Sex Kahaniya अंजाना रास्ता - SexBaba
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Sex Kahaniya अंजाना रास्ता

hotaks444

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Nov 15, 2016
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अंजाना रास्ता --1

ये कहानी तब की है जब मे 11 क्लास मे पढ़ता था . मे अपने चाचा जी के घर

पर पढ़ाई कर रहा था क्योंकि मेरा घर गाँव मे था और वाहा कोई अच्छा स्कूल

नही था इसलिए मेरे चाचा मुझे अपने साथ अपने घर ले आए थी. उनका घर काफ़ी

बड़ा था. अब मुझे मिलाकर घर मे चार मेंबर हो गये थी . पहले और घर के बड़े

चाची जी और चाची जी और उनकी एक लोति संतान अंजलि दीदी जिनकी उम्र उस वक्त

23 थी और चोथा था मे ( अनुज ).

अंजलि दीदी बहुत खूबसूरत थी उनकी हाइट 5' 5" , स्लिम , गोरा रंग और जो

मुझे सबसे ज़्यादा पसंद थी वो थी उनके रेशमी लंबे बाल जो कि उनकी लो बेक

तक आते थे. कुल मुलाकर अंजलि दीदी किसी फिल्म आक्ट्रेस से काम नही लगती

थी. वो मुझे बहुत प्यार्कर्ती थी इसकी वजह शायद ये भी थी कि उनके कोई

अपने छोटे भाई बहन नही थे. सो मेरे घर मे आने से वो अब अकेला महसूस नही

करती थी . अंजलि दीदी एम.कॉम कर रही थी उनकी मैथ बहुत अच्छी थी . सो वो

मुझे अक्सर मैथ मे हिल्प कर दिया करती थी. मेरे स्कूल मे मेरे ज़्यादा

फ्रेंड नही थे सिर्फ़ गिने चुने दोस्त थे. राज भी उनमे से एक था ..वो

पढ़ाई लिखाई मे कम और गुंडा गर्दि मे ज़्यादा लगा रहता था …उसकी मेरी

दोस्ती तब हुई थी जब मे स्कूल मे नया आया था. मे नया नया गाँव से आया था

सो ज़्यादा पता नही था सहर के लोगो के बारे मे इसलिए कुछ सीनियर लड़को ने

मुझे स्कूल मे पकड़ कर मेरे पैसे छीनने चाहे ..मे बहुत डर गया था..पर

मैने उन्हे पैसे देने से इनकार कर दिया ..तब एक लड़के ने मेरा गिरेवान

पकड़ कर मुझे मुक्का मारना चाहा कि तभी कही से राज आ गया वो लंबा चौड़ा

था ..उसको देख कर उन लड़को ने मुझे छोड़ दिया..तब से ही हम दोस्त थे…

मेरा स्कूल बाय्स स्कूल था सो एक दिन क्लास मे जब मे लंच टाइम मे लंच कर

रहा था तो राज मेरे पास आया और बोला .." अबे क्या अकले अकेले खा रहा है …

मैने उसको बोला ले भाई तू भी खा ले …वो हस्ने लगा और बोला जल्दी खाना खा

तुझे एक अच्छी चीज़ दिखाता हू….उसका चेहरा चमक रहा था..मुझे भी उत्सुकता

थी ज़ल्दी खाना खाया और फिर बोला " हा. राज बता क्या बात है' तब राज ने

इधर उधर देखा ..क्लास मे और कोई नही था ..उसने अपने बेग मे हाथ डाला और

के छोटी सी किताब निकाल ली…मैं बड़े ध्यान से उसे देख रहा था….जैसे ही

उसने वो किताब खोली मेरे रोंगटे खड़े हो गये ..उस किताब मे जो फोटो थी

उनमे लड़कियो की नंगी तस्वीरे थी….मेरा चेहरा लाल हो गया था शरम से. मुझे

देख राज हंस पड़ा. और बोला." अबे चुतिये क्या हुआ ..तेरी गांद क्यो फॅट

रही है…" मैने अपनी ज़िंदगी मे पहली बार ऐसे फोटो देखी थी .. मैने कहा

राज कोई देख लेगा यार..अगर पकड़े गये तो बहुत पिटाई होगी..तब राज बोला तू

तो बड़ा फटू है साले इतनी मुस्किल से तो इस किताब का जुगाड़ किया है मैने

..फिर वो उसके पन्ने पलट ने लगा ..दूसरे पन्नो मे एक आदमी खड़ा था और एक

लड़की उसका लंड अपने मूह मे ले रही थी..मुझे बहुत डर लग रहा था पर अब

मेरी इच्छा और बढ़ गई थी मे उस बुक को पूरा देखना चाहता था…तभी स्कूल बेल

बजी जिसका मुतलब था कि लंच टाइम ख़तम हो गया है ..राज ने उस किताब को

वापस अपने बेग मे रख लिया क्योंकि बाकी बच्चे क्लास मे आने लगे थे…मुझे

बड़ा गुस्सा आया क्योंकि मुझे उस किताब की बाकी फोटो भी देखनी थी ..पर

क्या करता क्लास अब बच्चो से भर चुकी थी और साइन्स का टीचर क्लास मे एंटर

हो चुका था.

उस दिन जब मे छुट्टी होने के बाद घर गया तब घर पर चाची ही थी . चाचा जी

तो ऑफीस से शाम को आते थे और अंजलि दीदी 4 बजे कॉलेज से आती थी . खैर

मैने खाना खाया और अपने कमरे मे थोड़ा आराम करने के लिए चला गया ( मे

आपको ये बता दू अंजलि दीदी और मेरा कमरा एक ही था बस बेड अलग थे

).गर्मियो के दिन थे सो मुझे नींद आ गयी..मुझे सपनो मे भी वोही तस्वीरे

..वो नंगी लड़किया..उनकी बूब्स..नज़र आ रही थी..कि तभी मुझे कुछ गिरने की

आवाज़ आई ..मैने अपनी आँखे खोली तो देखा की दीदी के बेड पर कुछ बुक्स

पड़ी है जिसका मुतलब सॉफ था कि दीदी घर आ चुकी है…तभी मेरी नज़र अपने

पाजामे पर गयी..उसका टेंट बना हुआ था ..मेरा लंड उन फोटो को याद करते

करते खड़ा हो चुका था..वो तो अच्छा था कि मे उल्टा सोया था नही तो दीदी

उसको देख सकती थी..मे उठ कर बैठा ही था कि अंजलि दीदी कमरे मे आए उन्होने

पिंक सूट और ब्लॅक सलवार पहने हुए थी . " और मिस्टर जाग गये तुम….कितना

सोते हो.." अंजलि दीदी अपना दुपट्टा उतार कर स्टडी टेबल पर रखते हुए

बोली….मे अभी भी थोड़ा नींद के नशे मे था …दुपपता उतारने से उनके बूब्स

और उभर कर बाहर आ गये थे..और मेरे नज़र सीधी उनपर गयी…वैसे तो मे दीदी को

काई बार विदाउट दुपपता देख चुका था फिर पता नही आज उनके बूब्स देखते ही

मेरा दिमाग़ उन नंगी लड़कियो के बूब्स को दीदी के बूब्स से कंपेर करने

लगा और मेरे लंड ने ज़ोर से झटका लिया..ऐसा मेरे साथ पहले बार हुआ था…"

दीदी बहुत थक गयी थी..पता नही कब नींद लग गयी मुझे." मैने दीदी की तरफ

देखा जो कि अपने बेड पर बैठ गयी थी..तभी दीदी ने कुछ ऐसा किया के मेरे

लंड ने दोसरा झटका मारा दीदी ने अपने जुड़े की पिन खोली और उनकी लंबे

सेक्सी रेस्मी बाल खुल गये फिर दीदी ने उनको आगे किया और मुझे देखते हुए

बोली " क्या हुआ मिस्टर. ऐसे क्या देख रहा है तू.." मेरा तो चहरा एक दम

से लाल हो गया मुझे ऐसा लगा जैसे की मे चोरी करते हुए पकड़ा गया हू… मे

घबरा कर बोला..एमेम…ह्म्म…का .कुकुच ..नही दीदी …वो आपके बाल …" मेरा गला

सुख चुका था. दीदी हस्ते हुए अपने बेड से उठ कर मेरी बगल मे बैठ गयी.

मुझे उनके बदन पर लगे डीयोडरेंट की खुशुबू आ रही थी..और साथ मे डर भी लग

रहा थी कि कही दीदी मेरे पाजामे की तरफ ना देख ले…खैर ऐसा कुछ नही हुआ और

दीदी ने मुझे गाल पर एक किस दिया और बाहर जाने लगी..मे उन्हे जाते हुए

देख रहा था..उनकी लंबे बाल उनकी कमर पर बड़े सेक्सी तरीके से लहरा रहे

थे..और मुझे चिड़ा रहे थे…

" अबे वो किताब कैसे लगी थी तुझे…मज़ा आया था." राज मुझे चिड़ाते हुई

बोला. हम क्लास मे पिछले डेस्क पर बैठे थे.

" कितनी बार मूठ मारा था तूने ..बोल बोल…शर्मा मत.." वो फिर बोला

"मैने ऐसा कुछ नही क्या" मे बोला

"अबे चूतिए वो तो सिर्फ़ फोटो थी …बोल उनकी मूवी देखे गा…ज़ल्दी बोल.."

ये सुन कर मेरे लंड मे हर्कात से होने लगी. और ना चाहते हुए भी मेरे मूह

से निकला " क..कहा..देखेंगे "

वो तू मुझ पर छोड़ दे ..चल स्कूल के बाद मेरे साथ चलना और.मैने हा मे सिर

हिला दिया.

स्कूल की छुट्टी होते ही राज मुझे स्कूल के पास वाले साइबर केफे ले

गया..हमने कोने वाली एक सीट ली ..कंप्यूटर को राज ओपरेट कर रहा था ..जिस

तरह से वो कंप्यूटर चला रहा था उससे पता लगता था कि वो इस काम मे काफ़ी

एक्ष्पर्त है..मैने उसे कई बार इस साइबर केफे से आते जाते देखा था…तभी

उसने कोई साइट खोली और सामने नंगी लड़कियो की तस्वीर आनी शुरू हो गयी..

ये सब देखते ही मेरा गला सूख गया मे ये सब पहली बार देख रहा था..फिर राज

ने किसी लिंक पर क्लिक किया और कुछ सेकेंड बाद एक क्लिप प्ले होने लगी

..उसमे एक आदमी एक लड़की के उप्पर चढ़ा हुआ था..लड़की झुकी हुई थी और वो

आदमी ज़ोर ज़ोर से धक्के लगा रहा था….ये देखते ही मेरा लंड ना जाने क्यू

मेरी पॅंट मे खड़ा हो गया ..

" इसको चुदाई कहते है ..देख कैसे चोद रहा है लड़की की चूत को….."

मे कुछ बोल नही रहा था मेरी आँखे तो कंप्यूटर स्क्रीन से चिपक गयी थी

..मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था. ..और मन मे ये डर भी था कि कही कोई हमे

पकड़ ना ले ये सब देखते हुए..
 
अचानक मेरी आँखे नीचे गयी और मैने देखा कि राज के पेंट मे भी टेंट बना



हुआ है…सिर्फ़ अंतर इतना था कि उसका टेंट काफ़ी बड़ा लग रहा था.. मैने



फिर से कंप्यूटर की तरफ़ देखा..अब वहा दूसरी क्लिप चल रही थी ..इसमे एक



काला आदमी की गोरी लड़की को बड़ी बेरहमी से चोद रहा था " गोरी लड़की बहुत



खूबसूरत थी और वो काला आदमी उतना ही बदसूरत..पता नही क्यू इसे देख मेरा



लंड और ज़्यादा कड़क हो गया..क्लिप्स छोटी छोटी ही थी..पर उन छोटी छोटी



क्लिप्स ने मेरे अंदर बड़े बड़े अरमान जगा दिए थे.. हम वहा १ घंटे तक रहे



फिर मे घर आ गया.



"आह….फक मी..ह्म्म…." लड़की चिल्ला रही थी. ये वोही लड़की थी जिसको मैने



उस मूवी क्लिप मे देखा था बस अंतर इतना था कि उस काले आदमी के जगह मे



उसको चोद रहा था…एमेम….ह्म..आ.आ….फक..मी..मेरे आँखे बंद थी . तभी मुझे



कुछ गीला गीला लगा..मेरी आँखे खुल चुकी थी ..और मेरा सपना भी टूट चुका



था…मेरे लंड ने सपना देखते देखते ही पानी छोड़ दिया था…मैने घड़ी की तरफ़



देखा तो रात के 2 बजे थे .कमरे मे नाइट बल्ब जल रह था….. यका यक मेरी



नज़र सामने अंजलि दीदी के बेड पर गयी. जिसको देख तेही मेरे रोंगटे खड़े



हो गये…….



