SexBaba Kahani लाल हवेली - SexBaba
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SexBaba Kahani लाल हवेली

hotaks

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लाल हवेली

सांचे में ढली काया से वस्त्रों का आवरण जिस तेजी से अलग हुआ, उसने राज दी लायन के दिमाग के तारों को झंकृत कर डाला।

ट्रेन तेज रफ्तार से मुम्बई की ओर दौड़ी चली जा रही थी।

रात का एक बज चुका था।

जिस फर्स्ट क्लास के कूपे में वह था वो कूपा पूरी तरह खाली था।

वह दिलफरेब हसीना दो घन्टे पहले रतलाम से चढ़ी थी। उसकी आंखेंदेखते ही राज समझ गया था कि वह नशे में है और जब शराब की दुर्गन्ध नहीं आयी तब उसे ये समझते देर न लगी कि वह ड्रग एडिक्ट है। और...!

दो घंटे की कोशिश के बाद अन्तत : उसने कूपे का दरवाजा अंदर से बंद करके अपने समूचे वस्त्र उतार डाले। उसने राज की गोद में मचलते हुए अपनी गोरी गुदाज बांहों का हार उसकी गर्दन में पहना दिया।

"इतनी देर तुमने बेकार की बातों में लगा दी हनी..अब प्यार करने में देर न करो। मैं जन्म-जन्म कीप्यासी हूं। मेरी प्यास बुझा दो।" युवती ने उसके अधरों से अपने कपोल रगड़ते हुए उसके दोनों हाथ अपने वक्षों पर पहुचाने के बाद कामुक स्वर में कहा।

राज हालांकि पीछे हट रहा था।

वह यात्रा के दौरान किसी झंझट में पड़ना नहींचाहता था।
लेकिन!

युवती का हाहाकारी रूप देख...उसके संगमरमरी जिस्म का स्पर्श पाकर वह अपने आप पर काबू न रख सका। उसकी मजबूत बांहेंयुवती के जिस्म को अपने बंधन में कस लेने को विवश हो गईं और उसने युवती के अधरों से अधर जोड़ते हुए उसके अंगों के उभारों को सहलाना शुरू कर दिया।

युवती के मुख से कामुक सीत्कार उभरने लगे। उसने उत्तेजित होते हुए राज के शरीर से वस्त्रों को अलग करना शुरू कर दिया।

शीघ्र वह निर्वसन हो गया।

युवती के संगमरमरी बदन पर काले रंग की बिकनी शेष थी। राज की उंगलियों ने उसकी शीशे जैसी चिकनी पीठ पर फिसलते हुए चोली का हुक खोल डाला। उसके बाद एक-एक कर चड्डी और चोली हवा में उछल गईं।

वहीं बर्थ पर युवती फैल गई।

नग्न जिस्म जब आलिंगनबद्ध हुए तो उस चिकने स्पर्श ने कामुक उत्तेजना में अकस्मात् ही वृद्धि कर दी। राज के कठोर स्पर्श को अनुभव कर युवती आन्दोलित हो उठी।

उसके मुख से रह-रहकर कामुक सीत्कार उभरने लगे। वह लता के समान राज से लिपट गई। राज उसके चेहरे से लेकर नाभि तक चुम्बनों का मार्ग बनाए हुए था। आनन्दातिरेक उस युवती ने एक बार तो राज का चेहरा अपने उन्नत वक्षों में भींच लिया। उस कोमल स्पर्श ने उत्तेजना में और अधिक वृद्धिकर दी। सांसों का शोर बढ़ने लगा।

अधरों से अधर जुड़ गए। गर्म सांसें घुलने लगींरात के अंधेरे में ट्रेन तेज रफ्तार के साथ पटरियों पर दौड़ी चली जा रही थी।

युवती राज को बदन तोड़ ढंग से सहयोग कर रही थी।

उसके बाद थककर चूर होकर वे दोनों एक-दूसरे की बांहों में गुंथे-गुंथे ही सो गए।

फिर युवती ने किसी प्रकार धीरे-धीरे अपने-आपको जब राज की बांहों निकाला तब एक घंटा गुजर चुका था। उसने वासना की उस जंग में राज को इस कदर थका डाला था कि वह बेहोशी जैसी हालत में पहुंच चुका था।
 
