Antervasna मुझे लगी लगन लंड की - Page 10 - SexBaba
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Antervasna मुझे लगी लगन लंड की

मैं परेशान थी और मेरी चूत में खुजली हो रही थी, मैं पापा जी का लंड एक बार और देखना चाह रही थी। मैंने ही बेशर्म बन कर पापा जी को आवाज लगाई और बेड पर मेरे पास आकर लेटने को बोली। वो बार-बार न करते रहे लेकिन अन्त में हार कर बेड पर आ गये। पापा जी के लेटते ही मैं उनकी तरफ करवट करके लेट गई और उनको एकटक देखने लगी, मेरा इस तरह से लगातार घूरते जाना वो बर्दाश्त नहीं कर पाये और,

पापाजी बोले- क्या हुआ, कुछ चाहिये क्या?

मैंने सिर हां में हिलाया,

तो पापाजी बोले- बताओ

मैंने तुरन्त ही उनसे वादा लिया कि मेरी किसी बात का वो बुरा नहीं मानेगे?

जब वो बोले कि 'ठीक है, पूछो, मैं तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं मानूंगा!'

तो मैंने तुरन्त ही उनके हाथ को अपने हाथ में लिया और बोली- पापा जी आपने मुझे जो सुबह कहानी सुनाई थी क्या वो सच थी?

पापा जी बोले- हाँ, बिल्कुल सोलह आने सच है। एक बार जब उनको बुखार था तो मेरा मन उनके साथ करने का था पर तेरी सास ने पहली बार मना किया लेकिन जब उन्होंने देखा कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रहा हूँ तो उन्होंने मुझे सम्भोग करने की इजाजत दे दी, उसके बाद मैंने उनके साथ सम्भोग किया और दूसरे दिन उनका बुखार उतरा हुआ था। कल रात यही विचार करके मैंने तुम्हारे साथ सम्भोग किया था। कहकर पापाजी चुप हो गये।

मैंने फिर पूछ लिया- पापाजी, मम्मी जी के अलावा और कोई था आपकी लाईफ में?

तुरन्त ही पापा बोले- न...ना... कोई भी नहीं, तुम्हारी मम्मी है ही इतनी खूबसूरत कि मुझे किसी दूसरे की जरूरत ही नहीं पड़ी। हां अब अगर कोई दूसरा है तो वो तुम हो जिसके साथ मैंने कल रात सम्भोग किया था, लेकिन वो भी मजबूरी में।

मैं- 'कोई बात नहीं पापा जी, लेकिन एक बात बताइए, जब आप मम्मी जी के साथ सम्भोग करते हैं तो सम्भोग को आप और मम्मी जी दोनों ही महसूस करते होंगे?' (धीरे धीरे मैं खुल रही थी) तभी आप दोनों को मजा भी आता होगा?

पापाजी- 'हां, हम दोनों ही सम्भोग को खुलकर महसूस करते थे और मजा लेते थे।'

उनकी बात खत्म होने से पहले ही मैं बोल उठी- लेकिन पापा जी, मैंने कल रात के सम्भोग को तो महसूस ही नहीं किया, इसका मतलब आपको भी सम्भोग का मजा तो नहीं आया होगा?

पापा जी मेरी बात सुनकर चौंके, बोले- क्या?

मैंने तुरन्त ही उनके हाथ को पकड़ा और अपने छाती पर रखते हुए बोली- पापा जी, मैं महसूस करना चाहती हूँ।

पापा जी ने झटके से अपना हाथ हटाया और बोले- नहीं, कल बात अलग थी जो मुझे करना पड़ा और अब मैं जानबूझ कर वो नहीं कर सकता, जो मुझे करना शोभा नहीं देता।

पापा जी मेरे काबू में नहीं आ रहे थे, उनकी जगह कोई और होता, तो शायद अब तक मैं दो बार तो कम से कम चुद चुकी होती। लेकिन पापा जी तो मुझे रात को चोद चुके हैं, मुझे पूरी नंगी देख चुके हैं, यहाँ तक कि मुझे नहालते समय मेरे जिस्म के एक-एक अंग को छुए हैं।

मैंने एक बार फिर उनका हाथ पकड़ा, इस बार वो अपने हाथ को बड़ी ताकत के साथ अपनी तरफ खींचे हुए थे।

मैंने फिर कहा- ठीक है पापाजी, रात को तो आप को मजबूरी थी, लेकिन आपने तो मुझे पूरी नंगी भी देखा है और मेरे नंगे बदन को छुआ भी है तो अब आप मेरे साथ सम्भोग क्यों नहीं करना चाहते?
 
पापाजी एक बार मुझे समझाते हुए उठ कर बैठ गये और बोले- जिस समय मैंने तुम्हारे बदन को छुआ, उस समय भी तुम खुद से उठने के काबिल नहीं थी, इसलिये मुझे यह सब करना पड़ा। लेकिन अब तुम इस समय होश में हो और वो माँग रही हो जो मैं पूरी नहीं कर सकता।

कहकर वो वापिस सोफे पर बैठ गये।

मैं समझ नहीं पा रही थी कि पापाजी वास्तव मैं मेरे साथ करना नहीं चाह रहे या फिर दिखावा कर रहे हैं क्योंकि मेरा मन नहीं मान रहा था कि वो मुझे चोदना नहीं चाह रहे हो। और अगर मुझे चोदने की उनके मन में इच्छा नहीं थी तो फिर वो बाथरूम का दरवाजा खुला छोड़कर क्यों मूत रहे थे, जबकि जब भी मेरी नींद खुलती, मेरी नजर सीधी वही जाती और यह बात पापा जी भी जानते थे। अगर मैं मतलब निकालती हूँ तो वो जानबूझ कर दरवाजा खुला रखकर मूत रहे थे ताकि मेरी नजर उनके लम्बे लंड पर पड़े। दूसरी बात जब वो मेरे जिस्म को पोंछ रहे थे तो भी मेरे उन अंगों को अच्छे से रगड़ रहे थे जहां से मैं उत्तेजित हो सकती थी। तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण कि वो दुबारा मेरे कहने पर जबकि मैंने ज्यादा जोर भी नहीं दिया था, फिर भी अपने और सास के बीच हुए सम्भोग की कहानी बताने लगे। यही सोच कर मैंने अबकी जो मेरी नजर में सबसे सटीक था, वही दांव चला, मैं एक बार फिर बिस्तर से उठी और लड़खड़ा कर गिर पड़ी जानबूझ कर...

पापा जी तुरन्त ही हड़बड़ा कर फिर उठकर आये और मुझे सँभालते हुए

पापाजी कहने लगे- तुम्हें कमजोरी बहुत है आज मुझे बता दो, मैं तुम्हारा सब काम कर दूंगा।

मैं धीरे से बोली- पापा जी, बहुत जोर से पॉटी आई थी, इसलिये मैं॰॰॰

मेरी बात को समझते हुए बोले- तो तुम मुझे बता दो न, मैं तुम्हें लेकर चलता हूँ

मैं- लेकिन मेरे हाथ पैर भी शून्य पड़े हैं, मैं कपड़े कैसे उतारूंगी?

मेरी इतनी बात सुनी कि मुझे एक बार फिर बेड पर बैठाया और पहले मेरी सलवार का नाड़ा खोल कर सलवार को मेरे जिस्म से अलग किया। इस समय मैं उनकी एक एक हरकत पर ध्यान दे रही थी, सलवार उतराते समय उन्होंने कुछ खास नहीं किया लेकिन जब मेरी पैन्टी उतारने लगे तो वो मेरे चूतड़ को पैन्टी उतराने के साथ-साथ सहलाते जा रहे थे। फिर पापा ने मुझे गोदी में उठाया और ले जाकर मुझे सीट पर बैठा दिया, जितनी देर मैं वहां बैठी रही उतनी देर तक वो मुझे पकड़े खड़े रहे। मैंने जानबूझ कर वाशिंग पाईप उठाया और छोड़ दिया। मेरे हाथ से वाशिंग पाईप गिरते ही

पापाजी बोल उठे- बेटा, जब तुम्हें बहुत कमजोरी है तो तुम मुझसे बोलो, मैं साफ किये देता हूँ।

कहते हुए पापाजी ने मुझे थोड़ा सा अपनी तरफ खींचा और वाशिंग पाईप मेरे पीछे लाये और गांड धुलाने लगे, लेकिन इस बार वो छेद के अन्दर तक उंगली डाल रहे थे।

मतलब साफ-साफ था कि मजा चाहिये, लेकिन अच्छे बनने की कोशिश कर रहे थे।

मैं भी इस मामले में कम नहीं थी, जब दो-तीन बार उन्होंने मेरी गांड धोने के साथ-साथ मेरी चूत को भी सहलाने की कोशिश की तो मैंने पेशाब की धार छोड़ना शुरू कर दिया। पर पापाजी कुछ बोल नहीं रहे थे और लगातार अपने हाथ से मेरी चूत सहला रहे थे। जब मेरा पेशाब निकलना बंद हो गया तो पापा जी ने पानी बंद किया और सिस्टर्न चला कर मुझे गोदी में उठा लिया और बेड पर बैठा दिया।

बस अब मैंने अपना आखिरी दांव चला, पापाजी ने जब मुझे बेड पर बैठाया तो मैं तुरन्त ही बिस्तर पर लेट गई और अपने पैरों को सिकोड़ते हुए बिस्तर पर ही रख लिया और अपनी चिकनी चूत जो सूरज ने कल शाम को ही थी, पापा को खुले रूप से दर्शन कराने लगी। इस बात पर पापाजी बोल्ड हो गये और मेरी टांगों को फैलाकर मेरी चूत को चूमते हुए,

पापाजी बोले- तुम मानोगी नहीं! मैंने अपने ऊपर बहुत संयम रखने की कोशिश की पर तुमने अन्त में मेरा ईमान डिगा दिया!