दीदी बिस्तर पर सीधी सो रही थी ..उनकी चूचियाँ बिल्कुल सीधी तनी खड़ी थी



..जैसे जैसे दीदी सास लेती थी वो उप्पर नीचे होती थी…मेरे नज़र तो मानो



उन खोबसुर्रत उभारो पर ही जम गयी थी …अब मुझे अपने पाजामे मे फिर से वो



ही हरकत महस्सूस होनी लगी .मेरा लंड खड़ा हो रहा था….मुझे ये समझ नही आ



रहा थी कि मुझे अपनी दीदी को देख कर क्यू ऐसा लग रहा है..वो मुझे कितना



प्यार करती है ..मुझे अपने उप्पर गिल्टी होने लगी..मे फिर सीधा बाथरूम



गया और पेशाब कर कर अपने बेड पर आकर सो गया.



अगली सुबा मेरी आख 8 बजे खुली.मे उठ कर बैठा और चारो तरफ़ देखा तो पाया



की दीदी का बॅग टेबल पर रखा है. आज दीदी कॉलेज नही गयी शायद. खैर मे उठ



कर फ्रेश हुआ और ड्रॉयिंग रूम की तरफ़ चला ..अंजलि दीदी सोफे पर बैठी



टीवी देख रही थी… दीदी को देखते ही मुझे रात की बात याद आई ..और मेरे



अंदर फिर से गिल्टी फीलिंग आ गयी..



"अरे..मेरा राजा भैया जाग गया..आजा..यहा बैठ मेरे पास.." दीदी मुस्कुराते हुए बोली.



" आप कॉलेज नही गयी दीदी" मैने पूछा.



"लो कर लो बात …तुझे हुआ क्या है आज कल…अरे सनडे को कोई कॉलेज जाता है



क्या " दीदी मुझे अपने पास बैठाते हुए बोली.



ओह आज सनडे है मुझे अपने बेवकूफी पर गुस्सा आया. सच मे पछले कुछ दिनो से



राजके साथ रहकर मैं भी उसकी ही तरह हो गया हू.



"चाची और चाचा जी नज़र नही आ रहे." मे बोला



"अरे हा ..मे तुझे बताना भूल गयी मम्मी पापा आज बुआ जी के यहा गये है .



शाम तक आएँगे…" दीदी टीवी देखते हुए बोली.



"तुझे भूक लगी होगी ना..मम्मी खाना बना कर गयी है ..रुक मे तेरे लिए लाती



हू' और दीदी उठ कर किचिन मे चली गयी. मैने टीवी का रिमोट लिया और चैनल



चेंज करना चाहा पर रिमोट के सेल वीक हो गये थे सो कई बार बटन दबाने के



बाद चैनल चेंज हुआ..मैने बड़े मुस्किल से अनिमल प्लॅनेट चैनल लगाया..मुझे



अनिमल प्लॅनेट चैनल देखना बहुत पसंद था..थोड़ी देर के बाद दीदी खाना लेकर



आ गयी..वो मेरे पास बैठ गयी..हम दोनो ने खाना खाया.फिर दोनो टीवी देखने



लगे.. " तू ज़रूर बड़ा होकर जानवरो का डॉक्टर बनेगा ." दीदी मुस्कुराती



हुई बोली



" क्यू..दीदी" मैं उत्सुकता से दीदी की तरफ़ देखता हुआ बोला



सारे दिन अनिमल प्लॅनेट जो देखता रहता है तू.. दीदी अपने रेशमी बाल खोल



कर अपने सीने पर डालते हुए बोली..मेरा तो बुरा हाल होगया ..एक तो दीदी थी



ही इतनी खोब्सूरत उपर से जब अपने लंबे रेशमी बाल खोल लेती थी तो क्या



काहू..कटरीना कैफ़ भी फैल हो जाती थी उनकी सामने.



" ला अपना लेफ्ट हॅंड दे ..मे तुझे तेरा फ्यूचर बताती हू " कहते हुए दीदी



ने मेरा हाथ अपने हाथो मे ले लिया ( मे आपको बता दू कि दीदी नी लॉस



टी-शर्ट ऑफ पाजामा पहना हुआ था ) . " ओफ्फ….म्म..क्या मुलायम हाथ था दीदी



का..उनके गोरे गोरे हाथो मे मेरे हाथ भी काले नज़र आने लगे थे…



" तू..बड़ा होकर बनेगा ..म्म..एक..जोकर….हा .हा हा.." दीदी हस्ने लगी.



दीदी मज़ाक कर रही थी और मुझे हसाने की कोशिस कर रही थी पर मे तो उनकी



खूबसूरती को निहार रहा था.



पर थोड़ा मज़ाक करने के बाद हम दोबारा टीवी देखने लगे..कुछ 5 मिनट ही हुए



थे कि तभी कुछ ऐसा हुआ जिससे मेरी ही नही दीदी की भी साँसे रुक गयी



थी….जैसा कि मैने आपको को बताया कि टीवी पर अनिमल प्लॅनेट चल रहा था..सब



कुछ सही चल रहा था ..कुछ ज़ब्रा घास चर रहे थे कि अचनाक एक बड़ा सा



ज़ीब्रा वाहा आया और एक फीमेल ज़ीब्रा की चूत को पीछे से सूंघने लगा..फिर



उसने अपनी ज़ीब निकाली और वो उसकी चूत को चाटने लगा..कॅमरा मॅन ने इसका



क्लोज़ अप लेना सुरू कर दिया..जैसे जैसे वो उसकी चूत चाट रहा था मैने



देखा कि अब कमरे का फोकस उस ज़ीब्रा की टाँगो की तरफ़ था चूत चाटते चाटते



उसका लंड बढ़ता ही जा रहा था..और ये सब मे अकेला नही बल्कि पास बैठी दीदी



भी देख रही थी..पूरे कमरे मे अब सिर्फ़ टीवी की आवाज़ ही आ रही थी..यका



यक पता नही मेरी नज़र दीदी पर गयी…तो मैने पाया कि दीदी बिना आँखे बंद



किए ये सब देख रही है…फिर मेरी नज़र दीदी की गर्दन से नीचे सीधे उनके



उभारो पर गयी..अब वे और ज़्यादा तन गयी थी .और जल्दी जल्दी उपर नीचे हो



रही थी.शायद दीदी की सासे तेज चल रही थी…तभी दीदी की नज़र मुझसे



मिली..कुछ सेकेंड के लिए.ही मिली थी …शर्म से उनका गोरा चहरा लाल हो रहा



था..वो कुछ ना बोली और आगे बाद कर रिमोट उठा कर चैनल चेंज करने लगी..पर



जैसे कि मैने पहले बताया था कि रिमोट के सेल वीक हो गये थे चैनल चेंज नही



हुआ..पर तभी टीवी स्क्रीन पर वो ज़ीब्रा उस फीमेल ज़ीब्रा पर चढ़



गया…मुझे तभी अहसास हुआ कि मेरा हाथ अब भी दीदी के कोमल हाथो मे था जो कि



अब उनकी राइट थाइ पर रखा हुआ था…उनकी सॉफ्ट थाइट की स्किन को मे उनके



पजामे के उपर से महसूस कर सकता था..मेरा दिल जोरो से धड़कने लगा..उधर



ज़ीब्रा ने एक ही झटके मे अपना विशाल लंड फीमेल ज़ीब्रा की चूत मे घुसा



दिया..और जैसे ही उसने पहला झटका मारा दीदी ने मेरे हाथ को कस कर भीच



लिया..मेरी हालत बहुत बुरी हो गयी…मुझे लग रहा था कि एक तरह से मे दीदी



के साथ बैठा ब्लू फिल्म देख रहा हू..मेरा लंड पूरा खड़ा हो गया..ज़ीब्रा



लगातार झटके मार रहा था…मुझ पर सेक्स का नशा चढ़ता जा रहा था …कुछ तो उन



जानवरो की चुदाई देख कर ..और कुछ दीदी के नरम हाथो और उनकी गरम जाँघो की



गर्मी..मुझसे रहा नही गया और अचानक मैने अपने हाथो को थोड़ा खोला और



अंजलि दीदी की राइट जाँघ जिस पर मेरा हाथ रखा था को कस्स कर दबा दिया…बस



मेरे लिए ये काफ़ी था और मेरे लंड से पानी छोड़ दिया…वो तो अच्छा था मैने



अन्दर्वेअर और उपर से पॅंट पहनी थी नही तो दीदी को पता चल जाता…तभी



टेलिफोन की घंटी बजी .दीदी तो मानो सपने से जागी उनको शायद ये भी पता नही



था कि मैने उनकी थाइस को दबाया है..वो फॉरन दूसरे कमरे की तरफ़ चली गयी



जहा फोन बज रहा था…..



क्रमशः.......................
 
अंजाना रास्ता --2



गतान्क से आगे................



बाकी दिन और कुछ खांस नही हुआ…बस ये था कि उस दिन दीदी और मेरे बीच कुछ



ज़्यादा बाते नही हुई..धीरे धीरे दिन बिताने लगे और एक हफ़्ता और गुजर



गया.. इस बीच मे राज के साथ एक दो बार साइबर केफे भी गया था..अब मुझे



सेक्स के बारे मे काफ़ी नालेज हो गई थी…अंजलि दीदी भी अब फिर से मेरे साथ



नॉर्मल हो गयी थी..



एक दिन की बात है फ्राइडे का दिन था मैं रूम मे कंप्यूटर गेम खिल रहा था



उन दिनो स्कूल और कॉलेज की छुट्टियाँ चल रही थी. दीदी रूम मे आई और मुझे



बोली के मैं उनके साथ बॅंक चलू क्योंकि उनको एक ड्राफ्ट बनवाना है…अंजलि



दीदी उस दिन हरा सूट और ब्लॅक पाज़ामी पहने हुए थी.. दीदी के रेशमी बाल



एक लंबे हाइ पोनी टेल मे बँधे थे .



“ ज़ल्दी कर अनुज बॅंक बंद होने वाला होगा…और मुझे आज ड्राफ्ट ज़रूर



बनवाना है” दीदी अपने संडले पहनते हुए बोली..वो झुकी हुई थी..और उनके



झुकने से मुझे उनके सूट के अंदर क़ैद वो गोरे गोरे उभार नज़र आ रहे



थे..मेरा दिल फिर से डोल गया था. बॅंक घर से ज़्यादा दूर नही था सो हम चल



दिए. मैने चलते चलते वोही महसूस क्या जो मे हर बार महसूस करता था ज़ॅब



दीदी मेरे साथ होती थी. लगभाग हर उम्र का आदमी दीदी को घूर रहा था….उनकी



आखो मे हवस और वासना की आग सॉफ साफ देखी जा सकती थी. पर दीदी उनलोगो पर



ध्यान दिए बगैर अपन रास्ते जा रही थी. मुझे अपने उप्पर बड़ा फकर महसूस हो



रहा था कि मे इतनी खोबसूरत लड़की के साथ हू हालाकी वो मेरी बड़ी चचेरी



बहन थी. खैर हम 10 मिनट मे बॅंक पहुच गये बॅंक मे बहुत भीड़ थी..हालाकी



ड्राफ्ट बनवाने वाली लाइन मे ज़्यादा लोग नही थे वो लाइन सबसे कोने मे



थी…दीदी ने मेरा हाथ पकड़ा और हम उस लाइन की तरफ़ बढ़ चले.



“अनुज तू यहा बैठ..और ये पेपर पकड़..मैं लाइन मे लगती हू” दीदी बॅग से



कुछ पेपर निकालते हुए बोली.



मैं साइड मे रखी बेंच पर बैठ गया और दीदी कुछ पेपर और पैसे लेकर लाइन मे



लग गयी..भीड़ होने की वजेह से औरत और आदमी एक ही लाइन मे थे. मैं खाली



बैठा बैठा बॅंक का इनफ्राज़्टरूट देखने लगा.और जैसा हर सरकारी बॅंक होता



है वो भी वैसे ही था ...जिस लाइन मे दीदी लगी थी वो लाइन सबसे लास्ट मे



थी और उसके थोड़ा पीछे एक खाली रूम सा था जिसमे कुछ टूटा फर्निचर पड़ा



हुआ था..उस जागह काफ़ी अंधेरा भी था. शायद टूटा फर्निचर छुपाने के लिए



जान भूज कर वाहा से बल्ब और ट्यूब लाइट हटा दिए गये थे..इसलिए वाहा इतना



अंधेरा था..खैर ये तो हर सरकारी बॅंक की कहानी थी.. दीदी जिस तरफ़ लाइन



मे खड़ी थी वाहा थोड़ा अंधेरा था. मुझे लगा कही दीदी डर ना जाय क्योंकि



उन्हे अंधेरे से बहुत डर लगता था…तभी दीदी मुझे अपनी तरफ़ देखते हुए



थोड़ा मुस्कुराइ और ऐसा जताने लगी की..मानो कहना चाहती हो कि ये हम कहा



फँस गये. गर्मी भी काफ़ी थी..तभी एक आदमी और उस लाइन मे लग गया..वो देखने



मे बिहारी टाइप लग रहा था..उमर होगी कोई 35 साल के आस पास. उसने पुरानी



सी शर्ट और पॅंट पहने हुए था और वो शायद मूह मे गुटका भी चबा रहा था..एक



तो उसका रंग काला था उप्पर से वो लाइन के अंधेरे वाले हिस्से मे लगा हुआ



था..उसको देख कर मुझे थोड़ी हँसी भी आरहि थी.



