Antarvasna कितनी सैक्सी हो तुम - SexBaba
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Antarvasna कितनी सैक्सी हो तुम

hotaks444

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Nov 15, 2016
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कितनी सैक्सी हो तुम --1

आज से मेरे बेटे का नाम करण पड़ गया। कई दिनों से नामकरण संस्कार की तैयारियों में पूरा परिवार व्यस्त था। किसी के पास सांस लेने भर की फुर्सत नहीं थी। परन्तु अब सभी कुछ आराम करना चाहते थे।

सारे मेहमान भी जाने लगे थे। मैं भी करण को अपनी गोदी में लेकर अपने कमरे में आ गई।

मेरे पति आशीष आज बहुत ही खुश थे। आखिर शादी के करीब 9 साल बाद उनको यह दिन देखना नसीब हुआ था।

वैसे भी हम दोनों ही नहीं घर में सभी मेरे सास ससुर, मम्मी पापा और ननद सभी तो इसी दिन के लिये पता नहीं कितनी दुआयें माँग रहे थे। करण मेरे बराबर में सो रहा था।

आशीष बहुत खुश थे, मेहमानों के जाने के बाद आशीष ही पूरा बचा-खुचा काम पूरा कराने में लगे हुए थे। परन्तु आज आशीष शायद खुद अपने हाथों से सबकुछ करना चाहते थे। आखिर आज उनके बेटे का नामकरण संस्कार हुआ था। उनकी खुशी देखते ही बनती थी।

पूरा काम निपटाकर आशीष कमरे में आये और मुझे बाहों में भरकर चूम लिया। हालांकि मेरी प्रतिक्रिया मिली जुली थी क्योंकि मैं बहुत थकी हुई थी पर आशीष की खुशी तो मानों सातवें आसमान पर थी।

अन्दर से तो मैं भी बहुत खुश थी आखिर अब मेरे माथे पर बांझपन का कलंक मिट गया था।

पापा मेरी शादी में कोई कोर-कसर नहीं रखना चाहते थे। मैं उनकी इकलौती बेटी जो हूँ और पापा ने अपनी सारी सरकारी नौकरी में इतना माल बनाया था कि खर्च करते नहीं बन रहा था।

हमारी शानो-शौकत देखने लायक थी, कम तो आशीष का परिवार भी नहीं था, आशीष दो-दो फैक्ट्री के मालिक थे देशभर में उनका बिजनेस फैला था।

चूंकि शादी दो बड़े घरानों के बीच हो रही थी इसीलिये शायद जयपुर क्या राजस्थान की कोई बड़ी ऐसी हस्ती नहीं थी जो मेरी शादी में शामिल नहीं हुई।

मैं तो बचपन से ही बहुत सुन्दर थी और आज शादी वाली रात मुझे सजाने के लिये ब्यूटीपार्लर वाला ग्रुप मुम्बई से आया था।

उन्होंने मुझे ऐसा सजाया कि देखने वालों की नजरें बार-बार मुझ पर ही जम जाती।

आशीष भी बहुत सुन्दर लग रहे थे। 5 फुट 10 इंच लम्बाई के चौड़े सीने वाले आशीष किसी हीरो से कम नहीं लग रहे थे। देखने वाले कभी हम दोनों को राम-सीता की जोड़ी बताते तो कभी राधा-कृष्ण की।

शादी के बाद मैं मायके से विदा होकर ससुराल में आ गई। मन में अनेक प्रकार की खुशियाँ घर करने लगी थी। आशीष को पाकर को मैं जैसे धन्‍य ही हो गई थी। एक पल के लिये भी मुझे अपने 23 साल पुराने घर को छोड़ने का मलाल नहीं था।

मैं तो आशीष के साथ जीवन के हसीन सपने संजों रही थी। मेरी विदाई के समय भी मम्मी पापा से खुशी-खुशी विदा लेकर आई।

ससुराल में मेरा ऐसा स्वागत हुआ कि मैं खुद को किसी राजकुमारी से कम नहीं मान रही थी। राजकुमारी तो मैं थी भी, पापा ने मुझे हमेशा राजकुमारी की तरह ही पाला था। मैं उनकी इकलौती संतान जो थी, और घर में पैसे का अथाह समुन्दर।

पर इस घर का अहसास कुछ ही घंटों में मुझे अपना सा लगने लगा।

मैं तो एक दिन में ही पापा का घर भूल गई। सारा दिन रिश्तेदारों में हंसी खुशी कैसे बीत गया पता ही नहीं चला।

शाम होते होते मुझे बहुत थकान होने लगी। खाना भी सब लोगों ने मिलकर ही खाया। ज्यादातर रिश्तेदार भी अपने अपने घर जा चुके थे। परिवार में दूर के रिश्ते की बहुओं और मेरी ननद ने मुझे नहाकर तैयार होने को कहा।

मैं भी उनकी आज्ञा मानकर नहाने चली गई। आशीष के रूम से सटे बाथरूम से नहाकर जैसे ही मैं नहाकर जैसी ही मैं बाहर आई तो देखा कमरे का दरवाजा बाहर से बंद था।

मैं समझ गई कि यह सब जानबूझ कर किया गया है। मैं खुशी-खुशी ड्रेसिंग के सामने खड़ी होकर अपनी खूबसूरती को निहारती हुई हल्का सा मेकअप करने लगी। आखिर बेवकूफ तो मैं भी नहीं थी। मुझे भी आभास था कि आज की रात मेरे लिये कितनी कीमती है।

मैंने नहाकर खुद को बहुत अच्छे से तैयार किया।

मैं आशीष को दुनिया की सबसे रूपवान औरत दिखना चाहती थी। इसीलिये मैंने अपनी थ्री-पीस नाइटी निकला ली। टावल हटाकर तसल्ली से अपनी कामुक बदन को निहारा। मुझे खुद पर ही गर्व होने लगा था।

अब मैं नाइटी पहनकर आशीष का इंतजार करने लगी। घड़ी की टिक-टिक करती सुई की आवाज मेरे दिल की धड़कन बढ़ा रहा थी।

इंतजार का एक-एक पल एक-एक घंटे जैसा बीत रहा था। घड़ी में 10 बज चुके थे पर आशीष की अभी तक कोई खबर नहीं थी।

इंतजार करना बहुत मुश्किल था पर घर में पहले दिन ही नाईटी पहनकर बाहर भी तो नहीं जा सकती थी ना, इसीलिये बैठी रही।

समय पास करने के लिये टीवी चला लिया।

जी क्लासिक चैनल पर माधुरी दीक्षित की फिल्म दयावान चल रही थी।

मुझे लगा यह मुआ टीवी भी मेरा दुश्मन बन गया है, फिल्म में माधुरी और विनोद खन्ना का प्रणय द़श्‍य मेरे दिल पर बहुत ही सटीक वार करने लगा।

मैं अब आशीष के लिये बिल्कुल तैयार थी पर वो कम्बख्त अन्दर कमरे में तो आये।

टीवी देखते देखते पता ही नहीं चला कब थकान मुझे पर हावी हो गई और मुझे नींद आ गई।

अचानक मेरी आँख खुली मैंने देखा कि आशीष मुझे बहुत ही प्यार से हिलाकर बिस्तर पर ही सीधा करने की कोशिश कर रहे थे, वो बराबर इस बात का भी ध्यान रख रहे थे कि मेरी नींद ना खुले।

पर मेरी नींद तो खुल गई।

आशीष को सामने देखकर मैं तुरन्त उठी और अपने कपड़े ठीक करने लगी।

“सो जाओ, सो जाओ, जान… मुझे पता है तुम बहुत थक गई होगी आज…” कहते हुए आशीष मेरे बराबर में लेट गये और मेरा सिर अपनी दांयी बाजू पर रखकर मुझे सुलाने की कोशिश करने लगे।

इतने प्यार से शायद कभी बचपन में पापा ने मुझे सुलाया था।

आशीष का प्रथम स्पर्श सचमुच नैसर्गिक था।

आशीष का दांया हाथ मेरे सिर के नीचे था और बांया हाथ लगातार सिर के ऊपर से मुझे सहला रहा था। आशीष का इतने प्यार से सहलाना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।

कुछ देर तो मैं ऐसे ही लेटी रही, फिर मैंने पीछे मुड़कर आशीष की तरफ देखा- ‘यह क्या….!?! आशीष तो सो चुके थे।’

नींद में भी वो कितने मासूम और प्यारे लग रहे थे, मैं उनकी नींद खराब नहीं करना चाहती थी इसीलिये वापस उनकी तरफ पीठ की और उनसे चिपक कर सो गई।

सुबह मेरी आँख 6 बजे खुली तो मैंने देखा मेरे मासूम से पतिदेव अभी तक गहरी नींद में थे।

मैं एक अच्छी बहू की तरह उठते ही अपने बैडरूम से सटे बाथरूम में गई और तुरन्त नहा धोकर तैयार होकर बाहर सास-ससुर के पास पहुँची।

मेरी ससुर टीवी में मार्निंग न्यूज देख रहे थे और सासू माँ ससुर जी के लिये चाय बना रही थी।

घर की नौ‍करानी भी काम पर लग चुकी थी।

मैंने सास से कहा- मम्मी जी, अगर आपको एतराज ना हो तो मैं आप दोनों को चाय बना दूँ?

उन्होंने उसके लिये भी तुरन्त मेरे ससुर को शगुन निकालने को कहा।

मैं पहले ही दिन घर में घुलने मिलने की कोशिश कर रही थी।

सास-ससुर को चाय पिलाकर और अपना शगुन लेकर मैं अपने कमरे में आशीष के पास पहुँची तो वो भी जाग चुके थे पर बिस्तर में पड़े थे।

मेरे पास जाते ही उन्होंने मुझे खींचकर अपनी छाती से चिपका लिया और एक मीठा सा चुम्बन दिया। मैं तो शर्म से धरती में गड़ी जा रही थी पर उनकी छाती से चिपकना न जाने क्यों बहुत ही अच्छा लग रहा था।

तभी बाहर से ससुर जी की आवाज आई और आशीष उठकर बाथरूम में नहाने चले गये।

घर में सास के साथ और सारा दिन कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। शाम को मेरे मायके वालों के और सहेलियों के फोन आने शुरू हो गये।

मेरी सहेलियाँ बार बार पूछतीं- रात को क्या हुआ…!?!

अब मैं हंसकर टाल जाती, आखिर बताती भी तो क्या…!?!

मुझे आज फिर से रात का इंतजार था, आशीष का मैं बेसब्री से इंतजार करने लगी।

पापा और आशीष 8 बजे तक घर आये। मैंने और मम्मी जी ने मिलकर डायनिंग पर खाना लगाया।

मैं जल्दी-जल्दी काम निपटाकर अपने कमरे में जाकर तैयार होना चाहती थी, सोच रही थी शायद आज मेरी सुहागरात हो…’

खाना खाकर कुछ देर परिवार के सभी सदस्यों ने साथ बैठकर गप्पें मारी।

फिर मम्मी जी जी ने खुद ही बोल दिया- …बेटी तू जा, थक गई होगी अपने कमरे में जाकर आराम कर।

मैं तो जैसे इसी पल का इंतजार कर रही थी, मैं तुरन्त उठी और अपने कमरे में आ गर्इ, अपना नाईट गाऊन उठाकर बाथरूम में गई, नहाकर फिर से कल की तरह तैयार होकर अपने बिस्तर पर लेटकर टीवी देखने लगी।

मुझे आशीष का बेसब्री से इंतजार था। कल तो कुछ मेहमान और दोस्ते थे घर में पर आज तो कोई नहीं था, आशीष को कमरे में जल्दी आना चाहिए था।

देखते देखते 10 बज गये पर आशीष बाहर ही थे।

मैंने चुपके से कमरे का दरवाजा खोलकर ओट से बाहर देखा आशीष हॉल में अकेले बैठे टीवी ही देख रहे थे।

‘तो क्या उनको मेरी तरह अपनी सुहागरात मनाने की बेसब्री नहीं है… ‘क्या उनका मन नहीं है अपनी पत्नी के साथ समय बिताने का…?’

जब मम्मी जी और पिताजी दोनों ही अपने कमरे में जा चुके थे, मैं भी अपने कमरे में थी, घर के नौकर भी अपने सर्वेन्ट रूम में चले गये थे तो आशीष क्यों अकेले हॉल में बैठकर टीवी देख रहे थे !?!

मैं आशीष को अन्दर कमरे में बुलाना चाहती थी पर चाहकर भी हिम्मत नहीं कर पाई।

मैं वापस जाकर उनका इंतजार करते करते टीवी देखने लगी। आज भी मुझे पता नहीं चला कब नींद आ गई।

रात को किस वक्त आशीष कमरे में आये मुझे नहीं पता।

सुबह जब मेरी आँख खुली तो वो मुझसे चिपक कर सो रहे थे।

उनका यह व्यवहार मुझे बहुत अजीब लग रहा था, मैं कुछ भी समझ नहीं पा रहा थी- क्या मैं आशीष को पसन्द नहीं थी…? यदि नहीं… तो वो मुझसे ऐसे चिपक कर क्यों सो रहे थे। यदि ‘हां…’ तो फिर वो रोज रात को कमरे में मेरे सोने के बाद ही क्यों आते हैं?

“किससे अपनी बात बताऊं, किससे इसके बारे में समझूं… कहीं मैं ही तो गलत नहीं सोच रही थी…” यही सोचते सोचते मैं आज फिर से बाहर आई। मम्मी जी और पिताजी के पांव छुए और खुद ही उनके लिये चाय बनाने रसोई में चली गई।

उनको चाय देते ही पिता जी बोले- बेटा, जरा आशीष को बुला।

“जी पिताजी…” बोलकर मैं अपने कमरे में गई आशीष को जगाया।

आँखें खुलते ही उन्होंने दोनों बाहों में मुझे जकड़ लिया और मेरे होठों पर एक प्यारा सा चुम्बन दिया।

मैंने शर्माते हुए कहा- बाहर पिताजी बुला रहे हैं जल्दी चलिये।

आशीष तुरन्त एक आज्ञाकारी बेटे की तरह उठकर बाहर आये और पिताजी के सामने बैठ गये।

पिताजी बोले- बेटा, फैक्ट्री में ज्यादा काम की वजह से तुम दोनों हनीमून के लिये नहीं गये। यह बात मेरी समझ में आती है पर कम से कम एक दिन को बहु को कहीं बाहर घुमा लाओ।

पहले तो आशीष ने फैक्ट्री के काम का हवाला देकर पिताजी को मना किया पर पिताजी के जबरदस्ती करने पर वो आज दिन में कहीं बाहर जाने के लिये मान गये, मुझसे बोले- चलो आज बाहर घूमने चलते हैं, तुम तैयार हो जाओ जल्दी से और मैं भी नहाकर आता हूँ।

मैं तो जैसे उनके आदेश की ही प्रतीक्षा कर रही थी। फिर भी एक बहू होने के नाते मैंने पहले मम्मी जी और पिताजी को नाश्ता करवाकर चलने को कहा तो मम्मी जी बोली- नहीं बेटा, ये ही दिन हैं घूमने फिरने के, तुम जाओ घूम आओ।

“जी मम्मी जी…” बोलकर मैं तुरन्त अपने कमरे में गई और नहाकर तैयार होने लगी।

मेरे बाहर आते ही आशीष भी बाथरूम में घुस गये अभी मैं अपना मेकअप कर ही रही थी कि आशीष नहाकर बाहर आये और मुझे मेकअप करता देखकर पीछे से मुझसे लिपटकर बोले- कितनी सैक्सी लग रही हो तुम…

मैंने उनकी आँखों में झांकते हुए पूछा- फिर घूमने का प्रोग्राम कैंसिल कर दें क्या?
 
