hotaks444
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आख़िरकार मेजर राज ने गहरी साँस ली और अपने साहस को इकट्ठा करने लगा तभी उसके मोबाइल में रश्मि की चीख सुनाई दी, रश्मि पूरी आवाज के साथ चीख कर कह रही थी: राज मेरी जान: पत्नी तो और भी मिल जाएगी, बच्चे भी और मिल जाएंगे, लेकिन अगर आपने अपने देश से गद्दारी की तो तुम्हें यह रश्मि कभी नहीं मिलेगी, और न ही तुम्हारा होने वाला बच्चा तुम्हें कभी माफ करेगा
रश्मि की इस बात ने मेजर राज को वह हौसला दिया जिससे कोई भी सेना के जवान अपने देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देता है, अंत में रश्मि की इस बात ने मेजर राज के अंदर वही जोश और उल्लास पैदा कर दिया कि आर्मी ज्वाइन करते समय मेजर के अंदर था, मेजर राज ने बुलेटप्रूफ शीशे में उस आदमी को देखा जो अब तक हसरत भरी निगाहों से मेजर राज के इशारे का इंतजार कर रहा था, थोड़ी देर और हो जाती तो उसे साना जावेद की फिल्म चलानी ही पड़ती मेजर राज ने अपना हाथ ऊपर उठाया, एक नारा जय हिंद का बुलंद किया और उस व्यक्ति को लोकाटी की सीडी चलाने का निर्देश दिया, जैसे ही स्क्रीन चालू हुई उस पर पहला चेहरा लोकाटी का ही नजर आया, जिसे देखकर सभा स्थल में मौजूद लोकाटी के चेहरे पर हवाइयां उड़ गईं क्योंकि उसको कर्नल इरफ़ान ने आश्वासन दिया था कि यह वीडियो सभा में नहीं चलेगी। लोकाटी तब कर्नल इरफ़ान से बातें कर रहा था जिसमें वह घाटी में स्वतंत्रता आंदोलन चलाने के बदले अपनी मांगों को रख रहा था कि उसे पाकिस्तान की खूबसूरत एक्ट्रेस प्रदान की जाएं दिन व दिन एक नई अभिनेत्री के साथ रात बिताएगा .
फिर दूसरे सीन में लोकाटी पाकिस्तान के एक अधिकारी से घाटी में स्वतंत्रता आंदोलन चलाने के लिए अनुकूल माहौल बनाने के बदले 200 अरब रुपये मांग रहा था। यह वीडियो देखकर सभा स्थल में पूर्ण शांति छा गई थी सब को जैसे सांप सूंघ गया था, इसलिए शांति थी कि सुई गिरने की भी आवाज सुनाई दे, फिर इसी तरह के कुछ और सीन चले जिसमें लोकाटी भारत से गद्दारी के बदले बड़ी बड़ी रकम बटोर रहा था और बदले में पाकिस्तान में विलय का आश्वासन भी करवा रहा था, जबकि इस गद्दार ने अपने लोगों को तो आजादी के सपने दिखाए थे ....