“कितनी भीड़ है बेहन चोद “. वो अंधेरी साइड मे गुटका थुक्ता हुआ बोला.



तभी उसका फोन बजा.फोन उठाते ही उसने फोन पर भी गंदी गंदी गाली देने शुरू



कर दी..जैसे..तेरी बेहन की चूत ,,मा की लोड्‍े,,तेरी बहन चोद



दूँगा..वागरह वागारह..दीदी भी ये सब सुन रही थी शायद पर क्या कर सकती थी



वो..मुझे भी गुस्सा आ रहा था.. कुछ मिनिट्स के बाद मैने कुछ ऐसा देखा



जिससे मेरे दिल की धड़कन तेज होगयी अब वो बिहारी दीदी से चिपक कर खड़ा



था. उसकी और दीदी की हाइट लगभग सेम थी जिससे उसका अगला हिस्सा ठीक दीदी



की पाजामी के उप्पर से उनके उभरे हुए चूतर पर लगा हुआ था. वो लगातार दीदी



को पीछे से घूर भी रहा था..दीदी के सूट का पेछला हिस्सा थोड़ा ज़्यादा



खुला हुआ था जिससे उनकी गोरी पीठ नज़र आ रही थी . तभी वो थोड़ा पीछे हुआ



और मैने देखा कि उसके पेंट मे टॅंट बना हुआ है .फिर उसने अपना राइट हॅंड



नीचे किया और अपने पॅंट को थोड़ा अड़जस्ट क्या..अब उसका वो टेंट काफ़ी



विशाल लग रहा था..मेरा दिल जोरो से धड़क ने लगा. मेरे लंड मे हरकत शुरू



होने लगी ये सोच कर ही कि अब ये गंदा आदमी मेरी खूबसूरत दीदी के साथ क्या



करेगा. हालाकी वो और दीदी अंधेरे वाले हिस्से मे थे फिर भी उस आदमी ने



इधर उधर देखा और.फिर अपने आपको धीरे से दीदी से चिपका लिया उसका वो टेंट



अंजलि दीदी के पाजामे मे उनके उभरे हुए चुतड़ों के बीच कही खोगया था. और



जैसे ही उसने ये किया दीदी थोड़ा आगे की तरफ़ खिसकी..दीदी का चेहरा



अंधेरे मे भी मुझे लाल नज़र आ रहा था. तनाव उनके चेहरे पर सॉफ देखा जा



सकता था..ये सारी बाते बता रही थी कि दीदी जो उनके साथ हो रहा था उससे अब



वाकिफ्फ हो चुकी थी. दीदी की तरफ़ से कोई ओब्जेक्सन ना होने की वजह से



उसके होसले बढ़ने लगे थे वो दीदी से और ज़्यादा चिपक गया . जैसा कि मैने



बताया था कि अंजलि दीदी ने अपने रेशमी बालो की हाइ पोनी टेल बाँधी हुई



थी.उस आदमी का गंदा चेहरा अब दीदी के सिर के पीछले हिस्से के इतना पास था



कि उसकी नाक दीदी की बालो मे लगी हुई थी और शायद वो उनके बालो से आती



खुसबू सुंग रहा था..दीदी की पोनी टेल तो मानो उनके और उस बिहारी के बदन



से रगड़ खा रही थी. मेरी बेहद खूबसूरत जवान बड़ी बहन के बदन से उस लोवर



क्लास आदमी को इस तरह से चिपका देखा मेरा लंड मेरे ना चाहने पर भी खड़ा



होने लगा था.
 
मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी उस आदमी ने अपना नीचला हिस्सा धीरे धीरे



हिलाना सुरू कर दिया और उसका लंड पेंट के उप्पर से ही अंजलि दीदी के उभरे



हुए चूतरो पर आगे पीछे होने लगा..ये सारी हरकत करते हुए वो आदमी लगातार



दीदी के खूबसूरत चेहरे के बदलते भाव को देख रहा था. अंधेरे कोने मे होने



की वजह से कोई उसकी ये हरकत नही देख पा रहा था और इसका वो आदमी अब पूरा



फ़ायदा उठा रहा था..वैसे भी इतनी सुंदर जवान लड़की उसकी किस्मत मे कहा



होती. दीदी डर के मारे या ना जाने क्यू उस आदमी को रोक नही पा रही थी..पर



तभी अचानक दीदी को शायद याद आया कि मैं भी उधर ही बैठा हू तब उन्होने



थोड़ा सा मूड कर मेरी साइड की तरफ़ देखा कि कही मैं से सब तो नही देख रहा



हू ..मैने फॉरन अपना ध्यान न्यूज़ पेपर पर लगा लिया जो के मेरे हाथो मे



था. दीदी को शायद यकीन हो गया था कि मैं उनकी साथ जो हो रहा है उसको नही



देख रहा हू. वो आदमी अब पिछले 10 मिनट से दीदी को खड़े खड़े ही कपड़ो के



उप्पर से उनकी चूतादो पर अपने खड़ा लंड को अंदर बाहर कर रहा था. तभी मुझे



लगा की उस आदमी ने दीदी की कानो मे कुछ धीरे से कहा पर दीदी ने कोई जवाब



नही दिया…मेरा दिल अपनी बड़ी बहन का सेडक्षन देख इतनी जोरो से धड़क रहा



था कि मानो अभी मेरा सीना फाड़ कर बाहर आ जाएगा..तभी मुझे एक हल्की से



कराह सुनाई दी…और मुझे ये समझने मे देर ना लगी कि वो मादक आवाज़ अंजलि



दीदी के मूह से आई थी..दीदी की आँखे 5 सेक के लिए बिल्कुल बंद हो गई थी



और उनके दाँतअपने रसीले होटो को काट रहे थे..मुझे से समझ नही आया कि ये



क्या हुआ..उस आदमी का हाथ तो अब भी साइड मे था..पर भगवान ने इंसान को दो



हाथ दिए है....तभी मुझे दीवार के साइड से दीदी की चुननी हिलती हुई नज़र



आई…क्या वो आदमी…..नही ये नही हो….सकता…क्यो नही हो सकता….क्या उस आदमी



का लेफ्ट हॅंड दीवार की साइड से दीदी के लेफ्ट बूब्स पर है..अब उस आदमी



की आँखो मे हवस साफ नज़र आ रही थी..वो दीदी की लेफ्ट चूची को उनके हरे



सूट के उप्पर से हवस के नशे मे शायद बड़े जोरो से दबा रहा था ..तभी उसने



दोबारा दीदी की कान मे कुछ कहा ..और दीदी ने झिझाक ते हुए अपनी टाँगो को



थोड़ा खोल लिया …अब वो आदमी थोड़ा ज़ोर से दीदी के उभरे हुए कोमल चुतड़ों



को ठोकने लगा..हवस का ऐसा नज़ारा देख मे खुद पागल सा हो गया था ..अब मैं



ज़्यादा से ज़्यादा देखना चाहता था कि वो आदमी अब और क्या करेगा..दीदी की



बढ़ती सासो से उनके वो पके आम की साइज़ के उभार सूट मे जोरो से उप्पर



नीचे हो रहे थे ..पर शायद मेरी किस्मात खराब थी क्योंकि तभी मेरे पास एक



बूढ़ा आदमी आया और बोला कि बेटा मेरे लिए एक स्टंप पेपर ला दोगे बाहर



से..उस बुढ्ढे आदमी को उधर देख वो बिहारी फटाफट दीदी से अलग हुआ..शायद



उसको भी गुस्सा आया था…और क्यू ना आए ऐसा गोलडेन चान्स कोन छोड़ना चाहता



था..मैने देखा दीदी और वो बिहारी मेरी तरफ़ देख रहे है..मुझे गुस्सा तो



बहुत आया बुढ्ढे आदमी पर क्या करता मैं ये सोच कर मैं उठा और बाहर जाने



लगा.वो बुढ्ढा अब मेरी जगह पर बैठ गया था..बाहर जाते जाते मैने तिरछी



नज़र से देखा कि वो बिहारी फिर दीदी को कुछ बोल रहा है और इस बार दीदी भी



उसकी तरफ़ देख रही थी उनका गोरा चहरा शरम और डर से लाल हो रहा था…मैं



ज़ल्दी से बाहर गया और स्टंप पेपर लेने के लिए दुकान ढूँढने लगा…मेरे मन



मे अब ये चल रहा था कि अब वो आदमी दीदी के साथ क्या क्या कर रहा



होगा..क्या वो रुक गया होगा..क्या दीदी ने उसको मना कर दिया होगा…ये सब



दीदी की मर्ज़ी से नही हुआ है…शायद ..मेरी दीदी के भोले पन का उसने



फ़ायदा उठया है..मेरी दीदी ऐसी नही है.….ये सब बाते मेरे दिमाग़ मे चल



रही थी..करीब 20 मिनट घूमने के बाद मुझे स्टंप पेपर मिला..और मैं बॅंक मे



वापस गया ..वो बूढ़ा मुझे गेट मे एंट्री करते ही मीलगया ..मैने उसको



स्टंप पेपर दिया..अब मैं उम्मीद कर रहा था अब ताक दीदी ने ड्राफ्ट बनवा



लिया होगा ..और वो आदमी भी जा चुका होगा ...और मैं फटाफट ड्राफ्ट की लाइन



के तरफ़ बढ़ा..पर वाहा पहुच कर मेरा सिर चकरा गया …ड्राफ्ट की लाइन अब



ख़तम हो चुकी थी ..काउंटर पर लिखा था क्लोस्ड ..बॅंक मे भी भीड़ कम होने



लगी थी..मैं परेशान हो गया



..मैने सोचा की दीदी शायद बाहर मेरा वेट कर रही होंगी ..सो मैं बाहर जाने



ही लगा था कि..मैने देखा जिस तरफ अंधेरा था और वाहा जो खाली रूम था जिसमे



टूटा फर्निचर पड़ा था..वाहा से वोही बिहारी अपनी पॅंट की ज़िपार बंद करता



हुआ निकला..और बाहर चला गया..मुझे ये बड़ा आजीब लगा पर फिर मैने सोचा



शायद टाय्लेट गया होगा क्योंकि टाय्लेट भी उधर ही था…फिर मे बाहर जाने के



लिए मुड़ा ही था की मैने देखा अंजलि दीदी अपने बालो को सही करते हुए उसी



रूम से बाहर आ रही है जहा से कुछ मिनिट पहले वो आदमी निकला था..मेरा दिल



की धाड़कन एक दम बढ़ गयी …दीदी उस कमरे मे उस गंदे आदमी के साथ अकेले



थी…जो आदमी खुले आम किसी लड़की के साथ इतनी छेड़ खानी कर सकता है ..वही



आदमी अकेले मे एक खोबसुर्रत जवान लड़की के साथ क्या क्या करेगा…इन सब



ख्यालो ने मेरे लंड मे खून का दौर बढ़ा दिया...दीदी ने मेरी तरफ़ नही



देखा था….मैं दीदी की तरफ़ बढ़ा “



“दीदी आप कहा थी..मैं आपको ढूंड रहा था..”मैं बोला



दीदी थोड़ा घबरा गयी पर फिर शायद अपनी घबराहट को छुपाटी हुई वो थोड़ा



मुस्कुराइ और बोली. “ तू कब आया था …और स्टंप पेपर दे दिए तूने उन अंकल



को”



“जी..और आपने ड्राफ्ट बनवा लिया क्या” मैने उनके पसीने से भरे चेहरे को



देखते हुए बोला.उनका सूट भी कई जगह से पसीने से तर बतर था. जिसका सॉफ सॉफ



मतलब ये था कि दीदी उस रूम मे काफ़ी टाइम से थी.



“नही यार…क्लर्क ने कहा है कि ड्राफ्ट बनवाने के लिए इस बॅंक मे अकाउंट



होना ज़रूरी है”
 
दीदी मेरे सामने खड़ी थी मैने देखा कि उनके सूट पर बहुत झुर्रियाँ पड़ी

हुई है खास कर उनके उभारो के आस पास.मुझे ये अच्छी से याद था कि जब हम

बॅंक आने वाले थे तो दीदी ने प्रेस किया हुआ सूट पहना था. तो फिर क्या ये

काम उस आदमी के हाथो का है…..मुझे अब थोड़ी थोड़ी जलन भी हो रही थी कि

दीदी मुझसे झूठ क्यो बोल रही है.. और अचानक ही मैने उनसे पूछा लिया “ आप

वाहा अंधेरे मे….” “

“अरे वाहा मैं वॉश रूम गयी थी..” दीदी मुस्कुराती हुई मेरी बात को वही

काटती हुई बोली.

