hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
जयसिंह ने कैब ड्राईवर से उन्हें किसी अच्छे शॉपिंग मॉल में ले चलने को कहा था पर ड्राईवर ने उन्हें दिल्ली का साउथ-एक्स मार्केट जाने की सलाह दी और उनके हाँ कहने पर उन्हें वहाँ ले जा छोड़ा था.
मनिका जैसे उस पॉश मार्केट को देख स्वप्न-लोक में पहुँच गई थी. चारों तरफ चका- चौंध भरे डिस्प्ले में तरह-तरह के फैशनेबल कपड़े, मेकअप का सामान और दुनिया जहान की चीज़ें थी वहाँ, 'वाओ पापा...’मनिका ने खुश होते हुए कहा था.
वे लोग अब एक-एक कर शोरूम्स में सामान देखने लगे. कुछ देर बाद घूमते-घूमते वे एक कपड़ों और असेसरीज (बेल्ट, पर्स, घड़ीयां इत्यादि) के मेगा-स्टोर लाईफ-स्टाइल में जा पहुँचे, जहाँ हर ब्रैंड के कपड़े मिलते थे. स्टोर में जब एक सेल्स-बॉय ने उनसे पूछा कि वे क्या लेना पसँद करेंगे तो जयसिंह ने मनिका की तरफ इशारा कर दिया था, कि वह उसके लिए कपड़े देखने आए हैं. उसने उन्हें विमेंस-सेक्शन की तरफ जाने को कहा था जो की स्टोर में पीछे की तरफ था.
जयसिंह ने मनिका से कहा,
'जाओ भई देख लो और पसंद से लेलो जो लेना है...'
'आप नहीं आ रहे हो पापा?' मनिका ने सवालिया निगाहों से उन्हें देखा.
'मैं क्या करूँगा वहाँ, लड़कियों का सामान होगा सब.'
'तो क्या हुआ पापा सजेस्ट तो कर ही सकते हो ना मुझे, आओ ना आई नीड योर हेल्प.' मनिका ने जिद की, जयसिंह कैसे न जाते.
विमेंस-सेक्शन में रखा कलेक्शन देख मनिका की बांछें खिल उठीं थी, वहाँ सब नए और लेटेस्ट डिज़ाइनस के कपड़े थे, जो उनके शहर में हमेशा पुराने हो जाने के बाद ही पहुँचा करते थे. वह उत्साह से कभी इधर तो कभी उधर जा-जा कर कपड़े उलट-पलट कर देख रही थी.
'पापा इतना अच्छा कलेक्शन है यहाँ पर.' मनिका ने जयसिंह से आँखें मटका कर कहा. उसका आशय साफ़ था कि क्या वह शॉपिंग कर सकती है?
'हाँ तो कर लो न पसंद...' जयसिंह ने उसे फिर कहा.
'हाँ पापा...' मनिका बोली और फिर नज़रें नीची कर आगे बोली 'लेकिन यहाँ के रेट्स तो देखो...'
'मनिका...' जयसिंह बोले.
'हाँ पापा?' मनिका ने उनकी तरफ देखा, जयसिंह उसे देखते रहे पर कुछ बोले नहीं. एक-दो सेकंड ही बीते थे कि मनिका उनका इशारा समझ गई और हँसते हुए बोली 'हीही पापा मैं समझ गई...कि पैसों की चिंता नहीं करनी है.'
जयसिंह ने उसका गाल थपथपाया और बोले, 'वैरी गुड.' आधा घंटा बीतते-बीतते मनिका ने तीन जीन्स और चार-पाँच टॉप्स पसंद कर लिए थे और सेल्स-गर्ल से उन्हें एक तरफ रखने को बोल दिया था. जयसिंह साइड में खड़े शॉपिंग करती हुई मनिका को ऑब्सर्व कर रहे थे; मनिका अब वहाँ रैक पर रखीं शॉर्ट्स और स्कर्ट्स को उठा कर देख रही थी, कुछ देर बाद वह धीरे-धीरे आगे बढ़ती हुई पार्टी-वियर ड्रेसेस के पास पहुँची फिर आगे बढ़ते हुए उसने कुछ और टॉप्स उठा कर देखे थे और इस तरह घूमते हुए वह असेसरीज के सेक्शन में से होती हुई घूम कर वापस उनकी तरफ आ गई थी,
'क्या हुआ? देख लिया सब कुछ?' जयसिंह ने पूछा.
