hotaks444
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होली हो ली
तब तक किसी की आवाज आयी- “हे लाला जल्दी करो बस निकल जायेगी…”
रास्ते भर कच्ची पक्की झूमती गेंहूं की बालियों, पीली-पीली सरसों के बीच उसकी मुश्कान…
,,,,,
घर पहुंच के होली की तैयारियां… भाभी की ससुराल में पहली होली…
ढेर सारी चीजें बनी। दसों चक्कर बाजार के मैंने लगाये… कभी खोया कम तो कभी मैदा। घर में हमी दो तो थे, भैया अपने काम में मशगूल। वो गोझिया बेलतीं तो मैं काटता, मैं भरता तो वो गोंठती। साथ में कभी वो मैदा ही मुझे लगा के होली की शुरुआत कर देती तो मैं भी क्यों छोड़ता…
कभी उनका आंचल जाने अनजाने ढलक जाता तो मैं जानबूझ के वहां घूरता… तो वो बोलती- “लगता है तेरे लिये परमानेंट इंतजाम करना पड़ेगा…”
“एकदम भाभी… बड़ी परेशानी होती है… लेकिन तब तक…” मैं उनकी ओर उम्मीद लगा के देखता।
तो वो भी उसी अंदाज में बोलतीं- “सोचती हूं… ये मेरी ननद कैसी रहेगी… उसका भी काम चल जायेगा और तुम्हारा भी घर का माल घर के काम में भी आ जायेगा…”
मैं उन्हें मेडिकल कालेज में सीखे खुले गाने बिना सेंसर के सुनाता और वो भी एक से एक गालियां… शाम को मैंने पूछा की भाभी रंग कितना लाऊँ?
तो वो बोली- “एक पाव तो तेरे पिछवाड़े में समा जायेगा, और उतना ही तेरी छिनाल बहन के अगवाड़े…”
जब मैं रंग ले के आया तो बड़े द्विअथी अंदाज में बोला- “क्यों भाभी डालूं…”
वो पूड़ी बेल रही थीं। बेलन के हैंडल को सहलाते हुए बोलीं- “देख रहे हो कितना लंबा और मोटा है” एक बार में अंदर कर दूंगी अगर होली के पहले तंग किया तो…”
मैं किचेन में बैठा था की वो हाथ धोने के लिये बाहर गयी और लौट के पीछे से मेरा ही रंग मेरे चेहरे पे… बोलीं- “जरा टेस्ट कर रही थी की कैसा चढ़ता है…”
फिर मैं क्यों छोड़ता।
होली के पहले ही हम लोगों की जम के होली हो गयी। खाना खाने के बाद मैं हाथ धो रहा था की वो पीछे से आयीं और सीधे पीछे से पजामे के अंदर मेरे नितंबों पे… और बोलीं- “गाल पे तो तुम्हारे टेस्ट कर लिया था जरा देखूं यहां रंग कैसे चढ़ता है…”
भैया पहले सोने चले गये थे।
भाभी किचेन में काम खतम कर रही थीं हम दोनों का प्लान ये था की सब कुछ आज ही बन जाय जिससे अगले दिन सिर्फ होली ही हो एकदम सुबह से।
काम खतम करके वो कड़ाही और सारे बरतनों की कालिख समेटने लगीं।
मैंने पूछा- “भाभी ये क्या सुबह आयेगी तो बरतन वाली…”
वो हँस के बोली- “लाला अभी सब ट्रिक मैंने थोड़े ही सिखाई है। बस देखते जाओ इनका क्या इश्तेमाल होता है…”
सोने के जाने के पहले वो रोज मुझे दूध दे के जाती थीं। वो आज आयीं तो मैंने चिढ़ाया- “अरे भाभी जल्दी जाइये शेर इंतजार कर रहा होगा…”
उन्होंने एक मुट्ठी भर गुलाल सीधे मेरे थोड़े-थोड़े तने टेंटपोल पे डाल के बोला-
“अरे उस शेर को तो रोज देखती हूं अब जरा इस शेर को भी देख लूंगी कि सिर्फ चिघ्घाड़ता ही है या कुछ शिकार विकार भी करना आता है…” तकिये के पास एक वैसलीन की शीशी रख के बोलीं- “जरा ठीक से लगा वगा लेना कल डलवाने में आसानी होगी…”
अगले दिन सुबह मैं उठा तो शीशे में देख के चिल्ला पड़ा।
