Porn Kahani हसीन गुनाह की लज्जत - Page 3 - SexBaba
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Porn Kahani हसीन गुनाह की लज्जत

[size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large]अचानक ही प्रिया अपने दोनों हाथों से मेरी बनियान को ऊपर को खींचने लगी. मैंने ज़रा सा उठ कर फ़ौरन अपनी बनियान उतार फेंकी और साथ ही प्रिया के कन्धों से उसकी ब्रा की पट्टियाँ बाहर की तरफ दाएं-बाएं उतार कर प्रिया की आँखों में देखा. अब की बार प्रिया ने पूरी बेबाकी से मुझ से नज़र मिलाई. काम-मद के कारण हो रही प्रिया की गुलाबी आँखों में आने वाले पलों में मिलने वाले शाश्वत काम-आनन्द की बिल्लौरी चमक थी, उसकी सांस बेहद तेज़ चल रही थी और होंठ रह रह कर लरज़ रहे थे.
हम दोनों के बीच में से एक दूसरे से शर्म-हया नाम का अहसास कब का विदा ले चुका था. अब मैं और प्रिया चाहे दो अलग-अलग जिस्म थे लेकिन एक जान हो चुके थे.प्रणय के इस आदिम-खेल में अगली सीढ़ी चढ़ने का वक़्त आ गया था.
मैंने प्रिया के पूरे जिस्म पर एक भरपूर नज़र मारी. बिस्तर पर सीधा लेटा पर तना हुआ एक स्वस्थ नारी शरीर. दोनों मरमरी बाहें सर के नीचे, रेशम-रेशम रोमविहीन साफ़ सुथरी त्वचा, तन का ऊपरी भाग लगभग आवरणहीन, दो अपेक्षाकृत गोरे उरोज़ जिन पर एक ढीली सी ब्रा के कप पड़े हुए, सपाट किसी भी दाग-धब्बे से रहित पेट के बीचोंबीच एक बायीं ओर विलय लेती हुई गहरी नाभि. नाभि से ढाई-तीन इंच नीचे से क्रीम रंग की पिंडलियों तक लम्बी एक कैपरी, नाज़ुक साफ़-सुथरी दायीं टांग के ऊपर बायीं टांग, दोनों पैरों के नाख़ून थोड़े बड़े पर अच्छे से तराश कर उन पर लाल रंग की नेलपॉलिश लगी हुई. टांगों के ऊपरी जोड़ पर कैपरी पर स्पष्ट बना एक V का आकार जिस में V की ऊपरी सतह कुछ उभरी-उभरी सी थी.
अप्सरायें शायद ऐसी ही होती होंगी.
मैंने झुक कर प्रिया की गर्दन के निचले भाग पर अपने होंठ टिका दिए. तत्काल प्रिया के मुंह से एक तीखी सिसकारी निकली. प्रिय के वक्ष अभी तक पूर्ण रूप से अनावृत नहीं हुए थे अपितु दोनों उरोजों पर ब्रा के कपों के ढीले से ही सही पर आवरण पड़े थे और मैं उन्हें अपने हाथों की बजाए होंठों से हटाने पर तुला हुआ था.प्रिया को इसका बराबर एहसास था और वो अपनी आँखें बंद कर के इस स्वर्गिक आनन्द के अतिरेक की अभिलाषा में बेसुध सी हो रही थी.
मेरे होंठ प्रिया की गर्दन से धीरे धीरे नीचे की ओर सरकने लगे और प्रिया के शरीर में भी शनै: शनै: हलचल तेज़ होने लगी. सर्वप्रथम उसके दोनों हाथ मेरे सर के पिछली ओर आ जमे और मुझे और मेरे होंठों को नीचे की ओर गाईड करने लगे, दूसरे, प्रिया के मुंह से रह रह कर तेज़ सिसकारियाँ और आहें निकलने लगी- सी… ई… ई..ई..ई..ई..!!! आई..ई..ई..ई.!!!! आह..ह..ह..ह..ह… ह..ह..ह!!!! उफ़..आ..आ..आ.. आ..आ.आ!!
अचानक मेरे गाल के धक्के से प्रिये के दाएं उरोज़ का कप थोड़ा ऊपर उठ तो गया लेकिन अभी प्रिया की पीठ पर ब्रा का हुक बंद होने की वजह से हटा नहीं. लिहाज़ा मेरी होंठों और जीभ का सफ़र उस पर्वत की चोटी पर पहुँचने से पहले ही रुक गया. तत्काल मैंने अपने होंठों और जीभ का रुख अपने दायीं ओर मोड़ लिया और दोनों पर्वतों के बीच की घाटी को चुम्बनों से भरता हुआ और अपने मुंह के स्राव से गीला करता हुआ दूसरे पर्वतश्रृंग की ओर अग्रसर हुआ.
लेकिन यह यात्रा तो और भी जल्दी रुक गयी; अचानक ही प्रिया ने मुझे पीछे हटाया और उठ कर बैठ गयी; अपने दोनों हाथ पीछे कर के ब्रा का हुक खोल कर ब्रा को परे रख दिया और अपने दोनों हाथ ऊँचे कर के अपने सर के आवारा बालों को संभाल कर, बालों की चोटी का जूड़ा करने लगी.बाई गॉड! क्या नज़ारा था.
उजला गेहुंआ रंग, सिल्क सा नाज़ुक जिस्म, अधखुली नशीली आँखों के दोनों ओर बालों की एक-एक आवारा लट, हाथों की जुम्बिश के साथ-साथ वस्त्र विहीन, सख़्त और उन्नत दोनों उरोजों की हल्की हल्की थिरकन, दोनों उरोजों के ऊपर एक रुपये के सिक्के के आकार के हल्के बादामी घेरे और उन दो घेरों के बीचों-बीच 3-D चने के दाने के आकार के कड़े और तन कर खड़े निप्पल जो उरोजों की हिलोर से साथ-साथ ऐसे हिल रहे थे कि जैसे मुझे चुनौती दे रहे हों.
अधखुले आद्र और गुलाबी होंठों में बालों पर चढ़ाने वाला काला रबर-बैंड और बालों में बिजली की गति से चलती दस लम्बी सुडौल उंगलियाँ.यकीनन मेरी कुंडली में शुक्र बहुत उच्च का रहा होगा तभी तो रति देवी मुझ पर दिल खोल कर मेहरबां थी.
तभी प्रिया अपने बाल व्यवस्थित करने के उपरान्त मेरी ओर झुकी, उसकी कज़रारी आँखों में शरारत की गहन झलक थी.
कामुकता से परिपूर्ण मेरी यह कहानी आपको कैसी लग रही है?मुझे सबकी प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा.
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[size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]आपने पढ़ा कि प्रिया मेरे घर में मेरे साथ अकेली मेरे बेड पर नग्न वक्ष है.
अचानक ही प्रिया ने मुझे पीछे हटाया और उठ कर बैठ गयी; अपने दोनों हाथ पीछे कर के ब्रा का हुक खोल कर ब्रा को परे रख दिया और अपने दोनों हाथ ऊँचे कर के अपने सर के आवारा बालों को संभाल कर, बालों की चोटी का जूड़ा करने लगी.बाई गॉड! क्या नज़ारा था.
नाज़ुक जिस्म, अधखुली नशीली आँखों के दोनों ओर बालों की एक-एक आवारा लट, हाथों की जुम्बिश के साथ-साथ वस्त्र विहीन, सख़्त और उन्नत दोनों उरोजों की हल्की हल्की थिरकन और तन कर खड़े निप्पल जो उरोजों की हिलोर से साथ-साथ ऐसे हिल रहे थे कि जैसे मुझे चुनौती दे रहे हों.
अधखुले आद्र और गुलाबी होंठों में बालों पर चढ़ाने वाला काला रबर-बैंड और बालों में बिजली की गति से चलती दस लम्बी सुडौल उंगलियाँ.यकीनन मेरी कुंडली में शुक्र बहुत उच्च का रहा होगा तभी तो रति देवी मुझ पर दिल खोल कर मेहरबां थी.
तभी प्रिया अपने बाल व्यवस्थित करने के उपरान्त मेरी ओर झुकी, उसकी कज़रारी आँखों में शरारत की गहन झलक थी.

इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता या कर पाता, प्रिया बैठे-बैठे आगे को झुकी, अपना बायाँ हाथ मेरे दाएं कंधे पर रखा और झुक कर मेरे बायें स्तनाग्र पर अपनी जीभ लगा दी. क्षण भर बाद ही प्रिया मेरे बाएं स्तन का निप्पल चूस रही थी.
गहरी उत्तेजना की एक लहर मेरे अंग-अंग को सिहरा गयी. मैं ऐसी कामक्रीड़ा का आदी न था और यह सिनेरिओ मुझे सूट नहीं कर रहा था. कुछ पल तो मैंने ज़ब्त किया लेकिन फिर प्रिया को दोनों कन्धों से पकड़ कर पीछे हटाया और बहुत कोमलता से वापिस बिस्तर पर लिटा कर प्रिया की कैपरी का हुक खोला और साथ ही ज़िप नीचे की और अपने दोनों हाथ प्रिया के कूल्हों के दाएं-बाएं जमा दिये.प्रिया ने तत्काल इशारा समझा और अपनी कमर थोड़ी ऊपर उठा दी; मैंने तत्काल और देर ना करते हुए कैपरी को प्रिया के शरीर से अलग किया.
पाठकगण! आप आँखें बंद कर के जरा कल्पना करें कि बिस्तर पर उस एक पूर्ण जवान और सोलह कला सम्पूर्ण कामविह्ल कामांगी की जो सिर्फ़ एक काले रंग की छोटी सी पैंटी में थी जो बस जैसे तैसे उसकी योनि को अनावृत होने बचाये हुई थी.
मैंने ऊपर से नीचे तक प्रिया के दिलकश शरीर का गहन अवलोकन किया. प्रिया के बायें उरोज़ के निचली ओर हल्के से बाहर की ओर, सफेद त्वचा पर शहद के रंग का एक बर्थ-मार्क था, दाएं उरोज़ के निप्पल के बादामी घेरे के बिलकुल ऊपर साथ में सफेद त्वचा पर एक काले रंग का तिल था. एक तिल दोनों उरोजों के बीच की घाटी की तलहटी में छुपा था. दाएं जाँघ के अंदर की ओर ऊपर की ओर दो तिल आजू-बाज़ू थे.
अभी मेरा अवलोकन पूरा भी नहीं हुआ था कि प्रिया ने जल्दी से मेरा बाज़ू पकड़ कर मुझे अपने ऊपर गिरा लिया और तत्काल अपने दाएं हाथ से मेरे पजामे के ऊपर से ही मेरे गर्म और फौलाद की तरह सख़्त लिंग को अपनी ओर खींचने लगी.
प्रिया प्रेम की पराकाष्ठा पर जल्दी से पहुँचने के लिए तमाम बंधन तोड़ने पर उतारू थी लेकिन मैं आज के अपने इस अभिसार को सदा-सर्वदा के लिए यादगार बनाने पर कटिबद्ध था. आज का मेरा और प्रिया का अभिसार बहुत उन्मुक्त किस्म का था.
एक तो प्रिया अभिसार में मुझ से अधिक से अधिक काम-सुख लेने के लिए, मुझ से मेरी पत्नी की तरह अधिकारपूर्वक व्यवहार कर रही थी, दूसरे… चूंकि आज घर में कोई नहीं था इसलिए अभिसार के दौरान प्रिया के मुंह से निकलने वाली सिसकियों और सीत्कारों को किसी द्वारा सुन लेने का भय ना होने की वज़ह से प्रिया का आज बिस्तर में व्यवहार बहुत ही बिंदास था.
मैं प्रिया के नंगे जिस्म पर पूरा छा गया और धीरे से मैंने प्रिया के दाएं उतप्त उरोज को अपनी जीभ से छुआ, तत्कार प्रिया के शरीर में एक झनझनाहट की लहर सी उठी और प्रिया ने अपने दोनों हाथों से मेरे सर के बाल अपनी मुठियों में कस लिया और खींच कर मुझे अपने तन से साथ लगाने का प्रयत्न करने लगी.


