hotaks444
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अमन-“हाँ मेरी बच्ची, मेरी सोफिया, मेरी रज़िया की निशानी, आ जा अपने अब्बू से चिपक जा… तू मेरी है सोफिया गलप्प्प…”
सोफिया-“हाँ अब्बू आपकी। मुझे अपने अब्बू से प्यार करने की इस गुनाह की सजा दो… मुझे सजा दो अब्बू … मुझे इतना प्यार करो कि मैं आज मर जाऊूँ। मेरा कुँवारा पन मेरे अब्बू आपके नाम। जवान कर दो मुझे… लड़की से औरत बना दो गलप्प्प गलप्प्प…”
वो इस कदर गरम हो चुकी थी कि उससे कुछ भी होश नहीं था कि वो क्या बोल रही है। रात भर उसकी आँख एक पल के लिए भी नहीं लगी थी। कुँवारी चूत रह-रहकर पानी निकाल रह थी। वो अपने कुँवारेपन से परेशान हो चुकी थी। आज वो अमन को अपना सब कुछ देकर उसे अपना बनाना चाहती थी।
अमन सोफिया की टीशर्ट नीचे कर देता है और निप्पल को अपने मुँह में लेकर चूसने लगता है-“गलप्प्प गलप्प्प…”
सोफिया-“अह्ह… काटो ना अब्बू , काटो इसे जोर से अह्ह…”
अमन सच में सोफिया के निप्पल को मुँह में लेकर काटने लगता है। सोफिया तिलमिला जाती है। निप्पल आज से पहले कभी इतने मोटे, इतने कड़क नहीं हुये थे। उसकी चूत पे रोंगटे खड़े हो चुके थे। जिस्म का हर एक हिस्सा अमन पे जान निछावर करने को बेताब था।
इससे पहले कि अमन सोफिया के बाकी के कपड़े उतारता उसका सेल फोन बजता है। बौखलाहट में अमन बेड से खड़ा हो जाता है और जब वो सामने वाले को हेलो कहता है तो बौखलाहट खामोशी में बदल जाती है। कुछ देर बाद जब काल डिसकनेक्ट होती है तो अमन का सारा जोश, सारा जलजला रेत के तूफान की तरह गायब हो चुका था।
सोफिया काँपते हुई आवाज़ में-क्या हुआ अब्बू ?
अमन-हम कल घर वापस जा रहे हैं।
सोफिया का चेहरा उतर जाता है-क्यूँ सब ख़ैरियत तो है?
अमन-“हाँ सब ठीक है। फॅक्टरी में कुछ प्राब्लम है। हमें कल सुबह ही जाना होगा। मैं अभी आता हूँ …” और अमन कपड़े पहनकर बाहर चला जाता है।
सोफिया अपनी किस्मत पे रोए या हँसे? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो उसी तरह आधी नंगी बेड पे बैठी रहती है।
***** *****
इधर अमन विला में शीबा जीशान के रूम का दरवाजा खटखटाकर अंदर दाखिल होती है। जीशान बेड पे लेटा हुआ था। शीबा को देखकर वो उठकर बैठ जाता है।
शीबा-क्या बात है जीशान कब से रूम में बैठे हो बाहर भी नहीं आए?
