hotaks444
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जब रुक्मणी कुच्छ नॉर्मल हुई तब मैने अपने लंड को उसकी गंद मे थोड़ा ज़ोर से दबा दिया और मेरा आधे से ज़्यादा लंड उसकी गुदा मे फस गया,
ओह बाबा जी मर गई, आ मेरी गंद फटी जा रही है बाबा जी कितना मोटा लंड है आपका, आप तो किसी भी औरत की गंद फाड़ सकते हो आह आह. मैं धीरे-धीरे लंड को आगे पिछे करने लगा और रुक्मणी सीसियाते हुए पड़ी रही मैने जब देखा कि अब मेरा लंड उसकी गंद मे धीरे धीरे अंदर बाहर हो रहा है तभी मैने रुक्मणी की गंद को दबोचते हुए एक कस के धक्का मार दिया और मेरा पूरा लंड उसकी गुदा मे समा गया और रुक्मणी ओह बाबा जी मर गई कह कर खूब सीसीयाने लगी,
मैं रुक्मणी की पीठ सहला सहला कर उसकी गंद को खूब गहराई तक चोदने लगा और रुक्मणी सी सी आह आह ओह मा ओह बाबा जी और मारो आह अच्छा लग रहा है बहुत मज़ा आ रहा है करने लगी,
मैं अब ताबड़तोड़ धक्के रुक्मणी की चूत मे मारने लगा उसकी मोटी जंघे जब मेरी जाँघो से टकराती तो ठप ठप की आवाज़ गूंजने लगती, रुक्मणी की गुदा को मैने चोद-चोद कर लाल कर दिया था जब रुक्मणी गंद मरवा-मरवा कर मस्त हो गई तब मैने उसकी गुदा मे अपना वीर्य निकाल दिया,
जैसे ही मैने वीर्य निकाला रुक्मणी ने मेरे लंड को अपनी गंद से निकाल कर अपने मूह मे डाल कर चूसना शुरू कर दिया और मेरा सारा पानी चाट चाट कर साफ कर दिया,
रुक्मणी लेट कर मेरे लंड से खेल रही थी और मैं उसके उठे हुए पेट और मोटे-मोटे दूध को सहला रहा था, उस रात मैने रुक्मणी की एक बार और चूत मारी और फिर एक बार उसकी गुदाज गंद को भी तबीयत से चोदा, उसके बाद मैं सुबह सुधिया को कैसे चोदना है उसके बारे मे सोचता हुआ सो गया,
सुबह 4 बजे ही सुधिया की याद मे मेरी नींद खुल गई और मैं चुपके से उठ कर तालाब की ओर चल दिया, मैं
मन मे सोच रहा था कि क्यो ना पहले मैं ही सुधिया की चूत मार लू उसके बाद हरिया का नंबर. लगाऊ, मैने अपने
प्लान को थोड़ा चेंज करना ही ठीक समझा और एक पेड़ के नीचे आसान जमा कर बैठ गया,
लगभग आधा घंटा
इंतजार करने के बाद मुझे कोई औरत आती हुई नज़र आई मैं उसके गुदाज शरीर और मटकती चाल को देख कर समझ
गया कि रामू की मा ही चली आ रही है, सुधिया को भी कुच्छ दूर से ही मैं नज़र आने लगा और मैने अपनी
आँखे बंद कर ली,
सुधिया ने जब करीब आकर मुझे देखा तो मेरे पेरो को च्छू कर
सुधिया- परनाम बाबा जी, आप यहाँ सुबह सुबह ?
मैने अपनी आँखे खोली और सुधिया की ओर देखा, उसने लाल कलर का ब्लौज और एक घाघरा पहना हुआ था और
उसके सीने पर कोई चुनरी नही थी, उसके मोटे मोटे दूध उसके ब्लौज मे कैसे समाते होंगे मैं यह सोच रहा
था और जब मैने सुधिया का उठा हुआ गुदाज पेट और गहरी नाभि पर नज़र डाली तो कसम से मेरा लंड तुरंत
खड़ा हो गया,
राज- बेटी सुधिया हम तो रात भर इसी पेड़ के नीचे तपस्या कर रहे है, और वह भी सिर्फ़ तेरी वजह से, क्यो कि
शायद उपरवाला भी तुझ पर मेहरबान है और उसने मुझे तेरे पास भेज दिया ताकि मैं तेरे उपर आने वाले
संकट को दूर कर सकु,
क्रमशः........
