फील होता था मगर बहुत जल्दी ही मुझे मज़ा आने लगा. हर मर्द मेरे बदन को घूरता रहता था. एक दिन तो देव ने मुझे छेड़ते हुए कहा, 



“दिशा तुम्हे अगर कोई मर्द महीने भर रोज देखता रहे तो पक्का है कि उसे पीलिया हो जाएगा. तुमने सबका खाना पीना बंद करवा दिया है. तुम्हे देखने के बाद पता नही कितने बेचारों को मूठ मारना पड़ता होगा.” 

क्रमशः............ 
 
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -40 

गतान्क से आगे... 

मैं उनकी बातें सुन कर हँसने लगी. कहती भी क्या. ये तो मैं खुद भी महसूस करती थी कि मर्दों को अगर मौका मिल जाता तो मुझे नोच खाते. 



“ देख लेना तुम नही रहते हो किसी दिन मुझे पकड़ कर कोई रेप कर देगा.” मैने भी उनको छेड़ते हुए कहा. 



“ उसमे खराबी क्या है. इससे तुम्हारे जिस्म की आग भी शांत हो जाएगी. तुम किसी पार्ट टाइम मर्द को ढूँढ लो जो मेरी अनुपस्थिति मे तुम्हारी प्यास बुझा दिया करे.” वो हंसते हुए कहने लगे. 

“ अरे जाओ जाओ, किसी दिन कोई जोश मे आकर मुझे भगा ले गया ना तो जिंदगी भर अपनी किस्मेत को कोसते रहोगे क्यपंकि दोबारा मुझ जैसी खूबसूरत बीवी तो मिलने से रही.” मैने कभी भी उनकी इस तरह की उल्जलूल फरमाइश पर ज़्यादा ध्यान नही दिया. 



उनका बस चलता तो घर पर ही किसी मर्द को इन्वाइट कर देते मुझे चोदने के लिए. पति पत्नी का संबंध इतना नाज़ुक होता है कि हल्का सा शक का झटका इस रिश्ते को तार तार कर सकता है. मैं किसी तीसरे को हमारी जिंदगी मे कभी शामिल नही करना चाहती थी. मगर होना तो कुच्छ और था. होनी को कौन टाल सका है भला. आज मैं शुक्र मानती हूँ की देव इतने खुले विचारों वाले थे इसलिए हम दोनो के बीच कोई दीवार पैदा नही हुई और आज हम दोनो पूरे दिल से इस आश्रम के शिष्य हैं. 



इसी तरह मैं अपने हुश्न पर इठलाती हुई घूमती रहती थी. ज़्यादा तर वक़्त मैं घर मे ही रहती थी. मगर देव के अक्सर बाहर रहने की वजह से मार्केट का काम भी मुझे ही करना पड़ता था. आस पास हर तरह की दुकाने थी इसलिए ज़्यादा दूर नही जाना पड़ता था. 



सुबह 6 बजे से पहले दूध वाला आ जाता था. उसके आने पर ही मैं बिस्तर छ्चोड़ती थी. इसलिए उस वक़्त मैं अक्सर नाइटी मे ही रहती थी. जिसमे से मेरा जिस्म साफ नज़र आता था. यहाँ तक की काली काली झांतों का और मेरे बड़े बड़े निपल्स का सामने से आभास हो जाता था. 



दूधवाला अक्सर मुझे दूध देते हुए अपने लिंग को सेट करता रहता था. क्योंकि मुझे अर्ध नग्न हालत मे देख कर उसका अक्सर उसका लंड खड़ा हो जाता था. शुरू शुरू मे वो अपनी उत्त्ज्ना को मेरी नज़रों से छिपाने की भरसक कोशिश करता था. लेकिन जब उसने देखा कि मैं उसकी नज़रों से अपना बदन छिपाने की ही कोई कोशिश नही कर रही तो उसकी झिझक ख़तम हो गयी. वो अब मेरे संग तरह तरह की बातें करने लगा. बातों बातों मे वो अक़्स्र द्वियार्थी बातें करके मेरे मन की थाह लेने की कोशिश करता. 