ये सब बात सोचते सोचते मे काफ़ी गर्म हो गया था और मेरा लंड अकाड़ने लगा

था अब मुझे वाकयी पेशाब जाना था नही तो मेरा खड़ा होता लंड अंजलि दीदी

देख सकती थी..और अगर मैं उस जगह जाता हू तो मुझे ये भी पता चला जाएगा कि

वाहा टाय्लेट है भी कि नही क्योंकि अंधेरे मे तो कुछ नज़र नही आ रह था उस

जगह. फिर मैने दीदी क वेट करने के ले बोला और फटाफट उस अंधेरे कोने की

तरफ़ चला गया..जैसे कि मैने सोचा था कोने मे टाय्लेट था मुझे ये जान कर

खुशी हुई कि दीदी सही बोल रही है..मैने वाहा पेशाब किया और बाहर आने लगा

पर पता नही मुझे उस अंधेरे कमरे मे जाने की इक्षा हुई..मैने फिर दीदी की

तरफ़ देखा तो वो अभी भी अपना सूट ठीक कर रही थी…मेरे दिमाग़ मे फिर से

शाक पैदा हुआ और मैं उस रूम मे घुस गया ..उंधर अंधेरा तो था पर इतना भी

नही ..क्योंकि उप्पर रोशन दान से रोशनी आ रही थी ..मैं इधर उधर देखने लगा

..रूम मे सीलन होने की वजह से थोड़ी बदबू भी थी..हालाकी रूम के काफ़ी

हिस्से मे टूटा फर्नीचर पड़ा हुआ था फिर मैं एक कोना खाली था मैं उस तरफ

गया. रूम के फर्श पर काफ़ी धूल जमी हुई थी.. तभी मेरी नज़र रूम की ज़मीन

पर पड़े कदमो पर गयी..लगता था मानो कोई थोड़ी देर पहले ही रूम से गया है

और वो अकेला नही था क्योंकि दो जोड़ी पैरो के निशान थे ..पर मुझे एक बात

समझ नही आई कि वो उस कोने की तरफ़ क्यो गये है ..खैर मैं उनके पीछे आगे

बढ़ा ..तो मैने देखा के उसकोने मे पैरो के निशान गायब थे और फर्श पर पड़ी

मिट्टी काफ़ी हिली हुए लग रही थी मानो जैसे किसी के बीच काफ़ी खिछा तानी

हुई हो..तो क्या ये निशान उस आदमी और दीदी के है..मैं ये सोच ही रहा था

की दीदी की आवाज़ आई और मैं जल्दी से बाहर आ गया.

क्रमशः.......................
 
अंजाना रास्ता --3

गतान्क से आगे................

फिर हम घर आने के लिए चल पड़े दीदी मुझसे थोड़ा आगे चल रही थी..मैने पीछी

से दीदी की बॅक देखी उनके रेस्मी बालो जो पोनी टेल मे बाँधती थी उसमे से

काफ़ी बाल बाहर आए हुए थे ..मानो कि वो दो लोगो के बीच हुए रगड़ मे आ गये

हो . तभी मेरी नज़र दीदी की गर्दन के पिछले हिस्से पर गयी वाहा एक पिंक

सा निशान पड़ा हुआ था..मानो किसी ने वाहा काटा हो..एक तो दीदी इतनी गोरी

थी सो वो निशान और ज़्यादा उभर का नज़र आ रहा था.. पूरे रास्ते मे मैं

आसमंजस मे रहा. मैं ये ही सोच रहा था कि शायद दीदी सही बोल रही है..वो

आदमी भी तो पॅंट की ज़िपार बंद करता हुआ ही बाहर आया था.शायद मेरा दिमाग़

खराब हो गया है..राज के साथ रह रह कर और वो सारे गंदी क्लिप्स देख कर ही

मुझे ये गंदे खियाल आ रहे है.. कुछ देर बाद ही हम घर पहुच गये इस दोरान

दीदी और मुझे मे कोई बात न हुई थी. रात को मुझे नींद नही आ रही थी रह रह

कर बॅंक वाली घटना मेरे दिमाग़ मे चल रही थी.और कई अनसुलझे सवाल दिमाग़

मे आ रहे थे..और उनमे सबसे बड़ा सवाल ये था कि दीदी ने उस आदमी को रोका

क्यो नही था…और क्या दीदी वकाई उस अंजान आदमी के साथ उस कमरे मे अकेली

थी…पर एक बात पक्की थी जो भी हुआ था पता नही क्यू उसने मेरे अंदर वासना

और हवस का एक बीज ज़रूर बो दिया था….ये सब सोचते सोचते ही अचानक मेरा हाथ

मेरे अब तक खड़े हो चुके लंड पर चला गया ..ये सारी बाते सोच सोच कर मैं

इतना गरम हो चुका था कि जैसे ही मैने अपने लंड पर हाथ लगाया उसमे से पानी

निकल गया..और फिर मुझे नींद आ गयी.

अगले दिन स्कूल के बाद मे राज के साथ साइबर केफे जा रहा था..के मुझे जोरो

से पेशाब लगा…अछा हुआ कि साथ मे ही सरकारी टाय्लेट था सो मे उसमे गुस्स.

गया.मैने अपना पॅंट की जिपर खोली और पेशाब करने लगा..तभी राज भी उधर आ

गया और मेरे बराबर मे खड़ा होकर वो भी पेशाब करने लगा..

"आजा …आजा….अहह…याल्गार" वो अपना मूह उपर करता हुआ बोला. तभी अचानक मेरी

नज़र उसके लंड पर चली गयी..बाप रे कितना बड़ा था उसका..ना चाहते हुए भी

मैं उसके लंड का साइज़ अपने से कंपेर करने लगा. राज का लंड ढीला पड़ा हुआ

था फिर भी वो इतना बड़ा लग रहा था..और इतना तो मेरा खड़ा होकर भी नही

होता होगा..तभी राज ने मुझे अपने लंड की तरफ़ घूरते हुए देख लिया..

"क्यू कैसा लगा…गन्दू" वो मुझे चिड़ाता हुआ बोला. मैने कोई जवाब नही दिया

और अपने पॅंट की ज़िप बंद करने लगा..".

"अबे बोल ना…बड़ा है ना…साले इस पर तो लड़किया मरती है" वो हस्ते हुए

अपने लंड से पिशाब की बची कुछ बूंदे झाड़ता हुआ बोला.

हम टाय्लेट से बाहर निकले ही थे के मुझे लगा कोई मुझे बुला रहा है. मैने

पीछे मूड कर देखा तो पाया कि अंजलि दीदी मेरी तरफ़ आ रही थी.उन्होने आज

ब्लू जीन्स और ग्रीन टॉप पहना था..हालाकी वो ज़्यादा जीन्स वागरह नही

पहनती थी पर कभी कभार चलता था.

"क्या बात है..साले तू तो छुपा हुआ रुस्तम निकला …कोन है ये.आइटम" राज

दीदी को घूरता हुआ बोला.मुझे बड़ा गुस्सा आया राज पर. पर गुस्से को मैं

मन मे ही दबा गया

"मेरी दीदी है…प्लीज़ उनको आइटम मत बोल..." मैने चिढ़ते हुए जवाब दिया .

दीदी अब हमारे पास आ चुकी थी.उनके पास आते ही उनके बदन पर लगी डेयाड्रांट

की खुसबु मैं महसूस कर सकता था.

"कहा जा रहा है ..और ये श्री मान कोन है" दीदी राज की तरफ़ देखते हुए बोली.

मैं कुछ बोलता इससे पहले ही राज आगे बढ़ा और अपना हाथ आगे कर

बोला.."जी..जी मेरा नाम..राज शर्मा है.मैं इसका दोस्त हू. दीदी ने भी

रिप्लाइ मे अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.

"ओके नाइस टू मैंट यू राज" दीदी राज से हाथ मिलाती हुई बोली.

मैने देखा राज की नज़रे अब सीधी दीदी के बूब्स पर थी.टॉप्स की उपर से

दीदी के बूब्स की गोलाइया काफ़ी आकर्षक लग रही थी.शायद दीदी ने भी राज को

अपने बदन का मुआईना करते हुए देख लिया था. वो थोड़ा सा शर्मा गयी.

"दीदी मे साइबर केफे जा रहा था..स्कूल के कुछ असाइनमेंट्स बनाने है" मे बोला.

"अच्छा चल ठीक ..है जल्दी घर आ जाना..मुझे तेरी थोड़ी हेल्प चाहिए आज" दीदी बोली

मैने हा मे सिर हिलाया.
 
"आप फिकर ना करे दीदी मैं इसको खुद ही घर छोड़ दूँगा" राज दीदी की आँखो

मे देखता हुआ बोला और अपना हाथ फिर से हॅंडशेक के लिए बढ़ा दिया.

"थॅंक्स यू राज" दीदी ने भी अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.

"और हा दीदी ..अगर मुझसे कोई हेल्प चाहये तो ज़रूर बताना" ये बोलते हुए

राज ने दीदी के हाथ को हल्का सा दबा दिया.ये सब इतना जल्दी हुआ कि शायद

दीदी भी ना समझ पाई थी.

फिर दीदी मूडी और घर जाने लगी .राज जींस के उप्पर से अंजलि दीदी के सुडौल

और उभरे हुए चोतड़ो को देख रहा था.और अपने एक हाथ से अपने लंड को खुज़ला

रहा था.ये देख मेरे दिल मे एक कसक सी उठी..ना जाने क्यू ?

साइबर केफे मे उसने मुझसे दीदी के बारे मे कई क्वेस्चन्स पूछे..मुझे ये

सब अच्छा नही लग रहा था..राज एक बिगड़ा हुआ और आवारा लड़का था…बाद मे वो

मुझे घर भी छोड़ने आया..हालाँकि मैं उसे अपना घर नही दिखाना चाहता था पर

मेरे ना चाहने के बाद भी वो मेरे घर तक आ गया था.वो तो घर के अंदर भी आना

चाहता था पर मैने उसको कोई बहाना मार कर बाहर से ही चलता कर दिया.

मैं घर के अंदर घुसा.तो देखा..चाचा जी घर आ चुके है और टीवी पर न्यूज़

देख रहे थे. चाची किचिन मे खाना बना रही थी.

"आज बड़ी देर लगा दी..स्कूल से आने मे" चाचा जी चाइ की चुस्की लेते हुए

बोले. मैने उनके पैर छुए और बोला " स्कूल के काम से साइबर केफे गया था

चाचा जी".

"अरे भाई तुझे अंजलि पूछ रही थी..पता नही क्या काम है ".वे बोले.

"दीदी कहा है .." मैने पूछा

"उपर रूम मे जा पूछ ले क्या काम है" चाचा जी बोले.

मैं उप्पर रूम की तरफ़ बाढ़ चला. अंदर घुसते ही मैने देखा कि दीदी अपने

बेड पर पेट के बाल लेटी हुई है..उनके बाल खुले हुए एक साइड मे लहरा रहे

है .उस वक्त उन्होने पाजामा और टी शर्ट पहना हुआ था.और वो कुछ लिख रही

थी.

पता नही क्यू अब जब भी मैं दीदी को अकेले मे देखता था तो मेरे दिल मे कुछ

कुछ होने लगता था.मैने अपना स्कूल बॅग मेज पर रखा ..

"आ गये सर..कितनी देर लगा दी" दीदी लिखती हुई बोली.

"सॉरी दीदी..टाइम थोड़ा ज़्यादा लग गया" मैने जवाब दिया.

"चल कोई बात नही..." दीदी उठकर बैठ गयी

"यार ..सर मे बहुत दर्द हो रहा है..तू एक काम करेगा" दीदी अपने माथा

सहलाते हुए बोली

"जी .दीदी …"मैं उत्सुकता से बोला

"मेरे सर की मालिश कर देगा क्या"

मेरी तो मानो लौटरी ही लग गयी ..कब से मे दीदी के उन लंबे खूबसूरत सिल्की

बालो को छूना चाहता था. मैं फॉरन तैयार हो गया.

"ओह्ह मेरे राजा भाई" दीदी मुस्कुराती हुई अपने बेड से उठी. और मेरे बॅड

के पास नीचे बैठ गयी.मैं बेड पर बैठा था फिर मैने अपने टाँगे थोड़ी खोली

और उनके बीच दीदी बैठ गाएे . मेरी टाँगे दीदी के साइड मे दोनो तरफ़

थी.दीदी को इतना पास देख मेरा दिल धड़कने लगा..

"दीदी…तेल..कहा है" मैं थोड़ा हकलाता हुआ बोला. मैं नर्वस हो गया था

इसलिए हकला रहा था शायद.

"अरे बिना तेल के कर दे यार" दीदी बोली

फिर आंटिसिपेशन मे अपने काँपते हुए हाथो को मैने दीदी के बालो मे डाल

दिया ..वाह क्या रेशमी बाल थे..उसमे से आती शॅमपू की खुसबु को सूंघते ही

मेरे लंड मे हरकत शुरू हो गयी थी.. मुझे अब मानो थोडा थोड़ा नशा होने लगा

था .मैने मालिश शुरू कर दी..ग्रिप अच्छी नही बनी तो मैं थोड़ा आगे सरक

गया अब दीदी का सर मेरी पॅंट के अंदर खड़े होते लंड के बहुत पास था..तभी

मेरी नज़र दीदी के अगले हिस्से पर गयी..और मैने देखा कि टी- शर्ट थोड़ी

लूज होने की वजह से दीदी की चूचिया थोड़ी थोड़ी नज़र आ रही थी..ये पहली

बार था जब मैने उनको इतना पास से देखा था..दीदी ने शायद ब्रा नही पहनी

थी..और जैसे जैसे मैं दीदी के सर की मालिश करता मेरे हाथो के प्रेशर से

दीदी के साथ साथ उनकी चूचियाँ भी बड़े मादक तरीके से हिल जाती..इस सब से

मुझे इतना जोश चाढ़ गया था कि मैने दीदी के सिर को थोड़ा ज़ोर से रगड़

दिया..

