vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान) - Page 6 - SexBaba
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vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)

आफ़्ताब: "आआहह खाला... मुझे सब्र नहीं होता... मैं क्या करूँ... जब भी हाई हील वाली सैंडलों में आपकी मटकती गाँड देखता हूँ तो मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता है और सलील भी दो बजे स्कूल से आ जायेगा.... मुझे आपकी फुद्दी मारने दो ना... आप ने तो कल खालू से चुदवा लिया होगा ना...!

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नज़ीला: "वो क्या खाक चोदता है मुझे.... तेरे खालू का लंड तो ठीक से खड़ा भी नहीं होता... मुझे तो तेरे जवान लंड की लत्त लग गयी है... बस मैं एक घंटे में पार्लर बंद कर दुँगी... फिर जितनी देर करना हो कर लेना!"

पूरे कमरे में फ़च-फ़च जैसी आवाज़ गूँज रही थी। रुखसाणा ने देखा कि नज़ीला सिर्फ़ ऊपर से मना कर रही थी... वो पूरी मस्ती में थी और अपनी गाँड को पीछे की तरफ़ धकेल-धकेल कर आफ़्ताब से चुदवा रही थी। तभी अचानक से रुकसाना हिली तो उसका सैंडल बेड रूम के दरवाजे से टकरा गया। आवाज़ सुनकर दोनों एक दम से चौंक गये। जैसे ही नज़ीला ने रुखसाना को डोर पर खड़े देखा तो उसके चेहरे का रंग एक दम से उड़ गया। उस लड़के की हालत और भी पत्तली हो गयी और उसने जल्दी से अपने लंड को बाहर निकाला और अटैच बाथरूम में घुस गया। नज़ीला ने जल्दी से अपनी पैंटी ऊपर की और फ़ौरन अपनी सलवार उठा कर पहनी और घबराते हुए काँपती हुई आवाज़ में बोली, "अरे रुखसाना... तुम तुम कब आयीं?" फिर वो रुकसाना के पास आयी और उसका हाथ पकड़ कर उसे ड्राइंग रूम में ले गयी और उसे सोफ़े पर बिठाया। वो कुछ कहना चाह रही थी पर शायद नज़ीला को समझ नहीं आ रहा था कि वो रुखसाना से क्या कहे.... कैसे अपनी सफ़ाई दे! "ये सब क्या है नज़ीला भाभी...?" रुखसाना ने नज़ीला के चेहरे की ओर देखते हुए पूछा।

नज़ीला गिड़गिड़ा कर मिन्नत करते हुए बोली, "रुखसाना यार किसी को बताना नहीं... तुझे अल्लाह का वास्ता... वर्ना मैं कहीं की नहीं रहुँगी... मेरा घर बर्बाद हो जायेगा... प्लीज़ किसी को बताना नहीं... मैं बर्बाद हो जाऊँगी अगर ये बात किसी को पता चल गयी तो!" नज़ीला के हाथ को अपने हाथों में लेकर तसल्ली देते हुए नज़ीला बोली, "भाभी आप घबरायें नहीं... मैं नहीं बताती किसी को... पर ये सब है क्या और वो लड़का कौन है..?"

नज़ीला बोली, "मैं बताती हूँ... तुझे सब बताती हूँ... पर ये बात किसी को बताना नहीं... तू अभी अपने घर जा... मैं थोड़ी देर में तेरे घर आती हूँ!" नज़ीला की बात सुनकर रुखसाना बिना कुछ बोले वहाँ से उठ कर अपने घर आ गयी और आते ही अपने रूम में बेड पर लेट गयी। थोड़ी देर पहले जो नज़ारा उसने देखा था वो बहुत ही गरम और भड़कीला था। एक पंद्रह-सोलह साल का लड़का एक पैंतीस साल की औरत को पीछे से उसके चूतड़ों से पकड़े हुए चोद रहा था... और नज़ीला भी मस्ती में अपनी गाँड उसके लंड पर धकेल रही थी। रुखसाना का बुरा हाल था... उसकी चूत में अंदर तक सनसनाहट हो रही थी और चूत से पानी बह कर उसकी पैंटी को भिगो रहा था। रुखसाना करीब आधे घंटे तक वैसे ही लेटी रही और सोच-सोच कर गरम होती रही और अपनी सलवार के अंदर हाथ डाल कर पैंटी के ऊपर से अपनी फुद्दी को मसलती रही। करीब आधे घंटे बाद बाहर डोर-बेल बजी तो रुखसाना बदहवास सी खड़ी हुई और बाहर जाकर दरवाजा खोला। सामने नज़ीला खड़ी थी और उसके चेहरे का रंग अभी भी उड़ा हुआ था। रुखसाना ने नज़ीला को अंदर आने के लिये कहा और फिर दरवाजा बंद करके उसे अपने कमरे में ले आयी। नज़ीला अंदर आकर रुखसाना के बेड पर नीचे पैर लटका कर बैठ गयी। खौफ़ उसके चेहरे पे साफ़ नज़र आ रहा था। रुखसाना ने उसे चाय पानी के लिये पूछा तो उसने मना कर दिया।

"नज़ीला भाभी जो हुआ उसे भूल जायें... आप समझ लें कि मैंने कुछ देखा ही नहीं है... मैं ये बात किसी को नहीं बताऊँगी... आप बेफ़िक्र रहें!" रुखसाना की बात सुनते ही नज़ीला की आँखें नम हो गयीं। रुखसाना समझ नहीं पा रही थी कि ये आँसू सच में पछतावे के थे या नज़ीला मगमच्छी आँसू बहा कर उसे जज़बाती करके ये मनवा लेना चाहती थी कि रुखसाना उसकी फ़ासिक़ हर्कत के बारे में किसी को ना बताये। "रुखसाना मैं जानती हूँ कि तू ये बात किसी को नहीं बतायेगी... पर फिर भी मेरे दिल में कहीं ना कहीं डर है... इसलिये मुझे घबराहट हो रही है...!" नज़ीला बोली।

रुखसाना ने उसे फिर तसल्ली देते हुए कहा, "नज़िला भाभी आप घबरायें नहीं... मैं नहीं बताती किसी को... पर ये सब है क्या... और वो लड़का तो आप को खाला बुला रहा था ना..? क्या वो सच में आपका भांजा है..?" थोड़ी देर चुप रहने के बाद नज़ीला बोली, "हाँ वो मेरी बड़ी बेहन का बेटा है...!" नज़ीला की बात सुन कर रुखसाना एक दम से हैरान हो गयी, "क्या... क्या सच कह रही हैं आप... पर ये सब आप ने.... ये सब कैसे... क्यों किया..?"

नज़ीला ने अपनी दास्तान बतानी शुरू की, "अब मैं तुझे क्या बताऊँ रुखसाना... तू इसे मेरी मजबूरी समझ ले या फिर मेरी जरूरत... हालात ही कुछ ऐसे हो गये थे कि मैं खुद को रोक ना सकी... शादी के बाद से ही हमारी सैक्स लाइफ़ बस सो-सो थी और फिर धीरे-धीरे हमारी सैक्स लाइफ़ कमतर होती गयी... इसीलिये सलील भी हमारी शादी के कईं सालों बाद पैदा हुआ... ऊपर से इन्हें ब्लडप्रेशर और डॉयबिटीस भी हो गयी... और सैक्स में इनकी दिलचस्पी बिल्कुल खतम हो गयी... हमारी सैक्स लाइफ़ बिल्कुल खतम हो चुकी थी... तुझे तो अच्छे से मालूम होगा कि बिना मर्द के प्यार के रहना कितना मुश्किल होता है... पर मैं अपनी सारी ख्वाहिशें मार के जीती रही। सलील की देखभाल और ब्यूटी पार्लर में दिन का वक़्त तो कट जाता था पर रातों को बिस्तर पे करवटें बदलती रहती थी... इन्हें तो जैसे मेरी कोई परवाह ही नहीं थी... फिर मुझे अपनी एक फ्रेंड से ब्लू-फ़िल्में मिल गयी तो उन्हें देख कर मेरे अंदर की आग और भड़कने लगी... मुझे खुद-लज़्ज़ती की लत्त लग गयी और अकेले में ब्लू-फिल्में देखते हुए मैं अपनी चूत को मसल कर और केले और दूसरी चीज़ों के ज़रिये अपनी चूत के आग को बुझाने की कोशिश करने लगी। पर खुद-लज़्ज़ती में असली सैक्स वाली तसल्ली कहाँ हो पाती है! फिर एक दिन मेरी ज़िंदगी तब बदल गयी जब आफ़्ताब हमारे यहाँ गर्मी की छुट्टियों में रहने आया... वो उस वक़्त नौवीं क्लास में था। अब्बास भी सुबह ही काम पर चले जाते थे या फिर वही उनके हफ़्ते-हफ़्ते के टूर पे.... सब कुछ नॉर्मल चल रहा था... सलील और आफ़्ताब के घर में होने से मेरा भी दिल लगा हुआ था... फर एक दिन सब कुछ बदल गया!"

रुखसाना बड़े गौर से नज़ीला की दास्तान सुन रही थी जो हूबहू उसकी खुद की ज़िंदगी की कहानी थी। नज़ीला ने आगे बताया, "वो दिन मुझे आज भी अच्छे से याद है... अब्बास ऑफिस जा चुके थे... सलील को नाश्ता देने के बाद मैं आफ़्ताब को उठने के लिये गयी... वो तब तक सो रहा था... मैं जैसे ही कमरे में गयी तो मैंने देखा कि आफ़्ताब बेड पर बेसुध सोया हुआ था और वो सिर्फ़ अंडरवियर में था। उसका अंडरवियर सामने से उठा हुआ था और उसका लंड उसके अंडरवियर में बुरी तरह तना हुआ था... मेरी तो साँसें ही अटक गयीं... उस दिन से पहले मैं आफ़्ताब को अपने बेटे जैसा ही समझती थी पर उसके अंडरवियर के ऊपर से उसका तना हुआ लंड देख कर मेरे जिस्म में झुरझुरी से दौड़ गयी... उसका लंड पूरी तरह तना हुआ अंडरवियर को ऊपर उठाये हुए था... मैं एक टक जवान हो रहे अपने भाँजे के लंड को देख कर गरम होने लगी... पता नहीं कब मेरा हाथ मेरी सलवार के ऊपर से मेरी चूत पर आ गया और मैं उसके अंडरवियर में बने हुए टेंट को देखते हुए अपनी चूत मसलने लगी... मेरी चूत बुरी तरह से पनिया गयी... मेरा बुरा हाल हो चुका था... तभी बाहर से सलील के पुकारने की आवाज़ आयी तो मैं होश में आयी और बाहर चली गयी। आफ़्ताब गर्मियों की वजह से शॉर्ट्स पहने रहते था।"

"मेरे जहन में बार-बार आफ़्ताब का वो अंडरवियर का उभरा हुआ हिस्सा आ रहा था... उसी दिन दोपहर की बात है... आफ़्ताब, मैं और सलील उस वक़्त मेरे ही बेडरूम में टिवी देख रहे थे क्योंकि हमारे बेडरूम में ही एयर कंडिशनर लगा हुआ है। टिवी देखते हुए हम तीनों बेड पर लेटे हुए थे। बाहर बहोत तेज धूप और गरमी थी और एक दम सन्नाटा पसरा हुआ था। बेडरूम में खिड़कियों पर पर्दे लगे हुए थे और डोर बंद था... बस सिर्फ़ टीवी की हल्की रोशनी आ रही थी जिस पर आफ़्ताब लो-वॉल्युम में कोई मूवी देख रहा था। मैं सबसे आखिर में दीवार वाली साइड पे लेटी हुई थी। इतने में टीवी पे एक रोमांटिक उत्तेजक गाना आने लगा जिसमें हीरो-हिरोइन बारिश में भीग कर गाना गाते हुए एक दूसरे से चिपक रहे थे। हिरोइन का व्लाऊज़ बेहद लो-कट था जिस्में से उसकी चूचियाँ बाहर झाँक रही थीं।"

"मैंने नोटिस किया कि आफ़्ताब चोर नज़रों से मेरी छाती की तरफ़ देख रहा था। मेरे पूरे जिस्म में झुरझुरी दौड़ गयी और मेरी चूत में फिर से कुलबुलाहट होने लगी। जब उसने फिर तिरछी नज़र से मेरी तरफ़ देखा तो मैंने मस्ती वाले अंदाज़ में आफ़्ताब को पूछा जो कि वो क्या देख रहा था तो शरमा गया और एक दम से टिवी की तरफ़ देखते हुए बोला कि कुछ नहीं! इस दौरान मैं जानबूझ कर अपनी लो-कट गले वाली कमीज़ के ऊपर से अपनी चूची सहलाने लगी। आफ़्ताब चोर नज़रों से फिर मेरी तरफ़ देखने लगा। मैं जानती थी कि उसकी नज़र मेरे चूचियों पर थी और वो कभी टीवी की ओर देखता तो कभी मेरी ओर! फिर मैंने बैठ कर सलील को दीवार वाली साइड पे खिसका दिया और खुद आफ़्ताब की तरफ़ करवट करके लेट गयी। लेकिन इस दौरान मैंने अपनी कमीज़ थोड़ी और खिसका दी जिससे मेरी ब्रा और एक चूची काफ़ी हद तक नुमाया होने लगी। आफ़्ताब की आँखें फटी रह गयीं। मैंने आफ़्ताब से पूछा कि मैं क्या उसे उस हिरोइन से ज्यादा हसीन लग रही हूँ जो वो टिवी छोड़ कर बार-बार मुझे ताक रहा है। आफ़्ताब मेरी बात सुन कर शरमा कर मुस्कुराने लगा तो मैंने फिर अपने मम्मे को मसलते हुए उससे पूछा कि मैं उसे हसीन लग रही हूँ कि नहीं। आफ़्ताब हसरत भरी नज़रों से मेरी जानिब देखने लगा तो मैंने इस बार कातिलाना अंदाज़ में मुस्कुराते हुए उसे अपने करीब आने का इशारा किया।

