hotaks444
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[size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large]अचानक ही प्रिया अपने दोनों हाथों से मेरी बनियान को ऊपर को खींचने लगी. मैंने ज़रा सा उठ कर फ़ौरन अपनी बनियान उतार फेंकी और साथ ही प्रिया के कन्धों से उसकी ब्रा की पट्टियाँ बाहर की तरफ दाएं-बाएं उतार कर प्रिया की आँखों में देखा. अब की बार प्रिया ने पूरी बेबाकी से मुझ से नज़र मिलाई. काम-मद के कारण हो रही प्रिया की गुलाबी आँखों में आने वाले पलों में मिलने वाले शाश्वत काम-आनन्द की बिल्लौरी चमक थी, उसकी सांस बेहद तेज़ चल रही थी और होंठ रह रह कर लरज़ रहे थे.
हम दोनों के बीच में से एक दूसरे से शर्म-हया नाम का अहसास कब का विदा ले चुका था. अब मैं और प्रिया चाहे दो अलग-अलग जिस्म थे लेकिन एक जान हो चुके थे.प्रणय के इस आदिम-खेल में अगली सीढ़ी चढ़ने का वक़्त आ गया था.
मैंने प्रिया के पूरे जिस्म पर एक भरपूर नज़र मारी. बिस्तर पर सीधा लेटा पर तना हुआ एक स्वस्थ नारी शरीर. दोनों मरमरी बाहें सर के नीचे, रेशम-रेशम रोमविहीन साफ़ सुथरी त्वचा, तन का ऊपरी भाग लगभग आवरणहीन, दो अपेक्षाकृत गोरे उरोज़ जिन पर एक ढीली सी ब्रा के कप पड़े हुए, सपाट किसी भी दाग-धब्बे से रहित पेट के बीचोंबीच एक बायीं ओर विलय लेती हुई गहरी नाभि. नाभि से ढाई-तीन इंच नीचे से क्रीम रंग की पिंडलियों तक लम्बी एक कैपरी, नाज़ुक साफ़-सुथरी दायीं टांग के ऊपर बायीं टांग, दोनों पैरों के नाख़ून थोड़े बड़े पर अच्छे से तराश कर उन पर लाल रंग की नेलपॉलिश लगी हुई. टांगों के ऊपरी जोड़ पर कैपरी पर स्पष्ट बना एक V का आकार जिस में V की ऊपरी सतह कुछ उभरी-उभरी सी थी.
अप्सरायें शायद ऐसी ही होती होंगी.
मैंने झुक कर प्रिया की गर्दन के निचले भाग पर अपने होंठ टिका दिए. तत्काल प्रिया के मुंह से एक तीखी सिसकारी निकली. प्रिय के वक्ष अभी तक पूर्ण रूप से अनावृत नहीं हुए थे अपितु दोनों उरोजों पर ब्रा के कपों के ढीले से ही सही पर आवरण पड़े थे और मैं उन्हें अपने हाथों की बजाए होंठों से हटाने पर तुला हुआ था.प्रिया को इसका बराबर एहसास था और वो अपनी आँखें बंद कर के इस स्वर्गिक आनन्द के अतिरेक की अभिलाषा में बेसुध सी हो रही थी.
मेरे होंठ प्रिया की गर्दन से धीरे धीरे नीचे की ओर सरकने लगे और प्रिया के शरीर में भी शनै: शनै: हलचल तेज़ होने लगी. सर्वप्रथम उसके दोनों हाथ मेरे सर के पिछली ओर आ जमे और मुझे और मेरे होंठों को नीचे की ओर गाईड करने लगे, दूसरे, प्रिया के मुंह से रह रह कर तेज़ सिसकारियाँ और आहें निकलने लगी- सी… ई… ई..ई..ई..ई..!!! आई..ई..ई..ई.!!!! आह..ह..ह..ह..ह… ह..ह..ह!!!! उफ़..आ..आ..आ.. आ..आ.आ!!