और मेरी चूत को सूंघने लगे,

फिर बोले- बहुत ही बढ़िया खुशबू आ रही है तुम्हारी योनि से।

मैंने अपना हाथ बढ़ाया और पापा जी के सर को पकड़ते हुए बोली- पापाजी, यह आपकी ही योनि है और यह आपकी योनि कब से आपका ही इंताजार कर रही है। यह कह रही है आओ और मुझसे खेलो।

पापाजी- 'हां बेटा, अब मुझसे भी बर्दाश्त नहीं हो रहा है और अब मैं न तो खुद तड़पूंगा और न ही इस प्यारी योनि को तड़पाऊँगा।'

कह कर वो अपने जिस्म से कपड़े अलग करने लगे। अब उनके जिस्म में चड्डी के अतिरिक्त कुछ नहीं था। उनकी भरी भरी बांहें, चौड़ी छाती, गठीला नंगा बदन... सब मैं खुल कर देख रही थी। फिर वो नीचे बैठ गये और मेरे कुर्ते को पेट से ऊपर करके मेरे पेट को सहलाने के साथ साथ मेरी चूत से खेलने लगे, बड़े ही प्यार से बिना किसी जल्दी के अपनी जीभ से मेरी पुतिया को इस तरह से चूसते जैसे कोई आम की चुसाई कर रहा हो, उनकी पूरी कोशिश होती कि मेरी पुतिया भी उनके मुंह के अन्दर चली जाये। पापाजी चूत की फांक को चाटने के साथ-साथ जीभ को चूत के अन्दर तक पेल रहे थे और साथ ही मेरे पेट को सहलाते जाते और फिर मेरे दोनों गोलों को बड़े ही प्यार से और धीरे-धीरे दबा रहे थे। मैं बहुत मस्त हो चुकी थी, उम्म्ह... अहह... हय... याह... मैं भी अपनी कमर को उठा उठा कर अपनी चूत को पापाजी के जीभ के और पास ले जा रही थी जिससे उनकी जीभ और अन्दर चली जाये। मैं बार-बार अपनी कमर उठाती और पापा जी उसी तरह रिसपॉन्स करते। मेरी चूत उनकी थूक से काफी गीली हो चुकी थी, मैं झरने के करीब आ चुकी थी और इसलिये मैं अपनी चूत उनके मुंह से कस कस कर रगड़ रही थी।

सहसा मेरे मुंह से निकला- पापाजी, आपकी इस रंडी बहू की योनि से पानी निकलने वाला है!

पापाजी- 'निकलने दे बहू... निकलने दे! मेरी बहू तड़पे मुझे पसंद नहीं है, निकाल अपना पानी।'

मेरी चूत के अन्दर अजीब सी खुजली मची हुई थी, मैं अपनी खुजली को मिटाने के लिये पापाजी के मुंह से चूत को रगड़े जा रही थी कि तभी मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया। पापाजी का मुंह अभी भी मेरी चूत से लगा हुआ था, वो उसी तरह से चूत को चाटे जा रहे थे। फिर पापाजी ने जब अपना काम पूरा कर लिया तो वो मेरे बगल में आकर लेटे,

और पापाजी बोले- वास्तव में आज तुमने पिछले 10 वर्षों की प्यास फिर जगा दी! बहुत मजा आया!

कहते हुए मेरे होंठों को चूसने लगे और मेरी चूत को सहलाने लगे। फिर मेरे होंठ चूसते हुए अपनी उंगली को मेरी चूत में डालकर चलाते हुए,

पापाजी फिर बोले- तुम्हारा रस मुझे बहुत अच्छा लगा, मेरा मन कर रहा है कि तुम्हारी योनि के पास से अपना मुंह न हटाऊं और जो भी रस तुम्हारी योनि से निकले, उसे मैं पीता रहूँ।

अब उन्होंने चूत से उंगली निकाली और अपने मुंह में डालकर लॉलीपॉप की तरह चूसने लगे। फिर मुझे अपने ऊपर खींचकर अपने ऊपर कर लिया,

और पापाजी मुझसे बोले- योनि का स्वाद तो दे दिया, अब अपने स्तन (चूची) का भी मजा दे दो।

पापा जी का इतना बोलना था कि मैं थोड़ा और ऊपर हो गई और उनके मुंह पर अपनी चूची को लगा दिया, पापा जी बारी बारी से मेरी चूची को पीते रहे और मेरे चूतड़ों को दबाते रहे। फिर मेरी गांड के अन्दर उंगली करने लगे। जितनी देर मेरे चूची को पीते रहे उतनी ही देर तक वो मेरी गांड में उंगली करते रहे, फिर उंगली निकालकर सूंघते हुये

पापाजी बोले- बेटी, तुम्हारी गुदा के अन्दर की महक भी बहुत मस्त है।

कहकर एक बार फिर उस उंगली को चूसने लगे। मेरे चूत की खुजली बढ़ती जा रही थी,

हार कर मैं ही बोली- पापा जी, आपका लिंग मुझे मेरी योनि में चाहिये ताकि मैं आपको महसूस कर सकूं।

मेरी बात सुनते ही पापाजी बोले- बिल्कुल, लेकिन मेरे लिंग को गीला कर दो, ताकि तुम्हारी योनि में आसानी से जा सके।
 
मैं तुरन्त ही उनके ऊपर से उतरी और उनकी तरफ अपना पिछवाड़ा करके जैसे ही उनके लंड को अपने मुंह में लेने लगी,

मेरे मुंह से निकला- हाय दय्या!!

पापाजी तुरन्त बोले- क्या हुआ बेटी?

मैं- 'कुछ नहीं पापाजी, आपका कितना बड़ा है। ऐसा लगता है जैसे गधे का लंड!' मैं एक सांस में पूरी बात बोल गई और मेरे मुंह से लिंग की जगह लंड निकल गया।

लेकिन पापा जी ने तुरन्त मेरी बात को पकड़ लिया और बोले- एक बार फिर बोलो जो अभी तुमने बोला है?

मैं अपनी बात को थोड़ा बदलते हुए बोली- आपका लिंग इतना बड़ा है ऐसा लगता है कि गधे का लिंग।

पापाजी- 'नही नहीं... यह नहीं, जो तुमने बोला है, वो बोलो!'

पापाजी की बात सुनकर मैं समझ गई कि उनको मेरे मुंह से लंड शब्द सुनना है,

मैंने कहा- जैसे गधे का लंड!

पापाजी तुरन्त मेरे चूतड़ पर एक चपत लगाते हुए बोले- लेकिन तुम्हें कैसे मालूम कि मेरा लंड गधे जैसा है?

उनकी बात का जवाब देती हुई मैं बोली- रीतेश ही बोलता था कि उसका लंड गधे के लंड के जैसा है। लेकिन आपका तो उससे भी बड़ा है।

तभी मोबाईल बजने लगा।

जब तक मैं फोन को पिक करती, तब तक पापा ने फोन उठा लिया, फोन रितेश का था। पापा ने तुरन्त ही मोबाईल को स्पीकर मोड पर कर दिया, पापा के हैलो बोलते ही रितेश हॉल चाल पूछने लगा, पापा ने कल रात मुझे हुए फीवर के बारे में बता दिया।

जैसे ही मेरे फीवर के बारे में रितेश को पता चला, वो चिन्तित हो गया और मुझे फोन देने के लिये कहा।

पापा ने मुझे फोन पकड़ा दिया और मेरे पीठ को अपनी बांहों का घेरा बना कर मुझे अपने से चिपका दिया।

रितेश मेरा हाल चाल लेने लगा, फिर बोला- अगर पापा तुम्हारे पास हों तो थोड़ा उनसे दूर होकर बात करो।

मैं उठकर जाने लगी तो पापा ने मोबाईल को कस कर अपने हाथों में जकड़ लिया

और मेरे कान में बोले- यहीं मेरे पास रहकर बात कर लो, मैं भी सुनना चाहता हूँ कि मेरा बेटा मेरी इस प्यारी बहू को कितना प्यार करता है।

मुझे कोई तकलीफ नहीं थी, मैं पापाजी की बांहों में ही रहकर रितेश से बात करने लगी।

जैसे ही रितेश को यह विश्वास हो गया कि वो केवल मुझसे बात कर रहा है

तो बोला- यार, मेरे लंड की मेरी चूत रानी, तेरी चूत का क्या हाल चाल है?

मैं भी बिंदास बोली- कुछ खास नहीं यार, बस तेरे लौड़े की याद आ रही है तो उसका पानी टप टप कर रहा है।

रितेश- 'किसी से चुदवाने की इच्छा हो तो वही ऑफिस में देख... कोई जवान मर्द मिल जायेगा।'

जब रितेश ने यह बात बोली तो मैं थोड़ा शर्मा गई, पापा जी भी मेरी तरफ देख रहे थे, मैंने बात को खत्म करने के लिये बाद में बात करने की कही और फोन काट दिया।

पापाजी बोले- मतलब तुम लोग??