"आआआ..ह…आराम से कर ..अनुज.र" दीदी बोली

मुझे तो मानो नशा हो गया था.. मुझे फिर याद आया कि कैसे राज दीदी को देख

रहा था….आख़िर वो दीदी को ऐसे क्यो देख रहा था..फिर मुझे हर उस आदमी की

याद आई जो दीदी को घूरते रहते थे..वो खूबसुर्रत लड़की जिससे सब बात करने

के लिए भी तरसते थे अभी मेरे इतनी पास बैठी है..इन्सब बातो मे मैं ये भी

भूल गया था कि वो मेरी बड़ी बहन है..वासना मुझ पर हावी हो चुकी थी..तभी

मुझे एक आइडिया आया मैने फिर दीदी के बालो को इकट्ठा कर अपने राइट हॅंड

मे भर कर अपने पॅंट मे खड़े होते लंड की उप्पर डॉल दिया..फिर मैं दीदी के

रेस्मी बालो को उसपर रगड़ने लगा.

" अरे दोनो हाथो से कर ना…" दीदी अपनी बंद आखो को थोड़ा खोलते हुए बोली.

फिर.एक दो बार मैने दीदी के सिर को मालिश के बहाने पीछे कर अपने खड़े लंड

पर भी लगाया..मैं बस झड़ने ही वाला था कि ..चाची रूम मे आ गयी..

"क्या बात है बड़ी बहन की सेवा हो रही है" चाची हमारे पास आते हुए बोली.

मेरा सारा मज़ा किरकिरा हो गया था..

"मम्मी ..सच मे अनुज बहुत अच्छी मालिश करता है…आपसे भी अछी..हा हा

हा"दीदी हस्ते हुए बोली

"अच्छा चलो जल्दी करो खाना लग गया है..दोनो हाथ मूह धोकर नीचे आ जाओ.." चाची बोली

'ओके जी "दीदी अपने बालो का जुड़ा बनाते हुए बोली. फिर वो उठ गयी और नीचे

जाने लगी.मैने अपने आप को कंट्रोल मे किया और नीचे चला गया.

पीछले कुछ महीनो मे मेरा अंजलि दीदी के प्रति नज़रिया बदलने लगा था..अब

अंजलि दीदी मुझे अपनी बड़ी बहन लगने के बजाय एक जवान लड़की ज़्यादा लगने

लगी थी…पर थी तो फिर भी वो मेरी बहन ही..वो मुझे कितना प्यार करती

थी..हमेशा मेरा साथ देती थी..उन्होने मुझे सग़ी बहन से भी ज़्यादा प्यार

दिया.. .मेरा उनके बारे मे गंदा सोचना पाप था….नही नही से सब ग़लत है

..मेरा दिल आत्म ग्लानि से भर गया…..पर अगर कोई और ये सब दीदी के साथ करे

तो..कोई अंजान..जिसका दीदी से रिश्ता सिर्फ़ लंड और छूट का हो तो..ये

सोचते ही मेरे अंदर का शैतान जागने लगा…मुझे फिर वो बॅंक वाली घटना याद

आई …और राज का उस तारह से दीदी को देखना ...

जून का महीना था मेरे एग्ज़ॅम्स ख़तम हो चुके थी पर दीदी के फाइनल एअर के

एग्ज़ॅम चल रहे थे.दीदी ज़्यादा तर अपने रूम मे पढ़ती रहती थी..एक दिन

मैं घर के बाहर खड़ा कुछ समान ले रहा था..दुक्कान घर के सामने रोड के

दूसरी तरफ़ थी ..हमारे घर की एक साइड कुछ खाली जगह पड़ी हुई थी..मैने

देखा उस खाली जगह पर एक अधेड़ उम्र का आदमी पिशाब कर रहा था….जैसा कि

इंडिया मे अक्सर होता है ..कि जहा खाली जगह देखो बस उस को टाय्लेट बना

लो..वैसे तो सब कुछ नॉर्मल था..पर तभी मैने देखा को वो आदमी पिशाब करता

करता बार बार उप्पर देख रहा है…पर वो उप्पर क्यो देख रहा था…खैर कुछ देर

बाद वो आदमी वाहा से चला गया..मैं भी घर आ गया ..समान चाची को देकर मैं

सीधे उप्पर रूम मे गया जहा दीदी पढ़ रही थी…दीदी तो रूम मे नही थी..पर

मैने देखा के रूम की खिड़की खुली हुई है..वो खिड़की उस खाली पड़े हिस्से

की तरफ मे खुलती थी…मुझे कुछ शक हुआ ..और मैं खिड़के को बंद करने के लिए

आगे बढ़ा. ..मैने खिड़की से नीचे झाँका तो मुझे वो जगह सॉफ सॉफ नज़र आई

जहा उस आदमी ने पिशाब किया था..पर मुझे ये समझ नही आया कि वो बार बार

उप्पर क्यो देख रहा था..तभी मेरे दिमाग़ की घंटी बजी..क्या इस खिड़की पर

अंजलि दीदी खड़ी थी…ये सोचते ही मेरे लंड मे एक कसक सी उठी…पर बिना किसी

सबूत के मैं कैसे दीदी पर शक कर सकता हू..अब मैने प्लान बनाया कि मैं ये

जान कर ही रहूँगा..अगले दिन मैं फिर उस दुकान पर खड़ा था पर इस बार मेरा

माक़साद समान लेना नही था..ठीक शाम को 6 बजे वो बुढ्ढा अंकल पेशाब करने

के लिए उस कोने की तरफ़ बढ़ा.उसकी चाल से लगता था कि वो एक शराबी है ..वो

थोड़ा एडा तेरछा चल रहा था..फिर वो पेशाब करने लगा..
यही मोका था मैं

तुरंत जल्दी से घर के अंदर गया और उप्पर रूम की तरफ़ जाने लगा..रूम का

दरवाजा बंद था हालाकी कुण्डी नही लगी थी शायद अंदर से..अंदर क्या हो रहा

होगा इस आशा मे मेरा हाथो मे पसीना आ गया था …काँपते हाथो से मैने रूम का

दरवाजा हल्का सा खोला और अंदर चुपके से झाका..अंजली दीदी खिड़की के पास

खड़ी थी..और उनका एक हाथ टी-शर्ट के उप्पर से अपनी बाई चूची को हल्के

हल्के सहला रहा था..और उनका दूसरा हाथ जिसमे दीदी ने पेन पकड़ा हुआ था

उसको पजामि के उप्पर से शायद अपनी चूत पर गोल गोल घुमा रही थी.. दीदी

लगातार खिड़की से नीची झाँक रही थी ..चेहरा..शरम से लाल था..उनके चेहरे

पर वासना छाई हुई थी…फिर दीदी थोड़ा और आगे की तरफ़ झुक गयी जिससे अब

उनके बॅक प्युरे तरह से मेरे सामने थी ..तभी मैने देखा की उन्होने अपना

नीचला हिस्सा हिलाना शुरू कर दिया है..वो अपने नीचले हिस्से को नीचे

देखते देखते दीवार पर रगड़ने लगी थी….पता नही क्यो ये सब देखते देखते

मेरा हाथ पॅंट के उप्पर से मेरे लंड पर चला गया ये सब देख मेरा लंड इतना

टाइट हो चुका था कि जितना पहले कभी नही हुआ था ..और मैं मूठ मारने

लगा…अच्छा था उस वक्त घर मे और कोई ना था..नही तो मैं पकड़ा जा सकता

था…अब ये पक्का हो गया था कि दीदी भी सेक्स की इच्छुक हो गयी है.. तभी

दीदी ज़ल्दी ज़ल्दी अपना नचला हिस्सा दीवार पर रगड़ने लगी और उनके हाथ अब

ज़ोर ज़ोर से अपनी कड़क हो चुकी चूची को दबाने लगे.

क्रमशः.......................
 