जीशान सुबह जो उसके साथ हुआ वो शीबा को बताता है।
शीबा-“क्या? अनुम ने तुमपे हाथ उठाया? उसकी इतनी हिम्मत? जलती है वो तुमसे जीशान हमेशा से तुमसे नफरत करती है। वो तो चाहती भी नहीं थी तुम्हें जनम देना। तुम जानते हो जब तुम उसके पेट में थे तो उसने ऐसी कई दवाइयाँ खाई थी जिससे अबोर्शन हो जाये और तुम दुनियाँ में ना आ सको। तुम्हारे बर्थ के बाद भी उसकी नफरत कम नहीं हुई। बेटा, वो तुम्हें कभी अपनी छाती का दूध नहीं पिलाती थी। वो तो मैं थी जिसने तुम्हें पाल-पोसकर बड़ा किया बेटा। तुम अनुम से बात भी मत करना। वो तुमसे जब इतनी नफरत करती है तो तुम उसे क्यों इतना रेस्पॉन्स देते हो? पड़े रहने दो उसे एक तरफ। तुम बस मेरे पास रहो बेटा अपनी अम्मी की बाहों में…”
जीशान जब शीबा के मुँह से ये झूठी बातें सुनता है तो उसे ये सब सच लगता है और वो उन बातों पे यकीन भी कर लेता है-“जब ऐसी बात है तो आपकी कसम अम्मी, मैं उनसे कभी बात नहीं करूँगा… कभी नहीं …”
शीबा-“शाबाश मेरा बच्चा, मुझसे तुझसे यही उम्मीद थी। अपनी अम्मी को प्यार कर जीशान बेटा अह्ह…”
जीशान शीबा की गर्दन चूमने लगता है। शीबा की आँखों में मक्कारी साफ दिखाई दे रही थी। उसे यकीन हो चला था कि वो अपने मकसद में कामयाब ज़रूर होगी।
वो अमन के कपड़े उतार देती है और खुद नीचे बैठकर अपनी नाइटी को नीचे सरका के अमन के लण्ड को पहले अपनी दोनों चुचियों के बीच में घिसती है और फिर गलप्प्प गलप्प्प।
जीशान-“अह्ह… अम्मी जीईई…”
शीबा को नंगे होने में वक्त नहीं लगता। वो जीशान को अपने जिस्म का आदी बना देना चाहती थी। वो चाहती थी कि जीशान बस उसकी चूत सूँघता हुआ कहीं से भी उसके पास चला आए। पर वो एक बात भूल गई थी कि जीशान के जिस्म में अमन का खून दौड़ रहा है।
शीबा जीशान को अपने ऊपर आने को कहती है और जब जीशान उसके ऊपर चढ़ता है तो वो दोनों हाथों में लण्ड को पकड़कर पहले चूत पे घिसता है जिससे क्लटोरस और शोर मचाने लगती है और देखते ही देखते जीशान का लण्ड शीबा की चूत में आगे पीछे होने लगता है।
शीबा-“अह्ह… जीशान बेटा, तू बस यहीं रहा कर मेरे ऊपर… ऐसे ही । तुझे किसी अनुम की बात सुनने की ज़रूरत नहीं अह्ह… मेरा बेटा अह्ह… माँ… तुझे जो चाहिए, जितना चाहिए मैं दूँगी … जब कहेगा तब दूँगी … बस तू वही कर जैसा मैं तुझसे कहती हूँ । करेगा ना बेटा? अह्ह…”
जीशान-“हाँ अम्मी, जो आप कहेंगी मैं वही करूँगा अह्ह…”
बाहर खड़ी रज़िया के कानों में ये बात पहुँच चुकी थी। रज़िया अपने रूम में जाकर बेड पे बैठ जाती है। आज बरसों बाद उसे अमन विला की मजबूत दीवारों में हल्की-हल्की दरारें पैदा होती हुई नजर आ रही थीं। वो घर की सबसे अहम और ज़िम्मेदार औरत थी। वो ये कभी नहीं होना देना चाहती थी कि एक छत के नीचे रहने वाले लोगों के दिलों के बीच नफरत और खुदगर्जी पैदा हो।
शीबा नहाकर जब किचेन की तरफ जाने लगती है, तब रज़िया उसे देखकर उसे अपने रूम में बुला लेती है, और दरवाजा बंद कर देती है।
शीबा-क्या बात है?
रज़िया-तुम ये गलत कर रही हो शीबा?