सारी की सारी कालिख मेरे चेहरे पे… माथे पे बिंदी और मांग में खूब चौड़ा सिंदूर… जितना साफ करने की कोशिश करता उतनी ही कालिख और फैलती। तब तक पीछे से खिलखिलाने की आवाज आयी। भाभी थीं-
“क्यों लाला कल रात किसके साथ मुँह काला किया… जरूर वो मेरी छिनाल ननद रही होगी…”
मैंने उन्हें पकड़ने की कोशिश की लेकिन वो ये जा वो जा। जबरदस्त होली हुई उस दिन।
जितना मैंने सोचा था उससे कहीं ज्यादा… पहले तो भाभी ने मुझे दो-दो भांग वाली गुझिया खिला के टुन्न कर दिया तो मैं क्यों छोड़ता… मैंने उन्हें डबल डोज वाली ठंडाइ अपनी कसम दिला के पिला दी।
जो झिझक भांग से नहीं गयी वो भाभी की हरकतों से… अगर मेरा हाथ कहीं ठिठकता भी तो भाभी का हाथ… फिर तो एकदम खुल के और फिर भैया अपने दोस्तों के साथ बाहर चले गये तो फिर तो और…
शुरू में मेरा पलड़ा भारी रहा लेकिन कुछ देर में मोहल्ले की औरतें आ गयी, वो भाभी के साथ खेलने के लिये। मैं कमरे में घुस गया।
5-6 औरतें और दो तीन लड़कियां, सबकी नेता थीं दूबे भाभी, स्थूल थोड़ी, खूब गोरी, दीर्घ नितंबा। भाभी भी कम तगड़ी नहीं थी लेकिन एक साथ दो मोहल्ले की भाभियों ने एक हाथ पकड़ा और दो ने दूसरा। शर्मा भाभी जो दूबे भाभी की तरह मुँहफट थी कस के कमर पकड़ ली, और बोलीं-
“अरे ज्यादा छटको नहीं देवर जी से तो रोज दिन रात डलवाती हो आज हमसे भी डलवा लो खुल के…”
बेचारी भाभी, अब वो अच्छी तरह पकड़ी गयी थीं। दूबे भाभी ने पहले तो गाल लाल किये फिर अपने हाथ में बैंगनी रंग लगा के, गाल से हाथ सरक के सीधे ब्लाउज के भीतर जाने की कोशिश करने लगा। भाभी बहुत छ्टपटायीं लेकिन सारी औरतों ने मिल के उन्हें कस के पकड़ रखा था।
आंचल छलक चुका था और झपटा-झपटी में उनके दो हुक भी टूट गये। गोरे उरोजों के ऊपर का हिस्सा अब साफ-साफ दिख रहा था।
भाभी छुड़ाने की कोशिश करतें बोलीं- “अरे नहीं बैगनी रंग नहीं ये बड़ा पक्का…”
उनकी बात काट के दूबे भाभी बोलीं- “अरे मोटे बैंगन घोंटने में कोई सरम नहीं है और… पक्का रंग तो इसीलिये लगा रही हूं कि रात भर जब मरद कस-कस के रगड़े तेरी ये मस्त…” उनकी आगे की बात औरतों के ठहाके में गूंज गयी।
अब उनका एक हाथ पूरा अच्छी तरह घुस गया था। नीचे से शर्मा भाभी ने भी पेट से हाथ सरका के सीधे ऊपर ब्लाउज के अंदर… दूबे भाभी बोलीं-
“अरे जरा देखूं तो क्या रखा है इस चोली के अंदर जो सारे मुहल्ले के मर्दों की निगाहें यहीं चिपकी रहती हैं…”
खूब देर तक वो… तब तक बाकी औरतें जो हाथ पकड़े थीं बोली-
“अरे दूबे भाभी, जरा हम लोगों को भी तो की अकेले…”
दूबे भाभी ने हाथ निकाल के बैगनी रंग फिर से लगाते हुए कहा- “हां हां लो… और जरा मैं नीचे के खजाने का भी तो हाल चाल लूं। वो पहले पेट पे फिर…”
तब तक दो औरतों ने जिन्होंने हाथ थाम रखा था भाभी के ब्लाउज में… भाभी को थोड़ा मौका मिल गया, वे मुड़ीं तो अब मैं जो सामने का सीन देख रहा था वो बंद हो गया। लेकिन जिस तरह से उनकी सिसकी निकली ये साफ था की दूबे भाभी का हाथ अंदर धंस गया था।
पीछे से भी दो औरतों ने अंदर हाथ डाल रखा था। गाल पे लड़कियां कस-कस के रगड़ रही थी। खूब देर तक जम के भाभी की रगड़ाई हुई।
और क्या खुल के हरकतें, बातें… देख के मेरा तंबू पाजामे में तन गया।
