Rishton mai Chudai - दो सगे मादरचोद - Page 3 - SexBaba
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Rishton mai Chudai - दो सगे मादरचोद

"यह हुई ना बात. अब मज़ा आएगा." यह कह के मेने मा को अपनी बाँहों में जाकड़ लिया और उसके गाल को चूस्टे हुए पप्पी लेली.

मा: "लो हामी भरने की देर थी और तुम शुरू हो गये. में तो बस उस रेखा जैसी ही तुम्हारी गर्ल फ्रेंड बनूँगी."

में: "पर मा सोचो कहाँ उसका अशोक कुमार जैसा 70 साल का बुद्धा बॉय फ्रेंड और कहाँ तुम्हारा 28 साल का गबरू जवान मस्त बॉय फ्रेंड. उसके निर्मल आनंद लेने में और मेरे निर्मल आनंद लेने में कुच्छ तो फ़र्क़ होगा ना? पर असली बात है निर्मल आनंद लेना. ऐसा स्वच्छ और निसंकोच आनंद जो दोनो को बराबर मिले." मेरी बात सुन मा मंद मंद मुस्करा रही थी और में माके मुस्कराते होंठों पर अंगुल फेरने लगा.

मा: "पिक्चर की यह निर्मल आनंद वाली बात तूने अच्छी पकड़ी. तो अब मा को अपनी गर्ल फ्रेंड बना के तू उससे निर्मल आनंद लेगा. पर ध्यान रखना में पिक्चर जैसे निर्मल आनंद की बात कर रही हूँ."

"अब तो तुम मेरी गर्ल फ्रेंड बन गई हो तो कल चलें उस पार्क की शायर करने जहाँ लोग अपनी गर्ल फ्र्िएंडों के साथ निर्मल आनंद लेते हैं." मेने मा की आँखों में देखते शरारत भरे अंदाज़ में कहा.

मा: "ना बाबा नहीं लेना मुझे ऐसा निर्मल आनंद. बेशरम लोग कहीं के. छिपचिपी ही करनी है तो घर में जा कर करे, वहाँ पार्क में सब के सामने. तुम मुझे मॉडर्न बनाने के चक्कर में धीरे धीरे पिच्चे ला रहे हो. पहले तो विधवा से मुझे वापस सुहागन साबित कर दिया. अब सुहागन से गर्ल यानी की कंवारी लड़की बना दिया. आयेज जहाँ से आई वहीं वापस मत भेज देना."

"अरे मा नहीं. तुम चाहोगी तो अब हम यहाँ से वापस आगे की ओर बढ़ने लगेंगे. विधवा से वापस सुहागन बनने में सोच नेगेटिव रहती है जबकि कुँवारी लड़की जब सुहागन बनती है तो उसकी सोच पॉज़िटिव होती है." मेने मा को इशारों इशारों में संकेत दे दिया की में तुम्हें अपनी सुहागन बनाना चाहता हूँ.

मा: "तो इसका मतलब की अब गर्ल फ्रेंड का किस्सा ख़तम और वापस सुहागन मा चाहिए तुम्हें."
 
"हन, अब से तुम बिल्कुल एक सुहागन की तरह साज धज के रहो, शृंगार करो, मान से सारी नेगेटिव बातें निकाल दो और एक गर्ल की तरह बेबाक निसफ़िक़ार जिंदगी जियो और निर्मल आनंद लो." यह कह कर मेने मा के गाल का चुम्मा ले लिए. मा मेरी और देख कर हंस रही थी. में मा के हंसते होंठ पर एक उंगली रख कर अपने होंठ पर अपनी जीभ फिराने लगा. मेने अपनी ओर से इशारा दे दिया की में तुम्हारे होंठों का रस पॅयन करना चाहता हूँ.

"तर्क करना तो कोई तुमसे सीखे. पर तुम्हारी बातें है बहुत गहरी. हम उचित-अनुचित, भले-बूरे, पाप-पुण्या इन दुनिया भर के लफडों में उलझे पड़े रहते हैं, और जो मान चाहे वा कर नहीं पाते और सोचते ही रह जाते हैं की दूसरे क्या सोचेंगे. किसी को भी कष्ट पाहूंचाए बिना जिस भी काम में मान को शांति मिले, आत्मा प्रसन्न हो वही निर्मल आनंद है." मा ने एक दार्शनिक की भाँति कहा.