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SATISHSuper memberPosts: 5451Joined: 17 Jun 2018 16:09
Re: हसीन गुनाह की लज्जत

[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]Post by SATISH » 08 Dec 2018 13:37[/font]
यूं तो मेरा सारा बदन प्रिया के बदन के साथ ही लगा हुआ था लेकिन मैं जानबूझ कर थोड़ा सा ऑफ़-लाईन था… बोले तो… मेरी दायीं जाँघ प्रिया की दोनों टांगों के बीच में थी,प्रिया की दायीं टांग मेरी दोनों टांगों के बीच में कसी हुई थी, प्रिया की योनि की गर्मी मेरी दायीं जाँघ का बाहर वाला ऊपरी सिरा झुलसाये दिए जा रही थी. मेरा फ़ौलादी लिंग प्रिया की नाभि की बग़ल में टक्करें मार रहा था.
धीरे धीरे मैंने अपनी जीभ और होंठों को नये आयामों, नयीं ऊंचाइयों तक पहुंचाना शुरू किया. प्रिया के दाएं वक्ष के शिखर पर बादामी घेरे को जीभ से पहले छूना फिर हल्के हल्के जीभ से चाटना शुरू किया. मैं उस वक्ष के बादामी घेरे पर अपनी जीभ निप्पल को बिना छूए दाएं से बाएं और फिर बाएं से दाएं फ़िरा रहा था और बेचैन प्रिया अपने एक हाथ से अपना वक्ष पकड़ कर निप्पल मेरे मुंह में देने का बार बार प्रयास कर रही थी लेकिन मैं हर बार साफ़ कन्नी काट जाता था.
अचानक प्रिया ने मेरे सर के पीछे के बाल अपने बाएं हाथ में कस कर जकड़ लिए और दाएं हाथ से अपना वक्ष पकड़ कर निप्पल बिलकुल मेरे होंठों पर रख दिया. जैसे ही मैंने अपने तपते होंठो में प्रिया के उरोज़ का निप्पल लिया तत्काल ही प्रिया के मुंह से एक तीखी किलकारी सी निकली और फ़ौरन ही प्रिया ने अपना दायाँ हाथ नीचे ले जा कर पजामे के ऊपर से ही मेरा लिंग सख्ती से दबोच लिया और उसे आगे-पीछे हिलाने लगी.
मैंने प्रिया का दायाँ निप्पल अपने मुंह में चुमलाते चुमलाते ज़रा अपने बायीं ओर करवट लेते हुए अपना दायें हाथ नीचे कर के अपने पजामे का नाड़ा खोल कर और पजामा घुटनों तक नीचे सरका कर प्री-कम से सराबोर अपना लिंग प्रिया के हाथ में थमा दिया.
तत्काल प्रिया अपनी उंगलियाँ मेरे लिंग के शिश्नमुंड पर फेरने लगी और मुठी में ले कर अपनी उँगलियों से मेरे लिंग की लम्बाई नापने लगी. इधर मेरे मुंह में अंगूर का दाना और सख्त, और बड़ा होता जा रहा था जिसे जब मैं बीच बीच में हल्के से अपने दाँतों से दबाता था तो न सिर्फ प्रिया के मुंह से आनन्द भरी सीत्कारें निकलती थी बल्कि मेरे लिंग पर प्रिया की उंगलियाँ और ज़्यादा कस जाती थी.
मैंने प्रिया के निप्पल को मुंह से निकला और प्रिया के वक्ष से ज़रा सा परे उठ बैठा तो प्रिया को यह बिल्कुल भी पसंद नहीं आया और तत्काल प्रिया ने नाराज़गी की सिलवटों भरे माथे सहित मेरी और देखा.मुस्कुरा कर मैंने प्रिया का बायाँ गाल ज़रा सा थपथपाया अपना पजामा उतार कर साइड में रख दिया और अपने दोनों हाथ प्रिया की पैंटी पर रख दिए.
प्रिया फ़ौरन मेरी मंशा समझ गयी और उसने मुस्कुराते हुए अपने कूल्हे जरा से ऊपर हवा में उठा दिए. मैंने प्रिया की आँखों में देखते देखते, अपनी दोनों हथेलियों को प्रिया के कूल्हों, प्रिया की दोनों जाँघों पर हल्के से रगड़ते हुये पैंटी को हौले हौले नीचे सरकाना शुरू किया. प्रिया की पूरी पैंटी प्रिय के योनि स्राव से सनी पड़ी थी.
इस समय प्रिया बला की हसीन लग रही थी. कामवेग के कारण रह रह कर उसकी आँखें बंद हो रही थी, वो बार बार अपने चेहरे पर हाथ फेर रही थी, उरोज़ों पर हाथ फेर रही थी, रह रह कर अपने होंठों को जीभ से गीला कर रही थी और अपना निचला होंठ बार बार अपने दांतों में कुचल रही थी.
प्रिया की पैंटी अब घुटनों तक नीचे आ चुकी थी. तभी प्रिया ने अपनी बायीं टांग को मोड़ा और एकदम से अपने बाएं पैर से अपनी पैंटी छिटक दी और इधर मैंने प्रिया की दायीं टांग को पैंटी की पकड़ से मुक्त कर दिया. अब हम दोनों ही बर्थडे सूट में थे. ना तो कपड़े की एक भी धज़्ज़ी प्रिया के तन पर थी ना ही मेरे.
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उस वक़्त प्रिया की योनि में से एक बहुत ही मादक सी खुशबू उठ रही थी. मैं नारी शरीर के उस अत्यंत गोपनीय अंग को निहार रहा था जिसको कभी सूर्य चन्द्रमा ने भी नहीं देखा था. बहुत ही किस्मत वाले होते हैं वो लोग जिन पर कोई नारी इतना विश्वास करती है कि उन्हें अपने गोपनीय नारीत्व के प्रतीक अंगों को निहारने और छूने की इज़ाज़त देती है.
