Rishton mai Chudai - दो सगे मादरचोद - Page 2 - SexBaba
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Rishton mai Chudai - दो सगे मादरचोद

अपडेट-09

अजय ब्रीफ और बनियान में खड़ा मेरे लंड को निहार रहा था. तभी में उठा और अजय के पिछे खड़ा हो गया. मेरा बिल्कुल सीधा खड़ा लंड उसकी गान्ड की दरार में धँस रहा था. मेने अजय की बनियान खोल दी और ठुड्डी से पकड़ उसका चेहरा उपर उठा लिया और उसके चेहरे पर झुक गया. मुन्ना के मंद मंद मुस्काते होंठों को अपने होंठों में कस लिया और अत्यंत कामतूर हो उसके होंठ चूसने लगा. प्यारे भाई का लंबा सा चुंबन लेने के बाद में अजय के आगे घुटनों के बल बैठ गया और उसका ब्रीफ भी खोल दिया. अजय का लंड बिल्कुल खड़ा था. कुच्छ देर में उसकी गोटियों को दबाता रहा और उनसे खेलता रहा. दो तीन बार लंड को भी मुट्ठी में कसा. अब में वापस खड़ा हो गया और एक पाँव ड्रेसिंग टेबल पर रख दिया.

में: "ले मुन्ना, देख इसे और खूब प्यार कर. खूब प्यार से पूरा मुख में ले चूसना. ऐसा मस्त लंड चूसेगा तो पूरा मस्त हो जाएगा. जितना मज़ा चुसवाने वाले को आता है उतना ही मज़ा चूसने वाले को भी आता है. आज कल की फॉर्वर्ड और मस्त तबीयत की औरतें तो चुदवाने से पहले मर्दों का पूरा मुख में ले जी भर के चूस्ति है और जब पूरी मस्त हो जाती है तब गान्ड उछाल उछाल के चुदवाती है." मेरी बात सुन के अजय ड्रेसिंग टेबल पर मेरे खड़े लंड के सामने बैठ गया, मेरा मस्ताना लंड उसके चेहरे पर लहरा रहा था. मेने अपना लंड एक हाथ में ले लिया और अजय के चेहरे पर लंड को फिराने लगा. ड्रेसिंग टेबल के आदमकद आईने में दोनो भाई यह मनोरम दृश्य देख रहे थे कि बड़ा भैया अपने कमसिन छोटे भाई को अपना मस्ताना लंड कैसे दिखा रहा है.

में: "क्यों मुन्ना मुख में पानी आ रहा है क्या? ले चूस इसे. देख भैया तुझे कितने प्यार से अपना लॉडा चूसा रहे हैं?" मेरी बात सुन अजय ने मेरे लंड का सुपारा अपने मुख में ले लिया. वह काफ़ी देर मेरे सुपारे पर अपनी जीभ फिराता रहा. तभी में और आगे सरक गया और अजय के सर के पिछे अपने दोनो हाथ रख उसके सर को मेरे लंड पर दबाता चला गया. मुन्ना जैसे जैसे अपना मुख खोलता गया वैसे ही मेरा लंड उसके मुख में समाने लगा. मेरा लंड शायद उसके हलक तक उतर गया था. उसके मुख में थोड़ी भी जगह शेष नहीं बची थी. लंड उसके मुख में धँस गया और चूसने के लिए उसके मुख में और जगह नहीं बची थी.

में: "तेरा तो पूरा मुख मेरे इस लंड से भर गया. चल पलंग पर चल. वहाँ तुझे लिटा कर तेरा मुख ठीक से पेलूँगा."

मेरी बात सुन अजय ने लंड मुख से निकाल दिया और बेड पर चित लेट गया. मेने उसके मुख के दोनों और अपने घुटने रख आसन जमा लिया और उसके खुले मुख में लंड पेलने लगा. आब में लंड बाहर भीतर कर रहा था जिससे कि लंड उसके थूक से तर हो चिकना हो रहा था. जैसे जैसे लंड थूक से तर होने लगा वह आसानी से मुख के अंदर समाने लगा और लंड को बाहर भीतर कर मुन्ना के मुख को चोदने में भी सहूलियत होने लगी. इस आसन में मैं काफ़ी देर अजय के मुख को चोदता रहा.

फिर इसी आसन में में अचानक पलट गया जिससे कि मेरी गान्ड अजय के चेहरे के सामने हो गई और मेरा मुख ठीक अजय के खड़े लंड के सामने आ गया. मेने पूरा मुख खोल गॅप से अजय के लंड को अपने मुख में भर लिया. में पूरी मस्ती में था. में बहुत तेज़ी से अपना मुख उपर नीचे करते हुए अजय के लंड को चूसने लगा. मेरी इस हरकत से अजय भी पूरी मस्ती में आ गया और पूरे मनोयोग से मेरे लंड को चूसने लगा. हूँ दोनो पूरे जवान सगे भाई वासना में भरे एक दूसरे के तगड़े लंड चूसे जा रहे थे. तभी में करवट के बल लेट गया और अजय की मस्तानी गान्ड मुट्ठी में जकड उसे भी करवट के बल कर लिया. मेने अजय का लंड जड़ तक अपने मुख में ले उसे कस के अपने मुख पर भींच लिया. मेरी देखा देखी अजय ने भी वैसा ही किया. हम 69 की पोज़िशन का पूरा मज़ा ले रहे थे. एक दूसरे के लंड को अपने अपने मुखों पर दबाए अपने जोड़ीदार को ज़्यादा से ज़्यादा मज़ा देने की कोशिश कर रहे थे. वासना के अतिरेक में मेने अजय की गान्ड में एक अंगुल पेल दी और उसे आपने मुख पर जकड़ने लगा.

अजय भी उधर खूब तेज़ी से मेरे लंड को मुख से बाहर भीतर करता हुआ चूसे जा रहा था. उसने भी मेरे दोनो नितंब अपने हाथों में समा लिए थे और मेरे लंड को जड़ तक अपने मुख में ले अपने नथुने मेरे झान्टो से भरे जंगल में गढ़ा दिए. मेरी मर्दाना खुश्बू में मस्त हो मेरा भाई मेरा लंड बड़े चाव से चूसे जा रहा था. अब में किसी भी समय छूट सकता था. मेरी साँसें तेज़ तेज़ चलने लगी. मेने अजय के लंड को अपने मुख में कस लिया मानो की में उसके रस की एक एक बूँद निचोड़ लेना चाहता हूँ. तभी मेने अपनी दोनों टाँगों के बीच अजय के सर को जकड लिया ताकि जब में छर्छरा के झडू तब मेरा लंड किसी भी हालत में उसके मुख से बाहर ना निकले.