लोकाटी को अपना सब कुछ खत्म होता नजर आने लगा, उसने साथ खड़े सुरक्षा गार्ड से बंदूक पकड़ी और स्क्रीन की तरफ कर गन चलाने लगा, लेकिन वह भूल गया था कि स्क्रीन की सूरक्षा के लिए तो वह खुद उसके सामने बुलेटप्रूफ ग्लास लगवा चुका था, फिर उसने सभा स्थल की बिजली बंद करने का निर्देश दिया, पूरे सभा स्थल की बिजली बंद हो गई मगर स्क्रीन को बिजली शायद कहीं और से मिल रही थी वह बंद नहीं हुई वह चलती रही।
अंततः स्क्रीन पर वह सीन भी चला जब लोकाटी की हालत बुरी हो रही थी, वह बेड पर लेटा हुआ ऊपर नीचे हिल रहा था कैमरा उसके चेहरे पर था, उसके चेहरे से साफ लग रहा था कि वह इस समय बहुत मजे में है, और फिर एक लड़की यानी समीरा की सिसकियों की आवाज आई, और इन्हीं सिसकियों के दौरान समीरा ने पूछा कि घाटी के असरदार भी सरकार में अपना हिस्सा मांगेंगे तो क्या करोगे? तो लोकाटी ने हिकारत से कहा था कि उन पागलों को भला क्या मिलना है? स्वतंत्रता की घोषणा और पाकिस्तान से विलय की घोषणा के बाद जब पाकिस्तानी सेना घाटी में घुस जाएंगी तो पहले इन असरदारों का ही सफ़ाया होगा मैं अपने धन और अपनी सरकार में किसी को शामिल नहीं करूँगा यह लाइन चलने की देर थी कि वहां मौजूद सभी लोग अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, और उनको मानने वाली जनता भी गुस्से से पागल हो गई, वे समझ गए थे कि लोकाटी उन्हें स्वतंत्रता के सपने दिखाकर केवल अपना लाभ प्राप्त करना चाहता है ।
इससे पहले कि कोई नेता लोकाटी को मारता है, वहाँ मौजूद लोकाटी बेटे फग़ान ने सोचा कि यही सही मौका है, मारिया बीबी यानी अंजलि ने जो बताया था कि कब लोकाटी कोमारना है यह आपको पता चल जाएगा, उसने अपनी बंदूक निकाली और अपने पिता की ओर लपका, उसने अपने पिता को देशद्रोही कह कर पुकारा और उस पर निशाना तान कर गोली चला दी, उसका विचार था कि उसका प्रांत रहेगा तो भारत के साथ ही, लेकिन अपने विश्वासघाती पिता को मौत की नींद सलाने के बाद उसी की सेना उसी को यहां की सरकार लिये चुन लेगी और जनता भी खुश होगी कि उसने अपने देश की खातिर अपने पिता की जान ले ली, दूसरी ओर फैजल था जो खेल बिगड़ता देख रहा था, वह समझ गया था कि अब कोई स्वतंत्रता नहीं नही सरकार नहीं, मगर जब उसने देखा कि फग़ान ने अपने पिता को मार दिया है तो वह समझ गया कि अगला मुख्यमंत्री अब फग़ान होगा, मगर वह यह कैसे बर्दाश्त कर सकता था, उसने अपनी बंदूक निकाली और अपने भाई को गोलियों से छलनी करने लगा जबकि फग़ान ने भी अंतिम सांसें लेते हुए अपनी बंदूक का रुख फैजल की ओर कर गन में मौजूद शेष गोलियाँ अपने भाई के शरीर में उतार दी .
लोकाटी की चाल समाप्त हो चुकी थी, कर्नल इरफ़ान जो भारत को दो टुकड़े करने की योजना बना बैठा था वह सब मलिया मैट हो चुका था, सीमा पार जो पाकिस्तानी आर्मी भारत पर हमला करने के लिए तैयार बैठी थीं उन तक खबर पहुंच गई थी कि घाटी की जनता पर लोकाटी का विश्वासघात उजागर हो गया है, और अब वहां की जनता अपनी सेना के बलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है, तो ऐसी स्थिति में भारत पर हमला करने के लिए अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर था। 6 सितंबर 1965 को अभी वह भूले नहीं थे। ऐसे में फिर से इस देश पर हमला करना जहां जनता अपनी सेना के साथ गोलियाँ खाने के लिए अपना सीना तान कर खड़ी हो वहां हमला करना सबसे बड़ी मूर्खता होगी।
