desiaks
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कुछ मिनटों के उपरांत , राज ने टीना जी के मूर्छित बदन के भार को अपने तन पर से हटा कर अलग किया।
उनका पिछला ऑरगैस्म इतना सशक्त था कि अप्रत्याशित आनन्द के मारे वे मूर्छित हो गयी थीं, और कामतृप्ति के उपरांत उसके समीप बिस्तर पर लेटी हुई थीं, उनका मुख अद्वितीय स्त्री सौन्दर्य के तेज से दमक रहा था, जैसा की वैसी प्रत्येक स्त्री के साथ होता है, जिसे राज जैसे काम-कौशल प्रवीण पुरुष के संग प्रणय लीला का सौभाग्य प्राप्त हुआ हो।
राज ने उनकी योनि को देखा। योनि खुली हुई थी, और उसमें से वीर्य और योनि-द्रवों का चिपचिपा मिश्रण टपक रहा था। लड़के ने अपने मुख को उनके पटे हुए योनि द्वार की दिशा में नीचे किया और अपनी जिह्वा से उस द्रव का रसास्वादन किया। कितना स्वादिष्ट था! स्त्री योनि का वही चिरपरिचित नमकीन स्वाद! और उसके साथ उसके स्वयं के वीर्य का स्वाद !
राज इस स्वाद को चख कर बड़ा रोमांचित हो उठा, वो अपने होठों पर जीभ फेरता हआ टीना जी के नग्न बदन को घूरने लगा, जो उसके समक्ष बड़ी निर्लज्जता से कामुक मुद्रा में प्रस्तुत हुआ था। उनके स्तन सुडौल तथा फूले हुए थे और उनके श्वास की लय के साथ ऊठते-गिरते जाते थे। कामोन्माद के कारणवश उनके गुलाबी निप्पल कड़क और तने हुए थे। परन्तु उनके पटे हुए योनि द्वार पर उसके सम्पूर्ण ध्यान केन्द्रित था, जिसकी गुलाबी कोपलें लुभावने अंदाज में पटी हुई थीं, और जिसकी चमचमाती अन्धकारमय गुहा से अब भी वो मादक द्रव रिस रहा था जिसका आस्वादन उसने चन्द पलों पहले किया था।
राज ने बेहोश महिला को पीठ के बल लेटाया और उसकी टाँगों को अच्छही प्रकार फैला डाला, पीछे धकेल कर उनके घुटनों को मोड़ा जैसे उनकी सूजी हुई योनि उसके समक्ष अपनी मनोरमता को प्रदर्शित करने लगी। टीना जी के जननांग उसकी लालची निगाहों के समक्ष वो इस प्रकार प्रस्तुत थे जैसे भूखे भेड़िये के सामने मेमना। उसने अपने होठों को नीचे कर उनके मवाद से चुपड़े हुए योनि द्वार का चुम्बन लिया, और उनके योनि - रोमों पर से द्रवों को चाटकर अपनी जिह्वा को उनकी तरल योनि के भीतर घोंप डाला।
| अपनी योनि पर लड़के मे मुँह का स्पर्श पाकर टीना जी की चेतना वापस लौटने लगी। पहले पहल तो वे कुछ चौंधियायी सी रहीं, पर जब उन्हें राज की गतिविधियों का बोध हुआ, तो उन्होंने मुस्कुरा कर उसके सर के पिछले भाग को नीचे की ओर दबाया, और उसके मुंह को अपनी तर योनि की चिपचिपाहटों के भीतर और गहरा ठूसने लगीं।
अममममम, बहुत अच्छे बेटा! ::. चाट माँ की चूत !”, वे जैसे स्वप्न में कराहीं। उनके भीतर का मातु प्रेम अब छलक कर राज पर उमड़ पड़ा था। राज को अपने पुत्र-तुल्य मानकर टीना जी ने अपने मातृ प्रेम की चरम अभिव्यक्ति से उसे अलंकृत किया था। वो टीना जी की अथाह ममता ही थी जिसने अन्यधर्मावलम्बी राज पर अपने विशाल हृदय से प्रेमरस की वर्षा की थी। वे उसे अपने पुत्र जैसा ही प्यार करती थीं, इसीलिये तो स्वयं को उसकी माँ बतला कर सहजता से अपनी ममता के आँचल में उसे स्वीकर कर लिया था। जिस प्रकार अपने सगे पुत्र पर अपने मन और देह दोनो को न्यौछावर करती थीं, राज को भी अपना पुत्र मानकर उन्होंने अपनी देह उसपर न्यौछावर कर दी थी। कैसा विलक्षण प्रेम था टीना जी के हृदय में! एक बार फिर एक माता ने अपने पुत्र के वास्ते अपनी देह को समर्पित कर पुत्र को दैहिक आनन्द प्रदान कर लिया था।
उनका पिछला ऑरगैस्म इतना सशक्त था कि अप्रत्याशित आनन्द के मारे वे मूर्छित हो गयी थीं, और कामतृप्ति के उपरांत उसके समीप बिस्तर पर लेटी हुई थीं, उनका मुख अद्वितीय स्त्री सौन्दर्य के तेज से दमक रहा था, जैसा की वैसी प्रत्येक स्त्री के साथ होता है, जिसे राज जैसे काम-कौशल प्रवीण पुरुष के संग प्रणय लीला का सौभाग्य प्राप्त हुआ हो।
राज ने उनकी योनि को देखा। योनि खुली हुई थी, और उसमें से वीर्य और योनि-द्रवों का चिपचिपा मिश्रण टपक रहा था। लड़के ने अपने मुख को उनके पटे हुए योनि द्वार की दिशा में नीचे किया और अपनी जिह्वा से उस द्रव का रसास्वादन किया। कितना स्वादिष्ट था! स्त्री योनि का वही चिरपरिचित नमकीन स्वाद! और उसके साथ उसके स्वयं के वीर्य का स्वाद !
