hotaks444
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[size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large][size=large]प्रिया के और मेरे उस रात के सपने जैसे प्रेमालाप के बाद हमें दोबारा कोई ऐसा मौका ही नहीं मिला और सच मानिये कि मैंने दोबारा ऐसी कोई कोशिश ही नहीं की.प्रिया के मन की तो प्रिया ही जाने लेकिन मैं भली-भांति जानता हूँ कि असली ख़ुशी ऐसे शाश्वत आनन्ददायक पलों को याद करने में ही होती है और अगर कोई उन सपनीले क्षणों को ज़बरदस्ती दोहराना चाहे तो गहरी मायूसी ही हाथ लगती है.
यूँ भी एक अकथनीय सा अपराधबोध मेरे मन में था. मैं तो प्रिया से आँख मिलाने में भी झिझकने लगा था. वैसे भी उस रात के बाद, प्रिया का और हमारे परिवार का साथ भी थोड़ा ही रहा. कुछ दिनों बाद प्रिया के कॉलेज खुल गए और प्रिया को हॉस्टल भी मिल गया, तो प्रिया हमारे घर से चली गयी.
कालान्तर में प्रिया कभी-कभार आ भी जाती थी मिलने लेकिन वो मिलना एक-आध घंटे का ही होता था जिस में सारा परिवार शामिल रहता. कोई किसी किस्म की शरारत नहीं, कोई चुहलबाज़ी नहीं. कभी कभी मेरी और प्रिया की नज़र मिल भी जाती तो क्षण भर के लिए… प्रिया की कजरारी आँखों में एक बिल्लौरी चमक और होंठों पर एक गुप्त सी ‘मोनालिसा मुस्कान’ आ कर गुम हो जाती जिसे सिर्फ मैं ही भांप पाता.प्रिया जैसी प्रियतमा से प्रेमालाप जैसे जैकपॉट जिंदगी में एक आध बार ही लगते हैं, यह सच्चाई मैं जानता था.
इधर मेरी अपनी वैवाहिक सैक्स-लाइफ बहुत बढ़िया थी! तो मुझे भी जिंदगी से कोई ख़ास शिक़वा नहीं था. लेकिन कभी कभी अनाम सा एक ख़ालीपन महसूस होता था. एक अरमान… दिल में कभी कभार तरंग के रूप में उठता था कि काश! मैं दिन के उजाले में या रात को लाइट जला कर प्रिया के सम्पूर्ण हुस्न को अपनी आँखों से चूम पाता… एक बार… बस! सिर्फ एक बार… प्रेमालाप के दौरान दोनों के जिस्मों की हर हरकत पर प्रिया की आँखों के भाव देख पाता, उसके बाद चाहे कयामत भी आ जाती तो मुझे रश्क़ ना होता.
लेकिन फिर वही ‘If the wishes were horses… beggars would ride!’तो मैं दिल के अरमान दिल में ही दबा लेता.
जिंदगी अपने ढर्रे पर चल रही थी. प्रिया ने M. Com कर ली और अपने घर लौट गयी. प्रिया के घर का माहौल बड़ा दकियानूसी सा था, अजीब ज़ाहिल लोग थे, औरतों को किसी प्रकार की आज़ादी नहीं थी. यहाँ तक कि लड़की घर से बाहर निकले तो परिवार का कोई ना कोई सदस्य साथ होना चाहिए.घर का छोड़िये… पूरे क़स्बे का माहौल भी सौ साल पुराना था.
पहले की बात और थी… लेकिन अब प्रिया दो साल बड़े शहर में रह कर, बड़े शहर की आज़ादी के रंग ढंग देख कर वापिस गयी थी तो… उस का ऐसी बंदिशों से ऊबना स्वाभाविक ही था. नतीज़न! घर में हल्की-फ़ुल्की बहस बाज़ी और छिट-पुट नाराज़गी के दौर शुरू हो गए थे.पता लगता था तो सुन कर कोफ़्त तो बहुत होती थी लेकिन हम क्या कर सकते थे. आँखिर यह उनके घर का अंदरूनी मसला था. फिर भी, सुन कर दुःख तो होता ही था.
प्रिया के घर वापिस लौट जाने के कोई तीन महीने बाद सुधा से उसकी बहन यानि प्रिया की मां ने फ़ोन पर सुधा को उनके यहाँ आने को कहा, कोई प्रिया की शादी-ब्याह का मसला था. आते इतवार, मैं और सुधा दोनों प्रिया के घर गए.हम से प्रिया के सब घरवाले बहुत खुल कर मिले, ख़ास तौर पर प्रिया.