तभी मेरे लंड से लावा बह निकला. में पूर्ण संतुष्ट हो कर झड रहा था. रह रह कर मेरे वीर्य की धार अजय के मुख में गिर रही थी. अजय ने मेरे पूरे लंड को मुख में ले रखा था और भाई के इस अनमोल मर्दाने रस को सीधे अपने हलक में उतार रहा था. तभी अजय ने भी गाढ़े वीर्य की पिचकारी मेरे मुख में छोड़ दी. मेने उसके लंड को मुँह में कस लिया और उसके वीर्य की एक एक बूँद उसके लंड से निचोड़ पीने लगा. उधर अजय भी मेरे वीर्य की एक भी बूँद व्यर्थ नहीं कर रहा था. हम दोनो भाई इसी मुद्रा में कई देर पड़े रहे. अजय का लंड मेरे मुख में सिथिल पड़ता जा रहा था साथ ही मेरा लंड भी मुरझाने लगा. काफ़ी देर बाद अजय उठा. उसने ब्रीफ और बनियान पहन ली और बेड पर निढाल हो पड़ गया. में वैसे ही पड़ा रहा और उसी मुद्रा में मुझे नींद आ गई. सुबह जब नींद खुली तो अजय गाढ़ी नींद में था. में अपनी स्थिति देख और रात के घटनाक्रम की याद कर मुस्करा उठा और वैसे ही बाथरूम में घुस गया.

स्टोर पहुँच मेने एक वक़ील से बात की और अजय को उसके साथ कोर्ट भेज दिया. उसने पवर ऑफ अटर्नी तैयार कर दी. यह तय हो गया कि अजय आज रात ही 10 बजे ट्रेन से गाँव के लिए निकल जाएगा जो गाँव से 25 किलोमेटेर दूर स्टेशन पर सुबह पहुँच जाती थी. रात घर पहुँच अजय को खेत के पट्टे और अन्य ज़रूरी कागजात सौंप दिए, सारी बातें समझा दी और उसे अपनी बाइक पर बिठा स्टेशन छोड़ दिया. स्टेशन से वापस घर पाहूंचने के बाद माँ से कोई बात नहीं हुई और में अपने रूम में जा सो गया.

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अपडेट-10

दूसरे दिन सुबह जब नींद टूटी तो में अपनी माँ के बारे में सोचने लगा. मेरी माँ यानी की मेरी प्यारी राधा रानी 46 साल की है पर किसी भी हालत में 40 से ज़्यादा की नहीं लगती. माँ भी हम दोनो भाइयों की तरह ही कद्दावर कद की और सुगठित शरीर की है. माँ का शरीर मांसल और भरा हुआ है पर किसी भी हालत में मोटी नहीं कही जा सकती; एक सुंदर औरत के शरीर में जहाँ भराव होने चाहिए वहीं पर भराव हैं. गोल चेहरा और उस पर फूले फूले गाल की गालों को चूस्ते चूस्ते जी नहीं भरे, सदा मुस्कराते रसीले होंठ जिन का रस्पान करने कोई भी आतुर हो जाय, छाती पर दो कसे हुए बड़े बड़े गोल स्तन की उनका मर्दन करने हथेली में खुजली चल पड़े, फिर कुच्छ पतली कमर और कमर ख़तम होते ही भारी उभरे हुए नितंब और विशाल फैली हुई जांघें की बस उनका तकिया बना सोते रहें और सोते रहें.

खेली खाई, बड़ी उमर की, भरे बदन की सलीके से रहनेवाली औरतें सदा से ही मेरी कमज़ोरी रही है. फिर मेरी माँ तो साक्षात रति देवी की अवतार थी और हर दिन नये नये रूप में नई सजधज के साथ मेरी आँखों के आगे रहती थी तो उसकी ओर मेरा आकर्षण होना स्वाभाविक था. जैसे मुझे अजय के रूप में अनायास ही एक पटा पटाया मस्त, चिकना लौंडा मिल गया और दो ही दिन में वह मेरा दीवाना हो गया, मेरे हर हुकम का गुलाम हो गया क्या वैसे ही मेरे सपनों की रानी राधा भी मुझे मिल जाएगी. में माँ के मामले में कोई भी जल्दबाज़ी नहीं करना चाहता था, ऐसी कोई भी हरकत नहीं करना चाहता था कि उसका दिल दुख जाय. में धीरे धीरे माँ को अपनी बना लेना चाहता था कि उसके साथ खुल के में अपनी हवस मिटाऊ, अपने जैसी बेबाक बेशरम बना के खुल के उसके साथ व्यभिचार करूँ, बिल्कुल खुली बातें करते हुए उसके शरीर के खजाने को भोग़ू. ऐसी माँ पाने के लिए में कितना ही इंतज़ार कर सकता था. माँ के साथ यह सब करने में अजय अब मेरे लिए बढ़ा नहीं था बल्कि मेरा सहयोगी साबित होने वाला था. अजय जैसे शौकीन लौन्डे के साथ माँ को भोगने में तो और मज़ा आएगा. अजय गान्डू तो है पर पूरा मर्द भी है, एक बार उसे माँ की जवानी चखा दूँगा तो वा मेरा और पक्का चेला बन जाएगा.

सुबह 10 बजे स्टोर जाते समय माँ ने रोज की तरह नास्टा कराया. हम दोनो भाई दिन का भोजन स्टोर के कॅनटिन में ही करते थे. नाश्ता करते समय मेने माँ से कहा,

"माँ अभी कुच्छ ही दिनो पहले चंडीगढ़ में एक बहुत आलीशान मल्टिपलेक्स खुला है. उसमें बड़ी मस्त पिक्चर लगी है. उसमें शहर की सबसे अच्छी रेस्टोरेंट भी खुली है. मेने भी उसे अभी तक नहीं देखा. बोलो, तुम्हारी इच्छा हो तो शाम को पिक्चर देखेंगे और वहीं खाना खाएँगे."