'कहाँ पापा. इतना कुछ है यहाँ कि पूरा दिन लग जाए मेरा तो.' मनिका ने मुस्का कर कहा.
'और कुछ पसंद आया तुम्हें?'
'पसंद तो पूरा स्टोर ही आ गया है पापा...पर क्या करूँ...आज के बाद कहीं आप फिर कभी मुझसे पैसों की चिंता ना करने को नहीं बोले तो...' मनिका ने शरारत भरी नज़र से उन्हें देखते हुए कहा.
'हाहाहा...अच्छा तो ये बात है. बड़ी सयानी हो तुम भी.' जयसिंह ने हँस कर कहा.
'वो तो मैं हूँ ही...' मनिका इठलाई.
'लेकिन अभी तो और चीज़ें ले सकती हो अगर तुम्हारा मन है तो. उधर क्या है, कुछ पसंद नहीं आया तुम्हें?' जयसिंह ने जिस तरफ से वो घूम कर आई थी उधर हाथ से इशारा करते हुए पूछा था.
'ओह उधर?' मनिका ने एक रहस्यमई मुस्कान बिखेरते हुए कहा 'वो आप देखोगे तो लेने से मना कर दोगे.'
'क्यूँ? ऐसा क्या है.' जयसिंह अनजान बनते हुए बोले.
'है तो कपड़े ही पापा...कपड़ो के स्टोर में टमाटर थोड़े ही होंगे...' मनिका ने होशियारी दिखाते हुए कहा था 'लेकिन आप को पसंद नहीं आएँगे. वो थोड़े छोटे-टाइप्स हैं...’उसने दोनों हाथों से हवा में छोटा होने का हाव बनाकर कहा.
'अरे ऐसा कुछ नहीं है, तुम को जो पसंद है वो चीज़ ले सकती हो तुम ओके?' जयसिंह ने थोड़ा गंभीर हो उससे कहा.
'हाँ पापा आई क्नॉ दैट.' मनिका ने उन्हें आश्वासन दिया.
'हाँ तो फिर बाय (खरीद लो) जो भी तुम्हें लेना हो, ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलेगा.' जयसिंह ने उसकी पीठ पर थपकी देकर कहा.
'हाहाहा...पापा अब आप इतना इंसिस्ट कर रहे हो तो ले ही लेती हूँ.' मनिका ने शरारत भरी स्माइल फिर से देकर कहा. उसके मन में लडडू फूट रहे थे.
मनिका ने दोबारा शॉर्ट्स और स्कर्ट्स वाले सेक्शन में जा सेल्स-गर्ल से बात की जिसके बाद सेल्स-गर्ल ने उसे काउंटर पर फिर से कपड़े दिखाने शुरू कर दिए. जयसिंह वहीँ लगे एक सोफे पर बैठ कर उसका इंतज़ार करने लगे. काफी देर बाद मनिका वापस आई, जयसिंह ने उसे फिर से हर एक सेक्शन में जाते हुए देखा था 'आज पहली बार क्रेडिट-कार्ड का पूरा सही इस्तेमाल होगा.' जयसिंह ने बैठे हुए सोचा था और मुस्कुरा उठे थे.
'हेय पापा.' मनिका ने उनके पास आते हुए कहा.
'हाँ भई? हो गई शॉपिंग पूरी?' उन्होंने पूछा.
'हाँ पापा डन.' मनिका ख़ुशी-ख़ुशी बोली.
'ले लिया सब कुछ या अभी और कुछ बाकी है?' जयसिंह ने उठते हुए पूछा.
'हेहेहे पापा वो तो आपको बिल देख कर पता चल जाएगा.' मनिका ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा 'वैसे आपको मम्मी के लिए कुछ लेना हो तो ले सकते हो. वहाँ आगे की तरफ ट्रेडिशनल क्लोथ्स का भी सेक्शन है.'
