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- Dec 5, 2013
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डॉली ने दोनों चीजें सावधानी से अपने हाथ में ले ली। 'देखना, कहीं मुझे पछताना न पड़े!'
"ऐसा कभी हो सकता है?'
सीढ़िया उतरकर दोनों सड़क पर आ गए। वहां शामू कार लिए खड़ा था। डॉली ने कागज जल्दी से कार में फेंक दिए और दरवाजा खोला। पिछली सीट पर सेठ साहब भी बैठे थे।
राज को आश्चर्य हुआ और बोला, 'आप भी साथ ही थे क्या ?'
‘जी! परंतु इन्होंने ऊपर जाना उचित न समझा।' डॉली ने कहा।
'क्यों?'
'इसका उत्तर देने की आवश्यकता नहीं।' वह अगली सीट पर बैठ गई और शामू से कार चलाने के लिए कहा।
डॉली के तेवर बदलते देख राज ने कहा, 'अभिनय करना तो बहुत अच्छा जानती हो।' उसके स्वर में पहले जैसी गरमी थी और वह मुस्करा रहा था।
'राज अब अच्छा यही है कि तुम हमारे रास्ते से हट जाओ।' सेठ साहब ने कहा।
'इतनी आसानी से!'
'शामू कार चलाओ!'
'शामू एक मिनट ठहरना। डैडी, यदि आज्ञा हो तो एक निवेदन कर दूं।' राज बोला।
"क्या ?'
"एक बार डिब्बा और लिफाफा खोलकर देख लीजिए कि सारे कागज उसमें आ गए या नहीं?'
सेठ साहब ने पहले राज के चेहरे को देखा और फिर जल्दी से डिब्बे का ढकना उतार दिया। लिफाफे में से कागज निकाले तो होटल वाले पुराने बिल निकले। सेठ साहब के चेहरे का रंग उड़ गया।
राज अभी तक मुस्करा रहा था।
'चार सौ बीस।' सेठ साहब के मुंह से धीरे-से निकला।
'परंतु अपने गुरु से कम।'
डॉली अब तक मोटर में बैठी यह सब देख रही थी। उसका चेहरा पीला-सा पड़ गया था।
-
'अच्छा नमस्ते।' यह कह राज होटल की ओर मुड़ा।
'राज।' डॉली ने आवाज दी।
राज मुड़ा और उसके पास आकर बोला. 'आज्ञा है?'
'आखिर जीत तुम्हारी ही हुई।'
राज ने देखा, डॉली की आंखों में आंसू थे। इसके पहले कि राज उत्तर दे, शामू ने कार चला दी। राज सड़क के किनारे खड़ा का खड़ा रह गया।
"ऐसा कभी हो सकता है?'
सीढ़िया उतरकर दोनों सड़क पर आ गए। वहां शामू कार लिए खड़ा था। डॉली ने कागज जल्दी से कार में फेंक दिए और दरवाजा खोला। पिछली सीट पर सेठ साहब भी बैठे थे।
राज को आश्चर्य हुआ और बोला, 'आप भी साथ ही थे क्या ?'
‘जी! परंतु इन्होंने ऊपर जाना उचित न समझा।' डॉली ने कहा।
'क्यों?'
'इसका उत्तर देने की आवश्यकता नहीं।' वह अगली सीट पर बैठ गई और शामू से कार चलाने के लिए कहा।
डॉली के तेवर बदलते देख राज ने कहा, 'अभिनय करना तो बहुत अच्छा जानती हो।' उसके स्वर में पहले जैसी गरमी थी और वह मुस्करा रहा था।
'राज अब अच्छा यही है कि तुम हमारे रास्ते से हट जाओ।' सेठ साहब ने कहा।
'इतनी आसानी से!'
'शामू कार चलाओ!'
'शामू एक मिनट ठहरना। डैडी, यदि आज्ञा हो तो एक निवेदन कर दूं।' राज बोला।
"क्या ?'
"एक बार डिब्बा और लिफाफा खोलकर देख लीजिए कि सारे कागज उसमें आ गए या नहीं?'
सेठ साहब ने पहले राज के चेहरे को देखा और फिर जल्दी से डिब्बे का ढकना उतार दिया। लिफाफे में से कागज निकाले तो होटल वाले पुराने बिल निकले। सेठ साहब के चेहरे का रंग उड़ गया।
राज अभी तक मुस्करा रहा था।
'चार सौ बीस।' सेठ साहब के मुंह से धीरे-से निकला।
'परंतु अपने गुरु से कम।'
डॉली अब तक मोटर में बैठी यह सब देख रही थी। उसका चेहरा पीला-सा पड़ गया था।
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'अच्छा नमस्ते।' यह कह राज होटल की ओर मुड़ा।
'राज।' डॉली ने आवाज दी।
राज मुड़ा और उसके पास आकर बोला. 'आज्ञा है?'
'आखिर जीत तुम्हारी ही हुई।'
राज ने देखा, डॉली की आंखों में आंसू थे। इसके पहले कि राज उत्तर दे, शामू ने कार चला दी। राज सड़क के किनारे खड़ा का खड़ा रह गया।