माँ: "बेटा में तो आज से 10-12 साल पहले पास वाले शहर में गाँव की कुच्छ लुगाइयो के साथ 'जे संतोषी माँ' देखने गई थी. मुझे तो पिक्चर देख के बहुत मज़ा आया था. उसके बाद तो मुझे वहाँ गाँव से शहर पिक्चर दिखाने कौन ले जाता?."

में: "अरे माँ अब पूरनी बातों को भूल जाओ. अब में हूँ ना. तुम्हें खूब पिक्चर दिखाउन्गा. में 5 बजे घर आ जाउन्गा और आज बाहर का ही मज़ा लेंगे." माँ ने खुश हो हामी भर दी.

शाम को मेरे स्टोर में कुच्छ काम आ गया तो मेने माँ को मोबाइल पर कह दिया कि वह रेडी हो कर 6 बजे तक स्टोर में ही आ जाए वहीं से सीधे सिनिमा हॉल में चले जाएँगे. मेने अड्वान्स में 2 टिकेट्स बुक करवा रखी थी और शो ठीक 6.30 पर शुरू होने वाला था. माँ सजधज के 6 बजे स्टोर में आ गई. माँ ने हल्के गुलाबी रंग की सारी और मॅचिंग ब्लाउस पहन रखा था. हल्के मेक अप में भी माँ का रूप निखरा हुआ था. हम फ़ौरन स्टोर से निकल गये और 15 मिनिट में हम बाइक पर हॉल में पहून्च गये. हॉल बहुत ही शानदार बना था. हॉल के इंटीरियर मन को मोहने वाले थे. पिक्चर शुरू होने के कुच्छ देर पहले हम हॉल में आ गये.

कुच्छ ही देर में हॉल की बत्तियाँ गुल हो गई और कुच्छ अड्स के बाद पिक्चर शुरू हो गई. पिक्चर कुच्छ रोमॅंटिक और बहुत मस्त थी. हीरो हीरोइन की च्छेड़छाड़, मस्त गाने, द्वि अर्थि संवाद, बेडरूम सीन इत्यादि सारा मसाला था. पिक्चर 9 बजे के करीब ख़तम हो गई. कुच्छ देर मल्टिपलेक्स के शॉपिंग सेंटर्स देखे और फिर रेस्टोरेंट में आ गये. माँ की पसंद पुछ्के खाने का ऑर्डर दिया, तबीयत से दोनोने भोजन का आनंद लिया और 10.30 के करीब घर पहून्च गये. हमारी आजकी शुरुआती शाम बहुत ही अच्छी गुज़री. माँ को सब कुच्छ बहुत अच्छा लगा.

घर पहून्च कर माँ बहुत खुश थी. सोफे पर बैठते हुए माँ बोली, "विजय बेटा तुम मेरा कितना ख़याल रखते हो. तुम्हारे साथ पिक्चर देख के, घूम के, होटेल में खाना ख़ाके बहुत अच्छा लगा. यहाँ शहर में लोग अपने हिसाब से जिंदगी जीते हैं. में तो गाँव में लोगों का ही सोचती रहती थी कि लोग क्या सोचेंगे, लोग क्या कहेंगे और अपनी सारी जिंदगी यूँ ही गँवा दी."

माँ की यह बात सुनते ही में बोल पड़ा,"माँ गँवा कहाँ दी अभी तो शुरू हुई है."

माँ पिक्चर की बात छेड़ते हुई बोली,"बताओ इन सिनेमाओं की हेरोइनों के रख-रखाव और अंदाज़ के सामने हम लोगों की क्या जिंदगी है?"

में,"माँ वे हीरोइन तुम्हारे सामने क्या हैं? वो तो पाउडर और क्रीम में पूती हुई रहती हैं. तुम्हारे सामने तो ऐसी हज़ारों हीरोइन पानी भरती हैं."

माँ,"अच्छा तो ऐसा मेरे में क्या देखा है?"

में,"तुमको क्या पता है कि तुम्हारे में क्या है. कहाँ तुम्हारा सब कुच्छ नॅचुरल और उनका सब कुच्छ बनावटी और दिखावटी"

"तूँ आजकल बातें बड़ी प्यारी प्यारी करते हो और आजकल मेरा लाड़ला बहुत शरारती हो गया है. यह सब ऐसी पिक्चर देखने का असर है." माँ ने मेरी और देख हँसके कहा.

में,"माँ तुम्हारी ऐसी मुस्कराहट पर तो में सब कुच्छ कुर्बान कर दूँ."

हम कुच्छ देर इसी तरह बातें करते रहे और फिर माँ उठ खड़ी हुई और अपने रूम की ओर चल दी. में भी अपने रूम में आ गया और बेड पर पड़ा पड़ा काफ़ी देर माँ के बारे में ही सोचता रहा और ना जाने कब नींद आ गई.

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अपडेट-11

इसके दूसरे दिन रात के खाने के बाद में और माँ टीवी के सामने बैठे थे.

में: "माँ, तुम्हें कल अच्छा लगा ना?"

माँ: "हां विजय बेटा अच्छा क्यों नहीं लगेगा जब तुम्हारी उमर के बेटे अपने दोस्तों के साथ पिक्चर जाते हैं, बाहर खाते हैं तब तुम्हे अपनी इस अधेड़ माँ की याद रहती है, माँ के सुख दुख की फिक़र रहती है."

में: "माँ, तुम अपने आप को अधेड़ क्यों कहती हो? अभी तो तुम पूरी जवान हो. कल तुम्हें बताया तो था कि तुम्हारे सामने तो पिक्चर की हीरोइने भी फीकी हैं. फिर तुम्हारा ख़याल नहीं रखूँगा तो और किस का रखूँगा? मुझे पता है वहाँ गाँव में तो तूने अपनी आधी जिंदगी यूँ ही घुट घुट के बिता दी, जब तुम्हारे मौज मस्ती करने के दिन थे तभी पिताजी ने बिस्तर पकड़ लिया और फ़र्ज़ के आगे तुम मान मसोसके रह गई पर अब में यहाँ तुझे दुनिया का हर सुख दूँगा, तुम्हारे हर शौक पुर करूँगा. चलो माँ तुम्हे एक जगह की आइस्क्रीम खिला के लाता हूँ."

माँ: "अब इतनी देर गये."