शीबा-“उफफ्फ़ हो… फिर से? नहीं अम्मी जान, ये एमोशनल अत्याचार दुबारा शुरू मत कर दो आप। मुझे पता है, मैं क्या कर रही हूँ । और वैसे भी बड़ों के नक्शे कदम पे चलने में कोई बुराई नहीं …”
रज़िया-“सुनो शीबा, सबसे पहले तो तुम मुझसे ऊूँची आवाज़ में बात करना बंद कर दो, वरना ये जो तुम्हारे जीभ है ना… इसे मैं गले से खींच लूँगी। तुम मेरी भतीजी हो, इसका मतलब ये नहीं है कि मैं तुम्हारी हर बात सुन लूँ । और हाँ मैंने और अनुम ने जो किया वो अमन की मर्ज़ी से हुआ था। पर तुम जो जेशु के साथ कर रही हो वो शायद अमन को पसंद ना आए? सोचो अगर अमन को तुम्हारे और जीशान के नाजायज रिश्तों के बारे में भनक भी लग गई… तो हो सकता है वो तुम्हें तलाक दे दे, या जान से भी मार दे। आखिरकार उसके रगों में मेरा खून दौड़ रहा है।
शीबा ये सुनकर सुन्न पड़ जाती है। हवस के नशे में वो ये बात सच में भूल ही गई थी।
रज़िया-“मैं फिर भी तुम्हें एक आख़िरी मौका देती हूँ , सुधर जाओ और अपनी ये नापाक हरकतों से बाज आ जाओ। वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। इसे धमकी समझो, वॉर्निंग नहीं …” रज़िया बाहर अनुम के रूम में चली जाती है।
शीबा दिल में सोचने लगती है-“सासूजी शायद आप ये बात भूल गई हैं कि तुरुप का पत्ता मेरे पास है, और मैं इसे जिस बात में इश्तेमाल करूँगी वो बात मेरी हो जाएगी…”
फिर शीबा जीशान के रूम की तरफ चले जाती है। वो अपने रूम में बैग पैक कर रहा था, समर कैम्प जाने के लिए। शीबा रूम में आते ही दरवाजा बंद करके बेड पे बैठ जाती है और अपना सर दोनों हाथों से पकड़ लेती है।
जीशान-“क्या बात है अम्मी आप परेशान लग रही हैं?”
शीबा-“हाँ बेटा, तुम्हारी दादी ने मुझसे अभी-अभी ये कहा है कि वो हमारे रिश्ते के बारे में तुम्हारे अब्बू को बता देंगी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा बेटा। तुम अपने अब्बू का गुस्सा तो जानते हो, वो हम दोनों को जान से मार देंगे…”
जीशान-“अम्मी आप खामखाह फिकर कर रही हैं, मैं हूँ ना आपका बेटा…”
शीबा-“हाँ जीशान, बस तुझपे ह भरोसा कर सकती हूँ । तेरी दादी का मुँह बंद करने का बस एक ही रास्ता है…”
जीशान-वो क्या अम्मी?
शीबा-“तेरे दादी का मुँह बस एक कीमत पे बंद हो सकता है। अगर तू अपना ये तेरी दादी के मुँह में डाल दे। फिर वो चाहकर भी किसी को हमारे रिश्ते के बारे में नहीं बता सकेंगी और अगर बताने की कोशिश भी करेगी तो हम इन्हें ब्लैकमेल कर सकते हैं…”
जीशान-“पर अम्मी, दादी के साथ… नहीं नहीं ये मुझे ठीक नहीं लगता…”
शीबा-“अरे बेटा, बड़ी कमीनी है तेरे दादी । जवानी में कई लण्ड खा चुकी है, तेरे दादा का, उनके दोस्तों का, तेरे अब्बू का और हाँ बेटा ये जो बिजनेस इतना बड़ा कर पाए हैं ना तेरे अब्बू , ये सब तेरी दादी के पैर खोलने से ही तो हुआ है…”
जीशान-सच अम्मी, दादी ऐसी थीं?
शीबा-“हाँ बेटा, मैं क्या तुझसे झूठ बोलूँगी भला? बोल करेगा ना मेरा ये काम? अरे जीशान तेरी दादी तो तेरे नीचे कुचलकर निहाल हो जाएगी। वो तो खुद उकता गई है तेरे अब्बू का ले लेके। एक बार वो मेरे गबरू जवान से चुद जाए… उसके बाद तुम देखना कि वो कैसे हमारी उंगलियों पे नाचती है…”
जीशान-“अम्मी, मुझे समर कैम्प से आने दो आप। उसके बाद जो आप कहोगी वही होगा…”
शीबा-“मेरा बच्चा, आ जा मेरे पास…” और दोनों के होंठ एक दूसरे में घुलते चले जाते हैं। शीबा की आँखों में चमक आ जाती है। उसे रज़िया और अनुम से अपना बदला पूरा होता हुआ दिखाई दे रहा था और अमन हमेशा हमेशा के लिए उसकी बाहो में महसूस होने लगता है।
***** *****
उधर दिल्ली के होटेल के कमरे में सोफिया बेड पे बैठी अमन का कब से इंतजार कर रही थी। कुछ देर बाद अमन रूम में दाखिल होता है, उसकी पेशानी पे रुमाल बँधा हुआ था जो आम तौर पे सर दर्द होने पे लोग बाँधते हैं।
सोफिया-अब्बू , आप ठीक तो हैं ना?