“आओ ना…” प्रिया की गुहार सुन कर मैं बेखुदी के आलम से वापिस पलटा. मैंने बहुत ही नाज़ुकता से प्रिया को अपनी गोदी में बिठा कर आगे-पीछे हिलना शुरू कर दिया. मेरा लिंग प्रिया के नितम्बों की दरार के साथ साथ बाहर की ओर से प्रिया के नितम्बों के साथ रगड़ खा रहा था, प्रिया की दोनों टांगें मेरी साइडों से मेरे पीछे सीधे फैली हुई थी. प्रिया की योनि से निकला काम-रस मेरे लिंग की जड़ पर से हो कर नीचे की ओर बह रहा था.
मेरे दोनों हाथों ने प्रिया की पीठ को कस के जकड़ा हुआ था और प्रिया के सुपुष्ट उरोज़ मेरी छाती में धंसे हुए थे और मैं प्रिया के मुंह पर, आँखों पर, माथे पर, गालों पर, होंठों पर प्यार की मोहरें लगाता ही जा रहा था और प्रतिक्रिया स्वरूप प्रिया के मुंह से कभी आहें कराहें और कभी लम्बी लम्बी सीत्कारें निकल रही थी.
अचानक प्रिया मेरी गोदी से उठी और बिस्तर पर लेट कर याचना भरी नज़रों से मुझे देखने लगी. मैं ऐसी नज़रों का मतलब बख़ूबी समझता था. तत्काल मैंने बहुत ही इज़्ज़त और प्यार से प्रिया की रति-तेज़ से धधकती योनि पर अपना दायाँ हाथ रख दिया; उसकी योनि तो पहले से ही कामऱज़ से सराबोर थी और अभी भी ऱज़स्राव चालू था. मैंने हथेली का एक कप सा बनाया जिस में मेरी उंगलियाँ नीचे की ओर थी और उससे प्रिया की योनि को पूरा ढाँप लिया. मेरी बड़ी उंगली प्रिया की योनि के पद्मदलों पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर विचरण करने लगी.
इधर प्रिया ने मेरा काम-ध्वज अपने हाथ में ले कर उस का मर्दन शुरू कर दिया था. मैंने भी प्रिया के ऊपर लेटते हुए उस के दोनों उरोजों के मध्य में अपना मुंह लगा कर चूसना शुरू कर दिया.
मेरी इस हरकत से प्रिया के छक्के छूट गये; प्रिया को अपने जिस्म में उठती मदन-तरंग को संभाल पाना असंभव हो गया, उसके के मुंह से जोर जोर से आहें-कराहें फूटनी शुरू हो गयी और प्रिया अपनी दोनों टांगें रह रह कर हवा में लहराने लगी- आई..ई..ई..ई.!!!! सी… ई… ई..ई..ई..ई..!!! आह..ह..ह..ह..ह… ह..ह..ह!!!! उफ़..आ..आ.. आ..आ..आ.आ!! जोर से करो… हाँ यहीं… ओ गॉड!… जोर से… आह… मर गयी! सी… ई..ई..ई!
यूं मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि प्रिया की आहों कराहों के बीच यह “जोर से करो… हाँ यहीं…!” वाली डायरेक्शन मेरे होंठों के लिए थी या प्रिया की योनि का जुग़राफ़िया नापती मेरी उँगलियों के लिए? बहरहाल… मेरा और प्रिया का काम-उत्सव धीरे-धीरे अपने चरमोक्षण की ओर अग्रसर था. मेरे ख्याल से प्रिया एक से ज्यादा बार पहले ही स्खलित हो चुकी थी लेकिन मैं अभी तक डटा हुआ था. तीव्र काम-उत्तेज़ना के कारण मेरे नलों में हल्का-हल्का सा दर्द भी हो रहा था लेकिन प्रिया को सम्पूर्ण रूप से पाने की लगन कुछ और सूझने ही नहीं दे रही थी.
फिर मैंने आहिस्ता से अपनी मध्यमा उंगली प्रिया की योनि की भगनासा सहलाई और अपनी उंगली जरा सी नीचे ले जा कर दरार के ज़रा सी अंदर घुसायी; तत्काल प्रिया के मुख से आनन्दमयी कराहटों के साथ “सी… ई… ई..ई..ई..ई..!” की एक तेज़ सिसकी निकल गयी जिस में दर्द का अंश भी शामिल था.
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यह सही था कि अब प्रिया अक्षत-योनि नहीं थी क्योंकि पिछले साल मैंने ही तो प्रिया को सुहागिन बनाया था तदापि सवा साल पहले के किये गए एक बार के मैथुन का असर तो कब का योनि पर से विदा हो चुका था. प्रिया की योनि के पद्म दल फिर से सिकुड़ कर योनि की गुफा को फिर से अत्यंत संकरा बना चुके थे, इसी कारण मेरी उंगली प्रिया की योनि के जरा सी अंदर जाने से प्रिया के मुंह से दर्द भरी सिसकारी निकली थी.
लेकिन इस बार मैं काम-क्रीड़ा से पहले अपनी उंगलियों से योनि के छेद को ख़ुला करने के मूड में हरगिज़ भी नहीं था. आज लिंग का काम लिंग ही करने वाला था. प्रिया की योनि से काम-रस बेतहाशा बह रहा था. मैंने प्रिय के बाएं निप्पल को मुंह में ले कर चुमलाया, तत्काल प्रिया मेरे लिंग को अपनी योनि की ओर खींचने लगी.
एक बार फिर से आजमायश की घड़ी आ रही थी लेकिन मुझे खुद पर, अपने कौशल पर, अपने प्यार पर और सब से बढ़ कर अपनी जान प्रिया पर भरोसा था कि सब ठीक हो जाएगा. प्यार हो रहा था… कोई लड़ाई नहीं जिस में किसी के जीवन-मृत्यु का सवाल हो!