पिताजी बोले- बेटा, फैक्ट्री में ज्यादा काम की वजह से तुम दोनों हनीमून के लिये नहीं गये। यह बात मेरी समझ में आती है पर कम से कम एक दिन को बहु को कहीं बाहर घुमा लाओ।

पहले तो आशीष ने फैक्ट्री के काम का हवाला देकर पिताजी को मना किया पर पिताजी के जबरदस्ती करने पर वो आज दिन में कहीं बाहर जाने के लिये मान गये, मुझसे बोले- चलो आज बाहर घूमने चलते हैं, तुम तैयार हो जाओ जल्दी से और मैं भी नहाकर आता हूँ।

मैं तो जैसे उनके आदेश की ही प्रतीक्षा कर रही थी। फिर भी एक बहू होने के नाते मैंने पहले मम्मी जी और पिताजी को नाश्ता करवाकर चलने को कहा तो मम्मी जी बोली- नहीं बेटा, ये ही दिन हैं घूमने फिरने के, तुम जाओ घूम आओ।

“जी मम्मी जी…” बोलकर मैं तुरन्त अपने कमरे में गई और नहाकर तैयार होने लगी।

मेरे बाहर आते ही आशीष भी बाथरूम में घुस गये अभी मैं अपना मेकअप कर ही रही थी कि आशीष नहाकर बाहर आये और मुझे मेकअप करता देखकर पीछे से मुझसे लिपटकर बोले- कितनी सैक्सी लग रही हो तुम…

मैंने उनकी आँखों में झांकते हुए पूछा- फिर घूमने का प्रोग्राम कैंसिल कर दें क्या?

अचानक यह पूछते ही मैं झेंप गई, पता नहीं एकदम मैं इतनी बोल्ड कैसे हो गई पति के सामने।

परन्तु पति शायद पहले ही दिन से अपना लगने लगता है।

आशीष भी तेजी से तैयार होने लगे और बोले- नहीं, आज तुमको जयपुर घुमाता हूँ।

‘चलो किसी बहाने आशीष के साथ समय बिताने के मौका तो मिला।’ यह सोचकर ही मैं उत्तेजित थी, मैं तैयार होकर बाहर आई, तो पीछे पीछे आशीष भी आ गये।

बाहर आकर मैंने एक बार फिर से मम्मी जी और पापा जी के पैर छुए, और आशीष के साथ-साथ घर से निकल गई।

आशीष ने ड्राइवर से कार की चाबी ली और बहुत अदब से दरवाजा खोलकर मुझे कार में बिठाया।

उनके इस सेवाभाव से ही मैं गदगद हो गई।

कार का स्टेलयरिंग सम्भालते ही आशीष बोले- कहाँ चलोगी मेरी जान !!

मैंने हल्का सा शर्माकर कहा- जहाँ आप ले जाओ। मेरी कहीं घूमने में नहीं आपके साथ समय बिताने में है।

कार में बैठे-बैठे आशीष ने मेरा माथा प्यार से चूम लिया। मैं तो सिहर ही गई, मेरे बदन पर किसी मर्द का यह पहला चुम्बन था।

मेरा पूरा शरीर एक चुम्बन से ही कांप गया, गाल लाल हो गये, रौंगटे खड़े हो गए।

तभी आशीष ने मेरी तंद्रा तोड़ी और बोले- चलो, पहले किसी रेस्टोरेन्ट में नाश्ता करते हैं, फिर घूमने चलेंगे।

मैंने उनकी हाँ में हाँ मिलाई और हम नाश्ता करने पहुँचे, वहीं से आगे का प्रोग्राम बना लिया।

दिन भर में आशीष ने सिटी पैलेस, हवामहल, आमेर का किला और न जाने क्या-क्या दिखाया।

शाम को 7 बजे भी आशीष से मैंने की कहा- अब घर चलते हैं, मम्मी-पापा इंतजार करते होंगे।

आशीष कुछ देर और घूमना चाहते थे पर मुझे तो घर पहुँचने की बहुत जल्दी थी।

आशीष भी बहुत अच्‍छे मूड में थे तो मुझे लगा कि इस माहौल का आज फायदा उठाना चाहिए।

जल्दी घर पहुँचकर फ्रैश होकर अपने कमरे में घुस जाऊँगी आशीष को लेकर।

मैंने घर चलने की जिद की तो आशीष भी मान गये। वापस चलने के लिये बैठते समय आशीष ने फिर से मेरे माथे पर एक प्यारा सा चुम्बन दिया।

मुझे उनका चुम्बन बहुत ही अच्छा लग रहा था, बल्कि मैं तो ये चुम्बन सिर्फ माथे पर नहीं अपने पूरे बदन पर चाहती थी, उम्मीद लगने लगी थी कि शायद आज मेरी सुहागरात जरूर होगी।

आज आशीष के साथ घूमने का सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि अब मैं उनके साथ खुलकर बात कर पा रही थी, अपनी बात उनसे कह पा रही थी।

जल्दी ही हम घर पहुँच गये, आशीष ने घर के दरवाजे पर ही कार की चाबी ड्राइवर को दी और हम दोनों घर के अन्दर आ गये।

पापा अभी तक फैक्ट्री से नहीं आये थे।

हमारे आते ही मम्मी जी ने चाय बनाई और मुझसे पूछा- कैसा रहा आज का दिनॽ

‘बहुत अच्छा..’ मैंने भी खुश होकर जवाब दिया।

कुछ ही देर में पापा भी आ गये, हम चारों से एक साथ बैठकर खाना खाया।

फिर मैं मम्मी की इजाजत लेकर तेजी से अपने कमरे में चली गई।

आशीष आज भी बाहर पिताजी के साथ बैठकर टीवी ही देख रहे थे।

पर मुझे उम्मीद थी कि आज आशीष जल्दी अन्दर आयेंगे।

मैं पिछले दिनों की तरह नहाकर नई नई नाईटी पहनकर आशीष का इंतजार करने लगी।

पर यह क्या साढ़े दस बज गये आशीष आज भी बाहर ही थे।

मैंने दरवाजा खोलकर बाहर झांका तो पाया कि आशीष अकेले बैठकर टीवी देख रहे थे।

मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी कि ये रोज ही क्यों हो रहा हैॽ यदि आशीष को टीवी इतना ही पसन्द है तो अपने कमरे में भी तो है। वैसे तो मुझसे बहुत प्यार जता रहे थे फिर रोज ही मुझे कमरे में अकेला क्यों छोड़ देते हैं… क्यों वो कमरे में देर से आते हैं…? क्या उनको मैं पसन्द नहीं हूं… क्या वो मेरे साथ अकेले में समय नहीं बिताना चाहते…?

तो फिर मुझे पर इतना प्यार क्यों लुटाते हैं…?

उनका यह व्यवहार आज मुझे अजीब लगने लगा, मेरी नींद उड़ चुकी थी, आज मुझे अपने साथ आशीष की जरूरत महसूस होने लगी थी।

मैंने अपने कमरे के अन्दर जाकर अपने मोबाइल से आशीष को फोन किया।

उन्होंने फोन उठाया तो मैंने तुरन्त अन्दर आने का आग्रह किया।

वो बोले- तुम सो जाओ, मैं अपने आप आकर सो जाऊँगा।

उनका यह व्यवहार मेरे गले नहीं उतर रहा था, बैठे-बैठे पता नहीं क्यों मुझे आज घर में अकेलापन सा लगने लगा। जो घर 2 दिन पहले मुझे बिल्कुल अपना लग रहा था, आज 2 ही दिन में वो घर मुझे बेगाना लगने लगा।

अचानक ही मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। बाहर हॉल में जाकर उनसे बात करने की मेरी हिम्मत नहीं थी। मैंने आज सारी रात जागने का निर्णय किया कि आज आशीष किसी भी समय कमरे में आयेंगे मैं तब ही उनसे बात जरूर करूँगी।

रात को 12 बजे करीब कमरे का दरवाजा बहुत ही धीरे से खुला। आशीष ने धीरे से अन्दर झांका, और मुझे सोता देखकर अन्दर आ गये।दरवाजा अन्दर से बन्द किया, फिर अपना नाइट सूट पहनकर वो मेरी बगल में आकर लेट गये, मुझे पीछे से पकड़कर मुझसे चिपककर सोने की प्रयास करने लगे।

मैं तभी उठकर बैठ गई, मेरी आँखों से आँसू झरने की तरह बह रहे थे।

मेरे आँसू देखकर आशीष भी परेशान हो गये, बोले- क्या हुआ जानू… रो क्यों रही हो?

पर मैं थी कि रोये ही जा रही थी, मेरे मुख से एक शब्द भी नहीं फूट रहा था, बस लगातार रोये जा रही थी।

आशीष ने फिर पूछा- क्या अपने मम्मी-पापा याद आ रहे हैं तुमको… चलो कल तुमको आगरा ले चलूंगा। मिल लेना उन सबसे।

आशीष मेरे मन की बात नहीं समझ पा रहे थे और इधर मैं बहुत कुछ बोलना चाहती थी… पर बोल नहीं पा रही थी। आशीष बिस्तर पर मेरे बगल में अधलेटी अवस्था में बैठ गये, मेरा सिर अपनी गोदी पर रखकर सहलाने लगे।

कुछ देर रोने के बाद मैंने खुद ही आशीष की ओर मुंह किया तो पाया कि वो तो बैठे बैठे ही सो गये थे।

अब मैं उनको क्या कहती… या तो आशीष कमरे में ही नहीं आ रहे थे और जब आये तो मुझे सहलाते सहलाते ही कब सो गये पता भी नहीं चला।

मैं वहाँ से उठी, बाथरूम में जाकर मुँह धोया, वापस आकर देखा तो आशीष बिस्तर पर सीधे सो चुके थे। अब पता नहीं आशीष नींद में सीधे हो गये थे या मेरे सामने सोने का नाटक कर रहे थे?

मैं कुछ भी नहीं कर सकी, चुपचाप उनके बगल में जाकर सो गई।

सुबह आशीष ने ही मुझे जगाया। मैंने घड़ी देखी तो अभी तो साढ़े पांच ही बजे थे, वो बहुत प्यार से मुझे जगा रहे थे, मैं भी उस समय फ्रैश मूड में थी, मुझे लगा कि शायद आज सुबह सुबह आशीष सुहागरात मनायेंगे मेरे साथ…

जैसे ही मेरी आँख खुली, आशीष ने मेरी आँखों पर बड़े प्यार से चुम्बन लिया और बोले- कितनी सुन्दर हो तुम…

मैं तो जैसे उनकी इस एक लाइन को सुनकर ही शर्म से दोहरी हो गई।

तभी आशीष ने कहा- जल्दी से उठकर तैयार हो जाओ, आगरा चलना है ना।

मेरे तो जैसे पांव के नीचे से जमीन ही खिसकने लगी, समझ में नहीं आया कि आखिर आशीष चाहते क्या् हैंॽ ये मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैंॽ

अपने आप ही फिर से मेरी रूलाई फूट गई। अब तो मैं बिफर चुकी थी, मैंने चिल्लाकर कहा- क्यों जाऊँ मैं उनके घर… अब वहाँ मेरा कौन है… मेरा तो अब जो भी है यहीं है आपके पास… और आप हैं कि अपनी पत्नी के साथ परायों की तरह व्यवहार करते हैं। आपकी पत्नी आपके प्यार को तरस जाती है, आप हैं कि उसके साथ अकेले में कुछ समय भी नहीं बिताना चाहते, मुझे मेरे माँ-बाप ने सिर्फ आप ही के भरोसे यहाँ भेजा है..!