अमन-“हाँ…” बस इतना कहकर वो बेड के दूसरी तरफ लेट जाता है।
सोफिया की आग में अभी वो शिद्दत नहीं थी, पर वो अभी तक बुझी भी नहीं थी। वो अमन के ऊपर अपना एक हाथ रख देती है-“अब्बू , मैं आपका सर दबा दूँ?”
अमन-“नहीं सोफिया, सो जाओ हमें कल सुबह जल्दी जाना है…”
सोफिया की पलकें भीग जाती हैं और वो रुआंसी हो जाती है-“अब्बू , आप मुझसे ठीक से बात क्यों नहीं कर रहे हैं?”
अमन सोफिया की तरफ करवट लेते हुये-“बेटा रात बहुत हो गई है और मुझे सच में बहुत नींद भी आ रही है…”
सोफिया-“आप सो जाओ। मैं अब आपको परेशान नहीं करूँगी, कभी नहीं …”
अमन-“बस बहुत हुआ सोफिया, वरना मेरा हाथ उठ जाएगा तुमपे… पता नहीं मुझे क्या हो गया था? मुझसे गलती हो गई। आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा हमारे बीच। अब सो जाओ…”
सोफिया रोने लगती है और रोते-रोते ही अमन से बात करने लगती है-“हाँ, आपसे गलती हुई होगी और शायद आपको उस बात का मलाल भी है। पर मैं आपसे प्यार करने लगी हूँ अब्बू और ये मेरे इख्तियार में नहीं है। अब मुझे हर जगह बस आप नजर आते हैं, खाना खाने में दिल नहीं लगता, किसी काम में दिल नहीं लगता मेरा, मुझे लगने लगा है मैं शायद पागल हो जाउन्गी, और ऐसे ही घुट-घुटकर एक दिन मर भी जाउन्गी। मैं ये भी जानती हूँ कि आप भी मुझसे प्यार करते हैं… एक बेटी की तरह नहीं , बल्की ये वो मोहब्बत है… जो आपकी आँखों में मैंने देखी थी अम्मी के लिए। पर आप कभी नहीं मानेंगे क्योंकी आप सिर्फ़ अम्मी से प्यार करते हैं। मैं तो आपके लिए कुछ भी नहीं हूँ ना?”
अमन-“सोफ , इधर आ मेरे पास…”
सोफिया-“हाँ अब्बू आपकी। मुझे अपने अब्बू से प्यार करने की इस गुनाह की सजा दो… मुझे सजा दो अब्बू … मुझे इतना प्यार करो कि मैं आज मर जाऊूँ। मेरा कुँवारा पन मेरे अब्बू आपके नाम। जवान कर दो मुझे… लड़की से औरत बना दो गलप्प्प गलप्प्प…”
वो इस कदर गरम हो चुकी थी कि उससे कुछ भी होश नहीं था कि वो क्या बोल रही है। रात भर उसकी आँख एक पल के लिए भी नहीं लगी थी। कुँवारी चूत रह-रहकर पानी निकाल रह थी। वो अपने कुँवारेपन से परेशान हो चुकी थी। आज वो अमन को अपना सब कुछ देकर उसे अपना बनाना चाहती थी।
अमन सोफिया की टीशर्ट नीचे कर देता है और निप्पल को अपने मुँह में लेकर चूसने लगता है-“गलप्प्प गलप्प्प…”
सोफिया-“अह्ह… काटो ना अब्बू , काटो इसे जोर से अह्ह…”
अमन सच में सोफिया के निप्पल को मुँह में लेकर काटने लगता है। सोफिया तिलमिला जाती है। निप्पल आज से पहले कभी इतने मोटे, इतने कड़क नहीं हुये थे। उसकी चूत पे रोंगटे खड़े हो चुके थे। जिस्म का हर एक हिस्सा अमन पे जान निछावर करने को बेताब था।
इससे पहले कि अमन सोफिया के बाकी के कपड़े उतारता उसका सेल फोन बजता है। बौखलाहट में अमन बेड से खड़ा हो जाता है और जब वो सामने वाले को हेलो कहता है तो बौखलाहट खामोशी में बदल जाती है। कुछ देर बाद जब काल डिसकनेक्ट होती है तो अमन का सारा जोश, सारा जलजला रेत के तूफान की तरह गायब हो चुका था।
सोफिया काँपते हुई आवाज़ में-क्या हुआ अब्बू ?