“आओ न…!” प्रिया कसमसाई और उस ने बिस्तर पर अपनी टाँगे खोल दी.मैं थोड़ा अचकचाया.“आप को मेरी कसम… अब के जो तरसाया तो…!” प्रिया के लफ़्ज़ों में मनुहार के साथ साथ आदेशात्मक गूंज थी.
अब न कहनी मुश्किल थी; मैं प्रिया की खुली टांगों के बीच में आया. चाहे कामऱज़ की वजह से प्रिया की योनि पहले से ही खूब चिकनी हो रही थी, तदापि चित टांगों के साथ योनि भेदन में प्रिया को बहुत दर्द होना था तो मैंने प्रिया के दोनों पैर मोड़ कर प्रिया के नितंबों से करीब एक फुट की दूरी पर रख दिए; इससे प्रिया की योनि की मांसपेशियाँ थोड़ी सी ढीली हो गयीं जिस से मुझे प्रिया की योनि में अपना लिंग प्रवेश करवाने में थोड़ी सुविधा होने वाली थी.
मैंने अपना लिंग अपने दायें हाथ में ले कर शिश्न-मुंड प्रिया की ऱज़ से सराबोर प्रिया की योनि पर नीचे से ऊपर भगनासा तक और फिर भगनासा से नीचे की ओर, और फिर नीचे से ऊपर भगनासा तक घिसाना-रगड़ना शुरू किया.अचानक मेरा लिंग प्रिया की योनि की दरार पर घिसाते-घिसाते, योनि की दरार के बीच में जरा सा नीचे की और किसी नीची जगह पर अटक सा गया. उत्तेजना के मारे प्रिया के मुंह से व्यर्थ से, आधे-अधूरे ऐसे लफ़्ज़ निकल रहे थे, जिन का कोई अर्थ नहीं था.
“आह… मर गयी… तरसा दिया मुझे… ओ पतिदेव… आप ने… ओ गॉड!… आई..ई… मेरे अंदर समा जाओ… मार डालो मुझे… आह..ह..ह..ह.. सी… ई… ई..ई..ई..ई..!!!” इत्यादि!
बेखुदी के इस आलम में भी प्रिया मुझे अपना पति ही तस्सवुर कर रही थी. इधर कितनी ही रातों का भटका हुआ और प्यासा मुसाफिर आखिरकार अपनी मंज़िल-ऐ-मक़्सूद के मयख़ाने के दरवाज़े पर दस्तक़ दे रहा था. मैं अपने लिंग-मुंड को वहीं अटका छोड़ कर प्रिया के ऊपर लम्बा लेट गया. आने वाले क्षणों में मिलने वाले आनन्द का तस्सवुर कर के प्रिया ने भी आँखें बंद कर के मुझे ज़ोर से अपने आलिंगन में ले लिया.
मैंने प्रिया के होंठों के कई चुम्बन लिए और कहा- प्रिया!“हुँ..!”“आँखें खोलो!”“मैं नहीं… आप करो.”“अरे! खोलो तो…!”
प्रिया ने अपनी आँखें खोली. मेरी आँखें ठीक उस की आँखों से तीन इंच ऊपर थी. मोटी-मोटी काली आँखें जिन में प्यार और काम अपनी सम्पूर्णता के साथ झलक रहे थे. प्रिया ने झट से मेरे होंठों पर एक चुम्बन जड़ा और अपने दोनों पैरों से मेरी कमर पर कैंची सी मार ली और लगी मेरी कमर अपनी ओर खींचने.
“नहीं प्रिया, ऐसे नहीं… आराम से! ऐसे तुम्हें दर्द होगा.”“मुझे परवाह नहीं!”“लेकिन मुझे है.”
प्रिया ने मुदित आँखों से मुझे देखा, मुस्कुरायी और फिर प्यार से मेरे होंठों को चूम लिया. मैंने वापिस प्रिया के दोनों पैर मोड़ कर प्रिया के नितंबों से करीब रख दिए और मैंने अपना लिंग थोड़ा सा पीछे को खींचा और जरा से और ज़ोर से आगे को धकेला.“सी… ई… ई..ई..ई..ई..!!!” एक लम्बी सिसकी प्रिया के मुंह से निकल गयी लेकिन हर चीज़ अभी कंट्रोल में ही थी, मैंने थोड़ा सा ज़ोर और लगाया, अब लिंग-मुंड प्रिया की जलती धधकती योनि के अंदर था.
प्रिया के दोनों हाथ मेरी पीठ पर कस कर जमे थे; प्रिया की योनि के अंदर का उत्ताप मेरे लिंग को जलाने पर उतारू था जैसे. लेकिन पीछे हटने का तो सवाल ही नहीं था. इसी पल का पूर्ण समग्रता से सामना कर के बिस्तर पर अपना विजय अभियान सार्थक करने वाला ही सही मायने में मर्द कहलाता है और मुझे तो कुछ नया साबित भी नहीं करना था, सिर्फ अपने सामर्थ्य के पिछले कृत्य को एक नया मोड़ दे कर दोहराना भर था.
