hotaks444
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -59
गतान्क से आगे...
मैं चीखे जा रही थी. मगर उनपर कोई असर नही हो रहा था. उन्हो ने अपने लिंग को कुच्छ बाहर खींचा तो लगा कि शायद उनको मुझ पर रहम आ गया हो. मैं उनके लिंग के बाहर निकलने का इंतेज़ार कर रही थी की उन्हो ने एक और ज़ोर का धक्का मारा और उनका लिंग अब आधे के करीब मेरे गुदा मे समा गया. मैं तड़प कर उठने लगी मगर हिल भी नही सकी. उनको मेरे दर्द मे मज़ा आ रहा था. वो मेरी चीखें सुन कर हंस रहे थे.
"ऊओमााअ……..बचाऊ कोइईईई……मैईईइ माआर जौउुउऊनगिइिईईईई……..हे प्रभुऊऊउ बचाऊ…." मैं दर्द से रोने लगी. मई दर्द से बुरी तरह छॅट्पाटा रही थी. वे अब मुझे पूचकार कर चुप करने की कोशिश करने लगे. मुझे इस तरह रोता देख वो एक बार घबरा गये थे.
" देवी……देवी थोड़ा धीरज रखो. बस अब थोड़ा सा ही बचा है. एक बार अंदर घुस गया तो फिर दर्द नही होगा. अपने शरीर को ढीला छ्चोड़ो देवी." वो मेरे सिर पर और मेरे गाल्लों पर हाथ फेर रहे थे.
" नही स्वामी मैं नही झेल पाउन्गी आपको.. मेरा गुदा फट जाएगा. दर्द से मेरा बुरा हाल है स्वामी मुझ पर रहम करो." मैने गिड़गिदते हुए कहा.
" थोड़ा और सबर करो देवी कुच्छ नही होगा. तुम बेवजह घबरा रही हो." कहकर उन्हो ने वापस अपने लिंग को बाहर की ओर खींचा. सूपदे के अलावा पूरे लिंग को बाहर निकाल कर इस बार बहुत धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे. एक एक मिल्लिमेटेर करके सरकता हुआ लिंग मेरे गुदा की दीवारो को चीरता हुआ अंदर प्रवेश कर रहा था. धीरे धीरेकब तीन चौथाई मेरे गुदा मे समा गया मुझे पता ही नही चला. मैने अपना एक हाथ पीछे ले जाकर उनके लंड को टटोला तब जाकर पता चला.
वो उस अवस्था मे एक मिनिट रुके फिर अपने लिंग को वापस बाहर खींचा. अब दर्द कुच्छ कम हुया तो मैं भी मज़े लेने लगी मगर उन्हे तो मुझे दर्द देने मे ही मज़ा आ रहा था. अगली बार वापस उन्हों ने पूरी ताक़त को अपने लिंग पर झोंक दिया और एक जोरदार धक्का मेरे गुदा मे लगाया. फिर एक तेज दर्द की लहर पूरे जिस्म को कन्पाती चलीगाई.
" ऊऊऊऊओमााआआअ……ऊऊऊफफफफफफफफ्फ़……आआआआअहह" मेरे मुँह से निकला और मैं ज़मीन पर गिर पड़ी. मेरी गुदा मे उनका लिंग इस तरह फँस गया था कि मेरे गिरते ही उनका लिंग बाहर नही निकला बल्कि वो भी मेरे उपर गिरते चले गये. गिरने से उनके लिंग का जो थोड़ा बहुत हिस्सा अंदर जाने से रह गया था वो पूरा अंदर तक घुस गया.
“ ऊऊहह…स्वाआअमी…….आआप बाआहूत निष्ठुर हो. मेरिइइ जाअँ निकााल डियी आपनईए………उईईईईईई म्म्म्ममाआअ……..” मैं वापस रोने लगी.