मगर दूसरी ओर मेजर राज की दुनिया उजड़ चुकी थी। जब उसने लोकाटी को वीडियो चलाने का आदेश दिया और फोन पर कर्नल इरफ़ान को मालूम हो गया कि मेजर राज ने रश्मि के अंतिम शब्द सुनकर पत्नी और बेटे की बलि देने का सोच लिया है तो वह गुस्से से कांपने लगा था, उसका गुस्सा बढ़ गया था , अब उसके सामने मेजर राज से बदला लेने के लिए एक ही रास्ता था और वह था उसकी पत्नी और पत्नी के पेट में महज 1 से डेढ़ महीने के बच्चे को मौत के घाट उतारना था ताकि मेजर राज सारा जीवन कर्नल इरफ़ान का यह बदला नहीं भूल सके ।
तभी मेजर राज को फोन पर गोली चलने की आवाज सुनाई दी, और रश्मि की एक दिलख़राश चीख मेजर राज के कानों को चीरती हुई चली गई .... मेजर राज के हाथ से मोबाइल गिर चुका था, उसकी दुनिया उजड़ चुकी थी, उसकी प्यारी पत्नी जिसको अभी उसने जी भर कर प्यार भी नहीं किया था और उसका अजन्मा बेटा उसकी एक छोटी सी गलती के परिणामस्वरूप अपनी जान से हाथ धो बैठे थे। मेजर राज अपनी जगह बैठा ज़ोर से रो रहा था, सभा स्थल में क्या हो रहा था, कब लोकाटी को फग़ान ने मारा, और कब फैजल ने फग़ान को मारा, मेजर राज को उसका कुछ पता नहीं था। अगर उसके मन में कुछ था तो उसकी निर्दोष पत्नी और उसका बेटा जो अभी इस दुनिया में आया ही नहीं था। उसे लग रहा था कि उसकी दुनिया उजड़ गई है, वह अपने आप को अपनी पत्नी और बच्चे का हत्यारा समझ रहा था .... मगर फिर अचानक .......... मेजर राज को एक नयी पहचान मिली .... जब उसके कानों में भारत जिंदाबाद .... भारत जिंदाबाद के नारे गूंजने लगे ..... पाकिस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे ने मेजर राज को एक नया जीवन दिया और उसे यह एहसास दिलाया कि वो पहले अपने इस लाड़ले वतन का सिपाही है ... उसके सारे रिश्ते सारे नाते बाद में, पहले उसकी मातृभूमि, इस मातृभूमि की रक्षा। वतन है तो सब कुछ है ... स्वदेश नहीं तो कुछ भी नहीं।
मेजर राज ने सिर उठाकर देखा तो सभा स्थल में लोकाटी का शव आग का निशाना बन चुका था, वहां मौजूद लोगों और हाकिमों ने लोकाटी की असलियत जान लेने के बाद उसकी लाश को जला दिया था। और अब सभा स्थल के मंच पर मेजर राज का खास आदमी मौजूद था जो माइक पर रोमांचक आवाज में भारत जिंदाबाद के नारे लगवा रहा था, और उन्हें बता रहा था कि इस गद्दार ने कैसे यहां की जनता को अनपढ़ रखा और उन्हें उनकी बेटियों की इज्जत की कसम देकर अपने नापाक इरादों के लिए इस्तेमाल करना चाहा। घाटी के लोगों के दिल में देश प्रेम मौजूद था, बस उस पर लोकाटी की झूठी कहानियों ने थोड़ी धूल जमा दी थी, वीडियो मे लोकाटी की असलियत देख लेने के बाद यह उड़ गई थी और वही जुनून जो इस देश के आबा-ओ-अजदाद का 1947 में था, आज 6 सितंबर के अवसर पर भी इस देश के बेटों का वही जुनून था और लाखों का मजमा क़यामत तक इस देश की रक्षा और इस देश को लोकाटी जैसे दुष्ट लोगों से बचाने की कसम खा रहा था। यह देखकर मेजर राज अपनी पत्नी और बच्चे की बलि भूल गया था। अब उसे यह महसूस हो रहा था कि वह हारा नहीं, बल्कि वह जीत गया है। कर्नल इरफ़ान की जीवन भर की मेहनत बेकार हो गई थी, उसके नापाक मंसूबे मिट्टी में मिल गए थे और ये प्रांत फिर से तिरंगे झंडे से सज गया था।
चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ ने मेजर राज को इस बड़ी सफलता पर बधाई दी, प्रधानमंत्री ने भी इस भयानक विद्रोह को कुचलने में मेजर राज को फोन करके बधाई दी और सुसमाचार सुनाया। मेजर राज को अपनी पत्नी और बच्चे को खो देने का गम था, लेकिन अभी वह कमजोर नहीं था, बल्कि वह खुश था कि उसने अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देकर इस देश को बचा लिया था। यही देश के फ़ौजी का मूल धन है। अब उसके मन में केवल एक बात थी। अमजद से किया गया अपना वादा पूरा करना। उसकी बहन समीरा को बा रक्षा उसके घर पहुंचाना
इन्हीं सोचों के साथ मेजर राज वापस पहुंच चुका था। और समीरा को ढूंढना चाहता था, उसने मेजर मिनी को फोन किया और उससे पूछा कि समीरा कहाँ है ??? मेजर मिनी ने मेजर राज को सुसमाचार सुनाया कि मुबारक हो, समीरा मिल गई है, और मैं इस समय समीरा को लेकर तुम्हारे घर पर तुम्हारी माँ के साथ ही हूं आ जाओ तुम भी , तुम्हारी माँ अपने बहादुर बच्चे को देखने के लिए बेचैन हो रही है। माँ का सुनकर मेजर राज शक्तिहीन सा अपने घर की तरफ बढ़ने लगा। घर पहुंचकर मेजर राज ने अपने घर का दरवाजा खोला तो दरवाजे पर ही उसे अपनी माँ दिखाई दी, माँ को देखते ही मेजर राज अपनी माँ से लिपट गया, मेजर राज की आंखों में आंसू थे, बहुत समय बाद वह अपनी मां से मिला जो माँ के चेहरे को रोज देखा करता था आज करीब 2 महीने के बाद वह अपनी माँ से मिल रहा था। मगर इस माँ की आँखों में एक आंसू भी जुदाई का नही था, लेकिन उसकी आंखों में अपने बहादुर बेटे के लिए प्यार ही प्यार था और सीना गर्व से फूला हुआ था और चेहरे पर एक अजीब सा संतोष था कि शायद किस्मत वालों का ही ऐसा नसीब होता है ....
मेजर राज के दिल में कहीं रश्मि का भी ख्याल था कि अगर आज रश्मि भी होती तो वह कितनी खुश होती। मां से मिलने के बाद मेजर राज ने मेजर मिनी को देखा जो गर्व से मेजर राज को देख रही थी, उसने मेजर राज को एक सलयूट और उसे शानदार उपलब्धि पर बधाई दी। मेजर मिनी के पीछे समीरा खड़ी थी, वह भी खुश थी और उसकी आँखों में जहां मेजर राज की सफलता पर खुशी और गर्व था, वहीं शायद एक पीड़ा भी थी, वह जानती थी कि अब इसे मेजर राज से अलग होना है। कुछ दिन मेजर राज के साथ गुजार कर वह उससे प्यार करने लगी थी। और सारी ज़िंदगी उसी के साथ बिताना चाहती थी, लेकिन ऐसा होना संभव नहीं था .....
समीरा अपनी जगह से साइड पर हटी तो उसके पीछे मेजर राज ने जो दृश्य देखा, उसे समझ नहीं आया कि वह खुशी से रोए या चीखें मारे। समीरा केपीछे मेजर राज को रश्मि दिखी थी। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं आ रहा था। मेजर राज ने एक बार अपनी आँखें मली और उसके बाद फिर से देखा तो रश्मि अब तक अपनी जगह पर मौजूद थी और उसकी आँखें धृड और अपने पति की बहादुरी पर गर्व से झिलमिलाती नजर आ रही थीं। मेजर राज एकदम से आगे बढ़ा और सबके सामने ही अपनी पत्नी को अपने गले से लगा लिया, रश्मि भी अपने पति के सीने से लगकर सारी पीड़ा भूल गई थी जो उसे कर्नल इरफ़ान से मिली थी, या जो जुदाई के दिन उसने हनीमून से ही बिताना शुरू कर दिए थे, पति के सीने से लगकर उसे उसकी दुनिया वापस मिल गई थी, उसका प्यार वापस मिल गया था। मेजर राज को समझ नहीं आया था कि आखिर यह सब कैसे हुआ?