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[size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large]अभी भी प्रिया के दोनों पैर उसके नितम्बों के पास थे और दोनों टांगों के घुटने हवा में खड़े थे. एक बार मेरा लिंग प्रिया की योनि की अंतिम सीमा छू ले तो मैं प्रिया की टांगें सीधी करवा देता लेकिन अगर कहीं अभी से प्रिया ने टांगें सीधी कर ली तो प्रिया को फिर से अक्षत-योनि भेदन वाला दर्द याद आ जाना था. मैंने प्रिया के बाएं उरोज़ के निप्पल के साथ अपनी जीभ लड़ायी. अर्धसुप्त योद्धा एकदम से चैतन्य हो कर तन गया.
मैंने धीरे से निप्पल को चूमा और हल्के से उस के आसपास अपनी जीभ फेरी. प्रिया के मुंह से निकली सिसकारी ने बता दिया कि प्रिया की समस्त चेतना अभी उस के बाएं उरोज़ पर केंद्रित थी, मैंने अपने लिंग को हल्का सा पीछे खींच कर ज़रा ज़ोर से आगे को किया. अब आधा लिंग योनि में समा चुका था.
तत्काल प्रिया ने मेरे सर के पीछे से बाल पकड़ मुझे थोड़ा परे धकेलने की कोशिश की लेकिन मैं ऐसे कैसे पीछे हटता!मैंने अपनी वही पुरानी तक्नीक अपनायी, लिंग थोड़ा सा योनि से बाहर खींच कर जहाँ था, फिर से वही पहुंचा दिया, फिर थोड़ा बाहर निकाला और फिर जहाँ था, वही पहुंचा दिया, ऐसा मैं करता ही चला गया. पांच-सात मिनट बाद प्रिया थोड़ा सहज़ हो गयी और मेरी ताल पर अपनी ताल देने लगी, इधर मैं अपना लिंग उस की योनि से बाहर खींचता तो प्रिया अपने नितम्ब पीछे खींच लेती और जैसे ही मैं अपना लिंग उस की योनि में आगे धकेलता, प्रिया अपने नितंब ऊपर को उछालती.
हर थाप के साथ मेरा लिंग, प्रिया की योनि में थोड़ा और ज्यादा गहरे समाने लगा. तीन-चार मिनट बाद ही मेरा लिंग पूरे का पूरा प्रिया की योनि में आने-जाने लगा. इधर ऊपर मेरा मुंह प्रिया की बायीं बगल में कब समा गया, मुझे पता ही नहीं चला. मैं जीभ से प्रिया के रस-भरे उरोज़ चाटता, चूसता प्रिया की बालों रहित बगल में प्रिया के पसीने की मादक सुगंध लेता-लेता बगल की रेशमी त्वचा चूम रहा था. प्रिया इस आनन्द के कारण सातवें आसमान में थी और मैं जन्नत में. थप्प-थप्प… थप्प-थप्प… थप्प-थप्प…!! नीचे कबीरदास की चक्की पूरे यौवन पर चल रही थी.
प्रिया ने चूस-चूस कर मेरा निचला होंठ सूज़ा दिया था, आवेश में आ कर अपने तीखे नाखूनों से मेरी पीठ पर अनगिनत खूनी लकीरें उकेर दी थी. मैंने भी उत्तेज़ना-वश चूस-चूस कर प्रिया के दोनों उरोजों पर जगह जगह अनगिनत निशान डाल दिए थे.
मैं इन आनन्द के क्षणों को पूर्ण रूप से महसूस करना चाहता था इस लिए मैंने अपने लिंग को प्रिया की योनि में गहराई में लेजा कर अचानक वहीँ रोक दिया. मैं अपने लिंग के चारों ओर प्रिया की योनि की हल्की-हल्की पकड़ और स्पंदन महसूस कर रहा था. जैसे रेशम की नर्म-गर्म सी, नाज़ुक सी मुट्ठी जैसी कोई चीज़ मेरे मेरे लिंग पर रह-रह कर कस रही हो.
कुछ पल मैं इस स्वर्गिक आनन्द का मज़ा लेता रहा और फिर प्रिया ने मुझे टहोका तो मैंने फिर से काम-क्रीड़ा शुरू की. अभी तीन चार बार ही अपने लिंग को प्रिया की योनि के निकाला डाला था कि अचानक प्रिया ने अपनी दोनों टांगें सीधी कर ली; तत्काल मुझे अपने लिंग पर प्रिया की योनि का एक ज़बरदस्त खिंचाव महसूस हुआ. मेरा लिंग जैसे किसी नर्म-ग़र्म संडासी में कस गया था. प्रिया की योनि की दीवारों की मेरे लिंग पर रगड़ कई गुना बढ़ गयी थी और साथ ही प्रिया के मुंह से निकने वाली आहों कराहों में गज़ब की तेज़ी आ गयी थी.