आफ़्ताब खिसक कर मेरे करीब आ गया तो मैं अपने चूंची अपनी कमीज़ और ब्रा में से बाहर निकाल कर दिखाते हुए बोली कि देखेगा मेरा हुस्न तो उसने अपने गले में थूक गटकते हुए हाँ में सिर हिला दिया। मैं अपना एक हाथ उसके सिर के पीछे ले गयी और उसके सिर को पकड़ कर अपनी चूंची के तरफ़ उसके चेहरे को खींचते हुए अपने दूसरे हाथ से अपनी चूंची को पकड़ कर अपना निप्पल उसके मुँह के पास कर दिया। उसने भी बिना कोई देर किये मेरी चूंची के निप्पल को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। मैंने अपनी एक बाँह उसकी गर्दन के पीछे से निकाल कर अपना हाथ उसके सिर पर रखा और उसे अपने चूचियों पे दबा दिया। आफ़्ताब अब और खिसक कर मेरे साथ चिपक कर मेरी चूंची को चूसने लगा तो मेरी चूत फड़फड़ाने लगी और मेरी चूत से पानी बह कर बाहर आने लगा। मैं एक दम मस्त हो चुकी थी और मैंने अपने दूसरे हाथ से अपनी सलवार का नड़ा खोल दिया। मैं अपनी सलवार और पैंटी में नीचे हाथ डाल कर अपनी चूत को मसलने लगी और मेरे मुँह से से हल्की-हल्की सिसकारियों की आवाज़ आने लगी। मुझे एहसास भी नहीं हुआ कि कब आफ़्ताब ने मेरी उस चूंची को हाथ से पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया जिसे वो साथ में चूस रहा था। जैसे ही मेरा ध्यान इस जानिब गया कि आफ़्ताब मेरी चूंची को किसी मर्द की तरह अपने हाथ से मसल रहा है तो मेरी चूत में तेज सरसराहट दौड़ गयी। मैंने उसके सिर को अपनी बाँह में और कस के जकड़ लाया और अपनी दो उंगलियाँ अपनी चूत के अंदर डाल दीं। मैं अपनी सिसकरी को रोक नहीं सकी.... आँआँहहहह आआआफ़्ताआआब ऊँऊँहहह.!"
 
"आफ़्ताब मेरे सिसकने की आवाज़ सुन कर एक दम चौंक गया। उसने मेरे निप्पल को मुँह से बाहर निकला जो उसके चूसने से एक दम तन कर फूला हुआ था... और मेरी हवस से भरी आँखों में देखते हुए बोला कि खाला क्या हुआ। मैं उसकी बात सुन कर एक पल के लिये होश में आयी कि मैं ये क्या कर रही हूँ अपने जिस्म की आग को ठंडा करने के लिये मैं अपनी ही कच्ची उम्र के भांजे के साथ ये काम कर रही हूँ... लेकिन मैं हवस की आग में अंधी हो चुकी थी कि मैंने उसका चेहरा अपने चूँची पे दबाते हुए उसे चूसते रहने को कहा। उसने फिर से मेरे निप्पल को मुँह में भर लिया और इस बार उसने मेरी चूंची के काफ़ी हिस्से को मुँह में भर लिया और मेरी चूंची को चूसते हुए बाहर की तरफ़ खींचने लगा। मेरा पूरा जिस्म थरथरा गया और मुँह से एक बार फिर से आआआहहह निकल गयी। इस बार उसने फिर से चूंची को मुँह से बाहर निकला और बोला कि बोलो ना खाला क्या हुआ तो मैंने काँपती हुई आवाज़ में सिसकते हुए उसे जवाब दिया कि कुछ नहीं आफ़्ताब... जल्दी कर मेरा बहुत बुरा हाल है! अचानक से मुझे उसका लंड शॉर्ट्स के ऊपर से अपनी नाफ़ में चुभता हुआ महसूस हुआ। तब तक वो फिर से मेरी चूंची को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर चुका था। मैं इस क़दर मदहोश हो गये कि मुझे कुछ होश ना था। मैंने अपनी टाँगों को फैलाते हुए अपनी सलवार और पैंटी रानों पे खिसका कर आफ़्ताब का एक हाथ पकड़ के नीचे लेजाकर अपनी चूत पर रख दिया जो एक दम भीगी हुई थी। आफ़्ताब मेरी समझ से कहीं ज्यादा तेज था... जैसे ही मैंने उसका हाथ अपनी चूत के ऊपर रखा तो उसने मेरी चूत के फ़ाँकों के बीच अपनी उंगलियों को घुमाते हुए रगड़ना शुरू कर दिया। मेरा पूरा जिस्म एक दम से ऐंठ गया। फिर उसने धीरे-धीरे से अपनी एक उंगली मेरी चूत में घुसा दी और अंदर-बाहर करने लगा। मैं एक दम से मदहोश होती चली गयी। वो मेरी चूत में उंगली अंदर-बाहर करते हुए मेरे चूंची को चूस रहा था और वो धीरे-धीरे मेरे ऊपर आ चुका था।"

"तभी मेरा ध्यान सलील की तरफ़ गया कि वो भी मेरी बगल में सो रहा है। मैंने आफ़्ताब के सिर को दोनों हाथों से पकड़ कर पीछे की तरफ़ ढकेला तो मेरी चूंची उसके मुँह से बाहर आ गयी। मैंने आफ़्ताब को सलील की मौजूदगी की याद दिलायी तो आफ़्ताब ने सलील की तरफ़ देखा जो गहरी नींद में था और फिर मेरी तरफ़ देखने लगा। उसकी उंगली अभी भी मेरी चूत में थी। मैं नहीं चाहती थी कि सलील उठ जाये और हमें इस हालत में देख ले। इसलिये मैंने आफ़्ताब को धीरे से कहा कि वो दूसरे बेडरूम में जाये जहाँ वो रोज़ रात को सोता है और वहाँ कूलर ऑन कर ले... मैं अभी थोड़ी देर में आती हूँ...!

मेरी बात सुन कर आफ़्ताब खड़ा हुआ और अपने बेडरूम की तरफ़ चला गया। मैं धीरे से बेड से नीचे उतरी और अपनी सलवार का नाड़ा बाँधा और अपनी कमीज़ उतार दी । सिर्फ़ सलवार और खुली हुई ब्रा पहने मैं हाइ हील वाली चप्पल में गाँड मटकाती हुई अपने बेडरूम से निकल कर आफ़्ताब के बेडरूम की तरफ़ चली गयी। जैसे ही मैं दूसरे बेडरूम में पहुँची तो देखा के आफ़्ताब ने कूलर चालू कर दिया था और बेड पर पैर लटकाये मेरा इंतज़ार कर रहा था। मैंने अंदर आकर दरवाजा बंद किया तो इतने में आफ़्ताब खड़ा होकर मुझसे लिपट गया और पीछे दीवार के साथ सटा दिया। उसने मेरी ब्रा के बाहर झाँक रही चूचियों को हाथों में पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया और फिर मेरी एक चूंची को मुँह में भर कर चूसने लगा। मैं मस्ती में सिसकने लगी कि ओहहहह आफ़्ताब हाँआआआ चूऊऊस ले अपनी खाला के मम्मों को... चूस ले मेरे बच्चे.... मैंने अपनी सलवार का नाड़ा खोल दिया और सलवार मेरे पैरों में गिर पड़ी। मैं आफ़्ताब का हाथ पकड़ कर फिर से अपनी चूत पर रखते हुए बोली कि... ओहहह आफ़्ताब देख ना मेरा कितना बुरा हाल है! आफ़्ताब ने मेरी चूत को मसलते हुए अपने मुँह से चूंची को बाहर निकाला और अपना निक्कर नीचे घुटनों तक सरका दिया और फिर मेरा हाथ पकड़ कर अपने तने हुए छ इंच के लंड पर रखते हुए बोला कि... खाला देखो ना मेरा भी बुरा हाल है...!"

"जैसे ही मेरे हाथ में जवान तना हुआ लंड आया तो मैं सब कुछ भूल गयी और फिर मैं नीचे झुकते हुए घुटनों के बल बैठी और आफ़्ताब के लंड को हाथ से पकड़ कर हिलाने लगी। उसके लंड का टोपा लाल होकर दहक रहा था। फिर मैंने आफ़्ताब का हाथ पकड़ कर उसे खींचते हुए पीछे बिस्तर पर लेटना शुरू कर दिया और आफ़्ताब को अपने ऊपर गिरा लिया। मैंने अपनी टाँगों को नीचे से पूरा फैला लिया और आफ़्ताब अब मेरी टाँगों के बीच में था। मैंने उसका लंड पकड़ कर अपनी दहकती हुई चूत के छेद पर लगा दिया और मस्ती में सिसकते हुए बोली कि ओहहहह आफ़्ताब अपनी खाला की फुद्दी मार कर इसकी आग को ठंडा कर दे मेरे बच्चे... और फिर उसका लंड अपनी चूत पर सटाये हुए ही अपनी टाँगों को उसकी कमर पर लपेट लिया। आफ़्ताब ने मेरे कहने पर धीरे-धीरे अपना लंड मेरी चूत के छेद पर दबाना शुरू कर दिया। बरसों की प्यासी चूत जो एक जवान और तने हुए लंड के लिये तरस रही थी... आफ़्ताब के तने हुए लंड की गरमी को महसूस करके कुलबुलाने लगी। मैंने अपनी गाँड को पूरी ताकत से ऊपर की ओर उछाला तो आफ़्ताब का लंड मेरी चूत की गहराइयों में उतरता चला गया। फिर तो आफ़्ताब ने भी बेकरारी में पुरजोश अपनी गाँड उठा-उठा कर मेरी चूत के अंदर अपने लंड को पेलना शुरू कर दिया। वो किसी जवान मर्द की तरह मेरे मम्मों को मसलते हुए अपने लंड को मेरे चूत के अंदर बाहर कर रहा था और फिर उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। चूत की दीवारों पर उसके लंड की रगड़ मदहोश कर देने वाली थी और मस्ती में मुझे कच्ची उम्र के अपने भांजे से अपने होंठ चुसवाने में ज़रा भी शरम नहीं आयी। बिल्कुल बेहयाई से मैंने उसका साथ देना शुरू कर दिया और अपनी गाँड ऊपर उछाल-उछाल कर उसके लंड को अपनी चूत की गहराइयों में लेने लगी। उसके पाँच मिनट के धक्कों ने ही मेरी चूत को पानी-पानी कर दिया... मैं झड़ कर एक दम बेहाल हो गयी थी... थोड़ी देर बाद उसने भी अपना सारा पानी मेरी चूत के अंदर उड़ेल दिया... रुखसाना अब मैंने तुझे सारी बात तफ़सील से बता दी है... प्लीज़ ये सब किसी से नहीं कहना और हाँ तुझे ज़िंदगी में कभी मेरी जरूरत पड़े तो मैं तेरे साथ हूँ... मुझसे एक बार कह कर देखना... मैं तेरे लिये कुछ भी कर सकती हूँ...!"

उसके बाद नज़ीला रुखसाना को अपनी चुदाई की दस्तान सुना कर चली तो गयी लेकिन जितनी तफ़सील और खुल्लेपन से उसने अपनी दास्तान सुनायी थी उससे नज़ीला रुखसाना की चूत में आग और ज्यादा भड़का गयी थी। पिछले कुछ महीनों में जिस रफ़्तार से उसकी ज़िंदगी में फ़ेरबदल हो रहे थे वो रुखसाना ने अपनी पूरी ज़िंदगी में कभी नहीं देखे थे। सुनील का उसके घर किरायेदार के तौर पे आना और फिर उसे अज़रा के साथ सैक्स करते देखना... और फिर खुद उससे नाजायज़ रिश्ता बनाना और उसके लंड की लत्त लगा कर उसकी गुलाम बन कर रह जाना और फिर नज़ीला का ये किस्सा। रुखसाना की ज़िंदगी में इतना सब कुछ चंद महीनों के अंदर हो चुका था और यही सब सोचती हुई वो ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही थी कि आगे आने वाले दिनों में पता नहीं और क्या-क्या होगा...!

उस दिन के दो दिन बाद की बात है। सानिया सुबह कॉलेज चली गयी थी और फ़ारूक भी उस दिन घर से थोड़ा जल्दी निकल चुका था और सुनील भी काम पर जाने के लिये तैयार था। जैसे ही वो नीचे आया तो उसने रुकसाना से फ़ारूक के बारे में पूछा तो रुखसाना ने उसे बताया कि वो थोड़ी देर पहले ही निकल गया है। जैसे ही सुनील को पता चला कि फ़ारूक और सानिया घर पर नहीं है तो उसने हाल में ही उसे बाहों में भर लिया और उसके होंठों को चूसने लगा और साथ-साथ उसके चूतड़ों को सलवार के ऊपर से मसलने लगा। रुख्साना तो सुनील की बाहों में जाते ही पिघलने लगी और मस्ती में सिसकते हुए बोली, "ओहहह सुनील... मुझे कहीं भगा कर ले चल.... मुझे अब तुझसे एक पल भी दूर नहीं रहा जाता..!" सुनील ने उसकी आँखों में देखा और मुस्कुराते हुए बोला, "मेरी भाभी जान... चाहता तो मैं भी यही हूँ... पर मैं नहीं चाहता कि मेरे वजह से आपका घर बर्बाद हो... थोड़ा सब्र रखो... हमें जल्द ही मौका मिलेगा...!" ये कहते हुए उसने एक बार फिर से रुखसाना के होंठों को चूसते हुए उसकी चूत को सलवार के ऊपर से मसलने लगा। रुखसाना भी सुनील की पैंट के ऊपर से अपने दिलबर यानि सुनील के लंड को मसल रही थी। पाँच-छः मिनट दोनों सब भूल कर एक दूसरे के होंठ चूसते हुए ये सब करते रहे और फिर सुनील काम पे चला गया। रुखसाना ने दरवाजा बंद किया और घर के काम निपटाने लगी।

दो दिन से नज़ीला से उसकी बात नहीं हुई थी और उस दिन आई-ब्राऊ और फेशियल करवाना भी रह गया था... इसलिये रुखसाना अपने काम निपटा कर नज़ीला के घर जाने के लिये निकली। आज भी नज़ीला गेट खोल कर अंदर गयी तो मेन-डोर तो बंद था लेकिन ब्यूटी पार्लर का दरवाजा खुला हुआ था। वो पार्लर के अंदर गयी तो पार्लर के पीछे से घर के अंदर जाने का दरवाजा आज भी खुला हुआ था। रुखसाना ने इस दफ़ा वो दरवाजा खटखटाना ही ठीक समझा। रुख्साना ने दरवाजा नॉक किया तो नज़ीला ने आकर जब रुखसाना को पार्लर में खड़े देखा तो वो बोली, "अरे रुखसाना... तू वहाँ क्यों खड़ी है... अंदर आ जा ना!" नज़ीला घर के अंदर आ गयी तो नज़ीला ने उसे हाल में सोफ़े पर बिठाते हुआ पूछा, "रुखसाना आज क्या बात है... आज नॉक क्यों कर रही थी... सीधी अंदर आ जाती... तेरा ही घर है!" रुखसाना ने मुस्कुराते हुए नज़ीला की ओर देखते हुए कहा, "भाभी वो मैंने इस लिये दरवाजे पे नॉक किया था कि क्या मलूम आप किसी और ही काम में मसरूफ़ ना हों!"