" देखो अब पूरा घुस गया है अब थोड़ी ही देर मे सब कुच्छ अच्च्छा लगने लगेगा." उन्हो ने वापस उठते हुए मुझे भी अपने साथ उठाकर पहले वाली पोज़िशन मे किया.
कुच्छ देर तक उन्हो ने अपने लिंग को पूरा मेरी गंद के अंदर फँसा रहने दिया. जब दर्द कुच्छ कूम हुआ तो पहले धीरे धीरे उन्हों ने अपने लिंग को हरकत देना शुरू किया. धीरे धीरे दर्द कम होता गया. कुच्छ ही देर मे वो मेरी गुदा मे ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगे. हर धक्के के साथ अपने लिंग को लगभग पूरा बाहर निकालते और वापस पूरा अंदर थेल देते.
मैं उनके हर धक्के के साथ सिसक उठती. शायद मेरे गुदा के अंदर की दीवार छिल गयी थी इसलिए हर धक्के के साथ हल्का सा दर्द हो रहा था. ऐसा लग रहा था उनका डंडा आज मेरी अंतदियों का कचूमर बना कर छ्चोड़ेगा.
गांद मार मार कर उन्हों ने मेरा दम ही निकाल दिया. मैं भी उत्तेजना मे अपने बदन को नीचे पसार कर सिर्फ़ अपने कमर को उँचा कर रखी थी. अपने एक हाथ से मैं अपनी योनि को मसल रही थी. जिससे दो बार रस की धारा बह कर मेरे जांघों को चिपचिपा कर चुकी थी.
काफ़ी देर तक इसी तरह मुझे ठोकने के बाद उन्हों ने अपने लिंग को बाहर निकाला.
“ ले..ले…संभाल मेरे वीर्य को….मेराअ निकलने वलाअ हाऐी…….अयाया.” वो अपने लिंग को थामे बड़बड़ाने लगे थे.
मैं लपक कर कलश को उनके लिंग के सामने पकड़ कर अपने हाथों से उनके लिंग को झटके देने लगी. कुच्छ ही देर मे उनके वीर्य की एक तेज धार निकली जिसे मैने उस कलश मे इकट्ठा कर लिया. उनके ढेर सारे वीर्य से वो लोटा तकरीबन भर गया था. सारा वीर्य निकल जाने के बाद उनका लिंग वापस लटक कर चूहे जैसा हो गया.
मैं उठी और अपने वस्त्र को किसी तरह बदन पर लपेट कर बाहर निकली. पूरा बदन दर्द कर रहा था. गुदा तो लग रहा था की फट गयी है. मैं लड़खड़ते हुए बाहर निकली और रत्ना जी की बाहों मे ढेर हो गयी. उन्हों ने मुझे सांत्वना देते हुए मुझे सम्हाला. मेरे बदन को सहारा देते हुए वापस उस कमरे तक ले गयी जो मुझे रुकने के लिए दिया हुआ था. अब हर संभोग के बाद मुझे आराम की ज़रूरत पड़ रही थी. बदन सुबह से हो रही चुदाई से टूटने लगा था.
रत्ना को पहले से ही मालूम था इसलिए सारा इंटेज़ाम पहले से ही कर रखी थी.सारा समान पहले से ही मौजूद था. एक कटोरी मे पानी गर्म हो रहा था. उसमे किसी दवाई की दो बूँदें अपनी हथेली पर डाल कर उन्हों ने मेरे गुदा की सिकाई की. इससे मुझे बहुत आराम मिला. कुच्छ देर मे जब दर्द कम हुआ तो मैं अपने अगले गेम के लिए तैयार थी.
हमने अगले किसी संभोग से पहले दोपहर का खाना खाया और फिर मैने दो घंटे की नींद ली अब मैं वापस तरोताजा हो गयी थी. अब दो ही शिष्य बचे थे. शाम हो चली थी सूरज डूबने से पहले मुझे अपनी चुदाई पूरी करनी थी.