में: "हन मा, यही तो में तुम्हें कहता रहता हूँ. तुम्हारी और मेरी सोच कितनी मिलती है. जो में सोचता हूँ ठीक तुम भी वही सोचती हो. तभी तो तुमसे मेरा इतना मान मिलता है. जब से तुम यहाँ आई हो मुझे सिर्फ़ तुम्हारी कंपनी में ही मज़ा आता है. तभी तो स्टोर से सीधा तेरे पास आ जाता हूँ. घर से बाहर भी जितना मज़ा मुझे तुम्हारे साथ आ रहा है उतना आज तक नहीं आया."

हम मा बेटे इस प्रकार कई देर बातें करते रहे. फिर रोज की तरह मा अपने कमरे में सोने के लिए चली गई. में बिस्तर पर कई देर पड़े पड़े सोचता रहा की मा मेरी कोई भी चीज़ का तोड़ा सा भी विरोध नहीं करती है. पर में मा को पूरी तरह खोल लेना चाहता था की मा की मस्त जवानी का खुल के मज़ा लिया जाय. मा आधुनिक विचारों की, घूमने फिरने की, पहनने ओढ़ने की तथा मौज मस्ती की शौकीन थी.
 
अपडेट-15

दूसरे दिन में रोज वेल समय पर घर आ गया. आज कहीं भी बाहर जाने का प्रोग्राम नहीं बनाया क्योंकि आज में मा बेटे के बीच की दीवार गिरा देना चाहता था. खाने का काम समाप्त होने पर मा बातरूम में नहाने चली गई और में कई देर सोफे पर बैठा सोचने लगा की आज मा का कौनसा रूप देखने को मिलेगा. कल मा मुझसे बहुत खुल के पेश आई थी, तो क्या जितना आतुर में हूँ उतनी ही आतुर मा भी है. फिर में भी अपने कमरे में जा बातरूम में घुस गया. अच्छे से शवर लिया और बहुत ही मादक हल्की सी क्रीम अपने बदन पर लगा ली. में तैयार होकर बेड पर बैठा फिर माके बारे में सोचने लगा. में आँखें मूंडे माकी सोच में डूबा हुवा था की माकी इस आवाज़ से मेरी तंद्रा टूटी,

"लगता है बड़ी बेसब्री से इंतज़ार हो रहा है." मेने आँखें खोली और जैसे ही माकी तरफ देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गई. माने शादी का जोड़ा पहन रखा था जो शायद उसने अब तक संभाल रखा था. माने सच्ची जारी का लाल घाघरा कमर में काफ़ी नीचे बँधा हुवा था और उसीका मॅचिंग ब्लाउस पहन रखा था. इन सबके उपर उसने हल्के लाल रंग की झीनी चुनर ओढ़ रखी थी जिसे घूँघट के जैसे सर पे ले रखा था. माथे पर लाल बिंदिया भी लगा रखी थी. गले में हार, हातों में कंगन; कहने का मतलब मा पूरी एक नाव व्यहता दुल्हन के रूप में थी. में आश्चर्यचकित हो माके इस अनोखे रूप को निहारे जा रहा था.

मा: "ऐसे क्या देख रहा है? क्या कभी कोई दुल्हन देखी नहीं? वैसे तो बहुत बोलता रहता है की में एक सुहागन के रूप में रहूं, साजून धाजून, शृंगार करूँ और जब तेरी इच्छा का मान रखते हुए इस रूप में आ गई तो तेरी सारी बोलती बंद हो गई."

मा की बात सुन में माके सामने खड़ा हो गया और मा को ज़ोर से बाँहों में भर लिया. फिर में माको साथ ले बेड पर बैठ गया और मेरी बाँहों में मा की पीठ अपने सीने पर कस ली. मुझे पक्का विश्वास हो गया की मेरी मा सजधज के अपने बेटे से चूड़ने के लिए आई है लेकिन यह करने की मुझे जल्दी नहीं थी. यह करने से पहले में उसे बिल्कुल खोल लेना चाहता था और पूरी बेशर्म बना देना चाहता था. मेने कहा,"लो मा कल मेने कहा और आज तुम मेरी सुहागन बन के आ गई."

"तेरी सुहागन. क्या मतलब?" मा ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा.
 