नज़ीला भी उसकी बात सुन कर मुस्कुराने लगी और उसके पास आकर बैठते हुए बोली, "रुखसाना... आफ़्ताब तो उसी दिन चला गया था... मैं आज घर पर अकेली हूँ... वैसे तूने सही किया कि दरवाजे पे नॉक कर दिया... हमें दूसरों के घर में जाने से पहले डोर पे नॉक कर ही लेना चाहिये... पता नहीं अंदर क्या देखने को मिल जाये... और हमें भी ऐसे काम डोर बंद करके ही करने चाहिये... पर शायद तू आज हाल का दरवाजा बंद करना भूल गयी थी..!" रुखसाना थोड़ा सा हैरान होते हुए बोली, "क्यों क्या हुआ नजिला भाभी...?"

नज़ीला बोली, "अब इसमें मेरी कोई गल्ती नहीं है... देख मैं तेरे घर आयी थी सुबह... तब तू उस लड़के के आगोश में लिपटी हुई उससे अपनी गाँड मसलवा रही थी... तू तो बड़ी तेज निकाली रुखसाना... घर में ही इंतज़ाम कर लिया है!" नज़ीला की बात सुन कर रुखसाना का केलजा मुँह को आ गया। वो फटी आँखों से नज़ीला के चेहरे को देखने लगी जिसपे एक अजीब सी मुस्कान छायी हुई थी। "अरे रुखसाना घबराने की कोई बात नहीं है... अगर मुझे तेरे राज़ का पता चल गया तो क्या.. तुझे भी तो मेरे बारे में सब मालूम है... देख रुखसाना मैं सब जानती हूँ कि तूने ज़िंदगी में कभी खुशी नहीं देखी... तुझे अपने शौहर के साथ सैक्स लाइफ़ का लुत्फ़ शायद कभी नसीब नहीं हुआ और तुझे अपनी ज़िंदगी जीने का पूरा हक़ है... तू घबरा नहीं... हम दोनों एक दूसरे को कितने सालों से जानती हैं... हम दोनों ने एक दूसरे का अच्छे-बुरे वक़्त में साथ दिया है... और मैं यकीन से कहती हूँ कि हम दोनों के ये राज हम दोनों के बीच में ही रहेंगे... पर ये बाता कि तूने उस हैंडसम लड़के को पटाया कैसे..!"

रुखसाना: "अब मैं आपको कैसे बताऊँ भाभी... बस ऐसे ही एक दिन अचानक से सब कुछ हो गया!"

नज़ीला: "अरे बता ना कैसे हुआ... जैसे मैंने तुझे अपने और आफ़्ताब के बारे में बताया था... देख मैंने अपनी कोई बात नहीं छुपायी तुझसे... अब तू भी मुझे सब बता दे...!" फिर नज़ीला ने तब तक रुखसाना की जान नहीं छोड़ी जब तक रुखसाना ने उसे सब कुछ तफ़सील में नहीं बता दिया। रुखसाना ने भी काफ़ी तफ़सील से अपनी रंग रलियों की हर एक बात नज़िला को बतायी। रुखसाना की दास्तान सुनकर नज़ीला की हवस भी भड़क गयी। उसे रुखसाना की किस्मत पे रश्क़ होने लगा। "वाह रुखसाना... तू तो बड़ी किस्मत वाली है... वो लड़का अपनी ज़ुबान से तेरे पैर और सैंडल तक चाटता है... माशाल्लाह... और तू शराब भी पीती है उसके साथ...!" नज़ीला ने ताज्जुब जताते हुए कहा।

"पर नज़ीला भाभी... फ़ारूक से ज्यादा सानिया खासतौर पे हमेशा उस वक़्त घर पे होती है जब सुनील घर पर होता है... भाभी दो-दो तीन-तीन दिन निकल जाते हैं और मैं तड़पती रह जाती हूँ... समझ में नहीं आ रहा क्या करूँ!"

नज़ीला: "तो मैं किस रोज़ काम आऊँगी... तू ये बता कि वो घर वापस कब आता है...!"
 
रुखसाना: "भाभी वो शाम को पाँच बजे के करीब घर वापस आता है... लेकिन हफ़्ते में दो या तीन दिन उसकी नाइट ड्यूटी लगती है तो सिर्फ़ फ्रेश होने आता है थोड़ी देर के लिये!" रुखसाना को कहाँ मालूम था कि सुनील की नाइट ड्यूटी तो दर असल नफ़ीसा के बेडरूम में लगती है।

नज़ीला: "और फ़ारूक भाई...?"

रुखसाना: "आपको तो मालूम ही है कि उनका कोई पता नहीं... वैसे तो सात बजे आते हैं और फिर पीने बैठ जाते हैं... और अगर बाहर से अपने नशेड़ी दोस्तों के साथ पी कर आते हैं तो आने में नौ-दस बज जाते हैं... मुझे उनसे उतनी फ़िक्र नहीं जितना कि सानिया की नज़रों से होशियार रहना पड़ता है!"

नज़ीला: "अच्छा ठीक है... मैं आज शाम को तेरे घर आऊँगी... और सानिया को अपने साथ बातों में मसरूफ़ करके बैठी रहुँगी... तू मौका देख कर सुनील से चुदवा लेना!"

रुखसाना: "हाय तौबा नज़ीला भाभी.... आप कैसे बोल रही हैं ये सब..!" हालाँकि रुखसाना खुद सुनील के साथ खुलकर ऐसे अल्फ़ाज़ बोलती थी लेकिन नज़ीला के सामने अभी भी शराफ़त दिखा रही थी।

नज़ीला: "तो क्या हुआ यार... सैक्स में इन सब बातों से और मज़ा आता है..!"

रुखसाना: "पर नज़ीला भाभी... कहीं कोई गड़बड़ हो गयी तो?"

नज़ीला: "मैं हूँ ना.. तू फ़िक्र ना कर... मैं संभाल लुँगी...!"

उसके बाद नज़ीला से अपनी आई-ब्राऊज़ और फेशियल करवा कर रुखसाना घर आ गयी। करीब चार बजे सानिया कॉलेज से घर आ गयी। रुखसाना को आज काफी बेचैनी सी महसूस हो रही थी कि कहीं कोई गड़बड़ ना हो जाये... कहीं सानिया को शक़ ना हो जाये। जैसे-जैसे पाँच बजने को हो रहे थे रुखसाना का दिल रह-रह कर ज़ोर से धड़क उठता था। करीब साढ़े-चार बजे नज़ीला सलील को साथ लेकर रुखसाना के घर आ गयी और रुखसाना को सजी-धजी देखते ही बोली, "माशाल्लाह रुखसाना... सच में कहर ढा रही हो...!" फिर रुखसाना और नज़ीला सानिया के रूम में ही चली गयीं और तीनों बैठ कर बातें करने लगी।

करीब पाँच बजे सुनील घर आया तो रुखसाना ने जाकर दरवाजा खोला। रुखसाना ने सुनील को इशारे से बताया कि सानिया के साथ-साथ और भी कोई घर में है और ये कि वो थोड़ी देर में खुद ऊपर उसके पास आयेगी। सुनील सीधा ऊपर चला गया। रुखसाना फिर से सानिया और नज़ीला के पास आकर बैठ गयी। तीनों थोड़ी देर इधर-उधर के बातें करती रही। सानिया साथ-साथ सलील को उसका होमवर्क भी करवा रही थी। थोड़ी देर बाद नज़ीला ने रुखसाना को इशारे से जाने के लिये कहा।

"भाभी आप बैठो... मैं ऊपर से कपड़े उतार लाती हूँ..." ये कहते हुए रुखसाना ने एक बार ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े होकर थोड़ा सा मेक-अप दुरुस्त किया और पाँच इंच ऊँची पेंसिल हील के सैंडल फर्श पे खटखटाती हुई कमरे से बाहर निकल गयी। ऊपर जाते हुए उसका दिल जोरों से धड़क रहा था कि कहीं सानिया ऊपर ना जाये... क्या पता नज़ीला भाभी सानिया को संभाल पायेंगी भी या नहीं। पर चूत में तीन दिनों से आग भी तो दहक रही थी। वो ऊपर सुनील के कमरे में आयी तो देखा कि सुनील वहाँ नहीं था। रुखसाना कमरे से बाहर आयी और बाथरूम की तरफ़ जाने लगी। बाथरूम का दरवाजा थोड़ा सा खुला हुआ था। रुखसाना ने करीब पहुँच कर सुनील को आवाज़ लगायी, "सुनील तू अंदर है क्या?" रुखसाना बाथरूम के दरवाजे के बिल्कुल करीब खड़ी थी। अंदर से कोई जवाब नहीं आया। बस पानी गिरने की आवाज़ आ रही थी। फिर अचानक से बाथरूम का दरवाजा खुला और सुनील ने बाहर हाथ निकाल कर रुखसाना को अंदर खींच लिया। रुक्खसाना पहले तो कुछ पलों के लिये एक दम से घबरा गयी। अंदर सुनील एक दम नंगा खड़ा था। उसका लंड हवा में झटके खा रहा था। उसके तने हुए आठ इंच के तगड़े लंड को देख कर रुखसाना की चूत में बिजलियाँ दौड़ने लगीं।

"कब से आपकी वेट कर रहा था... कितना इंतज़ार करवाती हो आप भाभी!" सुनील ने कहा तो रुखसाना बोली, "वो नीचे सानिया है... इस लिये ऐसे नहीं आ सकती थी ना!" सुनील ने उसकी तरफ़ देखते हुए रुखसाना का हाथ अपने फुंफकारते हुए लंड पर रख दिया। रुखसाना का पूरा जिस्म सुनील के गरम लंड को अपनी हथेली में महसूस करते ही काँप उठा। उसकी मुट्ठी अपने आप ही सुनील के लंड पर कसती चली गयी और उसके होंठ सुनील होंठों के करीब आते गये। फिर जैसे ही सुनील ने रुखसाना के होंठों को अपने होंठों में दबोचा तो वो पागलों की तरह रुखसाना के होंठों को चूसने लगा। रुखसाना की चूत उबाल मारने लगी और वो सुनील की बाहों में कसती चली गयी। रुखसाना की कमीज़ उतारने के बाद सुनील उसकी गर्दन और फिर उसकी चूचियों को चूमने लगा। फिर रुखसाना की सलवार का नाड़ा खोल कर उसकी सलवार भी निकाल दी और फिर नीचे उसके पैर और सैंडल चूमने के बाद टाँगों से होते हुए सुनील उसकी जाँघों को को चूमने लगा। फिर सुनील खड़ा हुआ और रुखसाना की एक टाँग के नीचे अपनी हाथ डाल कर ऊपर उठा दिया। रुक्खसाना का पूरा जिस्म जैसे ही थोड़ा सा ऊपर उठा तो उसने दूसरा हाथ भी रुखसाना की दूसरी टाँग के नीचे डालते हुए उसे हवा में उठा लिया और रुखसाना के कान में सरगोशी करते हुए बोला, "भाभी मेरी जान! अपने दिलबर लौड़े को पकड़ कर अपनी फुद्दी में डाल लो!" रुखसाना उससे लिपटी हुई उसकी गोद में हवा में उठी थी। उसे ये पोज़िशन बड़ी दिलचस्प लग रही थी। सुनील ने दोनों हाथों से उसके चूतड़ों को दबोच रखा था। रुखसाना ने एक हाथ नीचे ले जाकर उसके लंड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर लगा दिया। सुनील ने बिना एक पल रुके उसके चूतड़ों को दबोचते हुए एक ज़ोरदार धक्का मारा और सुनील का लंड रुखसाना की फुद्दी की दीवारों को चीरता हुआ एक ही बार में पूरा का पूरा समा गया। "ऊऊऊईईईई सुनील तूने तो मार ही डाला... आअहहहल्लाह!" रुखसाना चिहुँकते हुए सिसक उठी। सुनील ने हंसते हुए उसके होंठों को चूमा और फिर अपने लंड को आधे से ज्यादा बाहर निकाल कर एक ज़ोरदार धक्का मारा। सुनील का लंड फ़च की आवाज़ से रुखसाना की चूत की दीवारों से रगड़ खाता हुआ फिर से अंदर जा घुसा। "आहह सुनील धीरे कर ना...!" रुखसाना ने अपनी बाहों को सुनील की गर्दन में कसते हुए कहा। उसकी चूचियाँ सुनील के चौड़े सीने में धंसी हुई थी और सुनील का मोटा मूसल जैसा लंड उसकी चूत की गहराइयों में समाया हुआ था। "क्या धीरे करूँ भाभी!" सुनील अब धीरे-धीरे रुखसाना की चूत में अपने लंड को अंदर बाहर करते हुए बोला।