तब मेजर मिनी ने मेजर राज को कहा कि तुम्हें समीरा को बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहिए, जिसने कर्नल इरफ़ान की कैद से रश्मि को न केवल बचाया बल्कि उसको इबरत नाक सजा भी दी, और उसकी लाश इस समय पाकिस्तानी बॉर्डर पर पड़ी है, और कोई उसे उठाने के लिए आगे नहीं बढ़ रहा। मेजर राज ने समीरा देखा और अब की बार आगे बढ़कर उसे भी गले से लगा लिया, और उसका माथा चूम कर उसका बहुत बहुत धन्यवाद।किया .
रश्मि की इस बात ने मेजर राज को वह हौसला दिया जिससे कोई भी सेना के जवान अपने देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देता है, अंत में रश्मि की इस बात ने मेजर राज के अंदर वही जोश और उल्लास पैदा कर दिया कि आर्मी ज्वाइन करते समय मेजर के अंदर था, मेजर राज ने बुलेटप्रूफ शीशे में उस आदमी को देखा जो अब तक हसरत भरी निगाहों से मेजर राज के इशारे का इंतजार कर रहा था, थोड़ी देर और हो जाती तो उसे साना जावेद की फिल्म चलानी ही पड़ती मेजर राज ने अपना हाथ ऊपर उठाया, एक नारा जय हिंद का बुलंद किया और उस व्यक्ति को लोकाटी की सीडी चलाने का निर्देश दिया, जैसे ही स्क्रीन चालू हुई उस पर पहला चेहरा लोकाटी का ही नजर आया, जिसे देखकर सभा स्थल में मौजूद लोकाटी के चेहरे पर हवाइयां उड़ गईं क्योंकि उसको कर्नल इरफ़ान ने आश्वासन दिया था कि यह वीडियो सभा में नहीं चलेगी। लोकाटी तब कर्नल इरफ़ान से बातें कर रहा था जिसमें वह घाटी में स्वतंत्रता आंदोलन चलाने के बदले अपनी मांगों को रख रहा था कि उसे पाकिस्तान की खूबसूरत एक्ट्रेस प्रदान की जाएं दिन व दिन एक नई अभिनेत्री के साथ रात बिताएगा .
फिर दूसरे सीन में लोकाटी पाकिस्तान के एक अधिकारी से घाटी में स्वतंत्रता आंदोलन चलाने के लिए अनुकूल माहौल बनाने के बदले 200 अरब रुपये मांग रहा था। यह वीडियो देखकर सभा स्थल में पूर्ण शांति छा गई थी सब को जैसे सांप सूंघ गया था, इसलिए शांति थी कि सुई गिरने की भी आवाज सुनाई दे, फिर इसी तरह के कुछ और सीन चले जिसमें लोकाटी भारत से गद्दारी के बदले बड़ी बड़ी रकम बटोर रहा था और बदले में पाकिस्तान में विलय का आश्वासन भी करवा रहा था, जबकि इस गद्दार ने अपने लोगों को तो आजादी के सपने दिखाए थे ....
लोकाटी को अपना सब कुछ खत्म होता नजर आने लगा, उसने साथ खड़े सुरक्षा गार्ड से बंदूक पकड़ी और स्क्रीन की तरफ कर गन चलाने लगा, लेकिन वह भूल गया था कि स्क्रीन की सूरक्षा के लिए तो वह खुद उसके सामने बुलेटप्रूफ ग्लास लगवा चुका था, फिर उसने सभा स्थल की बिजली बंद करने का निर्देश दिया, पूरे सभा स्थल की बिजली बंद हो गई मगर स्क्रीन को बिजली शायद कहीं और से मिल रही थी वह बंद नहीं हुई वह चलती रही।