जब मैने उसे कुच्छ नही कहा और अंजान बनी रही तो उसकी हिम्मत बढ़ने लगी. मैने कई बार तो उसकी धोती मे खड़े होते उसके लिंग को भी महसूस किया था. जितनी देर वो दूध देता था उतनी देर उसकी आँखें दूध के बर्तन पर कम और मेरे दूध की बोतलों पर ज़्यादा रहती थी. मैं धीरे धीरे इन सब भूखी आँखों की अभ्यस्त हो गयी. अब मुझे इन मर्दों को जलाने मे मज़ा आता था. लेकिन इतना भी नही की कोई सीधे मेरे उपर ही सवार हो जाए. 



मैने कभी किसी भी गैर मर्द को रोका नही तो अपनी ओर से भी कभी हद से ज़्यादा किसी को लिफ्ट नही दी. आस पड़ोस के सारे मर्द मुझे लाइन मारते थे और मुझे खुले विचारों वाली महिला समझते थे.मुझे भी उनकी आँखों मे मेरे प्रति वासना की खुमारी देख कर मज़ा आता था. देव के दोस्त काफ़ी कम थे मगर वो भी मेरे संग चिपकने की कोशिश करते थे. 



एक तो मेरा एक्सपोसिंग कपड़े पहनना और दूसरा उनकी हरकतों से बेपरवाह रहना उन्हे बहुत एग्ज़ाइट करता था. कई बार लोगों ने किसी ना किसी बहाने मेरे बदन को छूने की और मसल्ने की भी कोशिश की. उनके कुच्छ दोस्तों ने एक दो बार अंजान बनते हुए मेरे स्तनो को भी दबाया था. 



ऐसे ही छेड़ छाड़ मे कैसे साल गुजर गया पता ही नही चला. देव काफ़ी व्यस्त हो गये थे. वो आजकल घर पर कम वक़्त रह पाते थे. हमारी सेक्स लाइफ तो जैसे बासी होने लगी थी. मैं उस बुझती आग को वापस जलना चाहती थी. मैं जानती थी की अगर हमारे बीच तीसरा आ जाए तो इस बुझती हुई लो को फिर ज़ोर मिल जाएगी. मगर मैं उससे होने वाले नुकसान को सोच कर किसी गैर मर्द से सरीरिक संबंध बनाने मे डरी थी.
 
हमारे मकान की एक तरफ एक अलुवालिया परिवार रहता था. दोनो मिया बीवी 40-45 के आस पास के थे. घर की मालकिन रत्ना अलुवालिया एक खूबसूरत 40 साल के आस पास की महिला थी. पड़ोसी होने की वजह से कुच्छ ही दिनो मे हम दोनो काफ़ी घुल मिल गये थे. मैं अकेली ही रहती थी उपर से नयी नयी ब्यहता थी इसलिए वो अक्सर ही मेरे घर आ जाती थी और मुझे मेरे काम मे हेल्प करती थी. 



इससे मेरा अकेलापन दूर हो जाता था और उससे मैं घर के काम काज भी सीखने लगी थी. जैसे कि मैने बताया की घर के पास ही एक काफ़ी बड़ा आश्रम तैयार हो रहा था. हमारे मकान के दूसरी तरफ उस आश्रम के मठाधीश रहते थे. उनका नाम सेवक राम था. वो कोई 50-55 साल के काफ़ी तंदुरुस्त बदन के मालिक थे. शुरू शुरू मे मुझे उनकी झलक बहुत कम मिलती थी. वो सारे दिन कन्स्ट्रक्षन साइट पर बिज़ी रहते थे और शाम को मुझे घर्से निकलने मे डर लगता था. इसलिए हम एक दूसरे के बारे मे साल भर कुच्छ जान नही पाए. 