में: "तो क्या? यहाँ तो इसी समय लोग बाग बाहर निकलते हैं. फिर आज मुन्ना भी नहीं है. मुन्ना रहता है तो गप्प सप्प करने में मज़ा आता है." में और माँ 15 मिनिट में ही थोड़े तैयार होकर ऐसे एक मशहूर आइस्क्रीम पार्लर पर पहून्च गये जहाँ अधिकतर नौजवान अपनी गर्लफ्रेंड्स के साथ आइस्क्रीम का मज़ा लेने आते हैं. में दो आइस्क्रीम कॅंडी ले आया और एक माँ को देदि. फिर हम दोनो एक दूसरे के देखते हुए मस्ती से कॅंडी चूस मज़ा लेने लगे. माँ को मुख गोल बनाके कॅंडी चूस्ते देख मेरी नीचेवली कॅंडी में हलचल होने लगी और में इसी सोच में माँ को लेकर वापस घर आ गया और अपने कमरे में जा बेड पर अकेला पड़ गया कि एक दिन माँ मेरे वाला भी इसी कॅंडी की तरह चूसेगी.

दूसरा दिन सनडे का था. सनडे को में हमेशा देर से उठता हूँ. आज हालाँकि नींद तो रोज वाले समय पर खुल गई फिर भी सनडे की वजह से बिस्तर पर पड़ा था. मेरी माँ हालाँकि आज तक गाँव में ही रही पर वा आधुनिकता की, शहरी सभ्यता की शौकीन ज़रूर है. तभी तो उसे विधवा होते हुए भी बन ठन के रहने में, शृंगार करने में, रोमॅंटिक पिक्चर देखने में, रोमॅंटिक जगहों का सैर सपाटा करने में संकोच नहीं हो रहा था. इन सब में उसे आनंद आ रहा था. यही तो में चाहता हूँ कि उसे आनंद मिले. मुझे पक्का भरोशा है कि मेरे द्वारा यदि उसे आनंद मिलता जाएगा तो एक दिन उसके द्वारा भी मुझे आनंद मिलेगा. पर में खुल के माँ पर यह बिल्कुल प्रगट नहीं कर रहा था कि वास्तव में मेरे मन में क्या है?

आज तैयार होके नाश्ता कम लंच करते करते 11 बज गये. नाश्ता ख़तम कर मेने माँ को बता दिया कि अभी तो मुझे किसी सप्लाइयर के यहाँ सॅंपल देखने जाना है पर में 5-6 बजे तक वापस आ जाउन्गा तब शाम का प्रोग्राम बनाएँगे. जिस सप्लाइयर के पास मुझे जाना था उसके पास ओवरसाइज़ ब्रा, पैंटी और नाइटी का नया स्टॉक आया हुआ था.

में 6.30 के करीब वापस घर आ गया. माँ सोफे पर बैठी कोई सीरियल देख रही थी. मेरे हाथ में सॅंपल गारमेंट्स का एक बड़ा सा पॅकेट था जो मुझे उस सप्लाइयर ने दिया था.

माँ: "ज़रा देखूं तो आज मेरा लाल मेरे लिए क्या नया लेके आया है?" यह कह माँ ने मेरे हाथ से पॅकेट ले लिया और उसे खोलने लगी. उसमें से 2 ऐसी पैंटी निकली जो मुश्किल से चूत भर को ढक सके और उन 2 में से 1 ट्रॅन्स्परेंट भी थी. 2 ही बिना बाँह की तंग और टाइट ब्रा थी. 1 झीनी नाइटी थी और एक ओपन लॅडीस नाइट गाउन था. सारे माँ की साइज़ के थे क्योंकि इस लाइन में काम करने से मुझे एग्ज़ॅक्ट पता था कि माँ को किस साइज़ के फिट बैठेंगे. माँ उलट पलट के देखती रही.

माँ: "तो आज तू अपनी माँ के लिए ये सब लाया है."

में: "अरे माँ ये तो सॅंपल है जो मुझे उस सप्लाइयर ने दिए हैं. यदि तुझे पसंद है तो सारे तुम रख लो."

माँ: "तो क्या शहर की औरतें ऐसे कपड़े पहनती है कि कुच्छ भी ढका ना रहे. मुझे तो इनको देख के ही शरम आ रही है."

में: "माँ ये सब हल्के और बहुत अच्छी क्वालिटी के हैं. इन्हें नीचे पहन के बहुत आराम लगता है और पता ही नहीं चलता कि कुच्छ पहन रखा है. तुम से बड़ी बड़ी उमर की औरते इन्हें लेने के लिए हमारे स्टोर में भीड़ लगाए रखती हैं. फिर तुम किसी से कम थोड़े ही हो. रख लो इन्हें, ऐसे कपड़े पहनने से सोच भी मॉडर्न होती है."

माँ: "हां तुम ठीक कह रहे हो. आजकल तो ऐसी ही चीज़ों का चलन है और मॉडर्न लोगों का ही बोलबाला है. पिक्चरों में, होटेलों में, पार्लूरो में कहीं भी देखो लोग खुल के मौज मस्ती करते हैं, ना किसी की शंका शरम, ना किसी से लेना देना."

में: "हां माँ, शहरी और पढ़े-लिखे लोगों की सोच यह है कि जब मौज मस्ती करने की उमर है, साधन है और शौक है तो खुल के मौज मस्ती करो. एक बार उमर और तबीयत चली गई तो फिर बस किसी तरह जिंदगी गुजारनी रह जाती है. इसीलिए तो तुम्हारा इतना ध्यान रखता हूँ. जो सुख तुझे गाँव में नहीं मिला वह सुख यहाँ तो खुल के भोगो. यहाँ ना तो गाँव का वातावरण है और ना कोई यह देखने वाला कि तुम क्या करती हो और कैसे रहती हो. तुम्हें खाली जिंदगी गुजारनी थोड़े ही है तुम्हे तो इस हसीन जिंदगी का पूरा मज़ा लेना है. तुम्हे यहाँ किस बात की कमी है. गाँव की जायदाद से कम से कम 40 लाख मिल जाएँगे और दो दो जवान बेटे कमाने वाले हैं. चलो माँ अच्छे से तैयार हो जाओ, आज तुझे ऐसी जगह दिखाता हूँ कि तुझे भी पता चले कि लोग जिंदगी का मज़ा कैसे लेते हैं."