"मेरा मतलब इस रूप में तुम ओर तो किसी के सामने जाने से रही तो केवल मेरी ओर एक्सक्लूसिव्ली मेरी सुहागन हुई की नहीं. बड़ी बात यह है की इस प्रकार सुहागन की तरह रहने से तुम्हारे मान में विधवा वाली नेगेटिव भावना नहीं रहेगी ओर जीवन की हर वह खुशी, मौज मस्ती जो तुम पिच्छले 15 साल से नहीं ले सकी अब यहाँ बहुत ही एंजाय करते करते ले सकोगी. जितनी सोच सकारात्मक और खुली हुई होगी जिंदगी जीने का मज़ा भी उतना ही आता है." मेने मा को इशारों इशारों में कह दिया की अब सारी लाज शर्म छ्चोड़ दो और अपने सगे बेटे के साथ खुल के रंगरेलियाँ मनाओ.

"यहाँ आने के बाद तुमने तो मेरी पूरी सोच ही बदल दी. गाँव के उस माहॉल में में कई बार सोचती थी की कभी मेरे जीवन में भी ऐशो आराम लिखा है या नहीं." मा ने मेरे सीने में मुँह च्छूपाते हुए कहा.

"मा गाँव का वा महॉल अब बहुत पिच्चे च्छुत गया. अब में तुम्हारे जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ भर दूँगा. सबसे बड़ी बात यह है की तुम ऐश करने की, रंगीन जिंदगी जीने की रंगीन और शौकीन तबीयत की औरत हो वहीं में शुरू से ही बहुत खुले विचारों का हूँ. वैसे में हर किसी के साथ कम खुलता हूँ पर जिससे एक बार खुल जाता हूँ उसके साथ अपना सब कुच्छ खुल के बाँटता हूँ." अब मेने इस उन्मुक्त बहती गंगा में डुबकी लगाने का फ़ैसला कर लिया. मेने एक हाथ से मा की ठुड्डी उपर उताली और दूसरे हाथ की उंगली मा के होंठों पर फेरने लगा और साथ ही अपनी जीभ अपने होंठों पर फेरने लगा.

मा ने मेरी ओर देखते हुए मुस्करा कर आँखें बंद कर ली और मेने अपना मुख नीचे करते हुए मा के यौवन से भरे मदभरे गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रख दिए. मेने मा के होंठ अपने होंठ में जाकड़ लिए और मस्त होके अपनी मस्त जवान मम्मी के होंठों का रस पॅयन करने लगा. रस पॅयन करते करते एक हाथ मा के दाएँ पुस्त स्तन पर रख दिया ओर उसे हल्के हल्के दबाने लगा.

"मम्मी अब तुम मेरी सुहागन हो. सुहागन का मतलब जिसका सुहाग हो ओर अब बताओ तुम्हारा सुहाग कौन हुवा?" मेने मम्मी की चूची कस के दबाते हुए कहा.

"तुम हुए और कौन हुवा और सुहाग होने का पूरा अधिकार जमा तो रहे हो. मान तो सदा से ही तुमको दिया हुवा था. धन की कोई बात ही नहीं; जो मेरा था वा सदा ही तुम्हारा था. जो टन बचा था उसके भी मुझे अपनी सुहागन बना के अधिकारी बन गये. इतने से मान नहीं भरा तो और कुच्छ भी चाहिए क्या?" मा ने शरारत भरे अंदाज़ में कहा.
 
"अभी तो शुरुआत हुई है. देखती जाओ आज में तुझे कैसा निर्मल आनंद देता हूँ. मुझे पता है की पिच्छले 15 साल से तुम तड़प रही थी. तुम्हारी जवानी और तम्मनाएँ सोई पड़ी थी लेकिन अब वे पूरी तरह सा जाग गई है. तुम्हारी जवानी का कुँवा जो सुख चुका था वापस लबालब भर गया है. अब उस जवानी के कुनवे से में मेरी प्यास खुल के बुझावँगा. समझ रही हो ना में किस कुनवे की बात कर रहा हूँ." अब में तो बेशर्मी पर उतार गया पर देखना चाहता था की मा इस बेशर्मी में कहाँ तक साथ निभाती है.

"सब समझती हूँ. तुम मेरी दोनों टाँगों के बीचमें उभरे हुए टिल्ले के बीचों बीच खुदे कुनवे की बात कर रहे हो. लेकिन ध्यान रखना उस कुनवे के चारों ओर फिसलंभारी खाई भी है और आजकल वहाँ झाड़ झंझाड़ भी बहुत उगा हुवा है कहीं उलझ कर कुनवे में मत गिर जाना. दूसरी बात कुँवा बहुत गहरा है, पानी तक पाहूंचना आसान नहीं." मा की यह बात सुन कर एक बार तो में हकबका गया की यह तो शेर पर पूरी सवा शेर निकली. पर मान ही मान बहुत खुश था. मेने सोचा भी नहीं था की सब कुच्छ इतनी जल्दी इतने मान चाहे ढंग से हो जाएगा. में आनंद के सातवें आसमान पर था.