'उसे तो मैं लक्ष्मी क्लॉथ स्टोर से दिला दूंगा.' जयसिंह ने अपने शहर की सूट-साड़ियों की एक दूकान का नाम लेकर कहा.
'ईहहहहहाहा पापा!' उनकी बात सुन कर मनिका की जोर की हँसी छूट गई थी. वह कुछ देर तक वैसे ही खड़ी हुई हंसती रही. इधर-उधर खड़े लोगों का ध्यान भी उसकी तरफ आकर्षित हो गया था. कुछ लोग उन्हें देख कर मुस्कुरा भी रहे थे.
'अरे अब बस करो मनिका...लोग देख रहें हैं कि कहीं पागल तो नहीं है ये लड़की.' मनिका की रह-रह छूटती हँसी को देख कर जयसिंह ने कहा.
'ओह पापा यू आर सो सो फनी...रियली...' मनिका ने आखिर अपनी हँसी पर काबू पाते हुए कहा.
'अरे भई अगर मधु को कपड़े दिलाने होते तो उसे न लेकर आता यहाँ, वैसे भी ज़िन्दगी भर दिलाता आया हूँ उसे तो...आज तुम्हारी बारी है.' जयसिंह ने भी शरारती लहजे में कहा.
'ऊऊओह्हह्हह रियली पापा...' मनिका ने अपनी हसीन अदा से पूछा.
'और नहीं तो क्या..?' जयसिंह उसे निहारते हुए बोले.
'पर पापा आपने तो मुझे कुछ दिलाया ही नहीं...' मनिका ने भोला सा चेहरा बना कर कहा.
'हैं? तो फिर ये सब शॉपिंग जो तुमने की है इसका बिल क्या...’जयसिंह बोलते हुए रुक गए. वे कहने वाले थे कि बिल क्या तुम्हारा बाप भरेगा. लेकिन मनिका समझ गई थी,
'हिहाहा हाँ पापा...वही भरेगा.' उसने उन्हें छेड़ा.
'अब मुझे लग रहा है कि गलत ले आया मैं तुम्हें शॉपिंग कराने.' जयसिंह भी कहाँ पीछे रहने वाले थे.
'हेहे पापा. बट मेरा वो नहीं था मतलब. आई मीन के आप तो सिर्फ पे कर रहे हो इस सब के लिए. आपने अपनी पसंद से तो मुझे कुछ दिलाया ही नहीं...’ मनिका ने उन्हें समझाते हुए कहा.
'ओह तो ऐसा क्या?' जयसिंह के मन में लडडू फूटा.
'हाँ ऐसा.' मनिका ने उनकी नक़ल करते हुए कहा था.
जयसिंह ने कुछ पल सोच कर कहा 'तो क्या दिलाऊं फिर मैं तुम्हें?'
'अगर मैं ही बताउंगी तो फिर सेम ही बात रहेगी ना पापा.' मनिका ने मजे लेते हुए कहा.
'ह्म्म्म...'
'सोचो-सोचो कुछ अच्छा सा.' मनिका उन्हें उकसा कर खुश हो रही थी.
'अच्छे बुरे से तुम्हें क्या मतलब, मेरी पसंद की चीज़ होनी चाहिए ना, न की तुम्हारी पसंद की.' जयसिंह ने मनिका का ही तीर वापस उस पर चलाते हुए कहा और आगे बोले, 'चीज़ तो मैंने सोच ली है बट उसे कहते क्या हैं ये मुझे नहीं पता...और हो सकता है तुम वो पहले ही खरीद चुकी हो.'
'मुझे डिसकराईब करके बताओ...आई विल हेल्प यू आउट.' मनिका ने उत्सुकता से कहा.
'अरे वही पेंट जो तुम घर से पहन कर निकली थी...' जयसिंह बोल ही रहे थे कि मनिका ने ठहाका लगा कर उनकी बात काट दी,
'हाहाहा नॉट पेंट पापा! आपको तो सच में कुछ नहीं पता.' मनिका बोली 'लेग्गिंग्स...दे आर कॉल्ड लेग्गिंग्स और मैंने वो नहीं ली है सो आप मुझे दिला सकते हो.' और फिर से खिलखिलाने लगी.