प्रिया के टाँगें बिस्तर पर सीधी करने से प्रिया की योनि में आये अति कसाव के कारण मेरे लिंग का प्रिया की योनि में घर्षण बहुत ही बढ़ गया था और लिंग का योनि में आवा गमन बहुत मुश्किल हो रहा था.जैसे ही अपने लिंग को मैं बाहर निकाल कर दोबारा योनि में धकेलने के लिए जोर लगाता था, प्रिया के मुंह से इक दर्द भरी आह निकल जाती थी. प्रिया की योनि में से कामरस के साथ साथ जैसे आग की लपटें निकल रही थी.
दोनों के लिए काम-शिखर अब ज्यादा दूर नहीं था. मैंने अपनी कमर की स्पीड बढ़ानी शुरू कर दी; प्रिया ने भी उसी अनुपात में अपनी कमर आगे पीछे करनी शुरू कर दी. प्रिया की आँखें बदस्तूर बंद थी लेकिन प्रिया स्वार्गिक-आनन्द के इन पलों के एक-एक क्षण का मज़ा ले रही थी. मेरे हर धक्के के साथ प्रिया के मुंह से एक जोरदार “हक़्क़…” या “हा…!” की आवाज़ निकल जाती थी.
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प्रिया का स्खलन अब दूर नहीं था और मैं भी अपनी मंज़िल के करीब ही था. 
मैंने अपना सारा वज़न अपनी कोहनियों पर ले लिया और अपनी कमर को बिजली की सी तेज़ी से चलाने लगा.
प्रिया की सिसकारियाँ पूरे बैडरूम को गुँजाये दे रही थी जिन्हें सुन कर मैं और उत्तेजित हो कर हर वार पर बेरहमी से प्रिया की योनि में अपने लिंग को जड़ तक उतारे जा रहा था.
तभी प्रिया ने अपने दोनों हाथ मेरी पीठ पर ऐसी सख्ती से जकड़े कि प्रिया का ऊपर वाला धड़ हवा में मेरी छाती के साथ चिपक गया. 
प्रिया बेसाख्ता मुझ पर चुम्बनों की बरसात किये दे रही थी और नीचे मेरा लिंग प्रिया की योनि को बिजली की तेज़ी से मथे दे रहा था.
अब तक मेरे लिंग पर प्रिया की योनि की दीवारों का दबाब इस कदर बढ़ गया था कि मेरे लिए अपना लिंग प्रिया की योनि से बाहर खींचना लगभग नामुमकिन सा हो गया था. 
अचानक प्रिया का तमाम शरीर अकड़ने लगा, प्रिया ने मेरे बाएं कंधे पर जोर से काटा और एक जोर से “आ… आ… आ… आ… आ… ह… ह… ह..ह…!!! ” की चीख सी मारी. 
साथ ही प्रिया की आँखें उलट गयी तथा वो निष्चेष्ट सी हो कर मेरी बाहों में झूल गयी.
प्रिया स्खलित हो चुकी थी.
मुझे प्रिया की योनि के अंदर अपने लिंग के आसपास गर्म-गर्म द्रव सा महसूस होने लगा. 
जैसे ही मैंने अपना लिंग पूरी सख्ती से प्रिया की योनि से बाहर खींच कर वापिस प्रिया की योनि की गहराई की आखिरी हद तक पंहुचाया, तभी मेरे अंदर… मेरे खुद का ज्वालामुखी फट पड़ा. 
मैंने प्रिया को सख्ती से अपनी बाहों में कस लिया और प्रिया की योनि के अंदर मेरे लिंग से वीर्य की जोरदार एक बौछार हुई… फिर दूसरी… फिर तीसरी.
मेरे वीर्य से प्रिया की योनि बाहर तक सराबोर हो उठी और मैंने पसलियाँ तोड़ देने की हद तक प्रिया को अपने आलिंगन में दबा डाला.
अचानक ही प्रिया जैसे होश में आयी और मेरी सख्त पकड़ से खुद को छुड़ा कर प्रिया ने मुझे ठीक अपने ऊपर, अपने आगोश में ले लिया और मेरे सर के बालों में अपनी उंगलियाँ फेरने लगी. 
सामने दीवार घड़ी पर साढ़े चार बज़ रहे थे. 
हम दोनों ने एक-दूसरे के साथ किया वादा निभा दिया था. 
अभी तो हम दोनों एक-दूसरे के आगोश में थे लेकिन अब जिंदगी में कभी ऐसा मौक़ा दोबारा आएगा या नहीं… और अगर आएगा भी तो प्रिया पॉजिटिव रेस्पॉन्स देगी या नहीं, इस का जवाब तो भविष्य के गर्भ में ही था.