फिर पापा जी को मैंने पूरी कहानी बताई।

कहानी सुनने के बाद,

पापाजी बोले- यार, मुझे पता नहीं था कि मेरा बेटा और बहू बहुत ही एडवांस हैं, अगर मुझे मालूम होता तो मैं शराफत की चादर ट्रेन में ही छोड़ देता और फिर हम दोनों खूब मजे करते हुए यहां तक आते।

मैं बोली- चलिये पापा जी, अभी भी आप खूब मजे ले सकते हैं।

पापाजी मुझसे वापस रितेश को फोन लगाने के लिये बोले और रितेश को कहने के लिये बोले कि 'लंड का तो इंतजाम है लेकिन तुम्हारे बाप का है! देखो क्या कहता है?'

मैंने फोन लगाया तो जैसा पापा जी ने रितेश को बोलने के लिये बोला, वैसा ही मैंने रितेश को कहा।

मेरी बात को सुनने के बाद रितेश बोला- यार लंड तो लंड होता है। अगर तेरी चूत को इस समय मेरे बाप के लंड से शांति मिल सकती है तो उन्हीं से चुदवा लो, मुझे कोई आपत्ति नहीं है।

बात सुनने के बाद मैं बोल पड़ी- यार भोंसड़ी के, तेरा बाप है और तुम कह रहे हो कि मैं उनसे चुदवा लूं?

रितेश मुझे समझाते हुए बोला- यार तुम और मैं, जैसा भी मौका मिला, लंड और चूत से खेल चुके हैं। तो अब क्या शर्माना, वैसे भी हमारी बात जब तक हम किसी को न बताये तो कैसे पता चलेगा।
 
फिर उसके बाद रितेश जो बोला, सुन कर मैं भी अचम्भित हो गई और पापा जी माथा पकड़ कर बैठ गये।

रितेश बोला- मैं अगर तुमसे बोल रहा हूँ कि तुम मेरे बाप से चुदवा लो तो इसका मतलब मैं भी तुम्हारी किसी प्यारी चीज की चूत पर हाथ साफ कर रहा हूँ।

मैं समझी कि सुनिधि होगी। पर जब वो बोला कि तुम मेरे बाप से चुदवा और मैं तेरी मां को चोद रहा हूँ तो मेरा माथा ठनका और मेरे ससुर जी माथा पकड़ कर बैठ गये।

मैं कुछ न तो कह सकती थी और न ही कर सकती थी।

अगर वो मेरी माँ को चोद रहा है तो इसका मतलब मेरी माँ की रजामंद होगी।

और मैं खुद उसके बाप से चुदने को तैयार थी।

मैं पापा जी की बांहो में थी और पापाजी मेरी चूची को सहलाते जा रहे थे, फिर

एकाएक पापाजी बोले- मेरे ही घर में कामदेव और कामदेवी है और मैं मजे के लिये तरसता रहा।

फिर बोले- कोई बात नहीं, वहाँ तुम्हारी मां चुद रही है तो तुम यहाँ मुझसे चुद कर मजा लो। अब तो मैं खुल कर तुमको चोदूंगा और तुम्हारे साथ मजा करूंगा।

मेरा दिमाग उड़ चुका था, मैं अहसास नहीं कर पा रही थी कि मैं क्या करूँ, वैसे भी मेरी मां 40 से थोड़ी ही ज्यादा की थी और उसका भी जिस्म भरा हुआ था।

तभी झकझोरते हुए पापा जी बोले- क्या सोचने लगी?

मैं- 'कुछ नहीं!

पापाजी- 'अरे आकांक्षा, तुम दोनों एक दूसरे के साथ कितनी सच्चाई से रहते हो। कम से कम किसी बात का पछतावा तो नहीं है।' कहते हुए मेरी गर्दन चूमने लगे।

लेकिन मेरा मन नहीं लग रहा था, मैं पापा से बोली,

तो वो बोले- कोई बात नहीं, जब तुम्हारी इच्छा तब हम मजे करेंगे।

फिर वो मुझे मेरा कपड़ा पहनाकर अपने कपड़े को पहन लिये।

कपड़े पहनने के बाद पापा बोले- तुम शायद इस समय अकेले रहना चाहती हो, तो मैं तब तक बाहर घूम आता हूँ।

मैंने भी हां में सर को हिला दिया।

पापाजी के बाहर जाते ही मैं लेट गई और दिमाग थका होने के कारण मुझे नींद भी आ गई। करीब दो घंटे के बाद पापाजी वापस आये, उनके हाथ में एक बहुत ही बड़ा से केरी बैग था, कमरे में आकर मुझे जगाया। जब मैं जागी तो मैं अपने आप को काफी फ्रेश महसूस कर रही थी। पापाजी ने वही मेरे सामने अपने सब कपड़े उतारे और केवल लुंगी को पहन लिया। इस समय भी पापा जी का मुरझाया हुआ लंड काफी बड़ा लग रहा था।

मैं पेशाब करने के लिये बाथरूम की तरफ चल दी, मैं अपनी सलवार का नाड़ा खोल ही रही थी कि पापा जी भी अन्दर आ गये और अपनी लुंगी हटा के लंड को हाथ में लिये और मूतने लगे। जैसे ही मैं अपनी सलवार को उतार कर खड़ी हुई, पापा जी ने अपने लंड को मेरे हाथ में पकड़ा दिया। अचानक लंड हाथ में आने से मेरा हाथ गीला हो गया।

जब पापाजी मूत चुके तो उन्होंने मेरी पैन्टी उतारी और मुझे पीछे से पकड़ कर इस तरह से उठा लिया जैसे किसी छोटे बच्चे को मूतने या पॉटी कराने के लिये माँ उठाती हो और जब तक मैं पूरी तरह से मूत न ली मुझे पापाजी इसी तरह से पकड़े रहे। फिर मुझे गोदी में ही उठा कर बेड तक लाये और बैठा दिया और केरी बैग से खाने का कुछ सामान और दो बियर की केन निकाल कर मेरे सामने रख दी। धीरे धीरे मैं एक बार फिर अपने पूरे रंगत में आ चुकी थी और भूल चुकी थी कि रितेश और मेरी मां साथ साथ हैं। मैंने पापा द्वारा लाई हुई स्नेक्स खाना शुरू किया। पापा ने बियर की केन खोलते हुए एक खुद ली और एक मुझे दी। जानबूझ कर मैंने थोड़ी न नुकुर की लेकिन पापा जी के कहने पर ले ली।

पापा जी वही पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गये और मुझे अपनी गोदी में बैठा लिया, मैं अर्द्धनग्न ही पापा की गोदी में बैठ गई। अब हम दोनों ससुर बहू साथ साथ स्नेक्स खाने और बीयर पीने का मजा ले रहे थे। पापा बीच बीच में मेरी चूची को दबा देते। अब मुझे मेरे जिस्म पर पड़ा हुआ कपड़ा भारी लगने लगा। मैं चाह रही थी कि मैं पूरी नंगी ही पापा जी के गोदी में बैठ जाऊँ और वो मुझे रौंदने लगे लेकिन पापाजी का हौले हौले मेरे जिस्म को सहलाना भी मुझे बहुत मस्त कर रहा था और मैं मस्ती में कामलोक पहुंच चुकी थी। पापाजी कभी मेरी पीठ सहलाते तो कभी मेरी कांख को सहलाते तो कभी मेरी जांघ में हाथ फेरते, कभी मेरी नाभि के अन्दर भी उंगली कर देते थे। उंगली क्या करते थे जैसे किसी परत को खरोंच कर निकाला जाता है उसी तरह पापाजी भी मेरी नाभि के अन्दर खरोंच रहे थे। बियर पीने और पापा जी का हाथ जो मेरे जिस्म पर चल रहा था, उससे मुझे और खुमारी बढ़ती जा रही थी। सच कहूँ मेरी चूत की आग बढ़ती जा रही थी उम्म्ह... अहह... हय... याह... और मैं चाह रही थी कि पापा जी मुझे पटक दें और मुझे चोदना शुरू कर दें।
 
तभी पापा जी अपने बियर के कन्टेनर को एक किनारे रखते हुए और अपने दोनों हाथों को मेरे कुरते के अन्दर डाल कर बोबे दबाने लगे और मेरी गर्दन को चूमते हुए बोले- आकांक्षा!

मैं मदहोशी के आलम में बोली- हूँ?

तो पापा जी बोले- यह बताओ तुमने अभी तक कितने मर्दों से अपनी चूत और गांड चुदवाई है?

मैं उनके इस प्रश्न को सुनकर चुप हो गई, लेकिन पापा जी बताने के लिये फोर्स किये ही जा रहे थे। उनके बार- बार पूछने से मैंने बस इतना ही बताया कि पता नहीं मेरी चूत गांड का कितने मर्दों ने मजा लिया होगा।

पापाजी- 'थोड़ा खुल कर बताओ?'

बस पापाजी का इतना बोलना था कि मैं घूमी और पापाजी के लंड को अपनी चूत के अन्दर ले लिया और

उनकी आँखों में आँखें डाल कर बोली- मैं सच कह रही हूँ कि कितने मर्दों के लंड से मेरी चूत चुद चुकी है या कितने मर्दों ने मेरी गांड का बाजा बजाया है, मुझे अब सच में कुछ याद नहीं है। हाँ, जो भी मर्द मुझसे अपनी प्यास बुझाने की चाहत रखता है, मैं उसकी प्यास बुझा देती हूँ।

पापाजी- रितेश को कब पता चला कि उसके अलावा तुम औरों से भी चुदती हो और उसका क्या रिऐक्शन था?

पापाजी की बात सुनकर मैं हँसी।

मुझे हँसती हुई देख कर पापाजी पूछने लगे- हँस क्यो रही हो?

