Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना - Page 19 - SexBaba
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Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना

कुछ मिनटों के उपरांत , राज ने टीना जी के मूर्छित बदन के भार को अपने तन पर से हटा कर अलग किया।

उनका पिछला ऑरगैस्म इतना सशक्त था कि अप्रत्याशित आनन्द के मारे वे मूर्छित हो गयी थीं, और कामतृप्ति के उपरांत उसके समीप बिस्तर पर लेटी हुई थीं, उनका मुख अद्वितीय स्त्री सौन्दर्य के तेज से दमक रहा था, जैसा की वैसी प्रत्येक स्त्री के साथ होता है, जिसे राज जैसे काम-कौशल प्रवीण पुरुष के संग प्रणय लीला का सौभाग्य प्राप्त हुआ हो।

राज ने उनकी योनि को देखा। योनि खुली हुई थी, और उसमें से वीर्य और योनि-द्रवों का चिपचिपा मिश्रण टपक रहा था। लड़के ने अपने मुख को उनके पटे हुए योनि द्वार की दिशा में नीचे किया और अपनी जिह्वा से उस द्रव का रसास्वादन किया। कितना स्वादिष्ट था! स्त्री योनि का वही चिरपरिचित नमकीन स्वाद! और उसके साथ उसके स्वयं के वीर्य का स्वाद !

राज इस स्वाद को चख कर बड़ा रोमांचित हो उठा, वो अपने होठों पर जीभ फेरता हआ टीना जी के नग्न बदन को घूरने लगा, जो उसके समक्ष बड़ी निर्लज्जता से कामुक मुद्रा में प्रस्तुत हुआ था। उनके स्तन सुडौल तथा फूले हुए थे और उनके श्वास की लय के साथ ऊठते-गिरते जाते थे। कामोन्माद के कारणवश उनके गुलाबी निप्पल कड़क और तने हुए थे। परन्तु उनके पटे हुए योनि द्वार पर उसके सम्पूर्ण ध्यान केन्द्रित था, जिसकी गुलाबी कोपलें लुभावने अंदाज में पटी हुई थीं, और जिसकी चमचमाती अन्धकारमय गुहा से अब भी वो मादक द्रव रिस रहा था जिसका आस्वादन उसने चन्द पलों पहले किया था।

राज ने बेहोश महिला को पीठ के बल लेटाया और उसकी टाँगों को अच्छही प्रकार फैला डाला, पीछे धकेल कर उनके घुटनों को मोड़ा जैसे उनकी सूजी हुई योनि उसके समक्ष अपनी मनोरमता को प्रदर्शित करने लगी। टीना जी के जननांग उसकी लालची निगाहों के समक्ष वो इस प्रकार प्रस्तुत थे जैसे भूखे भेड़िये के सामने मेमना। उसने अपने होठों को नीचे कर उनके मवाद से चुपड़े हुए योनि द्वार का चुम्बन लिया, और उनके योनि - रोमों पर से द्रवों को चाटकर अपनी जिह्वा को उनकी तरल योनि के भीतर घोंप डाला।

| अपनी योनि पर लड़के मे मुँह का स्पर्श पाकर टीना जी की चेतना वापस लौटने लगी। पहले पहल तो वे कुछ चौंधियायी सी रहीं, पर जब उन्हें राज की गतिविधियों का बोध हुआ, तो उन्होंने मुस्कुरा कर उसके सर के पिछले भाग को नीचे की ओर दबाया, और उसके मुंह को अपनी तर योनि की चिपचिपाहटों के भीतर और गहरा ठूसने लगीं।

अममममम, बहुत अच्छे बेटा! ::. चाट माँ की चूत !”, वे जैसे स्वप्न में कराहीं। उनके भीतर का मातु प्रेम अब छलक कर राज पर उमड़ पड़ा था। राज को अपने पुत्र-तुल्य मानकर टीना जी ने अपने मातृ प्रेम की चरम अभिव्यक्ति से उसे अलंकृत किया था। वो टीना जी की अथाह ममता ही थी जिसने अन्यधर्मावलम्बी राज पर अपने विशाल हृदय से प्रेमरस की वर्षा की थी। वे उसे अपने पुत्र जैसा ही प्यार करती थीं, इसीलिये तो स्वयं को उसकी माँ बतला कर सहजता से अपनी ममता के आँचल में उसे स्वीकर कर लिया था। जिस प्रकार अपने सगे पुत्र पर अपने मन और देह दोनो को न्यौछावर करती थीं, राज को भी अपना पुत्र मानकर उन्होंने अपनी देह उसपर न्यौछावर कर दी थी। कैसा विलक्षण प्रेम था टीना जी के हृदय में! एक बार फिर एक माता ने अपने पुत्र के वास्ते अपनी देह को समर्पित कर पुत्र को दैहिक आनन्द प्रदान कर लिया था।
 
अपनी योनि में राज के लिंग को ग्रहण कर, उसके वीर्य को ग्रहण कर, अपनी पवित्र ममता के प्रेमरस का पान करवाया था। सांकेतिक रूप में राज से अपना स्तनपान करवाकर उन्होंने अपने और राज के बीच के रिश्ते को अटूट बना डाला था, जो केवल दैहिक वासना से ही नहीं, बल्कि अलौकिक प्रेम से प्रेरित था। धन्य थी टीना जी, धन्य थी टीना जी की ममता!