"ऐसे कुनवे का पानी तो में ज़रूर पीऊंगा. चिंता मत करो मेरे पास लूंबा मोटा और मजबूत रस्सा है और बड़ा सा टॉप भी है, तेरे कुनवे का सारा पानी खींच लेगा. ठीक से समझ रही होना." मेने कहा.

"तुम मेरी दोनों टाँगों के बीच वेल कुनवे में अपनीी दोनों टाँगों के बीच में लटके मोटे और लंबे रस्से के आयेज अंडे जैसा टॉप बाँधके उतारोगे और मेरे कुनवे को उस टॉप से ठीक से झकझोरके मेरे कुनवे के रसीले पानी से अपनी प्यास बुझाओगे." मा ने नहले पर दहला मारा.

"हाय मेरी राधा रानी उसे डंडा नहीं लंड बोलो. पूरा 11 इंच लूंबा और 4 इंच मोटा है. एकदम सिंगपूरी केले जैसा. एक बार देखोगी तो मस्त हो जाओगी." यह कह कर मेने मा के होंठों को वापस मुख में ले लिया और मा के मुँह में अपनी लुंबी ज़ुबान डाल दी. यह चुंबन काफ़ी लूंबा चला.

"जिसका 4-5 इंच का होता है उसे नूनी बोलते हैं, जिसका 6-7 इंच का होता है उसे लंड बोलते हैं पर तुम्हारा तो 11 इंच बड़ा है; उसे लंड नहीं हुल्लाबी लॉडा बोलते हैं. में अब उसे झेल पवँगी भी या नहीं. 15 साल से अधिक हो गये मेरी छूट में एक तिनका भी नहीं गया है. मेरी छूट एक दम सांकड़ी हो गई है. मेरे राजा मुझे छोड़ोगे तो कुँवारी लड़की जैसा मज़ा मिलेगा." मा पूरी बेशर्मी के साथ हंस के बोली. अब मेने मा के दोनो पुष्ट चूचे ब्लाउस के उपर से ही अपने दोनों हाथों में समा लिए और उनका कस के मर्दन करने लगा.
 
अपडेट-16

मुझे माँ के साथ पूरा बेशरम हो कर इस प्रकार खुली बातें करने में बहुत मज़ा आ रहा था और उससे भी बढ़कर इस बेतकल्लूफ़ी और बेशर्मी में माँ मुझसे भी बढ़ कर साबित हो रही थी. मुझे पूरा भरोसा हो गया की में माँ के साथ नये वासनात्मक खेल खुल के खेल सकूँगा.

"जैसा मेरा लंबा तगड़ा शरीर है और लॉडा है, उसे झेलना हल्की फुल्की लड़की के बस की बात नहीं है. इसलिए मेरी लड़कियों में ज़्यादा दिलचस्पी भी नहीं है. मुझे तो मेरे जैसी ही लंबी, तगड़ी, मस्त और बेबाक खेली खाई हुई औरत चाहिए. माँ तुम ठीक मेरा ही प्रतिबिंब हो. बिल्कुल मेरे जैसी गठीली, मज़े लेने की शौकीन, खुल के बात करने वाली हो. किसी नई लड़की को चोद दूं तो लेने के देने पड़ जाएँगे; साली की एक बार में ही फॅट के भोसड़ा बन जाएगी. मुझे तो ठीक तुम जैसी ही औरत चाहिए थी." मेने भी मज़े लेते हुए कहा.

"तो तुम मेरी 15 साल से बचा के रखी बिना चूत का भोसड़ा बना देगा. ना बाबा मुझे तुमसे नहीं चुदवाना." माँ ने इठलाते हुए कहा.

"अरे मम्मी जैसा तुम्हारा लंबा चोडा शरीर है उसी अनुपात में तुम्हारी चूत भी तो बड़ी सारी होगी; बल्कि चूत नहीं माल्पूवे सा फुद्दा है फुद्दा. फिर तुम तो मेरी जान हो. तुम्हारी चूत को में बहुत प्यार से लूँगा. चिंता मत करो मेरी राधा डार्लिंग, खूब प्यार से तुम्हें मज़े ले ले के धीरे धीरे चोदुन्गा." मेने माँ की जवानी के चटकारे लेते हुए कहा.

