hotaks444
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रघु के चेहरा नीलम की गुंदाज चूचियों के बीच ब्लाउज के ऊपर से घुस गया।
नीलम को एक बार और झटका लगा.. जब रघु की साँसें उसकी चूचियों पर पड़ीं।
मदहोशी के आलम में नीलम की आँखें बंद होने लगीं।
नीलम ने रघु के चेहरे को पीछे हटाना चाहा, पर रघु ने ये बोल कर मना कर दिया कि उसे बहुत डर लग रहा है।
नीलम ने सब हालत पर छोड़ दिया, पता नहीं कब उसका एक हाथ रघु की पीठ पर आ गया और वो रघु को अपने से और सटाते हुए.. उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगी।
नीलम के द्वारा इस तरह सहलाए जाने पर रघु कुछ सामान्य सा हो गया और उसने बेफिक्री से अपनी एक टाँग उठा कर नीलम की जांघों पर रख दी, नीलम की चूत में पहले से ही आग लगी हुई थी।
रघु का लण्ड उस समय करीब 5 इंच लंबा था।
पेटीकोट के ऊपर से उठ रही चूत की गरमी से रघु के लण्ड मैं धीरे-धीरे तनाव आने लगा.. क्योंकि रघु का लण्ड ठीक नीलम की चूत के ऊपर रगड़ खा रहा था।
नीलम अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी और वो अपनी चूत के छेद पर रघु के लण्ड को साफ़ महसूस कर पा रही थी।
उसकी चूत के छेद से पानी बह कर उसकी जाँघों को गीला कर रहा था।
कई विचार उसके मन में उमड़ रहे थे, पर रिश्तों की मर्यादा उसे रोके हुए थी।
वो अभी इस उठा-पटक में थी कि उससे अहसास हुआ कि रघु नींद के आगोश में जा चुका है।
उसने रघु को अपने से अलग करके सीधा करके लेटा दिया और चैन की साँस लेते हुए मन ही मन बोली, शुक्र है भगवान का आज मैं कुछ ना कुछ पाप ज़रूर कर बैठती।
अगली सुबह रघु जब सुबह उठा तो उसने नीलम को वहाँ पर नहीं पाया, नीलम रोज सुबह जल्दी उठती थी..और नहाने के बाद घर के काम-काज में लग जाती थी।
रघु उठ कर घर में बने हुए गुसलखाने की तरफ बढ़ा.. उसे बहुत तेज पेशाब लगी हुई थी, पर गुसलखाने के दरवाजे पर परदा टंगा हुआ था, जिसका मतलब था कि गुसलखाने के अन्दर घर की कोई ना कोई औरत नहा रही है।
हालांकि रघु की माँ और नीलम काकी रघु को बच्चा समझ कर अभी तक उससे परदा नहीं करती थे।
रघु ने गुसलखाने के बाहर से चिल्लाते हुए आवाज लगे- अन्दर कौन है…मुझे पेशाब करना है।
नीलम ने अन्दर से आवाज़ दी- मैं हूँ बेटा… थोड़ी देर रुक जा।
रघु- काकी मुझे बहुत ज़ोर से लगी है।
नीलम- तो फिर अन्दर आकर कर ले।
रघु एकदम से अन्दर घुस गया और अपना पजामे को नीचे करके मूतने लगा।
सुबह-सुबह पेशाब के कारण उसका साढ़े 5 इंच का लण्ड एकदम तना हुआ था।
रघु ने बैठ कर नहा रही नीलम की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया, जो एकदम मादरजात नंगी बैठी थी।
रघु एक तरफ दीवार के साइड में मूत रहा था और उसका लण्ड की चमड़ी आगे सुपारे पर से खिसकी हुई थी।
उसका गुलाबी सुपारा देख कर नीलम की आँखें एकदम से चौंधिया गईं।
ऐसा नहीं था कि नीलम ने कभी रघु के लण्ड को नहीं देखा था.. पर जब भी देखा था तब रघु का लण्ड मुरझाया हुआ होता था और छोटी से नूनी की तरह दिखता था, पर आज वो पहली बार वो रघु के काले 5 इंच के लण्ड को देख रही थी.. जो किसी सांप की तरह फुंफकारते हुए झटके खा रहा था।
मूतने के बाद रघु गुसलखाने से बाहर चला गया, पर नीलम का हाथ उसकी चूत पर कब आ गया था, उससे पता भी नहीं चला।
नीलम ‘आह’ भर कर रह गई, आज जब उसने रघु के खड़े लण्ड को देख लिया तो वो कल की बात पर पछताने लगी कि उसने कल इतना अच्छा मौका कैसे गंवा दिया।
दोपहर को रघु खाना खाने के बाद अपने दोस्तों के साथ खेलने के लिए घर से निकल गया।
दोस्तों के साथ खेलते-खेलते वो खेतों की तरफ निकल गया।
दोपहर की गरमी के कारण रघु भी जल्द ही थक गया और एक पेड़ के नीचे छाया में बैठ गया।
उसके दोस्त हरी घास पर लेट गइ और ऊंघने लगे, पर रघु बैठा हुआ इधर-उधर देख रहा था।
वो और उसके दोस्त अक्सर खेलने के बाद वहाँ पर आराम करते थे और उसके बाद अपने घरों को लौट जाते थे।