एक ही सांस में पता नहीं मैं इतना सब कैसे बोल गई, पता नहीं मुझमें इतनी हिम्मत कहाँ से आ गईॽ

मैं लगातार रोये जा रही थी।

आशीष ने मुझे ऊपर करके गले से लगा लिया और चुप कराने की कोशिश कर रहे थे।

मुझे चुप कराने की कोशिश करते-करते मैंने देखा कि आशीष की आँखों से भी आँसू निकलने लगे, उनका फफकना सुनकर मेरी निगाह उठी, मैंने आशीष की तरफ देखा वो भी लगातार रो रहे थे।

मैं सोचने लगी कि ऐसा मैंने क्या गुनाह कर दिया जो इनको भी रोना आ रहा है।

मैंने खुद को संभालते हुए उनको चुप कराने का प्रयास किया और कहा- आप क्यों रो रहे होॽ मुझसे गलती हो गई जो मैं आपे से बाहर आ गई आगे से जीवन में कभी भी आपको मेरी तरफ से शिकायत नहीं मिलेगी।

आशीष ने मुझे सीने से लगा लिया और बोले- तुम इतनी अच्छी क्यों हो नयना…

मैं उनको नार्मल करने का प्रयास करने लगी।

यकायक उन्होंने मेरे होठों पर अपने होंठ रख दिए, मुझे जैसे करन्टी सा लगा।

‘आह…’ एक झटके के साथ मैं पीछे हट गई, मैंने नजरें उठाकर आशीष की ओर देखा। आशीष की निगाहों में मेरे लिये बस प्यार ही प्यार दिखाई दे रहा था।

तभी मुझे एहसास हुआ कि मैं तो पीछे हट गई पर मैं पीछे क्यों हटीॽ मैं भी तो यही चाहती थी। अपने बदन पर आशीष के गर्म होठों का स्पर्श…

पर मेरे लिये ये बिल्कुल नया था। मेरी 23 साल की आयु में पहली बार किसी ने मेरे होठों को ऐसे छुआ था।

मेरे पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई। एक ही सैकेण्ड में मुझे ऐसा झटका लगा जिसने मुझे पीछे धकेल दिया, हम दोनों के आँसू पता नहीं कहाँ गायब हो गये थे, आशीष हौले से आगे आकर बिस्तर पर चढ़ गये, और मेरे बराबर में आ गये। उन्हों ने अपनी दांयी बाजू मेरे सिर के नीचे की और मुझे अपनी तरफ खींच लिया, मुझे लगा जैसे मेरे मन की मुराद पूरी होने वाली है अपने मन के अन्दर सैकड़ो अरमान समेटे मैं आशीष की बाहों में समाती चली गई।

आशीष ने यकायक फिर से मेरे होठों पर अपने गर्म-गर्म होठों को रख दिया, अब तो मैं भी खुद को मानसिक रूप से तैयार कर चुकी थी। मैं भी आशीष का साथ देने लगी, आखिर मैं भी तो मन ही मन यही चाह रही थी। चूमते-चूमते आशीष ने हौले से मेरे होठों पर पूरा कब्जा कर लिया।

अब तो मेरे निचले होंठ को अपने होठों के बीच में दबाकर चूस रहे थे, मेरा रोम-रोम थर्र-थर्र कांप रहा था।

आशीष के हाथ मेरी गाऊन के अन्दर होते हुए मेरी पीठ तक पहुँच चुके थे वो बिस्तर पर अधलेटे से हो गये और मुझे अपने ऊपर झुका लिया।

ऐसा लग रहा था मानो आज ही वो मेरे होठों का सारा रस पी जायेंगे। पता नहीं क्यों पर अब मुझे भी उनका अपने होठों का ऐसे रसपान करना बहुत अच्छा लग रहा था मन के अंदर अजीब अजीब सी परन्तु मिठास सी पैदा हो रही थी। इधर आशीष की उंगलियाँ मेरी पीठ पर गुदगुदी करने थी अचानक ही मैंने आशीष को सिर से पकड़ा और तेजी से खुद से चिपका लिया।

आशीष की उंगलियाँ मेरी पीठ पर जादू करने लगीं, पूरे बदन में झुरझुरी हो रही थी। मेरे यौवन को पहली बार कोई मर्द ऐसे नौच रहा था, उस समय होने वाले सुखद अहसास को शब्‍दों में बयान करना नामुमकिन था। अचानक आशीष ने पाला बदला और मुझे नीचे बैड पर लिटा दिया, अब वो मेरे ऊपर आ गये।

मेरे होंठ उनके होठों से मुक्त हो गये। अब उनके होंठ मेरी गर्दन का नाप लेने में लग गये। उनके हाथ भी पीठ से हटकर मेरी नाईटी को खोलने लगे।

धीरे-धीरे नाईटी खुलती गई, आशीष को मेरी गोरी काया की झलक देखने को मिलती, तो आशीष और अधीर हो जाते। कमरे में फैली ट़यूब की रोशनी में अब मुझे शर्म महसूस होने लगी, फिर भी आशीष का इस तरह प्यार करना मुझे जन्नत का अहसास देने लगा। तभी मुझे अहसास हुआ कि मेरी पूरी नाईटी खुल चुकी है आशीष मेरी ब्रा के ऊपर से ही अपने हाथों से मेरे उरोजों को हौले-हौले सहला रहे थे उनके गीले होंठ भी मेरे उरोजों के ऊपरी हिस्से के इर्द-गिर्द के क्षेत्र में गुदगुदी पैदा करने लगे।

मेरे होंठ सूखने लगे।

आशीष ने मुझे पीछे घुमाकर मेरी ब्रा का हुक कब खोला मुझे तो पता भी नहीं चला। मेरे शरीर के ऊपरी हिस्से से ब्रा के रूप में अंतिम वस्त्र भी हट गया, मेरे दोनों अमृतकलश आशीष के हाथों में थे, आशीष उनको अपने हाथों में भरने का प्रयास करने लगे।

परन्तु शायद वो आशीष के हाथों से बढ़े थे इसीलिये आशीष के हाथों में नहीं आ रहे थे। मेरे गुलाबी निप्पल कड़े होने लगे।

अचानक आशीष ने पाला बदलते हुए मेरे बांये निप्पल को अपने मुंह में ले लिया और किसी बच्चे की तरह चूसने लगे। मैं तो जैसे होश ही खोने लगी।
 
आशीष ने मुझे पीछे घुमाकर मेरी ब्रा का हुक कब खोला मुझे तो पता भी नहीं चला। मेरे शरीर के ऊपरी हिस्से से ब्रा के रूप में अंतिम वस्त्र भी हट गया, मेरे दोनों अमृतकलश आशीष के हाथों में थे, आशीष उनको अपने हाथों में भरने का प्रयास करने लगे।

परन्तु शायद वो आशीष के हाथों से बढ़े थे इसीलिये आशीष के हाथों में नहीं आ रहे थे। मेरे गुलाबी निप्पल कड़े होने लगे।

अचानक आशीष ने पाला बदलते हुए मेरे बांये निप्पल को अपने मुंह में ले लिया और किसी बच्चे की तरह चूसने लगे। मैं तो जैसे होश ही खोने लगी।

आशीष मेरे दांयें निप्पल को अपने बांयें हाथ की दो उंगलियों के बीच में दबाकर मींजने में लगे थे जिससे तीव्र दर्द की अनुभूति हो रही थी परन्तु उस समय मुझ पर उस दर्द से ज्यादा कामवासना हावी हो रही थी और उसी वासना के कम्पन में दर्द कहीं खोने लगा, मेरी आँखें खुद-ब-खुद ही बंद होने लगी, मैं शायद इसी नैसर्गिक क्षण के लिये पिछले कुछ दिनों से इंतजार कर रही थी, मेरी आँखें पूरी तरह बंद हो चुकी थी।

मुझे महसूस हुआ कि आशीष ने मेरे निप्पलों को चाटना छोड़ दिया है अब वो अपने दोनों हाथों से मेरे निप्पलों को सहला रहे थे और उनकी जीभ मेरे नाभिस्थल का निरीक्षण कर रही थी।

यकायक उन्होंने मेरे पूरे नाभिप्रदेश को चाटना शुरू कर दिया पर यह क्याॽ

अब उनके दोनों हाथ मेरे उरोजों पर नहीं थे।

यह मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, मैं तो चाह रही थी कि यह रात यहीं थम जाये और आशीष सारी रात मेरे उरोजों को यूँ ही सहलाते रहें और मेरा बदन यूँ ही चाटते रहें।

मेरी आँखें फिर से खुल गई तो मैंने पाया कि आशीष भी अपनी शर्ट और बनियान उतार चुके थे। ओहहहहहहह… तो अब समझ में आया कि जनाब के हाथ मेरे नरम नरम खरबूजों को छोड़कर कहाँ लग गये थे ! मैं आशीष की तरफ देख ही रही थी, उन्होंने भी मेरी आँखों में देखा।

हम दोनों की नजरें चार हुईं और लज्जा से मेरी निगाह झुक गई पर मेरे होंठों की मुस्कुराहट ने आशीष को मेरी मनोस्थिति समझा दी होगी।

आशीष नंगे ही फिर से मेरे ऊपर गये, ‘नयना…’ आशीष ने मुझे पुकारा !

‘हम्‍म्‍म…’ बस यही निकल पाया मेरे गले से।

‘कैसा महसूस कर रही हो…” आशीष ने फिर से मुझसे पूछा।

मैं तो अब जवाब देने की स्थिति में ही नहीं रही थी, मैंने बस खुद को तेजी से आशीष से नंगे बदन से चिपका लिया, मेरे बदन से निकलने वाली गर्मी खुद ही मेरी हालत बयाँ करने लगी।

आशीष के हाथ फिर से अपनी क्रिया करने लगे, पता नहीं आशीष को मेरे निप्पल इतने स्वादिष्ट लगे क्या, जो वो बार बार उनको ही चूस रहे थे ! 

परन्तु मेरा भी मन यही कह रहा था कि आशीष लगातार मेरे दोनों निप्पल पीते रहें। हालांकि अब मेरी दोनों घुंडियाँ दर्द करने लगी थीं, पूरी तरह लाल हो गई परन्तु फिर भी इससे मुझे असीम आनन्द का अनुभव हो रहा था।

मेरी आँखें अब पूरी तरह बंद हो चुकी थी, मैं खुद को नशे में महसूस कर रही थी परन्तु मेरे साथ जो भी हो रहा था मैं उसको जरूर महसूस कर पा रही थी।

पूरे बदन में मीठी-मीठी बेचैनी अनुभव हो रही थी।

मैंने अपनी बाहें फैलाकर आशीष की पीठ को जकड़ लिया, आशीष का एक हाथ अब मेरी कमर पर कैपरी के इलास्टिक के इर्द-गिर्द घूमने लगा।

हौले-हौले आशीष मेरी केपरी उतारने की कोशिश कर रहे थे। जैसे ही मुझे इनका आभास हुआ मैंने खुद ही अपने नितम्ब हल्के से ऊपर करके उनकी मदद कर दी।

आशीष तो जैसे इसी पल के इंतजार में थे, उन्होंने मेरी केपरी के साथ ही कच्छी भी निकालकर फेंक दी।

अब मैं आशीष के सामने पूर्णतया नग्न अवस्था में थी परन्तु फिर भी दिल आशीष को छोड़ने का नहीं हो रहा था।

आशीष अब खुलकर मेरे बदन से खेलने लगे, वो मेरे पूरे बदन पर अपने होंठों के निशान बना रहे थे, शायद मेरे कामुक बदन को कोई एक हिस्सा भी ऐसा नहीं बचा था जिस को आशीष ने अपने होंठों से स्पर्श ना किया हो।

आशीष अब धीरे धीरे नीचे की तरफ बढ़ने लगे, मेरी नाभि चाटने के बाद आशीष मेरे पेड़ू को चाटने लगे।

आहहहह्…इस्‍स्… स्‍स्‍स्‍स…स‍… हम्‍म्‍म्‍म‍… उफ्फ… यह क्या कर दिया आशीष ने…

मुझ पर अब कामुकता पूरी तरह हावी होने लगी, मुझे अजीब तरह की गुदगुदी हो रही थी, मैं इस समय खुद के काबू में नहीं थी, मुझे बहुत अजीब सा महसूस हो होने लगा, ऐसी अनुभूति जीवन में पहले कभी नहीं हुई थी पर यह जो भी हो रहा था इतना सुखदायक था कि मैं उसे एक पल के लिये भी रोकना नहीं चाह रही थी।

मेरी सिसकारियाँ लगातार तेज होने लगी थी, तभी कुछ ऐसा हुए जिसने मेरी जान ही निकाल दी।

आशीष ने हौले ने नीचे होकर मेरी दोनों टांगों के बीच की दरार पर अपनी सुलगती हुई जीभ रख दी।’सीईईईई… ईईईई…’ मेरी जान ही निकल गई, अब मैं ऐसे तड़पने लगी जैसे जल बिन मछली।

ऊई माँऽऽऽ… अऽऽऽहऽऽ… यह क्या कर डाला आशीष नेॽ मेरा पूरा बदन एक पल में ही पसीने पसीने हो गया, थर्र-थर्र कांपने लगी थी मैं।

आशीष हौले-हौले उस दरार को ऊपर से नीचे तक चाट रहे थे।

उफ़्फ़… मुझसे अपनी तड़प अब बर्दाश्त नहीं हो रही थी, बिस्तर की चादर को मुट्ठी में भींचकर मैं खुद को नियंत्रित करने का असफल कोशिश करने लगी परन्तु ऐसा करने पर भी जब मैं खुद को नियंत्रित नहीं कर पाई तो आशीष को अपनी टांगों से दूर धकेलने की कोशिश की।

आशीष शायद मेरी स्थिति को समझ गये। खुद ही अब उन्होंने मेरी मक्खन जैसी योनि का मोह त्याग कर नीचे का रुख कर लिया।

अब आशीष मेरी जांघों को चाटते-चाटते नीचे पैरों की तरफ बढ़ गये, ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरी योनि में कोई फव्वारा छूटा हो, मेरी योनि में से सफेद रंग का गाढ़ा-गाढ़ा स्राव निकलकर बाहर आने लगा।

इस स्राव के निकलते ही मुझे कुछ सुकून महसूस हुआ, अब मेरी तड़प भी कम हो गई थी, मैं होश में आने लगी परन्तु मेरे पूरे शरीर में मीठा-मीठा दर्द हो रहा था, मुझे ऐसा महसूस होने लगा जैसे मेरा पेशाब यहीं निकल जायेगा।

मैं तुरन्त आशीष से खुद को छुड़ाकर कमरे से सटे टायलेट की तरफ दौड़ी। टायलेट की सीट पर बैठते ही बिना जोर लगाये मेरी योनि से श्वे‍त पदार्थ मिश्रित स्राव बड़ी मात्रा में निकलने लगा।

परन्तु मूत्र विसर्जन के बाद मिलने वाली संतुष्टि भी कम सुखदायी नहीं थी।

अपनी योनि को अच्छी तरह धोने के बाद मैं वापस अपने कमरे में आई तो देखा आशीष अपना नाईट सूट पहनकर टीवी देखने लगे।

मैं भी अब पहले से बहुत अच्छा अनुभव कर रही थी, आते ही आशीष की बगल में लेटकर टीवी देखने लगी। पता ही नहीं लगा कि कब मुझे नींद आ गई।
 
कितनी सैक्सी हो तुम --4 इस स्राव के निकलते ही मुझे कुछ सुकून महसूस हुआ, अब मेरी तड़प भी कम हो गई थी, मैं होश में आने लगी परन्तु मेरे पूरे शरीर में मीठा-मीठा दर्द हो रहा था, मुझे ऐसा महसूस होने लगा जैसे मेरा पेशाब यहीं निकल जायेगा।

मैं तुरन्त आशीष से खुद को छुड़ाकर कमरे से सटे टायलेट की तरफ दौड़ी। टायलेट की सीट पर बैठते ही बिना जोर लगाये मेरी योनि से श्वे‍त पदार्थ मिश्रित स्राव बड़ी मात्रा में निकलने लगा।

परन्तु मूत्र विसर्जन के बाद मिलने वाली संतुष्टि भी कम सुखदायी नहीं थी।

अपनी योनि को अच्छी तरह धोने के बाद मैं वापस अपने कमरे में आई तो देखा आशीष अपना नाईट सूट पहनकर टीवी देखने लगे।

मैं भी अब पहले से बहुत अच्छा अनुभव कर रही थी, आते ही आशीष की बगल में लेटकर टीवी देखने लगी। पता ही नहीं लगा कि कब मुझे नींद आ गई।