अमन-हम कल घर वापस जा रहे हैं।
सोफिया का चेहरा उतर जाता है-क्यूँ सब ख़ैरियत तो है?
अमन-“हाँ सब ठीक है। फॅक्टरी में कुछ प्राब्लम है। हमें कल सुबह ही जाना होगा। मैं अभी आता हूँ …” और अमन कपड़े पहनकर बाहर चला जाता है।
सोफिया अपनी किस्मत पे रोए या हँसे? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो उसी तरह आधी नंगी बेड पे बैठी रहती है।
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इधर अमन विला में शीबा जीशान के रूम का दरवाजा खटखटाकर अंदर दाखिल होती है। जीशान बेड पे लेटा हुआ था। शीबा को देखकर वो उठकर बैठ जाता है।
शीबा-क्या बात है जीशान कब से रूम में बैठे हो बाहर भी नहीं आए?
जीशान सुबह जो उसके साथ हुआ वो शीबा को बताता है।
शीबा-“क्या? अनुम ने तुमपे हाथ उठाया? उसकी इतनी हिम्मत? जलती है वो तुमसे जीशान हमेशा से तुमसे नफरत करती है। वो तो चाहती भी नहीं थी तुम्हें जनम देना। तुम जानते हो जब तुम उसके पेट में थे तो उसने ऐसी कई दवाइयाँ खाई थी जिससे अबोर्शन हो जाये और तुम दुनियाँ में ना आ सको। तुम्हारे बर्थ के बाद भी उसकी नफरत कम नहीं हुई। बेटा, वो तुम्हें कभी अपनी छाती का दूध नहीं पिलाती थी। वो तो मैं थी जिसने तुम्हें पाल-पोसकर बड़ा किया बेटा। तुम अनुम से बात भी मत करना। वो तुमसे जब इतनी नफरत करती है तो तुम उसे क्यों इतना रेस्पॉन्स देते हो? पड़े रहने दो उसे एक तरफ। तुम बस मेरे पास रहो बेटा अपनी अम्मी की बाहों में…”
जीशान जब शीबा के मुँह से ये झूठी बातें सुनता है तो उसे ये सब सच लगता है और वो उन बातों पे यकीन भी कर लेता है-“जब ऐसी बात है तो आपकी कसम अम्मी, मैं उनसे कभी बात नहीं करूँगा… कभी नहीं …”
शीबा-“शाबाश मेरा बच्चा, मुझसे तुझसे यही उम्मीद थी। अपनी अम्मी को प्यार कर जीशान बेटा अह्ह…”
जीशान शीबा की गर्दन चूमने लगता है। शीबा की आँखों में मक्कारी साफ दिखाई दे रही थी। उसे यकीन हो चला था कि वो अपने मकसद में कामयाब ज़रूर होगी।
वो अमन के कपड़े उतार देती है और खुद नीचे बैठकर अपनी नाइटी को नीचे सरका के अमन के लण्ड को पहले अपनी दोनों चुचियों के बीच में घिसती है और फिर गलप्प्प गलप्प्प।
जीशान-“अह्ह… अम्मी जीईई…”
शीबा को नंगे होने में वक्त नहीं लगता। वो जीशान को अपने जिस्म का आदी बना देना चाहती थी। वो चाहती थी कि जीशान बस उसकी चूत सूँघता हुआ कहीं से भी उसके पास चला आए। पर वो एक बात भूल गई थी कि जीशान के जिस्म में अमन का खून दौड़ रहा है।
शीबा जीशान को अपने ऊपर आने को कहती है और जब जीशान उसके ऊपर चढ़ता है तो वो दोनों हाथों में लण्ड को पकड़कर पहले चूत पे घिसता है जिससे क्लटोरस और शोर मचाने लगती है और देखते ही देखते जीशान का लण्ड शीबा की चूत में आगे पीछे होने लगता है।
शीबा-“अह्ह… जीशान बेटा, तू बस यहीं रहा कर मेरे ऊपर… ऐसे ही । तुझे किसी अनुम की बात सुनने की ज़रूरत नहीं अह्ह… मेरा बेटा अह्ह… माँ… तुझे जो चाहिए, जितना चाहिए मैं दूँगी … जब कहेगा तब दूँगी … बस तू वही कर जैसा मैं तुझसे कहती हूँ । करेगा ना बेटा? अह्ह…”
जीशान-“हाँ अम्मी, जो आप कहेंगी मैं वही करूँगा अह्ह…”
बाहर खड़ी रज़िया के कानों में ये बात पहुँच चुकी थी। रज़िया अपने रूम में जाकर बेड पे बैठ जाती है। आज बरसों बाद उसे अमन विला की मजबूत दीवारों में हल्की-हल्की दरारें पैदा होती हुई नजर आ रही थीं। वो घर की सबसे अहम और ज़िम्मेदार औरत थी। वो ये कभी नहीं होना देना चाहती थी कि एक छत के नीचे रहने वाले लोगों के दिलों के बीच नफरत और खुदगर्जी पैदा हो।
शीबा नहाकर जब किचेन की तरफ जाने लगती है, तब रज़िया उसे देखकर उसे अपने रूम में बुला लेती है, और दरवाजा बंद कर देती है।
शीबा-क्या बात है?