मैंने बताया- रितेश ने ही मुझे सिखाया है कि चूत का मजा कैसे लिया जाता है। मैं रितेश को बहुत प्यार करती थी और आज भी करती हूँ और उसके प्यार के कारण ही मैंने ये सब किया है।

कहकर रितेश से पहली मुलाकात से लेकर जो जो कहानी घटी थी, सब मैं पापाजी को सुनाने लगी।

मेरी कहानी सुनकर उनका लंड मेरी चूत के अन्दर ही उबाल मार रहा था। मेरी कहानी सुनने के साथ साथ वो मेरी चूत की चुदाई भी कर रहे थे और उनकी उंगली मेरी गांड के अन्दर तक धंसी हुई थी।

फिर अचानक मुझे रोकते हुए पापाजी बोले- इसका मतलब तुम बहुत खुलकर और गन्दा से गन्दा चुदाई का खेल खेलती हो?

मैं- 'हां, अगर पार्टनर को पसन्द हो! मैं कभी भी किसी को किसी बात के लिये मना नहीं करती!'

पापाजी- 'हम्म, सही बताओ, क्या तुम टोनी और दूसरे मर्दो के सामने टट्टी कर चुकी हो और उन लोगों ने तुम्हारी गांड साफ की है?'

मैं- 'हां बिल्कुल वैसे ही जैसे आपने मेरी गांड साफ की थी।'

पापाजी- 'इसका मतलब कोई भी तुम्हारे जिस्म से कुछ भी करे, तुम उसे मना नहीं करती?

मैं- 'बिल्कुल नहीं, बल्कि मुझे भी इसमें खूब मजा मिलता है और मैं खूब उत्तेजित हो जाती हूँ।'

मेरे इतना कहते ही पापा ने अपनी उंगली मेरी गांड से निकाली और उसको अपने मुंह में रखकर चूसते हुए बोले- मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी गांड चाटो।

उनके इतना कहते ही मैं उनके ऊपर से उतर गई और उनका हाथ पकड़ कर बोली- आईये, बेड पर उल्टे लेट जाईये। हां एक बात बताईये, मैं आपके साथ कुछ भी करूंगी आप बुरा तो नहीं मानोगे?

पापाजी- 'बिल्कुल नहीं!' छूटते ही बोले, बस मुझे मजा आना चाहिए।

मैं- 'तब ठीक है, आप बिस्तर पर ऐसे लेटो कि आपका कमर के ऊपर का हिस्सा बिस्तर पर हो और गांड आपकी बिस्तर से बाहर हो।'

पापाजी मेरे कहे अनुसार लेट गये, मैंने तुरन्त अपने उस कपड़े को उतार फेंका जो मेरे जिस्म पर बोझ बना हुआ था, फिर मैंने दो तेज चपट पापा के चूतड़ों को लगाये और फिर उनके उभारों को फैलाते हुए उनके छेद पर अपनी जीभ चलाने लगी और उनके लंड को पकड़ कर इस तरह से सहलाने लगी, जैसे ग्वाला किसी भैंस से दूध निकालने के लिये भैंस का थन सहलाता हो। पापा जी के मुंह से आवाजें निकलनी शुरू हो चुकी थी। मैं उनके सुपारे को अपने नाखूनों से कुरेदती और बीच बीच में गांड चाटने के साथ साथ उनके लंड पर अपनी जीभ फेर लेती। मेरे ससुर की सिसकारियाँ बढ़ती जा रही थी,

पापाजी बोले जा रहे थे- आकांक्षा, अब मेरी गांड और लंड चाटना छोड़ो, अपनी योनि में मेरा लिंग ले लो, नहीं तो मेरा माल निकल कर जमीन पर गिर जायेगा।

मैं- 'क्या पापाजी?' लिंग और योनि में अटके हो आप? चूत और लंड बोलो न... मेरे कानों को यही अच्छा लगता है।

पापाजी- 'ठीक है, मेरा लंड अपनी चूत में ले लो, नहीं तो मेरा वीर्य जमीन में गिर जायेगा।'

मैं- 'नहीं गिरेगा, और न मैं गिरने दूंगी आपके लंड से निकलते हुए वीर्य को!'

पापाजी- 'मेरा निकलने वाला है आकांक्षा... उनके शब्द मेरे कानों में पड़ रहे थे और मैं लगातार उनके लंड पर अपनी जीभ चलाये जा रही थी ताकि उनका माल निकले तो सीधा मेरे मुंह में जाये।

उधर पापा जी भी दबी आवाज में चिल्ला रहे थे- आकांक्षा मेरा निकल॰॰॰॰ रहा है!
 
बस इतना ही कह पाये थे और उनके लंड ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया, इतना कहने के साथ ही एक हारे हुए जुआरी की तरह वो धम्म से बिस्तर पर लुढ़क गये और उनके लंड से तेज धार से निकलता हुए वीर्य मेरे मुंह के अन्दर से होता हुआ, मेरी ठुड्डी से बाहर निकल कर मेरे चूचियों से होता हुआ नीचे पेट की तरफ बढ़ रहा था। मैंने जल्दी से पापा जी के पानी चूस कर साफ किया और खड़ी होकर पापा जी के वीर्य को एक उंगली से रोककर अपनी जीभ से उसका स्वाद चख रही थी कि पापा जी पलटे और मुझे उनका वीर्य इस तरह चाटते देखकर बड़ी आँख करते हुए बोले- आकांक्षा, तुमने तो मेरा पूरा वीर्य चाट लिया।

मैं वीर्य की अन्तिम बूंद को भी चाटते हुए बोली- तो क्या हुआ पापा जी, आपके सभी लड़कों का भी वीर्य मेरे इस मुंह ने चखा है और उन सभी ने मेरी चूत के माल का स्वाद लिया है। लेकिन अब समस्या यह है कि मेरी चूत में जो खुजली हो रही वो अब कैसे मिटेगी?

पापा जी ने मुझे अपनी गोदी में फिर से बैठाया और बोले- देखो, मैंने तो पहले ही कहा था कि मुझे अपनी चूत में मेरा लंड डालने दो, लेकिन तुम मानी नहीं और अब इसे खड़ा होने में कम से कम आधा घंटा लगेगा। तुम मेरी बात उसी समय मान लेती तो तुम्हारी चूत की खुजली भी मिट चुकी होती।

मैंने पापा जी के लंड से उनका सारा वीर्य चाट लिया और उनके होंठ चूमते हुए बोली- मेरे पास इसका भी एक जुगाड़ है।

मैं सब कुछ पापा जी से करवा लेना चाहती थी।

मैं उनकी गोद से उठी और अपने बैग से डिल्डो निकाल कर उनको देते हुए बोली- पापा, आप इससे मेरी चूत चोदिये और मेरी खुजली मिटा दीजिए।

पापा जी डिल्डो को हाथ में लेते हुए बोले- यह क्या है?

मैं पलंग पर पसरते हुए बोली- मेरी चूत की खुजली मिटाने के लिये दूसरा हथियार!

कह कर मैंने अपनी टांगें फैलाई और पापा जी का हाथ पकड़ कर डिल्डो को अपनी चूत से सटाते हुए उनसे इसको अन्दर बाहर करने के लिये कहा।

पापा जी ने मेरे कहे अनुसार डिल्डो को चूत में डाला, अन्दर बाहर करने लगे और डिल्डो से मेरी चूत चोदते हुए बोले- तुमको तो बहुत से लंड मिल सकते हैं तो फिर ये किसलिये?

उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए बोली- उम्म्ह... अहह... हय... याह... जब मुझे पता चला कि आप मेरे साथ टूर पर आ रहे हो तो मुझे लगा कि मेरी चूत की आग कैसे शांत होगी और ऑफिस में सबसे यह थोड़े ना कहूँगी कि मैं बहुत चुदासी हूँ और मेरी चूत चोदो। इसलिये मैं इसे अपने साथ ले आई थी कि पता नहीं कब इसकी जरूरत मुझे पड़ जाये।

पापाजी- 'अच्छा, तू बहुत समझदार है। मेरे घर की सबसे ज्यादा चुदासी बहू!' हम दोनों ही बहुत तेजी से हँसने लगे।

पापा जी मेरी चूत में बड़ी स्पीड से डिल्डो पेल रहे थे और मैं भी अपनी आँखें बन्द किये हुए और कमर उठा उठा कर अपनी चूत के अन्दर और लेने की कोशिश कर रही थी ताकि मैं जल्दी से झर जाऊँ! पर पता नहीं कि अचानक पापा जी को क्या हो गया, उन्होंने डिल्डो चूत से निकाल लिया, डिल्डो निकलने से मेरी आँख खुल गई, देखा तो पापा जी उस डिडलो को सूंघते जा रहे थे और चाटते जा रहे थे और फिर उसको एक किनारे फेंक दिया। इससे पहले मैं कुछ बोल पाती कि पापा जी ने अपने बलशाली हाथों से मेरी कमर को पकड़ लिया और अपनी तरफ घसीटते हुए ऊपर की तरफ उठाने लगे।

मैं आधी हवा में झूल गई। पापा जी मेरी कमर को बहुत कस कर पकड़े हुए थे और मेरी चूत को अपने दाँतों से काट रहे थे। वो दाँतों से मेरी चूत को कस कस कर रगड़ रहे थे और उनके इस तरह से मेरी चूत के साथ खेलने के कारण मैं झड़ना शुरू हो चुकी थी। निसंकोच भाव से पापाजी मेरे बहते हुए पानी को पी रहे थे... मेरा पूरा रस पीने के बाद ही उन्होंने मुझे छोड़ा।

जैसे ही उन्होंने मुझे छोड़ा मेरे मुंह से निकल पड़ा- लागी लंड की लगन... मैं चुदी सभी के संग!