"हाय; ऐसी खुली खुली बातें मेने आज से पहले ना तो कभी सुनी और ना ही कभी कही. तुम्हारी सुहागन बन के मुझे तो मेरे मन की मुराद मिल गई. ऐसी बातें करने में तो काम से भी ज़्यादा मज़ा आता है. ऐसी ही खुली खुली बातें करते हुए मेरी इस तड़पति जवानी को खुल के भोगो मेरे राजा." माँ ने कहा.

"में जानता था कि तुम्हें असली खुशी में तुम्हारा सुहाग यानी की तुम्हारा पति, सैंया, साजन, बालम बन के ही दे सकता था. अब लोगों के सामने तो हम माँ बेटे रहेंगे और रात में खुल के रंगरेलियाँ मनाएँगे. जवानी के नये नये खेल खेलेंगे. क्यों मेरी रानी तैयार हो ना मेरे से खुल के मज़े लेने के लिए. कहीं कोई डर तो मन में नहीं है ना." मेने खुला आमंत्रण दिया.

माँ: "नहीं मेरे राजा मुझे ना तो कोई डर है और ना ही कोई शंका. में तुझसे मस्त होके चुदने के लिए पूरी तैयार हूँ. मेरी चूत गीली होती जा रही है. वह तुम्हारे लंड को तरस रही है."

में बेड पर से खड़ा हो गया और माँ को भी हाथ पकड़ के मेरे सामने खड़ा कर लिया. माँ को मेने आगोश में ले लिया. माँ की खड़ी चूचियाँ मेरे सीने में चुभने लगी. माँ के तपते होंठों पर मेने अपने होंठ रख दिए. माँ के अमृत भरे होंठों का रस्पान करते करते मेने पीछे दोनों हथेलियाँ माँ के उभरे विशाल नितंबों पर जमा दी. माँ के गुदाज चुतड़ों को मसल्ते हुए में माँ के पेल्विस को अपने पेल्विस पर दबाने लगा.

"अब इस सौन्दर्य की प्रतिमा को अपने हाथों से धीरे धीरे निर्वस्त्र करूँगा. तुम्हारे नंगे जिस्म को जी भर के देखूँगा, तुम्हारे काम अंगों को छ्छूऊंगा, उन्हें प्यार करूँगा." चुंबन के बाद माँ की ठुड्डी को उपर उठाते मेने कहा और एक एक करके पहले माँ के गहने उतार दिए. फिर माँ का ब्लाउस खोला और उसके बाद उसके घाघरे का नाडा खींच दिया. नाडा ढीला होते ही भारी घाघरा नीचे गिर पड़ा. अब माँ उसी मॉडर्न हल्के गुलाबी रंग की पैंटी ओर ब्रा में थी जो उस दिन मुझे सप्लाइयर ने दी थी.

 
5'10" लंबे और छर्हरे शरीर की मलिका श्रीमती राधा देवी यानी कि मेरी पुज्य माताजी पैंटी ओर ब्रा में खड़ी मंद मंद मुस्करा रही थी. विशाल जांघों ऑर पिछे उभरे हुए नितंबों से पैंटी पूरी सटी हुई थी. माँ की फूली चूत का उभार स्पष्ट नज़र आ रहा था. सीने पर दो बड़े कलश बड़े ही तरीके से रखे हुए थे. मेने ब्रा के उपर से माँ के भरे भरे चूचों को हल्के से सहलाया और ब्रा के स्ट्रॅप खोल दिए और ब्रा भी शरीर से अलग कर डी. वह माँ के उरोज बिल्कुल शेप में थे. गुलाबी चूचुक तने हुए ऑर काफ़ी बड़े थे.

"हाय मम्मी तुम्हारे अंगूर के दाने तो बड़े मस्त हैं." यह कह कर मेने मुँह नीचे कर दाएँ चूचुक को अपने मुँह में भर लिया और चूचुक को चुलभुलने लगा. तभी माँ मेरे सर के पिछे हाथ रख कर मेरे सर को अपनी चुचि पर दबाने लगी तथा दूसरे हाथ से अपनी चुचि मानो मेरे मुँह में ठूँसने लगी. मुझे माँ का यह खुलापन और अदा बहुत ही पसंद आई. कुच्छ देर चुचि चूसने के बाद में बेड पर बैठ गया और माँ की पैंटी में उंगलियाँ डालने लगा. मेने सर उपर उठाते हुए माँ की आँखों में देखा. माँ ने आँखों के इशारे से हामी भर दी. मेने वैसे ही माँ की आँखों में देखते देखते पैंटी नीचे सरका दी ओर माँ की टाँगों से निकल कर सोफे पर उछाल दी. अब माँ मेरे सामने मादरजात नंगी खड़ी थी.