मेरे जागने पर रत्ना ने मुझे इसबार शरबत की जगह कुच्छ खाने को दिया जिससे इतनी थकान मे भी मेरे बदन मे चिंगारिया भरने लगी. मेरी योनि मे तेज जलन होने लगी. मेरा बदन किसी के लंड से जबरदस्त चुदाई को तड़पने लगा.
रत्ना मुझे लेकर अगले कमरे मे पहुँची तो कमरा बाहर से बंद था. पूच्छने पर पता नही चल पाया कि वो इस वक़्त कहाँ मिलेंगे. हम वहीं कमरे के बाहर सत्यानंद जी का इंतेज़ार करने लगे.
कुच्छ देर इंतेज़ार करने के बाद भी जब वो नही आए तो रत्ना ने कहा, "समय कम है चलो अगले स्वामीजी के पास पहले हो लेते हैं. उनसे निबट कर हम वापस यहाँ आ जाएँगे.”
हम कुच्छ दूर मे बने एक कमरे तक गये. वहाँ दरवाजा खटखटाया तो एक जवान काफ़ी बालिश्ट साधु ने दरवाजा खोला. मुझे बाहर देख कर उन्हों ने बिना कुच्छ बोले सिर्फ़ सिर हिलाया ये जानने के लिए कि मैं कौन हूँ. मैने भी बिना कुच्छ बोले अपने हाथों मे पकड़े कलश को उपर किया. वो कलश को देख कर सब समझ गये. पल भर को मेरे बदन को उपर से नीचे तक निहारा. जिसमे उनकी आँखें मेरे स्तनो के उभार पर एवं मेरे टाँगों के जोड़ पर दो सेकेंड रुकी और फिर आगे बढ़ गयी. उन्हों ने मुझे अच्छि तरह से नाप तौल कर स्वीकार किया.
मुझे निहारने के बाद उन्होने बिना कुच्छ कहे दरवाजे से एक ओर हटकर मुझे अंदर आने को रास्ता दिया. कमरे मे प्रवेश करने के लिए अब भी रास्ता पूरा नही था. वो इस तरह खड़े थे की बिना उनके जिस्म से अपने जिस्म को रगडे मैं अंदर नही घुस सकती थी.
मैने उनकी बगल से उनकी तरफ मुँह कर कमरे मे प्रवेश किया. इस कोशिश मे मेरे दोनो उन्नत स्तन उनकी चौड़ी छाती पर अच्छि तरह से रगड़ खा गये. अंदर मैने देखा कि एक और शिष्य ज़मीन पर बैठे हुए हैं. मुझे अंदर आते देख वो चौंक उठे.
" सत्यानंद..ये देवी गुरु महाराज का महा प्रसाद ग्रहण करने आई है. इसलिए ये हम सब से पहले हमारा प्रसाद इकट्ठा कर रही है. मेरे ख्याल से हम दोनो ही बचे हैं. क्यों देवी बाकी सबके साथ तन का मेल तो हो चुक्का है ना?" मेरे साथ वाले शिष्य ने अंदर बैठे अपने साथी से कहा.
“ ज्ज्ज…जीि” मैं सिर्फ़ इतना ही कह पाई.
" बहुत खूबसूरत ….अद्भुत सोन्दर्य की देवी है. कोई स्वर्ग से उतरी अप्सरा लग रही है. आओ देवी सामने आओ." मैं चलते हुए उनके पास आई. मेरे पीछे जो शिष्या थे वो भी जाकर उनकी बगल मे बैठ गये.
" तेरे बदन मे कितनी सुंदरता, कितनी कामुकता, कितनी आग भरी हुई है. देवी अपने सोन्दर्य को बेपर्दा कर दो. हम भी तो दर्शन करें तुम्हरे इस अदभुत योवन के.”
मैं बिना कुच्छ कहे उनके सामने चुपचाप खड़ी रही.