जब राज को ज्ञात हुआ की टीना जी पूरी तरह से सचेत हो गयी थीं, तो वो पलट कर उनके मुख के ऊपर जा बैठा, इससे पहले कि उनके मुख से एक शब्द भी निकलता, उसने अपने लिंग को उनके मुँह के भीतर डाल दिया, और साथ ही बड़ी सहजता से अपने मुंह को उनकी योनि पर फिर दे चिपटाया।

99 मुँहबोली माँ टीना जी ने हाथों को ऊपर उठाया और राज के पुष्ट युवा नितम्बों को दोनो हाथों में दबोचकर उसके लिंग को चूसने लगीं। उन्हें उसके युवा लिंग का स्वाद बहुत भा रहा था, क्यों न भाता, टीना जी राज के लिंग का अंकन अपने जीवन में चूसे गये उत्कृष्ट लिंगों में करती थीं। कैसा तरोताजा और नमकीन, उनके पति के चिरपरिचित लिंग के पुरुषत्व भरे खट्टे स्वाद से कितना भिन्न था वह।

राज के लिंग को चूसकर आनन्द के मारे उनकी योनि से रिसाव होने लगा था। उन्होंने अपने मुँह को और अधिक खोला, और कस के अपने होठों को राज के विशाल लिंग के सुपाड़े पर लिपटा दिया। फिर वे अपनी गरम जिह्वा को उसके फड़कते पुरुष स्तम्भ पर ऊपर और नीचे फेरने लगीं। जैसे-जैसे राज का लिंग उनके होठों के दरम्यान धीमे-धीमे फिसल कर रगड़ रहा था, वे उसे अपने मुँह के भीतर चूस - चूस कर खींचने लगीं, और इस प्रकार अपने गले में उन्होंने उसके धड़कते लिंग के मोटे माँस को ठूस लिया।
 
राज के लिंग को चूसकर आनन्द के मारे उनकी योनि से रिसाव होने लगा था। उन्होंने अपने मुँह को और अधिक खोला, और कस के अपने होठों को राज के विशाल लिंग के सुपाड़े पर लिपटा दिया। फिर वे अपनी गरम जिह्वा को उसके फड़कते पुरुष स्तम्भ पर ऊपर और नीचे फेरने लगीं। जैसे-जैसे राज का लिंग उनके होठों के दरम्यान धीमे-धीमे फिसल कर रगड़ रहा था, वे उसे अपने मुँह के भीतर चूस - चूस कर खींचने लगीं, और इस प्रकार अपने गले में उन्होंने उसके धड़कते लिंग के मोटे माँस को ठूस लिया।

हर बार जब उन्हें अपने चोंचले पर राज की आतुर जिह्वा के स्पर्श का अनुभव होता, तो उनके होठों से एक दबी कराह फूट पड़ती। राज अपनी जिह्वा को धीरे-धीरे उनकी सूजी हुई योनि-कोपलों पर लथेड़ रहा था। योनि की एक बाजू पर जिह्वा को ऊपर रगड़ता, फिर दूसरी बाजू से उसे नीचे रगड़ता। इस प्रकार वो टीना जी की वयस्क योनि के मादक रस का पान कर रहा था। राज भूखों जैसा चूसता था, और अपनी जिह्वा को चाबुक की तरह उनकी ज्वलन्त और द्रवों से सराबोर योनि में फटकारता जाता था। पूरे कमरे में चूसने - चाटने की बुलन्द
आवाजें गूंज रही थीं। टीना जी भी अपने नवस्वीकृत पुत्र के प्रति मातृ प्रेम की अभिव्यक्ति करती हुई उसके चिपचिपे लिंग को चुपड़ - स्लप्प - पुच्च- पुच्च की जोरदार आवाजें निकालती हुई चूस रही थीं।

राज ने अपनी जिह्वा द्वारा बार-बार टीना जी की योनि - कोपलों के मध्य भाग को चाटा, और उन्हें इस कदर रोमांचित कर दिया कि वे अपने पटे हुए जननांगों को उसके मुंह पर उचका-उचका कर झटकने लगीं। वे बेतहाशा अपने गीले रिसते योनि द्वार को उसके मुंह पर चुपड़ती जा रही थीं। राज ने उनके सुडौल नितम्बों को अपनी हथेलियों में भर रखा था, और अपने खुले मुंह पर उनकी योनि को दबा-दबा कर भींचता जा रहा था।

साथ-साथ वो अपनी तेजी से झटकती जिह्वा को उनकी चूती हूई योनि की गहनता में ठेलता जा रहा था। उसने टीना जी को लम्बी साँस भरते सुना और अपने फड़कते लिंग पर उनके मुख के विलक्षण चुसाव की गति को भी तेज होता अनुभव किया। टीना जी की योनि सिकुड़ी और उसकी जिह्वा पर सिकुड़ने ढिलने लगी। राज अपनी जिह्वा द्वारा कुशलता से मुखमैथुन का प्रदर्शन कर रहा था, उसे किसी छोटे कड़क लिंग की तरह प्रयोग करता हुआ उनकी कुलबुलाती ज्वलन्त कामगुहा की गहनता में प्रहार किये जा रहा था।