अचानक मेरे गाल के धक्के से प्रिये के दाएं उरोज़ का कप थोड़ा ऊपर उठ तो गया लेकिन अभी प्रिया की पीठ पर ब्रा का हुक बंद होने की वजह से हटा नहीं. लिहाज़ा मेरी होंठों और जीभ का सफ़र उस पर्वत की चोटी पर पहुँचने से पहले ही रुक गया. तत्काल मैंने अपने होंठों और जीभ का रुख अपने दायीं ओर मोड़ लिया और दोनों पर्वतों के बीच की घाटी को चुम्बनों से भरता हुआ और अपने मुंह के स्राव से गीला करता हुआ दूसरे पर्वतश्रृंग की ओर अग्रसर हुआ.
लेकिन यह यात्रा तो और भी जल्दी रुक गयी; अचानक ही प्रिया ने मुझे पीछे हटाया और उठ कर बैठ गयी; अपने दोनों हाथ पीछे कर के ब्रा का हुक खोल कर ब्रा को परे रख दिया और अपने दोनों हाथ ऊँचे कर के अपने सर के आवारा बालों को संभाल कर, बालों की चोटी का जूड़ा करने लगी.बाई गॉड! क्या नज़ारा था.
उजला गेहुंआ रंग, सिल्क सा नाज़ुक जिस्म, अधखुली नशीली आँखों के दोनों ओर बालों की एक-एक आवारा लट, हाथों की जुम्बिश के साथ-साथ वस्त्र विहीन, सख़्त और उन्नत दोनों उरोजों की हल्की हल्की थिरकन, दोनों उरोजों के ऊपर एक रुपये के सिक्के के आकार के हल्के बादामी घेरे और उन दो घेरों के बीचों-बीच 3-D चने के दाने के आकार के कड़े और तन कर खड़े निप्पल जो उरोजों की हिलोर से साथ-साथ ऐसे हिल रहे थे कि जैसे मुझे चुनौती दे रहे हों.
अधखुले आद्र और गुलाबी होंठों में बालों पर चढ़ाने वाला काला रबर-बैंड और बालों में बिजली की गति से चलती दस लम्बी सुडौल उंगलियाँ.यकीनन मेरी कुंडली में शुक्र बहुत उच्च का रहा होगा तभी तो रति देवी मुझ पर दिल खोल कर मेहरबां थी.
तभी प्रिया अपने बाल व्यवस्थित करने के उपरान्त मेरी ओर झुकी, उसकी कज़रारी आँखों में शरारत की गहन झलक थी.
कामुकता से परिपूर्ण मेरी यह कहानी आपको कैसी लग रही है?मुझे सबकी प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा.[/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size]
हम दोनों के बीच में से एक दूसरे से शर्म-हया नाम का अहसास कब का विदा ले चुका था. अब मैं और प्रिया चाहे दो अलग-अलग जिस्म थे लेकिन एक जान हो चुके थे.प्रणय के इस आदिम-खेल में अगली सीढ़ी चढ़ने का वक़्त आ गया था.
मैंने प्रिया के पूरे जिस्म पर एक भरपूर नज़र मारी. बिस्तर पर सीधा लेटा पर तना हुआ एक स्वस्थ नारी शरीर. दोनों मरमरी बाहें सर के नीचे, रेशम-रेशम रोमविहीन साफ़ सुथरी त्वचा, तन का ऊपरी भाग लगभग आवरणहीन, दो अपेक्षाकृत गोरे उरोज़ जिन पर एक ढीली सी ब्रा के कप पड़े हुए, सपाट किसी भी दाग-धब्बे से रहित पेट के बीचोंबीच एक बायीं ओर विलय लेती हुई गहरी नाभि. नाभि से ढाई-तीन इंच नीचे से क्रीम रंग की पिंडलियों तक लम्बी एक कैपरी, नाज़ुक साफ़-सुथरी दायीं टांग के ऊपर बायीं टांग, दोनों पैरों के नाख़ून थोड़े बड़े पर अच्छे से तराश कर उन पर लाल रंग की नेलपॉलिश लगी हुई. टांगों के ऊपरी जोड़ पर कैपरी पर स्पष्ट बना एक V का आकार जिस में V की ऊपरी सतह कुछ उभरी-उभरी सी थी.
अप्सरायें शायद ऐसी ही होती होंगी.