सुबह जब मैं जगी तो बिल्कुल फ्रेश थी आज का दिन मुझे अपनी ससुराल में सबसे अच्छा लग रहा था।

आशीष फैक्ट्री चले गये, मैं अपने रोजमर्रा के कामों से फ्री होकर दिन में फिर से सो गई।

आज उम्मीद थी कि फिर से कुछ नया होगा।

मैंने शाम को फ्री होते ही नहा धोकर मेकअप किया, अच्छी साड़ी पहनकर तैयार हुई, लिप्स्टिक, आई लाइनर और पता नहीं क्या-क्या रगड़ डाला चेहरे पर।आखिर आशीष को आकर्षित जो करना था।

हुआ भी वही, आशीष शाम को फैक्ट्री से घर आये जैसे ही मुझे देखा एकदम बोले- नयना… आज तो सच में पटाखा लग रही हो। लगता है घायल करने के मूड में हो…

मैं मन ही मन बहुत खुश थी, रात को मिलने वाले सुख की आशा में रोमाँचित भी।

रात का खाना खाकर मैं जल्दी से कमरे में आई और नाइट गाऊन पहन कर आशीष का इंतजार करने लगी।कुछ देर मम्मी पापा के साथ समय बिताने के बाद आखिर आशीष भी कमरे में आ ही गये।

मैंने मुस्कुरा कर उनका स्वागत किया, पर आज कमरे में आते ही उन्होंने दरवाजा बंद किया और मुझे गले से लगाते हुए बोले- तुम इतनी सुन्दर हो मुझे तो अंदाजा ही नहीं था। मैं भी आने वाले सुखद पलों को सोचते सोचते उनकी बाहों में सिमट गई, उन्होंने अपने होंठ मेरे तपते हुए होंठों पर रख दिये।

हालांकि मैं भी यही चाहती थी परन्तु आशीष की तरफ से इस तरह के अप्रत्याक्षित हमले के लिये मैं तैयार नहीं थी, मैं बिदककर उनसे दूर हट गई।

आशीष किसी शिकारी की तरह मुझे पर झपटे, और मुझे बाहों में लेकर बिस्तर पर गिर गये।

हाययय… आशीष तो पागलों की तरह मुझे चूमने लगे, मेरा नाइट गाउन उन्होंने उतार फेंका, अब तो मैं भी इस कामानन्‍द के लिये तैयार हो चुकी थी, मैं भी आशीष की शर्ट के बटन खोलने लगी।

आशीष ने मेरी मदद की और शर्ट उतार फेंकी, बनियान उन्होंने खुद ही उतार दी।

आशीष मेरे सामने ऊपर से नंगे थे, मैं भी उनके सामने सिर्फ पैंटी में थी।

पिछली रात वाला खेल हम दोनों के बीच फिर से शुरू हो गया, आज मैं भी थोड़ा थोड़ा साथ देने लगी।

फिर आज भी वो ही हुआ आशीष ने मेरे पूरे बदन को इतना चूमा और चाटा कि मेरा योनि रस टपकने लगा, मैं उठी बाथरूम में जाकर फ्रैश हुई, वापस आकर देखा आशीष बिल्कुल नार्मल मूड में नाइट सूट पहनकर टीवी देख रहे थे। मैं भी उनके साथ टीवी देखते देखते सो गई।

अब तो यही हम दोनों की रतिचर्या बन गई।

आशीष रोज रात को मेरे बदन का भरपूर मर्दन करके मुझे डिस्चार्ज कर देते और मैं संतुष्ट होकर सो जाती।

धीरे धीरे ऐसे ही कुछ महीने बीत गये, अब मैं भी आशीष से खुलकर बात करने लगी।

आखिर अब मैं इस घर में नई नहीं थी, अपना अधिकार समझने लगी थी, अब आशीष का यह व्यवहार मुझे कुछ अजीब लगने लगा था, आशीष का सैक्स करने का तरीका मेरे ज्ञान से कुछ अजीब था पर मैं बहुत चाहकर भी आशीष से इस बारे में बात नहीं कर पा रही थी।

हाँ यह जरूर था कि आशीष के साथ रोज रात को मैं खुलकर खेल लेती थी और शायद मैं उससे संतुष्ट भी थी पर अब ज्यादा पाने की चाहत होने लगी थी।एक दिन मैंने खुद ही एक मजबूत निर्णय लिया, मैंने दिन भर कुछ सोचा और रात को उस पर अमल करने का निर्णय लिया।

उस रात को मैं रोज की तरह नहा धोकर अच्छे से तैयार होकर आशीष का इंतजार करने लगी। आशीष की अपनी नित्यचर्या को पूरा करके रात को 10 बजे अपने कमरे में आये।

अन्दर आते ही उन्होंने मुझे गले से लगाया और मेरे होंठों पर एक प्यारी सी चुम्मी दी। मैंने भी बढ़कर उनका स्वागत किया और बदले में उससे भी प्यारी चुम्मी उनके होंठों पर दी।

हम लोग बिस्तर पर बैठकर बातें करते करते टी वी देख रहे थे। धीरे से आशीष से एक हाथ आगे बढ़ाकर मेरी गोलाइयों को सहलाना शुरू कर दिया।

मुझे आशीष का यों सहलाना सदा से बहुत पसन्द है, मैं आशीष की ओर थोड़ा झुक गई ताकि उनको आसानी हो, हुआ भी यही… अब आशीष को आसानी हुई और उन्होंने मेरे गाऊन को आगे से खोलकर अपने दोनों हाथों में मेरे दुग्धकलश थाम लिये।आहह… हहहहहह… क्या अहसास थाॽ

मैंने कस कर आशीष को पकड़ लिया और अपने होंठ आशीष को होंठों से सटा दिये।

आशीष मेरे होंठों का कामुक रस पीने लगे और दोनों हाथों से मेरे गोरे और बड़े स्तनों की घुंडियों को सहला रहे थे। माँऽऽऽऽ…रे… क्या सुखद अनुभूति थी ! उसको बयान करना भी मुश्किल था।

आशीष से मेरे गाऊन के बचे हुए बटन भी खोल दिये और गाऊन को मेरे बदन से अलग कर दिया। अब मैं सिर्फ पैंटी में थी। आशीष मेरे बांयें कान के नीचे लगातार चूमते जा रहे थे।

मेरे पूरे बदन में गुदगुदी होने लगी।

आशीष को मेरा गोरा बदन चाटना बहुत पसन्द था और मुझे चटवाना।

मैंने भी धीरे धीरे-आशीष की कमीज के बटन खोलकर उनके बदन से अलग कर दिया, बनियान आशीष ने खुद ही उतार दी।

अब वो भी सिर्फ एक पायजामा और अंडरवीयर में थे। आशीष मेरी गर्दन को चूमते और चाटते जा रहे थे, धीरे धीरे उनके होंठों ने मेरे बांये चुचुक पर कब्जा जमा लिया दायाँ चुचुक अभी भी उनकी उंगलियों के बीच में मचल रहा था।ऊफ्फ्फ… क्या कामुक अहसास था… आशीष का दांया हाथ मेरी पैंटी के अन्दर जा चुका था।

मैंने आज सुबह ही खास आशीष के लिये अपनी योनि के चारों ओर के बालों को हटाकर उसको बिल्कुल मक्खन जैसी चिकनी बनाया था मैं चाहती थी कि आज आशीष पूरा ध्यान मेरी इस चिकनी चमेली पर ही हो।

आशीष अपने एक हाथ से मेरी इस चिकनी चमेली को सहला रहे थे और दूसरे हाथ से मेरी चूचियों से खेल रहे थे, उनके होंठों का रस लगातार मेरे चुचूकों पर गिर रहा था।

आशीष ने पता नहीं कब मेरी पैंटी भी निकाल दी। अब मैं पूरी नंगी होकर अपना रूप यौवन आशीष की नजरो में परोसने लगी।

आशीष मुझे अति कामुक नजरों से देख रहे थे जिसका असीम आनन्द मैं लगातार अनुभव कर रही थी।

मेरा पूरा बदन कांप रहा था, मैं अपने हाथों से आशीष को सहला रही थी। आज मैं आशीष को इतना गरम कर देना चाहती थी कि वो आज मेरे काम जीवन के अधूरेपन को खुद ही पूरा कर दें।

मैंने आशीष को बिस्तर पर गिरा लिया, अब मैं आशीष के ऊपर आ गई, मैंने आशीष के होंठों को अपने होंठों में लेकर ऐसे ही चूसना शुरू कर दिया जैसे आशीष कल तक मेरे होंठों को चूसते थे।

उनके होंठों का कामुक रस जैसे मेरे बदन में आग लगा रहा था मैं तो खुद ही इस आग में जलने को तैयार थी। मैंने आशीष की गर्दन और छाती को चूमना शुरू कर दिया।

जिस तरह आशीष मेरे बदन तो सिर से पैर तब चूमते थे आज वो ही मैं करने लगी उनके साथ। आहहहह… इस बार सिसकारी आशीष ने ली।

मुझे आशीष को ऐसे प्यार करना अच्छा लग रहा था। मैंने अपनी दोनों चूचियों को आशीष के बदन पर रगड़ना शुरू कर दिया। सीईईईईई… मैं तो जैसे जन्नत में थी।

आज सब उल्टा हो रहा था आशीष ने अति उत्तेजना में बिस्तर की चादर को पकड़ लिया। मैं तो आशीष के ऊपर चढ़कर बैठ गई। अपने स्तनों को आशीष के बदन पर रगड़ते रगड़ते मैं आशीष की छाती से होते हुए पेट पर आ गई और बड़ी अदा के साथ आशीष के पायजामे को नीचे सरकाना शुरू कर दिया।

आशीष भी नितम्ब उठाकर मेरा साथ देने लगे। आशीष के नितम्ब ऊपर होते ही मैंने तेजी आशीष का पायजामा निकाल कर फेंक दिया।
 
कितनी सैक्सी हो तुम --5 आज सब उल्टा हो रहा था आशीष ने अति उत्तेजना में बिस्तर की चादर को पकड़ लिया। मैं तो आशीष के ऊपर चढ़कर बैठ गई। अपने स्तनों को आशीष के बदन पर रगड़ते रगड़ते मैं आशीष की छाती से होते हुए पेट पर आ गई और बड़ी अदा के साथ आशीष के पायजामे को नीचे सरकाना शुरू कर दिया।

आशीष भी नितम्ब उठाकर मेरा साथ देने लगे। आशीष के नितम्ब ऊपर होते ही मैंने तेजी आशीष का पायजामा निकाल कर फेंक दिया। आशीष की दोनों टांगों के बीच में लटका हुआ लिंग मेरे सामने था। मैंने आशीष के पूरे बदन को चूमना शुरू कर दिया। सीईईईई…आ…शी…ष…ऊफ्फ्फ्फ… आशीष ने मेरे दोनों निप्पल को उमेठ डाला।

मैं कामाग्नि में पूरी तरह जल रही थी, मैंने एक हाथ से आशीष के सोये हुए लिंग को सहलाना शुरू कर दिया।

आशीष लगातार मेरे स्तनों को दबा रहे थे, मेरे निप्पलों से खेल रहे थे परन्तु चूंकि मैं आशीष की टांगों के बीच में थी तो उनको बार बार मेरे स्तनों को सहलाने में परेशानी हो रही थी।

मेरा ध्यान सिर्फ आशीष के लिंग की तरफ ही था, मैं लगातार प्रयास कर रही थी कि आज इसी लिंग से निकलने वाले अमृत से अपनी कामाग्नि बुझाऊँ।

हाययय…आहहह… मेरा पूरा बदन बुरी तरह कामोत्तेजित था। मेरी योनि में अजीब तरह की खुजली हो रही थी। हालांकि मेरे लिये यह खुजली नई नहीं थी परन्तु इतनी अधिक खुजली कभी महसूस नहीं हुई।

मैं आशीष के लिंग को अपनी योनि में अन्दर तक बसा लेना चाहती थी। अनेक प्रयास करने पर भी जब आशीष के लिंग में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मजबूर होकर मै आशीष के दोनों ओर पैर करके ऊपर आ गई, अब उनका लिंग मेरी योनि के ठीक नीचे था।

आशीष लगातार आँखें बन्द करके मेरे स्तनों से खेल रहे थे।

उईईईई… मेरी योनि की बेचैनी मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी, योनि के अन्दर जैसे ज्वार भाटा उबल रहा था।

मैंने अपनी योनि को ही सीधे आशीष के सोये पड़े लिंग पर रगड़ना शुरू कर दिया। पर… ऊफ्फ्फ…ये…क्या…हुआ…मेरी…बेचैनी…तो…घटने…की…बजाय…और…बढ़…गई। दिल तो ये करने लगा कि चाकू लेकर अपनी योनि

को चीर दूँ मैं !