राज ने अपने हाथों को तनिक नीचे सरकाया, और टीना जी की योनि के पटलों को खोला। जैसे कली खिल गयी। फिर वो लगा चाटने और चूसने उनके रसभरे लाल योनि माँस को। टीना जी को दैहिक आनन्द की पराकाष्ठा का अनुभव हो रहा था, लगता था जैसे योनि में विस्फोट हो जायेगा। आखिरकार, उसकी जिह्वा को उनके कड़क और कंपकंपाते चोंचले का स्पर्श हुआ। टीना जी का चोंचला किसी छोटे से लिंग के जैसा तना हुआ था, और राज के होठों के दरम्यान धड़क-धड़क कर कूद रहा था। राज उसे प्रेमपूर्वक चूसता हुआ अपने मुँह के भीतर और बाहर करने लगा। ठीक उसी प्रकार जैसे टीना जी के भरपूर लाल होंठ उसके लिंग को चूस रहे थे। राज टीना जी के मुख के अन्दर के की सतह का स्पष्ट अनुभर कर रहा था। उसका लिंग अपनी मुँहबोली माँ के होठों के दरम्यान और गहरा फिसलता जा रहा था।

जैसे-जैसे राज आतुरतापूर्वक उसे चूसता गया, टीना जी कि योनि पुष्प जैसी खिलकर और अधिक खुलने लगी। उनके द्रव प्रचुरता से प्रवाहित होने लगे, और उनकी योनि से बाहर बहकर न केवल उसकी जिह्वा पर, बलकि उसके मुँह और ठोड़ी पर भी चुपड़ने लगे। राज अपने गालों पर उनकी जाँघों की मासँपेशियों को भिंचता हुआ महसूस करने लगा। ठी वैसे ही जैसे उसकी सगी माँ सदैव ऑरगैस्म के ठीक पहले भींचती थीं। वे अब चरमानन्द प्राप्ति के निकट ही थीं! राज को आभास हो रहा था, उनकी कोमल जाँघे उसके सर को जकड़ रही थीं। उनके बदन की हर माँसपेशी अकड़ गयी थी, और वे पशु की भांति उसके लिंग को खींच रही थीं, प्रतीत होता था उसके तड़पते अण्डकोष को उसके लिंग के सिरे से खींच उखाड़ेगी।
 
तभी अचानक टीना जी का पूरा बदन अकड़ गया और उन्होंने मादा- पशु की तरह चीख कर कर अपने चरमानन्द का घोष किया। अचानक उनके ऐंठते तन में दैहिक आनन्द की ऐसी प्रबल अनुभूतियाँ छाने लगीं कि वे लगभग फिर एक दफ़े अपने ऑरगैस्म के बलवश मूर्छित हो गयीं।

“ओहहह! उँहह अममम, शाबाश! ओह, राज ! मैं झड़ रही हूँ! आँहहहह! चूस कस के मादरचोद! चूस मेरे चोंचले को राज बेटा! ओह ! ओह ! ओह ! ऊ ऊ ऊह, ईश्वर !”

राज कराहा और अपने होठों और नाक को टीना जी की गीली, कंपकंपाती योनि पर दबा डला, और अपनी अकड़ी हुई जिह्वा को उनकी कुलबुलाती योनि की गुहा की गहराईयों में घोंप - घोंप कर भूखों जैसा उनके चोंचले को चूसने लगा। टीना जी कुतिया जैसी बिलबिला रही थीं और अपने योनि स्थल को राज के चुपड़ते मुँह पर उचकाती जा रही थीं।

उनके रगों में धौंकती वासना की लहरें जब श्नैः-शनैः शांत पड़ीं, तो टीना जी पुनः अपने ध्यान को राज के सूने पड़े लिंग पर केन्द्रित कर सकीं। उन्होंने उसके विशाल फड़कते अंग को सम्पूर्णतय निगल लिया। उनके खिंचे हुए होंठ उत्साहपूर्वक राज के चिकनाहट से सने स्तम्भ को ऊपर से नीचे रगड़ रहे थे, और उसकी ठोस लम्बाई के चप्पे-चप्पे को उनकी गरम चिपचिपी थूक द्वारा चुपड़ते जा रहे थे।

अभी-अभी राज ने उन्हें अप्रत्याशित कामानन्द की अनुभूति करवायी थी, और टीना जी इसका उपयुक्त प्रतिवादन करने के लिये वचनबद्ध थीं। वे अपने मधुर मुख में उसके लिंग द्वारा वीर्य स्खलन करवाना चाहती थीं। राज के लिंग पर उनके होंठ अविश्वस्नीय रूप से खींचे हुए थे, और राज लाख प्रयत्न के बावजूद अपने कूल्हों को ऊपर और नीचे उचकने से रोक नहीं सका। वो अपने कूल्हों को उचकाता हुआ अपने लिंग को उनके तप्त मुँह की लिसलिसी गहराईयों में ठेलने लगा।

टीना जी लिंग पर मुख-मैथुन करने में प्रवीण थीं, और बड़ी अच्छी तरह से जानती थीं कि अधिकतम आनन्द प्रदान करने के लिये पुरुष अंग पर स्त्री को अपने मुख का किस प्रकार प्रयोग करना चाहिये। ऊपर की दिशा में चाटते हुए, वे उसके लाल और मोटे सुपाड़े को कुछ देर चूसतीं, और अपनी जिह्वा के सिरे को उसके लिंग के छिद्र पर चिपका देतीं। बस कुछ ही पलों में राज को अपने अण्डकोष के भीतर वही जानी पहचानी हलचल का अभास होने लगा। । “ओहह, टीना आँटी! ऊपर वाले! ये निकला मेरे टट्टों से वीर्य! चूस कस के मेरी मुंहबोली रन्डी माँ! देख मैं कैसे तेरे प्यारे-प्यारे मुंह को अपने वीर्य से भर डालूंगा! आँहहह! ऊँहहहह!