अंततः स्क्रीन पर वह सीन भी चला जब लोकाटी की हालत बुरी हो रही थी, वह बेड पर लेटा हुआ ऊपर नीचे हिल रहा था कैमरा उसके चेहरे पर था, उसके चेहरे से साफ लग रहा था कि वह इस समय बहुत मजे में है, और फिर एक लड़की यानी समीरा की सिसकियों की आवाज आई, और इन्हीं सिसकियों के दौरान समीरा ने पूछा कि घाटी के असरदार भी सरकार में अपना हिस्सा मांगेंगे तो क्या करोगे? तो लोकाटी ने हिकारत से कहा था कि उन पागलों को भला क्या मिलना है? स्वतंत्रता की घोषणा और पाकिस्तान से विलय की घोषणा के बाद जब पाकिस्तानी सेना घाटी में घुस जाएंगी तो पहले इन असरदारों का ही सफ़ाया होगा मैं अपने धन और अपनी सरकार में किसी को शामिल नहीं करूँगा यह लाइन चलने की देर थी कि वहां मौजूद सभी लोग अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, और उनको मानने वाली जनता भी गुस्से से पागल हो गई, वे समझ गए थे कि लोकाटी उन्हें स्वतंत्रता के सपने दिखाकर केवल अपना लाभ प्राप्त करना चाहता है ।
इससे पहले कि कोई नेता लोकाटी को मारता है, वहाँ मौजूद लोकाटी बेटे फग़ान ने सोचा कि यही सही मौका है, मारिया बीबी यानी अंजलि ने जो बताया था कि कब लोकाटी कोमारना है यह आपको पता चल जाएगा, उसने अपनी बंदूक निकाली और अपने पिता की ओर लपका, उसने अपने पिता को देशद्रोही कह कर पुकारा और उस पर निशाना तान कर गोली चला दी, उसका विचार था कि उसका प्रांत रहेगा तो भारत के साथ ही, लेकिन अपने विश्वासघाती पिता को मौत की नींद सलाने के बाद उसी की सेना उसी को यहां की सरकार लिये चुन लेगी और जनता भी खुश होगी कि उसने अपने देश की खातिर अपने पिता की जान ले ली, दूसरी ओर फैजल था जो खेल बिगड़ता देख रहा था, वह समझ गया था कि अब कोई स्वतंत्रता नहीं नही सरकार नहीं, मगर जब उसने देखा कि फग़ान ने अपने पिता को मार दिया है तो वह समझ गया कि अगला मुख्यमंत्री अब फग़ान होगा, मगर वह यह कैसे बर्दाश्त कर सकता था, उसने अपनी बंदूक निकाली और अपने भाई को गोलियों से छलनी करने लगा जबकि फग़ान ने भी अंतिम सांसें लेते हुए अपनी बंदूक का रुख फैजल की ओर कर गन में मौजूद शेष गोलियाँ अपने भाई के शरीर में उतार दी .
लोकाटी की चाल समाप्त हो चुकी थी, कर्नल इरफ़ान जो भारत को दो टुकड़े करने की योजना बना बैठा था वह सब मलिया मैट हो चुका था, सीमा पार जो पाकिस्तानी आर्मी भारत पर हमला करने के लिए तैयार बैठी थीं उन तक खबर पहुंच गई थी कि घाटी की जनता पर लोकाटी का विश्वासघात उजागर हो गया है, और अब वहां की जनता अपनी सेना के बलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है, तो ऐसी स्थिति में भारत पर हमला करने के लिए अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर था। 6 सितंबर 1965 को अभी वह भूले नहीं थे। ऐसे में फिर से इस देश पर हमला करना जहां जनता अपनी सेना के साथ गोलियाँ खाने के लिए अपना सीना तान कर खड़ी हो वहां हमला करना सबसे बड़ी मूर्खता होगी।
मगर दूसरी ओर मेजर राज की दुनिया उजड़ चुकी थी। जब उसने लोकाटी को वीडियो चलाने का आदेश दिया और फोन पर कर्नल इरफ़ान को मालूम हो गया कि मेजर राज ने रश्मि के अंतिम शब्द सुनकर पत्नी और बेटे की बलि देने का सोच लिया है तो वह गुस्से से कांपने लगा था, उसका गुस्सा बढ़ गया था , अब उसके सामने मेजर राज से बदला लेने के लिए एक ही रास्ता था और वह था उसकी पत्नी और पत्नी के पेट में महज 1 से डेढ़ महीने के बच्चे को मौत के घाट उतारना था ताकि मेजर राज सारा जीवन कर्नल इरफ़ान का यह बदला नहीं भूल सके ।