“मैं हूँ सत्यानंद और ये राजेश्वरणद. तुम शायद पहले मेरे कमरे मे गयी होगी. मुझसे मिलने के बाद इनके पास आना था. इनका नंबर इस लिस्ट मे आख़िरी है. चलो अच्च्छा हुआ दोनो एक साथ ही मिल गये. अब एक साथ दोनो से प्रसाद ग्रहण कर लोगि. और तुझे यहाँ वहाँ भटकना नही पड़ेगा." सत्यानंद ने कहा.
“ चलो अपने बदन के वस्त्र अलग कर दो.” राजेश्वरनंद ने कहा.
मैने अपने बदन पर पहनी सारी को अलग कर ज़मीन पर गिर जाने दिया. बदन पर सिर्फ़ एक ही वस्त्र होने के कारण अब मैं उनके सामने निवस्त्र खड़ी थी.
"म्म्म्ममम आती सुंदर. क्या स्तन हैं मानो हिमालय की चोटियाँ. और नितंब….पीछे घूमो देवी” सत्या जी ने कहा. मैं उनका कहा मान कर अपनी जगह पर पीछे की ओर घूम गयी. मेरी ढालाव दार पीठ और उन्नत नितंबों को देख कर दोनो की जीभों मे पानी आ गया.
“ वाआह…क्या कटाव हैं. नितंब तो जैसे मानो तानपूरा हों. अब तुम्हारी योनि को भी तो देखें कैसा खजाना छिपा रखा है दोनो जांघों के बीच. दोनो पैरों को चौड़ा करो देवी" राजेश ने कहा.
मैने बिना कुच्छ कहे अपने दोनो पैरों को फैला दिया मेरी काले जंगल से घिरी योनि कुछ कुछ सामने से दिखाई पड़ने लगी.
" वाआह क्या अद्भुत सुंदरता की मूरत हो तुम. अपने हाथों को छत की ओर उठा दो और अपने रेशमी बालों को अपने स्तनो के उपर से हटा कर पीठ की ओर कर दो." उन्हों ने जैसा कहा मैने वैसा ही किया. मैं दो मर्दों के सामने अपने हाथों को उपर किए और अपनी टाँगों को चौड़ी किए अपनी सुंदरता की नुमाइश कर रही थी.
“ देवी अब झुक कर अपने पंजों को अपनी उंगलियों से छुओ.” उन्हों ने कहा. मैने अपनी टाँगें घुटनो से मोड बगैर झुक कर अपनी उंगलिओ से अपने पैरों के पंजों को छुआ. ऐसा करने से मेरे नितंब आसमान की ओर मुँह करके खड़े हो गये. एक साथ दोनो छेद उनके सामने थे. मेरे स्तन पके हुए आम की तरह मेरे सीने से झूल रहे थे. वो मेरी सुंदरता को दूर से ही निहारते रहे.
" एम्म्म ऐसे नही. अपनी योनि को उभार कर तो दिखाओ.धनुष आसान जानती हो?" एक ने पूछा.
"हां" मैने बुदबुदते हुए अपने सिर को हिलाया.
" वहाँ ज़मीन पर लेट जाओ और हमारे सामने अपनी योनि खोल कर दिखाओ" मैने देखा दोनो के लंड उत्तेजित हो चुके थे और दोनो अपने अपने खड़े लंड को सहला रहे थे.
मैं वहीं ज़मीन पर नग्न पीठ के बल लेट गयी और अपने पैरों को एवं अपने हाथों को मोड़ कर अपनी कमर को ज़मीन से उठाया. मेरे पैर कुच्छ खुले हुए थे. मेरा पूरा शरीर धनुष की तरह बेंड हो गया और मेरी चिकनी योनि दोनो की आँखों के सामने खुल गयी. दोनो के मुँह से उत्तेजना भरी सिसकारियाँ निकलने लगी.