टीना जी ने भूखों जैसे राज के लिंग को चूसना जारी रखा, और राज का उबलता गरम वीर्य उसके फड़कते लिंग के छिद्र से फूट कर बहने लगा। उनका मुँह उस गाढ़े नमकीन दव से भर गया और टीना जी ने अपने अनुभव का प्रयोग कर बड़ी कठिनायी से जल्दी-जल्दी निगल कर उसे अपने होठों पर से बाहर छलकने से रोका।

“ऊ ऊहहह उँऊहहह! या भगवान! मादरचोद! ऊपर वाले! आहहहहह, चूस, हरामजादी लन्ड - चूसन कुतिया ! ऐंह: ऐंहहह' ले मेरे लन्ड का वीर्य! मुझे बेटा कहा है तो मेरी मम्मी जैसी ही पीती जा मेरे लन्ड से इस वीर्य को! आँहहहहहहः' दिखा कितना लाड़ करती है अपने बेटे को तू ! अः : ‘आँहहहहः :: चूसती जा हरामजादी मम्मी, अभी और माल निकलेगा इन मजबूत टट्टों से! ऍहह'ऍहह !”

“आँहहहह चूस कुतिया, ऊपर वाले ने तुझे तेरी ममता का सवाब दिया है! ऐंहहह ... पी जा, पी जा, देख तेरा मुँहबोला बेटा तेरे मुँह में अपने लन्ड से वीर्य उडेल रहा है! आँहहः ‘ऐंहः 'ऍहहह”
 
परन्तु टीना जी का अनुभवी मुंह भी उसके प्रबल प्रवाह का मुकाबला न कर सका, जब तक की राज के सशक्त वीर्य स्खलन की प्रक्रिया थमने लगी, टीना जी के मुँह के कोनों से मलाईदार वीर्य की अनेक धारायें बाहर टपकने लगी थीं। एक सैकन्ड के लिये टीना जी ने अपने होठों को उसके लिंग से अलग किया और होठों पर अपनी जीभ फेरकर वीर्य चाटा। फिर हौले-हौले उसके लिंग को चूसना तब तक जारी रखा, जब तक उनके मुँह में उसका लिंग पुनः जागृत न होने लगा।

“हे ईश्वर, ऐसे जवान लौड़ों की ही तो मैं दीवानी हूँ !” टीना जी के मन में यह विचार उठा, और राज के तीव्रता से पुनर्जागृत होते लिंग की मोटाई से ठुसे उनके मुँह पर एक मुस्कान छाने लगी।

100 तीन तिलंगे

इस दौरान जैकूजी में रजनी जी और सोनिया नवयुवा जय के संग प्रणय लीला में मगन थे और उसे अविस्मरणीय कामानन्द प्रदान कर रहे थे। लड़का टब में अपनी पीठ के बल लेटा हुआ था और उसकी बहन की कोमल योनि उसके मुख पर सपटी हुई थी। उधर मोहतरमा रजनी शर्मा जी सोनिया की ओर मुंह कर अपनी योनि को जय के तने हुए लिंग पर ऊपर से नीचे कुदा रही थीं।

“अममम, देखिये आँटी, मेरा बहनचोद भाई कैसे मस्ती से चूत चाटता है !” सोनिया ने उखड़ी साँसों के बीच कहा, उसकी कंपकंपाती योनि अपने भाई की जिह्वा के प्रतिवादस्वरूप दमकती गर्माहट बिखेरने लगी। । “ओहहहह, हाँ जय! मुझे चूसो भैया! मुझे चूसो और आँटी को चोदो भैया! ऊऊहहह, देखिये आँटी साला रन्डी की औलाद कैसे हम दोनो के मजे ले रहा है! बहनचोद, उचका अपने चूतड़, चोद रजनी आँटी की चूत को, माँ के पिल्ले !” ।

“ओहहह, या ऊपर वाले, दे मार कस के अंदर, जय !” रजनी जी उत्तर में कराहीं, उन्होंने अपनी जाँघों को जरा फैला कर अपनी योनि के भीतर उसकी कड़क और लम्बी छड़ के एक और अंश को निगल लिया। “सोनिया बेटी, तेरे बहनचोद भाई ने पहलवान का लन्ड पाया है! देख ना, अपनी माँ का दूध पी-पी कर साले का लन्ड कैसा तगड़ा हो चुका है! ओहहह, जय, तेरा ये मुस्टन्डा लन्ड तो अब मुझे झड़ा कर ही छोड़ेगा !” । |

सोनिया ने अपनी आँखों के समक्ष रजनी जी के स्तनों को लुभावने अंदाज में झूमते हुए देखा तो आगे जुखकर वयस्का के निप्पलों को चूसना आरम्भ कर दिया। कितना रोमांचकारी था यह अनुभव, एक ओर उसके बड़े भैया' उसकी योनि को चूस रहे थे, तो दूसरी ओर रजनी आँटी के साथ सम्भोग कर रहे थे। जैसे वो रजनी जी के स्तनों को निचोड़- निचोड़ कर चूसने लगी, सोनिया ने अचानक अपने कल्पनालोक में स्वयं को अपनी माँ के साथ इसी मुद्रा में यही क्रिया अपने पिता के ऊपर बैठकर करते हुए देखा। इस विचार मात्र से उसकी कोमल योनि अपने भाई के मुँह में मादा द्रवों का संचार करने लगी।

ऊँहहह! आहहहहह !” रजनी जी चीख पड़ीं, और अनियंत्रित जुनून का प्रदर्शन करती हुईं ऐंठती हुई अपने कूल्हों को ऊपर से नीचे झटकने लगीं। वे अपनी योनि को निर्ममता से जय के जकड़े हुए लिंग पर उठा-उठा कर मारने लगीं। “ओ मेरे ऊपर वाले, जय, घुसा अंदर बेटा! चोद मुझे कस के, मेरे पहलवान लड़के! उम्मममम ! वाह! अब गया रन्डी की औलाद तेरा लन्ड चूत के अंदर !”
 