मनिका जैसे उस पॉश मार्केट को देख स्वप्न-लोक में पहुँच गई थी. चारों तरफ चका- चौंध भरे डिस्प्ले में तरह-तरह के फैशनेबल कपड़े, मेकअप का सामान और दुनिया जहान की चीज़ें थी वहाँ, 'वाओ पापा...’मनिका ने खुश होते हुए कहा था.
वे लोग अब एक-एक कर शोरूम्स में सामान देखने लगे. कुछ देर बाद घूमते-घूमते वे एक कपड़ों और असेसरीज (बेल्ट, पर्स, घड़ीयां इत्यादि) के मेगा-स्टोर लाईफ-स्टाइल में जा पहुँचे, जहाँ हर ब्रैंड के कपड़े मिलते थे. स्टोर में जब एक सेल्स-बॉय ने उनसे पूछा कि वे क्या लेना पसँद करेंगे तो जयसिंह ने मनिका की तरफ इशारा कर दिया था, कि वह उसके लिए कपड़े देखने आए हैं. उसने उन्हें विमेंस-सेक्शन की तरफ जाने को कहा था जो की स्टोर में पीछे की तरफ था.
जयसिंह ने मनिका से कहा,
'जाओ भई देख लो और पसंद से लेलो जो लेना है...'
'आप नहीं आ रहे हो पापा?' मनिका ने सवालिया निगाहों से उन्हें देखा.
'मैं क्या करूँगा वहाँ, लड़कियों का सामान होगा सब.'
'तो क्या हुआ पापा सजेस्ट तो कर ही सकते हो ना मुझे, आओ ना आई नीड योर हेल्प.' मनिका ने जिद की, जयसिंह कैसे न जाते.
विमेंस-सेक्शन में रखा कलेक्शन देख मनिका की बांछें खिल उठीं थी, वहाँ सब नए और लेटेस्ट डिज़ाइनस के कपड़े थे, जो उनके शहर में हमेशा पुराने हो जाने के बाद ही पहुँचा करते थे. वह उत्साह से कभी इधर तो कभी उधर जा-जा कर कपड़े उलट-पलट कर देख रही थी.
'पापा इतना अच्छा कलेक्शन है यहाँ पर.' मनिका ने जयसिंह से आँखें मटका कर कहा. उसका आशय साफ़ था कि क्या वह शॉपिंग कर सकती है?
'हाँ तो कर लो न पसंद...' जयसिंह ने उसे फिर कहा.
'हाँ पापा...' मनिका बोली और फिर नज़रें नीची कर आगे बोली 'लेकिन यहाँ के रेट्स तो देखो...'
'मनिका...' जयसिंह बोले.
'हाँ पापा?' मनिका ने उनकी तरफ देखा, जयसिंह उसे देखते रहे पर कुछ बोले नहीं. एक-दो सेकंड ही बीते थे कि मनिका उनका इशारा समझ गई और हँसते हुए बोली 'हीही पापा मैं समझ गई...कि पैसों की चिंता नहीं करनी है.'
जयसिंह ने उसका गाल थपथपाया और बोले, 'वैरी गुड.' आधा घंटा बीतते-बीतते मनिका ने तीन जीन्स और चार-पाँच टॉप्स पसंद कर लिए थे और सेल्स-गर्ल से उन्हें एक तरफ रखने को बोल दिया था. जयसिंह साइड में खड़े शॉपिंग करती हुई मनिका को ऑब्सर्व कर रहे थे; मनिका अब वहाँ रैक पर रखीं शॉर्ट्स और स्कर्ट्स को उठा कर देख रही थी, कुछ देर बाद वह धीरे-धीरे आगे बढ़ती हुई पार्टी-वियर ड्रेसेस के पास पहुँची फिर आगे बढ़ते हुए उसने कुछ और टॉप्स उठा कर देखे थे और इस तरह घूमते हुए वह असेसरीज के सेक्शन में से होती हुई घूम कर वापस उनकी तरफ आ गई थी,
'क्या हुआ? देख लिया सब कुछ?' जयसिंह ने पूछा.