उससे अलग होने के पश्चात् युवती ने पहले सामने वाली सीट पर बैठकर थोड़ी देर तक उसकी ओर देखा, जब वह घोड़े बेचकर सोता हुआ ही नजर आता रहा तब उसने रिस्टवॉच में टाइम देखा, खिड़की से बाहर दूर-दूर दौड़ते प्रकाश पुंजों को निहारा।

बिखरे हुए प्रकाश पुंज सघन होते जा रहे
निश्चित ही कोई बड़ा स्टेशन आ रहा था।

बाहर का निरीक्षण करने के उपरांत युवती ने शंकित दृष्टि से राज की ओर देखा।

राज बेसुध पड़ा से रहा था।

उसका गोरा गुदाज बदन कूपे के बल्ब की रोशनी में चमक रहा था। उसने अपने वस्त्र तलाश किए। फिर सीट पर बैठकर चड्डी पहनने लगी। चहढी उसके कूल्हों के नाप के हिसाब से छोटी थी। वह खाल की तरह उसके कदरन भारी किन्तु सुडौल कूल्हों पर मंढ़ गई। फिर उसने चोली पहनी।

चोली का हुक लगाने में उसे थोड़ी सी परेशानी पेश आई अलबत्ता वो कामयाब रही।

-
जींस और शर्ट पहनने के बाद एक बार फिर उसने बर्थ पर सोए पड़े राज की ओर देखा। राज सो रहा था।
युवती ने उसके कपड़ों की तलाशी ली।

शीघ्र ही राज का पर्स उसके हाथ लग गया । उसने पर्स खोलकर देखा।

पर्स में पांच-पांच सौ के नोट लुसे हुए थे। देखकर उसकी आंखेंचमक उठीं।

उसने फौरन उसे अपनी हिप पॉकेट में खुरस लिया। उस चोरी के पश्चात् उसने पुन: सरसरी नजर कूपे में डाली। राज के सामान में एक सूटकेस और एक बैग था जो ऊपरली बर्थ पर रखा था।

वह संभलकर बैठ गई। उसका अपना कोई सामान नहीं था।
 
वह बेचैनी से ट्रेन के रुकने का इंतजार करने लगी। ट्रेन की रफ्तार धीमी हो चली थी। उसने धड़धड़ाते हुए प्लेटफार्म पर प्रवेश किया था।

उसके साथ ही युवती संभलकर खड़ी हो गई

उसने सावधानी के साथ कूपे का दरवाजा खोल दिया। फिर वह बाहर झांकी।

राहदारी में सिर्फ एक बूढ़ा मुसाफिर था जो कि ब्रीफकेस उठाए दूसरी तरफ को जा रहा था।
उसके लिए लाइन क्लीयर थी।

वह जल्दी से अन्दर की ओर मुड़ी। उसने राज का सामान उठाया और कूपे से बाहर निकल आयी।

ट्रेन के ब्रेक चीं-चीं की कर्कश ध्वनि उत्पन्न कर रहे थे। प्लेटफार्म पर भीड़ के बीच हॉकर्स का शोरउभरने लगा था।
युवती ने फुर्ती से सामान समेत प्लेटफार्म पर उतरकर भीड़ में गुम हो जाना था।

__ जिसे चार स्टेट की पुलिस तलाश कर रही थी...जो दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगरोंकी पुलिस की आंख में भूल झोंककर सफलतापूर्वक घूम रहा था, उस राज शर्मा उर्फ लायन को वह साधारण चोरनी टोपी पहनाने चली थी।

वह बांयी ओर वाले दरवाजे से नीचे उतरी और राज दायीं ओर वाले दरवाजे से।

अभी चोरनी कली की तलाश में इधर-उधर देख ही रही थी कि उसे अपने पीछे से आवाज सुनाई पड़ी-"कुली चाहिए मेम साहब?"

'अं...हां...हां...हां चाहिए।" वह बौखलाकर पीछे की ओर मुड़ी।
और!