तभी मेजर राज को फोन पर गोली चलने की आवाज सुनाई दी, और रश्मि की एक दिलख़राश चीख मेजर राज के कानों को चीरती हुई चली गई .... मेजर राज के हाथ से मोबाइल गिर चुका था, उसकी दुनिया उजड़ चुकी थी, उसकी प्यारी पत्नी जिसको अभी उसने जी भर कर प्यार भी नहीं किया था और उसका अजन्मा बेटा उसकी एक छोटी सी गलती के परिणामस्वरूप अपनी जान से हाथ धो बैठे थे। मेजर राज अपनी जगह बैठा ज़ोर से रो रहा था, सभा स्थल में क्या हो रहा था, कब लोकाटी को फग़ान ने मारा, और कब फैजल ने फग़ान को मारा, मेजर राज को उसका कुछ पता नहीं था। अगर उसके मन में कुछ था तो उसकी निर्दोष पत्नी और उसका बेटा जो अभी इस दुनिया में आया ही नहीं था। उसे लग रहा था कि उसकी दुनिया उजड़ गई है, वह अपने आप को अपनी पत्नी और बच्चे का हत्यारा समझ रहा था .... मगर फिर अचानक .......... मेजर राज को एक नयी पहचान मिली .... जब उसके कानों में भारत जिंदाबाद .... भारत जिंदाबाद के नारे गूंजने लगे ..... पाकिस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे ने मेजर राज को एक नया जीवन दिया और उसे यह एहसास दिलाया कि वो पहले अपने इस लाड़ले वतन का सिपाही है ... उसके सारे रिश्ते सारे नाते बाद में, पहले उसकी मातृभूमि, इस मातृभूमि की रक्षा। वतन है तो सब कुछ है ... स्वदेश नहीं तो कुछ भी नहीं।
मेजर राज ने सिर उठाकर देखा तो सभा स्थल में लोकाटी का शव आग का निशाना बन चुका था, वहां मौजूद लोगों और हाकिमों ने लोकाटी की असलियत जान लेने के बाद उसकी लाश को जला दिया था। और अब सभा स्थल के मंच पर मेजर राज का खास आदमी मौजूद था जो माइक पर रोमांचक आवाज में भारत जिंदाबाद के नारे लगवा रहा था, और उन्हें बता रहा था कि इस गद्दार ने कैसे यहां की जनता को अनपढ़ रखा और उन्हें उनकी बेटियों की इज्जत की कसम देकर अपने नापाक इरादों के लिए इस्तेमाल करना चाहा। घाटी के लोगों के दिल में देश प्रेम मौजूद था, बस उस पर लोकाटी की झूठी कहानियों ने थोड़ी धूल जमा दी थी, वीडियो मे लोकाटी की असलियत देख लेने के बाद यह उड़ गई थी और वही जुनून जो इस देश के आबा-ओ-अजदाद का 1947 में था, आज 6 सितंबर के अवसर पर भी इस देश के बेटों का वही जुनून था और लाखों का मजमा क़यामत तक इस देश की रक्षा और इस देश को लोकाटी जैसे दुष्ट लोगों से बचाने की कसम खा रहा था। यह देखकर मेजर राज अपनी पत्नी और बच्चे की बलि भूल गया था। अब उसे यह महसूस हो रहा था कि वह हारा नहीं, बल्कि वह जीत गया है। कर्नल इरफ़ान की जीवन भर की मेहनत बेकार हो गई थी, उसके नापाक मंसूबे मिट्टी में मिल गए थे और ये प्रांत फिर से तिरंगे झंडे से सज गया था।
चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ ने मेजर राज को इस बड़ी सफलता पर बधाई दी, प्रधानमंत्री ने भी इस भयानक विद्रोह को कुचलने में मेजर राज को फोन करके बधाई दी और सुसमाचार सुनाया। मेजर राज को अपनी पत्नी और बच्चे को खो देने का गम था, लेकिन अभी वह कमजोर नहीं था, बल्कि वह खुश था कि उसने अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देकर इस देश को बचा लिया था। यही देश के फ़ौजी का मूल धन है। अब उसके मन में केवल एक बात थी। अमजद से किया गया अपना वादा पूरा करना। उसकी बहन समीरा को बा रक्षा उसके घर पहुंचाना