तब तक किसी की आवाज आयी- “हे लाला जल्दी करो बस निकल जायेगी…”
रास्ते भर कच्ची पक्की झूमती गेंहूं की बालियों, पीली-पीली सरसों के बीच उसकी मुश्कान…
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घर पहुंच के होली की तैयारियां… भाभी की ससुराल में पहली होली…
ढेर सारी चीजें बनी। दसों चक्कर बाजार के मैंने लगाये… कभी खोया कम तो कभी मैदा। घर में हमी दो तो थे, भैया अपने काम में मशगूल। वो गोझिया बेलतीं तो मैं काटता, मैं भरता तो वो गोंठती। साथ में कभी वो मैदा ही मुझे लगा के होली की शुरुआत कर देती तो मैं भी क्यों छोड़ता…
कभी उनका आंचल जाने अनजाने ढलक जाता तो मैं जानबूझ के वहां घूरता… तो वो बोलती- “लगता है तेरे लिये परमानेंट इंतजाम करना पड़ेगा…”
“एकदम भाभी… बड़ी परेशानी होती है… लेकिन तब तक…” मैं उनकी ओर उम्मीद लगा के देखता।
तो वो भी उसी अंदाज में बोलतीं- “सोचती हूं… ये मेरी ननद कैसी रहेगी… उसका भी काम चल जायेगा और तुम्हारा भी घर का माल घर के काम में भी आ जायेगा…”
मैं उन्हें मेडिकल कालेज में सीखे खुले गाने बिना सेंसर के सुनाता और वो भी एक से एक गालियां… शाम को मैंने पूछा की भाभी रंग कितना लाऊँ?
तो वो बोली- “एक पाव तो तेरे पिछवाड़े में समा जायेगा, और उतना ही तेरी छिनाल बहन के अगवाड़े…”
जब मैं रंग ले के आया तो बड़े द्विअथी अंदाज में बोला- “क्यों भाभी डालूं…”
वो पूड़ी बेल रही थीं। बेलन के हैंडल को सहलाते हुए बोलीं- “देख रहे हो कितना लंबा और मोटा है” एक बार में अंदर कर दूंगी अगर होली के पहले तंग किया तो…”
मैं किचेन में बैठा था की वो हाथ धोने के लिये बाहर गयी और लौट के पीछे से मेरा ही रंग मेरे चेहरे पे… बोलीं- “जरा टेस्ट कर रही थी की कैसा चढ़ता है…”
फिर मैं क्यों छोड़ता।
होली के पहले ही हम लोगों की जम के होली हो गयी। खाना खाने के बाद मैं हाथ धो रहा था की वो पीछे से आयीं और सीधे पीछे से पजामे के अंदर मेरे नितंबों पे… और बोलीं- “गाल पे तो तुम्हारे टेस्ट कर लिया था जरा देखूं यहां रंग कैसे चढ़ता है…”
भैया पहले सोने चले गये थे।
भाभी किचेन में काम खतम कर रही थीं हम दोनों का प्लान ये था की सब कुछ आज ही बन जाय जिससे अगले दिन सिर्फ होली ही हो एकदम सुबह से।
काम खतम करके वो कड़ाही और सारे बरतनों की कालिख समेटने लगीं।
मैंने पूछा- “भाभी ये क्या सुबह आयेगी तो बरतन वाली…”
वो हँस के बोली- “लाला अभी सब ट्रिक मैंने थोड़े ही सिखाई है। बस देखते जाओ इनका क्या इश्तेमाल होता है…”
सोने के जाने के पहले वो रोज मुझे दूध दे के जाती थीं। वो आज आयीं तो मैंने चिढ़ाया- “अरे भाभी जल्दी जाइये शेर इंतजार कर रहा होगा…”
उन्होंने एक मुट्ठी भर गुलाल सीधे मेरे थोड़े-थोड़े तने टेंटपोल पे डाल के बोला-
“अरे उस शेर को तो रोज देखती हूं अब जरा इस शेर को भी देख लूंगी कि सिर्फ चिघ्घाड़ता ही है या कुछ शिकार विकार भी करना आता है…” तकिये के पास एक वैसलीन की शीशी रख के बोलीं- “जरा ठीक से लगा वगा लेना कल डलवाने में आसानी होगी…”
अगले दिन सुबह मैं उठा तो शीशे में देख के चिल्ला पड़ा।