रुखसाना समझ गयी कि सुनील क्या सुनना चाहता है। वो कसमसाते हुए बोली, "ऊँहहह... धीरे प्यार से चोद!" सुनील ने उसकी गाँड को दोनों तरफ़ से कस के पकड़ कर तेजी से अपने लंड को उसकी चूत में अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया... जब उसका लंड जड़ तक रुखसाना की चूत में समाता तो उसकी जाँघें रुखसाना के चूतड़ों पे नीचे से टकरा कर थप-थप की आवाज़ करने लगती। सुनील के ताबड़तोड़ धक्कों ने उसकी चूत की दीवारों को रगड़ कर रख दिया। रुखसाना की चूत से पानी बह कर सुनील के लंड को भिगो रहा था। "ओहहहह सुनील.... हाँ ऐसेऐऐऐ हीईई चोद मुझे मार मेरी फुद्दी.... आहहहह फाड़ दे मेरीईईई फुद्दी आज.... आहहहहहह चोद मेरी चूत को.... आआह भर दे इसे अपनी लंड के पानी से... ऊँईईईंईं!" रुखसाना चुदाई की मदहोशी में बिल्कुल बेपरवाह होकर सिसकते हुए बोले जा रही थी। उसकी टाँगें सुनील की कमर में कैंची की तरह कसी हुई थी।

सुनील अब पूरी ताकत से रुखसान को हवा में उठाये हुए चोद रहा था। रुखसाना उसके लंड के धक्के अपनी चूत की गहराइयों में महसूस करते हुए इस कदर मदहोश हो चुकी थी कि उसे इस बात की परवाह भी नहीं रही कि नीचे सानिया भी घर में है। रुखसाना भी अपनी गाँड को ऊपर-नीचे करने लगी थी। सुनील उसके होंठों को चूसते हुए अपने लंड को पूरी रफ़्तार से उसकी चूत की गहराइयों में पेल रहा था। "हाय सुनील मेरीईई फुद्दी तो गयीईईई... हाँ येऽऽऽ ले आआहह ऊँऊँहहह ऊऊऊईईईई ये ले मेरीईईईई फुद्दी ने पानी छोड़ा... आहह आँहहह..! रुखसाना का जिस्म झड़ते हुए बुरी तरह काँपने लगा। सुनील का लंड भी इतने में झड़ने लगा, "ओहहह रुखसानाआआहहहह भाआआभी येऽऽऽ लेऽऽऽ साली येऽऽऽ ले मेरेऽऽऽ लंड का पानी ऊँह ऊँह ऊँह!" दोनों झड़ कर हाँफने लगे और थोड़ी देर बाद सुनील का लंड सिकुड़ कर रुखसाना की चूत से बाहर आ गया तो सुनील ने रुखसाना को नीचे उतारा।

रुखसाना ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और बाहर आ गयी। जैसे ही वो बाहर आयी तो उसे नज़ीला ऊपर आती हुई नज़र आयी। नज़ीला उसके पास आकर बोली, "यार वो सानिया पूछ रही थी कि अम्मी को इतना वक़्त क्यों लग गया ऊपर... और ऊपर आने को हो रही थी... मैंने उसे मुश्किल से रोका है सॉरी यार!"

रुखसाना मुस्कुराते हुए बोली, "कोई बात नहीं नज़ीला भाभी... आप जिस काम के लिये आयी थी वो तो हो गया!" नज़ीला ने पूछा, "क्या हो गया... पर तू तो अभी बाथरूम से बाहर आ रही है... इतनी जल्दी...?" नज़ीला के कान में फुसफुसाते हुए रुखसाणा बोली, "मैं जब ऊपर आयी थी तो सुनील अंदर नहा रहा था... उसने मुझे अंदर ही खींच लिया..!" नज़ीला ने शरारत भरी मुस्कुराहट के साथ पूछा, "तो बाथरूम में ही तेरी फुद्दी मार ली उसने... कैसे?" रुखसाना शर्माते हुए बोली, "वो मुझे अपनी गोद में ऊपर उठा कर!"

"क्या खड़े-खड़े ही तुझे उठा कर चोद दिया... वाह... काश हमारी भी किस्मत ऐसे होती... तू कहे तो मैं सानिया को अपने घर ले जाऊँ.!" नज़ीला ने पूछा तो रुखसाना ने कहा कि उसकी जरूरत नहीं क्योंकि सुनील नाइट-ड्यूटी पे जा रहा है जबकि सुनील तो नफ़ीसा के घर उसके साथ अपनी रात रंगीन करने जा रहा था। फिर दोनों नीचे आ गयी। नज़ीला कुछ और देर बैठी फिर वो अपने घर चली गयी। रुखसाना ने महसूस किया कि सानिया उसकी तरफ़ थोड़ा अजीब नज़रों से देख रही थी। रुखसाणा ने तो कुछ ज़ाहिर नहीं होने दिया लेकिन रुखसाना की लिपस्टिक मिट चुकी थी और उसकी सलवार- कमीज़ पे भी कईं जगहों पे भीगने के निशान सानिया के दिमाग में शक पैदा कर रहे थे।

दिन इसी तरह गुज़र रहे थे। उस दिन के बाद नज़ीला की बदौलत रुखसाना को अब अक्सर ऐसे मौके मिलने लगे जब शाम को नज़ीला सनिया को किसी बहाने से एक-दो घंटे के लिये अपने घर बुला लेती थी। पर रुखसाना को ऐसा कोई मौका नहीं मिला जब वो पुरी रात सुनील के साथ शराब के नशे में मदहोश होके चुदाई के मज़े ले सके। उधर सानिया को तो पहली बार सुनील से चुदने के बाद दूसरा मौका मिला ही नहीं था। इसके अलावा सानिया को रुखसाना पे भी थोड़ा शक तो होने लगा था पर वो भी श्योर नहीं थी। उसका रवैया वैसे रुखसाना के साथ नॉर्मल था। इस दौरान रुखसाना और नज़ीला आपस में कुछ ज्यादा ही फ्रेंक हो गयी थीं। जब भी नज़ीला उसके घर आती या रुखसाना उसके घर जाती तो दोनों सिर्फ़ सैक्स की ही बातें करतीं। रुखसाना और नज़ीला अक्सर दिन में नज़ीला के घर ब्लू फ़िल्में देखने के साथ-साथ शराब भी पीने लगीं। जब से रुखसाना ने उसे बताया था कि वो शराब के नशे में मदहोश होकर खूब मज़े से रात भर सुनील से चुदवाती है तब से ही नज़ीला को भी शराब पीने की ख्वाहिश थी।
 
रुखसाना किसी चुदैल राँड की तरह होती जा रही थी जिसे हर वक़्त अपनी चूत में लौड़ा लेने की मचमचाहट रहने लगी। शराब पी कर साथ में ब्लू फ़िल्में देखते हुए इस दौरान रुखसाना और नज़ीला के बीच इस क़दर नज़दीकियाँ बढ़ गयी कि दोनों लेस्बियन सैक्स करने लगी। दोनों ब्लू-फ़िल्में देखते हुए घंटों आपस में लिपट कर एक दूसरे के जिस्म सहलाती... चूत और गाँड चाटती। पर लंड तो लंड ही होता है और नज़ीला भी सुनील से चुदवाने के मौके की ताक में थी। एक दिन जब नज़ीला के घर रुखसाना और नज़ीला नंगी होकर लेस्बियन चुदाई का मज़ा ले रही थीं तो नज़ीला ने रुखसाना को बताया कि उसका शौहर अगले दिन टूर पर जा रहा है एक रात के लिये। "यार... रुखसाना कल रात मैं यहाँ अकेली रहुँगी... यार अच्छा मौका है... तू सुनील को कल रात यहाँ बुला ले... हम दोनों खूब मस्ती करेंगे...!" नज़ीला की बात सुन कर रुखसाना एक दम चौंकते हुए बोली, "क्या क्या कहा आपने भाभी...?"

नज़ीला बोली, "वही जो तूने सुना... देख यार मैं तेरी इतनी मदद करती हूँ ताकि तू उसके साथ मौज कर सके... तो बदले में मुझे भी तो कुछ मिलना चाहिये... और वैसे भी तेरा कौन सा उसके साथ कोई रिश्ता है... वो आज यहाँ तो कल कहीं और चला जायेगा...! रुखसना नज़ीला की बात सुन कर सोच मैं पड़ गयी कि क्या करूँ... इतने दिनों बाद ऐसा मौका हाथ आया था... रुखसाना उसे हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी, "ठीक है भाभी मैं आपको आज शाम तक सोच कर बता दूँगी कि क्या करना है!" नज़ीला बोली कि, "चल सोच ले... रोज़-रोज़ ऐसे मौके नहीं आयेंगे!" उसके बाद रुखसाना अपने घर आ गयी। दिल और दिमाग दोनों में जंग चल रही थी। रुखसाना सोचने लगी कि नज़ीला भाभी कह तो ठीक रही हैं... जवान लड़का है.... क्या भरोसा वो कल कहाँ हो... कल को अगर उसका तबादला हो गया तो... ये दिन बार-बार नहीं आयेंगे... इन दिनों को जी भर कर के जी लेना चाहिये! शाम को जब सुनील वापस आया तो रुखसाना ने उसे सारी बात बतायी। रुखसाना के सामने सुनील शरीफ़ बनते हुए बोला कि वो ये काम किसी और के साथ नहीं करेगा पर रुखसाना के एक दो बार कहने पर ही वो मान गया। रुकसाना ने नज़ीला को फ़ोन करके खुशखबरी दे दी।

फ़ारूक ने उसी रात को रुखसाना को बताया कि उसके मामा की मौत हो गयी है और अगले दिन सुबह उन दोनों को उनके गाँव जाना है और शाम को चार-पाँच बजे तक वापस आ जायेंगे। एक पल के लिये रुखसाना को नज़ीला के साथ बनाया प्रोग्राम बेकार होता नज़र आया पर ये सोच कर दिल को तसल्ली मिली कि शाम को तो वो वापस आ ही जायेंगे। अब प्लैन के मुताबिक सुनील को सानिया और फ़ारूक के सामने नाइट-ड्यूटी का बहाना बनाना था और नज़ीला को रुखसाना को अपने घर सोने के लिये फ़ारूक को कहना था। अगले दिन सुबह की ट्रेन से फ़ारूख और रुखसाना उसके मामा के गाँव के लिये निकल गये। सुनील भी उनके साथ ही घर से निकल गया था स्टेशन जाने के लिये।

रुखसाना और फ़ारूक करीब ग्यारह बजे उसके मामा के घर पहुँचे पर उन्हें वहाँ देर हो गयी और और उनकी आखिरी ट्रेन छूट गयी। रुखसाना ने नज़ीला के साथ जो भी प्लैन बनाया था वो सब उसे मिट्टी में मिलता हुआ नज़र आ रहा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। उधर सानिया घर पर अकेली थी। उन्होंने सानिया को कभी रात भर के लिये अकेला नहीं छोड़ा था। रुखसाना को उसकी चिंता सताने लगी थी। उसने फ़ारूक से कहा कि वो सानिया को घर पर फ़ोन करके उसे बता दें कि वो आज रात नहीं आ पायेंगे और कल सुबह आयेंगे और इसलिये वो नज़ीला भाभी के यहाँ सो जाये। रुखसाना के ज़हन में अजीब सा डर था... सुनील को लेकर... कहीं वो सानिया के साथ कुछ गलत ना कर दे। रुखसाना इस बात से अंजान थी कि सुनील और सानिया इतने करीब आ चुके हैं कि वो चुदाई भी कर चुके हैं।

उसके बाद रुखसाना ने नज़ीला को भी फ़ोन करके सारी बात बता दी और उसे कहा कि सानिया को आज रात अपने घर सुला ले और सुनील के आने पर उसे घर की चाबी देदे। नज़ीला ने उसे बेफ़िक्र रहने के लिये कहा तो रुखसा ना को राहत महसूस हुई कि चलो नज़ीला की वजह से उसे सानिया की फ़िक्र नहीं करनी पड़ेगी। पर जो वो सोच रही थी शायद उससे भी बदतर होने वाला था।

शाम के पाँच बजे के करीब नज़ीला जब सानिया को अपने घर ले आने के लिये अपने घर से बाहर निकली ही थी कि उसे बाइक पर सुनील आता हुआ नज़र आया। नज़ीला ने देखा कि सुनील ने बाइक गेट के अंदर कर दी और फिर उसने घंटी बजायी तो सानिया ने दरवाजा खोला और सुनील अंदर चला गया। अब नज़ीला तो थी है ऐसी जो हर बात में कुछ ना कुछ उल्टा जरूर सोचती थी। वो तेजी से चलते हुए रुकसाना के घर आयी और गेट खोलकर जैसे ही वो डोर-बेल बजाने वाली थी कि उसे हॉल की खिड़की से कुछ आवाज़ें सुनायी दीं। उसने देखा कि खिड़की खुली हुई थी लेकिन उसपे पर्दा पड़ा हुआ था। नज़ीला थोड़ा सा आगे होकर पर्दे के किनारे से अंदर झाँकने लगी। अंदर का नज़ारा देख कर नज़ीला के होंठों पर एक कमीनी मुस्कान फ़ैल गयी। अंदर सुनील ने सानिया को हॉल में ही अपनी बाहों में भरा हुआ था। सानिया और सुनील एक दूसरे के होंठों को चूस रहे थे। सानिया ने हाई-हील के सैंडल पहने होन के बावजूद अपनी ऐड़ियाँ और ज्यादा उठायी हुई थीं और सुनील से किसी बेल की तरह लिपटी हुई अपने होंठ चुसवा रही थी। सुनील का एक हाथ सानिया की सलवार के अंदर था और वो उसकी चूत को मसल रहा था।

सानिया: "ओहहहह सुनील... ये तुमने मुझे क्या कर दिया है!"