जब उसने अपने सामने राज की ओर देखा तो उसके पैरों तले जमीन निकल गई। चेहरा फक्क पड़ गया।
विश्वास ही नहीं हो रहा था उसे कि वह रंगे हाथों चोरी के माल सहित पकड़ी जा चुकी है।

सिगरेट सुलगाता हुआ राज मुस्कराया "तो वो सब कुछ तुमने इस गरज से किया था ताकि चोरी कर सको।" उसने गर्दन झुका ली।

गर्दन झुकाए हुए ही उसने सूटकेस राज की और बढ़ा दिया। हिप पॉकेटसे पर्स निकालकर जब वह राज के हाथ पर रख रही थी, उसका हाथ कांप रहा था।
 
"चोरी क्यों की?" राज ने पर्स संभालते हुएपूछा।

"मजबूरी...।" वह बोली तो उसका गला भर आया।"

"देखने से पेशेवर लगती नहीं हो।"

"मेरा पेशा चोरी करना नहीं है। मेरे भाई के ट्यूमर का आपरेशन होना है। अगर मैंने जल्द से जल्द उसके लिए पैसों का इंतजाम नहीं किया तो वह मर जाएगा।"

"कितने पैसे की जरूरत पड़ेगी ?"

"डेढ़ लाख तक तो लग ही जाएंगे। इसके अलावा मेरी एक बड़ी बहन है। मेरा जीजा शराबी है। ब्योडेबाज। बहुत थोड़ी कमाई है उसकी। उसे वो अपने लिए ही कम पड़ जाती है, एक अदद बीवी, पांच लड़कियां और दो लड़कों को वह क्या खिलाएगा। दूसरी-बहुत बड़ी समस्या मेरी बहन है। उसे अपने जीजा से छुटकारा दिलाकर कहीं और सैटल करना चाहती हूं।"

"ओह...आई सी।"

"मैं किसी भी तरह पैसा बनाना चाहती हूं।"

"ये पर्स वापस ले लो-लेकिन इसमें इतनी रकम है नहीं कि तुम्हारी जरूरतें पूरी हो सकें।"

"आप ठीक कह रहे हैं।"

"मेरे साथ चल सकोगी?"

"किसलिए?"

"शायद कहीं से तुम्हें इतनी रकम का इंतजाम कर सकूँ जिससे तुम्हारी समस्याओं का समाधान हो सके।"

"क्यो आप मेरे लिए ऐसा करेंगे?" युवती खुशी जाहिर करती हुई बोली।

"सिर्फ कोशिश।"

"तो मैं आपके साथ कहीं भी चलने को तैयार हूं।"

"नाम क्या है तुम्हारा?"
 
"नाम क्या है तुम्हारा?"

"शाजिया।"

"सुनो शाजिया...मेरे साथ खतरा बहुत है। इतनाध्यान रखी मौत मेरे आगे-पीछे घूमती है मेरी वजह से तुम्हारी जान को खतरा सकता है क्योंकि जहां मैं जा रहा हूं वह जगह मेरे दुश्मनों से भरी पड़ी है।"

"कहां जा रहे हैं आप ?"

"मुम्बई।"

"अरे वहीं तो मेरा भाई भी हस्पताल में भर्ती है

"खतरों केबारे में मैंने तुम्हें आगाह कर दिया। अब तुम जानो तुम्हारा काम। आना चाही तो गाड़ी खड़ी है...अंदर आकर बैठ जाओ और अगर नहीं तो परस हाजिर है।। इसे ले जा सकती हो।"

शाजिया ने एक बार उस विचित्र इंसान की ओर देखा फिर सामान उठाकर ट्रेन के भीतर दाखिल हो गई।

शाजिया को उसके भाई के पास अस्पताल में छोड़ने के बाद राज ने चैम्बूरमें एक फ्लैट किराये पर हासिल कर लिया। उसने शाजिया से वायदा कर लिया था कि वह उसकी मदद अवश्य करेगा। उसे थोड़ा इंतजार करना होगा।

फिर शाजिया को थोड़े से रुपये ऊपरी खर्च के लिए देकर वह चौम्बूर चला आया था। मुम्बई के अपने मित्रों के पास वह फिलहाल जाना नहीं चाहता था। उसकी वजह ये थी कि मित्रों से मिलने पर उसकी उपस्थिति की जानकारी उसके दुश्मनों को भी हो यानी थी इसलिए वह एकांत में रहकर अपना वक्त गुजारना चाहता था।

दिल्ली से भागकर मुम्बई में ही शरण लेने का निश्चय किया था।

वह फ्लैट शान्तिप्रिय क्षेत्र में था। उसे उसकी सिचुएशन पसन्द आ गई थी इस कारण उसने पगड़ी ज्यादार होते हुए भीउसे किराये पर हासिल कर लिया था।