आशीष बेदर्दी से मेरे स्तनों से खेल रहे थे, मैं पागलों की तरह अपनी योनि आशीष के लिंग पर रगड़ने लगी। हायययय… कुछ देर तक रगड़ते-रगड़ते मेरी योनि से खुद ही रस निकलने लगा, मेरी आँखों से नशा सा छंटने लगा। कुछ तो आराम मिला।

हालांकि अभी भी कुछ कमी महसूस हो रही थी पर योनि की अग्नि कुछ हद तक शांत हो चुकी थी। आशीष अब आँखें बन्द किये आराम से लेटे थे।

मैं उनके ऊपर से उठकर सीधे बाथरूम में गई, योनि के अन्दर तक पानी मारकर उसको ठण्डा करने की कोशिश की और सफाई करके वापस आई, देखा तो आशीष सो चुके थे या शायद सोने का नाटक कर रहे थे।

मेरी आँखें भी बोझिल थी, चुपचाप आकर सो गई मैं।

सुबह मैं फ्रैश मूड से उठी तो देखा आशीष हमेशा की तरह गहरी नींद में सो रहे थे। बैड टी लाकर मैंने आशीष को आवाज दी, आशीष ने आँखें खोली, मुझे देखकर मुस्कुसराये और सीधे बैठकर चाय का कप ले लिया।

मैंने समय ना गंवाते हुए तुरन्त आशीष से पूछा- क्या आपको कोई प्राब्लम हैॽ

आशीष शायद मेरे इस अप्रत्याक्षित प्रश्न के लिये तैयार नहीं थे, चाय का कप भी उसके हाथों से गिरते गिरते बचा पर आशीष कुछ नहीं बोले।

मैंने फिर से अपना सवाल थोड़ी तेज आवाज और गुस्से वाले अंदाज में दोहराया।

‘हाँ…’ बस इतना ही बोला आशीष ने और उनकी आँखों से तेजी से आँसू गिरने लगे।

मेरे तो जैसे पैरों के तले से जमीन ही खिसक गई। मैं समझ ही नहीं पाई कि मुझे क्या करना चाहिएॽ मुझे तो अपना वैवाहिक जीवन ही अंधेरे में दिखने लगा पर आशीष लगातार रोये जा रहे थे।

भले ही कुछ भी परेशानी थी पर पति-पत्नी का प्यार अपनी जगह होता है, मुझसे आशीष के ये आँसू बर्दाश्त नहीं हो रहे थे, मैंने माहौल को हल्का करने के लिये बोला- चाय तो पी लो और टैंशन मत लो। हम किसी अच्छेा डॉक्टर को दिखा लेंगे।

पता नहीं आशीष ने मेरी बात पर ध्यान दिया या नहीं पर वो चाय पीकर बहुत तेजी से अपने दैनिक कार्य से निवृत्त होकर ऑफिस के लिये तैयार हुए और बाहर आ गये।

आज आशीष पापा से भी पहले ऑफिस के लिये निकल गये।

मैं कोई बेवकूफ नहीं थी, उनकी मनोदशा अच्छी तरह समझ सकती थी पर अन्दर से मैं भी बहुत परेशान थी। मुझे तो अपना वैवाहिक जीवन ही अन्‍धकारमय लगने लगा। मेरे पति का पुरूषांग जिस की दृढ़ता हर पुरूष को गौरवांन्वित करती है, क्रियाशील ही नहीं था। हालांकि मैं व्यक्तिगत रूप से खुद को बहुत मजबूत मानती थी पर आज मैं भी खुद को अन्दर से टूटा हुआ महसूस कर रही थी।

शादी के बाद पिछले 4 महीनों में आशीष के व्य्वहार का आकलन कर रही थी। आशीष सच में मुझे जान से बहुत प्यार करते थे। मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूँॽ

फिर भी मैंने रात को आशीष से खुलकर बात करने का निर्णय किया। आज मुझे एक दिन इस घर में पिछले 4 महीने से ज्यादा लम्बा लग रहा था।

रात को आशीष घर बहुत देर से आये, उन्होंने सोचा होगा कि मैं सोती हुई मिलूँगी तो कोई बात ही नहीं होगी। पर मेरी आँखों से तो नींद कोसों दूर थी। डिनर के बाद कमरे में आते ही मैंने उनसे बात करनी शुरू की, मेरी बात शुरू करते ही उनकी आँखों से आँसू छलकने लगे।

यही मेरी सबसे बड़ी कमजोरी थे मैं उनको रोता नहीं देख सकती थी।

उन्होंने बोलना शुरू किया- नयना, सच तो यह है कि मैं शुरू से ही तुमको धोखा दे रहा हूँ ! तुमको ही नहीं सबको, अपने माँ-बाप को भी। मैंने अपनी इस बीमारी के बारे में किसी को नहीं बताया। मुझे पता था कि एक ना एक दिन तुमको जरूर पता चलेगा पर मैं तुमको दुख नहीं पहुँचाना चाहता था। हमेशा सोचता था कि जब तक काम ऐसे चल रहा है चलने दूं। मैंने शादी से पहले इसके अनेक इलाज करवाये पर कोई फायदा नहीं हुआ। आज तुमको इसके बारे में पता चल गया है तो निर्णय तुम पर है तो चाहो निर्णय ले सकती हो। मेरे मन में तुम्हारे लिये जो प्यार आज है वो ही हमेशा रहेगा।

अब मैं क्या करतीॽ मैं तो अन्दर से पहले ही टूट चुकी थी। उनके साथ मेरी भी आँखों से आँसू निकल गये।

हम दोनों एक दूसरे को चुप कराते कराते कब सो गये पता ही नहीं चला।

सुबह मैं आशीष से पहले उठी। बहुत सोचा फिर बाद में इसी को नियति का खेल सोचकर धैर्य करना ही ठीक समझा और आशीष के लिये चाय बनाने चली गई।

जिंदगी ऐसे ही चलती रही। सात साल कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। पर उस दिन अचानक मानो मुझ पर बिजली गिर पड़ी, मेरी शादी की सातवीं सालगिरह थी, सभी मेहमान आये हुए थे।

अच्छा खासा फंक्शन चल रहा था, अचानक मेरी सास मेरी मम्मी के पास आयी और बोली- बहन जी, आपकी बेटी की शादी को 7 साल हो गये, जरा इससे ये तो पूछो कि हमें पोते-पोती का मुँह भी दिखायेगी या नहींॽ

मेरी सास ने भरी महफिल में मेरी माँ से ऐसा सवाल पूछ लिया जिसका जवाब उस समय कोई भी नहीं दे सकता था।

बहुत हंगामा हुआ, मेरे पापा भी कोई इतनी छोटी चीज नहीं थे जो अपनी बेटी की इस तरह भरी महफिल में बेइज्जती सहन कर लेते। उसी दिन शाम को मम्मी पापा मुझे अपने साथ घर लिवा लाये। आशीष के लाख कहने के बाद भी उन्होंने मुझे उस घर में नहीं रहने दिया।

मेरी सास के इस व्यवहार से मैं भी हतप्रभ थी पर मैं किसी भी कीमत पर आशीष से दूर नहीं होना चाहती थी। मजबूरी ऐसी कि असली बात किसी को बता भी नहीं सकती थी।
 
अच्छा खासा फंक्शन चल रहा था, अचानक मेरी सास मेरी मम्मी के पास आई और बोली- बहन जी, आपकी बेटी की शादी को 7 साल हो गये, जरा इससे ये तो पूछो कि हमें पोते-पोती का मुँह भी दिखायेगी या नहींॽ

मेरी सास ने भरी महफिल में मेरी माँ से ऐसा सवाल पूछ लिया जिसका जवाब उस समय कोई भी नहीं दे सकता था।

बहुत हंगामा हुआ, मेरे पापा भी कोई इतनी छोटी चीज नहीं थे जो अपनी बेटी की इस तरह भरी महफिल में बेइज्जती सहन कर लेते। उसी दिन शाम को मम्मी पापा मुझे अपने साथ घर लिवा लाये। आशीष के लाख कहने के बाद भी उन्होंने मुझे उस घर में नहीं रहने दिया।

मेरी सास के इस व्यवहार से मैं भी हतप्रभ थी पर मैं किसी भी कीमत पर आशीष से दूर नहीं होना चाहती थी। मजबूरी ऐसी कि असली बात किसी को बता भी नहीं सकती थी।

अब मायके में मेरे दिन महीने ऐसे ही कटने लगे, अनेको बार फैसले की बातें हुई। आशीष लेने भी आये पर मेरे पापा थे कि मुझे भेजने को तैयार ही नहीं हुए।

रिटायरमेंट के बाद पापा ने भी पेंट की एक फैक्ट्री लगा ली थी आगरा में जिसका सारा काम मुकुल देखता था। मुकुल मेरे बचपन का साथी था। मुकुल के पापा मेरे पापा के आफिस में ही चपरासी थे, वो शुरू से ही हमारे साथ रहे।

मुकुल और मैं एक साथ खेलकूद कर बड़े हुए क्योंकि बड़े होने के बाद मुकुल को काम की जरूरत थी और पापा को विश्वसनीय आदमी की तो उन्होंने मुकुल को अपने साथ ही रख लिया।

मेरे घर आने के बाद तो पापा अक्सर बीमार ही रहने लगे, अब सारा काम मुकुल अकेले ही देखने लगा।

धीरे धीरे मुझे घर आये एक साल बीत गया, एक दिन मैंने पापा से कहा- पापा, मैं सारा दिन घर में बैठकर बोर हो जाती हूं अगर आप बुरा ना मानो तो मैं फैक्ट्री का काम देख लूंगी इस बहाने आपकी मदद भी हो जायेगी और मेरा समय भी कट जायेगा।

पापा ने मेरे सुझाव पर सहर्ष सहमति दे दी।

अब मुकुल रोज मुझे फैक्ट्री ले जाता वहाँ सारा काम समझाता और शाम को घर छोड़ भी जाता।

पापा ने मुकुल से मुझे परचेजिंग और एकाउंट्स सिखाने को कहा।

इस बार तय हुआ कि इस बार परचेजिंग के लिये मुकुल मुझे साथ दिल्ली ले जायेगा।

तय दिन पर मैं समय से पहले ही तैयार होकर गाड़ी लेकर मुकुल के घर की तरफ चल दी।

सोचा कि मुकुल यहाँ तक आयेगा उससे बेहतर यह है कि मैं मुकुल तो उसके घर से ही ले लूँगी।

मैंने कार मुकुल की सोसायटी की पार्किंग में लगाई और ऊपर मुकुल के फ्लैट के बाहर पहुँची।

अभी मैं डोर बैल बजाने ही वाली थी कि अन्दर से लड़ाई की आवाजें आने लगी। मुकुल और उसकी पत्नी मोनिका बहुत तेज तेज लड़ रहे थे। मोनिका शायद मुकुल के साथ नहीं रहना चाहती थी।

मुकुल कह रहा था- तुम मेरी पत्नी हो, तुमको प्यार करना मेरा अधिकार है उसको कोई नहीं रोक सकता।

मोनिका बोली- प्यार का मतलब यह नहीं कि जब दिल किया आये और बीवी पर चढ़ गये। मुझे ये सब बिल्कुल भी पसन्द नहीं है। बहुत दर्द होता है, बर्दाश्त नहीं होता।

अब उन दोनों की बात मुझे कुछ कुछ समझ आने लगी, मैं कोई दूध पीती बच्ची तो थी नहीं।

अब मैंने देर ना करते हुए डोर बैल बजाई। अन्दर एकदम शान्ति हो गई।

मुकुल बाहर आया और मुझे देखकर सीधा मेरे साथ ही नीचे आ गया। उसका मूड खराब था।

मैंने गाड़ी की चाबी मुकुल को दे दी, उसने स्टेयरिंग सम्भाला और हम दिल्ली की तरफ चल दिये।

मुकुल चुपचाप गाड़ी चला रहा था उसका मूड खराब था, मूड मेरा भी ठीक नहीं था। पर हम दोनों के कारण अलग अलग थे।

मैं सोच रही थी कि एक तरफ तो मुकुल है जिसकी पत्नी उसको झेल नहीं पा रही।

दूसरी तरफ मैं हूं जिसका पति उसको वो सुख नहीं दे पा रहा। ईश्वर भी ऐसा अन्याय क्यों करता हैॽ पर दुनिया में अक्सर जोड़े ऐसे बन ही जाते हैं।

सोचते-सोचते मेरे दिमाग ने काम करना शुरू किया, मैंने सोचा क्यों ना मुकुल को वो सुख मैं दूं जो मोनिका नहीं दे पा रही और मुझे मुकुल से वो सुख मिल सके जो आशीष से नहीं मिला।

इस तरह हम दोनों एक दूसरे के पूरक बन सकते थे।

पर मुकुल स्वभाव से ऐसा नहीं था डर यही था कि मुकुल तैयार होगा या नहीं।

पता नहीं कब मैंने फैसला कर लिया कि अब मुझे मुकुल को अपने लिये तैयार करना ही होगा।

मैंने मुकुल की ओर देखा, वो चुपचाप गाड़ी चला रहा था।

मैंने मन ही मन मुकुल पर डोरे डालने का निर्णय लिया, मैंने अपना दुपट्टा उतार कर पीछे की सीट पर फेंक दिया, कुर्ती को ठीक किया और अपने खूबसूरत स्तनों को कुछ ज्यादा ही उभार लिया।

मैंने मुकुल से साईड में गाड़ी रोकने को कहा, उसने गाड़ी रोकी तो मैंने पूछा- अब बताओ क्या बात हैॽ तुम्हारा मूड क्यों खराब हैॽ

मुकुल ने कोई जवाब नहीं दिया।

अब मैंने मुकुल को अपनी पुरानी दोस्ती का वास्ता दिया- देखो मुकुल, यह ठीक है कि आज तुम पापा की फैक्ट्री में हो पर मेरे लिये पहले मेरे दोस्त हो मुझे नहीं बताओगे क्या बात हुईॽ

पर मुकुल अब भी चुप ही रहा। आखिर में मजबूर होकर मुझे ब्रह्मास्त्र चलाना पड़ा, मैंने कहा- मैंने तुम्हारे घर के बाहर तुम्हारी और मोनिका की सब बातें सुन ली थी।

मेरा इतना बोलना था कि मुकुल फट पड़ा, बोला- तुम ही बताओ, मेरी क्या गलती हैॽ आखिर तीन साल हो गये हमारी शादी को। मोनिका है कि मुझे हाथ तक नहीं लगाने देती। क्या मैं इंसान नहीं हूंॽ मेरा दिल नहीं करता कि अपनी पत्नी को प्यार दूंॽ उसके शरीर को प्यार करूंॽ पर मोनिका तो यह समझती ही नहीं।

मुकुल एक ही सांस में सब बोलकर रूआँसा सा होकर बैठ गया।मैंने अपनी दांई बांह पसारकर मुकुल की गर्दन में डाल दी और मुकुल को जानबूझ कर अपनी छाती से चिपकाकर कहा- कोई बात नहीं। सब ठीक हो जायेगा, तुम टैंशन मत लो।

मुकुल चुप था, मैं मुकुल को कुछ ज्यादा ही दबाव देकर अपने स्तनों पर चिपका रही थी पर मुकुल ने खुद को छुड़ाते हुए कहा- पता नहीं कब ठीक होगा। होगा भी या नहीं।

मेरे अन्दर खुद ही ऊर्जा का संचार होने लगा था, मैं अब मुकुल पर पूरा ध्यान दे रही थी, मैं खुद को बहुत गर्म महसूस कर रही थी, दिल तो था कि ऐसे ही मुकुल को पकड़ लूं पर हिम्मत नहीं कर पा रही थी।

अगर मुकुल ने ना कर दिया तो?