सुनील: "ऊँहह सानिया मेरी जान... बहुत दिनों बाद आज तुम मेरे हाथ आयी हो..!"

सानिया: "लेकिन सुनील... नज़ीला आँटी आने वाली होंगी.. अम्मी ने नज़ीला आँटी को फ़ोन करके कहा है कि वो मुझे अपने साथ अपने घर सुला लें!"

सुनील: "ओह ये क्या बात है... साला आज इतना अच्छा मौका था..!"

सानिया: "अब मैं क्या कर सकती हूँ... मैं तो खुद तुमसे मिलने के लिये तड़प रही थी...!"

तभी नज़ीला ने डोर-बेल बजा दी तो सुनील और सानिया दोनों हड़बड़ा गये। सुनील जल्दी से ऊपर चला गया। सानिया ने खुद को ठीक किया और दरवाजा खोला तो सामने नज़ीला खड़ी थी, "सानिया क्या कर रही थी?"

सानिया: "कुछ नहीं आँटी... पढ़ रही थी.!"

नज़ीला: "अच्छा वो लड़का जो ऊपर किराये पे रहता है आ गया क्या?"

सानिया: "हाँ आँटी!"

नज़ीला: कहाँ है वो?

सानिया: "ऊपर है... अपने कमरे में!"

नज़ीला: "अच्छा एक काम कर तू जल्दी से उसके लिये चाय बना दे... मैं उसे चाय दे आती हूँ... और उसे बता दूँगी कि आज तेरी अम्मी और अब्बू नहीं आयेंगे और तू मेरे साथ मेरे घर पर सोने जा रही है... खाना वो बाहर होटल में खा लेगा..!"

सानिया: "ठीक है आँटी!"

उसके बाद सानिया ने चाय बनायी और नज़ीला सुनील को चाय देने ऊपर चली गयी। सुनील अपने बेड पर बैठा कुछ सोच रहा था। नज़ीला ने उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए कहा, "चाय रखी है तुम्हारे लिये... पी लेना... वो आज रुखसाना और फ़ारूक भाई नहीं आ पायेंगे... इसलिये सानिया को मैं अपने साथ अपने घर ले जा रही हूँ... किसी चीज़ के जरूरत हो तो बे-तकल्लुफ़ बता दो...!"

सुनील: "जी कोई बात नहीं मैं मैनेज कर लुँगा..!"

नज़ीला पलट कर जाने लगी लेकिन फिर वो रुकी और सुनील की तरफ़ पलटी। "वैसे सुनील... रुखसाना ने जो आज प्लैन बनाया था... वो तो हाथ से गया... पर अगर तुम चाहो तो रात को नौ बजे आ सकते हो... मैं नौ बजे तक इंतज़ार करुँगी...!" नज़ीला ने कातिल मुस्कान के साथ सुनील की तरफ़ देखते हुए कहा।

सुनील: "पर सानिया... वो तो आपके घर ही जा रही है!"

नज़ीला: "तुम उसकी फ़िक्र ना करो... तुम ठीक नौ बजे मेरे घर आ जाना... गेट के बिल्कुल सामने मेरा पार्लर है... मैं उसका दरवाजा अंदर से खुला छोड़ दूँगी... पार्लर में आने के बाद अंदर से दरवाजा लॉक कर लेना और वहीं बैठे रहना... जब सानिया सो जायेगी तो मैं वहाँ आ जाऊँगी... और हाँ... तुम्हें कुछ लाने की जरूरत नहीं.... शराब और शबाब का सारा इंतज़ाम मैंने कर रखा है!"

उसके बाद नज़ीला सानिया को साथ लेकर अपने घर चली गयी। सानिया और नज़ीला और सलील रूम में बैठे थे। शाम के करीब साढ़े-छः बज चुके थे। "सानिया चल तेरा फेशियल और पेडिक्योर कर देती हूँ...!" नज़ीला ने सानिया को कहा। फिर सानिया और नज़ीला पार्लर में आ गये। सानिया ने अपनी सैंडल उतार दी और नज़ीला उसका पेडिक्योर करने लगी। "सानिया एक बात पूछूँ...?" नज़ीला ने सानिया की तरफ़ देखते हुए कहा।

सानिया: "हाँ आँटी.. पूछें!"

नज़ीला: "तुझे सुनील कैसा लगता है...!"

नज़ीला की बात सुन कर घबराते हुए सानिया बोली, "पर आँटी आप ये क्यों पूछ रही हो?"

नज़ीला: "चल अब नाटक करने से क्या फ़ायदा... मैं तुझे बता ही देती हूँ... जब मैं तेरे घर आयी थी... तब मैंने खिड़की सब देख लिया था... तू कैसे उससे अपने होंठ चुसवा रही थी... और वो तेरी फुद्दी को सलवार के अंदर हाथ डाल कर सहला रहा था...!"
 
ये बात सुनते ही सानिया के चेहरे का रंग एक दम से उड़ गया। उसका केलजा मुँह को आ गया। वो कभी अपने सामने नज़ीला की तरफ़ देखती जो उसके पैर की मालिश कर रही थी तो कभी नीचे फ़र्श की तरफ़। "तुझे ये सब करते हुए डर नहीं लगा... अगर तेरी अम्मी और अब्बू को पता चल गया कि तू उनके पीछे अपना मुँह काला करवाती फिरती है तो वो तुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे... बोल बताऊँ तेरी अम्मी को..?" नज़ीला की धमकी सुनकर सानिया की हालत रोने जैसी हो गयी थी। सानिया ने नज़ीला का हाथ पकड़ लिया और रुआँसी आवाज़ में बोली, "प्लीज़ आँटी... अम्मी-अब्बू को नहीं बताना... वो मुझे मार डालेंगे...!"

शिकार को अपने जाल में फंसते देख कर नज़ीला बोली, "तुझे क्या यही... दूसरे मज़हब का लड़का मिला था सानिया... क्यों क्या तूने उसके साथ ये सब!"

सानिया: "आँटी मैं सुनील से प्यार करती हूँ..!"

नज़ीला: "प्यार हुँम्म.... आने दे तेरे अम्मी और अब्बू को... सब प्यार-मोहब्बत भूल जायेगी!"

सानिया: "आँटी प्लीज़... आपको अल्लाह का वस्ता... प्लीज़ आप अम्मी और अब्बू से कुछ ना कहना!"

नज़ीला: "हम्म्म चल ठीक है... नहीं बताती... पर उसके बदले में मुझे क्या मिलेगा...?"

सानिया: "आँटी आप जो कहेंगी मैं वो करुँगी!"

नज़ीला: "सोच ले वरना फिर ना कहना कि मैंने तुझे मौका नहीं दिया और तेरी अम्मी से तेरी शिकायत कर दी...!"

सानिया: "नहीं आँटी ऐसी नौबत नहीं आयेगी... आप जो कहेंगी मैं वो ही करुँगी..!"

नज़ीला: "तो फिर मेरी बात का सही-सही जवाब देना... ये बता तूने सुनील के साथ सैक्स किया है क्या... देख सच बोलना वरना पता लगाने के मुझे और भी तरीके आते हैं...!"

नज़ीला की बात सुन कर सानिया खामोश हो गयी। वो कुछ नहीं बोल पायी। नज़ीला ने फिर से उसे पूछा, "इसका मतलब तू उससे चुदवा चुकी है ना? बता मुझे!" सानिया ने हाँ में सिर हिला दिया।

नज़ीला: "हाय मेरे अल्लाह... तो तू हक़ीकत में उसका लंड अपनी फुद्दी मैं ले चुकी है... कब चोदी उसने तेरी फुद्दी?"

सानिया: "वो आँटी एक दिन घर पर ही..!"

नज़ीला: "अरे तो इसमें इतना शरमाने या घबराने की क्या बात है... मैं तो तेरी सहेली जैसी हूँ... खैर चल मैं तेरा फेशियल कर देती हूँ पहले फिर तू जल्दी से घर जा और कोई और बढ़िया से कपड़े और सैंडल पहन कर आ... उसके बाद तेरा मेक-अप कर दुँगी ताकि रात को जब सुनील तुझे देखे तो बस दीवाना हो जाये!"

सानिया: "रात को सुनील... मैं समझी नहीं!"

नज़ीला: "चल ठीक है तो फिर सुन.... मैंने सुनील को आज रात यहाँ बुलाया है...!"

सानिया एक दम चौंकते हुए बोली, "क्या?"

नज़ीला: "हाँ मैंने उसे बुलाया है... वो रात को नौ बजे आयेगा.... अब मुद्दे की बात करते हैं... देख तुझे तो मालूम है कि तेरे अंकल तो मेरी चूत की प्यास नहीं बुझा पाते... इसलिये मुझे भी जवान लंड की ख्वाहिश है... आज मैं भी तेरे साथ उससे अपनी चूत की आग को ठंडा करवाउँगी!"

सानिया: "ये... ये आप क्या बोल रही हो आँटी!"

नज़ीला: "वही जो तू सुन रही है... अगर तुझे मेरी बात नहीं माननी तो ठीक है... मैं कल तेरी अम्मी को सब बता दुँगी...!"

सानिया: "नहीं नहीं... प्लीज़ आप अम्मी से कुछ नहीं कहना... आप जो बोलेंगी वो मैं करुँगी..!"

नज़ीला: "वेरी गुड... चल फिर रात के लिये तैयारी करते हैं!"

फिर नज़ीला ने सानिया का फेशियल किया और सानिया कपड़े बदलने अपने घर चली गयी। सुनील उस वक़्त घर पे नहीं था क्योंकि वो खाना खाने बाहर चला गया था। इतने में नज़ीला भी नहा कर बेहद सैक्सी सलवार कमीज़ पहन कर तैयार हो गयी। उसकी कमीज़ स्लीवलेस और बेहद गहरे गले वाली थी। रुखसाना से उसे सुनील की सब पसंद-नापसंद मालूम थी तो उसने बेहद ऊँची पेंसिल हील की कातिलाना सैंडल भी पहन ली। सानिया भी अपने घर से स्लीवलेस कुर्ती और पलाज़्ज़ो सलवार के साथ अपनी अम्मी की एक ऊँची हील वाली सेन्डल पहन कर आ गयी। फिर दोनों ने खाना खाया और उसके बाद नज़िला ने सानिया का और अपना अच्छे से मेक-अप किया। आठ बजे के करीब दोनों की फुद्दियाँ लंड लेने के मचलने लगी थीं।

रात के नौ बजे रहे थे। सलील नज़ीला के बेडरूम में सो चुका था और सानिया ड्राइंग रूम में टीवी देख रही थी। नज़ीला खिड़की के पास खड़ी होकर बार-बार बाहर झाँक रही थी... पर सुनील अभी तक नहीं आया था। नज़ीला की बेकरारी बढ़ती जा रही थी। साढ़े नौ बजे तक नज़ीला ने इंतज़ार किया और फिर मायूस होकर सानिया से कहा कि लगता है कि शायद सुनील नहीं आयेगा और फिर ये कह कर सानिया को दूसरे बेडरूम में भेज दिया कि अगर सुनील आया यो वो उसे वहीं ले आयेगी।

बेकरार और मायूस होकर नज़ीला कुद ड्राइंग रूम में ही अकेली बैठ कर शराब पीने लगी। उसने महंगी शराब की बोतल का खास इंतज़ाम किया था कि सुनील के साथ बैठ कर पियेगी लेकिन अब अकेले ही शराब पीते हुए वो अपने दिल में बार-बार सुनील को कोस रही थी। अगले आधे घंटे में नज़ीला दो स्ट्रॉंग पैग पी चुकी थी और तीसरा पैग पीते हुए उसके ज़हन में सानिया को आज रात अपने साथ लेस्बियन सैक्स में शरीक करने का मंसूबा बन रहा था। इतने में उसे बाहर गेट खुलने की आवाज़ आयी। उसने उठ कर खिड़की से झाँका तो उसे सुनील गेट के अंदर सामने पार्लर की तरफ़ जाता हुआ नज़र आया। नज़ीला को शराब पीने का ज्यादा तजुर्बा नहीं था और मायूसी में आज उसने आमतौर से ज़्यादा पी ली थी तो शराब का खासा नशा छाया हुआ था और वो हाई हील की सैंडल में झूमती हुई उस दरवाजे की तरफ़ बढ़ी जो उसके ब्यूटी पार्लर में खुलता था।

नज़ीला ने ब्यूटी पार्लर का दरवाजा खोला तो सुनील पार्लर में अंदर आ चुका था। नज़ीला ने उसे ब्यूटी पार्लर का मेन-डोर अंदर से लॉक करने को कहा और फिर उसे लेकर घर के अंदर ड्राइंग रूम में आ गयी। ब्यूटी पार्लर में तो हल्की सी नाइट-लैंप की रोशनी थी लेकिन ड्राइंग रूम की ट्यूब-लाइट की रोशनी में सामने का नज़ारा देख कर सुनील के होश उड़ गये। चालीस साल की एक गदरायी हुई औरत स्लीवलेस और बेहद गहरे गले की कमीज़ और सलवार पहने खड़ी थी... उसकी कमीज़ के गहरे गले में से उसका क्लीवेज और चूचियों का काफ़ी हिस्सा साफ़ झलक रहा था... शराब और हवस के नशे में चूर नज़ीला का हुस्न और उसके पैरों में हाइ हील के कातिलाना सैंडल देखते ही सुनील का लंड पैंट में झटके खाने लगा। वो नज़ीला के करीब गया और उसके चेहरे के करीब अपना चेहरा ले जाकर सरगोशी में बोला, "आप तो चुदने के लिये पूरी तैयारी करके बैठी हो..!"