लेकिन यह भी सच है कि
“त्रिया चरित्रम् पुरुषस्य भाग्यम्, देवो न जानति कुतो मनुष्यम्”

देखते हैं कि जिंदगी आगे क्या-क्या रंग दिखाती है?अगर आगे ऐसा कुछ हुआ तो आप सब से अपने अनुभव जरूर बाँटूगा.
तब तक विदा!!!

आपको मेरी कहानी कैसी लगी?
मुझे आप सब पाठकों की प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी.

.........सतीश
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sexstories said:
:heart: its so romantic write more  to continue the story

jaya

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प्रिया का स्खलन अब दूर नहीं था और मैं भी अपनी मंज़िल के करीब ही था. 
मैंने अपना सारा वज़न अपनी कोहनियों पर ले लिया और अपनी कमर को बिजली की सी तेज़ी से चलाने लगा.
प्रिया की सिसकारियाँ पूरे बैडरूम को गुँजाये दे रही थी जिन्हें सुन कर मैं और उत्तेजित हो कर हर वार पर बेरहमी से प्रिया की योनि में अपने लिंग को जड़ तक उतारे जा रहा था.
तभी प्रिया ने अपने दोनों हाथ मेरी पीठ पर ऐसी सख्ती से जकड़े कि प्रिया का ऊपर वाला धड़ हवा में मेरी छाती के साथ चिपक गया. 
प्रिया बेसाख्ता मुझ पर चुम्बनों की बरसात किये दे रही थी और नीचे मेरा लिंग प्रिया की योनि को बिजली की तेज़ी से मथे दे रहा था.
अब तक मेरे लिंग पर प्रिया की योनि की दीवारों का दबाब इस कदर बढ़ गया था कि मेरे लिए अपना लिंग प्रिया की योनि से बाहर खींचना लगभग नामुमकिन सा हो गया था. 
अचानक प्रिया का तमाम शरीर अकड़ने लगा, प्रिया ने मेरे बाएं कंधे पर जोर से काटा और एक जोर से “आ… आ… आ… आ… आ… ह… ह… ह..ह…!!! ” की चीख सी मारी. 
साथ ही प्रिया की आँखें उलट गयी तथा वो निष्चेष्ट सी हो कर मेरी बाहों में झूल गयी.
प्रिया स्खलित हो चुकी थी.
मुझे प्रिया की योनि के अंदर अपने लिंग के आसपास गर्म-गर्म द्रव सा महसूस होने लगा. 
जैसे ही मैंने अपना लिंग पूरी सख्ती से प्रिया की योनि से बाहर खींच कर वापिस प्रिया की योनि की गहराई की आखिरी हद तक पंहुचाया, तभी मेरे अंदर… मेरे खुद का ज्वालामुखी फट पड़ा. 
मैंने प्रिया को सख्ती से अपनी बाहों में कस लिया और प्रिया की योनि के अंदर मेरे लिंग से वीर्य की जोरदार एक बौछार हुई… फिर दूसरी… फिर तीसरी.
मेरे वीर्य से प्रिया की योनि बाहर तक सराबोर हो उठी और मैंने पसलियाँ तोड़ देने की हद तक प्रिया को अपने आलिंगन में दबा डाला.
अचानक ही प्रिया जैसे होश में आयी और मेरी सख्त पकड़ से खुद को छुड़ा कर प्रिया ने मुझे ठीक अपने ऊपर, अपने आगोश में ले लिया और मेरे सर के बालों में अपनी उंगलियाँ फेरने लगी. 
सामने दीवार घड़ी पर साढ़े चार बज़ रहे थे. 
हम दोनों ने एक-दूसरे के साथ किया वादा निभा दिया था. 
अभी तो हम दोनों एक-दूसरे के आगोश में थे लेकिन अब जिंदगी में कभी ऐसा मौक़ा दोबारा आएगा या नहीं… और अगर आएगा भी तो प्रिया पॉजिटिव रेस्पॉन्स देगी या नहीं, इस का जवाब तो भविष्य के गर्भ में ही था.

लेकिन यह भी सच है कि
“त्रिया चरित्रम् पुरुषस्य भाग्यम्, देवो न जानति कुतो मनुष्यम्”

देखते हैं कि जिंदगी आगे क्या-क्या रंग दिखाती है?अगर आगे ऐसा कुछ हुआ तो आप सब से अपने अनुभव जरूर बाँटूगा.
तब तक विदा!!!

आपको मेरी कहानी कैसी लगी?
मुझे आप सब पाठकों की प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी.

.........सतीश
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