मेरी बात सुन माँ अपने कमरे में चली गई. मेने अपनी ओर से दाना डाल दिया था. अब देखना था कि चिड़िया कब जाल में फँसती है. मुझे बिल्कुल जल्दी नहीं थी. में माँ में तड़प पैदा कर देना चाहता था और चाह रहा था कि पहल माँ की तरफ से हो. थोड़ी देर में में भी उठ अपने कमरे में चला गया. मेने शवर लिया, टाइट जीन्स और स्पोर्टिंग पहनी और टीवी के सामने बैठा माँ का इंतज़ार करने लगा. थोड़ी देर में माँ भी तैयार होके निकली. आज उसने बड़ी दिलकश सारी बिना बाँह के ब्लाउस के साथ पहनी हुई थी और उसकी मांसल दूधिया नंगी बाहें बड़ी मस्त लग रही थी. हल्की लिपस्टिक और चेहरे पर हल्का मेकप कर रखा था. वाह! माँ को इस रूप में देख मज़ा आ गया. मेरे जैसे 6'2" के गबरू गतीले शरीर वाले जवान के साथ यह बीवी के रूप में या पटाए हुए माल के रूप में बिल्कुल चल सकती थी.
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अपडेट-12

हमें घर से निकलते निकलते 8 बाज गये. आज में माको ले शहर से तोड़ा बाहर ऐसे पार्क की शायर कराने ले चला जहाँ काफ़ी तादाद में मनचले अपने जोड़ीदार के साथ मौज मस्ती के लिए आते थे. सनडे की वजह से पार्क में और दिनों की अपेक्षा काफ़ी भीड़ थी. अभी 8.30 ही हुए थे सो काफ़ी तादाद में फॅमिली वेल भी अपने बच्चों के साथ थे. मौज मस्ती वेल जोड़े कम थे. वे 9 बजे आने शुरू होते हैं जब फॅमिली वेल वापस जाने लग जाते हैं. पार्क बहुत बड़े एरिया में फैला हुवा था, कई फव्वारे फुल स्पीड में चल रहे थे, तरह तरह की आकृति में कटिंग किए हुए झाड़ जगह जगह थे, पार्क के चारों और करीब 6' चौड़ी पगडंडी थी जिस पर वॉक करने वेल पार्क का रौंद काट रहे थे, बच्चों के लिए एक स्थान पर कई तरह के झूले और स्लिडिंग्स भी बने हुए थे. इसी स्थान के चारों और चाट, पाव-भाजी, कोल्ड ड्रिंक, आइस क्रीम, गोल-गप्पे, खुशबूदार पॅयन के कई स्टॉल थे जिन पर सनडे की वजह से काफ़ी भीड़ थी.

मा: "विजय बेटा, आज तो तुम मुझे स्वर्ग में ले आए हो. बहुत ही अच्छी जगह है." में माको लेके लाइटिंग और म्यूज़िक वेल फव्वारे के पास आ गया. संगीत की धुन और लाइटिंग की चकाचौंध में फव्वारा मानो डॅन्स कर रहा हो. फव्वारे के चारों और युवतियाँ, मा के उमर की औरतें और बूधियाँ भी बहुत ही मॉडर्न, शरीर के उभारों को उजागर करते परिधानों में सजी धजी हंस रही थी, इस दिलकश वातावरण का पूरा मज़ा ले रही थी, अपने पुरुष साथियों के साथ हाथ में हाथ डाले घुल मिल बातें कर रही थी. चारों ओर लिपीसटिक पुते होंठ, फेशियल सा सज़ा चेहरा, बॉब कट तथा खुले केश, जीन्स में कसे नितंब, अधकती चोलियों से झाँकते स्तन की बहार थी. हम कई देर उस फव्वारे का आनंद लेते रहे.

"चलो मा पहले कुच्छ खा पी लेते हैं फिर तुम्हें पूरा पार्क दिखावँगा." मेने मा से कहा. में कुच्छ समय व्यतीत करना चाहता था ताकि पार्क में घूमते समाय मा मनचले जोड़ों की भी मस्ती देखे. जो सेक्स की भूख पिच्छले 15 साल से उस में दबी पड़ी थी वा ऐसे मस्त वातावरण में उजागर हो जाय. में मा को ले खाने पीने के स्टल्लों में आ गया. हुँने आलू टिकिया, दही चाट, गोलगप्पे इत्यादि का मिल के आनंद उठाया. फिर हुँने कोल्ड ड्रिंक की 2 बॉटल्स ली और एक झाड़ के पास बैठ मज़े से पी.

में: "मा तुम यहीं बैठो; में आइस क्रीम यहीं ले आता हूँ. कैसी लओन - कॅंडी या कोन."

मा: "मेरे लिए तो कल जैसी चूसने वाली ही लाना." में मा के लिए 1 कॅंडी और मेरे लिए 1 कोन लेके आ गया. मा कॅंडी को मुख में ले चूसने लगी और में कोन में जीभ डाल डाल आइस क्रीम खाने लगा.
 
में: "मा तुझे आइस क्रीम चूस के खाने में मज़ा आता है पर मुझे तो इस लंबी कोन में जीभ डाल चाट के खाने में मज़ा आता है." मा खिलखिलके हंस पड़ी. "मा यह पार्क बहुत बड़ा है. क्या पार्क का पूरा चक्कर काट के देखोगी?"

मा: "हन, देखो लोग कैसे चक्कर काट रहे हैं. में तो अभी भी ऐसे पार्क के 3 चक्कर काट लून." मा की बात सुन में उठ खड़ा हुवा और मा की तरफ हाथ बढ़ा दिया जिसे पकड़ वा भी खड़ी हो गई. पहले हम मा बेटों ने एक एक खुशबूदार पॅयन खाया और फिर हम भी पगडंडी पर आ गये. 9.30 बाज गये थे. पगडंडी पर नौजवान जोड़े, अधेड़ जोड़े सब थे जो साथ की महिला के हाथ में हाथ डाले, उसके कंधे पर हाथ रखे, उसकी कमर में हाथ डाले या उसे अपने बदन से बिल्कुल सताए दीं दुनिया से बिल्कुल बेख़बर हो चल रहे थे. हम मा बेटे भी जो दुनिया की नज़र में जो भी हों उससे बेख़बर चुपचाप चल रहे थे. चलते चलते हम पार्क के उस भाग में आ पाहूंचे जहाँ अपेक्षाकृत कुच्छ अंधेरा था और काफ़ी तादाद में घने झाड़ थे. हर झाड़ के साए में एक जोड़ा बैठा हुवा था, पगडंडी से विपरीत दिशा में मुख किए एक दूसरे को बाँहों में समेटे गड्डमड्ड हो रहे थे, पुरुष महिलाओं की जांघों पर लेते हुए थे, कुच्छेक पुरुष तो महिलाओं को चेहरे पर झुके हुए किस कर रहे थे. चारों तरफ बहुत ही रंगीन और वासनात्मक नज़ारा था. मा कनखियों से जोड़ों की हरकतें देख रही थी और मेरे साथ चुपचाप चल रही थी.