क्रमशः............
गतान्क से आगे...
मैं चीखे जा रही थी. मगर उनपर कोई असर नही हो रहा था. उन्हो ने अपने लिंग को कुच्छ बाहर खींचा तो लगा कि शायद उनको मुझ पर रहम आ गया हो. मैं उनके लिंग के बाहर निकलने का इंतेज़ार कर रही थी की उन्हो ने एक और ज़ोर का धक्का मारा और उनका लिंग अब आधे के करीब मेरे गुदा मे समा गया. मैं तड़प कर उठने लगी मगर हिल भी नही सकी. उनको मेरे दर्द मे मज़ा आ रहा था. वो मेरी चीखें सुन कर हंस रहे थे.
"ऊओमााअ……..बचाऊ कोइईईई……मैईईइ माआर जौउुउऊनगिइिईईईई……..हे प्रभुऊऊउ बचाऊ…." मैं दर्द से रोने लगी. मई दर्द से बुरी तरह छॅट्पाटा रही थी. वे अब मुझे पूचकार कर चुप करने की कोशिश करने लगे. मुझे इस तरह रोता देख वो एक बार घबरा गये थे.
" देवी……देवी थोड़ा धीरज रखो. बस अब थोड़ा सा ही बचा है. एक बार अंदर घुस गया तो फिर दर्द नही होगा. अपने शरीर को ढीला छ्चोड़ो देवी." वो मेरे सिर पर और मेरे गाल्लों पर हाथ फेर रहे थे.
" नही स्वामी मैं नही झेल पाउन्गी आपको.. मेरा गुदा फट जाएगा. दर्द से मेरा बुरा हाल है स्वामी मुझ पर रहम करो." मैने गिड़गिदते हुए कहा.
" थोड़ा और सबर करो देवी कुच्छ नही होगा. तुम बेवजह घबरा रही हो." कहकर उन्हो ने वापस अपने लिंग को बाहर की ओर खींचा. सूपदे के अलावा पूरे लिंग को बाहर निकाल कर इस बार बहुत धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे. एक एक मिल्लिमेटेर करके सरकता हुआ लिंग मेरे गुदा की दीवारो को चीरता हुआ अंदर प्रवेश कर रहा था. धीरे धीरेकब तीन चौथाई मेरे गुदा मे समा गया मुझे पता ही नही चला. मैने अपना एक हाथ पीछे ले जाकर उनके लंड को टटोला तब जाकर पता चला.
वो उस अवस्था मे एक मिनिट रुके फिर अपने लिंग को वापस बाहर खींचा. अब दर्द कुच्छ कम हुया तो मैं भी मज़े लेने लगी मगर उन्हे तो मुझे दर्द देने मे ही मज़ा आ रहा था. अगली बार वापस उन्हों ने पूरी ताक़त को अपने लिंग पर झोंक दिया और एक जोरदार धक्का मेरे गुदा मे लगाया. फिर एक तेज दर्द की लहर पूरे जिस्म को कन्पाती चलीगाई.
" ऊऊऊऊओमााआआअ……ऊऊऊफफफफफफफफ्फ़……आआआआअहह" मेरे मुँह से निकला और मैं ज़मीन पर गिर पड़ी. मेरी गुदा मे उनका लिंग इस तरह फँस गया था कि मेरे गिरते ही उनका लिंग बाहर नही निकला बल्कि वो भी मेरे उपर गिरते चले गये. गिरने से उनके लिंग का जो थोड़ा बहुत हिस्सा अंदर जाने से रह गया था वो पूरा अंदर तक घुस गया.
“ ऊऊहह…स्वाआअमी…….आआप बाआहूत निष्ठुर हो. मेरिइइ जाअँ निकााल डियी आपनईए………उईईईईईई म्म्म्ममाआअ……..” मैं वापस रोने लगी.