मेने माँ के चेहरे से आँखें हटा कर माँ की चूत पर केंद्रित कर दी. मेरी माँ की चूत बहुत ही फूली हुई और घने काले बालों से भरी थी. माँ की झाँत के बाल घुंघराले और लंबे थे. माँ ने शायद ही कभी अपनी झांतों की सफाई की हो. माँ की जांघें बहुत ही चौड़ी और दूधिया रंगत लिए थी. मेने माँ की चिकनी मरमरी जाँघ पर हाथ रख दिया और हल्के हल्के उस पर फिसलाने लगा. तभी माँ ने टाँगें थोड़ी चौड़ी कर दी और मेरी आँखों के सामने माँ की चूत की लाल फाँक कौंध गयी.

"हाय मेरे विजय राजा तुझे अपनी माँ की चूत कैसी लगी?" माँ ने हंसते हुए पूछा.

"हाय क्या प्यारी चूत है. जितनी प्यारी यह तेरी चीज़ है उतने ही प्यार से इसे मेरे सामने पेश करो. इसे पूरी सज़ा के पूरी छटा के साथ मुझे सौंपो तब मेरी पसंद नापसंद पुछो. खूब बोल बोल के पूरी कमतूर होके मुझे इसे भोगने के लिए कहो मेरी जान." यह कह कर में बिस्तर पर लेट गया. माँ मेरा मतलब समझ गई और बिस्तर पर आ गई. माँ ने मेरी छाती के दोनों ओर अपने घुटने टेक लिए और घुटनों को जितना फैला सकती थी फैला ली. मेने भी अपने घुटने मोड़ लिए और पिछे माँ की पीठ टिकाने के लिए उनका सपोर्ट बना दिया. माँ ने उन पर अपनी पीठ टीका दी और चूत मेरी ओर आगे सरकाते हुए अपने दोनों हाथों से जितना चौड़ा सकती थी उतनी चौड़ा दी. माँ की चूत का लाल छेद पूरा फैला हुवा मुझे आमंत्रण दे रहा था. माँ की चूत से विदेशी सेंट की मीठी खुश्बू आ रही थी.

"लो मेरे साजन तेरी सेवा में मेरा सबसे खाश और प्राइवेट अंग पेश है, इसे ठीक से अंदर तक देखो. भीतर झाँक के देखो, इसकी ललाई देखो, इसकी चिकनाहट देखो. अपनी रानी की इस सबसे प्यारी डिश का चटखारे लेले कर स्वाद लो." माँ ने खनकती और थरथराती आवाज़ में कहा. में पागल हो उठा. मेने अपने दोनों होंठ लगभग माँ की खुली चूत के छेद में ठूंस दिए. माँ के लसलासे छेद में मेने 2-3 बार अपने होंठ घुमाए और फिर जीभ निकाल कर माँ की चूत की अन्द्रुनि दीवारों पर फिराने लगा. माँ की चूत का अन्द्रुनि भाग लसलसा और हल्का नमकीन था. चूत की नॅचुरल खुश्बू विदेशी सेंट से मिली हुई बहुत ही मादक थी. में माँ की चूत पर मुँह दबा कर चूत को बेतहाशा चाटे जा रहा था. मेरी जीभ की नोक किसी कड़ी गुठलीनुमा चीज़ से टकरा रही थी. जब भी में उस पर जीभ फिराता माँ के शरीर में कंपन अनुभव होता. तभी माँ ने उठ कर ठीक मेरे चेहरे पर आसान जमा लिया और ज़ोर ज़ोर से मेरे चेहरे पर अपनीी चूत दबाने लगी. मैने माँ के फूले चुतड़ों पर अपनी मुत्ठियाँ कस ली और माँ की चूत में गहराई तक जीभ घुसा कर मेरी मस्त माँ की चूत का स्वाद लेने लगा.

