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- Dec 5, 2013
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"सिर्फ दोस्त?"
"नेई बाप...अपुन उसका वास्ते बहुत कुछ किया इस वास्ते वो अपुन का अहसान मानता...क्या!"
"यानी भरोसा किया जा सकता है?"
"हां।"
उसके बाद उनकी वार्ता का क्रम टूट गया।
राज आखों पर दूरबीन लगाए सामने की ओर देखता रहा। समुद्र में दस किलोमीटर से भी अधिक दूरी तय की जा चुकी थी।
अभी तक पाल द्वारा बताए गए टापू का कोई पता नहीं था।
"जय..." थोड़ी देर बाद राज चिंतित स्वर में बोला-"पाल कहा है?"
"केबिन में नोटाक लगाएला है।"
"बुला उसे फौरन।"
जय तुरन्त जाकर पाल को बुला लाया। पाल खांसे निपोरता हुआ राज के सम्मुख पहुंचा। बोतल उसके हाथ में थी।
"तू उन लोगों में से है जो फ्री की फिनायल भी नहीं छोड़ते। बेसब्रे...चार-छ: बोतलें साथ घर ले जाना...अब इधर पीना छोड़ और टापू का पता लगा।" राज ने उसे हिकारत की नजरों से देखते हुए पूछा।
"-हैं-हे....सेठ टापू अभी आन वाला है। मैंने बराबर डायरेक्शन दिया हुआ है। कैप्टन सही लाइन पर स्टीमर लेकर जा रहा है। थोड़ा टाइम और लगेगा।" पाल बोतल से चूंट भरता हुआ बोला।
"दस किलोमीटर कब के पार हो चुके।"
"अब अंदाज है सेठ...दस के बीस किलोमीटर भी हो सकते हैं। फिकर छोड़ दो...लाओ दूरबीन...मैं अभी देखता हूं।"
अनमने भाव से राज ने दूरबीन उसके हवाले कर दी।
नशे की हालत में वह दूरबीन से उस दिशा में देखने लगा जिस दिशा में स्टीमर बढ़ रहा था। राज ने उसकी और से ध्यान हटाकर तेज हवाओं के बीच मुश्किल से ही सही लेकिन आखिरकार सिगरेट सुलगा ही ली। वह चिन्तित अवस्था में सिगरेट के कश लगाने लगा।
लगभग बीस मिनट बाद।
तब जबकि हल्की-हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई थी, एकाएक ही दूरबीन आखों से हटाकर पाल जोशीले अंदाज में राज की ओर पलटा।
"लाल हवेली सेठ...आ गई लाल हवेली। ये लो दूरबीन...और देखो उस दिशा में।"
राज ने जल्दी से उसके हाथ से दूरबीन लेकर आखों से लगा ली।
.
.
दिशा में छोटा-सा जंजीर नेजर आने लगा।
"यही है लाल हवेली...?" उसने आतुरता से पूछा।
"हां सेठ...इसी टापू में है वह किला जिसे लाल हवेली कहते हैं। इसके आसपास कोई बोट नजर नहीं आ सकतीं।" पाल ने दो बूंट लगाने के बाद कहा।
"ऐसा क्यों...?"
"ऐसा इसलिए कि यहां के अंजाने खतरे से हर कोई घबराता है।। कई तो जिद्दी लोगों की बोटों तक का पता नहीं चल सका।"
"आई सी...।"
"टापू के आसपास भी जाना खतरे से खाली नहीं।"
"रात में?"
"दिन और रात का कोई फर्क नहीं। उस टापू के एरिए में जब भी जो भी जाता है उसका काम तमाम हो जाता है। लाश का पता नहीं चलता।"
"तू फिक्र मत कर...कम से कम मैं तुझे इतने बड़े खतरे में नहीं डालूंगा।"
"हहह...सेठ।"
"खतरे की सीमा से बहुत पहले स्टीमर को रुकवा दें।"
.
.
"ओ. के.।"
पाल चला गया।
उसके चले जाने के बाद राज विचारपूर्ण मुद्रा में जंजीरे की दिशा में देखने लगा।
थोड़ी दूर जाकर स्टीमर रुक गया।
फुहार पड़ रही थी। हवाओं में तेजी आती जा रही थी और अंधेरा घिरता जा रहा था।
"जय..!" थोड़ी देर बाद राज बोला "तूने यहीं रहना है। अंधेरा होते ही एक वोट पर मैं यहां से जंजीरे की तरफ निकल जाऊंगा।"
"अकेले...?"
"हां।"
"नेईं...अपुन तुमरे साथ चलगा...क्या! इधर तुमेरी दादागिरी नेई चल पाएगी। अपुन साथ छोड़ने वाला नेई।"
"तू समझता नहीं...वहां खतरा है।"
"तो क्या हुआ।"
"जान जा सकती है।"
"फिकर नेई ...अपुन साथ चलेंगा।" जय जिद पर अड़ गया।
राज ने उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया । वह अपनी तैयारी में लगा रहा और जय उसके पीछे-पीछे।
तब अंधेरा हो चुका था जब राज ने बोट नीचे उतरवायी। सबसे पहले वोट में से जय उतरा।
"वहां खतरा होगा...।" राज ने विरोध प्रकट करते हुए कहा-"तेरा इधर रहना जरूरी है।"
"अपुन तुमेरे साथ में रहेगा...जिधर तुम उधर अपुन। किधर भी कोई लफड़ा नेई।"
राज समझ गया कि उससे बहस करना बेकार ही होगा। वह स्टीमर के स्टॉफ और पाल को आवश्यक निर्देश देकर बोट में पहुंच गया।
"नेई बाप...अपुन उसका वास्ते बहुत कुछ किया इस वास्ते वो अपुन का अहसान मानता...क्या!"