नज़ीला उसे सोफ़े पर बिठा कर शराब का पैग देते हुए बड़ी अदा से मुस्कुराते हुए बोली, "यू लक्की बास्टर्ड क्या... किस्मत पायी है तुने.... अभी तो तुझे पता ही नहीं कि मैंने और क्या-क्या तैयारी की हुई है इस रात को यादगार बनने के लिये... मुझे तो लगा कि तू आयेगा ही नहीं..!" ये कह कर नज़ीला अपना शराब का पैग लेकर सुनील की गोद में उसकी जाँघ पर बैठ गयी और अपनी एक बाँह उसकी गर्दन में डाल दी। सुनील ने भी नज़ीला की कमर में एक बाँह डालते हुए उसकी गोलमटोल चूची को जोर से दबा दिया "आआहहहस्सीईई... जान लेगा क्या मेरी..." नज़ीला जोर से सिसकी। सुनील बोला, "मेरी बाइक पंक्चर हो गयी थी इसलिये देर हो गयी... वैसे मुझे भी तो पता चले कि आपने और क्या-क्या तैयारी कर रखी है... शराब और शराब के नशे में चूर शबाब तो मरे सामने है ही!"

नज़ीला शराब का घूँट पीते हुए अदा से बोली, "बताऊँ?" तो सुनील ने कहा कि "हाँ बताओ ना!" नज़ीला बेहद कातिलाना अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोली, "मेरी चूत के अलावा अंदर एक और चूत सज संवर कर तेरे लंड का इंतज़ार कर रही है..!"

"क्या.. कौन?" सुनील चौंकते हुए बोला। उसे लगा कि हो सकता है शायद रुखसाना वापस आ गयी है।

नज़ीला कमीनगी से मुस्कुराते हुए रसभरी आवाज़ में बोली, "सानिया और कौन... श्श्श अब तू सोच रहा होगा कि मुझे कैसे मालूम ये सब कैसे हुआ... है ना? तो चल मैं ही बता देती हूँ... आज जब तू घर आया था तब मैंने खिड़की से सब देख लिया था... कैसे तू उसकी चूत को मसल रहा था... फिर मैंने सानिया को ज़रा धमकाया कि मैं उसकी शिकायत रुखसाना से कर दुँगी... और उसे कबूल करने पर मजबूर कर दिया..!" नज़ीला की बात सुनकर सुनील समझ गया कि ये चुदक्कड़ औरत अपनी सहेली रुखसाना के विपरीत बिल्कुल बिंदास किस्म की है। "अच्छा... जितना मैं सोचता था... आप तो उससे कहीं ज्यादा चालाक हो... बहुत चालू चीज़ हो आप!" सुनील हंसते हुए बोला तो नज़िला ने कहा, "अरे चालू नहीं हूँ मैं... अब क्या करूँ मेरी ये चूत लंड के लिये तड़पती है... बस चूत के हाथों मजबूर हूँ... वैसे तू भी कम चालू नहीं है... दोनों माँ-बेटी को अपने लंड का दीवाना बना रखा है तूने... चल पैग खतम कर... अंदर चलते हैं.... सानिया भी तुझसे चुदने के लिये मरी जा रही है...!"
 
दोनों ने अपने पैग खतम किये और नज़ीला और सुनील दोनों सानिया वाले बेडरूम की तरफ़ जाने लगे। हाइ हील के सैंडल में चलते हुए नशे की हालत में नज़ीला के कदमों में लड़खड़ाहट नुमाया तौर पे मौजूद थी। पहले नज़ीला बेडरूम में दाखिल हुई। बेडरूम में ट्यूब-लाइट जल रही थी और सानिया बेड पर पैर नीचे लटका कर बैठी हुई कोई मैगज़ीन पढ़ रही थी। उसने अपने कपड़े नहीं बदले थे क्योंकि उसे भी उम्मीद थी कि शायद सुनी.ल आ जाये। नज़ीला को देख कर सानिया का दिल जोरों से धड़कने लगा। नज़ीला ने बाहर खड़े सुनील को अंदर आने का इशारा किया और जैसे ही सुनील अंदर आया तो सानिया के दिल की धड़कनें और तेज़ हो गयीं। अंदर आते ही नज़ीला ने सुनील को दीवार से सटा दिया और खुद उसके सामने घुटनों के बल नीचे कालीनदार फर्श पर बैठ गयी। उसने सुनील की ट्रैक-पैंट को पकड़ कर नीचे खींचा तो सुनील का आठ-इंच का लम्बा-मोटा अनकटा लंड बाहर आकर झटके खाने लगा। नज़ीला के पीछे बिस्तर पे बैठी हुई सानिया ये सब अपनी फटी आँखों से देख रही थी। नजीला ने सुनील के लौड़े को अपनी मुट्ठी में भर लिया और सानिया की तरफ़ सुनील के लंड को दिखाते हुए बोली, "हाय अल्लाह... देख कैसे शरमा रही है... जैसे पहली दफ़ा अपने आशिक़ का लंड देख रही हो..!" और फिर सानिया की तरफ़ देखते हुए सुनील के लंड को ज़ोर से हिलने लगी। नज़ीला ने एक हाथ सानिया की तरफ़ बढ़ाया जो उसके पीछे दो फुट की दूरी पर बेड पर नीचे पैर लटकाये बैठी थी।

नज़ीला ने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ़ खींचा पर सानिया हिली नहीं। नज़ीला ने फिर से उसे जोर लगा कर अपनी तरफ़ खींचा तो सानिया उठ कर उसके करीब आ गयी और नज़ीला ने उसे अपने पास खींचते हुए बिठा लिया। "क्या हुआ सानिया... तू पहली दफ़ा तो नहीं देख रही है सुनील का लंड... इतना क्यों शरमा रही है... ले पकड़ इसे हाथ में... माशाल्लाह ऐसा लंड तो बस ब्लू-फ़िल्मों में ही देखा है!" नज़ीला ने सानिया का हाथ पकड़ कर सुनील के लंड पर रखना चाहा तो सानिया ने अपना हाथ पीछे कर लिया और ना में सिर हिलाने लगी। नज़ीला की मौजूदगी में उसे बहोत अजीब लग रहा था। "चल तेरी मर्ज़ी... फिर बैठ कर देखती रह...!"

नज़ीला ने सुनील के लंड को छोड़ा और अपनी कमिज़ को दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर उठाते हुए अपने गले से निकल कर सानिया की तरफ़ फेंक दिया। नज़ीला ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी और उसकी छत्तीस-डी साइज़ के बड़ी-बड़ी चूचियाँ ट्यूब-लाइट की रोशनी में चमकने लगी। फिर नज़ीला ने सुनील के लंड को पकड़ा और अपनी दोनों चूचियों के बीच में लेकर उसके लंड को रगड़ने लगी। सुनील ने सानिया की तरफ़ देखा जो बड़ी दिलचस्पी से उनकी तरफ़ देख रही थी। सुनील ने नज़ीला के मम्मों को पकड़ कर अपने लंड को उसके मम्मों के बीच की गहरी घाटी में आगे-पीछे करते हुए रगड़ना शुरू कर दिया। दोनों के मुँह से 'आहह आहह ओहह' जैसी सिसकारियाँ निकल रही थी जिन्हें करीब बैठी सानिया सुन कर गरम होने लगी थी। सुनील पूरी मस्ती मैं नज़ीला की बड़ी-बड़ी गुदाज़ चूचियों के बीच अपने लंड को रगड़ रहा था और नज़ीला अपने सिर को नीचे के तरफ़ झुकाये हुए सुनील के लंड के सुपाड़ा को देख रही थी जो उसकी चूचियों के बीच से बाहर आता और फिर से अंदर छुप जाता। नज़ीला की चूत सुनील के लाल हो चुके लंड के सुपाड़ा को देख कर और चुलचुलाने लगी थी।

फिर नजीला ने अपने सिर को और झुका कर सुनील के लंड के सुपाड़े को अपने होंठों से चूम लिया तो सुनील के जिस्म ने एक तेज झटका खाया। उसने अपने लंड को उसकी चूचियों से बाहर निकाला और नजिला के सिर को पकड़ कर अपना लंड का सुपाड़ा उसके होंठों के तरफ़ बढ़ाते हुए बोला, "आहह भाभी... चुसो ना इसे..!" नज़ीला ने सुनील की आँखों में हवस से भरी नज़रों से देखा और फिर सानिया के तरफ़ देखते हुए बोली, "ओहहह सुनील.... तेरा लंड इतना शानदार है की इसका ज़ायका चखने के लिये मेरे मुँह में कब से पानी आ रहा है..!" ये कहते हुए नज़ीला ने सानिया की तरफ़ देखते हुए सुनील के लंड को अपने होंठों में भर लिया और अपने होंठों से सुनील के लंड के सुपाड़े को पूरे जोश के साथ चूसने लगी। सामने का नज़ारा देख कर सानिया की चूत फुदफुदाने लगी। उसने आज तक चुदाई की सैक्सी कहानियों किताबों में ही लंड चुसने के मुतालिक़ पढ़ा था या अपनी सहेलियों से उनके बॉय फ्रेंड्स के लंड चूसने के किस्से सुने थे। नज़ीला अब किसी राँड की तरह सुनील का लंड चूस रही थी। सुनील का आधे से ज्यादा लंड नजीला के मुँह के अंदर बाहर हो रहा था और उसका लंड नज़ीला के थूक से गीला होकर चमकने लगा था।

फिर नज़ीला ने सुनील के लंड को मुँह से बाहर निकला और अपने हाथ से हिलाते हुए सानिया की तरफ़ दिखाते हुए सुनील के लंड के सुपाड़े के छेद को अपनी ज़ुबान बाहर निकाल कर कुरेदते हुए सुपाड़े पर ज़ुबान फिराने लगी और आँखों ही आँखों में सानिया को अपने करीब आने का इशारा किया। सामने चल रहा गरम नज़ारा देख सानिया खुद-बखुद उसके करीब खिंचती चली गयी। अब सानिया नज़ीला के बिल्कुल करीब घुटनों के बल बैठी हुई थी। नज़ीला ने सुनील के लंड को हाथ में थामे हुए सानिया से कहा, "ले तू भी चूस ले अपने यार का लौड़ा... बेहद मज़ेदार है!" नज़ीला की बात सुन कर सानिया के दिल के धड़कनें बढ़ गयीं। सानिया भी सुनील का लंड चूसना तो चाह रही थी लेकिन नज़ीला के सामने उसे हिचकिचाहट हो रही थी और उसने ना में सिर हिलाते हुए मना कर दिया। नज़ीला ने मुस्कुराते हुए सुनील के लंड के सुपाड़े के चारों तरफ़ अपनी ज़ुबान रगड़ते हुए फिरायी और बोली, "सानिया देख ना सुनील का लौड़ा कितना मस्त है... तू बहोत खुशनसीब है कि तेरा यार है सुनील... देख सानिया मर्द के लंड को तू जितना प्यार करेगी उतना ही उसका लंड तेरी फुद्दी को ठंदक पहुँचायेगा... ले चूस ले..." और नशे में लहकती आवाज़ में ये कहते हुए नज़ीला ने सानिया का हाथ पकड़ सुनील के लंड पर रख दिया।

सानिया अब पूरी तरह हवस से तड़प रही थी। उसने सुनील के लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया और फिर ऊपर सुनील की आँखों में झाँकने लगी जैसे सुनील से पूछ रही हो कि अब क्या करूँ। सुनील ने उसकी तरफ़ मुस्कुराते हुए देखा और फिर उसके प्यारे से चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर उसके होंठों को अपने लंड के सुपाड़े की तरफ़ झुकाने लगा। सानिया ने अपने होंठ खोल लिये और नज़ीला के थूक से सने हुए सुनील के लंड को अपने होंठों में भर लिया। "ओहहहह सानिया... आहहहह" सानिया के रसीले तपते होंठों का स्पर्श अपने लंड पर महसूस करते ही सुनील एक दम से सिसक उठा और सानिया के सिर को पकड़ कर अपने लंड को उसके मुँह में ढकेलने लगा। सानिया अब पूरी तरह गरम और चुदास हो गये थी। उसकी पैंटी सलवार के अंदर उसकी चूत से निकल रहे पानी से एक दम गीली हो चुकी थी। नज़ीला मौका देखते हुए उसके पीछे बैठ गयी और सानिया की कमीज़ को पकड़ कर धीरे-धीरे ऊपर उठाने लगी। जैसे ही सानिया को इस बात का एहसास हुआ कि नज़ीला उसकी कमीज़ उतारने जा रही है तो उसने दोनों हाथों से अपनी कमीज़ को पकड़ लिया। "क्या हुआ सानिया... शरमा क्यों रही है... यहाँ पर कोई गैर तो नहीं है.... तेरा बॉय फ्रेंड सुनील ही तो है... सुनील देख ना ये कैसे शरमा रही है!" नज़ीला बोली। दर असल सानिया सुनील से नहीं बल्कि नज़िला की मौजूदगी की वजह से हिचकिचा रही थी। नज़ीला नहीं होती तो सानिया खुद ही अब तक नंगी होकर सुनील का लंड अपनी चूत में ले चुकी होती।