ओह बाबा जी मर गई, आ मेरी गंद फटी जा रही है बाबा जी कितना मोटा लंड है आपका, आप तो किसी भी औरत की गंद फाड़ सकते हो आह आह. मैं धीरे-धीरे लंड को आगे पिछे करने लगा और रुक्मणी सीसियाते हुए पड़ी रही मैने जब देखा कि अब मेरा लंड उसकी गंद मे धीरे धीरे अंदर बाहर हो रहा है तभी मैने रुक्मणी की गंद को दबोचते हुए एक कस के धक्का मार दिया और मेरा पूरा लंड उसकी गुदा मे समा गया और रुक्मणी ओह बाबा जी मर गई कह कर खूब सीसीयाने लगी,
मैं रुक्मणी की पीठ सहला सहला कर उसकी गंद को खूब गहराई तक चोदने लगा और रुक्मणी सी सी आह आह ओह मा ओह बाबा जी और मारो आह अच्छा लग रहा है बहुत मज़ा आ रहा है करने लगी,
मैं अब ताबड़तोड़ धक्के रुक्मणी की चूत मे मारने लगा उसकी मोटी जंघे जब मेरी जाँघो से टकराती तो ठप ठप की आवाज़ गूंजने लगती, रुक्मणी की गुदा को मैने चोद-चोद कर लाल कर दिया था जब रुक्मणी गंद मरवा-मरवा कर मस्त हो गई तब मैने उसकी गुदा मे अपना वीर्य निकाल दिया,
जैसे ही मैने वीर्य निकाला रुक्मणी ने मेरे लंड को अपनी गंद से निकाल कर अपने मूह मे डाल कर चूसना शुरू कर दिया और मेरा सारा पानी चाट चाट कर साफ कर दिया,
रुक्मणी लेट कर मेरे लंड से खेल रही थी और मैं उसके उठे हुए पेट और मोटे-मोटे दूध को सहला रहा था, उस रात मैने रुक्मणी की एक बार और चूत मारी और फिर एक बार उसकी गुदाज गंद को भी तबीयत से चोदा, उसके बाद मैं सुबह सुधिया को कैसे चोदना है उसके बारे मे सोचता हुआ सो गया,
सुबह 4 बजे ही सुधिया की याद मे मेरी नींद खुल गई और मैं चुपके से उठ कर तालाब की ओर चल दिया, मैं
मन मे सोच रहा था कि क्यो ना पहले मैं ही सुधिया की चूत मार लू उसके बाद हरिया का नंबर. लगाऊ, मैने अपने
प्लान को थोड़ा चेंज करना ही ठीक समझा और एक पेड़ के नीचे आसान जमा कर बैठ गया,
लगभग आधा घंटा
इंतजार करने के बाद मुझे कोई औरत आती हुई नज़र आई मैं उसके गुदाज शरीर और मटकती चाल को देख कर समझ
गया कि रामू की मा ही चली आ रही है, सुधिया को भी कुच्छ दूर से ही मैं नज़र आने लगा और मैने अपनी
आँखे बंद कर ली,
सुधिया ने जब करीब आकर मुझे देखा तो मेरे पेरो को च्छू कर
सुधिया- परनाम बाबा जी, आप यहाँ सुबह सुबह ?
मैने अपनी आँखे खोली और सुधिया की ओर देखा, उसने लाल कलर का ब्लौज और एक घाघरा पहना हुआ था और
उसके सीने पर कोई चुनरी नही थी, उसके मोटे मोटे दूध उसके ब्लौज मे कैसे समाते होंगे मैं यह सोच रहा
था और जब मैने सुधिया का उठा हुआ गुदाज पेट और गहरी नाभि पर नज़र डाली तो कसम से मेरा लंड तुरंत
खड़ा हो गया,
राज- बेटी सुधिया हम तो रात भर इसी पेड़ के नीचे तपस्या कर रहे है, और वह भी सिर्फ़ तेरी वजह से, क्यो कि
शायद उपरवाला भी तुझ पर मेहरबान है और उसने मुझे तेरे पास भेज दिया ताकि मैं तेरे उपर आने वाले
संकट को दूर कर सकु,
क्रमशः........