" देखो अब पूरा घुस गया है अब थोड़ी ही देर मे सब कुच्छ अच्च्छा लगने लगेगा." उन्हो ने वापस उठते हुए मुझे भी अपने साथ उठाकर पहले वाली पोज़िशन मे किया.
कुच्छ देर तक उन्हो ने अपने लिंग को पूरा मेरी गंद के अंदर फँसा रहने दिया. जब दर्द कुच्छ कूम हुआ तो पहले धीरे धीरे उन्हों ने अपने लिंग को हरकत देना शुरू किया. धीरे धीरे दर्द कम होता गया. कुच्छ ही देर मे वो मेरी गुदा मे ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगे. हर धक्के के साथ अपने लिंग को लगभग पूरा बाहर निकालते और वापस पूरा अंदर थेल देते.
मैं उनके हर धक्के के साथ सिसक उठती. शायद मेरे गुदा के अंदर की दीवार छिल गयी थी इसलिए हर धक्के के साथ हल्का सा दर्द हो रहा था. ऐसा लग रहा था उनका डंडा आज मेरी अंतदियों का कचूमर बना कर छ्चोड़ेगा.
गांद मार मार कर उन्हों ने मेरा दम ही निकाल दिया. मैं भी उत्तेजना मे अपने बदन को नीचे पसार कर सिर्फ़ अपने कमर को उँचा कर रखी थी. अपने एक हाथ से मैं अपनी योनि को मसल रही थी. जिससे दो बार रस की धारा बह कर मेरे जांघों को चिपचिपा कर चुकी थी.
काफ़ी देर तक इसी तरह मुझे ठोकने के बाद उन्हों ने अपने लिंग को बाहर निकाला.
“ ले..ले…संभाल मेरे वीर्य को….मेराअ निकलने वलाअ हाऐी…….अयाया.” वो अपने लिंग को थामे बड़बड़ाने लगे थे.
मैं लपक कर कलश को उनके लिंग के सामने पकड़ कर अपने हाथों से उनके लिंग को झटके देने लगी. कुच्छ ही देर मे उनके वीर्य की एक तेज धार निकली जिसे मैने उस कलश मे इकट्ठा कर लिया. उनके ढेर सारे वीर्य से वो लोटा तकरीबन भर गया था. सारा वीर्य निकल जाने के बाद उनका लिंग वापस लटक कर चूहे जैसा हो गया.
मैं उठी और अपने वस्त्र को किसी तरह बदन पर लपेट कर बाहर निकली. पूरा बदन दर्द कर रहा था. गुदा तो लग रहा था की फट गयी है. मैं लड़खड़ते हुए बाहर निकली और रत्ना जी की बाहों मे ढेर हो गयी. उन्हों ने मुझे सांत्वना देते हुए मुझे सम्हाला. मेरे बदन को सहारा देते हुए वापस उस कमरे तक ले गयी जो मुझे रुकने के लिए दिया हुआ था. अब हर संभोग के बाद मुझे आराम की ज़रूरत पड़ रही थी. बदन सुबह से हो रही चुदाई से टूटने लगा था.
रत्ना को पहले से ही मालूम था इसलिए सारा इंटेज़ाम पहले से ही कर रखी थी.सारा समान पहले से ही मौजूद था. एक कटोरी मे पानी गर्म हो रहा था. उसमे किसी दवाई की दो बूँदें अपनी हथेली पर डाल कर उन्हों ने मेरे गुदा की सिकाई की. इससे मुझे बहुत आराम मिला. कुच्छ देर मे जब दर्द कम हुआ तो मैं अपने अगले गेम के लिए तैयार थी.
हमने अगले किसी संभोग से पहले दोपहर का खाना खाया और फिर मैने दो घंटे की नींद ली अब मैं वापस तरोताजा हो गयी थी. अब दो ही शिष्य बचे थे. शाम हो चली थी सूरज डूबने से पहले मुझे अपनी चुदाई पूरी करनी थी.