सुनील ने सानिया के मुँह से लंड निकाला और नीचे बैठते हुए सानिया के हाथों को पकड़ कर कमीज़ से छुड़वा लिया। नज़ीला ने फ़ौरन सानिया की कमीज़ पकड़ कर ऊपर कर दी और फिर गले से निकाल कर नीचे फेंक दी। सुनील ने सानिया के होंठों पर अपने होंठ रख कर चूसना करना शुरू कर दिया और एक हाथ नीचे ले जाकर सलवार के ऊपर से सानिया की चूत पर रख दिया। अपनी चूत पर सुनील का हाथ पड़ते ही सानिया के जिस्म में करंट सा दौड़ गया और अपनी बाहों को सुनील की गर्दन में डालते हुए उसके जिस्म से चिपक गयी। पीछे नज़ीला ने अपना काम ज़ारी रखा और उसने सानिया की ब्रा के हुक खोल दिये और जैसे ही सानिया के जिस्म से ब्रा ढीली हुई तो सुनील ने ब्रा के स्ट्रैप को पकड़ उसके कंधों से सरकाते हुए उसकी ब्रा को भी उसके जिस्म से अलग कर दिया। फिर धीरे-धीरे सानिया को कालीन पे पीछे लिटाते हुए सुनील उस पर सवार हो गया और उसकी एक चूंची को मुँह में भर कर चूसने लगा। सान्या एक दम से सिसक उठी और उसकी चूत में ज़ोर से कुलबुलाहट होने लगी। ये नज़ारा कर देख नज़ीला की चूत भी और ज्यादा लार टपका रही थी। उसने फ़ौरन अपनी सलवार फेंकी। नज़ीला ने नीचे पैंटी भी नहीं पहनी हुई थी और अब वो हाइ पेन्सिल हील के सैंडलों के अलावा बिल्कुल नंगी थी।

सानिया की बगल में लेटते हुए नज़ीला ने सानिया के दूसरे मम्मे को अपने मुँह में भर लिया। अपने दोनों मम्मों को एक साथ चुसवाते हुए सानिया एक दम बेहाल हो गयी। उसके आँखें मस्ती में बंद होने लगी। नज़ीला ने सानिया की चूंची को मुँह से निकाला और सुनील को सानिया की सलवार उतारने के लिये कहा। सुनील ने भी सानिया की चूंची को मुँह से बाहर निकाला और सान्या की पलाज़्ज़ो सलवार का नाड़ा खोलने लगा। नज़ीला ने फिर सानिया की चूंची को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ से उसके दूसरी चूंची को मसलने लगी। स्स्सीईईई ऊँहहह आँटी प्लीज़. आहहह मत करो ना! सानिया ने मस्ती में सिसकते हुए नज़ीला भाभी के सिर को अपनी बाहों में जकड़ लिया। दूसरी तरफ़ सुनील सानिया की सलवार और पैंटी दोनों उतार चुका था। लोहा एक दम गरम था... सानिया की चूत अपने पानी से एक दम भीगी हुई थी। एक बार पहले चुदाई का मज़ा ले चुकी सानिया एक दम मदहोश हो चुकी थी और पिछले कईं दिनों से फिर चुदने के लिये तड़प रही थी।

सानिया की सलवार और पैंटी उतारने के बाद जैसे ही सुनील सानिया की टाँगों के बीच में आया तो पूरी तरह गरम और मदहोश हो चुकी सानिया ने अपनी टाँगों को घुटनों से मोड़ कर खुद ही ऊपर उठा लिया। सानिया भी अब नज़ीला की तरह सिर्फ़ ऊँची हील वाले सैंडल पहने बिल्कुल नंगी थी। सानिया को बेकरारी में अपनी टाँगें उठाते देख कर नज़ीला को एक तरकीब सूझी और उसने सानिया को पकड़ कर बिठाया और खुद उसके पीछे आकर बैठ गयी और अपनी टाँगों को सानिया की कमर के दोनों तरफ़ करके आगे की ओर सरकते हुए उसने सानिया को पकड़ कर अपने ऊपर लिटा लिया। अब नज़ीला नीचे लेटी हुई थी पीठ के बल और उसके ऊपर सानिया पीठ के बल लेटी हुई थी। सानिया नज़ीला आँटी की इस हर्कत से हैरान थी कि उसका मंसूबा क्या था। नज़ीला ने अपने हाथों को नीचे की तरफ़ ले जाते हुए सानिया की टाँगों को पकड़ कर ऊपर उठा कर फैला दिया जिससे सानिया की चूत का छेद खुल कर सुनील की आँखों के सामने आ गया। सानिया की टाँगें तो नज़ीला ने पकड़ कर ऊपर उठा रखी थीं और सुनील ने नज़ीला की टाँगों को फैला कर ऊपर उठाते हुए अपनी जाँघों पर रख लिया।

अब नीचे नज़ीला की चूत और ऊपर सानिया की चूत... दोनों ही चिकनी चूतें अपने-अपने निकले हुए रस से लबलबा रही थी। अपने सामने चुदवाने के लिये तैयार दो-दो चिकनी चूतों को देख कर सुनील से रहा नहीं गया। उसने अपने लंड के सुपाड़े को सानिया की चूत की फ़ाँकों के बीच रगड़ना शुरू कर दिया। "ऊँऊँऊँ स्स्सीईई आहहहह सुनील...!" सानिया ने सिसकते हुए अपने हाथों को अपने सिर के नीचे ले जाते हुए नज़ीला के सिर को कसके पकड़ लिया और नज़ीला ने सानिया की गर्दन पर अपने होंठों को रगड़ना शुरू कर दिया। सुनील ने सानिया की चूत के छेद पर अपना लंड टिकाते हुए धीरे-धीरे अपने लंड को आगे की ओर दबाना शुरू कर दिया। सुनील के लंड का मोटा सुपाड़ा जैसे ही सानिया की तंग चूत के छेद में घुसा तो सानिया का पूरा जिस्म काँप गया और वो मस्ती में मछली की तरह छटपटाने लगी। सुनील के लंड का सुपाड़ा सानिया की चूत को बुरी तरह फैलाये उसके अंदर फंसा हुआ था। "हाय सानिया... अपने यार का लौड़ा अपनी चूत में लेकर मज़ा आ रहा है ना...!" नज़ीला ने सानिया की चूचियों को मसलते हुए कहा।

सानिया मस्ती में सिसकते हुए बोली, "ऊँहहहहाँ आँटी.... बेहद मज़ा आ रहा है.... आहहहायऽऽ आँटी रोज सुनील को यहाँ बुलाया करो ना..!" नज़ीला ने सानिया को छेड़ते हुए शरारत भरे अंदाज़ में पूछा, "किस लिये बुलाया करूँ..?" सानिया ने तड़पते हुए कहा, "ऊँहहह जिसके लिये आज बुलाया है... आँटीईईई...!"
 
"ये तो बता दे कि आज किस लिये बुलाया है...?" नज़ीला ने उसे फिर छेड़ा तो सानिया चुदने के लिये बेकरार होते हुए बोली, "आआहह चुदने के लिये... चूत में लंड लेने के लिये... आँआहहह... सुनील डालो ना..!" नज़ीला रसभरी आवाज़ में बोली, "देख सुनील कैसे गिड़गिड़ा रही है बेचारी... आब डाल भी दी ने अपना लौड़ा साली के चूत में!" सुनील ने सानिया की टाँगों को पकड़ कर और फैलाते हुए एक जोरदार धक्का मारा और लंड सानिया की चूत की दीवारों को फैलाता हुआ अंदर जा घुसा। "आआआईईईई हाय सुनील.... ओहहहहह हाँ चोदो.... आहहह ऊँहहह ऊँईईईई ओहहहह ऊँहहह अम्म्म्म्म ओहोहोहोआआहहह बहोत मज़ा आ रहा है..!" सानिया मस्ती में जोर-जोर से सिसकने लगी। सुनील ने धीरे-धीरे अपने लंड को सानिया की चूत के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। सुनील के झटकों से सानिया और नज़ीला दोनों नीचे लेटी हुई हिल रही थीं। करीब पाँच मिनट सानिया की चूत में अपना लंड पेलने के बाद जब सानिया की चूत ने पानी छोड़ दिया तो सुनील ने अपना लंड सानिया की चूत से बाहर निकला और नज़ीला की टाँगों को उठा कर उसकी चूत के छेद पर लंड को टिका कर एक ज़ोरदार धक्का मारते हुए पूरा लौड़ा अंदर थोक दिया। "हायै..ऐऐऐ ऊँफ्फ सुनीईईईल.. आहिस्ता... आहहहह ओहहहहहह मर गयीईईई मैं.... याल्लाआआह... ओहहहह धीरेऽऽऽ आहहह आहहह हायेऐऐऐऐ सानिया... तेरे आशिक़ ने मेरी चूत का कचूमर बना दिया...!" कमरे में थप-थप की आवाज़ गूँजने लगी। सुनील पूरी रफ़्तार से नज़ीला की चूत की गहराइयों में अपना लंड जोर-जोर से ठोक रहा था। नज़ीला की चूत सुनील के जवान लौड़े के धक्कों के सामने ज्यादा देर टिक नहीं सकी और नज़ीला सिसकते हुए झड़ने लगी, "आहहह आँआँहह ऊहहह सुनीईईल मेरी फुद्दी... हाआआआयल्लाआआह मेरी चूत पानी छोड़ने वाली आहहह ओहहह गयीईई ओहहह मैं गयीईई आँआँहहह!"

सुनील भी नज़ीला की चूत में लगातार शॉट मारते हुए बोला, "आहहह भाभी आपकी भोंसड़ी सच में बहुत गरम है...!"

नज़ीला हाँफते हुए बोली, "बस रुक जा सुनील... थोड़ी देर सानिया की चूत में चोद दे अब!" सुनील ने अपने लंड को नज़ीला की चूत से बाहर निकला और सानिया की चूत पर रखते हुए एक जोरदार धक्का मार कर आधे से जयादा लंड सानिया की चूत में पेल दिया। दर्द और मज़े की वजह से सानिया का जिस्म एक दम से अकड़ गया। सुनील ने अपने लंड को पूरी रफ़्तार से सानिया की चूत के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। नज़ीला सानिया के नीचे से निकल कर बगल में लेट गयी और सानिया की चूंची को मुँह में भर कर चूसने लगी और दूसरी चूंची को सुनील ने अपने मुँह में भार लिया और हुमच-हुमच कर चोदते हुए चूसने लगा। दस मिनट बाद सानिया की चूत ने अपने आशिक़ के लंड पर अपना प्यार बहान शुरू कर दिया और अगले ही पल सुनील ने भी सानिया के चूत में अपने प्यार की बारिश कर दी। पूरी रात सानिया नज़ीला और सुनील की चुदाई का खेल चला।

दिन इसी तरह गुज़र रहे थे और अगले दो महीनों के दौरान जब भी नज़ीला का शौहर दौरे पर शहर के बाहर गया तो करीब छः-सात बार नज़ीला के घर पे नज़ीला और रुखसाना ने रात-रात भर सुनील के साथ ऐयाशियाँ की... हर तरह से खूब चुदवाया और थ्रीसम चुदाई का मज़ा लिया। इसके अलावा नज़ीला और रुखसाना को अलग-अलग भी जब मौका मिलता तो अकेले सुनील से चुदवा लेती। सुनील भी दूसरी तरफ़ नफ़ीसा के साथ भी ऐश कर रहा था पर सानिया को इन दो महीनों में सिर्फ़ दो बार ही सुनील से चुदवाने का मौका नसीब हुआ वो भी नज़ीला की ही मेहरबानी से। सानिया तो दिल ही दिल में सुनील से और भी ज्यादा मोहब्बत करने लगी थी। हालांकि सानिया और रुखसाना को सुनील के साथ एक दूसरे के रिश्ते के बारे में तो पता नहीं चला लेकिन सानिया को अपनी अम्मी पे शक पहले से ज्यादा बढ़ गया था।

फिर एक दिन की बात है... सानिया को अचानक से उल्टियाँ शुरू हो गयी और वो बेहोश होकर गिर पड़ी। रुखसाना ने उसके चेहरे पर पानी फेंका तो उसे थोड़ी देर बाद होश आया। रुखसाना उसे हास्पिटल लेकर गयी क्योंकि सानिया को कभी कोई बिमारी या शिकायत नहीं हुई थी। जब वहाँ पर एक लेडी डॉक्टर ने उसका चेक अप किया तो उसने रुखसाना बताया कि सानिया प्रेगनेंट है। रुखसाना के तो पैरों तले से जमीन खिसक गयी। उसने वहाँ तो सानिया को कुछ नहीं कहा और उसे लेकर घर आ गयी। घर आकर रुखसाना ने सानिया को जब सारी बात बतायी तो सानिया के चेहरे का रंग उड़ गया। रुखसाना के डाँटने और धमकाने पर सानिया ने सारा राज़ उगल दिया। रुकसाना बेहद परेशान थी... उसे यकीन नहीं हो रहा था कि सुनील उसके साथ इतना बड़ा दगा कर सकता है। फ़ारूक़ दो-तीन दिन की छुट्टी लेकर अपनी भाभी अज़रा के साथ रंगरलियाँ मनाने गया हुआ क्योंकि वो अकेली थी। शाम को जब सुनील घर वापस आने के बाद रुखसाना ऊपर सुनील के कमरे में गयी तो सुनील उठ कर उसे अपने आगोश में लेने के लिये उसकी तरफ़ बढ़ा। रुखसाना ने सुनील को वहीं रुकने के लिये कह दिया और फिर बोली, "सुनील तूने ये सब हमारे साथ ठीक नहीं किया..?" सुनील ने पूछा, "पर हुआ क्या है... मुझे पता तो चले..!"

"सुनील तू हमारे साथ इस तरह दगा करेगा.. अगर मुझे पहले मालूम होता तो मैं तुझे अपने घर में कभी रहने नहीं देती...!" सुनील को समझ नहीं आ रहा था कि अचानक रुखसाना को क्या हो गया। "साफ-साफ बोलो ना भाभी कि बात क्या है...?" सुनील ने पूछा तो रुखसाना बोली, "सानिया के पेट में तेरा बच्चा है... अब मैं क्या करूँ तू ही बता... तूने हम सब के साथ दगा किया है... मैं तुझे कभी माफ़ नहीं करुँगी... तूने सानिया की ज़िंदगी बर्बाद क्यों की...?" रुखसाना की बात सुन कर सुनील के चेहरे का रंग उड़ चुका था। "कोई बात नहीं... मैं पैसे देता हूँ... आप उसका अबोर्शन करवा दो!" सुनील ने ऐसा जताया जैसे उसे किसी की परवाह ही ना हो। "अबोर्शन करवा दो...? अबोर्शन से तूने जो गुनाह किया है वो तो छुप जायेगा... पर सानिया का क्या... जिसे तूने प्यार का झूठा ख्वाब दिखा कर उसके साथ इतना गलत किया है!"