“ओ मेरे ऊपर वाले, जय, घुसा अंदर बेटा! चोद मुझे कस के, मेरे पहलवान लड़के! उम्मममम ! वाह! अब गया रन्डी की औलाद तेरा लन्ड चूत के अंदर !”

चूस इसे बहनचोद! चाट मेरी चूत की मलाई, जय!” सोनिया कराह उठी और अपनी किशोर योनि को अपने भाई के मुंह पर अत्यंत उग्रतापूर्वक दबा-दबा कर ठूसने लगी। ममम्म, घुसा मेरी चूत में अपनी जीभ और चाट कर साफ़ कर ले, बड़े भैया! ऊ ऊ ऊह! आँटी फुर्सत में चटवाईयेगा मेरे भाई से अपनी चूत को! साला खानदानी चूत - चटोरा है !” ।

जय दो क्रुद्ध और कामोत्तेजित योनियों के बीच कुचला हुआ था। उसने अपनी इंद्रीय कामनाओं पर अपने नियंत्रण को त्याग दिया और अपनी देह को कामानन्द की लहरों के थपेड़ों में स्वतः बहने दिया। जय ने सोनिया के जवाँ नितम्बों को अपने हाथों में दबोचा, और अपने कूल्हों को उछालता हुआ अपने लिंग को रजनी जी की रौन्दती योनि के भीतर पीटने लगा। साथ के साथ वो अपनी जिह्वा को अपनी बहन की गुलाबी रंग की तंग योनि के भीतर टटोलता हुआ लपलपाने लगा। । हालांकि उसने त्रिकोणीय सम्भोग का पहले कभी अनुभव नहीं किया था, फिर भी जय अपनी प्राकृतिक काम ऊर्जा द्वारा दोनो मादाओं की तन की प्यास को तृप्त कर पाया था।

उसकी जिह्वा और लिंग स्वतंत्र रूप से क्रियान्वित थे और जिस मादा के साथ काम-क्रीड़ा में संलग्न थे, उसी के साथ तालमेल बैठा कर हरकत कर रहे थे। सोनिया की तप्त योनि का स्वाद तथा सुगन्धि, और उसके संग रजनी जी की आतुर योनि की लिसलिसी जकड़न उसकी अनुभूतियों को इस कदर उत्तेजित कर रही थीं कि जल्द ही कामोन्माद का एक गुबार उसके युवा बदन में एक तूफ़ान जैसा उठने लगा। जय हिंसक रीति से उचकता हुआ रजनी जी की फुदकती योनि में अपने लिंग से मैथुन कर रहा था, और साथ में अपनी जिह्वा को अकड़ा कर सोनिया की कोमल कुलबुलाती कामगुहा में घोंपता जा रहा था।

तीनो के तीनो जोर-जोर से कराह रहे थे। रजनी जी ने अपनी कंपकंपाती योनि के भीतर जय के ऑरगैस्म को पनपते हुए आभास किया। उन्होंने वासना भरी एक हुंकार भरी और सोनिया के मुँह को अपने मुंह पर खींच कर अत्यंत भावावेश से किशोरी का चुम्बन लेते हुए अपनी ऑरगैस्म पाती योनि को किशोर जय के फड़कते और थूकते लिंग पर मसलने लगीं। सोनिया ने भी उनके साथ-साथ अपने शीर्ष आनन्द को प्राप्त किया, और अपनी जिह्वा को रजनी जी के तप्त मुँह में गहरा घुसेड़ कर अपने भाई के मुंह पर अपनी जवान योनि से मादा दवों का छिड़काव करने लगी।
 
तीनो के तीनो जोर-जोर से कराह रहे थे। रजनी जी ने अपनी कंपकंपाती योनि के भीतर जय के ऑरगैस्म को पनपते हुए आभास किया। उन्होंने वासना भरी एक हुंकार भरी और सोनिया के मुँह को अपने मुंह पर खींच कर अत्यंत भावावेश से किशोरी का चुम्बन लेते हुए अपनी ऑरगैस्म पाती योनि को किशोर जय के फड़कते और थूकते लिंग पर मसलने लगीं। सोनिया ने भी उनके साथ-साथ अपने शीर्ष आनन्द को प्राप्त किया, और अपनी जिह्वा को रजनी जी के तप्त मुँह में गहरा घुसेड़ कर अपने भाई के मुंह पर अपनी जवान योनि से मादा दवों का छिड़काव करने लगी।

रजनी जी की कम्पायमान योनि के भीतर वीर्य की अंतिम बून्दों को स्खलित करने के कई मिनट बाद तक जय के लिंग ने बेतहाशा फड़क - फड़क कर फुदकना जारी रखा। रजनी जी कराहीं, वे अति आह्लाद से अपनी कसमसाती योनि की प्रत्येक फड़कन का भरपूर आनन्द उठा रही थीं। अपने दैहिक आनन्द के प्रभाववश उन्होंने अपनी लाज को त्याग दिया था, और मुख से किलकारियाँ निकालती हुई बेहूदी व अभद्र तिप्पणियाँ कर रही थीं। वे अपनी योनि को आगे और पीछे झुलातीं, फिर दायें -बायें कूटतीं और अपनी काम-गुहा को बड़ी अदा से जय । के मोटे स्तम्भ की सम्पूर्ण लम्बाई पर ऊपर से नीचे तक फिसलातीं।