इन्हीं सोचों के साथ मेजर राज वापस पहुंच चुका था। और समीरा को ढूंढना चाहता था, उसने मेजर मिनी को फोन किया और उससे पूछा कि समीरा कहाँ है ??? मेजर मिनी ने मेजर राज को सुसमाचार सुनाया कि मुबारक हो, समीरा मिल गई है, और मैं इस समय समीरा को लेकर तुम्हारे घर पर तुम्हारी माँ के साथ ही हूं आ जाओ तुम भी , तुम्हारी माँ अपने बहादुर बच्चे को देखने के लिए बेचैन हो रही है। माँ का सुनकर मेजर राज शक्तिहीन सा अपने घर की तरफ बढ़ने लगा। घर पहुंचकर मेजर राज ने अपने घर का दरवाजा खोला तो दरवाजे पर ही उसे अपनी माँ दिखाई दी, माँ को देखते ही मेजर राज अपनी माँ से लिपट गया, मेजर राज की आंखों में आंसू थे, बहुत समय बाद वह अपनी मां से मिला जो माँ के चेहरे को रोज देखा करता था आज करीब 2 महीने के बाद वह अपनी माँ से मिल रहा था। मगर इस माँ की आँखों में एक आंसू भी जुदाई का नही था, लेकिन उसकी आंखों में अपने बहादुर बेटे के लिए प्यार ही प्यार था और सीना गर्व से फूला हुआ था और चेहरे पर एक अजीब सा संतोष था कि शायद किस्मत वालों का ही ऐसा नसीब होता है ....
मेजर राज के दिल में कहीं रश्मि का भी ख्याल था कि अगर आज रश्मि भी होती तो वह कितनी खुश होती। मां से मिलने के बाद मेजर राज ने मेजर मिनी को देखा जो गर्व से मेजर राज को देख रही थी, उसने मेजर राज को एक सलयूट और उसे शानदार उपलब्धि पर बधाई दी। मेजर मिनी के पीछे समीरा खड़ी थी, वह भी खुश थी और उसकी आँखों में जहां मेजर राज की सफलता पर खुशी और गर्व था, वहीं शायद एक पीड़ा भी थी, वह जानती थी कि अब इसे मेजर राज से अलग होना है। कुछ दिन मेजर राज के साथ गुजार कर वह उससे प्यार करने लगी थी। और सारी ज़िंदगी उसी के साथ बिताना चाहती थी, लेकिन ऐसा होना संभव नहीं था .....
समीरा अपनी जगह से साइड पर हटी तो उसके पीछे मेजर राज ने जो दृश्य देखा, उसे समझ नहीं आया कि वह खुशी से रोए या चीखें मारे। समीरा केपीछे मेजर राज को रश्मि दिखी थी। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं आ रहा था। मेजर राज ने एक बार अपनी आँखें मली और उसके बाद फिर से देखा तो रश्मि अब तक अपनी जगह पर मौजूद थी और उसकी आँखें धृड और अपने पति की बहादुरी पर गर्व से झिलमिलाती नजर आ रही थीं। मेजर राज एकदम से आगे बढ़ा और सबके सामने ही अपनी पत्नी को अपने गले से लगा लिया, रश्मि भी अपने पति के सीने से लगकर सारी पीड़ा भूल गई थी जो उसे कर्नल इरफ़ान से मिली थी, या जो जुदाई के दिन उसने हनीमून से ही बिताना शुरू कर दिए थे, पति के सीने से लगकर उसे उसकी दुनिया वापस मिल गई थी, उसका प्यार वापस मिल गया था। मेजर राज को समझ नहीं आया था कि आखिर यह सब कैसे हुआ?
तब मेजर मिनी ने मेजर राज को कहा कि तुम्हें समीरा को बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहिए, जिसने कर्नल इरफ़ान की कैद से रश्मि को न केवल बचाया बल्कि उसको इबरत नाक सजा भी दी, और उसकी लाश इस समय पाकिस्तानी बॉर्डर पर पड़ी है, और कोई उसे उठाने के लिए आगे नहीं बढ़ रहा। मेजर राज ने समीरा देखा और अब की बार आगे बढ़कर उसे भी गले से लगा लिया, और उसका माथा चूम कर उसका बहुत बहुत धन्यवाद।किया .