बस यही सोच रही थी।

मैं चाहती थी कि ऐसा जाल फैला दूं कि मुकुल चाहे तो भी मना ना कर पाये। मैं बार-बार मुकुल तो अलग अलग बहाने से छू रही थी। मैंने रात को दिल्ली में ही रूकने को बोला।

मुकुल तैयार नहीं था पर मैंने कहा- मुझे आज दिल्ली घुमाना, मैंने सुना है शाम को इंडिया गेट पर बहुत भीड़ होती है। तुम पापा को कोई भी बहाना बनाओ पर आज रात यहीं रूकेंगे कल सुबह सुबह वापस चलेंगे।

मेरे जोर देने पर मुकुल को मानना पड़ा पर बोला कि पहले अपना काम करेंगे फिर घूमना।

बस मेरा काम बनता दीखने लगा।

फटाफट अपना काम निपटाकर हम जल्दी ही फ्री हो गये। एक तो मैं वैसे ही आग में जली जा रही थी ऊपर से मौसम की गर्मी बेहाल कर रही थी। मैंने सबसे पहले मुकुल को कहीं एक कमरा लेने की सलाह दी ताकि वहाँ फ्रैश होकर कुछ आराम करें।

वहीं करोलबाग में होटल क्लार्क में कमरा लिया। मैं तेजी से कमरे में पहुँची जबकि मुकुल गाड़ी पार्क करके बाद में आया। मैं अपना दिमाग बहुत तेजी से चला रही थी। जब जो जितनी तेजी से सोच रही थी उसी पर उतनी तेजी से ही अमल कर रही थी। मुझे पता था कि मेरे पास आज की रात है मुकुल को अपनाने के लिये, कल तो आगरा जाना ही होगा।

कमरे में आते ही मैं कपड़े उतारकर बाथरूम में चली गई। मुझे बाथ लेना था और यह मेरी योजना का एक हिस्सा भी था।

मैं शावर के पानी का आनन्द ले रही थी तभी कमरे में दरवाजा खुलने और बंद होने की आवाज हुई।

शायद मुकुल ही कमरे में आया था फिर भी मैंने सुनिश्चित किया- कौनॽ

“अरे मैडम मैं हूं…” यह मुकुल ही आवाज थी। तभी शायद मुकुल ने देखा बैड पर मेरे सारे कपड़े फैले हुए थे तो वो बोला- आते ही नहाने चली गई। इतनी गर्मी लग रही थी क्या?

मैंने कहा- हाँ, अब नहा तो ली, पर मैं वो पसीने वाले कपड़े नहीं पहनूंगी और कपड़े तो लाई नहीं तो अब क्या पहनूँ।

हंसते हुए मुकुल बोला- यह तो नहाने जाने से पहले सोचना था ना। अब तो फंस गई बैठो सारी रात बाथरूम में।

मुझे मुकुल का हंसना अच्छा लगा।

मैंने कहा- मैं ऐसे ही बाहर आ रही हूं तू कौन सा पराया है मेरे लिये; तू तो वैसे भी मेरा बचपन का दोस्त है।

इतना बोलकर मैं सिर्फ तौलिये में ही बाथरूम से बाहर आ गई, मैंने जानबूझ कर अपना बदन भी नहीं पोंछा।

मुकुल ने मुझे देखा तो जैसे पलक झपकाना भी भूल गया।

मैंने पूछा- क्या हुआॽ

मुकुल बोला- क्यों मुझ पर कहर बरपा रही हो। मैं कोई विश्वामित्र नहीं हूँ।

“पर मैं तो मेनका हूँ ना !” इतना बोलते हुए मैंने मुकुल की तरफ पीठ की और ड्रेसिंग टेबल की तरफ घूम गई।

अब मैं ड्रेसिंग के शीशे में देखकर अपने बाल ठीक करने लगी, और कनखियों से लगातार पीछे बैठे मुकुल को देख रही थी। वो पीछे से मेरी गोरी टांगों को मेरी पिंडलियों को मेरी जांघों को लगातार घूर रहा था।

मुझे मुकुल का यूं घूरना बहुत अच्छा लग रहा था।

हालांकि वो मुझसे नजरें बचाकर मुझे घूर रहा था पर तब वो मुझसे नजरें कैसे बचा सकता था जब ये जलवा मैं खुद ही उसको दिखा रही थी। हाँ मैं बिल्कुल नार्मल होने का नाटक कर रही थी।

बाल ठीक करके अचानक मैं मुकुल की तरफ मुड़ी क्योंकि मैं उसे रंगे हाथों पकड़ना चाहती थी पर वो भी बहुत तेज था उसने तेजी से अपनी गर्दन दूसरी तरफ घुमाने की कोशिश की।

मैंने सीधे सवाल दागा- क्या देख रहा था बदमाश…?
 
“व्‍व्वो मैं क्‍्क्कु…छ…नहींईईइ…” बस इतना ही फूटा मुकुल के मुंह से…

मैं हंसने लगी।

मुकुल मुझसे नजरें नहीं मिला पा रहा था।

मुझे लगा कि अभी शायद यह कुछ नहीं करेगा पर मैं यह भी जानती थी कि यदि आज मुकुल मेरे हाथ से निकल गया तो फिर जल्दी से मौका नहीं मिलेगा, मैं तेजी से अपना दिमाग दौड़ाने लगी।

मैंने ही आगे बढ़ने की ठानी, मैंने वहीं बिस्तर पर पड़ी अपनी पैन्टी को हाथ में उठाकर जानबूझ कर मुकुल की तरफ करके खोला और खड़े-खड़े ही नीचे झुककर पैन्टी को अपनी पैरों में डालने लगी।

इतना झुकने के कारण मेरे गोरे सुन्दर स्तनों की पूरी गोलाई मुकुल के सामने थी और मुकुल मुझसे नजर बचाकर लगातार मुझे ही घूर रहा था, मैं भी मुकुल को पूरा मौका देना चाहती थी इसीलिये जानबूझ कर उसकी तरफ नहीं देख रही थी।

मैंने पूरी तसल्ली से एक एक पैर में पैन्टी पहनकर ऊपर चढ़ाना शुरू कर दिया। मैं मुकुल की हर हरकत पर नजर रख रही थी पर उससे नजरें जानबूझ कर नहीं मिला रही थी।

मुकुल तो बेचारा एसी रूम में भी पसीने से तरबतर हो गया था।

तभी मैंने देखा कि मुकुल का एक हाथ उसकी पैन्ट के ऊपर आया, मेरी निगाह वहाँ गई, वो हिस्सा बहुत मोटा होकर फूल गया था।

मुकुल वहाँ धीरे धीरे हाथ फिराने लगा, मेरे हाथों पर मुस्कुकराहट आने लगी।

अचानक मुकुल वहाँ से उठा और बाथरूम की तरफ दौड़ा पर मै आराम से अपना काम कर रही थी।

मुकुल के बाथरूम जाने के बाद मैं भी दबे पांव उस तरफ घूमी, मुकुल शायद इतनी तेजी में था कि उसने दरवाजा बन्द भी नहीं किया।

मैंने अन्दर झांका- अन्दर का दृश्य बहुत ही मनोहारी था।

मुकुल टायलेट सीट के सामने खड़ा था उसकी पैंट पैरों में नीचे पड़ी थी और वह अपना लिंग पकड़कर बहुत जोर-जोर से आगे पीछे करके हिला रहा था।

मैं समझ गई कि मुकुल खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाया।

अभी मुझे कुछ और खेल भी खेलना था, मैं वापस घूम कर टावल हटाकर अपनी ब्रा पहनने लगी।

तभी मुकुल बाथरूम से बाहर आया और बोला- यह क्या कर रही हो नयना… कपड़े बाथरूम के अन्दर नहीं पहन सकती थी?

“कितना छोटा सा बाथरूम है… सारे कपड़े गीले हो जाते, और तू कोई गैर थोड़ा ही है।” मैंने जवाब दिया।

मेरे गोरे बदन पर काले रंग की ब्रा और पैंटी कहर ढा रही थी, मुकुल लगातार मुझे ही घूर रहा था पर उससे ज्यादा हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

मैंने ही दोबारा बातचीत शुरू की- गर्मी बहुत है ना, देख तुझे तो एसी में भी पसीना आ रहा है।

कहकर मैं फिर से शीशे की तरफ देखकर खुद को संवारने लगी।

मुकुल मेरी तरफ से ध्यान हटाते हुए बोला- नयना, भूख लगी है कुछ खाने को मंगा लेते हैं।

“हाँ, सैंडविच मंगवा ले।” मैंने कहा, मैं तो आज खुद मुकुल को सैडविच बनाना तय कर चुकी थी।

उसने सैंडविच आर्डर किया और फिर से कनखियों से मुझे घूरने लगा।

“कमीना, सिर्फ घूरेगा ही या कुछ और भी करेगा।” मैं मन ही मन सोच रही थी कि अचानक मुकुल बोला- नयना, मैंने कभी तुमको इतने गौर से नहीं देखा पर तुम सच में सुन्दर हो।

मेरी आँखों में तो जैसे चमक ही आ गई, मैंने मुकुल को और उकसाया- ओहहो, क्या-क्या सुन्दुर लग रहा है मुझमें?

“सर से पैर तक बिल्कुल अप्सरा हो… तुम्हारे बाल, तुम्हारी आँखें, तुम्हारी गोरी काया, तुम्हारी…” बोलते बोलते अचानक मुकुल रूक गया।

“मेरी क्याॽ” मैंने पूछा।

तभी रूम सर्विस वाला सैन्डविच ले आया। मैं दरवाजे की खटखटाहट सुनकर बाथरूम में चली गई।

मुकुल ने भी सैंडविच लेकर तेजी से दरवाजा बन्द कर दिया।

दरवाजा बन्द होने की आवाज सुनकर मैं बाहर आई, आते ही पूछा- हाँ तो मुकुल बता मेरी क्या…?

अब मुकुल बिल्कुल शरमा नहीं रहा था, मुझसे नजरें मिलाकर भी मुझे घूर रहा था।

मैं समझ गई कि वो थोड़ा बढ़ा है पर अब मुझे भी थोड़ा आगे बढ़ना पडेगा पर अब उसकी नजरें देखकर मुझे भी कुछ शर्म आने लगी थी, मैंने वहीं पड़ी चादर को ओढ़ लिया।

मुकुल बोला- गर्मी बहुत है, और नयना बिना चादर के ज्यादा अच्छी लग रही है।

कहते कहते मुकुल ने खुद ही मेरी चादर हटा दी, मैं अब मुकुल से नजरें नहीं मिला पा रही थी, मैंने हिम्मत करके फिर पूछा- मेरी और क्या चीज अच्छी लगीॽ

मुकुल मेरे बहुत करीब आ चुका था, उसकी गर्म सांसें सीधे मेरे कन्धों पर पड़ रही थी- तुम्हारी से खूबसूरत…

इतना ही बोला मुकुल ने, मेरी टांगें कांपने लगी, थोड़ी देर पहले मैं खुद को शेरनी समझ रही थी अब मुकुल जैसे शेर के सामने किसी बकरी की तरह खड़ी थी।

मुकुल ने मुझे अपनी तरफ खींचा। इधर मुकुल का हाथ मेरे बदन को छुआ… उधर मुझे महसूस हुआ कि शायद मेरी कच्छी भी किसी अनजाने स्राव से गीली हो रही है, मुझे अपनी टांगों के सहारे कुछ टपकता हुआ सा महसूस हुआ।

उफ्फ्फ… कितना सुखद अहसास था।

पर शायद मेरे अन्दर की नारी अब जाग चुकी थी जो मुझे यह सब करने से रोकने लग रही थी। मेरे दिमाग से अब काम करना बिल्कुल बन्द कर दिया था कि मुकुल ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया।

“मम्मुकु…ल… स्‍स्‍स्‍स्‍स्सैंडविच… खा…ले…ठण्‍…ठण्डा हो जायेगा।” हकलाते हुए मेरे मुंह से निकला।

बस इतना ही बोल पाई थी मैं कि उसके होंठों ने मेरे होंठों को कैद कर लिया, मुकुल की बांहों के बीच फंसी मैं छटपटा रही थी कि मुकुल मेरे गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठों को जैसे चूसने लगा।

मेरे मुंह से बस गग्‍ग्‍्ग्‍… की आवाज निकल पा रही थी।

मुकुल पूरी तसल्ली से मेरे रस भरे होंठों का रस पी रहा था। मुझ पर पता नहीं कैसे नशा सा छाने लगा, अब दिल कर रहा था कि मुकुल मुझे ऐसे ही चूसता रहे। पर चूंकि मुझे विश्वास हो गया था कि अब मुकुल मुझे नहीं छोड़ने वाला तो उससे बचने का नारी सुलभ ड्रामा को करना ही था।

मैं मुकुल को दूर धकेलने का प्रयास करने लगी, पता ही नहीं चला कब मुकुल ने पीछे से जकड़कर मेरी ब्रा का हुक खोल दिया। जैसे ही मैंने मुकुल को दूर हटाने को धक्का दिया, वो दूर तो हुआ पर साथ ही ब्रा भी निकल कर हाथों में आ गई और मेरे दोनों भरे-भरे गुब्बारे उछलकर बाहर निकल गये।

मैं अपने हाथों से उनको छुपाने का प्रयास करने लगी पर मुकुल ने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिये, वो एकटक मेरे दोनों स्तनों को देखे जा रहा था। हाययय…माँऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ… कितनी शर्म महसूस हो रही थी अब मुझे।

कमीना एकटक मेरे दोनों अमृत कलश ऐसे घूर रहा है जैसे खा ही जायेगा।

मुझमें अब उससे नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं थी। मैंने लज्जा़ से नजरें नीची कर ली।

मुकुल बिस्तर पर बैठ गया और मुझे अपने पास खींच लिया, अपने सामने खड़ा करके वो मेरे दोनों चुचुकों से खेलने लगा। अजीब सी मस्ती मुझ पर छाने लगी, मेरा अंग-अंग थरथरा रहा था, टांगों में खड़े होने की हिम्मत नहीं बची थी।

पर मुकुल जो आनन्द दे रहा था मैं उससे वंचित भी तो नहीं होना चाहती थी और तभी सीईईईईईईई… कमीने ने मुझे और नजदीक खींच कर मेरे दायें चुचूक को मुंह में दबा लिया।

“हाय्य्य्य्य… यह क्या कर दिया जालिम ने… मेरा बदन बिल्कुल भी खुद के काबू में नहीं था, निढाल सी होकर मुकुल के ऊपर ही गिर पड़ी।

मुकुल ने मुझे फिर से बांहों में जकड़ लिया और सहारा देकर बिस्तर पर गिरा दिया।

मेरी आँखें नशे से बन्द हो रही थी।

मुकुल मेरे ऊपर आ गया।

अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैंने भी लता की तरह मुकुल को जकड़ लिया, मुकुल की गर्म-गर्म सांसें मेरे बदन की कामाग्नि को और बढ़ा रही थी। मैं बुरी इस कामाग्नि में जल रही थी।

मुकुल मेरे गुदाज बदन को अपने होंठों से सींचने लगा, मेरे कन्धे, स्तनों, नाभि और पेड़ू को चूसते-चूसते वो नीचे की ओर बढ़ने लगा।

आहहहह… इसने तो एक झटके में मेरी कच्छी भी मेरी टांगों से निकाल फैंकी ! दैय्या रेएएए… जान लेगा क्या यह मेरी?