सोनिया भी ऐसे ही अनुभव से गुजर रही थी, कोई अंतर था तो बस इतना ही जय की जिह्वा शीथील नहीं परी थी, वो अब भी कुशलतापूर्वक बहन की योनि पर मैथुनरत थी। सोनिया की काम अनुभूतियाँ मुख्यतय उसकी योनि के चोंचले पर केन्द्रित थीं, और अपने चरमानन्द के शीर्ष की घड़ी में उसने धीरे से खिसक कर अपने संवेदनशील चोंचले को उसकी निरन्तर मैथुन करती जिह्वा के ऐन विपरीत ला टेका था।

जय ने स्वाभाविक रूप से उसकी मनोकामना को जान लिया और उसकी बहन को जो चाहिये था, वही किया। उसकी कामेन्द्रियों के केन्द्रीय बिन्दू पर उसने अपनी जिह्वा से सहलाना प्रारम्भ कर दिया। सोनिया के सूजे हुए चोंचले पर वो अपनी जिह्वा को आगे-पीछे घसीटता गया जब तक कि दैहिक आनन्द की अनुभूतियों की प्रचण्डता उसकी बर्दाश्त के बाहर नहीं हो गयी।

“ऊ ऊहहह, जय भैया। और मत तड़पाओ मुझ बेचारी को !” वो कराही, और अपनी पीठ को तना कर कस के अपनी योनि को उसके चेहरे पर रौन्दने लगी।

रजनी जी आगे की ओर झुकीं, उन्होंने जय के युवा लिंग पर अपनी योनि की सशक्त गिरफ़्त का कब्जा बरकरार रखा, और सोनिया के होठों का कामुक चुम्बन लिया। उन्होंने किशोरी के नारंगी जैसे स्तनों को निचोड़कर सहलाया। दोनो मादाओं की देह हौले-हौले जय के ऊपर कसमसा रही थीं, और वे अपने ऑरगैस्म के उपरांत की मधुर सुखद अनुभूतियों का आनन्द उठा रहे थे। |

ऑरगैस्म के लम्बे सिलसिले का आनन्द ले लेने के पश्चात जय का नवयौवन और पौरुष भी अब शीथील पड़ने लगा था, और उसका लिंग कुम्हला कर ढीला पड़ा और धीरे से रजनी जी की योनि से निकल बाहर हुआ। मारे थकान के वो हाँफ़ता हुआ आँखें मून्द कर लेट गया।

“बरखुरदार, लगता है इस बेचारे की तो चोदते - चोदते हवा निकल गयी, क्यों सोनिया ?”, रजनी जी मुस्कुरायीं , और छेड़खानी करती हुई अपनी उंगलियों को जय के शीथील लिंग पर फेरते हुए बोलीं।

“हाँ आँटी! आखिर दुनिया में कितने ऐसे लड़के होंगे जिन्हें इस उमर में इतनी चूतों के हमले को झेलने का नसीब हुआ हो :- मैने ठीक कहा जय?”, सोनिया खिलखिला पड़ी।
 
“सच सोनिया, ऐसी गरम पटाखेदार चूतों को झेलना बड़ा मुश्किल है।” जय पलट कर अपनी छोटी बहन की ओर मुड़ा और उसने उत्तर दिया। “भई मुझे तो आँखों देखी पर यक़ीन नहीं होता! लगता है सपना देख रहा हूँ, बस जागने का मन नहीं करता !”

“सपना नहीं, ये सच है भैया!”, सोनिया ने उत्तर दिया, वो उसके लिंग को रजनी जी की कुशल उंगलियों के तले पुनः जीवित होते देख रही थी। “और बड़े भैया, ध्यान रखिये, आज के बाद आपको टिपटॉप कन्डीशन में रहना है। क्योंकि अब आपको अपना दमखम दिखाने के ऐसे कईं मौके मिलेंगे !” ।

“बाद दमखम की निकली है तो,” रजनी जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “क्यों न हम बाहर जाकर देखें कि बाक़ी लोग क्या हरकतें कर रहे हैं।

हाँ!”, जय ने स्वीकृति भरी। “अब भाई मुझे तो तुम दोनो ने इतना थका डाला कि मुझे दो घड़ी दम लेने की सख्त जरूरत है।”

“ममममम! जनाब जरूर आराम फ़र्माइये, पर कहीं हमें भुला न बैठियेगा! समझे मेरे पहलवान, तुझे तेरी रन्डी माँ का तक़ाजा है !” रजनी जी ने ऐसा कह कर जय के अर्ध-तैनात लिंग को प्रेम से निचोड़ दिया।

तीनो नग्नावस्था में ही एक दूसरे के गले में बाहें डाले जैकूजी से निकल पड़े और फ़ार्महाउस के भीतर को चल पड़े।

101 सिंह और सिंहनी जैसे तीनो स्विमिंग पूल के निकट से गुजरे, उन्होंने उसे खाली पाया। लगता था मिस्टर शर्मा और डॉली ने फ़ार्महाउस के भीतर आरामदेह स्थान का चयन किया था। बाक़ी के लोग ड्राइंग रूम में रंगरेलियाँ मना रहे थे।