राज इस स्वाद को चख कर बड़ा रोमांचित हो उठा, वो अपने होठों पर जीभ फेरता हआ टीना जी के नग्न बदन को घूरने लगा, जो उसके समक्ष बड़ी निर्लज्जता से कामुक मुद्रा में प्रस्तुत हुआ था। उनके स्तन सुडौल तथा फूले हुए थे और उनके श्वास की लय के साथ ऊठते-गिरते जाते थे। कामोन्माद के कारणवश उनके गुलाबी निप्पल कड़क और तने हुए थे। परन्तु उनके पटे हुए योनि द्वार पर उसके सम्पूर्ण ध्यान केन्द्रित था, जिसकी गुलाबी कोपलें लुभावने अंदाज में पटी हुई थीं, और जिसकी चमचमाती अन्धकारमय गुहा से अब भी वो मादक द्रव रिस रहा था जिसका आस्वादन उसने चन्द पलों पहले किया था।
राज ने बेहोश महिला को पीठ के बल लेटाया और उसकी टाँगों को अच्छही प्रकार फैला डाला, पीछे धकेल कर उनके घुटनों को मोड़ा जैसे उनकी सूजी हुई योनि उसके समक्ष अपनी मनोरमता को प्रदर्शित करने लगी। टीना जी के जननांग उसकी लालची निगाहों के समक्ष वो इस प्रकार प्रस्तुत थे जैसे भूखे भेड़िये के सामने मेमना। उसने अपने होठों को नीचे कर उनके मवाद से चुपड़े हुए योनि द्वार का चुम्बन लिया, और उनके योनि - रोमों पर से द्रवों को चाटकर अपनी जिह्वा को उनकी तरल योनि के भीतर घोंप डाला।
| अपनी योनि पर लड़के मे मुँह का स्पर्श पाकर टीना जी की चेतना वापस लौटने लगी। पहले पहल तो वे कुछ चौंधियायी सी रहीं, पर जब उन्हें राज की गतिविधियों का बोध हुआ, तो उन्होंने मुस्कुरा कर उसके सर के पिछले भाग को नीचे की ओर दबाया, और उसके मुंह को अपनी तर योनि की चिपचिपाहटों के भीतर और गहरा ठूसने लगीं।
अममममम, बहुत अच्छे बेटा! ::. चाट माँ की चूत !”, वे जैसे स्वप्न में कराहीं। उनके भीतर का मातु प्रेम अब छलक कर राज पर उमड़ पड़ा था। राज को अपने पुत्र-तुल्य मानकर टीना जी ने अपने मातृ प्रेम की चरम अभिव्यक्ति से उसे अलंकृत किया था। वो टीना जी की अथाह ममता ही थी जिसने अन्यधर्मावलम्बी राज पर अपने विशाल हृदय से प्रेमरस की वर्षा की थी। वे उसे अपने पुत्र जैसा ही प्यार करती थीं, इसीलिये तो स्वयं को उसकी माँ बतला कर सहजता से अपनी ममता के आँचल में उसे स्वीकर कर लिया था। जिस प्रकार अपने सगे पुत्र पर अपने मन और देह दोनो को न्यौछावर करती थीं, राज को भी अपना पुत्र मानकर उन्होंने अपनी देह उसपर न्यौछावर कर दी थी। कैसा विलक्षण प्रेम था टीना जी के हृदय में! एक बार फिर एक माता ने अपने पुत्र के वास्ते अपनी देह को समर्पित कर पुत्र को दैहिक आनन्द प्रदान कर लिया था।