वहा पहली ही रात में अशांत का माहौल बन गया।

उसकी नींद में खलल पड़ा एक चीख से।

चीख के तीखेपन को उसने नींद मेर भी भांप लिया। फिर उसे दौड़ती हुई पगचापें अपने फ्लैट कै पिछले भागमें सुनाई पड़ी। उसके बाद एकदम शांति गहरा सन्नाटा।

राज तुरन्त पिछले भाग में पहुंचा। खिड़की से कान लगाने पर उसे बाहर किसी की तेज सांसों की ध्वनि की आवाजें सुनाई देने लगीं। यूं लगा उसे जैसे कोई अपनी उफनती हुई सांसों को संयत करने का प्रयास कर रहा है।

हल्की-सी कराह भी सुनाई पड़ी। उस कराह से उसकी समझ में आया कि कोई औरत किसी बड़ी परेशानी में फंस गई है।

फिर हल्का-सा शोर उभरा। दौड़ती हुई भारी पगचा।

"वो उस तरफ नहीं है...।" किसी ने ऊंचे स्वर में चिल्लाकर कहा।

"उधर नहीं है तो किधर गई?" दूसरा स्वर।

"क्या मालूम?"

"उसे यहां होना चाहिए। तलाश करो।"

पगचापें इथर-उधर बिखर लगीं।

राज ने तुरन्त अपने सूटकेस से अपना माउजर पिस्तौल निकाल लिया।

हांफने की आवाज अब हल्की पड़ गई थी।
तभी! कोई चिल्लाया।
 
नारी चीख फिजांमें बुलन्द हुई। एकाएक ही भगदड़मच गई।
चीख पुकार।

दौड़ती हुई पगचापें एक स्थान पर एकत्रित होतीहुई। नारी चीख बार-बार उभर रही थी। यूं प्रतीत हो रहा था जैसे कितने ही आदमी मिलकर किसी एक औरत पर अत्याचार कर रहे थे।

राज ने खिड़की खोलकर बाहर झांका।
अंधेरे भाग में खींचतान मची हुई थी। वे चार थे और चार मिलकर एक लड़की को काबू नहीं कर पा रहे थे।

तभी।

उस अंधेरे में से एक विशालकाय दैत्य सरीखा आदमी प्रकट हुआ।

___ "चूहों से एक अदद लड़की संभाली नहीं जा पा रही है...।" उसने एक भद्दी सी गाली देते हुए कहा और आगे बढ़कर लड़की को दो करारे हाथ लगा दिए। लड़की आर्तनाद करती वहीं ढह पड़ी।

वह भारी-भरकम शैतान उसके ऊपर पुन: झपट पड़ना चाहता था किन्तु एकाएक ही राज ने खिड़की से छलांग लगा दी।

लड़की को घेरने वाले सभी आदमी चौंक पड़े। उन्हें आसमान से गिरने वाली किसी भी विपदा की कोई खबर नहीं थी।

"खबरदार...।" राज ने लड़की और उस शैतान के बीच आते हुए चेतावनी भरे स्वर में कहा "कोई आगे न बढ़े...वरना नुकसान का हकदार वही होगा जो मेरे आदेश का उल्लंघन करेगा और अगर किसी को किसी प्रकार की कोई कोशिश करनी हो तो कर सकता है।

"ऐ...।" दैत्याकार व्यक्ति खतरनाक स्वर में गुर्राया-"तू गलत जगह पंगा ले रहा है...अभी अपुन तेरी मुंडी को काट को तेरे हाथ में दे देगा। फिर तेरे को पता चलेगा कि हीरो बनना कितना महंगा पड़ता है...क्या।"

"महंगा सस्ता तुझे बाद में पता चलेगा। अभी तो ये बता कि इस लड़की को क्यों परेशान कर रहा है...?"

"अच्छा! समझा बिंडू...यानि कि मरने का फुल प्रोग्राम तय कर को आरेला है। तो फिर अपुन तेरे कू रोकेगा नेई...क्या! एकदीमच नेई रोकेंगा। अब्बी तेरे कू नक्की कर डालेगा...ऐई।" दैत्याकार व्यक्ति अपने साथियों को आदेशित कर चिल्लाया "लगा डालो इस साले कू बरफ में...तुरत-फुरत इस हरामजादे का कब तैयार कर देने का...क्या!"