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अपडेट-17

थोड़ी देर बाद में बिस्तर से खड़ा हो गया और एक एक करके अपने कपड़े खोलने लगा. कुच्छ ही पल में में भी मा की तरह पूरा मोतेर्जात नंगा था. मा बिस्तर पर बैठी थी. मेरा 11 इंच का लंड लोहे की रोड की तरह टन कर खड़ा था. बड़ा सा गुलाबी रंग का सुपरा एक दम चिकना था. मेने एक पाँव मा के बगल में बिस्तर पर रखा और अपना लंड हाथ से पकड़ कर मा के चेहरे से टकराने लगा. मा ने हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को मुट्ठी में ले लिया. लंड के सुपरे को मा अपने होंठों पर फिरने लगी. दूसरे हाथ से मा मेरे अंडकोषों को मसल रही थी.

"वा! क्या शानदार शाही लंड है. ऐसे लंड पर तो में बलि बलि जौन. आज से तो में तेरे लंड की कनीज हो गई. अब ओर मत तड़पाव, इस मस्ताने लंड से मेरी प्यासी छूट की पयश बुझा दो. इस लंड को मेरी छूट में पूरा उतार दो मेरे साजन, मेरी योनि का अपने विशाल लंड से मंथन करो. अपनी तड़पति मा की जवानी को खुल के भोगो. अपने लिंग के रस से मेरी योनि को सींच दो. आओ मेरे प्यारे आओ. मेरे उपर आ जाओ और मेरी खुशी खुशी लो. में तुम्हें देने के लिए बहुत आतुर हूँ" मा तड़प तड़प कह रही थी.

"हन मेरी राधा रानी में तेरा दीवाना हूँ, तेरी छूट का रसिया हूँ. जब से तू यहाँ आई है तब से में तुझ पर फिदा हूँ. सोते जागते में हरदम तेरी मस्तानी छूट का ही ख्वाब देखा करता था. अब जब मेरे सामने तेरी यह छूट नंगी पड़ी है तो में इसे मनचाहे ढंग से छोड़ूँगा, तुझे तडपा तडपा तेरी जवानी को भोगुंगा." यह कह मेने मा को लिटा दिया और मा की गांद के नीचे एक बड़ा सा तकिया लगा दिया ताकि छूट उभर जाय.

मा: "हन मेरे वीजू प्यारे अपने इस मातृ अंग का, अपनी इस जन्मस्थली का खुल के उपभोग करो. अपने विशाल लिंग से मेरी योनि का भेदन करो. हन मेरे स्वामी अपनी इस प्यासी चरणों की दासी को आपना वीर्या दान दो, मेरी वर्सों से सुखी पड़ी इस बावड़ि में अपने रस का नाला बहा दो और इसे लबालब भर्डो."

में: "हन मेरी रानी में तेरी टाँगों के बीच तेरी लेने आ रहा हूँ." में मा की टाँगों के बीच आ गया और मा की छूट के च्छेद पर अपने लंड का सुपरा रख दिया. मा की छूट पूरी लसलासी थी. तोड़ा सा ज़ोर लगते ही सुपरा 'पच' करके अंदर फिसल गया. अब में मा के उपर पूरा झुक गया और मा को होंठों को अपने होंठों में ले लिया. 4-5 बार केवल सुपरा अंदर डालता और पूरा बाहर निकल लेता. इसके बाद सुपरा अंदर डालने के बाद मेने लंड का दबाव मा की छूट में बढ़ाया. में दबाव बहुत धीरे धीरे दे रहा था . अगले 2-3 मिनिट में मेरा आधा लंड मा की छूट में समा चुका था. उधर मा के होंठ मेरे होंठों में थे. नीचे मा कसमसा रही थी. अब में मा की छूट में आधा के करीब लंड डालता और वापस निकाल लेता. कई बार ऐसा करने से छूट अंदर से अच्छी तरह से गीली हो गई. इसके बाद आधा लंड डालने के बाद मेने छूट में दबाव बनाए रखा और मेरा लंड छूट में धीरे धीरे सरकने लगा. मा का शरीर नीचे अकड़ रहा था. अब मा के होंठ छ्चोड़ कर मेरे हाथ मा की चूचियों को गूँध रहे थे.
 
मा: "तूने तो अपने हल्लाबी लॉड से आज मुझे 18 साल की कंवारी कन्या बना दिया है. इतना मज़ा तो में जब जिंदगी में पहली बार चूड़ी थी तब भी नहीं आया था.. तुम्हारा यह मोटा सोता तो मेरी छूट में पूरा एडस गया है. अपनी मा में धीरे धीरे पेलो और आहिस्ते आहिस्ते मेरा पूरा मज़ा लो."