मैंने नोट किया कि प्रिया का इकहरा शरीर आकर्षक रूप से थोड़ा भर गया था, वक्ष थोड़े ज्यादा सख़्त और ज्यादा उभर आये थे, फ़िगर भी शायद 34-26-34 हो चला था. काली आँखों में चमक और बढ़ गयी थी, प्राकृतिक रूप से गहन गुलाबी होंठ थोड़े और भर गए थे जिस से होंठों का कटाव और कातिल हो गया था. सर के गहरे भूरे बाल ज्यादा सिल्की हो गए थे, साफ़ गेहुंए रंग के जिस्म की रंगत में एक चमक थी और कदम धरते वक़्त पुष्ट जांघों और ठोस नितम्बों में हलकी सी हिलोर उठती थी.
कुदरत ने क़ातिल को तमाम हथियारों से नवाज़ दिया था और किसी ना किसी पर कयामत बरपा हो के रहनी ही थी.
हमारे घर में रहते या कभी हॉस्टल में रहते वक़्त जब प्रिया हमारे घर आती तो ‘मौसा जी! नमस्ते’ कह कर ही इतिश्री कर देती थी लेकिन उस दिन अपने घर में तो प्रिया ‘मौसा जी!’ कह कर मुझ से ज़ोर से लिपट कर मिली. होंठों से होंठ सिर्फ दो इंच दूर थे और बाकी सारा शरीर एक दूसरे से मिला हुआ. मेरी बायाँ हाथ प्रिया की पीठ पर ठीक ब्रा की पट्टी के ऊपर और प्रिया के दोनों हाथ मेरी पीठ पर… प्रिया का दायाँ उरोज़ मेरी छाती में इतनी ज़ोर से गड़ा हुआ था कि मैं स्पष्ट रूप से अपनी छाती पर प्रिया के उरोज़ का सख़्त निप्पल महसूस कर सकता था, प्रिया की दायीं जांघ मेरी दोनों टांगों के बीच थी और चूंकि मैं प्रिया से लंबा था फलस्वरूप मेरा लिंग प्रिया की नाभि की बगल में लग रहा था और मुझे ऐसा लगा कि प्रिया जानबूझ कर अपने पेट से मेरे लिंग को दबाया भी.एक क्षण में मेरे लिंग में ज़बरदस्त तनाव आ गया और मुझे लगा कि प्रिया ने मेरी पीठ पर एक जोर से चिकोटी भी काटी थी शायद![/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size]
यूँ भी एक अकथनीय सा अपराधबोध मेरे मन में था. मैं तो प्रिया से आँख मिलाने में भी झिझकने लगा था. वैसे भी उस रात के बाद, प्रिया का और हमारे परिवार का साथ भी थोड़ा ही रहा. कुछ दिनों बाद प्रिया के कॉलेज खुल गए और प्रिया को हॉस्टल भी मिल गया, तो प्रिया हमारे घर से चली गयी.
कालान्तर में प्रिया कभी-कभार आ भी जाती थी मिलने लेकिन वो मिलना एक-आध घंटे का ही होता था जिस में सारा परिवार शामिल रहता. कोई किसी किस्म की शरारत नहीं, कोई चुहलबाज़ी नहीं. कभी कभी मेरी और प्रिया की नज़र मिल भी जाती तो क्षण भर के लिए… प्रिया की कजरारी आँखों में एक बिल्लौरी चमक और होंठों पर एक गुप्त सी ‘मोनालिसा मुस्कान’ आ कर गुम हो जाती जिसे सिर्फ मैं ही भांप पाता.प्रिया जैसी प्रियतमा से प्रेमालाप जैसे जैकपॉट जिंदगी में एक आध बार ही लगते हैं, यह सच्चाई मैं जानता था.
इधर मेरी अपनी वैवाहिक सैक्स-लाइफ बहुत बढ़िया थी! तो मुझे भी जिंदगी से कोई ख़ास शिक़वा नहीं था. लेकिन कभी कभी अनाम सा एक ख़ालीपन महसूस होता था. एक अरमान… दिल में कभी कभार तरंग के रूप में उठता था कि काश! मैं दिन के उजाले में या रात को लाइट जला कर प्रिया के सम्पूर्ण हुस्न को अपनी आँखों से चूम पाता… एक बार… बस! सिर्फ एक बार… प्रेमालाप के दौरान दोनों के जिस्मों की हर हरकत पर प्रिया की आँखों के भाव देख पाता, उसके बाद चाहे कयामत भी आ जाती तो मुझे रश्क़ ना होता.