[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]अंजाना रास्ता --4[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]गतान्क से आगे................[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]"एयाया..हह..इसस्सस्स…" हल्की से आवाज़ मेरे कानो मे पड़ी और मेरे लंड ने[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]पानी छोड़ दिया..वो आवाज़ दीदी के खुले होंठो से निकली थी ..शायद उनको भी[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]ऑर्गॅज़म हुआ था..मैने अपने आप को संभाला और घर के बाहर आ गया..बाहर आकर[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]मैने देखा कि वो बुढ्ढा अंकल भी जा चुका था..[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]अगले दिन मेरी स्कूल बस मिस हो गयी थी.क्योंकि मैं सही से सो नही पाया था[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]सारी रात दीदी के बारे मे सोचता रहा था .करीब 10 मिनट मे बस आई मैं फटा[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]फट बस मे चढ़ गया.बस मे काफ़ी भीड़ थी .मैं साइड मे खड़ा था कि तभी कोई[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]मुझ से टकराया..मैने मूड कर देखा तो पाया कि ये वही अंकल थे जो उस दिन घर[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]के साइड मे पेशाब कर रहे थे.वो अंकल देखने मे बड़ा झगड़ालु टाइप लग रहा[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]था..रह रह कर वो लोगो को गंदी गंदी गालिया दे रहा था..बस मे लड़कियाँ और[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]औराते भी थी ..पर वो किसी की शर्म नही कर रहा था.उसकी बॉडी लॅंग्वेज देख[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]कर वो मुझे अभी भी थोड़ा नशे मे लग रहा था उसके मूह से शराब की बदबू भी आ[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]रही थी.. खैर वो थोड़ा आगे निकल गया .और मैं खिड़की से बाहर देखने[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]लगा..तकरीबन 5 मिनट के बाद मेरी नज़र उस अंकल पर दोबारा गयी..और जो सीन[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]मैने देखा वो मेरे लंड को खड़ा करने के लिए काफ़ी था..अंकल एक 30-32 साल[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]की शादी शुदा और्रत की पीछे चिपका खड़ा था.उसका अगला हिस्सा साड़ी के[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]उप्पर से उस और्रत के कूल्हे से बिकुल चिपका था और वो धीरे धीरे धक्के[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]लगा रहा था..मैने औरत के चेहरे की तरफ़ देखा तो पाया कि उसके चेहरे पर जो[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]एक्सप्रेशन था वो उसकी माजबूरी बयान कर रहा था..अंकल उस औरत की मजबूरी और[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]बस की भीड़ का पूरा फ़ायदा उठा रहा था..अब मैं समझ गया था कि अंकल तो[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]पक्का हारामी इंसान है. शायद ये उसका रोज का काम था . वो उस औरत के साथ[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]लगभग 15 मिंट्स तक ऐसे ही साडी की उप्पर से मज़े लेता रहा ..फिर मेरा[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]स्टॅंड आ गया और मैं बस से उतर गया.[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]आज कल स्कूल मे मेरा मन नही लग रहा था और लगता भी कैसे हर वक्त तो दिमाग़[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]मे सेक्स की बाते ही चलती रहती थी. मैं चाहे कितना भी कोशिस कर लू अपना[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]दिमाग़ इस चीज़ से हटाने मे पर फिर भी कुछ ना कुछ ऐसा हो जाता था जिसकी[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]वजह से मेरे अंदर का छुपा हुआ हवस का शैतान जागने लगता था. उप्पर से[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]अंजलि दीदी के बारे मे भी मेरा नज़रिया बदलने लगा था..अब वो मुझे अपने[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]बड़ी बहन ना लग कर एक जवानी से भरपूर लड़की नज़र आने लगी थी जो अपनी[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]मदमस्त जवानी लुटवाने को तैयार बैठी थी. अब हालत ये होगये थे कि अब जब भी[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]दीदी घर पर होती तो ना जाने दिन मे कितनी बार उनको चुपके चुपके देख कर[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]मूठ मारने लगा था….जैसे जैसे दिन बीतने लगे वैसे वैसे मेरी हवस भी बढ़ने[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]लगी..और इसी दौरान एक दिन अंजलि दीदी ने मुझसे बोला कि उनको कॉलेज से एक[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]सर्वे करने का असाइनमेंट मिला है .[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]सर्वे मे उनको झुग्गी झोपड़ी मे रहने वाले ग़रीब तबके के लोगो को सॉफ[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]सफाई के बारे मे जागरूक करना है. दीदी बोली के उनके साथ सर्वे पर जाने[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]वाली पार्ट्नर ( रीमा ) बीमार हो गयी है और वो मुझे अपने साथ ले जाना[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]चाहती है. मेरे भी एग्ज़ॅम्स ख़तम हो गये थे सो मैने हा कर दी. अगली सुबा[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]करीब 9 बजे मैं दीदी के साथ सर्वे पर निकल गया. दीदी ने उस दिन ब्लॅक सूट[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]और वाइट कलर की चूड़ीदार पजामि पहनी थी और अपने सेक्सी लंबे बालो का[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]उन्होने जुड़ा बनाया हुआ था .ब्लॅक ड्रेस मे दीदी का गोरा बदन एक अलग ही[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]रंगत बिखेर रहा था. हम कुछ देर बाद एक स्लम एरिया मे पहोच गये ….और जैसे[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]सोचा था वैसी ही गंदगी वाहा फेली हुई थी..हर जगह कूड़ा …गंदी नालिया[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]…वाहा से आ आ रही बदबू की वजह से दीदी ने अपना मूह अपनी चुन्नी से कवर कर[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]लिया था. ज़्यादा तर मर्द अपने घर से जा चुके थे रॉटी पानी का जुगाड़[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]करने के लिए और जो कुछ बचे थे वो अपनी भूकी आँखो से दीदी की जवानी को[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]निहार रहे थे. उनको शायद ये यकीन नही हो रहा था कि इतनी खूबसूरत जवान[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]लड़की उनकी इस गंदी सी बस्ती मे क्या कर रही है….[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]" अरे कहा जा रही है..आजा…मेरे पास..मेरी जान" एक आदमी कुछ पीता हुआ[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]बोला..वो शायद चरस पी रहा था..[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]"बेह्न्चोद रंडी की. गंद देख…क्या उभरी हुए गांद है…आजा रानी तुझे मस्त[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]कर दूँगा अपने लंड से..".दोसरा आदमी अपना लंड दीदी को देख खुजलाता हुआ[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]बोला.[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]दीदी और मैं ये सब सुन रहे थे..पर क्या करते ..उन ..बेकार लोगो से और[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]क्या उम्मीद की ज़ा सकती है..सो दीदी ने उनकी बातो को इग्नोर कर दिया और[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]हम बस्ती के अंदर घुस गये. बस्ती तो मानो एक भूल भुलैया थी ..छोटी छोटी[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]तंग गलिया..[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]"अनुज चल इस घर मे चलते है." दीदी एक झोपड़ पट्टी की तरफ़ इशारा करते हुए बोली.[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]हम अंदर दाखिल हो गये . अंदर एक बुढ्ढि औरत रोटी बना रही थी..हमे अंदर[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]आता देख बोली " कोन हो और क्या चाहिए"[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]"कुछ नही माता जी हम एक सर्वे कर रहे है और हमे आपको सफाई के बारे मे कुछ[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]बाते बतानी है" दीदी मुस्कुराती हुई बोली.[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]"ये सर्वे क्या होता है..देखो मेरे पास टाइम नही है..मुझे काम करने जाना[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]है..तुम लोग जाओ" वो औरत झेन्प्ते हुए बोली. दीदी ने उसको बहुत समझाया पर[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]वो ना मानी सो हम वाहा से बाहर आ गये. इसी तरह हम हर झुगी मे जाकर लोगो[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]को साफाई की इंपॉर्टेन्स बताने लगे कुछ लोगो ने हमारी बात सुनी और कुछ नी[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]नही. खैर ये सब करते करते हमे दोपहर के 2 बज गये.[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]"दीदी और कितना घूमना पड़ेगा..मैं थॅंक गया हू" मैं दीदी की तरफ़ देखता हुआ बोला.[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]"ओह्ह..मेरा प्यारा भाई थक्क गया…आइएम सो सॉरी तुम मेरी वजह से कितना[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]परेशान हो गये ना.." दीदी बड़े प्यार से मेरी तरफ़ देखते हुए बोली. तभी[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]मैने देखा कि सामने से कोई लड़खदाता हुआ हमारी तरफ़ आ रहा है..जैसे ही वो[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]साया हमारे करीब आया . उसको देखते ही मेरे पैरो के नीचे से ज़मीन निकल[/font]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]गयी…[/font]
[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]अंजाना रास्ता --4[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]गतान्क से आगे................[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]"एयाया..हह..इसस्सस्स…" हल्की से आवाज़ मेरे कानो मे पड़ी और मेरे लंड ने[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]पानी छोड़ दिया..वो आवाज़ दीदी के खुले होंठो से निकली थी ..शायद उनको भी[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]ऑर्गॅज़म हुआ था..मैने अपने आप को संभाला और घर के बाहर आ गया..बाहर आकर[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]मैने देखा कि वो बुढ्ढा अंकल भी जा चुका था..[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]अगले दिन मेरी स्कूल बस मिस हो गयी थी.क्योंकि मैं सही से सो नही पाया था[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]सारी रात दीदी के बारे मे सोचता रहा था .करीब 10 मिनट मे बस आई मैं फटा[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]फट बस मे चढ़ गया.बस मे काफ़ी भीड़ थी .मैं साइड मे खड़ा था कि तभी कोई[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]मुझ से टकराया..मैने मूड कर देखा तो पाया कि ये वही अंकल थे जो उस दिन घर[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]के साइड मे पेशाब कर रहे थे.वो अंकल देखने मे बड़ा झगड़ालु टाइप लग रहा[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]था..रह रह कर वो लोगो को गंदी गंदी गालिया दे रहा था..बस मे लड़कियाँ और[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]औराते भी थी ..पर वो किसी की शर्म नही कर रहा था.उसकी बॉडी लॅंग्वेज देख[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]कर वो मुझे अभी भी थोड़ा नशे मे लग रहा था उसके मूह से शराब की बदबू भी आ[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]रही थी.. खैर वो थोड़ा आगे निकल गया .और मैं खिड़की से बाहर देखने[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]लगा..तकरीबन 5 मिनट के बाद मेरी नज़र उस अंकल पर दोबारा गयी..और जो सीन[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]मैने देखा वो मेरे लंड को खड़ा करने के लिए काफ़ी था..अंकल एक 30-32 साल[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]की शादी शुदा और्रत की पीछे चिपका खड़ा था.उसका अगला हिस्सा साड़ी के[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]उप्पर से उस और्रत के कूल्हे से बिकुल चिपका था और वो धीरे धीरे धक्के[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]लगा रहा था..मैने औरत के चेहरे की तरफ़ देखा तो पाया कि उसके चेहरे पर जो[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]एक्सप्रेशन था वो उसकी माजबूरी बयान कर रहा था..अंकल उस औरत की मजबूरी और[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]बस की भीड़ का पूरा फ़ायदा उठा रहा था..अब मैं समझ गया था कि अंकल तो[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]पक्का हारामी इंसान है. शायद ये उसका रोज का काम था . वो उस औरत के साथ[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]लगभग 15 मिंट्स तक ऐसे ही साडी की उप्पर से मज़े लेता रहा ..फिर मेरा[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]स्टॅंड आ गया और मैं बस से उतर गया.[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]आज कल स्कूल मे मेरा मन नही लग रहा था और लगता भी कैसे हर वक्त तो दिमाग़[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]मे सेक्स की बाते ही चलती रहती थी. मैं चाहे कितना भी कोशिस कर लू अपना[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]दिमाग़ इस चीज़ से हटाने मे पर फिर भी कुछ ना कुछ ऐसा हो जाता था जिसकी[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]वजह से मेरे अंदर का छुपा हुआ हवस का शैतान जागने लगता था. उप्पर से[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]अंजलि दीदी के बारे मे भी मेरा नज़रिया बदलने लगा था..अब वो मुझे अपने[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]बड़ी बहन ना लग कर एक जवानी से भरपूर लड़की नज़र आने लगी थी जो अपनी[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]मदमस्त जवानी लुटवाने को तैयार बैठी थी. अब हालत ये होगये थे कि अब जब भी[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]दीदी घर पर होती तो ना जाने दिन मे कितनी बार उनको चुपके चुपके देख कर[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]मूठ मारने लगा था….जैसे जैसे दिन बीतने लगे वैसे वैसे मेरी हवस भी बढ़ने[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]लगी..और इसी दौरान एक दिन अंजलि दीदी ने मुझसे बोला कि उनको कॉलेज से एक[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]सर्वे करने का असाइनमेंट मिला है .[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]सर्वे मे उनको झुग्गी झोपड़ी मे रहने वाले ग़रीब तबके के लोगो को सॉफ[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]सफाई के बारे मे जागरूक करना है. दीदी बोली के उनके साथ सर्वे पर जाने[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]वाली पार्ट्नर ( रीमा ) बीमार हो गयी है और वो मुझे अपने साथ ले जाना[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]चाहती है. मेरे भी एग्ज़ॅम्स ख़तम हो गये थे सो मैने हा कर दी. अगली सुबा[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]करीब 9 बजे मैं दीदी के साथ सर्वे पर निकल गया. दीदी ने उस दिन ब्लॅक सूट[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]और वाइट कलर की चूड़ीदार पजामि पहनी थी और अपने सेक्सी लंबे बालो का[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]उन्होने जुड़ा बनाया हुआ था .ब्लॅक ड्रेस मे दीदी का गोरा बदन एक अलग ही[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]रंगत बिखेर रहा था. हम कुछ देर बाद एक स्लम एरिया मे पहोच गये ….और जैसे[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]सोचा था वैसी ही गंदगी वाहा फेली हुई थी..हर जगह कूड़ा …गंदी नालिया[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]…वाहा से आ आ रही बदबू की वजह से दीदी ने अपना मूह अपनी चुन्नी से कवर कर[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]लिया था. ज़्यादा तर मर्द अपने घर से जा चुके थे रॉटी पानी का जुगाड़[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]करने के लिए और जो कुछ बचे थे वो अपनी भूकी आँखो से दीदी की जवानी को[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]निहार रहे थे. उनको शायद ये यकीन नही हो रहा था कि इतनी खूबसूरत जवान[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]लड़की उनकी इस गंदी सी बस्ती मे क्या कर रही है….[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]" अरे कहा जा रही है..आजा…मेरे पास..मेरी जान" एक आदमी कुछ पीता हुआ[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]बोला..वो शायद चरस पी रहा था..[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]"बेह्न्चोद रंडी की. गंद देख…क्या उभरी हुए गांद है…आजा रानी तुझे मस्त[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]कर दूँगा अपने लंड से..".दोसरा आदमी अपना लंड दीदी को देख खुजलाता हुआ[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]बोला.[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]दीदी और मैं ये सब सुन रहे थे..पर क्या करते ..उन ..बेकार लोगो से और[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]क्या उम्मीद की ज़ा सकती है..सो दीदी ने उनकी बातो को इग्नोर कर दिया और[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]हम बस्ती के अंदर घुस गये. बस्ती तो मानो एक भूल भुलैया थी ..छोटी छोटी[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]तंग गलिया..[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]"अनुज चल इस घर मे चलते है." दीदी एक झोपड़ पट्टी की तरफ़ इशारा करते हुए बोली.[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]हम अंदर दाखिल हो गये . अंदर एक बुढ्ढि औरत रोटी बना रही थी..हमे अंदर[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]आता देख बोली " कोन हो और क्या चाहिए"[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]"कुछ नही माता जी हम एक सर्वे कर रहे है और हमे आपको सफाई के बारे मे कुछ[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]बाते बतानी है" दीदी मुस्कुराती हुई बोली.[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]"ये सर्वे क्या होता है..देखो मेरे पास टाइम नही है..मुझे काम करने जाना[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]है..तुम लोग जाओ" वो औरत झेन्प्ते हुए बोली. दीदी ने उसको बहुत समझाया पर[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]वो ना मानी सो हम वाहा से बाहर आ गये. इसी तरह हम हर झुगी मे जाकर लोगो[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]को साफाई की इंपॉर्टेन्स बताने लगे कुछ लोगो ने हमारी बात सुनी और कुछ नी[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]नही. खैर ये सब करते करते हमे दोपहर के 2 बज गये.[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]"दीदी और कितना घूमना पड़ेगा..मैं थॅंक गया हू" मैं दीदी की तरफ़ देखता हुआ बोला.[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]"ओह्ह..मेरा प्यारा भाई थक्क गया…आइएम सो सॉरी तुम मेरी वजह से कितना[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]परेशान हो गये ना.." दीदी बड़े प्यार से मेरी तरफ़ देखते हुए बोली. तभी[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]मैने देखा कि सामने से कोई लड़खदाता हुआ हमारी तरफ़ आ रहा है..जैसे ही वो[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]साया हमारे करीब आया . उसको देखते ही मेरे पैरो के नीचे से ज़मीन निकल[/font][/size]

[font="Lucida Grande", "Trebuchet MS", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=small]गयी…

[/font][/size]
 
…और ये हाल सिर्फ़ मेरा ही नही बल्कि अपने चेहरे पर डर से आया पसीना

पोछती हुई अंजलि दीदी का भी था दीदी ने भी उसको पहचान लिया था..वो इंसान

कोई और नही बल्कि वोही अंकल था जिसको दीदी अपने रूम से नीचे झाक कर पेशाब

करते हुए देखती थी..शायद अंकल भी दीदी को पहचान गये थे क्योंकि वो रुक

गया था और दीदी को देख कर उसके गंदे चेहरे पर शैतानी हसी आ गयी थी..