'कहाँ पापा. इतना कुछ है यहाँ कि पूरा दिन लग जाए मेरा तो.' मनिका ने मुस्का कर कहा.
'और कुछ पसंद आया तुम्हें?'
'पसंद तो पूरा स्टोर ही आ गया है पापा...पर क्या करूँ...आज के बाद कहीं आप फिर कभी मुझसे पैसों की चिंता ना करने को नहीं बोले तो...' मनिका ने शरारत भरी नज़र से उन्हें देखते हुए कहा.
'हाहाहा...अच्छा तो ये बात है. बड़ी सयानी हो तुम भी.' जयसिंह ने हँस कर कहा.
'वो तो मैं हूँ ही...' मनिका इठलाई.
'लेकिन अभी तो और चीज़ें ले सकती हो अगर तुम्हारा मन है तो. उधर क्या है, कुछ पसंद नहीं आया तुम्हें?' जयसिंह ने जिस तरफ से वो घूम कर आई थी उधर हाथ से इशारा करते हुए पूछा था.
'ओह उधर?' मनिका ने एक रहस्यमई मुस्कान बिखेरते हुए कहा 'वो आप देखोगे तो लेने से मना कर दोगे.'
'क्यूँ? ऐसा क्या है.' जयसिंह अनजान बनते हुए बोले.
'है तो कपड़े ही पापा...कपड़ो के स्टोर में टमाटर थोड़े ही होंगे...' मनिका ने होशियारी दिखाते हुए कहा था 'लेकिन आप को पसंद नहीं आएँगे. वो थोड़े छोटे-टाइप्स हैं...’उसने दोनों हाथों से हवा में छोटा होने का हाव बनाकर कहा.
'अरे ऐसा कुछ नहीं है, तुम को जो पसंद है वो चीज़ ले सकती हो तुम ओके?' जयसिंह ने थोड़ा गंभीर हो उससे कहा.
'हाँ पापा आई क्नॉ दैट.' मनिका ने उन्हें आश्वासन दिया.
'हाँ तो फिर बाय (खरीद लो) जो भी तुम्हें लेना हो, ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलेगा.' जयसिंह ने उसकी पीठ पर थपकी देकर कहा.
'हाहाहा...पापा अब आप इतना इंसिस्ट कर रहे हो तो ले ही लेती हूँ.' मनिका ने शरारत भरी स्माइल फिर से देकर कहा. उसके मन में लडडू फूट रहे थे.
मनिका ने दोबारा शॉर्ट्स और स्कर्ट्स वाले सेक्शन में जा सेल्स-गर्ल से बात की जिसके बाद सेल्स-गर्ल ने उसे काउंटर पर फिर से कपड़े दिखाने शुरू कर दिए. जयसिंह वहीँ लगे एक सोफे पर बैठ कर उसका इंतज़ार करने लगे. काफी देर बाद मनिका वापस आई, जयसिंह ने उसे फिर से हर एक सेक्शन में जाते हुए देखा था 'आज पहली बार क्रेडिट-कार्ड का पूरा सही इस्तेमाल होगा.' जयसिंह ने बैठे हुए सोचा था और मुस्कुरा उठे थे.
'हेय पापा.' मनिका ने उनके पास आते हुए कहा.
'हाँ भई? हो गई शॉपिंग पूरी?' उन्होंने पूछा.
'हाँ पापा डन.' मनिका ख़ुशी-ख़ुशी बोली.
'ले लिया सब कुछ या अभी और कुछ बाकी है?' जयसिंह ने उठते हुए पूछा.
'हेहेहे पापा वो तो आपको बिल देख कर पता चल जाएगा.' मनिका ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा 'वैसे आपको मम्मी के लिए कुछ लेना हो तो ले सकते हो. वहाँ आगे की तरफ ट्रेडिशनल क्लोथ्स का भी सेक्शन है.'