मैंने झुक कर प्रिया की गर्दन के निचले भाग पर अपने होंठ टिका दिए. तत्काल प्रिया के मुंह से एक तीखी सिसकारी निकली. प्रिय के वक्ष अभी तक पूर्ण रूप से अनावृत नहीं हुए थे अपितु दोनों उरोजों पर ब्रा के कपों के ढीले से ही सही पर आवरण पड़े थे और मैं उन्हें अपने हाथों की बजाए होंठों से हटाने पर तुला हुआ था.प्रिया को इसका बराबर एहसास था और वो अपनी आँखें बंद कर के इस स्वर्गिक आनन्द के अतिरेक की अभिलाषा में बेसुध सी हो रही थी.
मेरे होंठ प्रिया की गर्दन से धीरे धीरे नीचे की ओर सरकने लगे और प्रिया के शरीर में भी शनै: शनै: हलचल तेज़ होने लगी. सर्वप्रथम उसके दोनों हाथ मेरे सर के पिछली ओर आ जमे और मुझे और मेरे होंठों को नीचे की ओर गाईड करने लगे, दूसरे, प्रिया के मुंह से रह रह कर तेज़ सिसकारियाँ और आहें निकलने लगी- सी… ई… ई..ई..ई..ई..!!! आई..ई..ई..ई.!!!! आह..ह..ह..ह..ह… ह..ह..ह!!!! उफ़..आ..आ..आ.. आ..आ.आ!!
अचानक मेरे गाल के धक्के से प्रिये के दाएं उरोज़ का कप थोड़ा ऊपर उठ तो गया लेकिन अभी प्रिया की पीठ पर ब्रा का हुक बंद होने की वजह से हटा नहीं. लिहाज़ा मेरी होंठों और जीभ का सफ़र उस पर्वत की चोटी पर पहुँचने से पहले ही रुक गया. तत्काल मैंने अपने होंठों और जीभ का रुख अपने दायीं ओर मोड़ लिया और दोनों पर्वतों के बीच की घाटी को चुम्बनों से भरता हुआ और अपने मुंह के स्राव से गीला करता हुआ दूसरे पर्वतश्रृंग की ओर अग्रसर हुआ.
लेकिन यह यात्रा तो और भी जल्दी रुक गयी; अचानक ही प्रिया ने मुझे पीछे हटाया और उठ कर बैठ गयी; अपने दोनों हाथ पीछे कर के ब्रा का हुक खोल कर ब्रा को परे रख दिया और अपने दोनों हाथ ऊँचे कर के अपने सर के आवारा बालों को संभाल कर, बालों की चोटी का जूड़ा करने लगी.बाई गॉड! क्या नज़ारा था.
उजला गेहुंआ रंग, सिल्क सा नाज़ुक जिस्म, अधखुली नशीली आँखों के दोनों ओर बालों की एक-एक आवारा लट, हाथों की जुम्बिश के साथ-साथ वस्त्र विहीन, सख़्त और उन्नत दोनों उरोजों की हल्की हल्की थिरकन, दोनों उरोजों के ऊपर एक रुपये के सिक्के के आकार के हल्के बादामी घेरे और उन दो घेरों के बीचों-बीच 3-D चने के दाने के आकार के कड़े और तन कर खड़े निप्पल जो उरोजों की हिलोर से साथ-साथ ऐसे हिल रहे थे कि जैसे मुझे चुनौती दे रहे हों.
अधखुले आद्र और गुलाबी होंठों में बालों पर चढ़ाने वाला काला रबर-बैंड और बालों में बिजली की गति से चलती दस लम्बी सुडौल उंगलियाँ.यकीनन मेरी कुंडली में शुक्र बहुत उच्च का रहा होगा तभी तो रति देवी मुझ पर दिल खोल कर मेहरबां थी.
तभी प्रिया अपने बाल व्यवस्थित करने के उपरान्त मेरी ओर झुकी, उसकी कज़रारी आँखों में शरारत की गहन झलक थी.
कामुकता से परिपूर्ण मेरी यह कहानी आपको कैसी लग रही है?मुझे सबकी प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा.[/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size]