ऐसे वातावरण में मेरी हालत खराब होना लाज़िमी थी खाष्कर जब मेरी जवान मस्त मा मेरे साथ थी जिसे में अपना बनाना चाह रहा था. पर मेने अपने आप पर पूरा काबू कर रखा था और अपनी ओर से कोई जल्दबाज़ी या पहल करना नहीं चाहता था. में मा की सेक्स की भूख को पूरा जगा देना चाहता था और उस में तड़प पैदा करना चाह रहा था. एक चक्कर काट के ही हम पार्क से बहार आ गये. 10.30 पर हम घर पाहूंछ गये और में अपने रूम में बातरूम में घुस गया. बातरूम से फ्रेश होके निकला तो देखा की मा का रूम बंद था और में भी मा के साथ फॅंटेसी में काम क्रीड़ा करते करते सो गया.

दूसरे दिन मंडे की वजह से मुझे स्टोर से वापस आने में ही रात के 9 बाज गये. खाना ख़तम करके टीवी के सामने बैठते बैठते 10 बाज गये. में थोड़ी देर न्यूज़ चॅनेल्स देखता रहा. फिर मेने मासे बात च्छेदी, "क्यों मा, यहाँ चंडीगार्ह की शहरी जिंदगी पसंद आ रही है ना? बोल गाँव से अच्छी है या नहीं?"

मा: "मुझे एक बात यहाँ की बहुत अच्छी लगी की लोग एक दूसरे से मतलब नहीं रखते की कौन क्या पहन रहा है, कैसे रह रहा है. वहाँ गाँव में तो कोई अच्छा पहन ले तो लोग बात बनाने लग जाते हैं."
 
में: "मा, अब यहाँ तुम कैसे एंजाय करती हो यह कोई देखने वाला नहीं या तुम्हारे बारे में सोचने वाला नहीं. में तुम्हें हर वा सुख दूँगा जो आज तक तुझे गाँव में पति की इतनी सेवा करके भी नहीं मिला. अब से मेरा केवल एक ही उद्देश्या है की तुझे दुनिया का हर वह सुख डून जो तुम जैसी सुंदर और जवान नारी को मिले." में धीरे धीरे पासा फेंक रहा था.

मा,"जब उमर थी तो ये सब मिले नहीं."

में: " मा तुम्हें देखकर कोई भी तुम्हें 35 से ज़्यादा की नहीं बताएगा. फिर मान की तो तुम इतनी जवान हो की कुँवारी लड़कियों को भी मॅट देती हो. पिच्छले 15 साल से बीमार पिताजी की सेवा करते करते तुम्हारी सोच कुच्छ ऐसी हो गई है. लेकिन अब तुम यहाँ आ गई हो और अपने वे सारे शौक और दबी हुई इच्छाएँ पूरी करो. यहाँ मेरी जान पहचान का एक बहुत ही अच्छा बेउटी पार्लर है. कल स्टोर जाते समय में तुझे वहाँ छ्चोड़ दूँगा. तुम वहाँ फेशियल, आइब्रो, बालों की सेट्टिंग सब ठीक से करवा लेना."

मा,"में जानती हूँ की तुम मुझे बहुत खुश देखना चाहते हो और में यहाँ सचमुच में बहुत खुश हूँ. पर ये सब करके मुझे किसे दिखाना है?"

में: "अरे मा ये किसी को दिखाने की बात नहीं है बल्कि खुद का सॅटिस्फॅक्षन होता है. देखना तुम्हें खुद पर नाज़ होगा. फिर में मुन्ना को सर्प्राइज़ देना चाहता हूँ. वा जब गाँव से वापस आएगा तो तुम्हे देखता ही रह जाएगा और सोचेगा की हमारे घर में यह स्वर्ग की अप्सरा कहाँ से आ गई?'

मा: "मेरे ऐसे शहरी रूप को तो मेरा शहरी नटखट बड़ा बेटा ही देखना चाहता है. अजय तो भोलाभाला और सीधा साधा है उसे तो सीधी साधी ही मा चाहिए."

में: "मा, मुन्ना अब पहलेवला मुन्ना नहीं रहा. कुच्छ ही दिनों में यहाँ रह के पूरा चालू हो गया है. स्टोर में भी उसने अपना काम इतनी अच्छी तरह से संभाल लिया है की सब उसकी प्रशंसा करते हैं."

मा: "तुम्हारे साथ रह के तो आजे चालू नहीं बनेगा तो और क्या बनेगा. कुच्छ ही दिनों में उसे भी अपने जैसा बना लेगा."

में: "मा, अजय भी तुम्हारी तरह पूरा शौकीन है. वा तो च्छूपा रुस्तम निकला पर मुझे पता चल गया और एक बार मेरे से खुल गया तो बहुत जल्दी पूरा खुल गया. मेरा भाई वैसे ही मक्खन सा चिकना है, अब देखो कैसे स्मार्ट बन के रहता है और टाइट स्मार्ट कपड़ों में कैसा मस्त लगता है. तुम तो वैसे ही इतनी स्मार्ट हो और तोडसा भी रख रखाव रखोगी तो पूरी निखार जाओगी."

मा: "पर एक विधवा का ज़्यादा बन तन के रहना.... भला आस पास के लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे और क्या सोचेंगे?"