सुनील बोला, "देखो भाभी ताली एक हाथ से नहीं बजती... अगर इस बात के लिये मैं कसूरवार हूँ... तो सानिया भी कम कसूरवार नहीं है और भाभी अबोर्शन के अलावा और कोई चारा है आपके पास...!" सुनील की बात सुनकर रुखसाना बोली, "ठीक है सुनील मैं सानिया का अबोर्शन करवा देती हूँ... पर एक बात बता कि क्या तू सच में सानिया से प्यार करता है..?" सुनील बोला, "नहीं मैं उसे कोई प्यार-व्यार नहीं करता... वो ही मेरे पीछे पढ़ी थी..!"

रुखसाना ने कहा, "देख सुनील अगर सानिया को ये सब पता चला तो वो टूट जायेगी... सानिया भले ही मेरी कोख से पैदा नहीं हुई पर मैंने उसे अपनी बेटी के तरह पाला है... तुझे उससे शादी करनी ही होगी!" ये सुनकर सुनील थोड़ा गुस्से से से बोला, "ख्वाब मत देखो रुख़साना भाभी... आपको भी मालूम कि ऐसा कभी नहीं होगा.... इस शादी के लिये मैं तो क्या आपके और मेरे घर वाले भी कभी तैयार नहीं होंगे... अगर आपको मेरा यहाँ रहना पसंद नहीं है तो मैं दो-तीन दिनों में किसी दूसरी जगह शिफ्ट हो जाउँगा!" ये कह कर सुनील बाहर चला गया।

रुखसाना उसी के कमरे में सिर पकड़ कर बैठ गयी। एक तरफ उसे सानिया की फ़िक्र थी और सुनील के घर छोड़ के जाने की बात सुनकर तो उसे अपनी दुनिया बिखरती हुई नज़र आने लगी। उसकी खुद की बियाबान ज़िंदगी में सुनील की वजह से इतने सालों बाद बहारें आयी थीं और पिछले कुछ महीनों में उसे सुनील के लंड की... उससे चुदवाने की ऐसी लत्त लग गयी थी कि वो सुनील को किसी भी कीमत पे खो नहीं सकती थी। अपनी सौतेली बेटी का दिल टूटने से ज्यादा उसे अब अपनी हवस... रोज़-रोज़ अपनी चुत की आग बुझाने का ज़रिया खतम होने की फ़िक्र सताने लगी। वो सोचने लगी कि सानिया तो फिर भी जल्दी ही वक़्त के साथ सुनील को भुल जायेगी और उसका निकाह भी एक ना एक दिन हो जायेगा... लेकिन वो खुद तो बिल्कुल तन्हा रह जायेगी... पहले की तरह तड़प-तड़प कर जीने के लिये मजबूर...! ये सब सोचते हुए रुकसाना का दिल डूबने लगा... उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे... अगर सुनील अभी घर छोड़ कर नहीं भी गया तो भी वो हमेशा तो यहाँ उसके घर पे वैसे भी नहीं रहेगा... उसकी भी तो कभी ना कभी शादी होगी... तब वो क्या करेगी। तभी रुखसाना की नज़र टेबल पर रखी हुई एक डायरी पर पड़ी। उसने वो डायरी उठा कर देखी तो उसमें सुनील के दोस्तों और कुछ रिश्तेदारों के पते और फोन नंबर लिखे हुए थे और रुखसाना को उसी डयरी में सुनील की मम्मी का फोन नंबर मिल गया। उसने पेन उठा कर उस नंबर को अपने हाथ पर लिखा और नीचे आ गयी। सुनील को हमेशा अपने करीब रखने की आखिरी तरकीब उसे नज़र आयी। फिर बाहर का दरवाजा लॉक करके उसने अपने बेडरूम में आकर सुनील के घर का नंबर मिलाया। थोड़ी देर बाद किसी आदमी ने फ़ोन उठाया, "हेल्लो कौन..!"
 
रुखसाना बोली, "जी मैं रुखसाना बोल रही हूँ... सुनील हमारा किरायेदार है... क्या मैं कवीता जी से बात कर सकती हूँ!" उस आदमी ने रुखसाना को दो मिनट होल्ड करने को कहा और फिर उसे फोन पे उस आदमी की आवाज़ सुनायी दी कि, "कवीता दीदी आपका फ़ोन है..!" फिर थोड़ी देर बाद रुख़साना को एक औरत की आवाज़ सुनायी दी, "हेल्लो कौन..?"

रुखसाना: "जी मैं रुखसना बोल रही हूँ..!"

कवीता: "रुखसाना कौन... सॉरी मैंने आपको पहचना नहीं..!"

रुखसाना: "जी सुनील हमारे घर पर किराये पे रहता है...!"

कवीता: "ओह अच्छा-अच्छा... सॉरी मैं भूल गयी थी.... हाँ एक बार सुनील ने बताया था.... जी कहिये कुछ काम था क्या...!"

रुखसाना: "जी क्या आप यहाँ आ सकती हैं..!"

कवीता: "क्यों... क्या हुआ... सब ठीक है ना... सुनील तो ठीक है ना...!"

रुखसाना: "जी सुनील बिल्कुल ठीक है..!"

कवीता: "तो फिर बात क्या है...?"

रुखसाना: "जी बहोत जरूरी बात है... फ़ोन पर नहीं बता सकती... बस आप यही समझ लें कि मेरी बेटी की लाइफ का सवाल है..!"

कवीता: "क्या आपकी बेटी... ओके-ओके मैं कल सुबह-सुबह ही अकाल-तख्त एक्सप्रेस से निकलती हूँ यहाँ से और फिर पटना से लोकल ट्रेन या बस लेकर पर्सों तक पहुँच जाऊँगी...!"

रुखसाना: "कवीता जी... प्लीज़ सुनील को नहीं बताना कि मैंने आपको फ़ोन किया है... और आपको यहाँ बुलाया है..!"

कवीता: "ठीक है तुम चिंता ना करो... मैं पर्सों तक वहाँ पर पहुँच जाऊँगी...!"

फिर रुखसाना ने कवीता को अपना पूरा पता समझाया और फ़ोन रख दिया। उस दिन और अगले दिन भी घर में मातम जैसा माहौल बना रहा। सुनील ने भी दोनों रातें नफ़ीसा के घर पर गुज़ारीं... बस अगले दिन शाम को कपड़े बदलने के लिये आया लेकिन रुखसाना या सानिया से कोई बात नहीं की । रुखसाना ने सानिया को कॉलेज नहीं जाने दिया। रुखसाना कवीता के आने का इंतज़ार कर रही थी और दो दिन बाद शाम को चार बजे के करीब बजे कवीता उनके घर पहुँची। रुखसाना और सानिया ने कविता की मेहमान नवाज़ी की और फिर रुखसाना कवीता को लेकर अपने कमरे में आ गयी।

कवीता: "हाँ रुखसाना... अब कहो क्या बात है..?"

रुखसाना: "कवीता जी दर असल बात ये है कि... आपके बेटे ने मेरी बेटी के साथ..." और ये बोलते-बोलते रुखसाना चुप हो गयी।

कवीता: "तुम सच कह रही हो... और तुम्हें पूरा विश्वास है कि मेरे बेटे ने...!"

रुखसाना: "जी... सानिया को दूसरा महीना चल रहा है..!"

कवीता एक दम से चौंकते हुए बोली, "क्या.... हे भगवान... उस नालायक ने... उसने तो मुझे कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा... पर आपकी बेटी भी तो समझदार है ना... उसने ये सब क्यों होने दिया...?"

रुखसाना: "जी मैं नहीं जानती.... पर दोनों ही बच्चे हैं अभी..!"

कवीता: "देखो मैं अभी कुछ नहीं कह सकती... और मेरा बेटा मुझसे कभी झूठ नहीं बोलता... तुम सानिया को यहाँ बुला कर लाओ...!"

रुखसाना ने सानिया को आवाज़ दी तो सानिया कमरे में आ गयी। "तुम मेरे बेटे से प्यार करती हो?" कवीता ने पूछा पर सानिया सहमी सी कभी रुखसाना की तरफ़ देखती तो कभी जमीन की तरफ़। "घबराओ नहीं.... जो सच है बताओ...!"

सानिया हाँ में सिर हिलाते हुए बोली, "जी..!"

कवीता: "और ये बच्चा..?"

सानिया: "जी..!"

कवीता: "हे भगवान... ये आज कल के बच्चे... माँ-बाप के लिये कहीं ना कहीं कोई ना कोई मुसीबत खड़ी कर ही देते हैं आने दो उस नालायक को..!"

अभी वो बात ही कर रहे थे कि बाहर डोर-बेल बजी। "सुनो अगर सुनील होगा तो उसे यहीं बुला लाना और सानिया तुम अपने कमरे में जाओ...!" कवीता की बात सुन कर रुखसाना ने हाँ में सिर हिलाया और बाहर आकर दरवाजा खोला तो देखा सामने सुनील ही खड़ा था। उसके अंदर आने के बाद रुखसाना ने डोर लॉक किया और सुनील के पीछे चलने लगी। जैसे ही सुनील ऊपर जाने लगा तो रुखसाना ने उसे रोक लिया, "तुम्हारी मम्मी आयी हैं... अंदर बेडरूम में बैठी हैं!"

सुनील ने रुखसाना की तरफ़ देखा। उसके चेहरे का रंग उड़ चुका था। वो तेजी से कमरे में गया और रुखसाना भी उसके पीछे रूम में चली गयी। सानिया पहले ही अपने कमरे में जा चुकी थी। सुनील ने जाते ही अपनी मम्मी के पैर छुये, "मम्मी आप यहाँ अचानक से...?"

कवीता: "जब बच्चे अपने आप को इतना बड़ा समझने लगें कि उनको किसी और की परवाह ना रहे तो माँ बाप को ही देखना पड़ता है... क्या इसलिये तुझे पढ़ा लिखा कर बड़ा किया था... इसलिये तुझे अपने से इतनी दूर भेजा था कि तुम बाहर जाकर अपने परिवार का नाम मिट्टी में मिलाओ... सुनील जो कुछ भी रुखसाना ने मुझे बताया है क्या वो सच है...?"

सुनील ने सिर झुका कर बोला, "जी!"

कवीता: "और जो बच्चा सानिया के पेट में है वो तेरा है... उसके साथ तूने गलत किया?"

सुनील: "जी..!"

कवीता: "शादी भी करना चाहता होगा तू अब उससे..?"

सुनील: "जी.. जी नहीं..!"

ये सुनकर कविता उठकर खड़ी हुई और एक ज़ोरदार थप्पड़ सुनील के गाल पर जमाते हुए बोली, "नालायक ये सब करने से पहले नहीं सोचा तूने... किसने हक दिया तुझे किसी की ज़िंदगी को बर्बाद करने का... हाँ बोल अब बुत्त बन कर क्यों खड़ा है..?"

सुनील: "मम्मी मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी... मुझे माफ़ कर दो भले ही मुझे जो मर्ज़ी सजा दो!"

कवीता: "गल्ती तो तूने की है... और गल्ती स्वीकार भी की है... अगर तेरी बहन होती और अगर सानिया के जगह तेरी बहन के साथ ऐसा होता... तो तुझ पर क्या बीतती... कभी सोचा भी है कि किसी की ज़िंदगी से ऐसे खिलवाड़ करने से पहले?"

फिर कवीता रुखसाना से बोली, "देखो रुखसाना बच्चों ने जो गल्ती करनी थी कर दी... पर अब हमें इनकी गल्ती को सुधाराना है... अगर तुम्हें और तुम्हारे हस्बैंड को स्वीकार हो तो मैं अभी इसके मामा जी को फ़ोन करके बुलाती हूँ... और जल्द से जल्द... इसी हफ़्ते दोनों की शादी करवा देते हैं... और सुनील तुझे भी कोई प्रॉब्लम तो नहीं है..!" कवीता ने बड़े कड़क लहजे में सुनील को कहा।

रुखसाना: "कवीता जी... मुझे क्या ऐतराज़ हो सकता है... बल्कि मैं तो आपका ये एहसान ज़िंदगी भर नहीं भूलुँगी और मेरे हस्बैंड भी राज़ी हो जायेंगे!"

उसके बाद सानिया और सुनील के शादी हो गयी। फ़ारूक़ ने पहले थोड़ा बवाल किया लेकिन उसके पास भी अपनी इज़्ज़त बचाने के लिये कोई और रास्ता नहीं था। शादी के बाद सानिया और सुनील दोनों उसी घर में रुखसाना और फ़ारूक़ के साथ रहते हैं। । सुनील अपनी बीवी सानिया के साथ-साथ अपनी सास रुखसाना की चूत और गाँड का भी पूरा ख्याल रखता है। दर असल रुखसाना और सुनील ने सानिया को समझा-बुझा कर अपने नाजायज़ रिश्ते से वाक़िफ़ करवा दिया और सानिया ने भी पहले-पहले थोड़ी नाराज़गी के बाद अपनी अम्मी को अपनी सौतन बनाना मंज़ूर कर लिया और अब तो तीनों अक्सर ठ्रीसम चुदाई का रात-रात भर मज़ा लेते हैं। रुखसाना की ज़िंदगी अब बेहद खुशगवार है क्योंकि अब उसे कभी ज़िंदगी में पहले की तरह अपनी जिस्मानी ख्वाहिशों का गला घोंट कर जीने के लिये मजबूर नहीं होना पड़ेगा।


समाप्त


दोस्तो ये कहानी कंप्लीट कर दी है मज़े लीजिए
 
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