hotaks444
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -41
गतान्क से आगे...
वो मुझे छेड़ने लगती. मेरे बदन पर चिकोटी काटने लगती, यहाँ तक की कभी कभार मेरे स्तनो को मसल भी देती.
“ दिशा ये जो बदन की गर्मी है अगर उंगली से ही बुझ जाती तो फिर किसी औरत को शादी करने की ज़रूरत ही नही होती. चूत की खाज तो किसी मरद के मोटे लंड से ही बुझ सकती है.” वो मुझे च्छेदते हुए कहती.
“ दीदी आप भी तो पूरे हफ्ते अकेली ही रहती हो आप बताओ आप अपनी प्यास कैसे बुझाती हो?” मैने पूछा.
“ अब मुझमे और आग कहाँ बची है. अब तो बदन की गर्मी कम हो गयी है.”
“ लेकिन आप तो शादी करके यहीं आई थी. उस वक़्त अपनी आग को कैसे बुझाती थी?”
“ एम्म्म…..एक दो मर्द मैने अपने मयके मे पल रखे थे जो मेरे चचेरे-ममेरे भाई बन कर अक्सर यहाँ चले आते थे और कुच्छ दिन मेरे पास रह कर मेरी चूत की खुजली मिटा देते थे.” उन्हों ने धीमी आवाज़ मे कहा.
“कभी शक़ नही हुआ भैया को की आप…..”
“ अरे नही उन्हे कभी भनक भी नही लगी. अपनी जवानी मे मैने काफ़ी लोगों से चुदाई की है. जवानी होती ही कितने दीनो की है. अगर इसे भी बिना मज़ा लिए ही गँवा दिए तो क्या बुढ़ापे मे जिंदगी का मज़ा लोगि.” उन्हों ने कहा.
“ नही दीदी मुझे बहुत डर लगता है.” मैने उनसे अपने दिल की बात बताई.
“ इसमे डर कैसा. जिस तरह भूख लगने पर आदमी को खाना खाना पड़ता है और प्यास लगने पर किसी के इंतेजार किए बिना ही पानी पी लेता है. उसी तरह ये भी एक ज़रूरत है. इसकी भी भूख लगती है. इसकी भी प्यास लगती है. तब उस ज़रूरत को दबाने से जिस्म कुम्हला जाता है. उस ज़रूरत को भी पूरा करना हमारा धर्म है. इसमे किसी तरह का संकोच या शर्म की कोई बात ही नही है. मर्द अपनी बीवी की जिस्मानी भूख को ख़तम. करने के लिए होता है मगर पति अगर इसे शांत नही कर पता तो बीवी का हक़ है की इसे किसी और तरह से शांत करे. किसी और के द्वारा इसे शांत करे.” उन्हों ने समझाते हुए कहा.
“ दीदी आप किसी बात को बहुत अच्छि तरह समझती हो.”
“ इसीलिए तो तुम्हे भी कहती हूँ अपने इस फूल से बदन का रस भंवरों को पीने दो. देखना कितना मज़ा आता है. ऐसा लगेगा मानो तुम हवा मे उड़ती जा रही हो और सारे बदन से बिजली की तरंगें निकल रही हैं. पाँच दस साल बाद ना तो ये तरंगें रहेंगी ना ये उत्तेजना फिर सेक्स एक बोझ लगने लगेगा. इसलिए आज मे जियो. वर्तमान का मज़ा लो. अपनी जिस्मानी भूख को समझो. उसका आदर करो. और उसकी ज़रूरत पूरी करो.” उन्हों ने कहा.
“ ठीक है दीदी मैं सोचूँगी.” जब उनकी बातें ज़रूरत से ज़्यादा गंभीर होने लगी तो मैने उन्हे टालते हुए कहा.
गतान्क से आगे...
वो मुझे छेड़ने लगती. मेरे बदन पर चिकोटी काटने लगती, यहाँ तक की कभी कभार मेरे स्तनो को मसल भी देती.
“ दिशा ये जो बदन की गर्मी है अगर उंगली से ही बुझ जाती तो फिर किसी औरत को शादी करने की ज़रूरत ही नही होती. चूत की खाज तो किसी मरद के मोटे लंड से ही बुझ सकती है.” वो मुझे च्छेदते हुए कहती.
“ दीदी आप भी तो पूरे हफ्ते अकेली ही रहती हो आप बताओ आप अपनी प्यास कैसे बुझाती हो?” मैने पूछा.
“ अब मुझमे और आग कहाँ बची है. अब तो बदन की गर्मी कम हो गयी है.”
“ लेकिन आप तो शादी करके यहीं आई थी. उस वक़्त अपनी आग को कैसे बुझाती थी?”
“ एम्म्म…..एक दो मर्द मैने अपने मयके मे पल रखे थे जो मेरे चचेरे-ममेरे भाई बन कर अक्सर यहाँ चले आते थे और कुच्छ दिन मेरे पास रह कर मेरी चूत की खुजली मिटा देते थे.” उन्हों ने धीमी आवाज़ मे कहा.
“कभी शक़ नही हुआ भैया को की आप…..”
“ अरे नही उन्हे कभी भनक भी नही लगी. अपनी जवानी मे मैने काफ़ी लोगों से चुदाई की है. जवानी होती ही कितने दीनो की है. अगर इसे भी बिना मज़ा लिए ही गँवा दिए तो क्या बुढ़ापे मे जिंदगी का मज़ा लोगि.” उन्हों ने कहा.
“ नही दीदी मुझे बहुत डर लगता है.” मैने उनसे अपने दिल की बात बताई.
“ इसमे डर कैसा. जिस तरह भूख लगने पर आदमी को खाना खाना पड़ता है और प्यास लगने पर किसी के इंतेजार किए बिना ही पानी पी लेता है. उसी तरह ये भी एक ज़रूरत है. इसकी भी भूख लगती है. इसकी भी प्यास लगती है. तब उस ज़रूरत को दबाने से जिस्म कुम्हला जाता है. उस ज़रूरत को भी पूरा करना हमारा धर्म है. इसमे किसी तरह का संकोच या शर्म की कोई बात ही नही है. मर्द अपनी बीवी की जिस्मानी भूख को ख़तम. करने के लिए होता है मगर पति अगर इसे शांत नही कर पता तो बीवी का हक़ है की इसे किसी और तरह से शांत करे. किसी और के द्वारा इसे शांत करे.” उन्हों ने समझाते हुए कहा.
“ दीदी आप किसी बात को बहुत अच्छि तरह समझती हो.”
“ इसीलिए तो तुम्हे भी कहती हूँ अपने इस फूल से बदन का रस भंवरों को पीने दो. देखना कितना मज़ा आता है. ऐसा लगेगा मानो तुम हवा मे उड़ती जा रही हो और सारे बदन से बिजली की तरंगें निकल रही हैं. पाँच दस साल बाद ना तो ये तरंगें रहेंगी ना ये उत्तेजना फिर सेक्स एक बोझ लगने लगेगा. इसलिए आज मे जियो. वर्तमान का मज़ा लो. अपनी जिस्मानी भूख को समझो. उसका आदर करो. और उसकी ज़रूरत पूरी करो.” उन्हों ने कहा.
“ ठीक है दीदी मैं सोचूँगी.” जब उनकी बातें ज़रूरत से ज़्यादा गंभीर होने लगी तो मैने उन्हे टालते हुए कहा.