में: "मा ये सब गाँव की बातें हैं. यहाँ शहर में इन बातों की कोई परवाह नहीं करता. मुझे ऐसे लोगों की कोई परवाह नहीं. जिस भी चीज़ से या काम से तुझे खुशी दे सकूँ उसे करने में ना तो मुझे कोई संकोच है और ना ही किसी की परवाह. यह विधवा वाली सोच मान से बिल्कुल निकाल दो. कौन कहता है की तुम विधवा हो? तुम तो मॅन्ज़ एकदम सधवा हो. अब तुम बिल्कुल एक सुहागन की तरह बन तन के रहा करो."

मा: "तो अब तुम मुझे विधवा से वापस सुहागन बनाएगा."

हम मा बेटे इस प्रकार कई देर बातें करते रहे. फिर रोज की तरह मा अपने कमरे में सोने के लिए चली गई. में बिस्तर पर कई देर पड़े पड़े सोचता रहा की मा मेरी कोई भी बात का तोड़ा सा भी विरोध नहीं करती है. पर में मा को पूरी तरह खोल लेना चाहता था की मा की मस्त जवानी का खुल के मज़ा लिया जाय. मा आधुनिक विचारों की, घूमने फिरने की, पहनने ओढ़ने की तथा मौज मस्ती की शौकीन थी. इसलिए में कोई भी हड़बड़ी नहीं करना चाहता था. में इंतज़ार कर रहा था की जल्द ही यह फूल खुद बा खुद टूट के मेरी गोद में गिरे. उसे विधवा से सुहागन बनाओन और उसका सुहाग में खुद बनूँ.
 
अपडेट-13

दूसरे दिन स्टोर जाते समय में मा को बेऔती पार्लर पर ले गया. पार्लर की मा की उमर की अधेड़ मालकिन मेरे स्टोर की पर्मनेंट ग्राहक थी सो मेरा उससे बहुत अच्छा परिचय था. मा की उमर की होने के बावजूद उसका फिगर, रहण सहन और बनाव शृंगार बिल्कुल युवतियों जैसा था. उसकी टाइट जीन्स, स्लॉगान लिखा टॉप, बॉब कट बाल, फेशियल से पुता फेस सब मुझे बहुत अच्छा लगता था. इस पार्लर में अधिकतर अधेड़ महिलाएँ ही आती थी जिनकी चाह उस मालकिन जैसी बनने की रहती थी. मेने उस पार्लर की मालकिन से हाय हेल्लोव की, मा का उसे परिचय दिया और मा को वहीं छ्चोड़ में अपने स्टोर में चला गया.

रात जब 8 बजे के करीब घर पाहूंचा तो मा ने ही दरवाजा खोला. मा का चेहरा बिल्कुल चमक दमक रहा था. फेशियल, आइब्रो, बालों की कटिंग सब कुच्छ बहुत सलीके से की गयी थी. में कई देर मा को एक तक देखते रह गया और मा लज्जशील नारी की तरह मंद मंद मुस्कराते हुए शर्मा रही थी.

में: "वाह! आज तो बदले बदले सरकार नज़र आ रहे हैं. मा तुम्हें तो उस बेऔती पार्लर वाली म्र्स. केपर ने एकदम अपने जैसी नौजवान युवती सा बना दिया है. जानती हो वा भी तुम्हारी उमर की एक विधवा है पर क्या अपने आप को मेनटेन रखती है की बस मेरे जैसे नौजवान भी उसे देख आहें भरे."

मा: "तो उन आहें भर्नेवालों में एक तुम भी हो. चलो हाथ मुँह धो रेडी हो जाओ में खाना परौसती हूँ." फिर में थोड़ी ही देर में मा के साथ डाइनिंग टेबल पर था. रोज की तरह हम मा बेटों ने साथ साथ खाना खाया. में खाना ख़ाके आज अपने रूम में आ गया और बेड पर लेट गया. थोड़ी देर में मा भी मेरे रूम में आ गई. मुझे लेता देख उसने पूचछा,

"अरे विजय बेटा आज खाना खाते ही लेट गये. क्या बात है, तबीयत तो ठीक है ना? कहीं उस बेऔती पार्लर वाली की याद तो नहीं आ रही?"

में: "नहीं मा जब से तुम यहाँ आ गई हो मुझे और किसी की याद नहीं आती. मेरे लिए तो तुम ही सब कुच्छ हो."

मा,"तुम आजकल बातें बड़ी प्यारी प्यारी करते हो. कहीं कोई लड़की तो नहीं पटाने लगे?"
 
में,"मा तुम तो जानती हो की लड़की वादकी में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं."

"लेकिन मेरा तो आजकल तुम बहुत ही ध्यान रख रहे हो." यह कह मा भी मेरे पास मेरे बेड पर बैठ गई और में भी बेड पर टाँगें पसार बैठ गया.

में,"पर मा तुम कोई लड़की थोड़े ही हो." ऐसा कह कर मेने डबल बेड पर बैठी हुई मा को अपने आगोश में भर लिया और कहा,"और अगर तुम लड़की होती तो ज़रूर पाटाता और यदि नहीं पट्टी तो ज़बरदस्ती भगा के ले जाता."

"पर में तो कोई लड़की नहीं. में तो 46 साल की एक ढलती उमर की पूरी औरत हूँ. मुझे भगा के तू क्या करेगा?" मा ने मेरी आगोश में ही मेरे सीने पर सर टिकाते हुए कहा. मा मेरी और देख कर हंस रही थी. मेने मा को आगोश से मुक्त कर दिया और उसके घने बालों पर हाथ फेरने लगा.

में,"मा मुझे तो शुरू से ही तुम्हारे जैसी बड़ी उमर की औरतें ही अच्छी लगती है. स्टोर में एक से एक नौजवान लड़कियाँ मेरे पर मारती है, पर में उनकी तरफ देखता तक नहीं."

मा: "तो क्या मेरे जैसी किसी से शादी करेगा? मेरा इतना सजीला नौजवान बेटा है, ऐसे गतीले मर्द को तो एक से एक सुंदर और मॉडर्न लड़की मिल जाएगी. कहीं कोई चक्कर वाककर चल रहा है तो बता, उसे कल ही तेरी बाहू बना ले आती हूँ."