“आइये, आइये, बस आप तीनों की ही कमी थी यहाँ!”, टीना जी ने हँस कर उनका स्वागत किया, वे अपने पुत्र के आधे तने हुए लिंग को खुल्लम-खुल्ला घूर रही थीं। । हालांकि वे राज के लिंग को अब भी अपनी योनि की गहराई में ग्रहण किये हुए थीं, फिर भी टीना जी अपने सौन्दर्यवान पुत्र के प्रति प्रचण्ड वासना का अनुभव कर रही थीं। इस तथ्य के ज्ञान -मात्र से, कि उनके सुन्दर बलिष्ठ पुत्र ने निश्चय ही अभी-अभी सोनिया और रजनी जी के संग सम्भोग सम्पन्न किया था, उनकी योनि बेलगाम हवस के मारे फड़कने लगी। उन्होंने अपनी योनि को राज के ढीले लिंग पर से खींच निकाला और हाथों में जय के हाथ को लेकर उठ खड़ी हुईं।

“आजा, मेरे लाल, टीना जी ने गुर्रा कर कहा, और अपने नग्न पुत्र को कमरे के खाली भाग की ओर खीं ले चलीं। “मम्मी को बड़ी खुजली हो रही है, जिसका इलाज बस तेरे पास है !”

रजनी जी, सोफ़े पर लेट कर कामुकतापूर्वक एक दूसरे का चुम्बन लेते हुए मिस्टर शर्मा और डॉली के निकाट जाकर बैठ गयीं और अपनी उंगलियों को मिस्टर शर्मा के वज्र से कठोर लिंग पर लपेट डाला।
 
सोनिया ने भी उनके साथ-साथ अपने शीर्ष आनन्द को प्राप्त किया, और अपनी जिह्वा को रजनी जी के तप्त मुँह में गहरा घुसेड़ कर अपने भाई के मुंह पर अपनी जवान योनि से मादा दवों का छिड़काव करने लगी।

रजनी जी की कम्पायमान योनि के भीतर वीर्य की अंतिम बून्दों को स्खलित करने के कई मिनट बाद तक जय के लिंग ने बेतहाशा फड़क - फड़क कर फुदकना जारी रखा। रजनी जी कराहीं, वे अति आह्लाद से अपनी कसमसाती योनि की प्रत्येक फड़कन का भरपूर आनन्द उठा रही थीं। अपने दैहिक आनन्द के प्रभाववश उन्होंने अपनी लाज को त्याग दिया था, और मुख से किलकारियाँ निकालती हुई बेहूदी व अभद्र तिप्पणियाँ कर रही थीं। वे अपनी योनि को आगे और पीछे झुलातीं, फिर दायें -बायें कूटतीं और अपनी काम-गुहा को बड़ी अदा से जय । के मोटे स्तम्भ की सम्पूर्ण लम्बाई पर ऊपर से नीचे तक फिसलातीं।

सोनिया भी ऐसे ही अनुभव से गुजर रही थी, कोई अंतर था तो बस इतना ही जय की जिह्वा शीथील नहीं परी थी, वो अब भी कुशलतापूर्वक बहन की योनि पर मैथुनरत थी। सोनिया की काम अनुभूतियाँ मुख्यतय उसकी योनि के चोंचले पर केन्द्रित थीं, और अपने चरमानन्द के शीर्ष की घड़ी में उसने धीरे से खिसक कर अपने संवेदनशील चोंचले को उसकी निरन्तर मैथुन करती जिह्वा के ऐन विपरीत ला टेका था।

जय ने स्वाभाविक रूप से उसकी मनोकामना को जान लिया और उसकी बहन को जो चाहिये था, वही किया। उसकी कामेन्द्रियों के केन्द्रीय बिन्दू पर उसने अपनी जिह्वा से सहलाना प्रारम्भ कर दिया। सोनिया के सूजे हुए चोंचले पर वो अपनी जिह्वा को आगे-पीछे घसीटता गया जब तक कि दैहिक आनन्द की अनुभूतियों की प्रचण्डता उसकी बर्दाश्त के बाहर नहीं हो गयी।

“ऊ ऊहहह, जय भैया। और मत तड़पाओ मुझ बेचारी को !” वो कराही, और अपनी पीठ को तना कर कस के अपनी योनि को उसके चेहरे पर रौन्दने लगी।

रजनी जी आगे की ओर झुकीं, उन्होंने जय के युवा लिंग पर अपनी योनि की सशक्त गिरफ़्त का कब्जा बरकरार रखा, और सोनिया के होठों का कामुक चुम्बन लिया। उन्होंने किशोरी के नारंगी जैसे स्तनों को निचोड़कर सहलाया। दोनो मादाओं की देह हौले-हौले जय के ऊपर कसमसा रही थीं, और वे अपने ऑरगैस्म के उपरांत की मधुर सुखद अनुभूतियों का आनन्द उठा रहे थे। | ऑरगैस्म के लम्बे सिलसिले का आनन्द ले लेने के पश्चात जय का नवयौवन और पौरुष भी अब शीथील पड़ने लगा था, और उसका लिंग कुम्हला कर ढीला पड़ा और धीरे से रजनी जी की योनि से निकल बाहर हुआ। मारे थकान के वो हाँफ़ता हुआ आँखें मून्द कर लेट गया।
 