में: "हन मेरी राधा प्यारी देखो कितने आराम से तुझे छोड़ रहा हूँ. में तेरा बहुत शुक्रा गुज़ार हूँ की तूने इतने साल से मेरे लिए अपनी यह मस्त छूट बचा के रखी. जितना मज़ा मुझे तेरे साथ आ रहा है उतना मज़ा मुझे कोई लड़की दे ही नहीं सकती थी. अब में बिल्कुल शादी नहीं करूँगा. अब से तू ही मेरी बीवी है, मेरे घरवाली है. दुनिया की नज़रों में तू भले ही मेरी मा बने रहना, उससे मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता पर जब भी मौका मिले यूँ ही मस्त हो छुड़ाते रहना." अब मेरा लंड माकी छूट में जड़ तक अंदर घुसने में बिल्कुल तोड़ा सा बाकी रह गया तो मेने छूट में लंड के हल्के धक्के देने प्रारंभ कर दिए. मा हाय हाय करने लगी. मेरा लंड मा की छूट में जड़ तक अंदर बाहर होने लगा था. धीरे धीरे में धक्कों की स्पीड बढ़ाता गया. लंड 'फ़च्छ' फ़च्छ' करता छूट से अंदर बाहर हो रहा था.

अब मा ने दोनों हाथ मेरी कमर में जाकड़ दिए और धक्कों में मेरा साथ देने लग गई. मा की हाय हाय सिसकारियों में बदल गई. मा की आँखें मूंद गई और वा मुझसे छुदाई का स्वर्गिया आनंद लेने लगी. में मा को बेतहाशा छोड़े जा रहा था. अब पौन के करीब लंड छूट से बाहर निकालता और एक करारा शॉट लगा के जड़ तक वापस पेल देता.

"मा कैसा लग रहा है. क्यों त्रिलोकी दिख रही है या नहीं." मेने पूचछा.

"अरे मत पूच्छ. आज जैसा आनंद तो मुझे जीवन में आज तक नहीं मिला. तुम बहुत ही प्यार से कर रहे हो. मुझे दर्द महसूस तक नहीं होने दिया और 11 इंच का हल्लाबी लॉडा पूरा का पूरा मेरी छूट में उतार दिया." मा ने कहा. अब में पुर जोश में आ चुका था और ज़ोर ज़ोर से हुमच हुमच कर लंड पेलता था. मा भी नीचे से धक्कों का जबाब दे रही थी.
 
में: "देख तुझे कैसे कस के छोड़ रहा हूँ. ले ये मेरा धक्का झेल. बड़ी मस्त औरत है तू. तू तो सिर्फ़ मेरे से चूड़ने के लिए ही बनी है. तुझे जैसी चुड़दकड़ और सेक्सी औरत को तो दिन रात नंगी करके ही रखना चाहिए और जब भी लंड खड़ा हो जाय तेरे में पेल देना चाहिए." में अनाप सनाप बकते हुए अपनी मस्त माको छोड़े जा रहा था. करीब 10 मिनिट तक यह छुदाई चली की मा ने मुझे बुरी तरह से जाकड़ लिया. मा की आँखें लाल हो गई, वा हाँफने लग गई, उसका शरीर एक बार ऐंठा और वा ढीली पड़ने लगी.

मा: "हाय विजय बेटे तूने तो एक ही छुदाई में मुझे ढीली कर दिया. देख मेरी छूट से क्या बह रहा है. में इतनी कमजोर क्यों होती जा रही हूँ. मेरे पर ऐसे ही चढ़ा रह, मुझे अपने नीचे दबोचे रख. में तृप्त हो गई." तभी मेरे लंड से ज़ोर से ज्वालामुखी फॅट पड़ा. लंड से पिघला लावा मा की छूट में बहने लगा. धीरे धीरे मा के साथ में भी शीतल पड़ता गया.

कुच्छ देर बाद मा उठी. सोफे से उसने सारे कपड़े लिए और नंगी ही अपने कमरे में चली गई. कुच्छ देर बाद में भी उठा. बातरूम में जा हाथ मुँह धोया और नाइट ड्रेस पहन कर सो गया. आज बहुत अच्छी नींद आई. सोने के बाद एक बार नींद लगी तो सुबह ही खुली. ऑफीस जाते वक़्त मा ने नास्टा दिया पर वा रोज की तरह बिल्कुल सामानया थी.
 
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