साल भर बाद मुझे लगा कि कुच्छ दिनो से वो अक्सर मुझे नज़र आने लगे थे. वो हमेशा खाली बदन ही रहते थे. उनके बदन पर एक छ्होटी सी धोती के अलावा कुच्छ नही रहता था. उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट हमेशा रहती थी. उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था की जो भी मिलता उनसे आकर्षित हुए बिना नही रह सकता था. मैं भी एक दो मुलाक़ातों मे ही उनकी ओर आकर्षित होने लगी थी. 



उनका दैनिक कार्य क्रम सुबह चार बजे से ही शुरू हो जाता था. रोज सुबह घर के बाहर गार्डेन मे एक चटाई बिच्छा कर दो शिष्य आधे घंटे तक उनके बदन की मालिश करते थे. तेल मालिश करके जब वो कसरत करते थे तो मैं उनके बलिष्ठ शरीर को अपने बेडरूम की खिड़की से छिप छिप कर निहारती थी. 



कुच्छ दिनो बाद मैने महसूस किया की सेवकराम जी मुझमे काफ़ी इंटेरेस्ट लेने लगे है. सुबह और शाम को जब मैं अपने मकान के बाहर पौधों को पानी देती या टहलती रहती थी तो अक्सर सेवकराम जी दोनो मकानो के बीच बने बाउंड्री पर आकर मुझसे बातें करने लगते थे. वो तब तक वहाँ खड़े रहते थे जब तक ना मैं अपना काम ख़त्म करके अंदर चली जाती. सुबह वो अब हमारी बाउंड्री के पास ही कसरत करने लगे थे. 



सुबह के वक्त मैं अक्सर गाउन मे ही रहती थी. अंदर कुच्छ नही पहने होने के कारण मेरी हर हरकत पर दोनो चूचियाँ हिलने लगती थी. गाउन के बाहर से ही मेरे निपल्स सॉफ दिखते थे. जब मैं पौधों की निराई-गूदाई करती तो गाउन के खुले गले से मेरी चूचियाँ बेपर्दा हो जाती थी. नीचे झुक कर काम करने से सामने वाले की आँखों से कुच्छ भी नही छिप्ता था. ऐसे वक़्त मैं हमेशा उनकी नज़रों की तपिश अपने बदन पर महसूस करती थी. वो मेरे बदन को गहरी नज़रों से निहारते रहते थे. मैने तो कई बार उनकी धोती के अंदर से उनका उभार भी देखा. कई बार धोती को सामने से किसी तंबू की तरह तन जाते हुए भी महसूस किया. ये देख कर शर्म से मेरे गाल सुर्ख हो जाते थे. 



कुच्छ ही दिनो मे मैं उनसे खूब हिल मिल गयी थी. वो अक्सर देव के बारे मे पूछ्ते रते थे. मेरे बताने पर उनको धीरे धीरे पता चल गया था कि देव अक्सर बाहर रहते हैं और घर मे मैं अकेली रहती हूँ. 



उन्होंने कई बार मुझे अपने नये बने आश्रम मे घूमने का न्योता दिया लेकिन मैं उनके प्रस्ताव को नज़रअंदाज कर देती थी. 



शाम के वक़्त अक्सर रत्ना जी मेरे घर आ जाती थी. उनके हज़्बेंड दूसरे किसी शहर मे सरकारी नौकरी करते थे. हफ्ते मे सिर्फ़ शनिवार और सनडे ही घर पर रह पाते थे. हम दोनो एक जैसे मिल गये थे तो जाहिर है दोस्ती गाढ़ी होने लगी थी. बहुत जल्दी हमारी झिझक 

ख़तम हो गयी. हम एक दूसरे की बातें बेडरूम तक भी जाने लगी. वो अक्सर पूछ्ती थी कि मैं नयी शादी शुदा महिला होकर पति देव की अनुपस्थिति मे अपने बदन की आग कैसे बुझाती हूँ. मैं उसकी बात पर हंस देती और कहती कि कभी कभार जब गर्मी हद से ज़्यादा बढ़ जाती है तो मुझे अपनी उंगलियों से काम लेना पड़ता है. 

क्रमशः............
 
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