hotaks444
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हुआ ये था कि जैसे ही अंकल अपना लंड दीदी की चूत मे डालने वाला था तभी
दीदी का हाथ साइड मे रखी शराब की बॉटल पर आ गया और उन्होने वो बॉटल अंकल
के सर पर दे मारी थी…दीदी फटाफट अपनी पाजामी पहनने लगी…मैं भी अब वकाई मे
घबरा गया था..सो मैं भी अपने छुपी हुई जगह से बाहर आगेया और दीदी की तरफ़
बढ़ा. मैं जैसे ही झुगी के गेट पर पहुचा..दीदी बाहर आ रही थी फिर वो मेरे
पास आई और बोली अनुज ज़ल्दी चल यहा से…मैने कुछ और नही पूछा और फिर फटाफट
हम वाहा से निकल कर अपने घर आ गये..पर घर आते आते भी मेरे दिमाग़ मे एक
सवाल चल रहा था..कि..आख़िर वो कोन था जो दरवाजे से अंदर झाक कर ये सब देख
रहा था….
"अरे अंजलि तुम्हारा सरवे कैसा रहा आज" चाचा जी रोटी का टुकड़ा तोड़ते
हुए बोले. हम सब रात का खाने खा रहे थे.
"जीई…जी अच्छा था" दीदी हकलाती ज़बान से बोली.
"अरे बेटा तुम इतनी परेशान क्यू लग रही हो..तबीयत तो ठीक है ना तुम्हरी'
चाचा जी दीदी की तरफ़ देखते हुए बोले.
"हाँ..हॅंजी..पापा..जी.. बस मुझे थोड़ा सा सर मे दर्द है" दीदी नज़रे
नीची करती हुई बोली.
" और तुम्हारी गर्दन पर ये निशान कैसा है" चाचा जी दीदी की गर्दन के
निचले हिस्से पर पड़े निशान की तरफ़ इशारा करते हुए बोले. आप लोग तो अब
समझ ही गये होंगे के वो निशान किसने दीदी को दिया था. दीदी तो मानो सुन्न
ही पड़ गयी थी.
"जी वो एयेए…वाहा काफ़ी गंदगी थी इसी वजह से कोई कीड़ा काट गया था" दीदी
निशान को अपने हाथो से छुपाते हुए बोली.
मैं ये सब चुप चाप देख रहा था और खाना खा रहा था.
" भाई. मैने ये भी सुना है तुम्हरे छोटे भाई ने तुम्हारी बहुत मदद की आज
सरवे मे ' चाचा जी मुस्कुराते हुए मेरी तरफ़ देखते हुए बोल रहे थे.
"हा.. बहुत मुदद की मैने ..उस शराबी गंदे बुढ्ढे को अपने जवान बहन थाली
मे परोस कर दे दी थी आज…बलात्कार होता होता बचा था आज दीदी का.."…मैने मन
मन मे अपने आप से कहा.और फिर मैं हल्का सा मुस्कुरा दिया. दीदी सूप पीते
पीते मुझे देख रही थी. मानो कि जान ना चाहती हो कि मैं क्या जवाब दूँगा..
"पापा मेरे सर मे बहुत दर्द हो रहा है मैं दवाई ले कर सोने जा रही हू"
दीदी नॅपकिन से अपना हाथ पोछ्ते हुए बोली और उठी कर उपर रूम मे चली गयी
कुछ देर बाद मैं भी सोने के लिए रूम मे आ गया.
"अनुज तुझसे एक बात पूछूँ..प्ल्स सच सच बताना" दीदी की आवाज़ मेरे कानो मे आई.
रूम की लाइट्स बंद थी और रात के शायद 11 बज रहे थे. मैं डर गया और सोचने
लगा कही दीदी जानती तो नही है कि मैने उनका वो नंगा नाच देखा है.
"आ..हा हाजी दीदी पूछो" मैं झिझकते हुए बोला.
"तूने इतनी देर क्यो लगाई थी वाहा आने मे..और तू कब वापस आया था" दीदी भी
थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली
"मैं तभी तभी ही आया था दीदी"मैने फटाक से जवाब दिया.
"पर तेरे पास कोल्ड ड्रिंक तो नही थी" दीदी बोली
अब मैं फस गया ….मैने अपने आप से कहा . पर फिर मैने समय की गंभीरता को
समझते हुए जवाब दिया " दीदी सभी दुकाने बंद थी ..मैं बहुत घुमा पर कही भी
कोल्ड ड्रिंक नही मिली थी. सो खाली हाथ वापस आ गया ."
दीदी को अब शायद यकीन हो गया था कि मैने वो सब नही देखा था क्योंकि फिर
दोबारा उन्होने कोई सवाल नही किया. और दिन की बात याद करते करते मुझे ना
जाने कब नींद आ गयी पता ही ना चला.