गरमी की वजह से रघु को बहुत प्यास लग रही थी.. उसने अपने साथ के एक दोस्त को साथ चलने के लिए कहा, पर उसने मना कर दिया।
नीलम को एक बार और झटका लगा.. जब रघु की साँसें उसकी चूचियों पर पड़ीं।
मदहोशी के आलम में नीलम की आँखें बंद होने लगीं।
नीलम ने रघु के चेहरे को पीछे हटाना चाहा, पर रघु ने ये बोल कर मना कर दिया कि उसे बहुत डर लग रहा है।
नीलम ने सब हालत पर छोड़ दिया, पता नहीं कब उसका एक हाथ रघु की पीठ पर आ गया और वो रघु को अपने से और सटाते हुए.. उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगी।
नीलम के द्वारा इस तरह सहलाए जाने पर रघु कुछ सामान्य सा हो गया और उसने बेफिक्री से अपनी एक टाँग उठा कर नीलम की जांघों पर रख दी, नीलम की चूत में पहले से ही आग लगी हुई थी।
रघु का लण्ड उस समय करीब 5 इंच लंबा था।
पेटीकोट के ऊपर से उठ रही चूत की गरमी से रघु के लण्ड मैं धीरे-धीरे तनाव आने लगा.. क्योंकि रघु का लण्ड ठीक नीलम की चूत के ऊपर रगड़ खा रहा था।
नीलम अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी और वो अपनी चूत के छेद पर रघु के लण्ड को साफ़ महसूस कर पा रही थी।
उसकी चूत के छेद से पानी बह कर उसकी जाँघों को गीला कर रहा था।
कई विचार उसके मन में उमड़ रहे थे, पर रिश्तों की मर्यादा उसे रोके हुए थी।
वो अभी इस उठा-पटक में थी कि उससे अहसास हुआ कि रघु नींद के आगोश में जा चुका है।
उसने रघु को अपने से अलग करके सीधा करके लेटा दिया और चैन की साँस लेते हुए मन ही मन बोली, शुक्र है भगवान का आज मैं कुछ ना कुछ पाप ज़रूर कर बैठती।
अगली सुबह रघु जब सुबह उठा तो उसने नीलम को वहाँ पर नहीं पाया, नीलम रोज सुबह जल्दी उठती थी..और नहाने के बाद घर के काम-काज में लग जाती थी।
रघु उठ कर घर में बने हुए गुसलखाने की तरफ बढ़ा.. उसे बहुत तेज पेशाब लगी हुई थी, पर गुसलखाने के दरवाजे पर परदा टंगा हुआ था, जिसका मतलब था कि गुसलखाने के अन्दर घर की कोई ना कोई औरत नहा रही है।
हालांकि रघु की माँ और नीलम काकी रघु को बच्चा समझ कर अभी तक उससे परदा नहीं करती थे।
रघु ने गुसलखाने के बाहर से चिल्लाते हुए आवाज लगे- अन्दर कौन है…मुझे पेशाब करना है।
नीलम ने अन्दर से आवाज़ दी- मैं हूँ बेटा… थोड़ी देर रुक जा।
रघु- काकी मुझे बहुत ज़ोर से लगी है।
नीलम- तो फिर अन्दर आकर कर ले।
रघु एकदम से अन्दर घुस गया और अपना पजामे को नीचे करके मूतने लगा।
सुबह-सुबह पेशाब के कारण उसका साढ़े 5 इंच का लण्ड एकदम तना हुआ था।
रघु ने बैठ कर नहा रही नीलम की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया, जो एकदम मादरजात नंगी बैठी थी।
रघु एक तरफ दीवार के साइड में मूत रहा था और उसका लण्ड की चमड़ी आगे सुपारे पर से खिसकी हुई थी।
उसका गुलाबी सुपारा देख कर नीलम की आँखें एकदम से चौंधिया गईं।
ऐसा नहीं था कि नीलम ने कभी रघु के लण्ड को नहीं देखा था.. पर जब भी देखा था तब रघु का लण्ड मुरझाया हुआ होता था और छोटी से नूनी की तरह दिखता था, पर आज वो पहली बार वो रघु के काले 5 इंच के लण्ड को देख रही थी.. जो किसी सांप की तरह फुंफकारते हुए झटके खा रहा था।
मूतने के बाद रघु गुसलखाने से बाहर चला गया, पर नीलम का हाथ उसकी चूत पर कब आ गया था, उससे पता भी नहीं चला।
नीलम ‘आह’ भर कर रह गई, आज जब उसने रघु के खड़े लण्ड को देख लिया तो वो कल की बात पर पछताने लगी कि उसने कल इतना अच्छा मौका कैसे गंवा दिया।
दोपहर को रघु खाना खाने के बाद अपने दोस्तों के साथ खेलने के लिए घर से निकल गया।
दोस्तों के साथ खेलते-खेलते वो खेतों की तरफ निकल गया।
दोपहर की गरमी के कारण रघु भी जल्द ही थक गया और एक पेड़ के नीचे छाया में बैठ गया।
उसके दोस्त हरी घास पर लेट गइ और ऊंघने लगे, पर रघु बैठा हुआ इधर-उधर देख रहा था।
वो और उसके दोस्त अक्सर खेलने के बाद वहाँ पर आराम करते थे और उसके बाद अपने घरों को लौट जाते थे।
गरमी की वजह से रघु को बहुत प्यास लग रही थी.. उसने अपने साथ के एक दोस्त को साथ चलने के लिए कहा, पर उसने मना कर दिया।