मेरी बात सुनकर पापा जी बहुत तेज हँसे। फिर मेरे ऊपर लेट गये और मेरे मुंह को खोल दिया और मेरे रस को अपने थूक के साथ मिला कर मेरे मुंह के अन्दर डाल दिया और जब तक मैं उस थूक को गटक न गई तब तक उन्होंने अपना मुंह मेरे मुंह से अलग नहीं किया। इसके बाद मेरे ससुर मेरी बगल में लेट गए और

थोड़ा इमोशनल होते हुए बोले- वास्तव में तुम्हारी तरह लाईफ को जीने का एक अलग आनन्द है और उस पर जब रितेश जैसा तुम्हारा लाईफ पार्टनर जो तुम्हें गजब का सपोर्ट करता हो। मेरी बीवी ने भी कभी सेक्स करते समय मुझे न नहीं कहा, लेकिन उस समय बस इतना ही था कि चूत में डाल लो और थोड़ा बहुत उसके उभारों को मसल लो या फिर निप्पल को अपने मुंह में लेकर पी लो बस! कभी कोशिश भी की कि वो मेरे लंड को अपने मुंह में ले या फिर मैं उसकी चूत को चूसूँ! पर कहाँ, जैसे ही मैं उसकी चूत में मुंह ले जाता तो वो तुरन्त ही अपनी दोनों हथेली अपनी चूत के ऊपर रख लेती और कहती 'ये मुझे अच्छा नहीं लगता, ये मत करिये...' और चाहे जितना समझा लो, लेकिन वो अपनी बात से टस से मस न होती। और बस फिर लंड को चूत में डाल दो और पेलना शुरू कर दो। हाँ बस इतना ही करती थी कि कभी वो मेरे ऊपर और कभी मैं उसके ऊपर हो कर चुदाई करते थे।

मैं पूछ बैठी- क्या सासू मां अपने पूरे कपड़े उतारती थी या??

पापाजी- 'नहीं, इस मामले में वो सही थी, हम लोग चुदाई पूरे नंगे होकर करते थे और जब तक मुझे नींद न आ जाये तब तक वो मेरे साथ नंगी ही पड़ी रहती थी क्योंकि रात में फिर एक बार हम लोग चुदाई कर लेते थे। पर पता नहीं कब वो कपड़े पहन लेती थी।'

मैं- 'दिन में आप लोग?'

पापाजी- 'बहुत कम मौका मिलता था। हम लोगों का टूर उसके मायके या फिर किसी शादी विवाह के लिये बनता था। तो ऐसा मौका जो तुम्हारे साथ मिला है, वो नहीं मिला।'

पापाजी अपनी बात बताते जा रहे थे और मेरी चूत में अपने हाथ चलाते जा रहे थे। मेरा हाथ उनके लंड को पकड़े हुए था। अपनी बात खत्म करने के बाद,

पापाजी बोले- आओ, थोड़ा नीचे चलें! शाम होने को आई और तुम अभी तक कमरे से नहीं निकली।

पापा जी के कहने पर मैंने टॉप और स्कर्ट पहनी और दोनों होटल लॉन्ज में पहुँच गये। हम दोनों बाते करते करते हुए होटल की खूबसूरती को निहार रहे थे कि कुछ ही देर में हम होटल के स्वींमिग पूल पर थे। उस होटल की खास बात यह थी कि कौन किसके साथ किस अवस्था में है किसी से कुछ लेना देना नहीं था। तभी एक वेटर आया उसके हाथ में दो बियर के गिलास थे, उसने हम दोनों को लेने का आग्रह किया। दोनों ने गिलास उठाये और उसे रूम नं॰ नोट करा दिया। हम वही पास पड़े हुए टेबल चेयर पर बैठकर अपने ड्रिंक्स सिप कर रहे थे।

पापाजी- 'तुम्हें स्विमिंग आती है?' पापा जी बोल उठे।

मैं- 'हाँ...' मैंने उत्तर दिया।

पापाजी- 'तो ठीक है, तब आओ स्विमिंग करते हुए ड्रिंक करते हैं।'

इतना कहने के साथ ही पापा जी ने अपने कपड़े उतारे और पूल में छलांग लगा दी। मैं भी अपने टॉप और स्कर्ट को उतार कर पूल के किनारे, साथ में बीयर के दोनों ग्लास रख कर पूल में उतर गई। मेरे पूल पर उतरने के साथ ही पापा जी किनारे आ गये और,

बियर सिप करते हुए बोले- वास्तव में तुम इस पीली पैन्टी और ब्रा में बहुत ही सेक्सी लग रही हो, देखो तो सब तुम्हीं को घूर घूर कर देख रहे हैं।
 
मैंने एक नजर सब को देखा तो यही पाया कि सभी मुझे घूर कर देख रहे हैं। इस समय मुझे वास्तव में अपने ऊपर बड़ा घमण्ड हो रहा था। मेरे बड़े-बड़े उरोज और सुडौल और उभरी हुई गांड जितने भी थे उस समय पूल के आस पास सभी मुझे पाने की नीयत से घूरे जा रहे थे। मैं ख्यालों में खोने ही लगी थी कि,

पापा जी ने मुझे झकझोरते हुए कहा- मेरी एक बात और मानो!

इशारे से पूछा 'क्या?'

तो बोले- तुमको कल से मैं पूरा नंगा देख रहा हूँ। देख क्या रहा हूँ, तुम्हारे उन अंगों का मजा ले रहा हूँ। पर पूरी तरह से तुम्हारी सेक्सी फिगर नहीं देख पाया। तुम अपने हाथ में बियर का गिलास लेकर पूरे पूल का एक चक्कर लगा आओ। मैं तुम्हारे पूरे सेक्सी जिस्म को निहारना चाहता हूँ और तुम्हारी चाल देखना चाहता हूँ। खास कर जब तुम चलो तो ये तुम्हारी सुडौल और उभरी हुई गांड किस तरह ऊपर नीचे होती है।

मेरी पैन्टी भी इतनी टाईट थी कि चूत की फांकें भी सबको अच्छे से दिख सकती थी। मैंने पापा जी को यह बात बताई तो उन्होने मुझे दो तीन लड़कियों को दिखाया जिनकी चूत और गांड भी बड़ी आसानी से देखी जा सकती थी। पानी और बियर दोनों का ही सरूर मेरे सिर पर चढ़ने लगा, तो मैंने तुरन्त ही गिलास पापाजी को दिया और पूल से बाहर आ गई। पापाजी ने मुझे वापस बियर का गिलास पकड़ा दिया।

मैं थोड़ा सकुचा रही थी, फिर पापा जी ने मेरा हौंसला बढ़ाया और,

पापाजी बोले- तुम चलो, मैं भी पूल में तैरते हुए तुम्हारी मटकती हुई गांड देखूँगा।

मैं- 'ठीक है!' मैं बोली, लेकिन आपको भी मेरे जिस्म की मालिश करनी होगी, क्योंकि जब तक मैं अपने जिस्म की मालिश न करा लूं, तब तक मुझे नींद नहीं आती है।

पापाजी- 'यार, अब तेरे मेरे बीच में कौन सा पर्दा है! जो तू कहेगी, मैं वो कर दूंगा।'

मैं अब बड़ी अदा के साथ बियर का गिलास लेकर हल्का सा और मटकते हुए चल दी। बस फिर क्या था, सबकी नजर मेरे ही ऊपर थी और मैं सबको इग्नोर करते हुए मस्ती से चली जा रही थी।

पापा जी ने सही कहा था कि लोग तुम्हारे फिगर को देखकर इतने मस्त हो जायेंगे कि अपने आप को भूल जायेंगे। मैं पूल के तीन कार्नरों का चक्कर लगा चुकी थी और चौथे की तरफ आ ही रही थी कि एक ने कमेन्ट मारा- क्या फिगर है... आज रात इसी को सपने में देखकर मूठ मारूंगा।

मैं उसकी बात सुनकर रूक गई और उसे देखने लगी।

वो उठा और मेरी और हाथ बढ़ा कर बोला- हाय, आई एम जीवन!

देखने में वो भी बहुत हृष्ट पुष्ट था, मैंने उसके साथ हाथ मिलाया और आगे बढ़ गई और वापस अपनी बेंच पर आकर बैठ गई। उस जीवन की बात मेरे कानों में गूंज रही थी कि पापा जी मेरे बगल में बैठ गये और मुझे झकझोरते हुए बोले- फिर तुम कहीं खो गई?

फिर मुझसे पूछने लगे- तुम एक पल के लिये उस आदमी के पास क्यों रूक गई थी।

मैं इतना ही बोली- आज रात वो मुझे अपने सपने में चोदेगा।

पापाजी- 'मतलब!?!' एक बार फिर पापाजी ने पूछा।

'कह रहा था कि आज रात मुझे वो अपने सपने में देखेगा और मुठ मारेगा।'

मेरी बात सुनकर पापाजी मुस्कुराते हुए बोले- यही नहीं, आज सभी मर्द या तो मुठ मारेंगे या फिर अपनी बीवी या गर्लफ्रेंड में तुम्हें देख कर उसकी खूब चुदाई करेंगे। उस आदमी का क्या नाम है?

'जीवन...'