चारों आदमी एकाएक ही राज की ओर टूट पड़े। राज ने सावधानी के साथ झुका देकर अपनी लम्बी टांग घुमाई। दो आदमी उसके वार से पीड़ित होकर नीचे आ गिरे। शेष दो ने जब तक संभलना चाहा तब तक राज उनके जबड़ों को सहला चुका था।
 
पलक झपकते राज के आक्रमण ने जो नतीजा दिखलाया था उसे देखते हुए दैत्याकार व्यक्ति की समझ में ये बात आते देर न लगी कि सामने वाला व्यक्ति, यानि वक्ती तौर पर बना हुआ उसका दुश्मन कोई साधारण व्यक्ति नहीं है।

उसने तुरन्त अपनी पीठ पीछे कालर के अंदर हाथ डालकर जब हाथ ऊपर की ओर खींचा तो लम्बी चमकदार तलवार बाहर आती चली गई।

राज गौर से दुश्मन को देख रहा था।
वह दो कदम पीछे हट गया। उसने अपने दोनों हाथ सामने की ओर फैला दिए।

विशालकाय शरीर के स्वामी ने तलवार घुमाई।

राज थे उछलकर अपने आपको बचाय।

तलवार एक बार फिर हवा में लहराई।

इस बार तलवार की धार से राज बाल-बालबचा। बल्कि उसकी हिम्मत ही थी जो वह बच गया अन्यथा तो उसका काम उस वार के साथ ही समाप्त हो जाना था।

दूसरा कोई भी अवसर देने से पूर्व उसने माउजर निकालकर तलवार वाले आदमी की ओर तान दिया।

"खबरदार।" वह घायल सर्प की भांति फुफकार उठा-"हिलना नहीं वरना भेजा निकाल दूंगा

तलवार हवा में तनी की तनी रह गई।

वह आदमी पिस्तौल के रूप में अपने सामने मौत को देख रहा था। उसके नेत्र भय से फैल गए। राज की आखों में चमकता दृढ़ विश्वास उसे बता रहा था कि आदमी बेहद कड़क है...अगर उसकी बात न मानी गई तो वह सचमुच गोली चला देगा।

__ माउजर देखते ही उसके साथी सावधानी के साथ अंधेरे का लाभ उठाकर पीछे हटने लगे थे।

राज उन्हें वहां से खिसकते हुए देख रहा था किन्तु उसने इस बात को उन लोगों पर जाहिर नहीं होने दिया कि वह उन्हें देख रख था।

हकीकतन उसने उनके सरदार के गिर्द अपना शिकंजा कस रखा था।

"तलवार छोड़।" यह अपलक दृष्टि से तलवार वाले गुण्डे की आखों में झांकता हुआ बोला।

उसने तुरन्त तलवार छोड़ दी।

राज सावधानी के अथ नीचे पड़ी लड़की की ओर झुका। उसने लड़की को सहारा देकर उठाया।
Top
 
लड़की बीस-बाइस के पेटे में पहुंची भरपूर जवान नवयुवती थी लेकिन तलवार वाले गुण्डे के दो ही हाथों ने उसका जबड़ा तिरछा खर दिया था बायीं आ ख काली पड़ गई थी और मुंह तथा नाक से खून बह निकला था। बहुत बुरी हालत थी उसकी।

"क्या नाम है तुम्हारा?" राज ने उससे कदरन नम्र स्वर में पूछा।

"डॉली।" वह कराहकर बोली।

"डॉली...ये...ये डंडा उठाओ।" राज ने नीचे पड़े मोटे डंडे की ओर संकेत करते हुए कहा।
.
कथित डॉली ने डंडा उठा लिया। वह उस डंडे को राज की तरफ बढ़ाने लगी।

"नहीं...इसे तुम ही संभालो।"

"क्यों?"

"इसलिए कि तुम्हें इस गुण्डे से खुद ही बदला लेना होगा।" राज माउजर से उस शातिर गुण्डे की और सकेत करता हुआ सहज स्वर में बोला-'मारो इसे...इतना मारो कि इसके सगे वाले इसे पहचानने से इंकार कर दें।"

डॉली हतप्रभ सी उसकी ओर देखती रह गई।

"डरो नहीं...मैं कहता हूं मारो। बेखौफ होकर मारो। अगर इस कुत्ते ने तुम्हें उंगली लगाने की कोशिश की तो मै पूरी गन इस पर खाली कर डालूंगा।"

डॉली ने दो बार गुण्डे की ओर देखा फिर सहमकर बोली-"नहीं...मुझसे नहीं होगा।"

"नहीं होगा...?"

