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- Dec 5, 2013
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भगत सम्हलते हुए बाहर की तरफ चले गये. घर में बैठे लोगों की रूहें अभी भी काँप रही थीं. गोदन्ती की आँखें पल पल भीगती थी. भगत बाहर पहुंचे तो देखा घर के काफी लोग जमा हैं. शायद कोमल के मरने का तमाशा देखने आये थे. तिलक ने राजू की तरफ भगत को कुछ बताने के लिए इशारा किया.
राजू हिम्मत कर भगत से बोला, "हाँ भगत चचा? अभी कोई देर दार है क्या? अब तो रात भी हो गयी. जल्दी करो फिर उसे जलाने भी तो जाना होगा."
भगत ने कुम्हलाये नेत्रों से राजू और तिलक की तरफ देखा और बोले, “में तो आप से पहले ही कह चुका हूँ मुझसे कुछ नही होगा. सब कुछ आप लोगों को ही करना पड़ेगा. जब भी आपका मन हो तभी उसे मार दें."
तिलक राजू से बोले, “तो ठीक है. राजू तुम फटाफट अपने घर में तैयारी कराओ. अपने घर के लोगों को थोड़ी देर छत पर भेज दो और बोलना जब तक हम न बोले तब तक कोई नीचे न आये. संजू तुम मेरे साथ कोमल को लेकर चलना.” तिलक का पहले से बदला हुआ प्लान था क्योंकि इस वक्त पप्पी नही आया था.
राजू फटाफट अपने घर में गया. सब लोगों को कहा गया कि वे छत पर चले जाएँ और जब तक उनसे कहा न जाए नीचे न आयें, राजू घरवालों को छत पर जाने की कहकर फिर से वहीं आ गया जहाँ सब लोग खड़े थे. जहाँ ये पूरा खानदान रहता था उस जगह को 'घराना' बोला जाता था.
इस पूरे घराने में बस इन लोगों के परिवारों के लोग ही रहते थे. या यूँ कहें कि एक ही पुरखे की संतान रह रही थी. ये किसी पुराने महल जैसी शक्ल लिए हुए था इस कारण इन लोगों की बात को सुनने या देखने के लिए लोगों को अंदर आना पड़ता था. बाहर से कोई देख या सुन नही सकता था. इस घराने का द्वार जहाँ खुलता था वहां ठीक सामने छोटू का घर था. जो भी बात इस घराने में होती उसकी खबर गाँव में सबसे पहले छोटू के घरवालों को होती थी.
राजू ने हल्के स्वर में तिलक से कहा, "तिलक चचा मेरा तो काम हो गया. अब आगे बताओ क्या करना है?"
तिलक ने राजू की बात सुन भगत की तरफ देखा और पूछा, “हाँ भगत अभी कुछ देर रुके या शुरू कर दें काम?"
भगत को तिलक की बात किसी गर्म सलाख की तरह दिल में घुसती हुई मालुम हुई लेकिन होश में आते हुए बोले, “अभी रुको बच्चो को अलग कर दूं." यह कहकर भगत तुरंत अंदर घर में चले गये.
सभी को भगत की बात सही लगी. कोमल के पास से वाकी के लोगों को हटाया जाना बहुत आवश्यक था.
भगत घर में पहुंचे. गोदन्ती और बच्चे एक जगह गुट बनाकर बैठे थे. सब के दिलों की धडकनों में मातम का स्वर साफ़ सुनाई देता था. माहौल में घोर अनिश्चितता के साथ सिर्फ डर, डर और डर था. भगत को देख सभी सावधान हो गये.
जैसे भगत कोई भयानक बात बतायेंगे. भगत बिना कुछ बोले सब लोगों के पास बैठ गये. मुंह से कुछ सीधा जबाब निकलने को तैयार न था. बच्चों को अपनी तरफ देखते हुए देखकर गुस्से में बोले, "बच्चों तुम कहीं जाकर क्यों नहीं बैठते? जाओ छत पर जाओ. वहीं बैठो जाकर."
भगत के इतना कहने के वावजूद एक भी बच्चा वहां से नही हिला. गोदन्ती भगत को समझाते हुए बोली, "बैठने दो यहीं. अब कहाँ जाए ये लोग? आज नही कल मालूम तो सब पड़ना ही है. इन्हें भी तो पता चले कि ऐसे काम करने का अंजाम क्या होता है?" ___ इतना कह गोदन्ती आँखों में आंसू भर लायी.
भगत भी भावुक हो उठे. बच्चों में भी गम की शीतलहर दौड़ गयी. भगत भर्राए हुए गले से बोले, “वो सब लोग तैयार है. अब कुछ ही देर में कोमल को लेने आ रहे हैं. मुझे इसीलिये ही अंदर भेजा था. तुम्हे कुछ कहना है?"
गोदन्ती कोमल की माँ थी. उसे ये भी पता था कि वो लोग कोमल को लेने क्यों आ रहे थे? तडप कर भगत को देखा और रुंधे गले से बोली, “में क्या कहूँ? अब कहने को कुछ नहीं बचा लेकिन में उस छोरी को एक बार जी भर के देख लूँ."
इतना कह गोदन्ती कोमल के पास जा पहुंची. कोमल मुंह पर हाथ रखे लेटी हुई थी. गोदन्ती अपनी बेटी के सिरहाने बैठ उसे प्यार भरी नजरों से देखने लगी, गोदन्ती का दिल माँ का दिल था. पिघल कर मोम का हो गया. आँखों से टप टप आंसू बह निकले. भर्राए हुए गीले गले से बोलीं, “ऐ कोमलिया. सुनती है छोरी?"