फिर वही वेटर एक बार फिर आया और पापा जी को एक किनारे ले जाकर उनसे कुछ कहने लगा, उसके हाव भाव से लग रहा था कि वो मेरी ही बात कर रहा था क्योंकि वो लगातार मेरे तरफ देख रहा था और पापाजी को कुछ समझा रहा था। पर पापाजी के हाव-भाव से लग रहा था कि वो उस वेटर को उस बात के लिये मना कर रहे थे। थोड़ी देर तक दोनों बातें करते रहे, उसके बाद वेटर ने एक कार्ड निकाल कर पापा जी को दे दिया और चला गया।

फिर पापाजी मेरे पास आये, मेरे पूछने पर सिर्फ इतना ही बोले- चलो कमरे में... वहीं बताता हूँ।

हम दोनों कमरे में आ गये।

भूख लगी थी तो मेरे कहने पर पापाजी ने इन्टरकॉम से खाने का ऑर्डर दे दिया। तभी फोन की घंटी बजी, देखा कि रितेश की कॉल थी, वो हाल चाल पूछने लगा। बात करते करते कहने लगा कि अगर तबीयत ठीक ना हो तो वापस आ जाओ। पर मैंने रितेश को कल ऑफिस ज्वाईन करने की बात कह दी। फिर थोड़ी देर और बात हुई उसके बाद मैंने बाय कहकर मोबाईल डिस्कनेक्ट कर दिया। अभी मोबाईल डिस्कनेक्ट ही किया था कि मेरे बॉस का फोन आ गया उनसे बात करने के बाद एक अननोन नम्बर से काल आना शुरू हुई। मैंने पापाजी की तरफ देखा तो उन्होंने मुझे पिक करने के लिये कहा। कॉल जैसे ही पिक की, उधर से मेरा हाल चाल पूछा गया और कहने लगा कि उसने मेरे बॉस से मेरा नम्बर लिया है और मेरे ऑफिस आने का प्लान पूछने लगा।

मैंने दूसरे दिन ऑफिस ज्वाईन करने की बात कहकर कॉल बन्द कर दी।

तभी कमरे की बेल बजी, पापा जी और मैंने दोनों ने अपने अपने गाउन पहने, पापा जी ने आने वाले का परिचय पूछा तो पता लगा कि जो ऑर्डर दिया गया है वो सर्व होने के लिये आया है। पापा जी ने दरवाजा खोला, देखा तो आने वाला वही वेटर है जो पूल पर पापाजी से बातें कर रहा था। वो खाना रखते हुए मुझे बार बार घूर रहा है। मुझे इस समय थोड़ी शरारत सूझी तो मैंने हल्के से पापा जी को देखा जिनकी नजर भी वेटर की हरकत पर ही थी पर वो मेरी तरफ नहीं देख रहे थे तो मैं मौके का फायदा उठाते हुए वेटर को दिखाते हुए अपनी चूत को खुजलाने लगी। अब हक्का बक्का होने की बारी वेटर की थी, उसने बड़ी जल्दी ही ऑर्डर को मेज पर लगाया और चला गया।

तभी मुझे पूल वाली बात याद आ गई, मैंने पापा से पूछा कि वो वेटर उनसे क्या कह रहा था।

पापाजी बोले- वो तुम्हारे बदन की बहुत तारीफ कर रहा था, कह रहा था कि मैडम बहुत ही प्यारी है। और राय दे रहा था कि उसके पास बहुत अच्छी-अच्छी ब्लू फिल्म है, अगर मैं चाहूँ तो तुमको प्यार करते समय उस फिल्म को भी लगा सकता हूँ, प्यार करने का और मजा आयेगा।

मैं- 'तो आपने क्या कहा?'

पापाजी- 'फिलहाल मैंने उसे मना कर दिया।'

मैं- 'मना मत कीजिए, उससे कहिये जो सबसे गन्दी वाली हो वही दे। मैं भी आपके साथ बैठ कर वो मूवी देखना चाहती हूँ।'

हमने खाना खत्म किया और पापा जी ने वेटर को फोन करके सबसे गंदी वाली मूवी लाने को कहा और हम वेटर का इंतजार करने लगे। वेटर आया उसने पेन ड्राइव को टीवी से अटैच किया और किस तरह मूवी चालू करनी है, समझा कर चला गया। जाते समय उसने मेज पर रखी हुई चीजो को समेटा और पापा जी ने जो टिप्स दी उसे लेकर जाने लगा, लेकिन जाते समय यह कहना नहीं भूला कि अगर कोई भी जरूरत हो तो जरूर याद करना।

उसके जाते ही पापा जी ने लाईट ऑफ करके अपने पूरे कपड़े उतारे और मूवी चालू कर दी।

मैंने भी अपने शरीर से कपड़े अलग किए। मूवी चालू करने के बाद पापा जी मेरे पास आकर चिपक कर बैठ गये, मेरे कंधे में हाथ रख मेरे गोले को सहलाने लगे दूसरे हाथ से मेरी जांघों को सहलाने लगे। मेरे भी हाथ उनकी जांघों को सहलाने लगे थे। मूवी देखते हुए पापाजी मेरे मम्मे को और दाने को जोर से तो मसल ही रहे थे, साथ ही मेरी जांघ को सहलाते हुए मेरी चूत की फांकों में भी उंगलियाँ चला रहे थे।

चलिये मैं आपको मूवी भी बताती हूँ, उस मूवी में कोई इन्डियन लड़की लड़के थे, दोनों एक कमरे में आते है और लड़का कमरे में रखे हुए कैमरे को सेट करता है और फिर लड़की को लेकर कैमरे के सामने ही एक कुर्सी पर बैठ कर उसके मम्मे को जोर-जोर से दबाता है। फिर एक-एक करके लड़का लड़की के कपड़े उतारता है और उसके जिस्म के एक-एक अंग को कैमरे के सामने सेट करता है। फिर लड़का लड़की को कैमरे के सामने ही इस प्रकार झुकाता है कि उसकी गांड और चूत का छेद साफ-साफ दिखाई पड़ने लगता है। लड़का भी अपने कपड़े उतारकर उसकी चूत और गांड के छेद को चाटने लगता है, फिर लड़की के मुंह के पास अपने लंड को ले जाता है, लड़की लंड को पकड़ कर चूसने लगती है। लड़का पास पड़ी हुई कटोरी को उठाता है, उसमें अपने लंड को डुबोता है और लड़की के मुंह में ले जाता है। शायद उसमें शहद होगा। कुछ देर ऐसा ही चलता है।

वो सीन देखकर मैंने पापाजी को देखा तो उन्होंने मेरे मम्मे को कस कर दबा दिये और फिर पास पड़े हुए इन्टरकॉम से उसी वेटर को बुलाया।

इधर लड़के ने लड़की को बिस्तर पर लेटा दिया और कटोरी के शहद को उसके मम्मे के ऊपर गिरा कर चाटने लगा, फिर नाभि के ऊपर डालकर उसको चाटने लगा और फिर उसी तरह से चूत के ऊपर डालकर उस्की चूत को चाटने लगा। इतना करने के बाद लड़के ने लड़की को चोदना शुरू किया,
 
मेरा हाथ ससुर जी के लंड को जोर जोर से मसल रहा था और पापाजी मेरी चूत को मल रहे थे। कई स्टाईल में चुदाई का सीन चल रहा था। चुदाई सीन देख कर मैं और पापा जी दोनों मस्त हो रहे थे और दोनों के चलते हुए हाथ बताने के लिए काफी थे कि हम कितना मस्त हो चुके थे।

तभी डोर बेल बजी, बाहर उसी वेटर की आवाज आई तो पापा जी ने उसे चार रसगुल्ले, कुछ अंगूर और मेरे कहने पर बिस्तर की चादर बदलने के लिये लाने के लिये बोला।

वेटर ने भी वहीं से हामी भरी और चला गया।

हम एक बार फिर एक दूसरे के जिस्म से खेलते हुए चुदाई की सीन देखने में मस्त हो गये। लड़की चुद चुकी थी और लड़का ने लड़की के सर को बिस्तर से नीचे की ओर लटका दिया और अपना लंड उसके मुंह के पास ले जाकर हिलाने लगा। आठ से दस बार लंड को हिलाने के बाद लड़के ने अपने वीर्य को लड़की के मुंह के अन्दर रोक रोक कर छोड़ने लगा और लड़की ने उसे बड़े ही प्यार के साथ गटक लिया और एक-दो बूंद जो लंड से निकल रहा था उसे चाट कर साफ कर दिया। यह मूवी करीब 15 मिनट की थी, लेकिन काफी मस्त थी।

पापा को बर्दाश्त नहीं हो रहा था, उन्होंने मुझे उठाकर अपने लंड पर बैठा लिया। मैं भी पनिया गई थी तो उनका लंड गप्प से मेरे अन्दर समा गया।

उनके ऊपर उछलते उछलते मैं पापाजी से बोली- अगर आपको बुरा न लगे तो थोड़ा सा उस वेटर को टिप दे दूँ? वो आपकी बहुत सेवा कर रहा है।

पापाजी बोले- क्या उससे भी चुदवाना है तेरे को?

मैं- 'नही नहीं, चुदवाना नहीं है, बस उसका मुंह मीठा कराना है।'

पापाजी- 'मतलब??'

मैं- 'मतलब यह कि मैं चाहती हूँ जो रसगुल्ला आप मंगा रहे हो वो मेरी चूत के अन्दर से अपने मुंह से निकाले और खा ले। यही उसका ईनाम होगा। उसके बाद वो हम लोगों की और मन लगाकर सेवा करेगा। इतना ही नहीं मैं जब कल ऑफिस में हूँगी और आपके लंड में खुजली मचेगी तो वो ही आपके लिये लड़की का इंतजाम भी कर देगा।'

पापाजी- 'नहीं मुझे कोई लड़की तो नहीं चाहिये लेकिन मुझे भी मजा आयेगा... पर देख ले कहीं तू शर्मा न जाये?'