"यानी भरोसा किया जा सकता है?"
"हां।"
उसके बाद उनकी वार्ता का क्रम टूट गया।
राज आखों पर दूरबीन लगाए सामने की ओर देखता रहा। समुद्र में दस किलोमीटर से भी अधिक दूरी तय की जा चुकी थी।
अभी तक पाल द्वारा बताए गए टापू का कोई पता नहीं था।
"जय..." थोड़ी देर बाद राज चिंतित स्वर में बोला-"पाल कहा है?"
"केबिन में नोटाक लगाएला है।"
"बुला उसे फौरन।"
जय तुरन्त जाकर पाल को बुला लाया। पाल खांसे निपोरता हुआ राज के सम्मुख पहुंचा। बोतल उसके हाथ में थी।
"तू उन लोगों में से है जो फ्री की फिनायल भी नहीं छोड़ते। बेसब्रे...चार-छ: बोतलें साथ घर ले जाना...अब इधर पीना छोड़ और टापू का पता लगा।" राज ने उसे हिकारत की नजरों से देखते हुए पूछा।
"-हैं-हे....सेठ टापू अभी आन वाला है। मैंने बराबर डायरेक्शन दिया हुआ है। कैप्टन सही लाइन पर स्टीमर लेकर जा रहा है। थोड़ा टाइम और लगेगा।" पाल बोतल से चूंट भरता हुआ बोला।
"दस किलोमीटर कब के पार हो चुके।"
"अब अंदाज है सेठ...दस के बीस किलोमीटर भी हो सकते हैं। फिकर छोड़ दो...लाओ दूरबीन...मैं अभी देखता हूं।"
अनमने भाव से राज ने दूरबीन उसके हवाले कर दी।
नशे की हालत में वह दूरबीन से उस दिशा में देखने लगा जिस दिशा में स्टीमर बढ़ रहा था। राज ने उसकी और से ध्यान हटाकर तेज हवाओं के बीच मुश्किल से ही सही लेकिन आखिरकार सिगरेट सुलगा ही ली। वह चिन्तित अवस्था में सिगरेट के कश लगाने लगा।
लगभग बीस मिनट बाद।
तब जबकि हल्की-हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई थी, एकाएक ही दूरबीन आखों से हटाकर पाल जोशीले अंदाज में राज की ओर पलटा।
"लाल हवेली सेठ...आ गई लाल हवेली। ये लो दूरबीन...और देखो उस दिशा में।"
राज ने जल्दी से उसके हाथ से दूरबीन लेकर आखों से लगा ली।
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दिशा में छोटा-सा जंजीर नेजर आने लगा।
"यही है लाल हवेली...?" उसने आतुरता से पूछा।
"हां सेठ...इसी टापू में है वह किला जिसे लाल हवेली कहते हैं। इसके आसपास कोई बोट नजर नहीं आ सकतीं।" पाल ने दो बूंट लगाने के बाद कहा।
"ऐसा क्यों...?"
"ऐसा इसलिए कि यहां के अंजाने खतरे से हर कोई घबराता है।। कई तो जिद्दी लोगों की बोटों तक का पता नहीं चल सका।"
"आई सी...।"
"टापू के आसपास भी जाना खतरे से खाली नहीं।"
"रात में?"
"दिन और रात का कोई फर्क नहीं। उस टापू के एरिए में जब भी जो भी जाता है उसका काम तमाम हो जाता है। लाश का पता नहीं चलता।"
"तू फिक्र मत कर...कम से कम मैं तुझे इतने बड़े खतरे में नहीं डालूंगा।"
"हहह...सेठ।"
"खतरे की सीमा से बहुत पहले स्टीमर को रुकवा दें।"
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"ओ. के.।"
पाल चला गया।
उसके चले जाने के बाद राज विचारपूर्ण मुद्रा में जंजीरे की दिशा में देखने लगा।
थोड़ी दूर जाकर स्टीमर रुक गया।
फुहार पड़ रही थी। हवाओं में तेजी आती जा रही थी और अंधेरा घिरता जा रहा था।
"जय..!" थोड़ी देर बाद राज बोला "तूने यहीं रहना है। अंधेरा होते ही एक वोट पर मैं यहां से जंजीरे की तरफ निकल जाऊंगा।"
"अकेले...?"
"हां।"
"नेईं...अपुन तुमरे साथ चलगा...क्या! इधर तुमेरी दादागिरी नेई चल पाएगी। अपुन साथ छोड़ने वाला नेई।"
"तू समझता नहीं...वहां खतरा है।"
"तो क्या हुआ।"
"जान जा सकती है।"
"फिकर नेई ...अपुन साथ चलेंगा।" जय जिद पर अड़ गया।
राज ने उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया । वह अपनी तैयारी में लगा रहा और जय उसके पीछे-पीछे।
तब अंधेरा हो चुका था जब राज ने बोट नीचे उतरवायी। सबसे पहले वोट में से जय उतरा।
"वहां खतरा होगा...।" राज ने विरोध प्रकट करते हुए कहा-"तेरा इधर रहना जरूरी है।"
"अपुन तुमेरे साथ में रहेगा...जिधर तुम उधर अपुन। किधर भी कोई लफड़ा नेई।"
राज समझ गया कि उससे बहस करना बेकार ही होगा। वह स्टीमर के स्टॉफ और पाल को आवश्यक निर्देश देकर बोट में पहुंच गया।