रज़िया-तुम ये गलत कर रही हो शीबा?
शीबा-“उफफ्फ़ हो… फिर से? नहीं अम्मी जान, ये एमोशनल अत्याचार दुबारा शुरू मत कर दो आप। मुझे पता है, मैं क्या कर रही हूँ । और वैसे भी बड़ों के नक्शे कदम पे चलने में कोई बुराई नहीं …”
रज़िया-“सुनो शीबा, सबसे पहले तो तुम मुझसे ऊूँची आवाज़ में बात करना बंद कर दो, वरना ये जो तुम्हारे जीभ है ना… इसे मैं गले से खींच लूँगी। तुम मेरी भतीजी हो, इसका मतलब ये नहीं है कि मैं तुम्हारी हर बात सुन लूँ । और हाँ मैंने और अनुम ने जो किया वो अमन की मर्ज़ी से हुआ था। पर तुम जो जेशु के साथ कर रही हो वो शायद अमन को पसंद ना आए? सोचो अगर अमन को तुम्हारे और जीशान के नाजायज रिश्तों के बारे में भनक भी लग गई… तो हो सकता है वो तुम्हें तलाक दे दे, या जान से भी मार दे। आखिरकार उसके रगों में मेरा खून दौड़ रहा है।
शीबा ये सुनकर सुन्न पड़ जाती है। हवस के नशे में वो ये बात सच में भूल ही गई थी।
रज़िया-“मैं फिर भी तुम्हें एक आख़िरी मौका देती हूँ , सुधर जाओ और अपनी ये नापाक हरकतों से बाज आ जाओ। वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। इसे धमकी समझो, वॉर्निंग नहीं …” रज़िया बाहर अनुम के रूम में चली जाती है।
शीबा दिल में सोचने लगती है-“सासूजी शायद आप ये बात भूल गई हैं कि तुरुप का पत्ता मेरे पास है, और मैं इसे जिस बात में इश्तेमाल करूँगी वो बात मेरी हो जाएगी…”
फिर शीबा जीशान के रूम की तरफ चले जाती है। वो अपने रूम में बैग पैक कर रहा था, समर कैम्प जाने के लिए। शीबा रूम में आते ही दरवाजा बंद करके बेड पे बैठ जाती है और अपना सर दोनों हाथों से पकड़ लेती है।
जीशान-“क्या बात है अम्मी आप परेशान लग रही हैं?”
शीबा-“हाँ बेटा, तुम्हारी दादी ने मुझसे अभी-अभी ये कहा है कि वो हमारे रिश्ते के बारे में तुम्हारे अब्बू को बता देंगी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा बेटा। तुम अपने अब्बू का गुस्सा तो जानते हो, वो हम दोनों को जान से मार देंगे…”
जीशान-“अम्मी आप खामखाह फिकर कर रही हैं, मैं हूँ ना आपका बेटा…”
शीबा-“हाँ जीशान, बस तुझपे ह भरोसा कर सकती हूँ । तेरी दादी का मुँह बंद करने का बस एक ही रास्ता है…”
जीशान-वो क्या अम्मी?