कोमल ने घरघराती आवाज से हाँ में जबाब तो दिया लेकिन मुंह से हाथ न हटाया.
गोदन्ती अपनी बेटी कोमल की आँखों में देखना चाहती थी.
राजू हिम्मत कर भगत से बोला, "हाँ भगत चचा? अभी कोई देर दार है क्या? अब तो रात भी हो गयी. जल्दी करो फिर उसे जलाने भी तो जाना होगा."
भगत ने कुम्हलाये नेत्रों से राजू और तिलक की तरफ देखा और बोले, “में तो आप से पहले ही कह चुका हूँ मुझसे कुछ नही होगा. सब कुछ आप लोगों को ही करना पड़ेगा. जब भी आपका मन हो तभी उसे मार दें."
तिलक राजू से बोले, “तो ठीक है. राजू तुम फटाफट अपने घर में तैयारी कराओ. अपने घर के लोगों को थोड़ी देर छत पर भेज दो और बोलना जब तक हम न बोले तब तक कोई नीचे न आये. संजू तुम मेरे साथ कोमल को लेकर चलना.” तिलक का पहले से बदला हुआ प्लान था क्योंकि इस वक्त पप्पी नही आया था.
राजू फटाफट अपने घर में गया. सब लोगों को कहा गया कि वे छत पर चले जाएँ और जब तक उनसे कहा न जाए नीचे न आयें, राजू घरवालों को छत पर जाने की कहकर फिर से वहीं आ गया जहाँ सब लोग खड़े थे. जहाँ ये पूरा खानदान रहता था उस जगह को 'घराना' बोला जाता था.
इस पूरे घराने में बस इन लोगों के परिवारों के लोग ही रहते थे. या यूँ कहें कि एक ही पुरखे की संतान रह रही थी. ये किसी पुराने महल जैसी शक्ल लिए हुए था इस कारण इन लोगों की बात को सुनने या देखने के लिए लोगों को अंदर आना पड़ता था. बाहर से कोई देख या सुन नही सकता था. इस घराने का द्वार जहाँ खुलता था वहां ठीक सामने छोटू का घर था. जो भी बात इस घराने में होती उसकी खबर गाँव में सबसे पहले छोटू के घरवालों को होती थी.
राजू ने हल्के स्वर में तिलक से कहा, "तिलक चचा मेरा तो काम हो गया. अब आगे बताओ क्या करना है?"
तिलक ने राजू की बात सुन भगत की तरफ देखा और पूछा, “हाँ भगत अभी कुछ देर रुके या शुरू कर दें काम?"
भगत को तिलक की बात किसी गर्म सलाख की तरह दिल में घुसती हुई मालुम हुई लेकिन होश में आते हुए बोले, “अभी रुको बच्चो को अलग कर दूं." यह कहकर भगत तुरंत अंदर घर में चले गये.
सभी को भगत की बात सही लगी. कोमल के पास से वाकी के लोगों को हटाया जाना बहुत आवश्यक था.
भगत घर में पहुंचे. गोदन्ती और बच्चे एक जगह गुट बनाकर बैठे थे. सब के दिलों की धडकनों में मातम का स्वर साफ़ सुनाई देता था. माहौल में घोर अनिश्चितता के साथ सिर्फ डर, डर और डर था. भगत को देख सभी सावधान हो गये.
जैसे भगत कोई भयानक बात बतायेंगे. भगत बिना कुछ बोले सब लोगों के पास बैठ गये. मुंह से कुछ सीधा जबाब निकलने को तैयार न था. बच्चों को अपनी तरफ देखते हुए देखकर गुस्से में बोले, "बच्चों तुम कहीं जाकर क्यों नहीं बैठते? जाओ छत पर जाओ. वहीं बैठो जाकर."
भगत के इतना कहने के वावजूद एक भी बच्चा वहां से नही हिला. गोदन्ती भगत को समझाते हुए बोली, "बैठने दो यहीं. अब कहाँ जाए ये लोग? आज नही कल मालूम तो सब पड़ना ही है. इन्हें भी तो पता चले कि ऐसे काम करने का अंजाम क्या होता है?" ___ इतना कह गोदन्ती आँखों में आंसू भर लायी.
भगत भी भावुक हो उठे. बच्चों में भी गम की शीतलहर दौड़ गयी. भगत भर्राए हुए गले से बोले, “वो सब लोग तैयार है. अब कुछ ही देर में कोमल को लेने आ रहे हैं. मुझे इसीलिये ही अंदर भेजा था. तुम्हे कुछ कहना है?"
गोदन्ती कोमल की माँ थी. उसे ये भी पता था कि वो लोग कोमल को लेने क्यों आ रहे थे? तडप कर भगत को देखा और रुंधे गले से बोली, “में क्या कहूँ? अब कहने को कुछ नहीं बचा लेकिन में उस छोरी को एक बार जी भर के देख लूँ."
इतना कह गोदन्ती कोमल के पास जा पहुंची. कोमल मुंह पर हाथ रखे लेटी हुई थी. गोदन्ती अपनी बेटी के सिरहाने बैठ उसे प्यार भरी नजरों से देखने लगी, गोदन्ती का दिल माँ का दिल था. पिघल कर मोम का हो गया. आँखों से टप टप आंसू बह निकले. भर्राए हुए गीले गले से बोलीं, “ऐ कोमलिया. सुनती है छोरी?"
कोमल ने घरघराती आवाज से हाँ में जबाब तो दिया लेकिन मुंह से हाथ न हटाया.
गोदन्ती अपनी बेटी कोमल की आँखों में देखना चाहती थी.