मेरे जागने पर रत्ना ने मुझे इसबार शरबत की जगह कुच्छ खाने को दिया जिससे इतनी थकान मे भी मेरे बदन मे चिंगारिया भरने लगी. मेरी योनि मे तेज जलन होने लगी. मेरा बदन किसी के लंड से जबरदस्त चुदाई को तड़पने लगा.
रत्ना मुझे लेकर अगले कमरे मे पहुँची तो कमरा बाहर से बंद था. पूच्छने पर पता नही चल पाया कि वो इस वक़्त कहाँ मिलेंगे. हम वहीं कमरे के बाहर सत्यानंद जी का इंतेज़ार करने लगे.
कुच्छ देर इंतेज़ार करने के बाद भी जब वो नही आए तो रत्ना ने कहा, "समय कम है चलो अगले स्वामीजी के पास पहले हो लेते हैं. उनसे निबट कर हम वापस यहाँ आ जाएँगे.”
हम कुच्छ दूर मे बने एक कमरे तक गये. वहाँ दरवाजा खटखटाया तो एक जवान काफ़ी बालिश्ट साधु ने दरवाजा खोला. मुझे बाहर देख कर उन्हों ने बिना कुच्छ बोले सिर्फ़ सिर हिलाया ये जानने के लिए कि मैं कौन हूँ. मैने भी बिना कुच्छ बोले अपने हाथों मे पकड़े कलश को उपर किया. वो कलश को देख कर सब समझ गये. पल भर को मेरे बदन को उपर से नीचे तक निहारा. जिसमे उनकी आँखें मेरे स्तनो के उभार पर एवं मेरे टाँगों के जोड़ पर दो सेकेंड रुकी और फिर आगे बढ़ गयी. उन्हों ने मुझे अच्छि तरह से नाप तौल कर स्वीकार किया.
मुझे निहारने के बाद उन्होने बिना कुच्छ कहे दरवाजे से एक ओर हटकर मुझे अंदर आने को रास्ता दिया. कमरे मे प्रवेश करने के लिए अब भी रास्ता पूरा नही था. वो इस तरह खड़े थे की बिना उनके जिस्म से अपने जिस्म को रगडे मैं अंदर नही घुस सकती थी.
मैने उनकी बगल से उनकी तरफ मुँह कर कमरे मे प्रवेश किया. इस कोशिश मे मेरे दोनो उन्नत स्तन उनकी चौड़ी छाती पर अच्छि तरह से रगड़ खा गये. अंदर मैने देखा कि एक और शिष्य ज़मीन पर बैठे हुए हैं. मुझे अंदर आते देख वो चौंक उठे.
" सत्यानंद..ये देवी गुरु महाराज का महा प्रसाद ग्रहण करने आई है. इसलिए ये हम सब से पहले हमारा प्रसाद इकट्ठा कर रही है. मेरे ख्याल से हम दोनो ही बचे हैं. क्यों देवी बाकी सबके साथ तन का मेल तो हो चुक्का है ना?" मेरे साथ वाले शिष्य ने अंदर बैठे अपने साथी से कहा.
“ ज्ज्ज…जीि” मैं सिर्फ़ इतना ही कह पाई.
" बहुत खूबसूरत ….अद्भुत सोन्दर्य की देवी है. कोई स्वर्ग से उतरी अप्सरा लग रही है. आओ देवी सामने आओ." मैं चलते हुए उनके पास आई. मेरे पीछे जो शिष्या थे वो भी जाकर उनकी बगल मे बैठ गये.
" तेरे बदन मे कितनी सुंदरता, कितनी कामुकता, कितनी आग भरी हुई है. देवी अपने सोन्दर्य को बेपर्दा कर दो. हम भी तो दर्शन करें तुम्हरे इस अदभुत योवन के.”
मैं बिना कुच्छ कहे उनके सामने चुपचाप खड़ी रही.