लेकिन फिर वही ‘If the wishes were horses… beggars would ride!’तो मैं दिल के अरमान दिल में ही दबा लेता.
जिंदगी अपने ढर्रे पर चल रही थी. प्रिया ने M. Com कर ली और अपने घर लौट गयी. प्रिया के घर का माहौल बड़ा दकियानूसी सा था, अजीब ज़ाहिल लोग थे, औरतों को किसी प्रकार की आज़ादी नहीं थी. यहाँ तक कि लड़की घर से बाहर निकले तो परिवार का कोई ना कोई सदस्य साथ होना चाहिए.घर का छोड़िये… पूरे क़स्बे का माहौल भी सौ साल पुराना था.
पहले की बात और थी… लेकिन अब प्रिया दो साल बड़े शहर में रह कर, बड़े शहर की आज़ादी के रंग ढंग देख कर वापिस गयी थी तो… उस का ऐसी बंदिशों से ऊबना स्वाभाविक ही था. नतीज़न! घर में हल्की-फ़ुल्की बहस बाज़ी और छिट-पुट नाराज़गी के दौर शुरू हो गए थे.पता लगता था तो सुन कर कोफ़्त तो बहुत होती थी लेकिन हम क्या कर सकते थे. आँखिर यह उनके घर का अंदरूनी मसला था. फिर भी, सुन कर दुःख तो होता ही था.
प्रिया के घर वापिस लौट जाने के कोई तीन महीने बाद सुधा से उसकी बहन यानि प्रिया की मां ने फ़ोन पर सुधा को उनके यहाँ आने को कहा, कोई प्रिया की शादी-ब्याह का मसला था. आते इतवार, मैं और सुधा दोनों प्रिया के घर गए.हम से प्रिया के सब घरवाले बहुत खुल कर मिले, ख़ास तौर पर प्रिया.
मैंने नोट किया कि प्रिया का इकहरा शरीर आकर्षक रूप से थोड़ा भर गया था, वक्ष थोड़े ज्यादा सख़्त और ज्यादा उभर आये थे, फ़िगर भी शायद 34-26-34 हो चला था. काली आँखों में चमक और बढ़ गयी थी, प्राकृतिक रूप से गहन गुलाबी होंठ थोड़े और भर गए थे जिस से होंठों का कटाव और कातिल हो गया था. सर के गहरे भूरे बाल ज्यादा सिल्की हो गए थे, साफ़ गेहुंए रंग के जिस्म की रंगत में एक चमक थी और कदम धरते वक़्त पुष्ट जांघों और ठोस नितम्बों में हलकी सी हिलोर उठती थी.
कुदरत ने क़ातिल को तमाम हथियारों से नवाज़ दिया था और किसी ना किसी पर कयामत बरपा हो के रहनी ही थी.
हमारे घर में रहते या कभी हॉस्टल में रहते वक़्त जब प्रिया हमारे घर आती तो ‘मौसा जी! नमस्ते’ कह कर ही इतिश्री कर देती थी लेकिन उस दिन अपने घर में तो प्रिया ‘मौसा जी!’ कह कर मुझ से ज़ोर से लिपट कर मिली. होंठों से होंठ सिर्फ दो इंच दूर थे और बाकी सारा शरीर एक दूसरे से मिला हुआ. मेरी बायाँ हाथ प्रिया की पीठ पर ठीक ब्रा की पट्टी के ऊपर और प्रिया के दोनों हाथ मेरी पीठ पर… प्रिया का दायाँ उरोज़ मेरी छाती में इतनी ज़ोर से गड़ा हुआ था कि मैं स्पष्ट रूप से अपनी छाती पर प्रिया के उरोज़ का सख़्त निप्पल महसूस कर सकता था, प्रिया की दायीं जांघ मेरी दोनों टांगों के बीच थी और चूंकि मैं प्रिया से लंबा था फलस्वरूप मेरा लिंग प्रिया की नाभि की बगल में लग रहा था और मुझे ऐसा लगा कि प्रिया जानबूझ कर अपने पेट से मेरे लिंग को दबाया भी.एक क्षण में मेरे लिंग में ज़बरदस्त तनाव आ गया और मुझे लगा कि प्रिया ने मेरी पीठ पर एक जोर से चिकोटी भी काटी थी शायद![/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size]