मैं- 'काहे की शर्म?' मैंने कहा, उसे पता है कि मैं आपसे चुद रही हूँ। इसलिये तो उसने मूवी भी तो देखने के लिये दी है ताकि हम दोनों चुदाई वाली मूवी देखने के साथ-साथ चुदाई का खेल भी खेलें।

तभी हम लोगों की नजर एक बार फिर मूवी पर गई, अब मूवी इंग्लिश थी, जहां एक लड़की अपनी चूची को सहलाते हुए उत्तेजित होने की कोशिश कर रही थी कि तभी दो गंजे मर्द अपने लंड को सहलाते हुए उसके पास आये। इनमें से एक ने लड़की के सर को पकड़ा और अपने लंड से उसके होंठ को रगड़ने लगा और जैसे ही लड़की ने लंड को चूसने के लिये मुंह खोला, उस गंजे से आदमी ने लड़की के मुंह के अन्दर पेशाब करना शुरू कर दिया, इसी तरह दूसरे गंजे ने भी लड़की के मुंह में पेशाब करने लगा। लड़की के मुंह में जितना पेशाब जाता, वो उसे बाहर निकाल देती। जब दोनों लड़की के मुंह में पेशाब कर चुके तब दोनों गंजे जमीन पर लेट गये और फिर लड़की बारी-बारी से दोनों गंजे के मुंह के ऊपर बैठ कर मूतने लगी। दोनों गंजे लड़की मूत को पी गये यहां तक कि दोनों उसकी चूत को चाटने लगे। 5 मिनट की मूवी में मूतने के सीन ने मुझे अपनी सुहागरात वाली कहानी याद दिला दी।

तभी पापाजी बोले- क्या बकवास है, ऐसा नहीं होता है।

मैंने पापाजी को अपने सुहागरात की कहानी सुनाई, मेरी सुहागरात की कहानी सुनने के बाद

पापाजी बोले- क्या सच में तुम दोनों ने ऐसा किया था?

मैं- 'हां और बहुत मजा आया था।'

मैं अभी भी उनके लंड पर उछल रही थी,

तभी पापाजी बोले- अब मेरा छूटने वाला है।

उनकी बात सुनकर मैं लंड से हट गई और उनके लंड को अपने मुंह में ले लिया कि तभी बेल फिर बजी तो,

पापाजी ने वेटर का नाम लिया और बोले- अन्दर आ जाओ।

मैं जमीन पर बैठी हुई पापा जी की मलाई अपने मुंह में भर रही थी कि वेटर अन्दर आ गया।

उसकी आँखें हम दोनों को उस पोजिशन में देखकर फटी की फटी रह गई, वो लाईव चुदाई देख रहा था,

हकलाते हुए बोला- सर रसगुल्ले और चादर ले आया हूँ।

अब हम दोनों ही एक दूसरे से अलग हो चुके थे। पापाजी ने वेटर को चादर बदलने के लिये बोले और साथ में चादर को रोज बदलने के लिये बोले। वेटर का और हौसला बढ़ाते हुए

पापाजी बोले- तुमने जो फिल्म दी थी, वो बहुत ही मस्त थी और मेम साब तुम्हें उसका ईनाम देना चाहती हैं।

इस समय वेटर की आँख में थोड़ी सी चमक थी, वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगा और अपने खड़े लंड को जो उसके लोअर से साफ दिखाई पड़ रहा था, को अपने हाथ से दबाते हुए बोला- मेम साब थैंक यू। क्या मैं भी कपड़े उतार सकता हूँ?

मैं तुरन्त ही बोल पड़ी- नहीं नहीं, कपड़े उतारने की जरूरत नहीं है।

कहकर मैं पलंग पर लेट गई और अपने दोनों ऐड़ियों को अपने कूल्हों से सटाकर दोनों टांगों को चौड़ा करके पापा जी से बोली- आप इस रसगुल्ले को मेरे अन्दर डालो!

और फिर वेटर से बोली- तुम यहां आओ और इस रसगुल्ले का स्वाद लो।

पापाजी ने वैसा ही किया और रसगुल्ले को मेरी चूत के अन्दर फंसा दिया। वेटर मेरे पैरों के पास आया और नीचे बैठकर अपने हाथों से मेरी जांघ को पकड़कर थोड़ा और फैला दिया।
 
मेरी नजर पापाजी पर भी थी। वेटर ने पहले मेरी जांघ के आसपास चाटना शुरू किया। वेटर को इस तरह चाटते देखकर पापा जी का हाथ उनके लंड पर चला गया और वो खुद ही अपने लंड से खेलने लगे। उधर वेटर मेरी चूत में हल्की सी जीभ फिराता और फिर जांघ के दूसरे हिस्से को चाटने लगता। बीच बीच में तो वो मेरी गांड को भी चाट लेता था। पर जिस तरह वो मेरी जांघ, चूत और गांड को चाट रहा था, मेरी भी उत्तेजना बढ़ने लगी थी और अब मैं कसमसाने लगी थी।

वेटर को अपना ईनाम लेने की कोई जल्दी नहीं थी, वो बड़े ही इत्मिनान से मेरी चूत और गांड के आस पास एक एक अंग को चाट रहा था और बीच-बीच में वो अपना रसगुल्ला भी खा रहा था। मैं बहुत कसमसा रही थी और मेरी कमर अब बिस्तर से लगने को मना कर रही थी क्योंकि अब मैं झड़ने वाली थी। इस बात को वेटर भी जान गया था और अब उसका मुंह मेरे चूत के ऊपर था और जीभ चूत से रसगुल्ला बाहर निकाल रहा था। रसगुल्ले का अन्तिम कौर और मेरा पानी एक साथ उस वेटर के मुंह में था, वह रसगुल्ले के पीस से साथ साथ मेरे मलाई को भी सफाचट कर गया। मेरी चूत की पूरी मलाई चूसने के बाद,

वेटर बोला- मेम साहब, मुझे मेरा ईनाम तो मिल गया। बस एक बात और... अपने लंड की ओर इशारा करते हुए बोला, मेरा यह हथियार बहुत अकड़ रहा है, मुझे बहुत दर्द हो रहा है अगर आप इसकी अकड़ निकाल दें तो मेरा दर्द कम हो जायेगा।

मन तो मेरा भी कर रहा था कि उसके लंड को अपनी चूत में ले लूँ। अगर रितेश होता तो मैं ले चुकी होती... पर पापाजी के सामने मेरा मन नहीं मान रहा था। आप लोग भी सोच रहे होंगे कि साली चूत चटवा ली तो पापाजी का होश नहीं था और अब पापा जी बता रही है।

लेकिन पापाजी मेरी मन की बात समझ चुके थे और बोले चलो इस वेटर को इतना ईनाम और दे दो। चलो हम दोनों ही तुमको साथ साथ चोदते हैं। वेटर ने पापाजी की बात सुनी थी कि तुरन्त ही उसने अपने पूरे कपड़े उतार दिए। उसका भी लंड पापाजी के लंड के बराबर ही लम्बा था और काले नाग की तरह लग रहा था। मैं भी अब पूरी रंडी के रूप में आ चुकी थी,

मेरे मुंह से निकल ही गया- मादरचोदो, दोनों के लंड की अकड़ मैं निकाल दूंगी।

कहकर मैं पंजे के बल जमीन पर बैठ गई और बारी-बारी से दोनों के लंड चूसने लगी। फिर पापाजी बिस्तर पर लेट गये, मुझे अपने ऊपर कर लिया और अपने लंड को मेरी गांड में प्रविष्ट कर दिया

मैं- 'उम्म्ह... अहह... हय... याह...'

उधर वेटर भी पोजिशन लेकर मेरी चूत को भेद चुका था और चुदाई करने लगा। जब वेटर रूकता तो पापाजी मेरी गांड को ठोकते और जब पापा जी रूकते तो वेटर मेरी चूत की बैंड बजाता। काफी देर तक दोनों मेरी चूत गांड चुदाई करते रहे, करीब 10 मिनट तक मैं दोनों के बीच में फंसी रही। फिर दोनों ने मुझे अपने से अलग किया और फिर दोनों ने ही अपने वीर्य को मेरे पेट पर गिरा दिया।

वेटर के जाने के बाद मैंने पापाजी को मालिश करने के लिये कहा तो वो पास पड़ी हुई एक शीशी उठाई और मेरे मालिश करने लगे। क्या खूब वो मेरी मालिश कर रहे थे, वो मेरे चूतड़ के ऊपर बैठ गये, उनके अंडे मेरे चूतड़ से रगड़ रहे थे। मेरे जिस्म के हर एक हिस्से की वो बड़े ही अच्छी मालिश कर रहे थे। करीब पंद्रह मिनट की उनकी मालिश से मेरे जिस्म की सब अकड़ निकल चुकी थी और मैं अपने आपको बहुत ही तरोताजा महसूस करने लगी। मेरे कहने पर पापाजी भी मुझसे अपने जिस्म की मालिश कराने के लिये तैयार हो गये। मुझे तो उनका नहीं मालूम कि उनको मेरे मालिश कैसी लगी, पर इतना तो तय है कि मुझे बहुत मजा आया। खासतौर से तब जब मैं उनकी गांड के अन्दर उंगली डालकर मालिश कर रही थी और लंड को अच्छे से तेल लगा रही थी।