“बरखुरदार, लगता है इस बेचारे की तो चोदते - चोदते हवा निकल गयी, क्यों सोनिया ?”, रजनी जी मुस्कुरायीं , और छेड़खानी करती हुई अपनी उंगलियों को जय के शीथील लिंग पर फेरते हुए बोलीं।

“हाँ आँटी! आखिर दुनिया में कितने ऐसे लड़के होंगे जिन्हें इस उमर में इतनी चूतों के हमले को झेलने का नसीब हुआ हो :- मैने ठीक कहा जय?”, सोनिया खिलखिला पड़ी।

“सच सोनिया, ऐसी गरम पटाखेदार चूतों को झेलना बड़ा मुश्किल है।” जय पलट कर अपनी छोटी बहन की ओर मुड़ा और उसने उत्तर दिया। “भई मुझे तो आँखों देखी पर यक़ीन नहीं होता! लगता है सपना देख रहा हूँ, बस जागने का मन नहीं करता !”

“सपना नहीं, ये सच है भैया!”, सोनिया ने उत्तर दिया, वो उसके लिंग को रजनी जी की कुशल उंगलियों के तले पुनः जीवित होते देख रही थी। “और बड़े भैया, ध्यान रखिये, आज के बाद आपको टिपटॉप कन्डीशन में रहना है। क्योंकि अब आपको अपना दमखम दिखाने के ऐसे कईं मौके मिलेंगे !” ।

“बाद दमखम की निकली है तो,” रजनी जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “क्यों न हम बाहर जाकर देखें कि बाक़ी लोग क्या हरकतें कर रहे हैं।

हाँ!”, जय ने स्वीकृति भरी। “अब भाई मुझे तो तुम दोनो ने इतना थका डाला कि मुझे दो घड़ी दम लेने की सख्त जरूरत है।”

“ममममम! जनाब जरूर आराम फ़र्माइये, पर कहीं हमें भुला न बैठियेगा! समझे मेरे पहलवान, तुझे तेरी रन्डी माँ का तक़ाजा है !” रजनी जी ने ऐसा कह कर जय के अर्ध-तैनात लिंग को प्रेम से निचोड़ दिया।

तीनो नग्नावस्था में ही एक दूसरे के गले में बाहें डाले जैकूजी से निकल पड़े और फ़ार्महाउस के भीतर को चल पड़े।

जैसे तीनो स्विमिंग पूल के निकट से गुजरे, उन्होंने उसे खाली पाया। लगता था मिस्टर शर्मा और डॉली ने फ़ार्महाउस के भीतर आरामदेह स्थान का चयन किया था। बाक़ी के लोग ड्राइंग रूम में रंगरेलियाँ मना रहे थे।

“आइये, आइये, बस आप तीनों की ही कमी थी यहाँ!”, टीना जी ने हँस कर उनका स्वागत किया, वे अपने पुत्र के आधे तने हुए लिंग को खुल्लम-खुल्ला घूर रही थीं। । हालांकि वे राज के लिंग को अब भी अपनी योनि की गहराई में ग्रहण किये हुए थीं, फिर भी टीना जी अपने सौन्दर्यवान पुत्र के प्रति प्रचण्ड वासना का अनुभव कर रही थीं। इस तथ्य के ज्ञान -मात्र से, कि उनके सुन्दर बलिष्ठ पुत्र ने निश्चय ही अभी-अभी सोनिया और रजनी जी के संग सम्भोग सम्पन्न किया था, उनकी योनि बेलगाम हवस के मारे फड़कने लगी। उन्होंने अपनी योनि को राज के ढीले लिंग पर से खींच निकाला और हाथों में जय के हाथ को लेकर उठ खड़ी हुईं।

“आजा, मेरे लाल, टीना जी ने गुर्रा कर कहा, और अपने नग्न पुत्र को कमरे के खाली भाग की ओर खीं ले चलीं। “मम्मी को बड़ी खुजली हो रही है, जिसका इलाज बस तेरे पास है !”

रजनी जी, सोफ़े पर लेट कर कामुकतापूर्वक एक दूसरे का चुम्बन लेते हुए मिस्टर शर्मा और डॉली के निकाट जाकर बैठ गयीं और अपनी उंगलियों को मिस्टर शर्मा के वज्र से कठोर लिंग पर लपेट डाला।

“आदाब अर्ज है, शर्मा जी !”, वे उनके कान में फुसफुसायीं। मिस्टर शर्मा ने अपने होठों को डॉली के होठों से अलग किया और उसकी मम्मी की दिशा में मुड़ गये।।

“जहे नसीब, रजनी जी ? आपको मेरा भी आदाब !” वे हँस पड़े, और अपने बायें हाथ को नीचे रजनी जी की पटी हुई जाँघों के बीच सरकाने लगे। उन्होंने अपनी एक उंगली को उस स्त्री की पटी हुई कामगुहा में घुसाया और लगे उनके चोंचले को रगड़ने । उनका दायाँ हाथ डॉली की तप्त किशोर योनि से खेलने में व्यस्त था। मिस्टर शर्मा माँ-बेटी पर एक ही समय हस्त-मैथुन कर रहे थे। रजनी जी ने कराह कर अपने नरम कोमल होठों को मिस्टर शर्मा के होठों पर सटा दिया। जब वे आवेशपूर्वक चुम्बन कर रहे थे, डॉली ने अपने सर को मिस्टर शर्मा की टाँगों के बीच घुसेड़ा और उनके विशाल लिंग को अपने मुख में ग्रहण कर, उत्सुकता से लगी चूसने।।
 
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