“मैं हूँ सत्यानंद और ये राजेश्वरणद. तुम शायद पहले मेरे कमरे मे गयी होगी. मुझसे मिलने के बाद इनके पास आना था. इनका नंबर इस लिस्ट मे आख़िरी है. चलो अच्च्छा हुआ दोनो एक साथ ही मिल गये. अब एक साथ दोनो से प्रसाद ग्रहण कर लोगि. और तुझे यहाँ वहाँ भटकना नही पड़ेगा." सत्यानंद ने कहा.
“ चलो अपने बदन के वस्त्र अलग कर दो.” राजेश्वरनंद ने कहा.
मैने अपने बदन पर पहनी सारी को अलग कर ज़मीन पर गिर जाने दिया. बदन पर सिर्फ़ एक ही वस्त्र होने के कारण अब मैं उनके सामने निवस्त्र खड़ी थी.
"म्म्म्ममम आती सुंदर. क्या स्तन हैं मानो हिमालय की चोटियाँ. और नितंब….पीछे घूमो देवी” सत्या जी ने कहा. मैं उनका कहा मान कर अपनी जगह पर पीछे की ओर घूम गयी. मेरी ढालाव दार पीठ और उन्नत नितंबों को देख कर दोनो की जीभों मे पानी आ गया.
“ वाआह…क्या कटाव हैं. नितंब तो जैसे मानो तानपूरा हों. अब तुम्हारी योनि को भी तो देखें कैसा खजाना छिपा रखा है दोनो जांघों के बीच. दोनो पैरों को चौड़ा करो देवी" राजेश ने कहा.
मैने बिना कुच्छ कहे अपने दोनो पैरों को फैला दिया मेरी काले जंगल से घिरी योनि कुछ कुछ सामने से दिखाई पड़ने लगी.
" वाआह क्या अद्भुत सुंदरता की मूरत हो तुम. अपने हाथों को छत की ओर उठा दो और अपने रेशमी बालों को अपने स्तनो के उपर से हटा कर पीठ की ओर कर दो." उन्हों ने जैसा कहा मैने वैसा ही किया. मैं दो मर्दों के सामने अपने हाथों को उपर किए और अपनी टाँगों को चौड़ी किए अपनी सुंदरता की नुमाइश कर रही थी.
“ देवी अब झुक कर अपने पंजों को अपनी उंगलियों से छुओ.” उन्हों ने कहा. मैने अपनी टाँगें घुटनो से मोड बगैर झुक कर अपनी उंगलिओ से अपने पैरों के पंजों को छुआ. ऐसा करने से मेरे नितंब आसमान की ओर मुँह करके खड़े हो गये. एक साथ दोनो छेद उनके सामने थे. मेरे स्तन पके हुए आम की तरह मेरे सीने से झूल रहे थे. वो मेरी सुंदरता को दूर से ही निहारते रहे.
" एम्म्म ऐसे नही. अपनी योनि को उभार कर तो दिखाओ.धनुष आसान जानती हो?" एक ने पूछा.
"हां" मैने बुदबुदते हुए अपने सिर को हिलाया.
" वहाँ ज़मीन पर लेट जाओ और हमारे सामने अपनी योनि खोल कर दिखाओ" मैने देखा दोनो के लंड उत्तेजित हो चुके थे और दोनो अपने अपने खड़े लंड को सहला रहे थे.
मैं वहीं ज़मीन पर नग्न पीठ के बल लेट गयी और अपने पैरों को एवं अपने हाथों को मोड़ कर अपनी कमर को ज़मीन से उठाया. मेरे पैर कुच्छ खुले हुए थे. मेरा पूरा शरीर धनुष की तरह बेंड हो गया और मेरी चिकनी योनि दोनो की आँखों के सामने खुल गयी. दोनो के मुँह से उत्तेजना भरी सिसकारियाँ निकलने लगी.
क्रमशः............