उसके बाद मैं और मेरे ससुर जी दोनों साथ ही नहाये और फिर मैं अपने ससुर जी से चिपक कर सो गई। सुबह फिर वही वेटर आया और बोलने लगा कि अब मेरी ड्यूटी ओवर हो रही है कोई काम हो तो बता दीजिए, नहीं तो शाम को चार बजे के बाद मैं आऊंगा।

मैंने तुरन्त ही अपने कपड़े और पापाजी के कपड़े जिसमें पेन्टी और ब्रा भी था, उसको धोकर लाने को बोली, वेटर ने हमारे सभी कपड़े लिये और शाम तक लाने के लिये बोला।

मेरे और ससुर जी के बीच एक नया सम्बन्ध स्थापित हो चुका था। वेटर के जाने के बाद मैं उठी और टट्टी करने के लिये सीट पर बैठ गई। पीछे-पीछे ससुर जी भी अपने हाथ में ब्रश मंजन लेकर आये और वही मेरे पास खड़े होकर ब्रश करने लगे। टट्टी करने के बाद मैंने ससुर जी को मेरी गांड साफ करने के लिये कही। पापाजी ने तुरन्त ही ब्रश करना खत्म किया और फिर मेरी गांड साफ करने लगे।

मेरे उठने पर वो भी सीट पर बैठ गये। इधर मैंने भी वही उनके पास खड़े होकर ब्रश करना शुरू किया। पापाजी के हगने के बाद मैंने उनकी गांड साफ की और एक बार फिर दोनों साथ नहा कर कमरे में आये।

फिर रात जो बड़ा सा कैरी पैक लेकर आये थे, उसमें से उन्होंने ब्लू कलर की पैन्टी ब्रा निकाल कर मुझे पहना दी उसके बाद शार्ट स्कर्ट और ट्रांसपेरेन्ट कमीज सफेद रंग की पहना कर,

पापाजी बोले- आज इसको पहन कर ऑफिस जाओ, बहुत एन्जॉय करोगी। ऑफिस के जितने भी मर्द हैं वो झांक झांक कर तुम्हारी चूत देखने की कोशिश करेंगे, उनकी हरकत देखकर बड़ा मजा आयेगा।

पापाजी के लाये हुए कपड़ों में बहुत ही सुन्दर और सेक्सी दिख रही थी, खासकर मेरी आगे और पीछे की उठान तो वास्तव में लोगों के लिये कहर बनने वाली थी... ऊपर से चश्मा और कहर ढा रहा था।

खैर तैयार होने के बाद मैंने ऑफिस फोन कर दिया कि ऑफिस की गाड़ी मुझे पिक करने आ जाये। गाड़ी आने तक मैं पापाजी के साथ उसी होटल में नाश्ता करने उतरी तो पाया कि पापाजी ने जो मुझे कहा था वो एक-एक बात सही होती जा रही थी, सभी मर्द घूर घूर कर मेरी ही तरफ देख रहे थे और सभी मुझे विश करने की कोशिश भी कर रहे थे। मैं उन्हे इग्नोर करते हुए अपना नाश्ता करने लगी।

नाश्ता खत्म होने तक ऑफिस की गाड़ी मुझे पिक करने आ चुकी थी, मैं ऑफिस चल दी, साथ में पापा जी भी मुझे ऑफिस तक ड्राप करने के लिये आ गये क्योंकि उनका प्लान था कि जब तक मैं ऑफिस में काम करूंगी तब तक वो कोलकाता शहर घूम लेगें। ड्राइवर ने भी बैक ग्लास को एडजेस्ट किया ताकि वो मुझे देख सके। चूंकि ससुर जी आगे की सीट पर बैठे हुए थे तो मैंने उस बेचारे ड्राइवर को परेशान करने की सोची, मैंने अपने दोनों हाथ को अपनी गर्दन के पीछे टिकाए ताकि मेरे दोनों बोबे में उठान और आ जायें।

हुआ भी ऐसा ही... ड्राइवर जो अब तक केवल पीछे शीशे के माध्यम से मेरे जिस्म को देखने की कोशिश कर रहा था, अचानक खांसने लगा। मैं उसकी विवशता पर मुस्कुरा कर रही गई और फिर सीधे होकर बैठ गई और ऑफिस आने तक उसको मजा देने के लिये मैं बीच-बीच में अपने बोबे को मसल देती थी।
 
ऑफिस आने पर पापाजी उतर गये और वो ड्राइवर बड़े ही सम्मान के साथ मुझे अपने बॉस के केबिन में ले गया। रास्ते में हर मर्द मेरी चूत को देखने के लिये मेरे स्कर्ट के अन्दर झांकने की कोशिश कर रहा था।

जैसे ही मैंने केबिन का दरवाजा खोला तो॰॰॰

अरे यह क्या? जीवन!!! जो कल शाम पूल के पास मिला था और मुझे देख कर बोला था कि रात में मुझे अपने सपने में देखेगा और मुठ मारेगा।

मुझे देखते ही जीवन ने भी अपनी सीट छोड़ दी और मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हुये बोला- आप यहाँ?

मैं जिस वर्क के लिये आई थी उस प्रोजेक्ट का इंचार्ज वही थी।

मेरे हाथ को वो अपने ही हाथ में लिये हुए बड़े ही बेशर्मी से,

जीवन बोला- वास्तव में कल आपको पूल पर देखकर मेरा लंड अकड़ गया और ढीला होने के लिये तैयार ही नहीं हो रहा था, बड़ी मुश्किल से जाकर शांत हुआ, इसको शांत कराने के लिये दो बजे रात तक मैं जागा हूँ।

मैं- 'क्यों? सड़का नहीं मारे?'

जीवन- 'नहीं, मैं सड़का मारने पर विश्वास नहीं करता।'

मैं- 'तो फिर मुझसे क्यों कहा?' मैं भी उसके साथ उसी बेशर्मी से जवाब दे रही थी।

जीवन- 'वो तो आपको देखने के बाद मेरे मुंह से कुछ नहीं निकल रहा था तो मैंने कह दिया। मेरा तो केवल चूत चोदने का विश्वास है।'

मैं- 'इसका मतलब अपने लंड की अकड़ को तुम मेरी चूत से निकालना चाहते हो?'

जीवन - 'हां अगर तुम हामी भर दो।'

मैं - 'मैं तुमको तो अपनी चूत तुम्हें दे तो दूं पर मुझे क्या फायदा होगा?'

जीवन- 'फायदा जो तुम चाहो?'

मैं- 'नहीं, तुम्ही ही बताओ।'

जीवन- 'जितने रूपये तुम चाहोगी मैं उतने देने को तैयार हूँ।'

मैं- 'नहीं रूपये तो नहीं चाहियें'

जीवन- 'तो ठीक है, यह प्रोजेक्ट मैं तैयार करूंगा और इसका जितना भी प्रोफिट होगा, वो सब तुम्हारा होगा और तुम अपने बॉस की बॉस हो जाओगी।'

मैं- 'और अगर इससे लॉस हुआ तो?' मैं बोली।

जीवन- 'वो मेरा!' छूटते ही बोला।

मैं - 'तुम अपने वायदे से मुकर तो नहीं जाओगे?' मैंने अपने को कन्फर्म करने के लिये बोला।

जीवन- 'बिल्कुल नहीं!! मुझ पर विश्वास करो।'

कह कर वो मेरे और करीब आया और मुझे अपने से चिपका लिया और मेरे चूतड़ों को सहलाने लगा।

सहलाते हुए जीवन बोला- तुम बहुत मस्त हो, आज मुझे मजा दे दो।

मैं- 'तुम जो कहोगे, वो मैं करूंगी।'

मेरे कहने के बाद उसने मुझे अपने से अलग किया और बठने के लिये कुर्सी ऑफर की, फिर सरवेन्ट को बुला कर चाय वगैरह मंगवाई और फिर अपने पीए को बुला कर मेरा परिचय कराया और उसको ऑफिस की हिदायत देते हुए बोला कि प्रोजेक्ट के सिलसिले में मैं मेम साहब के साथ बाहर जा रहा हूँ, दो-तीन घंट लगेगे।

फिर वो मुझे लेकर ऑफिस से बाहर आ गये और उसी गाड़ी में बैठ गये जिस गाड़ी से मैं अभी-अभी ऑफिस आई थी।

हम दोनों को देखते ही उस ड्राइवर ने बड़े ही अदब के साथ दरवाजा खोला। पहले जीवन कार में गया और सीट पर बैठ गया पर उसने अपने बांयें हाथ को सीट पर टिका दिया। मैं कार के अन्दर हुई और जीवन के हथेली के ही ऊपर अपने चूतड़ों को रख दिया, मैंने अपनी स्कर्ट भी थोड़ी ऊँची कर ली थी ताकि उसको मेरी गांड की गर्माहट का अहसास हो जाये। ड्राइवर ने दरवाजा बन्द किया और अपनी सीट की तरफ बढ़ने लगा, तब तक मैंने अपनी पैन्टी भी उतार कर मैंने अपने बैग में रख ली। उसी समय जीवन की उंगली मेरी चूत के अन्दर घुसने का रास्ता ढ़ूंढ रही थी। जैसे ही जीवन की उंगली ने मेरी चूत को स्पर्श किया,

जीवन बोल उठा- यू वेट?

मैं बोली- याह, थिन्किंग अबाउट यू! मजा तब है कि इस रस का स्वाद लो।

जीवन मुस्कुराया और फिर मेरी गीली चूत के अन्दर उसने दो से तीन मिनट तक उंगली घुमाई और फिर बाहर निकाल कर बड़े ही स्टाईल से ड्राइवर की नजर बचाकर अपनी उंगली को चाटने के साथ कमेन्ट भी किया- वेरी स्वीट!
 
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