मैंने कस के चादर को पकड़ लिया, अब रुकना मुश्किल हो रहा था, मेरी टांगें अभी भी बैड से नीचे लटकी थी, वो मेरी दोनों को खोलकर उनके बीच में बैठ गया।

और…आह… मेरी…योनि…हाय…मेरी…मक्खन… जैसी…उफ्फ्फ्… चिकनी…योनि…चाटने लगा।

मैं अपने नितम्ब जोर जोर से हिलाने लगी।

मेरा रस बस टपकने ही वाला था।

उसने तो हद तब कर दी जब योनि के भगोष्ठों को खोलकर जीभ से अन्दर तक कुरेदने की कोशिश कर रहा था पर कामयाब नहीं हो पा रहा था। “आहहह… मैं गई…मार…डाला…” मेरे मुंह से इतना ही निकला और मेरा सारा कामरस निकलकर भगोष्ठों पर चिपक गया।

पर वो तो इसको भी मजे ले लेकर चाट रहा था।

हाँ… मैं जरूर अपने होशोहवास में आने लगी, उसका इस तरह चाटना मुझे अब बहुत अच्छा लग रहा था, उसने दोनों हाथों से मेरे दूधिया स्तनों को दबाकर जीभ की कर्मस्थली मेरी योनि को बना रखा था।

वो एक सैकेण्ड को सांस लेने को भी अपना मुंह वहाँ से हटाता तो मुझे अच्छा नहीं लगता था। मैंने पर शायद उसको भी आभास हो गया कि एक बार मेरा रस निकल चुका है।

वो पूरा निपुण खिलाड़ी था, कोई भी जल्द बाजी नहीं दिखा रहा था, उसने फर्श पर बैठकर मेरी दोनों टांगों को अपने कंधों पर रख लिया और मेरी दोनों मक्खन जैसी चिकनी जांघों को एक एक करके चाटने लगा।

अब मैं भी उसका साथ दे रही थी, कुछ सैकेण्ड तक जांघों को चाटने के बाद वो खड़ा हुआ और फिर मेरी टांगों को उठाकर मुझे घुमा कर पूरा बिस्तर पर लिटा दिया।

मैं आँखें बन्द किये पड़ी उसकी अगली क्रिया का इंतजार करने लगी।

पर यह क्या… उसका स्पर्श तो कहीं महसूस ही नहीं हो रहा था… कहाँ चला गया?
 
“व्‍व्वो मैं क्‍्क्कु…छ…नहींईईइ…” बस इतना ही फूटा मुकुल के मुंह से…

मैं हंसने लगी।

मुकुल मुझसे नजरें नहीं मिला पा रहा था।

मुझे लगा कि अभी शायद यह कुछ नहीं करेगा पर मैं यह भी जानती थी कि यदि आज मुकुल मेरे हाथ से निकल गया तो फिर जल्दी से मौका नहीं मिलेगा, मैं तेजी से अपना दिमाग दौड़ाने लगी।

मैंने ही आगे बढ़ने की ठानी, मैंने वहीं बिस्तर पर पड़ी अपनी पैन्टी को हाथ में उठाकर जानबूझ कर मुकुल की तरफ करके खोला और खड़े-खड़े ही नीचे झुककर पैन्टी को अपनी पैरों में डालने लगी।

इतना झुकने के कारण मेरे गोरे सुन्दर स्तनों की पूरी गोलाई मुकुल के सामने थी और मुकुल मुझसे नजर बचाकर लगातार मुझे ही घूर रहा था, मैं भी मुकुल को पूरा मौका देना चाहती थी इसीलिये जानबूझ कर उसकी तरफ नहीं देख रही थी।

मैंने पूरी तसल्ली से एक एक पैर में पैन्टी पहनकर ऊपर चढ़ाना शुरू कर दिया। मैं मुकुल की हर हरकत पर नजर रख रही थी पर उससे नजरें जानबूझ कर नहीं मिला रही थी।

मुकुल तो बेचारा एसी रूम में भी पसीने से तरबतर हो गया था।

तभी मैंने देखा कि मुकुल का एक हाथ उसकी पैन्ट के ऊपर आया, मेरी निगाह वहाँ गई, वो हिस्सा बहुत मोटा होकर फूल गया था।

मुकुल वहाँ धीरे धीरे हाथ फिराने लगा, मेरे हाथों पर मुस्कुकराहट आने लगी।

अचानक मुकुल वहाँ से उठा और बाथरूम की तरफ दौड़ा पर मै आराम से अपना काम कर रही थी।

मुकुल के बाथरूम जाने के बाद मैं भी दबे पांव उस तरफ घूमी, मुकुल शायद इतनी तेजी में था कि उसने दरवाजा बन्द भी नहीं किया।

मैंने अन्दर झांका- अन्दर का दृश्य बहुत ही मनोहारी था।

मुकुल टायलेट सीट के सामने खड़ा था उसकी पैंट पैरों में नीचे पड़ी थी और वह अपना लिंग पकड़कर बहुत जोर-जोर से आगे पीछे करके हिला रहा था।

मैं समझ गई कि मुकुल खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाया।

अभी मुझे कुछ और खेल भी खेलना था, मैं वापस घूम कर टावल हटाकर अपनी ब्रा पहनने लगी।

तभी मुकुल बाथरूम से बाहर आया और बोला- यह क्या कर रही हो नयना… कपड़े बाथरूम के अन्दर नहीं पहन सकती थी?

“कितना छोटा सा बाथरूम है… सारे कपड़े गीले हो जाते, और तू कोई गैर थोड़ा ही है।” मैंने जवाब दिया।

मेरे गोरे बदन पर काले रंग की ब्रा और पैंटी कहर ढा रही थी, मुकुल लगातार मुझे ही घूर रहा था पर उससे ज्यादा हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

मैंने ही दोबारा बातचीत शुरू की- गर्मी बहुत है ना, देख तुझे तो एसी में भी पसीना आ रहा है।

कहकर मैं फिर से शीशे की तरफ देखकर खुद को संवारने लगी।

मुकुल मेरी तरफ से ध्यान हटाते हुए बोला- नयना, भूख लगी है कुछ खाने को मंगा लेते हैं।

“हाँ, सैंडविच मंगवा ले।” मैंने कहा, मैं तो आज खुद मुकुल को सैडविच बनाना तय कर चुकी थी।

उसने सैंडविच आर्डर किया और फिर से कनखियों से मुझे घूरने लगा।

“कमीना, सिर्फ घूरेगा ही या कुछ और भी करेगा।” मैं मन ही मन सोच रही थी कि अचानक मुकुल बोला- नयना, मैंने कभी तुमको इतने गौर से नहीं देखा पर तुम सच में सुन्दर हो।

मेरी आँखों में तो जैसे चमक ही आ गई, मैंने मुकुल को और उकसाया- ओहहो, क्या-क्या सुन्दुर लग रहा है मुझमें?

“सर से पैर तक बिल्कुल अप्सरा हो… तुम्हारे बाल, तुम्हारी आँखें, तुम्हारी गोरी काया, तुम्हारी…” बोलते बोलते अचानक मुकुल रूक गया।

“मेरी क्याॽ” मैंने पूछा।

तभी रूम सर्विस वाला सैन्डविच ले आया। मैं दरवाजे की खटखटाहट सुनकर बाथरूम में चली गई।

मुकुल ने भी सैंडविच लेकर तेजी से दरवाजा बन्द कर दिया।

दरवाजा बन्द होने की आवाज सुनकर मैं बाहर आई, आते ही पूछा- हाँ तो मुकुल बता मेरी क्या…?

अब मुकुल बिल्कुल शरमा नहीं रहा था, मुझसे नजरें मिलाकर भी मुझे घूर रहा था।

मैं समझ गई कि वो थोड़ा बढ़ा है पर अब मुझे भी थोड़ा आगे बढ़ना पडेगा पर अब उसकी नजरें देखकर मुझे भी कुछ शर्म आने लगी थी, मैंने वहीं पड़ी चादर को ओढ़ लिया।

मुकुल बोला- गर्मी बहुत है, और नयना बिना चादर के ज्यादा अच्छी लग रही है।

कहते कहते मुकुल ने खुद ही मेरी चादर हटा दी, मैं अब मुकुल से नजरें नहीं मिला पा रही थी, मैंने हिम्मत करके फिर पूछा- मेरी और क्या चीज अच्छी लगीॽ

मुकुल मेरे बहुत करीब आ चुका था, उसकी गर्म सांसें सीधे मेरे कन्धों पर पड़ रही थी- तुम्हारी से खूबसूरत…

इतना ही बोला मुकुल ने, मेरी टांगें कांपने लगी, थोड़ी देर पहले मैं खुद को शेरनी समझ रही थी अब मुकुल जैसे शेर के सामने किसी बकरी की तरह खड़ी थी।

मुकुल ने मुझे अपनी तरफ खींचा। इधर मुकुल का हाथ मेरे बदन को छुआ… उधर मुझे महसूस हुआ कि शायद मेरी कच्छी भी किसी अनजाने स्राव से गीली हो रही है, मुझे अपनी टांगों के सहारे कुछ टपकता हुआ सा महसूस हुआ।

उफ्फ्फ… कितना सुखद अहसास था।

पर शायद मेरे अन्दर की नारी अब जाग चुकी थी जो मुझे यह सब करने से रोकने लग रही थी। मेरे दिमाग से अब काम करना बिल्कुल बन्द कर दिया था कि मुकुल ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया।

“मम्मुकु…ल… स्‍स्‍स्‍स्‍स्सैंडविच… खा…ले…ठण्‍…ठण्डा हो जायेगा।” हकलाते हुए मेरे मुंह से निकला।

बस इतना ही बोल पाई थी मैं कि उसके होंठों ने मेरे होंठों को कैद कर लिया, मुकुल की बांहों के बीच फंसी मैं छटपटा रही थी कि मुकुल मेरे गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठों को जैसे चूसने लगा।

मेरे मुंह से बस गग्‍ग्‍्ग्‍… की आवाज निकल पा रही थी।

मुकुल पूरी तसल्ली से मेरे रस भरे होंठों का रस पी रहा था। मुझ पर पता नहीं कैसे नशा सा छाने लगा, अब दिल कर रहा था कि मुकुल मुझे ऐसे ही चूसता रहे। पर चूंकि मुझे विश्वास हो गया था कि अब मुकुल मुझे नहीं छोड़ने वाला तो उससे बचने का नारी सुलभ ड्रामा को करना ही था।

मैं मुकुल को दूर धकेलने का प्रयास करने लगी, पता ही नहीं चला कब मुकुल ने पीछे से जकड़कर मेरी ब्रा का हुक खोल दिया। जैसे ही मैंने मुकुल को दूर हटाने को धक्का दिया, वो दूर तो हुआ पर साथ ही ब्रा भी निकल कर हाथों में आ गई और मेरे दोनों भरे-भरे गुब्बारे उछलकर बाहर निकल गये।

मैं अपने हाथों से उनको छुपाने का प्रयास करने लगी पर मुकुल ने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिये, वो एकटक मेरे दोनों स्तनों को देखे जा रहा था। हाययय…माँऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ… कितनी शर्म महसूस हो रही थी अब मुझे।

कमीना एकटक मेरे दोनों अमृत कलश ऐसे घूर रहा है जैसे खा ही जायेगा।

मुझमें अब उससे नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं थी। मैंने लज्जा़ से नजरें नीची कर ली।

मुकुल बिस्तर पर बैठ गया और मुझे अपने पास खींच लिया, अपने सामने खड़ा करके वो मेरे दोनों चुचुकों से खेलने लगा। अजीब सी मस्ती मुझ पर छाने लगी, मेरा अंग-अंग थरथरा रहा था, टांगों में खड़े होने की हिम्मत नहीं बची थी।

पर मुकुल जो आनन्द दे रहा था मैं उससे वंचित भी तो नहीं होना चाहती थी और तभी सीईईईईईईई… कमीने ने मुझे और नजदीक खींच कर मेरे दायें चुचूक को मुंह में दबा लिया।

“हाय्य्य्य्य… यह क्या कर दिया जालिम ने… मेरा बदन बिल्कुल भी खुद के काबू में नहीं था, निढाल सी होकर मुकुल के ऊपर ही गिर पड़ी।

मुकुल ने मुझे फिर से बांहों में जकड़ लिया और सहारा देकर बिस्तर पर गिरा दिया।

मेरी आँखें नशे से बन्द हो रही थी।

मुकुल मेरे ऊपर आ गया।

अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैंने भी लता की तरह मुकुल को जकड़ लिया, मुकुल की गर्म-गर्म सांसें मेरे बदन की कामाग्नि को और बढ़ा रही थी। मैं बुरी इस कामाग्नि में जल रही थी।

मुकुल मेरे गुदाज बदन को अपने होंठों से सींचने लगा, मेरे कन्धे, स्तनों, नाभि और पेड़ू को चूसते-चूसते वो नीचे की ओर बढ़ने लगा।

आहहहह… इसने तो एक झटके में मेरी कच्छी भी मेरी टांगों से निकाल फैंकी ! दैय्या रेएएए… जान लेगा क्या यह मेरी?

मैंने कस के चादर को पकड़ लिया, अब रुकना मुश्किल हो रहा था, मेरी टांगें अभी भी बैड से नीचे लटकी थी, वो मेरी दोनों को खोलकर उनके बीच में बैठ गया।

और…आह… मेरी…योनि…हाय…मेरी…मक्खन… जैसी…उफ्फ्फ्… चिकनी…योनि…चाटने लगा।

मैं अपने नितम्ब जोर जोर से हिलाने लगी।

मेरा रस बस टपकने ही वाला था।

उसने तो हद तब कर दी जब योनि के भगोष्ठों को खोलकर जीभ से अन्दर तक कुरेदने की कोशिश कर रहा था पर कामयाब नहीं हो पा रहा था। “आहहह… मैं गई…मार…डाला…” मेरे मुंह से इतना ही निकला और मेरा सारा कामरस निकलकर भगोष्ठों पर चिपक गया।

पर वो तो इसको भी मजे ले लेकर चाट रहा था।

हाँ… मैं जरूर अपने होशोहवास में आने लगी, उसका इस तरह चाटना मुझे अब बहुत अच्छा लग रहा था, उसने दोनों हाथों से मेरे दूधिया स्तनों को दबाकर जीभ की कर्मस्थली मेरी योनि को बना रखा था।

वो एक सैकेण्ड को सांस लेने को भी अपना मुंह वहाँ से हटाता तो मुझे अच्छा नहीं लगता था। मैंने पर शायद उसको भी आभास हो गया कि एक बार मेरा रस निकल चुका है।

वो पूरा निपुण खिलाड़ी था, कोई भी जल्द बाजी नहीं दिखा रहा था, उसने फर्श पर बैठकर मेरी दोनों टांगों को अपने कंधों पर रख लिया और मेरी दोनों मक्खन जैसी चिकनी जांघों को एक एक करके चाटने लगा।

अब मैं भी उसका साथ दे रही थी, कुछ सैकेण्ड तक जांघों को चाटने के बाद वो खड़ा हुआ और फिर मेरी टांगों को उठाकर मुझे घुमा कर पूरा बिस्तर पर लिटा दिया।

मैं आँखें बन्द किये पड़ी उसकी अगली क्रिया का इंतजार करने लगी।

पर यह क्या… उसका स्पर्श तो कहीं महसूस ही नहीं हो रहा था… कहाँ चला गया?
 