क्रमशः.......................
दीदी का हाथ साइड मे रखी शराब की बॉटल पर आ गया और उन्होने वो बॉटल अंकल
के सर पर दे मारी थी…दीदी फटाफट अपनी पाजामी पहनने लगी…मैं भी अब वकाई मे
घबरा गया था..सो मैं भी अपने छुपी हुई जगह से बाहर आगेया और दीदी की तरफ़
बढ़ा. मैं जैसे ही झुगी के गेट पर पहुचा..दीदी बाहर आ रही थी फिर वो मेरे
पास आई और बोली अनुज ज़ल्दी चल यहा से…मैने कुछ और नही पूछा और फिर फटाफट
हम वाहा से निकल कर अपने घर आ गये..पर घर आते आते भी मेरे दिमाग़ मे एक
सवाल चल रहा था..कि..आख़िर वो कोन था जो दरवाजे से अंदर झाक कर ये सब देख
रहा था….
"अरे अंजलि तुम्हारा सरवे कैसा रहा आज" चाचा जी रोटी का टुकड़ा तोड़ते
हुए बोले. हम सब रात का खाने खा रहे थे.
"जीई…जी अच्छा था" दीदी हकलाती ज़बान से बोली.
"अरे बेटा तुम इतनी परेशान क्यू लग रही हो..तबीयत तो ठीक है ना तुम्हरी'
चाचा जी दीदी की तरफ़ देखते हुए बोले.
"हाँ..हॅंजी..पापा..जी.. बस मुझे थोड़ा सा सर मे दर्द है" दीदी नज़रे
नीची करती हुई बोली.
" और तुम्हारी गर्दन पर ये निशान कैसा है" चाचा जी दीदी की गर्दन के
निचले हिस्से पर पड़े निशान की तरफ़ इशारा करते हुए बोले. आप लोग तो अब
समझ ही गये होंगे के वो निशान किसने दीदी को दिया था. दीदी तो मानो सुन्न
ही पड़ गयी थी.
"जी वो एयेए…वाहा काफ़ी गंदगी थी इसी वजह से कोई कीड़ा काट गया था" दीदी
निशान को अपने हाथो से छुपाते हुए बोली.
मैं ये सब चुप चाप देख रहा था और खाना खा रहा था.
" भाई. मैने ये भी सुना है तुम्हरे छोटे भाई ने तुम्हारी बहुत मदद की आज
सरवे मे ' चाचा जी मुस्कुराते हुए मेरी तरफ़ देखते हुए बोल रहे थे.
"हा.. बहुत मुदद की मैने ..उस शराबी गंदे बुढ्ढे को अपने जवान बहन थाली
मे परोस कर दे दी थी आज…बलात्कार होता होता बचा था आज दीदी का.."…मैने मन
मन मे अपने आप से कहा.और फिर मैं हल्का सा मुस्कुरा दिया. दीदी सूप पीते
पीते मुझे देख रही थी. मानो कि जान ना चाहती हो कि मैं क्या जवाब दूँगा..
"पापा मेरे सर मे बहुत दर्द हो रहा है मैं दवाई ले कर सोने जा रही हू"
दीदी नॅपकिन से अपना हाथ पोछ्ते हुए बोली और उठी कर उपर रूम मे चली गयी
कुछ देर बाद मैं भी सोने के लिए रूम मे आ गया.
"अनुज तुझसे एक बात पूछूँ..प्ल्स सच सच बताना" दीदी की आवाज़ मेरे कानो मे आई.
रूम की लाइट्स बंद थी और रात के शायद 11 बज रहे थे. मैं डर गया और सोचने
लगा कही दीदी जानती तो नही है कि मैने उनका वो नंगा नाच देखा है.
"आ..हा हाजी दीदी पूछो" मैं झिझकते हुए बोला.
"तूने इतनी देर क्यो लगाई थी वाहा आने मे..और तू कब वापस आया था" दीदी भी
थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली
"मैं तभी तभी ही आया था दीदी"मैने फटाक से जवाब दिया.
"पर तेरे पास कोल्ड ड्रिंक तो नही थी" दीदी बोली
अब मैं फस गया ….मैने अपने आप से कहा . पर फिर मैने समय की गंभीरता को
समझते हुए जवाब दिया " दीदी सभी दुकाने बंद थी ..मैं बहुत घुमा पर कही भी
कोल्ड ड्रिंक नही मिली थी. सो खाली हाथ वापस आ गया ."
दीदी को अब शायद यकीन हो गया था कि मैने वो सब नही देखा था क्योंकि फिर
दोबारा उन्होने कोई सवाल नही किया. और दिन की बात याद करते करते मुझे ना
जाने कब नींद आ गयी पता ही ना चला.
क्रमशः.......................