'उसे तो मैं लक्ष्मी क्लॉथ स्टोर से दिला दूंगा.' जयसिंह ने अपने शहर की सूट-साड़ियों की एक दूकान का नाम लेकर कहा.
'ईहहहहहाहा पापा!' उनकी बात सुन कर मनिका की जोर की हँसी छूट गई थी. वह कुछ देर तक वैसे ही खड़ी हुई हंसती रही. इधर-उधर खड़े लोगों का ध्यान भी उसकी तरफ आकर्षित हो गया था. कुछ लोग उन्हें देख कर मुस्कुरा भी रहे थे.
'अरे अब बस करो मनिका...लोग देख रहें हैं कि कहीं पागल तो नहीं है ये लड़की.' मनिका की रह-रह छूटती हँसी को देख कर जयसिंह ने कहा.
'ओह पापा यू आर सो सो फनी...रियली...' मनिका ने आखिर अपनी हँसी पर काबू पाते हुए कहा.
'अरे भई अगर मधु को कपड़े दिलाने होते तो उसे न लेकर आता यहाँ, वैसे भी ज़िन्दगी भर दिलाता आया हूँ उसे तो...आज तुम्हारी बारी है.' जयसिंह ने भी शरारती लहजे में कहा.
'ऊऊओह्हह्हह रियली पापा...' मनिका ने अपनी हसीन अदा से पूछा.
'और नहीं तो क्या..?' जयसिंह उसे निहारते हुए बोले.
'पर पापा आपने तो मुझे कुछ दिलाया ही नहीं...' मनिका ने भोला सा चेहरा बना कर कहा.
'हैं? तो फिर ये सब शॉपिंग जो तुमने की है इसका बिल क्या...’जयसिंह बोलते हुए रुक गए. वे कहने वाले थे कि बिल क्या तुम्हारा बाप भरेगा. लेकिन मनिका समझ गई थी,
'हिहाहा हाँ पापा...वही भरेगा.' उसने उन्हें छेड़ा.
'अब मुझे लग रहा है कि गलत ले आया मैं तुम्हें शॉपिंग कराने.' जयसिंह भी कहाँ पीछे रहने वाले थे.
'हेहे पापा. बट मेरा वो नहीं था मतलब. आई मीन के आप तो सिर्फ पे कर रहे हो इस सब के लिए. आपने अपनी पसंद से तो मुझे कुछ दिलाया ही नहीं...’ मनिका ने उन्हें समझाते हुए कहा.
'ओह तो ऐसा क्या?' जयसिंह के मन में लडडू फूटा.
'हाँ ऐसा.' मनिका ने उनकी नक़ल करते हुए कहा था.
जयसिंह ने कुछ पल सोच कर कहा 'तो क्या दिलाऊं फिर मैं तुम्हें?'
'अगर मैं ही बताउंगी तो फिर सेम ही बात रहेगी ना पापा.' मनिका ने मजे लेते हुए कहा.
'ह्म्म्म...'
'सोचो-सोचो कुछ अच्छा सा.' मनिका उन्हें उकसा कर खुश हो रही थी.
'अच्छे बुरे से तुम्हें क्या मतलब, मेरी पसंद की चीज़ होनी चाहिए ना, न की तुम्हारी पसंद की.' जयसिंह ने मनिका का ही तीर वापस उस पर चलाते हुए कहा और आगे बोले, 'चीज़ तो मैंने सोच ली है बट उसे कहते क्या हैं ये मुझे नहीं पता...और हो सकता है तुम वो पहले ही खरीद चुकी हो.'
'मुझे डिसकराईब करके बताओ...आई विल हेल्प यू आउट.' मनिका ने उत्सुकता से कहा.
'अरे वही पेंट जो तुम घर से पहन कर निकली थी...' जयसिंह बोल ही रहे थे कि मनिका ने ठहाका लगा कर उनकी बात काट दी,
'हाहाहा नॉट पेंट पापा! आपको तो सच में कुछ नहीं पता.' मनिका बोली 'लेग्गिंग्स...दे आर कॉल्ड लेग्गिंग्स और मैंने वो नहीं ली है सो आप मुझे दिला सकते हो.' और फिर से खिलखिलाने लगी.