" अरे वाह किसी ने सही कहा है जब भगवान देता है तो झप्पड़ फाड़ कर देता

है..आज जुए मे भी मे 10'000 रुपेये जीता और अब…" अंकल मुस्कुराता हुआ

बोला

"बेटे पहचाना मुझे ..कुछ याद आया .." वो बड़ी बेशर्मी से अपना लंड अपनी

पॅंट के उप्पर से खुजलाता हुआ बोला.

अंजलि दीदी तो मानो सुन्न पड़ गयी थी..उनका खूबसूरत चेहरा शर्म से लाल हो

गया था..वो दोनो कुछ सेकेंड तक लगातार एक दूसरे की आखो मे देखते रहे ..वो

शायद ये भी भूल गये थी कि मैं भी वही साथ मे खड़ा हू. अंकल तो मानो आखो

ही आखो मे दीदी से कुछ कह रहा था…तभी दीदी ने अपनी नज़रे नीची कर ली..

"भाई क्या हुआ..यहा कैसे.." अंकल बोला

दीदी ने कुछ ना बोला ..दीदी को कोई जवाब ना देते देख मे बोल उठा." हम यहा

सर्वे करने आए है…"

"वाह वाह..अच्छा है...किस चीज़ का सर्वे" वो अब मेरी तरफ़ देखता हुआ

बोला. अंकल की आखो मे अब चमक आ चुकी थी..

"हम यहा लोगो को सफाई की इंपॉर्टेन्स बताने आए है" मैने तुरंत जवाब दिया.

"बहुत अछा .कितना नेक काम कर रहे हो आप लोग …मेरी खोली यही पास मे है

मुझे भी कुछ बता दो…"

"नाअ..नही हमे अब घर जाना है.." दीदी काँपती आवाज़ मे बोली.

अंकल एक बड़ा हारामी इंसान था इतना अच्छा मौका भला वो कैसे छोड़ता. उसने

फॉरन अंजलि दीदी का गोरा हाथ अपने गंदे से हाथ ले लिया और बोला " अरे ऐसे

कैसे..आप लोग मेरे मेहमान है मुझे भी मेहमान नवाज़ी का मोका दो.." दीदी

तो मानो उसके हाथ की गुड़िया सी बन गयी थी. अंकल तो मुझे ऐसे इग्नोर कर

रहा था जैसे कि मैं वाहा हू ही नही उसका सारा ध्यान दीदी पर ही केंद्रित

था. मुझे अंकल की ये हरकत बुरी लग रही थी..और मैं चाहत्ता तो उनको रोक भी

सकता था ..पर ना जाने क्यू मेरे अंदर छुपा वो हवस का भूका शैतान मुझे से

सब करने से रोक रहा था..और कुछ ही देर मे हम दोनो अंकल के झोपडे के अंदर

थे. झोपड़ी कुछ ज़्यादा बड़ी ना थी फिर भी उसमे दो हिस्से थे..यहा वाहा

कुछ खाली शराब की बोटले पड़ी थी..समान के नाम पर एक पुरानी चारपाई .एक

लकड़ी की मेज , एक बड़ा सा बक्सा और कुछ छोटा मोटा घरेलू समान था…दीदी और

मैं चारपाई पर बैठे थे…

"देख लो ये है मेरा हवा महल..हा हा हा .." वो अपनी जेब से एक शराब की

बॉटल निकाल कर मैंज पर रखता हुआ बोला.

दीदी अब भी उस आदमी से नज़रे नही मिला पा रही थी..अंकल कुछ देर के लिए

झोपड़ी के दूसरे हिस्से मे गया और थोड़ी देर बाद वापस आया तो उसके बदन पर

सिर्फ़ लूँगी बँधी थी…अंकल बिल्कुल दुब्ब्ला पतला था ..उसके सीने पर उगे

सफेद होते बॉल काफ़ी घने थे .

" अरे भाई मुझे भी तो बताओ..सफाई के फ़ायदे ..देखो मेरा घर कितना गंदा है

..और मेरे यहा सफाई करने वाला भी कोई नही.." वो पास पड़े इस्तूल को दीदी

के बिल्कुल पास रख उसपर बैठता हुआ बोला. अब मेरी नज़र दीदी पर थी दीदी की

साँसे तेज चल रही थी जिसकी गवाही सूट मे क़ैद उनकी छातियाँ ज़ल्दी ज़ल्दी

उप्पर नीचे होकर दे रही थी. दीदी की घबराहट सिर्फ़ मैने ही नही बल्कि

उनके पास बैठे अंकल की पारखी नज़र ने भी देख ले थी." अरे बिटिया क्या हुआ

तुमने तो कोई जवाब ही नही दिया.." और अंकल ने अपना उल्टा हाथ खाट पे बैठी

दीदी की राइट जाँघ पर रख दिया. दीदी को तो मानो 11'000 वॉल्ट का करेंट

लगा गया और उनके बदन ने एक झटका खाया..

" उन्न..अंकल हम लेट हो रहे है..हम आपको किसी और दिन समझा देंगी" दीदी ने

पहली बार अंकल की आँखो मे देखते हुए बोला.

"अरे अभी तो सिर्फ़ दोपहर के 2 बजे है. और बाहर बहुत गर्मी है थोड़ी देर

बाद चले जाना बिटिया.." अंकल अपना हाथ जो कि अभी भी दीदी की जाँघो पर रखा

था उसको धीरे धीरे से सहलाते हुए बोले. दीदी ने अपने हाथो मे पकड़े हुए

रेजिस्टर ( जो कि उन्होने सर्वे की इंपॉर्टेंट जानकारी लेने के लिए लिया

हुआ था ) उसको जोरो से जाकड़ लिया.

"तुम्हारा नाम क्या है." अंकल सीधा दीदी की ऊपर नीचे होती हुई छातियो को

देखते हुए बोला.

"जीई..मेरा..ना..नामाम है …अंजलि "

दीदी को अपने इतना पास देख वो अंकल बहुत ही उतावला लग रहा था.अगर मैं

वाहा मोजूद ना होता तो शायद अब तक वो दीदी के कपड़े फाड़ उनकी जवानी

लूटना शुरू भी कर चुका होता.

"तुम इतना क्यो डर रही हो बिटिया..इसमे डरने वाली क्या बात है…." बोलकर

अब अंकल स्टूल से उठकर चारपाई पर दीदी की लेफ्ट साइड मे खाली पड़ी जगह पर

बैठ गया.वो जब उठ रहा था तो मेरी नज़र यका यक उसकी लूँगी पर बनते हुए

टेंट पर गयी..वो टेंट अभी ज़्यादा बड़ा नही बना था फिर भी अंकल के खड़े

होने पर वो सॉफ नज़र आ रहा था…और ये सिर्फ़ मैने नही दीदी ने भी देखा था.

"पानी पीओगी.." अंकल बोला.

दीदी ने सोचा कि अगर वो हा करती है तो अंकल उठ कर पानी लेने चला गाएगा

जिससे कि उनको थोड़ा सकून मिलेगा.

"हंजी" दीदी धीरे से बोली

पर अंकल तो मंझा हुआ शिकारी था उसने तुरंत मेरी तरफ देखा और बोला " अरे

बेटा छोटू जा अंदर जा एक ग्लास पानी ले आ..ग्लास अलमारी से निकाल लेना और

पानी का मटका वही नीचे रखा है ". मैं भी क्या करता उठ कर झोपड़ी के दूसरे

हिस्से मे चला गया.अब मेरी बड़ी बहन उस अंजान अंकल के साथ अकेली थी मेरा

दिल जोरो से धड़कने लगा..फिर मैने सामने अलमारी मे रखे एक पीतल के ग्लास

को हाथ मे उठाया ही था कि मुझे..अचानक दीदी की हाथो मे पहने कड़ो की खनक

ने की आवाज़ आई..मानो दीदी अपने हाथो को जोरो से हिला रही है…मेरे दिमाग़

मे ख़तरे की घंटी बजने लगी …और फिर '"आआ..इसस्स्शह….." दीदी के मूह से

निकली ये सीत्कार बहुत धीरे होने के बावजूद मेरे अब तक सतर्क हो चुके

कानो मे आई. दूसरी तरफ़ क्या हो रहा होगा..ये सोचते ही मेरे लंड मे करेंट

फैलने लगा. जो दीवार झोपडे को बाटती थी मैं चुप चाप उसके पास जाकर खड़ा

हो गया अब मैं देख तो कुछ नही पा रहा था पर हल्की हल्की आवाज़े मुझे

ज़रूर सुनाई दे रही थी..

और मैने सुना

दीदी : आह..अंकल….प्लीज़ अब घर जाने दो..'

अंकल: " इस.हह..ऐसे कैसे जाने दू मेरी जान…..मुझे तो अपने किस्मत पर यकीन

ही नही हो रहा है..जिस लड़की को सोच सोच कर मैने इतना मूठ मारा ..वो आज

मेरे घर मे..आहह.."

दीदी : "उन..ह…अंदर ..मेरा छोटा भाई है प्लीज़…..अहह..मे बदनाम हो जाउन्गी…"

अंकल : "क्यो क्या हुआ जब तू मुझे पेशाब करते हुए देखती थी…तब तुझे शर्म

नही आती थी..साली तेरे बारे मे सोच सोच कर मैने कितनी रंडिया चोदी है

.क्या तुझे इस बात का ज़रा भी इल्म है"

तभी दीदी के काँपते होटो से फिर एक सिसकारी निकली."आहह.इसस्स्स्स्शह….वो

मेरा भाई उन..अंदर…….आईशह…".

अंकल : "अच्छा..अब समझ आया ..तू अपने भाई के पास होने से डर रही है..तू

रुक मे कुछ करता हू अभी.."

दीदी कुछ ना बोली..

मैं सोच मे पड़ गया क्या वाकई दीदी मेरी वजह से हिचाक रही है..??

मैं तुरंत पानी का ग्लास लेकर उस तरफ़ निकला ही था कि मेरे पैर से एक

शराब की खाली पड़ी बॉटल टकरा गयी..इस आवाज़ से कुछ पल के लिए सब शांत हो

गया और मैं उस तरफ़ जहा वो दोनो थे..चल पड़ा ..उधर आते ही मैने देखा कि

दीदी के बालो का जुड़ा खुला हुआ है.और उनके बाल फेले हुए है और दीदी अपना

दुपट्टा सही कर रही है. अंकल अभी भी दीदी की बगल मे बैठे थे और वो अपने

लूँगी मे खड़े लंड को शायद मुझसे छुपाने की कोशिश कर रहे थे.

क्रमशः.......................
 
अंजाना रास्ता --5

गतान्क से आगे................

"ला इधर ला पानी.." अंकल मेरे हाथ से पानी का ग्लास लेते हुए बोले.

मेरे नज़र अभी भी दीदी पर ही थी जो कि मुझसे नज़र नही मिला पा रही थी.

" ले बिटिया.पानी पी ले.." अंकल पानी का ग्लास दीदी की तरफ़ बढ़ाते हुए बोले.

पर दीदी ने पानी नही पिया. इस पर अंकल ने थोड़ी देर तक कुछ सोचा और

बोला.." चल तेरे लेए ठंडा मँगाता हू"

फिर उसने मुझे पेप्सी की बॉटल लाने के लिए कुछ पैसे दिए और बोला कि

नुक्कड़ पर एक पान की दुकान है वाहा से एक ठंडी पेप्सी ले आओ. वो तो मुझे

एक नोकर के तरह ट्रीट कर रहा था..पर मुझे उसका मकसद समझ आ गया था..सो मैं

तुरंत बाहर जाने की लिए बढ़ा ही था कि ..अचानक दीदी मुझे कुछ बोलने को

हुई..शायद बोलना चाह रही थी कि " अनुज मुझे इस आदमी के साथ अकेला मत छोड़

कर जा " पर अंकल ये भाप गये वो तुरंत बोल पड़ा जल्दी जा बेटा नही तो

दुकान बंद हो जाएगी..फिर मैं बाहर आ गया..पर मेरे दिमाग़ मे भी कुछ चल

रहा था..और इस बार मैं किसी भी हालत मे ऐसा सुनहरा मौका छोड़ना नही चाहता

था.. मैं घूम कर उस झुगी की दोसरि तरफ़ चला गया..और अंदर झाँकने के लिए

कोई जगह ढूँढने लगा…मैं अंदर क्या हो रहा होगा सोच सोच कर बहुत ज़्यादा

एग्ज़ाइटेड होने लगा था..ज़ल्दी ही मुझे एक जगह मिल गयी ..दीवार मे एक

छेद हुआ पड़ा था .वो छेद कोई ज़्यादा बड़ा तो नही था पर फिर भी मुझे अंदर

का नज़ारा सॉफ नज़र आ रहा था…अंकल की खोली (रूम ) बिल्कुल कोने मे थी सो

कोई मुझे वाहा उधर झाँकते हुए देख भी नही सकता था..फिर मैने अंदर देखना

शुरू किया..और जैसा मैने सोचा था वैसा ही हो रहा था..अंकल ने अंजलि दीदी

को अपनी बाहो मे जकड़ा हुआ था..उसका एक हाथ दीदी की कमर को उपर से नीचे

तक सहला रहा था..