शीबा-“तेरे दादी का मुँह बस एक कीमत पे बंद हो सकता है। अगर तू अपना ये तेरी दादी के मुँह में डाल दे। फिर वो चाहकर भी किसी को हमारे रिश्ते के बारे में नहीं बता सकेंगी और अगर बताने की कोशिश भी करेगी तो हम इन्हें ब्लैकमेल कर सकते हैं…”
जीशान-“पर अम्मी, दादी के साथ… नहीं नहीं ये मुझे ठीक नहीं लगता…”
शीबा-“अरे बेटा, बड़ी कमीनी है तेरे दादी । जवानी में कई लण्ड खा चुकी है, तेरे दादा का, उनके दोस्तों का, तेरे अब्बू का और हाँ बेटा ये जो बिजनेस इतना बड़ा कर पाए हैं ना तेरे अब्बू , ये सब तेरी दादी के पैर खोलने से ही तो हुआ है…”
जीशान-सच अम्मी, दादी ऐसी थीं?
शीबा-“हाँ बेटा, मैं क्या तुझसे झूठ बोलूँगी भला? बोल करेगा ना मेरा ये काम? अरे जीशान तेरी दादी तो तेरे नीचे कुचलकर निहाल हो जाएगी। वो तो खुद उकता गई है तेरे अब्बू का ले लेके। एक बार वो मेरे गबरू जवान से चुद जाए… उसके बाद तुम देखना कि वो कैसे हमारी उंगलियों पे नाचती है…”
जीशान-“अम्मी, मुझे समर कैम्प से आने दो आप। उसके बाद जो आप कहोगी वही होगा…”
शीबा-“मेरा बच्चा, आ जा मेरे पास…” और दोनों के होंठ एक दूसरे में घुलते चले जाते हैं। शीबा की आँखों में चमक आ जाती है। उसे रज़िया और अनुम से अपना बदला पूरा होता हुआ दिखाई दे रहा था और अमन हमेशा हमेशा के लिए उसकी बाहो में महसूस होने लगता है।
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उधर दिल्ली के होटेल के कमरे में सोफिया बेड पे बैठी अमन का कब से इंतजार कर रही थी। कुछ देर बाद अमन रूम में दाखिल होता है, उसकी पेशानी पे रुमाल बँधा हुआ था जो आम तौर पे सर दर्द होने पे लोग बाँधते हैं।
सोफिया-अब्बू , आप ठीक तो हैं ना?
अमन-“हाँ…” बस इतना कहकर वो बेड के दूसरी तरफ लेट जाता है।
सोफिया की आग में अभी वो शिद्दत नहीं थी, पर वो अभी तक बुझी भी नहीं थी। वो अमन के ऊपर अपना एक हाथ रख देती है-“अब्बू , मैं आपका सर दबा दूँ?”
अमन-“नहीं सोफिया, सो जाओ हमें कल सुबह जल्दी जाना है…”
सोफिया की पलकें भीग जाती हैं और वो रुआंसी हो जाती है-“अब्बू , आप मुझसे ठीक से बात क्यों नहीं कर रहे हैं?”
अमन सोफिया की तरफ करवट लेते हुये-“बेटा रात बहुत हो गई है और मुझे सच में बहुत नींद भी आ रही है…”
सोफिया-“आप सो जाओ। मैं अब आपको परेशान नहीं करूँगी, कभी नहीं …”
अमन-“बस बहुत हुआ सोफिया, वरना मेरा हाथ उठ जाएगा तुमपे… पता नहीं मुझे क्या हो गया था? मुझसे गलती हो गई। आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा हमारे बीच। अब सो जाओ…”
सोफिया रोने लगती है और रोते-रोते ही अमन से बात करने लगती है-“हाँ, आपसे गलती हुई होगी और शायद आपको उस बात का मलाल भी है। पर मैं आपसे प्यार करने लगी हूँ अब्बू और ये मेरे इख्तियार में नहीं है। अब मुझे हर जगह बस आप नजर आते हैं, खाना खाने में दिल नहीं लगता, किसी काम में दिल नहीं लगता मेरा, मुझे लगने लगा है मैं शायद पागल हो जाउन्गी, और ऐसे ही घुट-घुटकर एक दिन मर भी जाउन्गी। मैं ये भी जानती हूँ कि आप भी मुझसे प्यार करते हैं… एक बेटी की तरह नहीं , बल्की ये वो मोहब्बत है… जो आपकी आँखों में मैंने देखी थी अम्मी के लिए। पर आप कभी नहीं मानेंगे क्योंकी आप सिर्फ़ अम्मी से प्यार करते हैं। मैं तो आपके लिए कुछ भी नहीं हूँ ना?”
अमन-“सोफ , इधर आ मेरे पास…”