"नहीं।"

"तो फिर मैं जाता हूं। तुम जानो तुम्हास काम।" राज ने माउजर जेब में रखा और वह सचमुच वहां से चल पड़ा।

"ठहरो...।" बदलते हालात देख डॉली तत्परता से बोली-"मारती हूं...मारती हूं बाबा। तुम न जाओ यहां से।"

वह रुक गया। __उसने पुन: माउजर निकालकर हाथ में ले लिया।

डॉली ने डरते-डरते गुण्डे पर डंडा चलाया। गुण्ड उसके शक्तिहीन वारों को अपने हाथों पर झेलने लगा।

पन्द्रह-बीस वार करने के बाद भी वह गुण्डे पर कोई ऐसी चोट न लगा सकी जिससे वह कराह पाता।

हां...उसकी तरफ से एक्टिंग बदस्तूर जारी थी।

वह डंडे का वार हाथों पर रोककर बार-बार हाय-हाय चिल्ला रहा था।
जबकि डॉली डंडा चलाते-चलाते हांफने लगी थी।

"बस करो...बस करो।" राज अनायास ही बीच में आता हुआ बोला-"बेचारे को बहुत दर्द हो रहा है। इतना मास जाता है कहीं। लाओ डंडा मुझे दो और तुम इस पिस्तौल को संभालो।"

डॉली ने जल्दी से डंडा उसके हवाले करते हुए पिस्तौल उसके हाथ से ले ली।

"हां तो बेटा दगडु-तुझे इस छुई-मुई के डंडा परेड से दर्द हो रहा था...साले हलकट! अब बता एक्टिंग करके...अब बता...!" राज कहने के साथ ही डंडा लेकर गुण्डे पर टूट पड़ा।

गुण्डे की चीख पुकार उस अंधेरे कोने में गूंजने लगी।

__ थोड़ी ही देर में वह लस्त-पस्त होकर एक ओर ढेर हो गया।

"काले कौए के जले हुए पंख.!" राज ने उसे गाली देते हुए कहा-"आइन्दा मेरे सामने एक्टिंग करके दिखाने की कोशिश मत करना वरना इतना मारूंगा...इतना मारूंगा कि सारी एक्टिंग भूल जाएगा।"

गुण्डे की हालत ऐसी नहीं थी वह राज को किसी प्रकार का जवाब दे पाता।

"मैडम इसे कहते हैं डंडा परेड।"
 
राज डॉलीकी ओर मुड़ता हुआ बोला-"अब ये बताओ कि ये भैंसा आखिकर तुम्हारे पीछे किस सिलसिले में पड़ा था? इसकी कौन-सी भैंस तुमने चुरा ली थी।"

"ये मुझे अपहृत करके लिए जा रहा था। मैं किसी प्रकार इसकी पकड़ से बच निकली-इसके । आदमियों ने मुझे घेर ही लिया था अगर तुम बीच में न आ गए होते।"

"आई सी...तो ये बात है।"

"हां ।"

"फिर तो इसको इसके किए की सजा मिलनी ही चाहिए...नहीं?"
.
"सजा तो मिल चुकी है न...अब और कौन-सी सजा देना चाहते हो?"

"चलो बताता हूं।"

राज ने माउजर उसके हाथ से लेकर अपनी जेब के हवाले करने के बाद टूटे-फूटे गुण्डे को पकड़कर उसे खींचना आरंभ कर दिया। डॉली चकित दष्टि से उसकी उस कार्यवाही को देख रही थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह करना क्या चाहता है।

सड़क पर लाकर उसने गुण्डे को टैक्सी में डाला और फिर वह उसे वहां से ले चला। डॉली टैक्सी की अगली सीट पर थी।

राज के आदेश पर टैक्सी कार चैम्बूर पुलिस स्टेशन पर जाकर रुकी।

राज गुण्डे को खींचता हुआ ड्यूटी पर तैनात पुलिस इंस्पेक्टर के सम्मुख जा पहुंचा और उसने गुण्डे को लगभग उसकी टेबल पर धकेल दिया।