"अब तो शाराम छोड़ दे मेरी जान…अब तो तेरे भाई को भी मैने बाहर भेज दिया

है" अंकल दीदी की जांझो(थाइस) को सहलाते हुए बोले.

"अंकल..प्लस्सस्स…आह..प्ल्ज़्ज़ मुझे घर जाने दो" दीदी अंकल का हाथ अपने

जाँघो से हटाने की कोशिस करते हुए बोल रही थी.

" इन सेक्सी बालो को क्यू बाँध रखा है तूने..बह्न्चोद..खोल इन्हे.."वो

दीदी की जुड़ी को खोलते हुई बोला.

शायद उसको भी लड़कियो के लंबे बाल बहुत पसंद थी..और दीदी के बाल लंबे

होने के साथ साथ एकदम सिल्की भी थे. बालो की चमंक ओर शाइन ये बता रही थी

कि दीदी उनकी कितनी देख रेख करती है.अंकल के लिए ये सब मानो सपना सा ही

था जिसका वो पूरा फ़ायदा उठना चाह रहे थे. जोश मे आकर अंकल ने दीदी के अब

तक बिखर चुके बालो को अपने हाथो मे भर कर उनमे अपना मूह डाल दिया और बालो

की खुशुबू सुघने लगे..जैसे जैसे दीदी के बालो से आती खुशुबू उस गंदे आदमी

के दिमाग़ मे जाने लगी वैसे वैसे उसका लंड लूँगी मे खड़ा होने लगा..ये

देख सिर्फ़ अंकल ही नही दीदी भी हैरान थी..अब तो दीदी को भी अपने बालो की

इंपॉर्टेन्स का पता चल गया था..और शायद वो अपने आप पर थोड़ा घमंड भी करने

लगी थी..हालाँकि वो घमंड थोड़ी देर के लिए ही था..क्योंकि अंकल अब दीदी

के बालो को अपने बालो से भरी छाती पर रगड़ने लगा ..और इससे दीदी के बॉल

खिचने लगे तो दीदी कराह उठी."आआऐसशह…धीरे कारू....दर्द होता है.."

अंकल का जोश अब बढ़ता ही जा रहा था..और जिस तरह से वो दीदी के जाँघो को

सहला रहा था दीदी भी थोड़ा थोड़ा बहकने लगी थी ..अब दीदी के हाथो ने अंकल

के हाथो को पकड़ा तो हुआ था पर वो उनको रोक नही रही थी

"तेरी उम्र क्या है.."

"जी..तीइश्ह्ह्ह्ह्ह…23" अंजलि दीदी काँपती आवाज़ मे बोली.

"किसी ने तुझे पहले चोदा है…" अंकल दीदी की गर्दन पर आए पसीने को अपने

खुरदूरी जीब से चाट ते हुए बोला. अंकल की खुरदरी जीब अपनी गर्देन पर लगते

ही दीदी के बदन ने एक झटका खाया..और दीदी की आँखे इस अनोखे मज़े के आनंद

मे बंद होने लगी.

"बोला साली…चुदी है किसी से पहले….वैसे तुझे देख कर लगता नही की तू अभी

ताक चुदाई से बची होगी..."

"आआअहह…नही मैं कवारी हू…"दीदी ने अपनी बंद आखो को और ज़्यादा बंद करते

हुए जवाब दिया.

अंकल को तो मानो कुबेर का ख़ज़ाना मिल गया जब दीदी ने बताया कि वो अभी

कवारी है.वो जल्दी खड़ा हुआ और फटाफट अपनी लूँगी खोल एक तरफ़ फैंक दी वो

अब पूरा नंगा दीदी के सामने खड़ा था दीदी अभी भी चारपाई पर बैठी थी. उसका

लंड रुक रुक कर झटके खा रहा था ..ये देख मेरा हलक सुख गया था तो आप समझ

सकते है कि दीदी की क्या हालत हुई होगी. लंड काफ़ी बड़ा लग रहा था ..

"हाथ मे ले इसे.." अंकल को दोबारा नही बोलना पड़ा और ना चाहते हुए भी

दीदी का हाथ अपने आप उस विशाल लंड पर चला गया. और क्यू ना जाता इसी को तो

वो अपने रूम से चुपके चुपके देख कर अपने बदन को सहलाती थी..

दीदी के ठंडे नरम नरम हाथो को स्पर्श पाकर लंड ने एक ज़ोर का झटका मारा.

और अंकल के मूह से निकला "एयेए.हह…साली…क्या नरम हाथ है तेरे..रंडी…अहह."

अपनी बड़ी बहन को उस अंजान बुढ्ढे आदमी का लंड इस तरह से हिलाते देख

मुझसे कंट्रोल नही हुआ और मैने भी आना लंड पॅंट का जिपपर खोल बाहर निकाल

लिया और मूठ मारने लगा..

तभी मेरी किस्मत ने मुझे फिर से धोका दिया..और अंकल ने दीदी को चारपाई से

उठा कर एक तरफ़ खड़ा किया..वो पता नही क्या करना चाह रहा था.फिर वो झुका

और चारपाई को वाहा से उठाने लगा..मैने देखा की दीदी की आँखो मे मानो नशा

फेला हुआ था..वो लगातार अंकल की टाँगो मे लटकते लंड को बिना पलके बंद किए

देखती ही जा रही थी..शायद दीदी ने पहली बार लंड इतना पास देखा था..कुछ इस

मिनिट बाद अंकल ने खाट झुग्गी ( रूम ) के दूसरी तरफ़ वाले हिस्से मे बिछा

डी और फिर वो दीदी का हाथ पकड़ उन्हे उसे हिस्से मे ले गया…अब मुझे कुछ

भी नज़र नही आ रहा था..मुझे अपनी किस्मत पर गुस्सा आने लगा…इतना अच्छा

मोका मेरे हाथ लगा था..मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मुझे ..चारपाई के

ज़ोर ज़ोर से हिलने के आवाज़ आने लगी…चर…चार..चार" और बीच बीच मे दीदी की

सिसकिया भी आने लगी…"अहह…इस्शह…."

क्या अंकल दीदी की चुदाई करने लगा है..ये सोचते ही बेचैन होने लगा..मैने

फटा फॅट अपना लंड वापस अपने पॅंट मे डाला..और कोई जगह अंदर देखने के लिए

ढूढ़ने लगा…

फिर तभी मेरी किस्मत दोबारा खुली और मैने देखा कि दीदी भागती हुई दोबारा

झुगी के उसी हिस्से मे आ गयी जहा वो पहले थी…उन्होने अपने दोनो हाथो से

अपनी सफेद चूड़ीदार पाजामी पकड़ी हुई थी.नीचे लटकता हुआ नाडा से बता रहा

था कि दीदी की पाज़ामी खुली हुई है….

"नही मैं ये सब नही करवाउंगी..प्लज़्ज़्ज़….छोड़ दो मुझे..अंकल..आपको

पैसे चाहये तो वो ले लो….प्ल्ज़ मेरी जिंदगी मत बर्बाद करो" दीदी की आँखो

मे अब आसू आ चुके थे..तभी दूसरी तरफ़ से अंकल बाहर आया …अंकल की आँखे हवस

के नसे से लाल हो रही थी..

"साली…थोड़ी देर पहले तो बड़े मज़े से करवा रही थी..अब क्या हुआ तुझे

..तुझे लगता है कि मैं तेरे जैसा कोरा और जवान माल बिना चोदे जाने

दूँगा…" अंकल दीदी के तरफ बढ़ते हुए बोला..दीदी धीरे धीरे पीछे होने लगी

और वो शैतान आगे बढ़ने लगा…दीदी की ऐसी हालत देख मैं सोच मे पड़ गया कि

आज की तारीख मे लड़की होना कितना बड़ा गुनाह है और उपर से अगर लड़की दीदी

जैसी खूबसूरत हो तो क्या कहना…..

फिर मैने दोबारा अंदर चलते हवस के नंगे नाच पर अपना ध्यान केन्दरित किया

.और जो मैने देखा उससे मेरा हाथ दोबारा मेरे लंड पर चला गया …दीदी दीवार

से सटी खड़ी थी और अंकल का एक हाथ सूट के उप्परसे उनकी लेफ्ट चूची को दबा

रहा था और दूसरे हाथ से वो दीदी की पाजामी के अंदर हाथ डालने की कोशिश कर

रहा था….

"बह्न्चोद …क्या..मुलायाम चुची है तेरी रानी.आज तक मैने इतनी चूचिया दबाई

पर तेरे जैसी कड़क और मुलायम चुचि किसी की ना थी .आइ…." वो दीदी की

चूचिया दबाता हुआ बोला..

उधर दीदी अपनी पूरी ताक़त के साथ अपनी पाजामी मे घुसने की कोशिस करते

अंकल के हाथो को रोक रही थी..जब उनको लगा के वो अंकल के हाथ को नही रोक

पाएगी तब वो अचानक दीवार की तरफ मूड गयी….अब दीदी की पीठ अंकल और मेरी

तरफ़ थी…

"मुझे छटपटती लड़किया बहुत पसंद है..साली ..कुतिया आज तो मैं तेरी चूत को

चोद चोद कर भोसड़ा बना दूँगा…" वो बुढ्ढा अंकल फिर पीछे से ही दीदी से

लिपट गया और अपने दोनो हाथो से दीदी को अपने गिरफ़्त मे ले लिया…दीदी की

अब ऐसी हालत देख मुझे उन पर दया भी आ रही थी…पर मेरे अंदर पैदा हो चुकी

हवस मुझे ये सब देखने के लिए उकसा रही थी..तभी एक ही झटके मे अंकल ने

दीदी की पाजामी को अपने अनुभवी हाथो से सरका कर नीचे कर दिया और फिर नीचे

बैठ कर दीदी के गोरे गोरे चूतड़ पर चढ़ि हरी (ग्रीन ) कछि (पॅंटी ) देख

ने लगा…उसने फिर कछि पर हल्का सा किस किया और अपने दोनो हाथो से कछि के

उप्पर से दीदी के चूतड़ो को मसलने लगा..फिर एक झटके मे दीदी की हरी कछि

को उसने नीचे सरका दिया..अब चूतड़ पूरे नंगे हो चुके थे…दीदी के चूतड़ तो

ब्लू फिल्म वाली लाकियो से भी अच्छे थे एक दम गोल और सुडोल..उभरे हुए

बाहर की तरफ़ निकले हुए दीदी के चूतड़ देख मेरा लंड पागल हो गया था तो आप

सोच भी सकते है कि अंकल का क्या हाल हुआ होगा क्योंकि दीदी तो उनकी पास

ही खड़ी थी.फिर बिना कोई वक्त गवाए अंकल ने अपने गंदा सा मूह दीदी के

गोरे गोरे चुतदो मे घुसा दिया और वो उन्हे चाटने लगा..अंकल की खुरदूरी

जीब, मूह पर आई दाढ़ी (बियर्ड) और उनके मूह से आती गरम गर्म सासो को

महसूस कर दीदी के मूह से ना चाह कर भी एक सिसकारी निकल गई

…"आआ..इसस्स्स्स्स्स्स्सश….मा….इसस्शह…" दीदी के लिए ये एक नया अनुभव था

और उनके चूतड़ अपने अप अंकल के जीभ का सपर्श पाने के लिए..अंकल के मूह मे

घुसने की जदोजहद करने लगे..अंकल की जीभ दीदी के चुतड़ों की दरारो मे

उप्पर से नीचे उनकी चूत तक घूम घूम कर अपना कमाल दिखाने लगी…अब दीदी की

आखे मस्ती मे फिर से बंद होने लगी थी और उन्होने प्रतिरोध बंद कर दिया

था..दीदी की कवारी चूत चाट चाट कर उसका रस पीते ही अंकल जोश से भर गया

…लड़की अब उसके काबू मे दोबारा आ गयी थी…इस बार उसने समय गवाने की कोशिश

ना की और खड़ा होकर उसने अपना तना हुआ लोड्‍ा अब तक झूक चुकी अंजलि दीदी

की चूत (पुसी) पर रख दिया..ये सोच कर कि अब तो दीदी कोई कोई चुदने से नही

बचा पाएगा…तभी मुझे लगा कोई मेरे अलावा भी शायद कोई और ये सब देख रहा

है..वो जो कोई भी था वो बंद दरवाजे से अंदर झाक रहा था..क्योंकि दरवाजा

थोड़ा थोड़ा हिल रहा था.( मानो की कोई बड़ा उत्सुक था अंदर देखने के लिए

) .पर .मेरे लंड ताव मे आ गया और ..''''फाकच्छ..फ़ाच्छ..मेरे लंड ने पानी

छोड़ दिया..इतना तेज ऑर्गॅज़म मुझे पहले कभी नही हुआ था….मेरी टाँगे काप

रही थी. तभी फॅट की ज़ोर से आवाज़ हुई और मैने देखा कि अंकल ज़मीन पर

बेहोश पड़ा है..उसका सर खून से लत्पथ है…और दीदी के हाथ मे एक टूटी काच

की बॉटल है….
 
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