कितनी सैक्सी हो तुम --9

जैसे ही वो खड़ा हुआ मैंने देखा मुकुल का लिंगप्रदेश खून से सना हुआ बिल्कुल लाल था।

मेरी तो जान ही निकल गई।

मुकुल की निगाह भी तभी मेरी योनिप्रदेश पर गई सारा खून-खून दिखाई दिया।

मुकुल एकदम बोला- नयना… यह क्या है, तुम्हारी शादी तो मुझसे भी पहले हुई थी… क्या अभी तक…?????????

मेरी आँखें बरबस ही छलछला गई ‘हम्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म…’ बस इतना ही निकला मेरे मुख से।

“कोई बात नहीं, मैं समझ सकता हूँ पर अब तुम पूरी औरत बन चुकी हो। मैं तुमको पूरा सुख दूँगा यदि तुमको कोई ऐतराज नहीं हो तो !” मुकुल बोला।

मैंने जवाब दिया, “आज तूने मुझे जो सुख दिया मैं तो इसे भी कभी नहीं भूल पाऊँगी। जीवन में कामसुख का क्या महत्व है इसका अन्दाजा आज हुआ मुझे।”

उसने तुरन्त मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और बोला- अभी तो पूरी रात बाकी है जानेमन।

वो मुझे गोदी में उठाकर बाथरूम में ले गया और शावर के नीचे खड़ा करके शावर चला दिया।

मेरी योनि का दर्द अब बहुत कम हो गया था, उसकी बातों से तो दर्द महसूस ही नहीं हो रहा था। ठण्डा ठण्डा पानी बदन पर गिरना मुझे अच्छा लग रहा था। सबसे पहले उसने हम दोनों का सारा खून सना हिस्सा साफ किया, साबुन लगाकर अच्छी तरह धोया।

अब वो आराम से मुझे नहलाने लगा। मुझे उसका इस तरह अपने बदन पर हाथ फिराना बहुत अच्छा लगने लगा। ऊपर से ठण्डा-ठण्डा पानी माहौल में गर्मी पैदा करने लगा।

मुझे पता ही नहीं चला कब मेरे हाथ भी मुकुल के बदन पर चलने लगे। उसकी चौड़ी छाती पर मैंने अपने गीले होंठों से एक चुम्ब‍न जड़ दिया।

मुकुल ने मुझे जकड़ लिया, मेरे दोनों रसीले खरबूजे मुकुल की छाती में दबने लगे, मेरे हाथ अब मुकुल की पीठ पर चल रहे थे।

मैंने अपने हाथ नीचे सरकाकर उसके गीले नितम्बों पर फेरने शुरू कर दिये।

अचानक मुझे बदमाशी सूझी और मैंने अपने बांये हाथ की तर्जनी ऊंगली मुकुल की गुदा में घुसाने की कोशिश की।

मुकुल कूदकर पीछे हटते हुए बोला- बदमाशी कर रही हो…?

हम दोनों एक साथ हंसने लगे। मुकुल ने मेरे गीले बदन को पुन: चाटना शुरू कर दिया। मेरी दोनों गोलाईयों को प्यार से सहलाते सहलाते वो मेरे चुचुक उमेठ देता…सीईईईई…मेरे मुंह से अचानक सिसकारी निकल जाती।

मुकुल का तो पता नहीं पर पानी में ये अठखेलियाँ मुझे बहुत अच्छी लग रही थी।

तभी मैंने महसूस किया कि मेरी जांघ पर कुछ टकरा रहा है। मैंने नीचे देखा मुकुल का काला नाग फिर से जाग गया था और युद्ध के लिये तैयार था।

उसको देखकर ही मेरी योनि के अन्दर तरावट होने लगी, मैं वहीं फर्श पर घुटनों के बल बैठ गई और मुकुल के उस बहादुर नाग को अपने होंठों में दबोच लिया।

‘उम्‍म्‍म्‍म… वाह…’ कितना स्वादिष्ट लग रहा था।

मेरे होंठ उसके लिंग पर आगे पीछे सरकने लगे।

सीईईईई… इस बार सिसकारी मुकुल की थी, उसने अपना एक हाथ मेरे सिर पर रखा और अपने नितम्बों को हौले हौले हिलाने लगा।

कुछ देर बाद मुकुल ने मुझे खड़ा होने का इशारा किया, मैं खड़ी हुई तो मुकुल ने मुझे कमोड की तरफ मुंह करके आगे की ओर झुका दिया।

मैं दोनों हाथ से कमोड को पकड़ कर नीचे की ओर झुक गई, अब मेरे नितम्ब मुकुल की तरफ थे ओर आगे की ओर नीचे झुकने के कारण मेरी योनि पीछे की ओर बाहर दिखने लगी।

मुकुल वहीं से मेरी उस रामप्यारी पर जीभ रखकर चाटने लगा। 2-4 बार चाटने के बाद मुकुल ने अपना लिंग पीछे से मेरी योनि पर लगाया ओर एक हाथ से मेरी कमर को पकड़कर जोर लगाया, इस बार हल्के से सहारे से ही लिंग का अगला हिस्सा अन्दर सरक गया।

मेरी चम्पा चमेली तो जैसे उसके नाग को अपने अन्दर लेने को तैयार बैठी थी, बहुत टाईट जरूर लग रहा था पर ऐसा लग रहा था जैसे वो खुद-ब-खुद ही अन्दर घुसा चला आ रहा हो।

अब मुकुल ने दोनों हाथों से मेरी कमर को पकड़ कर जोर का धक्का मारा और उसका पूरा का पूरा शेर मेरी माँद में घुस गया।

मेरे दोनों स्तन आगे पीछे झूलने लगे।

‘वाह ऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ…’ उनका यूं झूलना भी तो गजब ढा रहा था पर शायद मुकुल को उनका यों झूलना पसन्द नहीं आया।

अब उसने मेरे ऊपर झुककर मेरे दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों में कैद कर लिया और पीछे से अपने नितम्ब आगे पीछे हिलाने लगा।

हाययययय…क्या अहसास था… मैं भी अपने नितम्ब… आगे पीछे करके मुकुल का साथ देने लगी।

इस बार भी मैं ही पहले धराशायी हुई, मुकुल तो जैसे हर बार जीतने की ठान चुका था पर फिर भी उसको मेरे सामने झुकना ही था, मेरे पीछे-पीछे ही उसका शेर भी बेचारा निढाल हो कर बाहर आ गया।

मैंने उठकर पीछे मुड़ कर देखा हाययययय…रे.ऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ…कितना क्यूट लग रहा था ना सच्ची…।

अब मैंने तुरन्त पानी लेकर अपने और मुकुल के शरीर को साफ किया।

थकान इतनी हो रही थी कि खड़ा होना भी मुश्किल था, आखिर पहली बार मैंने ये खेल खेला था, तौलिये से बदन साफ कर मैं बाहर आई तो ध्यान आया कि सारी चादर खून से सनी हुई थी।

मैंने मुकुल को आवाज लगाकर कहा तो उसने बाहर आकर वेटर को बुलाया। उसको 100 का नोट पकड़ाया वेटर तुरन्त बिस्तर बदल कर दूसरा दे गया।

अब तो नींद बहुत जबरदस्त थी, मैं तुरन्त ही बिस्तर में आ गई, मुकुल भी आ गया।

हम दोनों एक दूसरे को चिपक कर सो गये।

सुबह मेरी आँख पहले खुली, मैंने देखा मेरे मोबाइल में पापा की 9 मिस काल थी, मैंने तुरन्त पापा को फोन किया तो पापा ने बताया कि रात को आशीष का एक्सीडेन्ट हो गया, अब वो हास्पीटल में है।

मेरी आँखों से तो तभी आँसुओं की धारा बहने लगी, मैंने फोन काटते ही मुकुल को जगाया तेजी से तैयार होकर जयपुर के लिये निकल गये।

मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि मैं क्याँ करूंॽ मुझे लगा कि रात को मैंने जो किया भगवान ने मुझे ये उसी की सजा दी, मेरे पति का एक्सीडेन्ट हो गया।

शायद मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी।

मुझे खुद पर बहुत शर्मिन्दगी महसूस हो रही थी दिल कर रहा था कि चुल्लू भर पानी में डूब मरूं। क्या इतना भी कंट्रोल नहीं है मेरा खुद परॽ

दिल्ली से जयपुर तक मुकुल लगातार ड्राइव करता रहा और मैं लगातार सिर्फ आँसू ही बहाती रही।

सीधे उस नर्सिंग होम में पहुँची जहाँ आशीष भर्ती थे, उनको सामने देखा तो जान में जान आई।

आशीष भी जैसे मेरी ही राह देख रहे थे, दरवाजे पर ही मुझे देखकर उन्होने मुझे पुकारा। उनके मुख से अपना नाम इतना दिनों बाद सुनकर पुन: मेरी अश्रुधारा बह निकली पर आशीष ठीक थे उनके सिर और एक पैर में कुछ चोट आई थी।

डाक्टर ने बताया कि कुछ घंटों के बाद उनको छुट्टी मिल जायेगी।

मैंने वहीं रूकने का फैंसला किया और मुकुल को वापस भेज दिया।

शाम को मैं आशीष को लेकर घर आ गई। मेरी सास का दिमाग भी उस समय बिल्कुल शांत था इसीलिये कोई बात नहीं हुई पर मैं लगातार आत्मग्लानि को आत्मसात कर रही थी, आशीष से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी।

जैसे तैसे रात हुई। सब अपने अपने कमरे में गये मैं भी आशीष के साथ अपने कमरे में आ गई।

अन्द‍र जाते ही आशीष ने मुझे गले से लगा लिया, वो सच में मुझसे बहुत प्यार करते थे, मैं बहुत परेशान थी, समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ।

दिल हो रहा था कि आत्मरहत्या कर लूँ पर मेरे अन्दर शायद इतनी भी हिम्मत नहीं थी।

आशीष थे कि मुझे एक पल भी अलग नहीं होने दे रहे थे, उनका प्यार देख-देख कर तो मैं वैसे ही शर्मिन्दा हो रही थी।

अचानक आशीष ने मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा- नयना.. तुम्हारा ध्यान किधर है… कुछ परशान लग रही हो? सब ठीक है ना?

कितनी अच्छी तरह जानते थे आशीष मुझे ! उनका सवाल सुनते ही पता नहीं मुझे क्या हुआ, मैं खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाई और फ़ूट पड़ी…

इतनी जोर जोर से मुझे रोता देखकर आशीष बहुत परेशान हो गये। मेरे सिर पर बार बार प्या‍र से हाथ फेरते और बात पूछते।

मेरी आँखें बन्द थी, मैं एक सांस में कल घर से चलने से लेकर दिल्‍ली जाने और वहाँ से जयपुर आने तक पूरी बात आशीष को बताती चली गई।

मेरी बात पूरी होते ही आशीष की पकड़ मुझ पर ढीली हो गई, मैं अपराधबोध से ग्रस्त वहीं पड़ी रही, इतनी हिम्मत नहीं थी कि आशीष ने नजरें मिला सकूँ।

आशीष भी बिल्कुल भावहीन से ऊपर कमरे की छत की तरफ देखते रहे।

कुछ मिनट बात आशीष बोले- नैना.. तुम एक साधारण इंसान नहीं, उससे बढ़कर हो।

मैंने नजरें आशीष की तरफ घुमाई। आशीष फिर बोले- यदि तुम पुरूष होती तो शायद इतने दिन खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाती ! यह जो तुमने कल रात किया, कई साल पहले ही कर जाती। तुम एक नारी हो, मर्यादा में बंधी हो शायद इसीलिये खुद पर कंट्रोल कर पाई, अब तुम भी आखिर हो तो इंसान ही ना, और फिर जो भी हुआ वो तुमने आकर मुझे बता दिया। अगर तुम्हारी जगह मैं होता तो शायद यह कभी नहीं कर पाता। और हाँ, तुमने जो भी किया उसमें कुछ भी गलत नहीं किया, यह तो हर इंसान के शरीर की जरूरत है। क्योंकि शादी, प्यार और सैक्स, ये सब अलग अलग बातें हैं, ऐसा नहीं है कि तुमने किसी और के साथ सैक्स किया तो तुम्हारा मेरे प्रति प्यार या जिम्‍मेदारी कम हो गई; या मेरा प्यार तुम्हारे प्रति कम हो गया। मैं तो पुरूष हूं, तुमको प्यार भी करता हूं पर जब माँ ने तुमको घर से निकाला तो मैं कुछ भी नहीं कर पाया, और एक तुम हो जो मेरा एक्सीडेन्ट सुनकर सबकुछ भुलाकर भागी चली आई। यह तुम्हारा एहसान मुझ पर आजीवन रहेगा, और हाँ तुम मुकुल साथ कुछ भी करने को मेरी तरफ से आजाद हो। बस इतना ध्या‍न रखना कि वो यहाँ ना आये, तुम उसके लिये महीने में एक-दो बार आगरा जा सकती हो, मुझे कोई एतराज नहीं है। और मुकुल से तुमको जो बच्चा मिलेगा, मैं उसको अपना नाम देना चाहता हूँ ताकि माँ ने तुम्हारे माथे पर जो बांझ का कलंक लगाया, वो मिट सके।

मैं आशीष की बात सुनती रही, मुझे तो जब होश आया जब वो चुप हो गये।

मैंने भावविभोर होकर उनके पैर छू लिये, मैं भी यह समझ चुकी थी कि मुकुल मेरे शरीर की जरूरत थी पर आशीष का साथ जीवन में सबसे प्यारा था।

मुझे पता ही नहीं चला मैं कब नींद की आगोश में चली गई।

पाठकगण अपनी प्रतिक्रिया पर अवश्य दें।
 
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