"क्या है...क्या लफड़ा है?" पुलिस इंस्पेक्टर ने पुलिसिया हेकड़ के साथ पूछा। साथ ही उसकी नजर आगे-पीछे को घूम गई और फिर जैसे ही उसकी नजरडॉली पर पड़ी, वह चौंक पड़ा।

__ "लफडा यह है इंस्पेक्टर साहब किये गुण्डा अपने साथियों के साथ मिलकर इस बेचारी लड़की को अगवा करने की कोशिश कर रहा था बल्कि अपनी उस कोशिश में कामयाब होने ही जा रहा था कि बीच में मैं आ गया और जो कांड होने जा रहा था होने से रुक गया।" राज ने पुलिस इंस्पेक्टर की ओर देखते हुए कहा।

उसे अपने कथन के ऐवज में पुलिस इंस्पेक्टर से जवाब की अपेक्षा थी किन्तु उसके विपरीत पुलिस इंस्पेक्टरगुण्डे को छोड़ता हुआ

सीधा डॉली की ओर बढ़ा।

उसकी ओर अपलक देखती डॉली रो पड़ी।
 
जबकि वह डॉली की चोटों को आंखेंफाड़े देख रहा था।

"ये...ये सब कैसे हुआ सदा...किसने किया...?" उसने भावुक स्वर में पूछा। निश्चित ही वह डॉली से परिचित था।

डॉली ने रोते-बिलखते उसी गुण्डे की ओर हाथ उठाकर इशारा कर दिया।

बस, वो इशारा ही काफी था।

पुलिस इंस्पेक्टर एक सिपाही का डंडा लेकर गुण्डे के ऊपर टूट पड़ा।

वह पहले ही टूटा-फूटा था, उस दोहरी मार ने उसके सारे कस-बल निकाल डाले।

"इंस्पेक्टर..!" एक बार बीच में गुण्डे ने उसके ऊपर डंडे को पकड़ते हुए कठोर स्वर में कहा-"ये तू अपनी सेहत के लिए ठीक नेई करेला है। तेरे कू भोत भारी पड़ेगा इस मामले में हाथ डालना।"

"मुझे धमका रहा है...कुत्ते! मुझे!" इंस्पेक्टरचिल्लाकर बोला।

"जग्गू जगलर धमकाता नेई...क्या बाप।" गुण्डे ने अकड़ते हुए कहा-"कर को बताएला है...बीच में कोई लफड़ा...कोई भंकस नेई मंगता! अ ब्बी का अबी इस छोकरी के साथ अपुन कू इधर से फुटा दे वरना तेरा पुलिस स्टेशन भैंस का तबेला बन जाएंगा...समझा क्या!"

"जग्गू जगलर. इस लड़की को जानता है?"

"छोकरी को जानने का काम अपुन का नेई...अपुन तो बॉस लोग का आर्डर मानता...बस उसके बाद झकास! काम फिनिशि। अबी तू भी अपुन कू जाने दे वरना तू भी फिनिश। खलास।" जग्गू जगलर मुंह टेढ़ा करता हुआ विषाक्त स्वर में बोला।

"फिनिश तो तुझे मैं कर डालूंगा

हरामजादे...देख इधर...पहचान ले इसे...ये-ये मेरी बहन है डॉली...! डॉली मेहरा। इंस्पेक्टर सतीश मेहरा की बहन! और अब तू देखेगा कि धमकी देकर तूने किस तरह अपनी मौत को बुलावा दिया है।"

इस बार दोनोंहाथों से डंडा थामकर उसने जग्गू जगलर को पीटना शुरू किया तो बिछा डाला उसे।

अभी वह डंडा फेंककर गुस्से में उफनता हुआ अपनी सीट पर बैठा ही था कि टेलीफोन की घंटी बज उठी।

"चैम्बूर पुलिस स्टशेन...।" इंस्पेक्टर सतीश मेहरा रिसीवर कान से लगाना हुआ उखड़े हुए स्वर में बोला। ‘

"रंजीत सावन्त...मंत्री धरम सावन्त का भाई...समझा तू इंस्पेक्टर..!" दूसरी ओर से बेहद कर्कश आवाज उभरी। उसे इयरपीस कान से परे खिसका लेना पड़ा।
.
सतीश खामोश रहा। रंजीत सावन्त की आवाज सुनते ही उसका खून खौल उठा।
 
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