सारी की सारी कालिख मेरे चेहरे पे… माथे पे बिंदी और मांग में खूब चौड़ा सिंदूर… जितना साफ करने की कोशिश करता उतनी ही कालिख और फैलती। तब तक पीछे से खिलखिलाने की आवाज आयी। भाभी थीं-
“क्यों लाला कल रात किसके साथ मुँह काला किया… जरूर वो मेरी छिनाल ननद रही होगी…”
मैंने उन्हें पकड़ने की कोशिश की लेकिन वो ये जा वो जा। जबरदस्त होली हुई उस दिन।
जितना मैंने सोचा था उससे कहीं ज्यादा… पहले तो भाभी ने मुझे दो-दो भांग वाली गुझिया खिला के टुन्न कर दिया तो मैं क्यों छोड़ता… मैंने उन्हें डबल डोज वाली ठंडाइ अपनी कसम दिला के पिला दी।
जो झिझक भांग से नहीं गयी वो भाभी की हरकतों से… अगर मेरा हाथ कहीं ठिठकता भी तो भाभी का हाथ… फिर तो एकदम खुल के और फिर भैया अपने दोस्तों के साथ बाहर चले गये तो फिर तो और…
शुरू में मेरा पलड़ा भारी रहा लेकिन कुछ देर में मोहल्ले की औरतें आ गयी, वो भाभी के साथ खेलने के लिये। मैं कमरे में घुस गया।
5-6 औरतें और दो तीन लड़कियां, सबकी नेता थीं दूबे भाभी, स्थूल थोड़ी, खूब गोरी, दीर्घ नितंबा। भाभी भी कम तगड़ी नहीं थी लेकिन एक साथ दो मोहल्ले की भाभियों ने एक हाथ पकड़ा और दो ने दूसरा। शर्मा भाभी जो दूबे भाभी की तरह मुँहफट थी कस के कमर पकड़ ली, और बोलीं-
“अरे ज्यादा छटको नहीं देवर जी से तो रोज दिन रात डलवाती हो आज हमसे भी डलवा लो खुल के…”
बेचारी भाभी, अब वो अच्छी तरह पकड़ी गयी थीं। दूबे भाभी ने पहले तो गाल लाल किये फिर अपने हाथ में बैंगनी रंग लगा के, गाल से हाथ सरक के सीधे ब्लाउज के भीतर जाने की कोशिश करने लगा। भाभी बहुत छ्टपटायीं लेकिन सारी औरतों ने मिल के उन्हें कस के पकड़ रखा था।
आंचल छलक चुका था और झपटा-झपटी में उनके दो हुक भी टूट गये। गोरे उरोजों के ऊपर का हिस्सा अब साफ-साफ दिख रहा था।
भाभी छुड़ाने की कोशिश करतें बोलीं- “अरे नहीं बैगनी रंग नहीं ये बड़ा पक्का…”
उनकी बात काट के दूबे भाभी बोलीं- “अरे मोटे बैंगन घोंटने में कोई सरम नहीं है और… पक्का रंग तो इसीलिये लगा रही हूं कि रात भर जब मरद कस-कस के रगड़े तेरी ये मस्त…” उनकी आगे की बात औरतों के ठहाके में गूंज गयी।
अब उनका एक हाथ पूरा अच्छी तरह घुस गया था। नीचे से शर्मा भाभी ने भी पेट से हाथ सरका के सीधे ऊपर ब्लाउज के अंदर… दूबे भाभी बोलीं-
“अरे जरा देखूं तो क्या रखा है इस चोली के अंदर जो सारे मुहल्ले के मर्दों की निगाहें यहीं चिपकी रहती हैं…”
खूब देर तक वो… तब तक बाकी औरतें जो हाथ पकड़े थीं बोली-
“अरे दूबे भाभी, जरा हम लोगों को भी तो की अकेले…”
दूबे भाभी ने हाथ निकाल के बैगनी रंग फिर से लगाते हुए कहा- “हां हां लो… और जरा मैं नीचे के खजाने का भी तो हाल चाल लूं। वो पहले पेट पे फिर…”
तब तक दो औरतों ने जिन्होंने हाथ थाम रखा था भाभी के ब्लाउज में… भाभी को थोड़ा मौका मिल गया, वे मुड़ीं तो अब मैं जो सामने का सीन देख रहा था वो बंद हो गया। लेकिन जिस तरह से उनकी सिसकी निकली ये साफ था की दूबे भाभी का हाथ अंदर धंस गया था।
पीछे से भी दो औरतों ने अंदर हाथ डाल रखा था। गाल पे लड़कियां कस-कस के रगड़ रही थी। खूब देर तक जम के भाभी की रगड़ाई हुई।
और क्या खुल के हरकतें, बातें… देख के मेरा तंबू पाजामे में तन गया।