में: "नहीं मा, ऐसा सोचना भी मत. अभी तो तुम जैसी मान मिलने वाली मा के रूप में मुझे दोस्त मिली है. अभी तो मेरा पूरा ध्यान इसी बात पर है की तुझे हर प्रकार का सुख डून, तेरी जी भर के सेवा करूँ. मुझे तेरे ही साथ सिनिमा जाने में , होटेलों में खाने में, पार्कों की शायर करने में मज़ा आता है. फिर अजय जैसा प्यारा भाई मिला है की अपने बड़े भैया की खुशी के लिए कुच्छ भी करने को हरदम तैयार रहता है. इतने दिन तो में शहर में अकेला था, अब इतनी प्यारी मा और भाई का साथ मिला है तो तू कह रही है की कोई मॉडर्न लड़की को तेरी बाहू बना के ले अओन. जानती हो ऐसी लड़की आते ही सबसे पहले तेरी और अजय की यहाँ से च्छुतटी करेगी. जो घर प्यार का स्वर्ग बना हुवा है उसे नरक बना देगी. मुझे तो तेरे जैसी कोई चाहिए जिसने पति की सेवा में, घर को जोड़े रखने में अपने सारे सुख चैन छ्चोड़ दिए."

मा: "तो क्या म्र्स. केपर चाहिए? उसकी तो बड़ी प्रशंसा कर रहे थे. लगता है उसके तो पुर दीवाने हो. तेरे जैसे गबरू गतीले जवान को पाके तो वा निहाल हो जाएगी. यदि उसे दुबारा शादी नहीं भी करनी है तो तेरे जैसे मस्त जवान की बात आते ही वा शादी के लिए मचल जाएगी. तू कहे तो बात चला के देखूं."
 
"तूने भी कहाँ से ये शादी वाली बात च्छेद दी. मुझे कोई केपर वपूर नहीं चाहिए. अभी तो मुझे मेरी प्यारी प्यारी मा चाहिए जिसके सामने म्र्स. केपर तो एक लौंडिया जैसी है. तो मा मेरे जैसे को देख वा म्र्स. केपर शादी के लिए तैयार हो जाएगी तो फिर तुम्हें भी मेरे जैसा कोई मिल गया तो फ़ौरन पाट जाओगी." यह कह मेने माको वापस अपने आगोश में भर लिया.

"मिलेगा तब सोचूँगी." माने शरारती हँसी के साथ कहा. माकी इस बात पर मेने उसकी ठुड्डी उपर उठाई और उसकी आँखों में झाँकते कहा,

"जी तो करता है की तेरी इस बात पर एक प्यारी सी पप्पी ले लून."

"तू मुझे इतना प्यार करता है और इतनी छ्होटी सी बात पुच्छ रहा है. लेनी है तो लेले पूच्छ क्या रहा है." यह कह मा मेरी आँखों में देखते हुए हँसने लगी. मेने मा का फूला फूला गाल गप्प से अपने मुख में भर लिया और कस के एक प्यारी सी पप्पी लेली.

मा: "चलो तुझे अपनी माकी पप्पी मिल गई ना, अब खुश हो ना."

में: "मा सबके मान की बात बिना कहे ही जान लेती है और माँगते ही मुराद पूरी कर दी. जो मज़ा माकी गोद में है वा भला दूसरी की गोद में कहाँ. मा तेरी हर बात पे, तेरी हर अदा पे में हमैइषा खुश हूँ."

मा: "मेरा बेटा आजकल पुर आशिक़ों जैसी बातें करता है. कोई बात नहीं इस उमर में हर कोई ऐसी बातें करता है." मा ने कहा. मा उठ खड़ी हुई और बगल में सटे अपने रूम की और चल डी. में भी फ्रेश होकर जिस बेड पर अभी मा के साथ यह सब चल रहा था उसी बेड पर पद गया. बेड पर पड़ा पड़ा कई देर मा के बारे में ही सोचता रहा और ना जाने कब नींद आ गई.
 
अपडेट-14

इसके दूसरे दिन मेने मा को शाम 5 बजे ही स्टोर से फोन कर बता दिया की मेने ईव्निंग शो की 2 टिकेट्स बुक करली है और वा 6 बजे तक तैयार होके स्टोर में ही आ जाय. मा 6 बजे स्टोर में पाहूंछ गई. आज हमने पुरानी पिक्चर 'खूबसूरत' देखी. मा को यह साफ सुथरी पिक्चर बहुत ही अच्छी लगी. आज भी हमने बाहर ही रेस्टोरेंट में खाना खाया और 10.30 बजे घर पाहूंछ गये.

आज कुच्छ गर्मी थी सो घर पाहूंछ कर मा नहाने के लिए बातरूम में चली गई. में भी अपने रूम में चला गया और शवर लेके नाइट ड्रेस चेंज कर ली. में अपने बेड पर पसार गया और एक मॅगज़ीन को पलटने लगा. में मॅगज़ीन में खोया हुवा था की मा की आवाज़ से की 'क्या चल रहा है' से मेरा ध्यान मा की तरफ गया. एक बार ध्यान गया की में मा की तरफ देखते ही रह गया. मा बहुत ही आकर्षक निघट्य में थी. मा को निघट्य में मेने पहली बार देख रहा था. निघट्य में मेरी मद मस्त मा 35 साल की भारी पूरी बिल्कुल आधुनिक शहरी महिला लग रही थी.

"क्या घूर घूर के देख रहा है? जब बेटा मुझे इस रूप में देखना चाहता है, मेरी छ्होटी सी छ्होटी खुशी के लिए मारा जाता है तो में क्या मेरे प्यारे बेटे की इतनी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकती. अब देखो ठीक से तुम्हारे लिए में पूरी शहरी बन गई." मा ने कहा और मेरे पास बेड पर बैठ गई.

में: "मा सच सच बताना, तुमको भी ये सब अच्छा लग रहा है ना."

मा: "अच्छा क्यों नहीं लगेगा. तुम्ही तो कहते रहते हो की अभी तो में पूरी जवान हूँ और तेरे जैसा जवान तो यह बात किसी बुधिया को भी कह दे तो उस में जवानी आ जाय. पर आज तूने जो पिक्चर दिखाई, देख के मज़ा आ गया."

में: "मज़ा आ गया ना? देखा, अशोक कुमार जैसा बुद्धा रेखा जैसी जवान लड़की को कैसे अपनी गर्ल फ्रेंड बनाता है. मा तुम भी मेरी गर्ल फ्रेंड बन जाओ."

मा: "तुम मेरा बॉय फ्रेंड बन जाओ तो में अपने आप तुम्हारी गर्ल फ्रेंड हो गई."
 
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